FUN-MAZA-MASTI
बहकती बहू--5
होली की घटना के बाद से काम्या अपने ससुर से थोड़ा दूर दूर रहने लगी। आखिर उसके ससुर ने उसे उपर से पूरा नंगा कर दिया था वो भी उसकी सहमति से। इस कारण काम्या बहुत शर्मिंदा
महसूस कर रही थी। इस बात को मदनलाल भी नोट कर रहा था की बहु कुछ हिचक रही है लेकिन उसके लिए तस्सली की बात ये थी कि बहु गुस्सा नहीं थी। चार दिन तक ऐसी ही लुका
छिपी चलती रही। मदनलाल ने सोचा कि शुरुआत उसे ही करनी पड़ेगी क्योंकि स्त्री स्वाभाव से ही इन मामलों में आगे नहीं बढ़ती। सो रात को उसने छत से बहु को फ़ोन किया।
बाबूजी का फ़ोन देखते ही काम्या की दिल की धड़कन बढ़ गई। कुछ देर पहले ही सुनील से गरमागरम बातें हुई थी सो वो पहले से ही मूड में थी। काम्या ने फ़ोन रिसीव किया।
काम्या :-- हाँ बाबूजी।
मदनलाल :---- बहु क्या कर रही हो ? सो गई थी क्या
काम्या :--- नहीं बाबूजी। ऐसे ही गाने सुन रहे थे।
मदनलाल :--- क्या दिन भर गाना सुनती रहती हो। थोड़ा घुमा फ़िर करो। शरीर स्वस्थ रहेगा।
काम्या :--- बाबूजी रात को कहाँ घूमे।
मदनलाल :--- अरे ! रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी होता है। और जगह की कोई कमी है ,इतनी बड़ी छत पडी है। चलो ऊपर आ जाओ।
काम्या :--- उपर ? ऊपर तो आप हैं।
मदनलाल :-- तो ! हम है से क्या क्या मतलब। हम कोई भूत प्रेत हैं क्या।
काम्या :---- नहीं वो बात नहीं थी पर ssssss
मदनलाल :-- तो फिर क्या बात है। जो कहना है साफ़ साफ़ कहो। डरती काहे हो
काम्या :--- छत में तो अँधेरा भी रहता है
मदनलाल :--- अँधेरा है तो क्या हुआ ? अपना घर है कोई जंगल जाना है क्या। चलो आओ थोड़ा वाकिंग कर लो
काम्या :--- बाबूजी आप तंग तो नहीं करेंगे।
मदनलाल :--- क्या ! हम आपको तंग करते हैं क्या।
काम्या :--- वो उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किये थे।
मदनलाल :--- पगली वो तो त्यौहार था. फिर यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या। तुम तो फालतू घबडाती हो
काम्या :-- सच्ची सच्ची बताइये। आपका कोई भरोसा नहीं।
मदनलाल :-- अरे बहु हम पर भरोसा नहीं करोगी तो फिर इस शहर में किस पर करोगी
काम्या :-- नहीं आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी किये तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
मदनलाल :-- बहु तुम भी डरपोक हो। यहाँ खुली छत में कुछ हो सकता है क्या। चलो उपर आ जाओ।
काम्या :-- पहले आप कसम खाइये कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। फिर ही हम आएंगे।
मदनलाल :-- अरे भाई तुम्हारी कसम खाते हैं खुले में नो बदमाशी नो लफड़ा। चलो अब जल्दी से आ जाओ।
काम्या ने ससुर को कसम से बाँध लिया तो कुछ ज्यादा ही दिलेर हो गई और ससुर के सब्र का इम्तेहान लेने होली के दिन वाली कातिलाना ड्रेस पहन के छत में चल
दी।
बहु को होली वाले ऑउटफिट में देख मदनलाल को एक बात उसी समय कन्फर्म हो गई कि बहु को अभी भी ठरक चढ़ी हुई है और अंदर से चुल्ल बहुत उठ रही है। आखिर ठरक चढ़े
भी क्यों न उस दिन मदनलाल ने काम्या के अंगूरी बदन के साथ अपनी कामिनी विद्रावण कला का भरपूर प्रयोग किया था। छत में आकर काम्या बाबूजी के साथ घूमने लगी। दोनों पास
पास चल रहे थे। कहते हैं स्त्री और पुरुष आग और पेट्रोल के समान होते हैं इसलिए शास्त्रों में साफ़ निर्देश दिया है कि जवान स्त्री को अपने पिता के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए क्योंकि
काम कभी भी हावी हो सकता है। साथ -२ चलते हुए दोनों इधर उधर की बातें कर रहे थे। मदनलाल जानबूझकर सुनील से विरह की बात कर रहा था जिससे बहु कुछ हीट में आ जाये। और
उसका असर भी हुआ कुछ देर बाद ही काम्या की आवाज़ में भारीपन आने लगा। उसकी आवाज़ में चंचलता आ गई वो ससुर के ज्यादा चिपक कर चलने लगी।
थोड़ी देर वाक करने के बाद मदनलाल ने नीचे चलने को कहा और खुद पहले जाने लगा। घर की सीढ़ी जहाँ छत पर मिलती थी वहां टावर बना था और उसमे छत की ओर दरवाज़ा लगा
था। काम्या पीछे आई थी इसलिए उसी ने दरवाज़ा बंद किया। दरवाज़ा बंद कर के काम्या जैसे ही पलटी मदनलाल ने उसे अपनी बाहों में पकड़ लिया और उसके रसीले होंठो को चूसने लगा।
मदनलाल के हाथ भी हरकत में आ गए और उन्होंने काम्या के मम्मों पर कब्ज़ा कर लिया। इस अचानक हमले से काम्या हड़बड़ा गई पर अपने को छुड़ा नहीं पाई। बाबूजी लगातार उसके
होंटो को चूसते रहे और बारी -२ से उसकी दोनों चूचियों से खेलने लगे। कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए मदनलाल ने होंठ छोड़ा तो काम्या बोल उठी
काम्या :-- बाबूजी प्लीज छोड़िये। आपने कहा था कि खुले में बिलकुल तंग नहीं करेंगे।
मदनलाल :--- बहु यहाँ खुला कहाँ है। अच्छे से देखिये चारों तरफ से बंद है। काम्या ने देखा तो सचमुच वो टावर के अंदर थी चारों तरफ से बंद
काम्या :-- लेकिन आप ने कहा था की बदमाशी नहीं करेंगे। य़े चीटिंग है।
मदनलाल :--- नहीं बहु बिलकुल चीटिंग नहीं है। हम अपनी कसम कभी नहीं तोड़ते। और मदनलाल फिर से काम्या की कमसिन जवानी लूटने लगा।
उसकी हरकतों से काम्या भी गरमाने लगी। उसकी चूचियाँ तन गई और पूरे बदन में करंट दौड़ने लगा। लोहा गरम देख मदनलाल ने चोट मारने की सोची।
वो एक बार फिर बहु की टीशर्ट उतारने लगा। काम्या ने विरोध करते हुए बोला
काम्या : --- बाबूजी नहीं कपडे मत उतारिये। हम को ये अच्छा नहीं लगता।
मदनलाल अब ज्यादा समझाने बुझाने के फेर में नहीं था सो उसने भावनाओं का सहारा लेना उचित समझा। हाथ आये माल को छोड़ना सरासर बेवकूफी थी उसने पासा फेका
मदनलाल :-- ठीक है बहु। हमारी तो जिंदगी बिलकुल नीरस थी। हमने सोचा शायद तुम हमें कुछ सकून दे सकोगी। लेकिन हमारा भाग्य ही खराब है. हालाँकि मदनलाल ने ये
ऐसे ही कह दिया था अगर बहु नहीं मानती तो भी वो उसे आसानी से जाने नहीं देता। लेकिन उसकी इस बात का बहु पर तुरंत असर पड़ा
काम्या :----- हमने तो सिर्फ इतना ही कहा कि कपड़ा मत उतारिये।
मदनलाल :--- चॉकलेट का wrapper बिना उतारे खाने से कहीं स्वाद आता है। फिर बिना देखे रहा भी तो नहीं जायेगा।
