Sunday, March 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--64

FUN-MAZA-MASTI
    फागुन के दिन चार--64
गतांक से आगे ...........


 साथ साथ उसकी उंगलियाँ लिंग को सहला रही थीं मसल रही थीं...फिर उसने अपने बित्ते से उसे नाप लिया और चौंक के बोली..

." हाय राम इत्ता लम्बा...तभी तो इत्ता दर्द हुआ..."

" ये भला मानो की मैंने पूरा नहीं डाला..." मेरे मुंह से निकल गया...

अब तो उसने वो बुरा माना...मुंह फुला के बैठ गयी ...फिर बड़ी मुश्किल से बोली ...कित्ता नहीं डाला...
मेरा लिंग अभी भी गुड्डी के ही हाथ में था...

मैंने इशारे से बताया की करीब २/३ डाला था १/३ नहीं डाला था...मुझे लगा उसे बहोत दर्द हो रहा है इस लिए ...

" ये बाकी किस के लिए बचा के रखा था...अपनी उस माल कम बहना के लिए क्या ...तो इस बचे हुए ढाई तीन इंच से उस का क्या भला होगा..." घुड़क कर वो बोली फिर उस ने लिंग की ओर इशारा करके पुछा...

" ये है किसका..."

मैं क्या बोलता...

" तुम्हारा..." हिम्मत कर के मैं .बोला..

" तो ...समझ गए ना तुम कौन होते हो तय करने वाले ...कहाँ जायेगा...कितना जाएगा "
उसने फिर हडकाया....
गुड्डी पल में रत्ती पल में माशा थी.

उस का मूड अगले पल बदल गया मेरे कंधे पे अपना सर रख के बोली..

." तुम न बुद्धू हो एक दम निरे बुद्धू और सीधे...समझ लो चाहे मुझे जितना भी दर्द हो, मैं चीखूँ, चिल्लाऊं , दर्द से बेहोश जाऊं...चाहे खून निकले या कुछ ....ये पूरा है अन्दर जायेगा..समझे ...मुझे मालून है मेरे बुद्धू को क्या अच्छा लगता है समझे.."

मैंने इस मौके को खोना ठीक नहीं समझा.

" एक दम जैसा तुम बोलो...अभी लो...एव मस्तु.."

और उसको धकेल के मैंने नीचे कर दिया और मैं ऊपर..अब की मेरे होंठ सीधे गुड्डी के नीचे वाले होंठों से चिपक गए...

मेरे होंठ गुड्डी की गुलाबी नशीली चूत की फांकों से चिपके थे. पहले मैंने एक दो छोटी छोटी किस्सी लीं फिर पूरे जोर से चूसना शुरू कर दिया. दोनों हाथों से मै उसकी जांघें फैलाए हुए था.थोड़ी देर में मेरी जुबान भी मैदान में आ गयी. वो चूत की दोनों फांकों के बीच ऊपर नीचे होती, रगड़ती सहलाती और होंठ कस कस के चूसते..

.गुड्डी की साँसे लम्बी लम्बी चलने लगीं. थोड़ी देर में ही वो चूतड पटकने लगी. लेकिन अब में उसको इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाला था.

मेरा अंगूठा उसके क्लिट पे था. में कभी दबाता, कभी हलके से सहलाता और कभी फ्लिक कर देता...

गुड्डी की तो जैसे जान निकल जाती...ओह्ह हह हाँ नहीई ईई क्याआआअ ....वो झड़ने के कगार पे पहुँच गयी थी...और में रुक गया.

मैंने उसे दुहरा कर दिया आर उसके नितम्बो की उठा कमर के नीचे एक खूब मोटी सी तकिया लगा दी. और दोनों हाथों से मस्त गोल गोल भरे कसावदार नितम्बों को मसलने सहलाने लगा. क्या मस्त चूतड ...मैंने दोनों हाथों से उन दोनों गोलार्धों को फैला दिया ..एक बहूत छोटा सा सुराख..बल्कि दरार ..ब्राउन रिन्कल्ड ..मैंने एक उंगली से मुंह में थूक लगा के वहां छूया ...वो गिनगिना गयी.

