Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--181

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--181


 भूख वाली बात गुड्डी की एकदम सही थी। शाम का खाया पिज्जा कहाँ गायब हो गया पता नहीं चला।


पूरा घर अँधेरे में डूबा था। सिर्फ एक कमरे में हलकी सी रोशनी जल रही थी जहाँ जी टाक पर रंजी अपनी डायटसियन से बातें कर रही थी।

मुझे देखते ही मेरी बेबसी , मेरी बेताबी का अहसास उसे तुरंत हो गया और मुस्करा के , हलके से हंस के दोनों हाथों की उँगलियों से उसने इशारा किया ,

' बस दस मिनट ' और साथ में उसने हलके से झटक के चेहरे पे आई लट को हटाया।

कुछ लड़कियों के खिलखिलाने पे गालों पे गड्ढे पड़ते हैं लेकिन रंजी तो बस जरा सा फूलझड़ी की तरह हंस दे तो बस उसके गुलाबी गालों में गहरे गड्ढे पड़ जाते थे।

तभी तो जिल्ला टॉप माल थी वो और अब जग जीतने जा रही थी।



पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,
जुल्फों को रूख पै डालके झटका दिया कि यूँ।





स्टार्च ,कार्बोहाइड्रेट , डाइट , वाटर इनटेक और न जाने क्या क्या खाने पीने की बातें हो रही थीं।

बल्कि न खाने की बातें हो रही थीं।


और ये बातें सुन के मेरी भूख और बढ़ गयी।

किचेन में कुछ भी नहीं मिला।

मिलता कैसे , रंजी और गुड्डी दोनों मुझे खाने के फिराक में थी तो उन्होंने खाना कुछ बनाया नहीं।

फ्रिज भी खंगाला , लेकिन सब बेकार।

अंत में मिली जुली सरकार टाइप अपनी झटपट सैंडविच ही बनानी पड़ी।

गुड्डी को पसंद भी थी और जल्दी से बन भी जाती थी।

५-६ मिनट में एक प्लेट सैंडविच बना के मैं दबा पाँव ऊपर बढ़ा।

रंजी की खाने के बारे में चर्चा खत्म होने के कगार पे थी , वो कुछ सीरियसली नोट कर रही थी।

मैंने दबे पाँव दरवाजा खोला , और वहीँ दरवाजे पे खड़ा हो गया।

गुड्डी स्टांस लेकर खड़ी थी।

परफेक्ट स्टांस ,

दोनों पैर फैले हुए थे , उसके कंधे की लम्बाई के बराबर , घुटना बहुत हल्का सा मुड़ा ,

और हाथ की पोजीशन भी ,उसका दायाँ हाथ ( गन हैण्ड ) परफेक्ट ग्रिप की पोजीशन में और अंगूठा, हथेली बैक ग्रिप को पकड़े। दूसरा हाथ ( सपोर्ट हैण्ड ) भी उसी तरह ग्लॉक के दूसरी साइड को पकड़े , अंगूठा आगे की ओर जिधर स्लाइड फ्रेम से मिलती है , बाकी चार उँगलियाँ ट्रिगर गार्ड के नीचे जोर से दायें हाथ को दबाये।

लेकिन सबसे जबरदस्त था जिस तरह उसने अपनी आँख को ट्रेन किया था , फ्रंट साइट , रियर साइट उसकी आँख के अलाइनमेंट पे और जो तीन टारगेट उसे मैंने दिखाए थे उस पे बारी बारी से निशाना लगा के वो ट्रिगर पुल कर रही थी , पूरे कांफिडेंस के साथ।

मैं हाथ में सैंडविच की ट्रे लिए दरवाजे पर खड़ा बस गुड्डी को देखता रहा।

गुड्डी का ध्यान सिर्फ पिस्टल पर था और टारगेट पर ,

मेरा सिर्फ गुड्डी पर।


ये बनारस वालियां कुछ भी सीखने में कितनी तेज होती हैं।

अभी थोड़ी देर पहले ही इसने पहली बार स्ट्रैप आन डिल्डो अपनी कमर में बाँधा था और कैसे जबरदस्त , रंजी की कसी टाइट गांड का हलवा बना दिया था।

