Sunday, September 7, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--28

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--28
अब आगे....
सुबह हुई, नहा धो के फ्रेश हो के बैठ गया| बड़के दादा और पिताजी ठाकुर से बात करने जाने वाले थे|

मैं: पिताजी आप और दादा कहाँ जा रहे हो?

पिताजी: ठाकुर से बात करने|

मैं: तो आप क्यों जा रहे हो, उन्हें यहाँ बुलवा लो|

पिताजी: नहीं बेटा हमें ही जाके बात करनी चाहिए|

पिताजी और बड़के दादा चले गए, और मैं उत्सुकता से आँगन में टहल रहा था की पता नहीं वहां क्या होगा? अगर माहुरी फिर से ड्रामे करने लगी तो? इधर घर की सभी औरतें मंदिर जा चुकीं थी ... घर में बस मैं और नेहा ही थे| नेहा बैट और बॉल ले आई, और मैं और वो उससे खेलने लगे| तभी पिताजी और बड़के दादा वापस आ गए|

मैं: क्या हुआ? आप इतनी जल्दी मना कर के आ गए?

बड़के दादा: नहीं मुन्ना, ठाकुर साहब घर पे नहीं थे कहीं बहार गए हैं, कल लौटेंगे|

इतना बोल के वे भी खेत चले गए| अब तो मैं ऊब ने लगा था... घर अकेला छोड़ के जा भी नहीं सकता था| करीब बारह बज रहे थे; घडी में भी और मेरे भी! सुबह से सिर्फ चाय ही पी थी वो भी ठंडी! मैंने नेहा को दस रूपए दिए और उसे चिप्स लाने भेज दिया, भूख जो लग रही थी| दस मिनट में नेहा चिप्स ले आई और हम दोनों बैठ के चिप्स खाने लगे, तभी भौजी और सभी औरतें लौट आईं|

बड़की अम्मा: मुन्ना चिप्स काहे खा रहे हो?

मैं: जी भूख लगी थी, घर पे कोई नहीं था तो नेहा को भेज के चिप्स ही मँगवा लिए|

माँ: हाँ भई शहर में होते तो अब तक खाने का आर्डर दे दिया होता|

भौजी हंसने लगी !!!

मैं: आप क्यों हंस रहे हो?

भौजी: क्यों मैं हंस भी नहीं सकती|

भौजी ने नाश्ते में पोहा बनाया था, तब जाके कुछ बूख शांत हुई! नाश्ते के बाद मैं खेत की ओर चल दिया, इतने दिनों से घर पे जो बैठ था| सोचा चलो आज थोड़ी म्हणत मजदूरी ही कर लूँ? पर हंसिए से फसल काटना आये तब तो कुछ करूँ, मुझे तो हंसिया पकड़ना ही नहीं आता था| अब कलम पकड़ने वाला क्या जाने हंसिया कैसे पकड़ते हैं? फिर भी एक कोशिश तो करनी ही थी, मैंने पिताजी से हंसिया लिया ओर फसल काटने के लिए बैठ गया, अब हंसिया तो ठीक-ठाक पकड़ लिया पर काटते कैसे हैं ये नहीं आत था| इधर-उधर हंसिया घुमाने के बाद मैंने हार मान ली|

पिताजी: बस! थक गए? बेटा तुम्हारा काम पेन चलना है हंसिया नहीं| जाओ घर जाओ और औरतों को कंपनी दो|

अब तो बात इज्जत पे आ गई थी| मैंने आव देखा न ताव फसल को जड़ से पकड़ के खींच निकला| अब तो मैं जोश से भर चूका था, इसलिए एक बार में जितनी फसल हाथ में आती उसे पकड़ के खींच निकालता| ये जोश देख के पिताजी हंस रहे थे... अजय भैया और चन्दर भैया जो कुछ दूरी पर फसल काट रहे थे वो भी ये तमाशा देखने आ गए|

बड़के दादा: अरे मुन्ना रहने दो| तुम शहर से यहाँ यही काम करने आये हो?

