FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--63
गतांक से आगे ...........
तहखाने के दरवाजे के ऊपर मैंने सब साफ किया और मोबाइल की रोशनी में अन्दर देखा..
अन्दर पूरा अँधेरा था,,कुछ नहीं दिख रहा था..दूर दरवाजा खींचने से भी नहीं खुल रहा था...सिर्फ एक हिस्सा लकड़ी के दरवाजे का थोडा सा खुला था. तभी मेरी चमकी ...दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा था.
भाभी ने एक चिट्ठी में लिखा था की उन लोगों ने तहखाना चिनवा दिया है.
लकड़ी थोड़ी टेढ़ी हो गयी थी इस लिए लग रहा था की दरवाजा खुला हुआ है...
मैं वापस अपने कमरे में गया और सीधे बिस्तर में ...
गुड्डी चद्दर के अंदर थी...और सिर्फ गुड्डी ..बिना किसी आवरण के ...और मिनट भर में मैं भी उसी की तरह हो गया.
मैंने कुछ पूछने की कोशिश की तो उसने मेरे होंठों पे ऊँगली रख के मना कर दिया और मुझे बांहों में भींच लिया. और मैंने भी ...हम लोग पता नहीं कितनी देर उसी तरह पड़े रहे,
सिर्फ साँसों की सरगम, दिल की धड़कन और घडी की टिकटिक ...
पहल उसी ने की ...एक हलकी सी किस्सी मेरे होंठो पे...
उसके बाद तो बाँध टूट पड़ा ...
जैसे कोई स्टुडेंट बहोत देर तक एक्जामिनेशन हाल में बैठा रहे परचा लिए हुए...कुछ ना समझ में आये और अचानक सब कुछ याद आये...जो कुछ मैंने सोचा था चंदा भाभी ने जो सिखाया पढ़ाया था ..सब कुछ ..मेरे कितने होंठ कितनी उंगलियाँ उग आयीं पता नहीं...
मेरे होंठों ने पहले तो उन नयनो से हाल चाल पूछी...जिनसे मेरी आँखे चार हुयी थीं , जिनमें मेरे सपने तिरते थे...और वो न शंर्मायें, न लजाएँ इस लिए उन्हें चूम के बंद कर दिया...
फिर तो..गोरे गुलाबी गाल, लजीले मीठे रसीले होंठ...पहले कहाँ.....होंठ भी ठिठक रहे थे..
.आज सब तुम्हारा है पूरी की पूरी गुड्डी और पूरी की पूरी ये फागुन की रात...कपोलो के चुम्बन केबाद मेरे होंठ गुड्डी के रसीले होंठो से चिपक गए...पहले तो एक दो छोटी छोटी किस्सी...फिर मेरे होंठों ने उसके रस से भरे निचले होंठ को पकड़ के कस कस के चूसना शुरू कर दिया
मेरे हाथ भी खाली नहीं बैठ थे. पहले तो कस के मेरी बाहों ने उसे भींचा, मेरे एक हाथ की उंगलियाँ उसके कंधे से लेकर नीचे तक हलके हलके सहला रही थीं, जैसे कोई कब से सोये सितार को उठा के उसके तार छेड़ दे..और फिर कुछ देर में वो सितार के तार भी उसकी उँगलियों के साथ झंकृत होने लगें...
जैसे कोई किशोरी एक अलसाई सुस्ताती झील के किनारे बैठ उस में हलके से पैर डाल के हिला दे और हजार हजार लहरें हिल उठें...
मेरा दूसरा हाथ उस के किशोर नितम्बों को दबा रहा था, मेरे नाखून इस ना भूलने वाली रात के निशान बना रहे थे.
उस के गदराये किशोर गुदाज उभार मेरे सीने के नीचे दबे हुए थे., वो योवन कमल जिनके आस पास हमेशा मेरी आँखों के भौंरे मंडराया करते थे.
मैंने अपनी दोनों पैर उसकी लम्बी टांगों के बीच फैला के पूरी तरह खोल दिया था और मेरा उत्थित चरम दंड अपने लक्ष्य के आस पास था, फुंफकारता हुआ बैचैन, बेताब.
मेरी नदीदी उँगलियों से नहीं रहा गया. जिस हाथ ने गुड्डी के भरे भरे नितम्बों को दबोच रखा था, वो फिसल कर उस की जांघ के उपरी हिस्से पे पहुँच गयी और हलके हलके काम समीर बहाने लगीं, आनंद के कूप के एकदम पास ...और जो उंगलियाँ पीठ पे थी वो सीधे रस कलश पे..पहले तो थोड़ी देर उन पहाड़ियों के नीचे वो रहीं और फिर एक झटके में मुट्टी में ...
मेरे अंगूठे और उंगली के बीच में जब उसके योवन कलश के शिखर, उसके निपल आये और मैंने हलके से मसल दिया तो गुड्डी की मदमाती सिसकी निकल गयी.
और उसे रोकने के लिए मेरे दोनों होंठों ने गुड्डी के होंठों को जकड लिया..भींच लिया जैसे बरसों बाद किसी प्रिय को प्रियतमा मिले..बरस तो हो ही गए थे मुझे इस रात के सपने संजोये...
और फिर मेरी जीभ ने उसके मुंह में सेंध लगा दी. ये. उसका मुंह मेरी जोभ को चूस रहा था. मेरा एक हाथ उसके जोबन को रगड़ मसल रहा था और दूसरा उसकी रस से भरी योनी से इंच भर दूर जांघों को मसलता रगड़ता मदन पवन बहाता.
मेरी नदीदी उँगलियों से नहीं रहा गया. जिस हाथ ने गुड्डी के भरे भरे नितम्बों को दबोच रखा था, वो फिसल कर उस की जांघ के उपरी हिस्से पे पहुँच गयी और हलके हलके काम समीर बहाने लगीं,
आनंद के कूप के एकदम पास ...और जो उंगलियाँ पीठ पे थी वो सीधे रस कलश पे..पहले तो थोड़ी देर उन पहाड़ियों के नीचे वो रहीं और फिर एक झटके में मुट्टी में ...मेरे अंगूठे और उंगली के बीच में जब उसके योवन कलश के शिखर, उसके निपल आये और मैंने हलके से मसल दिया तो गुड्डी की मदमाती सिसकी निकल गयी.
और उसे रोकने के लिए मेरे दोनों होंठों ने गुड्डी के होंठों को जकड लिया..भींच लिया जैसे बरसों बाद किसी प्रिय को प्रियतमा मिले..बरस तो हो ही गए थे मुझे इस रात के सपने संजोये...और फिर मेरी जीभ ने उसके मुंह में सेंध लगा दी. ये पहला मौका नहीं था,गलती गुड्डी की ही थी, आदत उसी ने लगायी थी.
पिछली रात बनारस में जब मैंने मना किया था पान खाने को ..तो उसकी जीभ मेरे मुंह में आई थी, और आज गुड्डी ने वही किया जो मैंने कल किया था.. उसका मुंह मेरी जोभ को चूस रहा था. मेरा एक हाथ उसके जोबन को रगड़ मसल रहा था और दूसरा उसकी रस से भरी योनी से इंच भर दूर जांघों को मसलता रगड़ता मदन पवन बहाता
गुड्डी भी सिसक रही थी, मचल रही थी .
हम दोनों करवट लेते थे, एक दूसरे को पकडे, मैंने उसे अब पीठ के बल कर दिया और मैं अब उसके सीधे ऊपर. मुझसे अब रहा नहीं रहा जा रहा था...
मेरे प्यासे होंठ अब गुड्डी के उभारों पे थे...पहले मैंने उरोजों की चुम्बन परिक्रमा की और उसके बाद छलांग कर सीधे ...गुड्डी के कम से आधे इंच लम्बे उत्तेजित इरेक्ट निपल्स पे , मैंने जीभ से निपल को फ्लिक किया, होंठो से उसे रगडा, फिर जीभ से निपल के बेस से ऊपर तक,ऊपर से नीचे तक बार बार लिक किया और अचानक उसे मुंह में ले के कस कस के चूसने लगा.
