Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--182

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--182

 रंजी और गुड्डी , एक दूसरे से जुडी चिपकी , पड़ी थीं और वो गुलाबी डबल डिल्डो धीमे धीमे दोनों के बीच साझा , दोनों को जोड़ता अदृश्य हो गया।

और अब शुरू हुआ कन्या रस का असल खेल।

दोनों में से किसी को कोई जल्दी नहीं थी , कुछ साबित नहीं करना था।

बाहर रात बूँद बूँद टपक रही थी ,

अमलताश झर रहे थे।

पास के आम के पेड़ से , आम्र मंजरी की मादक महक , खुली खिड़की से आ रही थी।

रोशनी के नाम पर बस एक छोटा सा नाइट लैम्प और बाहर से गुड्डी के मामा का टार्च , चंदा मामा ,

हलकी सी ज्योत्सना की सफेद चमेली की चादर की तरह दोनों के बदन को सहला रही थी।



एक बात मैंने नोटिस किया था ,

( कुर्सी पर बैठे आदेश से बंधे नोटिस करने के अलावा मेरे पास विकल्प भी क्या थे )

केलि क्रीड़ा में लडकिया ( मेरा मतलब सिर्फ किशोरी या तरुणी से है , प्रौढ़ा से नहीं ) अकसर बस यह अपेक्षा करती हैं और प्रतीक्षा भी , की सारी पहल पुरुष की ओर से हो। लेकिन इस खेल की खिलाड़न अगर दोनों लड़कियां हो , तो पहल , भागीदारी दोनों की बराबरी की होती है, चाहे वह ननद भौजाई हो या सहेलियाँ । हाँ ये हो सकता है की कोई कभी डॉमिनेंट रोल निभाये तो कोई कभी।


और दूसरी बात देह सुख लेने में उसके गोपन रहस्य खोलने में उन्हें कोई जल्दी नहीं होती। इन्तजार , तड़पाना और तरसाना भी इस क्रीड़ा का उतना ही मजेदार पहलु होता है ( क्योंकि पेन्ट्रेशन टाइप कोई साफ टारगेट तो होता नहीं ) और मजा सिर्फ मजा अपने आप झरता रहता है।

गुड्डी ढलती हुयी रात की तरह , मुस्कराती नीचे लेटी थी।

रंजी उसे देख कर सिर्फ मुस्कराती रही ,फिर अचानक रंजी ने गुड्डी की कलाई जोर से पकड़ ली और जैसे दूर आसमान से कोई बाज नीचे उत्तर के झपट्टा मारे , उसके होंठ सीधे गुड्डी के चेहरे की ओर।

लेकिन गुड्डी कौन कम थी , कुछ अदा से कुछ शरारत से उसने चेहरा दूर मोड़ लिया।

लेकिन इस समय रंजी से बचना मुश्किल था , और बचना चाहता भी कौन था ?

रंजी के प्यासे पगलाए होंठ , भौंरे की तरह मंडरा रहे ,

कभी गुड्डी की नीलकमल सी सपनों से लदी पलकोँ के आसपास भौंरे से रंजी कर होंठ मंडराते ,

तो कभी गुलाब से गालों के ऊपर

और फिर अचानक तिर्यक चुम्बन रंजी ने ले लिया , बहुत हलके से फागुन में दहकते पलाश से होंठों पे उतर के ,

लेकिन वो पहला चुम्बन बहुत हल्का सा था , जस्ट टच ,

गुड्डी के होंठ लरज के रह गए , और रंजी ने अपने होंठ हटा लिए।

दोनों हाथों से रंजी ने गुड्डी के सर को सीधा किया , ठीक अपने सर के नीचे , रंजी के होंठ बस आधे इंच की दूरी पे रहे होंगे।

