Saturday, March 1, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--57

FUN-MAZA-MASTI
   फागुन के दिन चार--57
गतांक से आगे ...........

 " तुम यहाँ समोसा खाने आये हो की...कितना खाते हो....वहां अभी होटल में फिर समोसा...हम यहाँ समोसा खाने आये हैं की गूंजा का पता लगाने आये हैं..." गुड्डी ने घुड़का"

नहीं वो बात नहीं है...." मैंने बात बदलने की कोशिश की ..." देखो ये लोग बीजि हैं...अभी चीफ सेक्रेटरी से बात हो रही है..."
"तुम लोग ना...तुम भी इन्ही की तरह हो...सिर्फ बातें करते हो काम वाम नहीं...." गुड्डी बोली.

" अरे करेंगे...काम वाम भी करेंगे...प्रामिस घर पहुँचने दो तुम्हारी सारी शिकायत दूर..." मैंने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की.
" धत्त ....तुम भी न कहीं भी कुछ भी..." गुड्डी शर्मा गयी.
तब तक बात करते करते डी बी नजदीक आ गए थे और हम लोग चुप हो गए...
" थैंक्स सर...दो बटालियन आर ए फ ...और एक प्लाटून सी आर पी फ ...नहीं सर...दैट विल बी ग्रेट हेल्प...जी मैं भी यही सोच रहा हूँ...आज जो भी होगा उसके रियक्शन का रिस्पोंस प्लान तो करना पड़ेगा....कुछ अन्फर्च्नेट हो जाए तो ...और कम्युनल टेंशन तो यहाँ ...नहीं इतना काफी होगा....एस टी फ की कोई जर्रोरत तो नहीं है...यु नो सर पिछली गव्रेंमेंट में तो दे हैड बेकम ...ए सोर्ट ऑफ़ गवर्नमेंट ...काल सब लोकल पुलिस का होता है...इंटेलिजेंस ...सब कुछ...उनके आने में तो चार पांच घंटे लगेंगे तब तब तो मैं इसे...मैं समझ रहा हूँ...सर ...वो अपने राज्य मंत्री जी...स टी फ के हेड उनके जिले में एस एस पी रह चुके हैं और पुराना परिचय है...माई...स्पेसल प्लेन से आ रहे हैं...कोई बात नहीं...मैं आपको इन्फार्म करूँगा...कोई प्राब्लम होगा तो बताऊंगा."
एस टी ऍफ़...मतलब स्पेशल टास्क फोर्स ...इतना तो मैं समझ गया था...लेकिन अब डी बी के चेहरे पे थोड़ी परेशानी साफ दिख रही थी.

जब वो फिर आ के बैठे तो उन्होंने पुछा ..
" हाँ तो मैं क्या बोल रहा था..."
" तीन..." मैं असल में तीन लड़कियों के नाम के बारे में जानना चाहता था ..लेकिन डी बी तो...वो चालू हो गए...
" हाँ तीन बड़ी परेशानिया हैं ...कमांडो हमारे तैयार हैं शाम जहाँ जरा हुयी ...लेकिन अब जल्दी करनी पड़ेगी...वैसे शाम तो होने ही वाली है...उस स्पेशल टास्क फोर्स के पहुचने के पहले...तो पहली बात..हमें स्कूल के अन्दर का नक्शा एकदम पता नहीं है...हमने स्कूल के मैनेजर , प्रिंसिपल और नगर निगम से प्लान की कापी मंगवाई है...लेकिन बहोत से अनअथाराइज्द काम हो गए हैं और वो नक्शा एकदम बेकार है. फिर पता नहीं किस कमरे में लड़कियां होंगी...कई फ्लोर हैं कुल २८ कमरे हैं ...और अगर जरा भी पता चला उन्हें तो… एलिमेंट आफ सरप्राइज गायब हो जाएगा."

गुड्डी के लिए इन टेक्नीकल बातों का कोई मतलब नहीं था...वो फिर से बोली...जी वो तीन लड़कियाँ...
" जी हाँ...डी बी ने विनम्रता पूर्वक बात आगे बढाई..." मैं भी वही कह रहा था...उन तीन लड़कियों से बात और उलझ गयी है...एक तो वो लोग कहीं बम्ब न छोड़ दें फिर अगर कमांडो कायर्वाही में...कई बार स्मोक बाम्ब से ही घबडा के… फिर मिडिया हम लोगों की ...सी एम् ने खुद बोला है...टाइम चाहे जितना लगे ...लड्कोयों को सेफ निकलना है.

जब तक वो तीसरी बात बताते गुड्डी मैदान में कूद गयी.
" मैं प्लान बना सकती हूँ...और रास्ता भी...एक कागज मंगाइए.."
कागज आया और तीन चार फोन भी ..आखिरी फोन शायद एस टी एफ के हेड का....डी बी का चेहरा टेंस हो गया और आवाज भी तल्ख़ थी. वो सर सर तो बोल रहे थे...लेकिन टोन साफ था की उसे ये पसंद नहीं आ रहा था.

