Sunday, March 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--78

FUN-MAZA-MASTI

 फागुन के दिन चार--78
गतांक से आगे ...........


रीत और रेहन

रेहन ने रीत का टावेल खीचने की कोशिश की लेकिन रीत दूर छटक कर चली गयी और उसे चुप रहने का इशारा किया।

रेहन समझ गया मामला कुछ और है .

कार्लोस नहीं था, लेकिन रीत अब अच्छी तरह समझ गयी थी की ...बाहर रूम में कैमरा है और कोई वाच कर रहा है . इसलिय वो हांक कर रेहन को बाथ रूम में ले आई रेहन को उसने सारी बात अच्छी तरह समझा दिया

....किस तरह उन लोगो ने ये पता किया की कोई मेसेज इन आप्रेटिव्स के पास आया है , खाने के बहाने , कैसे उसकी बाइक वहां रखी है जो गेट अवे वेहिकल की तरह इस्तेमाल होगी। और कैसे जेड के पास से कोयी मेसेज नहीं आ रहा अहै इसलिए उसे वाच करने कार्लोस गया हुआ है।

उसने रेहन को सावधान भी कर दिया की दुशमन बहोत क्लोज वाच कर रहा है ...नीचे उनका एक आदमी है और इस कमरे के अन्दर भी उन्होंने कैमरा लगा रखा है, वो रूम में काल गर्ल की तरह ही बिहेव करेगी लेकिन साथ ही साथ उन दोनों को एलर्ट रहां पडेगा क्योंकि अब उन्ही के ऊपर सारा मामला टिका है।

जब दोनों बाहर आये तो दोनों टावेल में थे और दोनों के बाल भीगे थे।

रीत ने उसे लैप टाप में आती फीड दिखाई। रेहन तो महा ठरकी था और मौके का फायदा उठाने में उस्ताद

...उसने अपना एक हाथ रीत के कंधे पे रखा और लैप टाप देख कर ऐसे बोल रहा था ..जैसे कोई ब्लू फिल्म देख रहा हो, .. रीत के उभारको हलके से दबाते वो बोला , तेरा माल तो उस साल्ली से भी मस्त है ..और टावेल थोड़ी सी नीचे सरका दी।

" ये मालामाल रीत का माल है, कोई मजाक नहीं ...रीत बिना टावेल ठीक किये बोली।

रीत उसे इलाके का नक्शा दिखा रही थी और ये समझा रही थी की जेड के वेयर हाउस कहना लोकेटेड हैं।

साथ साथ वो बाहर खिडकी से देख रही थी। सड़क हलकी हलकी सूनसान हो रही थी .
उसने रेहन के टावेल को थोड़ा ऊपर कर दिया . अब उसका मूसल साफ दिख रहा था .
हंस के वो बोली ..सिर्फ तुम ही टावेल सरका सकते हो और धीरे से उसक ईअर लोबस को किस कर के कहा ,

वो जो ठरकी तुम्हारा मूंगफली बेच रहा है ना उसे हटा दो ...उसके आसपास के सारे ठेले वाले दूकान बंद कर जा रहे है। वो अकेला रहेगा तो किसी को शक होगा ...
रेहन के कान रीत की बात सुन रहे थे लेकिन एक हाथ ने अब टावेल मस्त उभार के ऊपर से पूरा हटा दिया था।
'भेजू कहाँ उस को ये भी तो बता ..." रीत के कानों को किस करते हए उसने पूछ लिया।


किसी पिक्चर हाल के अन्दर ..ये सब मुझे शक है की साढ़े बारह बजे के पहले नहीं निकलेंगे ...उन सबो को इन दो चौराहों पर रहने के लिए मेसेज दो और मोटर साइकिल के बारे में बताओ ..वोइशारे से हमें बता सकते है की मोटर साइक्लि किधर जा रही है इन चार वेयर हाउस में से ही कोई जगह होगी।


रीत ने सम्झाया लेकिन रीत की शरारती उंगलिया अब रेहन के हथियार को आजाद कर उसे बर्थ डे विश कर रही थी।

हे मन कर रहा है ...रेहान ने बोला कब ता इस गरम गरम पिक्चर को देखते रहेंगे ...करो ना कुछ
रेहन बोला।

और वो दोनों कवर के अन्दर घुस गए .
अब दो जवान अंडर कवर एजेंट, कवर के अन्दर क्या कर रहे हैं ...ये देखना हम सबके लिए ठीक नहीं हां इसे मैं सुधि पाठक पाठिकाओं के ऊपर छोड़ देती हूँ और थोड़ी देर बाहर चलती हूँ।

