Sunday, March 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--62

FUN-MAZA-MASTI
    फागुन के दिन चार--62
गतांक से आगे ...........


 तभी एक और महिला का आगमन हुआ.

भाभी से उम्र में दो चार साल बड़ी रही होंगी,२८-३० और फिगर में मंजू की तरह ... लेकिन हलकी स्थूल ...भाभी ने परिचय करवाया. उनके मायके की हैं...( और इसलिए मेरी तो भाभी ही लगीं..), दो दिन पहले आई हैं. शीला नाम था उनका. नमस्ते वमस्ते हुयी ...

लेकिन एक बात गड़बड़ हो गयी.

उन्होंने मंजू के हाथ में नयी साडी देख ली और मैंने भाभी के आँख में ये बात पढ़ ली.

और मैंने तुरंत मिड कोर्स करेक्शन किया, एक तो अपने कान पकडे की मुझे मालूम नहीं था की वो आई हैं और दूसरी बात की मैं कल ही उनके लिए भी...तब तक गुड्डी जो सामन अन्दर रखने गयी थी बाहर निकली और उसे देख के शीला भाभी प्रमुदित हो उठीं.

पता ये चला की गुड्डी के ननिहाल के रिश्ते से उन लोगों के बीच ननद भाभी का रिश्ता लगता था..

." चल अब आएगा होली का मजा...देवर के साथ एक ननद भी ..." और उन्होंने गुड्डी को गले लगा लिया.

३६ डी डी और ३२ सी का वो मिलन देख के जंग बहादुर कुनमुनाने लगे..तब तक फोन की घंटी बजी ...और भाभी बोलीं..उसी का होगा तेरी वाली का ...

" इतना तो गौने की दुल्हिन इंतज़ार नहीं करती होली में अपने साजन का... बड़ी खुजली मची है ..उसको " .शीला भाभी ने मुझे चिढाया.

" आ तो गया है अब खुजली मिटाने वाला इंजन.." मंजू क्यों चुप रहती..

मैं उठाती हूँ फोन..गुड्डी बोली

बैठा तो मैं इन लोगों के साथ था लेकिन कान मेरे गुड्डी के फोन पे चिपके थे..गुड्डी ने हैण्ड सेट इस तरह लिया था की दोनों ओर की बातचीत सुनाई दे रही थी.

बैठा तो मैं इन लोगों के साथ था लेकिन कान मेरे गुड्डी के फोन पे चिपके थे..गुड्डी ने हैण्ड सेट इस तरह लिया था की दोनों ओर की बातचीत सुनाई दे रही थी.

" चार बार फोन कर चुकी हूँ शाम से बनारस में कहाँ अटक गयी थी...मन नहीं कर रहा था क्या आने का किसी बी एफ का `चक्कर था क्या ..." उधर से हलकी सी आवाज आई.

" सही बोल रही है...लेकिन तेरे बी एफ का चक्कर था...तेरे लिए गिफ्ट लेंने के चक्कर में..." इधर से गुड्डी बोली.
" जी नहीं वो बी एफ तेरा है...अभी कुछ हुआ की नहीं..." उधर से आवाज आई.

" कुछ नहीं बुद्धू राम के बस का कुछ नहीं है...वैसे ना तेरा न मेरा ...हम दोनों का ये

बोल के गुड्डी खिलखिला दी

उधर से भी जोर से खिलखिलाने की आवाज आई और फिर वो बोली ...चलो कल आना नहीं आओगी तो बहोत पिटाई होगी. फोन रखती हूँ.
" ओके आउंगी ...और जिससे मिलना चाहती हो न उसको भी ले आउंगी...बाई ..." ये बोल के गुड्डी ने फोन रख दिया.

इधर मेरी खिंचाई बदस्तूर जारी थी.
गुड्डी आके हम लोगों के साथ बैठ गयी.

"पिछली होली में तो हम दो ही थे मंजू की ओर इशारा करके भाभी बोलीं ...लेकिन तुम्हारे सारे कपडे फट गए थे और अबकी तो हम तीन हैं ..." भाभी चहक कर बोलीं उन का इशारा शीला भाभी की ओर था.
लेकिन गुड्डी ने भी अपनी लायल्टी जाहिर की ...." मैं भी तो हूँ ...तीन नहीं चार ..." गुड्डी चहकी.

" एकदम ये भी तो है मेरे मायके की ..." और भाभी ने दुलार से उसे अपनी ओर खींच लिया.

" बिन्नो तेरा देवर तो इतना चिकना है...कपड़ा क्या कपडे के अन्दर वाला भी फटेगा इसका ..." शीला भाभी हंसती हुयीं बोली.

