Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--175

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--175

बड़ी कड़ी शर्त रख दी थी गुड्डी ने। अभी कल ही तो बिचारी की सील खुली थी , सिर्फ एक बार चुदी थी और ऐसी कसी चूत के साथ किसी नयी नवेली किशोरी के लिए विपरीत रति।

लेकिन गुड्डी भी ,जो बोल दिया सो बोल दिया।

बिचारी रंजी , उहापोह में , मन उसका बहुत कर रहा था चुदवाने का। पहले गुड्डी की चुदाई देख , फिर गुड्डी की उंगलिया लेकिन कैसे ,

और एक मिनट झिझकने के बाद उसने अपनी परेशानी मेरे सामने रख दी ,

' लेकिन कैसे ,… मुझसे ,… बहुत मुश्किल है। तुम ही आ जाओ न ऊपर जैसे कल किया था। "

गुड्डी ने एक बाल्टी जैसी बर्फ का पानी फ़ेंक दिया।

" देख अगर चुदवाना है तो झट से चढ़ जा लंड पे , आज वो फ़िल्म नही देखा था कैसे चढ़ के वो घोंट रही थी गपागप। आज तू चुदवायेगी नहीं , चोदेगी। बस चल चढ़ जा शूली पे। "

अब अगर रंजी कहीं बिदक जाती तो घाटा तो मेरा ही होता न।


मैंने बात सम्हालने की कोशिश की ,

" अरे यार चल एक बार ट्राई करते हैं न। मैं हूँ न तेरी हेल्प के लिए और गुड्डी भी हेल्प करेगी। और कोशिश करने पे नहीं होगा तो तेरी बात , कर लेंगे कल की तरह। '

गुड्डी ने एक बार तो मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा , फिर वो भी समझ गयी। कई बार लौंडिया को पुचकारना भी पड़ता है और अगर एक बार किसी तरह सुपाड़ा घुस गया चूत के अंदर फिर तो पूरी कबड्डी खेल के ही निकलेगा, वो लाख गांड पटके , टसुये बहाये।


लेकिन मुंह बनाकर बोली ,

" अब चल तेरे भैया तेरे बचपन के आशिक है तो , चल तू भी क्या याद करेगी हम दोनों हेल्प करेंगे लेकिन धक्के तू ही लगाएगी। "


गुड्डी ने दूसरी हेल्प भी कर दी।

कल रात की कडुवा तेल ( सरसों के तेल ) की शीशी वहीँ रखी थी। उसे उठाकर ,खोलकर , बूँद बूँद पूरे सुपाड़े पर उसने टपका दिया जब तक सुपाड़ा चपचप नहीं करने लगा। फिर उस शैतान ने , सुपाड़े की आँख ( पी होल ) खोल कर चार बूँद सीधे उसमें भी टपका दीं।

यही नहीं , दो ऊँगली में तेल लगा के रंजी की बिल के अंदर भी चुपड़ दिया और बोली ,

“चल अब चढ़ जा। और अगर जरा भी छिनारपना किया न , आज ही तेरी ऐसी गांड मारूंगी जित्ती तेरे खानदान के गांडू लौंडो ने कभी न मरवाई होगी।

रंजी हिम्मत कर के उठी और मेरी ओर बढ़ी,

रंजी की आँखों में एक शरारत भरी चमक थी।

मैं और गुड्डी दोनों रंजी की ओर देख रहे थे ,देखे वो क्या करती है। 


 वो घुटनों के बल चलती मेरे पैरों के बीच में आई , थोड़ी झुकी और उसने मेरे एक बाल को मुंह में ले लिया और चुभलाने लगी।

साथ ही उसकी लम्बी उंगलिया मेरे पिछवाड़े और बाल्स के बीच की जगह को कुरेद रही थीं , मस्ती से मेरी हालत ख़राब हो गयी , आँखे मुंद गयी।


लेकिन ये तो सिर्फ एक शुरुआत थी।

रंजी की शरारतों का अंत नहीं था।

पहले उँगलियों ने मेरे लंड के बेस को पकड़ कर दबाया और फिर बाल्स छोड़कर उसकी जीभ सीधे लंड के बेस पर लपर लपर ,और फिर वहां से नीचे ,उसकी लांग लिंक्स , लंड के बेस से लेकर सीधे पिछवाड़े के छेद तक , और साथ में उसकी कोमल उँगलियाँ कभी मेरे बाल्स को दबातीं तो कभी उसके नाख़ून खुले पगलाए सुपाड़े को खुरच देतीं।