बिचारी ...ये तो अभी शुरुआत थी...

मेरी जीभ अब चूत से नीचे सरक कर दोनों छेदों के बीच ...की जगह पे सिर्फ टिप से लिक कर रही थी. ये जगह भी बहोत सेंसिटिव होती है.

थूक लगी उंगली उसके पिछवाड़े के छेद के चारो और हलके हलके सहला रही थी, मसल रही थी. और फिर वो पहले हलके से फिर जोर से सीधे छेद के ऊपर प्रेस करने लगी.

टिप भी नहीं घुसी.

उंगली की जगह फिर अंगूठे ने ले ली. और मैंने जोर बढ़ा दिया...

गुड्डी ने सर उठा के हलके से बोला..." हे वहां नहीं ..प्लीज ...यहाँ करो ना...."
" क्यों ये वाला किसका है..." मैंने बिना रुके पुछा.
वो समझ गयी उसकी बात उसी के सर पे...

मुस्करा के वो बोली..." और किसका सब तुम्हारा...."
"तो फिर ..में चाहे जहाँ ..जैसे करूँ ...तुमसे मतलब..." मैंने जवाब दिया. और अंगूठे का दबाव गांड पे बढ़ा दिया.

वो भी नहीं घुसा..लेकिन थोडा सा खुला.
अंगूठे की जगह अब जीभ ने ली ...उसकी टिप उस उस अनखुले छिद्र के चारो और परिक्रमा करने कगी मानों मान मनुहार कर रही हो...

गुड्डी फिर बोली..." छि: वहां नहीं...गंदे ...तुम्हे..."

जवाब मेरे होंठों ने दिया..बिना बोले...मैंने अब दोनों अंगूठो से उस को पूरी ताकत से फैलाया, हल्का सा वो खुला. और मेरी जीभ की टिप अन्दर...और होंठों ने चारो और से सील कर लिया कभी वो लिक करते कभी जोर से सक करते...

बिन कहे मैंने उसे समझा दिया ..देह के मंदिर में कुछ भी गन्दा अपवित्र नहीं ..

.प्रिय प्रियतमा के बीच कुछ भी अकरणीय नहीं है...काम का पवन जब तक कोमल मन को पागल न कर दे तक मजा क्या..यही प्रीत की रीत है...

और एक कारन और भी था...उसकी योनी मंदिर जो अत्यंत उत्तेजित होकर रस बहा रही थी इसे पल भर के लिए शांत करने का...

और एक कारन और भी था...उसकी योनी मंदिर जो अत्यंत उत्तेजित होकर रस बहा रही थी इसे पल भर के लिए शांत करने का...

उधर मेरे होंठ पीछे लगे थे , हाथों ने आगे का रास्ता पकड़ा...मेरी हथेली सीधे गुड्डी की जाँघों के बीच..कभी हलके से दबा देती कभी मसल देती..

इस डबल एसाल्ट से गुड्डी की साँसे एक बार फिर लम्बी लाबी..जोर जोर से सिसकियाँ...लेकिन अभी असली खेल तो बाकी था...

मेरी बीच की उंगली ने अन्दर का रुख किया और अगल बगल की दोनों उसके चूत के पपोटों को कभी सहलातीं कभी रगड़तीं..नादर घुसी उंगली मैंने थोड़ी सी मोड़ दी थी और उसकी टिप अन्दर से चूत की दीवालों को सहला रही थी. कुछ ढूंढ रही. थी.और वो जल्द ही मिल गया.

एक छोटी सी जगह जहां पे मसल्स का टेक्सचर बहूत हल्का सा अलग था.....गुड्डी का जी प्वाइंट ...

उसके चरम आनद का बिंदु...मैंने हलके से दबाया ...वो गनगना गयी...जल से बाहर निकली मछली की तरह तडफडाने लगी ...बस फिर क्या था...बिना पीछे से होंठ हटाये में उसके चरम बिंदु को रुक रुक के हलके से छूता सहलाता ....और वो फिर चरम आनंद के किनारे पहुँच गयी और मैंने रुक गया...

