Saturday, March 1, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--58

FUN-MAZA-MASTI

    फागुन के दिन चार--58
गतांक से आगे ...........


 सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा. वो चीखती उसके पहले मैने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनो लडकियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें.

मुझे पहले बाम्ब को समझना था.

मैं उससे बस दो फीट दूर था.

एक चीज मैं तुरन्त समझ गया...इसमें कोय़ी टाईमर डिवाइस नही है. ना तो घडी की टिक टिक थी ना वो सर्किटरी...तो सिर्फ ये हो सकता है कि...किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो... बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय.

बहोत मुश्किल था.
मैं खिडकी से चिपक के खडा था.
कोयी डाइवर्शन क्रियेट करना होगा...

मैने गुन्जा को इशारे से समझा दिया...

मेरे जेब में पायल पडी थी...जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी. और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था.. बाजार में पहुंच के मैने वो अपनी जेब में रख ली थी.

चूहे के पिंजरे से मैने पनीर का एक टुकडा निकाला और पायल में लपेट के...पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका...झन्न की आवाज हुय़ी...दरवाजे से लड के पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी...

झन झन झन..

" कौन है..." वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आयी थी....

इतना डायवर्शन काफी था.

मैने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था..उसके दायीं ओर वाली लडकी को पहले उठ के मेरे पास आना था...
वो झटके से उठ के मेरे पास आयी ....एक पल के लिये मेरे दिल कि धडकन रुक सी गयी थी...कहीं बाम्ब...लेकिन कुछ नहीं हुआ.

और जब वो मेरे पास आयी तो मेरे दिल की धडकन दो पल के लिये रुक गयी.

मेहक..लम्बी , गोरी, सुरु के पेड जैसी छरहरी और सबसे बढ्कर उसकी फिगर...

लेकिन अभी उसक टाईम नहीं था. मैने उसके कान में फुस्फुसाया...दिवाल से सट के जाना...पीछे वाले दरवाजे पे...इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लडकी को मैं उठाउंगा...तुम दरवाजे पे उस लडकी का वेट करना और पीछे वाली सीढी से....

मेहक को सीढी का रास्ता मालूम था... उसने मुझे आंखों में ऐश्योर किया...और दीवाल से सटे सटे बाहर....की ओर...मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोयी आवाज ना हो...

और मैने एक चूहा छोड दिया.

वो आदमी दरवाजे के बाहर खडा था ...पनीर का टुकडा उसके पैरों के पास...
और पल भर में चूहा वहीं....वो जोर से उछला...चूहा....
और मेहक...दरवाजे के पार हो गयी.

बाहर से लाउड स्पीकर की आवाजें बन्द हो गयी थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड रहे थे...बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था.

वो आदमी फिर बेचैन होके बाहर की ओर गया. और फिर पायल, पनीर का टुक्डा और चूहा...और अबकी चूहे ने उसे काट लिया....

वो चीखा और अब दूसरी लडकी दिवार से सट के...बाहर की ओर....

चुहे हमेशा दिवार से सट के चलते हैं और अंधेरे में देख सकते हैं. जो चूहे मैं लाया था इनके दांत बडे तीखे होते हैं... ये बात उस आदमी को भी मालूम थी और वो दीवार के नजदीक नहीं आ सकता था.
लेकिन अब मामला फंस गया.

मैं गुंजा और...बम्ब.
अभी तक बेन्च पे कम से कम गुन्जा का वजन था. लेकिन उस के हटने के बाद....मैने उसे इशारा किया....और वो एक दम बेन्च के किनारे सरक कर बैठी थी...बस जस्ट टिकी थी...

दूसरे डाईवर्शन....काठ की हान्डी एक बार चढती है...मैं दो बार चढा चुका था. और मेरे पास अब ना तो पायल बची थी ना चूहे...और अब वो आदमी एलर्ट हो कर अन्दर की ओर देख रहा था...जैसे ही वो रियलाईज करता दो लडकियां गायब हैं...मेरे लिये मुश्किलें टूट पडतीं.

क्या करुं ..क्या करुं ...मैं सोच रहा था...तब तक जोरदार आवाज हुयी...
बूम.
बूम...

मैं समझ गया ये डमी ग्रैनेड है...धुआं और आवाज....लेकिन उसने बरामदे में शीशा तोड दिया था और उसी के रास्ते वाटर कैनन का पानी..
.
गुंजा बस टिकी बैठी थी और अब दुबारा मौका नहीं मिलने वाला था..मेरे इशारे के पहले ही ...वो मेरी ओर कूद पडी..और मैं स्लिप के फील्डर की तरह पहले से तैयार...मैने उसे कैच किया और उसी के साथ रोल करते हुये जमीन पर दरवाजे की ओर...

बम्ब नहिं फूटा.

लेकिन एक दूसरा धमाका हो गया.
कमरे में एक दूसरा आदमी दाखिल हो गया...