गुड्डी ने प्लान खींच दिया...और बताने लगी...
" ये ऊपर का रूम है ...इसी में एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी...लड़कियां यहीं होंगी.
" ये तुम्हे कैसे मालूम ..." डी बी ने आश्चर्य से पुछा...
" तो किसको मालूम होगा..." गुड्डी ने झुंझलाकर बोला.
गुड्डी तो गुड्डी थी. गनीमत है...डी बी अभी रीत से नहीं मिले थे...सुपर चाचा चौधरी... चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है और रीत का चाचा चौधरी से भी

" अरे मैं पिछले छ साल से वहां पढ़ रही हूँ...और कितनी बार उस कमरे में एक्स्ट्रा क्लास अटेंड की है...एक्स्ट्रा क्लास वहीँ लगती है...और आज तो गुंजा ने बोला भी था की क्लास वहीँ लगेगी.." गुड्डी बोली.

गनीमत था की डी बी ने ये नहीं पुछा की गूंजा कौन है...
" दो दरवाजे हैं एक बाहर का जिससे सब लोग आते हैं और एक पीछे का जो नार्मली बंद रहता है...चार खिड़कियाँ हैं...एक खिड़की दायें साइड की है जो बंद नहीं होती..."
अबकी मैंने टोका ..." क्यों..."
मुझे डांटने में उसने कोई गुरेज नहीं किया....न आँखों से ना आवाज से...
" क्यों का क्या मतलब...अरे हवा आती है धुप आती है...मैं तो हमेशा वहीँ बैठती थी...टीचर के पास से दिखाई भी नहीं पड़ता था...तो एकाध झपकी भी आ जाय...एस में स करते रहो..टीचर ने एकाध बार बंद करने की कोशिश की लेकिन नहीं बंद हुयी...और बगल की छत से लडके लाइन मारते थे...कई बार चिट्ठी फेंकते थे....उस फ्लोर पे पहले कोई कमरा बन रहा था था ...फिर आधा बन के रुक गया है काम इसी लिए...और कोई उन लडकों को मना भी नहीं करता था..."

" तभी तुम वहां बैठती थी..." मैंने गुड्डी को छेड़ा...

" चुप रहो यार...ये बहोत काम की बात बता रही है और तुम..खाली ३ समोसे खा गाये...कालेज में राकेश के यहाँ ब्रेड पकौड़े साफ करते थे और...आप बोलिए...ये ऐसा ही है...इसकी बात पे ध्यान मत दिया करिए..." वो गुड्डी से बोले...हमने बिल्डिंग के चारो ओर से फोटोग्राफ भी लिए हैं...लेकिन..." और अपनी बात रोक के उन्होंने फोटोग्राफ मंगाए...

" यही खिड़की है..." गुड्डी ने उंगली से इशारा किया..

" लेकिन ये तो बंद है..." डी बी ने बोला.." कोई भी खिड़की या दरवाजा नहीं खुला है..."
" ओह्ह मैंने पूरी बात नहीं बतायी.... गुड्डी चालू हो गयी ..."असल में...हम लोगो ने एक लकड़ी का पच्चा उसमें फंसा रखा था....बाहर से टीचर को दिखता नहीं था...कब्जे में लगा रखा था...जो लड़की सबसे पहले पहुंचती थी उसका काम होता था...और वो खिड़की के बगल वाली डेस्क भी हथिया लेती थी... साल भर ये काम मैंने किया...रात को तो चौकीदार चेक करता था ना...इस लिए शाम को उसे हटा लिया जाता था..."

डी. बी. प्लान पे तमाम निशान बना रहे थे...और किसी को बुला के ऊन्होने तमाम आर्डर दिए और गुड्डी से पुछा...
" वो जो जगह काम हो रहा था...मतलब बंद था...कितना दूर था...गैप कितना था..."
दोनों हाथ फैला के गुड्डी बोली" इतना...थोडा सा ज्यादा..."
'१० फिट ...२० फिट ..." डी बी ने पूछा.
" नहीं नहीं...और कम ..८ फिट ज्यादा से ज्यादा...अरे कई बार..लडके तो पास में रखे पटरों की ओर इशारा कर के बोलते...आ जाऊं ...आ जाऊं...और हम लोग उन को चिढाते ...आ जाओ..आओ ...इशारे करते और जब वो आने का नाटक करते तो ...हम उन्हें अंगूठा दिखा देते और खिडकी उठंगा देते..."

डी बी ने गुड्डी को चुप रहने का इशारा किया और सी ओ ....अरिमर्दन सिंह को बुलाया...
" बगल में जो मकान बन रहा है...वहा किसी को लगाया है..." डी बी ने पुछा...
" जी जी...दो लोग एक गनर भी है..." सी ओ ने बोला.
" वहां १+४ के दो सेक्शन लगा दो ..एक ऊपर और एक उस बिल्डिंग से जहाँ उतरने का रास्ता हो....स्मार्ट लोगों को लगाना..." डी बी ने बोला.
" और एक टियर गैस वाला सेक्शन भी...स्मोक बम्ब के कुछ कैनिस्टर भी उनको दिलवा दो...हाँ वो सी सी टी वी वाले कैमरे लग गए चारों ओर...." उन्होंने बात जारी रखी.
" जी "
" तो उसके मेन फीड की स्क्रीन इसी कमरे में लगाओ..." डी बी ने फिर बोला और उसको जाने का इशारा किया. उसके जाने के बाद वो गुड्डी से बोले,

" यार तुमने....छोटी हो तुम तो बोल सकता हूँ...."
" एकदम...." मुस्करा के वो बोली.
" बहोत बड़ी प्राब्लम तुंने साल्व कर दी..." डी बी इतने देर में पहली बार मुस्कराए.
" असल में...डी बी ने बात आगे बढाई...हमें एंट्री समझ में नहीं आ रही थी..चौकीदार से मैंने खुद बात की उसने लड़कियों के अलावा और किसी को स्कूल में घुसते नहीं देखा. सामने जो हलवाई की दूकान है...उस पे जो लड़का बैठता है...."
" नंदू ...." गुड्डी ने बात काट के बोला...
" हाँ ...वही...उसने यहाँ तक बताया की ९थ क्लास की लड़कियां थीं...२४ लड़कियां अन्दर गयीं...सब डिटेल ...लेकिन उसने भी बोला की किसी को उसने अन्दर जाते नहीं देखा...और टीचर के आने के पहले ये हादसा हो गया...वो थोड़ी लेट आयीं थी..." डी बी ने कहा.