" और इनके साथ इनके माल का ...अब ये खुजली मिटायें न मिटायें ...होली है तीन तीन भौजाइयां है...अन्दर का पूरा हाल चाल मालूम कर लेंगें..." मंजू ने मजे लेते बोला.

" मेरी भी तो ननद है अबकी होली में..पिछले साल बच गयी थी ये होली में गाव नहीं आई थी...अब सूद समेत बदला लूंगी..." शीला भाभी ने गुड्डी के ऊपर अपना एक हाथ रख दिया.

भाभी ने फिर रुख तुरंत मेरी ओर मोड़ा..." क्यों ससुराल में कुछ स्वागत वागत हुआ की नहीं ...भाभी ने गाना वाना ...क्यों गुड्डी ..."

गुड्डी कुछ बोलती उससे पहले मैं बोल पड़ा..." अरे नहीं भाभी कुछ नहीं ...बस ऐसे ही...कुछ गाना वाना आता हो तो ना..."

गुड्डी ने आँख नचा कर मेरी ओर देखा ...


बुरा हो मोबाइल के आविष्कार करने वाले का ...

 गुड्डी ने सारी गालियाँ जो मेरे स्वागत में गाई गयी थीं रिकार्ड कर ली थीं और अब वो सस्वर...पहले भाभी के भाभी की आवाज और फिर चंदा भाभी की ठनकदार आवाज ...

अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लौ ...अरे रुपये में ले लौ अठन्नी में ले लौ,
अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लौ अरे अठन्नी में ले लौ चवन्नी में ले लौ
जियरा जर जाय मुफ्त में ले लौ अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लौ…..

बिछी काट गयी सब के तो काटे अरिया अरिया
अरे गुड्डी छिनार के काटे बुरिया में, दौड़ा हो हमारे नंदोई साल्ले
दौड़ा आन्नद साल्ले मरहम लग्गावा भोसडिया में

" चल मेरे घोड़े चने के खेत में ...चने के खेत में...

चने के खेत में बोई थी घूंची ...आनंद की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मोची
दबावे दोनों चूंची चने के खेत में....चने के खेत में ......

चने के खेत में पड़ी थी राई ..चने के खेत में...
आनंद साल्ले की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मेरा भाई
कस के करे चुदाई चने के खेत में ...चने के खेत में.

अरे चने के खेत में चने के खेत में पडा था रोड़ा
गुड्डी रंडी को ले गया घोड़ा ...चने के खेत में..चने के खेत में...
घोंट रहीं लौंडा...चने के खेत में..



" अच्छा तो उसकी तारीफ बनारस तक पहुँच गयी..." भाभी ने चिढाया...
मैं क्या बोलता ..की ये जमालो तो मेरे बगल में ही बैठी हैं....

" अरे तारीफ करने लायक माल होगा तो तारीफ तो होगी ही ना...इसमें शर्माने लजाने की क्या बात है ."

मंजू क्यों पीछे रहती ...

" लेकिन बिन्नो बड़ी ताकत है तेरी इस ननद में..घोडा तक..." शीला भाभी क्यों पीछे रहतीं.

जितने रंग हो सकते थे सब मेरे चेहरे पे आये और गए...

मैंने बात टालने की कोशिश की..भैया कहाँ हैं...मैंने पुछा...लेकिन भाभी तो मेरी भाभी थीं...उन्होंने गुड्डी से अगला सवाल दाग दिया...

"कुछ रंग वंग ...."
गुड्डी बोलती या अपमे मोबाइल से खोजी पत्रकार की तरह कुछ और स्टिंग आपरेशन वाले फोटी निकालती...उसके पहले मैं बोला...

" अरे भाभी कुछ होता तो दिखता न...अच्छा मैं उठता हूँ जरा सामान वामन मैं रख दूँ..."

जूता मैंने निकाल दिया था सिर्फ मोज़े में था...गुड्डी ने एक मोजा निकलाना शुरू कर दिया था और देखा देखी ...इशारा समझ के दूसरा पैर मंजू के हाथ में ...अचानक मुझे याद आया...पैरों के बारे में संध्या भाभी ने जो किया था...लेकिन तब तक दोनों पैरों के मोज़े बाहर थे ...

और गौने की दुल्हन की तरह मेरे दोनों पैरों में लगे चटख महावर सबके सामने...फिर तो क्या खिंचाई नहीं हुयी मेरी...

शीला भाभी बोली...चलो दो ही दिन बाद तो होली है पूरा श्रृंगार करवाउंगी...लेकिन मंजू ने टुकड़ा लगाया...

" अरे दो दिन बाद क्यों...देवर साथ में हो तो पूरे फागुन होली होती है...कल ही...."

और भाभी ने तुरंत हामी भरी...


 मुझे बचने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था...दिन में चंदा भाभी, दूबे भाभी संध्या भाभी और शाम को....ये चारो ...मैंने फिर वही सवाल किया ..
" भैया कहाँ हैं..."

