FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--106
गतांक से आगे ...........
चौतीस सी का पुष्ट वक्ष ...और अट्ठाइस की कमर, गोरी गुज्जु बाला ...नाचती तो फिरकी को मात कर देती ...इसी रूप पे तो फिदा हो गया था आनंद हीरो हमारा ...जब वो गरबा के दिनों में बड़ोदा में था ...उस समय मीनल एम् एस यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स में पढ़ती ...आनंद को उसने बड़ोदा घुमाया , नचाया ...और दोनों की पक्की दोस्ती हो गयी ....
और यही मीनल काम आयी आतंक के सूत्र को बड़ोदा में जोड़ने में ...
पता तो रीत ने किया ...कोडेड स्टोरी का पता कर ...बुब्बस आन फायर जो जेड ने लिट इरोटिका पे पोस्ट की थी और जो कहानी के जरिये उसने अपने आकाओं को प्रोग्राम बताया था लेकिन रीत ने और फिर हैकर्स ने उसे डी साइफर किया और पता चला की ...बनारस के साथ साथ जो और शहर निशाने पे हैं ...वो हैं बड़ोदा और बाम्बे ( मुम्बई ).. लेकिन जब रीत ने रेहन और उस के ठरकियों के जरिये ( उन सब को उसने रंजी का चारा डाला था ...वो सब को रंजी कि दिलवाएगी , जब रंजी बनारस आएगी ) पता किया कि ...बॉम्बर ( जिसने आर डी एक्स से बनारस में बॉम्ब बनाये थे ) ने जेड के साडी के पैकेट के साथ लगता है पार्सल से बड़ोदा और मुम्बई के लिए उन्हें भेजा है और वो खुद सावरमती एक्सप्रेस के एस 6 कोच से बनारस से बड़ोदा गया है ...तो आगे का काम मीनल ने ही सम्भाला .
मीनल ने स्टेशन पे पार्सल एजेंट्स से ये पता किया कि वो पैकेट जो आदमी छुड़वाने आया है ...वो बड़ोदा स्टेशन के अलकापुरी एंड पे हार्मोनी होटल पे टिका है ...लेकिन वहाँ से भी वो दो दिन में एक लाज में शिफ्ट हो गया . मीनल ने न सिर्फ उस लाज का पता लगाया ...बल्कि उससे मिलने वाले एक आदमी का भी जिसे उसने पैकेट दिया था ...मीनल ने अपने फाइन आर्टस् की पढ़ाई का इस्तेमाल कर के उसका स्केच भी बनाया . और उसे ढूंढ भी निकाला। आनंद ने कार्लोस और अपने कनेक्शन से येतो पता कर लिया था कि बड़ोदा से एक आदमी थुरया सेट फोन से रात में उसी जगह बात करता है जहाँ से जेड बनारस से बात करता है ...और ये रेल्वे के के एक यार्ड के पास की है ...मीनल ने जब उस का पता रेलवे में स्केच कि सहायता से लगाया ...तो पता चला कि वो एक बैचलर है ..टी एक्स आर ( ट्रेन कैरिज एक्जामिनर ) में , हेड टी एक्स आर के पोस्ट पे काम करता है ...
मीनल जो अब पत्रकार बन गयी थी ...उस से मिली भी ...दो बार उस के काम का भी उसने जायजा लिया . इसी यार्ड के बगल में हिंदुस्तान कि सरकारी क्षेत्र में सबसे बड़ी रिफायनरी थी और साथ में एल पी जी डिपो , फर्टिलाइजर फैक्ट्री और पेट्रोलियुम के अनेक संयत्र थे ...ये इन्फोर्मेशन उन्होंने आई बी के साथ गुजरात सरकार से की थी , जिन्होंने रेड अलर्ट घोषित कर दिया था और उन का मानना था कि अब परिंदा भी पर नहीं मार सकता.
लेकिन रीत और आनंद कि सोच अलग थी और ...उसके ठोस कारण थे ...
हैकर्स ने जो आखिरी बात चीत सेट फोन की रिकार्ड की थी ...उसमें ये साफ हो गया था कि होली कि रात को ही हमला होगा .
ये सम्भावना भी काफी थी कि हमले का टारगेट पेट्रो काम्प्लेक्स हो ...
लेकिन हमला कैसे होगा इस की कोई सुनगुन नहीं थी ...
वो लोग उस आदमी को जिसे कोड नेम वाई दिया था ...उसे पहले पकड़ना नहीं चाहते थे ..एक तो उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था ... दुसरे उसे ट्रेस कर के वो हमले के सोर्स तक पहुँच सकते थे और तीसरी बात जो सबसे खतरनाक थी ...अगर उसका कोई वैकल्पिक स्लीपर उसके आकाओं ने तैयार कर कर रखा होगा तो उसका तो उन्हें कोई पता नहीं था ...और फिर हमले को रोकना नामुमकिन हो जाता ...
बनारस में जिस तरह रेहन और कार्लोस कि सहायता से उनके दांत रीत ने उखाड़े थे ...इसलिए ये तय हुआ था कि रीत बड़ोदा जाए ...और वहाँ मीनल उसकी सहायता करेगी . मीनल का रोल बहोत इम्पोर्टेंट था उसने 'वाई ' को देखा था ...उसके काम के तरीके को जानती थी और कई बार यार्ड में गयी थी . काम खतरनाक था लेकिन मीनल उसके लिए तैयार थी ...
रीत मीनल के बारे में सोच ही रही थी कि करन केबिन में आया नहा धो के तैयार हो के ...उसके हाथ में एक मोटी सी रिपोर्ट भी थी .
रीत समझ गयी कि ये वही रिपोर्ट है जिसके बारे में कल आनन्द बात कर रहा था ...
आगे
मेरे सोर्सेज ने जो खबर दी है वो सीरियस है .
करन ने सीरियस हो के कहा .
मतलब ...रीत ने चौँक के पूछा ...
" कल शाम से उनके आपरेशनल हेडक्वॉर्टस से कोई कम्युनिकेशन नहीं है न ...इधर से है ...पूरा सन्नाटा ."
" तो मतलब ....उनका आपरेशन कैंसल ...." रीत ख़ुशी से बोली
" जी नहीं ...इसका मतलब कम्प्लीट रेडियो साइलेंस आब्जर्व हो रही है और ...आपरेशन आज शाम को पक्का होगा ...और अभी हमें कुछ अंदाजा नहीं है कि हमला कैसे किधर से होगा , इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा ..." करन परेशान हो के बोला .
' अरे यार उनकी ऐसी कि तैसी कर देंगे .... तू है ना ..." रीत मुस्करा के बोली .
और रीत कि मुस्कराहट तो इंफेक्शस होती ही है ...करन भी मुस्कराने लगा और अचानक उसे कुछ याद आया ...और उसने पूछ लिया
वो कब मिलेगी
" हे तुम सुबह साली कि बात कर रही थी ...कौन है वो कब मिलेगी "
और तक दरवाजा खोल कर मीनल दाखिल हुयी ...
आज वो चोली साडी में थी ...और गजब लग रही थी ...
छोटी सी चोली ...कच्छी कढ़ाई , आलमोस्ट बैकलेस ...और आगे से डीप लो कट , पुश अप बहुत छोटी सी ...
उसके चौतीस सी पुष्ट सीने को उभारती ज्यादा छुपाती कम ...और छोटी इतनी कि पूरा गोरा पेट पेट साफ दिख रहा था ..
कमर इतनी पतली कि मुट्ठी में समा जाए ...और इस पतली कमर पे जोबन और गद्दर लग रहे थे ...
साडी उसने कूल्हों के भी नीचे बाँध रखी थी ...भरे हुए नितम्ब साफ दिख रहे थे ...
करन का मुंह खुला रह गया ...
साली का नाम लिया ...साली हाजिर ...हँसते हुए रीत बोली ...और इंट्रो कराया ...
मीनल मेरी छोटी बहन तुम्हारी साली ....और ये करन तेरे जीजू
मीनल और रीत का इंट्रो आनंद ने करा दिया था ... फिर तो फेसबुक , जी टाक और स्काइप ...कब वो पक्की दोस्त बनी और कब मीनल ने रीत दी मान लिया और रीत ने उसे अपनी प्यारी बहन ...पता नहीं .लेकिन अब दोनों दूध पानी कि तरह मिल चुकी थीं ..
मीनल भी करन कि ओर देख रही थी ...करन ने नमस्ते के लिए हाथ उठाया और मीनल ने मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया ...
और रीत ने दिया ...
" क्या ...साली , जीजू न हाथ मिलाते हैं और न नमस्ते वमस्ते ..."
" मालूम है ..." खिलखिलाते हुए मीनल ने बात पूरी कि और करन को अपने बाँहों में लेते हुए बात पूरी की " जीजू से गले मिलते है ..और ये तो मेरे एकलौते जीजू है .."
करन पहले तो कुछ सकपकाया फिर उसने भी मीनल को बाँहों में बांध लिया ...
उसके जवानी के फूलों
मीनल जानती थी ...करन को क्या पसन्द होगा ...जब से वो आयी चोरी छुपे करन कि निगाहें वहीँ तो सहला रही थीं ...और फिर हर लड़का तो उसके जवानी के फूलों का दीवाना था ...
मीनल ने शरारत से अपने उभरे गदराये लो कट चोली से झांकते मुस्कराते उभार जोर से करन के सीने में गडा दिया और अपने बाँहों के बंधन भी जोर से भींच लिए ...और जो हुआ उसको मीनल का अंदाज भी नहीं था ...
करन का एक बित्ते का मोटा खूंटा जीन्स को फाड़ता सीधे मीनल के जाँघो के बीच , रामप्यारी पे धक्का मार रहा था ..
मुस्कराकर मीनल ने रीत की ओर देखा , दोनों ने एक दूसरे से आँखों ही आँखों में है फाइव किया ...
और रीत ने इशारा किया लगी रह यार तू छोटी बहन है मेरी तेरा तो हक़ बनता है ... और मीनल ने थोड़ी टाँगे फैलायीं और एक बार फिर करन को भींच लिया और उसके मुस्टंडे पे अपनी रामप्यारी और ...
गाल पे गाल रगड़ती बोली हैप्पी होली, और उस को छोड़ के अलग हो गयी .
वो एक पैकेट लायी थी ...उसने रीत को पकड़ा दिया .
रीत ने उससे दो पेयर जींस और टॉप लाने को बोला था , कुर्ती पजामी में तो आतंकियों से मुकाबला होता नहीं ...और वो अपने जींस जल्दी में लाना भूल गयी थी .