गुड्डी का दूसरा जोबन मेरे हाथ से मसला रगडा जा रहा था. इस रगड़ाई मसलाई और चूसने से गुड्डी की दोनों चून्चियां उत्तेजित हो के पत्थर की हो रही थीं.
मेरा दूसरा हाथ जो गुड्डी की जांघ को सहला रहा था अब उसने सीधे उसकी योनी को दबोच लिया और हलके हलके दबाने लगा. वह रस रस से हलकी हलकी गीली हो रही थी.
मेरा मन तो बहोत कर रहा था की बस अब चढ़ाई कर दूँ लेकिन एक तो चंदा भाभी ने समझाया था, मर्द के पास सिर्फ एक अंग नहीं होता, उस की उंगली, उस के होंठ जीभ उसी तरह मजा देते हैं और लेडिज कम फर्स्ट ...पहले उसे मस्ती से इतना पागल कर दो की वो खुद बोले हाँ ...हाँ आओ न...करो डाल दो...तब शुरू करो...दूसरी बात ये भी थी की मुझे गुड्डी की चून्चियों में भी उतना ही रस आ रहा था....
शर्म अभी भी गुड्डी को घेरे हुए थी. वो बार बार अपनी जांघे भींच लेती, अपने हाथ से मेरे हाथ को अपनी योनी से हटाने की कोशिश करती...
मैंने अपने दोनों हाथों से गुड्डी की जांघें कस के फैला दीं और उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया लगा दिया. मेरे दोनों घुटने भी उसके घुटनों के बीच आ गए. उसकी लम्बी लम्बी टाँगे मैंने अपने दोनों कंधे पे रख ली. अब वो लाख कोशिश करती जांघे सिकोड़ नहीं सकती थी.
मेरी तरजनी ने उसके योनी द्वार को खोअलने की कोशिश की लेकिन उसके गुलाबी कसे हुए भगोष्ठ ऐसे सिकुड़े हुए अपने अन्दर मदन कूप का रस अमृत छुपाये, जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन बार बार घूँघट खीच ले बस उसी तरह...लेकिन आज तक कौन घूंघट सुहागरात के दीं किसी दुल्हे का रास्ता रोक पाया है .
कभी मेरा अंगूठा कभी मेरी उंगली की टिप बार बार वहां सहलाती, रगडती, मनाती, रिझाती तरजनी की आधी पोर अन्दर घुसने में कामयाब हो गयी...कभी कभी गोल कभी ऊपर नीचे...
उधर मेरे होंठ दोनों जोबन का रस ले रहे थे कभी बारी बारी कभी साथ ...कभी वो निपल को चूसते, कभी चून्चियों पे हलके से बाईट कर लेते और गुड्डी सिसक उठती..होंठ वहां से सरकते हुए नीचे की और आगये.
एक पल के लिए वो उसकी गहरी नाभि पर ठिठके लेकिन नीचे रसीले योवन कूप का लालच उन्हें सीधे खिंच लाया...
पहला चुम्बन सीधे भगोष्ठ पर ..और गुड्डी कनकना गयी.
और उसके बाद जीभ की टिप भगोष्ठ के बाहरी ओर थोड़ी देर ..मेरे दोनों अंगूठों ने उसके भगोष्ठ पूरी ताकत से फैला दिए और अब जीभ की टिप उनके बीच ..कभी गोल गोल कभी ऊपर नीचे...
मस्ती के मारे गुड्डी की आँखे बंद हो रही थीं ..वो मेरे सर को पकड़ के अपनी ओर खीच रही थी ...
और फिर जीभ की जगह होंठों ने ले ली...
अब तो गुड्डी मारे जोश के पागल हो रही थी उसके नाखून मेरे कंधे में धस रहे थे वो जोर जोर से मेरे बाल पकड़ के अपनी ओर खीच रही थी...ओह ओह करो न प्लीज ओह हाँ बहोत मस्त लग रहा है.
..
अब मैंने गुड्डी की चूत चूसने की रफ्तार और तेज कर दी...मेरे तरकश में एक तीर और था...मैंने जीभ से गुड्डी की क्लिट फ्लिक कर दी...
फिर तो जैसे मस्ती का तूफान आ गया हो ...मैंने इसी का इन्तजार कर रहा था...
जब मैंने तकिया गुड्डी के चूतड के नीचे लगाया था तभी मुझे वहां वैसलीन की शीशी दिख गयी थी.
मैंने अपने मस्ताये फूले पहाड़ी आलू ऐसे मोटे सुपाडे पे अच्छी तरह क्रीम लिथड ली थी...
और अब अपने होंठों को हटा के गुड्डी की चूत के मुहाने पे भी ढेर सारी क्रीम लगा दी.
एक बार फिर से मैंने गुड्डी की लम्बी टाँगे अपने कंधे पे सेट कीं एक हाथ से उसकी पतली कमर को पकड़ा और दूसरे उसके उरोज पे और थोडा सा पुश किया.
कुछ नहीं हुआ...बस हल्का सा...
गुड्डी ने आँखे बंद कर ली थीं, सुपाडा हलके खुले निचले गुलाबी होंठों में फंसा था, जांघे पूरी तरह फैली और उठी हुयीं थीं...
मैंने हचक कर पूरी ताकत से धक्का मारा,
गुड्डी ने दोनों हाथों से चद्दर को कस के दबोच लिया, होंठो को उसने कस के अपने दांत से दबाने की कोशिश की लेकिन तभी भी हलकी सी चीख निकल गयी.
बिना रुके मैंने अपने दोनों होंठों से उसके होंठों को कस के दबा दिया और अपनी जुबान उसके मुंह में घुसेड दी.
बिना रुके मैंने ३-४ धक्के और उसी तरह पूरी तेजी से मारे...
फागुनी मौसम में भी हल्का सा पसीना गुड्डी के चेहरे पे आगया था.
पूरा शरीर दर्द से तर बतर लग रहा था.
मैंने धक्के मारना छोड़ के अब हलके हलके पुश करना सुरु किया. बहोत मुश्किल से सूत सूत कुछ अन्दर घुसा फिर रुक गया.
मैंने हलके से उससे पुछा ..." बहोत दर्द हो रहा है...'
वो कुछ नहीं बोली लेकिन उसके चेहरे से साफ लग रहा था.
" निकाल लूं ..बाद में फिर कभी..." मैंने परेशान हो के पुछा.. और जवाब में उसने अपनी दोनों बाहों से मुझे भींच लिया और अपनी ओर खिंचा.
दर्द से लबरेज उसके होंठो पे एक अजब सी मुस्कान थी.
मुझे मेरा जवाब मिल गया...
दर्द से लबरेज उसके होंठो पे एक अजब सी मुस्कान थी.
मुझे मेरा जवाब मिल गया...मैंने थोडा सा लिंग बाहर वापस सरकाया...दोनों हाथों से कस के उसकी कमर पकड़ी, एक बार फिर से अपने दोनों होंठों के बीच उसके होंठों को भींचा ...और फिर एक पल रुक के...
पहले से भी ज्यादा ताकत से ...पूरी जोर से एक के बाद एक ७-८ धक्के मारे वो दर्द से कसमसा रही थी...लेकिन कस के उसने अपनी बान्हे मेरी देह में भींच रखी थीं उसके लम्बे नाखून मेरे कन्धों में पैबस्त हो रहे थे...
अब जब मैं रुका तो आधे से ज्यादा मेरा लिंग अन्दर घुस चूका था.
थोड़ी देर में गुड्डी ने अपनी आँखे खोली एक अजब सी ख़ुशी एक चमक उनमे थीं.
मैंने उसके होंठों को छोड़ा तो उसने खुद मेरे लिप्स पे एक छोटी सी किस ले ली.
' दर्द बहोत हुआ ना..." मैंने डरते डरते पुछा.
" बुद्धू...वो हलके से मुस्करा के बोली...कभी न कभी तो होता ही...अच्छा हुआ जो तुम्हारे साथ हुआ जो मेरी ...मेरा सपना था..."
और ये कह के उसने फिर से मुझे चूम लिया. बस मेरी तो लाटरी लग गयी. मेरे होंठ कभी उसके गालों पे कभी उसके जोबन पे ..मैंने उसका एक निपल कस कस के चूस रहा था...दूसरे निपल को मेरी एक ऊँगली कभी पुल करती कभी फ्लिक करती...
