Monday, March 17, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरी जिंदगी--1

FUN-MAZA-MASTI


 मेरी जिंदगी--1

 दोस्तो ये कहानी पूरी काल्पनिक है, किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इस कहानी का कोई रिश्ता नही.
सबसे पहले ये बता दूं की  . इस कहानी  में क्यूँ की इन्सेस्ट भी है तो वो लोग ना पड़ें जिन्हें इन्सेस्ट पसंद नही, वैसे ये कहानी जिंदगी का हर रूप दिखाएगी पर धीरे धीरे. मुझे बहुत से दोस्तों ने गुज़ारिश करी है की शी-मेल पे कहानी लिखूं तो लीजिए आपके सामने प्रस्तुत है, जितना आप लोग साथ दोगे उतना ही कहानी लिखने और आपको पड़ने में मज़ा आएगा.
मैं भावना आज ३८ साल की हो गई हूँ, मेरा १८ साल का बेटा है जिसका नाम है राजेश, बहुत ही ह्स्मुख लड़का है.
आज डूबते हुए सूरज को देख जाने क्यूँ उन बीते हुए दिनो की याद आ रही है ---------

मेरा जनम एक डॉक्टर परिवार में हुआ था, मा बाप दोनो ही डॉक्टर हैं. कुद्रत ने मेरे साथ बड़ा ही घिनोना मज़ाक किया था.
जब मेरा जनम हुआ था मान बाप दोनो ही बहुत खुश थे लड़का पैदा हुआ है, बड़े प्यार से मेरा लालन पालन हुआ, लेकिन एक बात का उन्हें बहुत अचम्बा होता था की मैं लड़की की तरहा क्यूँ शांत रहता था, एक लड़के की तरहा क्यूँ शैतानियाँ नही करता था. मेरे सारे हाव भाव भी एक लड़की की तरहा ही थे. वक़्त गुजरा मैं थोड़ा बड़ा हुआ, मुझे रंग बिरंगे कपड़े ही अच्छे लगते थे जैसे की आम तौर पर लड़कियाँ पहनती हैं.
जिंदगी में कोलाहल तब मचा जब मेरे उरोज़ विकसित होने लगे एक लड़की की तरहा. मेरे दिल की हालत शायद मा समझ गई थी चाहे मेरे पास लंड था पर मेरा दिल, मेरे सोचने का तरीका, मेरा बर्ताव सब एक लड़की की तरहा ज़यादा था और इस वजह से मैं स्कूल की जिंदगी में बहुत ही गुम्सुम सा रहता था. कभी मैं खुद को एक लड़की समझता तो कभी एक लड़का, मेरे जिस्म में घूमनेवाले हॉर्मोन्स मेरे साथ खिलवाड़ करते रहते.
क्यूंकी मा खुद एक डॉक्टर थी, जब मेरे वक्ष बॅडने लगे तो मेरा पूरा बॉडी स्कॅन कराया गया और जो सामने आया उसने मा को हिला के रख दिया, मेरे अंदर लड़की और लड़का दोनो के ही अंग थे, बस फरक इतना रह गया था की सिर्फ़ मेरी योनि अंदर दबी रह गई थी जो विकसित नही हुई पर लंबा चोडा लंड ज़रूर विकसित हो गया.
लेकिन ये सब होने से पहले मेरी जिंदगी में एक बहुत ही बड़ा हादसा हो गया था. वो क्या था सब पता चलेगा पर कहानी की लेय के साथ.

क्या हुआ मेरी जिंदगी में कैसे आज मैं एक लड़के की मा हूँ ये सब धीरे धीरे आप को पता चलेगा साथ बने रहिएगा.. 

