FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--74
गतांक से आगे ...........
बडौदा
मैने फिर से एक बार दिमाग दौडाया. बडौदा...कौन हो सकता है वहां ..कोयी ऐसा जो रिलायेबल हो , जिसके कान्टैक्ट हों और जो सुराग रसी का काम कर सकता हो. मीनल...मीनल शाह..एकदम सही रहेगी वो...
और मेरे दिमाग में साल भर ..बल्कि थोडा ज्यादा...नवरात्री का समय घूम गया. मै बडौदा में था, हम लोगों कि ट्रेनिन्ग का एक ह्फ़ता बडौदा मे रहता था...रेलवे स्टाफ कालेज में...हर आदमी कहता था...नवरात्री बेस्ट सीजन है, गुजरात में खास तौर पे, बडौदा में रहने के लिये , गरबा टाइम...और पहले दिन ही मुलाकात हुयी
....मीनल से उस समय वह बी.एफ.ए कर रही थी, बैचलर इन फाइन आर्ट्स, एम.एस.यु. से,
मेरे एक दोस्त की सिस्टर, मुझे ले गयी थी, फाइन आर्ट्स का गरबा दिखाने, एक्दम अलग, कोयी फिल्मी धुने नहीं, आर्केस्ट्रा का शोर नहीं, और सिर्फ युनिवर्सिटी की लडकियां, पावों का संगीत, वो थिरकन , वो मस्ती, कहते है कि बैक लेस चोली की खोज, इसी फाइन आर्ट्स के गरबा कि देन है ...और सब कि सब बैक्लेस, गोरी पान के पत्ते सि चिकनी पीठ पे एक से एक टैटू...
मैं पतली कमर के साथ दीर्घ नितम्बों का चहेता रहा हुं और वह किसी किशोरी, में तो फिर तो सोने में सुहागा..और वह हरे लहन्गे, और बैक्लेस कसी चोली वाली गोरी, जब नाच के लिये झुकती...और उसके दीर्घ नितम्ब, ( ३४ + रहे होंगे, लेकिन २८ कमर के साथ वो बहोत जादू भरे थे.)
और ….नाच मे ब्रेक हुआ...
और वो तन्वंगी मेरे पास ही आके बैठ गयी। और जब झुक कर वो अपने पायल ठीक करने लगी तो मेरे दिल के घुँघरू जोर जोर से बजने लगे ...
कमर उसकी इतनी पतली की मेरी एक मुट्ठी में समाँ जाय , लेकिन मेरी निगाहें चिपक गयी थी उसकी चोली से छलकते उभारों पे , दोनों एकदम मेरे मुट्ठी के साइज के कसे कड़े बड़े बड़े और जब पायल ठीक कर के उस सारंग नयनी ने अपने बड़े बड़े नयन उठाये ...और मुझे देखा बस मुझे लगा की मेरी चोरी पकड़ी गयी।
किस्मत मेरी उसी समय मेरे दोस्त की बहन जिसके साथ मैं गरबा में गया था, वो वहां आ गयी और उसने मुझे इन्टरोड्यूस करा दिया।
और उस शोख ने खुद हाथ बढ़ा कर बोला" हाय आय एम् मिनल".
तब तक गरबा फिर शुरू हो गया था, वो बोली, बस ये लास्ट राउंड है , मिलते हैं अभी।
क्या झूम के नाच रही थी वो, और बीच बीच में ...जब वो मेरी और देखती तो बस लगता की ...उसका सारा संगीत, पांवों की थिरकन, मस्ती से झूमना मेरे लिए है।
" आप पहली बार .गरबा में आये हो।" डांस खतम होने के बाद वो आके फिर मेरे पास बैठी।
" हाँ।" मैंने कबूल किया। मेरे दोस्त की बहन भी आके मेरे पास बैठ गयी थी।
मीनल उससे बोली , " चल आज इन्हें नचाते हैं ..." और वो दोनों खिलखिलाने लगी।
' कब तक दूर बैठे रहोगे , मजा तो तब है जब मैदान में कूदो।" मीनल बोली।
" एकदम , " मेरे दोस्त की बहन ने उसका साथ दिया। " आज इनको नचाते है तब गुजरात का असली मजा मिलेगा।लेकिन यहाँ तो परमिटेड नहीं है, सिर्फ फाइन आर्ट्स वाले..." वो आगे बोली।
" तो क्या हुआ , आरकी ले चलते है न ना इसको ...और उसके बाद युनाइटेड ...जबर्दस्त मजा आता हैं वहां। " मीनल बोली, फिर फुसफुसा के पूछा,
" तेरी कोई बकिंग तोनहीं हैं ना, ..."
" है ना वो ..." और उसने इशारा किया।
एक लडका बाइक पे बैठा उसे बार बार जल्दी आने के इशारे कर रहा था।
" तू ले जा ना ...वैसे भी ये मेरे भाई का दोस्त है तो एक तरह से तो ..." मेरे दोस्त की बहन मीनल से बोली।
" चल हट ...झूठी ...भाई को तो छोडती नहीं ...भाई के दोस्त का बहाना बनाती है, मैं गप कर जाउंगी इसे तो फिर मत कहना ..." ये कहते हुए मीनल ने जोर से मेरे दोस्त की पीठ पे हाथ मारा।
" उयी ...वो जोर से चीखी ...और बोली, बहोत जोर से मारती है।"
" हे और वो बाइक वाला हलके से मारेगा क्या ..." मीनल ने उसे चिढाया।
" तभी तो जा रही हूँ उसके साथ, जोर से मारेगा ..." वो बोली और दोनों हंसने लगी फिर एक साथ मुड के बोली,
" हे आप सुन तो नहीं रहे थे की हम दोनों क्या बाते कर रहे थे, गर्ल्स टाक नाट फार ब्वायज ..."
" तो अब आप मीनल के हवाले, ये आज आप को बेस्ट गरबा बडौदा के दिखाएगी। ज़रा मुझे कहीं जाना है कोई प्राबलम तो नहीं ."
मुझे क्या प्राबलम होती और वो बिना मेरा जवाब सुने सरक ली।
अब मैं और मीनल ...
रूप और जोबन के साथ उसकी बिंदास और मस्त पर्सनालिटी ...ने मुझे बेभाव खरीद लिया था। साथ में उसके ऐटिट्युद में एक हल्का सा डामिनेन्स ...जो कहते है ना हक़ से, तो वो था।
मीनल ने मेरा हाथ पकड के झटके से खडा किया।
सबसे पहले नवापुरा, वहां से उसने मेरे लिए गरबे की ड्रेस खरीदी और फिर मेरे रूम पे . उसने .आधे घंटे .में मुझे बेसिक स्टेप्स सिखा दिए।
और उसके बाद , तो सारी रात, युनाइटेड,आर्की और ना जाने कितने गरबा ग्राउंड ...शुरु में मुझे जरूर कुछ दिक्कत हुयी ,लेकिन फिर ..मीनल की ताल पे ...सारी रात, और क्या नजारा था, हजारों लडके लडकियां एक ताल पर,...
और जो मैंने सूना था वो भी देखा ....लोग कहते हैं इन नव रातों में यहाँ कनटरासेप्टिव का इअस्तेमाल कई गुना बढ़ जाता है . मीनल की सहेलिया भी ...एक गरबा ग्राउंड से दूसरे के बीच पार्टनर बदल जाते थे।
और जिस तरह से वो आपस में बात करती थी .. सारे इशारे ...लेकिन समझ में मुझे सब आता था।
अगले दिन हम लोग दिन में भी मिले , कमाटी बाग़ में और फिर वो मुझे अपने हास्टल ले गयी, और सारी सहेलियों से मिलावाया, एक दो ने उसे चिढाया भी ..
" हे एक रात के लिए मुझे दे दो,"
वो चिपक के बोलती ..ना ना कापीराईट रिजर्व्ड ...
कैसेट लगा के उसने मुझे फिर और थोड़े काम्प्लिकेटेड ताली सिखाई ..और उस रात मैंने पूरी तरह उस का साथ दिया, शुरु में मंथर गति से फिर पूरी तेजी से ...
मैं 4 दिनों के लिए बडौदा गया था और पूरे 9 दिन रहां,
नौ रात, नव रंग , नव् रस , नव् जीवन ...
गरबा के साथ बीच में ब्रेक में .कभी डेयरी डेन पे आइसक्रीम, कभी फतेह्गंज में स्नैक्स या डिनर ,
यहाँ तक की शरद पुर्णिमा के दिन मैं फिर वापस आ गया।
और उस दिन तो महा रास की रात,धवल छिटकी चाँदनी , कितने जोड़े सब कुछ भूल कर नाचते हुए , थिरकते हए और मैं और मीनल भी,
सिर्फ रस बरसता रहां रात भर
शरद पूनम नी रात माँ ...