भाभी ने बताया की वो थोडा थके थे और कल उन्हें सुबह ही कहीं बाहर जाना है इसलिए ऊपर कमरे में ही है ...वो खाना भी ऊपर ही खा लेंगे...फिर उन्होंने मुझसे पुछा ..की मैं खाना क्या खाऊंगा...
गुड्डी बिल्ली की तरह बीच में कूदी और बोली...ये सब मेरे ऊपर छोड़ दीजिये ...मैं हूँ ना ....

" तुझे मालूम हैं इसकी पसंद ना पसंद...ये बहुत ये नहीं खायेंगे वो नहीं खायेंगे ...वाले हैं.."

भाभी मुड के गुड्डी की और देखती बोलीं...

" बोला ना ये सब आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिये इन्हें क्या खिलाना है बस वो मैं ....मैं हूँ ना हाँ एक बात और वो सब चीजें जो आपने बतायीं थी चंदा भाभी ने भेजी है दे दूँ ..." गुड्डी बोली.

एकदम भाभी बोली और मेरे साथ में कमरे में आयीं.

वहां मैं उनके लिए जो कपडे लाया था वो दिखाया...साडी ब्लाउज और...

गुड्डी ने भी जो रंगों का ख़ास जखीरा भाभी ने बनारस से मंगवाया था कालिख समेत और जो स्पेशल गुझिया चंदा भाभी ने भेजी थी वो सब भाभी को सौंप दी.

भाभी ने मेरे कमरे के ठीक बगल के कमरे में गुड्डी को रहने के लिए बोला था..दोनों कमरों के बीच में खुलने वाला एक छोटा दरवाजा भी था...

तब तक भैया ने ऊपर से भाभी को आवाज दी...

जाते जाते उन्होंने गुड्डी और शीला भाभी को खाने के लिए बोला और ऊपर चली गयीं.
मैं अकेले क्या करता...मैं भी गुड्डी के पीछे पीछे पतंग के डोर की तरह ...किचेन में..

गुड्डी ने शायद मुझे क्या नहीं पसंद आता उन चीजों की लिस्ट बना रखी थी और वो लिस्ट थी भी लम्बी...और उसने तय किया था की वो सब उसी में से बनाएगी...तो उसने बनाना शुरू किया ...हाँ कमरे में ही उसने मुझसे वादा करा लिया था की अगर मैंने खाने में जरा भी नाक भौं सिकोड़ी बल्कि तारीफ ना की ...तो मुझे फिर अपने हाथों पर भरोसा करना पड़ेगा...बिचारा मैं ....

और किचेन में तो उसके साथ शीला भाभी भी थीं..

.और वो दूबे भाभी का एक दूसरा रूप थीं...फर्क सिर्फ इतना था की ..उनके द्विअर्थी...बल्कि खुले डायलाग का फोकस जितना मैं था उतना ही गुड्डी भी थी...वो ननद भाभी का रिश्ता पूरी तरह निबाह रही थीं.

गुड्डी ने पराठा बेलना शुरू किया तो शील भाभी ने छेड़ा ...बेलन पकड़ना तो बहोत अच्छी तरह आता है...लगता है चकले पे बेलन चला भी है...

क्या बेलन है क्या चकला ये मैं अच्छी तरह समझ रहा था...
लेकिन गुड्डी भी चुप रहने वाली नहीं थी बोली...

अरे भाभी ननद किसकी हूँ...

तब तक मंजू भी आगई और सारा हमला मेरी ओर...गुड्डी भी उनके साथ...और मेरा नाम मेरी कजिन के साथ जोड़ कर ...

और वो खाने के टेबल पे भी जारी था.

लेकिन सबसे पहले शाक लगा भाभी को..मैं टेबल के किनारे पे बैठा था और भाभी, गुड्डी और शील भाभी ...एक साथ ...जब डिशेज खुली तो भाभी ने गुड्डी से बहोत हलके से कहा ये तो आज बिना खाए उठ जाएगा...

गुड्डी ने मुस्करा के तो उठ जाने दीजिये न...

मेरे सामने स्टेक बहोत बड़ा था ...मैंने ना सिर्फ बिना मुंह बनाये खाया...बल्कि तारीफ भी की...

थोड़ी देर में भाभी ने गुड्डी से बोला की वो मेरे कपडे निकाल दे वो ऊपर जा रही हैं...

गुड्डी ने कुरता पाजामा निकाल के रख दिया और मेरे कान में बोली...
" आज कपड़ा पहनने का प्लान है क्या..."

और मुझे खींच के आलमारी के पास ले गयी..." ये देखो तुम्हारी फेवरिट चंदा भाभी ने ये सब सामान दिए हैं और मैंने तुम्हारी आलमारी में ही रख दिए है वरना कल कहो...."