बहुत हुयी अब आँख मिचौली खेलंगे हम रस की होली...रस की होली...

एक बार फिर गुड्डी की लम्बी लम्बी टाँगे मेरे कंधे पे थीं. और मेरा लिंग उसके चूत के मुहाने पे ( वैसलीन गुड्डी ने ही अपने हाथ से पूरी लगा दी थी...)

लेकिन मैंने अबकी घुसेड़ने की जल्दी नहीं की..मैंने लाल पहाड़ी आलू ऐसे मोटे सुपाडे को पहले तो उसकी चूत के पपोटों पे बहूत देर तक रगडा और जब मारे जोश के वो खुद चूतड उठाने लगी तो उसे वहां से हटा के सीधे उसके जोश से फूले क्लिट पे..

.और साथ ही तिहरा हमला मेरे होंठों और उँगलियों का...बहोत देर से इंतज़ार कर रहे उसके उरोज मेरे हाथ में थे.
कभी दबाता कभी निपल को जोर से पुल कर देता...दोसरा कड़ा खड़ा निपल मेरे होंठों के बीच में था...में चूस रहा था चुभला रहा था और हलके से बाईट भी कर ली...सुपाडा क्लिट पे और दूसरे हाथ की मंझली उंगली चूत में उसके जी प्वाइंट पे..अबकी मैंने जरा जोर से सहला दिया..

.गुड्डी की आँखे बंद हो गयीं..जोर से उसने मुझे अपनी ओर भींचना शुरू कर दिया...उसके चूत के पपोटे ...तूफान में पत्तों की तरह काँप रहे थे...अबकी मैंने रोकने की कोई कोशिश नहीं की ..

उसके योनी के मुहाने को फैला के मैंने लंड को लगाया और दोनों चूतडों को, दोनों हाथों से कस के पकड़ के पूरी ताकत से एक धक्का मारा ...पहले धक्के में ही पूरा सुपाडा अन्दर था.



 गुड्डी जोर जोर से झड रही थी...लेकिन में रुका नहीं...२-३-४-५-६ ....एक के बाद एक...मेरा पूरा ध्यान धक्को पे था, उसके उरोज, नितंब, क्लिट सब कुछ भूल कर...उसकी कसी कच्ची किशोर चूत में मेरा मोटा लंड रगड़ता, घिसटता अन्दर घुस रहा था...

गुड्डी का झड़ना रुक गया था लेकिन मेरे धक्के नहीं रुके..१०-१२ धक्कों के बाद ही मैंने सांस ली...आधे से ज्यादा लंड उसकी बुर में पैबस्त हो चूका था...
तूफान थोडा धीमा हुआ..

हम दोनों ने एक दूसरे को बांहों में भींच लिया...वो मुझे जोर जोर से चूम रही थी, मेरे होंठों को चूस रही थी मेरे होंठ भी कभी उसके गालों पे कभी होंठों पे कभी नए आये जोबन पे अपना प्यार छलका रहे थे उड़ेल रहे थे...
हमारे हाथ होंठ पूरी देह रसमय हो रही थी. सिर्फ मेरे लिंग ने अपनी लगाम रोक राखी थी और थोड़ी देर में उसने भी हौले हौले आगे बढ़ना शुरू किया..सूत सूत...गुड्डी भी धीरे धरे अपने मस्त नितम्ब उठा के साथ साथ

ताल दे रही थी. उसके पैर अब मेरी कमर पे , एक लता की तरह लिपटे हुए थे.हम दोनों की देह एक दूसे में गुथी हुयी थी. धीमे धीमे मैंने रफतार फिर बढाई और साथ में नीचे से गुड्डी ने भी...


वो काम के पवन के झोंके में ..अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी, मसल रही थी...और एक बार उसने खुद ऊपर आने की कोशिश की..लेकिन हो नहीं पाया...

मैंने सरका के उसे बिस्तर की एज के पास ले गया और खुद उतर के नीचे खड़ा हो गया. उसके कुल्हे थोड़े से बिस्तर के बाहर थे और मेरा लिंग उसकी बुर में पैबस्त..
मैंने गुड्डी के चेहरे को घुमा के दूसरी ओर किया और वो शरमा गयी...