" वो हमेशा लेट आती हैं...मंजू बहन जी...उनके पीरियड में बहोत मस्ती होती है...." गुड्डी ने जोड़ा...


 " वो हमेशा लेट आती हैं...मंजू बहन जी...उनके पीरियड में बहोत मस्ती होती है...." गुड्डी ने जोड़ा...

" तो उस लडके ने भी किसी आदमी को अन्दर आते नहीं देखा...इसका साफ मतलब है...वो इसी खिड़की से अन्दर गए और उनके साथ या उन्हें किसी ने इस के बारे में बताया होगा...और कोई रास्ता है क्या.."
डी बी ने गुड्डी ने जो प्लान बनाया था उसे और फोटुयें देखते हुए पुछा.

" उन्ह ..नहीं...नहीं...हाँ एक रास्ता है...लेकिन उसे सिर्फ मैं और कुछ लड़कियां जानती हैं....ज्यादातर लोगों को ये मालूम नहीं की ये रास्ता अन्दर जाता है...एक बहोत जंग खाया सा दरवाजा है उस पे फिल्मों के पोस्टर लगे रहते हैं...बाहर और अन्दर दोनों ओर से बंद रहता है...एक सीढ़ी है...बहोत पतली...और एक दम अँधेरी...सीधे ऊपर जाती है...उस के नीचे बहोत कचड़ा भी पड़ा रहता है. सीढ़ी ऊपर बरामदे में खुलती है. लेकिन उस की सिटकिनी जरा सा झटके से खुल जाती है...बस वहां से निकलिए तो उस क्लास का पीछे वाला दरवाजा..."
" वो भी तो बंद रहता है...तुमने बताया...था ना..." डी बी बोले...

" हाँ एक दम..लेकिन दो बार अपनी ओर खींच के हलके से अन्दर की ओर धक्का दीजिये तो बस खुल जाता है..." गुड्डी ने राज खोला...और मेरी ओर देख के बोली..

." मुझे क्या मालोम था रीत ने बताया था मुझे ".

डी बी फिर मुस्करा रहे थे...
" एक बार एक दो महीने पहले मैं गयी थी उधर से ....अक्षय कुमार की एक पिक्चर देखने ...राठोर...हाँ क्या करूँ क्लास बहोत बोरिंग थी...और एक दो बार क्लास में चुपके से लेट होने पे...एक बार तो तुम्हारे से ही बात करने के चक्कर में..."
मेरी ओर देख के उसने इल्जाम लगाया.
तब तक दो लोग आके स्क्रीन सेट करने लगे...और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेल्केट हो सकता था.
" वो जो मकान बन रहा है ना...कैमरा उधर सेट करो...हाँ ज़ूम करो....बस उसी खिडकी पे...हाँ और ....."

खिड़की अच्छी तरह बंद थी.

" इंटेलिजेंट....जाओ तुम सब..." और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया. और हम लोगों को समझाया....उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमने पता चल जाएगा इस लिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया...ये कोई ...."

तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया...

" सर साइटिंग हो गयी...एक स्नाइपर ने देखा...ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की...उसका कहना है आब्जेक्ट अभी भी वहीँ होगा...हालांकि खिड़की अब बंद हो गयी है...वो पूछ रहा है...एंगेज करें उसे...एक्शन स्टार्ट करें ...." उसने हांफते हुए पुछा...कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है."

" अभी नहीं...कैमरा उधर करो...हाँ फोकस … दो लोगो को बोलना क्राल कर के...इनर पेरी मीटर के अन्दर घुसे ...बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट...जाओ..." डी बी ने आर्डर दिया.

अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था...एक खिड़की हलके से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था...

" मोबाइल....वो आप कह रहे थे न की उस का फोन...." गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी.

" हाँ हाँ क्यों नहीं....एकदम और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी...शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था...फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज...अस्फुट शब्द...फिर बैक ग्राउंड में एक हलकी सी चीख...

ये तो गूंजा लग रही है...गुड्डी बोली...उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए..

फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली...फिर पीछे से आवाज आई...छोडो मुझे...हाथ छोडो....

एकदम गूंजा है ही मैंने बोला...गुड्डी ने लेकिन ध्यान नहीं दिया अब फोन की आवाज साफ हो गयी थी...गुड्डी ध्यान से सुन रही थी...और उस की आँखों में एक चमक सी आ गयी. फिर वो एक मुस्कान में बदल गयी और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गयी. अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी....
डी बी ने हलकी आवाज में गुड्डी से पुछा..." तुम्हे कुछ अंदाज लग रहा है..."

" हाँ..." उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली. उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया...और एक मिनट वो बोले...और जा के दरवाजा बंद कर दिया.