मस्त हो मैं सिसक रहा था , उचक रहा था ,और आखिर मुझे बोलना ही पड़ा आआओ न , प्लीजज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज।

लेकिन रंजी जब तड़पाने के मूड में हो तो , … उसने मेरे दोनों नितम्ब उठाये , दोनों हाथों से पिछवाड़े का दरवाजा खोला और उसके होंठ सीधे वहीँ ,एकदम चुम्बक से चिपक गए और वो जोर जोर कभी चूसती , कभी वहां ब्लो करती।

तंग वो पिछवाड़े को कर रही थी और असर आगे हो रहा था। जंगबहादुर पगला गए थे।

पांच मिनट तक इस तरह खेल तमाशे दिखा , और आग लगा मुझे तड़पा , रंजी मेरे ऊपर आई। पहले उसने अपने लम्बे बाल पीछे कर के पानीटेल की तरह बाँध लिए फिर दोनों टाँगे फैला सीधे अपना सेंटर मेरे बांस के ऊपर , …

लेकिन अब उसके लिए मुश्किल थी।

कभी वो अपनी चुनुमिया दोनों हाथों से खोलने की कोशिश करती तो मेरा खूंटा नहीं सेट हो पाता , और जब वो हो भी जाता तो ऊपर से प्रेशर नहीं लगा पाती की सुपाड़ा अंदर घोंट लें।

१-२ मिनट तक ये जंग चलती रही , फिर गुड्डी अपनी सहेली कम छुटकी ननदिया के हेल्प में आ गयी।

दो तीन कोशिश के बाद आखिर गुड्डी ने मेरे साथ विपरीत रति में सफलता पा ली थी। तो उसको सारी ट्रिकस मालूम थीं।


पहले नीचे झुक के उसने रंजी की कसी हुयी चुन्मुनिया के दोनों होंठ पूरी ताकत से खोले और मेरे सुपाड़े पे सेट कर दिया।

और फिर सीधे गुड्डी रंजी के दोनों कंधो पर हाथ लगा के जोर से प्रेस करने लगी और उसने मुझे भी इशारा किया।

मैं भी उस कोशिश में शामिल हो गया और रंजी की मुट्ठी भर की कमर मेरी मुठ्ठी में थी और जोर जोर से पकड़ कर मैं उसे अपनी ओर खींचने लगा।


रंजी के चेहरे से दर्द साफ झलक रहा था , उसकी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों में आंसू नाच रहे थे।

कोई भी सूई के छेद में मूसल ढकेले , अभी कुछ देर पहले वहां गुड्डी ने दो अपनी पतली पतली उंगली घुसेड़ी थीं लेकिन अपनी कलाई का पूरा जोर लगाना पड़ा था और यहाँ मेरा सुपाड़ा ढाई इंच से से भी ज्यादा मोटा रहा होगा।

दर्द से उसकी फटी जा रही थी।

दांतों से होंठ काटते वो किसी तरह चीख को रोक रही थी।

उसके दोनों हाथ जोर जोर से चादर को पकड़े हुए थे लेकिन साथ साथ वो भी पुश कर रही थी , ठेल रही थी।

हम तीनो का जोर लेकिन उन सब से बढ़कर कड़ुआ तेल का असर ,

सूत सूत करके सुपाड़ा अंदर जा रहा था। 


गुड्डी ने अपनी पूरी ताकत से रंजी को मेरे बांस पे पुश किया और साथ में मैंने भी उसे अपनी और खींचा।

२-४ मिनट में हम दोनों पूरा सुपाड़ा उसकी कसी चूत में घुसाने में कामयाब हो गए।

फिर गुड्डी ने रंजी को छोड़ दिया और सामने मेरे सर के पास जाके बैठ गयी.