लेकिन दोनों एक दूसरे को तड़पा रही थीं , तरसा रही थी , ललचा रही थीं।

और अबकी जो रंजी के होंठ उतरे तो बस अधिकार सहित गुड्डी के होंठो पे ठहर गए। दोनों हाथों से रंजी ने कस के गुड्डी का सर दबोच रखा था , वो सूत भर भी हिल नहीं सकती थी।

अबकी रंजी को चुम्बन का जवाब भी मिला , थोड़ा लरजते , झिझकते , शर्माते गुड्डी के होंठ हिले , उन्होंने भी रंजी के होंठों को चूमा और ठहर गए।


पर इतनी हामी भी बहुत थी रंजी के होंठों के लिए और चुम्बन की बारिश शुरू होगयी , पलकें , गाल , होंठ , ठुड्डी का गड्ढा , कुछ भी नहीं बचा।


और जब बारिश कुछ थमी तो डीप फ्रेंच किस ,

रंजी ने गुड्डी के चेहरे को पकड़ रखा था जोर से ,थोड़ा तिरछे , और एक हाथ से उसके गाल दबाये कककचा कर।

चिरैया ने चोंच चियार दी और झटाक से रंजी की जीभ अंदर , गुड्डी के होंठ सील , रंजी के होंठों के बीच। रंजी रस ले ले कर उन होंठों को चुभला रही थी , हलके से बाइट कर रही थी , अपने दांतों के निशान बना रही थी और साथ में उसकी मखमली जुबान , मुंह के अंदर का हाल चाल ले रही थी।

और कुछ ही देर में गुड्डी , रंजी की जुबान जोर जोर से चूस रही थी जैसे कोई मोटा लिंग चूस रहा हो। गुड्डी ने भी अब रंजी को जोर जोर से अपनी बाँहों में बांध लिया था और भींच रही थी।

दोनों के किशोर ,नए निकले चाँद की तरह उभरते उरोज , एक दूसरे को जोर जोर से दबा रगड़ रहे थे।

और गुड्डी के उरोजों ने शिकायत की हे सारा मजा होंठों को ही दे देगी क्या , रंजी कैसे ये अनसुनी करती और झटपट,अधर नीचे सरके और अब कत्थई गुलाब , वो मोटी मोटी किसमिश , रंजी के होंठों के बीच थी , वो चूस रही चुभला रही थी।

लेकिन अगले ही पल रंजी गुड्डी से ऊपर उठ गयी , सिर्फ कमर के ऊपर का हिस्सा , दोनों की योनि अभी भी डबल डिल्डो से जुडी हुयी थी।

और अब सिर्फ रंजी के होंठ , गुड्डी के देह पे थे वो भी जस्ट टच करते हुए ,

गुड्डी के उरोजों के बेस पे जैसे किसी छोटी पहाड़ी की परिक्रमा कर रहे हों , रंजी के होंठों का चुम्बन चक्कर , गुड्डी के गोल गुदाज उभारों के चारों ओर लगा और एक बार फिर उस उगते यौवन शिखर के आधार से छोटे छोटे चुम्बन चरण धरते , सीधे शिखर की ओर जहाँ कत्थई गुलाब की कली उसे आमंत्रित कर रही थी ,चैलेन्ज दे रही।

लेकिन उस यौवन शिखर पर पहुँच कर भी कोई जल्दी नहीं थी रंजी को।

उसकी जुबान की टिप बहुत छोटे छोटे चुंबनों से उत्तेजित कुचाग्रों की आग को और सुलगा रही थी , फिर जुबान की टिप से उसे जोर जोर से फ्लिक कर के , उस आग कोऔर धौंका उसने।

गुड्डी के निपल बरछी की नोक की तरह खड़े थे।

मैं साँसे बांधे , दम साधे देख रहा था , क्या होगा ,क्या होगा। 


निपल की टिप , जुबान की टिप से एक पल के लिए मिली लेकिन छटक के रंजी जुबान जैसे उस यौवन ज्वाला में दहक़ उठे और दूर हो जाए , बस उसी तरह।