रंजी मुझसे कभी न पटती , लेकिन इतनी जल्दी न उसने , रंजी को शीशे में उतार दिया , बल्कि उसके सहारे मैंने कितना जबरदस्त मंतर जगा दिया जो मेरे और रंजी दोनों के जिंदगी भर काम आएगा।

रंजी को मॉडल बनाने में भी वही पीछे पड़ी थी।

और अब ये नया शौक ,


धीमे धीमे मैं अंदर घुसा और टेबल पर सैंडविच की ट्रे रख कर अन्नाउंस किया ,

"टन टना टन सैंडविच रेड़ी , मेरी स्पेशल सैंडविच "
……….
बिना निगाह हटाये वो बोली ,

" जानू साथ में कुछ पीने का है क्या , अभी तेरी कोई मायकेवाली न गाभिन हैं न दुधारू , हाँ २५ मई को जब लेके आओगे न तो पक्की गारंटी आधी से ज्यादा गाभिन होके लौंटेंगी। "



आ गयी रंजी




बिना निगाह हटाये वो बोली ,

" जानू साथ में कुछ पीने का है क्या , अभी तेरी कोई मायकेवाली न गाभिन हैं न दुधारू , हाँ २५ मई को जब लेके आओगे न तो पक्की गारंटी आधी से ज्यादा गाभिन होके लौंटेंगी। "

मैंने एक बार फिर उस आलमारी को खोला जिसमें भाभी ने चिट लगा रखी थी और जिन की एक बॉटल ( ब्लैकवुड १२० प्रूफ ) निकाल के टेबल पे रख ली। ग्लास और आइस भी।

"रेड़ी ,सैंडविच भी और जिन भी " मैंने फिर अनाउंस किया।

" और जिसकी सैंडविच बनेगी वो किधर है जानू तेरी और तेरे पूरे शहर की फेवरिट छिनार " गुड्डी ने फिर सवाल दागा।

" घबड़ा मत बस आ रही हूँ " जवाब रंजी का मिला , दरवाजे के बाहर से।

और गुड्डी ने बिना घबड़ाये , पलक झपकते पिस्टल बेड के बगल की साइड टेबल पे रख दी और उसके ऊपर एक मैगजीन।


जब रंजी आई तो हम दोनों उस टेबल के सामने थे , जिसपर मैंने सैंडविच और जिन रख रखी थी।


" वाउ ,मस्त सैंडविच , मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं , किसने बनायी है। " रंजी ने भूखी ,नदीदी की तरह जोर से बोला।

" मैंने, .... " सीना फुला के मैं बोला।


" बधाई , " जोर से रंजी बोली और जैसा मेरे साथ अक्सर होता है , मुझे इग्नोर मार के सीधे वो गुड्डी की ओर बढ़ी और उसे बाँहों में भींच कर बोली ,

" बधाई हो , तुझे इतनी सुघड़ गृहणी मिली है , घरेलू कामों में दक्ष , किचन में एक्सपर्ट , .... "

गुड्डी कौन कम थी उसने और जोर से दबोचा और अपने रैप में मुश्किल से ढके उभारों को , उसके ब्रा मुक्त ,लेकिन मेरी लांग शर्ट में छुपे उरोजों पे जोर से रगड़ती , रंजी के होंठों को दबोच के चूम लिया और बोली ,

" अरे यार बधायी तुझे भी हो , आखिर ये गृहिणी हम दोनों की साझे की है। जितनी मेरी उत्ती तेरी। तभी तो हम दोनों मिल के इसकी नथ साथ साथ उतार रहे हैं। "
रंजी खिलखिलाने लगी , अगर गुड्डी और रंजी एक साथ मिल जायँ न तो उस डबल पेस अटैक का मुकाबला कोई नहीं।
,
गुड्डी ने टोका ,