हे देखो ना...मैंने हलके से बोला...

बगल में आदम कद शीसा था जिसमें उसकी बुर में धंसा मेरा लंड साफ साफ दिख रहा था.

पहले तो वो थोडा झिझकी ...फिर हलके से देखा और फिर ध्यान से देखा...मेरा ३/४ से भी अन्दर घुसा हुआ था...लेकिन करीब २ इंच अभी भी बाहर रहा होगा...लेकिन अब अन्दर ठेलना बहोत मुश्किल लग रहा था जैसे किसी बोतल में कोई डाट फँस जाय...

गुड्डी ने जिस तरह मुझे घूर के देखा ...मैं उसका मतलब समझ गया...लेकिन मैं उसके मुंह से सुनना चाहता था...
" बाकी भी डालो न..." वो हलके से बोली...

" क्या ..." मैंने छेड़ा..
" वही..." वो हंस के बोली.

" वही क्या...खुल के बोलो तो..." मैंने उकसाया..
" लंड ..अब तो डालो ना..." बोल के उसने आँखे बंद कर ली जैसे होने वाले दर्द का उसे अंदाज हो..

मैंने उसे मोड़ कर लगभग दुहरा कर दिया...अपना लिंग आलमोस्ट सुपाडे तक बाहर निकाला और फिर एक हाथ से पलंग की पाटी और दूसरे से गुड्डी की कमर पकड़ जबर्दस्त धक्का मारा...

अबकी उसकी कराह निकल गयी ...जोर से...उसने झट से अपने होंठ भींच लिए...

लेकिन मैं रुका नहीं एक के बाद ..एक से तेज एक...



उसने खुद जांघे पूरी फैला रखी थीं...और
पूरा का पूरा लिंग उसके चूत में समां गया.

थोड़ी देर वो इसी तरह देखती रही, दर्द पीती रही, नाचती आँखों में मुस्कराती रही...
फिर मैंने हलके हलके थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर अन्दर ...
गुड्डी ने आँखे बंद कर ली थीं...

मैंने वापस पलंग पर था..उसकी दोनी फैली टांगो के बीच,

कभी मेरे हाथ उसके गदराये जोबन पर होते, तो कभी पतली कमर पे,,,जैसे कोई धुनिया रूई धुनें उस तरह

..पूरी तेजी के साथ ...मैं उसे चोद रहा और गुड्डी भी उसी तरह साथ दे रही थी.

और कुछ ही देर में गुड्डी फिर कगार पे थी..लेकिन अब की बजाय धीमे होने के क्लिट पे मेरे अंगूठे ने उसे पार कर दिया...बस जब वो चरम आनद के झरने में गोता लगा रही थी तो मेरी गति थोड़ी मंथर हो गयी और उसके बाद फिर...बिना रुके,..

फिर तो कुछ देर में बस बाँध टूट पड़ा , बादल उमड़ घुमड़ कर बरसने लगा, नदी तालाब मैदान सब एक हो गए...

हम दोनों साथ साथ झडे...

गुड्डी ने टाँगे इस तरह उठा रखी थीं जैसे वो अंजलि में एकेक बूँद रोप रही हो...

देर तक बूँद बूँद मैं रीतता रहा...

वो सोखती रही...

कब हमारी आँखे लग गयी पता नहीं.

बस मुझे इतना याद है हम दोनों एक दूसरे में गूथे बिधे उसी तरह सोये हुए थे और फिर मेरी नीन्द हलकी सी खुली .

.गुड्डी की टाँगे मेरे ऊपर थीं...'वो' आधा सोया आधा जागा था...मैंने उसे गुड्डी के सेंटर पे लगाया गुड्डी ने मुझे पकड़ के अपनी और खींचा ...फिर तो जैसे सावन का झूला पवन के झोंके से अपने आप...बस उसी तरह मंथर गति से...कुछ देर बाद मैं फिर बरस गया और उसी तरह सो गया...

और जब नींद खुली तो धुप ऊपर तक चढ़ आई ...

