Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--176

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--176

 कम्प्लीट सरेंडर







"क्यों बहनचोद , मजा आ रहा है बहन को चोदने में "
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मैं चोद कहाँ रहा था चुदवा रहा था , लेकिन मजा तो बहुत आ रहा था। अब गुड्डी से झूठ कैसे बोलता।

बोलने की मनाही थी लेकिन मैंने जोर जोर से सर हिला के हामी भरी।


लेकिन रंजी तो सुनना चाहती थी और कौन नहीं चाहती अपनी तारीफ सुनना।

झुक कर के उसने मेरे होंठो को चूमा और मेरे लबों को आजाद कर दिया।
और अगर मैं न समझा होऊं तो खुल के बोल भी दिया ,

" अरे यार बोल न तेरी होने वाली कुछ पूछ रही है बिचारी। "

और गुड्डी ने अपना सवाल और जोर से दुहराया ,

" बोल बहन के भंडुए , बहनचोद , मजा आ रहा है बहन को चोदने में , हचक हचक के। "

और मैंने खुल के हामी भरी” हाँ बहुत मजा आ रहा है। “

" चोद ले कस कस के इस छिनार को , वरना कल से तो बनारस के पण्डे और गुंडे इसकी चूत का हलवा बनाएंगे , और फिर मेरे भाई ,गाँव वाले , अगवाड़ा पिछवाड़ा इस छिनार का एक करेंगे। " गुड्डी कहाँ मौका छोड़ती।

जवाब रंजी ने झुक के अपनी गदराई छातियाँ मेरे सीने से रगड़ के , मुझे चूम के , एक जोर का धक्का मार के दिया।

और फिर जोर जोर से मेरे मोटे तने लंड पे ऊपर नीचे होने लगी, और अबकी उसने पूछा ,

" क्यों जानू ,कैसा लग रहा है। "

मैं झूठ क्यों बोलूं।

" बहुत मस्त , " मैं बोला , और मैंने भी नीचे से चूतर उठा के जोर का धक्का दिया।

गप्प से बचा खुचा लंड , उसकी कच्ची चूत में रगड़ता घुस गया..

गुड्डी का मुंह मेरे कान से लगा था और वो बुदबुदा रही थी ,

' साल्ले , बहनचोद , आ रहा है न मजा इस छिनार को चोदने में , देख मेरी बात मानने का फायदा। "

" हाँ बहुत " मैंने बोला और साथ में रंजी ने भी जैसे हुंकारी भरते जोर का धक्का लगाया।

गुड्डी की जीभ की नोक मेरे कान में गोल गोल घूम रही थी।

वो फिर धीमे से बोली ,

" अब तुम मम्मी की भी बात मान लो और मजा आएगा। "

बिना धक्को की रफ्तार धीमे किये , मैं जोर से बोला ,

" एकदम पक्का ,अरे मेरी हिम्मत जो मम्मी की बात टालूं , " फिर रुक कर पुछा ,

" क्या " ?

" अरे मादरचोद , सिंपल , सोच जो इस नयी नवेली , बिना सीखी बछेड़ी के साथ तुझे इत्ता मजा आ रहा है तो भोसडे में कित्ता मजा आएगा। भूल गए मम्मी की बात , मम्मी की समधन। " वो छेड़ते हलके से बोली।

लेकिन बिना बात पूरी सुने जवाब रंजी ने दिया ,

जोर का धक्का मार के वो मेरे सीने से चिपट गयी और अपने निपल मेरे होंठ पे रगड़ते बोली ,

" अरे यार इस की हिम्मत तेरी बात न माने। पक्का। "

मेरे तो जवाब देने का एक ही तरीका था , हचक चोदना। और वो मैंने शुरू कर दिया। साथ में गपाक से मेरे होंठों ने रंजी की चूंची जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया।

और रंजी भी पोज बदल बदल के ,

वो जोर जोर से धक्के मारती , साथ में उसकी चूत कस कस के मेरा लंड निचोड़ती , उसके नाख़ून मेरे सीने पे कंधे पे खरोंचने का निशान बनाते ,और झुक के कभी वो मेरे होंठ ,कभी निपल काट खाती।