भव्य थोड़ा बड़ा होता है. आज उसके प्रेप. स्कूल जाने का पहला दिन था.
सीमा बड़े प्यार से भव्य को तयार करती है आर जैसे ही उसे निक्कर पहनाने लगी वो बिदक गया.
'ना ना ये नही - वो वाली फ्रोक'
'अले मेला राजा बेटा आज स्कूल जाएगा, सब क्या बोलेंगे अगर तू फ्रोक पहनेगा. अच्छे बच्चे मम्मी की बात मानते हैं'
और भव्य ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर देता है.
सीमा को समझ नही आ रहा था की वो लड़कियों के कपड़े क्यूँ पसंद करता है. ऐसा तो उसने किसी भी बड़े होते हुए लड़के में नही देखा था.
बड़ी मुश्किल से वो भव्य को मनाती है कि स्कूल में कम से कम वो लड़कों के कपड़े पह्न के जाए और घर आ कर फ्रोक पह्न ले.
प्रेप स्कूल का टाइम किसी तरहा निकल जाता है.
भव्य स्कूल लड़कों के कपड़े पह्न के जाता और घर आते ही फ्रोक पहनने की ज़िद करता. अपने बेटे को अपनी जान से ज़यादा प्यार करनेवाली सीमा उसकी बात मानती रहती ये सोच कर की जब असली स्कूल जाने का समय आएगा, तब तक वो भव्य को समझा लेगी. अभी बहुत छोटा है.


 प्रेप का एक साल कैसे गुजरा पता ही नही चला.
पर भव्य में कुछ बदलाव आया अब वो हर वक़्त पहले की तरहा सिर्फ़ लड़की के कपड़ों की ज़िद नही करता था. पर कभी कभी बहुत जिद्दी हो जाता था की सिर्फ़ लड़की के कपड़े ही पहनेगा. रीमा भव्य की बड़ी बहन उसे बहुत प्यार करती थी और हर वक़्त उसके साथ ही खेलती .थी भव्य को भी लड़कियों वाले खेल अपनी बहन के साथ खेलने में मज़ा आता था. वो अपने खिलोने तो छूता ही नही था.

अब भव्य कभी लड़कों की तरहा ज़िद करता तो कभी लड़की की तरहा एक कोने में गुम्सुम बैठ जाता. एक डॉक्टर होते हुए भी सीमा इस बात को पकड़ नही पा रही थी की भव्य ऐसा क्यूँ करता है. वक़्त और गुजरा और भव्य का दाखिला भी उसी स्कूल में करा दिया गया जिसमे रीमा पड़ती थी.
बड़ी मुश्किल से भव्य स्कूल यूनिफॉर्म पहनता और घर आ कर कभी अपने लड़कों वाले कपड़े पह्न कर खुश होता तो कभी रीमा के कपड़े पहनने की ज़िद करता.
स्कूल में वो अकेला ही रहता ना लड़कियों के पास फटकता और ना ही लड़कों में कोई रूचि लेता बस लंच टाइम में रीमा से मिल कर खुश हो जाता.
उसकी क्लास के बच्चे और टीचर्स भी उसके रवैये से हैरान थे. पर इतने छोटे बच्चे के साथ कौन सकती करता उसे या तो उसके हाल पे अकेला छ्चोड़ देते या फॉर खेलने के लिए ऐसा ग्रूप बनाते जिसमे लड़के और लड़कियाँ दोनो हो तब भव्य भी साथ में थोड़ा बहुत खेल लेता, पर वो बात किसी से नही करता था. 

सीमा हमेशा भव्य को खुद नहलाती और तयार करती. सीमा के प्यार और देखभाल की वजह से भव्य में बहुत बदलाव आ गया था, अब उसने स्कूल यूनिफॉर्म पहनने के लिए तंग करना बंद कर दिया था. और स्कूल से घर आ कर भी अपने लड़कों वाले कपड़े ही पहनता था.

पर कहीं ना कहीं उसके दिल में लड़कियों के कपड़े पहनने की इच्छा दबी हुई थी, कभी कभी उसका मान ललचाता था पर खुद को रोक लेता था. अब वो चोथी क्लास में पहुँच चुका थाऔर इतना समझने लग गया था की जब भी वो लड़की के कपड़े पहनने के लिए बोलता तो उसकी मा बहुत उदास हो जाती थी. अपने मा से बहुत प्यार करता था और छोटी आयु में ही अपने उप्पर रोक लगाना उसने सीख लिया था.

स्कूल में ना चाहते हुए भी कई बार वो लड़कियों के खेल में रूचि दिखाने लगता और उसके सब साथी लड़के उसका बहुत मज़ाक उड़ाते. उसने स्कूल में खेलना बिल्कुल बंद कर दिया. किसी से कुछ नही कहता पर अंदर ही अंदर रोता रहता.
कई बार उसने कोशिश करी की अपनी बहन रीमा को सब कुछ बता दे, पर ज़ुबान उसका साथ नही देती थी.

