FUN-MAZA-MASTI
नया रिश्ता पार्ट--2
गतान्क से आगे...........
मैं हाँफ रही थी और वो मेरे निपल्स को चूसे रहा था. मैं धीरे धीरे फिर गरम होने लगी. उसके होंठ काफ़ी देर तक निपल्स से खेलने के बाद वापस नीचे की ओर फिसलने लगे. मेरे पेट के उपर से होते हुए मेरी योनि तक पहुँच गये कुच्छ देर तक मेरे सिल्की झांतों से खेलने के बाद मेरी योनि को चूमा. मैने अपने पैर जितना हो सकता था फैला दिए थे. उसके मुँह से जीभ निकल कर मेरी योनि मे प्रवेस कर गयी. मैं वापस च्चटपटाने लगी. मैने उसके सिर को अपनी योनि मे दाब दिया. उसकी जीभ योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मेरा कमर ऊपर की ओर उठा हुआ था जिससे उसके जीभ को ज़्यादा से ज़्यादा अंदर तक ले सकें. मैं एक बार और झार गयी. आज पहली बार जिंदगी मे ऐसा हुआ था कि किसी के लिंग को योनि मे लेने से पहले ही दो दो बार मैं झार गयी थी. वो अपने काम मे लगा हुआ था. मैने ज़बरदस्ती उसके सिर को अपनी जांघों के बीच से हटाया. उनके होंठ मेरे कर्मरास से चमक रहे थे. "बस भी करो पागल कर दोगे क्या." मैने उनसे कहा. " अब और सहा नहीं जा रहा है. प्लीज़. मेरे बदन को मसल डालो. अपना लिंग मेरी योनि मे डाल दो" उन्हों ने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख दी. और मेरे योनि द्वार पर अपना लिंग सटा कर ज़ोर से धक्का मारा. योनि मेरे रस से पूरी तरह गीली हो रही थी फिर भी उनके लिंग के प्रवेश करते ही मेरी चीख निकल गयी. मैने सिर को उठा कर देखा कि उसका सिर्फ़ आधा ही लिंग अंदर गया है. उसने धीरे धीरे दो चार बार अंदर बाहर किया तो दर्द एक दम कम हो गया. फिर उसने एक और तगड़ा झटका मारा. इस बार पूरा लिंग मेरी योनि के अंदर डाल दिया. मैने जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोला उन्हों ने अपने होंठ मेरे होंठों से सटा कर मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. अंदर बाहर अंदर बाहर हम दोनो एक ही लय में अपने शरीर को हरकत दे रहे थे. कुच्छ देर तक इस प्रकार चोदने के बाद मुझे उल्टा कर के चोपाया बना दिया फिर पीछे की ओर से मेरी योनि मे लिंग डाल कर चोदने लगे. मेरे मुँह से आह ऊवू जैसी आवाज़ें निकल रही थी. बहुत ही तगड़ा लिंग था मेरी योनि को पूरी तरह से झनझोड़ कर रख दिया था. कुच्छ देर इस पोज़िशन से चोदने के बाद मुझे अपने उपर आने को कहा. वो बिस्तर पर पीठ के बल लेट गये. उनका तना हुआ मूसल जैसा लिंग छत की ओर देख रहा था मैने अपने हाथों से अपनी योनि को उनके लिंग पर सटा दिया और धम्म से उनके लिंग पर बैठ गयी. फिर तो उपर –नीचे, उपर – नीचे काफ़ी देर तक उसके लिंग पर बैठक लगाती रही. मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे साथ उपर – नीचे उच्छल रही थीं. जेठ जी मेरी दोनो छातियों पर अपने हाथ रख कर मसल्ने लगे. घंटे भर तक हम दोनो की कबड्डी