और जब थोड़ा थक जाती तो ,बस मेरे लंड पे बैठे बैठे हलके हलके आगे पीछे , आगे पीछे होती रहती। उसकी उंगलियां , होंठ नशीले सांपो की तरह मेरे देह पे टहलते।

और जब उसकी मसल्स थोड़ी सुस्ता लेतीं। मैं हलके हलके उसकी गोरी गोरी पीठ सहलाता ,और फिर

हलके हलके धक्के वो लगाना शुरू कर देती।

करीब १० मिनट तक हम दोनों ऐसे ही कभी द्रुत तो कभी मध्यम लय में देह राग में लीन थे।

तभी मुझे अचानक कुछ खटका , बहुत देर से गुड्डी की कोई आवाज नहीं सुनाई दी थी।


रंजी मस्त , आँखे बंद कर चुदाई के मजे ले रही थी। ये मैंने नोटिस किया था की रंजी जब फुल मस्ती में होती थी तो उसकी आँखे एकदम बंद होजाती थी और फिर सब कुछ भूल कर बस मस्ती में चूर रहती थी ,बिना आँखे खोले।

चारो और मैंने देखा , गुड्डी कहीं भी नहीं , न कोई आवाज ,न कोई आहट।

पूरा कमरा शांत था , सिर्फ रंजी की मस्ती भरी सिसकियाँ गूँज रही थी।

तभी मैंने एक बहुत हलकी सी आहट सुनी , जो शायद किसी और के सुनना मुश्किल था। मैंने कान पारे , आँखे चौड़ी की , और जो देखा ,



मेरी आँखे फटी की फटी रह गयीं ,दिल एक पल के लिए बैठ गया।


…………………………………।……………………………….

नाइट बल्ब की धुंधली रोशनी में , हल्का हल्का सा दिख रहा था।

खूब बड़ा सा , नौ साढ़े नौ इंच से बड़ा , खूब मोटा , गाढ़ा पर्पल कलर का और उस का हेड भी अच्छा खासा चौड़ा , मेरे से भी मोटा , एकदम रियल लाइफ।


मैंने थोड़ा और जोर लगाकर देखा ,

लेकिन रंजी पर कोई असर नहीं था , न उसे कुछ सुनगुन थी , वो धक्के पे धक्के मारे जा रही थी।


और वो थोड़ी नजदीक भी आ गयी , गुड्डी।

उसने स्ट्रैप आन लगा रखा था , और उसमें था किंग साइज डांग , एक जायंट डिलडो , पर्पल कलर का। खूब मोटा ढाई इंच से ज्यादा ही रहा होगा ,और एकदम रियल ,यहाँ तक की उसके एंड पे बाल्स भी लगे हुए थे।

और गुड्डी ने एकदम खामोशी से जो इशारा किया उससे , उसका इरादा साफ हो गया।

रंजी थक के इस समय मेरी देह पे लेटी थी। उसकी दोनों लम्बी टाँगे मेरी देह के दोनों ओर, जोबन मेरे सीने पे और चूतड़ हवा में उठे हुए थे।


गुड्डी का इशारा था मैं अपने दोनों पैरों से उसकी पीठ बाँध लूँ पूरी ताकत से और रंजी के हाथ अपनी पीठ के नीचे के नीचे दबा लूँ , अपने हाथ से भी रंजी को जकड लूँ और अपनी जीभ उसके मुंह में पूरी तरह ठेल कर रंजी का मुंह सील कर दूँ।


गुड्डी का आर्डर ,हिम्मत थी मेरी।

रंजी , थकी क्लांत , उसने भी कुछ नहीं समझा , और कुछ ही देर में वो बंधी फँसी , बस अपनी प्रेम गली में गड़े मोटे खूंटे को हलके हलके दबा कर मजे ले रही थी।