" क्या हो रहा है यहां....तू नीचे जा...अब लगता है...टाईम आ गया"
और उसने लाइटर निकाल कर जला ली.
और जैसे ही लाईटर की रोशनी बेन्च की ओर पडी ...बेन्च खाली....
" लडकियां कहां गयीं देख जायेंगी कहां...यहीं कहीं होगीं....ढूंढ जल्दी."

मैं और गुन्जा दम साधे फर्श पे थे. और लाइटर की रोशनी हम लोगों की ओर भी आ गयी.

एक चाकू तेजी से...हवा में लहराता...

मैं सिर्फ इतना कर सका की ...रोल करके मैने गुन्जा को अपने नीचे कर लिया...पूरी तरह मेरे नीचे दबी, चारो ओर मेरी बांहें, पैर...

चाकू मेरी बांह में लगा और अबकी बार वो खरोंच नहीं थी. घाव थोडा गहरा था...खून तेजी से निकलने लगा.

गुंजा से मैने बोला..." तू भाग...बाकी लडकियां पीछे वाली सीढी पे खडी होंगी ....तू भी वहीं खडी हो के मेरा इंतजार करना...मैं रोकता हुं इस को."

हम लोग दरवाजे के पास ही थे.
गुंजा सरक कर...दरवाजे के बाहर निकल गयी और दौडती हुय़ी सीढी की ओर....

वो आदमी मेरे पास आ चुका था. लाईटर बुझ चुका था. लेकिन उस अन्धेरे में भी ...उसने एक बडा चाकू जो निकाला, उसकी चमक साफ दिख रही थी...


" क्यों साल्ले...किसका आशिक है तू...उस मेहक का...बुरचोदी...उसकी बहन तो बच गयी ये नहीं बचने वाली मेरे हाथ से...या गुंजा का...अब स्वर्ग में जा के मिलना मेहक से...घबडाना मत दो चार महीने मजे ले के...उसे भी भेज दूंगा तेरे पास ज्यादा इंतजार नहीं करना पडेगा." और उसने चाकू उपर की ओर उठाया...


 " और उसने चाकू उपर की ओर उठाया...

मैं जमीन पे गिरा था..उसके पैरों के पास...गुड्डी से जो मैने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था...मेरे हाथ में था...

खच्च...खच्च...खच्च...दो बार दाये पैर में एक बार बायें पैर में...
वो लडखडा के गिर पडा....उठते हुये मैने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में...पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छ्ल छ्लल बहने लगा.

निकलते निकलते मैने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है...मैने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर.
उसी समय एक टियर गैस का शेल खिडकी तोडता हुआ कमरे में.

२० मिनट हो चुका था...मुझे ५ मिनट में बाहर निकल कर आल क्लियर का मेसेज देना था वरना कमांडो अन्दर....लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी...ये दोनो पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम ५-१० मिनट के लिये डिले किया जाय.

दरवाजा बन्द कर के मैने टुटा हुआ ताला उसमें लटका दिया...
ऐड्वांटेज...१ मिनट

जो मैने गुड्डी से चुडियां ली थीं ...सीढी की उल्टी डायरेक्शन में मैने बिखरा दीं और कुछ एक कमरे के सामने...अगर वो कन्फुज हुये तो---

ऐड्वाटेज...दो मिनट

वापस मैं दौडता हुआ सीढी की ओर...तीनो लडकीयां सीढी के पार खडी थीं.
मेहक ने बोला,

" चलें नीचे..."
" अभी नहीं..." मैने कहा और सीढी का दरवाजा बन्द कर दिया.

पीछे से जोर जोर से दरवाजा खडखडाने की आवाज आ रही थी.
" ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा उठा के यहां ..." मैने बोला.
" मेरा नाम मेहक है...मेहक दीप..." वो बोली.

" मुझे मालूम है...लेकिन प्लीज जरा जल्दी..." मैने कहा.

जल्दी जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी...तीसरी लडकी से मैने रस्सी के लिये इशारा किया...और उसने हाथ बढा के रस्सी पास कर दी. उपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये..बीच में जो भी टूटी कुरसियां, फर्नीचर सब कुछ...कम से कम ५-६ मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये..
.
तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धडाम की आवाज आयी.जिस कमरे में इन्हे होस्टेज बना कर रखा था...और जिसे मैने बाहर से बन्द कर दिया था...टूटा ताला लटका कर उसका ..दरवाजा..टूट गया था.

"भागो नीचे ..सम्हल कर...चौथी सीढी टूटी है...११ वीं के उपर छत नीची है..." मैने तीनो से बोला.

" मालूम है मालूम है..स्कूल बंक करने का फायदा.." मेहक ने उतरते हुये जवाब दिया.

दौडते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढी के दरवाजे की ओर से आ रही थी.
मेरा चूडी वाली ट्रिक फेल हो गयी थी.
मेरी दिमाग की बत्ती जली...जो मेरा खून गिर रहा होगा..अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा.

और वही हुआ...हमारे नीचे पहुंचने से पहले...ही सीढी के दरवाजे पे हमला शुरु हो गया था. इसका मतलब कि अब दोनो साथ थे...जिसके पैर में मैने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं.

