Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI शुभारम्भ-37

FUN-MAZA-MASTI

शुभारम्भ-37




 ….….कल….कल….दिन मे…..आकर पढ़ा दूँगा……”

ठीक है……2 बजे आइयो…….”, पम्मी आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा.

यार…..पिया तो 2 बजे घर पहुँच ही नही पाएगी तो फिर…..

और अपुन को सीन क्लियर हो गया….आंटी जान बूझकर जल्दी बुला रही है…..ताकि….

मैं तुरंत सरदार जी के घर ने निकला और सड़क पर आ गया.
रास्ते तो सुनसान हो चुके थे पर अपने भेजे की वाट लगी हुई थी….
बाबूराव को देखो तो अपना सर उठाए अभी तक पम्मी आंटी को ही ढूँढ रहा था, पर कम से कम फटफटी तो नॉर्मल हो गयी थी
साली….पम्मी आंटी भी क्या ठरकी औरत है यार, इतना महा मादरचोद पति होने के बाद भी मुझ पर ऐसे ही हाथ डाल दिया ?

तभी मेरी ट्यूब लाइट जली ……

आंटी को जो चाहिए…..वो मुझे से मिल भी जाएगा और किसी को शक भी नही….

अच्छा…..

कीड़ा कुलबुलाने लगा.

पम्मी आंटी की हरकटो ने भेजे को हिला डाला था…..बाबूराव इस कदर टन टना टन खड़ा था मानो पेंट ही फाड़ देगा…..मैं पेंट के उपर से ही बाबूराव को थोड़ा अड्जस्ट किया, साला मुंडी अंडरवियर की एलास्टिक से निकल के तैयार बैठा था ..

आज तो नीलू चाची की फाड़ के रख दूँगा….

सही मे यार….

इतना गरम तो मैं आज तक नही हुआ था.

जैसे जैसे मेरे कदम घर की और बढ़ रहे थे वैसे वैसे मेरी ठरक का मीटर बढ़ रहा था.

आज तो चाची को पकड़ के सीधा साड़ी उपर करूँगा और पेल दूँगा….

मैं अपनी ही धुन मे चला जा रहा था. मन ही मन प्लान करते करते कब सड़क के बीच आ गया पता ही नही चला.

पो... पो....

मेरी तो गांड ही फट गयी, भेन्चोद बस वाले ने ठीक पीछे आकर् ही हॉर्न मारा.

मैं हड़बड़ा कर फुटपाथ पर आया. बस क्रॉस हुई तो दरवाजे से लटका लोण्डा चिल्लाया....

अबे ओ अंधे की औलाद, मरेगा क्या मादरचोद ....? “

अबे जा...भेंन के लौड़े.....”, मैं चिल्लाया.

अचानक मैं रुक गया....आज पहली बार मैने किसी को गाली दी थी वो भी बिना हकलाये.

पम्मी आंटी ने तो बाबूराव पर हाथ फेर कर ही मुझे बदल दिया, अब जाने क्या क्या होगा.

चाची को पेलने के मंसूबे बनाता बनाता मैं घर पहुँचा....

ना चाचा का स्कूटर था ना पपाजी का....मा तो यूँ भी लेट आने वाली थी.

मतलब की मैदान साफ़...

मेरे पूरे बदन मे सुरसुरी ही होने लगी....मैने बेल बजाई.

दो बार और बजाने पर दरवाजा खुला और हाथ मे थाली लिए चाची दिखी.

ये थाली का क्या लोचा है भेन्चोद ?

चाची बोली, “राम....अच्छा हुआ तू आ गया.....जा ये थाली सामने शर्मा जी के यहाँ लेजा.....इसमे बाबाजी का खाना है"

बाबाजी....?

अच्छा वो बाबाजी.....चाची ने कहा था.

मैं शर्मा जी के यहा गया. दरवाजा खुला था.....
पहले कमरे मे 7-8 औरते बैठी थी....मैने आवाज़ लगाई..

लता आंटी.....? “ ( शर्मा आंटी का नाम लता था.