" हे कैसे जीजू हो ... सुबह से साली साली का पहाड़ा रट रहे थे। अब आयी है तो कम से कम एक किस्सी तो ले लिए होते . " रीत ने करन को चिढ़ाया पैकेट ले बाथरूम में कपडे बदलने चली गयी ...
लेकिन जवाब मीनल ने दिया ...हंस कर " अरे दी सिर्फ किस्सी ...मेरे एकलौते जीजू है ..."
" तुम दोनों जो चाहे लेन देन करो ...जीजा साल्ली के बीच मैं नहीं बोलने वाली ..." रीत मुस्कराके चेंज करने चली गयी
और जब वो लौटी तो लेन देन तो नहीं हो रही थी ...हाँ जीजा साली एकदम चिपक के बैठे कबूतर की तरह गुटरगूं कर रहे थे ...हाँ मीनल का आँचल ढलका हुआ था और उस का एक उभार एकदम खुला था और दूसरा भी बस लुका छिपी कर रहा था ...और करन के नदीदे हाथ भी ...मीनल के कंधे पे थे और उंगलियां ...उसके डीप लो कट बैकलेस चोली से खुल कर झांकते उरोज हलके से सहला रहे थे.
रीत को देख के ना मीनल ने आँचल ठीक किया ना करन ने उरोजों से ऊँगली हटाई ..
रीत मुस्करायी ...अब दोनों पक्के साली जीजा हो गए .
लेकिन मीनल को चोली साडी में देख के अचानक रीत को याद आया ...इसे भी तो मेरे साथ यार्ड में चलना है ...साडी में भाग दौड़ ...
उसने मीनल को टोका ,
" हे सुन एक पेयर टॉप जींस तू ले आयी है ना ..एक्स्ट्रा ...तू भी पहन ले ..वहाँ साडी में ..."
और उसकी बात काटके ...करन बोला ..." और क्या तुम दोनों की नाप एक ही है ...जोर से खिलखिला के "
मीनल और रीत जोर से खिलखिला के हंसी ..रीत ने चिढ़ाया ...
"अच्छा , तो तुम मीनल कि भी नाप ले चुके ...तभी कह रहे हो हैम दोनों कि नाप एक ही है
करन झेंप गया फिर मीनल कि ओर देखते हुएबात बना के बोला ...
" अरे नहीं मैं तो निगाहों से ही नाप ले लेता हूँ ."
फिर दोनों हंसी ...
दो लड़कियों से एक साथ पार पाना आसान नहीं ...अबकी मीनल ने तीर चलाया ...
"लगता है बचपन से ही अपनी मा बहनो की नापते रहे हैं ...दी ...इसलिए पक्की प्रैक्टिस हो गयी है .'
लेकिन उसके तरकश में तीर ख़तम नहीं हुए थे ..आखिर रीत कि छोटी बहन थी . झूक के अपनी गोलाइयों का जादू चलाते हुए बोली ,
" अरे जीजू ..आप भी ...नाप लीजिये ना ...फिर शाम को ले चलूंगी आपको माल में ..ड्रेसेज खरीदवाने ..."
बेचारा करन सकपका गया ...
और मीनल उठ के जींस टॉप ले के चेंज करने के लिए जाने लगी ...तो करन को शरारत सूझी ...
उसने मीनल को छेड़ा ...
" अरे साल्ली जी ...जीजू से क्या शरम ..यहीं चेंज कर लीजिये ना ..."
मीनल कौन पीछे रहने थी ठहर गयी और बोली .
" अरे जीजू आप लजा के बीर बहुटी हो रहे थे इसलिए मैं जा रही थी ... चलिये यहीं चेंज कर लेती हूँ ..'
करन ने थोड़ी और हिम्मत जुटाई ...और चढ्ढी बनियाइन भी ... वो बोला .
" जीजू आप क्या हलकी फुल्की शर्त लगाते हैं ...चलिए ये चढ्ढी बनयान मैं आपको गिफ्ट कर देती हूँ ... हाँ इसके बदले में शाम को नयी लेनी होगी ..."
मीनल मुस्कराते हुए बोली और साडी घुमा के उसने उतार उतार दी और फेंका तो सीधे करन के उपर
करन शर्मा गया और ...रीत और मीनल एक बार फिर फुलझड़ी हो गयीं.
"जीजू के ऊपर साडी कित्ति अच्छी लग रही है ..." मीनल ने चिढ़ाया .
करन और शर्मा गया ...लेकिन उसका मुस्टंडा , बित्ते भर का, सर उठाये खड़ा रहा , एकदम बेशर्मी से ..
मीनल ने अब मुस्टंडे को देखा , पैंट में तम्बू बनाये ...और उसे देखते रीत ने मीनल को देखा और उसके कान में कुछ फुसफुसाया .
सिर्फ चोली साये में ...मीनल के न सिर्फ गद्दर जोबन ही बेकाबू हो रहे थे , बल्कि उसकी पतली कमर पान सा चिकना पेट ...
और मीनल ने एक जान मारु अंगड़ाई ली और थोडा झुकी .
लो कट चोली से बस उसके मस्त किशोर गोरे गोरे उभार छलक के बाहर हो रहे थे ...जैसे दो कबूतर उड़ने को बेचैन हो रहे हों ...
और करन और बेकाबू हो गया ...लग रहा था अब उसका मुस्टंडा जींस फाड़ के ही दम लेगा .
रीत ने मीनल को कुछ इशारा और मीनल नागिन सी बलखाती ,इठलाती , मचलती ...करन के पास गयी और सीधे उसके गोद में बैठ गयी ...उसकी ओर पीठ कर के बिना साडी बैकलेस चोली में गोरी मक्खन सी चिकनी पीठ पूरी तरह खुली थी ...सिर्फ एक पतली सी स्ट्रिंग में चोली बंधी थी .
यही नहीं मीनल इस तरह बैठी कि उसके भारी नितम्ब सीधे तने खड़े मुस्टंडे पे पड़ें ...और जोर से अपने चूतड़ उस पे रगड़ दिए और अपनी पतली गर्दन घुमा के ...अदा से करन से चोली के बन्ध कि ओर इशारा कर के बोली ...
" जीजू आप ही खोल दो न इसे ..."
बस बिजली नहीं गिरी ...
करन ने चोली के बंध खोल दिए ...लेकिन चतुर चालाक मीनल ने दोनों हाथों से चोली को सम्हाले रखा ...और उठते समय जैसे सहारा ले रही हो ...जोर से अपने कोमल कमल से हाथों से , जोर से उस 'मुस्टण्डे 'को मसल दिया ...
और रीत के पास आके खडी हो गयी .
करन का गला सूख रहा था ...मीनल अभी भी दोनों हाथो से चोली पकड़े खडी थी ...
करन कुछ बोलता उसके पहले उसने उसे एक फ्लाइंग किस दी और चोली उसकी ओर उछाल दी .
वो सीधे मुस्टंडे के ऊपर जा पड़ी .
अब मीनल सिर्फ ब्रा और साये में थी ...और ब्रा भी ऑलमोस्ट शियर ..लेसी और हाफ कप बस उसके उभारों को सपोर्ट करते ....सिर्फ कबूतर ही नहीं बल्कि उनकी लाल गुलाबी चोंच भी साफ दिख रही थी ...
अब करन कि आवाज खुली ...मीनल ...खोल दो ...खोल दो ...
मीनल ने एक खूब मीठी सी मुस्कान दी और ...मुड़ गयी ...
ब्रा फ्रंट ओपन थी ...ब्रा खोलते हुए उसने रीत से कहा ...
दी अब ये जहाँ पड़ेगी ....वो चीज मेरी हो जायेगी ..
एकदम हंसती हुयी रीत बोली ...
करन की ओर पीठ किये हुए ही ...मीनल ने अपनी फ्रंट ओपन लेसी पिंक ब्रा खोली और जैसे कोई आँख पे पट्टी बाँध के शब्द बेधी बाण चलाये ...उसने ब्रा उछाल दी ..
मीनल का निशाना एकदम अचूक ...सीधे मुस्टंडे पे ...ब्रा गिरी ...और
मीनल ने अपना टाप पहन लिया ...और करन की ओर मुड़ गयी ...
..
हे बेईमानी ....पैंटी ....करन चिल्लाया ...
सबसे ज्यादा जीजा साली का खेल तमाशा देख कर रीत खुश हो रही थी ...कित्ते दिनों बाद ...
मीनल मुस्करायी ...जीजू सिर्फ पैंटी ...
रीत ने करन को उकसाया ..." अरे साली बोल रही है ...मांग लो ना पैंटी के अंदर वाली चीज ...गुलाबी बुलबुल ..."
करन अभी भी झेंप रहा था और मीनल उसे और चिढ़ा रही थी ...उसने साया घुटनो तक उठा दिया ...
उसकी गोरी पिंडलिया , लम्बी सुन्दर टांगे , स्वर्ग की नसेनी कि तरह ...ललचा रही थी बुला रही थी ...
पर्दा थोडा और ऊपर उठा ...गोरी चिकनी मांसल जांघे ...
करन कि सांस रुकी हुयी थी ...
और तक मुस्करा के मीनल ने अपने साये में झुक के हाथ डाला ...जैसे जादूगर हैट में हाथ डालता है खरगोश निकालने के लिए ...
बजाय खरगोश के सिल्कन गुलाबी पैंटी निकली ....और इस बार ...वो सीधे ...करन के चेहरे पे ...
और जब तक करन कुछ समझता बोलता ...स्किन टाइट जींस साये के स साये के अंदर मीनल ने पहन ली और फिर साये का नाडा खोल के ...वो भी करन के ऊपर...
ये बेईमानी है ...करन जोर से चिल्लाया ...असली चीज तो वो देखने से रह ही गया .
एकदम नहीं रीत ने अम्पायर की तरह ...मीनल की ओर से फैसला सुनाया .
" मेरी छोटी बहन ने ...जो तुमने कहा वो किया ...तुम्हारे सामने चेंज किया और ब्रा पैंटी भी तुम्हे दे दी ..."
मीनल हँसते हुए करन के बगल में जा बैठी और उसे गुदगुदी करने लगी ..फिर बोली ...
" अरे जीजू ...कुछ चाहिए तो मांग लो ...आज होली के दिन ये साल्ली मना नहीं करेगी ...."
रीत भी पास में बैठ के बोली ..." करन मौका बढ़िया है मेरी ओर से खुली छूट ...और कैसे जीजू हो साली से मांगते थोड़ी हैं उसकी तो बस ...ले लेते हैं ..."