काम्या :-- लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
मदनलाल : आगे मतलब
काम्या :-- आगे मतलब। आप नीचे जाने लगते हैं जो हमको बिलकुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहां पहुंच गए थे।
मदनलाल : -- लेकिन तुम मना की तो रुक गए की नहीं। आपकी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे। और मदनलाल फिर बहु के ऊपरी कपडे उतारने लगा। इस बार बहु
भी कुछ नहीं बोली। एक पल में ही काम्या फिर एक बार मदनलाल के सामने अधनंगी खड़ी थी।
मदनलाल ने अपनी लपलपाती जीभ निकाली और बहु के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा। उसकी जीभ का चूची में स्पर्श लगते ही काम्या गनगना गई। उसके मुख से सिस्कारियां निकलने लगी। जब मदनलाल ने मम्मों को चूसना चालू किया तो काम्या अपने को रोक नहीं पायी वो मदनलाल के बाल सहलाने लगी। मदनलाल चूसते चूसते अब दांत भी गड़ाने लगा। करंट काम्या की छाती से निकल कर उसकी
चूत तक पहुंचते ही वो बेहाल हो गई और खुद बड़बड़ाने लगी "" हाँ बाबूजी खा जाओ इनको। ये आप के लिए ही हैं। खूब मसल डालो इनको। बहुत परेशान करती हैं ये "" मदनलाल भी
ताल मिलाते हुए बोला "" बहु अब तुम्हारी सब परेशानी ख़त्म। इनकी देखभाल अब हम करेंगे। जब भी ये तंग करें हमें बता देना हम इनकी खूब खबर लेंगे। ""
और फिर तो टावर के नीचे तूफ़ान आ गया। मदनलाल बहु की कमर के उपर जर्रे जर्रे पर अपने होंठों से मुहर लगाता चला गया जैसे बहु पर अपनी मिलकियत की घोषणा कर रहा हो।
काम्या भी बेसुध सी पड़ी बिकी जा रही थी। आधे घंटे के तूफ़ान के बाद जब काम्या अपने रूम में पहुंची तो उसकी दोनों चूचियाँ बाबूजी के दाँतो के निशान से भरी हुई थी
दो दिन छोड़ तीसरे दिन मदनलाल ने फिर बहु को बुलाने की सोचा। एक तो वो नहीं चाहता था कि बहु को जो आदत पढ़ी है वो छूटे क्योंकि ऐसे में काम्या फिर ठंडी हो सकती थी। दूसरा
अब खुद उसे भी कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। सो उसने तीसरे दिन रात को बहु को फ़ोन करके फिर उपर आने को कहा। और इस बार छत न बोलकर सीधे टावर में ही बुलाया।
काम्या के लिए ये धर्मसंकट की स्थिति थी। आज के पहले उसके और बाबूजी के जो भी एनकाउंटर हुए थे वो यकायक बन पढ़े थे। उसमे काम्या का दोष सिर्फ इतना था कि वो मदनलाल
को कठोरता से रोक नहीं पायी और चुपचाप रह गई। लेकिन आज की बात अलग थी आज उसका ससुर उसे सीधे ही टावर में आने को बोल रहा था। अगर वो जाती है तो इसका
मतलब वो खुद अपना शरीर अपने ससुर को परोसने जा रही है। आखिर इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी। अतः उसने निश्चय किया और वो कमरे में ही रही। जब काफी देर तक वो नहीं आई तो मदनलाल ने फिर फ़ोन किया ----
काम्या :- - हाँ बाबूजी
मदनलाल :---- बहु आओ न ,हम इंतज़ार कर रहें।
काम्या :--- बाबूजी हम नहीं आएंगे काम्या ने धीरे से कहा
मदनलाल : - - क्यों नहीं आओगी। क्या बात हो गई
काम्या :--- कोई बात नहीं है बस हम आना नहीं चाहते
मदनलाल : - - - बहु प्लीज ! ऐसा मत करो। अब हमें आपके बिना रहा नहीं जाता। प्लीज आओ ना।
काम्या :--- बाबूजी जो हो रहा है वो गलत है. पाप है
मदनलाल :- - - कोई पाप नहीं है। तुम जानती हो पाप किसे कहते हैं और पुण्य किसे कहते हैं
काम्या :- - - वो सब हमें नहीं मालूम बस इतना मालूम है की ये रिश्ता पाप है।
मदनलाल : - - काम्या , शास्त्र कहते हैं ''''' परहित सरिस धरम नहीं भाई और परपीड़ा सम नहीं अधमाई """ अर्थात जिससे दूसरे को सुख मिलता हो वो धर्म है। और मैं जानता हूँ
हमारी दोस्ती से हम दोनों को ख़ुशी मिलती है दिल को करार आता है।
काम्या :--- बाबूजी हम शास्त्र वगैरह नहीं जानते। बस इतना जानते हैं कि सब गलत है इसलिए अब हम नहीं आएंगे।
मदनलाल :-- नहीं बहु तुम ऐसा नहीं कर सकती। तुम हमें यूं मंझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे साथ के बिना अब हमारा जीवन बेमानी है। और मदनलाल आशिकों की तरह
प्रेमालाप करने लगा। काम्या के इस फैसले से मदनलाल को अपनी सारी योजना धरी की धरी रहती नजर आ रही थी। कहाँ तो वो सोच रहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं
और कहाँ सितारे एक झटके में ही गर्दिश में आ गए थे। लेकिन मदनलाल पक्का फौजी था औरउसने कठिन परिस्थिति में भी दुश्मन को नेस्तनाबूद करना सीखा था फिर
काम्या तो बेचारी कोमलांगिनी अबला थी और तिस पर मदनलाल को अपना मांस चखा कर उसे आदमखोर बना चुकी थी। मदनलाल के तरकश में अभी कई तीर बाकी थे
काफी सोचने के बाद उसने पहला अस्त्र निकाला जिसका नाम था "" इमोशनल अत्याचार ""
दूसरे दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाज़ार की ओर चल दिया। देर रात तक जब वो घर नहीं आया तो शान्ति ने काम्या से कहा कि
फ़ोन करके पूछे कि कहाँ हो। बहु ने कॉल किया
मदनलाल :-- हाँ हम बोल रहे हैं
काम्या :--- बाबूजी कहाँ हो। खाना खाने का टाइम हो गया है।
मदनलाल :-- हमें आने में देर हो जाएगी। और हम खाना खा के आएंगे। . और उसने फ़ोन कट कर दिया।
उसके बाद मदनलाल सीधा देशी शराब के ठेके पहुंचा। वैसे तो उसने पीना कई सालों से छोड़ दिया था और पीता भी इंग्लिश था लेकिन आज उसने देशी पिया जिससे तुरंत चढ़ जाए और
कुछ दारु की बदबू भी आती रहे। आखिर घर में पता भी तो चलना चाहिए कि वो पी के आया है। पीने के बाद उसने वहीँ अहाते में चिकन खाया और घंटा भर बाद घर पहुँच गया। घर में
काम्या ने जैसे ही दरवाजा खोला तो बदबू का एक तेज झोंका उसकी नाक से टकराया और वो नाक में हाथ रखते हुए पीछे हट गई। हालाँकि हमारे फौजी भाई को कोई खास नहीं चढ़ी
थी लेकिन उसने लड़खड़ाने की शानदार एक्टिंग की और हिलता डुलता सीधे अपने कमरे में घुस गया। सास बहु दोनों इस नज़ारे को देख एक दूसरे का मुँह देखने लगी।
दूसरे दिन फिर रात को मदनलाल देशी ठर्रा पी के आया। आज उसने घर में ही एक रोटी खायी और देवदास की तरह गुमशुम सा अपने कमरे में चला गया। मदनलाल की ये हालत
देख कर शांति बड़बड़ाने लगी "" ये इनको हो क्या गया है। बड़ी मुश्किल से तो इनकी पीने की आदत छुड़ाई थी अब फिर शुरू हो गए। इस बुढ़ापे में तो दारु पूरा शरीर ही खोखला
