Tuesday, July 28, 2015

FUN-MAZA-MASTI कान्वेंट स्कूल टीचर-पार्ट-2

FUN-MAZA-MASTI


 कान्वेंट स्कूल टीचर-पार्ट-2
मैं चीख पड़ी, मैने दर्द के मारे फिर उठने का प्रयास किया तो उन्होंने हाथों के दबाव से मुझे उठने नहीं दिया और एक और धक्का मारा, मुझे दर्द तो हुआ पर गजब का आनंद भी आया, उनका लिंग दो तीन इंच तक मेरी योनि में उतर गया था।
सर..... ! उफ.... ! लगता है.... ! ओह........ ! लगता है कि आपका लिंग बहुत मोटा है...... क्या लंबा भी ज्यादा है.....? मैने अपने स्तनों पर जमे उनके हाथों को दबा कर कहा।
नहीं....हाँ मोटा तो काफी है, लेकिन लंबाई आठ इंच से ज्यादा नहीं है, उन्होंने लिंग को और आगे ठेल कर पीछे करके फिर ठेलते हुए कहा।
बस.....आठ इंची....तब तो आप खूब जोर जोर से धक्के मारिये..... ! ऑफ़.... ! तभी मजा आयेगा ! मैं उत्तेजना के वशीभूत होकर बोली।
अच्छा.... ! तुम्हें तेज तेज शॉट पसंद है ! तब तो यहाँ से हटो और दीवार से हाथ टिका कर खड़ी हो जाओ .... ! यहाँ तो टेबल गिर जायेगी, उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल कर कहा।
मैं मेज से उठ कर दीवार पर पंजे जमाकर उनकी और पीठ करके खड़ी हो गई तो उन्होंने मेरे नितंबों को सहलाते हुए अपने मोटे ताजे लिंग को मेरी योनि में डाल दिया और फिर तेज तेज धक्के मारने लगे, मेरा पूरा शरीर जोर जोर से हिल रहा था, उनकी जांघें मेरे नितंबों से आवाज के साथ टकरा रही थी, वे धक्के मारते मारते हांफने लगे, लेकिन खूब धक्के मारने पर भी वे स्खलित नहीं हो रहे थे, यहाँ तक कि वो आगे को शाट मारते तो मैं पीछे को हटती, मुझे लिंग के योनि में होते घर्षण से और लिंग की संवेदनशील नसों से भंगाकुर पर होते घर्षण से मैं आनंद की चरम सीमा तक पहुच गई थी। मैं उन्हें और प्रोत्साहित कर रही थी, और अन्दर तक करो सर...... ! और अन्दर तक...... ! और जोर से....! उफ... उफ... ओह.....यस्.... ! आई लव इट.... ओ... मैं हर तरह से उनके साथ सहयोग करते हुए बोली।
मेरी साँसें भी तूफानी हो चकी थी।
और फिर प्रिंसीपल सर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गये, मेरे गर्भाशय में एक शीतलता सी छाती चली गई, तब पता चला मुझे की पुरुष के खौलते वीर्य की धार जब स्त्री के गर्भ से टकराती है तो कैसा अदभुत आनंद प्राप्त होता है ! मैं पागलों की भांति प्रिंसीपल से लिपट गई और उनके लिंग को भी बेतहाशा चूमा। कुछ देर बाद अपने वस्त्र ठीक करके मैं प्रिंसीपल रूम से निकल गई।

इस घटना के बाद मैं खुद ही सेक्स संबंधों के प्रति आवश्यकता से अधिक झुकती चली गई।
जब तक उस स्कूल में रही तब तक प्रिंसीपल और डबराल सर के साथ मैने अनेक बार सम्बन्ध बनाये, किसी नये व्यक्ति से संबंध बनाने की जिज्ञासा तो मुझे रहती थी किन्तु मैं नये व्यक्ति से जुड़ने की पहल नहीं करती थी, हालांकि कई हम-उम्र लड़के कई बार मुझसे फ्रेंडशिप करने का प्रयास कर चुके थे, लेकिन जो परिपक्व अनुभव मुझे डबराल सर और प्रिंसीपल से मिला था उसकी तुलना में ये लड़के बिलकुल मूर्ख लगते थे।