एक उंगली ने गुड्डी की क्लिट को ढूंढ लिया था कभी वो उसे सहलाती कभी दबाती...थोड़ी ही देर में फिर वो उसी तरह मस्त सिसकियाँ भरती, मुझे बाहों में भींचती, और अब मैंने लिंग को फिर थोडा सा बाहर निकाल के हलके हलके धक्के लगाने शुरू कर दिए...
मैंे तकिये को एक बार फिर सेट किया और अब दोनों हाथ उसके नितम्बो पे रख के एक बार फिर पहले की तरह ७-८ करारे धक्के मारे...अब २/३ से ज्यादा लिंग गुड्डी की योनी में था. जब मैं उसकी क्लिट छेड़ता तो वो खुद अपने चूतड उछलती बोलती..
.करो ना ..रुक क्यों गए...ओह हाँ ..ओह्ह ..मैंने तिहरा हमला शुरू कर रखा था मेरे दोनों हाथ कभी उसकी चून्चियों पे कभी क्लिट और साथ में मेरे होंठ...कसी कुँवारी कच्ची चूत में रगड़ता घिसटता..लंड...तीन बार मैं उसे किनारे तक ले गया और तीन बार मैंने रोक दिया...
मस्ती के मारे गुड्डी पागल हो रही थी. और चौथी बार...जब वो झड़ने के करीब हुयी, उसकी देह कांपने लगी, अपने आप आँखे मुंदने लगी...तो मैंने लंड आलमोस्ट पूरा बाहर निकल लिया...मेरे होंठ कस कस के उसके निपल को चाट रहे थे चूस रहे थे फ्लिक कर रहे थे..एक हाथ से मैंने उसकी पतली कमर को जोर से पकड़ रखा था और एक हाथ से अंगूठे और तरजनी के बीच उसकी क्लिट को दबा के रगड़ रहा था...
ओह ओह ओह आह्ह अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह नहिन्न्न .....
गुड्डी बोलने के साथ चूतड उछाल रही थी और मैंने पूरी ताकत के साथ लंड उसकी कुँवारी चूत में ठेल दिया.....और अबकी लगभग पूरा लंड अन्दर समां गया.
ओह ओह ओह आह्ह अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह हाँ हा हननं ..वो जोर जोर से झड रही थी उसके नाखून मेरी देह में धंसे हुए थे...साँसे लम्बी लम्बी चल रही थी,...
एक दो मिनट रुक कर के मैंने फिर बिना रुके जोर जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए...मुझे लग रहा था की मेरा होने वाले हैं लेकिन बिना रुके १०-२०-३०- और गुड्डी एक बार फिर मेरा साथ दे रही थी...
मैंने गुड्डी को लगभग दुहरा कर दिया था जब मैंने झड़ना शुरू किया.
हम दोनों साथ साथ झड़े ..
गुड्डी की टाँगे मेरे ऊपर लिपटी थीं...
जैसे कब की प्यासी धरती सूखे के बाद बादल की एक हर बूँद रोप ले....
५ मिनट तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में वैसे ही भींचे पड़े रहे...
फिर जब अलग हुए तो एक दूसरे की ओर देख के मुस्करा दिए.
गुड्डी दर्द, थकान और आनंद में डूबी थी.
मैं कुछ देर बाद सायास उठा...और गुड्डी के पैरों के बीच..उसकी थकी खुली जाँघों के बीच ...खून के कुछ धब्बे ..और मेरे वीर्य के एक दो कतरे...
मैंने अपनी रुमाल से उसे पोंछ दिया और एक वहां हलकी सी किस्सी ले ली.
गुड्डी ने खिंच के मुझे फिर से अपनी बांहों में भर लिया...और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए...थोड़ी देर तक हम दोनों वैसे ही पड़े रहे की एक मेसेज की बीप ने हमारा ध्यान खींचा...
पहले गुड्डी के फ़ोन पे फिर मेरे नान सिक्योर फोन पे ...
रीत का मेसेज था... गुड्डी के फोन पे..." हुआ की नहीं या अभी भूमिका ही चल रही है ..."
मेरे नान सिक्योर पर्सनल फोन पे..." चुदी की नहीं..."
मैंने और गुड्डी ने फोन एक दोसरे को दिखाया और बहोत जोर से हँसे...
गुड्डी ने मेरा फोन मुझसे ले लिया और ठसके से मेरी गोद में आके बैठ के मेरे फोन पे मेसेज का जवाब दे दिया...
" हाँ चुद गयी,'
उधर से रीत का मेसेज आया ..सूखे सूखे या क्रीम लगा के...
गुड्डी कुछ उल्टा सीधा जवाब देती उसके पहले मैंने उसे से फोन लेके रीत को मेसेज दिया..." यार मेरे फ़ोन से गुड्डी मेसेज दे रही है..'
" मुझे पता है ...उससे बोलना ये ट्रिक मैं भी पहले कर चुकी हूँ..." रीत का जवाब आया.
फोन अब तक फिर गुड्डी के हाथ में था..." और अब तक कहाँ जग रही है..." गुड्डी ने मेसेज दिया...
" तू क्या समझती है तू ही फागुन के मजे लूट सकती है ...मैं भी गुलछर्रे उड़ा के आ रही हूँ ...थक गयी हूँ सुबह पूरा किस्सा बताउंगी."
इतना इशारा मेरे लिए काफी था. उसकी रिपोर्ट में था की वो लेट नाईट डी बी के साथ जायेगी..
जब गुड्डी गोद में हो तो ..मेरे हाथ दूसरे काम में लग गए थे ...और मेसेज का काम गुड्डी कर रही थी...रीत का एक और मेसेज आ गया..
" हे वो दूबे भाभी वाला काम मत भूलना...अपनी नाम राशि का...उसे ले आने का और उसका..."
गुड्डी ने मुझे दिखाया और मुस्करा के पूछा ..." क्या जवाब दूं बोल न..."
जवाब में मैंने गुड्डी का गाल कस के कचाक से काट लिया और निपल पिंच कर लिया.
" यार हम लोगों के आने से पहले चार बार फोन आ चूका था बिचारी का...इत्ती जोर से खुजली मच रही है उसकी..." गुड्डी ने जवाबी मेसेज भेजा...
" अरे तो चारा खिला देना ..बिचारी को...चारा तो तेरे पास है ही...अकेले अकेले कितना मुंह मारेगी तू ...पेट खराब हो जायगा." रीत तो रीत थी. उससे कौन जीत सकता था पलट कर जवाब आया.
जवाब पढ़ कर हम दोनों हंसने लगे...मैंने गुड्डी से इशारा किया ये अन्ताक्षरी बंद करे...मेरा फिर से तन्ना रहा था..लेकिन गुड्डी भी उसने बात आगे बढाई ...इन लडकियों के हाथ में मोबाइल आ जाए तो न दिन देखे न रात...
" कल जाउंगी उसके यहाँ ...अब तो इतनी उसकी सिफारिश लगा रही है तो चलो उसके लिए भी चारे का इंतजाम कर ही दूंगी...रही पेट की बात तो ...उसकी दवाई मैंने पहले ही खा ली थी..." गुड्डी ने मेसेज दिया.
" ओके सोती हूँ ...बेस्ट आफ फक आई मीन लक ...फार नेक्स्ट राउंड ..." रीत ने मेसेज भेज के फोन काट दिया.
मैंने गुड्डी के हाथ से फोन छीन के अपना और उसका दोनों फोन तकिये के नीचे रख दिए .
तकिये के नीचे तभी मुझे फिर वो वैसलीन की शीशी दिखी ...
" हे यहाँ ये कैसे किसने ..." मेरे समझ में नहीं आ रहा था
गलती की पूछ लिया.
और ऐसा करने पे जो होता है वो हुआ. डांट पड़ी.
" तुमने रखी थी .." घुड़क कर गुड्डी ने पूछा ?
" नहीं , लेकिन..." मैं हलके से बोला...
" तो ...अगर मैं तुम्हारा कुछ प्लान न करूँ न तो तुम ऐसे ही रह जाओ...बुद्धू..." वो बोली.