.और तबतक गोली की आवाज...
गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोडने की कोशिश कर रहे थे...लेकिन मुझे ये डर था की कही वो इन लडकियों को ना लग जाये.

" पीठ दीवाल से सटा के..चुपचाप..." मैने बोला. सब लाइन में खडे हो गये..दिवाल से चिपक के..और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे. वो जाके सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गयी.

सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लडकी और सबसे अन्त में मेहक और मैं...एक दूसरे का हाथ पकडे...

गोली की आवाज सुन के मेहक कांप गयी और उसने कस के मेरा हाथ भींच लिया और मैने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया.
मेहक मुझे देख के मुस्करा दी...और मै भी मुस्करा दिया.

अब हम लोग सीढी के नीचे वाले हिस्से में थे...जहां निचले दरवाजे से छन के रोशनी आ रही थी.
मूझे देख के वो मीठी मीठी मुस्कराती रही..और मै भी...इत्ती प्यारी सुन्दर कुडी..मुस्कराये और कोयी रिस्पान्स ना दे...गुनाह है.
तब तक मेहक की निगाह मेरे हाथ पे पडी..

उयीइइइइइइइइइइ वो चीखी...कितना खून....
अब मेरी नजर भी हाथ पर पडी. मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता. लेकिन खून लगातार बह रहा था..मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गयी थी.

मेहक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड दिया. और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया. खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहोत कम हो गया था.
तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैने महक को खींच के अपनी ओर...मेरे हाथ अचानक मैने रियलाइज किया उसके रुयी के फाहे ऐसे उभार पे थे...मैने झट से हाथ हटा लिया और बोला..सारी..
.
मेहक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींच के वहीं रख लिया और बोली...किस बात की सारी...नो थैन्क नो सारी...वी आर फ्रेन्डस...."

मैने मोबाइल की ओर देखा..सिर्फ दो मिनट बचे थे ...अगर मैने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलैट्री कमान्डो...और हम लोग क्रास फायर में..
नेटवर्क अभी भी गायब था.

मैने बीपर निकाल कर मेसेज दिया...ये सीधे डी बी को मिलता.

सिर्फ चार सिढिय़ां बची थीं.
दीवाल से पीठ सटाये सटाये...हम नीचे उतरे.

उपर से जो गोलियां चली थीं, उससे नीचे सीढी के दरवाजे में अनेक छेद कर दिये थे. काफी रोशनी अंदर आ रही थी.
पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली.
और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा...

" आप हो कौन जी...इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं, मिलेट्री में...लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक..." मेहक ने अपनी नीली नीली आंखे नचा के कहा.

गुंजा आगे बढ के आयी..." मेरे जीजू है यार...जीजू ये है..
"मेहक" उस ने खुद हाथ बढाया. और मैने हाथ मिला लिया.

" मैं जैसमीन..." तीसरी लडकी बोली और अबकी मैने हाथ बढाया.
" हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू..." मेहक ने हंस के कहा.
" और मेरे भी..." जैसमीन बोली.
" एकदम ..."गुंजा बोली. " लेकिन आप को ये कैसे पता चला की मैं यहां फंसी हूं."

" अरे यार साल्लीयों को जीजा के अलावा और कहीं फंसने की इजाजत नहीं है...." मैने कस के मेहक और गुंजा को दबाते हुये कहा.

मैं बात उन सब से कर रहा था...लेकिन मेरी निगाह बार बार उपर और नीचे के दरवाजों पे दौड रही थी.
मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खडे हैं...लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खडे होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई..हमारी पीठ उन की ओर होगी...बहोत मुश्किल हो जायेगी. मैं इस लिये टाइम पास कर रहा था की...उपर से वो दोनो क्या करते हैं.

मुझे एक तरकीब सूझी...कुछ रिस्क तो लेना ही था.

" तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खडी रहो...:

और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया..और उपर की ओर देख रहा था.
" काश इस निगोडी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सट के खडा होना पडता..." मेहक ने आह भरी.

" अरी साल्लीयों वो मौका भी आयेगा...ज्यादा उतावली ना हो." गुंजा बोली.
एक मिनट तक जब कुछ नही हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो उपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं.
मैने मुड के दरवाजे को खोलने की कोशिश की.

वो नहीं खुला.

मैने तो दरवाजा बन्द नही किया था.
नीचे झुक के एक छेद से मैने देखने की कोशिश की...बाहर एक ताला लटक रहा था.

मेरॊ उपर की सांस उपर नीचे की नीचे...

ये क्या हुआ..दरवाजा किसने बन्द किया.
ड्राईवर को तो मैं बोल के गया था की देखते रहने को..

अब....?


 लडकियां जो चुहुल कर रही थी...वो मैं जानता था...की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है.

लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था...बाहर से दरवाजा बन्द....और उपर से ताला...जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है...

कौन हो सकता है वो....मेरे दिमाग नहीं सोच पा रहा था.