एक लड़का जो कि काफी हेंडसम और अच्छी शक्ल सूरत का था, उसका नाम राजेन्द्र था, उसने कई बार मुझे अनेक प्रकार से अप्रोच किया कि मैं उससे एकांत में सिर्फ एक बार मुलाक़ात कर लूँ ! अंततः एक दिन मैने उससे मिलने का फैसला कर ही लिया और मौका देख कर स्कूल की काफी बड़ी बिल्डिंग के उस कमरे में उसे बुला लिया जो हमेशा ही सूना पड़ा रहता था।
राजेद्र ठीक समय पर कमरे में पहुँच गया, उसके चेहरे पर प्रसनत्ता के भाव टपक रहे थे। उसने मुझे पहले ही से वहाँ पाया तो एकदम घबरा कर बोला- हेलो.... ! हेलो.....रजनी ! ........सोरी .... ! मुझे आने में जरा देर ही गई।
मैं उसकी घबराहट को देख कर मुस्कुराई, मुझे डबराल सर और प्रिंसीपल सर के अनुभव ने मेरी उम्र से काफी आगे निकाल दिया था।
कमरे का दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दो ! मैने कहा।
मैं एक मेज़ से नितंब टिकाये खड़ी थी, राजेन्द्र ने दरवाजा बंद करके सिटकनी चढ़ा दी और मेरे पास आ खड़ा हुआ।
हाँ.... ! अब बताओ राजेन्द्र कि तुम मुझसे अकेले में क्यों मिलना चाहते थे? मैं उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में झाँक कर बोली।
राजेन्द्र एक उन्नीस बीस की उम्र का अच्छे शरीर का लड़का था, उसने स्कूल ड्रेस वाली पेंट शर्ट पहन रखी थी।
वो क्या है कि ..... मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ ..... राजेन्द्र बोला।
दोस्ती... ? वो किसलिए.......? मैंने प्रश्न किया।
अं.... मेरे प्रश्न पर वो थोड़ा चौंका और फिर बोला- जिस लिए की जाती है उस लिये.. !!.
यही तो मैं भी जानना चाहती हूँ कि दोस्ती किस लिए की जाती है और वो दोस्ती ख़ास कर जो तुम जैसे हेंडसम और स्मार्ट लड़के मेरी जैसी भारी सेक्स अपील वाली लड़की से करते हैं ..... मैंने होठों पर एक रह्स्यमयी मुस्कान सजा कर कहा।
क्या .... क्या मतलब है तुम्हारे कहने का .... ! उसने बिगड़ने का अभिनय किया।
मैंने कहा- मतलब तो आइने की भाँति बिलकुल साफ़ है ! हाँ यह बात अलग है कि तुम आसानी से उसे स्वीकार नहीं करोगे ..... इसलिए तुम्हारे मुझसे दोस्ती करने के उद्देश्य को मैं ही बता देती हूँ- तुम या स्कूल के कई अन्य लड़के मुझसे इसलिए दोस्ती करना चाहते हो ताकि वो मेरी उभरती जवानी का मजा लूट सकें, मेरे उफनते यौवन के समुद्र में गोते लगा सकें !
मैंने आगे कहना जारी रखा- केवल हाँ या नहीं में उत्तर देना .... क्या मैंने गलत कहा है ....... ! क्या तुम्हारी नजरें मेरी शर्ट में से उत्तेजक ढंग से उभरते भारी स्तनों को ताकती नहीं रहती? क्या तुम स्कर्ट में ढके मेरे नितंबों पर दृष्टि टिका कर यह हसरत नहीं महसूस करते कि काश यह सुडौल ढलान हमारे सामने साक्षात प्रकट हो जाएँ !
मैंने ऐसा कहा तो वह चुप होकर दृष्टि चुराने लगा।
मैंने मन ही मन उसकी मनःस्थिति का मजा सा चखा !