" अरे यार बोल तो ,क्या सोच रही है। "

" जब ये सज धज के ट्रे में चाय ले के गए होंगे , और तुम लोग इनको देखने गए होगे , तो कितना मजेदार सीन रहा होगा। "

और अब गुड्डी भी उस खिलखिलाने में शामिल हो गयी और बोली ,

" सही कह रही हो , इतनी तेज ट्रे खड़खड़ा रही थी की मैं तो समझी कहीं भूकम्प तो नहीं आया , वो तो मम्मी मेरी , उन्होंने उठ के ट्रे इनके हाथ से थाम ली और समझा के बोलीं , ' घबड़ा मत बेटी , इसमें डरने की क्या बात है , ये दिन तो हर लड़की की जिंदगी में एक दिन आता है। धीरे धीरे प्रैक्टिस हो जायेगी। "

झुंझला के मैं बोला , गुड्डी तू भी।

" अरे इससे क्या छुपाना , जैसे मैं वैसे ये , " गुड्डी बोली और फिर आगे टुकडा जोड़ा ," तभी से ये मम्मी की हर बात मानते हैं और मम्मी भी इनके फायदे का पूरा ख्याल रखती हैं। "

" यार लड़की बनने में शरमाते क्यों हो ,इसके सामने , तुझे लौंडियों की हर चीज पसंद हैं , पिछले हफ्ते में दो बार साडी साया ब्लाउज पहन के सब के सामने मटकते चले पूरी कालोनी वालियों के , इतनी फोटुएं हैं मेरे पास , तेरे फेस बुक पे पोस्ट नहीं किया इस लिए , चिड़िया चहक रही है। "


गुड्डी ने तोप का मुंह अब मेरी ओर मोड़ दिया।

और गलती मेरी जो मैंने जवाब दे दिया।

गुड्डी या रंजी अकेले काफी थीं और यहाँ तो दोनों का डबल पेस अटैक था।

" ड्रेस से क्या होता है ,आखिर एक फरक तो है , "

बस दोनों एक साथ चालू हो गयीं ,न सिर्फ जबान से बल्कि हाथ से भी।

" कोई फरक नहीं है , सिर्फ आगे की जगह पीछे , " दोनों एक साथ बोली और दोनों का हाथ एक साथ मेरे पिछवाड़े की दरार पे पहुँच गया। रंजी की ऊँगली सहला रही थी और और गुड्डी उसे चियार रही थी।

मेरी मति मारी गयी थी।

गीदड़ पे मुसीबत आती है तो वो शहर की ओर भागता है ,

और किसी को मुसीबत अपने ऊपर लानी होती है तो वो रंजी से उलझता है ,

और मेरे साथ यही हुआ ,

मैंने चैलेन्ज दे दिया , और वो भी रंजी को ,


" डालोगी क्या , और कैसे "

रंजी ने गुड्डी को देखा , एक कातिल मुस्कान एक्सचेंज की , और फिर पलंग की ओर देखा ,

मैंने भी उन्हें देखते हुए देखा और ,....



मेरी जान सूख गयी।

वहां एक से एक डिल्डो रखे थे ,
 
ऐनल डिल्डो , किंग साइज़ डिल्डो ,वाइब्रेटर और वो पर्पल डिल्डो भी जो मेरे हथियार से भी २० था और कुछ देर पहले जिससे , गुड्डी ने रंजी की गांड का कचूमर बनाया था।

किसी बी ग्रेड के फ़िल्म के चवन्नी छाप विेलन की तरह मुझे देख के मुस्कराई ,

बस उसी अदा से जिस अदा से कभी लक्ष्मी छाया ने ये सवाल उठाया था ,

' मार दिया जाय की छोड़ दिया जाय"


"पहले उतार पैंटी इस छिनार मादर… की ,निहुरा उसको फिर पता चलेगा , क्या जाएगा इसके पिछवाड़े। " रंजी ने ललकारा।