बाहर एक मूंगफली वाला अपना ठेला लेकर एक पिक्चर हाल के बाहर जाकर खडा हो गया और इंटरवल के बाद हाल में घुस गया।
यही काम एक बगल के छोटे से हाल में , जहां एक मलयालम पिक्चर दिखायी जा रहा थी , वहां इ चाय वाले ने किया।
सड़क लगभग सूनी हो गयी थी।
कमरे में अचानक रीत कवर से बाहर निकली।

उन दोनों के टावेल्स फरश पे पड़े हुए थे।
रीत ने उसे फीड दिखाई और बोली , गड़बड़
रेहन समझ गया था .
" देखो ये जो सो रहे हैं ..ना पिछले 20मिनट से कोई मोशन नहीं हुआ , ना उन्होंने करवट बदली ...तो इसका मतलब पंछी उड़ गया ..." रीत ने पीछे के कैमरे की फीड खोली ..

तब तक लाईट चली गयी ..पूरे इलाके की ..

और साढ़े 12 बज गए ....

सारे सिनेमा घर एक साथ खाली हुए और ढेर सारी भीड़ बाहर निकली।

तब तक

एक तेज मोबाइल का अलार्म ऐसा आवाज ...लैप टाप से हुआ जहां फीड आ रही थी।

भागो 5 मिनट के अन्दर रीत बोली।
उसे अँधेरे में सब कुछ करने की आदत थी .

रीत ने अपना कैट विमें की ड्रेस पहन ली , वो बुलेट प्रूफ कलवार की बनी थी और उसके अन्दर उसने कुछ भी नहीं पहाना . वो बस एक सेकंड स्किन की तरह उसके ऊपर थी, चिपकी।


अपने बैग में से निकाल कर उसने अपनी ग्लाक पिस्टल ड्रेस में राखी और वो वन टाइम मोबाइल और भी कुछ चीजें ...
रेहन ने अपनी ब्लैक जींस और शर्ट पहन ली।

दोनों ने नाईट विजन ग्लास लागए और चहरे पे कैमोफ्लाज पेंट ...

और एक साथ बहार निकल कर ...फायर एस्केप की सीढी से उतर आये, ...

 रीत की रात

 काले कैट सूट में, उसके सारे उभार , कटाव साफ दिख रहे थे। स्पेण्डेक्स का ये सूट, जेण्टायी काला कैट सूट रीत की देह से एकदम चिपका था। और उसके नीचे कुछ भी नहीं, सिर्फ उसका संदली जिस्म, छलकते मचलते उभार . उसने फुल फ्रंटल ज़िप बंद किया।

ये सूट रीत के पैर से लेकर सर तक था। यहाँ तक की इसमें जूते भी इनबिल्ट थे। नीचे जूतों और हाथ में दस्तानो में इन बिल्ट वैक्यूम पैड्स थे , जो दीवाल से चिपकने , चढने में मदद करते थे। स्पैन्देक्स के साथ उसमें हाई टेंसाइल स्ट्रेंथ के केवलार के फाइबर थे, जो इसको बुलेट प्रूफ , नाइफ प्रूफ बनाते थे।

रीत ने बैग से फिर अपनी आरमरी निकाली। ग्लाक 32, छोटी नाइव्स ,ब्लो पाइप और भी ...और तीन वन टाइम यूज वाले फोन ...और वो उसने देह से दूसरी स्किन की तरह चिपकी कैट सूट के कंसील्ड पाकेट्स में रखे।

नाईट विजन ग्लास लगाया और कैमोफ्लाज पेंट उसने रेहन के चेहरे पे लगाया। काले कैट सूट और काले नाईट विजन ग्लासेस के बाद सिर्फ रीत के गोरे गोरे गाल बचते थे , जिन्होंने बनारस के सारे लडकों की नीद उड़ा रखी थी और ना जाने कितने फिसल चुके थे। अल्ट्रा फ्लैट, नान रिफ्लेक्टिव पेंट उसने खास कर उन गलियों को सोच कर चुना था और रेहन ने उसके चेहरे पे स्ट्राइप्स की तरह पेंट कर दी।

अंत में उसने दो इअर पीस वाले हेड सेट निकाले और एक खुद लगाया और एक रेहन को दे दिया। ये वो इयर पीस थी जो सीक्रेट सर्विस के लोग यूज करते थे और जिसे कोई भी जामर , जाम नहीं कर सकता था।और जिसकी रेंज 2 किलो मीटर थी। रीत ने कितनी बार इसकी प्रक्टिस की थी अँधेरे में सारे ड्रेस को चेंज करने की ...और वो हमेशा 3 मिनट से कम में तैयार होती थी।

