Sunday, March 2, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--79

FUN-MAZA-MASTI

  फागुन के दिन चार--79
गतांक से आगे ...........


 हीरो की नगरिया ..


अब तक अपने पढ़ा था


और मैंने खोल के देख लिया ...एक दो नहीं पूरे पांच ..बाक्सर शार्ट्स ..और स्लीवलेस टी शर्ट और वो भी आलमोस्ट झलकने वाली ...

" ये कौन पहनेगा ..." मैंने थूक घुटकते हुए पूछा
" भाई मैं तो पहनूंगी नहीं, तुम्हारी भाभी भी नहीं पहनेगी नहीं ...तो और कौन पहनेगा, तुम भी ना, अरे घर में भी ना ऐसे कुर्ता पाजामा में लफर लफर रहते हो ...ये अच्छा लगेगा, चलो जल्दी पहनो वरना कहो तो मैं पहना दू ..."गुड्डी बोली

मैं जानता था की बहस करने से कोई फायदा नहीं। लेकिन मैं मौके का फायदा उठाया,

" ओ के लेकिन तुम भी वो पहनोगी जो मैं कहूंगा।"
" तुम भी ना ...बोली जल्दी ..."
" वो तुम्हारे स्कूल की यूनिफार्म ..." मैंने बोल ही दिया।

" तुम भी ना, मुझे मालूम था इसलिए मैं दो ले आई थी। एक जो ज्यादा पुरानी है वो होली के दिन पहनूंगी। "

और थोड़ी देर में वो आई।

लाईट ब्लू कलर का टाप और नेवी ब्लू कलर की स्कर्ट ...एकदम टाईट होनी ही थी, वो उसके पिछले साल के क्लास की थी और अब तो उसके उभार भी खूब भर आये थे और हिप्स भी ..

मैंने भी बाक्सर शार्ट्स और टी शर्ट पहन ली थी , लेकिन शार्ट भी 9 इंच से कम ही रहा होगा वो भी मेश ...और फ्लॉरल प्रिंट का

हम लोग किचेन की और चल दिए।

आगे

हम लोग किचेन की और चल दिए।
" अरे शीला भाभी की साडी भी तो ले लो।" उसने याद दिलाया।

साडी के साथ मैंने रंग और बाकी का सामन ले लिया।
ये क्या है उसने एक पैकेट की और दिखाया।
खोल के देख लो मैं बोला और उसने खोल दिया।

बर्फी थी और कुछ गोले थे, हरे हरे,

चन्दा भाभी की गुझिया याद है ...बस वही है मैं बोला।

अरे वाह तब तो मजे आ जायेंगे , हम लोग मिल के तुम्हे खिलाएंगे और तुम्हारे माल को भी ...वो हंसते हुए बोली और हम लोग कमरे से बाहर निकला आये ..शाम ढल रही थी, चाँद आसमान में उतर रहा था।

थोडा अनकुस सा लग रहा था, लेकिन गुड्डी धकेल कर किचेन मे ले गयी जहां भाभी, शीला भाभी और मन्जू होली के लिये गुझिया बना रही थीं.

बाक्सर शार्ट्स और स्लिव्लेस शर्ट मे देख के भाभी जोर से मुस्करायीं.

" क्यों सारे कपडे अपने माल के पास उतार दिये क्या, " मन्जू ने छेडा.

मैं वैसे ही कानसस हो रहा था।
मेरे पास के तुरप का पत्ता था सो वो मैंने खेल दिया, इसके पहले की सब मेरे पीछे पड जायं।

मैंने शील भाभी की साडी का गिफ्ट रैप्ड पैकेट आगे बढ़ा दिया।

और उन्होंने ...अरे इसकी क्या जरूरत थी ...कहते हुए उसे खोल दिया। और साडी देखते ही वो निहाल ...

चटक रंग, बढ़िया कपडा, और डिजायन,

भाभी मेरी और देख के हलके से मुस्करा रही थी, वो साडी को रगड़ कर उसके कपड़े को जांच रही थीं और फिर मेरी ओर मुंह कर के बोलीं,

" बहोत मंहगी होगी।"

" अरे नहीं भाभी, मेरी भाभी से महँगी थोडी होगी। आपने मुस्करा दिया, पैसा वसूल ..." मैंने हंस के बोला।

पीछे से गुड्डी ने मेरे नितम्बो के बीच उंगली गडा अपनी प्रतिक्रया जताई , भाभी ने हलके से आँख मारी लेकिन शीला भाभी से बोली।

" अरे देवर कमा रहा है , तो इतना तो करना ही था, लेकिन कहीं आपको मक्खन नहीं लगा रहा हो की होली में इस की रगडाई थोड कम होजाए।"