एक छोटा बच्चा अंदर ही अंदर घुटने लगा और घर में किसी को इस बात की खबर ही ना लगी.

जिंदगी का एक साल और गुजर गया. भव्य पड़ने लिखने में तेज था, सीमा को उस से इस बारे में कोई शिकायत नही थी. पर भव्य ने खुद को एक चार दीवारी में बंद कर दिया था. सिवाए अपनी बहन और मा के वो किसी से बात नही करता था. स्कूल में भी उसने सब से किनारा कर लिया था. बस अकेले अपने आप में गुम्सुम रहता.

इस बात की जानकारी सीमा को तब पता चली जब वो किसी काम से भव्य के स्कूल गई. ना वो शैतानी करता,ना पड़ाई से दूर भागता, बस किसी से भी बात नही करता आर स्कूल में खेलना तो उसने कब का छोड दिया था. यहाँ तक की घर आने के बाद बस अपने कमरे में रहता. कभी कभी अपनी बहन के साथ खेल लेता, वो अपनी सहेलियों के साथ खेलती लेकिन भव्य ने कोई दोस्त नही बनाया. वो और उसकी तन्हाई, उसका अकेलापन, और कमरे की चार दीवारी में बैठ कर अकेले रोना.

सीमा घर के कामो में भी ल्झी रहती आर उसने इस बात पे ज़यादा धयान नही दिया था, जब तक उसे स्कूल से इस बात का पता नही चला था.
जिस दिन सीमा को इस बात का पता चला, उसने भव्या पे और भी धयान देना शुरू कर दिया और उसके अकेलेपन का साथी बन गई. सीमा के साथ खेलने में भव्य खुश रहने लगा वो अपनी मा के और भी करीब होता गया.

सीमा अब भी उसे रोज नहलाया करती थी आर कपड़े पहनती थी. एक बात सीमा को परेशन कर रही थी जिससे अभी उसने अपने अंदर दबा के रखा था. भव्य की कमर लड़कों के हिसाब से नही बॅड रही थी पर उसका गुप्तँग सामान्य की तुलना में ज़यादा बड़ा होने लगा था. अभी वो छोटा था इस लिए इस बात को सीमा ने ज़यादा तूल नही दिया.

वक़्त गुज़रता है रीमा १०थ में पहुँच जाती है और भव्य ७थ में. तनाव मुक्त महोल और अच्छे ख़ान पान से बच्चों का शारीरिक विकास भी अच्छा होता है इस बात का सबूत थी रीमा जो अल्हड़ कमसिन जवानी की पहली सीडी पे पहुँच गई थि. उसके उभार उमरा के हिस्सब से थोड़ा ज़यादा बड़े थे क्यूंकी वो बिल्कुल सीमा पे गई थी. आज दोनो साथ खड़ी होती हैं तो मा बेटी नही बहने ही लगती हैं.

और भव्य बहन की दोस्ती और मा के प्यार की वजह से घर में बिल्कुल तनाव मुक्त रहता, बाहर की दुनिया से तो उसने कब का नाता तोड़ दिया था.

सीमा ने उसे नहलाना नही छोड़ा था, उसके दिमाग़ में डर बैठा था की कहीं फिर से भव्य कपड़ों को ले कर बवाल ना खड़ा करना शुरू कर दे और भव्य के गुप्तँग का विकास सीमा रोज अपनी आँखों से देख रही थी. इस उम्र में वो अपने पिता को मात दे गया था. उसका सोया हुआ लंड ही ६ इंच के लगभग हो गया था और मोटाई कोई १.५ इंच तो होगी ही.
सीमा के मान मैं कभी ऐसा कोई विचार नही आया था. पर भव्य के लॅंड का साइज़ कभी कभी उसके जिस्म में अंजानी उत्तेजना ले आता था जिसे वो भूल जाया करती थी.

एक दिन भव्य किसी काम से अपने कमरे की तरफ तेज़ी से गया था और रीमा उधर से बाहर निकल रही थी, अंजाने में दोनो भाई बहन टकरा गये और भव्य रीमा को ले कर ज़मीन पे गिर पड़ा इस तरहा के रीमा का एक उभार उसके हाथों में दब गया. दोनो को कुछ झटका लगा पर दोनो ने कुछ भी व्यक्त नही किया, क्यूंकी ये अहसास उनकी समझ में ही नही आया था.