चलती रही. वो तो हारने का नाम ही नहीं ले रहे थे और मैं बार बार आउट हो कर भी दुबारा पूरे जोश के साथ मैदान मे कूद पड़ती. बहुत ही शानदार मर्द मिला था. मेरे एक – एक अंग दर्द की हिलोरें उठ रही थी. पूरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. घंटे भर मुझे रोन्दने के बाद उन्हों ने ढेर सारा वीर्य मेरी योनि मे डाल दिया. मैं निढाल होकर बिस्तर पर पड़ी थी. कुच्छ देर तक यूँही हम दोनो एक दूसरे से सटे हुए हानफते रहे. फिर उन्हों ने उठकर मुझे उठाया. मेरे पैर काँप रहे थे. वे सहारा देकर मुझे बाथरूम तक ले गये. फिर हम दोनो ने एक दूसरे को खूब मसल मसल कर नहलाया. एक दूसरे को मसल्ते हुए हम फिर गरम हो गये. उन्होने मुझे वहीं फिर्श पर चौपाया बना कर चोदा. शवर की बूँदों के नीचे संभोग करते हुए बड़ा ही आनंद आ रहा था. एक बार फिर मेरे गर्भ मे अपना वीर्य भर कर मुझे चोदा. हम दोनो एक दूसरे के बदन को टवल से पोंच्छ दिए. मेरे कपड़ों की ओर बढ़े हाथ को उन्हों ने अपने हाथ से रोक कर कहा, "जब तक तुम्हारी दीदी हॉस्पिटल से नहीं आती तब तक तुम ऐसे ही रहना."उन्हों ने मेरे पूरे नग्न बदन पर अपनी नज़रें फिराई. मैं उनकी आँखों की ओर देख कर शर्मा गयी. "इस बीच आपके छोटे भाई मिलने आगाए तो?" मैने नीची नज़र करके पूछा. "तो क्या देखेगा उसकी सेक्सी बीवी कैसे अपने सेठ जी की सेवा कर रही है. कितना पुन्य कमा रही है." "धात" मैने उनके नग्न सीने पर मुक्का मारते हुए कहा. हम दोनो एक दूसरे से लिपट कर सो गये . शाम को तैयार हो कर दीदी से मिलने गये. उनको खाना खिला कर वापस घर आगाए. रात तो बस पूरी जागते हुए गुज़री. इस तरह हम जब तक दीदी घर नहीं आगाई तब तक खूब एक दूसरे को भोगे. दो दिन बाद दीदी के लड़का हुआ. तुम भी उसे देखने आए. और शाम को लौट गये. कॉंप्लिकेशन्स के कारण दीदी को हफ्ते भर रुकना पड़ा और मेरी योनि को आपके भाई साहब ने खूब रगड़ा. अगले दिन दीदी के बड़े भाई शाब आए थे जो नैनीताल मे रहते हैं. एक दिन रूकने का प्रोग्राम था. हम दोनो बहुत सम्हाल कर वायवहार कर रहे थे जिससे उन्हें कोई खबर नहीं लगे. मगर कहते हैं ना कि इश्क़ और मुश्क़ कभी च्छुपते नहीं हैं. मुझे तो दिन भर वो गहरी नज़रों से घूरते रहे. रात को सब अलग अलग सोए. मगर मुझे करवाने का ऐसा नशा डाला था जेठ जी के बिना नींद ही नहीं आ रही थी. रात बारह बजे तक करवटें बदलती रही. जब और नहीं रहा गया तो उठके बिना कोई आवाज़ किए बगैर अपने कमरे से निकली और जेठ जी के कमरे मे घुस गयी. अंधेरे मे मुझे पता ही नहीं चला की दो निगाहें मुझे घूर रही हैं. घंटे भर तक अपनी योनि की कुटाई करवाने और ढेर सारा वीर्य अपनी योनि मे लेने के बाद अपने कमरे मे आकर सो गयी. एक दो घंटे बाद दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मैने सोचा की जेठ जी फिर गरम हो गये होंगे. "मार ही डालोगे क्या. उतना ही खाना चाहिए जितना पचा सको." मैने फुसफुसाते हुए कहा. "हुम्म" उन्हों ने बस इतना ही कहा. "आपके बड़े साले साहब घर पे हैं. अगर पता चल गया तो गजब हो जाएगा."