मैं जब उस से सब से पहले मिला था तो सिर्फ दो शब्द मालूम थे गुजराती के ... केम छो और खूब सरस ...लेकिन मीनल के साथ बिताए उन पलों ने मुझे बहूत कुछ सिखा दिया था।
हम लोग टच में रहे , वो पढाई पूरी कर के वहीँ इन्डियन एक्सप्रेस में आर्ट करसपाण्डेण्ट हो गयी , और बाद में सिटी एडिटर भी ...
उसकी बहूत सी हाबियाँ थी, कितने एन जी ओ के साथ वो काम करती थी,एक ओळख की किसी से उसने मिलवाया भी था,...
यादों के झुरमुट से किसी तरह बाहर निकला मैं ...और मैंने मीनल को फोन लगाया।
बहूत मनुहार , गिले शिकवे के बाद , बात शुरू हुयी।
मैं सीधे मुद्दे पे आया।
" हे तेरी रेलवे में जान पहचान है क्या कुछ ..."
हंस के वो बोली ..." तुम्हारा सिक्स्थ सेन्स बहूत जोरदार है, बही 10दिन पहले हमारी रेलवे बीट वाली छूट्टी गयी है, वो काम भी मैं देख रही हूँ, चार दिन पहले मैंने के डी आर एम् मिस्टर कुमार का हेरिटेज के बारे मैंने इंटरव्यू लिया था।
" नहीं मेरा मतलब है स्टेशन के लेवल पे और ...स्टाफ में ..." मैंने बात साफ की। और डांट खायी।
" मुद्दे पर आओ ..."
मैं मुद्दे पे आ गया। मैंने बिना भूमिका बताये , टेरर थ्रेट की कहानी बिना बताये सिर्फ ये पुछा, एक पर्टिकुलर ट्रेन से एक पैकेट बनारस से बडौदा गया है उसे ट्रेस करना है, चिमललाल की दूकान का है, "
हंस के वो बो ली " हो जायेगा , लेकिन फीस लगेगी , वहीँ से शापिंग करवानी पड़ेगी।"
" एकदम मंजूर " मैंने भी जवाब दिया और उसको पूरे डिटेल बता दिए।
रीत ने बताया था की बाम्ब मेकर भी एस 6 कोच में सावरमती एक्सप्रेस से ही वहां गया रहा। इसलिए उसकी भी फोटो मैंने मिनल को मेल कर दी।
फिर मुझे और बातें याद आयीं। जो हैकरस ने बतायी थीं और बडौदा के पास के सेट लाईट फोन की ट्रेसिंग से पता चला था। वो जगह जहां आस पास रिफायनरी और फर्टिलाइजर फैक्ट्री ऐसे कई सेंसेटिव जगहें थीं ...वहीँ से कोई सेट्लाइट फोन से बात करता था।
मैंने मीनल को उस जगाह के बारे में भी डिटेल पता करने के लिए कहा।
" श्योर ...वहां पर मैंने पोलुशन के बारे में एक रिपोर्ट भी पोस्ट की थी ...और मेरी एक सहेली है, डी कालोनी में रहती है उसके भाई रेलवे में टी एक्स आर हैं। और रेलवे आफिसर्स कालोनी प्रताप नगर में भी मेरी एक फ्रेंड है, उसके फादर बडौदा डिविजन में किसी सीनयर पोस्ट पे हैं। चेक कर के आज रात को ही बताउंगी। " ये कह के उसने फोन रख दिया।
मैंने फोन रख कर सांस लेने की कोशिश की लेकिन मेरी साँस रुक गयी।
रंजी और गुड्डी दोनों मेरी और आ रही थी तेजी से।
" हे ऊपर चलो ना ..." रंजी बोली
" किसके, " मैंने चिढाते हुए पूछा।
" तुम ना ...तुम्हारे दिमाग में हर समय एक ही बात रहती है। गुड्डी ने हडकाया।
शीला भाभी की साडी तो जबर्दस्त थी, चटक लाल रंग की , एकदम उन्हें पसंद आती। साथ में मैचिंग ब्लाउज भी ...
लेकिन बात अटक गयी थी उस साडी पे जो रंजी और गुड्डी ने देखी थी।
प्याजी गुलाबी रंग की शिफान की, सब कुछ नहीं तो काफी कुछ दीखता है टाइप वाली, ये रंजी का आइडिया था की दोनों होली के शाम साडी पहने, और ये बहूत कुछ प्रभावित था एक पोस्टर पे जिसमें एक माडल ने , वह साडी पहन रखी थी, नाभि दर्शना , नितम्बों के खबू नीचे एक दम कस के बाँधी हुयी,
लेकिन जो आग लगा रही थी , वो थी चोली, आलमोस्ट बैकलेस के साथ, सामने से खूब डीप क्लिवेज, गहरा वी नेक का गला, और ऊपर से स्लीवलेस बस खूब पतले नूडल स्ट्रिंग , दोनों ऊरोज सिर्फ झलक और छलक ही नहीं रहे थे बल्कि बहूत कुछ दिख रहे थे. गदराए उरोजो की आभा दिख रही ही थी और साथ ही काफी कुछ गुलाबी निप्स भी।
बस ये सोच के की रंजी के किशोर अभी विकसित होते, खिलते हुए उभार कैसे लगेंगे इस साडी ब्लाउज में , मेरे रोम रोम खड़े हो गए।
लेकिन तभी मेरे मुंह से निकल गया, लेकिन होली तो परसों हैं , इतनी जल्दी मैचिंग ब्लाउज ...
"अरे तो क्या हुआ, रंजी बिना ब्लाउज के ही पहन लेगी। " गुड्डी ने छेडा।
" मुंह बनाकर रंजी बोली, " ऐसा कुछ नहीं है, तुम्हारे बनारस में होता होगा ऐसा , बाबी टेलर्स है ना अपना, बस लौटते हुए उसे नाप दे देंगे। मैं अपना भी दे दूंगी , तुम्हारा भी दिलवा दूंगीं , ले लेते है। क्यों कैसी लगी ये साडी ." मुड कर उसने मेरी और देखते हुए पूछा।
मैं कुछ बोलता उससे पहले सेल्स गर्ल बोल पड़ी,
" ये बाबी टेलर्स , खास तौर से साजिद के हाथ की फिटिंग , लेकिन उसके यहाँ तो एक महीने की कम से कम लाइन लगती है, वो भी बहोत मक्खन लगाओ तब, "
" अरे औरों के लिए ..मैं तो साजिद से ही करवातीं हूँ, देखना कैसे नहीं देगा कल तक , ' मुस्कराते हुए रन्जी बोली, और साडी ले ली गयी।
हम लोग नीचे उतरे और जींस के स्टाल के पास कैच कर लिए गए। बस वही जो बात मैंने सेल्स गर्ल से पहले की थी। साथ में उनका प्रमोशन मैनेजर भी था।
रंजी को देख के वो बोला,
" आप दोनों केलिए हमारे पास एक आफर है , बहूत ही हाट पसंद ना आये तो मना कर दीजियेगा लेकिन प्लीज एक बार सुन लीजिये ."
:" सुनाइये ना वैसे भी मेरी सहेली कभी किसी को कुछ मना नहीं करती ". गुड्डी ने रंजी को छेड कर कहा।
वो सेल्स प्रोमोशन आफिसर था भी हैन्ड सैम।
रंजी ने घूर कर गुड्डी को देखा।
और वो सेल्स प्रमोशन वाला चालू हो गया।
" ये देखिये ये दोनों जींस आपने ली हैं आप पे कित्ती फब रही हैं ."
बात उस की सही थी।
सारे कटाव, उभार , खास तौर से नितम्बो के ...एकदम साफ साफ दिख रहे थे।
रंजी के तो पिछवाड़े की पूरी दरार साफ दिख रही थी और साथ में दो मस्त मस्त हाफ ग्लोसब्स ...मेरा तो मन करा रहा बस कचकचा के , निहुरा के ...
वो और गुड्डी ध्यान से उसकी और देख रही थीं और उन दोनों के जींस फाड़ते नितम्बो को ....
“ हमें करना क्या है।" रंजी बहुत फोकस्ड थी और सीधे मुद्दे पे आ जाती थी।
" कुछ नहीं, बस कल हमारे दो बहूत मशहूर फैशन फोटोग्राफेर आ रहे हैं वो कल एक शूट करेंगे, हमने सोचा की अगर आप दोनों हैं तो हम बाहर से फैशन माडल्स को क्यों बुलवाएँ , तो बस कल आअप्का एकाध घंटे का समय चाहिए होगा,.