फिर बोली- चुप क्यों हो गए? अरे भई, ये तो एक कॉमन सी बात है .. जैसे तुम मुझसे सिर्फ इसलिए दोस्ती करना चाहते हो कि मेरे यौवन को चख सको, वैसे ही मैंने भी तुम्हें आज अकेले में इस लिए बुलाया है कि मैं भी देख सकूँ कि तुम्हारे जैसे लड़के में कितना दम है! क्या तुम मुझे वो आनंद दे सकते हो जिसकी मुझे जरुरत है ! कम-ऑन ! जो तुम देखना चाहते हो मैं स्वयं ही दिखा देती हूँ।
यह कहते हुए मैंने अपनी शर्ट को स्कर्ट में से निकाल कर उसके सारे बटन खोल दिये।
अब मेरे स्तन पहले से काफी भारी हो गये थे, इसलिए जालीदार ब्रा पहनने लगी थी।
शर्ट के खुलने से मेरी गुलाबी रंग की ब्रा दिखने लगी, उसकी झीनी कढ़ाईदार जाली में से भरे भरे गुलाबी स्तन झाँक रहे थे, गहरे गुलाबी रंग की उनकी चोटियाँ थोड़ी और ऊँची उठ आई थी, कारण था डबराल द्बारा इनका अत्यधिक पान, यानी मेरी योनि से ज्यादा वे मेरे स्तनों को चूसा करते थे, इस कारण चोटियाँ भी नुकीली हो गई थी और स्तन भी वजनी हो गये थे।
राजेन्द्र की आँखें फटे फटे से अंदाज में मेरे ब्रा से ढके स्तनों पर जम गई, उसने अपने शुष्क होते होठों पर जीभ फिराई।
कम-ऑन .... तुम्हें पूरी छूट है ..... जो करना है करो ..... मैंने उससे कहा और शर्ट को बाजुओं से निकाल कर मेज़ पर रख दिया।
ओह रजनी ....... ! यू आर सो ग्रेट ! यह उद्दगार व्यक्त करता हुआ राजेन्द्र बढ़ा और उसने मेरे स्तनों को हाथों में संभालते हुए अपने शुष्क होंठों को मेरे लरजते नर्म अधरों पर रख दिये। मैंने उसकी कमर में हाथ डाल दिये और उसकी शर्ट का हिस्सा उसकी पेंट में से खींच कर उसकी टी शर्ट में हाथ डाल उसकी पीठ को सहलाने लगी, मेरी पतली अंगुलियां उसकी पेंट की बेल्ट के नीचे जाकर उसके नितंबों को छू आती थी।
राजेन्द्र ने काम-प्रेरित होते हुए मेरी ब्रा के हूक खोल दिये, मेरी ब्रा ढीली हो गई, राजेन्द्र ने दोनों कपों को स्तनों से नीचे कर दिये, मेरे गुलाबी रंग के दोनों काम पर्वत इधर उधर तन गये, राजेन्द्र उन्हें मसलने लगा तो मैं बोली- उफ.... ओह्ह ..... इनके निप्पलों को चूसो .....! चूसो राजेन्द्र ! ..... हाथ की जगह अपने होंठों से काम लो ..... उफ .....
यह कहते हुए मेरे हाथों ने उसकी पेंट की बेल्ट खोल कर उसकी पेंट को नीचे सरका दिया, पेंट उसकी मजबूत जांघों में फंस कर रुक गई, उसने एक टाईट फ्रेंची अंडरवियर पहन रखा था, मैं उसकी फ्रेंची को भी नीचे सरकाने लगी।
राजेन्द्र भी पीछे नहीं रहा था, उसने मेरे स्तनों को दुलारते दुलारते मेरी स्कर्ट को ऊपर करके मेरी पेंटी नीचे सरका दी थी जिसे मैंने पैरों से बिलकुल निकाल दिया, उसके हाथ अब मेरी जाँघों को सहलाते सहलाते मेरी फड़फड़ाती योनि से भी अठखेलियाँ कर आते थे, मैं बार बार मचल उठती थी, मेरे शरीर में कामुक प्यास जागृत हो चुकी थी।
उसी प्यास ने मुझे बुरी तरह झुलसाना शुरू कर दिया था, राजेन्द्र के अंडरवीयर को नीचे करके मैंने उसके लिंग को अपने हाथों में ले लिया, लिंग तप रहा था मानो जैसे मेरे हाथों में जलती हुई लकड़ी आ गई हो।
लेकिन यह क्या मैं चिहुंक उठी !
राजेन्द्र का लिंग तो मुश्किल से छः साढ़े छः इंच का था वह भी पूरी तरह उत्तेजित अवस्था में, मोटाई भी कोई ख़ास नहीं थी, इतने छोटे आकार प्रकार के लिंग से मेरी योनि क्या खाक संतुष्ट होनी थी, मुझे तो कम से कम आठ नौ इंच का लण्ड चाहिए था और अगर डबराल सर के जैसा बलिष्ठ हो तब तो कहना ही क्या ! इतने छोटे लिंग से ना तो मुझे ही कुछ मज़ा आना था और ना ही राजेन्द्र को !