सावन से भादों दुबर

रंजी इस समय गुड्डी से भी २० हो गयी थी।

सरर सरर पल भर में उन दोनों कन्याओं ने मेरा शार्ट खीच कर जमीन पर कर दिया।


निहुराने के लिए गुड्डी काफी थी।

और रंजी ने स्ट्रैप आन के साथ डिल्डो बाँध लिया था।

और जब कनखियों से मैंने उस डिल्डो की ओर देखा तो मेरी जान सूख गयी। मैं तो यही सोच कर काँप रहा था की कहीं रंजी ने वो डिल्डो उठा लिया जो रंजी के ऊपर इस्तेमाल हुआ था तो मेरी बज जायेगी लेकिन ,


काला भुजंग , पूरा एक फुटा , और मोटा भी ढाई तीन इंच से कम नहीं होगा।

मेरे पिछवाड़े के लिए साक्षात काल लग रहा था।

लेकिन अब गलती किया तो भुगतना पड़ेगा ही।

थोड़ी देर पहले मैं और गुड्डी मिल कर रंजी की जबरदस्त रगड़ाई कर रहे थे , मेरे बित्ते भर के टनटनांए जंगबहादुर , रंजी की ललमुनिया के परखच्चे उड़ा रहे थे और गुड्डी का पर्पल मोटा लम्बा काम दंड रंजी के पिछवाड़े को मथ रहा था , लेकिन अब मुसीबत मेरे गले पड रही थी।

जब कुछ नहीं सूझता तो गुड्डी शरण गच्छामि , और बिना बोले मेरे नेत्र गुड्डी के चरणो की शरण में चले गए।

मेरे इस सहसा बदले भाव को देख कर गुड्डी पहले तो मजा ले रही थी ,

रंजी से बोली ,

" अरे यार फट जाएगी , इस बिचारी की "

" फटेगी नहीं , फट के भोंसड़ा हो जायेगी , और हम दोनों की फटी तो इसकी क्यों बचे। " मेरे गुदा के छिद्र पे डिल्डो रगड़ते रंजी बोली , फिर उसने एक हल भी सुझाया। मेरे गाल को सहलाती , फिर जोर से पिंच करके , चूतड़ पे पूरी ताकत से एक हाथ मार के प्यार बोली ,

" फट जाने दे यार सिलवा दूंगी उस मोची से जो जो मेरी जूतियां सिलता है , पक्का लौण्डेबाज है बहुत हुआ दो चार बार वो भी मार लेगा तेरी। "

मेरी जान सूख गयी और मेरी आँखे गुड्डी के चेहरे की ओर कभी उसके पैरों की ओर , लेकिन गुड्डी भी , जैसे बिल्ली चूहे को हाथ में पकड़ के खेलती है , उस तरह से खेल रही थी।

गुड्डी ने आग में शुद्ध घी डाला , बोली ,

"यार एक दम कोरी है इसकी ,बहुत दरेरता रगड़ता जाएगा , छरछरायेगा , खूब परपायेगा , गौने की दुलहन की तरह चार दिन टांग फैला के चलेगा "

रंजी मुस्कराई , पूरी ताकत से पिछवाड़े का छेद चियार करके डिल्डो का हेड सेट किया और बोली ,

" गलती इसकी है सेंट परसेंट , कितने तो इसके पीछे पड़े थे दरजा ९-१० से , दे देता तो आज ये मुसीबत तो नहीं होती , थोड़ा रो गा के घोंट लेता। लेकिन अब चाहे जो हो मैं तो फाड़ के रहूंगी। "

मेरी हालत बहुत खराब थी। कुछ बोल भी नहीं सकता था , फिर कातर भाव से गुड्डी की ओर देखा ,


गुड्डी ने आँखों ही आँखों में पुछा ,मेरी सब बात मानेगा न।  
 
और मैंने सर हिलाके हामी भर दी।

गांड बचे तो लाखों पाये ,

और गुड्डी ने पिछवाड़ा बचा लिया , बोली
“" सारी बास्स , ये छेद बुक हो चूका है पहले ही। २५ मई को सील खुलेगी और वो भी खूब धूम धड़ाके से , बिना तेल , बिना थूक लगाए , सादे समारोह में , वो भी इनकी सास के हाथ "