इसी समय कल शाम को , वो आप को शूट करेंगे और उसमे से 3-4 पिक्चर्स, आप से पूछकर , हम डिस्प्ले करेंगे और ज्यादा इंट्रेस्टिंग बात ये है की , हम ये काम सिर्फ 4-5 सेंटर पे कर रहे हैं ...और अगर आप की फोटोज फर्स्ट थ्री में आयीं, जो मुझे यकीं है जर्रूर आएँगी ...
तो एक मशहूर माडल के साथ मुम्बई में डिनर और दो दिन की गोवा में मस्ती,
( उस ने ये नहीं बताया की वो जो फोटोग्राफर हैं , वो ज्यादतर बिकिनी शूट टैप करते हैं और किंग फिशर के कैलेण्डर में असिस्टेंट कैमरा मैन थे। और जिस जींस की उन्हें माडलिंग करनी होगी , वो अल्ट्रा लो राइज जींस है, जिस के एक एक सेट मैंने उन्हें पैक करवा दिए थे ).
दोनों एकदम खुश ...और बिना पढ़े उन्होंने एक अग्रीमेंट पे साइन कर दिया।
ये तय हुआ की कल शाम को दोनों को मैं ले आउंगा।
बदले में जींस वाले ने उन दोनों को काम्प्लिमेंट री शापिंग का कार्ड दिया, 40 % डिस्काउंट जो कई शहरों में अवलेबल था।
शूट के बाद उन्हें और भी गिफ्ट्स मिलने वाले थे।
मैंने वहां किसी से पीछे से निकलने वाले रास्ते के बारे में पूछा तो रजी बोली, अरे मुझे मालूम है ना ..
ये रास्ता एक पतली गली में खुलता था।
आगे आगे रंजी , पीछे मैं और गुड्डी।
मेरी निगाह रंजी के कसर मसर करते बड़े बड़े नितम्बो से चिपकी थी।
गुड्डी मेरे कान में रंजी की और देख के चिढाते हुए बोली, तुम्हे बहूत पिछवाड़े का रास्ता पसंद है ...
संकरी गली , भीड़ भाड़ , धक्का मुक्की, और साथ में होली का असर, बस दो दिन ही तो रह गये थे होली को। दुकानों से ले के लोगों तक सब पर फगुआहट जम के चढ़ी थी।
" इधर से किधर, तुम तो कह रही थी की बाबी टेलर्स के यहाँ जाना है, इधर से कैसे ..." गुड्डी परेशान थी।
" अरे तू चल ना ना बहोत डर हो तो मेरा हाथ पकड़ ले, बस थोड़ी देर आगे चल के वो जो दूकान देख रही है ना रंग की वहीँ से दाये मुडने पे सडक आ जायेगी। शार्टकट है जल्द पहुँच जायेंगे। " रंजी ने समझाया।
" मुझे कुछ छोटे मोटे सामान लेने हैं ...बस वहीँ मोड़ पे मेरा वेट करना।" मैंने दोनों से बोला।
" एकदम हंसतेहुये रंजी बोली और डरिये मत आपकी इस बनारसी गुड्डी को कुछ नहीं होने दूँगी , एकदम सेफ एंड साउंड वापस करुँगी ." रंजी बोली। और हंसती खिलखिलाती दोनों किशोरिया भीड़ में खो गयीं।
मैं पीछे से निहारता रहा हाई हील, एकदम टाईट जीन्स में रंजी के चूतड कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे। या शायद उसे मालूम था की मेरी लालची निगाहें वहीँ चिपकी हैं।
लोग कहतेहैं की लड़की जिस दिन जवान होना शुरू होती है उस की एडी में आँखे आ जाती हैं।
रंजी पर तो जवानी फूटी पड रही थी। तो उसके तो हर अंग में आंखे उग आई थीं , इस बात की प्यासी की कोई उस की नई आ रही जवानी को माने जाने और चाहे , सराहे।
एक बार उसने कुछ ज्यादा ही अपने भारी किशोर नितम्बों को मटकाया ..और एक पल के बाद ही मुड कर देखा।
और उसकी निगाहीं ने मेरी चोर निगाहों को गिरफ्तार कर लिया।
लेकिन आँखों के खेल का क़ानून और इन्साफ कुछ अलग है।
मुस्करा के उसने एक जोर दार फ्लाइंग किस दिया , जिसे मैंने कैच कर लिया।
दोनों से पीछे रहने के मेरे दो कारण थे।
पहला तो ये की मुझे लग रहा था, की जिस तरह पारलर वाली ने और फिर माडर्न ड्रेस ने गुड्डी रंजी को बदला था , कोई पीछा करने वाला उनको पहचान नहीं सकता था अब दोनों बग फ्री भी हो गयी थीं। वो मेरे कारण पहचानी जा सकती थीं लेकिन वो भी मेरे दूर रहने से मुश्किल था।
मैंने ऊपर से एक दूकान से निकलते समय प्रमोशनल बेस बाल कैप था वो लगा लिया था। चाल बदलनी मेरेलिए कोई मुश्किल बात नहीं न थी। फिर मुझे लग रहा था की अब वो कथई सूट वाला जो गुड्डी और रंजी के उपर उसने बैग प्रहार किया था , उस के जरिये ही ट्रेस कर रहा होगा।लेकिन वो सारे बैग कपड़ों के साथ गंगा स्टोर में ही रह गए थे। इस लिए उसे यही इन्फो मिल रही होगी की हम सब दूकान में ही हैं।
दूसरी बात की अ गर वो खुद या उस का कोई गुर्गा , दूकान के बाहर होगा तो वो हमारे में गेट से निकलने का वेट कर रहा होगा। इस लिए हम लोगों ने मेरा विशवास था उस से पीछा छुड़ा लिया होगा।
और दूसरा कारण ये था की मैं ज़रा देखना चाहता था की , मेरे अलग होने से ये दोनों पब्लिक में मस्ती कैसे करती हैं। मेरे साथ रहने पे दोनों मुझसे ही उलझी रहती .... और कुछ देर में ही मुझे वो नजारा मिल गया।
रन्जी गुड्डी का हाथ पकडे घनी भीड़ से ले जा रही थी। तब तक पीछे से तीन चार कालेज के लडके आये। और उनकी चाल ढाल से मुझे लग गया की अब क्या होने वाला है।
वो हाथ अपने सीने पे क्रास कर के रखे हुए थे। एक गुड्डी के बगल से दरेरता हुआ गया और जब तो वो सम्हले सम्हले , उस का हाथ सीधे गुड्डी के जोबन पे, और टाप फाड़ते उभार को कस के उसने दबा दिया। दूसरे के हाथ गुड्डी के नितम्ब पे थे।
यही नहीं उसने दोनों को सुना के डायलाग भी बोला,
" जगह पाने के लिए हार्न बजाएं।"
ठीक ही तो कह रहा है वो ...रंजी ने और जले पे नमक छिडका।
" चल बनारस चलेगी ना तो बताउंगी। " गुड्डी बोली। पर रंजी कौन पीछे रहने वाली थी।
अरे देख लूँगी यार तेरे बनारसियों को भी , बनारस के गन्ने का रस चूस के पी जाउंगी वो भी बिना दांत वाले मुंह से।"
तब तक कुछ और लडके पीछे से आये और अबकी रंजी निशाने पे थी।
एक ने पीछे से ही उसके उभारों को धर दबोचा और दूसरे ने जींस फाड़ते , पिछवाड़े के उभारों को कस के सहला दियाऔर रगड़ते उसको दरेरते आगे निकल गए .
अब गुड्डी , की बारी थी चिढाने की
" क्यों क्या बहूत जोर से दबा दिया।"
लेकिन रंजी तो रंजी थी। उसने पलट के अपनी बडी बड़ी आँखों को नचाते हये , जवाब दिया।
" अरे तो क्या हुआ, मेरे ही शहर वाला तो था, फिर होली में चोली का मजा ना लेगा तो कब लेगा।"
रंजी ने सही कहा था। माहौल पूरा होली का था। हवाओ में मौज मस्ती बह रही थी, चारो और रंग का खुमार था। मस्त भोजपुरी गाने बज रहे थे, दुकानों पर होली के सामान, रंग अबीर गुलाल, ज्यादातार आदमी। कालेज के लड़के , कमेन्ट मारते , एक दो के हाथ में तो रंग भरे गुब्बारे भी थे,....