" चल मुनिया अब ले ले अंदर ,मोटा बांस। हैं न तेरी गली के गदहों जैसा मोटा लम्बा " हंस के गुड्डी ने छेड़ा।

गुड्डी के हटने के बाद अब मेहनत सिर्फ हम दोनों को करनी थी , मैं रंजी की पतली कमर पकड उसे अपनी ओर खींच रहा था और रंजी केदोनो हाथ मेरे कंधे पर थे वो जोर जोर से पुश कर रही थी।

गुड्डी का कमेंट बिना जवाब के रह जाय ये रंजी की फितरत में नही था। बोली ,

" और क्या , तभी तो बनारस वाली लार टपकाते यहाँ तक आ जाती हैं। अरे मैं तो एक दो बार ले रहीं हूँ , २७ मई के बाद देखना दिन रात लगातार , बार बार ये गदहा छाप तेरी ओखल में धान कुटेगा। और सिर्फ तुम्हारी क्यों तुम्हारे सारे खानदान वालों की , अगवाड़ा पिछवाड़ा सब , तब पूछूंगी "

गुड्डी हसंते खिलखिलाते बोली ,

" यार तेरे मुंह में घी शक्कर , कब आएगी साल्ली २७ मई। और फिर जहाँ तक मेरे बहनो का सवाल है , वो तो उनका हक़ है। "

फिर कुछ रूककर गुड्डी ने अगला गोल दागा।

" चल हरामन की , जल्दी से घोंट पूरा नहीं तो मैं मानूंगी की हो तुम गदहे की जनी। जोर लगा के हईसा तोहरी बहिनी पर चढ़ गया भैंसा "


चैलेन्ज जबरदस्त था।

मैने पूरी ताकत से अब रंजी की पतली कमर पकड़ रखी थी , उसे अपनी ओर खींचने के साथ मैं नीचे से अपने नितम्ब भी उचका रहा था।

रंजी के चेहरे पे मार्च की रात में पसीने की बूंदे चुहचुहा आई थी , लेकिन वो भी थी एकदम पक्की,… वो बिना रुके जोर जोर से पूरी ताकत से बिना रुके पुश कर रही थी।

मोटा लंड रगड़ता दरेरता घुसता जा रहा , सूत सूत , इंच इंच।

४-५ मिनट की हम दोनों के मेहनत मशक्कत के बाद रंजी थककर ,पल भर के लिए रुकी , अपने बाल ठीक किये , चेहरे का पसीना पोंछा , और नीचे झुक के देखा।


अभी भी १/३ लंड बाहर था। करीब ६ इंच वो अंदर घोंट चुकी थी।

रंजी अपने स्कूल की नहीं डिस्ट्रिक्ट लेवल की टॉप स्पोर्ट्स में थी , रनिंग , साइक्लिंग , स्वीमिंग और साथ में योग , उसका फिटनेस लेवल बहुत हाई था , खास तौर से जांघ की पैर की हाथ की मसल्स।

लेकिन आज वो भी थक कर चूर लग रही थी।

पर सिर्फ एकबार की चुदी चूत के लिए ६ इंच एक बार में घोंटना कम नहीं था।

मैंने उसकी आँखों में देखा और वो , उसकी आँखे मुस्कराई।

जैसे कोई टहनी झुका के पेड़ से फल चुरा ले बस मैने वही किया , उसे अपनी ओर खींचा , और रंजी के दहकते , महकते होंठों से चुम्बन चुरा लिया।

थोड़े देर तक उन रसीले होंठो का रस पीने के बाद मेरी जीभ ने उसकी मखमली होंठ में सेंध लगा दी और बिना रुके रंजी ने मेरा होंठ , मेरे शिश्न की तरह चूसना शुरू कर दिया।

मजा होंठों को मिल रहा था तो बिचारे हाथों ने क्या गुनाह किया था ,बस रंजी के देह वृक्ष से दोनों फल , अब मेरे हाथ में थे। कुछ देर तक तो मेरी उंगलिया उन्हें सहलाती रही , दबाती रहीं फिर जोर जोर से उन्होंने निचोड़ना शुरू कर दिया।

रंजी कौन सी सीधी थी।

कल रात ही मैं देख चूका था , बिना सिखे सिखाए , वो एकदम नेचुरल थी , मंजू और शीला भाभी ऐसी प्रौढ़ाओ के गुर उसके खून में थे।


बस उसकी प्रेम गली ने भी वही काम करना शुरू कर दिया जो मेरे होंठ कर रहे थे ,मेरे लिंग को जोर जोर से निचोड़ना।