मुझे याद आया...अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो...और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गयी.
पहला काम सेफ्टी फर्स्ट...स्पेशली जब साथ में तीन लडकियां हैं....तो खतरा किधर से आ सकता है...
दरवाजे से...उपर से या नीचे से...इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा.

और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये...चार के बजाय दो की फाइल में..... फाइल में...एक आगे एक पीछे

मैं मेहक के पास गया...और बोला..." चलो तुम कह रही थी ना...की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खडा हो जाता हुं...और गुंजा तुम जेसमीन के आगे..."

" नहीं नहीं...मेहक बोली...मैं आप के आगे खडी होऊंगी." और मेरे आगे आके खडी हो गयी.
.
मैं उसकी कमर को पकडे था की गुन्जा बोली...
" जीजू आप गलत जगह पकडे हैं....थोडा और उपर.."
मेहक ने खुद मेरा हाथ पकड के अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देख के बोला..." अब ठीक है ना...अब तू सिर्फ जल, सुलग..इत्ते हैन्ड्सम सेक्सी जीजू को छिपा के रखने की यही सजा है.

मैं कान से उनकी बाते सुन रही था...लेकिन आंख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गडी थी.

मैने आल क्लियर सिग्नल दे दिया था..इसलिये किसी हेल्प पार्टी की उम्मीद करना बेकार था.
नेट्वरक जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी...इसलिये मोबाइल से भी डी बी से बात नही हो सकती.

बन्द कोयी गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं...तो कोयी बडा खतरा आने के पहले...मैं खुद...खुद ही कोयी रास्ता निकालना पडेगा.

अचानक मुझे एक ब्रेन वेव आयी.." किसी के पास ऐसा नेल कटर है .जिसमें स्क्रू ड्राइवर है."

" मेरे पास है...." जैसमीन ने कहा.

मैने उसे ले कर जेब में रख लिया. मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हे ढीले कर के...जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा.

तब तक उपर से सिमेन्ट चूना गिरने लगा..पहले हल्का ह्ल्का फिर तेज...

" बचो..." मैं जोर से चिल्लाया...सर सीने में, कान बंद...हाथ से भी सर ढक लो, पार्टनर को कस के पकड लो..."
तब तक जोर से ...बूम...हुआ..

पहले उपर का दरवाजा और साथ में कापियां टूटे फर्नीचर...छत पर से प्लास्टर के टुकडे..
अच्छा हुआ की मैने मेहक को कस के पकड रखा था...शाक वेव उपर से ही आयी...

लेकिन अगले पल नीचे का दरवाजा भी टूट कर के बाहर...और साथ में हम चारो भी ..लुढकते पुढकते...

" भागो..."

मैं जोर से चिल्लाया और हम चारों हाथ में हाथ पकड कर...स्कूल की बिल्डिंग से दूर...२००-२५० मीटर बाद ही हम रुके.


सब ने एक साथ खुली हवा में सांस ली.

अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा.
ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ था.
जिस कमरे में ये लोग पकडे गये थे...उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गयी थी. सीढी के उपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था. अभी भी थोडे बहोत पत्त्थर गिर रहे थे.

बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया...?
उन दोनों का क्या हुआ...?

मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था...

तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा...
टैक टैक...सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की...२५-३० राउन्ड...

सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था.
वो तो हम लोगों को मालूम था की...वहां कोयी नही हैं
स्कूल की ओर से कोय़ी फायर नहीं हो रहा था.

तब तक मेगा फोन पर डी बी की आवाज गुंजी...स्टाप फायर...

थोडी देर में एक पोलिस वालो की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले...और एक एम्बुलेन्स अन्दर गयी.

कुछ देर बाद एक आदमी लंगडाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी...चारो ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले..

स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धडधडाती हुयी ५ एस. यु. वी. और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुति जिप्सी जिसमें पीछे स्टेन गन लिये हुये...लोग बैठे थे..आकर रुकी.
डी बी आगे बढ कर अम्बेसेडर से निकले आदमी से मिले.

मैने नोटिस किया बात करते करते उसने पोजीशन बदल ली और अब डी बी की पीठ स्कूल के गेट की ओर हो गयी.
उधर एस.य़ु.वी. से उतरे लोगों ने पुलिस से कुछ बात की और उसमें से निकल के चार लोगों ने उन दोनो को एस.यु. वी. में बिठा लिया. और चल दिये. जैसे ही वो गाडीयां चलीं..अम्बेसेडर से उतरे आदमी ने ...अब तक वहां प्रेस वालों से इशारा किया की डी.बी. से बात करें.

उधर पीछे से गुंजा और मेहक आवाज दे रही थीं.

मैं मुड के उनके साथ पोलिस कन्ट्रोल रूम कि ओर चल पडा.गुड्डी वहीं थी.

कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाडी का ड्राईवर मिला, जिसे मैने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोयी दरवाजा ना बन्द कर सके...और वो यहां.

किसी तरह से मैने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया.

" क्यों कहां चले गये थे तुम...." मैने ठन्डी आवाज में पूछा.
" क्यों ...मैं तो यहीं था साहब...वहां कोयी नहीं मिला क्या आपको". वो बोला.
मैं चुप रहा.