पिताजी अब भी हंस रहे थे और मैं रुकने का नाम नहीं ले रहा था| तो बड़के दादा ने उन्हें भी डाँट के चुप करा दिया|

बड़के दादा: तुम हंसना बंद करो, हमारा मुन्ना खेत में मजदूरी करने नहीं आया है|

मैं: दादा .. आखिर मैं हूँ तो एक किसान का ही पोता| ये सब तो खून में होना चाहिए| अब ये तो शहर में रहने से इस काम की आदत नहीं पड़ी, ये भी तजुर्बा कर लेने दो| काम से काम स्कूल जाके अपने दोस्तों से कह तो सकूंगा की मैंने भी एक दिन खेत में काम किया है|

मेरे जोश को देखते हुए उन्होंने मुझे हंसिया ठीक से चलाना सिखाया, मैं उनकी तरह माहिर तो नहीं हुआ पर फिर भी धीमी रफ़्तार से फसल काट रहा था| समय बीता और दोपहर के दो बज गए थे और नेहा हमें भोजन के लिए बुलाने आ गई|भोजन करते समय बड़के दादा मेरे खेत में किये काम के लिए शाबाशी देते नहीं थक रहे थे| खेर भोजन के उपरान्त, सब खेत की ओर चल दिए जब मैं जाने के लिए निकलने लगा तो भौजी ने मुझे रोकना चाहा|

भौजी: कहाँ जा रहे हो "आप"?

मैं: खेत में

भौजी: "आपको" काम करने की क्या जर्रूरत है? "आप" घर पर ही रहो.. मेरे पास! आप शहर से यहाँ काम करने नहीं आये हो| मेरे पास बैठो कुछ बातें करते हैं|

मैं: मेरा भी मन आपके पास बैठने को है पर आज आपका व्रत है| और अगर मैं आपके पास बैठा तो मेरा मन आपको छूने का करेगा| इसलिए अपने आपको व्यस्त रख रहा हूँ|

भौजी थोड़ा नाराज हुई, पर मैं वहां रुका नहीं और खेत की ओर चल दिया|


घर से खेत करीब पंद्रह मिनट की दूरी पे था.... जब मैं आखिर में खेत पहुंचा तो पिताजी, बड़के दादा समेत सभी मुझे वापस भेजना चाहते थे, पर वापस जा के मैं क्या करता इसलिए जबरदस्ती कटाई में लग गया| अजय भैया के पास शादी का निमंत्रण आया था तो उन्हें चार बजे निकलना था और चन्दर भैया भी उनके साथ जाने वाले थे|अभी साढ़े तीन ही बजे थे की दोनों भाई तैयार होने के लिए घर की ओर चल दिए| वे मुझे भी साथ ले जाने का आग्रह कर रहे थे परन्तु मैं नहीं माना|शाम के पाँच बजे थे, मौसम का मिज़ाज बदलने लगा था| काले बदल आसमान में छा चुके थे... बरसात होने की पूरी सम्भावना थी| इधर खेत में बहुत सा भूसा पड़ा था, अगर बरसात होगी तो सारा भूसा नष्ट हो जायेगा| दोनों भैया तो पहले ही जा चुके थे, अब इस भूसे को कौन घर तक ले जाए? खेत में केवल मैं. पिताजी और बड़के दादा थे| मैंने स्वयं बड़के दादा से कहा; "दादा आप बोरों में भूसा भरो मैं इसे घर पहुँचता हूँ|" बड़के दादा मना करने लगे पर पिताजी के जोर देने पे वो मान गए| मैंने आज से पहले कभी इस तरह सामान नहीं ढोया था|पिताजी भी इस काम जुट गए, मैं एक-एक कर बोरों को लाद के घर ला रहा था... पसीने से बुरा हाल था| मैंने गोल गले की लाल टी-शर्ट पहनी थी, जो पसीने के कारण मेरे शरीर से चिपक गई थी| अब मेरी बॉडी सलमान जैसी तो थी नहीं पर भौजी के अनुसार मैं "सेक्सी" लग रहा था| जब मैं बोरियां उठा के ला रहा था तो बाजुओं की मसल अकड़ जातीं और टी-शर्ट में से मसल साफ़ दिखती|