लेकिन जैसे तलवार बाजी के खेल में कुशल खिलाड़ी फेंट करता है , एक छलावे की तरह , बस एक दम वैसे ही।


उत्तेजित उरोज अपने आप ऊपर उठ गए , और उधर रंजी के होंठ भी किसी बाज की तरह उन्होंने झपट्टा मारा और निपल होंठों के बीच।







कुछ पल कन्या क्रीड़ा की वह कुशल खिलाडन बस उसे अपने मुलायम होंठो से हलके हलके दबाती रही , फिर जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया।


एक निपल होंठों के कब्जे में था और दूसरा , रंजी की अंगूठे और तरजनी के बीच।

और दोनों के बीच मुकाबला चल रहा था कौन गुड्डी को पहले पागल बना पाता है।

देह के भूगोल खासतौर से लड़कियों के देह का पता करना बड़ा कठिन है।

अंदर ही अंदर देह के , कोई सुरंग होती है , इन सारंगनायनीयों के , जो उरोजों के शिखर को जंघा घाटी के बीच के कूप से जोड देती है। शिखर पर कुछ करो तो झरना वहां फूटेगा।

और गुड्डी के साथ भी यही हुआ , रंजी ने जितने जोर से उसके निपल चूसे , पिंच किये , रगड़े मसले। उसने चूतड़ पटकने शुरू किये और कुछ देर में ही रस की सरिता बह निकली।

गुड्डी पागल हुयी ये तो पता नही , लेकिन मैं जरूर पागल हो गया।

जंगबहादुर एकदम ९० डिग्री पर थे , किसी भी कन्दरा , गुफा में घुसने को बेताब।

लेकिन रंजी का आदेश , मैं कुर्सी से हिल भी नहीं सकता था और सामने जवानी के जोश में पागल दो किशोरियां , एक दूसरे से गुथी , ....

जाने अनजाने हाथ उत्थित लिंग पर चला ही गया।


न जाने इन लड़कियों के कितनी आँखे होती हैं।



रंजी ने तुरंत बरजा ,खबरदार ,मना किया था न। और अब इसे छूने का हक़ तेरा एकदम नहीं है , तुरंत हाथ हटाओ।

गुड्डी की आँखों ने भी घुड़का , और कुछ रंजी के कानों में फुसफुसाई , और दोनों जोर से खिलखिलाने लगी।

रंजी ने खिलखिलाते हुए पुछा ,


क्यों किसके बारे में सोच सोच के मुट्ठ मार रहे हो और फिर गुड्डी की ओर इशारा करके बोली ,

' मम्मी के, " और आगे की बात दोनों की हंसी में डूब गयी।



कहते हैं न जबरा मारे रोये न देय।

बस वही हालत हो रही थी  


डबल डिल्डो की किस्मत मेरे लंड से अच्छी थी , एक साथ दोनों की योनि में धंसा था।

यहाँ बेचारे जंगबहादुर एक को तरस रहे थे वहां वो , एक साथ दो -दो का रस ले रहा था।

गुड्डी की योनि गुफा पे सुधा रस बरसने का असर ये हुआ की वो कुनमुनाने लगी , हलके हलके नीचे से नितम्ब उठाते , अपनी ओर से डिल्डो रंजी की बिल में धंसाने लगी जैसे कोई कामातुर लेकिन शरमायी नव ब्याहता रति के समय , पति के कंधो में नाख़ून धंसा ,उसे अपने ओर खीच जोर जोर से धक्के लगवाने की अपनी रूचि जाहिर करे।

रंजी हलके से मुस्कराई और फिर वही हुआ जो होना था।

वो दोनों जो डबल डिलडो इस्तेमाल कर रही थी वो नेक्सस जायंट मॉडल था। सिलिकॉन का बना।