एक डिब्बे में ढेर सारे लड्डू थे ( जिनके बारे में उन्होंने मुझे बताया था की वो वियाग्रा के डबल डोज से भी जयादा असर करता है और हर्बल होने से कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है...). वो तेल जो उनके हसबेंड दुबई से लाये थे ...जो असली सांडे का तेल था जिसमें स्पेनिश फ्लाई भी मिली थीं...और भी बहोत कुछ

गुड्डी ने डब्बा खोल के एक लड्डू निकल के सीधे मेरे मुंह में डाल दिया .....

"हे एक बार में पूरा ...." मैं बोला...

" तो क्या तुम आधा डालोगे..." शरारत से वो आँख नचा के बोली...

तब तक शील भाभी मेरे कमरे में आ गयीं और मुझ से बोलीं ...क्या हो रहा है...

" कुछ नहीं भाभी नींद आ रही है.." मैंने झूठ मूंठ की जुम्हाई लेते हुए बोला...

वो गप मारने के मूड में थी.. उन्होंने गुड्डी का हाथ पकड़ा और बोली ....हे इसे तो नीन्द आ रही है...तो चल मेरे कमरे में जरा सबकी हाल चाल बता..." और गुड्डी को खींच के अपने कमरे में ले गयीं.

मेरी चाल उलटी पड गयी.

कुछ ही देर में गुड्डी का एस एम् एस आया..

." तुम जल्दी से अपने कमरे की लाईट बंद कर लो...३०- ४० मिनट से पहले इनसे निपटाना मुश्किल है...अपने कमरे में पहुँच के मैं जब बत्ती बंद कर लुंगी ..उसके ठीक बीस मिनट बाद ..बीच वाले दरवाजे से तुम ...आ जाना...बत्ती और अपना दरवाजा तुरन्त बंद कर लो..."


मुझे लग रहा था की शील भाभी को शायद कहीं शक न हो ..ऐनी वे सेफ्टी फर्स्ट और मैंने दरवाजा बंद कर नाईट लैम्प जला दिया और लाईट बंद कर दी...


 तभी मेरी नजर मेरे पुराने डेस्क टाप पे पड़ी ...वैसे इतना पुराना भी नहीं था साल भर हुए मैंने अपग्रेड कराया था ...इंटरनेट कनेक्शन भी था...और उसे मैंने बूट किया...लैप टाप से खोल के अपने सारे एन क्रिप्शन प्रोग्राम, सिक्योरिटी के प्रोग्राम, फायर वाल सब लोड किये...और फिर स्टार्ट किया...रीत का मेरे सिक्योर नंबर में एक मेसेज था...


रीत की रिपोर्ट थी चेतसिंह घाट से...



वो और कार्लोस जब घाट पे पहुंचे तो रात हो गयी थी. घाट पे सन्नाटा सा था, बस इक्के दुक्के लोग...एक दो नावें थीं. बिन्दू मलाह को रीत ने ढूंढ लिया...

वो एक अध्दा लगा चुका था...लेकिन फेलु दा का फोन उसके पास आ चुका था और उसने रीत को पहचान भी लिया.

उसने बोला की कोई अकेला आदमी तो नहीं हाँ कभी कभी कुछ जोड़े मजे पानी के लिए यहाँ से नाव लेते हैं और एक दो घंटा चक्कर काट के आते हैं. दो चार नावें हैं जो थोडा डीलक्स क्लास की हैं, उनकी जयादा डिमांड रहती है....

एक मेघराज करके नाव है उसमें एक छोटा सा बे बेडरूम और टायलेट भी है...अभी तो वो नाव निकली है ...कल सुबह उसके मलाह से वो बात करा देगा.

कारलोस ने कहा की यहाँ तक आये हैं तो गंगा जी तक उतर के आते हैं ...वहां एक लडके से उन्होंने मेघराज नाव के बारे में पुछा तो एक लड़के ने बोला की वो बही ५-७ मिनट पहले ही काशी करवट की और गयी है. उसमें एक जोड़ा था, आप लोगों की तरह ...अगर आपौ लोग मजा वजा करना चाहे तो ..उधर एक नाव है ले लीजिये दो घंटा का ४०० लगता है.

रीत बोली.

हाँ एक दम और उन लोगों ने नाव कर ली.

नाव वाले से उन्होंने बोला की कशी करवट की और चलो और थोडा तेजी से ...कुछ हो देर में वो दूसरी नाव दिख रही थी..एक बड़ी सी नाव जिसका २/३ हिस्सा कवर्ड था नाव में सिर्फ मल्लाह ही दिख रहा था.

रीत और कार्लोस भी कवर्ड हिस्से में आ गए थे और खिड़की से बायनाक्युलर से देख रहे थे . सामने के नाव में रूम ऐसे पोर्शन में से लाईट दिख रही थी.