कर देगी। पता नहीं क्या टेंशन आ गयी है इनको। भगवान जाने इस घर को किस की नजर लग गई है। """ बेचारी काम्या दम साधे चुपचाप सास का लेक्चर सुनती रही। अब वो कैसे
बताती कि बाबूजी का टेंशन वो खुद है।
तीसरे दिन शाम को जब शांति पूजा घर में थी मदनलाल फिर घर से निकला। मदनलाल के हाव भाव देखते ही काम्या समझ गई कि बाबूजी आज फिर पीने जा रहें हैं। अब वो खुद
टेंशन में आ गई थी। उस पर तीन तरफा दबाव था। एक तो सास कह रही थी के शराब बाबूजी का शरीर खोखला कर देगी। दूसरा वो कह रही थी की घर को किस की नजर लग गई
और तीसरा टेंशन खुद उसके शरीर की मांग थी। पिछले दो बार से बाबूजी ने उसकी चूचियों पर जो कहर ढाया था उसके बाद से उसकी दोनों मम्मे उसके बस में नहीं रह गए थे। उसकी
चूचियाँ अंदर से बार बार "" बाबूजी बाबूजी पुकार रही थी "" . उसे जल्द ही कुछ फैसला करना था। इधर बाबूजी जिस प्रकार से दीवानापन दिखा रहे थे उससे काम्या के दिल में
भी कहीं शायद प्यार का अंकुर उग आया था। दिल के किसी कोने में बाबूजी ने बलात कब्ज़ा कर लिया था। बाउजी को गए आधे घंटे हो गए थे आखिर काम्या मदनलाल के इस
अस्त्र की गरमी से पिघल गई उसने फ़ोन उठाया और डायल कर दिया। मोबाइल की घंटी बजते ही बाबूजी ने देखा कि छम्मकछल्लो का नंबर है तो वो सीरियस होकर बोले
मदनलाल :--- हाँ बोलो क्या है। काम्या कुछ देर शांत रही फिर बोली
काम्या : - - - बाबूजी क्यों हमको इतना परेशान कर रहे हो। ये पीना क्यों चालु कर दिया।
मदनलाल :--- तुम्हे इससे क्या हम क्या कर रहे हैं। तुम तो ऐश से रहो। बाबूजी ने रूखी आवाज़ में कहा
काम्या : --- पीना जरुरी है क्या। अपने शरीर का तो कुछ ख्याल करिये
मदनलाल :--- क्या करना इस शरीर का। जब ये कुछ सुख नहीं दे सकता। बस अब तो शराब ही जिंदगी का सहारा है।
काम्या : --- और आपका परिवार। उसका कोई ख्याल नहीं
मदनलाल :-- सब ठीक ठाक तो हैं। सास अपनी पूजा पाठ में व्यस्त है बहु अपने आप में मस्त है। इस बुड्ढे के लिए तो किसी के पास समय ही नहीं है।
काम्या :---- प्लीज बाबूजी। आप शराब मत पीजिये। हमें ये पसंद नहीं
मदनलाल :---- बहु हम आपकी पसंद से तो नहीं चल सकते। जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चल सकती। अब तो बस इस शराब के साथ ही जीना और मरना है
काम्या समझ गई कि बाबूजी को बातों से नहीं टाला जा सकता इस लिए उसने समर्पण करते हुए कहा
काम्या : --- हम हाथ जोड़ रहे हैं। आप बिना पिए लौट आइये। आप जो चाहते हैं वो आपको मिल जायेगा।
मदनलाल :--- क्या मिल जायेगा।
काम्या :----- आप बहुत गंदे हैं हमारे मुंह से बुलवाना चाहते हैं।
मदनलाल :--- अरे कुछ पता तो चले क्या मिल जायेगा।
काम्या :---- हम tower में आ जायेंगे बस। शरारती कहीं के। और काम्या ने फ़ोन काट दिया
काम्या की तरफ से हरी झंडी मिलते ही मदनलाल ख़ुशी से झूम उठा। उसे विश्वास नहीं था कि लोंडिया इतनी जल्दी मान जाएगी। जिस तरह काम्या पाप पुण्य,रिश्ते नाते
आदि की बात कर रही थी उसे लगा था कि शायद महीने पंद्रह दिन नौटंकी करनी पड़ेगी लेकिन बहु दो दिन में ही ढीली पड़ गई। मदनलाल ने सोचा शायद बहु की चूत
में कुछ ज्यादा ही खुजली मची है। वो गुनगुनाता हुआ घर की ओर चल दिया।
घर में दोनों सास बहु टीवी देख रही थी। बाबूजी के आने पर काम्या उसके लिए चाय बनाने चली गई। मदनलाल भी हाथ मुंह धोने चला गया। जब लौटा तो देखा
कि काम्या किचन में चाय बना रही है और शांति टीवी देखने में व्यस्त है। मौका अच्छा था मदनलाल सीधा किचन में घुस गया और काम्या को पीछे से पकड़ लिया।
पिछले तीन दिनों से सोया पड़ा उसका कोबरा भी फन फैला चूका था। उसके कोबरा ने अपनी आदत के अनुसार बहु के पीछे वाले बिल में मुह मारना चालू कर दिया
जबकि मदनलाल के हाथों ने बहु के संतरों पर कब्ज़ा कर लिया। काम्या इस अचानक हमले से चिहुंक गई और चीखते -२ बची। काम्या तुरंत बोली बाबूजी ये क्या कर
रहे हो,मम्मी बाजु में हैं। प्लीज छोड़िये मुझे। पर मदनलाल को कोई फर्क नहीं पड़ा वो चूची दाबते -२ ही बोला "" छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है "" काम्या को अपनी
जिन चूचियों पर नाज़ था वही अब उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गई थी। बाबूजी का हाथ जब उन चलता तो काम्या अपनी सुधबुध खो देती। जिन चूचियों को इतने
नाज़ से सालों से संभल कर रखा था वो अब काम्या के नहीं मदनलाल के इशारों पर थिरकती थी। मदनलाल बहु के स्तनों अपने हाथों का जादू दिखलाने लगा
साथ ही साथ उसके होंठ काम्या की खुली पीठ और गर्दन की सैर पर चल पड़े। उसकी हर हरकत पर काम्या के बदन में सनसनी बढ़ती जा रही थी लेकिन समय
की नजाकत भांपते हुए उसने फिर कहा "" बाबूजी प्लीज अभी चले जाइए जो रात को कर लेना "". मदनलाल भी शांति के कारण कुछ सतर्क था अतः बोला
"" ठीक है जा रहें हैं बस एक किस्सी दे दो "" फिर उसने काम्या को तेज़ी से घुमाया और अपने प्यासे होंठ बहु के रसभरे होंठों से जोड़ दिया। बहु भी अधरों के
मिलन को बर्दास्त नहीं कर पायी और पूरी ताक़त से बाबूजी को अपने से चिपका ली।
बाबूजी जाकर टीवी देखने लगे तब काम्या चाय ले कर आई। दोनों ससुर बहु एक दूसरे को देखने में मस्त थे और शांति सास बहु सीरियल देखने में। रात में जब
शान्ति नींद की गोली खाकर सो गई तो मदनलाल ने टावर से काम्या को फ़ोन किया
काम्या :---- हाँ बाबूजी। बोलिए
मदनलाल :-- बहु तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाए इसलिए भूख बहुत लगी है
काम्या :--- कुछ खाना ले आएं क्या
मदनलाल ;-- नहीं खाना नहीं। बस थोड़ा दूध पी लेंगे
काम्या :--- ठीक है है दूध ले आते है
मदनलाल :-- अरे तुम आ बस जाओ डायरेक्ट पी लेंगे
काम्या :-- डायरेक्ट मतलब
मदनलाल : अरे जैसे कन्हैया पीता था मुंह लगाकर। काम्या मदनलाल बातों का अर्थ समझ कर शर्मा गई और बोली
काम्या :-- हे राम हमने आज तक आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहु से ऐसा बोलता है
बहु का रोमांटिक मूड देख कर मदनलाल भी फ़्लर्ट करने लगा
मदनलाल :-- अच्छा अच्छा ठीक है बोलेंगे नहीं करेंगे बस।
काम्या :-- क्या करेंगे ?