" एकदम दी ...लगता है जीजू को साली पसंद नहीं आयी ...क्यूँ जीजू ..." उसके गले में हाथ डाल की मीनल बोली।
करन मुस्करा दिया और मीनल को गले लगाते बोला ,
" पसंद तो बहुत आयी ..बस रंग गुलाल नहीं है वरना ...तुम्हे होली के रंग आज दिखा देता ..."
रीत ने फिर ललकारा
कैसे बनारस वाले हो अरे ...भूल गए बनारस में जीजा साल्ली की होली कैसे होती है ..
करन को अच्छी तरह याद था था पर अभी भी मीनल से वो कुछ झेंप रहा था ...
लेकिन मीनल झेंपने वाली नहीं थी ...आखिर रीत कि छोटी बहन जो थी ...
वो बोली ," अरे दी ...आप ही याद दिला दो न इन्हे ....वरना इनके भरोसे तो ..."
रीत चालू हो गयी ...
" अरे साल्ली के गाल करो लाल , चूम के चूस के ...
चूंची करो लाल रगड़ के काट के ..."
करन ने बीच में रोकने कि कोशीश की तो मीनल ने ही रीत को उकसाया ..
" अरे नहीं दी सुना दो पूरा ...वरना ये कहेंगे कि आखिरी दरवाजा तोड़ने के समय सो गये थे ..."
" अरे साली की चूत लाल करो चोद चोद के ..."
रीत ने बनारस की जीजा साली की रीत पूरी बतायी
पहल साली ने ही कि होली की ...अपने रसीले दहकते होंठ जीजू के गाल पे रगड़ के ...लिपस्टिक के रंग से होली खेल के ...
और फिर जीजा साली की होली चालू हो गयी ...एकदम बनारस स्टाइल ...
मीनल के होंठ लाल हुए ...
फिर टॉप उठा ...और अब तो ब्रा का कवच भी नहीं था ...
इत्ते देर से उसके किशोर उरोज ...करन को ललचा रहे थे उकसा रहे थे ..अब उन्हें पता चला किस से पाला पड़ा ...
पहले पहले तो करन के हाथ थोड़े झिझक रहे थे लेकिन आग में घी डाला रीत और फिर मीनल ने ..
रीत बोली ..."कैसे हलके से दबा रहे हो लगता है साल्ली नहीं बहन है ..."
" अरे नहीं दी ...उनके तो खूब जम के दबाते होंगे ..आखिर बचपन से प्रैक्टिस तो उन्ही के साथ की होगी ..." मीनल ने छेड़ा .
फिर तो करन चालू हो गया ...कभी मीनल के मस्त उभारों को चूमता कभी चूसता ...तो कभी छोटे छोटे निपल काट लेता ...
रीत कभी मीनल की ओर हो जाती तो कभी करन की तरफ ...
और मीनल भी अच्छी तरह से उसकी मोटी पिचकारी कि नाप जोख कर रही थी ...
लेकिन होली बिलो द बेल्ट पहुंचे ...उसके पहले एक हादसा हो गया ...
बुरा हो ग्राहम बेल का जिन्होंने टेलीफोन कि खोज की ..
दो टेलीफोन एक साथ घनघनाये ...
एक करन का मोबाइल और दूसरा ...केबिन का इंटरकॉम
मोबाइल पे पुलिस कमिशनर थे ...आधे घंटे में वो गुजरात रिफायनरी पहुंचने वाले थे ...वहाँ उन के साथ साथ डिफेंस के एक्सपर्ट , बॉम्ब डिस्पोजल के लोग और बाकी अफसर भी होंगे ...उन्होंने करन से बोला था की वो भी वहीँ पहुँच जाए
इंटर काम पे वान्या थी ...ब्रेकफास्ट के बारे में पूछ रही थी ...रीत ने बोला बस हम थोड़ी देर में मयूर महल पहुँच रहे हैं ...
तैयार होने में उन्हें कोई टाइम तो लगना नहीं था बस मीनल ने अपनी टॉप नीचे की ...
हाँ मुंह जरूर उस ने बुरा सा बना लिया ...
रीत समझ गयी . उस ने करन से कहा ..सुनो ...आज शाम को मेरी बहन को जम के शापिंग कराना ...
"और उस के बाद बची हुयी होली " मुस्करा के करन बोला ...
" सच्ची जीजू ..." ख़ुशी से मीनल उसके गले लिपट गयी .
" और क्या ...बस थोड़ी देर में कचरा साफ कर के आते हैं न ...और ये ट्रेन यहाँ से मिड नाइट के बाद जायेगी ..अपने पास टाइम ही टाइम है ...होली तो पूरी करनी ही है ..." हँसते हुए वो बोला .
तीनो मयूर महल पहुँच गए ..वहाँ वान्या उनका वेट कर रही थी
मयूर महल , महाराजा एक्सप्रेस का रेस्टोरेंट कोच जिसकी थीम पीकॉक थी . इसके शुरू में ही दो मोर की प्रतिकृत गेस्ट्स का स्वागत करती थी , और उसमें चालीस से ज्यादा लोग एक साथ ब्रेकफास्ट , लंच या डिनर कर सकते थे ...लेकिन अभी वहाँ चार लोग थे ...वान्या , रीत , मीनल और करन .
वान्या ने बताया कि गाडी कि अभी शंटिंग हो रही है इसलिए वो यार्ड में है . आधे घंटे के बाद गाडी फिर प्लेटफार्म पर प्लेस हो जायेगी ...तब वो उतर सकते है . करन -रीत के लिए गाडी प्लेटफार्म के सामने ही खडी है . उसने गाडी का नंबर और ड्राइवर का मोबाइल नंबर , करन को दे दिया . यही नहीं वो शेफ को भी बुअब ला के लायी थी . फिर उसने बोला कि वो अबवो कैरेज काम से जा रही है ...रूम अरेंज करने और दोपहर में नहीं रहेगी . हाँ शाम को वो कैरेज में वापस आ जायेगी , और उसने गाइड को बोल दिया है कि ये लोग पैलेस में बाकी ग्रुप के साथ मिल जायेंगे .
रीत ने मीनल का वान्या से इंट्रो करवाया तो करन ने शरारत से मीनल को देखते हुए वान्या से पुछा ..
" हे ये अगर हम लोगों के साथ हमारे स्यूट में मुम्बई चले तो कोई परेशानी तो नहीं होगी ..."
हंस के वान्या बोली ..." एकदम नहीं ..शी इज मोस्ट वेलकम ...और वैसे भी आपके स्यूट में दो केबिन हैं ...तो एक केबिन तो अभी खाली ही है ..'
मीनल ने मुस्कराते हुए आँखे तरेर कर देखा ...और वान्या वहाँ से बाई कर के निकल ली .
शेफ को उन लोगो ने हैवी ब्रेकफास्ट का आर्डर दिया ...क्योंकि ये ब्रेकफास्ट कम लंच था ...
रीत ने करन कि जांघ पे चिकोटी काटते हुए कहा ..
" अरे मीनल इसलिए गुस्सा हो रही थी कि तुम उसे अलग केबिन में सुलाओगे क्या ..."
मीनल और करन कुछ बोलते उसके पहले सर्विस स्टार्ट हो गयी ...पहले फ्रूट जूस ...फिर कार्न फ्लेक्स , फिर अस्सर्टेड ब्रेड , टोमेटो आमलेट ,टोस्ट ,पैन केक और फिर इन्डियन डिशेज ...
और उसी के साथ काम शुरू हो गया .
करन को लगा भले ही वो जासूस है , रॉ में है लेकिन रीत उससे दो हाथ आगे है ...हर चीज में ...
रीत ने कहा था ..हम लोग ब्रेक फास्ट रेस्टोरेंट में करेंगे ...
उन दोनों का हनीमूनर्स का कवर एकदम परफेक्ट और नेचुरल था ..वो आये भी उदयपुर हो के थे ...लेकिन अगर किसी ने कवर ब्रीच भी किया होगा तो वो प्रेसिडेंशियल स्यूट में उनका बेड रूम ही बग करता ...
और वहाँ उनकी आवाजें और मीनल से छेड़छाड़ एकदम नेचुरल थी ...
और इस जगह कोई बग नहीं कर सकता ...क्योंकि ये पब्लिक जगह थी ...
लेकिन इस समय एकदम प्राइवेट थी ...और उन लोगों ने वेटर को भी बोल दिया था कि वो आधे घंटे में आये ..
बात मीनल ने शुरू कि ...उसी ने यार्ड को देखा था ...दो बार वहाँ वो गयी थी और स्लीपर ' वाई ' को भी उसने देखा था .
फाइन आर्ट कि स्टूडेंट होने के नाते उसने सारी चीजों के प्लान भी स्केच बना के दिखाए . फिर किसी तरह यार्ड में वैगन का मेनटेंस होता है , लोडिंग के लिए कैसे वो रिफायनरी में जाते है ..
करन उसे प्रंशसा भरी निगाह से देख रहा था ...उसने मीनल से ढेर सारे सवाल किये और मीनल ने सबका डिटेल में जवाब दिया .
फिर रीत ने बनारस के आपरेशन के बारे में , जेड के बारे में बताया।
करन ने भी पुलिस और डिफेंस से मिली लेटेस्ट इंफो शेयर की ...और तीनो ने मिल के दिमाग लड़ाया ...
ये तो लग रहा था कि हमला रेलवे यार्ड की ओर से कि सिक्योरिटी होगा ...लेकिन जिस तरह की सिक्योरिटी थीउसमें ये असम्भव लगता था . हर इंट्री प्वाइंट पे तीन लेवल कि सिक्योरिटी थी ...हर चार घंटे में सारे प्वाइंट्स सैनिटाइज किये जा रहे थे ...गुजरात पुलिस का मानना था कि हमला रोड वेहिकल से हो सकता है ...इसलिए उन्होंने तीन किलोमीटर तक हैवी वेहिकल पे बैन लगा दिया था ...बाकी वेहिकल भी चेक हो रहे थे ..
डिसास्टर मैनेज करने के लिए पश्चिम जोन कि एन डी आर एफ कि टीम को गांधी नगर से बुला लिया गया था.
तैयारी तो पूरी थी लेकिन ...असली बात हमला किधर से होगा कैसे होएगा इसका अंदाज किसी को नहीं था ..लेकिन रीत जिसने बनारस में सब कुछ बहुत नजदीक से देखा था ...उनकी चालाकियों से वाकिफ थी ...ये बात अच्छी तरह से समझ गयी थी कि अगर किसी तरह से हमला रोका न गया तो नतीजा बहुत भयानक होगा .
और वो ये भी जानती थी कि ...जैसी सिचुएशन हो उसी तरह तुरंत रिस्पांड करना होगा ...हर चीज के लिए प्लान नहीं कर सकते .