आंटी एक कमरे से बाहर निकली और मेरे हाथ मे थाली देख कर बोली, “अरे वाह....ले आया खाना....वाह...वाह.....ला....दे.....अब तो अनिता (नीलू चाची) की मुराद ज़रूर पूरी होगी....ला बेटा ला.....अच्छा सुन.....अनिता को याद दिला देना....उपवास का......और परहेज का.....

उपवास ....? परहेज.....?

क्या चुतियाई है ?

मैं घर पहुँचा...चाची बाहर ही खड़ी थी.....

दे आया.....वाह....लल्ला......ला दे....यह थाली मुझे दे दे....

मुझे याद आया की शर्मा आंटी ने कुछ कहा था....

चाची.....वो शर्मा आंटी ने कहा था.....की...उपवास और.....वो....हा....परहेज पूरा रखना

चाची मुस्कुरई और बोली, “हन....रे.....रखूँगी रे.......गोद भर जाए बस...

अच्छा तो यह लोचा है.....बाबाजी ने नया नुस्ख़ा दिया है. चलो बढ़िया है..

मगर मुझे तो चाची से कुछ काम था ना....

चाची किचन मे गयी और सींक मे थाली धोने लगी, मैं धीरे से उनके पीछे गया और अपने बाबूराव उनकी गांड पर चिपका कर आगे झुक कर पानी का ग्लास उठाने लगा. चाची एक दम से चिहुकि और अलग हट गयी, मैने पानी पिया और ग्लास रखने के लिए आगे बढ़ते हुए फिर से बाबूराव को चाची की गांड पर चिपका दिया...

लल्ला......”, चाची चिल्लई.

मैने अपने हाथ चाची की कमर मे डालने की कोशिश की.

चाची फिर ज़ोर से चिल्लई, “अरे हट परे.......

इसकी मा की चूत....

चाची हमको ही छका रही थी....

वही पुराना चूहे बिल्ली का खेल

मगर आज तो हम बिल्ली मारिबे

सालीयूँ इतनी गरम है की हाथ लगाओ तो कसमसने लगती है .....

सीन क्या है ?

चाची पीछे मूडी, उनका चेहरा बिल्कुल तमतमाया हुआ था....

मैने हाथ आगे बढ़ाया.,

चाची फिर बोली, “न..न...न.....नही.....मत कर हरामी.......

फटफटी ......धीरे....धीरे.....चली.....रे.......

क....क.....क.....क्या हुआ चाची......

मैने मना किया ना....अरे तेरी मोटी बुदधि मे कुछ आता नही है क्या रे.....अरे बाबाजी ने परहेज रखने को कहा है......नासपीटे ...उपवास तुडा देगा तू.......

हैं..... क…..क्या….?”

चाची ने मेरा लटका हुआ चेहरा देखा तो समझने के अंदाज़ मे बोली, “बाबाजी.....ने दवाई दी है.....और कहा हे की 1 महीने तक दवाई लेना है और परहेज से रहना है......,मतलब समझा ना तू....


खड़े लॅंड को ऐसा धोका ???

भेजे की माँ, भेन, भाभी, आंटी सब हो गयी यार.....

एक बार तो मन किया की माँ की आँख.....चाची को पकड़ के पेल ही देता हूँ.....पर जब उनका चेहरा देखा तो ये आईडिया खिड़की से बाहर निकल गया.

चाची अभी तक मेरा मुंह ही तक रही थी....

"खाना लगा दूँ........."

"हाँ....?......क्या.....?"

"खाना लगा दूँ.......देख पूरी और भाजी बनायीं है.....बाबाजी ने कह कर बनवाई है........."

बाबाजी का घंटा......

"नहीं भूख नहीं मुझे........"

"हाय हाय......राम घी की पूरी और तरकारी है........खा....ले.....प्रसाद समझ कर....."

अरे यहाँ मेरे भेजे की टे पु हो रही थी और यह चाची की चबर चबर बंद नही हो रही....

""अरे.....मैंने......खाना......खा......लिया......है........नहीं......खाना......मुझे........"

चाची के चेहरे पर एक्सप्रेशन चेंज हो गए......बेचारी हर्ट हो गयी.