मैने फिर विनती की. मगर उन्हों ने कोई जवाब नहीं दिया और मेरे बिस्तर पर आगाए. मेरे बदन पर तो वैसे ही कोई कपड़ा नहीं था. मुझसे कसकर लिपट अगये और मेरी छातियो को थाम लिया. तभी मुझे लगा कि वो जेठ जी नहीं कोई दूसरा था. "कोन? कोन है?" मैने उनसे अलग होने की कोशिश की. मगर वो मेरे नंगे बदन को कस कर बाहों मे भर रखे थे. "मैं हूँ." मुझे पता चल गया कि आने वाला जेठ जी नहीं उनके साले अशोक जी हैं. "आ, आप? आप यहाँ क्या कर रहें हैं?" "वही कर रहा हूँ जो अभी तुम रवि से करवा कर लौटी हो." उनकी बातें सुनते ही मेरे होश उड़ गये. जब तक मैं सम्हल्ती तब तक तो उनका लिंग मेरी योनि के द्वार पर ठोकर मार रहा था. एक झटके से पूरा लिंग अंदर कर दिया. मैं काफ़ी थॅकी हुई थी. मगर मना भी नहीं कर सकती थी. वरना उन्हों ने सबको बता देने की धमकी देदी थी. बगल के कमरे मे जेठ जी सो रहे थे और इधर मेरी ठुकाई चल रही थी. तरह तरह के पोज़िशन मे मुझे ठोक रहे थे. मेरी चूचियो पर चारों तरफ दाँत के निशान नज़र आ रहे थे. निपल्स सूज कर अंगूर जैसे हो गये थे. सारी रात मुझे जगाए रखा. मैं उनके उपर आ कर उनके लिंग पर उठक – बैठक लगाती रही. सुबह तक मेरी हालत खराब हो गयी थी. फिर भी उठकर दीदी एवं बच्चे के लिए समान तैयार कर जेठ जी को दिया. तबीयत खराब होने का बहाना कर के मैं घर पे रुक गयी. कुच्छ देर आराम करना चाहती थी. मगर किस्मत मे आराम ना हो तो क्या करें. अशोक जी भी तबीयत खराब होने का बहाना कर के रुक गये थे. जेठ जी दोपहर तक वापस आए. इस दौरान असोक जी जी ने खूब मज़ा लिया. अब तो मैं भी उनके साथ का लुत्फ़ उठाने लगी थी. उन्हों ने अपने घर लौटने का प्रोग्राम भी पोस्ट्पोंड कर दिया था. दोपहर को जेठ जी को भी हमारी चुदाई का पता चल गया था. फिर तो दोनो एक साथ ही मुझ पर चढ़ाई करने लगे थे. एक पीछे से डालता तो दूसरा मेरे मुँह मे डाल देता. दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह भी इस्तेमाल किया. मैने कभी अपने पीछे वाले द्वार का इस काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया था. पहली बार तो मेरी आँखें ही बाहर आगेई थी. इतना दर्द हुआ कि बता ही नहीं सकती मगर फिर धीरे धीरे उसकी आदि हो गयी. मेरी तो हालत दोनो मिलकर ऐसी कर देते थे कि ठीक ढंग से चला भी नही जाता था. योनि सूज कर लाल रहती थी. चूचियों पर काले काले निशान पड़ गये थे. मैं तो जब तक दीदी घर नहीं आगेई तबतक दोबारा उनसे मिलने हॉस्पिटल नहीं गयी. नहीं तो मेरी हालत देख कर उनको मेरे व्यस्त कार्यक्रम का पता चल जाता. मुझे भी दोदो रंगीले मर्दों का साथ पाकर खूब मज़ा आ रहा था. आसोक जी दीदी के आने के बाद ही खिसक लिए. दीदी