कार्लोस ने एक छोटा सा क्रास बो निकाल के नाव में जहाँ से लाईट आ रही थी, वहां पे मारा.

रीत के बोलने के पहले ही कार्लोस ने बताया की उसने एक छोटा सा ट्रांसमीटर क्रास बो से मारा है जो सामने की नाव में पैबस्त हो गया है. ये ५ मिनट के भीतर नाव की लोकेशन, नाव से अगर कोई क्म्नुनिकेशन किया जा रहा है, किस टाइप का फोन इस्तेमाल हो रहा है और भी बहूत कुछ ट्रांसमिट करता रहेगा...इसकी रेंज करीब १५ किलोमीटर है और ये १२ घंटे तक आपरेट करेगा.

रीत ने कार्लोस के कैमरे से उस नाव की कई फोटुयें भी खिंची. इसमें नार्मल फोटो के साथ थर्मल इमेजिंग की भी फैसिलिटी थी. थोड़ी देर में काशी करवट से वो नाव मुड़ी और बनारस वाले तट से दूर ....रामनगर साइड में हो के चलने लगी.

इमेज देख के ही कार्लोस ने बोला की ये ९० % सस्पेक्टेड आदमी 'जेड' ही है, क्योंकि एक आदमी तो मलाह है जिसकी इमेज एक किनारे पे आ रही है लेकिन ये दोनों थरमल इमेज जो रूम के अन्दर है वो थोड़ी दूर दूर हैं...अगर ये मजे पानी के लिये आते तो ऐसे थोड़े ही बैठते.

थोड़ी देर में उन का शक और गहरा गया जब ट्रांस मीटर से लगातार मोबाइल पे कमुनिकेशन के सिग्नल आने लगे. जब वो नाव दशाश्वमेध घाट के पास से निकली तो वो आदमी बाहर निकला और किसी लांग रेंज कैमरे से घाट की आरती की फोटुयें खींचने लगा.

रीत ने कार्लोस से कहा की हो सकता है ये कोई टूरिस्ट ही हो ...इसलिए आरती की फोटो खींच रहा है.

कार्लोस बिना बोले अपने कैमरे से उस आदमी की फोटो खींचने की कोशिश करता रहा फिर मुस्करा के रीत से बोला...न...दो बातें ध्यान से देखो ..इस आदमी का लोकेशन और कैमरे का एंगल ...ये इस तरह खड़ा है की किसी भी एंगल से इस का फोटो खींचना मुश्किल है...इतनी सावधानी ये क्यों बरत रहा है , दूसरी बात कैमरे का एंगल आरती की और नहीं है नीचे की और है यानि ये घाट पे लोकेशन की रेकी कर रहा है...माई गूड्नेस...इस का मतलब साफ है ...आरती टार्गेट हो सकती है और ये फाइनल रेकी लग रही है इसका मतलब ४८ घंटे के अन्दर ...होली के पहले वाली शाम को ..

घाट से आगे निकलने के बाद रीत ने अचानक नोटिस किया की सामने वाली नाव से एक लम्बा एरियल बाहर निकला है और ट्रांसमीटर मानिटर पे भी सिग्नल चेंज हो गए हैं...उसने कार्लोस को बोला..कार्लोस ने एक पल के लिए बाहर झाँका और फिर अपने फ़ोन पे जल्दी जल्दी उसने कुछ नंबर डायल किये और फ्रेंच में बात करने लगा. और फिर रीत से मुस्करा के बोला...ही इज गान नाऊ...रीत के कुछ भी समझ में नहीं आया.


 रीत बनारस से

कार्लोस ने बोला ये सेटलाईट फोन इस्तेमाल कर रहा है..एंड वी हैड आइडेंटीफाइड...ये थूर्या सेट फोन है सेट फोन कई कंपनी के हैं ..इरिडियम, इमार्सेट ...मैंने ब्रिटिश कंपनी डेलमाँ से जिसके पास बेस्ट थूर्या मानिटरिंग सिस्टम है उसे बोल दिया है ...

रीत पल भर के लिए सोचती रही फिर बोली ..

ये सेट फोन का इस्तेमाल अपने कंट्रोलर से बात करने के लिए कर रहा होगा. आपने बोला था की इसके ऐसे कई स्लीपर और भी और सीटीस में हो सकते हैं ....तो जिसको ये फोन कर रहा है उसका फोन ट्रैक कर के ..उन का भी कुछ अंदाज लगा सकते हैं कम से कम किस शहर से सेट फोन से उस कंट्रोलर से बातें हो रही हैं...


कार्लोस के आँखों में एक चमक आई और फिर उसने अपने फोन पे फ्रेंच में एक दो लोगों से बात की.