मदनलाल :-- सॉरी करेंगे नहीं। पीयेंगे। दूध पीयेंगे
काम्या :-- आप को तो और कोई काम है ही नहीं। बस आपकी सुई एक ही जगह आकर अटक जाती है
मदनलाल :-- अरे तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। चलो जल्दी आओ। और मदनलाल ने फ़ोन काट दिया।
काम्या को अब टावर में जाना था। वो बहुत शर्म महसूस कर रही थी। शर्म की बात भी थी उसे खुद अपने ससुर के पास चल कर जाना था जहाँ उसका ससुर उसके
बदन से खेलने के लिए इंतज़ार कर रहा था। काम्या ने धीरे धीरे कदम बढ़ाये। मोबाइल गाउन की जेब में रख लिया और सीढ़ी की ओर चल दी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे
अपनी सुहाग कक्ष में जा रही हो जहाँ उसका बालम उसकी नशीली जवानी को लूटने की लिए बैठा है उसे एक एक कदम बढ़ाना मुश्किल लग रहा था पता नहीं आज बाबूजी
क्या कर बैठेंगे आखिर उसने खुद ही तो कहा था कि हम टावर में आ जाएंगे ,टावर के द्वार पर पहुंचते ही मदनलाल ने उसे पकड़ कर खींच लिया और अपनी बाँहों में भींच लिया।
मदनलाल काम्या जैसी अल्हड़ जवानी को पाकर पगला गया था वो बुरी तरह उसको दबोचने मसलने लगा। उसकी बेकरारी देख काम्या अंदर ही अंदर अपने हुश्न पर गर्वे महसूस
कर रही थी। मदनलाल ने फ़ौरन बहु के स्ट्रबेर्री होंटो पर अपने होंठ रख दिए। नाजुक रसीले होंठ चूसते ही मदनलाल का कोबरा फुफकारने लगा और काम्या की नाभि के पास
चोट मारने लगा। होंठ चूसते -२ मदनलाल के हाथ काम्या के गाउन पर घूमने लगे तो उसने पाया कि गाउन चेन वाला है। ये गाउन पिछली बार सुनील लाया था आज पहली बार
उसे अपने बेटे का कोई काम पसंद आया। मदनलाल ने चेन की ज़िप पकड़ी और नीचे खींच दिया अगले ही पल बहु के कबूतर फड़कते हुए बाहर गए। ज़ीरो वाट की रोशनी में
दोनों चूचियाँ गज़ब की जानलेवा लग रही थी। मदनलाल उनकी सुंदरता में खो गया तभी काम्या पूछ बैठी
काम्या :--- क्या देख रहे हो बाबूजी
मदनलाल :-- बहु कुदरत की नायाब कारीगिरी देख रहा हूँ। काम्या मुस्कराते हुए बोली
काम्या :-- उसमे ऐसा क्या है। सभी का तो ऐसा होता है
मदनलाल :-- नहीं बहु सबका ऐसा नहीं होता। ये अद्धभुत हैं। मैंने अपनी जिंदगी में इतने सुन्दर कभी नहीं देखे। मदनलाल मक्खन लगाते बोला। काम्या अपनी बड़ाई सुनते
ही शरमा गई फिर धीरे से बोली
काम्या :-- कई बार तो देख लिया अब तक मन नहीं भरा क्या।
मदनलाल : -- पागल हो गई क्या। इन से कभी हमारा मन भर सकता है। अगर तुम ऐसे ही खोल कर बैठी रहो तो हम सारा जीवन इनको देखते हुए बिता सकते हैं।
काम्या :-- हाय राम बाबूजी । आप खुद तो पागल हो ही गए हैं साथ ही साथ हमको भी पागल करने में लगे हैं। काम्या लजाते हुए बोली
मदनलाल :-- तो हो जाओ न पागल। जिंदगी का असली आनंद तो किसी के लिए पागल होने में ही है। और फिर मदनलाल ने बहु की एक चूची को मुंह में ले लिया
अब ससुरा अपने पूरे लय में आ गया। उसने काम्या के संतरों को बुरी तरह निचोड़ना चालू कर दिया। इधर काम्या भी सिसकारी लेने लगी। मदनलाल
ने बहु को उठाया और दरी में लिटा दिया। बारी -२ से उसके संतरों को पीता और मसलता। बहु के शरीर भी आग भरने लगी थी वो अपनी जाँघों को आपस में रगड़ने लगी।
दोनों काम तरंगो में डूबने लगे तभी बहु का मोबाइल बज उठा। मदनलाल बोला देखो कौन विघ्न संतोषी है। काम्या ने देखा तो स्क्रीन पर सुनील का चेहरा था उसने
बाबूजी को दिखाया। क्षण भर को तो बाबूजी खिन्न हो गए लेकिन फिर संभलते हुए बोले '' ' लाउडस्पीकर ओन करके के बात करो। काम्या ने बात चालू की
काम्या :-- हाँ जानू। नींद नहीं आ रही क्या
सुनील :-- नहीं दुधु पीने का मन कर रहा है.