आज उसे 2.2 मिनट ही लगा।

इसी बीच रेहन ने तकिये चादर के नीचे लगाया इस तरह की कैमरे से भी ये लगे की दो लोग एक दूसरे से लिपटे चिपटे , एक दुसरे पर चढ़े लेटे हैं। रेहन ने फिर फिर लैप टाप और बाकी चीजे उस बैग में डाल दिन जो रीत लायी थीं। सब कुछ उस ने समेट दिया।

रीत अब ध्यान मग्न थी।

सिर्फ दो मिनट के लिए, उसने आँखे बंद की और कुंडलिनि योग शुरू किया, मूलाधार चक्र से ऊपर की ओर ...इडा , पिंगला ..स्वाधिष्ठान, मणिपुर से होते हुए विशुदध के स्तर तक, जो गले तक था ...( उसके ऊपर अभी उसे सफलता नहीं मिली थी ...लेकिन इतने से ही वह महती ऊर्जावान हो गयी थी )...

उसकी सारी इन्द्रियां जागृत हो गयीं थी ...अतीन्द्रिय ...उसकी छठी इन्द्रिय . एकदम सक्रिय हो गयी थी। फिर रीत ने पल भर के लिए काशी के कोतवाल . भैरव को स्मरण किया।

आज वह उनकी सिपाही थी। यह हमला , महादेव के नगर पर ही तो था और आज उसके साथ काशी के सारे भैरव और बीर का आशीर्वाद था। अष्ट भैरव् काशी के पहरेदार है, उसने याद किया ...और फिर सभी महाविद्याओ को ...वह ऊर्जा से परिपूर्ण थी।

अब वह रोज की रीत नहीं थी, वह एक अस्त्र थी दुश्मन को समूल नष्ट करने के लिए ...
5 मिनट हो चुके थे।

रीत ने योजना यही बनायी थी की वार्निग बेल के 7 मिनट के अन्दर उन्हें नीचे पहुँच जाना था और वो आप्रेटिव्स को इंटर सेप्ट कर उनका पीछा कर सकते थे

निकलते हुए रेहन ने वह बैग जिसमें लैपटाप और बाकी पेपर्स थे , एक गार्बेज बिन में डाल दिया और अपने एक ठरकी को मेसेज दिया की वो एक घंटे बाद उसे निकाल लेगा।

फायर एस्केप से पहले रेहन , उसके पीछे रीत उतरी।
दोनों दीवाल से एकदम चिपके हुए निकले।

आज मौक़ा कितना अच्छा था, हम तुम एक कमरे में , एक चद्दर के नीचे ..." रेहन फुसफुसाया।

ये उसका कब का सपना था जब से उसने रीत को पहली बार बस में देखा था , स्कूल यूनिफार्म में ..

और आज उन दोनों के बीच कपडे की कोई दीवार भी नहीं ....उसके हाथ रीत के किशोर उभारों पर टहल रही थीं , जिससे कवर के बाहर जो उन लोगो पर निगाह रखने वाला कैमरा था , वो वही सोचे जो वो उसे सोचने देना चाहते थे।
वो रीत की हालत समझ सकता था।

उस की एक निगाह फीड पर लगी थी। दिमाग में कितनी प्लानिंग घूम रही थी और साथ में वो इस बात का पूरा अभिनय भी कर रही थी।की अगर कोई कैमरे से देख रहा हो , तो चद्दर के अन्दर की उछल कूद से यही समझे क दो प्यासे जिस्म मिल रहे हैं

साथ में रीत बीच बीच में जोर जोर से सिसकियाँ भी निकाल रही थी , कभी चीख भी देतीकी अगर कोई कैमरे से देख रहा हो , तो चद्दर के अन्दर की उछल कूद से यही समझे क दो प्यासे जिस्म मिल रहे हैं

लेकिन रीत ने उस के तन्नाये बेकरार हथियार को अपने कोमल किशोर हाथ में ले मुठीयाते हुए प्रामिस भी किया,

मिलेगी यार, ये भी मिलेगी और रंजी भी मिलेगी। उसे तो तुम और तुम्हारे ठरकी लेते लेते थक जायेंगे , वो देते देते नहीं थकेगी। तुम क्या सोचते हो हम लडकियां हाड मांस की नहीं बनी होती , हमारा मन नहीं करता लेकिन पीला जरा इन साल्ले हरामियों की मुझे क्लास लेने दो फिर देखना , सारे 84 आसन ट्राय करुँगी। निचोड़ के सारा रस ले लुंगी ...लेकिन अभी बस एक काम ...और वो हो जाय तो फिर काम ही काम ...