और उसी समय हमला हुआ , गुड्डी का उसके पिछवाड़े पर।

गुड्डी ने प्यार से पहले रंजी के नितम्ब सहलाये , और जबतक रंजी समझे दोनों हाथों से गुड्डी उसका पिछवाड़ा खोल कर उस विशालकाय डिलडो का सर उसमें सेट कर चुकी थी।


अब रंजी के अचकचाने , कसमसाने का टाइम था , लेकिन मेरे बाँहों और पैरों के बंधन बहुत तगड़े थे। बस हिल कर रह गयी बेचारी।


और उस चौंकती चकित हिरणी के पिछवाड़े अगले पल तीर धंस गया।

जिस ताकत से गुड्डी ने धक्का मारा , क्या कोई लौण्डेबाज किसी लौंडे की गांड में मारेगा।

दोनों हाथ से रंजी के चूतड़ पकडे , पूरी ताकत से कमर का धक्का गुड्डी ने मारा।
उईइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह नहींण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् , रंजी की चीख से पूरा कमरा गूँज गया। उसकी दर्दनाक ह्रदय विदारक , आवाज दिल को दहला रही थी।

लेकिन इन सबसे बेखबर ,गुड्डी ने रंजी की कमर में हाथ डालकर उसके चूतड़ और उठाये। डिल्डोका सुपाड़ा , मुट्ठी के साइज का रहा होगा। वो रंजी की गांड में धंस गया था ,लेकिन गांड का छल्ला अभी नहीं पार हुआ था।

और मेरे हाथ और टाँगे , सँडसी की तरह रंजी को जकड़े हुए थीं। जरा भी हिलना डुलना उसके लिए मुश्किल था।

गुड्डी ने अपने उसे मोटे, चौड़े डिल्डो को पूरी ताकत से पुश करना जारी रखा।  


दर्द के मारे रंजी की आँखे उबली पड़ रहीं थी , आँसुंओं से उसका गाल पूरा भीग गया था। मैंने कोशिश कर के उसके होंठ अपने होंठों से दुबारा भींच दिए थे थे , इसलिए सिर्फ गों गों की आवाजें निकल पा रही थीं।

बहुत कोशिश के बाद भी अब डिल्डो का गांड में घुसाना मुश्किल हो रहा था , गुड्डी कभी उसे जोर से ठेलती , कभी गोल गोल घुमाके आगे धँसाने की कोशिश करती , लेकिन रंजी ने गांड कस के सिकोड़ रखी थी।

दो काम गुड्डी ने एक साथ किये , रंजी की क्लिट और निपल पर जोर की चिकोटी काटी और उस दर्द के अहसास में रंजी की गांड ढीली हो हो गयी और उसी के साथ , थोड़ा सा डिल्डो बाहर खींचा , और कमर की पूरी ताकत लगा के उसे अंदर ठेला। दो चार धक्को के बाद खैबर का दर्रा पार हो गया। लेकिन गुड्डी रुकी नहीं ,रंजी की कसी कसी मस्त गांड में पेलती गयी , ठेलती गयी और कुछ ही देर में ४-५ इंच मोटा डिल्डो अंदर था , लेकिन आधा अभी भी बाहर बचा था।

मैं अगर गुड्डी को जानता था तो ये बिना पूरा डिल्डो अपनी छुटकी ननदिया की गांड को खिलाये मानने वाली नहीं थी , चाहे कोई कितना रोये चिल्लाये। और उससे भी ज्यादा खतरनाक बात ये थी की , अब गांड का छल्ला एक बार फिर से सिकुड़ के उसने डिल्डो को दबोच लिया था , एक ऐसे वाल्व की तरह जो किसी चीज को अंदर तो जाने दो लेकिन बाहर न आने दे।

और इस डिल्डो के सुपाड़े की वही हालत थी , जो कुत्ते की गाँठ बन जाने की होती है। आधे घंटे तक कुतिया छटपटाती रहती है , लेकिन गाँठ अंदर अटकी रहती है . और जब गुड्डी डिल्डो को बाहर निकालेगी , और वह छल्ले से रगड़ते ,दरेरते निकलेगा तो बिचारी रंजी की बस जान नहीं निकलेगी और सब कुछ होगा।