" क्यों लाला , ऐसा है क्या ...लेकिन अब तो डबल रगड़ाई होगी तुम्हारी, " शीला भाभी मुस्करा के बोलीं।
" अरे भाभी बचना कौन चाहता है,." मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया।

वो साडी ले के रखने गयीं, तो भाभी ने चढ़ाया , " अरे देखिये देवर ने ब्लाउज का कपड़ा खरीदा है की नहीं या बिना ब्लाउज के, "

" वो रुक के बोलीं, वो मैंने देख लिया है, इसी में है. वैसे भी मेरे पास मैचिंग ब्लाउज है मैं वही पहनलूंगी। और ये कह के वो अपने कमरे की और साडी रखने चल पड़ीं।

भाभी ने इशारे से भांग के बारे में पूछा और मैंने उन्हें अपने हाथ के प्लास्टिक बैग की ओर इशारा किया और उन्हें पकड़ा दिया। उन्होंने और मंजू ने उसे खोल कर देखा, भांग की ढेर सारी गोलियों के साथ हरी हरी भान्ग मिली बर्फी और ठंडाई का बाकी सामान भी था।

बर्फी निकाल के बाकी भांग उन्होंने मंजू के हवाले कर दी , स्पेशल वाली गुझिया के मावे में मिलाने के लिए। और मेरी ओर देख के उन्होंने मंजू के कान में कुछ कहा और बर्फी का दोना उसके हवाले कर दिया।


 मैं चाल समझ गया और पीछे की और मुडा।

पर गुड्डी पीछे पहले से ही तैयार खड़ी थी। उसने मुझे पीछे से अंकवार में भर लिया और बोली,

” ये और इनका माल दोनों बिना जबरदस्ती के कुछ नहीं घोंटते।“

अरे तौ इ कौन बात है, मैं हूँ ना जबरदस्ती करने वाली, इनके साथ भी करुँगी और इनके उस माल के साथ भी। अब भौजाई भी हैं , होली भी है तो घोंटना तो पडेगा ही,..."
और ये कह के मंजू ने जबरन मेरे गाल कस के दबा दिया। और मेरा मुंह खीस्स से खुल गया और गुड्डी को मौक़ा मिल गया। उसने आराम से मंजू के हाथ से दोने से भांग मिली बर्फी निकाल के मेरे मुंह में,

" ऐसे ही जबरदस्ती ...तेरे उस छिनाल ऐल्वल वाली को भी घोंटाउंगी को ..आने दे उस को।"

मंजू मेरा मुन्ह दबाये दबाए बोली।

मुझे मौका मिल गया। और मैंने एक भांग वाली बर्फी , मंजू के मुंह में डाल दी।

वो चुभलाते हुए बोलीं स्वाद तो अच्च्छा है ...तेरे माल को भी बिना चखे छोडूंगी नहीं। और भाभी को भी आइडिया मिल गया। हंसते हुए उन्होंने गुड्डी से पूछ लिया ,

" अरे असली बात तो पूछा ही नहीं, मुलाकात हुयी क्या बात हुयी ...कैसी रही माल से मुलाकात .."
बर्फी खाती मंजू ने मुद्दे पे साफ साफ पूछ लिया ...

" अरे इ सब का इ बताओ , उस साल्ली की चूंची वूंची रगडवाई , की नहीं भरतपुर का दर्शन हुआ की नहीं मेरे लाला को ..."
" दोनों हुआ .दर्शन हुआ लेकिन बहोत हलका ...लेकिन दो बातें ख़ास है।"

तब तक शीला भाभी भी लौट आई थीं। वो कुछ समझे समझे मैएन मंजू के हाथ से ले के एक बर्फी उन्हें अपने हाथ से खिला दी।

मुंह में जाने के बाद ही उन्हें अहसास हुआ लेकिन वो भी मजे ले रही थीं।

" कौन दो ख़ास बात ..." भाभी ने पूछा ...

" एक ...वो इतनी बैचन हो रही थी ...बोली मैं कल आउंगी ...तो मैं कैसे मना कर सकती थी। बिचारी को इन्हें देखते ही खुजली मच रही थी। मैंने भी बोल दिया ठीक है आ जाना ." गुड्डी ने अपनी बडी बड़ी बड़ी आँखे नचाते हुए मेरी और देख कर कहा।

" अरे तब तो बढ़िया मौका है कल भरतपुर लूट जाएगा उसका ...इनका भी फायदा और उनका भी फायदा, " मंजू बोली और मेरी ओर देख के कहा, नहीं मानेगी ना वो छिनार तो हाथ पैर बाँध के ..."