उन्होंने बस ये प्लान किया कि करन ने मीनल और रीत से इमरजेंसी नंबर शेयर किये ...और दोनों को एक रिस्ट बैंड दिया ..एकदम फ्रेंडशिप बैंड की तरह ..फर्क ये था कि इसमें एक जी पी एस था जो हर पन्दरह मिनट में उन कि पोजिशन करन को बताता . दूसरे उसमें एक लाल बटन था डिजाइन कि तरह ...उसे छूने पे भी करन के पास अलार्म तो बजता ही , उन की करेंट पोजिशन उसे मिल जाती ...उस के साथ उस में माइक भी था ...फिर वो जो बोलती उसे करन सुन लेता और उन के आस आस पास बीस मीटर कि सब आवाजें भी ...
एक बार फिर उन तीनो ने साथ साथ सब प्लान देखे ...
तब तक गाडी प्लेटफार्म पे लग गयी थी ...और पुलिस कमिश्नर का दुबारा फोन आगया था कि वो रिफायनरी पहुँच गए हैं .
तय ये हुआ की तीनो साथ निकालेंगे निकलेंगे कार से ..रास्ते में करन उन लोगों को ड्राप कर देगा जहाँ ...मीनल ने अपनी बाइक खडी कर रखी है ..
यही हुआ ...लेकिन निकलने के पहले एक बड़ा सा झोलेनुमा पर्स रीत निकाल के ले आयी ... उस पर्स में सब कुछ था जो पुरानी किताबों के ऐयारी के बटुए में रहता था , सिवाय लखलखे के .
...
चल मेरी धन्नो ...अपनी पिंक स्कूटी स्टार्ट करती मीनल बोली .
रात भर...जुबेदा....
मेरी आँखों के सामने बस एक ही मंजर घूम रहा था...२६ नवबंर का मुम्बई के सी एस टीम स्टेशन का...चीखते चिल्लाते लोग, पटी हुयी लाशें, बिलखते रिश्तेदार ...जो लोग चाँद मिनटों पहले हंसते खेलते अपने घर जाने के लिए ट्रेने पकड़ने आयें थे...वो अब हमेशा के लिए दूर जा चुके थे...
मेरे लिए ये अख़बार में पढ़ी या टी वि पे देखी तस्वीरें नहीं थीं.
मैं वहां था.
मैंने अपनी मौत को बस ६ इंच और १० सेकेण्ड दूर से देखा था.
मुम्बई से घर आने के लिए मुझे महानगरी पकड़नी थी, १४ नंबर प्लेटफार्म से, हमेशा पकड़ता था.
लोकल से वी टी, १२ बजे रात में महानगरी, दो रात चल के सुबह ५ बजे बनारस और वहां से बस से घर..
मैं थोडा जल्दी पहुँच गया था तो हर बार की तरह पूरण पूड़ी वाले के यहाँ मसाला पूड़ी खायी और एक स्टेशन में पैसेंजर हाल में पहुँच के बैठ गया.
एक एक चीज मेरी आँखों में आज तक गडी हुयी है. पौने नौ हो रहा था.
मैंने खम्भे के सहारे अपना बैग टिकाया और अधलेटा होकर बैठ गया. थोड़ी देर इधर उधर देखता रहा
थोड़ी दूर पे मेरी बायीं ओर चाय, नाश्ते के एक लाइन से स्टाल थे और ठीक सामने एकदम दूसरी ओर टायलेट...एक एक चीज मुझे अच्छी तरह याद है.
मैं भी उठ कर कुछ देर बाद वहां गया, एक डीप डीप वाली चाय पी और तभी मैंने पहली बार उसे देखा एक फिरोजी शलवार कुरते में ...जहाँ मैं पहले बैठा था उससे बस थोड़ी ही दूर अपने सामान के साथ ..
.लेकिन ज्यादा देर तक ध्यान उधर नहीं रहा ...लड़कियों का एक झुण्ड तितलियों की तरह उड़ता हुआ लोकल प्लेटफार्म से आया और उस झुण्ड में खो गया...मेरे सामने वाले स्टैंडिंग टेबल पे एक परिवार खड़ा डोसा खा रहा था और एक बच्चा जिसके हाथ में गुब्बारा था, स्टाल की हर चीज लेने के लिए जिद कर रहा था...
चाय पीकर मैं फिर उसी खम्भे के पास अधलेटा बैठ गया और बैग से एक किताब निकल कर पढ़ने लगा..
धीरे धीरे मेरे सामने से टीवी की आवाज, लोगों की चहल कदमी की आवाजें सब हलकी होगयी...और मैं उस पैसेंजर हाल से अपनी किताब, 'आधा गाँव ' की दुनिया में पहुँच गया था...मेरी एक निगाह घडी पर गयी अभी भी ९.१० हो रहा था..करीब तीन घंटे बाकी थे मेरी ट्रेन के ...मैं साढ़े ग्यारह बजे यहाँ से उठता...
मैंने फिर पन्ने पलटे उसके बाद मुझे बहूत साफ याद नहीं..५ मिनट बाद १० मिनट बाद...
टैक ..टैक टैक ...पहले हलकी फिर तेज आवाजें...मुझे शायद लगा था की टी वी पे कुछ आ रहा होगा...
और तभी...बस मुझे इतना याद है किसी ने बहोत तेजी से मुझे अन्दर की ओर खींचा...और तब मैंने देखा..
वही फिरोजी शलवार कुरते वाली ...मैंने कुछ बोलना चाहा तो उसने मेरे मुंह दबा दिया और जोर से सर नीचे की ओर दबा दिया...
दस मिनट ...पन्द्रह मिनट..मैं उसी तरह सर झुकाए सांस रोके..
लेकिन मुझे सब साफ सुनाई दे रहा था...चीखें, घुटी घुटी आवाजें रुक रुक कर आती गोली की आवाजें , जवाबी फायरिंग ...पोजीशन लो की आवाज...मेरे सामने एक आर पी फ के सिपाही ने गोलियां चलानी की .उसकी गोली खतम हो गयी , जहाँ हम छुपे थे...वहीँ से एक दूसरे सिपाही ने उसे बन्दूक पास की...और उसने फिर गोली चलानी शुरू की ...और मेरे सामने एक गोली आ के उसके कंधे में लगी...
गोलियों की आवाजें कुछ धीमी पड़ीं ..
तभी उस फिरोजी शलवार कुरते वाली ने हलकी आवाज में बोला...स...मी ...और मैंने कस कर उसका मुंह भींच दिया...
गोलियां एक बार फिर चलनी शुरू हो गयी थी और वो हमारी ओर ही आ रही थीं...
सामने चाय के स्टाल के पास एक हथगोला फूटा..
मैंने आँखे बंद कर ली थी क्या पता कब कहाँ से गोली आके लग जाय..
दस -मिनट बाद गोली की आवाजें कुछ दूर जाती हुयी लगीं.
पुलिस वाले हाल में चल रहे थे, कुछ रेलवे के इम्प्लायिस भी हाल में आ गए थे.
अभी तक मेरा हाथ उस लड़की ने कस के भींच रखा था..
हम दोनों बहोत धीरे धीरे उठे...
अचानक एक बार फिर तेज फायरिंग की आवाजें आयीं और हम ठिठक गए...
लेकिन मैं समझ गया...वो सामने टाइम्स आफ इण्डिया बिल्डिंग की ओर से आ रही थी.
एम्बुलेंस, पैरा मेडिक स्टाफ भी आ गए थे...
अचानक वो चीखी...बहोत जोर से ...समीना आ आ आ ..........
उस चीख में कराह दर्द डर सब कुछ था....
मै बिना किसी विश्वास के उससे बोला...डरिये नहीं कुछ नहीं हुआ होगा समीना को ...
उसकी आँखे एक दम पथरा गयी थी...
फिर उसने आवाज निकाली
समीना आ आ आ .......
मेरे सामने बाडीज बिछी हुयी थीं ...हिला डुला के अम्बुलेंस वाले देख रहे थे...जो जिन्दा थे उन्हें स्ट्रेचर पे बाहर ले जा रहे थे
'वो होगी यहीं पे होगी चलिए ढूँढते है मिल जायेगी ..." मैंने समझाया.
" नहीं उसे कुछ हो ही नहीं सकता...उसे बाबा ने दिया है...बाबा उसे कुछ नहीं होने देंगे.." वो खुद बार बार बोल रही थी.
बाद में पता चला ...उसे भागलपुर जाना था. उसका नाम जुबेदा था और समीना उसकी लड़की थी ११ साल की.
हम लोग वहां से हट कर हाल की ओर आये.
" आधा गाँव" मेरे बैग के पास पड़ी थी. एक गोली उसमें पैबस्त थी.
एक गोली मेरे बैग में घुसी थी. और जिस खम्भे पे टिका मैं अधलेटा बैठ किताब पढ़ रहा था, उसमें ठीक वहीँ ४ गोलियां घुसी हुयी थीं पूरा पलस्तर उखड़ा हुआ था.
अगर जुबेदा ने मेरा हाथ पकड़ के ना खिंचा होता तो सीमा पार से आई ६ गोलियां मेरे अन्दर होतीं.
तभी स्ट्रेचर उठाये दो लोग वहीँ पर फिसल कर गिरते गिरते बचे ...मेरी निगाह उधर पड़ी...वो खून में फिसल गए थे...आते जाते लोगों के पैरों से लग कर पूरे हाल में जगह यही हाल था.
मैंने जुबेदा को अपने बैग के पास बिठाया और ढूढने निकला.
जहाँ मैंने अभी थोड़ी देर पहले चाय पी थी...और एक परिवार डोसा खा रहा था...माँ वही गिरी पड़ी थी, उसके दोनों हाथ अपने बच्चे पे थे, पिता कुछ दूर पे थे ...हैण्ड ग्रेनेड से वो बुरी तरह ....और बच्चे के एक पैर में गोली लगी थी ...गुब्बारा वहीँ उड़ रहा था...बच्चा उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था....
पास में ही पांच छ बाडीज पड़ी थी. उनमें दबी एक छोटी बच्ची भी थी, बड़ी मुश्किल से मैंने उन बाडीज को हटाया...
जुबेदा दूर से मुझे ही देख रही थी...
लाल फ्राक में एक लड़की थी अपनी गुडिया को दुबकाए ....
तीन गोलियां उसे लगी थीं ...एक गुडिया को...
जुबेदा ने दूर से सर हिलाया...मुझे भी याद आया...उसने बताया था...समीना ने धानी रंग का फ्राक पहना था...
पागलों की तरह मैं ढूढता रहा...समीना नहीं मिली...