वो दोनों अँधेरे में दीवाल से पीठ सटा के चल रहे थे। लाईट अभी भी नहीं आई थी।

रेहन सोच रहा था ...ये रीत भी ना ..क्या क्या सोच लेती है।

ये इसी ने सोचा की आतंकी जब पिक्चर ख़तम होगी तब निकलने की कोशीश करेंगे। ये तो साफ था की , जो डिलीवरी वाले ने बाइक छोड़ी थी वही उनकी वेहिकल होगी।लेकिन एक बार आखीरी शो की क्राउड निकल जायेगी , तो इन सडकों पर सन्नाटा पसरा रहता है।

और वैसे मैं अगर कोई बाइक निकलेगी तो पी सी आर के गाड़ियों की नजर में जरूर आ आएगी। इसलिए वो साढे बारह बजे , जब पिक्चर का शो ख़तम होगा तभी निकलेंगे।

रीत ने तो यहाँ तक कहा था की उस डिलीवरी ब्वाय ने जो कागज उन्हें दिया था वो निश्चित रूप से फ़िल्म का टिकट ही होगा, जिससे अगर कोई रास्ते में उन्हें रोके तो वो उसे दिखा सकें।

रीत ने कार्लोस को ये बोला था की वो गेट अवे वाली बाइक पर एक अलार्म डिवाइस लगा दे जिसे वो फीड से लिंक कर दे। उसने वही किया , इसलिए जब उन आप्रेटिव्स ने अपनी बाइक स्टार्ट की तो उन के कमरे में बहूत तेज अलार्म बजा। रीत ने उसे कवर करते हुए बात बनायीं और जबर्दस्त सेक्सी अंगडाई के साथ चादर खोल दी।

उस के उरोजों पर रेहन के नाखून के निशाना साफ दिख रहे थे .
रीत बोली , हे बेब योर टाइम इज अप एंड ...क्या मस्त हथियार है तुम्हारा अगली बार फिर आना। मैं ये अलार्म इसलिए सेट कर देती हूँ की कोई ओवर स्टे न करे . और फिर रीत ने पूरी चादर खोल दी और उसके हथियार को पकड़ कर बोला,
" यु नो आई लाइक इट ..लेकि अब दो बार ये नाग नाथ विष वमन कर चूका है, और अब जाओ इसे दूध वुध पिलाओ ..नीचे दूसरा कस्टमर वेट कर रहा होगा ..धंधा मतलब धंधा। "

कार्लोस ने एक और काम किया था। उसने बाइक के साइलेंसर में थोड़ी उंगली कर दी थी, जिससे बाइक की आवाज अब दूर तक आराम से पहुंचेगी और बीच बीच में थोडा खांसी जुकाम भी उसे होगा।


लड़कियों और बाइक दोनों को उंगली करने में , कारलोस का कोई जवाब नहीं था।


लेकिन लाईट चली जायेगी, ये रीत ने भी ऐन्तिसिपेट नहीं किया था।

इसका मतलब की उन बन्दों को सपोर्ट प्रोवाइड करने वाले ग्रुप ने , कहीं से इस इलाके की लाईट ट्रिप कराई थी। रोशनी में आई बी के चार लोग , जो होटल और उस इलाके को वाच कर रहे थे , उन्हें देख सकते थे , लेकिन अँधेरे में कम से कम होटल से बाहर निकलने में उन्हें बहोत आसानी हुयी होगी।

तभी लाईट आ गयी।

सिनेमा हालों से निकलने वालो की रफ्तार थोड़ी तेज हुयी।

कहीं रिक्शे वाले जानेवालों से हुज्जत कर रहे थे। कहीं लोग पैदल ही बढे चले जा रहे थे। पार्किंग में भी बाइक निकालने वालों में होड़ लगी थी।

दुकाने बंद हो चुकी थीं। एकाध चाय के ठेले लगे हुए थे , इस उम्मीद से की शायद निकलने वालों में कोई चाय वाय पीने वाला हो, लेकिन सब अपने रास्ते की जल्दी में थे और अब चाय वाले भी अपनी दुकाने बंद कर रहे थे। थोड़ी देर में ही , भीड़ थोड़ी हलकी पड़ने लगी। रिक्शा, पैदल साइकिल, बाइक सब एक साथ जल्दी में ...यहाँ लेन वेन कोई ना पूछने वाला था ना सड़क पर उतनी जगह थी।