" एकदम ...पूरी पिचकारी अन्दर डाल देना," शीला भाभी ने और पलीता लगाया।
" अरे ये नहीं डालेंगे तो हम हैं ना, " मंजू बोली।

" तो कल तो तेरी वाली के भरतपुर का उदघाटन हो के रहेगा, " शीला भाभी ने मेरी और देख के कहा।
मैंने आँख मार के गुड्डी की ओर इशारा किया।
वो समझ गयी।

हम तीनों के मुंह में भांग वाली बर्फी थी और उस का सुरुर चढ़ाना शुरू हो गया था। लेकिन गुड्डी का मुंह अभी खाली था।
" अरे वो तेरी सहेली भी तो है कल उस की चुन्मुनिया, लाल चिरैया पहले बार चारा खाएगी, उस खुशी में कुछ मीठा हो जाए"

और जब तक गुड्डी सम्हाले सम्हले ,शीला भाभी ने एक पूरी भांग की बर्फी गुड्डी के मुंह में ठेल दी और अबकी मुंह खुलवाने का काम मैंने किया।

वो ना ना करती रही, मुंह बनाती रही लेकिन बर्फी अपने आप उसके मुंह में घुल रही थी। उसकी काली काली आँखों में गुलावी डोरे दौड़ रहे थे।

" मन मन भाये मूड हिलाए ...एक दम अपनी सहेली की तरह है . कल देखना वो भी ना ना करते , पूरा घोट लेगी, एक इंच भी बाहर नहीं छोड़ेगी। " शीला भाभी ने गुड्डी को चिढाया।

" अरे क्यों छोड़ेगी मेरी ननद बिचारी इत्ती दिन से इनका इंतज़ार कर रही थी, बचपन के यार है उसके। क्यों हैं ना लाला, " मेरी भाभी ने अब बाणो की बौछार मेरी ओर कर दी .

लेकिन बीच में गुड्डी आगई।
" अरे दूसरी बात तो सुन लीजिये ना एक खूश खबरी, आपके ये जो देवर कम ननदोई ज्यादा हैं ना , उन्होने अपनी उस प्यारी छुई मुई का एक नयाप्यार का नाम रख दिया है ..."

तीनो, भाभी , मंजू और शीला भाभी कान पारे सुन रही थीं, गुड्डी ने थोडा सस्पेंस क्रियेट किया फिर बोली


" रंजी ..रंजी नाम रखा है उन्होंने अपनी ...उसका ..."

" रंडी ...रंडी नाम रखा है ..." मजू और शीला भाभी एक साथ बोली, और मेरी भाभी जोर से मुस्कराई।

" जैसा काम वैसा नाम ...नाम तो सही रखा है , " भाभी भी मैदान में आगयीं।
" ता का एनाहू से पैसा ले हियें उ, " शीला भाभी ने शंका उठायी।

" अरे ता ले लेनो दा ना, हामारे एकलौते देवर हैं जो मांगेगी दे दूंगी मैं अपने देवर की ओर से ..." मेरी भाभी गुझियाके मावे में हरे हरे भांग के गोले मिलाते बोलीं।

" नथ उतराई का त अलगे रेट लगेगा ..." शीला भाभी चालू थी।

" अरे उ साल्ल्ली छिनार अगर पईसा ले ना त , सीधे सूखे पेलना , चिल्लाने देना ससुरी को, मैं उसके मुंह में अपनी चूंची पेल दूँगी,....पटकती रहेगी अपना मोटा मोटा चूतड ...साल्ली रंडी, लेकिन नाम सही रखा है ...अब हमहूँ ओका यही कहेंगे।" मंजू क्यों पीछे रहती, वो भी बोली।

मैं बिचारा मुझे कौन बोलने का मौका देता .

गुड्डी तो जमालो बी की नजदीक की रिश्तेदार थी सो,...आग लगा के दूर हट गयी।

मैंने समझाने की कोशिश की,

" आप लोग ना ..एकदम ही मेरे पीछे पड़ जाती हैं। रंडी नहीं रंजी ..रंजी ..उसका नाम रंजीता है ना तो उसी का छोटा फार्म ....रंजीता ..रंजी।
अब बुलाने वाला नाम दोनों का गुड्डी है ...तो कनफ्यूजन होता ना टी इसी लिए हमने उसस एकहा की मैं तुमको रंजी बुलाउंगा, ऐसा वैसा कोई प्य्रार व्यार के नाम का चककर नहीं है।" मैंने समझाने की कोशिश की।
लेकिन जैसा होता है , मेरे समझाने की कोशिश हर बार नाकामयाब होती है, इस बार भी हुयी।

और गुड्डी मैदान में कूद गयी आग में पेट्रोल डालने ...

" अच्छा तो प्यार से नहीं क्या गुस्से से बुला रहे थे उसको, और हाथ कहाँ था जनाब का ..ये भी बताऊँ ..."

" अरे तो क्या हुआ मस्त माल है सारे गली मोहल्ले वाले नापते होंगे ...त इहो ज़रा सा जोबन का मजा ले लिए ता का, " शीला भाभी बोली लेकिन उन्होंने जोड़ दिया, "बाकि हम ता अब ओका रंडी ही कह के बुलायेंगे ..."