" आपके जाने के दो चार मिनट के बाद...सी ओ साहेब...अरिमर्दन सिंह साहब आये थे. उन्होने मुझसे पूछा...तू यहां क्यो खडा है...मैने बोला की साहब ने बोला है...फिर मैने उन्हे सारी बातें बता दीं. वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हुं...तुम कन्ट्रोल रूम में जा के मेम साहेब के पास रहो. तुम अकेले उन्हे ठीक से जानते हो. मेरे सामने ही उन्होने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैने सी ओ साहब को साफ साफ बता दिया था की...आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये...उन्होने खुद जाकर दरवाजे को खोल के देखा."

मैं क्या बोलता. उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है.

और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे...गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा...

" तुम ने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया...मुझे कौन उठा ले जाता. तुम्हारे जाने के ५-६ मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी.ओ. साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास...तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खडा है.

ंमुझे लगा कि अच्छा हुआ मैने उसे कुछ नहीं कहा...लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, जैस्मीन और मेहक...एक साथ.


गुन्जा, जैस्मीन और मेहक...एक साथ.

गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को...दोनों की आंखो से आंसु बस छलके नहीं.

गुन्जा बोली..." गुड्डी दी...अगर आज जीजू नही होते तो...मैं सोच नहीं सकती थी..."

" क्यों नही होते...खाली होली खेलने के लिये जीजु बने हैं क्या...मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा..." मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिडका. दबाते दबाते भी एक आंसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया.

और उसके बाद जैस्मीन और मेहक भी गुड्डी की बांहों में...इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब...बिन बोले बडी बडी आंखों में तिरते , छ्लकते आंसुओं में बह गया.

मेहक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे ...बहोत सी बातें दोनो कह रही थीं.

मैने चिढाया...हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं ...यहां सूखा.."
" अरे मैं हुं ना ...गुंजा मुस्कराते हुये बोली और मेरी बांहों में आ गयी और मैने उसे कस के बांहों में भींच लिया.

अब गुड्डी ने पहली बार मेरे बायें हाथ और शर्ट को ध्यान से देखा..खून से लथ्पथ...और बांह में मेहक क दुपट्टा.

" हे इतना खून बह रहा है...क्या हुआ." वो चीखते हुये बोली.

" बह नहीं रहा है..बह रहा था...मेहक के दुपट्टे का असर है...और साल्लियों के लिये खून क्या मैं सब कुछ बहाने को तैयार हुं...क्यों...मन्जूर..."

अब उनके शर्माने की बारी थी.

गुन्जा ने पूरी बात बतानी शुरु कि..वो और मेहक एक्स्ट्रा क्लास में सबसे पहले बैठ गयीं थीं और लास्ट बेंच खिडकी के पास वाली हथिया ली थी. मेहक ने जब खिडकी खोली, तो कोयी नही था...क्लास में लडकीयां धीरे धीरे आ रही थीं. तब तक गुन्जा को रज्जऊ दिखा...मेहक ने चिढाया...

"सुबह तुम्हारे बायें वाले पे मारा था...और अब एक बचा था उस पे...कर दे ने उसके सामने ..."

( दोपहर में जब गुंजा स्कूल से आयी थी तो उसके बायां उभार रंग से लथ पथ था. रज्जऊ ने रंग भरा गुब्बारा फेन्का था जो सटीक निशाने पे लगा था.}

गुंजा ने मेहक की बात मान ली और अपने उभार रजऊ के सामने उभार दिये और चिढते हुये हल्की सी आंख मार दी ...दूसरा कोयी दिन तो होता तो वो कुछ कमेंट करता ....कम से कम मुस्कराता...लेकिन आज उसने कोयी रियेकश्न नहीं दिखाया.

गुंजा मेहक से बोली, " यार हो क्या गया इसको, कहीं तबीयत वबीयत तो नहीं गडबड है,,," और तबतक मामला साफ हो गया.

पीछे से चुम्मन आया, एक बडा सा चाकु लहराते हुये और रज्जऊ से बोला...पटरा लगा तुरन्त...

मेहक चुम्मन को देख के जोर से चीखी.

पलक झपकते, पटरा लगा के वो दोनों अंदर घूस गये और रज्जू ने पटरा उठा के वापिस बन रही बिल्डिन्ग के छत पे फेंक दिया.

जैसमीन उन लोगों के आगे वाली बेंच पे बैठी थी. मेहक की चीख सुन के उस का ध्यान खिडकी की ओर गया और एक चाकू लहराते आदमी को देख के वो बहोत जोर से चिल्लायी...

" भाग...जल्दी भाग" वो तब तक चिल्लाती रही जब तक क्लास कि बाकी सब लडकिय़ां बाहर नहीं निकल गयीं.

चुम्मन पीछे से चिल्लाया..." साल्ले दरवाजा बन्द कर...ज्यादा से ज्यादा लडकियों को रोकना है."