मेरा एक हाथ उसके उभार पे था और दूसरा नीचे...एक उंगली आधी अन्दर...धीमे धीमे अन्दर बाहर...आग सुलगाती...
" हे बात बहुत हो गयी अब काम ..."
" एकदम ...और मेरे कुछ करने के पहले उसने सर पीछे घुमाया और उसके होंठ मेरे होंठों पे और उसकी जीभ मेरे मुंह के अन्दर..
जैसे थोड़ी देर पहले मैं उसके होंठों को चूस रहा था अब वो मेरे होंठों को सक कर रही थी...लिक कर रही थी ,,,जिस तरह मेरी उंगली उस की बुर के अन्दर चारो ओर घूम रही थी उसी तरह उसकी जुबान मेरे मुंह में....उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को भी कस के पकड़ लिया और अपनी ओर खीच लिया...
कुछ देर बाद उसने मेरे होंठ छोड़े और बोली बस एक मिनट...
अब वो मेरी गोद में मेरी ओर मुंह कर के बैठ गयी थी और अपने दोनों पैर मेरी कमर के चारो ओर लपेट लिए. और एक बार फिर मेरे होंठ उसके होंठों के कब्जे में ..एक हाथ से वो मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींचे हुए थी...
मेरे दोनों हाथ गुड्डी के किशोर उभारों पे थे कभी हलके से प्यार से सहलाते और कभी कस के दबा देते...बहोत तरसाया तड़पाया था इन्होने..
.
और मेरे जंग बहादुर एक बार स्वाद पा चुकने के बाद फिर तडफडा रहे थे...गुड्डी की चुन्मुनिया के ठीक ऊपर...एक हाथ की उंगली से पहले गुड्डी शरारत से उसके बेस पे छेड़ रही थी ..और फिर हलके से उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया और आगे पीछे करने लगी.
किसी भी इज्जतदार शिश्न को एक गोरी किशोरी अपने कोमल कोमल हाथों में ले आगे पीछे करे तो क्या होगा..
.वही हुआ ...वो जोर से तन मना उठे. ऊपर से गुड्डी ने अपनी उंगली के टिप से उसके सुपाडे के पी होल पे सुरसुरी कर दी. अब हालत कंट्रोल से बाहर होती जा रही थी...लेकिन गुड्डी मेरी गोद से उठ गयी.
" हे क्या हुआ इससे डर गयी क्या ..."
मैंने अपने फिर से पूरी तरह खड़े लिंग की ओर इशारा कर के कहा...
वो रुक के लौट आई और झुक के लिंग पकड़ के उसे देख के कहने लगी ..
." इससे क्यों डरूँगी, ये तो मेरे प्यारा सा, सोना सा, मुन्ना सा...और खुले सुपाडे को गुड्डी ने जीभ निकाल के अच्छी तरह चाट लिया और फिर होंठ के बीच पूरा सुपाडा गड़प कर, खूब कस के चूम लिया...और अपने मस्त नितम्ब हिलाती, मटकाती चल दी...उसकी पतली सी कमर पे उसके किशोर नितम्ब भी भारी लगते थे.
मेरा मन किया की अगर एक बार मौका मिले तो इसके पिछवाड़े का भी ...."
गुड्डी ने एक बार मुड के पीछे देखा जैसे उसे मेरे मन की बात का पता चल गया हो और मुस्करा दी. अलमारी से एक कागज का वो पाकेट ले के आगई और फिर से मेरी गोद में बैठ के उसे खोलने लगी.
" मैं भी न तुम्हारी संगत में पड़ के भुलक्कड़ हो रही हूँ , तुमने बोला था ना पान के लिए ..."
मुस्करा के वो बोली.
" हाँ वो...."
कल के पहले मैंने कभी पहले पान खाया भी नहीं था और वो भी बनारस का स्पेशल...कल रात इसी ने सबसे पहले अपने होंठो से ...मैं सोच रहा था की गुडी ने चांदी के बर्क में लिपटे महकते गमकते ..दो जोड़े पान निकाल के साइड टेबल पे रख दिए...
" हे ये तो चार हैं..." मैं चौंक के बोला...मैंने तो दो मेरा मतलब हम दोनों के लिए ...दो..."
" अरे बुद्ध्धू चलो कोई बात नहीं ...ये पान वैसे भी जोड़े में ही आते हैं ..."
गुड्डी बोली और एक जोड़ी पान अपने होंठों में ले के मेरी और बढाया.
कल की तरह बजाय नखड़ा दिकाने के मैंने मुंह खोल दिया...
और गुड्डी ने दोनों हाथों से मेरा सर पकड के आधे से ज्यादा पान मेरे मुंह में डाल दिया और यही नहीं अपनी जुबान मेरे मुंह डाल के ठेल भी दिया. थोड़ी देर में पान ने असर दिखलाना शुरू कर दिया. एक अजब सी मस्ती हम दोनों पे छाने लगी. मैं कस के गुड्डी के जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से लेने लगा और गुड्डी भी कभी मुझे चूम लेती कभी होंठों को चूस लेती कभी चूस लेती.
.फिर अचानक उसने मुझे पलंग पे गिरा दिया और इशारे से बोली की मैंने बस चुपचाप लेता रहूँ.
उसके होंठ मेरे होंठों से सरक के मेरे सीने पे आ गयी और पान चूसते चुभलाते उसने मेरे टिट्स पे अपनी जुबान फ्लिक करनी शुरू कर दी जैसे मैं थोड़ी देर पहले उसके निपल्स पे कर रहा था...एक टिट पे उसकी जीभ थी और दूसरे पे उसके नाखून ...जोश के मारे मेरे नितम्ब अपने आप ऊपर उठ रहे थे...
जंगबहादुर तो बहोत पहले ही ९० डिग्री पे थे..
थोड देर वहां छेड़ने के बाद वो नीचे आ गयी और उसकी जीभ मेरे लिंग के बेस पे कभी लिक करता कभी फ्लिक करता...
मेरा मन कर रहा था की वो मुंह में ले ले लेकिन वो कभी बेस पे तो कभी चर्म दंड के चारो और जीभ निकाल के ..टच कर के कभी हलके से लिक करके छोड़ दे रही थी...और उसकी दुष्ट उंगलियाँ भी, कभी सुपाडे छेद पे छेद देतीं कभी मेरे बाल्स को हाथों में ले के हलके से दबा देतीं, कभी रियर होल और बाल्स वाली जगह पे रगड़ देतीं.
जोश के मारे मैं पागल हो रहा था...
फिर वो लेट गयी. मेरे ऊपर.
मेरा लिंग उसके उभारों के नीचे दबा हुआ था. और उसी तरह दबाते, रगड़ते, सरकते, वो मेरे ऊपर आ गयी उसके होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे, उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी.
उसने एक हाथ से दबा के मेरा मुंह खुलवा दिया, और उसके रसीले होंठ मेरे होंठों पे झुके लगभग सटे, आधे इंच से भी कम दूरी पे,
उसने अपने हाथ से मेरे हाथों को पकड़ लिया और गुड्डी के मुंह से पान का रस उसके मुंह के रस से मिला , मेरे मुंह में....अगले ही पल उसके होंठों ने मेरे होंठो को सील कर दिया था और हम पान के साथ होंठों का, जीभ का ,सब का रस...
अगर कोई वीडियो बनाना चाहता...डीप फ्रेंच किस विद फ्लेवर आफ बनारसी पान ...
तो ये सही मौका था...
मेरी जीभ उसके मुंह में थी और वह कभी अपनी जीभ उससे लड़ाती कभी हलके हलके चूसती, उसका रस लेती...वो जीभ ऐसे चूस रही थी ..जैसे वो जीभ ना हो मेरा लिंग हो... .और जब उसके होंठ हटे तो गुड्डी के रसीले उभार ...
मुझे अभी भी हिलने की हाथ लगाने की इजाजत नहीं थी...कभी वो सिर्फ निपल मेरे होंठो पे छुला देती तो कभी पूरे उभार को मेरे मुंह में और कभी बस गालों से रगड़ देती...
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फागुन के दिन चार--63
गतांक से आगे ...........