काम्या :-- तो आ जाओ न छुट्टी लेकर
सुनील :--- यहीं से पी लेंगे। तुम दुधु तो बाहर निकालो। काम्या बाबूजी की ओर देखते हुए कुछ देर चुप रही फिर बोली
काम्या :-- जानू निकाल ली। अब पी लो। उसके इतना बोलते ही मदनलाल ने दूध पीना चालू कर दिया।
सुनील :--- हम मुंह में ले रहें हैं। डार्लिंग तुम फील करो।
उनकी बातें सुन मदनलाल एकदम सांय बाँय हो हो गया और उसने चूची दांत गाड़ दिए जिससे काम्या के मुख से जोर की चीख निकल गई।
सुनील : --- डार्लिंग क्या हुआ
काम्या :--- इतनी जोर से क्यों काटा। हम पीने बोले हैं काटने नहीं। नो चीटिंग
सुनील :-- सॉरी डार्लिंग हम तो पी ही रहे थे दांत लग गया होगा।
इधर मदनलाल मौका देख बहु की चूत मसलने लगा। बहु भी हीट में थी तो गांड उछालने लगी। थोड़ी देर की चूत रगड़ाई में ही उसका पानी छूट गया
तो उसे होश आया और वो चिल्लाई ""हाथ हटाओ वहां से""।बाबूजी ने तुरंत हाथ हटा दिया उधर सुनील घबड़ा कर बोला
सुनील :-- कहाँ से. हाथ हटायें।
काम्या :--- आप नीचे वहां क्यों हाथ लगा रहे हैं। अभी बिलकुल नहीं। अभी हमारा नौ दिन का उपवास चल रहा है। चुतिया सुनील कुछ समझा नहीं और बोला
सुनील :-- सॉरी यार गलती से लग गया होगा
बहकती बहू--5
होली की घटना के बाद से काम्या अपने ससुर से थोड़ा दूर दूर रहने लगी। आखिर उसके ससुर ने उसे उपर से पूरा नंगा कर दिया था वो भी उसकी सहमति से। इस कारण काम्या बहुत शर्मिंदा
महसूस कर रही थी। इस बात को मदनलाल भी नोट कर रहा था की बहु कुछ हिचक रही है लेकिन उसके लिए तस्सली की बात ये थी कि बहु गुस्सा नहीं थी। चार दिन तक ऐसी ही लुका
छिपी चलती रही। मदनलाल ने सोचा कि शुरुआत उसे ही करनी पड़ेगी क्योंकि स्त्री स्वाभाव से ही इन मामलों में आगे नहीं बढ़ती। सो रात को उसने छत से बहु को फ़ोन किया।
बाबूजी का फ़ोन देखते ही काम्या की दिल की धड़कन बढ़ गई। कुछ देर पहले ही सुनील से गरमागरम बातें हुई थी सो वो पहले से ही मूड में थी। काम्या ने फ़ोन रिसीव किया।
काम्या :-- हाँ बाबूजी।
मदनलाल :---- बहु क्या कर रही हो ? सो गई थी क्या
काम्या :--- नहीं बाबूजी। ऐसे ही गाने सुन रहे थे।
मदनलाल :--- क्या दिन भर गाना सुनती रहती हो। थोड़ा घुमा फ़िर करो। शरीर स्वस्थ रहेगा।
काम्या :--- बाबूजी रात को कहाँ घूमे।
मदनलाल :--- अरे ! रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी होता है। और जगह की कोई कमी है ,इतनी बड़ी छत पडी है। चलो ऊपर आ जाओ।
काम्या :--- उपर ? ऊपर तो आप हैं।
मदनलाल :-- तो ! हम है से क्या क्या मतलब। हम कोई भूत प्रेत हैं क्या।
काम्या :---- नहीं वो बात नहीं थी पर ssssss
मदनलाल :-- तो फिर क्या बात है। जो कहना है साफ़ साफ़ कहो। डरती काहे हो
काम्या :--- छत में तो अँधेरा भी रहता है
मदनलाल :--- अँधेरा है तो क्या हुआ ? अपना घर है कोई जंगल जाना है क्या। चलो आओ थोड़ा वाकिंग कर लो
काम्या :--- बाबूजी आप तंग तो नहीं करेंगे।
मदनलाल :--- क्या ! हम आपको तंग करते हैं क्या।
काम्या :--- वो उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किये थे।
मदनलाल :--- पगली वो तो त्यौहार था. फिर यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या। तुम तो फालतू घबडाती हो
काम्या :-- सच्ची सच्ची बताइये। आपका कोई भरोसा नहीं।
मदनलाल :-- अरे बहु हम पर भरोसा नहीं करोगी तो फिर इस शहर में किस पर करोगी
काम्या :-- नहीं आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी किये तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
मदनलाल :-- बहु तुम भी डरपोक हो। यहाँ खुली छत में कुछ हो सकता है क्या। चलो उपर आ जाओ।
काम्या :-- पहले आप कसम खाइये कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। फिर ही हम आएंगे।
मदनलाल :-- अरे भाई तुम्हारी कसम खाते हैं खुले में नो बदमाशी नो लफड़ा। चलो अब जल्दी से आ जाओ।
काम्या ने ससुर को कसम से बाँध लिया तो कुछ ज्यादा ही दिलेर हो गई और ससुर के सब्र का इम्तेहान लेने होली के दिन वाली कातिलाना ड्रेस पहन के छत में चल
दी।
बहु को होली वाले ऑउटफिट में देख मदनलाल को एक बात उसी समय कन्फर्म हो गई कि बहु को अभी भी ठरक चढ़ी हुई है और अंदर से चुल्ल बहुत उठ रही है। आखिर ठरक चढ़े
भी क्यों न उस दिन मदनलाल ने काम्या के अंगूरी बदन के साथ अपनी कामिनी विद्रावण कला का भरपूर प्रयोग किया था। छत में आकर काम्या बाबूजी के साथ घूमने लगी। दोनों पास
पास चल रहे थे। कहते हैं स्त्री और पुरुष आग और पेट्रोल के समान होते हैं इसलिए शास्त्रों में साफ़ निर्देश दिया है कि जवान स्त्री को अपने पिता के साथ भी एकांत में नहीं रहना चाहिए क्योंकि
काम कभी भी हावी हो सकता है। साथ -२ चलते हुए दोनों इधर उधर की बातें कर रहे थे। मदनलाल जानबूझकर सुनील से विरह की बात कर रहा था जिससे बहु कुछ हीट में आ जाये। और
उसका असर भी हुआ कुछ देर बाद ही काम्या की आवाज़ में भारीपन आने लगा। उसकी आवाज़ में चंचलता आ गई वो ससुर के ज्यादा चिपक कर चलने लगी।
थोड़ी देर वाक करने के बाद मदनलाल ने नीचे चलने को कहा और खुद पहले जाने लगा। घर की सीढ़ी जहाँ छत पर मिलती थी वहां टावर बना था और उसमे छत की ओर दरवाज़ा लगा
था। काम्या पीछे आई थी इसलिए उसी ने दरवाज़ा बंद किया। दरवाज़ा बंद कर के काम्या जैसे ही पलटी मदनलाल ने उसे अपनी बाहों में पकड़ लिया और उसके रसीले होंठो को चूसने लगा।
मदनलाल के हाथ भी हरकत में आ गए और उन्होंने काम्या के मम्मों पर कब्ज़ा कर लिया। इस अचानक हमले से काम्या हड़बड़ा गई पर अपने को छुड़ा नहीं पाई। बाबूजी लगातार उसके
होंटो को चूसते रहे और बारी -२ से उसकी दोनों चूचियों से खेलने लगे। कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए मदनलाल ने होंठ छोड़ा तो काम्या बोल उठी
काम्या :-- बाबूजी प्लीज छोड़िये। आपने कहा था कि खुले में बिलकुल तंग नहीं करेंगे।
मदनलाल :--- बहु यहाँ खुला कहाँ है। अच्छे से देखिये चारों तरफ से बंद है। काम्या ने देखा तो सचमुच वो टावर के अंदर थी चारों तरफ से बंद
काम्या :-- लेकिन आप ने कहा था की बदमाशी नहीं करेंगे। य़े चीटिंग है।
मदनलाल :--- नहीं बहु बिलकुल चीटिंग नहीं है। हम अपनी कसम कभी नहीं तोड़ते। और मदनलाल फिर से काम्या की कमसिन जवानी लूटने लगा।
उसकी हरकतों से काम्या भी गरमाने लगी। उसकी चूचियाँ तन गई और पूरे बदन में करंट दौड़ने लगा। लोहा गरम देख मदनलाल ने चोट मारने की सोची।
वो एक बार फिर बहु की टीशर्ट उतारने लगा। काम्या ने विरोध करते हुए बोला