रीत अब सडक से मुड के गली में दाखिल हो गयी थी। यहाँ रोशनी काफी कम थी। संकरी गली में चांदनी रुक रुक कर आरही थी। कुछ मकान रोशनी रोक रहे थे और स्ट्रीट लाईट भी गली के बस दोनों कोनो पर थे , जहां सोडियम लैम्प्स की बीमार पीली रोशनी , छोटे छोटे दायरे बना रही थी।

रीत काले ब्लैक कैट सूट में दीवार से सट के अँधेरे से आपने को कवर करती चल रही थी। जैसे बरसात में कोई लड़की , फ्राक को उठा के, सड़क पर पानी के गढो से बचती , छपाक छपाक चलती है और तब भी पानी के छींटे पड जाते है , बिलकुल वैसे तब भी रोशनी की एकाध किरण उस पर पड ही जा रही थी।

ऐसे ही गली से निकले हुए एक पल वो ठिठकी।
उसे अभी तक एक भी आई बी का आदमी नहीं दिखा।

एक आई बी वाला उसके हिसाब से यही कही होना चाहिए था। यहाँ से जहा वो आपरेटिव रुके थे वो जगह साफ दिखती थी और जहां वो कार्लोस और रेहन के साथ थी वो भी। खिड़की से उसने उसे देखा भी था। हर 15 मिनट पे वो यहाँ से गुजरता था।

एक दीवाल के सहारे सट कर उसने चारो ओर का नजारा लिया।
बस हलकी सी रोशनी थी चारो ओर ...और किसी आदमी का निशाँ नहीं।

उसे एक पान की गुमटी दिखी, जो बनारस में आम बात थी। लेकिन उसके नीचे की मिटटी पर कुछ घिसटने के निशाँ दिखाई दिए।
उसने रेहन को इयर पीस पर ...थोडा तेज होने को बोला।


रेहन उसके 250 मीटर पीछे चल रहा था उसका रियर कवर करते हुए,....

रीत पहले बहोत धीरे धीरे अपने घुटनों के बल बैठ गयी ...एक बार उसने चारो ओर देखा ...कोई देख तो नहीं रहा है।
और फिर उसने धीरे से निगाह दूकान के नीचे डाली ...

एक जोड़ी टाँगे ..ट्राउजर्स में ..स्पोर्ट्स शूज ...

वह दहल गयी।

उसने रेहन को रुकने को कहा।

रेहन 50 मीटर पीछे खड़ा होकर उसे कवर कर रहा था। उसके हाथ में हेकलर एंड कोच ( एच के पी 8) हैण्ड गन थी। वो तीन सेकेण्ड में अपनी गर्दन चारो और घुमा कर देख रहा था।

रीत उसी तरह घुटनों पर बैठी सरकती थोड़ी और नजदीक गयी ...

अब उस का धड तक का हिस्सा दिख रहा था।
न कोई खून , ना बुलेट या नाइफ वूंड ...
उसके सीने में हलकी सी जुम्बिश हो रही थी।

रीत समझ गयी ...वो सिर्फ बेहोश है ...किसी ने या तो कराते चाप से गले पर या किसी भारी चीज से पीछे से से उसके माथे पर मारा है और वो काफी देर के लिए बेहोश हो गया है।

रीत ने इशारे से रेहन को आगे बढ़ने को कहा।

रेहान करीब 100 मीटर आगे बढ़ कर रुक गया। हैण्ड गन उसके देह से चिपकी थी।

अब रीत उसे पीछे से उसी तरह घुटनों के बल बैठी कवर कर रही थी।

रीत की लम्बी गर्दन उठी हुयी थी और वो धीरे धीरे रेहन के पीछे चारो तरफ देख रही थी।
20 सेकेण्ड में रेहन ने इयर पीस में बोला , कोई नहीं ...

इसका मतलब ..चारो के चारो आई बी एजेंट ...इसी तरह किसी दूकान के नीचे, या पीछे ...बेहोश पड़े होंगे।

और अब सुरक्षा चक्र का अंतिम घेरा भी टूट चुका था।


लेकिन रीत के पास अब चिंतित होने का भी समय नहीं था।
मोटर साईकिल की आवाज अब पास आ रही थी।
भला हो कार्लोस ...या उसकी जादुई उँगलियों का ...ये आवाज तेज भी थी और बाकी बाइक से अलग भी ...