रंजी ने न तो मेरे पिछवाड़े छेद सटा से डिल्डो हटाया , न ही उसका दबाव कम किया लेकिन जिस तरह की उसने आवाज निकाली उससे साफ था की वो हाल खुलासा सुनना चाहती थी।


और गुड्डी कौन पीछे रहने वाली थी , उसने सुनाया और साथ में नमक मिर्च भी स्वादानुसार ,

होली का किस्सा ,किस तरह मेरे ही आँगन में मेरी भौजाइयों और मोहल्ले की बहनों के सामने मेरा चीर हरण हुआ और मुझे निहुरा के मेरे पिछवाड़े की जब बोली लगायी गयी और एडिक्वेट रिस्पांस न मिलने पर टेलीफोन पर ग्लोबल बिड ली गयीं तो बस , गुड्डी की मम्मी , मेरा मतलब मम्मी ने मैदान मार लिया। और बस तभी उन्होंने दिन घडी भी मुक़र्रर कर दी की बस कोहबर में अब तक सम्हाल कर रखी गयी , अमानत , लूट ली जाएगी।


लेकिन रंजी के चकित होने का क्रम जारी था , और साथ में छेद पर वो डिल्डो भी रगड़ रही थी , कमर का स्ट्रैप आन पे दबाव भी बना था और मेरी अभी भी फट रही थी।

" लेकिन , लेकिन यार कोहबर में तो इनकी सालियाँ , सहलज , मौसेरी ,चचेरी , फुफेरी सासें सब रहेगीं , सब के सामने " रंजी चकित हो कर बोली।

" और क्या , तभी तो मजा आएगा ,इत्ते ढेर सारे गवाह रहेंगे , और मेरी एक सहेली तो प्रोफेशनल वीडियो ग्राफर है पूरी फिल्लम बनेगी , नीली पीली। फिर सबके सामने ये थोड़ी बोल पाएंगे की अभी मेरी कोरी है ,बची है। अरे न इनके मायकेवालों की बचेगी न इनकी। " गुड्डी हंस के बोली।

और फिर आगे की कहानी भी सुना दी , कुछ सच्ची कुछ मन गढ़ ,अखबारों वालो की तरह।


"होली की शाम को मम्मी ने इन्हे समझाया भी , की मम्मी इनका दो फायदा कराना चाहती हैं और उन्होंने झट से बिना डिटेल पूछे हाँ भर दी , पहली तो यही थी इनके पिछवाड़े का कल्याण। मम्मी बोलीं ,यार डलवाने का मज्जा ले ले तभी तो समझ में आएगा की जिसकी बिल में डालते हो उसे कैसा मजा आता है , जब दरेरता ,घुसेड़ता , फाड़ता अंदर घुसता है। और उन्होंने ये भी समझाया की ससुराल में कौन शरम , तो बस तेरी नथ मैं कोहबर में उतारूंगी हाँ और उसके पहले अपना कौमार्यत्व बचा के रखना। ये जिम्मेदारी उन्होंने मुझे दी की मैं इनकी सील सुरक्षित रखूं। और ये भी मान गए। "



" यार सास हों तो तेरे जैसी , कित्ता भला सोचती हैं तेरा " ये कह के रंजी ने जोर का हाथ मेरे चूतड़ पे मारा और फिर गुड्डी से पुछा " चल यार ये बात तो समझ में आगयी की बिचारे पिछवाड़े से कुंवारे दमाद का भला कराना चाहती है की आखिर उधर का भी मजा ले ले , बात उनकी सही है , आखिर मेरे तेरे अगवाड़े पिछवाड़े ने मजा ले लिया लेकिन इनकी तो कच्ची कोरी बच जाती अब वो भी हचक हचक के मारी जायेगी , लेकिन वो दूसरा फायदा क्या ?"