काम्या : --- बाबूजी नहीं कपडे मत उतारिये। हम को ये अच्छा नहीं लगता।
मदनलाल अब ज्यादा समझाने बुझाने के फेर में नहीं था सो उसने भावनाओं का सहारा लेना उचित समझा। हाथ आये माल को छोड़ना सरासर बेवकूफी थी उसने पासा फेका
मदनलाल :-- ठीक है बहु। हमारी तो जिंदगी बिलकुल नीरस थी। हमने सोचा शायद तुम हमें कुछ सकून दे सकोगी। लेकिन हमारा भाग्य ही खराब है. हालाँकि मदनलाल ने ये
ऐसे ही कह दिया था अगर बहु नहीं मानती तो भी वो उसे आसानी से जाने नहीं देता। लेकिन उसकी इस बात का बहु पर तुरंत असर पड़ा
काम्या :----- हमने तो सिर्फ इतना ही कहा कि कपड़ा मत उतारिये।
मदनलाल :--- चॉकलेट का wrapper बिना उतारे खाने से कहीं स्वाद आता है। फिर बिना देखे रहा भी तो नहीं जायेगा।
काम्या :-- लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
मदनलाल : आगे मतलब
काम्या :-- आगे मतलब। आप नीचे जाने लगते हैं जो हमको बिलकुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहां पहुंच गए थे।
मदनलाल : -- लेकिन तुम मना की तो रुक गए की नहीं। आपकी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे। और मदनलाल फिर बहु के ऊपरी कपडे उतारने लगा। इस बार बहु
भी कुछ नहीं बोली। एक पल में ही काम्या फिर एक बार मदनलाल के सामने अधनंगी खड़ी थी।
मदनलाल ने अपनी लपलपाती जीभ निकाली और बहु के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा। उसकी जीभ का चूची में स्पर्श लगते ही काम्या गनगना गई। उसके मुख से सिस्कारियां निकलने लगी। जब मदनलाल ने मम्मों को चूसना चालू किया तो काम्या अपने को रोक नहीं पायी वो मदनलाल के बाल सहलाने लगी। मदनलाल चूसते चूसते अब दांत भी गड़ाने लगा। करंट काम्या की छाती से निकल कर उसकी
चूत तक पहुंचते ही वो बेहाल हो गई और खुद बड़बड़ाने लगी "" हाँ बाबूजी खा जाओ इनको। ये आप के लिए ही हैं। खूब मसल डालो इनको। बहुत परेशान करती हैं ये "" मदनलाल भी
ताल मिलाते हुए बोला "" बहु अब तुम्हारी सब परेशानी ख़त्म। इनकी देखभाल अब हम करेंगे। जब भी ये तंग करें हमें बता देना हम इनकी खूब खबर लेंगे। ""
और फिर तो टावर के नीचे तूफ़ान आ गया। मदनलाल बहु की कमर के उपर जर्रे जर्रे पर अपने होंठों से मुहर लगाता चला गया जैसे बहु पर अपनी मिलकियत की घोषणा कर रहा हो।
काम्या भी बेसुध सी पड़ी बिकी जा रही थी। आधे घंटे के तूफ़ान के बाद जब काम्या अपने रूम में पहुंची तो उसकी दोनों चूचियाँ बाबूजी के दाँतो के निशान से भरी हुई थी
दो दिन छोड़ तीसरे दिन मदनलाल ने फिर बहु को बुलाने की सोचा। एक तो वो नहीं चाहता था कि बहु को जो आदत पढ़ी है वो छूटे क्योंकि ऐसे में काम्या फिर ठंडी हो सकती थी। दूसरा
अब खुद उसे भी कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। सो उसने तीसरे दिन रात को बहु को फ़ोन करके फिर उपर आने को कहा। और इस बार छत न बोलकर सीधे टावर में ही बुलाया।
काम्या के लिए ये धर्मसंकट की स्थिति थी। आज के पहले उसके और बाबूजी के जो भी एनकाउंटर हुए थे वो यकायक बन पढ़े थे। उसमे काम्या का दोष सिर्फ इतना था कि वो मदनलाल
को कठोरता से रोक नहीं पायी और चुपचाप रह गई। लेकिन आज की बात अलग थी आज उसका ससुर उसे सीधे ही टावर में आने को बोल रहा था। अगर वो जाती है तो इसका
मतलब वो खुद अपना शरीर अपने ससुर को परोसने जा रही है। आखिर इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी। अतः उसने निश्चय किया और वो कमरे में ही रही। जब काफी देर तक वो नहीं आई तो मदनलाल ने फिर फ़ोन किया ----
काम्या :- - हाँ बाबूजी
मदनलाल :---- बहु आओ न ,हम इंतज़ार कर रहें।
काम्या :--- बाबूजी हम नहीं आएंगे काम्या ने धीरे से कहा
मदनलाल : - - क्यों नहीं आओगी। क्या बात हो गई
काम्या :--- कोई बात नहीं है बस हम आना नहीं चाहते
मदनलाल : - - - बहु प्लीज ! ऐसा मत करो। अब हमें आपके बिना रहा नहीं जाता। प्लीज आओ ना।
काम्या :--- बाबूजी जो हो रहा है वो गलत है. पाप है
मदनलाल :- - - कोई पाप नहीं है। तुम जानती हो पाप किसे कहते हैं और पुण्य किसे कहते हैं
काम्या :- - - वो सब हमें नहीं मालूम बस इतना मालूम है की ये रिश्ता पाप है।
मदनलाल : - - काम्या , शास्त्र कहते हैं ''''' परहित सरिस धरम नहीं भाई और परपीड़ा सम नहीं अधमाई """ अर्थात जिससे दूसरे को सुख मिलता हो वो धर्म है। और मैं जानता हूँ
हमारी दोस्ती से हम दोनों को ख़ुशी मिलती है दिल को करार आता है।
काम्या :--- बाबूजी हम शास्त्र वगैरह नहीं जानते। बस इतना जानते हैं कि सब गलत है इसलिए अब हम नहीं आएंगे।
मदनलाल :-- नहीं बहु तुम ऐसा नहीं कर सकती। तुम हमें यूं मंझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे साथ के बिना अब हमारा जीवन बेमानी है। और मदनलाल आशिकों की तरह
प्रेमालाप करने लगा। काम्या के इस फैसले से मदनलाल को अपनी सारी योजना धरी की धरी रहती नजर आ रही थी। कहाँ तो वो सोच रहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं
और कहाँ सितारे एक झटके में ही गर्दिश में आ गए थे। लेकिन मदनलाल पक्का फौजी था औरउसने कठिन परिस्थिति में भी दुश्मन को नेस्तनाबूद करना सीखा था फिर
काम्या तो बेचारी कोमलांगिनी अबला थी और तिस पर मदनलाल को अपना मांस चखा कर उसे आदमखोर बना चुकी थी। मदनलाल के तरकश में अभी कई तीर बाकी थे
काफी सोचने के बाद उसने पहला अस्त्र निकाला जिसका नाम था "" इमोशनल अत्याचार ""
दूसरे दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाज़ार की ओर चल दिया। देर रात तक जब वो घर नहीं आया तो शान्ति ने काम्या से कहा कि
फ़ोन करके पूछे कि कहाँ हो। बहु ने कॉल किया
मदनलाल :-- हाँ हम बोल रहे हैं
काम्या :--- बाबूजी कहाँ हो। खाना खाने का टाइम हो गया है।
मदनलाल :-- हमें आने में देर हो जाएगी। और हम खाना खा के आएंगे। . और उसने फ़ोन कट कर दिया।
उसके बाद मदनलाल सीधा देशी शराब के ठेके पहुंचा। वैसे तो उसने पीना कई सालों से छोड़ दिया था और पीता भी इंग्लिश था लेकिन आज उसने देशी पिया जिससे तुरंत चढ़ जाए और
कुछ दारु की बदबू भी आती रहे। आखिर घर में पता भी तो चलना चाहिए कि वो पी के आया है। पीने के बाद उसने वहीँ अहाते में चिकन खाया और घंटा भर बाद घर पहुँच गया। घर में
काम्या ने जैसे ही दरवाजा खोला तो बदबू का एक तेज झोंका उसकी नाक से टकराया और वो नाक में हाथ रखते हुए पीछे हट गई। हालाँकि हमारे फौजी भाई को कोई खास नहीं चढ़ी
थी लेकिन उसने लड़खड़ाने की शानदार एक्टिंग की और हिलता डुलता सीधे अपने कमरे में घुस गया। सास बहु दोनों इस नज़ारे को देख एक दूसरे का मुँह देखने लगी।