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फागुन के दिन चार--106
गतांक से आगे ...........
चौतीस सी का पुष्ट वक्ष ...और अट्ठाइस की कमर, गोरी गुज्जु बाला ...नाचती तो फिरकी को मात कर देती ...इसी रूप पे तो फिदा हो गया था आनंद हीरो हमारा ...जब वो गरबा के दिनों में बड़ोदा में था ...उस समय मीनल एम् एस यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स में पढ़ती ...आनंद को उसने बड़ोदा घुमाया , नचाया ...और दोनों की पक्की दोस्ती हो गयी ....
और यही मीनल काम आयी आतंक के सूत्र को बड़ोदा में जोड़ने में ...
पता तो रीत ने किया ...कोडेड स्टोरी का पता कर ...बुब्बस आन फायर जो जेड ने लिट इरोटिका पे पोस्ट की थी और जो कहानी के जरिये उसने अपने आकाओं को प्रोग्राम बताया था लेकिन रीत ने और फिर हैकर्स ने उसे डी साइफर किया और पता चला की ...बनारस के साथ साथ जो और शहर निशाने पे हैं ...वो हैं बड़ोदा और बाम्बे ( मुम्बई ).. लेकिन जब रीत ने रेहन और उस के ठरकियों के जरिये ( उन सब को उसने रंजी का चारा डाला था ...वो सब को रंजी कि दिलवाएगी , जब रंजी बनारस आएगी ) पता किया कि ...बॉम्बर ( जिसने आर डी एक्स से बनारस में बॉम्ब बनाये थे ) ने जेड के साडी के पैकेट के साथ लगता है पार्सल से बड़ोदा और मुम्बई के लिए उन्हें भेजा है और वो खुद सावरमती एक्सप्रेस के एस 6 कोच से बनारस से बड़ोदा गया है ...तो आगे का काम मीनल ने ही सम्भाला .
मीनल ने स्टेशन पे पार्सल एजेंट्स से ये पता किया कि वो पैकेट जो आदमी छुड़वाने आया है ...वो बड़ोदा स्टेशन के अलकापुरी एंड पे हार्मोनी होटल पे टिका है ...लेकिन वहाँ से भी वो दो दिन में एक लाज में शिफ्ट हो गया . मीनल ने न सिर्फ उस लाज का पता लगाया ...बल्कि उससे मिलने वाले एक आदमी का भी जिसे उसने पैकेट दिया था ...मीनल ने अपने फाइन आर्टस् की पढ़ाई का इस्तेमाल कर के उसका स्केच भी बनाया . और उसे ढूंढ भी निकाला। आनंद ने कार्लोस और अपने कनेक्शन से येतो पता कर लिया था कि बड़ोदा से एक आदमी थुरया सेट फोन से रात में उसी जगह बात करता है जहाँ से जेड बनारस से बात करता है ...और ये रेल्वे के के एक यार्ड के पास की है ...मीनल ने जब उस का पता रेलवे में स्केच कि सहायता से लगाया ...तो पता चला कि वो एक बैचलर है ..टी एक्स आर ( ट्रेन कैरिज एक्जामिनर ) में , हेड टी एक्स आर के पोस्ट पे काम करता है ...
मीनल जो अब पत्रकार बन गयी थी ...उस से मिली भी ...दो बार उस के काम का भी उसने जायजा लिया . इसी यार्ड के बगल में हिंदुस्तान कि सरकारी क्षेत्र में सबसे बड़ी रिफायनरी थी और साथ में एल पी जी डिपो , फर्टिलाइजर फैक्ट्री और पेट्रोलियुम के अनेक संयत्र थे ...ये इन्फोर्मेशन उन्होंने आई बी के साथ गुजरात सरकार से की थी , जिन्होंने रेड अलर्ट घोषित कर दिया था और उन का मानना था कि अब परिंदा भी पर नहीं मार सकता.
लेकिन रीत और आनंद कि सोच अलग थी और ...उसके ठोस कारण थे ...
हैकर्स ने जो आखिरी बात चीत सेट फोन की रिकार्ड की थी ...उसमें ये साफ हो गया था कि होली कि रात को ही हमला होगा .
ये सम्भावना भी काफी थी कि हमले का टारगेट पेट्रो काम्प्लेक्स हो ...
लेकिन हमला कैसे होगा इस की कोई सुनगुन नहीं थी ...
वो लोग उस आदमी को जिसे कोड नेम वाई दिया था ...उसे पहले पकड़ना नहीं चाहते थे ..एक तो उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था ... दुसरे उसे ट्रेस कर के वो हमले के सोर्स तक पहुँच सकते थे और तीसरी बात जो सबसे खतरनाक थी ...अगर उसका कोई वैकल्पिक स्लीपर उसके आकाओं ने तैयार कर कर रखा होगा तो उसका तो उन्हें कोई पता नहीं था ...और फिर हमले को रोकना नामुमकिन हो जाता ...
बनारस में जिस तरह रेहन और कार्लोस कि सहायता से उनके दांत रीत ने उखाड़े थे ...इसलिए ये तय हुआ था कि रीत बड़ोदा जाए ...और वहाँ मीनल उसकी सहायता करेगी . मीनल का रोल बहोत इम्पोर्टेंट था उसने 'वाई ' को देखा था ...उसके काम के तरीके को जानती थी और कई बार यार्ड में गयी थी . काम खतरनाक था लेकिन मीनल उसके लिए तैयार थी ...
रीत मीनल के बारे में सोच ही रही थी कि करन केबिन में आया नहा धो के तैयार हो के ...उसके हाथ में एक मोटी सी रिपोर्ट भी थी .
रीत समझ गयी कि ये वही रिपोर्ट है जिसके बारे में कल आनन्द बात कर रहा था ...
आगे
मेरे सोर्सेज ने जो खबर दी है वो सीरियस है .
करन ने सीरियस हो के कहा .
मतलब ...रीत ने चौँक के पूछा ...
" कल शाम से उनके आपरेशनल हेडक्वॉर्टस से कोई कम्युनिकेशन नहीं है न ...इधर से है ...पूरा सन्नाटा ."
" तो मतलब ....उनका आपरेशन कैंसल ...." रीत ख़ुशी से बोली
" जी नहीं ...इसका मतलब कम्प्लीट रेडियो साइलेंस आब्जर्व हो रही है और ...आपरेशन आज शाम को पक्का होगा ...और अभी हमें कुछ अंदाजा नहीं है कि हमला कैसे किधर से होगा , इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा ..." करन परेशान हो के बोला .
' अरे यार उनकी ऐसी कि तैसी कर देंगे .... तू है ना ..." रीत मुस्करा के बोली .
और रीत कि मुस्कराहट तो इंफेक्शस होती ही है ...करन भी मुस्कराने लगा और अचानक उसे कुछ याद आया ...और उसने पूछ लिया
वो कब मिलेगी
" हे तुम सुबह साली कि बात कर रही थी ...कौन है वो कब मिलेगी "
और तक दरवाजा खोल कर मीनल दाखिल हुयी ...
आज वो चोली साडी में थी ...और गजब लग रही थी ...
छोटी सी चोली ...कच्छी कढ़ाई , आलमोस्ट बैकलेस ...और आगे से डीप लो कट , पुश अप बहुत छोटी सी ...
उसके चौतीस सी पुष्ट सीने को उभारती ज्यादा छुपाती कम ...और छोटी इतनी कि पूरा गोरा पेट पेट साफ दिख रहा था ..
कमर इतनी पतली कि मुट्ठी में समा जाए ...और इस पतली कमर पे जोबन और गद्दर लग रहे थे ...
साडी उसने कूल्हों के भी नीचे बाँध रखी थी ...भरे हुए नितम्ब साफ दिख रहे थे ...
करन का मुंह खुला रह गया ...
साली का नाम लिया ...साली हाजिर ...हँसते हुए रीत बोली ...और इंट्रो कराया ...
मीनल मेरी छोटी बहन तुम्हारी साली ....और ये करन तेरे जीजू
मीनल और रीत का इंट्रो आनंद ने करा दिया था ... फिर तो फेसबुक , जी टाक और स्काइप ...कब वो पक्की दोस्त बनी और कब मीनल ने रीत दी मान लिया और रीत ने उसे अपनी प्यारी बहन ...पता नहीं .लेकिन अब दोनों दूध पानी कि तरह मिल चुकी थीं ..
मीनल भी करन कि ओर देख रही थी ...करन ने नमस्ते के लिए हाथ उठाया और मीनल ने मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया ...
और रीत ने दिया ...
" क्या ...साली , जीजू न हाथ मिलाते हैं और न नमस्ते वमस्ते ..."
" मालूम है ..." खिलखिलाते हुए मीनल ने बात पूरी कि और करन को अपने बाँहों में लेते हुए बात पूरी की " जीजू से गले मिलते है ..और ये तो मेरे एकलौते जीजू है .."
करन पहले तो कुछ सकपकाया फिर उसने भी मीनल को बाँहों में बांध लिया ...
उसके जवानी के फूलों
मीनल जानती थी ...करन को क्या पसन्द होगा ...जब से वो आयी चोरी छुपे करन कि निगाहें वहीँ तो सहला रही थीं ...और फिर हर लड़का तो उसके जवानी के फूलों का दीवाना था ...
मीनल ने शरारत से अपने उभरे गदराये लो कट चोली से झांकते मुस्कराते उभार जोर से करन के सीने में गडा दिया और अपने बाँहों के बंधन भी जोर से भींच लिए ...और जो हुआ उसको मीनल का अंदाज भी नहीं था ...
करन का एक बित्ते का मोटा खूंटा जीन्स को फाड़ता सीधे मीनल के जाँघो के बीच , रामप्यारी पे धक्का मार रहा था ..
मुस्कराकर मीनल ने रीत की ओर देखा , दोनों ने एक दूसरे से आँखों ही आँखों में है फाइव किया ...
और रीत ने इशारा किया लगी रह यार तू छोटी बहन है मेरी तेरा तो हक़ बनता है ... और मीनल ने थोड़ी टाँगे फैलायीं और एक बार फिर करन को भींच लिया और उसके मुस्टंडे पे अपनी रामप्यारी और ...
गाल पे गाल रगड़ती बोली हैप्पी होली, और उस को छोड़ के अलग हो गयी .
वो एक पैकेट लायी थी ...उसने रीत को पकड़ा दिया .
रीत ने उससे दो पेयर जींस और टॉप लाने को बोला था , कुर्ती पजामी में तो आतंकियों से मुकाबला होता नहीं ...और वो अपने जींस जल्दी में लाना भूल गयी थी .