और ऐसे माहौल में दो किशोरियां, बाला जोबन ,
बस उभरते हुए उभार, और नए आये योवन का अह्स्सास, टाईट शोल्डरलेस टाप , जिससे कन्धों की गोलाई और गोराई तो दिख ही रही हो,कमसिन उरोजों की गोलाई भी छलक रही हो, टाप ऊपर से जोबन के बीच की गहराई को दिखाता और नीचे से नाभि के ठीक ऊपर ख़तम होकर , गोरी चिकनी , मुट्ठी में आ जाय ऐसी पतली कमर को दिखाता और जीन्स भी एकदम टाईट , नितम्बो के भराव कटाव को दिखाती, ललचाती, कसी इतनी की पूरी की पूरी दरार साफ दिखती ....कसर मसर करते दोनों चूतड ...
और उपर से बिजली गिराती शोख अदाएं , कोई लड़का कुछ भी कमेंट मारता , रन्जी जवाब जरूर देती, बिना बोले, झटक के कभी अपने बालों को , कभी आँखों से गोली मार के , कभी अपने रसीले होठों को हलके से काट के और कभी जुबना को उभार के , उचका के ...
इस के बाद बिचारे लड़कों को कौन ..दोष दे सकता है ...
एक ने पीछे से कमेन्ट मारा ..अरे दोनों टंगिया के बीचे सटल रहेला , अरे दोनों जांघिया के बीचे सटल रहेला, अरे टाईट जींस के भीतर कसल रहेला ..
रंजी ने मुस्करा के मुड के पीछे की और देखा जिधर से कमेन्ट आया था और हलके से अपने भारी भरी नितम्बों को एक जुम्बिश दे दी।
तब तक किसी ने एक भोजपुरी गाना लगा दिया , होली का ..
.भितरवा में डललि, जींस के भीतर में , भीतर वाला हीटर में ...डलली
किसी और ने दूसरा गाना छेडा ...
अरे जींस ढीला कर देली,
रंजी और गुड्डी ने अपनी स्टाइल से उसका भी जवाब दिया।
मैंने दोनों की नज़रों से बचते आगे निकल गया रंग की दूकान पे , भाभी और मंजू दोनों ने रंग के लिए कहा था और जब मैंने कहा था कितना तो मंजू ने अपने अंदाज में बोला था , अरे एक पाँव तो तोहरी उ ऐलवल वाली की भोंसड़ीये में समय जायेगी और ...एक पाँव तोहारी गांड में ...बाकी तू अंदाज लगाय ला, :
और मैंने उस ऐल्वल वाली यानी रंजी की और देखा ..
और जो मैं डर रहा था वही हुआ ..दो थोड़े छैले टाइप लडके, रंजी और गुड्डी का आलमोस्ट रास्ता रोके खड़े थे,
एक ने रन्जी को देख के बोला , अरे दे दा होली के दान हो टाईट जींस वाली ...
और जो उसका चमचा सा लगता था, लाल टी शर्ट में , हाथ में पिचकारी लिए हुए गुड्डी की और इशारा कर के एक कबीर बोला,...
और जो उसका चमचा सा लगता था, लाल टी शर्ट में , हाथ में पिचकारी लिए हुए गुड्डी की और इशारा कर के एक कबीर बोला,...
" अरे चिवडा करे चुरूर चुरूर, दही लपालप, अरे दही लपालप।
टाईटजींस वाली बोले , अरे रजउ, डाला गपा गप हो डाला गपागप।
टंगिया उठाय के पेलब हम जाई सटा सट, हो जाई सटा सट।
हो कबीरा सर्र सर्रा रा हो कबीरा सर्र सर्रा रा,
रन्जी उन दोनों की और मुड़ी और जिस लडके ने उसे छेडा था उसे पहचान कर चौक कर बोली, अरे तुम।
और उस ने भी रन्जी का हाथ कस कर पकड़ लिया और बोला ऐसे ड्रेस में आज बाजार में आग लगाने का इरादा है क्या ..
रन्जी ने टाईट टाप में छलकते उभारों को और उभार के बोला, तुम बचे रहना।
उसने अपना दूसरा हाथ रंजी के कंधे पे रखा और बोला,
"इसलिए तो पानी से भरा पाइप मैं हमेशा तैयार रखता हूँ , तुम कभी मौका ही नहीं देती ".
" जा ज्जा ...वो है ना एक सारा पानी सोख लेगी ..." रन्जी ने भी शोख अंदाज में जवाब दिया।
.
गुड्डी उन दोनों को देख रही थी। कौन है जो रंजी से इस तरह लस रहा है ...रंजी ने ही पहल की।
गुड्डी से वो बोली, " हे ये ,मेरी एक बहोत क्लोज फ्रेड के भाई हैं , और ये,...
तब तक गुड्डी ने खुद आगे बढ़ कर उस से हाथ मिला लिया और बोली,
'मैं गुड्डी हूँ , बनारस से आई हूँ आप के शहर की होली का मजा लेने, और आप इस की सहेली के भाई है तो मेरे भी भैया हुए ना , क्यों भैया।
" अरी नहीं री , बच के रहना ये वो वाले भैया है जो दिन में भैया और रात में सैंया हो जाते हैं।"
रंजी ने छेडते हुए कहा।
" एकदम गलत ..." वो बोला। " फागुन में दिन रात दोनों समय ...सिर्फ सैंया ..."
" ठीक है ...भैया ..." गुड्डी भी उसी अंदाज में बोली।
" तू बचेगी नहीं ..." रंजी मुस्कराकर बोली।
" बचना कौन चाहता है, वो भी होली के मौके पे ..." अब गुड्डी का मौक़ा था अपने किशोर जोबन को हलके से उभार के ललचाने का।
वो रन्जी से चिपका हुआ था और गुड्डी उसके साथी से जो हाथ में पिचकारी पकडे हुए था।
उस लडके का हाथ रंजी के कंधे से सरक के उभारों को हलके से सहला रहा था।
और गुड्डी उस के साथी को छेड़ रही थी।" बड़ी मोटी पिचकारी है।"
" तभी तो मजा आयेगा जब मोटा अन्दर जायेगा, चरचराता,...खूब परपराएगी,...."
" अरे ज्जा , पिचका दूँगी तेरी पिचकारी, सारा रंग सोख लुंगी ..."गुड्डी ने आँख नचा के जवाब दिया।
मैं दकान पे रंग ले रहा था और सारा नजारा देख रहा था। वो दोनों चली और रंग ले के मैं उनके पीछे पीछे ...
" तो क्या वो सच्ची अपनी बहन के साथ ..." गुड्डी रंजी से फुसफुसा के पूछ रही थी।
" और क्या,...खिलखिलाते हुए रंजी बोली। रोज बिना नागा ...कभी दो बार कभी तीन बार ...वो खुद आके बांटती है सबको, साल भर से ज्यादा हो गया, ..आज कल उस के पैरेंट्स कहीं बाहर गए हैं ...इसीलिए तो वो कह रहा था की आज कल दिन रात ...सैंया ही रहता है,"
" सीखो सीखो ...उस की पीठ पे जोर से धौल मारते हुए गुड्डी बोली, एक वो तुम्हारी सहेली और एक तुम ...वो बिचारा तुम्हारा कजिन ...उस बिचारे को ज़रा सा लिफ्ट भी नहीं दे सकती .."
"बिचारे की बिचारी ...मैं उसे लिफ्ट नहीं देती या वो लिफ्ट नहीं देता ..सीधा बनने के चक्कर में .." मुंह फूलाकर रंजी बोली।
" एक बार हाँ बोल के तो देख ..." गुड्डी ने रंजी को , समझाया।
" अरे हाँ नहीं बोला ...तो मैंने कभी ना भी तो नहीं बोला, " रंजी बोली।
उन दोनों के बिना देखे मैं पीछे आ गया और रंजी की मुट्ठी भर की साइज की कमर पकड़ ली और बोला
" ये क्या हाँ ना ...हो रहा है।"
रंजी ने पीछे मुड कर देखा और अपने गुलाबी लिपस्टिक से दहकते होंठ मेरे इयर लोबस पे रगडते हुए धीरे से बोली, " हाँ हाँ हाँ "
गुड्डी बड़ी मुश्किल सेअपनी मुस्कराहट रोक पा .रही थी। मेरे पीछे एक हाथ जमाते हुए वो बोली ,
" तुम दोनों ना कहीं भी चालू हो जाते हो।
बिना मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना रंजी हंस के बोली, " हे कहीं से कुछ जलने की बदबू आ रही है ना,...अरे थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी, कभी भी।
कहाँ चले गए थे तुम… दोनों ने एक साथ सवाल दागा।
" रंग लेने और भूल गयी भाभी और मंजू ने कित्ती लम्बी लिस्ट पकडाई थी।" मैंने जवाब दिया और उलटा सवाल पूछा
" ये तुम्हारा बाबिज अब कितनी दूर है, "
सामने मोड़ पर उस का बोर्ड दिखाई दे रहा था।
तुम दोनों चलो मैं बाहर ही वेट करता हूँ ..मैंने कहा।
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फागुन के दिन चार--74
गतांक से आगे ...........