लौट के उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले...ध्यान से एक बार फिर से सुनो...और बहोत कम और बहोत धीमे बोलना.
रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी.

ख़तम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा..." बताऊँ मैं...."


डी बी ...ने नाड किया ...हाँ..

" चुम्मन ..." गुड्डी ने बोला.

हम सब लोग चुप्पी साधे वेट कर रहे थे . गुड्डी हम लोगो को देख रही थी.. फिर बात आगे बढ़ायी....

" बहोत दिन से नहीं दिखा ....७-८ महीने पहले ... छोटा मोटा दादा टाइप...चौराहे पे खड़ा रहता था...एक नयी मोटर साइकिल भी थी ली थीमतलब वो ज्यादा लड़कियों के चक्कर में नहीं रहता था...लेकिन बाकि सब उसे अपना बॉस मानते थे....लेकिन वो एक गूंजा के साथ लड़की है..महक..मेहकदीप ..उसी की बड़ी बहन, प्रीत के साथ...वो सीरियस हो गया था...उसको लगता था बस जो वो कहें सब माने ...जैसे उसके चमचे मानते थे ..तो उसने उसको अपने साथ चलने के लिए कहा...दोनों बहनें स्कूटी पे आती थीं ...प्यारी गुलाबी रंग की ...उसके अंकल बहोत पैसे वाले हैं....सिगरा पे उनका एक माल है, हथुवा मार्केट में कई दुकाने हैं, उसके अंकल के कोई है नहीं तो वो दोनों बहने उनके साथ रहती थीं...वैसे उसके फादर कनाडा में रहते थे..."

" हुआ क्या यार ये बताओ..." मैंने फास्ट फारवर्ड करने की कोशिश की...
" ठीक है..बोलने दो ना इसे..." डी बी ध्यान से सुन रहे थे.

" तो उसने...चुम्मन ने एसिड फ़ेंक दिया...." गुड्डी बोली.

" अरे इतना शार्ट कट भी नहीं...." मैंने समझाया.

गुड्डी बोली.

" तुम्ही तो कह रहे थे...खैर...तो मैं बता रही थी ना की चुम्मन ले जाना चाहता था उसको...कोई क्यों ले जाएगा किसी लड़की को…. मौज मस्ती..लेकिन प्रीत ने चुम्मन को चांटा मार दिया..और अगले दिन से कार से आने लगी...ड्राइवर भी उसका बाड़ी गार्ड टाइप. चुम्मन ने उसे दो चार बार बोला...चलती क्या खंडाला...और एक दिन उसकी स्कूटी का हैंडल पकड़ के रोक दिया...जब तक वो संभलती...उसने प्रीत का ...हाथ पकड़ लिया...और हम अब लोग वहीँ खड़े थे साथ साथ...चुम्मन ने उसे अपनी मोटर साइकिल की और खींचा....चारो ओर उसके चमचे खी खी कर रहे थे घेरकर ...चुम्मन ने बोला...हे चल आज एक बार मेरे खूंटे पे बैठ जा...फिर खुद आएगी रोज दौड़ी दौड़ी...और प्रीत ने पूरी ताकत से एक चांटा मार दिया और जब तक वो संभले ...स्कूटी उठायी और चल दी.:"


" एसिड उसने कब फेंका..." डी बी ने पुछा ...क्या अगले ही दिन...

" नहीं...१०-१२ दिन हो गए थे. गुड्डी फिर बोली..

." एक्जाम का आखिरी दिन था...हम सब लोग बहोत मस्ती में थे...प्रीत मेरे आगे थी. मैं और महक साथ साथ थे...उस की कार थोड़ी दूर खड़ी होती थी. अभी तक मुझे एक एक चीज याद है...अचानक कहीं से वो निकला...उस दिन वो अकेला था...हाथ पीछे..प्रीत की ओर आके उसने एक बोतल दिखाई और बोला..." बहोत गुमान था ना गोरे रंग पे इस जोबन पे अब देखता हूँ...तुझे कोई देखेगा भी नहीं...”और पूरी की पूरी बोतल उसकी ओर खोल कर उछाल दी. लेकिन तब तक मैंने प्रीत का हाथ पकड़ के जोर से पीछे की ओर खींचा...वो पीछे की ओर मुंह के बल गिर पड़ी...इस लिए बच गयी...थोडा सा उसके पैर के पंजे पे पड़ा..बस...करीब १० दिन बी एच यु में भर्ती रही प्लास्टिक सरजरी भी थोड़ी हुयी ..फिर ठीक हो गयी."

" और चुम्मन...." डी बी कुछ कागज़ पर नोट कर रहे थे, फोन उनके लगातार जारी थे...लेकिन साथ साथ वो गुड्डी की बात भी ध्यान से सुन रहे थे.

" वो दिखा नहीं उसके बाद से...उसके अगले दिन उसकी मां आई थी ..सब दुकानदारों से मिली ...की कोई गवाही ना दे...वैसे भी किसको पड़ी थी...हम लोगों से भी बोला...महक के अंकल से भी..." गुड्डी बोली.

" वही जो बगल वाली टेबल पे बैठे थे..." डी बी ने बोला. तब मुझे याद आया...एक लहीम शहीम...५०-५५ के बीच के...रंग ढंग कपडे अंदाज से काफी पैसे वाले संभ्रांत लगते थे.