चाकू दिखा के उसने गुंजा और मेहक को रोक रखा था. चाकू की नोक उसने मेहक के गले पे रखी और बोला...
" रुक जा सब साल्लीयों वरना तुम सब को चीर के रख दुंगा,"

जैस्मीन एक पल के लिये ठिठकी और इतना समय काफी था...रजऊ को उसे धर दबोचने के लिये.

चुम्मन ने चाकू की नोक मेह्क के गले पे और जोर से दबायी...और एक बूंद खून छलछला उठा,

" तुम तीनों में सो कोयी जरा सा भी हिला ना तो ये चाकू अन्दर घुस जायेगा..." चुम्मन बोला.

रजऊ ने पहले बाहर निकल कर देखा की किसी क्मरें में , बरामदे में कोयी है तो नही फिर अंदर घुस कर, उसने दरवाजा खिडकी बंद कर दी.

" बेन्च लगा यहां... खिडकी के सामने हां थोडा दूर...हां यहीं अब कोयी साल्ला गोला गोली फेंकेगा इ खिडकी से .....तो पहला निशाना यही सब बनेगीं और हम लोगों के लिये काफी टाईम मिल जायेगा....तू तीनो बैठ जा इधर..."
और जब तीनो लडकीयां बेंच पर बैठ गयीं तो उसने रजऊ से बोल... जरा देख इन साल्लीयों को...मैं काम करता हुं."
उसने बैग से बाम्ब निकाला जो शायद दो पार्ट में था..उसने उसे जोड कर बेंच के नीचे रख दिया और एक तार निकाल के बेंच के दो पायों में अच्छी तरह लगा दिया.
" बास, एक तार इस ससुरी के पैर में भी बांध दो..." मेहक की ओर इशारा कर के वो बोला.

" साल्ले बहोत फिल्लम देखता है..अरे इसको कौन सुसाईड बामबर बनाना है...फिर तार भी कम है."

फिर हम लोगों को सुनाते हुये बोला..." अगर तुम लोग हिली डुली, किसी भी सूरत में इस बेंच के पाये एक इंच से ज्याद हिले तो तार मिल जायेंगे...और बूम."

वो मेहक से ज्यादा नाराज था. मेहक के सामने खडे होके वो बोल रहा था..

." हे अपनी बहना को तो भेज दिया ना...तो चल वो ना सही तो तू सही...अरे मैने उस साल्ली से क्या कहा था ...मेरे खूंटे पे बैठने के लिये ...तो बैठ जाती...कौन मैं उस से शादी करने वाला था...चल वो ना सही तू सही...तू तो उससे भी ज्यादा मस्त है रे..तूझे अपने खूंटे पे बिठाउंगा...और दो चार दिन में मन भर गया तो मेरे चमचे...एक एक दिन में १०-१० खूंटे...तू तो मजे से मर जायेगी बन्नो...लेकिन ना सबसे बाद में तूझे इस खूंटे पे बिठाउंगा."

और फिर से उसने अपना १० ईंच का चाकू निकाल के लहराया....फिर बोला...

" ना डर मेरि छमिया...बहोत मजा आयेगा ...तूझे ना आये...लेकिन मेरे इस रम्मपुरिया को तो आयेगा...डर मत यार धीरे धीरे घुसाउंगा...ये चाकू तेरी चूत में और फिर उपर के हिस्से पे भी पूरी आर्ट बनाउंगा...बाडी आर्ट...इस का मैं आर्टिस्ट हुं ...ये मेर ब्रश है और तेरी बाडी कैन्वास."

जब गुंजा ये सब सुना रही थी हम सब सकते में थे.

पिन ड्राप साईलेन्स...

मैने मेहक का हाथ अच्छी तरह अपने हाथ में पकड लिया था. उसने भी अंगुलिया मेरे उंगलियों पे भींच ली.

गुन्जा ने एक पल रुक के फिर बोलना शुरु किया..

." चुम्मन बोल रहा था और उसका चाकू मेहक के ड्रेस पे गडा हुआ था..उसके सीने पे...

उसने बोला और ५-६ दिन बाद ..तेरी बाडी..मेरे पेंटिंग मेरे बहोत काम आयेगी. ५-६ दिन बाद कब तुम्हारा आखिरी काज होगा ना ...तो वो तेरी डरपोक बहन आयेगी...और अगला नम्बर उसका..."

और ये कह के उसने मेहक के बूब्स के उपर..चाकू हल्का सा दबा दिया..कपड़ा थोडा सा फट गया और उसका सीना हल्के से दीखने लगा. चाकू की नोक वहां उसने कस के दबा दी,"

मेहक ने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया था और मेरे एक हाथ ने उसकी कमर कस के पकड ली थी. मैने उसे अपनी ओर खींच लिया.

छोटी सी लडकी और कहां कहां से गुजर गयी...और उसके बाद ये मुस्कान ये चुहल...और किस तरह रुक कर उसने बिना सोचे अपना दुपट्टा फाड कर मेरे हाथ में बांधा...

एक पल सब चुप रहे. गुड्डी ने बोला...." फिर..."