ननद भाभी का रिश्ता मैं कहाँ से बीच में पड़ता ...लेकिन अब मेरी भाभी ने बात सम्हाली बात बदल के ...
" अरे अपनी उस रंडी या रंजी के चक्कर में रंग लाना त नहीं भूल गए।"

मैंने मौके का फायदा उठाया ..." अरे नहीं भाभी आप का हुकुम ...यहीं स्टोर में रखा है ."

भाभी ने आँख से इशारा किया और मंजू और गुड्डी स्टोर में ...


और थोड़ी ही देर में सारे रंग दोनों के हाथ में



 "रंग तो ठीक लग रहा है , पेंट भी है , लेकिन पता नहीं कच्चा या पक्का ..हाँ अपनी उस ऐल्वल वाली को ले के आते क्या नाम रखा है उसका ...हाँ रंडी ..त उस पे चेक कर के देख लेते।"

मंजू बोली।

"अरे ईत्ति मस्त चिकनी चमेली खड़ी है सामने , गोरे गोरे गाल वाली, ..." मेरी ओर इशारा कर के भाभी ने मंजू और शीला भाभी को चढ़ाया, और बोलीं , इसके गाल मेरी ननद से कम थोड़े ही हैं , चाहे गाल पे रंग चेक कर लो चाहे ..."

उनकी बात काट कर शीला भाभी बोलीं, चाहे गांड पर ..
.
गुड्डी बहोत सीरियसली बोली , मेरे ख़याल से दूसरा आप्शन ज्यादा ठीक रहेगा,

" गांड पर या गांड में ...." मंजू क्यों चुप रहती।

"अरे तूम लोगों का देवर है , तुम लोग जानो ..." हंस के भाभी ने मंजू और शीला भाभी को ललकारा।
मंजू ने कुछ रंग गुड्डी को पास कर दिया था और दोनों हाथ में लगाते हुयें बढ़ी।

बचने के लिए मैं किचेन से आगन की और भागा , लेकिन जैसे कहते हैं ना आमान से गिरे खजूर में अटके , वैसे ही।।।
लांग आन पे खड़े फिल्डर की तरह शीला भाभी ने मुझे कैच कर लिया।

बैट्समैन समझे छक्का लेकिन ...हो जाय आउट बस वही हुआ।

शीला भाभी ने अपने साए में खोंसे पेंट को निकाल के हाथ पे मल लिया था और उनक एदोनो हाथ सीधे मेरे गाल पे।
तब तक पीछे से गुड्डी और मंजू ....

मेरे दोनों हाथ शीला भाभी का हाथ छुड़ाने में उलझे थे की गुड्डी ने अपनी नरम नरम उँगलियों से, मेरा बक्क्सर शार्ट सरका कर सीधे घुटनों में फसा दिया।

गाल पर गाढा लाल रंग रगड़ते, शीला भाभी बोलीं,

" तुम्हारी भाभी सही कह रही थी , तेरा गाल तो की लौंडिया से कम मुलायम नहीं है, एकदम कचकचा के काटने लायक है, एक दम मीठा गुलगुला," और उन्होंने कस के एक चिकोटी काट भी ली।


उधर गुड्डी और मंजू साथ साथ मेरे खुले पिछवाड़े पे, साथ साथ रंग लगा रहे थे। बल्कि ज़म कर रगड़ रहे थे।

मैंने हाथ से शीला भाभी का हाथ छुड़ाने की कोशिश की , लेकिन उन का हाथ कोई रंजी या गुड्डी का हाथ नहीं था। उन की पकड़ बहोत मजबूत थी।, दोनों गालों पे पूरे चेहरे पे उनके रंग से भरे हाथ, कस कस के लाल रंग पोत रहे थे।

मैंने उनकी दोनों कलाइयों को कस के पकड़ रखा था और जोर से अपनी ओर खिंच रखा था। उस पकड़ा दकड़ी में दो तीन खनखनाती लाल लाल चूडिया भी टूट गयीं लेकिन उनकी रगड़ाई में कोई कमी नहीं आई और साथ साथ में उनके बोल,


" लल्ला, मसलने रगड़ने में इत्ता मजा आ रहा है तो कचकचा के काटने में कितना रस आयेगा। अगर किसी लौंडेबाज के हाथ पड गए ना ...और अगर तेरा इत्ता मुलायम है, तो तेरे उस माल का कैसा मस्त होगा जिसके गाल के एक चुम्मे के लिए सारे लौंडे दिवाने हैं,"