एक बात से सीमा भव्य को ले कर परेशान हो रही थी, भव्य के चलने की चाल रीमा की तरहा लचकीली थी, ना की लड़कों की तरहा दबंग. उसने कई बार राजीव से इस बारे में बात की पर वो मज़ाक में ले लिया करता था. बच्चा है, बड़ा होने दो सब ठीक हो जाएगा.
और सीमा अपने डर को अपने अंदर समेटे रहती. कई बार उसने सोचा की भव्य से बात करे और उसमे बदलाव लाने की कोशिश करे फिर ये सोच कर रुक जाती, की बड़ी मुश्किल से संभला है, कहीं फिर से कोई हीन भावना उसके अंदर जनम ना ले ले.

भावना का पति कमल एक कामयाब व्यापारी है और अपने काम के सिलसिले में शहर से काफ़ी बाहर जाता रहता है. भावना उसके साथ बहुत सुखी है पर जिंदगी की काली परछाई जिससे वो पीछे छोड़ चुकी है बार बार उसे कोंधती रहती है, ना चाहते हुए भी बार बार वो अपने अतीत में खो जाती है.

उसका बेटा राजेश उसका बहुत ख़याल रखता है. जब भी कमल बाहर जाता, राजेश कालेज से सीधा घर आता और सारा समय अपनी मा के साथ बिताता उसे कभी अकेला नही छोड़ता था. वो जानता था की जब भी मा अकेले होती है, पता नही कहाँ खो जाती है. ना जाने क्या क्या सोचती रहती है. राजेश ने बाट बार पूछने की कोशिश करी पर भावना उसे हर बार टाल
जाती.

राजेश हर मुमकिन कोशिश करता की भावना खुश रहे, पर जब बी कमल बाहर जाता भावना को उदासी घेर लेती, इसका सबसे बड़ा कारण था उसके जिस्म की भूख जो कभी शांत नही होती थी.

भावना अपने ख़यालों में ही बाल्कनी में खड़ी थी उसे ज़रा भी आभास नही हुआ की राजेश कालेज से घर आ गया है.
राजेश भावना को पीछे से ह्ग कर लेता है, अंजाने में उसके हाथ भावना के मम्मो पे आ जाते हैं.

'क्या मा हर वक़्त सोचती रहती हो, आख़िर ऐसी क्या बात है? जब भी थोड़ा अकेली होती हो पता नही कहाँ खो जाती हो'

भावना वर्तमान में आ जाती है और राजेश के सर को सहलाती हुई बोलती है
'आ गया मेरा बेटा - चल तू फ्रेश हो जा तेरे लिए खाना लगती हूँ' भावना इस बात पे कोई धयान नही देती की राजेश ने उसे उसके मम्मो के उप्पर से पकड़ रखा है.
राजेश अलग होता है और भावना को अपनी तरफ घुमाता है ' नही आज बाहर घूमेंगे और बाहर ही खाएँगे आप जल्दी तयार हो जाओ.
भावना के चेहरे पे खुशी की लेहर दोड जाती है, आज अपने अतीत को याद कर वो वाक़या में बहुत उदास हो गई थी.

भावना अपने कमरे में चली जाती है, तयार होने के लिए और राजेश भी अपने कमरे में चला जाता है. राजेश फ्रेश हो कर फटाफट बाहर आता है और भावना का इंतेज़ार करने लगता है. थोड़ी देर बाद जब भावना तयार हो कर बाहर आती है तो राजेश बस उसे देखता ही रह जाता है - भावना किसी अप्सरा से कम स्नदर नही लग रही थी. राजेश की नज़रें भावना की छाती पे जम जाती हैं भावना ने बहुत ही गहरे गले वाला ब्लाउस पह्न रखा था जिसमे से उसके आधे उरोज़ बाहर छलक रहे थे और शफ़ोनन की सारी में वो रति को भी मात कर रही थी.

राजेश पहले भावना को मूवी दिखाने ले जाता है फिर दोनो एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं और देर रात को जब घर वापस आते हैं तो राजेश अपने कमरे में जा कर सो जाता है, और भावना फिर अकेली रह जाती है, अपने कमरे में बिस्तर पे लेटी हुई फिर अपने अतीत में पहुँच जाती है. 
 
 



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