दूसरे दिन फिर रात को मदनलाल देशी ठर्रा पी के आया। आज उसने घर में ही एक रोटी खायी और देवदास की तरह गुमशुम सा अपने कमरे में चला गया। मदनलाल की ये हालत
देख कर शांति बड़बड़ाने लगी "" ये इनको हो क्या गया है। बड़ी मुश्किल से तो इनकी पीने की आदत छुड़ाई थी अब फिर शुरू हो गए। इस बुढ़ापे में तो दारु पूरा शरीर ही खोखला
कर देगी। पता नहीं क्या टेंशन आ गयी है इनको। भगवान जाने इस घर को किस की नजर लग गई है। """ बेचारी काम्या दम साधे चुपचाप सास का लेक्चर सुनती रही। अब वो कैसे
बताती कि बाबूजी का टेंशन वो खुद है।
तीसरे दिन शाम को जब शांति पूजा घर में थी मदनलाल फिर घर से निकला। मदनलाल के हाव भाव देखते ही काम्या समझ गई कि बाबूजी आज फिर पीने जा रहें हैं। अब वो खुद
टेंशन में आ गई थी। उस पर तीन तरफा दबाव था। एक तो सास कह रही थी के शराब बाबूजी का शरीर खोखला कर देगी। दूसरा वो कह रही थी की घर को किस की नजर लग गई
और तीसरा टेंशन खुद उसके शरीर की मांग थी। पिछले दो बार से बाबूजी ने उसकी चूचियों पर जो कहर ढाया था उसके बाद से उसकी दोनों मम्मे उसके बस में नहीं रह गए थे। उसकी
चूचियाँ अंदर से बार बार "" बाबूजी बाबूजी पुकार रही थी "" . उसे जल्द ही कुछ फैसला करना था। इधर बाबूजी जिस प्रकार से दीवानापन दिखा रहे थे उससे काम्या के दिल में
भी कहीं शायद प्यार का अंकुर उग आया था। दिल के किसी कोने में बाबूजी ने बलात कब्ज़ा कर लिया था। बाउजी को गए आधे घंटे हो गए थे आखिर काम्या मदनलाल के इस
अस्त्र की गरमी से पिघल गई उसने फ़ोन उठाया और डायल कर दिया। मोबाइल की घंटी बजते ही बाबूजी ने देखा कि छम्मकछल्लो का नंबर है तो वो सीरियस होकर बोले
मदनलाल :--- हाँ बोलो क्या है। काम्या कुछ देर शांत रही फिर बोली
काम्या : - - - बाबूजी क्यों हमको इतना परेशान कर रहे हो। ये पीना क्यों चालु कर दिया।
मदनलाल :--- तुम्हे इससे क्या हम क्या कर रहे हैं। तुम तो ऐश से रहो। बाबूजी ने रूखी आवाज़ में कहा
काम्या : --- पीना जरुरी है क्या। अपने शरीर का तो कुछ ख्याल करिये
मदनलाल :--- क्या करना इस शरीर का। जब ये कुछ सुख नहीं दे सकता। बस अब तो शराब ही जिंदगी का सहारा है।
काम्या : --- और आपका परिवार। उसका कोई ख्याल नहीं
मदनलाल :-- सब ठीक ठाक तो हैं। सास अपनी पूजा पाठ में व्यस्त है बहु अपने आप में मस्त है। इस बुड्ढे के लिए तो किसी के पास समय ही नहीं है।
काम्या :---- प्लीज बाबूजी। आप शराब मत पीजिये। हमें ये पसंद नहीं
मदनलाल :---- बहु हम आपकी पसंद से तो नहीं चल सकते। जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चल सकती। अब तो बस इस शराब के साथ ही जीना और मरना है
काम्या समझ गई कि बाबूजी को बातों से नहीं टाला जा सकता इस लिए उसने समर्पण करते हुए कहा
काम्या : --- हम हाथ जोड़ रहे हैं। आप बिना पिए लौट आइये। आप जो चाहते हैं वो आपको मिल जायेगा।
मदनलाल :--- क्या मिल जायेगा।
काम्या :----- आप बहुत गंदे हैं हमारे मुंह से बुलवाना चाहते हैं।
मदनलाल :--- अरे कुछ पता तो चले क्या मिल जायेगा।
काम्या :---- हम tower में आ जायेंगे बस। शरारती कहीं के। और काम्या ने फ़ोन काट दिया
काम्या की तरफ से हरी झंडी मिलते ही मदनलाल ख़ुशी से झूम उठा। उसे विश्वास नहीं था कि लोंडिया इतनी जल्दी मान जाएगी। जिस तरह काम्या पाप पुण्य,रिश्ते नाते
आदि की बात कर रही थी उसे लगा था कि शायद महीने पंद्रह दिन नौटंकी करनी पड़ेगी लेकिन बहु दो दिन में ही ढीली पड़ गई। मदनलाल ने सोचा शायद बहु की चूत
में कुछ ज्यादा ही खुजली मची है। वो गुनगुनाता हुआ घर की ओर चल दिया।
घर में दोनों सास बहु टीवी देख रही थी। बाबूजी के आने पर काम्या उसके लिए चाय बनाने चली गई। मदनलाल भी हाथ मुंह धोने चला गया। जब लौटा तो देखा
कि काम्या किचन में चाय बना रही है और शांति टीवी देखने में व्यस्त है। मौका अच्छा था मदनलाल सीधा किचन में घुस गया और काम्या को पीछे से पकड़ लिया।
पिछले तीन दिनों से सोया पड़ा उसका कोबरा भी फन फैला चूका था। उसके कोबरा ने अपनी आदत के अनुसार बहु के पीछे वाले बिल में मुह मारना चालू कर दिया
जबकि मदनलाल के हाथों ने बहु के संतरों पर कब्ज़ा कर लिया। काम्या इस अचानक हमले से चिहुंक गई और चीखते -२ बची। काम्या तुरंत बोली बाबूजी ये क्या कर
रहे हो,मम्मी बाजु में हैं। प्लीज छोड़िये मुझे। पर मदनलाल को कोई फर्क नहीं पड़ा वो चूची दाबते -२ ही बोला "" छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है "" काम्या को अपनी
जिन चूचियों पर नाज़ था वही अब उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गई थी। बाबूजी का हाथ जब उन चलता तो काम्या अपनी सुधबुध खो देती। जिन चूचियों को इतने
नाज़ से सालों से संभल कर रखा था वो अब काम्या के नहीं मदनलाल के इशारों पर थिरकती थी। मदनलाल बहु के स्तनों अपने हाथों का जादू दिखलाने लगा
साथ ही साथ उसके होंठ काम्या की खुली पीठ और गर्दन की सैर पर चल पड़े। उसकी हर हरकत पर काम्या के बदन में सनसनी बढ़ती जा रही थी लेकिन समय
की नजाकत भांपते हुए उसने फिर कहा "" बाबूजी प्लीज अभी चले जाइए जो रात को कर लेना "". मदनलाल भी शांति के कारण कुछ सतर्क था अतः बोला
"" ठीक है जा रहें हैं बस एक किस्सी दे दो "" फिर उसने काम्या को तेज़ी से घुमाया और अपने प्यासे होंठ बहु के रसभरे होंठों से जोड़ दिया। बहु भी अधरों के
मिलन को बर्दास्त नहीं कर पायी और पूरी ताक़त से बाबूजी को अपने से चिपका ली।
बाबूजी जाकर टीवी देखने लगे तब काम्या चाय ले कर आई। दोनों ससुर बहु एक दूसरे को देखने में मस्त थे और शांति सास बहु सीरियल देखने में। रात में जब
शान्ति नींद की गोली खाकर सो गई तो मदनलाल ने टावर से काम्या को फ़ोन किया
काम्या :---- हाँ बाबूजी। बोलिए
मदनलाल :-- बहु तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाए इसलिए भूख बहुत लगी है
काम्या :--- कुछ खाना ले आएं क्या
मदनलाल ;-- नहीं खाना नहीं। बस थोड़ा दूध पी लेंगे
काम्या :--- ठीक है है दूध ले आते है
मदनलाल :-- अरे तुम आ बस जाओ डायरेक्ट पी लेंगे
काम्या :-- डायरेक्ट मतलब
मदनलाल : अरे जैसे कन्हैया पीता था मुंह लगाकर। काम्या मदनलाल बातों का अर्थ समझ कर शर्मा गई और बोली
काम्या :-- हे राम हमने आज तक आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहु से ऐसा बोलता है
बहु का रोमांटिक मूड देख कर मदनलाल भी फ़्लर्ट करने लगा
मदनलाल :-- अच्छा अच्छा ठीक है बोलेंगे नहीं करेंगे बस।
काम्या :-- क्या करेंगे ?