के घर आने के बाद ही मुझे जाकर आराम मिला. हम दोनो के मिलन मे भी बाधा पड़ गयी. वैसे दीदी को मेरी चाल और हालत देख कर मेरे रंगीले कार्यक्रम का पता चल गया था. छ्हप्पन व्यंजन के बाद ही एक दम से उपवास मुझे रास नहीं आरहा था. दो दिन मे ही मैं च्चटपटा उठी. रात मे दीदी के सोजाने के बाद रवि जी को बुला लिया. हम दोनो को संभोग करते हुए कुच्छ ही समय हुआ होगा कि दीदी ने आकर हमे पकड़ लिया. हम दोनो सकते मे आगये ज़ुबान से कुच्छ नहीं निकल रहा था. दीदी ने हमारी हालत देख कर हन्स दिया और बोली. "अरे पगली मैने तुझे कभी किसी काम के लिए मना थोड़े ही किया है. फिर मुझ से क्यों छिपती फिर रही है?" उन्हों ने कहा. " करना है तो मेरे सामने बेडरूम मे करो. अरे तुझे तो मैने बुलाया ही रवि की हर तरह से सेवा करने के लिए था. ये भी तो एक तरह से सेवा ही है." फिर तो हम दोनो, ने जब तक तुम मुझे लेने नहीं आगाए, खूब जमकर ऐश किए. दीदी ने बाद मे मुझे तुम्हारे बारे मे भी बताया कि तुम किस तरह उन्हें परेशान करते हो. अब जब तुम किसी की बीवी को चोदोगे तो कोई तुम्हारी बीवी को भी चोद सकता है. पूरी घटना सुनकर मेरे पातिदेव का लिंग फिर से तन कर खड़ा हो गया था फिर तो हम वापस गुत्थम गुत्था हो गये. इस तरह हमारे बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत हो गयी.
एंड
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नया रिश्ता पार्ट--2
गतान्क से आगे...........
मैं हाँफ रही थी और वो मेरे निपल्स को चूसे रहा था. मैं धीरे धीरे फिर गरम होने लगी. उसके होंठ काफ़ी देर तक निपल्स से खेलने के बाद वापस नीचे की ओर फिसलने लगे. मेरे पेट के उपर से होते हुए मेरी योनि तक पहुँच गये कुच्छ देर तक मेरे सिल्की झांतों से खेलने के बाद मेरी योनि को चूमा. मैने अपने पैर जितना हो सकता था फैला दिए थे. उसके मुँह से जीभ निकल कर मेरी योनि मे प्रवेस कर गयी. मैं वापस च्चटपटाने लगी. मैने उसके सिर को अपनी योनि मे दाब दिया. उसकी जीभ योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मेरा कमर ऊपर की ओर उठा हुआ था जिससे उसके जीभ को ज़्यादा से ज़्यादा अंदर तक ले सकें. मैं एक बार और झार गयी. आज पहली बार जिंदगी मे ऐसा हुआ था कि किसी के लिंग को योनि मे लेने से पहले ही दो दो बार मैं झार गयी थी. वो अपने काम मे लगा हुआ था. मैने ज़बरदस्ती उसके सिर को अपनी जांघों के बीच से हटाया. उनके होंठ मेरे कर्मरास से चमक रहे थे. "बस भी करो पागल कर दोगे क्या." मैने उनसे कहा. " अब और सहा नहीं जा रहा है. प्लीज़. मेरे बदन को मसल डालो. अपना लिंग मेरी योनि मे डाल दो" उन्हों ने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख दी. और मेरे योनि द्वार पर अपना लिंग सटा कर ज़ोर से धक्का मारा. योनि मेरे रस से पूरी तरह गीली हो रही थी फिर भी उनके लिंग के प्रवेश