और उनकी इस बात ने मेरे मन में एक बार से फिर से रंजी की तस्वीर सामने लादी। वास्तव में उसके गाल, गुलाब थे। खूब भरे भरे गदराये, और हंसती थी तो गालों में गड्ढ़े पड जाते थे। मेरा मन करता था की बस ढेर सारी छोटी छोटी चुम्मी ले लूं और फिर कचकचा के जहां डिम्पल पड़ते हों वहां , कस के काट लूं।


लेकिन तभी मुझे बड़ी जोर का करेंट लगा। वही उंगली जिसकी छुअन मैं सोते जागते हर समय पहचान सकता था। गुड्डी की दुष्ट उंगली, मेरे नितम्बो पे रंग लगाते लगाते, वो पीछे से आगे की ओर बढ़ गयी, और उसने मेरे बाल्स पे अपने लम्बे लम्बे नेल्स से स्क्रेच कर दिया।

" उय्य्य्यी…" मैं जोर से चीखा और शीला भाभी की उंगली मेरे मुंह के अन्दर और मेरे दांत भी लाल लाल हो गए।
लेकिन गुड्डी छोड़ने वाले थोड़े ही थी। पीछे से आगे बढे उसके कोमल किशोर हाथों ने अब हलके से ‘आगे वाला ‘भी पकड़ लिया और मंजू से बोली , ज़रा यहाँ भी तो रंग चेक कर लूं .

मंजू ने खिलखिलाते हुए जवाब दिया .

".एकदम हर जगह देखना पडेगा , तभी तो पता चलेगा की रंग होली के लिए ठीक है की नहीं। और हम लोग नहीं तो क्या वो साल्ली चूत् मरानो , हमारी ननद आके चेक करेगी। ."

मंजू की उंगलिया , अब मेरे नितम्बो से सरक कर ठीक सेंटर पे आगई थीं। लम्बी मोटी और खूब कडी कड़ी ...सीधे मेरी पिछवाड़े की दरार पर, " लाला इत्ते चिककन हो बचपन में जरूर पिछवाड़े गुल्ली डंडा खेले होगे , चलो ज़रा एक बार फिर से मजा ले लो।"

मंजू मेरे कान में बोली।
शीला भाभी पर कुछ भांग का नशा कुछ फागुन का, ...उन्होंने और मंजू को ललकारा,

" अरे छोड़ना मत देवर को ...आज इसकी नथ उतारो ,से कल इसके माल की ..."

और मै जोर से चिहुंक कर उछल पडा ...मंजू की हरकत से ...और वो हंसते हुए बोली,

" अरे लाला अभी तो एक पोर भी नहीं अन्दर गया इतना जोर से उछल रहे हो। "

भाभी अन्दर गुझिया बना रही थीं लेकिन कान पारे सुन रही थीं, वहीँ से बोलीं।

" लगता है प्रैक्टिस छूट गयी है ..."

" अरे हम तो तीन है ना ...करा देंगे प्रैक्टिस अच्छी तरह से ..." शीला भाभी अब ज्यादा ही जोश में थीं।

" तीन क्यों चार है , ये भी तो है हमारी ओर , मंजू ने पीछे कम कर रगड़ाई करते हुए , गुड्डी की और इशारा किया।
वो कम दुष्ट नहीं थी।

" एकदम ...मिल कर आप लोग के साथ इनकी रगड़ाई करेंगे ..."

वो बोली और जैसे इसका सबूत देते हए उसने कस के लाल और बैगनी दोनों रंग मेरे हथियार पर जबर्दस्त रगड़ दिया और फिर मंजू के साथ आगयी पीछे के मोर्चे पे।

और अबकी जो मैं चिहुंक के उछला तो फायदा मेरा ही हुआ।

शीला भाभी ना सिर्फ हाथ छूट गए बल्कि अपने आप मेरे हाथ सीधे उनके ब्लाउज पे ...और अगले पल ब्लाउज में ...

चुटपुटिया बटन का फायदा भी है और नुक्सान भी।
मेरा फायदा हो गया और शीला भाभी का नुकसान।

अब गाडी नाव पर थी।


 चुटपुटिया बटन का फायदा भी होता है और घाटा भी।

फायदा मुझे हुआ और घाटा ..शीला भाभी को।

मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनके गदराये उरोजों पे ...बड़े और कड़े ...लग नहीं रहा था किसी विवाहिता के हों ...वो भी जिसकी दो तीन साल हुए शादी हो चुकी हो।

एकदम पथरीले , मस्त ...रंजी और गुड्डी के तो मेरे मुट्ठी में समा जाते थे , लेकिन इनको तो किसी हालत में नहीं ...लेकिन वो किशोरियां थी जहां जोबन आ रहा था और यहाँ तो जोबन अपने पूरे यौवन पर था , शबाब पर , निखरा खिला हुआ ...