" था वो कहाँ का कुछ याद है..."डी बी ने पुछा...साथ साथ वो किसी को फोन लगा रहे थे...उसे वेट करने के लिए बोल कर गुड्डी को उन्होंने देखा...

" सोनारपुरा...शायद..." गुड्डी बोली और डी बी ने फोन पर वेट कर रहे आदमी को बोला..." सोनारपुरा पी एस को बोलना...उसका एक बन्दा है...हाँ वो जानता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ...बस उसको बोलना उस आदमी को बोलें मेरे दूसरे वाले फोन पे रिंग करे."

थोड़ी देर में ही ब्लेक बेरी पे रिंग आई.

" सुनो...सोनारपुरा में...कोई चुम्मन है..सुना है उसके बारे में...पिछले एक हफ्ते का उसका अता पता मालुम करो...और उसकी मां होगी...उसको मेरे पास ले आना हाँ बुरके में..और सीधे मेरे पास...आधे घंटे के अन्दर "

"इट मेक्स सेन्स बट डज नाट आन्सर आल द क्वेस्चन्स. ऐनी वे...इट साल्व्स प्रजेन्ट प्राब्लम ...इट सीम्स..." फोन रख कर डी बी बोले

पहली बार डी बी ने राहत कि सान्स ली और दोनो हाथ पीछे कर अंगडाय़ी ली.

आप ने बहोत हेल्प कि..उसने गुड्डी की ओर देख कर कहा...और फिर मुझे देख के बोला...

." बस यही बद्किस्मती है आप इस जैसे घोन्चु....के साथ चलिये आप कि बदकिस्मती लेकिन इस की किस्मत..."

गुड्डी मुस्करायी और बोली..." बात तो आपकि सही है..लेकिन किस्मत के आगे कुछ चलता है. वैसे आपका..."

मैं और डी बी दोनो मुस्कराये.

" मेरी लाइन बहोत पहले ही बन्द हो चुकी है...बचपन में एक मेरी ममेरी बहन थी ....वान्या...मुझसे बहोत छोटी और मै उसके कान खिंचा करता था...और उसने पूरा बदला ले लिया अब ....वो जिन्दगी भर मेरे कान खिंचेगी."

गुड्डी ने बहोत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आंख मार दी...और हल्के से बोली.. सीखो...सीखो...."


 गुड्डी ने बहोत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आंख मार दी...और हल्के से बोली.. सीखो...सीखो...."

डी बी फोन पर दूर खडे होके बात कर रहे थे.

आके वो फिर हम लोगों के पास बैठ गये और बोले..

." अच्छा ये चुम्मन डरता है किसी चीज से...और क्या ...तुम सोचती हो... कौन होगा...उसके साथ."

गुड्डी ने कुछ देर सोचा...और लगभग उछल कर बोली...

" चुहा...मेरे ख्याल से वो चुहे से डरता है....बल्कि पक्का डरता है...जब ...जिस दिन उसने प्रीत पे ऐसिड फेंका था...मैने बताया था ना कि मैं प्रीत के पीछे पीछे ही थी...और मैने उसक हाथ पकड कर पीछे खिंचा था....तो हम लोग ना जब किसी को डराना होत था...तो बडी जोर से बोलते थे....चूहा..हमारे क्लास में थे भी बहोत...मोटे मोटे ...बस वो डर कर बिदक गया...थोडा सा ऐसिड उसके अपने हाथ पे भी गिर गया...प्रीत को इस लिये भी कम लगा. और उसके साथ...मेर पूरा शक्क है ...रजऊ ही होगा....वही उसका सबसे बडा चमचा था और उस का नाम ले के लडकियों को डराता था...और खिडकी पे सबसे ज्यादा वही खडा रहता था..."

मुझे दिन का सीन याद आया...गुंजा के उरोज पे रंगीन गुब्बारे का सटीक निशाना..."

तब तक ओलिव कलर में कुछ मिलेट्री के लोग आये...डी बी ने खडे होके उनसे हाथ मिलाया...और हम लोगों को इन्ट्रोड्युस कराया..

" हम लोगो ने पूरी रेकी कर ली है...थर्मल इमेजिन्ग डिवाइसेज से भी...एक कोयी नीचे के कमरे में है और एक ऊपर के कमरे में….

"थैन्क्स सो मच मेजर समीर...इत विल बि ग्रेट हेल्प और मेरे ख्याल से...वी विल नाट रिक्वायर...बिग गन्स...लेकिन आप तैयार रहिये...वी डोन्ट नो...सिचुयेशन क्या टर्न ले...." डी बी बोले

और डी बी खडे हो गये. मेजर को संकेत मिल गया और वो हाथ मिला के चले गये.
डी बी अब हम लोगो के साथ खुल के बात करने के मूड में थे...

" चलो...ये बात अब साफ हो गयी ये नीचे वाला कमरा जिसे तुम प्रिन्सिपल का रूम कह रही हो चुम्मन यहां है....फिर अचानक उन्हे कुछ याद आया और उन्होने ऐ. म.....अरिमर्दन सिंह ...सी ओ कोतवाली को बुलाया...और बोले...

" ये मीडिया वाले साल्ले ....इनको बोल दो कोयी भी लाइव टेलीकास्ट के चक्कर में ना पडें.....अगले तीन घन्टों तक....एवेन मोबाइल पे अगर कोयी फोटो लेते दिखे...उसे अन्दर कर दो...ये भी साल्ले फीड करते हैं.... और ५०० मीटर के बाहर ..."