"...हैं लल्ला......नाराज़ हो गया......?"

मैंने न में सर हिलाया...मगर मेरे माथे पर बल अभी तक पड़े हुए थे.

अब यार.....इंसान का बाबुराव खड़ा हो.....उसका मूड बना हो.......उसके सामने चाची हो......घर में कोई नहीं हो.........

और ऐसी चुतियाई सुनने को मिले तो और क्या करे....?

लौड़ा चाची को कौन समझाए की बच्चा उपवास करने से नहीं.......सहवास करने से होता है.

बहुत बड़ी चोद हो गयी यार.......

चाची ठंडी साँस भरकर बोली, "...राम.....तो मैं क्या करू......तेरे चाचा न तो इलाज़ कराते है न कुछ और.......वो डॉक्टर मेडम ने कहा था की महीना आने के बाद दसवे दिन से बीसवे दिन तक रोज़..........कोशिश करना.......तो क्या मैं अकेले कर लूँ कोशिश......तेरे चाचा तो घर आते है.....खाना खाते हैं.....और जब तक मैं सब काम निबटा कर कमरे में जाती हूँ तब तक तो.....सो जाते है.......
राम इसमें मेरी क्या गलती है.........सब मुझे दोष देते है.......कल ही बड़ी बुआ का फ़ोन आया था.....मुझसे बोलती है की यह सब पिछले जनम का किया धरा है......तेरी दादी जी बोलती हैं की मेरे माँ बाप..........."

इतना बोलते बोलते चाची की आँख ही भर आई.

अब यार......यह कोनसा रायता फ़ैल गया.

मैंने चाची को बोला, "अरे ....अरे......चाची ऐसे मत करो......रोइयो मती......सब हो जायेगा......आपने उपवास किया है न.....बस.."

चाची तो आँख नाक पोछती हुयी चली गयी.

मगर मेरा क्या.....?

चाची की आदत ही गांड मटका कर चलने की है....अंदर जाते जाते भी गांड को ऐसे मटका रही थी की.......

कीड़ा कुलबुलाने लगा.

मगर अबे कछु नाइ होत.....

चाची तो निकल ली...मेरी साली खोपड़िआ काम नहीं कर रही थी की क्या करू.....?

चूत का स्वाद मिलने के बाद मुठ्ठी मारने में मजा ही नहीं आ रहा था......और न ही मन था.

मुझे तो ....चूत ......ही चाहिए थी.

कसम गंगा मैया की............. ऐसा खोपड़ा खोपरा हो गया था, अब का बताई….

अपुन तो मन मसोस भी लेते मगर बाबूराव तो माने नही मान रहा था. साला वैसा का वैसा ही खड़ा था.

उसके उपर से यह गर्मी….चिप चिपी ….

पंखे के नीचे खड़े होकर भी लग रहा था की जैसे भट्टी के मुहाने पर खड़ा हूँ, भोसड़ी का पंखा भी चु चु करके जितनी गरम हवा इक्कठी हो रही थी, समेट कर मेरे सर पर डाल रहा था.

बाई गोड … .खोपडिया खराब हो गयी थी.

कुछ समझ मे नही आया तो मैं बाहर आकर खड़ा हो गया…….रात की दस बज चुके थे….शर्मा अंकल के यहा से रह रह कर आवाज़ें जाती थी….बाबाजी जो आए हुए थे.

थोड़ी ठंडी हवा चली…..दिल को तो नही मगर बदन को थोड़ा सुकून मिला.

मैने सोचा चलो छत पर ही चलते है…..कमसकम अच्छी हवा तो मिलेगी.

हमारी छत दो मंज़िल की हैबाकी सब की एक मंज़िल कीतो हवा तो अच्छी मिल ही जाती.

मैं छत पर गया और कसम से यहा तो माहोल ही चेंज था.

मेरा शहर थोड़ा पहाड़ी ज़मीन पर है….थोड़ी उँची थोड़ी नीची…..हमारे घर की छत से आधा शहर दिखता था……रात की रोशनी मे नहाया….