और गुड्डी मेरे पास खड़ी बेड टी का कप लिए मुझे जगा रही थी...
" गुड मार्निंग,,,उठो न कब तक सोओगे,...”

"उनहूँ ऊ उं...सोने दो ना तुम भी आके सो जाओ..."

बिना आंखे खोले उसे मैंने अपनी ओर खींचा...

" पागल हुए क्या ...इत्ती देर हो गयी है...चलो उठो.."

डांट तो पड़ी लेकिन मेरे खींचने से वो मेरे बगल में बैठ गयी.

बहोत प्यारी लग रही थी, बस बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में रात की थोड़ी सी थकन और यादें तैर रही थीं.

" हे चाय में चीनी कम है..."

मैं उसकी आँखों में आँखे डाल के इतराया...

" चीनी का डब्बा है तो तुम्हारे सामने ...और झुक के उसने मेरे होंठो पे एक छोटी सी किस्सी ले ली.

उसने तो छोटी सी ली लेकिन मैंने बड़ी...मेरे एक हाथ ने गुड्डी के सर को पकड़ के मेरी ओर खिंच लिया और`दूसरा हाथ ...और कहाँ....मिशन ३२ सी ...सीधे उसके फ्राक में छुपे किशोर उभार पे..

" तुम भी ना ...अभी कोई आ जाएगा...छोड़ी न लालची सुबह सुबह ...रात भर तो ..."

बिना अपने को छुड़ाने की कोशिश करती वो हलके से बोली.

मैं अब अधलेटा बेड के सहारे बैठा थाऔर मेरे दोनों हाथ में उसने चाय का कप पकड़ा दिया था...लेकिन निगाह मेरी उस सुनयना के चेहरे पे टिकी थी..एक लट उड़ कर उसके सुर्खरू गालों पे भटक के आ गयी थी.

मैंने एक उंगली से उसे हटा दिया और उसके गेसुओं को डांटता हुआ बोला...

" हे इस जगह पे मैंने पहले ही अपने नाम का बोर्ड लगा लिया है..."

" तुमभी न..." कुछ शर्माती, कुछ लजाती कुछ अदा से वो बोली ...

मैंने चाय की एक चुस्की ली ...और उसे चिढाता बोला..

" हे चाय बहोत अच्छी है ...भाभी ने बनायी है क्या..."

" तुम भी न लाओ...वापस कर दो मुझे..सुबह सुबह किसी के लिए चाय बाना के लाओ और बजाय तारीफ करने के..." उसने मुंह बनाया...

" ठीक है चलो तुम भी ट्राई करो..." मैंने प्याला उसकी ओर बढाया.
उसने वहीँ से कप होंठों से लगाया जहाँ से मैंने लगाया था.

.गुनगुनाती धुप का एक शरारती टुकड़ा उसके गुलाबी गालों पे आके बैठ गया था....

तुम सामने भी हो.... करीब हो
तुम्हे देखूं की तुमसे बात करूँ...


मेरे मुंह से निकल गया...


 " बड़े रूमानी हो रहे हो ..." अदा से वो शोख बोली और चाय का प्याला मेरे हाथ में पकडाते हुए मेरी नाक पकड़ के मुस्करा दी.
............
तभी मुझे कुछ याद आया...और मैं पुछा बैठा..." हे रात में तुम वो... मेरे समझ में नहीं आया..."
" मेरी भी समझ में नहीं आया ...तुम क्या कह रहे हो ..." मुस्करा के आँखे नचा के वो सारंग नयनी बोली.

समझ वो सब रही थी...खुद ही बोली ...मेरे कमरे के बारे में पूछ रहे हो ना मैंने कैसे गायब हो गयी थी...

चाय ख़तम कर के प्याला उसे देते मैं बोला हाँ.

वो पहले खिलखिलाई फिर बोली ..

." बुद्धू ..तेरे भले के लिए...मुझे मालूम था की जब तुम घुसोगे तो कोशिश करोगे की मुझे उठा के ले आओ, फिर कुछ ना कुछ आवाजें होतीं..