मैं उसके लिंग-मुंड को सहला कर बोली- राजेन्द्र ये क्या ! तुम्हारा लिंग तो बहुत ही छोटा है, मुझे तो उम्मीद थी कम से कम नौ इंच का लिंग तो होगा ही ! इसीलिए तो मैने तुम्हें यहाँ बुलाया !
क्या ? ....राजेन्द्र चौंक उठा, उसने मेरे स्तनों से अपना मुख हटा लिया, उसकी आँखों में अपमान के से भाव थे, उसे मेरे शब्दों पर सख्त हैरानी हुई थी।
क्या...... क्या ? तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर देख लो, ना तो तुम्हे मज़ा आएगा और ना ही मुझे, तुम्हें तो मज़ा मैं मज़ा फिर भी दे दूंगी.......लेकिन मेरे क्या होगा, मैंने उसके लिंग को सहलाना नहीं छोड़ा था।
तो क्या इतनी बड़ी है तुम्हारी योनि.....? उसने हैरत से प्रश्न किया।
तुम डाल कर स्वयं देख लो..... ! मैंने कहा।
मेरे उकसाने पर राजेन्द्र नें अपना लिंग मेरी योनि में लगा कर एक हल्का सा सा ही धक्का दिया था की उसका पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि में ऐसे समा गया जैसे वह किसी पुरुष का लिंग ना हो कर कोई पैन हो, मुझे कुछ अहसास भी नहीं हुआ।

हैं..... !!! राजेन्द्र चौंका, उसने लिंग बाहर निकाल लिया।
क्यों....? क्या हुआ....? मैंने कहा, तो वह शरमा गया, उसे अपने लिंग के छोटे आकार पर शर्म आ रही थी।
इधर आओ.... ! मैंने उसका हाथ पकड़ कर दीवार की और बढ़ते हुए कहा- तुम्हें तो मज़ा आ जायेगा ! मैं अपनी जाँघों को बिलकुल भींच कर दीवार से पीठ लगा कर कड़ी हो जाउंगी तब तुम अपने लिंग को मेरी योनि में डाल कर घर्षण करना ! लेकिन हाँ.... शाट ऐसे जबरदस्त होनें चाहिए कि पता लगे कुछ....... ! दूसरी बात, मेरे स्तनों को चूसते रहना........... ! मुझे स्तन पान में बहुत मज़ा आता है...... !
यह कहते हुए मैं दीवार से पीठ लगा कर खड़ी हो गई और मैंने अपनी जांघें भींच ली और राजेन्द्र के लिंग को अपनी टाईट हो गई योनि के मुख पर लगा लिया, अब कुछ पता लगा कि योनि में कुछ प्रविष्ट हुआ है।
राजेन्द्र ने अपने हाथों से मेरी कमर पकड़ कर मेरे स्तनों को चूसना भी शुरू कर दिया था, वह कामुक ध्वनियाँ छोड़ने लगा था, उसकी साँसें भभकने लगी थी।
वह तेज तेज शाट मारने लगा तो मैं भी सिसकारियों के भंवर में फंस गई, उसका लिंग बेशक छोटा था किन्तु उसके शाट इतने बेहतरीन होते जा रहे थे कि मैं उस पर फ़िदा हो गई, मुझे आनंद आने लगा था, मेरे हाथ राजेन्द्र के कन्धों पर जम गए थे और राजेन्द्र ने उत्तेजना के वशीभूत मेरे स्तनों पर अपने दांत के निशान तक डाल दिए थे।
चरम सीमा पर पहुँच कर राजेन्द्र के धक्के इतने शक्तिशाली हो गए थे कि मुझे अपनी हड्डियाँ कड़कडाती महसूस होने लगी, मेरे कंठ से कामुक ध्वनियाँ तीब्र स्वर में फूटने लगी, अचानक ही मैंने अपनी जांघें खोल दी, राजेन्द्र का तपता लिंग बाहर निकाल कर अपने मुंह में डाल लिया।
राजेन्द्र ने मेरे मुंह में ही अंतिम धक्के मारे और स्खलित हो गया, उसका उबलता वीर्य मेरे कंठ में उतर गया, वह मेरे ऊपर निढाल सा हो गया, मैं उसके लिंग को चाटने लगी।
फिर जब दो चार क्षणो में उसकी चेतना लोटी तो मैंने उससे कहा- राजेन्द्र, वो उस कोने में जो फावड़े का लकड़ी का दस्ता पड़ा है वो उठा लाओ.....