और वो स्टाइल से , बेस से उसकी चूत दबाना शुरू करती और मिनट भर में सुपाड़े को निचोड़ने लगती।

दो चार मिनट की मस्ती में सारी थकान काफूर।

और अब मैंने पहल किया। उसकी कमर पर मेरा एक हाथ था और दूसरा उसके जोबन पे।

नीचे से कमर उठा उठा के मैंने उसे चोदना शुरू किया।

और कुछ ही देर में उसकी देह , मेरी देह की ताल की लय पर आ गयी। 


 मैं ऊपर पुश करता तो वो भी साथ साथ ,…

कुछ देर में आधा लंड बाहर था , फिर हम दोनों ने एक साथ जोर लगाया और लंड उसकी चूत में।

कुछ देर में मैंने अपना जोर हल्का कर दिया और वो जैसे कोई नटनी की नयी नवेली लड़की ,तेल लगे बांस पर चढ़ने की प्रैक्टिस करे , फिसल जाए , फिर चढ़े , बस उसी तरह।


वो अपना जोर लगाकर मेरा मोटा लंड अंदर घोंटती , फिर खुद ही पुल करके उसे बाहर निकालती।

दर्द के साथ उसे मजा भी आरहा था , और जैसे कोई नए गेम को सीख के बार बार प्रैक्टिस करे , बस यही उसकी हालत हो रही थी।

और अब मुश्किल से जब एक इंच बाहर रह गया था , मैने उसकी कमर पकड़ी , पूरी ताकत से उसे अपनी ओर खींचा और डबल जोर से लंड उसकी चूत में ठेला।

मेरा लंड पूरा अंदर था।

सुपाड़ा उसकी बच्चेदानी पे ठोकर मार रहा था और उसकी चूत , क्लिट मेरे लंड के बेस पे रगड़ खा रही थी।


और ख़ुशी से हम दोनों ने एक दूसरे को बाँहों में भींच लिया लेकिन इस बार मेरे होंठ रंजी के होंठ पे नहीं ,सीधे उसके किसमिश ऐसे निपल मेरे मुंह में थे और मैं उन्हें जीत की मिठाई की तरह चुभला रहा था। दूसरा जोबन मेरे हाथ में दबा मजे ले रहा था।
रंजी के हाथों ने मुझे भींच रखा था और उसके लम्बे नाख़ून मेरे कंधो में धंसे थे।

मेरे दांतों के हलके निशान उसके गोर संदली उरोजों पे पड़ रहे थे।

उसके नाखूनों की खरोंचे , खराशें मेरे कंधो पे ,मेरी छाती पे इस पल के निशान बना रही थी।

और इसी हालत में उसने धीरे धीरे अपनी कमर हिलानी शुरू दी। उसके चूतड़ हलके हलके धक्के मारना शुरू कर चुके थे और कुछ ही देर में वो दो तीन इंच लंड एक बार फिर बाहर निकाल चुकी थी , फिर जैसे कोई पोल डांसर सरकते हुए पोल से लिपट जाय , ऊपर चढ़ के पोल से रगड़ते हुए , सरकते हुए उतरे , बस उसी तरह सरकते हुए एकदम जैसे निष्प्रयास , मेरे कुतुबमीनार पे सरकते , स्लाइड करते हुए उसने एक बार फिर पूरा ९ इंच अंदर घोंट लिया।

और अब हम दोनों की विपरीत रति शुरू हो गयी थी ,कभी वो धक्के लगाती , कभी मैं तो कभी दोनों साथ।

पांच -छ मिनट ऐसे ही सुख में दुबे हुए हम इस नयी पोजीशन का मजा लेते रहे , फिर अचानक रंजी ने गियर बदला , और


मेरे दोनों हाथ मोड़कर ,उस बिंदास बाला ने मेरे सर के नीचे दबा दिए , झुक के अपने गदराये किशोर उभरते हुए उरोज मेरे सीने पे जोर जोर से रगड़ा , और हलके से मेरे इयर लोब को काट के अपना हुक्म सुना दिया ,

मेरी जुर्रत मैं उस किशोर सुंदरी की हुकम उदूली करता।

हुक्म था ," अपना हाथ ऐसे ही रखना , ज्यादा हिलना डुलना मत उठने की कोशिश भी नहीं ".