बड़े तालाब के पानी पर पड़ती रोशनी……किसी के भी मन को शांत कर सकती थी.

मगर खड़े बाबूराव को तो एक ही चीज़ शांत कर सकती थी…..

मैं बेचैन सा छत पर चक्कर लगाने लगा.

मैं मुंडेर पर खड़ा था कोमल भाभी के घर की और मुँह किए….ठंडी हवा चेहरे पर टकरा रही थी…..सहला भी रही थी और उकसा भी रही थी. कोमल भाभी की छत हमारी छत से लगी थी मगर एक मंज़िल नीचे थी. हमारा घर मंज़िला था और उनका एक मंज़िला.

तभी कोमल भाभी की छत पर बना रोशनदान….एक दम से रोशन हो गया.

उनके बेडरूम का रोशनदान छत पर था….झिर्रिया बनी थी.

उधर रोशन दान रोशन हुआ और इधर….

कीड़ा कुलबुलाने लगा.

उड़ी मरने मे तो अपुन ऐसे ही एक्सपर्ट थे…….मेरी छत और कोमल भाभी की छत मे करीब दस फीट की छलाँग थी……मैने आव देखा ना ताव मुंडेर पर हाथ से लटक कर पैर दिवार पर निकली ईंटों पर जमाए और यह नीचे….

कसम से बिल्ली भी इतनी धीरे से नही कूद सकती….

मैं दबे पाँव रोशनदन की और बड़ा…..

अगले ही पल मैं रोशनदान के पास उकड़ू बैठा था और अंदर झाँक रहा था.

मगर बेडरूम खाली था.

किस्मत से रोशनदान बेडरूम की दीवार के उपर बीच मे बना था, पूरे रूम का नज़ारा ऐसा दिख रहा था मानो मैं स्टेडियम मे बैठा हूँ….

पवेलियन सीट पर….

अब तो मॅच शुरू होने का इंतेज़ार था.

भाभी की पतिदेव आने वाले थे ना आज.

मैं तो नही मगर बाबूराव आने वाले सीन की उम्मीद मे हथेलिया मसल रहा था.

तभी भाभी के बेडरूम के बाथरूम का दरवाजा खुला और……

दीदारयार हो गया.

सूरज की गर्मी से तपी हुई ज़मीन पर पानी की बूँदें गिरने लगी थी बाबू…..

कलेजे को ठंडक और आँखों को नज़ारा.

भाभी नहा कर आई थी……ऐसी गर्मी मे तो रात मे नहाना ही पढ़ता है ना, मगर आज तो प्रयोजन ही दूसरा था….भैया जी टूर से आने वाले थे.

कोमल भाभी के बाल गीले थे….और उन्होने एक गाउन पहना हुआ था…..वो आगे से खुला होता है ना ….वो वाला.

मगर उनकी पीठ थी मेरी तरफ……इस लिए आगे का सीन नही दिख रहा था

एक तो यह रोशनदान की झिर्रिया भी…..भें चोद …..कभी मुंडी निचे कभी उपर करनी पढ़ रही थी.

कोमल भाभी जाकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो गयी और टेबल पर से एक बॉटल उठा ली.

भाभी ने अपने पैर ड्रेसिंग टेबल पर रखा……ओये….

भाभी का आगे से खुला गाउन उनके चिकने पैर से सरकता हुआ बगल मे लटक गया और उनका दूधिया पैर जाँघ तक लाइट की रोशनी से नहा गया.

गडप…..गडप….कसम से दो बार थूक निगलना पड़ा.

आज तो बाबूराव की अग्निपरीक्षा ही हो रही थी……साला कितना सितम झेले कोई.

कोमल भाभी ने बॉटल मे से लोशन निकाला, अपनी दोनो हथेलियो पर रगड़ा और धीरे धीरे अपने पैरों पर लगाने लगी.

जाँघ से शुरू होकर पैरों तक….

काश यह हाथ मेरे होते….…..कोमल भाभी धीरे धीरे हाथ से लोशन लगा रही थी और मेरा तापमान

धीरे.......... धीरे……धीरे….धीरे…..बड़े जा रहा था.

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