बडौदा
मैने फिर से एक बार दिमाग दौडाया. बडौदा...कौन हो सकता है वहां ..कोयी ऐसा जो रिलायेबल हो , जिसके कान्टैक्ट हों और जो सुराग रसी का काम कर सकता हो. मीनल...मीनल शाह..एकदम सही रहेगी वो...
और मेरे दिमाग में साल भर ..बल्कि थोडा ज्यादा...नवरात्री का समय घूम गया. मै बडौदा में था, हम लोगों कि ट्रेनिन्ग का एक ह्फ़ता बडौदा मे रहता था...रेलवे स्टाफ कालेज में...हर आदमी कहता था...नवरात्री बेस्ट सीजन है, गुजरात में खास तौर पे, बडौदा में रहने के लिये , गरबा टाइम...और पहले दिन ही मुलाकात हुयी
....मीनल से उस समय वह बी.एफ.ए कर रही थी, बैचलर इन फाइन आर्ट्स, एम.एस.यु. से,
मेरे एक दोस्त की सिस्टर, मुझे ले गयी थी, फाइन आर्ट्स का गरबा दिखाने, एक्दम अलग, कोयी फिल्मी धुने नहीं, आर्केस्ट्रा का शोर नहीं, और सिर्फ युनिवर्सिटी की लडकियां, पावों का संगीत, वो थिरकन , वो मस्ती, कहते है कि बैक लेस चोली की खोज, इसी फाइन आर्ट्स के गरबा कि देन है ...और सब कि सब बैक्लेस, गोरी पान के पत्ते सि चिकनी पीठ पे एक से एक टैटू...
मैं पतली कमर के साथ दीर्घ नितम्बों का चहेता रहा हुं और वह किसी किशोरी, में तो फिर तो सोने में सुहागा..और वह हरे लहन्गे, और बैक्लेस कसी चोली वाली गोरी, जब नाच के लिये झुकती...और उसके दीर्घ नितम्ब, ( ३४ + रहे होंगे, लेकिन २८ कमर के साथ वो बहोत जादू भरे थे.)
और ….नाच मे ब्रेक हुआ...
और वो तन्वंगी मेरे पास ही आके बैठ गयी। और जब झुक कर वो अपने पायल ठीक करने लगी तो मेरे दिल के घुँघरू जोर जोर से बजने लगे ...
कमर उसकी इतनी पतली की मेरी एक मुट्ठी में समाँ जाय , लेकिन मेरी निगाहें चिपक गयी थी उसकी चोली से छलकते उभारों पे , दोनों एकदम मेरे मुट्ठी के साइज के कसे कड़े बड़े बड़े और जब पायल ठीक कर के उस सारंग नयनी ने अपने बड़े बड़े नयन उठाये ...और मुझे देखा बस मुझे लगा की मेरी चोरी पकड़ी गयी।
किस्मत मेरी उसी समय मेरे दोस्त की बहन जिसके साथ मैं गरबा में गया था, वो वहां आ गयी और उसने मुझे इन्टरोड्यूस करा दिया।
और उस शोख ने खुद हाथ बढ़ा कर बोला" हाय आय एम् मिनल".
तब तक गरबा फिर शुरू हो गया था, वो बोली, बस ये लास्ट राउंड है , मिलते हैं अभी।
क्या झूम के नाच रही थी वो, और बीच बीच में ...जब वो मेरी और देखती तो बस लगता की ...उसका सारा संगीत, पांवों की थिरकन, मस्ती से झूमना मेरे लिए है।
" आप पहली बार .गरबा में आये हो।" डांस खतम होने के बाद वो आके फिर मेरे पास बैठी।
" हाँ।" मैंने कबूल किया। मेरे दोस्त की बहन भी आके मेरे पास बैठ गयी थी।
मीनल उससे बोली , " चल आज इन्हें नचाते हैं ..." और वो दोनों खिलखिलाने लगी।
' कब तक दूर बैठे रहोगे , मजा तो तब है जब मैदान में कूदो।" मीनल बोली।
" एकदम , " मेरे दोस्त की बहन ने उसका साथ दिया। " आज इनको नचाते है तब गुजरात का असली मजा मिलेगा।लेकिन यहाँ तो परमिटेड नहीं है, सिर्फ फाइन आर्ट्स वाले..." वो आगे बोली।
" तो क्या हुआ , आरकी ले चलते है न ना इसको ...और उसके बाद युनाइटेड ...जबर्दस्त मजा आता हैं वहां। " मीनल बोली, फिर फुसफुसा के पूछा,
" तेरी कोई बकिंग तोनहीं हैं ना, ..."
" है ना वो ..." और उसने इशारा किया।
एक लडका बाइक पे बैठा उसे बार बार जल्दी आने के इशारे कर रहा था।
" तू ले जा ना ...वैसे भी ये मेरे भाई का दोस्त है तो एक तरह से तो ..." मेरे दोस्त की बहन मीनल से बोली।
" चल हट ...झूठी ...भाई को तो छोडती नहीं ...भाई के दोस्त का बहाना बनाती है, मैं गप कर जाउंगी इसे तो फिर मत कहना ..." ये कहते हुए मीनल ने जोर से मेरे दोस्त की पीठ पे हाथ मारा।
" उयी ...वो जोर से चीखी ...और बोली, बहोत जोर से मारती है।"
" हे और वो बाइक वाला हलके से मारेगा क्या ..." मीनल ने उसे चिढाया।
" तभी तो जा रही हूँ उसके साथ, जोर से मारेगा ..." वो बोली और दोनों हंसने लगी फिर एक साथ मुड के बोली,
" हे आप सुन तो नहीं रहे थे की हम दोनों क्या बाते कर रहे थे, गर्ल्स टाक नाट फार ब्वायज ..."
" तो अब आप मीनल के हवाले, ये आज आप को बेस्ट गरबा बडौदा के दिखाएगी। ज़रा मुझे कहीं जाना है कोई प्राबलम तो नहीं ."
मुझे क्या प्राबलम होती और वो बिना मेरा जवाब सुने सरक ली।
अब मैं और मीनल ...
रूप और जोबन के साथ उसकी बिंदास और मस्त पर्सनालिटी ...ने मुझे बेभाव खरीद लिया था। साथ में उसके ऐटिट्युद में एक हल्का सा डामिनेन्स ...जो कहते है ना हक़ से, तो वो था।
मीनल ने मेरा हाथ पकड के झटके से खडा किया।
सबसे पहले नवापुरा, वहां से उसने मेरे लिए गरबे की ड्रेस खरीदी और फिर मेरे रूम पे . उसने .आधे घंटे .में मुझे बेसिक स्टेप्स सिखा दिए।
और उसके बाद , तो सारी रात, युनाइटेड,आर्की और ना जाने कितने गरबा ग्राउंड ...शुरु में मुझे जरूर कुछ दिक्कत हुयी ,लेकिन फिर ..मीनल की ताल पे ...सारी रात, और क्या नजारा था, हजारों लडके लडकियां एक ताल पर,...
और जो मैंने सूना था वो भी देखा ....लोग कहते हैं इन नव रातों में यहाँ कनटरासेप्टिव का इअस्तेमाल कई गुना बढ़ जाता है . मीनल की सहेलिया भी ...एक गरबा ग्राउंड से दूसरे के बीच पार्टनर बदल जाते थे।
और जिस तरह से वो आपस में बात करती थी .. सारे इशारे ...लेकिन समझ में मुझे सब आता था।
अगले दिन हम लोग दिन में भी मिले , कमाटी बाग़ में और फिर वो मुझे अपने हास्टल ले गयी, और सारी सहेलियों से मिलावाया, एक दो ने उसे चिढाया भी ..
" हे एक रात के लिए मुझे दे दो,"
वो चिपक के बोलती ..ना ना कापीराईट रिजर्व्ड ...
कैसेट लगा के उसने मुझे फिर और थोड़े काम्प्लिकेटेड ताली सिखाई ..और उस रात मैंने पूरी तरह उस का साथ दिया, शुरु में मंथर गति से फिर पूरी तेजी से ...
मैं 4 दिनों के लिए बडौदा गया था और पूरे 9 दिन रहां,
नौ रात, नव रंग , नव् रस , नव् जीवन ...
गरबा के साथ बीच में ब्रेक में .कभी डेयरी डेन पे आइसक्रीम, कभी फतेह्गंज में स्नैक्स या डिनर ,
यहाँ तक की शरद पुर्णिमा के दिन मैं फिर वापस आ गया।
और उस दिन तो महा रास की रात,धवल छिटकी चाँदनी , कितने जोड़े सब कुछ भूल कर नाचते हुए , थिरकते हए और मैं और मीनल भी,
सिर्फ रस बरसता रहां रात भर
शरद पूनम नी रात माँ ...