तहखाने के दरवाजे के ऊपर मैंने सब साफ किया और मोबाइल की रोशनी में अन्दर देखा..
अन्दर पूरा अँधेरा था,,कुछ नहीं दिख रहा था..दूर दरवाजा खींचने से भी नहीं खुल रहा था...सिर्फ एक हिस्सा लकड़ी के दरवाजे का थोडा सा खुला था. तभी मेरी चमकी ...दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा था.
भाभी ने एक चिट्ठी में लिखा था की उन लोगों ने तहखाना चिनवा दिया है.
लकड़ी थोड़ी टेढ़ी हो गयी थी इस लिए लग रहा था की दरवाजा खुला हुआ है...
मैं वापस अपने कमरे में गया और सीधे बिस्तर में ...
गुड्डी चद्दर के अंदर थी...और सिर्फ गुड्डी ..बिना किसी आवरण के ...और मिनट भर में मैं भी उसी की तरह हो गया.
मैंने कुछ पूछने की कोशिश की तो उसने मेरे होंठों पे ऊँगली रख के मना कर दिया और मुझे बांहों में भींच लिया. और मैंने भी ...हम लोग पता नहीं कितनी देर उसी तरह पड़े रहे,
सिर्फ साँसों की सरगम, दिल की धड़कन और घडी की टिकटिक ...
पहल उसी ने की ...एक हलकी सी किस्सी मेरे होंठो पे...
उसके बाद तो बाँध टूट पड़ा ...
जैसे कोई स्टुडेंट बहोत देर तक एक्जामिनेशन हाल में बैठा रहे परचा लिए हुए...कुछ ना समझ में आये और अचानक सब कुछ याद आये...जो कुछ मैंने सोचा था चंदा भाभी ने जो सिखाया पढ़ाया था ..सब कुछ ..मेरे कितने होंठ कितनी उंगलियाँ उग आयीं पता नहीं...
मेरे होंठों ने पहले तो उन नयनो से हाल चाल पूछी...जिनसे मेरी आँखे चार हुयी थीं , जिनमें मेरे सपने तिरते थे...और वो न शंर्मायें, न लजाएँ इस लिए उन्हें चूम के बंद कर दिया...
फिर तो..गोरे गुलाबी गाल, लजीले मीठे रसीले होंठ...पहले कहाँ.....होंठ भी ठिठक रहे थे..
.आज सब तुम्हारा है पूरी की पूरी गुड्डी और पूरी की पूरी ये फागुन की रात...कपोलो के चुम्बन केबाद मेरे होंठ गुड्डी के रसीले होंठो से चिपक गए...पहले तो एक दो छोटी छोटी किस्सी...फिर मेरे होंठों ने उसके रस से भरे निचले होंठ को पकड़ के कस कस के चूसना शुरू कर दिया
मेरे हाथ भी खाली नहीं बैठ थे. पहले तो कस के मेरी बाहों ने उसे भींचा, मेरे एक हाथ की उंगलियाँ उसके कंधे से लेकर नीचे तक हलके हलके सहला रही थीं, जैसे कोई कब से सोये सितार को उठा के उसके तार छेड़ दे..और फिर कुछ देर में वो सितार के तार भी उसकी उँगलियों के साथ झंकृत होने लगें...
जैसे कोई किशोरी एक अलसाई सुस्ताती झील के किनारे बैठ उस में हलके से पैर डाल के हिला दे और हजार हजार लहरें हिल उठें...
मेरा दूसरा हाथ उस के किशोर नितम्बों को दबा रहा था, मेरे नाखून इस ना भूलने वाली रात के निशान बना रहे थे.
उस के गदराये किशोर गुदाज उभार मेरे सीने के नीचे दबे हुए थे., वो योवन कमल जिनके आस पास हमेशा मेरी आँखों के भौंरे मंडराया करते थे.
मैंने अपनी दोनों पैर उसकी लम्बी टांगों के बीच फैला के पूरी तरह खोल दिया था और मेरा उत्थित चरम दंड अपने लक्ष्य के आस पास था, फुंफकारता हुआ बैचैन, बेताब.
मेरी नदीदी उँगलियों से नहीं रहा गया. जिस हाथ ने गुड्डी के भरे भरे नितम्बों को दबोच रखा था, वो फिसल कर उस की जांघ के उपरी हिस्से पे पहुँच गयी और हलके हलके काम समीर बहाने लगीं, आनंद के कूप के एकदम पास ...और जो उंगलियाँ पीठ पे थी वो सीधे रस कलश पे..पहले तो थोड़ी देर उन पहाड़ियों के नीचे वो रहीं और फिर एक झटके में मुट्टी में ...
मेरे अंगूठे और उंगली के बीच में जब उसके योवन कलश के शिखर, उसके निपल आये और मैंने हलके से मसल दिया तो गुड्डी की मदमाती सिसकी निकल गयी.
और उसे रोकने के लिए मेरे दोनों होंठों ने गुड्डी के होंठों को जकड लिया..भींच लिया जैसे बरसों बाद किसी प्रिय को प्रियतमा मिले..बरस तो हो ही गए थे मुझे इस रात के सपने संजोये...
और फिर मेरी जीभ ने उसके मुंह में सेंध लगा दी. ये. उसका मुंह मेरी जोभ को चूस रहा था. मेरा एक हाथ उसके जोबन को रगड़ मसल रहा था और दूसरा उसकी रस से भरी योनी से इंच भर दूर जांघों को मसलता रगड़ता मदन पवन बहाता.
मेरी नदीदी उँगलियों से नहीं रहा गया. जिस हाथ ने गुड्डी के भरे भरे नितम्बों को दबोच रखा था, वो फिसल कर उस की जांघ के उपरी हिस्से पे पहुँच गयी और हलके हलके काम समीर बहाने लगीं,
आनंद के कूप के एकदम पास ...और जो उंगलियाँ पीठ पे थी वो सीधे रस कलश पे..पहले तो थोड़ी देर उन पहाड़ियों के नीचे वो रहीं और फिर एक झटके में मुट्टी में ...मेरे अंगूठे और उंगली के बीच में जब उसके योवन कलश के शिखर, उसके निपल आये और मैंने हलके से मसल दिया तो गुड्डी की मदमाती सिसकी निकल गयी.
और उसे रोकने के लिए मेरे दोनों होंठों ने गुड्डी के होंठों को जकड लिया..भींच लिया जैसे बरसों बाद किसी प्रिय को प्रियतमा मिले..बरस तो हो ही गए थे मुझे इस रात के सपने संजोये...और फिर मेरी जीभ ने उसके मुंह में सेंध लगा दी. ये पहला मौका नहीं था,गलती गुड्डी की ही थी, आदत उसी ने लगायी थी.
पिछली रात बनारस में जब मैंने मना किया था पान खाने को ..तो उसकी जीभ मेरे मुंह में आई थी, और आज गुड्डी ने वही किया जो मैंने कल किया था.. उसका मुंह मेरी जोभ को चूस रहा था. मेरा एक हाथ उसके जोबन को रगड़ मसल रहा था और दूसरा उसकी रस से भरी योनी से इंच भर दूर जांघों को मसलता रगड़ता मदन पवन बहाता
गुड्डी भी सिसक रही थी, मचल रही थी .
हम दोनों करवट लेते थे, एक दूसरे को पकडे, मैंने उसे अब पीठ के बल कर दिया और मैं अब उसके सीधे ऊपर. मुझसे अब रहा नहीं रहा जा रहा था...
मेरे प्यासे होंठ अब गुड्डी के उभारों पे थे...पहले मैंने उरोजों की चुम्बन परिक्रमा की और उसके बाद छलांग कर सीधे ...गुड्डी के कम से आधे इंच लम्बे उत्तेजित इरेक्ट निपल्स पे , मैंने जीभ से निपल को फ्लिक किया, होंठो से उसे रगडा, फिर जीभ से निपल के बेस से ऊपर तक,ऊपर से नीचे तक बार बार लिक किया और अचानक उसे मुंह में ले के कस कस के चूसने लगा.