मेरा इन बातों पे ध्यान नहीं था... अब केवल तीन बोरियां शेष रह गई थीं| जब मैं पहली बोरी लेके आरहा था तभी माधुरी मेरे सामने आके खड़ी हो गई| मैंने उसकी ओर देखा फिर नज़र फेर ली और बोरी रखने चला गया| जब बोरी लेके लौटा तब माधुरी बोली: "तो अब आप मुझसे बात भी नहीं करोगे?" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और दूसरी बोरी उठाने चला गया, जब तक मैं लौटता माधुरी हाथ बांधे प्यार भरी नजरों से मुझे देख रही थी|

माधुरी: मेरी बात तो सुन लो?

मैं: हाँ बोलो| (मैंने बड़े उखड़े हुए अंदाज में जवाब दिया|)

माधुरी: कल मैं आपसे I LOVE YOU कहने आई थी| पर भाभी ने मेरी बात सुने बिना ही झाड़ दिया|

मैं: मैंने कल भी तुम से कहा था, मैं तुमसे प्यार नहीं करता| तुम क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने में तुली हो !!!

मेरी आवाज में कठोरता झलक रही थी, और आवाज भी ऊँची थी जिसे सुन के भौजी भी भागी-भागी आईं| मैंने उन्हें हाथ के इशारे से वहीँ रोक दिया... मैं नहीं चाहता था की खामा-खा वो इस पचड़े में पड़े| तभी पीछे से पिताजी भी आखरी बोरी ले के आ गए और उनके पीछे ही बड़के दादा भी आ गए|

पिताजी: क्या हुआ पुत्तर यहाँ क्यों खड़े हो? अरे माधुरी बेटा.. तुम यहाँ क्या कर रहे हो?

माधुरी: जी मैं....

मैं: ये फिर से कल का राग अलाप रही है|

इतना कह के मैं वहां से चला गया| पिताजी और बड़के दादा उसे समझाने में लगे हुए थे... मैं वापस आया और चारपाई पे बैठ के दम लेने लगा|भौजी मेरे लिए पानी लाईं और माधुरी के बारे में पूछने लगी:

भौजी: क्यों आई थी ये?

मैं: कल वाली बात दोहरा रही थी|

भौजी: "आपने" कुछ कहा नहीं उसे?

मैं: नहीं, जो कहना है कल पिताजी और बड़के दादा कह देंगे| छोडो इन बातों को.... आप तो पूजा के लिए जा रहे होगे? मौसम ख़राब है... छाता ले जाना|

मैं थोड़ी देर लेट के आराम करने लगा... तभी पिताजी और बड़के दादा भी मेरे पास आके बैठ गए|

मैं: आपने उसे कुछ कहा तो नहीं?

पिताजी: नहीं, बस कह दिया की कल हम आके बात करेंगे|

बड़के दादा: मुन्ना तुम चिंता मत करो, कल ये मामला निपटा देंगे|अब तुम जाके नाहा धोलो... तरो-ताज़ा महसूस करोगे|