रीत के दिमाग का जी पी एस काम कर रहा था।
उसके हिसाब से वो चारो वेयर हाउस जो जेड के थे, इन्ही गलियों में थे लकिन सवाल ये था की अब बाइक बाएं मुड़ती है की दायें।
और अब वो पहले से उस गली में पहंच जाना चाहती थी, जहां उनका नेक्स्ट टर्न हो, वो उन्हें बाइक के साथ एक बार देखन चाहती थी।
तभी एक आवाज सुनाई पड़ी जैसे किसी रिक्शे वाले को बोल रहा हो,
" अरे मर्दवा ...बोलले रहली ना ...बाए चले का हो ..."

ये आवाज रेहन के एक ठरकी की थी। और कोड था जो वो बोलेगा उसका उलटा ...
यानी बायीं ओर, उस ओर ...दो वेयर हाउस थे ..संकरी गलियों में ...

रीत के पैरों में पंख लग गए .
उसे उन गलियों का का कोना कोना मालूम था।
अब रेहन उसे पीछे से कवर कर रहा था। लेकिन दोनों के लिए अगले फोर्क पर पहुंचना ज्यादा जरूरी था।
बाइक की आवाज पास आ रही थी।

तब तक रेहन के दूसरे ठरकी की आवाज आई और वो समझ गए की ..अब बाइक बाएं मुड़ेगी।

रीत ने चाल तेज की। अब टार्गेट साफ था। ये जेड का वो वेयर हाउस था जो साइज में दूसरे नम्बर का था और गंगा जी के एकदम पास , काशी करवट के नजदीक ….रीत गली के मोड़ के पास पहुँच गयी ...

बाइक वाले ने अपनी सारी लाइटे बंद कर रखी थी और वो बहोत धीमे से चला रहा था, ताकि गली में रहने वालों को कुछ पता न चले ...

दूर पी सी आर की गाड़ियों की लाईट बीच में दिखाई दे रही थी।
लेकिन भला हो कार्लोस का ..बाइक की अलग ही आवाज उसके होने का पता देरही थी।

दो घरों के बिच एक गैप था ...रीत उसमें चिपक कर खड़ी थी। देह से चिपका कैट सूट, कैमोफ्लाज पेंट ...कोई हाथ भर पास से भी गुजर जाय तो रीत उसे ना दिखे ....

और तभी वो बाइक रीत की बगल से गुजरी ...
रीत ने देखा ...तीन उस बाइक पे हैं ..

लेकिन चौथा कहाँ गया ...

अभी उस के सोचने का टाइम नहीं था . रीत को उनसे पहले वेयर हाउस पहुंचना था जो इस गली के अंत में था . अगर वो बाइक के पीछे से दौड़ कर निकलती तो वो कितनि भी सावधाने बरतती ..उन्हें पता लगने का पूरा चांस था और अगर कही उन्होंने नाईट विजन ग्लास उसके तरह पहन रखे होंगे ....तो फिर तो बेडा गर्क,

लेकिन अब टाइम निकल रहां था।

उसने अपनी कुहनी के पास एक बटन दबाया और तेजी से एक हाई टेंसाइल रोप निकली . रीत ने उसे दुमंजिले मकान के छज्जे पर फ़ेंक कर एक लूप बना कर फंसा लिया।

पल भर में वो छत पर थी, कुलांचे भरती, छलांगे मारती , एक छत से दूसरी छत और फिर तीसरी ...लेकिन अगला मकान तिमंजिला था। खिडकी के लेज के सहारे वो ऊपर चढ़ी। कैट सूट में दस्ताने में लगे फिंगर टिप्स पर बने वैक्यूम पेड उसके खास काम आ रहे थे . वो दीवाल से चिपक जाती और फिर जब पैर का सहारा मिलता तो ऊपर उचक जाती।

वेयर हॉउस अब बस दो घर दूर था .

लेकिन रीत की सहायता एक अप्रत्याशित ढंग से हुयी।

डोगा,... ऊप्स ...गली के कुत्ते ...बाइक की वो आवाज उन के लिए नयी थी और वो बाइक के पीछे पड़ गए। उन तीनो ने बाइक पर से ही उन्हें भगाने की कोशिश की लेकिन वो कहाँ मानने वाले ..आखिर कुछ देर पहले उन्हें बाइक छोड़ कर भागना पड गया।

और रीत को कुछ समय मिल गया। वेयर हाउस बस पास में था .

लेकिन वहाँ एक खाली मैदान का टुकडा था और उसके बाद वेयर हाउस और सामने एक पूराना ..छोटा सा घर।
वेयर हाउस के बगल में ही फिर लैंप पोस्ट था।

अब मुश्किल ..ब्लैक कैट सूट के बावजूद अगर वो दौड़ती हुयी जाती दिखने का पूरा खतरा था।
वो खिड़की और रोशनदान पकड़ कर उतरी .