गुड्डी का दूसरा जोबन मेरे हाथ से मसला रगडा जा रहा था. इस रगड़ाई मसलाई और चूसने से गुड्डी की दोनों चून्चियां उत्तेजित हो के पत्थर की हो रही थीं.
मेरा दूसरा हाथ जो गुड्डी की जांघ को सहला रहा था अब उसने सीधे उसकी योनी को दबोच लिया और हलके हलके दबाने लगा. वह रस रस से हलकी हलकी गीली हो रही थी.
मेरा मन तो बहोत कर रहा था की बस अब चढ़ाई कर दूँ लेकिन एक तो चंदा भाभी ने समझाया था, मर्द के पास सिर्फ एक अंग नहीं होता, उस की उंगली, उस के होंठ जीभ उसी तरह मजा देते हैं और लेडिज कम फर्स्ट ...पहले उसे मस्ती से इतना पागल कर दो की वो खुद बोले हाँ ...हाँ आओ न...करो डाल दो...तब शुरू करो...दूसरी बात ये भी थी की मुझे गुड्डी की चून्चियों में भी उतना ही रस आ रहा था....
शर्म अभी भी गुड्डी को घेरे हुए थी. वो बार बार अपनी जांघे भींच लेती, अपने हाथ से मेरे हाथ को अपनी योनी से हटाने की कोशिश करती...
मैंने अपने दोनों हाथों से गुड्डी की जांघें कस के फैला दीं और उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया लगा दिया. मेरे दोनों घुटने भी उसके घुटनों के बीच आ गए. उसकी लम्बी लम्बी टाँगे मैंने अपने दोनों कंधे पे रख ली. अब वो लाख कोशिश करती जांघे सिकोड़ नहीं सकती थी.
मेरी तरजनी ने उसके योनी द्वार को खोअलने की कोशिश की लेकिन उसके गुलाबी कसे हुए भगोष्ठ ऐसे सिकुड़े हुए अपने अन्दर मदन कूप का रस अमृत छुपाये, जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन बार बार घूँघट खीच ले बस उसी तरह...लेकिन आज तक कौन घूंघट सुहागरात के दीं किसी दुल्हे का रास्ता रोक पाया है .
कभी मेरा अंगूठा कभी मेरी उंगली की टिप बार बार वहां सहलाती, रगडती, मनाती, रिझाती तरजनी की आधी पोर अन्दर घुसने में कामयाब हो गयी...कभी कभी गोल कभी ऊपर नीचे...
उधर मेरे होंठ दोनों जोबन का रस ले रहे थे कभी बारी बारी कभी साथ ...कभी वो निपल को चूसते, कभी चून्चियों पे हलके से बाईट कर लेते और गुड्डी सिसक उठती..होंठ वहां से सरकते हुए नीचे की और आगये.
एक पल के लिए वो उसकी गहरी नाभि पर ठिठके लेकिन नीचे रसीले योवन कूप का लालच उन्हें सीधे खिंच लाया...
पहला चुम्बन सीधे भगोष्ठ पर ..और गुड्डी कनकना गयी.
और उसके बाद जीभ की टिप भगोष्ठ के बाहरी ओर थोड़ी देर ..मेरे दोनों अंगूठों ने उसके भगोष्ठ पूरी ताकत से फैला दिए और अब जीभ की टिप उनके बीच ..कभी गोल गोल कभी ऊपर नीचे...
मस्ती के मारे गुड्डी की आँखे बंद हो रही थीं ..वो मेरे सर को पकड़ के अपनी ओर खीच रही थी ...
और फिर जीभ की जगह होंठों ने ले ली...
अब तो गुड्डी मारे जोश के पागल हो रही थी उसके नाखून मेरे कंधे में धस रहे थे वो जोर जोर से मेरे बाल पकड़ के अपनी ओर खीच रही थी...ओह ओह करो न प्लीज ओह हाँ बहोत मस्त लग रहा है.
..
अब मैंने गुड्डी की चूत चूसने की रफ्तार और तेज कर दी...मेरे तरकश में एक तीर और था...मैंने जीभ से गुड्डी की क्लिट फ्लिक कर दी...
फिर तो जैसे मस्ती का तूफान आ गया हो ...मैंने इसी का इन्तजार कर रहा था...
जब मैंने तकिया गुड्डी के चूतड के नीचे लगाया था तभी मुझे वहां वैसलीन की शीशी दिख गयी थी.
मैंने अपने मस्ताये फूले पहाड़ी आलू ऐसे मोटे सुपाडे पे अच्छी तरह क्रीम लिथड ली थी...
और अब अपने होंठों को हटा के गुड्डी की चूत के मुहाने पे भी ढेर सारी क्रीम लगा दी.
एक बार फिर से मैंने गुड्डी की लम्बी टाँगे अपने कंधे पे सेट कीं एक हाथ से उसकी पतली कमर को पकड़ा और दूसरे उसके उरोज पे और थोडा सा पुश किया.
कुछ नहीं हुआ...बस हल्का सा...
गुड्डी ने आँखे बंद कर ली थीं, सुपाडा हलके खुले निचले गुलाबी होंठों में फंसा था, जांघे पूरी तरह फैली और उठी हुयीं थीं...
मैंने हचक कर पूरी ताकत से धक्का मारा,
गुड्डी ने दोनों हाथों से चद्दर को कस के दबोच लिया, होंठो को उसने कस के अपने दांत से दबाने की कोशिश की लेकिन तभी भी हलकी सी चीख निकल गयी.
बिना रुके मैंने अपने दोनों होंठों से उसके होंठों को कस के दबा दिया और अपनी जुबान उसके मुंह में घुसेड दी.
बिना रुके मैंने ३-४ धक्के और उसी तरह पूरी तेजी से मारे...
फागुनी मौसम में भी हल्का सा पसीना गुड्डी के चेहरे पे आगया था.
पूरा शरीर दर्द से तर बतर लग रहा था.
मैंने धक्के मारना छोड़ के अब हलके हलके पुश करना सुरु किया. बहोत मुश्किल से सूत सूत कुछ अन्दर घुसा फिर रुक गया.
मैंने हलके से उससे पुछा ..." बहोत दर्द हो रहा है...'
वो कुछ नहीं बोली लेकिन उसके चेहरे से साफ लग रहा था.
" निकाल लूं ..बाद में फिर कभी..." मैंने परेशान हो के पुछा.. और जवाब में उसने अपनी दोनों बाहों से मुझे भींच लिया और अपनी ओर खिंचा.
दर्द से लबरेज उसके होंठो पे एक अजब सी मुस्कान थी.
मुझे मेरा जवाब मिल गया...
दर्द से लबरेज उसके होंठो पे एक अजब सी मुस्कान थी.
मुझे मेरा जवाब मिल गया...मैंने थोडा सा लिंग बाहर वापस सरकाया...दोनों हाथों से कस के उसकी कमर पकड़ी, एक बार फिर से अपने दोनों होंठों के बीच उसके होंठों को भींचा ...और फिर एक पल रुक के...
पहले से भी ज्यादा ताकत से ...पूरी जोर से एक के बाद एक ७-८ धक्के मारे वो दर्द से कसमसा रही थी...लेकिन कस के उसने अपनी बान्हे मेरी देह में भींच रखी थीं उसके लम्बे नाखून मेरे कन्धों में पैबस्त हो रहे थे...
अब जब मैं रुका तो आधे से ज्यादा मेरा लिंग अन्दर घुस चूका था.
थोड़ी देर में गुड्डी ने अपनी आँखे खोली एक अजब सी ख़ुशी एक चमक उनमे थीं.
मैंने उसके होंठों को छोड़ा तो उसने खुद मेरे लिप्स पे एक छोटी सी किस ले ली.
' दर्द बहोत हुआ ना..." मैंने डरते डरते पुछा.
" बुद्धू...वो हलके से मुस्करा के बोली...कभी न कभी तो होता ही...अच्छा हुआ जो तुम्हारे साथ हुआ जो मेरी ...मेरा सपना था..."
और ये कह के उसने फिर से मुझे चूम लिया. बस मेरी तो लाटरी लग गयी. मेरे होंठ कभी उसके गालों पे कभी उसके जोबन पे ..मैंने उसका एक निपल कस कस के चूस रहा था...दूसरे निपल को मेरी एक ऊँगली कभी पुल करती कभी फ्लिक करती...