जो हिस्सा गुड्डी की चूत में धंसा था , वो करीब ७ इंच लम्बा और ढाई इंच चौड़ा रहा होगा। उसके बेस पे एक स्पर भी था क्लिट को जोर जोर से रगड़ने के लिए। और वाइब्रेट भी करता था।






रंजी के अंदर जो पार्ट घुसा था उसका सिरा बल्बुअस था , वो भी करीब ढाई इंच मोटा और उसके बाद शैफ्ट की लम्बाई करीब ५ इंच। ।

कई बार डबल डिलडो एक सीधा लम्बा डिल्डो होता है जिसके दोनों सिरे दोनों ओर घुसाये जा सकते हैं , लेकिन यह अलग ढंग का था जिसमें कन्या केलि में एक डालने का काम करती और दूसरा डलवाने का , लेकिन दोनों को पूरा मजा आता , क्योंकि वह दोनों के बुर के अंदर जी प्वाइंट और नर्व इंडिंग्स को जम के रगड़ता।

फिर रंजी कन्या केलि में दक्ष।


और गुड्डी भी मुस्कराई।

पहले हलके हलके , ठंडी पुरवाई की तरह , फिर थोड़ी तेज और जल्द ही दोनों ने रफ्तार पकड़ ली।

शुरुआत रंजी ने की ,अपनी पतली कटीली कमरिया को गोल गोल चक्कर में घुमाते हुए और फिर साथ साथ गुड्डी भी। दोनों की जांघे चिपकी थीं , और जाँघों के बीच का संधि स्थल , लेकिन उसके अलावा दोनों की देह अलग थी।

जिसे भ्रमरी आसन कहा गया है , एकदम वही। लीड रंजी ले रही थी लेकिन गुड्डी की कमर भी उसी लय ताल में घूम रही थी , गजब की जुगल बंदी।


कुछ देर तक क्लॉक वाइज और फिर एंटीक्लॉक वाइज।

चलती चाकी देख के ,....

यहाँ चाकी के दो पाटों के बीच था उसकी हालत छोड़िये , जो इस चलती चाकी को देख रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी यानी ,… मेरी।

और चार पांच मिनट के बाद रंजी ने स्टाइल बदली।

और अब वह पूरी तरह 'एक्टिव ' और गुड्डी 'पैसिव ' मोड़ में चली गयी थी।

रंजी एक बार फिर गुड्डी को देख के मुस्कराई , उसकी लता की तरह देह झुकी और उसके होंठों ने गुड्डी की पलकों को होठों को लरजते सहलाया दुलराया

और गुड्डी ने बस आँखे बंद कर ली।

रंजी का एक हाथ जोर से गुड्डी के कूल्हे पे था और दूसरा गुड्डी की कमर को जोर से पकड़े था।

एक पल के लिए वो रुकी , फिर कमर पीछे खींच कर , गुड्डी की बुर में धंसे पर्पल डिल्डो को बाहर निकाला , आधे से भी ज्यादा।

मेरी आँखे वहीँ चिपकी थी।


एक पल के लिए रंजी रुकी , जैसे कोई शिकारी शिकार को सामने देख के रुकता है ,अपने भाले को सम्हालता है और फिर पूरी ताकत से ,


बस , रंजी ने वही किया। पूरी ताकत से डिल्डो ढकेल दिया , रगड़ते ,दररेरते ,जी प्वाइंट को छीलते , वो पूरा अंदर पैबस्त हो गया और उसका बल्बुअस हेड जोर से गुड्डी की बच्चेदानी से टकराया।

लेकिन बात यहीं नहीं रुकी , डिल्डो के ऊपर लगा छोटा सा स्पर जोर से गुड्डी के क्लिट को न सिर्पफ रगड़ रहा था बल्कि वाइब्रेट भी हो रहा था।