अबकी मेहक बोली..

." फिर क्या थोडी देर बाद ..फटा पोस्टर निकला हीरो...मेरा हीरो आ गया और चुम्मन कि ऐसी की तैसी...बिचारे की कलात्मक भावनाओं को बहोत आघात पहुंचा होगा."

तब तक मुझे अपने जेब में कुछ चुभा और मैने बाहर निकाल लिया...
एक मोबाइल...हां तब मूझे याद आया ये वही मोबाइल है जो मैने फर्श पर से उठाया था.

" ये तो चुम्मन का मोबाइल है..." जस्मीन बोली.

" तुम्हे कैसे पता..." मैने पूछा.

" जैसे ही हम तीनों को उसने बेंच पर बिठाया..." जैस्मीन बोली, उसने हम सबके मोबाइल ले लिये. गुंजा और मेहक के मोबाइल तो उसने तुरंत पटक्ककर, जूते से दबाकर कुचल कुचल कर तोड दिये. मेरा मोबाइल ले के थोडी देर वो कुछ सोचता रहा, फिर रजऊ से बोला...यार सबको बता दें वरना स्कूल में कोयी दुम उठाये चला आयेगा और उसकी मुसीबत हो जायेगी अपना काम बढ जायेगा.

फिर मेरे ही फोन से पहले तो उसने किसी न्यूज चैनेल को फोन किया और फिर कोतवाली में,..एक दो बार जब मेरे फोन पे रिंग आने लगे तो स्विच आफ कर के, जिस बेंच पे हम बैठे थे वहीं रख दिया.

फिर उसके फोन पे कोयी घंटी बजी....शायद साईलेंट मोड में रहा होगा...उसने फोन...यही फोन जो आपके हाथ में है उठाया...और कमरे के कोने में ...बात करने के लिये चला गया...वो धीरे धीरे बोल रहा था..इस लिये सुनायी नही दे रहा था. बात खतम कर के वो रजऊ को हम लोगों पे निगाह रखने के लिये बोल कर चला गया, नीचे."

जैसमीन की बात सुन के एक पल के लिये मैं सोच में पड गया. फिर मैने जैस्मिन से पूछा,

" क्यों तुम बक्सर गयी थी क्या...."
" ये आपको कैसे पता..." जैस्मीन ने मुस्कराते हुये चौंक कर कहा.

" मेरे जीजू शर्लाक होम्स हैं पैंटी देख के बता देते हैं भरत पुर स्टेशन पे कब कौन गाडी खडी हुयी , कितने मुसाफिर उतरे."

हंस के मेहक बोली और मेरी एक उंगली कस के दबा दी.
जैस्मीन ने राज खोला...

" नहीं मैं बक्सर नहीं गयी थी...मेरे एक कजिन हैं मेरी बुआ के लडके, मुझसे वैसे तो ७-८ साल बडे हैं लेकिन हम दोनों की बहोत बनती है. अभी तीन चार दिन पहले आये थे..मैने उनसे खूब झगडा किया..उनकॊ नयी नयी नौकरी मिली है...और पहली पोस्टिन्ग बक्सर में है. वो बोलने लगे की होली के पहले उनकी फर्स्ट सैलेरी मिल जायेगी. तब वो ले आयेंगे मेरे लिये नये ड्रेसेज..मैने उनका फोन तब तक के लिये जब्त कर लिया."

" रोमिंग बहोत लगेगी...." मैने बोला."

"एग्जैक्टली...यही बात भैय्या ने भी कही." जैसमीन बोली. लेकिन मैं भी कम चालाक थोडे ही हुं. मैने बोल दिया...जब आप ड्रेसेज दिलायेन्गे ना तो रोमिंग का बिल मैं वहीं पेश कर दुगी. वैसे मैने आज सोचा था कि स्कूल से लौटते हुये नया सिम ले लुंगी."

मेरी और डी बी की सिम के जरिये ट्रैस करने की स्टोरी गयी पानी में. मैने सोचा.

डी बी ने बोला था की सिम बक्सर की है, जिससे पुलिस स्तेशन में फोन आया था....४-५ घंटे में बक्सर से सब कुछ पता चल जायेगा.
हालांकी डी बी ने ये भी बताया था की...सिम से सब कूछ नहीं पता चलता.

मेरी और गुड्डी की घंटी साथ साथ बजी.

मेहक के अंकल...वो बिचारे कितने परेशान हो रहे होंगे...जब हम लोग दोपहर को कोतवाली में आये थे तो वो बाहर बैठे थे और अभी भी जब हम लोग अंदर घुसे तो मैने देखा की एक पुलिस वाले से वो कुछ पूछ रहे थे.
हम दोनों एक साथ बोल पडे..

."मेहक तुम्हारे अंकल, यहां दोपहर से वेट कर रहे हैं."

" कहां..." वो उछल पडी और बाहर जाने के लिये बेचैन हो उठी.

" तुम बैठो ...मैं ढूंढ के लाता हुं..." मैने बोला और बाहर निकला.