मैं जब उस से सब से पहले मिला था तो सिर्फ दो शब्द मालूम थे गुजराती के ... केम छो और खूब सरस ...लेकिन मीनल के साथ बिताए उन पलों ने मुझे बहूत कुछ सिखा दिया था।
हम लोग टच में रहे , वो पढाई पूरी कर के वहीँ इन्डियन एक्सप्रेस में आर्ट करसपाण्डेण्ट हो गयी , और बाद में सिटी एडिटर भी ...
उसकी बहूत सी हाबियाँ थी, कितने एन जी ओ के साथ वो काम करती थी,एक ओळख की किसी से उसने मिलवाया भी था,...
यादों के झुरमुट से किसी तरह बाहर निकला मैं ...और मैंने मीनल को फोन लगाया।
बहूत मनुहार , गिले शिकवे के बाद , बात शुरू हुयी।
मैं सीधे मुद्दे पे आया।
" हे तेरी रेलवे में जान पहचान है क्या कुछ ..."
हंस के वो बोली ..." तुम्हारा सिक्स्थ सेन्स बहूत जोरदार है, बही 10दिन पहले हमारी रेलवे बीट वाली छूट्टी गयी है, वो काम भी मैं देख रही हूँ, चार दिन पहले मैंने के डी आर एम् मिस्टर कुमार का हेरिटेज के बारे मैंने इंटरव्यू लिया था।
" नहीं मेरा मतलब है स्टेशन के लेवल पे और ...स्टाफ में ..." मैंने बात साफ की। और डांट खायी।
" मुद्दे पर आओ ..."
मैं मुद्दे पे आ गया। मैंने बिना भूमिका बताये , टेरर थ्रेट की कहानी बिना बताये सिर्फ ये पुछा, एक पर्टिकुलर ट्रेन से एक पैकेट बनारस से बडौदा गया है उसे ट्रेस करना है, चिमललाल की दूकान का है, "
हंस के वो बो ली " हो जायेगा , लेकिन फीस लगेगी , वहीँ से शापिंग करवानी पड़ेगी।"
" एकदम मंजूर " मैंने भी जवाब दिया और उसको पूरे डिटेल बता दिए।
रीत ने बताया था की बाम्ब मेकर भी एस 6 कोच में सावरमती एक्सप्रेस से ही वहां गया रहा। इसलिए उसकी भी फोटो मैंने मिनल को मेल कर दी।
फिर मुझे और बातें याद आयीं। जो हैकरस ने बतायी थीं और बडौदा के पास के सेट लाईट फोन की ट्रेसिंग से पता चला था। वो जगह जहां आस पास रिफायनरी और फर्टिलाइजर फैक्ट्री ऐसे कई सेंसेटिव जगहें थीं ...वहीँ से कोई सेट्लाइट फोन से बात करता था।
मैंने मीनल को उस जगाह के बारे में भी डिटेल पता करने के लिए कहा।
" श्योर ...वहां पर मैंने पोलुशन के बारे में एक रिपोर्ट भी पोस्ट की थी ...और मेरी एक सहेली है, डी कालोनी में रहती है उसके भाई रेलवे में टी एक्स आर हैं। और रेलवे आफिसर्स कालोनी प्रताप नगर में भी मेरी एक फ्रेंड है, उसके फादर बडौदा डिविजन में किसी सीनयर पोस्ट पे हैं। चेक कर के आज रात को ही बताउंगी। " ये कह के उसने फोन रख दिया।
मैंने फोन रख कर सांस लेने की कोशिश की लेकिन मेरी साँस रुक गयी।
रंजी और गुड्डी दोनों मेरी और आ रही थी तेजी से।
" हे ऊपर चलो ना ..." रंजी बोली
" किसके, " मैंने चिढाते हुए पूछा।
" तुम ना ...तुम्हारे दिमाग में हर समय एक ही बात रहती है। गुड्डी ने हडकाया।
शीला भाभी की साडी तो जबर्दस्त थी, चटक लाल रंग की , एकदम उन्हें पसंद आती। साथ में मैचिंग ब्लाउज भी ...
लेकिन बात अटक गयी थी उस साडी पे जो रंजी और गुड्डी ने देखी थी।
प्याजी गुलाबी रंग की शिफान की, सब कुछ नहीं तो काफी कुछ दीखता है टाइप वाली, ये रंजी का आइडिया था की दोनों होली के शाम साडी पहने, और ये बहूत कुछ प्रभावित था एक पोस्टर पे जिसमें एक माडल ने , वह साडी पहन रखी थी, नाभि दर्शना , नितम्बों के खबू नीचे एक दम कस के बाँधी हुयी,
लेकिन जो आग लगा रही थी , वो थी चोली, आलमोस्ट बैकलेस के साथ, सामने से खूब डीप क्लिवेज, गहरा वी नेक का गला, और ऊपर से स्लीवलेस बस खूब पतले नूडल स्ट्रिंग , दोनों ऊरोज सिर्फ झलक और छलक ही नहीं रहे थे बल्कि बहूत कुछ दिख रहे थे. गदराए उरोजो की आभा दिख रही ही थी और साथ ही काफी कुछ गुलाबी निप्स भी।
बस ये सोच के की रंजी के किशोर अभी विकसित होते, खिलते हुए उभार कैसे लगेंगे इस साडी ब्लाउज में , मेरे रोम रोम खड़े हो गए।
लेकिन तभी मेरे मुंह से निकल गया, लेकिन होली तो परसों हैं , इतनी जल्दी मैचिंग ब्लाउज ...
"अरे तो क्या हुआ, रंजी बिना ब्लाउज के ही पहन लेगी। " गुड्डी ने छेडा।
" मुंह बनाकर रंजी बोली, " ऐसा कुछ नहीं है, तुम्हारे बनारस में होता होगा ऐसा , बाबी टेलर्स है ना अपना, बस लौटते हुए उसे नाप दे देंगे। मैं अपना भी दे दूंगी , तुम्हारा भी दिलवा दूंगीं , ले लेते है। क्यों कैसी लगी ये साडी ." मुड कर उसने मेरी और देखते हुए पूछा।
मैं कुछ बोलता उससे पहले सेल्स गर्ल बोल पड़ी,
" ये बाबी टेलर्स , खास तौर से साजिद के हाथ की फिटिंग , लेकिन उसके यहाँ तो एक महीने की कम से कम लाइन लगती है, वो भी बहोत मक्खन लगाओ तब, "
" अरे औरों के लिए ..मैं तो साजिद से ही करवातीं हूँ, देखना कैसे नहीं देगा कल तक , ' मुस्कराते हुए रन्जी बोली, और साडी ले ली गयी।
हम लोग नीचे उतरे और जींस के स्टाल के पास कैच कर लिए गए। बस वही जो बात मैंने सेल्स गर्ल से पहले की थी। साथ में उनका प्रमोशन मैनेजर भी था।
रंजी को देख के वो बोला,
" आप दोनों केलिए हमारे पास एक आफर है , बहूत ही हाट पसंद ना आये तो मना कर दीजियेगा लेकिन प्लीज एक बार सुन लीजिये ."
:" सुनाइये ना वैसे भी मेरी सहेली कभी किसी को कुछ मना नहीं करती ". गुड्डी ने रंजी को छेड कर कहा।
वो सेल्स प्रोमोशन आफिसर था भी हैन्ड सैम।
रंजी ने घूर कर गुड्डी को देखा।
और वो सेल्स प्रमोशन वाला चालू हो गया।
" ये देखिये ये दोनों जींस आपने ली हैं आप पे कित्ती फब रही हैं ."
बात उस की सही थी।
सारे कटाव, उभार , खास तौर से नितम्बो के ...एकदम साफ साफ दिख रहे थे।
रंजी के तो पिछवाड़े की पूरी दरार साफ दिख रही थी और साथ में दो मस्त मस्त हाफ ग्लोसब्स ...मेरा तो मन करा रहा बस कचकचा के , निहुरा के ...
वो और गुड्डी ध्यान से उसकी और देख रही थीं और उन दोनों के जींस फाड़ते नितम्बो को ....
“ हमें करना क्या है।" रंजी बहुत फोकस्ड थी और सीधे मुद्दे पे आ जाती थी।
" कुछ नहीं, बस कल हमारे दो बहूत मशहूर फैशन फोटोग्राफेर आ रहे हैं वो कल एक शूट करेंगे, हमने सोचा की अगर आप दोनों हैं तो हम बाहर से फैशन माडल्स को क्यों बुलवाएँ , तो बस कल आअप्का एकाध घंटे का समय चाहिए होगा,.