अगले घाट पे फिर वो आदमी बाहर निकला , फोटुयें खींची और घाट के बाद सेटलाईट फोन का एंटीना बाहर निकला ...

कार्लोस ये देखते हुए खुश होगया और रीत से झट से हाथ मिलाया ...

" अब ये गया...मैंने जी पी एस को आर्डिनेट दे दिए थे ..ये लग रहा है की ये फोटो भेज रहा है मेसेज के साथ..."
कुछ ही देर में कार्लोस के फोन पे एक मेसेज आया ...जो हमारा सस्पेक्ट था जेड, उस के सेट फोन का आई डी...
रीत ने वो नंबर भी मेसेज में दिया था.

अस्सी घाट पे उस जेड ने काफी देर तक अपनी नाव खड़ी रखी, वहां भी उस समय आरती चल रही थी.

रीत और कार्लोस वहां उतर गए. रीत कार्लोस को लंका ले गयी जहाँ पहलवान की दूकान पे उन्होंने लस्सी पिया, और कार्लोस ने रीत को घर छोड़ दिया.


रस्ते में रीत ने कार्लोस से पुछा की हम ये बात डी बी को बता के इस आदमी को पकड़ा सकते हैं...

कार्लोस ने साफ मना कर दिया..वो बोला की पहली बार तो ये की ९०% इस आदमी को जिन्दा पकड़ना मुश्किल होगा ये सुसाइड कर लेगा और उससे भी ज्यादा जरुरी बात है ...इससे ज्यादा इम्पार्टेंट ये है की एक इसके कमुनिकेशन नेट वर्क से पूरे जाल का पता चल सकता है और दूसरा सबसे जरूरी है बाम्ब्स का पता चलना...वरना इसकी जगह अगर किसी और ने ले ली तो फिर असंभव हो जाएगा...

रीत सवा दस बजे अपने घर पहुँच गयी थी...

मैंने घडी पे नजर डाली...साढ़े दस बज रहे थे..पूरे १२ मिनट हो गए थे...गुड्डी को गए थे शीला भाभी के पास गए ..दोनों की बातों की आवाजें आ रही थीं...कब तक बातें करेंगी दोनों और ये गुड्डी भी ना आ जाती कोई बहाना करके...

रीत ने ये भी लिखा था की साढ़े ११ बजे डी बी उसे लेने आयेंगे ...और सुबह साढ़े ५ बजे उसे कार्लोस के साथ जाना है चेतसिंह घाट पे उस नाव के मल्लाह को ढूँढने ....

मैंने एक बार सोचा की जा के गुड्डी को बुला लूं ..लेकिन फिर लगा की ये शील भाभी भी कहीं उन्हें शक हो गया तो...ये भी पता नहीं कहाँ से आ गयीं ये नहीं होती तो नीचे के फ्लोर पे सिर्फ मैं और गुड्डी रहते ...

फिर तो अब तक...मंजू बाहर आउट हाउस में रहती थी और वैसे भी उसके साथ बहोत कुछ छुपाने वाली बात नहीं थी...

१५ मिनट हो गए थे गुड्डी के गए...मुझे एक बार लगा की बाहर निकल के देखूं लेकिन गुड्डी ने साफ कहा था की ...मैं अपने कमरे की बत्ती बंद रखूं कोई आवाज ना करूँ ...जिससे शीला भाभी को लगे की मैं सो गया हूँ मेरा मन कर रहा था की बीच वाला दरवाजा खोल के अभी चला जाऊं ...लेकिन गुड्डी ने बोला था की उसके कमरे की बत्ती बंद होने के २० मिनट बाद ही उसके कमरे में आउँ ...और उसने बोला था तो कोई मतलब तो होगा ना..


 १५ मिनट हो गए थे गुड्डी के गए...मुझे एक बार लगा की बाहर निकल के देखूं लेकिन गुड्डी ने साफ कहा था की ...मैं अपने कमरे की बत्ती बंद रखूं कोई आवाज ना करूँ ...जिससे शीला भाभी को लगे की मैं सो गया हूँ ...
मैं थोड़ी देर सर्फिंग करता रहा फिर मुझे अचानक कार्लोस की बात याद आई लाजिस्टिक और फाइनेंसियल कनेक्शन की ...एक तो बाम्ब लगाने, की और उसके साथ कहीं बनारस से बाहर भी तो नहीं ट्रांसपोर्ट कुछ किया गया हो...बनारस से क्या ट्रांसपोर्ट हो सकता है काया ट्रेडिंग होती है...अचानक मुझे स्ट्राइक किया बनारसी साडी ...
मैंने ब्राईट प्लेनेट के डीप क्वेरी मैनेजर पे लाग आन किया...इसपर नार्मल सर्च इंजन से कम से कम १००० गुना ज्यादा इन्फो मिलती है...बनारसी साडी..ट्रेडिंग ..ट्रक कंपनी ..ट्रांसपोर्ट ...१० मिनट तक मैं सर्फ करता रहा और जो मुझे काम लायक इन्फो मिली मैंने एक फोल्डर पे सेव कर लिया....