" मैं सबको हैण्डल कर लुंगा पर सर वो इन्डिया टीवी...."

" उस की तो तुम...अचानक डी बी की निगाह बोलते बोलते गुड्डी पे पडी और उस को देख के बोले ...ऊप्स सारी तुम्हारे सामने..."

सी ओ चले गये.

डी बी ने फिर गुड्डी से माफी मांगने कि कोशिश की तो मैने रोक दिया,...

" आप इसको नहीं जानते...ये अगर मूड में आ जाय ना...तो ये सब जो आप बोल रहे थे ना कुछ नही है और अगर आप इनकी दूबे भाभी से मिलेंगे तो फिर तो जो आप फ्रेशर्स को सिखाते थे ना वो शरीफों की जुबान हो जाय." मैने जोडा.

" मैं फिर जरूर मिलुंगा...बनारस में एक दो भाभियां तो होनी ही चहिये...ओके...डी बी बोले फिर बात पर लौट आये.

" वो चुम्मन...वो नीचे प्रिन्सिपल के कमरे में इसलिये है कि वहां टी वी होगा..."

गुड्डी ने तुरन्त हामी भरी.

" वो वहां से लाइव टेली कास्ट देख रहा होगा. दूसरे वहा से मेन गेट और घुसने के सारे रास्ते दिखते हैं यहन तक की खिडकी भी जिससे वो सब इन्टर हुये थे...तो अगर उसके पास कोयी रिमोट होगा तो वहीं से वो एक्स्प्लोड कर सकता है. लेकिन लडकियों को वो अकेले नहीं छोड सकता तो ये जो थरमल इमेजिन्ग दिखा रही है...गुड्डी आपने एक्दम सही कहा था ...लडकियां इसी कमरे में होस्टेज हैं ...लेकिन घुसेंगे कैसे....सामने से ....वहां वो बन्दा है...और अगर उसके पास रिमोट हुआ...खिडकी...लेकिन लडकियां एक दम सट के हैं...ऐन्ड माइ ब्रीफ इज ज़ीरो कैजुअल्टी...." डी बी बोले

तब तक एक फटीचर छाप जीन्स...और कुर्ते में एक आदमी द्न दनाता हुआ अन्दर घुसा. बाहर कोयी उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी बी ने आवाज दे कर उसे अन्दर बुला लिया.

तब तक एक फटीचर छाप जीन्स...और कुर्ते में एक आदमी द्न दनाता हुआ अन्दर घुसा. बाहर कोयी उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी बी ने आवाज दे कर उसे अन्दर बुला लिया.

" सर जी आप ने एक दम सही कहा था...कुछ दिन में तो आप को हम लोगों की जरुरतो ना रहेगी." वो बोला.

" सीधे मुद्दे पे आओ...ये बोलो...उसकी मां मिली कि नहीं ...." डी बी ने पूछा.

" अरे आप चन्दर को हुकुम दें और वो..फेल होयी जाय ये हो नही सकता...लाये हैं बाहर बैठी हैं .,..लेकिन मैने सोचा कि मैं खुद साहब को पहले बता दुं ना..." उस आदमी ने बोला.
" ठीक है बोलो..." डी बी ने कहा.

" वो ऐसिड वाले वारदात के बाद ....करीब छ महीने से वो गायब था....लेकिन अभी १०-१२ दिन से नजर आ रहा है. अब सब लोग कहते हैं ...एकदम बदल गया...एक्दम शान्त...बोल्बै नहीं करता....घर पे भी कम नजर आता है...और उस की दो बातें जबरद्स्त हैं..एक तो चाकु का निशाना...अन्धेरे में भी नहीं चूक सकता....और दूसरा जो लौन्डे लिहाडी हैं ना...वो सब बहुत कदर करत हैं उसकी बात मानते हैं...." चंदर ने कहा.

" ठीक है...उसकी मां को बुला लाओ..."डी बी ने कहा.

जैसे ही बुरके में वो औरत आयी...डी बी उठ के खडे हो गये...और बोले....

" अम्मा बैठिये...."

वो बैठ गयीं और नकाब उठा दिया....

एक मिडिल ऐजेड...४५-५० की....गोरी थोडे स्थूल बदन की...

" अरे भैय्या..उ चुम्मनवा काव गडबड किहिस....आप लोग काहेन ओके पकडे हैं..." उन्होने बोला.

डी बी ने बडे शान्त भाव से प्यार से उनसे कहा...

" अरे नाहिं आप निसाखातिर रहिये....कोहि नहि पकडे है उसको...कुछ नहीं किये है वो...आप पानी पिजिये...." और अपने हाथ से उन्होने पानी बढाया.
उन्होने पानी का एक घूंट पिया और पूछा..." त बात का है...हम कसम खात हैं उ अब बहुत सुधर गया है."

" जरा ये आवजिया सुनियेगा..." डीबी ने मोबाइल रिकार्डिन्ग को आन किया....

वो ध्यान से सुनती रहीं ...चुपचाप...फिर बोलीं..

." अवाजिया त ओहि का है बाकि...."

" बाकी का अम्मा..." डी बी ने बडे प्यार से उनसे पूछा.
" हमार मतलब...बाकी उ कह का रहा है ये हमारे समझ में नहीं आ रहा है."
" कौनो बात नहीं...त इ बतायीं की..."और डी बी की प्यार भरी बात ए ५ मिनट में सब कुछ साफ करा दिया.