एक पल के लिए हम दोनों ठिठक गए , उंके खुले उरोजों पे के पहले स्पर्श पर लेकिन फिर ..एक तो फगुनाहट , ऊपर से भांग और सबसे बढ़कर देवर भाभी का रिश्ता ...

पहले तो मैंने हलके से हाथ फेरा ,फिर कस के दबा दिया।

लेकिन उनके उरोज जैसे पत्थर के बने हों , मैने खुल कर मजा लेना शुरू किया, रंग तो बहाना था। वो अपने हाथों से मेरा हाथ छुड़ा रही थीं , जैसे कुछ देर पहले मेरे हाथ जैसे उनका हाथ छुडा रहे थे जब वो मेरे चेहरे पे रंग मल रही थीं,....

लेकिन कुछ ह देर में मैं समझ गया वो हाथ छुडा कम रही थीं, ये ज्यादा कोशिश कर रही थी की मैं उनके जोबन पर से अपना हाथ ना हटाऊं।

लेकिन मैं इतना बुध्दू नहीं था ...हाथ में आये दो मक्खन के भरे कटोरों को क्यों छोड़ता।

मैं कस के रगड रहा, मीज रहा था . क्या मस्त चून्चिया थी। और फिर मैंने उनके खड़े बड़े बड़े निपल को जोर से पिंच कर दिया,...शीला भाभी की हलकी सिसकी निकल गयी।

" लल्ला, तुम इतने नादान नहीं हो जीतने दिखते हो, गेंद बल्ला का खेल सीख गए हो ."
वो मुस्करा के बोलीं।

" अरे भौजी, आप मौक़ा दीजिये तो खेल के दिखा दूंगा, आप ही लाइन नहीं देती ..."

मैंने दूसरे निपल्स को भी पिंच करते बोला।

" झूठे ...जब चाहो तब, मेरा दरवाजा तो हरदम खुला है ...एक बार आओ तो पता चले की असली मजा तो औरत के साथ ही लड़किया तो आधे टाइम नखडा ही दिखाती रहेगीं। "

और अपनी बात पे जोर देने के लिए उन्होंने जोर से अपने नितम्बो को मेरे तने जंगबहादुर पे रगड़ दिया।
और जवाब में मैंने भी अनजाने में एक जबरदस्त धक्का दिया।

साथ ही मेरा एक हाथ चोली से बाहर निकल पेट पे रंग लगाने लगा . पेट तो एक रास्ता था। वो तो बस दक्षिण दिशा की ओर बढ़ रहा था , उसे जरा भरतपुर स्टेशन का हाल लेना था।

ये नहीं था की मैं अपने ऊपर हो रहे हमले से अनजान था। गुड्डी और मंजू की जोड़ी, ...मंजू अकेली ही काफी थीं लेकिन अब गुड्डी खुल के साथ आ गयी थी बल्कि उकसा भी रही थी .

एक साथ आगे पीछे, कोई जगह नहीं बची थी और मेरा चर्म दंड अब खुल के मंजू के हाथ में था। वो दबा रही थी , रगड़ रही थी मुठिया रही थी ...और पिछवाड़े का इलाका अब गुड्डी के कब्जे में था ...लेकिन वो कोई कम नहीं थी ,...जो काम मंजू कर रही थी, वही वो भी और साथ में रंग बिरंगी गालियाँ , एक से एक मस्त , मेरे सारी घर वालियों को ...

मैं एक बार बार फिर से चिहुंक गया ...

मंजू गुड्डी की उंगली का कमाल या फिर अन जाने में , जंग बहादुर एक पल के लिए पिजड़े से बाहर ...और सीधे शीला भाभी के गीली साडी से झांकते नितम्बो की दर्रार के बीच ...क्या मस्त चूतडी थे भाभी के 40 + रहे होंगे और एकदम ठस ...

अगर एक बार इधर एंट्री मिल जाय,

उन्होंने पीछे हाथ कर की मुझे हटाने की कोशिश की तो उनके हाथ में जोश से तन्नाये जन्ग् बहादुर आगये।

उन्हें ऐसे झटका लगा जैसे उन्होंने कोई कडियल नाग पकड़ लिया हो, लेकिन वो किसी संपेरे से कम नहीं थी और उन्होंने सीधे उसका फन दबा दिया।

मैं क्यों छोड़ता ये मौक़ा।

मैंने एक बार कस के उनकी गदराई चूंची खुल के दबा दी और जंगबहादुर से उनका पिछवाडा रगडते हुए बोला,

" क्यों भौजी, पसंद आई पिचकारी , डल्वाओगी ..."