इस कमरे में ऐसी छोटी-मोटी अनेक चीजें पड़ी रहती थी, जैसे फावड़ा, तसला, रस्सी, टूटी बेंचें या चटकी टेबल, उन्हीं चीजों में से एक फावड़े का लकड़ी का दस्ता मुझे दिखाई दे गया था, मेरी आँखें उसे देखते ही चमक उठी थी।
क्यों..... ? राजेन्द्र ने पूछा।
लेकर तो आओ..... ! मैं बोली।
मैंने अपने नग्न तन को ढकने का प्रयास नहीं किया, शरीर पर मात्र स्तनों के नीचे फंसी ब्रा थी और नितंबों पर स्कर्ट थी जिसके नीचे पेंटी नहीं थी।
राजेन्द्र अपनी पेंट ऊपर कर चुका था, वह फावड़े का दस्ता ले आया, यह ढाई तीन फुट का गोलाई वाला डंडा था, एक ओर की मोटाई दो-ढाई इंच थी, दूसरी ओर की तीन चार इंच थी,
मैंने उसके हाथ से डंडा ले लिया और गंदे फर्श पर ही चित्त लेट गई, मैंने स्कर्ट पेट पर चढ़ा कर डंडे के पतले वाले सिरे को अपने ढेर सारे थूक में भिगो कर अपनी योनि पर लगाया और हल्के से दबाव से ही डेढ़ दो इंच तक योनि में समां गया, मुझे उसकी कठोर मोटाई के कारण अपनी जांघें पूरी खोलनी पड़ी।
राजेन्द्र ! इसे धीरे धीरे आगे पीछे करते हुए मेरी योनि में घुसाओ..... ! मैंने राजेन्द्र से कहा।
राजेन्द्र हैरत से मुझे देख रहा था, वह मेरे निकट बैठ गया और उसने डंडा पकड़ लिया और मेरे कहे अनुसार उसे आगे पीछे करने लगा, वह बड़े ही संतुलन के साथ यह क्रिया कर रहा था, उसे मालूम था कि डंडे के टेढे मेढे होने से मेरी नाजुक योनि को नुकसान पहुँच सकता है इसलिए वो बहुत एहतियात के साथ डंडे को आगे बढ़ा रह था।
मैं अब सिसकारी भरने लगी थी, मुझे जांघें और ज्यादा या यूँ कहिये की संपूर्ण आकार में खोलनी पड़ रही थी, मैं अपने हाथों से ही अपने स्तनों को मसले डाल रही थी, डंडे के कठोर घर्षण ने मुझे शीघ्र ही चरम पर पहुंचा दिया और मैं स्खलित हो कर शांत पड़ती चली गई।
राजेन्द्र ने डंडे को योनि से निकाल कर उसके उतने हिस्से को जितना कि मेरी योनि में समाने में सफल हो गया था उसे देख कर कहा........ग्यारह बारह इंच.....माई गाड.....रजनी डार्लिंग तुम्हारे आगे कौन पुरुष ठहरेगा ! तुम तो पूरी कलाई डलवा सकती हो अन्दर....क्या तुम्हें दर्द नहीं होता इतनी लंबाई से?
उफ...मैं बैठ गई और बोली- कैसा दर्द डीयर...... ! मेरा तो वश नहीं चलता वरना ऐसे कई डंडे अन्दर कर लूँ ..... ! मेरी योनि में जितनी लंबी और जितनी मोटी चीज जाती है मुझे उतना ही ज्यादा मजा आता है, चलो अब.... ! काफी देर हो गई !