उधर वो शीला भाभी उन्हें पूरा शक था हम दोनों पे...पहले तो मुझे पकड़ के उन्होंने आधे घंटे बोर किया ...उनके कमरे से तुम्हारे कमरे की लाईट दिखती है...इसलिए मैं तुमसे बोली थी की लाईट तुरंत बंद कर देना... ..बात वो मुझसे कर रही थीं ..लेकिन निगाहें तुम्हारे कमरे पे चिपकी थीं..जब आधे घंटे तक उन्होंने देख लिया

की बत्ती बंद है कोई हलचल नहीं हो रही है तो उन्होंने मुझे बख्शा ...और चलते चलते मुझे ये भी बोल दिया की ...उन्हें रात में देर में नींद आती है...मुझे लग रहा था वो आके खिडकी से जरूर चेक करेंगी इसलिए वो तकिये वाला इंतजाम किया."

और वो तुम मेरे कमरे में कैसे आई..."

" देखो मुझे अंदाज था की तुम मुझे कुछ अपनी बाहों में उठा के ले जाने की कोशिश करोगे...जरा ज्यादा रोमांटिक होने की कोशिश करोगे ..."

( प्लान तो मेरा यही था...)
और अगर कही कुछ खरड भरड हुआ और उस समय शीला भाभी बरामदे में हुयी कान लगाये तो सब गड़बड़ ....इसी लिए मैं दरवाज एके पीछे दीवाल से चिपक के खडी थी...तो जो तुम घुसे तो मैं दबे पावं तुम्हारे बिस्तर में ..और कपडे भी मैंने इसी लिए उतार दिए थे की इस लडके को बहूत इंतज़ार वैसे ही करना पड़ा और दूसरे उसमें भी तुम कुछ आवाज करते...तो..."

गुड्डी ने सब बात साफ की.

और मुस्करा के और मेरे पास सट गयी. मैंने एक हाथ से उसे अपने पास खींच लिया..और एक छोटी सी किस्सी उसके गालों से चुरा ली..

" चोर… सुबह सुबह जूठा कर दिया..." मुंह बनाते वो बोली,लेकिन उसका हाथ चादर में अन्दर मेरे पाजामे के ऊपर ठीक ' उसी' के पास...और वो कुनमुनाने लगा.

" उठो ना सब लोग उठ गए हैं ..." वो फिर बोली
" मैंने नहा धो भी लिया..."

" नहाना तक तो ठीक था लेकिन धो भी लिया..." मैंने चिढाया..
.
सुबह की धुप सी वो खिलखिलाई...

" और क्या तुमने इतना ..हर जगह ..."

और साथ में अब गुड्डी की उँगलियाँ पाजामे के अन्दर ...और वो उसकी मुट्ठी में...

" उठो ना मंजन कर लो ..." गुड्डी फिर बोली.
लट फिर उसके गाल पे आ गयी थी..

" कल की तरह जैसा तुमने कराया था ..." हंस के मैंने याद दिलाया...
' करा दूंगी डरती हूँ क्या..चलो ना..." वो मुस्करा के शोख अदा से बोली.

अन्दर 'उसके' साथ गुड्डी की उँगलियाँ खेल तमाशा कर रही थीं. गिनती चालू थी ११-१२....१७-१८-१९...आगे पीछे ...

" हे एक दे दो न...गुड मार्निग कर दो..." मैंने विनती की ...

" दिया तो "...मेरे होंठों की और इशारा कर के वो बोली और फिर पास आके एक छोटी दी किस्सी ले ली.

मैंने भी उसी तरह जवाब दिया लेकिन अपना इरादा साफ किया...
" वहां नीचे..." मैंने चद्दर की और इशारा किया जो अब तम्बू की तरह तन गया था...

" धत्त सुबह सुबह..." वो इतराई.
" प्लीज बस एक बहोत छोटी सी...सुबह सुबह कोई चीज मिलने से दिन भर मिलती है."

मैंने फिर अर्जी लगाई.

" ऊं उं...तुम ना रात भर मन नहीं भरा..." गुड्डी इठला के बोली और आलमोस्ट मेरी गोद में आगई.