चुम्मन की मां ने बताया कि उस तेजाब वाली घटना के बाद वो बम्बई चला गया...उसके कोइ फूफा रहते थे उसके यहां...कुछ दिन टैक्सी वैक्सी का काम किया लेकिन जमा नहीं...लाइसेंस नहीं मिला...फिर वो भिवंडी में....वहीं उसकी कुछ लोगों से उसकी मुलाकात हुयी ...वो एक्दम मजहबी हो गया...और अब जब आया है तो अब अपने पूराने दोस्तों से बहोत कम...खाली एक दो से...और एक कोयी साहब कुछ खास काम दिये हैं...पता नही...बस यही कहता है...अम्मी बहोत बिजी हौं और कुछ जुगाड बन गया तो...सऊदीया...जाने का प्रोग्राम भी बन सकता है...

चन्दर को बुला के डी बी ने हिदायत दी की ..उन महिला को आराम से एक कमरे में रखे.. और हम लोग मिल के ऐक्शन प्लान बनाने में जुट गये.

मैने डी बी से पूछा ...अरे जब पत्ता चल गया है कि ऐसा कोयी खास नही हैं तो आप बता क्यों नही देते ...फालतू का टेन्शन ..."

" मुझे बेवकूफ समझ रखा है...पहली बात इस बात कि क्या गारन्टी की वो टेररिस्ट नहीं है...दूसरी इतना बढिया मौका मेरे लिये....इसी बहाने आर. ऐ. एफ़......सी आर.पी. एफ ये सब मिल गयीं अब होली पीसफुली गुजर जायेगी. वरना डंडा छाप होमगार्ड के सहारे ....इतना ज्यादा रयुमर है होली में दंगे की...और तीसरी बात...बेसिक सिचुएशन तो नहीं बदली है ना...वो तीन लडकिया तो अभी तक होस्टेज हैं...."डी बी बोले

बात तो उनकी सही थी.
हम दोनो ने मिल के प्लान बनाना शुरु किया...लेकिन शुरु में ही झगडा हो गया.

और सुलझाया....गुड्डी ने...उसकी बात टालने कि हिम्मत डी बी में भी नहीं थी.
झ्गडा इस बात पे था कि पिछे वाली सीढी से अन्दर कौन घुसे.

मेरा कहना था मैं...डी बी का कहना था ...पुलिस के कमान्डो...

मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था...पहला जूते...दूसरा सफारी...पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहने...ब्राउन कलर के जूते जरुर पहनते हैं और कोयी थोडा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोट्स शू....और सादी वर्दी वाले सफारी...दूर से ही पहचान सकते हैं..और सबसे बढकर...बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड....उनकी आंखे...

डी बी का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं....और फिर बाद में कोयी बात हुयी तो....

मेरा जवाब था...हथियार चलाने से ही तो बचना है...गोली चलने पे अगर कहीं किसी लडकी को लगी तो फिर इतने आयोग हैं,,,और सबसे बढकर न मैं चाह्ता था...ना वो की ये हालत पैदा हों. दूसरी बात...अगर कुछ गडबड हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नही मालूम कौन था...वो तो एस टी फ का इन्तजार कर रहा था.

लेकिन फैसला गुड्डी ने किया...वो बोली...साली इनकी है, जाना इनको चाहिये. और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हे देख के वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं.

तब तक एक् आदमी अन्दर आया और बोला बाबत पुर ऐयर पोर्ट(बनारस का ऐयर पोर्ट) से फोन आया ऐ...की एस.टी.ऎफ का प्लेन २५ मिनट में लैन्ड करने वाला है...और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है...उनकी वेहिकिल्स सीधे रन वे पर पहुंचेंगी."


डी बी ने दिवाल घडी देखी...कम से कम २० मिनट यहां पहुंचने में लगेंगें यानी सिर्फ ४५ मिनट ....हम लोगों क काम ४० मिनट में खतम हो जाना चाहिये...

फिर उस वेट कर रहे आदमी से कहा...

"जो ऎल.आई.य़ु के हेड है ना पान्डे जी...और ऐयर पोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा...उन्हे रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे . वहां उनकी ब्रीफिंग करें..."

अब डी बी एक बार फिर ....पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गयी.

" ज़ीरो आवर इज़ २० मिनट्स फ्राम नाउ" डी बी ने बोला

...मुझे १५ मिनट बाद घुसना था...१७ मिनट बाद प्लान टू शुरु हो जायेगा...२० वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुंच जाना है..और अगर ...३० मिनट तक मैने कोयी रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और ...छत से खिडकी तोड के पुलिस के कमान्डों...

"तुम्हे कोयी हेल्प सामान तो नहीं चाहिये..." डी बी ने पूछा.

" नहीं बस थोडा मेक अप..पेन्ट...." मैने बोला.
" वो मैं कर दुंगी...." गुड्डी बोली.

" कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास...भिजवाउं...." डी बी बोले.

गुड्डी बोली," अरे मैं ५ मिनट में लडके को लडकी बना दूं...ये क्या चीज है. आप जाइय़े...टाइम बहोत कम है."

डीबी बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिस वाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर...तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं.

गुड्डी ने अपने पर्स उर्फ जादू के पिटारे से...कालिख की डिबिया जो बची खुची थी...दूबे भाभी ने उसे पकडा दी थी...और जो हम लोगों ने सेठ जी के यहां से लिया था...निकाली और हम दोनो ने मिल कर...