" हे कैसे जीजू हो ... सुबह से साली साली का पहाड़ा रट रहे थे। अब आयी है तो कम से कम एक किस्सी तो ले लिए होते . " रीत ने करन को चिढ़ाया पैकेट ले बाथरूम में कपडे बदलने चली गयी ...
लेकिन जवाब मीनल ने दिया ...हंस कर " अरे दी सिर्फ किस्सी ...मेरे एकलौते जीजू है ..."
" तुम दोनों जो चाहे लेन देन करो ...जीजा साल्ली के बीच मैं नहीं बोलने वाली ..." रीत मुस्कराके चेंज करने चली गयी
और जब वो लौटी तो लेन देन तो नहीं हो रही थी ...हाँ जीजा साली एकदम चिपक के बैठे कबूतर की तरह गुटरगूं कर रहे थे ...हाँ मीनल का आँचल ढलका हुआ था और उस का एक उभार एकदम खुला था और दूसरा भी बस लुका छिपी कर रहा था ...और करन के नदीदे हाथ भी ...मीनल के कंधे पे थे और उंगलियां ...उसके डीप लो कट बैकलेस चोली से खुल कर झांकते उरोज हलके से सहला रहे थे.
रीत को देख के ना मीनल ने आँचल ठीक किया ना करन ने उरोजों से ऊँगली हटाई ..
रीत मुस्करायी ...अब दोनों पक्के साली जीजा हो गए .
लेकिन मीनल को चोली साडी में देख के अचानक रीत को याद आया ...इसे भी तो मेरे साथ यार्ड में चलना है ...साडी में भाग दौड़ ...
उसने मीनल को टोका ,
" हे सुन एक पेयर टॉप जींस तू ले आयी है ना ..एक्स्ट्रा ...तू भी पहन ले ..वहाँ साडी में ..."
और उसकी बात काटके ...करन बोला ..." और क्या तुम दोनों की नाप एक ही है ...जोर से खिलखिला के "
मीनल और रीत जोर से खिलखिला के हंसी ..रीत ने चिढ़ाया ...
"अच्छा , तो तुम मीनल कि भी नाप ले चुके ...तभी कह रहे हो हैम दोनों कि नाप एक ही है
करन झेंप गया फिर मीनल कि ओर देखते हुएबात बना के बोला ...
" अरे नहीं मैं तो निगाहों से ही नाप ले लेता हूँ ."
फिर दोनों हंसी ...
दो लड़कियों से एक साथ पार पाना आसान नहीं ...अबकी मीनल ने तीर चलाया ...
"लगता है बचपन से ही अपनी मा बहनो की नापते रहे हैं ...दी ...इसलिए पक्की प्रैक्टिस हो गयी है .'
लेकिन उसके तरकश में तीर ख़तम नहीं हुए थे ..आखिर रीत कि छोटी बहन थी . झूक के अपनी गोलाइयों का जादू चलाते हुए बोली ,
" अरे जीजू ..आप भी ...नाप लीजिये ना ...फिर शाम को ले चलूंगी आपको माल में ..ड्रेसेज खरीदवाने ..."
बेचारा करन सकपका गया ...
और मीनल उठ के जींस टॉप ले के चेंज करने के लिए जाने लगी ...तो करन को शरारत सूझी ...
उसने मीनल को छेड़ा ...
" अरे साल्ली जी ...जीजू से क्या शरम ..यहीं चेंज कर लीजिये ना ..."
मीनल कौन पीछे रहने थी ठहर गयी और बोली .
" अरे जीजू आप लजा के बीर बहुटी हो रहे थे इसलिए मैं जा रही थी ... चलिये यहीं चेंज कर लेती हूँ ..'
करन ने थोड़ी और हिम्मत जुटाई ...और चढ्ढी बनियाइन भी ... वो बोला .
" जीजू आप क्या हलकी फुल्की शर्त लगाते हैं ...चलिए ये चढ्ढी बनयान मैं आपको गिफ्ट कर देती हूँ ... हाँ इसके बदले में शाम को नयी लेनी होगी ..."
मीनल मुस्कराते हुए बोली और साडी घुमा के उसने उतार उतार दी और फेंका तो सीधे करन के उपर
करन शर्मा गया और ...रीत और मीनल एक बार फिर फुलझड़ी हो गयीं.
"जीजू के ऊपर साडी कित्ति अच्छी लग रही है ..." मीनल ने चिढ़ाया .
करन और शर्मा गया ...लेकिन उसका मुस्टंडा , बित्ते भर का, सर उठाये खड़ा रहा , एकदम बेशर्मी से ..
मीनल ने अब मुस्टंडे को देखा , पैंट में तम्बू बनाये ...और उसे देखते रीत ने मीनल को देखा और उसके कान में कुछ फुसफुसाया .
सिर्फ चोली साये में ...मीनल के न सिर्फ गद्दर जोबन ही बेकाबू हो रहे थे , बल्कि उसकी पतली कमर पान सा चिकना पेट ...
और मीनल ने एक जान मारु अंगड़ाई ली और थोडा झुकी .
लो कट चोली से बस उसके मस्त किशोर गोरे गोरे उभार छलक के बाहर हो रहे थे ...जैसे दो कबूतर उड़ने को बेचैन हो रहे हों ...
और करन और बेकाबू हो गया ...लग रहा था अब उसका मुस्टंडा जींस फाड़ के ही दम लेगा .
रीत ने मीनल को कुछ इशारा और मीनल नागिन सी बलखाती ,इठलाती , मचलती ...करन के पास गयी और सीधे उसके गोद में बैठ गयी ...उसकी ओर पीठ कर के बिना साडी बैकलेस चोली में गोरी मक्खन सी चिकनी पीठ पूरी तरह खुली थी ...सिर्फ एक पतली सी स्ट्रिंग में चोली बंधी थी .
यही नहीं मीनल इस तरह बैठी कि उसके भारी नितम्ब सीधे तने खड़े मुस्टंडे पे पड़ें ...और जोर से अपने चूतड़ उस पे रगड़ दिए और अपनी पतली गर्दन घुमा के ...अदा से करन से चोली के बन्ध कि ओर इशारा कर के बोली ...
" जीजू आप ही खोल दो न इसे ..."
बस बिजली नहीं गिरी ...
करन ने चोली के बंध खोल दिए ...लेकिन चतुर चालाक मीनल ने दोनों हाथों से चोली को सम्हाले रखा ...और उठते समय जैसे सहारा ले रही हो ...जोर से अपने कोमल कमल से हाथों से , जोर से उस 'मुस्टण्डे 'को मसल दिया ...
और रीत के पास आके खडी हो गयी .
करन का गला सूख रहा था ...मीनल अभी भी दोनों हाथो से चोली पकड़े खडी थी ...
करन कुछ बोलता उसके पहले उसने उसे एक फ्लाइंग किस दी और चोली उसकी ओर उछाल दी .
वो सीधे मुस्टंडे के ऊपर जा पड़ी .
अब मीनल सिर्फ ब्रा और साये में थी ...और ब्रा भी ऑलमोस्ट शियर ..लेसी और हाफ कप बस उसके उभारों को सपोर्ट करते ....सिर्फ कबूतर ही नहीं बल्कि उनकी लाल गुलाबी चोंच भी साफ दिख रही थी ...
अब करन कि आवाज खुली ...मीनल ...खोल दो ...खोल दो ...
मीनल ने एक खूब मीठी सी मुस्कान दी और ...मुड़ गयी ...
ब्रा फ्रंट ओपन थी ...ब्रा खोलते हुए उसने रीत से कहा ...
दी अब ये जहाँ पड़ेगी ....वो चीज मेरी हो जायेगी ..
एकदम हंसती हुयी रीत बोली ...
करन की ओर पीठ किये हुए ही ...मीनल ने अपनी फ्रंट ओपन लेसी पिंक ब्रा खोली और जैसे कोई आँख पे पट्टी बाँध के शब्द बेधी बाण चलाये ...उसने ब्रा उछाल दी ..
मीनल का निशाना एकदम अचूक ...सीधे मुस्टंडे पे ...ब्रा गिरी ...और
मीनल ने अपना टाप पहन लिया ...और करन की ओर मुड़ गयी ...
..
हे बेईमानी ....पैंटी ....करन चिल्लाया ...
सबसे ज्यादा जीजा साली का खेल तमाशा देख कर रीत खुश हो रही थी ...कित्ते दिनों बाद ...
मीनल मुस्करायी ...जीजू सिर्फ पैंटी ...
रीत ने करन को उकसाया ..." अरे साली बोल रही है ...मांग लो ना पैंटी के अंदर वाली चीज ...गुलाबी बुलबुल ..."
करन अभी भी झेंप रहा था और मीनल उसे और चिढ़ा रही थी ...उसने साया घुटनो तक उठा दिया ...
उसकी गोरी पिंडलिया , लम्बी सुन्दर टांगे , स्वर्ग की नसेनी कि तरह ...ललचा रही थी बुला रही थी ...
पर्दा थोडा और ऊपर उठा ...गोरी चिकनी मांसल जांघे ...
करन कि सांस रुकी हुयी थी ...
और तक मुस्करा के मीनल ने अपने साये में झुक के हाथ डाला ...जैसे जादूगर हैट में हाथ डालता है खरगोश निकालने के लिए ...
बजाय खरगोश के सिल्कन गुलाबी पैंटी निकली ....और इस बार ...वो सीधे ...करन के चेहरे पे ...
और जब तक करन कुछ समझता बोलता ...स्किन टाइट जींस साये के स साये के अंदर मीनल ने पहन ली और फिर साये का नाडा खोल के ...वो भी करन के ऊपर...
ये बेईमानी है ...करन जोर से चिल्लाया ...असली चीज तो वो देखने से रह ही गया .
एकदम नहीं रीत ने अम्पायर की तरह ...मीनल की ओर से फैसला सुनाया .
" मेरी छोटी बहन ने ...जो तुमने कहा वो किया ...तुम्हारे सामने चेंज किया और ब्रा पैंटी भी तुम्हे दे दी ..."
मीनल हँसते हुए करन के बगल में जा बैठी और उसे गुदगुदी करने लगी ..फिर बोली ...
" अरे जीजू ...कुछ चाहिए तो मांग लो ...आज होली के दिन ये साल्ली मना नहीं करेगी ...."
रीत भी पास में बैठ के बोली ..." करन मौका बढ़िया है मेरी ओर से खुली छूट ...और कैसे जीजू हो साली से मांगते थोड़ी हैं उसकी तो बस ...ले लेते हैं ..."