गुड्डी ने रस्म अदायगी के तौर पर आँखों ही आँखों में मुझसे पुछा बोल दूँ क्या ?

मेरी हिम्मत जो मैं कुछ बोलता और गुड्डी वैसे भी कौन चुप रहने वाली थी। उसने बोल दिया।
" चल गेस कर , मुझसे भी जुडी , इनसे भी और मम्मी से भी। "
रंजी मुंह ताकती रह गयी ,

" अरे यार मम्मी ने इन्हे साफ समझाया , आगे का पीछे का मजा तो इन्हे मिल ही रहा , कसी कुँवारी कच्ची कलियों का। और इनके पिछवाड़े का भी मजा कर्टसी मम्मी और इनके ससुराल वालियाँ , वो भी मिल जाएगा , एक बस बड़ा खास सुपर स्पेशल मजा है , वो भी दिलवा देंगी। बस ये मान गए। " गुड्डी ने फिर हिंट फेंका।

लेकिन रंजी फिर कुछ नहीं समझी और गुड्डी को हाल खुलासा बयान करना पड़ा , और वो बोली ,

" अरे यार मेरी तेरी तो कसी कसी है , मम्मी का स्पेशल ऑफर है , खेली खिलाई , पेली पिलाई ,चुदी चुदाई ,जब्बर,… "


अब रंजी की बत्ती जली। वो भी जोर से हंसती बोली , "समझी , भोंसड़ी वाली , एकदम सही बात कही मम्मी ने। यार कित्ता फायदा सोचती हैं अपने दामाद का उसका मजा तोअलग ही है और न ही इनकी हिम्मत होती और न ही,… लेकिन है कौन। "

अब हंसने खिलखिलाने की बारी गुड्डी की थी , वो हंसती हुयी बोली ,

" और कौन , मम्मी की समधन , मेरी सास और इनकी , .... "
अब बात काटने की बारी रंजी की थी ,

" मादर ,… जिस बुलंद दरवाजे से निकला वहीँ क़ुतुब मीनार ,… "

लेकिन बजाय रंजी गुड्डी की बात सुनने के , मैंने चैन की साँस लेने में लगा था।

रंजी ने डिल्डो गांड पर से हटा लिया था और स्टैप आन खोलने में लगी थी।

मैं सीधा खड़ा हो गया था।


" चल अपनी सास का शुक्र मना बच गयी तेरी ," रंजी डिल्डो वापस रखते बोली।


शुक्र तो मैं सास का मना रहा था लेकिन इसलिए की उसने गुड्डी जैसी बेटी दी जिसने ऐन मौके पे मेरा सतीत्व बचा लिया।


पर गुड्डी भी, उसने कन्सोलेशन प्राइज रंजी को पकड़ा दी , बोली


" अरे यार अभी तो तय हुआ था ये हम दोनों की गृहिणी है , इस माल का मजा मिल के लेंगे। बस। किस बात की चिंता। अरे २७ को लौटेगी न अपनी सील ससुराल से खुलवा के बस , उसके बाद किसी दिन मिल के धर दबोचेंगी हम दोनों। बस जो डिल्डो आज बच गया है , वो उस दिन जाएगा , न आखिरी इंच तक अंदर। "

रंजी एकदम निहाल , लेकिन साथ में उसने मुझे कुर्सी पे धकेल दिया और बोली ,

चल तू बैठ यहाँ चुपचाप , ४५ मिनट तक और हम दोनों मस्ती करते हैं।

पल भर में गुड्डी ने उसकी शर्ट निकाल फेंकी थी और रंजी ने उसका रैप।

दोनों पलंग पे।

तभी रंजी की निगाह डबल डिल्डो पे पड़ी

" ये क्या है " उसने पूछ लिया।

चल बताती हूँ , गुड्डी बोली और गप्प से उसका एक हिस्सा अपनी रस से गीली चूत में गपक लिया और बोली ,

" चल तू आजा ऊपर "

और कन्या रस का खेल शुरू हो गया।

मैं बस टुकुर टुकुर देख रहा था /
 







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