करते ही मेरी चीख निकल गयी. मैने सिर को उठा कर देखा कि उसका सिर्फ़ आधा ही लिंग अंदर गया है. उसने धीरे धीरे दो चार बार अंदर बाहर किया तो दर्द एक दम कम हो गया. फिर उसने एक और तगड़ा झटका मारा. इस बार पूरा लिंग मेरी योनि के अंदर डाल दिया. मैने जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोला उन्हों ने अपने होंठ मेरे होंठों से सटा कर मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. अंदर बाहर अंदर बाहर हम दोनो एक ही लय में अपने शरीर को हरकत दे रहे थे. कुच्छ देर तक इस प्रकार चोदने के बाद मुझे उल्टा कर के चोपाया बना दिया फिर पीछे की ओर से मेरी योनि मे लिंग डाल कर चोदने लगे. मेरे मुँह से आह ऊवू जैसी आवाज़ें निकल रही थी. बहुत ही तगड़ा लिंग था मेरी योनि को पूरी तरह से झनझोड़ कर रख दिया था. कुच्छ देर इस पोज़िशन से चोदने के बाद मुझे अपने उपर आने को कहा. वो बिस्तर पर पीठ के बल लेट गये. उनका तना हुआ मूसल जैसा लिंग छत की ओर देख रहा था मैने अपने हाथों से अपनी योनि को उनके लिंग पर सटा दिया और धम्म से उनके लिंग पर बैठ गयी. फिर तो उपर –नीचे, उपर – नीचे काफ़ी देर तक उसके लिंग पर बैठक लगाती रही. मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ भी मेरे साथ उपर – नीचे उच्छल रही थीं. जेठ जी मेरी दोनो छातियों पर अपने हाथ रख कर मसल्ने लगे. घंटे भर तक हम दोनो की कबड्डी चलती रही. वो तो हारने का नाम ही नहीं ले रहे थे और मैं बार बार आउट हो कर भी दुबारा पूरे जोश के साथ मैदान मे कूद पड़ती. बहुत ही शानदार मर्द मिला था. मेरे एक – एक अंग दर्द की हिलोरें उठ रही थी. पूरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. घंटे भर मुझे रोन्दने के बाद उन्हों ने ढेर सारा वीर्य मेरी योनि मे डाल दिया. मैं निढाल होकर बिस्तर पर पड़ी थी. कुच्छ देर तक यूँही हम दोनो एक दूसरे से सटे हुए हानफते रहे. फिर उन्हों ने उठकर मुझे उठाया. मेरे पैर काँप रहे थे. वे सहारा देकर मुझे बाथरूम तक ले गये. फिर हम दोनो ने एक दूसरे को खूब मसल मसल कर नहलाया. एक दूसरे को मसल्ते हुए हम फिर गरम हो गये. उन्होने मुझे वहीं फिर्श पर चौपाया बना कर चोदा. शवर की बूँदों के नीचे संभोग करते हुए बड़ा ही आनंद आ रहा था. एक बार फिर मेरे गर्भ मे अपना वीर्य भर कर मुझे चोदा. हम दोनो एक दूसरे के बदन को टवल से पोंच्छ दिए. मेरे कपड़ों की ओर बढ़े हाथ को उन्हों ने अपने हाथ से रोक कर कहा, "जब तक तुम्हारी दीदी हॉस्पिटल से नहीं आती तब तक तुम ऐसे ही रहना."