मेरे शब्दों पर वह मुझे आश्चर्य से घूरता रह गया था, उसके बाद हम वहाँ से चले आये थे।

इस प्रकार अपनी योनि के साथ भाँति भाँति के अजीब ढंग के प्रयोग करते करते समय निकल रहा था कि विदेश से मेरी दोनों भाभियाँ आ गई, वे एक माह के लिए हिन्दुस्तान घूमने आई थी, उन दोनों से मेरी खूब पटी।
मेरी बड़ी भाभी का नाम मार्टिना और छोटी भाभी का नाम मोनिका था, दोनों ही मुझसे लंबी चौड़ी थी, हाँ उनकी फिगर में कसाव था। वो साड़ी कभी कभी ही बांधा करती थी, अधिकतर ढीले ढीले पेंट शर्ट या टी-शर्ट के नीचे घुटनों तक की स्कर्ट पहनती थी, हिंदी भी उन्हें अच्छी आती थी।
उन दोनों के आ जाने से घर में काफी चहल पहल रहने लगी थी, हम सभी लोग ग्यारह बारह बजे तक बैडरूम में जागते रहते थे। रात में बंगले में हम पांच सदस्य ही रह जाते थे, माता-पिता, मैं और मेरी दोनों भाभियाँ, नौकर नौकरानी पति पत्नी ही थे, दोनों ही सर्वेण्ट क्वार्टर में चले जाते थे।
पिताजी को किसी सरकारी काम से मारिशस जाना पड़ गया तो मम्मी भी उनके साथ चली गई, उनका दो दिन का ट्रिप था, घर में हम तीनों महिलाएँ अकेली रह गई।
मम्मी पापा चार बजे गए थे, छः बजे मार्टिना भाभी ने नौकर को भेज कर एक फाइव स्टार होटल से खाना मंगा लिया और उसको तथा उसकी नौकरानी पत्नी को सुबह तक के लिए छुट्टी दे दी।
मार्टिना भाभी ने खाना किचन में रखा और अपने बैग में से कुछ कपड़े लेकर बाथरूम चली गई, मोनिका भाभी और मैं टी. वी. देख रहे थे, केबल पर हिंदी फिल्म आ रही थी।
मोनिका भाभी अलग सोफे पर बैठी थी मैं दूसरे पर ! मैंने घुटनों तक की स्कर्ट और ढीली ढाली शर्ट पहन रखी थी, शर्ट के भीतर गुलाबी रंग की जालीदार ब्रा थी, मोनिका भाभी ने ढीली ढाली सूती पेंट शर्ट पहन रखी थी, शर्ट के ऊपर के तीन बटन खुले हुए थे जहां से उनका मुझसे कहीं ज्यादा गोरा रंग झलक रहा था, उनके भारी स्तन थोड़े लटके हुए से थे जिनके निप्पलों का आभास शर्ट में से हो रहा था, निप्पलों से लटक कर शर्ट में सलवटें बन रही थीं, वह सोफे पर अधलेटी मुद्रा में बैठी थी और एक इंगलिश मैगजीन को देखते देखते टी. वी. भी देख लेती थी।
हल्लो रजनी.... आओ तुम भी नहा लो.... गुनगुने पानी में मजा आ जायेगा.... मार्टिना भाभी का स्वर मेरे कानों में पड़ा।
मैंने स्वर की दिशा में देखा तो देखती रह गई, मार्टिना भाभी ने अपने आकर्षक शरीर पर केवल एक छोटा सा वह भी बिलकुल पारदर्शी वस्त्र पहन रखा था, जिससे न तो उनके वजनी और उन्नत स्तन छुप रहे थे और न ही गदराई जाँघों के मध्य गोरी सी दो फांकों में बंटी उनकी खूबसूरत योनि। यह वस्त्र शमीज की ही भाँति था जो स्तनों के ऊपर से शुरु होकर उनकी जाँघों के जोड़ से जरा ही नीचे तक आ रहा था,
मोनिका...तुम नहीं लोगी बाथ ?.... मुझसे कहने के बाद मार्टिना भाभी ने मोनिका भाभी से कहा।
ओह्ह... यस्... ! कह कर मोनिका भाभी नें सोफे पर ही अंगड़ाई ली और उठ कर मेरी ओर अपना हाथ बढ़ा कर बोली- आओ....रजनी हम दोनों साथ साथ नहा कर आते हैं !
जी...? मैं आपके साथ नहाऊं ? मैंने शर्माने का अभिनय करते हुए कहा, हालांकि मेरा स्वयं ही मन कर रहा था कि मैं उनके साथ ही नहा लूँ।
तो क्या हुआ ... ? कम..ऑन... ! मोनिका भाभी नें दोबारा कहा तो मैं उठ कर उनके साथ हो ली, मोनिका भाभी बिना कपड़े लिए ही मेरा हाथ पकड़े मुझे बाथरूम में ले गई।
मोनिका जरा जल्दी आना.... ! डिनर तैयार है ! मार्टिना भाभी का स्वर हमारे पीछे से गूंजा !