घर की सभी औरतें पूजा के लिए चली गई थी| मैं कुछ देर बैठा रहा... पसीना सूख गया तब मैं स्नान करने बड़े घर की ओर चल दिया| मैंने दरवाजा बंद नहीं किया था, जो की शायद मेरी गलती थी! मैंने अपने नए कपडे निकाले, हैंडपंप से पानी भरा और पसीने वाले कपडे निकाले और नहाने लगा| शाम का समय था इसलिए पानी बहुत ठंडा था, ऊपर से मौसम भी ठंडा था| नहाने के बाद मैं काँप रहा था इसलिए मैंने जल्दी से कपडे बदले| मैं कमरे में खड़ा अपने बाल ही बना रहा था की, तभी भौजी अंदर आ गई तब मुझे याद आया की मैं दरवाजा बंद करना तो भूल गया| भौजी की हाथ में पूजा की थाली जिसे उन्होंने चारपाई पे रखा और मेरे पास आईं| इससे पहले की मैं कुछ बोलता उन्होंने आगे बढ़ के मेरे पाँव छुए, मैं सन्न था की भला वो मेरे पाँव क्यों छू रही हैं? आम तोर पे मैं अगर कोई मेरे पैर छूता है तो मैं छिटक के दूर हो जाता हूँ, क्यों की मुझे किसी से भी अपने पाँव छूना पसंद नहीं| परन्तु आजकी बात कुछ और ही थी, मैं नाजाने क्यों नहीं हिला| मैंने भौजी को कंधे से पकड़ के उठाया;

मैं: ये क्या कर रहे थे आप? आपको पता है न मुझे ये सब पसंद नहीं|

भौजी: पूजा के बाद पंडित जी ने कहा था की सभी स्त्रियों को अपने पति के पैर छूने चाहिए| मैंने "आपको" ही अपना पति माना है इसलिए आपके पैर छुए| उनकी बात सुनके मेरे कान सुर्ख लाल हो गए!! मैं उन्हें आशीर्वाद तो नहीं दे सकता था, इसलिए मैंने उन्हें गले लगा लिया| ऐसा लग रहा था मनो ये समां थम सा गया हो! मन नहीं कर रहा था उन्हें खुद से दूर करने का!!!

भौजी: अच्छा अब मुझ छोडो, मुझे भोजन भी तो पकाना है|

मैं: मन नहीं कर रहा आपको छोड़ने का|

भौजी: अच्छा जी... कोई आ रहा है!!!

मैंने एक दम से भौजी को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दिया| भौजी दूर जा के हंसने लगी, क्योंकि कोई नहीं आ रहा था| मैं भी अपने सर पे हाथ फेरते हुए हंसने लगा| उनकी इस दिल्लगी पे मुझे बहुत प्यार आ रहा था|

मैं: बहुत शैतान हो गए हो आप.... भोजन के बाद मेरे पास बैठना कुछ पूछना है|

भौजी: क्या? बताओ?

मैं: अभी नहीं, देर हो रही होगी आपको|

हम दोनों साथ-साथ बहार आये, और मैंने बड़े घर में ताला लगाया और हम रसोई की ओर चल दिए| वहां पहुँच के देखा की, माँ पिताजी के पाँव छू रही है ओर बड़की अम्मा बड़के दादा के पाँव छू रही हैं| पिताजी और बड़के दादा उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे| ये दृश्य मेरे लिए आँखा था!!!

भौजी हाथ-मुंह धो के रसोई पकाने के लिए चली गईं और मैं बड़के दादा और पिताजी के पास लेट गया| नेहा मेरे पास आके गोद में बैठ गई और मैं उसके साथ खेलने लगा| मेरा वहां बैठने का कारन यही था की उन्हें मेरा बर्ताव सामान्य लगे| क्योंकि जब से मैं आया था मैं सिर्फ भौजी के आस-पास मंडराता रहता था, ख़ास तोर पे जब वो बीमार पड़ी तब तो मैंने उन्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा था|

भोजन के पश्चात पिताजी और बड़के दादा तो अपनी चारपाई पे लेट चुके थे और मेरी चारपाई हमेशा की तरह सबसे दूर भौजी के घर के पास लगी थी| जब माँ और बड़की अम्मा अपने बिस्तर में लेट गईं तब भौजी मेरे पास आके बैठ गईं;

भौजी: तो अब बताओ की "आपने" क्या बात करनी थी?

मैं: मैंने एक चीज़ गौर की है, आपने मेरे लिए एक-दो दिनों से "आप, आपने, आपको, इन्हें" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है?

भौजी: "आपने" भी तो मुझे "भौजी" कहना बंद कर दिया?