मदनलाल :-- सॉरी करेंगे नहीं। पीयेंगे। दूध पीयेंगे
काम्या :-- आप को तो और कोई काम है ही नहीं। बस आपकी सुई एक ही जगह आकर अटक जाती है
मदनलाल :-- अरे तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। चलो जल्दी आओ। और मदनलाल ने फ़ोन काट दिया।
काम्या को अब टावर में जाना था। वो बहुत शर्म महसूस कर रही थी। शर्म की बात भी थी उसे खुद अपने ससुर के पास चल कर जाना था जहाँ उसका ससुर उसके
बदन से खेलने के लिए इंतज़ार कर रहा था। काम्या ने धीरे धीरे कदम बढ़ाये। मोबाइल गाउन की जेब में रख लिया और सीढ़ी की ओर चल दी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे
अपनी सुहाग कक्ष में जा रही हो जहाँ उसका बालम उसकी नशीली जवानी को लूटने की लिए बैठा है उसे एक एक कदम बढ़ाना मुश्किल लग रहा था पता नहीं आज बाबूजी
क्या कर बैठेंगे आखिर उसने खुद ही तो कहा था कि हम टावर में आ जाएंगे ,टावर के द्वार पर पहुंचते ही मदनलाल ने उसे पकड़ कर खींच लिया और अपनी बाँहों में भींच लिया।
मदनलाल काम्या जैसी अल्हड़ जवानी को पाकर पगला गया था वो बुरी तरह उसको दबोचने मसलने लगा। उसकी बेकरारी देख काम्या अंदर ही अंदर अपने हुश्न पर गर्वे महसूस
कर रही थी। मदनलाल ने फ़ौरन बहु के स्ट्रबेर्री होंटो पर अपने होंठ रख दिए। नाजुक रसीले होंठ चूसते ही मदनलाल का कोबरा फुफकारने लगा और काम्या की नाभि के पास
चोट मारने लगा। होंठ चूसते -२ मदनलाल के हाथ काम्या के गाउन पर घूमने लगे तो उसने पाया कि गाउन चेन वाला है। ये गाउन पिछली बार सुनील लाया था आज पहली बार
उसे अपने बेटे का कोई काम पसंद आया। मदनलाल ने चेन की ज़िप पकड़ी और नीचे खींच दिया अगले ही पल बहु के कबूतर फड़कते हुए बाहर गए। ज़ीरो वाट की रोशनी में
दोनों चूचियाँ गज़ब की जानलेवा लग रही थी। मदनलाल उनकी सुंदरता में खो गया तभी काम्या पूछ बैठी
काम्या :--- क्या देख रहे हो बाबूजी
मदनलाल :-- बहु कुदरत की नायाब कारीगिरी देख रहा हूँ। काम्या मुस्कराते हुए बोली
काम्या :-- उसमे ऐसा क्या है। सभी का तो ऐसा होता है
मदनलाल :-- नहीं बहु सबका ऐसा नहीं होता। ये अद्धभुत हैं। मैंने अपनी जिंदगी में इतने सुन्दर कभी नहीं देखे। मदनलाल मक्खन लगाते बोला। काम्या अपनी बड़ाई सुनते
ही शरमा गई फिर धीरे से बोली
काम्या :-- कई बार तो देख लिया अब तक मन नहीं भरा क्या।
मदनलाल : -- पागल हो गई क्या। इन से कभी हमारा मन भर सकता है। अगर तुम ऐसे ही खोल कर बैठी रहो तो हम सारा जीवन इनको देखते हुए बिता सकते हैं।
काम्या :-- हाय राम बाबूजी । आप खुद तो पागल हो ही गए हैं साथ ही साथ हमको भी पागल करने में लगे हैं। काम्या लजाते हुए बोली
मदनलाल :-- तो हो जाओ न पागल। जिंदगी का असली आनंद तो किसी के लिए पागल होने में ही है। और फिर मदनलाल ने बहु की एक चूची को मुंह में ले लिया
अब ससुरा अपने पूरे लय में आ गया। उसने काम्या के संतरों को बुरी तरह निचोड़ना चालू कर दिया। इधर काम्या भी सिसकारी लेने लगी। मदनलाल
ने बहु को उठाया और दरी में लिटा दिया। बारी -२ से उसके संतरों को पीता और मसलता। बहु के शरीर भी आग भरने लगी थी वो अपनी जाँघों को आपस में रगड़ने लगी।
दोनों काम तरंगो में डूबने लगे तभी बहु का मोबाइल बज उठा। मदनलाल बोला देखो कौन विघ्न संतोषी है। काम्या ने देखा तो स्क्रीन पर सुनील का चेहरा था उसने
बाबूजी को दिखाया। क्षण भर को तो बाबूजी खिन्न हो गए लेकिन फिर संभलते हुए बोले '' ' लाउडस्पीकर ओन करके के बात करो। काम्या ने बात चालू की
काम्या :-- हाँ जानू। नींद नहीं आ रही क्या
सुनील :-- नहीं दुधु पीने का मन कर रहा है.
काम्या :-- तो आ जाओ न छुट्टी लेकर
सुनील :--- यहीं से पी लेंगे। तुम दुधु तो बाहर निकालो। काम्या बाबूजी की ओर देखते हुए कुछ देर चुप रही फिर बोली
काम्या :-- जानू निकाल ली। अब पी लो। उसके इतना बोलते ही मदनलाल ने दूध पीना चालू कर दिया।
सुनील :--- हम मुंह में ले रहें हैं। डार्लिंग तुम फील करो।
उनकी बातें सुन मदनलाल एकदम सांय बाँय हो हो गया और उसने चूची दांत गाड़ दिए जिससे काम्या के मुख से जोर की चीख निकल गई।
सुनील : --- डार्लिंग क्या हुआ
काम्या :--- इतनी जोर से क्यों काटा। हम पीने बोले हैं काटने नहीं। नो चीटिंग
सुनील :-- सॉरी डार्लिंग हम तो पी ही रहे थे दांत लग गया होगा।
इधर मदनलाल मौका देख बहु की चूत मसलने लगा। बहु भी हीट में थी तो गांड उछालने लगी। थोड़ी देर की चूत रगड़ाई में ही उसका पानी छूट गया
तो उसे होश आया और वो चिल्लाई ""हाथ हटाओ वहां से""।बाबूजी ने तुरंत हाथ हटा दिया उधर सुनील घबड़ा कर बोला
सुनील :-- कहाँ से. हाथ हटायें।
काम्या :--- आप नीचे वहां क्यों हाथ लगा रहे हैं। अभी बिलकुल नहीं। अभी हमारा नौ दिन का उपवास चल रहा है। चुतिया सुनील कुछ समझा नहीं और बोला
सुनील :-- सॉरी यार गलती से लग गया होगा
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