उन्हों ने मेरे पूरे नग्न बदन पर अपनी नज़रें फिराई. मैं उनकी आँखों की ओर देख कर शर्मा गयी. "इस बीच आपके छोटे भाई मिलने आगाए तो?" मैने नीची नज़र करके पूछा. "तो क्या देखेगा उसकी सेक्सी बीवी कैसे अपने सेठ जी की सेवा कर रही है. कितना पुन्य कमा रही है." "धात" मैने उनके नग्न सीने पर मुक्का मारते हुए कहा. हम दोनो एक दूसरे से लिपट कर सो गये . शाम को तैयार हो कर दीदी से मिलने गये. उनको खाना खिला कर वापस घर आगाए. रात तो बस पूरी जागते हुए गुज़री. इस तरह हम जब तक दीदी घर नहीं आगाई तब तक खूब एक दूसरे को भोगे. दो दिन बाद दीदी के लड़का हुआ. तुम भी उसे देखने आए. और शाम को लौट गये. कॉंप्लिकेशन्स के कारण दीदी को हफ्ते भर रुकना पड़ा और मेरी योनि को आपके भाई साहब ने खूब रगड़ा. अगले दिन दीदी के बड़े भाई शाब आए थे जो नैनीताल मे रहते हैं. एक दिन रूकने का प्रोग्राम था. हम दोनो बहुत सम्हाल कर वायवहार कर रहे थे जिससे उन्हें कोई खबर नहीं लगे. मगर कहते हैं ना कि इश्क़ और मुश्क़ कभी च्छुपते नहीं हैं. मुझे तो दिन भर वो गहरी नज़रों से घूरते रहे. रात को सब अलग अलग सोए. मगर मुझे करवाने का ऐसा नशा डाला था जेठ जी के बिना नींद ही नहीं आ रही थी. रात बारह बजे तक करवटें बदलती रही. जब और नहीं रहा गया तो उठके बिना कोई आवाज़ किए बगैर अपने कमरे से निकली और जेठ जी के कमरे मे घुस गयी. अंधेरे मे मुझे पता ही नहीं चला की दो निगाहें मुझे घूर रही हैं. घंटे भर तक अपनी योनि की कुटाई करवाने और ढेर सारा वीर्य अपनी योनि मे लेने के बाद अपने कमरे मे आकर सो गयी. एक दो घंटे बाद दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मैने सोचा की जेठ जी फिर गरम हो गये होंगे. "मार ही डालोगे क्या. उतना ही खाना चाहिए जितना पचा सको." मैने फुसफुसाते हुए कहा. "हुम्म" उन्हों ने बस इतना ही कहा. "आपके बड़े साले साहब घर पे हैं. अगर पता चल गया तो गजब हो जाएगा."मैने फिर विनती की. मगर उन्हों ने कोई जवाब नहीं दिया और मेरे बिस्तर पर आगाए. मेरे बदन पर तो वैसे ही कोई कपड़ा नहीं था. मुझसे कसकर लिपट अगये और मेरी छातियो को थाम लिया. तभी मुझे लगा कि वो जेठ जी नहीं कोई दूसरा था. "कोन? कोन है?" मैने उनसे अलग होने की कोशिश की. मगर वो मेरे नंगे बदन को कस कर बाहों मे भर रखे थे. "मैं हूँ." मुझे पता चल गया कि आने वाला जेठ जी नहीं उनके साले अशोक जी हैं. "आ, आप? आप यहाँ क्या कर रहें हैं?" "वही कर रहा हूँ जो अभी तुम रवि से करवा कर लौटी हो." उनकी बातें सुनते ही मेरे होश उड़ गये. जब तक मैं सम्हल्ती तब तक तो उनका लिंग मेरी योनि के द्वार पर ठोकर मार रहा था. एक झटके से पूरा लिंग अंदर कर दिया. मैं काफ़ी थॅकी हुई थी. मगर मना भी नहीं कर सकती थी. वरना उन्हों ने सबको बता देने की धमकी देदी थी. बगल के कमरे मे जेठ जी सो रहे थे और इधर मेरी ठुकाई चल रही थी. तरह तरह के पोज़िशन मे मुझे ठोक रहे थे. मेरी चूचियो पर चारों तरफ दाँत के निशान नज़र आ रहे थे. निपल्स सूज कर अंगूर जैसे हो गये थे. सारी रात मुझे जगाए रखा. मैं उनके उपर आ कर उनके लिंग पर उठक – बैठक लगाती रही. सुबह तक मेरी हालत खराब हो गयी थी. फिर भी उठकर दीदी एवं बच्चे के लिए समान