और हुकम पे सील लगाते हुए कचकचा के उसने मेरा गाल काट लिया , खूब जोर से , और एक दम ९० डिग्री हो के बैठ गयी , पूरे जंगबहादुर , उसकी सहेली के कब्जे में थे , गुलाबी परी में पैबस्त , पूरे जड़ तक।

और अब मेरी देह पर उसने कब्जे के झंडे गाड़ने शुरू कर दिए , जो काम अभी मैं उसके निपल से कर रहा था वही उसके होंठों और हाथों से शुरू कर दिया।

कभी वो मेरे निपल्स हलके से स्क्रैच करती तो कभी कचकचा के काट लेती। दर्द और मजे की एक तरंग सी दौड़ जाती मेरे देह में , मन में।


कम्प्लीट सरेंडर का अपना मजा है।

बस मैं टुकुर टुकुर , ललचाते उसे देखता रहता।

लेकिन उस तानाशाह को इतना भी नहीं गवारा था।

और झुक के उसने मेरे सपनो के दरवाजों के फाटक बंद कर दिए , उसमें भुन्नासी ताले लगा दिए , मेरी पलको को चूम के।

अब मेरी हिम्मत जो मैंने बेईमानी से भी उसे कनखियों से भी देखूं।

फिर तो कोई शराब के नशे में चूर जैसे झूमे , उस तरह उस की कमर हिलने लगी , कभी आगे कभी पीछे , बिना जरा सा ऊपर नीचे किये।

पहली बार किसी शराब की बोतल को खुद नशा हुआ होगा।

और जैसे सहारे के लिए उसने मेरे कंधे पकड़ लिए , और कमर हिलाने डुलाने की स्पीड खूब तेज कर दी।

बस लग रहा था , जैसे मैं साँवन में आम के पेड़ पे टंगे झूले पे बैठा होउँ और कोई भौजाई , कजरी गाते जोर जोर की पेंग लगा रही हो।


उसकी क्लिट जोर जोर से मेरे मोटे खूंटे के बेस से रगड़ रही थी। और साथ ही जैसे जाड़े की रात में गाँव में कोल्हू में गन्ना पेरा जाय , उसकी शरारती सहेली मेरे खूंटे को निचोड़ रही थी। उसके कान उमेठ रही थी।

लेकिन वो जालिम क्या जो सिर्फ एक सजा से मान जाए , फिर ये तो कैद बामशक्कत मिली थी।

उसने जोर से अपने गदराये जोबन का पूरा वजन मेरे छाती पे रख के पूरी ताकत से दबा दिया .

मैं कसमसाने के अलावा कर भी क्या सकता था।

लेकिन उसके लिए ये भी काफी नहीं था।

अब उसके यौवन के रस के प्याले , जवानी के फूल मेरे होंठों के पास आये और जैसे कोई तितली फूलों की पंखुड़ी को सहला के निकल जाए , बस उसके निपल्स ने मेरे होंठो को छूआ और उड़ लिए।

बिचारा मैं सर उचकाने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता था , और डांट भी पड़ी और मार भी।

" बदमाश , बचपन से नदीदे हो। " और साथ में हल्का सा चांटा , हाथों का नही होंठो का।



फिर तो दोनो हाथ से उसने मेरे कंधो को जोर से पकड़ा और क्या कोई बेताब जवाँमर्द , अपनी नयी नवेली दुल्हन को गौने की रात हचक हचक के चोदेगा ,

जिस तरह से रंजी ने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू किये , क्या उसकी कमर और नितम्बो में जोर था , आलमोस्ट आधे हथियार की लम्बाई तक वो कमर उठा के निकालती और फिर एक धक्के में सरकती स्लाइड करती पूरा ९ इंच का खूंटा अंदर , और साथ ही खूब जोर से पूरे लंड को वो कुशल किशोरी निचोड़ लेती और जब तक मैं सम्हलूँ , अगला धक्का स्टार्ट ,

बीच बीच में मैं भी चूतड़ उचका के ताल पे ताल देता।


आँखे मेरी बंद थी , हाथ सर के नीचे बंधे ,बोलने की इजाजत नहीं थी।

लेकिन पूरी देह में आँखे उग आई थी और कान वैसे भी खुले ही थे।

और गुड्डी ने झुक के मेरे कान में पूछा ,


"क्यों बहनचोद , मजा आ रहा है बहन को चोदने में "




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