" मन तो मेरा यार जिंदगी भर नहीं भरेगा...मैंने उसके दोनों किशोर उभारों को हलके से सहलाते हुए कहा.."

" तो मैं कौन सा तुम्हे...लेकिन अभी सुबह सुबह..सब लोग जग रहे हैं ..." वो दुलराते मेरे गालों को हलके से सहला के बोली.

" अच्छा भाभी कहा है..." मैंने साफ साफ सवाल किया ..

" वो ऊपर हैं कमरा ठीक कर रही हैं. शील भाभी नहाने गयी हैं अभी, कहा रही थी सर धोएंगी. मंजू नाश्ते की तैयारी कर रही है और मैं तुम्हारे पास हूँ, "
उसने सब की पोजीशन साफ कर दी.

" दे दो न प्लीज ...बहोत मन कर रहा है...एक दम छोटी सी... जस्ट उससे गुड मार्निंग कर दो...”

" चलो तुम भी क्या याद करोगे..."

गुड्डी मुस्करायी और झट से उसका मुंह चद्दर में...और पजामा खोल के...
पहले तो जीभ की टिप से ..उसने सुपाडे के पी होल पे ..हलके से छेड़ा और फिर वहीँ पे एक किस्सी ले ली.

झंडा एक दम फहरा रहा था.

उसने दोनों होंठो के बीच सुपाडे को गपक लिया और हलके हलके चूसने लगी. साथ में उसकी रसीली जुबान, नीचे से सुपाडे को चाट रही थी. थोड़ी देर में चूसने का जोर भी बढ़ गया और आधा लंड भी उस शोख, कमसिन के मुंह में...और जब उसने मुंह हटाया तो उसके पहले तन्नाये हुए लंड पे नीचे से ऊपर तक ...बीसों छोटी छोटी किस्सी और छोड़ने के पहले एक बार फिर से कस के बड़ी सी किस्सी ...मेरे जोश में पागल सुपाडे...पे ...और मुंह निकाल के फिर मेरे होंठों पे एक छोटी सी किस्सी...


" क्यों हो गयीं ना गुड मार्निंग..." वो मुस्करा के बोली.और मुझे खींच के पलंग से खड़ा कर दिया.
" एकदम अब आज दिन अच्छा गुजरेगा..." मैंने मुस्कारते हुए बोला.


 " एकदम अब आज दिन अच्छा गुजरेगा..." मैंने मुस्कारते हुए बोला.

हम दोनों साथ साथ निकल रहे थे.वो रुक के बोली,

" एक दम सही कह रहे हो..और आज तो तुम्हे उस से मिलने चलना भी है..." वो थम के मुड के मेरी ओर देख आँखे नचाते बोली.

" किससे ..." मुझे कुछ याद नहीं पड़ रहा था..

" अरे और किससे ...भूल गए कल यहाँ शाम फोन पे मेरी क्या बात हुयी थी ...किसके यहाँ आज चलना है....ये देखो..."

गुड्डी ने अपना मोबाइल का मेसेज बाक्स खोल के दिखाया...इन बाक्स में आज के दो मेसेज थे...सुबह हुई नहीं ...दो मेसेज आ गए ...कब आओगी...बहोत जोर से चींटियाँ काट रही हैं उसे...वही तुम्हारी ऐल्वल वाली जानेजाना...."

मुस्कारते हुए फोन बंद कर के वो किचेन में चली गयी और मैं वाश बेसिन पे ब्रश करने.
(ऐल्वल ...मेरी कजिन के मुहाल्ले का नाम था...)

मेरा हाथ जेब में अपने दोनों फोन पे पड़ा...सिक्योर और नान सिक्योर...दोनों मेसेज से भरे थे. रीत, डी बी, कार्लोस और ...मेरे हैकिंग फ्रेंड्स...

फ्रेश हो के मैं किचेन में पहुंचा...वहां मेरी भाभी चाय बना रही थीं. गुड्डी पास में खड़ी थी. शील भाभी और मंजू भी किचेन के काम में लगी थी.


" भाभी चाय ...लेकिन दूध थोडा कम.." मैंने फरमाइश पेश कर दी.