शायद , यही बात गुड्डी भी सोच रही थी और वो ये चाहती भी थी , उसने मुझे देख के जबरदस्त आँख मारी जैसे कह रही हो

" देख तेरी बहन की क्या हालत कर रही हूँ , चल मिल के कूटते हैं इस छिनार को। "
गुड्डी की बात का जवाब मैंने अपने अंदाज में दिया , नीचे से जोर का धक्का लगाया और एक बार फिर से मेरा बित्ते भर का खूंटा , रंजी की कसी कच्ची चूत में जड़ तक धंस गया। और गिन कर मैंने १५ धक्के , एक के बाद एक , पूरी ताकत से मारे , बिना रूके ,हचक हचक के। हर धक्के के बाद मेरा लंड जड़ तक रंजी की चूत में समा जाता था।

और गुड्डी दम साधे ,चुपचाप अपना डिल्डो , रंजी की गांड में धसाये , घुसाये पड़ी थी, जब तक मैं उसकी चूत अपने मोटे बांस से कूट रहा था।

और फिर पूरा लंड रंजी की कोमल चूत में धँसाये , मैं चुपचाप पड़ा था और गुड्डी ने अपनी सेकेण्ड इनिंग शुरू की जो पहली से भी ज्यादा तेज थी।

गुड्डी ने रंजी के दोनों गदराये ,किशोर रसीले उभार दबोच लिए और अब एक बार फिर वो पूरी ताकत से उसकी गांड में आधे से ज्यादा डिल्डो घुसाने लगी। बिना धक्का लगाए ,बिना बाहर निकाले सिर्फ वो पुश कर रही थी और पांच -छः मिनट की मेहनत का नतीजा ये हुआ की , अब वो मोटा डिल्डो करीब ७-८ इंच रंजी की सँकरी , कसी ,पिछवाड़े की गली में पैबस्त था।

बिना कहे मैं समझ गया अब मेरा नंबर आगया , और मैंने फिर मूसल दूने जोश से चलाना शुरू कर दिया।और गुड्डी का बिना कहा इशारा समझ के भरपूर चुदाई के साथ साथ ,मेरे नाख़ून और दाँतो ने भी उस शोख के रसीले जोबन पे , कड़े खड़े निपल पे और क्लिट पे पूरा हमला बोल दिया।

कभी नोचता , खसोटता तो कभी कचकचा के काट लेता। उसके निपल कभी मेरे दांतों के बीच होते तो कभी नाखूनों के बीच। और बीच बीच में मेरी उँगलियाँ नाख़ून उसकी क्लिट पे भी हमला बोल देते।

रंजी सिसकियों के साथ चीखें भी तेजी से निकाल रही थी , और गांड में धंसे लंड को कब का वो भूल चुकी , उसकी आहें चीखे बस मुझसे कह रही थीं , बस अब बस।

मेरी टाँगे अभी भी उसको जकड़े हुए थीं और गुड्डी के हाथ भी सँडसी की तरह उसको पकड़े थे और उसी पकड़ के साथ , जब रंजी गुड्डी को बिलकुल भूल चुकी थी , गुड्डी ने मोटे डिल्डो को बाहर खींचना शुरू किया और जब मोटा सुपाड़ा गांड के छल्ले के बस पास था , पूरी ताकत से उसे बाहर खींच लिया। एकझटके में।

और दरेरते ,रगड़ते मोटा सुपाड़ा , उस संकरे खैबर के दर्रे के बाहर हो गया।

लेकिन गुड्डी इत्ते आसानी से थोड़ी ही छोड़ने वाली थी , बिना रुके उसने फिर डिल्डो अंदर ठेला और एक बार गांड का छल्ला , उसके धक्के को बर्दाश्त न कर पाया डिल्डो अंदर था। पांच छ बार डिल्डो का सुपाड़ा गांड के दर्रे से अंदर बाहर हुआ और साथ साथ मैं भी उसी बेरहमी से उसकी चूत चोद रहा था।
रंजी बिचारी सैंडविच बनी थी। ८-१० मिनट में उसकी गांड डिल्डो के धक्को की आदी हो गयी और फिर हचक कर दोनों ओर से उसकी चुदाई चालू हुयी , चूत में मैं गांड में गुड्डी।