४ मिनट गुजर गये थे.
११ मिनट बाकी थे....

" तुम्हारे पास कोयी चूडी है क्या...." मैने पूछा.

" पहनने का मन है क्या... गुड्डी ने मुस्कराकर पूछा और अपने बैग से ....हरी लाल चुडीयां...जो उसने और रीत ने मिल कर मुझे पहनायी थीं ...सब मैने उपर के पाकेट में रख ली.

" चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा...." मैने फिर मांगा.

तुमको ना लडकियों क्का मेक अप लगता है...बहोत पसन्द आने लगा...वैसे एक दम ए वन माल लग रहे थे जब मैने और रीत ने सुबह ...तुम्हारा मेक अप किया था...चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिल कर वहां इसी ड्रेस में रखेंंगें...." ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकाल कर दे दिया.

७ मिनट गुजर चुके थे...
सिर्फ ८ मिनट बाकी थे.

निकलुं किधर से...बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था..इस मेक अप में..सारा ऐड्वान्टेज खतम हो जाता...
मैने इधर उधर देखा...कमरे की खिडकी में छड थीं...मुश्किल था.
अटैच्ड बाथ रूम...मैं आगे आगे गुड्डी पीछे पीछे...

खिडकी में तिरछे शीशे लगे थे...मैने एक एक करके निकालने शुरु किये और गुड्डी ने एक एक को सम्हाल कर रखना..जरा सी आवाज गडबड कर सकती थी. ६-७ शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गयी.

९ मिनट
सिर्फ ६ मिनट बाकी...

बाहर आवाजें कुछ कम हो गयी थीं लगता है उन लोगो ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था.


गुड्डी ने खिडकी से देख के इशारा किया...रास्ता साफ था...
मैं तिरछे हो के बाथ रूम की खिडकी से बाहर निकल आया.

वो दरवाजा ३५० मीटर दूर था. यानी ढाई मिनट....

वो तो प्लान मैने अच्छी तरह देख लिया था...वरना दरवाजा कहीं नजर नही आ रहा था...सिर्फ पिक्चर के पोस्टर...

तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा...उस को मैने बोला...तुम यहीं खडे रहना..और बस ये देखना कि द्ररवाजा खुला रहे.
पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी...ड्राइवर ने उन्हे हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये.

१३ मिनट..
सिर्फ २ मिनट बचे थे.

मैं एक दम दीवाल से सट के खडा था...
कैसे खुलेगा ये दरवाजा...कुछ पकडने को नहीं मिल रहा था..
एक पोस्टर चिपका था...सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली...कामास्त्री...हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती ..और वहीं कुछ उभरा था...हैंडल के उपर ही पोस्टर चिपका दिया था...

दो बार आगे तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था...सिमसिम...दरवाजा खुल गया...वो भी पूरा नहीं थोडा सा...

१५ मिनट हो गये थे...

सीढी सीधी थी...लेकिन अन्धेरी...जाले...जगह जगह कचडा. थोडी देर में आंखे अन्धेरे की अभ्यस्त हो गयी थीं.
मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये...

सीढी २ मिनट में पार कर ली...

साथ में कितनी सीढीयां है रास्ते में कौन सी सीढी टूटी है उपर के हिस्से पे सीढी बस बन्द थी....लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड....टूटी कुर्सीयां. एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी...उसे मैने एक किनारे कर दिया...लौटते हुये बहोत कम टाइम मिलने वाला था.

क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था. मैं उस कमरे के बाहर पहुंचा और दरवाजे से कान लगा के खडा हो गया. हल्की हल्की पद्चाप सुनायी दे रही थी... बहोत हल्की.

मैने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि..वो बस हल्के से हिला.

मैने नीचे झुक के देखा...दरवाजे में ताला लगा था.

गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है.
अब.


तब तक मैने देखा मोबाइल का नेट्वर्क चला गया. लाइट भी चली गयी. अन्दर कमरें घुप्प अन्धेरा छा गया.
लाउड स्पीकर पर जोर से चुम्मन की मां की आवाज आने लगी..

." खुदा के लिये इन लडकियों को छोड दो....इन्होने तुम्हारा क्या बिगाडा है...अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें पुलिस के साहब लोग भी ....बाहर आ जाओ..."


प्लान टू शुरु हो चुका था. १७ मिनट हो गये थे.

मेरे पास सिर्फ ८ मिनट थे.

मैने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोल कर हल्के से दरवाजा खोल दिया...थोडा सा...घुप्प अन्धेरा...
थोडी देर में मेरी आंखे अन्धेरे की आदी हो गय

एक बेन्च पे तीन लडकीयां, सिकुडी सहमी...गुन्जा की फाक मैने पहचान ली...गुन्जा बीच में थी.
बेन्च के ठीक नीचे था बम्ब...बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी. कोयी तार किसी लडकी से नहीं बन्धा था.

दीवाल के पास एक आदमी खडा था जो कभी लडकियो की ओर कभी दरवाजे की ओर देखता...
बाहर लाउड स्पीकर पर आवाज और तेज हो गयी थी...कभी चुम्मन की मां की आवाज कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग...

उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था.
जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जडा मेरे पास था ...वो जमीन से ना टकराये...उसमें दो मोटे मोटे चूहे थे.
 


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