" अरे मेरी बाल्टी देखी है ...दो मिनट में पिचका दूंगी।"

वो भी उसी अंदाज में बोली।

मेरा हाथ फिर ऊपर आ गया था और मैं कस के उनके दोनों 36 डी डी जोबन को खुल के रगड़ रहा था। थोड़ा उन्हें झुका के जोर से धकका लगाते मैं बोला ,

" अरे भौज्जी, ठीक होली की रात इसको दूज से पूरनमासी कर दूंगा .एक बार जब अंदर जायेगी ये पिचकारी , सफेद रंग से भर देगी और ठीक 9 महीने बाद सोहर होगा। “

उन की चुन्मुनिया ऊपर से दबाते मैं बोला।

( * सोहर , हम लोगों के इलाके में पुत्र जन्म पर गाया जाने वाला लोकगीत ).

" तुम्हारे मुंह में घी शक्कर लाला, जब चाहो तब " वो हलके से बोली .

(तभी मुझे याद आया , वो यहाँ आई तो इसीलिए थीं ...किसी साधू ने उन्हें भभूत दिया था ...शादी के तीन साल हो गए थे लेकिन बच्चा नहीं हुआ था, लेकिन असली कारण ये था उनके पति, बालक प्रिय थे और वो भी बाटम वाले स्वभाव के ).

मैंने जंगबहादुर को अन्दर करने की कोशिश की , और वहीँ गड़बड़ हो गयी।

शीला भाभी मेरे हाथ से छूट गयीं।

और मंजू ने सामने से आके बोला, " अरे इनके मुंह में घी शक्कर नहीं चलेगा ..."

और दुष्ट गुड्डी ...भांग का नशा उस पर सबसे तेज चढ़ा था ..बोली , इनके और इनकी रंजी के नीचे वाले मुंह में ...उसकी बात काट कर मंजू ने पूरी की गुड्डी को हड़काते हुए,

" सबसे पहले तो तेरी ट्रेनिंग करानी पड़ेगी ...साफ साफ क्यों नहीं बोलती की उस रंडी ..रंजी क्या नाम है उस छीनाल की चूत में मोटे मोटे लंड ...और इनकी गांड में ..."

" सच बोल रही है तू, शीला भाभी गुड्डी से बोलीं , लंड का नाम लेने में शर्म आ रही है मिल जाय तो झट से घोंट लोगी।"

गुड्डी थोड़ा शर्मा गयी। लेकिन मैंने भांप लिया था की गुड्डी को शीला भाभी कैसे मीठी मीठी निगाह से देख रही थीं।

मैंने शीला भाभी को इशारा किया और बोला , तो कर दीजिये ना ट्रेन इस बिचारी को भी।

और शीला भाभी ने गुड्डी को अपनी बांहों में खींच लिया।

फिर तो होली बिफोर होली का एक नया चप्टर चालू हो गया। 


बनारस में कन्याओं/महिलाओं की होली मैं देख चूका था , गुड्डी और रीत के साथ , चन्दा भाभी और दूबे भाभी ...उस बार गुड्डी वैसे अपनी उस पञ्च दिवसीय छुट्टी के चक्कर में बच गयी थी।

लेकिन अब तो वो बहाना भी नहीं था . और गाँव के रिश्ते से गुड्डी उन की ननद भी तो लगती थी।

बाएँ हाथ से उन्होंने एक साथ गुड्डी के दोनों हाथ पकडे और दायाँ हाथ सीधे गुड्डी के टाप में ...वो उसके स्कूल का टाप था वो भी दो साल पहले का ...चटचटा के दो ऊपर की बटन टूट गयी।

गुड्डी के जोबन ही मुश्किल से समा रहे थे ...और ऊपर से शीला भाभी का का हाथ,....

और एक बार जब कबूतर पकड़ में आ गए तो , उन्होंने उसके दोनों हाथ छोड़ दिए

लेकिन फिर फायदा शीला भाभी का ही हुआ। उनका दूसरा हाथ गुड्डी की छोटी सी स्कूल स्कर्ट के अन्दर घुस गया। और गुड्डी के चेहरे से साफ लग रहा था , पैंटी का कवच भी भेदा जा चुका था।

और जिस तरह से गुड्डी चिहुंकी, और उसके चेहरे पे भाव आये मैं समझ गया , ऊँगली की एक पोर तो कम से कम घुस चुकी है और अंगूठा भी सीधे क्लिट पे होगा। दूसरा हाथ अभी भी गुड्डी का किशोर जोबन मर्दन कर रहा था।

एक पल के लिए शीला भाभी से मेरी आँखे चार हुयी और मुस्कराकर मेरी आँखों ने उन्हें थम्स अप दे दिया।

वो भी मुस्करायीं और फिर दूने जोश से ...गुड्डी भी थोड़ा ऊपर ऊपर खिजलाती, झूंझलाती ..लेकिन मन ही मन मजा लेती रस लूटती ...