एक उंगली ने गुड्डी की क्लिट को ढूंढ लिया था कभी वो उसे सहलाती कभी दबाती...थोड़ी ही देर में फिर वो उसी तरह मस्त सिसकियाँ भरती, मुझे बाहों में भींचती, और अब मैंने लिंग को फिर थोडा सा बाहर निकाल के हलके हलके धक्के लगाने शुरू कर दिए...
मैंे तकिये को एक बार फिर सेट किया और अब दोनों हाथ उसके नितम्बो पे रख के एक बार फिर पहले की तरह ७-८ करारे धक्के मारे...अब २/३ से ज्यादा लिंग गुड्डी की योनी में था. जब मैं उसकी क्लिट छेड़ता तो वो खुद अपने चूतड उछलती बोलती..
.करो ना ..रुक क्यों गए...ओह हाँ ..ओह्ह ..मैंने तिहरा हमला शुरू कर रखा था मेरे दोनों हाथ कभी उसकी चून्चियों पे कभी क्लिट और साथ में मेरे होंठ...कसी कुँवारी कच्ची चूत में रगड़ता घिसटता..लंड...तीन बार मैं उसे किनारे तक ले गया और तीन बार मैंने रोक दिया...
मस्ती के मारे गुड्डी पागल हो रही थी. और चौथी बार...जब वो झड़ने के करीब हुयी, उसकी देह कांपने लगी, अपने आप आँखे मुंदने लगी...तो मैंने लंड आलमोस्ट पूरा बाहर निकल लिया...मेरे होंठ कस कस के उसके निपल को चाट रहे थे चूस रहे थे फ्लिक कर रहे थे..एक हाथ से मैंने उसकी पतली कमर को जोर से पकड़ रखा था और एक हाथ से अंगूठे और तरजनी के बीच उसकी क्लिट को दबा के रगड़ रहा था...
ओह ओह ओह आह्ह अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह नहिन्न्न .....
गुड्डी बोलने के साथ चूतड उछाल रही थी और मैंने पूरी ताकत के साथ लंड उसकी कुँवारी चूत में ठेल दिया.....और अबकी लगभग पूरा लंड अन्दर समां गया.
ओह ओह ओह आह्ह अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह हाँ हा हननं ..वो जोर जोर से झड रही थी उसके नाखून मेरी देह में धंसे हुए थे...साँसे लम्बी लम्बी चल रही थी,...
एक दो मिनट रुक कर के मैंने फिर बिना रुके जोर जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए...मुझे लग रहा था की मेरा होने वाले हैं लेकिन बिना रुके १०-२०-३०- और गुड्डी एक बार फिर मेरा साथ दे रही थी...
मैंने गुड्डी को लगभग दुहरा कर दिया था जब मैंने झड़ना शुरू किया.
हम दोनों साथ साथ झड़े ..
गुड्डी की टाँगे मेरे ऊपर लिपटी थीं...
जैसे कब की प्यासी धरती सूखे के बाद बादल की एक हर बूँद रोप ले....
५ मिनट तक हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में वैसे ही भींचे पड़े रहे...
फिर जब अलग हुए तो एक दूसरे की ओर देख के मुस्करा दिए.
गुड्डी दर्द, थकान और आनंद में डूबी थी.
मैं कुछ देर बाद सायास उठा...और गुड्डी के पैरों के बीच..उसकी थकी खुली जाँघों के बीच ...खून के कुछ धब्बे ..और मेरे वीर्य के एक दो कतरे...
मैंने अपनी रुमाल से उसे पोंछ दिया और एक वहां हलकी सी किस्सी ले ली.
गुड्डी ने खिंच के मुझे फिर से अपनी बांहों में भर लिया...और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए...थोड़ी देर तक हम दोनों वैसे ही पड़े रहे की एक मेसेज की बीप ने हमारा ध्यान खींचा...
पहले गुड्डी के फ़ोन पे फिर मेरे नान सिक्योर फोन पे ...
रीत का मेसेज था... गुड्डी के फोन पे..." हुआ की नहीं या अभी भूमिका ही चल रही है ..."
मेरे नान सिक्योर पर्सनल फोन पे..." चुदी की नहीं..."
मैंने और गुड्डी ने फोन एक दोसरे को दिखाया और बहोत जोर से हँसे...
गुड्डी ने मेरा फोन मुझसे ले लिया और ठसके से मेरी गोद में आके बैठ के मेरे फोन पे मेसेज का जवाब दे दिया...
" हाँ चुद गयी,'
उधर से रीत का मेसेज आया ..सूखे सूखे या क्रीम लगा के...
गुड्डी कुछ उल्टा सीधा जवाब देती उसके पहले मैंने उसे से फोन लेके रीत को मेसेज दिया..." यार मेरे फ़ोन से गुड्डी मेसेज दे रही है..'
" मुझे पता है ...उससे बोलना ये ट्रिक मैं भी पहले कर चुकी हूँ..." रीत का जवाब आया.
फोन अब तक फिर गुड्डी के हाथ में था..." और अब तक कहाँ जग रही है..." गुड्डी ने मेसेज दिया...
" तू क्या समझती है तू ही फागुन के मजे लूट सकती है ...मैं भी गुलछर्रे उड़ा के आ रही हूँ ...थक गयी हूँ सुबह पूरा किस्सा बताउंगी."
इतना इशारा मेरे लिए काफी था. उसकी रिपोर्ट में था की वो लेट नाईट डी बी के साथ जायेगी..
जब गुड्डी गोद में हो तो ..मेरे हाथ दूसरे काम में लग गए थे ...और मेसेज का काम गुड्डी कर रही थी...रीत का एक और मेसेज आ गया..
" हे वो दूबे भाभी वाला काम मत भूलना...अपनी नाम राशि का...उसे ले आने का और उसका..."
गुड्डी ने मुझे दिखाया और मुस्करा के पूछा ..." क्या जवाब दूं बोल न..."
जवाब में मैंने गुड्डी का गाल कस के कचाक से काट लिया और निपल पिंच कर लिया.
" यार हम लोगों के आने से पहले चार बार फोन आ चूका था बिचारी का...इत्ती जोर से खुजली मच रही है उसकी..." गुड्डी ने जवाबी मेसेज भेजा...
" अरे तो चारा खिला देना ..बिचारी को...चारा तो तेरे पास है ही...अकेले अकेले कितना मुंह मारेगी तू ...पेट खराब हो जायगा." रीत तो रीत थी. उससे कौन जीत सकता था पलट कर जवाब आया.
जवाब पढ़ कर हम दोनों हंसने लगे...मैंने गुड्डी से इशारा किया ये अन्ताक्षरी बंद करे...मेरा फिर से तन्ना रहा था..लेकिन गुड्डी भी उसने बात आगे बढाई ...इन लडकियों के हाथ में मोबाइल आ जाए तो न दिन देखे न रात...
" कल जाउंगी उसके यहाँ ...अब तो इतनी उसकी सिफारिश लगा रही है तो चलो उसके लिए भी चारे का इंतजाम कर ही दूंगी...रही पेट की बात तो ...उसकी दवाई मैंने पहले ही खा ली थी..." गुड्डी ने मेसेज दिया.
" ओके सोती हूँ ...बेस्ट आफ फक आई मीन लक ...फार नेक्स्ट राउंड ..." रीत ने मेसेज भेज के फोन काट दिया.
मैंने गुड्डी के हाथ से फोन छीन के अपना और उसका दोनों फोन तकिये के नीचे रख दिए .
तकिये के नीचे तभी मुझे फिर वो वैसलीन की शीशी दिखी ...
" हे यहाँ ये कैसे किसने ..." मेरे समझ में नहीं आ रहा था
गलती की पूछ लिया.
और ऐसा करने पे जो होता है वो हुआ. डांट पड़ी.
" तुमने रखी थी .." घुड़क कर गुड्डी ने पूछा ?
" नहीं , लेकिन..." मैं हलके से बोला...
" तो ...अगर मैं तुम्हारा कुछ प्लान न करूँ न तो तुम ऐसे ही रह जाओ...बुद्धू..." वो बोली.