मैं: वो इसलिए क्योंकि अब हमारे बीच में "देवर-भाभी" वाला प्यार नहीं रहा| आप मुझे अपना पति मान चुके हो और मैं आपको अपनी पत्नी तो मेरा आपको भौजी कहना मुझे उचित नहीं लगा|

भौजी: मुझे आगे बोलने की कोई जरुरत है?

मैं: नहीं... मैं समझ गया!

भौजी: आज आप बहुत "सेक्सी" लग रहे थे!!!

मैं: अच्छा जी???

भौजी: पसीना के कारन आपकी लाल टी-शर्ट आपके बदन से चिपकी हुई थी, मेरा तो मन कर रहा था की आके आपसे लिपट जाऊँ! पर घर पर सभी थे.. इसलिए नहीं आई!!! ना जाने क्यों मेरा कभी इस ओर ध्यान ही नहीं गया|
आपके पास और ऐसी टी-शर्ट हैं जो आपके बदन से चिपकी रहे?

मैं: नहीं... मुझे ढीले-ढाले कपडे पहनना अच्छा लगता है|

भौजी: तो मतलब मुझे फिर से आपको ऐसे देखने का मौका कभी नहीं मिलेगा?

मैं: अगर आप बाजार चलो मेरे साथ तो खरीद भी लेता.. मुझे तो यहाँ का ज्यादा पता भी नहीं|

भौजी: ठीक है मैं चलूंगी... पर घर में क्या बोल के निकलेंगे?

मैं: मुझे क्या पता? आप सोचो?

भौजी: तुम्हारे पास ही सारे आईडिया होते हैं.. तुम्हीं रास्ता निकाल सकते हो|

मैं: सोचता हूँ|

भौजी: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं आपसे एक बात पूछूं?

मैं: हाँ

भौजी: आपने ये सब कहाँ से सीखा?

मैं: क्या मतलब सब सीखा?

भौजी: मेरा मतलब, हमने जब भी सम्भोग किया तो आपको सब पता था| आपको पता है की स्त्री के कौन से अंग को कैसे सहलाया जाता है? कैसे उसे खुश किया जाता है...
(इतना कहते हुए वो झेंप गईं!!!)

मैं: (अब शर्म तो मुझे भी आ रही थी पर कहूँ कैसे?) दरअसल मैंने ये PORN MOVIE में देखा था|

भौजी: ये PORN MOVIE क्या होता है?

मैंने उन्हें बताया की स्कूल में मेरे एक दोस्त के घर पर मैंने वो मूवी देखि थी| उस दिन उसके पिताजी शहर से बहार थे और उसकी माँ पड़ोस में किसी के घर गईं थी| मेरे दोस्त ने मुझे अपने घर पढ़ने के बहाने से बुलाया और हम उसके DVD प्लेयर पर वो मूवी देखने लगे| ये पहली बार था जब मैं PORN मूवी देखि थी| वो मूवी मेरे दिमाग में छप गई थी, पर मैंने उस मूवी में देखे एक भी सीने को भौजी के साथ नहीं किया था और ना ही करे का कोई इरादा था| भौजी की रूचि उस मूवी की कहनी सुनने में थी, सो मैं उन्हें पूरी कहानी सुनाने लगा| एक-एक दृश्य उन्हें ऐसे बता रहा था जैसे मैं उनके साथ वो दृश्य कर रहा हूँ| भौजी बड़े गौर से मेरी बातें दूँ रही थी... अंततः कहानी पूरी हुई और मैंने भौजी को सोने जाने को बोला|नेहा तो पहले से ही चुकी थी, और इस कहानी सुनाने के दौरान मैं उत्तेजित हो चूका था| सो मेरा मन भौजी के बदन को स्पर्श करने को कर रहा था| पर चूँकि आज सारा दिन व्रत के कारन भौजी ने कुछ खाया-पिया नहीं था| इसलिए मेरा कुछ करना मुझे उचित नहीं लगा ... थकावट इतनी थी की लेटते ही सो गया|




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