और जब वहां से मेरी आँखे हटी तो सामने मंजू, अब तक रंग से बची ..काम करने से खूब गठीली देह, मांसल , लेकिन एक इंच भी एक्सट्रा फ्लेश नहीं, भरे भरे खूब गदराये ब्लाउज फाड़ते उरोज और उससे भी बड़े दीर्घकाय नितम्ब, गेन्हुआअ रंग, ना सानावाला न बहोत गोरा ..

लेकिन जैसा कहते हैं ना ...नमक बहोत ज्यादा ...

मेरी ललचाई निगाहों को एक पल के लिए मंजू ने देखा पलके झपकाई ,

" काहें इत्तना ललचात हाउ लाला ..." धीमे से वो बोली।

मेरी निगाहें उन उत्तंग पर्वत के दो शिखरों से चिपकी थीं , परफेक्ट 36 डी डी ...

" अरे ललचाय लायक चीज होगी तो मन ललचे गा ही। " मेरा मुंह खुला।

मेरे मन में अभी भी झिझक थी थोड़ी सी, वो मजाक कराती थी, छेड़ती थी और जो खुल के गालिया और मजाक भाभी नहीं कर पाती थीं , वो उसे उकसा के करवाती थीं।

रिश्ता तो वो भौजाई का निभाती ही थी और आज तो उसने ...और अब मुझसे नहीं रहा जा रहा था .

बची खुची कसर मेरी भाभी ने पूरी कर दी .
गुझिया का काम पूरा कर के वो हाथ पोंछती बाहर निकली और मुझे और मंजू को आमने सामने खड़ा देख , उन्होंने मुझे ललकारा,

" कैसे देवर हो फागुन में भौजाई सामने चिक्कन मुक्कन खड़ी है, का आपन पिचकारी का रंग अपने बहनों के लिए बचा रखे हो "

इत्ता इशारा काफी था।

होली के रंग सिर्फ तन नहीं रंगते, वो मन भी रंग देते है भिगो देते है। सिर्फ अबीर और गुलाल ही नहीं झरता नेह झरता है, स्नेह झरता है

और सबसे बढकर ...वो लगाने वाले और लगवाने वाले ..दोनों को एक समान धरातल पर खडा कर देते हैं , ना उम्र का कोयी बंधन , ना जात न पांत ...बस सिर्फ एक रागात्मक जोड़ ...

मैं समझ गया , शीला भाभी को रंग लगाने में मैंने एक पल की देरी नहीं की लेकिन, यहाँ ...

मंजू सामने खड़ी मीठी मीठी मुस्करा रही थी, अपनी बड़ी बड़ी आँखों से पिचकारी के रंग छोड़ती

मैं आगे बढ़ा ,
झुक के उसने बगल से निकलने की कोशिश की ...
लेकिन मेरा तो फायदा हो गया,

मैंने पीछे से धर दबोचा ..एक हाथ कमर पे , बचने के चक्कर में उसका आँचल लहरा के गिरा और दोनों बड़े बड़े कपोत सामने ...मैंने अबकी कोई ना लाज की ना लिहाज और हाथ सीधे जोबन पे ...

अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले ,
अधखुले बैष नख रेखन के झलकैं ।

कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,
अधखुले छहरि छराके छोर छलक

मंजू जो झूकी , तो उसकी ब्लाउज की गहराइयों से गोरी गदराई गोलाइयां झांकने लगीं, और अब मेरे हाथों ने ...दो बटन खोल ही दिए।

छलक कर दो चाँद मेरी हथेलियों में आ गए। साडी साया भी उसने खूब नीचे बांधा था, मेरा कमर पे रखा हाथ, चिकनी कमर और पेट का मजा ले रहां था , और दूसरा कब का ब्लाउज के अन्दर दाखिल हो चुका था।

" अब तक तुम डाल रही थी ना , गुड्डी के संग मिल के, अब मेरा नंबर है , चुपचाप डलवा लो।"

मैंने उसके भरे भरे गालों पे अपने गालों का रंग रगडते हुए कहा।

" मैंने मना कब किया था लाला, तुम्ही लौंडिया की तरह शरमा जाते थे ..." धीरे से खिलखिला के वो बोली।

कितने अमलताश एक साथ झड गए।

और हिम्मत कर , पेट पर का हाथ भी देह की नसेनी पे चढ़ कर ब्लाउज के अन्दर सेंध लगा गया।
अब दोनों गदराये कसे कसे उरोज मेरी मुट्ठी में थे।

" बहूत मन कर रहा है इसका ..." वो धीरे से बोली .
मैंने बरामदे की ओर देखा भाभी अन्दर चली गयी थीं।

हिम्मत कर मेरे होंठ खुले,
मैं झूठ नहीं बोलता , ख़ास कर होली के मौके पे और वो भी जब कोई महिला पूछ रही हो, लोग कहते है होलिका देवी श्राप देती हैं।

हाँ ...मैंने कबूल किया। 






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