मेरा एक हाथ उसके उभार पे था और दूसरा नीचे...एक उंगली आधी अन्दर...धीमे धीमे अन्दर बाहर...आग सुलगाती...
" हे बात बहुत हो गयी अब काम ..."
" एकदम ...और मेरे कुछ करने के पहले उसने सर पीछे घुमाया और उसके होंठ मेरे होंठों पे और उसकी जीभ मेरे मुंह के अन्दर..
जैसे थोड़ी देर पहले मैं उसके होंठों को चूस रहा था अब वो मेरे होंठों को सक कर रही थी...लिक कर रही थी ,,,जिस तरह मेरी उंगली उस की बुर के अन्दर चारो ओर घूम रही थी उसी तरह उसकी जुबान मेरे मुंह में....उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को भी कस के पकड़ लिया और अपनी ओर खीच लिया...
कुछ देर बाद उसने मेरे होंठ छोड़े और बोली बस एक मिनट...
अब वो मेरी गोद में मेरी ओर मुंह कर के बैठ गयी थी और अपने दोनों पैर मेरी कमर के चारो ओर लपेट लिए. और एक बार फिर मेरे होंठ उसके होंठों के कब्जे में ..एक हाथ से वो मेरा सर पकड़ के अपनी ओर खींचे हुए थी...
मेरे दोनों हाथ गुड्डी के किशोर उभारों पे थे कभी हलके से प्यार से सहलाते और कभी कस के दबा देते...बहोत तरसाया तड़पाया था इन्होने..
.
और मेरे जंग बहादुर एक बार स्वाद पा चुकने के बाद फिर तडफडा रहे थे...गुड्डी की चुन्मुनिया के ठीक ऊपर...एक हाथ की उंगली से पहले गुड्डी शरारत से उसके बेस पे छेड़ रही थी ..और फिर हलके से उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया और आगे पीछे करने लगी.
किसी भी इज्जतदार शिश्न को एक गोरी किशोरी अपने कोमल कोमल हाथों में ले आगे पीछे करे तो क्या होगा..
.वही हुआ ...वो जोर से तन मना उठे. ऊपर से गुड्डी ने अपनी उंगली के टिप से उसके सुपाडे के पी होल पे सुरसुरी कर दी. अब हालत कंट्रोल से बाहर होती जा रही थी...लेकिन गुड्डी मेरी गोद से उठ गयी.
" हे क्या हुआ इससे डर गयी क्या ..."
मैंने अपने फिर से पूरी तरह खड़े लिंग की ओर इशारा कर के कहा...
वो रुक के लौट आई और झुक के लिंग पकड़ के उसे देख के कहने लगी ..
." इससे क्यों डरूँगी, ये तो मेरे प्यारा सा, सोना सा, मुन्ना सा...और खुले सुपाडे को गुड्डी ने जीभ निकाल के अच्छी तरह चाट लिया और फिर होंठ के बीच पूरा सुपाडा गड़प कर, खूब कस के चूम लिया...और अपने मस्त नितम्ब हिलाती, मटकाती चल दी...उसकी पतली सी कमर पे उसके किशोर नितम्ब भी भारी लगते थे.
मेरा मन किया की अगर एक बार मौका मिले तो इसके पिछवाड़े का भी ...."
गुड्डी ने एक बार मुड के पीछे देखा जैसे उसे मेरे मन की बात का पता चल गया हो और मुस्करा दी. अलमारी से एक कागज का वो पाकेट ले के आगई और फिर से मेरी गोद में बैठ के उसे खोलने लगी.
" मैं भी न तुम्हारी संगत में पड़ के भुलक्कड़ हो रही हूँ , तुमने बोला था ना पान के लिए ..."
मुस्करा के वो बोली.
" हाँ वो...."
कल के पहले मैंने कभी पहले पान खाया भी नहीं था और वो भी बनारस का स्पेशल...कल रात इसी ने सबसे पहले अपने होंठो से ...मैं सोच रहा था की गुडी ने चांदी के बर्क में लिपटे महकते गमकते ..दो जोड़े पान निकाल के साइड टेबल पे रख दिए...
" हे ये तो चार हैं..." मैं चौंक के बोला...मैंने तो दो मेरा मतलब हम दोनों के लिए ...दो..."
" अरे बुद्ध्धू चलो कोई बात नहीं ...ये पान वैसे भी जोड़े में ही आते हैं ..."
गुड्डी बोली और एक जोड़ी पान अपने होंठों में ले के मेरी और बढाया.
कल की तरह बजाय नखड़ा दिकाने के मैंने मुंह खोल दिया...
और गुड्डी ने दोनों हाथों से मेरा सर पकड के आधे से ज्यादा पान मेरे मुंह में डाल दिया और यही नहीं अपनी जुबान मेरे मुंह डाल के ठेल भी दिया. थोड़ी देर में पान ने असर दिखलाना शुरू कर दिया. एक अजब सी मस्ती हम दोनों पे छाने लगी. मैं कस के गुड्डी के जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से लेने लगा और गुड्डी भी कभी मुझे चूम लेती कभी होंठों को चूस लेती कभी चूस लेती.
.फिर अचानक उसने मुझे पलंग पे गिरा दिया और इशारे से बोली की मैंने बस चुपचाप लेता रहूँ.
उसके होंठ मेरे होंठों से सरक के मेरे सीने पे आ गयी और पान चूसते चुभलाते उसने मेरे टिट्स पे अपनी जुबान फ्लिक करनी शुरू कर दी जैसे मैं थोड़ी देर पहले उसके निपल्स पे कर रहा था...एक टिट पे उसकी जीभ थी और दूसरे पे उसके नाखून ...जोश के मारे मेरे नितम्ब अपने आप ऊपर उठ रहे थे...
जंगबहादुर तो बहोत पहले ही ९० डिग्री पे थे..
थोड देर वहां छेड़ने के बाद वो नीचे आ गयी और उसकी जीभ मेरे लिंग के बेस पे कभी लिक करता कभी फ्लिक करता...
मेरा मन कर रहा था की वो मुंह में ले ले लेकिन वो कभी बेस पे तो कभी चर्म दंड के चारो और जीभ निकाल के ..टच कर के कभी हलके से लिक करके छोड़ दे रही थी...और उसकी दुष्ट उंगलियाँ भी, कभी सुपाडे छेद पे छेद देतीं कभी मेरे बाल्स को हाथों में ले के हलके से दबा देतीं, कभी रियर होल और बाल्स वाली जगह पे रगड़ देतीं.
जोश के मारे मैं पागल हो रहा था...
फिर वो लेट गयी. मेरे ऊपर.
मेरा लिंग उसके उभारों के नीचे दबा हुआ था. और उसी तरह दबाते, रगड़ते, सरकते, वो मेरे ऊपर आ गयी उसके होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे, उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी.
उसने एक हाथ से दबा के मेरा मुंह खुलवा दिया, और उसके रसीले होंठ मेरे होंठों पे झुके लगभग सटे, आधे इंच से भी कम दूरी पे,
उसने अपने हाथ से मेरे हाथों को पकड़ लिया और गुड्डी के मुंह से पान का रस उसके मुंह के रस से मिला , मेरे मुंह में....अगले ही पल उसके होंठों ने मेरे होंठो को सील कर दिया था और हम पान के साथ होंठों का, जीभ का ,सब का रस...
अगर कोई वीडियो बनाना चाहता...डीप फ्रेंच किस विद फ्लेवर आफ बनारसी पान ...
तो ये सही मौका था...
मेरी जीभ उसके मुंह में थी और वह कभी अपनी जीभ उससे लड़ाती कभी हलके हलके चूसती, उसका रस लेती...वो जीभ ऐसे चूस रही थी ..जैसे वो जीभ ना हो मेरा लिंग हो... .और जब उसके होंठ हटे तो गुड्डी के रसीले उभार ...
मुझे अभी भी हिलने की हाथ लगाने की इजाजत नहीं थी...कभी वो सिर्फ निपल मेरे होंठो पे छुला देती तो कभी पूरे उभार को मेरे मुंह में और कभी बस गालों से रगड़ देती...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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