" एकदम दी ...लगता है जीजू को साली पसंद नहीं आयी ...क्यूँ जीजू ..." उसके गले में हाथ डाल की मीनल बोली।
करन मुस्करा दिया और मीनल को गले लगाते बोला ,
" पसंद तो बहुत आयी ..बस रंग गुलाल नहीं है वरना ...तुम्हे होली के रंग आज दिखा देता ..."
रीत ने फिर ललकारा
कैसे बनारस वाले हो अरे ...भूल गए बनारस में जीजा साल्ली की होली कैसे होती है ..
करन को अच्छी तरह याद था था पर अभी भी मीनल से वो कुछ झेंप रहा था ...
लेकिन मीनल झेंपने वाली नहीं थी ...आखिर रीत कि छोटी बहन जो थी ...
वो बोली ," अरे दी ...आप ही याद दिला दो न इन्हे ....वरना इनके भरोसे तो ..."
रीत चालू हो गयी ...
" अरे साल्ली के गाल करो लाल , चूम के चूस के ...
चूंची करो लाल रगड़ के काट के ..."
करन ने बीच में रोकने कि कोशीश की तो मीनल ने ही रीत को उकसाया ..
" अरे नहीं दी सुना दो पूरा ...वरना ये कहेंगे कि आखिरी दरवाजा तोड़ने के समय सो गये थे ..."
" अरे साली की चूत लाल करो चोद चोद के ..."
रीत ने बनारस की जीजा साली की रीत पूरी बतायी
पहल साली ने ही कि होली की ...अपने रसीले दहकते होंठ जीजू के गाल पे रगड़ के ...लिपस्टिक के रंग से होली खेल के ...
और फिर जीजा साली की होली चालू हो गयी ...एकदम बनारस स्टाइल ...
मीनल के होंठ लाल हुए ...
फिर टॉप उठा ...और अब तो ब्रा का कवच भी नहीं था ...
इत्ते देर से उसके किशोर उरोज ...करन को ललचा रहे थे उकसा रहे थे ..अब उन्हें पता चला किस से पाला पड़ा ...
पहले पहले तो करन के हाथ थोड़े झिझक रहे थे लेकिन आग में घी डाला रीत और फिर मीनल ने ..
रीत बोली ..."कैसे हलके से दबा रहे हो लगता है साल्ली नहीं बहन है ..."
" अरे नहीं दी ...उनके तो खूब जम के दबाते होंगे ..आखिर बचपन से प्रैक्टिस तो उन्ही के साथ की होगी ..." मीनल ने छेड़ा .
फिर तो करन चालू हो गया ...कभी मीनल के मस्त उभारों को चूमता कभी चूसता ...तो कभी छोटे छोटे निपल काट लेता ...
रीत कभी मीनल की ओर हो जाती तो कभी करन की तरफ ...
और मीनल भी अच्छी तरह से उसकी मोटी पिचकारी कि नाप जोख कर रही थी ...
लेकिन होली बिलो द बेल्ट पहुंचे ...उसके पहले एक हादसा हो गया ...
बुरा हो ग्राहम बेल का जिन्होंने टेलीफोन कि खोज की ..
दो टेलीफोन एक साथ घनघनाये ...
एक करन का मोबाइल और दूसरा ...केबिन का इंटरकॉम
मोबाइल पे पुलिस कमिशनर थे ...आधे घंटे में वो गुजरात रिफायनरी पहुंचने वाले थे ...वहाँ उन के साथ साथ डिफेंस के एक्सपर्ट , बॉम्ब डिस्पोजल के लोग और बाकी अफसर भी होंगे ...उन्होंने करन से बोला था की वो भी वहीँ पहुँच जाए
इंटर काम पे वान्या थी ...ब्रेकफास्ट के बारे में पूछ रही थी ...रीत ने बोला बस हम थोड़ी देर में मयूर महल पहुँच रहे हैं ...
तैयार होने में उन्हें कोई टाइम तो लगना नहीं था बस मीनल ने अपनी टॉप नीचे की ...
हाँ मुंह जरूर उस ने बुरा सा बना लिया ...
रीत समझ गयी . उस ने करन से कहा ..सुनो ...आज शाम को मेरी बहन को जम के शापिंग कराना ...
"और उस के बाद बची हुयी होली " मुस्करा के करन बोला ...
" सच्ची जीजू ..." ख़ुशी से मीनल उसके गले लिपट गयी .
" और क्या ...बस थोड़ी देर में कचरा साफ कर के आते हैं न ...और ये ट्रेन यहाँ से मिड नाइट के बाद जायेगी ..अपने पास टाइम ही टाइम है ...होली तो पूरी करनी ही है ..." हँसते हुए वो बोला .
तीनो मयूर महल पहुँच गए ..वहाँ वान्या उनका वेट कर रही थी
मयूर महल , महाराजा एक्सप्रेस का रेस्टोरेंट कोच जिसकी थीम पीकॉक थी . इसके शुरू में ही दो मोर की प्रतिकृत गेस्ट्स का स्वागत करती थी , और उसमें चालीस से ज्यादा लोग एक साथ ब्रेकफास्ट , लंच या डिनर कर सकते थे ...लेकिन अभी वहाँ चार लोग थे ...वान्या , रीत , मीनल और करन .
वान्या ने बताया कि गाडी कि अभी शंटिंग हो रही है इसलिए वो यार्ड में है . आधे घंटे के बाद गाडी फिर प्लेटफार्म पर प्लेस हो जायेगी ...तब वो उतर सकते है . करन -रीत के लिए गाडी प्लेटफार्म के सामने ही खडी है . उसने गाडी का नंबर और ड्राइवर का मोबाइल नंबर , करन को दे दिया . यही नहीं वो शेफ को भी बुअब ला के लायी थी . फिर उसने बोला कि वो अबवो कैरेज काम से जा रही है ...रूम अरेंज करने और दोपहर में नहीं रहेगी . हाँ शाम को वो कैरेज में वापस आ जायेगी , और उसने गाइड को बोल दिया है कि ये लोग पैलेस में बाकी ग्रुप के साथ मिल जायेंगे .
रीत ने मीनल का वान्या से इंट्रो करवाया तो करन ने शरारत से मीनल को देखते हुए वान्या से पुछा ..
" हे ये अगर हम लोगों के साथ हमारे स्यूट में मुम्बई चले तो कोई परेशानी तो नहीं होगी ..."
हंस के वान्या बोली ..." एकदम नहीं ..शी इज मोस्ट वेलकम ...और वैसे भी आपके स्यूट में दो केबिन हैं ...तो एक केबिन तो अभी खाली ही है ..'
मीनल ने मुस्कराते हुए आँखे तरेर कर देखा ...और वान्या वहाँ से बाई कर के निकल ली .
शेफ को उन लोगो ने हैवी ब्रेकफास्ट का आर्डर दिया ...क्योंकि ये ब्रेकफास्ट कम लंच था ...
रीत ने करन कि जांघ पे चिकोटी काटते हुए कहा ..
" अरे मीनल इसलिए गुस्सा हो रही थी कि तुम उसे अलग केबिन में सुलाओगे क्या ..."
मीनल और करन कुछ बोलते उसके पहले सर्विस स्टार्ट हो गयी ...पहले फ्रूट जूस ...फिर कार्न फ्लेक्स , फिर अस्सर्टेड ब्रेड , टोमेटो आमलेट ,टोस्ट ,पैन केक और फिर इन्डियन डिशेज ...
और उसी के साथ काम शुरू हो गया .
करन को लगा भले ही वो जासूस है , रॉ में है लेकिन रीत उससे दो हाथ आगे है ...हर चीज में ...
रीत ने कहा था ..हम लोग ब्रेक फास्ट रेस्टोरेंट में करेंगे ...
उन दोनों का हनीमूनर्स का कवर एकदम परफेक्ट और नेचुरल था ..वो आये भी उदयपुर हो के थे ...लेकिन अगर किसी ने कवर ब्रीच भी किया होगा तो वो प्रेसिडेंशियल स्यूट में उनका बेड रूम ही बग करता ...
और वहाँ उनकी आवाजें और मीनल से छेड़छाड़ एकदम नेचुरल थी ...
और इस जगह कोई बग नहीं कर सकता ...क्योंकि ये पब्लिक जगह थी ...
लेकिन इस समय एकदम प्राइवेट थी ...और उन लोगों ने वेटर को भी बोल दिया था कि वो आधे घंटे में आये ..
बात मीनल ने शुरू कि ...उसी ने यार्ड को देखा था ...दो बार वहाँ वो गयी थी और स्लीपर ' वाई ' को भी उसने देखा था .
फाइन आर्ट कि स्टूडेंट होने के नाते उसने सारी चीजों के प्लान भी स्केच बना के दिखाए . फिर किसी तरह यार्ड में वैगन का मेनटेंस होता है , लोडिंग के लिए कैसे वो रिफायनरी में जाते है ..
करन उसे प्रंशसा भरी निगाह से देख रहा था ...उसने मीनल से ढेर सारे सवाल किये और मीनल ने सबका डिटेल में जवाब दिया .
फिर रीत ने बनारस के आपरेशन के बारे में , जेड के बारे में बताया।
करन ने भी पुलिस और डिफेंस से मिली लेटेस्ट इंफो शेयर की ...और तीनो ने मिल के दिमाग लड़ाया ...
ये तो लग रहा था कि हमला रेलवे यार्ड की ओर से कि सिक्योरिटी होगा ...लेकिन जिस तरह की सिक्योरिटी थीउसमें ये असम्भव लगता था . हर इंट्री प्वाइंट पे तीन लेवल कि सिक्योरिटी थी ...हर चार घंटे में सारे प्वाइंट्स सैनिटाइज किये जा रहे थे ...गुजरात पुलिस का मानना था कि हमला रोड वेहिकल से हो सकता है ...इसलिए उन्होंने तीन किलोमीटर तक हैवी वेहिकल पे बैन लगा दिया था ...बाकी वेहिकल भी चेक हो रहे थे ..
डिसास्टर मैनेज करने के लिए पश्चिम जोन कि एन डी आर एफ कि टीम को गांधी नगर से बुला लिया गया था.
तैयारी तो पूरी थी लेकिन ...असली बात हमला किधर से होगा कैसे होएगा इसका अंदाज किसी को नहीं था ..लेकिन रीत जिसने बनारस में सब कुछ बहुत नजदीक से देखा था ...उनकी चालाकियों से वाकिफ थी ...ये बात अच्छी तरह से समझ गयी थी कि अगर किसी तरह से हमला रोका न गया तो नतीजा बहुत भयानक होगा .
और वो ये भी जानती थी कि ...जैसी सिचुएशन हो उसी तरह तुरंत रिस्पांड करना होगा ...हर चीज के लिए प्लान नहीं कर सकते .