और वेयर हाउस की ओर क्राल करना शुरू किया।

रीत के कड़े पथरीले उरोज, दब रहे थे और उसके उभरे नितम्ब का कटाव ब्लैक कैट सूट से छलक रहा था।


दो मिनट में ही वो उस पुराने मकान के पास पहुँच गयी थी और उसे पार कर एक कोने में दुबक कर खड़ी हो गयी।
उसे लग रहा था की वो वेयर हाउस में जाएंगे और वो सामने से उन्हें वाच कर पाएगी। लेकिन वो उसी की ओर बढे ..एक पल के लिए वो सहम गयी।
 


 लेकिन उस में से एक ने एक ताली निकाली और दरवाजे में बने इन बिल्ट लाक में लगा कर खोल दी और दरवाजे से अन्दर दाखिल हो गए।

इस घर में ना कोई और दरवाजा था ना खिड़की। लेकिन रीत ने एक रोशनदान पहले देख लिया था, जो पीछे था।

वो दौड़ कर वहां जा पहुंची और किसी तरह रोशनदान से लटक कर , अन्दर देखने लगी। यह भी एक वेयर हाउस सा ही लग रहा था। जगह जगह कपडे की गांठे पड़ी थी। एक कोने में मिल्क का बड़ा सा कैन भी पडा था।

एक ने कपडे की गांठे हटायीं और वहां एक फर्श में छोटा सा दरवाजा था। उसे खोल कर तीनो वहां से तह खाने में दाखिल हो गए।
रेहन जो अब तक गली के मुहाने पे खडा था अब वेयर हाउस के सामने आ गया था।

रीत ने बोला की वो अन्दर जा रही है और वो बाहर से कवर करे।

दरवाजा लाक था। लेकिन उसने अपनी चिमटी निकाली और दो मिनट में दरवाजा खुल गया।
वह बिना आवाज किये दरवाजे में दाखिल हो गयी। घुप अँधेरा था लेकिन नाईट विजन ग्लासेज के सहारे वो देख सकती थी।

तह खाने का दरवाजा अब साफ साफ दिख रहा था। उसने खोल कर देखा तो वहा कोई सीढी नहीं थी और घुप्प अँधेरा , जैसे बस कोई शैफ्ट . दरवाजे में उसने के छोटा वेज लगाया और नीचे कूद गयी।

पत्थर का शैफ्ट सा ही था लेकिन नीचे गद्दे लगे थे। चारो और पत्थर ...लेकिन जब उसने कान लगाया तो पूरब की दीवार से हलकी आवाजें आ रही थी। हाथ से जब उसने छुआ तो एक पत्थर ज्यादा स्मूथ था। फिर एक दो बार सहलाने से पता चला गया। वो स्टील का था लकिन टेक्सचर पत्थर का बना दिया गया था।

उसने ज़रा सा दबाया तो वो खुल गया।
एक बहूत सकरी सी सुरंग थी।
रीत रेंग कर उसके अन्दर घुसी और थोड़ी देर चल कर उसे कमरे में रोशनी पता चल गयी।

ये एक तहखाना था जहां ढेर सारे बैटरी आपरेटेड लैम्प जल रहे थे। एक टेबल पर 40-50 अन फिनिश्ड बाम्ब, रखे थे। एक आलामरी में शार्पेनेल , दूसरी में टाइमर रखे थे।
लेकिन डिटोनेटर नहीं थे।

वो तीनो वहां काम कर रहे थे।

टेबल पर नारियल और होलिका में चढाने वाली सामग्री भी थी। एक दीवाल पे स्नाइपर राइफल्स थीं।
रीत ने सुरंग के मुहाने पे कुछ चीजें लगाई और सुरंग से बाहर आगई शैफ्ट में ...

अब मामला अटक गया बाहर कैसे निकले

वहां कोई सीढ़ी थी लेकिन उन तीनो ने उसे तहखाने में जाने से पहले उसे हटा दिया था।
रीत फिर पत्थर पकड़ कर किसी तरह ऊपर चढ़ी और सर के जोर से दरवाजे को धक्का दिया। वेज लगी होने के कारण वो खुल गया।

रीत एक बार फिर ऊपर के कमरे में थी। उसने गहरी सांस ली और सोचा क्या इन सब की प्लानिंग है आलमोस्ट फूल प्रूफ।