और साथ में गुड्डी की गालियां।
जब गुड्डी पूरी ताकत से वो १० इंच का डिल्डो रंजी की गांड में धकेलती , तो मैं अपना मोटा लंड , उसकी चूत से निकाल लेता।

और जब मैं हचक के रंजी की कसी मखमली चूत में अपना बित्ते भर का लंड ठेलता , तो गुड्डी अपना डिल्डो पीछे खींच लेती।
कुछ देर ये चलता रहा और उस के बाद तो फिर , लंड गचक्का , गांड में धक्का , चूत फचक्का चालू हो गया।

हम दोनों एक साथ पूरी ताकत से उसकी चूत और गांड में ठेल रहे थे , न उसकी चीखों का असर था न सिसकियों का। लेकिन रंजी भी रंजी थी , कुछ ही देर में उसकी चीखें , मजे की सिसकियों में बदल गयीं।

बस गुड्डी की गालियां और रंजी की सिसकियाँ सुनाई दे रही थीं।

" साल्ली , बचपन की छिनार ,भाईचोदी ,पैदाइशी हरामन , तेरी गांड में मेरे सारे गाँव के लौंड़े घुसेंगे। कल से बनारस में रोज दोनों ओर कुटाई होगी जबरदस्त ,ये तो सिर्फ ट्रेलर है गदहाचोदी। इत्ती लम्बी बुकिंग है तेरी कहाँ से बारी बारी से निपटायेगी , एक को गांड , एक को बुर में। बार बार लगातार। बोल आ रहा है न मजा गांड मरवाने का , तेरी इस कसी गांड में इत्ते लंड घुसेंगे की तू गिनना भूल जायेगी , छिनार। "

और गालियों की इस सरिता में जब तक वो मुझको न दो चार डुबकी दिलवाए , तबतक कहाँ , आखिर थी तो मेरी ससुराल वाली ही। "

" साल्ला , क्या मस्त चोद रहा है मेरी छुटकी ननदिया को। चोद और जोर से चोद इस छिनार को हलकी चुदाई में मजा नहीं आता। हाँ ऐसे ही मार जम के धक्के , चल इनाम में तुझे अपनी सारी ननदें दिलवाऊँगी ,छोटी बड़ी सब , चुदी अनचुदी सारी। और साथ में अपनी सास भी , एक पल भी ना नुकुर किया न तो तेरी सास तेरी ये अबतक बचा के रखी , कसी कुँवारी गांड मार लेंगी। "

साथ में हम दोनों , मैं और गुड्डी मिल के रंजी का जोबन मर्दन भी पूरी तेजी से कर रहे थे।

और तभी गुड्डी ने वो किया , जो मेरी भी सोच के बाहर था ,


पास में ही सेक्स ट्वॉयज का जखीरा रखा था।

उसने दो निपल सकर उठाये , प्लास्टिक के दो छोटे छोटे कप की तरह और उसे , रंजी के कड़े कड़े मटर के दानों की तरह खड़े निपल्स पर चिपका दिए। वैकयूम से वो चिपक गए और साथ ही कोई डिवाइस थी जिससे वो जोर जोर से सक भी करने लगे।

और उसका असर रंजी पे देखने लायक था।

बस वो पागल नहीं हुयी ,उसकी मस्त गदराई किशोर चूंचियां एकदम पत्थर सी कड़ी हो गयीं। उसकी साँसे लम्बी हो गयीं , जोर जोर से वो सिसक रही थी और अब मेरे और गुड्डी के हर धक्के का जवाब , चाहे उसकी कसी गांड में लग रहे हों या कच्ची चूत में लग रहे हों , दूने जोश से दे रही थी।