२५ मिनट हो गए थे गुड्डी के गए...अभी तक बात की आवाज आ रही थी पौने गयारह...सारी बातें वो लोग आज ही कर डालेंगी क्या...

मैंने कंप्यूटर बंद किया...
थोड़ी देर लेटा लेकिन मन में तो बस गुड्डी की शकल सामने थी ...आज मिले तो ...

लेकिन कब अब जंगबहादुर भी कुनमुनाने लगे थे...

मैं थोड़ी देर बाद फिर अलमारी के सामने खड़ा था जहाँ चंदा भाभी का दिया सामन गुड्डी ने रखा था मेरे मन में चंदा भाभी की बातें गूँज रही थी...
आज मौका मत छोड़ना..जिस दिन लड़की का उपवास ख़तम होता है न उस दिन तो ऐसा तूफान रहता है चूत में ..ऐसी खुजली मचती है...अलमारी मैंने खोली...उसमे से सांडे का तेल निकाल के दो बूँद अपने हथियार पे ..कल जैसे चंदा भाभी ने मला था...जैसे चंदा भाभी ने सिखाया था मैं सुपाडा खोल के ही रखता था.....एक बूँद तेल मैंने उस पे भी...अचानक मेरा ध्यान बाहर गया बात चीत की आवाजें बंद हो गयी थीं..

.इसका मतलब ...मेरा जवाब तुरंत मिल गया गुड्डी के कमरे के पहले दरवाजा खुलने की आवाज ...फिर बंद होने की और सिटकिनी लगने की आवाज...दो मिनट के बाद गुड्डी ने बत्ती बंद कर दी...घुप्प अँधेरा...

मेरा मन कर रहा था की बीच वाला दरवाजा खोल के अभी चला जाऊं ...लेकिन गुड्डी ने बोला था की उसके कमरे की बत्ती बंद होने के २० मिनट बाद ही उसके कमरे में आउँ ...और उसने बोला था तो कोई मतलब तो होगा ना..

पूरे दो मिनट हो गए थे उसके कमरे की बत्ती बंद हुए मेरी निगाह दीवाल घडी की मिनट वाली सुई पे थी..सरक ही नहीं रही थी...मैंने मोबाइल पे टाइम देखा उसमें भी सिर्फ ढाई मिनट हुए थे...

मेरा हाथ बार बार पजामे के ऊपर जाता था लेकिन गुड्डी ने मना किया था की अब तुम अपना हाथ नहीं ...मैंने बैठ के एक बार पानी पिया घडी देखी ७ मिनट...

कुछ देर बीच वाले दरवाजे के पास खड़ा रहा गुड्डी के कमरे से कान लगा के कोई आवाज नहीं आ रही थी...उसे नींद भी जल्दी आ जाती है...१० मिनट हो गए थे..
.
तब तक मेरा सिक्योर फोन बजा..एक मेसेज था..अर्जेंट...वाई वाई का...मेरे तो पहले दिमाग में नहीं घुसा फिर याद आया ये रीत का कोड है..डी बी का मेसेज उसने फारवर्ड किया था ...मेरे पिचा करने की रिपोर्ट


उन्होंने लिखा था की एक कत्थई सूट वाला बाइक पर मेरे पीछे था और बाद में उसकी जगह एक आजमगढ़ जिले की सीमा में घुसने पे एक जीप ने उसकी जगह ले ली थी...( इतना तो मैंने भी देखा ही था...).

उन्होंने मोबाइल कंपनियों को पहले से बोल के रखा था ...एक किसी ने मेरे घर के पास के मोबाइल टावर की काल्स ट्रेस करने के लिए बोला था...और डी बी ने उसे गो अहेड दे दिया है. जो लोग पीछा कर रहे थे और जिस ने काल ट्रेस करने के लिए बोला था सबकी काल ट्रेस की जा रही है और उन पर टैब रखा जा रहा है..इसका मतलब की उनकी निगाह में मैं अभी भी उनके काम में विघ्न उतपन्न कर सकता हूँ..

लेकिन मेरी निगाह में तो सबसे बड़ा विघ्न घडी थी. लगता है रुक गयी थी...अभी भी अबस १४ मिनट हुए थे गुड्डी के कमरे की की बत्ती बंद हुए और उसने बोला था २० मिनट बाद ...मैंने मोबाइल पे टाइम चेक किया ...६ मिनट बचे थे...