" अरे लाला दूध कम क्यों , दूध नहीं पियोगे तो मलाई गाढ़ी गाढ़ी कैसे निकालोगे..." मंजू मुझे छेड़ते हुए बोली.

सभी मुस्कराने लगे शीला भाभी ने हंसते हुए मेरी भाभी से कहा..

" अरी बिन्नो, तुम देवरानी काहें नहीं लाती लल्ला के लिए...वो दूध भी पिला देगी और मलाई भी निकाल देगी. पढ़ाई पूरी होगई . अच्छी नौकरी भी लग गयी ...कमाने लग गए अब काहें की कसर..."

" अरे मैं तो खुदी इससे कह रही हूँ..मार्च चल रहा है मई में अच्छी लगन है बोलो...करूँ बात.."
भाभी भी उसी गैंग मैं ज्वाइन हो गयी.

" धत भाभी..आप भी ना..मैं चलता हूँ ..आप चाय भिजवा दीजियेगा..." मैं झेंपता हुआ बोला.

" अरे क्या लौंडिया की तरह शर्मा रहे हो लाला हमका मालूम नहीं है का...जिस दिन आएगी ना उसी दिन से दोनों ओर चक्की चलेगी बिना नागा...झंडा तो इत्ता जबर्दस्त खड़ा किये हो ..सबेरे सबेरे केहू का सपना देखो हो का..."

और मंजू ने मेरा कुरता उठा दिया...नीचे पाजामे में जबर्दस्त तम्बू तना था...कर्टसी गुड्डी ने जो अभी वहां गुड मार्निंग किस दी थी.

मेरी भाभी और शीला भाभी मुस्कराने लगी,,,,

" और किसका सपना देखे होंगे...उसी का देखे होंगे ...जिसका कल चार बार फोन आया था..." भाभी ने चिढाया.

" सुबह से दो बार मेरे पास मेसेज आ गया है...कब आ रही कब आरही हो..."

गुड्डी ने आग में पेट्रोल डाला.
मैंने उसे घूर कर देखा तो वो खिस्स से हंस दी.

" अरे देवरानी आने में ता...पता नहीं कब तक आएगी...तब तक इ ऐस्से रहेगा..क्या..." मंजू ने अब तने पाजामे को हलके से छू दिया और फिर भाभी से बोली.

." अरे उसको भी आग लगी है..काहें नहीं ओही को टेम्परेरी देवरानी बना लेती...वहां नौकरी का ट्रेनिंग करें और यहाँ ओकरे साथ...घर का माल घर में..."

चौतरफे हमले से मेरी हालत खाराब हो गयी ऊपर से भाभी भी..." मुझे कोई ऐतराज नहीं है...अरे पुराना माल है इनका बचपन का..."

मैंने गुड्डी से कहा की वो चाय मेरे कमरे में ले आये और बाहर निकल आया. सिक्योर फोन बार बार वाइब्रेट कर रहा था.

भाभी ने गुड्डी से बोला की वो चाय छान ले और वो भी मेरे साथ आ गयीं हंसती हुयी.

" दुपहर को तुम बाजार जाओगे ना तो मैं लिस्ट दे दूंगी होली के सामान की लेते आना ...और ये मजाक का बुरा तो नहीं माना तुमने ..." वो बोलीं.
" अरे नहीं भाभी..मैं मंजू को जानता नहीं क्या..." मैं हंसने लगा...

लेकिन भाभी मुस्करा के बोली..." और क्या और वैसे भी मैं मजाक थोड़ी कर रही थी.सही बोल रही थी ..सेट कर लो उसको..." और हँसते हए वो ऊपर चली गयीं और मैं अपने रूम में.

फोन खोल के सब के मेसेज मैंने डेस्क टाप के सिक्योर्ड सर्वर पे ट्रांसफर किया, फिर एक फोल्डर में कापी कर के देखने लगा.

तब तक गुड्डी एक मग में चाय ले के आ गयी.

मैंने उसकी कलाई पकड ली तो वो बहोत धीमे से फुसफुसाते हुए बोली अभी नहीं..शीला भाभी बाहर खड़ी हैं. और हाथ छुडा कर चली गयी.




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