तहखाना जेड के वेयर हाउस के ही नीचे है लेकिन उसमें बिजली का कनेक्शन तक नहीं है, वरना कोई उसके वेयर हाउस को चेक करते समय बिजली के तारों से ट्रेस कर सकता है। फिर ऊपर से छत पक्की है, इसलिए जब ये वेयर हाउस चेक हुआ अतो किसी को भी शक नहीं हुआ और सामने का यह वेयर हाउस उसके किसी चमचे का होगा।

रीत अब बाहर आ गयी और उसने रेहन को इशारा किया की वो उसे जेड के सामने के वेयर हाउस से कवर करे।

रीत ने अपने हैण्ड हेल्ड टर्मिनल को निकाला। ये 6 घंटे का वीडियो रिकार्ड कर सकता था। नीचे तहखाने में उसने 4 कैमरे इस तरह लगा दिए थे की वो 360 डिग्री कवर करें और वो सारे वायर लेस थे। उनकी फीड इस टर्मिनल में आ रही थी।

उन तीनो में एक बाम्ब्स में टाइमर लगा रहा था। उसने कैमरे को ज़ूम किया ..उसके हीरो का गेस सही था ...8.20 होली के जलने का समय और ये टाइमर 24 घंटे वाले थे ...सारे बाम्ब 8.15 से 8.40 के बीच के समय के लिये फिट किये जा रहे थे। इसका मतलब मैक्सिमम नुक्सान ,

दूसरा बाम्ब में शारपेनेल डाल रहा था , एक से एक घातक , शार्प और चुभने वाले

तीसरा नारियल में बाम्ब फिट कर रहा था ...अब सिर्फ डिटोनेटर लगाना बाकी था।

जिस रफ्तार से काम चल रहा था ...अगले 4-5 घंटों में ये सारे बम्ब तैयार हो जाने थे। इसका मतलब सुबह के पहले ही डिटोनेटर भी आ जायेंगे ....

आई बी वालों को न्युट्रलाइज करने के बाद बस अब रीत और रेहन के कंधो पर सारी जिम्मेदारी थी।

रीत सामने देख रही थी और उसके सामने बार बार संकट मोचन और वाराणसी कैंट का दृश्य आ रहा था। किस तरह उसने अपने हाथों से अंग अंग समेटे थे ...और उस के बाद ...बस उसने तय कर लिया था की ...और बाबा ने समझाया की सबसे पहले उसे अपने आप को तैयार करना होगा , बदलना होगा।

उसकी मुलाक़ात किससे किससे नहीं हुयी और उसने समझा की स्त्री ही शक्ति का स्वरूप है , वह चाहे तो सब कुछ कर सकती है, निर्माण भी विनाश भी ..
जो कुछ कहीं भी है काशी में है बस जरुरत ढूँढने की है।

और वह उनसे मिली, नाम याद आते ही रीत ने अपने कान छू लिए हर तरह की चीजें ...और उसने समझा कन्या होने का स्त्री होने का महत्व ...तंत्र का त्रिकोण, बिंदु ..बहूत कुछ योनि के ही प्रतीक हैं, क्योंकि सम्पूर्ण श्रृष्टि की शुरुआत वही से होती है , वह प्रतीक है ..निरतंर सृजन का ...और फिर एक बुद्ध योगीनी के साथ
..और, फिर दसो महाविद्या ...काली ...जो काली इस लिए है की वह काल का , समय का भक्षण करती है
तारा या नील सरस्वती, भूवनेश्वरी, छिन्नमस्ता ..

उसके मन में उन का वह चित्र उभर गया , अपने ही हाथो से अपना सर काट कर अपने हाथ में रखने वाली और उनके पैरों के नीचे रति- कामदेव ...कम क्रीडा में मग्न , रति ऊपर काम देव नीचे ..उस योगिनी ने समझाया था की यह बताता , जीवन मृत्यु और काम के संबध को, रति क्रीडा में रत युगल ही जीवन ऊर्जा का संचार करते है ..और उसंम भी रति ऊपर रहती है ,

और यह सोच कर एक नयी उर्जा का शक्ति का उसमे संचार हुआ ,

उसे लगा सब का साथ आज उसके साथ है जब वह आज के युग के राक्षसों का विनाश करने निकली है ....और कुछ भी हो वह काशी पर आये इस खतरे का समूल नाश कर के रहेगी।

तभी उसने के नए खतरे को देखा ...

उसके कैट सूट पर ..नीचे तहखाने में जाने पर ज़िप थोड़ी सी ऊपर खुल गयी थी। और उसका भरा उरोज हलका सा दिख रहा था ...वहीँ एक लाल लाईट ..पहले थोड़ा ठहरी ...फिर सरक कर ...बाएं निपल के ठीक बगल में ...


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