इसी समय कल शाम को , वो आप को शूट करेंगे और उसमे से 3-4 पिक्चर्स, आप से पूछकर , हम डिस्प्ले करेंगे और ज्यादा इंट्रेस्टिंग बात ये है की , हम ये काम सिर्फ 4-5 सेंटर पे कर रहे हैं ...और अगर आप की फोटोज फर्स्ट थ्री में आयीं, जो मुझे यकीं है जर्रूर आएँगी ...
तो एक मशहूर माडल के साथ मुम्बई में डिनर और दो दिन की गोवा में मस्ती,
( उस ने ये नहीं बताया की वो जो फोटोग्राफर हैं , वो ज्यादतर बिकिनी शूट टैप करते हैं और किंग फिशर के कैलेण्डर में असिस्टेंट कैमरा मैन थे। और जिस जींस की उन्हें माडलिंग करनी होगी , वो अल्ट्रा लो राइज जींस है, जिस के एक एक सेट मैंने उन्हें पैक करवा दिए थे ).
दोनों एकदम खुश ...और बिना पढ़े उन्होंने एक अग्रीमेंट पे साइन कर दिया।
ये तय हुआ की कल शाम को दोनों को मैं ले आउंगा।
बदले में जींस वाले ने उन दोनों को काम्प्लिमेंट री शापिंग का कार्ड दिया, 40 % डिस्काउंट जो कई शहरों में अवलेबल था।
शूट के बाद उन्हें और भी गिफ्ट्स मिलने वाले थे।
मैंने वहां किसी से पीछे से निकलने वाले रास्ते के बारे में पूछा तो रजी बोली, अरे मुझे मालूम है ना ..
ये रास्ता एक पतली गली में खुलता था।
आगे आगे रंजी , पीछे मैं और गुड्डी।
मेरी निगाह रंजी के कसर मसर करते बड़े बड़े नितम्बो से चिपकी थी।
गुड्डी मेरे कान में रंजी की और देख के चिढाते हुए बोली, तुम्हे बहूत पिछवाड़े का रास्ता पसंद है ...
संकरी गली , भीड़ भाड़ , धक्का मुक्की, और साथ में होली का असर, बस दो दिन ही तो रह गये थे होली को। दुकानों से ले के लोगों तक सब पर फगुआहट जम के चढ़ी थी।
" इधर से किधर, तुम तो कह रही थी की बाबी टेलर्स के यहाँ जाना है, इधर से कैसे ..." गुड्डी परेशान थी।
" अरे तू चल ना ना बहोत डर हो तो मेरा हाथ पकड़ ले, बस थोड़ी देर आगे चल के वो जो दूकान देख रही है ना रंग की वहीँ से दाये मुडने पे सडक आ जायेगी। शार्टकट है जल्द पहुँच जायेंगे। " रंजी ने समझाया।
" मुझे कुछ छोटे मोटे सामान लेने हैं ...बस वहीँ मोड़ पे मेरा वेट करना।" मैंने दोनों से बोला।
" एकदम हंसतेहुये रंजी बोली और डरिये मत आपकी इस बनारसी गुड्डी को कुछ नहीं होने दूँगी , एकदम सेफ एंड साउंड वापस करुँगी ." रंजी बोली। और हंसती खिलखिलाती दोनों किशोरिया भीड़ में खो गयीं।
मैं पीछे से निहारता रहा हाई हील, एकदम टाईट जीन्स में रंजी के चूतड कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे। या शायद उसे मालूम था की मेरी लालची निगाहें वहीँ चिपकी हैं।
लोग कहतेहैं की लड़की जिस दिन जवान होना शुरू होती है उस की एडी में आँखे आ जाती हैं।
रंजी पर तो जवानी फूटी पड रही थी। तो उसके तो हर अंग में आंखे उग आई थीं , इस बात की प्यासी की कोई उस की नई आ रही जवानी को माने जाने और चाहे , सराहे।
एक बार उसने कुछ ज्यादा ही अपने भारी किशोर नितम्बों को मटकाया ..और एक पल के बाद ही मुड कर देखा।
और उसकी निगाहीं ने मेरी चोर निगाहों को गिरफ्तार कर लिया।
लेकिन आँखों के खेल का क़ानून और इन्साफ कुछ अलग है।
मुस्करा के उसने एक जोर दार फ्लाइंग किस दिया , जिसे मैंने कैच कर लिया।
दोनों से पीछे रहने के मेरे दो कारण थे।
पहला तो ये की मुझे लग रहा था, की जिस तरह पारलर वाली ने और फिर माडर्न ड्रेस ने गुड्डी रंजी को बदला था , कोई पीछा करने वाला उनको पहचान नहीं सकता था अब दोनों बग फ्री भी हो गयी थीं। वो मेरे कारण पहचानी जा सकती थीं लेकिन वो भी मेरे दूर रहने से मुश्किल था।
मैंने ऊपर से एक दूकान से निकलते समय प्रमोशनल बेस बाल कैप था वो लगा लिया था। चाल बदलनी मेरेलिए कोई मुश्किल बात नहीं न थी। फिर मुझे लग रहा था की अब वो कथई सूट वाला जो गुड्डी और रंजी के उपर उसने बैग प्रहार किया था , उस के जरिये ही ट्रेस कर रहा होगा।लेकिन वो सारे बैग कपड़ों के साथ गंगा स्टोर में ही रह गए थे। इस लिए उसे यही इन्फो मिल रही होगी की हम सब दूकान में ही हैं।
दूसरी बात की अ गर वो खुद या उस का कोई गुर्गा , दूकान के बाहर होगा तो वो हमारे में गेट से निकलने का वेट कर रहा होगा। इस लिए हम लोगों ने मेरा विशवास था उस से पीछा छुड़ा लिया होगा।
और दूसरा कारण ये था की मैं ज़रा देखना चाहता था की , मेरे अलग होने से ये दोनों पब्लिक में मस्ती कैसे करती हैं। मेरे साथ रहने पे दोनों मुझसे ही उलझी रहती .... और कुछ देर में ही मुझे वो नजारा मिल गया।
रन्जी गुड्डी का हाथ पकडे घनी भीड़ से ले जा रही थी। तब तक पीछे से तीन चार कालेज के लडके आये। और उनकी चाल ढाल से मुझे लग गया की अब क्या होने वाला है।
वो हाथ अपने सीने पे क्रास कर के रखे हुए थे। एक गुड्डी के बगल से दरेरता हुआ गया और जब तो वो सम्हले सम्हले , उस का हाथ सीधे गुड्डी के जोबन पे, और टाप फाड़ते उभार को कस के उसने दबा दिया। दूसरे के हाथ गुड्डी के नितम्ब पे थे।
यही नहीं उसने दोनों को सुना के डायलाग भी बोला,
" जगह पाने के लिए हार्न बजाएं।"
ठीक ही तो कह रहा है वो ...रंजी ने और जले पे नमक छिडका।
" चल बनारस चलेगी ना तो बताउंगी। " गुड्डी बोली। पर रंजी कौन पीछे रहने वाली थी।
अरे देख लूँगी यार तेरे बनारसियों को भी , बनारस के गन्ने का रस चूस के पी जाउंगी वो भी बिना दांत वाले मुंह से।"
तब तक कुछ और लडके पीछे से आये और अबकी रंजी निशाने पे थी।
एक ने पीछे से ही उसके उभारों को धर दबोचा और दूसरे ने जींस फाड़ते , पिछवाड़े के उभारों को कस के सहला दियाऔर रगड़ते उसको दरेरते आगे निकल गए .
अब गुड्डी , की बारी थी चिढाने की
" क्यों क्या बहूत जोर से दबा दिया।"
लेकिन रंजी तो रंजी थी। उसने पलट के अपनी बडी बड़ी आँखों को नचाते हये , जवाब दिया।
" अरे तो क्या हुआ, मेरे ही शहर वाला तो था, फिर होली में चोली का मजा ना लेगा तो कब लेगा।"
रंजी ने सही कहा था। माहौल पूरा होली का था। हवाओ में मौज मस्ती बह रही थी, चारो और रंग का खुमार था। मस्त भोजपुरी गाने बज रहे थे, दुकानों पर होली के सामान, रंग अबीर गुलाल, ज्यादातार आदमी। कालेज के लड़के , कमेन्ट मारते , एक दो के हाथ में तो रंग भरे गुब्बारे भी थे,....