तैयार कर जेठ जी को दिया. तबीयत खराब होने का बहाना कर के मैं घर पे रुक गयी. कुच्छ देर आराम करना चाहती थी. मगर किस्मत मे आराम ना हो तो क्या करें. अशोक जी भी तबीयत खराब होने का बहाना कर के रुक गये थे. जेठ जी दोपहर तक वापस आए. इस दौरान असोक जी जी ने खूब मज़ा लिया. अब तो मैं भी उनके साथ का लुत्फ़ उठाने लगी थी. उन्हों ने अपने घर लौटने का प्रोग्राम भी पोस्ट्पोंड कर दिया था. दोपहर को जेठ जी को भी हमारी चुदाई का पता चल गया था. फिर तो दोनो एक साथ ही मुझ पर चढ़ाई करने लगे थे. एक पीछे से डालता तो दूसरा मेरे मुँह मे डाल देता. दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह भी इस्तेमाल किया. मैने कभी अपने पीछे वाले द्वार का इस काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया था. पहली बार तो मेरी आँखें ही बाहर आगेई थी. इतना दर्द हुआ कि बता ही नहीं सकती मगर फिर धीरे धीरे उसकी आदि हो गयी. मेरी तो हालत दोनो मिलकर ऐसी कर देते थे कि ठीक ढंग से चला भी नही जाता था. योनि सूज कर लाल रहती थी. चूचियों पर काले काले निशान पड़ गये थे. मैं तो जब तक दीदी घर नहीं आगेई तबतक दोबारा उनसे मिलने हॉस्पिटल नहीं गयी. नहीं तो मेरी हालत देख कर उनको मेरे व्यस्त कार्यक्रम का पता चल जाता. मुझे भी दोदो रंगीले मर्दों का साथ पाकर खूब मज़ा आ रहा था. आसोक जी दीदी के आने के बाद ही खिसक लिए. दीदी के घर आने के बाद ही मुझे जाकर आराम मिला. हम दोनो के मिलन मे भी बाधा पड़ गयी. वैसे दीदी को मेरी चाल और हालत देख कर मेरे रंगीले कार्यक्रम का पता चल गया था. छ्हप्पन व्यंजन के बाद ही एक दम से उपवास मुझे रास नहीं आरहा था. दो दिन मे ही मैं च्चटपटा उठी. रात मे दीदी के सोजाने के बाद रवि जी को बुला लिया. हम दोनो को संभोग करते हुए कुच्छ ही समय हुआ होगा कि दीदी ने आकर हमे पकड़ लिया. हम दोनो सकते मे आगये ज़ुबान से कुच्छ नहीं निकल रहा था. दीदी ने हमारी हालत देख कर हन्स दिया और बोली. "अरे पगली मैने तुझे कभी किसी काम के लिए मना थोड़े ही किया है. फिर मुझ से क्यों छिपती फिर रही है?" उन्हों ने कहा. " करना है तो मेरे सामने बेडरूम मे करो. अरे तुझे तो मैने बुलाया ही रवि की हर तरह से सेवा करने के लिए था. ये भी तो एक तरह से सेवा ही है." फिर तो हम दोनो, ने जब तक तुम मुझे लेने नहीं आगाए, खूब जमकर ऐश किए. दीदी ने बाद मे मुझे तुम्हारे बारे मे भी बताया कि तुम किस तरह उन्हें परेशान करते हो. अब जब तुम किसी की बीवी को चोदोगे तो कोई तुम्हारी बीवी को भी चोद सकता है. पूरी घटना सुनकर मेरे पातिदेव का लिंग फिर से तन कर खड़ा हो गया था फिर तो हम वापस गुत्थम गुत्था हो गये. इस तरह हमारे बीच एक नये रिश्ते की शुरुआत हो गयी.
एंड
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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