निपल दबाते , रोल करते ,चूसते कोई थक भी सकता है या होंठ वहां से सरक के गाल या होंठ पे भी आ सकता है लेकिन ये नदीदे निपल सकर दूने जोश से लगातार , न सिर्फ उसके निपल चूस रहे थे , दबा रहे थे बल्कि उसमें लगा वाइब्रेटर उसके मटर जैसे निपल्स को वाइब्रेट भी कर रहा था।

वो तो मंतर का असर था शायद की रंजी झड़ने के कगार पर पहुँच के रुक जा रही थी , लेकिन गुड्डी से ज्यादा मंतर का मतलब और कौन जानता था , उसी ने तो मुझे सिखाया था और सही घडी में रंजी के ऊपर जगाया था और जिसका असर जितना मुझपर हुआ शायद उससे भी ज्यादा रंजी पे।

कित्ते भी लम्बे और मोटे , उसके अगवाड़े , पिछवाड़े घुसेंगे , उसे दर्द भी होगा , चिल्लाएगी भी लेकिन रोते गाते ,वो घोंट लेगी। और सबसे बड़ी बात ये की न तो उसकी योनि पे कोई क्षति होगी और न गुदा द्वार पे , कुछ ही देर बाद वो सिकुड़ कर उसी तरह टाइट , कसी हो जायेगी जैसे वो जब कुँवारी , अनचुदी थी तब थी।

और गुड्डी जानती थी अल्टीमेटली ,वो मोटा डिल्डो न सिर्फ घोंट लेगी , बल्कि मजे से मरवायेगी।


दूसरी बात शुरू में चाहे जीतनी वो चीखे चिल्लाये , लेकिन कितना भी तगड़ा चुदक्कड़ क्यों न हो ,कुछ ही देर में उसकी चूत में ऐसी आग उठेगी की हर धक्के का जवाब वो धक्के से देगी और चोदने वाले से ज्यादा मजे से वो चुदवायेगी।


बस इस समय यही हो रहा था।


मैं और गुड्डी जम कर हचक हचक कर रंजी की सैंडविच बना के , चोद रहे थे , और वो हम दोनों से भी ज्यादा इस डी पी ( डबल पेन्ट्रेशन ) का मजा ले रही थी। सिर्फ तन मन ही नहीं ,जुबान से भी।

गुड्डी की गालियों का वो दुहरे जोश से जवाब दे रही थी।

लेकिन निपल सकर की वजह से अब वो निढाल हो रही थी।

और उसके बाद गुड्डी ने जो किया उसका कोई जवाब नहीं था।

पास में पड़े एक क्लिटोरल स्टिम्युलेटर , बटरफ्लाई उसके क्लिट पे लगा दी।

और इस का कोई जवाब नहीं था , रंजी के पास भी नहीं।

तितली के शेप का ये छोटा सा वाइब्रेटर क्लिट को दबोच लेता है। और क्लिट के ऊपर वाइव्रेशन से जादुई तरंगे ऐसी चालूं हो जाती है की , बस पागल कर दें। साथ हो उसके ऊपर के स्पंज की तरह का भाग क्लिट को जोर जोर से बार बार दबाता छोड़ता है। ये करीब ३ इंच लम्बा था और क्लिट के साथ भगोष्ठों असर होता था।

लेकिन सबसे खतरनाक था , इसका रिमोट कन्ट्रोल जिससे १५ फीट दूर से भी इसकी स्पीड बढ़ाई घटाई जा सकती थी। गुड्डी ने मीडियम स्पीड पे इसे सेट किया था इशारा किया।


बस , मैंने नीचे से अपना मोटा बित्ते भर का खूंटा ,आलमोस्ट बाहर निकाल लिया ,सुपाड़ा भी बस रंजी की चूत में फंसा फंसा था।

गुड्डी का १० इंच का डिल्डो भी आलमोस्ट बाहर आ गया।

और बस हम दोनों ने एक साथ पूरी ताकत से अंदर पेल दिया।

एक धक्के में मेरा पूरा लंड अंदर पैबस्त था , और मोटा सुपाड़ा रंजी की बच्चेदानी पे ठोकर मार रहा था।