और ऐसे माहौल में दो किशोरियां, बाला जोबन ,
बस उभरते हुए उभार, और नए आये योवन का अह्स्सास, टाईट शोल्डरलेस टाप , जिससे कन्धों की गोलाई और गोराई तो दिख ही रही हो,कमसिन उरोजों की गोलाई भी छलक रही हो, टाप ऊपर से जोबन के बीच की गहराई को दिखाता और नीचे से नाभि के ठीक ऊपर ख़तम होकर , गोरी चिकनी , मुट्ठी में आ जाय ऐसी पतली कमर को दिखाता और जीन्स भी एकदम टाईट , नितम्बो के भराव कटाव को दिखाती, ललचाती, कसी इतनी की पूरी की पूरी दरार साफ दिखती ....कसर मसर करते दोनों चूतड ...
और उपर से बिजली गिराती शोख अदाएं , कोई लड़का कुछ भी कमेंट मारता , रन्जी जवाब जरूर देती, बिना बोले, झटक के कभी अपने बालों को , कभी आँखों से गोली मार के , कभी अपने रसीले होठों को हलके से काट के और कभी जुबना को उभार के , उचका के ...
इस के बाद बिचारे लड़कों को कौन ..दोष दे सकता है ...
एक ने पीछे से कमेन्ट मारा ..अरे दोनों टंगिया के बीचे सटल रहेला , अरे दोनों जांघिया के बीचे सटल रहेला, अरे टाईट जींस के भीतर कसल रहेला ..
रंजी ने मुस्करा के मुड के पीछे की और देखा जिधर से कमेन्ट आया था और हलके से अपने भारी भरी नितम्बों को एक जुम्बिश दे दी।
तब तक किसी ने एक भोजपुरी गाना लगा दिया , होली का ..
.भितरवा में डललि, जींस के भीतर में , भीतर वाला हीटर में ...डलली
किसी और ने दूसरा गाना छेडा ...
अरे जींस ढीला कर देली,
रंजी और गुड्डी ने अपनी स्टाइल से उसका भी जवाब दिया।
मैंने दोनों की नज़रों से बचते आगे निकल गया रंग की दूकान पे , भाभी और मंजू दोनों ने रंग के लिए कहा था और जब मैंने कहा था कितना तो मंजू ने अपने अंदाज में बोला था , अरे एक पाँव तो तोहरी उ ऐलवल वाली की भोंसड़ीये में समय जायेगी और ...एक पाँव तोहारी गांड में ...बाकी तू अंदाज लगाय ला, :
और मैंने उस ऐल्वल वाली यानी रंजी की और देखा ..
और जो मैं डर रहा था वही हुआ ..दो थोड़े छैले टाइप लडके, रंजी और गुड्डी का आलमोस्ट रास्ता रोके खड़े थे,
एक ने रन्जी को देख के बोला , अरे दे दा होली के दान हो टाईट जींस वाली ...
और जो उसका चमचा सा लगता था, लाल टी शर्ट में , हाथ में पिचकारी लिए हुए गुड्डी की और इशारा कर के एक कबीर बोला,...
और जो उसका चमचा सा लगता था, लाल टी शर्ट में , हाथ में पिचकारी लिए हुए गुड्डी की और इशारा कर के एक कबीर बोला,...
" अरे चिवडा करे चुरूर चुरूर, दही लपालप, अरे दही लपालप।
टाईटजींस वाली बोले , अरे रजउ, डाला गपा गप हो डाला गपागप।
टंगिया उठाय के पेलब हम जाई सटा सट, हो जाई सटा सट।
हो कबीरा सर्र सर्रा रा हो कबीरा सर्र सर्रा रा,
रन्जी उन दोनों की और मुड़ी और जिस लडके ने उसे छेडा था उसे पहचान कर चौक कर बोली, अरे तुम।
और उस ने भी रन्जी का हाथ कस कर पकड़ लिया और बोला ऐसे ड्रेस में आज बाजार में आग लगाने का इरादा है क्या ..
रन्जी ने टाईट टाप में छलकते उभारों को और उभार के बोला, तुम बचे रहना।
उसने अपना दूसरा हाथ रंजी के कंधे पे रखा और बोला,
"इसलिए तो पानी से भरा पाइप मैं हमेशा तैयार रखता हूँ , तुम कभी मौका ही नहीं देती ".
" जा ज्जा ...वो है ना एक सारा पानी सोख लेगी ..." रन्जी ने भी शोख अंदाज में जवाब दिया।
.
गुड्डी उन दोनों को देख रही थी। कौन है जो रंजी से इस तरह लस रहा है ...रंजी ने ही पहल की।
गुड्डी से वो बोली, " हे ये ,मेरी एक बहोत क्लोज फ्रेड के भाई हैं , और ये,...
तब तक गुड्डी ने खुद आगे बढ़ कर उस से हाथ मिला लिया और बोली,
'मैं गुड्डी हूँ , बनारस से आई हूँ आप के शहर की होली का मजा लेने, और आप इस की सहेली के भाई है तो मेरे भी भैया हुए ना , क्यों भैया।
" अरी नहीं री , बच के रहना ये वो वाले भैया है जो दिन में भैया और रात में सैंया हो जाते हैं।"
रंजी ने छेडते हुए कहा।
" एकदम गलत ..." वो बोला। " फागुन में दिन रात दोनों समय ...सिर्फ सैंया ..."
" ठीक है ...भैया ..." गुड्डी भी उसी अंदाज में बोली।
" तू बचेगी नहीं ..." रंजी मुस्कराकर बोली।
" बचना कौन चाहता है, वो भी होली के मौके पे ..." अब गुड्डी का मौक़ा था अपने किशोर जोबन को हलके से उभार के ललचाने का।
वो रन्जी से चिपका हुआ था और गुड्डी उसके साथी से जो हाथ में पिचकारी पकडे हुए था।
उस लडके का हाथ रंजी के कंधे से सरक के उभारों को हलके से सहला रहा था।
और गुड्डी उस के साथी को छेड़ रही थी।" बड़ी मोटी पिचकारी है।"
" तभी तो मजा आयेगा जब मोटा अन्दर जायेगा, चरचराता,...खूब परपराएगी,...."
" अरे ज्जा , पिचका दूँगी तेरी पिचकारी, सारा रंग सोख लुंगी ..."गुड्डी ने आँख नचा के जवाब दिया।
मैं दकान पे रंग ले रहा था और सारा नजारा देख रहा था। वो दोनों चली और रंग ले के मैं उनके पीछे पीछे ...
" तो क्या वो सच्ची अपनी बहन के साथ ..." गुड्डी रंजी से फुसफुसा के पूछ रही थी।
" और क्या,...खिलखिलाते हुए रंजी बोली। रोज बिना नागा ...कभी दो बार कभी तीन बार ...वो खुद आके बांटती है सबको, साल भर से ज्यादा हो गया, ..आज कल उस के पैरेंट्स कहीं बाहर गए हैं ...इसीलिए तो वो कह रहा था की आज कल दिन रात ...सैंया ही रहता है,"
" सीखो सीखो ...उस की पीठ पे जोर से धौल मारते हुए गुड्डी बोली, एक वो तुम्हारी सहेली और एक तुम ...वो बिचारा तुम्हारा कजिन ...उस बिचारे को ज़रा सा लिफ्ट भी नहीं दे सकती .."
"बिचारे की बिचारी ...मैं उसे लिफ्ट नहीं देती या वो लिफ्ट नहीं देता ..सीधा बनने के चक्कर में .." मुंह फूलाकर रंजी बोली।
" एक बार हाँ बोल के तो देख ..." गुड्डी ने रंजी को , समझाया।
" अरे हाँ नहीं बोला ...तो मैंने कभी ना भी तो नहीं बोला, " रंजी बोली।
उन दोनों के बिना देखे मैं पीछे आ गया और रंजी की मुट्ठी भर की साइज की कमर पकड़ ली और बोला
" ये क्या हाँ ना ...हो रहा है।"
रंजी ने पीछे मुड कर देखा और अपने गुलाबी लिपस्टिक से दहकते होंठ मेरे इयर लोबस पे रगडते हुए धीरे से बोली, " हाँ हाँ हाँ "
गुड्डी बड़ी मुश्किल सेअपनी मुस्कराहट रोक पा .रही थी। मेरे पीछे एक हाथ जमाते हुए वो बोली ,
" तुम दोनों ना कहीं भी चालू हो जाते हो।
बिना मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना रंजी हंस के बोली, " हे कहीं से कुछ जलने की बदबू आ रही है ना,...अरे थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी, कभी भी।
कहाँ चले गए थे तुम… दोनों ने एक साथ सवाल दागा।
" रंग लेने और भूल गयी भाभी और मंजू ने कित्ती लम्बी लिस्ट पकडाई थी।" मैंने जवाब दिया और उलटा सवाल पूछा
" ये तुम्हारा बाबिज अब कितनी दूर है, "
सामने मोड़ पर उस का बोर्ड दिखाई दे रहा था।
तुम दोनों चलो मैं बाहर ही वेट करता हूँ ..मैंने कहा।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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