वहीं दरवाजे के पास वो चपरासी था जो हम लोगों के लिये चाय समोसे ले आया था. मैने उसी को बोला, उन्हे बुलाने के लिये और बाथ रूम चला गया...हाथ मुंह धोने.

जब मैं निकला तो मेहक और उसके अंकल...दोनो ने एक दूसरे को बांहों में पकड रखा था और बिना बोले दोनों की आंखो में आंसु...
" तुम्हे कुछ हुआ तो नहीं..."उन्होने पूछा." ये कपडे पे खरोंच...." उनकी आखों ने कुर्ते पे चाकू के निशान को देख लिया था.
" ये ..मुस्करा के मेहक बोली..कुछ नहीं भागते निकलते समय खरोंच लग गयी थी."

" ये तो बहोत अच्छा हुआ...टाइम पे कमांडो ऐक्शन हो गया...मुझे मालूम था की जैसे कमांडो आयेंगे ये भाग जायेंगे...कोयी चैनेल कह रहा था दोनो पकडे भी गये."

मेहक के अंकल बोले.


उस समय टी.वी. पे आ भी रहा था...ब्रेकिंग न्युज...कमांडो..ऐक्शन मे. तीनो लडकियां छुडायी गयी. तीनो सुरक्षित...मेडिकल जांच जारी...फिर टीवी पे तेजी से बाहर निकलते अम्बुलेन्स की फोटो...दूसरे चैनेल पे ग्रिह राज्य मन्त्री बयान दे रहे थे की टाईमलि एस टी फे के ऐक्शन से लडकियों को बचा लिया गया है..एक और चैनेल पे एस टी एफ के प्रवक्ता ...लखनऊ में बोल रहे थे की होस्टेज को छुडा लिया गया...स्थानीय पुलिस ने भी बहोत सहयोग दिया.

सब लोगों की आंंखे टी वी पे लगी थी.

अचानक मेहक के अंकल की आंखे मुझ पे पडीं.
" ये कौन है..." उन्होने पूछ.

" ये..." मेहक मेरे पास आके खडी हो गयी ..और मेरे कमर में हाथ डाल के बोली...वो जो चैनेल वाले बोल रहे हैं ना वही...कमांडो...पुलिस सब कुछ..."

" ये मेरे जीजु हैं..." गुन्जा भी मेरे पास खडी हो गयी.

" झूठ ...थे..अब मेरे हैं" मेहक ने मेरी कमर पे हाथ का दबाव बढाते हुये कहा.
मेहक के अंकल के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.

फिर तीनो लडकियां एक साथ चालू हो गयीं...मेरी वीर गाथा ..साथ में थोडी नमक मिर्च.

पांच मिनट में बिना कमर्सियल ब्रेक के लगातार सुना कर ही वो रुकीं.
उन्हे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था. उन्होने अब सीधे मूझसे पूछा...

" आप अकेले थे...आप कमांडो में है."

मैने दोनो सवालो का जवाब एक साथ एक शब्द में दिया..." नहीं... " मैने बताया की प्लानिंग में गुड्डी का और डी. बी. का बहोत योगदान है.

मेरी बात खतम होने के पहले ही वो बोले..." आप उन्हे जानते हैं.."

अब की गुड्डी ने जवाब दिया.." हां इनके बहोत ही क्लोज फ्रेन्ड हैं, हास्टेल के जमाने से..."

" मेरे समझ में नहीं आ रहा है मैं आपसे क्या कहुं...मैं आपको इस के बदले में कुछ दे भी नहीं सकता...धन्यवाद भी नहीं...मेरे लडका लडकी कुछ भी नहीं..जो भी है बस ये है...और अगर इसे कुछ ...कुछ भी हो जाता तो वो मेरा आखिरी दिन होता..."
मेहक के अंकल मेरे पास आके बोल रहे थे. उनका हाथ मेरे कंधे पे था. और अबकी बार आंसू का एक कतरा बाहर निकल आया था. गनीमत था लडकियों ने चुम्मन ने उनसे जो कूछ कहा था वो सब पूरा सेन्सर कर दिया था और सिर्फ बचने वाली कहानी सुनायी थी.

" देखिये आप मूझसे बुजुर्ग हैं ..लेकिन मैं एक बात बोलूं...इसे कुछ नहीं होगा...जिस पर आप जैसे बुजुर्गों का साया है...और मूझे जितना मैं सोच सकता था..उससे बहोत ज्यादा इस काम में मिल गया है."

मेहक के अंकल मुस्कराने लगे और बोले..." अरे क्या मिला जरा हमें भी तो बताओ..."

" दो नयी सालियां...और फिर जब मेहक मेरी साली हो गयी तो मैं तो आपका दामाद तो वैसे ही हो गया...कहते हैं जामाता दसवां ग्रह...तो फिर तो मैं लगतार लेता रहुंगा...एक बार में थोडे ही छोडुंगा...क्यों मेहक."

मेहक के गाल थोडे से लाल हो गये मेरे द्विअर्थी डायलाग का मतलब समझ कर ..मुस्करा कर वो बोली..." हां एकदम..."
 


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