गुड्डी का डिल्डो भी कसी गांड को छीलते , फाड़ते, दरेरते पूरा अंदर घुसा और दस इंच गांड में था।


इसके बाद एक के बाद एक धक्के , फुल स्पीड के

साथ ही गुड्डी ने बटन दबा के बटरफ्लाई की स्पीड मैक्सिमम कर दी।

कुछ देर तक तो रंजी साथ देती रही , फिर उसकी देह ढीली पड़ने लगी , और एक जोरदार कम्पन के साथ वो झड़ने लगी।

अगले पांच मिनट में वो चार बार झड़ी , और अब उसकी चूत और गांड दोनों थेथर हो गयी थी।

मुश्किल से उसके मुंह से आवाज निकल रही थी , बस उसकी आँखे कह रही थीं , बस निकाल लो , निकाल लो प्लीज और नहीं। लगता है।

लेकिन गुड्डी भी , हाँ पल भर के लिए वो रुक गयी और उसके साथ मैं भी।

उसका डिल्डो पूरी तरह रंजी की गांड में धंसा था और मेरा मोटा लंड रंजी की चूत में।

गुड्डी ने , बटरफ्लाई ऑफ कर दी। और निपल सकर भी बंद कर दिए।


लेकिन बस २-४ मिनट , रंजी फिर सांस लेने लगी। उस सारंग नयनी ने अपनी थकी थकी बड़ी बड़ी आँखे खोल दी और हलके से देख रही थी कि,



गुड्डी ने डिल्डो निकाल कर अबतक का सबसे जोरदार धक्का मारा और साथ में मैंने भी , पूरी ताकत से लंड उसकी चूत फाड़ता अंदर घुसा और सुपाड़े का धक्का जोर बच्चेदानी पे पड़ा।

साथ ही गुड्डी ने बटरफ्लाई को सीधे फुल स्पीड पे चालू कर दिया। साथ ही झटके से खींचकर निपल सकर निकाल दिया। जिसका असर बहुत जबरदस्त हुआ। अबतक सारा ब्लड निपल में आ गया था और फिर अचानक वो रिलीज हुआ जिससे जबरदस्त सेंसेशन पैदा हुआ।

रंजी एक बार फिर झड़ने लगी , वो रुकती और फिर झड़ने लगती। लेकिन साथ साथ उसकी कसी बुर बार बार मेरे लंड को जोर जोर से दबोच रही थी , निचोड़ रही थी ,जैसे अब मैं चाहूँ तो भी वो बाहर नहीं निकलने देगी।

उसकी चूत की पकड़ किसी कसी मुट्ठी से भी तगड़ी थी , जो बार बार दबाये और छोड़े ,साथ साथ वो अपनी रसीली चूंचियां मेरे सीने पे मसल रही थी।

और अब मैंने भी झड़ना शुरू कर दिया। मेरी देह , मेरा लिंग कुछ भी नहीं था मेरा। रंजी के साथ साथ मैं झड़ रहा था और जैसे रुक के वो दुबारा शुरू होती ,मेरा लंड भी , फिर से।

पता नहीं कहाँ से इतनी गाढ़ी मलाई मेरी देह में आ गयी थी।
हम दोनों ने अपनी देह को काम के हवाले कर दिया था।

और उसका असर गुड्डी पर भी हुआ , और वो भी झड़ने लगी।

बहुत देर तक लथपथ , एक दूसरे की देह में गुथे हम पड़े रहे। न उठने की ताकत थी न इच्छा।

फिर कुछ देर बाद किसी तरह गुड्डी उठी और , रंजी की गांड फैला कर डिल्डो बाहर निकाला। मैंने भी दोनों हाथों से गांड फैलाकर उसकी मदद की।

मैं और रंजी लेकिन अभी भी उसी तरह गुथे पड़े रहे , अलसाये ,थके ,अगल बगल।
 
 







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