उन्होंने बस ये प्लान किया कि करन ने मीनल और रीत से इमरजेंसी नंबर शेयर किये ...और दोनों को एक रिस्ट बैंड दिया ..एकदम फ्रेंडशिप बैंड की तरह ..फर्क ये था कि इसमें एक जी पी एस था जो हर पन्दरह मिनट में उन कि पोजिशन करन को बताता . दूसरे उसमें एक लाल बटन था डिजाइन कि तरह ...उसे छूने पे भी करन के पास अलार्म तो बजता ही , उन की करेंट पोजिशन उसे मिल जाती ...उस के साथ उस में माइक भी था ...फिर वो जो बोलती उसे करन सुन लेता और उन के आस आस पास बीस मीटर कि सब आवाजें भी ...
एक बार फिर उन तीनो ने साथ साथ सब प्लान देखे ...
तब तक गाडी प्लेटफार्म पे लग गयी थी ...और पुलिस कमिश्नर का दुबारा फोन आगया था कि वो रिफायनरी पहुँच गए हैं .
तय ये हुआ की तीनो साथ निकालेंगे निकलेंगे कार से ..रास्ते में करन उन लोगों को ड्राप कर देगा जहाँ ...मीनल ने अपनी बाइक खडी कर रखी है ..
यही हुआ ...लेकिन निकलने के पहले एक बड़ा सा झोलेनुमा पर्स रीत निकाल के ले आयी ... उस पर्स में सब कुछ था जो पुरानी किताबों के ऐयारी के बटुए में रहता था , सिवाय लखलखे के .
...
चल मेरी धन्नो ...अपनी पिंक स्कूटी स्टार्ट करती मीनल बोली .
रात भर...जुबेदा....
मेरी आँखों के सामने बस एक ही मंजर घूम रहा था...२६ नवबंर का मुम्बई के सी एस टीम स्टेशन का...चीखते चिल्लाते लोग, पटी हुयी लाशें, बिलखते रिश्तेदार ...जो लोग चाँद मिनटों पहले हंसते खेलते अपने घर जाने के लिए ट्रेने पकड़ने आयें थे...वो अब हमेशा के लिए दूर जा चुके थे...
मेरे लिए ये अख़बार में पढ़ी या टी वि पे देखी तस्वीरें नहीं थीं.
मैं वहां था.
मैंने अपनी मौत को बस ६ इंच और १० सेकेण्ड दूर से देखा था.
मुम्बई से घर आने के लिए मुझे महानगरी पकड़नी थी, १४ नंबर प्लेटफार्म से, हमेशा पकड़ता था.
लोकल से वी टी, १२ बजे रात में महानगरी, दो रात चल के सुबह ५ बजे बनारस और वहां से बस से घर..
मैं थोडा जल्दी पहुँच गया था तो हर बार की तरह पूरण पूड़ी वाले के यहाँ मसाला पूड़ी खायी और एक स्टेशन में पैसेंजर हाल में पहुँच के बैठ गया.
एक एक चीज मेरी आँखों में आज तक गडी हुयी है. पौने नौ हो रहा था.
मैंने खम्भे के सहारे अपना बैग टिकाया और अधलेटा होकर बैठ गया. थोड़ी देर इधर उधर देखता रहा
थोड़ी दूर पे मेरी बायीं ओर चाय, नाश्ते के एक लाइन से स्टाल थे और ठीक सामने एकदम दूसरी ओर टायलेट...एक एक चीज मुझे अच्छी तरह याद है.
मैं भी उठ कर कुछ देर बाद वहां गया, एक डीप डीप वाली चाय पी और तभी मैंने पहली बार उसे देखा एक फिरोजी शलवार कुरते में ...जहाँ मैं पहले बैठा था उससे बस थोड़ी ही दूर अपने सामान के साथ ..
.लेकिन ज्यादा देर तक ध्यान उधर नहीं रहा ...लड़कियों का एक झुण्ड तितलियों की तरह उड़ता हुआ लोकल प्लेटफार्म से आया और उस झुण्ड में खो गया...मेरे सामने वाले स्टैंडिंग टेबल पे एक परिवार खड़ा डोसा खा रहा था और एक बच्चा जिसके हाथ में गुब्बारा था, स्टाल की हर चीज लेने के लिए जिद कर रहा था...
चाय पीकर मैं फिर उसी खम्भे के पास अधलेटा बैठ गया और बैग से एक किताब निकल कर पढ़ने लगा..
धीरे धीरे मेरे सामने से टीवी की आवाज, लोगों की चहल कदमी की आवाजें सब हलकी होगयी...और मैं उस पैसेंजर हाल से अपनी किताब, 'आधा गाँव ' की दुनिया में पहुँच गया था...मेरी एक निगाह घडी पर गयी अभी भी ९.१० हो रहा था..करीब तीन घंटे बाकी थे मेरी ट्रेन के ...मैं साढ़े ग्यारह बजे यहाँ से उठता...
मैंने फिर पन्ने पलटे उसके बाद मुझे बहूत साफ याद नहीं..५ मिनट बाद १० मिनट बाद...
टैक ..टैक टैक ...पहले हलकी फिर तेज आवाजें...मुझे शायद लगा था की टी वी पे कुछ आ रहा होगा...
और तभी...बस मुझे इतना याद है किसी ने बहोत तेजी से मुझे अन्दर की ओर खींचा...और तब मैंने देखा..
वही फिरोजी शलवार कुरते वाली ...मैंने कुछ बोलना चाहा तो उसने मेरे मुंह दबा दिया और जोर से सर नीचे की ओर दबा दिया...
दस मिनट ...पन्द्रह मिनट..मैं उसी तरह सर झुकाए सांस रोके..
लेकिन मुझे सब साफ सुनाई दे रहा था...चीखें, घुटी घुटी आवाजें रुक रुक कर आती गोली की आवाजें , जवाबी फायरिंग ...पोजीशन लो की आवाज...मेरे सामने एक आर पी फ के सिपाही ने गोलियां चलानी की .उसकी गोली खतम हो गयी , जहाँ हम छुपे थे...वहीँ से एक दूसरे सिपाही ने उसे बन्दूक पास की...और उसने फिर गोली चलानी शुरू की ...और मेरे सामने एक गोली आ के उसके कंधे में लगी...
गोलियों की आवाजें कुछ धीमी पड़ीं ..
तभी उस फिरोजी शलवार कुरते वाली ने हलकी आवाज में बोला...स...मी ...और मैंने कस कर उसका मुंह भींच दिया...
गोलियां एक बार फिर चलनी शुरू हो गयी थी और वो हमारी ओर ही आ रही थीं...
सामने चाय के स्टाल के पास एक हथगोला फूटा..
मैंने आँखे बंद कर ली थी क्या पता कब कहाँ से गोली आके लग जाय..
दस -मिनट बाद गोली की आवाजें कुछ दूर जाती हुयी लगीं.
पुलिस वाले हाल में चल रहे थे, कुछ रेलवे के इम्प्लायिस भी हाल में आ गए थे.
अभी तक मेरा हाथ उस लड़की ने कस के भींच रखा था..
हम दोनों बहोत धीरे धीरे उठे...
अचानक एक बार फिर तेज फायरिंग की आवाजें आयीं और हम ठिठक गए...
लेकिन मैं समझ गया...वो सामने टाइम्स आफ इण्डिया बिल्डिंग की ओर से आ रही थी.
एम्बुलेंस, पैरा मेडिक स्टाफ भी आ गए थे...
अचानक वो चीखी...बहोत जोर से ...समीना आ आ आ ..........
उस चीख में कराह दर्द डर सब कुछ था....
मै बिना किसी विश्वास के उससे बोला...डरिये नहीं कुछ नहीं हुआ होगा समीना को ...
उसकी आँखे एक दम पथरा गयी थी...
फिर उसने आवाज निकाली
समीना आ आ आ .......
मेरे सामने बाडीज बिछी हुयी थीं ...हिला डुला के अम्बुलेंस वाले देख रहे थे...जो जिन्दा थे उन्हें स्ट्रेचर पे बाहर ले जा रहे थे
'वो होगी यहीं पे होगी चलिए ढूँढते है मिल जायेगी ..." मैंने समझाया.
" नहीं उसे कुछ हो ही नहीं सकता...उसे बाबा ने दिया है...बाबा उसे कुछ नहीं होने देंगे.." वो खुद बार बार बोल रही थी.
बाद में पता चला ...उसे भागलपुर जाना था. उसका नाम जुबेदा था और समीना उसकी लड़की थी ११ साल की.
हम लोग वहां से हट कर हाल की ओर आये.
" आधा गाँव" मेरे बैग के पास पड़ी थी. एक गोली उसमें पैबस्त थी.
एक गोली मेरे बैग में घुसी थी. और जिस खम्भे पे टिका मैं अधलेटा बैठ किताब पढ़ रहा था, उसमें ठीक वहीँ ४ गोलियां घुसी हुयी थीं पूरा पलस्तर उखड़ा हुआ था.
अगर जुबेदा ने मेरा हाथ पकड़ के ना खिंचा होता तो सीमा पार से आई ६ गोलियां मेरे अन्दर होतीं.
तभी स्ट्रेचर उठाये दो लोग वहीँ पर फिसल कर गिरते गिरते बचे ...मेरी निगाह उधर पड़ी...वो खून में फिसल गए थे...आते जाते लोगों के पैरों से लग कर पूरे हाल में जगह यही हाल था.
मैंने जुबेदा को अपने बैग के पास बिठाया और ढूढने निकला.
जहाँ मैंने अभी थोड़ी देर पहले चाय पी थी...और एक परिवार डोसा खा रहा था...माँ वही गिरी पड़ी थी, उसके दोनों हाथ अपने बच्चे पे थे, पिता कुछ दूर पे थे ...हैण्ड ग्रेनेड से वो बुरी तरह ....और बच्चे के एक पैर में गोली लगी थी ...गुब्बारा वहीँ उड़ रहा था...बच्चा उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था....
पास में ही पांच छ बाडीज पड़ी थी. उनमें दबी एक छोटी बच्ची भी थी, बड़ी मुश्किल से मैंने उन बाडीज को हटाया...
जुबेदा दूर से मुझे ही देख रही थी...
लाल फ्राक में एक लड़की थी अपनी गुडिया को दुबकाए ....
तीन गोलियां उसे लगी थीं ...एक गुडिया को...
जुबेदा ने दूर से सर हिलाया...मुझे भी याद आया...उसने बताया था...समीना ने धानी रंग का फ्राक पहना था...
पागलों की तरह मैं ढूढता रहा...समीना नहीं मिली...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !


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