हमारे बंगले के हर बैडरूम के साथ बाथरूम अटैच्ड है, हरेक बाथरूम हर सुविधा से संपन्न है, बड़ा सा बाथटब, गीजर, कमोड, शावर या दो तीन प्लास्टिक के स्टूल जो डब्बे की शक्ल के हैं।
बाथरूम में हम दोनों प्रविष्ट हो गए तो मैंने दरवाजे की सिटकनी लगानी चाही तो मोनिका भाभी ने मुझे रोक दिया, बोली- क्या जरुरत है इसकी.... यहाँ कौन आएगा !
मैंने सिटकनी से हाथ खीच लिया।
मोनिका भाभी ने बिना कपड़े उतारे ही गुनगुने पानी वाला शावर खोल दिया और पानी की फुहार के नीचे खड़ी हो गई, पानी उनको भिगोने लगा, मैंने भी कपड़े उतारने में शर्म का अभिनय किया और टब की ओर जाने लगी तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच लिया, मैं उनसे जा टकराई, भाभी ने मेरी पीठ पर हाँथ बाँध लिए और बोली- क्या तुम शरमाई-शरमाई सी रहती हो...! हमसे क्या पर्दा...! तुम्हारे होंठ कितने रसीले हैं ! कब से इन्हें चूमने का मन कर रहा था ! अब मौका मिला है.....
यह कह कर उन्होंने अपने तपते होंठ मेरे होंठों पर ही जो रख दिये, हम दोनों की महकती साँसे नाकों से गुजर कर एक दूसरे से टकराने लगी, मेरी बाँहें भी उनकी पीठ पर जाकर बंध गई थी, वे मेरा नीचे का होंठ चूसने लगी तो मैं ऊपर का, उनकी इस क्रिया में एक लय थी, उनके हाथ भी शरारत करने लगे थे, वे मेरी स्कर्ट को खोल चुकी थी और मेरे चिकने नितंबों को अपनी अँगुलियों के स्पर्श से और अधिक गोल कर रही थी जैसे, वो तो मैंने पेंटी पहनी हुई थी वर्ना अब तक उनकी अंगुलियाँ जाने क्या कर बैठती।
मैं भी पीछे नहीं रही थी, मैंने भी उनकी पेंट खोल कर उसे नीचे खिसका दिया था। मेरे हाथ उनके चिकने और मेरे से ज्यादा सुडौल नितंबों पर पहुंचे तो पाया कि उन्होंने पेंटी नहीं पहनी हुई है, मेरी अंगुलियाँ उनके नितंबों की कसी हुई चिकनी त्वचा पर फिसल रही थीं, जो उनके नितंबों की गहराई में छुपी उनकी गुदा (गांड) और केश विहीन योनि-प्रदेश तक हो आती थी।
हम दोनों की शर्टें और मेरी ब्रा भी उतर गई, मोनिका भाभी के स्तन कितने गोरे थे निप्पल तो बिलकुल गुलाबी रंग के थे, मैं अपने आप को नहीं रोक पाई और उन निप्पलों को चूसने लगी, मोनिका भाभी मेरी पीठ और बालों पर हाथ फिराने लगी, उन्होंने अपना सीना मेरी दिशा में और अधिक तान दिया था, मैं कभी दायें स्तन की गोलाई को हाथ से थाम कर उसके निप्पल से काम-रस का पान करती तो कभी बाएँ स्तन के निप्पल को चूसती। मुझे पहली बार स्तन-पान में इतना मजा आ रहा था, पहले भी मैंने श्वेता के स्तनों को कई बार चूसा था पर ऐसा अनोखा आनन्द कभी नहीं आया।
ओह...रजनी...यू आर ए लवली गर्ल.....! पियो ! खूब काम-रस पियो.... ! आई लाइक इट... ! मोनिका भाभी ने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा।
स्तनों में ही इतना मजा आया कि मैं उनकी योनि की ओर जा ही नहीं पाई।
अब बाहर चलते हैं....पहले डिनर ले लेते हैं.... उसके बाद करना यह सब..... वैसे मार्टिना के स्तन भी लाजवाब हैं....उन्हें चूसने में मुझे बहुत मज़ा आता है....., मोनिका भाभी मेरा मुख अपनें स्तनों से हटा कर प्यार से बोली, मैं आज्ञाकारी बच्चों की तरह मान गई।
हम दोनों तौलिए से बदन पोंछ कर बिना किसी कपड़े के ही डायनिंग रूम में पहुँच गये, वहाँ बड़ी सी डायनिंग टेबल पर मार्टिना भाभी नें खाना सजा दिया था, तीन चांदी के ग्लास और एक शेंपेन की बोतल भी रखी थी। उन्होंने हम दोनों की नग्नता पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, हाँ मेरी बढ़िया फिगर देख कर जरुर टिप्पणी की- ...गुड... ! अच्छी फिगर बना रखी है....!