और उस दुहरे हमले का असर हुआ , गुड्डी की जोर से सिसकियाँ निकलने लगी।

लेकिन रंजी रुकी नहीं। अगले पल उसने अपनी कमर की ताकत से , फिर डिल्डो बाहर खींचा और अबकी पहले से भी ज्यादा और ज्यादा जोर से भी ,नतीजा वही हुआ , गुड्डी की सिसकियाँ बढ़ गयीं।


और अबकी रंजी डिल्डो को अंदर डाले डाले ,उसके स्पर को जोर जोर से गुड्डी की चूत के ऊपर ,क्लिट के ऊपर से घिस्से मार मार के रगड़ रही थी।



उईइइइइइइइइइइ ओह्ह्ह्ह्ह्ह नहींंंंंं उफ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सीइइइइइइइइइइइइइइइ गुड्डी की सिसकियाँ जोर जोर से बढ़ रही थी।

लेकिन रंजी , दुष्ट उसे गुड्डी को सताने में और मजा मिल रहा था।



उसने घिस्से जोर से लगाने शुरू कर दिए , और गुड्डी एकदम झड़ने के कगार पे पहुँच रही थी।

वो कुछ देर रुकी , एक पल गहरी सांस ली और धीमे खूब धीमे , डिल्डो को हलके हलके गुड्डी की रस से लिथड़ी चूत से बाहर निकाला , और अबकी सुपाड़ा नुमा हेड भी आलमोस्ट बाहर था।

गुड्डी ने एक दो पल चैन की सांस ली ही होगी की ,पूरी ताकत से ,

क्या कोई मर्द ऐसा कमर का जोर दिखायेगा , चूतड़ की ताकत होगी उसकी।

और गुड्डी जोर से चिल्लाई जब रगड़ता दरेरता डिलडो अंदर घुसा ,

उईइइइइइइइइइइइइ मम्म्मीईइइइइइइइइइइइ छोडो ऊऊऊऊऊऊऊ मम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्मी।


रंजी कौन रुकने वाली थी वो जोर जोर से क्लिट के ऊपर घिस्से लगाते बोली ,

" अच्छा अपनी मम्मी को भी ,… घबडा मत , तेरे सारे खानदान की चूत का भोसड़ा बनेगा , सारे बनारस वालियों की फुद्दी मारूं ,चूत गंज (चेतगंज ,बनारस का एक मोहल्ला है ) भोसड़ा गंज बना दूंगी , घबड़ा मत मेरी प्यारी बन्नो , छिनार की जनी , अगवाड़ा पिछवाड़ा सब के चिथड़े उड़ा दूंगी "

इस समय रंजी ऐसिटलडिहाइड हो रही थी २२. २ डिग्री ब्वॉयलिंग प्वाइंट वाली।


और वह अपनी कथनी करनी एक करने में लगी थी।

तूफान मेल मात था।

लेकिन कुछ देर बाद ही , रंजी ने अपनी कमर ऊँची की , डिलडो पूरी तरह बाहर निकाला और अपनी भी चूत से उसने डिलडो निकाल दिया। मुश्किल से पल भर में ,

लेकिन उसके बाद जो हुआ उसे देख कर कोई भी लंगोटे का कच्चा होता तो मलाई अब तक निकल जाती।

दोनों एक दूसरे में गुथी ,लिपटी , चूमती रगड़ती

जैसे दो लताएँ एक दूसरे में लिपटी हों।

लेकिन रंजी अभी भी ऊपर और उसकी चूत गुड्डी के चूत के ऊपर जोर जोर से घिस्से मारती।

जैसे तेज तूफान चल रहा हो ,लहरें थपेड़े ले रही हो

और ये तय करना मुश्किल था कौन पहले झडा ,

हाँ बस ये दिख रहा था की धीमे धीमे लहरे शांत पड़ने लगीं ,तूफान थम गया और रंजी गुड्डी एक दूसरे की बाहों में वैसे ही पड़ी रहीं। रंजी अभी भी ऊपर थी।

………………………………….

रात बाहर धीमे धीमे झर रही थी।
 






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