डी बी के मेसेज की मैंने आखिरी लाइन पढ़ी...मेरे घर के बाहर भी एक आदमी कोई १० बजे से खड़ा है ...दूसरा समय होता तो शायद मैं सोचता लेकिन ...अभी भी मेरी आँखे घडी पे टिकी थीं...

४ मिनट २० सेकेण्ड बचे थे. मैंने दोनों मोबाइल साइलेंट मोड़ पे कर दिए ...और फिर आँख बंद कर २० बार गहरी सांसे लीं ...लेकिन ना तो जंगबहादुर कंट्रोल में आ रहे थे और न मन...मैंने एक बार फिर पानी पिया...
२ मिनट बचा था...मैंने जा के बीच वाले दरवाजे के पास खड़ा हो गया ,,उसने २० मिनट कहा था ,,,तो एकाध मिनट तो उसके पास पहुँचाने में लगेगा ही और मैंने बहोत हलके से दरवाजा खोल दिया.

गुड्डी के कमरे में घुप अँधेरा था...बस एक खिड़की थोड़ी सी खुली थी उससे चांदनी चल चल कर पलंग के दूसरी तरफ आ रही थी.

 गुड्डी के कमरे में घुप अँधेरा था...बस एक खिड़की थोड़ी सी खुली थी उससे चांदनी चल चल कर पलंग के दूसरी तरफ आ रही थी.

पहले मैंने सोचा की मोबाइल की लाईट यूज करूँ फिर ...वैसे ही दबे पाँव उसके पलंग के पास पहुंचा.
वो शायद करवट लेटी थी...चद्दर सर तक ओढ़े ..दुपट्टा उसका तकिये के पास था.

मैंने सोचा था एक झटके से उसका चद्दर उठाऊंगा .... और फिर बांहों में उठा के अपने कमरे में...
लेकिन मैंने उसको चद्दर के उअप्र से देखता रहा जैसे वो गहरे ख़्वाबों में डूबी हो...मैंने हलके से चद्दर उठायी ...


मेरी चीख निकलते निकलते रुक गयी ..चद्दर के नीचे गुड्डी नहीं थी.


तकिये इस तरह लगा के रखे गए थे जैसे लग रहा हो की वो सो रही हो...सर से ले के पैर तक...

कहाँ गयी वो...

मैंने सारे दरवाजे देखे ..सब अन्दर से बंद थे ...सिवाय उसके जिधर से मैं आया था उधर घुसते ही मैंने उसे उठंगा दिया था....तो अन्दर के दरवाजे कैसे बंद हुए.

मैंने झुक के पलंग के नीचे चारो और कमरे में यहाँ तक की अलमारी में भी देख लिया...
कहाँ गयी वो...

कोई क्ल्यू नहीं मेरी सारी ट्रेनिंग बेकार ...

अगर ये कोई कहानी होती तो कमेन्ट में कोई जरूर बोलता...फाले और ठरकीपन करो..सीरियसली ट्रेनिंग करते तो ये सब नहीं होता न...और स्माइली वाला स्लैप स्लैप होता ....

मैंने एक बार फिर देखा...कहीं गुड्डी को शील भाभी ने तो नहीं रोक लिया अपने पास...लेकिन फिर दरवाजे अन्दर से कैसे बंद हैं ..और तकिये के शेप में ...

अचानक मुझे याद आया डी बी का मेसेज ...एक आदमी घर के बाहर १० बजे से खड़ा है...


कहीं वो तो छत के रास्ते नहीं और गुड्डी शील भाभी के पास ही सो गयी हो..शील भाभी को हम दोनों पे कुछ शक तो था ही... छत के रास्ते से आके वो यहाँ इंतज़ार कर रहा हो..

.और उसी ने ..चादर के नीचे वो शेप बना के ...जिस से जब मैं दरवाजे से देखूं तो मुझे लगे की गुड्डी सो रही है और अन्दर घुसु तो...मेरा मन नहीं मान रहा था...

मैंने एक बार फिर से तकिये को सूंघा उसमें से गुड्डी के बालों की महक आ रही थी ...तो...



कहीं वो आदमी पलंग के नीचे तो नहीं छुपा था ..और जब गुड्डी आके सो गयी हो तो....बत्ती बंद हुए २० मिनट हो चुके थे ..और २० मिनट काफी होता है...

मैंने एक बार फिर चारो और देखा सारे दरवाजे सिवाय जिधर से मैं आया था अन्दर से बंद ..कमरा खाली तो अगर कोई और भी आया तो गया कहाँ

एक बार फिर मैंने पलंग के नीचे देखा और मेरी रूह काँप गयी ..

.मेरे दिमाग से उतर गया था...इस कमरे के नीचे एक छोटा सा तहखाना था... वो हमेशा बंद रहता था....

वो दरवाजा हल्का सा खुला था....











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