खाना खाते-खाते ही मेरे पेट में तीन पैग जा चुके थे, मेरे सर पर सुरूर सवार हो गया था, भाभियों को कोई फर्क नहीं पड़ा था, मैं तो झूमने ही लगी थी।
मार्टिना भाभी ने हंसते हुए मुझे सहारा दिया और मुझे कंधों से पकड़ कर बैडरूम में ले जाकर बेड के नर्म गद्दे पर लिटा दिया, मैं पीठ के बल फ़ैल गई, मैंने अपनी टांगें चौड़ा दी और हथेली फैला दी- मोनिका भाभी आइये ना......! मुझे पिलाइये न अपना दूध ! मैं नशे में बोली।
मोनिका भाभी हंसते हुए बेड पर आ गई और मेरे मुख के पास अपना सीना करके लेट गई, मैं उनके स्तन चूसने लगी, उनके हाथ मेरी पीठ और सीनें पर मचलने लगे, मुझे उनके स्तन चूसने के लिए उनकी ओर करवट लेनी पड़ी थी, मैंने आँखें बंद कर ली थी।
तभी मार्टिना भाभी ने मेरी उपरी टांग ऊपर उठाई और अपना मुंह मेरी योनि पर लगा दिया, वो मेरे भंगाकुर को मानो अपने होंठों से नोचने लगी, मेरी जांघें और खुल गई और मैं तड़पने लगी, बैडरूम में तीन सुन्दर युवतियां सामूहिक यौनाचार में लिप्त हो गई थी।
तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरी योनि में कोई लचीली चीज घुसेड़ी जा रही है लेकिन जिसकी गोलाई और चिकनाई लिंग की भाँति है, मैंने नजर डाल कर देखा तो प्रसन्न हुई और चौंक भी पड़ी, मार्टिना भाभी एक फुटे रबड़ के लिंग को मेरी योनि में आगे पीछे कर रही थी, मुझे अब मजा आने लगा और कंठ से कामुक ध्वनियाँ फूटने लगी, मैं मोनिका भाभी के स्तनों को चूसते चूसते ही मचलने लगी।
मार्टिना भाभी एकदम कह उठी .... कमाल है .... मोनिका जरा देखो तो.... एक फुट में से मुश्किल से एक इंच या डेढ़ इंच बाहर रह गया है ये रबड़ का लिंग..... उफ़ कितनी गहरी है रजनी की योनि.....! हमारी योनियों में तो नौ इंच भी नहीं आ सकता, रजनी ये कैसे है इतनी गहरी....उन्होंने मुझसे पूछा।
भाभी इन बातों को उफ़ ... ओह ... इन बातों को बाद में करना, पहले ये काम तो पूरा कर लो .. उफ़... इसे जोर जोर से चलाओ...... मैंने अपने पेट को सहला कर कहा।
मार्टिना भाभी उसे आगे पीछे करने लगी और मैं मोनिका भाभी और मार्टिना भाभी की योनियों का बारी बारी से स्वाद लेने लगी।
हम तीनों तीन विक्षिप्त नदियों की तरह एक दूसरे में तब तक समाती रहीं जब तक थक कर सो नहीं गईं।
और फिर जब तक माता पिता मारिशस से आये तब तक हम तीनों ने खूब अय्याशी की, उसके बाद भी जब तक भाभियाँ हिन्दुस्तान में रही तब तक ज्यों मौका मिला त्यों ही हम तीनों ने मजे लिए।
भाभियाँ जब विदेश वापस गई तो मुझे रबड़ का लिंग दे गई, मैंने उसे छुपा लिया और अपना विवाह होने तक प्रयोग किया।

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