Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--178

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--178



वापस हजीरा


लेकिन मीनल ने वायदा लिया था , मुम्बई से बनारस जाने के पहले वो लोग उसके पास आएंगे और एक दिन रात उसके साथ।

मीनल को सिक्योरिटी एजेंसीज ने हजीरा में रखा था एक सेफ हाउस था , एक रेस्ट हाउस को कन्वर्ट किया था बस वहीँ।

सारी फैसिलिटिज थी वहां और पूरी प्राइवेसी भी।

सुबह करन रीत नेवी की एक बोट से , बोट क्या छोटी मोटी शिप समझिए, हजीरा पहुंचे उसी सेफ हाउस में।


रीत कभी अपना वायदा नहीं भूलती , और मीनल भी आखिर उसी की छोटी बहन थी वो कैसे ,…


करन ने न सिर्फ मीनल का भरतपुर लूटा बल्कि चित्तौड़ गढ़ पर भी चढ़ाई की।

रीत सिर्फ सहयोगी भूमिका में थी ,

लेकिन अभी खाना वाना जल्दी खत्म करके अगली पारी शुरू हो चुकी थी।

करन बंधा पड़ा था ,मीनल और रीत की ब्रेसियर और पैंटी से , साटन की लेसी ब्रेसियर और थांग पैंटी।

हिल भी नहीं सकता था।

यही फोटो रीत ने गुड्डी को व्हाट्सऐप की थी।

करन , ६ फीट से एकाध इंच लम्बा ही होगा , खूब गोरा चिटठा।

जिम टोन्ड बॉडी , सिक्स पैक्स एकदम साफ साफ दिख रही थीं , वेल बिल्ट।

देह से जीतनी ताकत और पावर छलक रही थी ,आँखे और चेहरा उसके मन की कोमलता की गवाही दे रहा था।

लेकिन आँखे इस समय बंद थीं और चेहरे पे एक उत्तेजना , जोश बेताबी झलक रहा था।

और उसका कारण उसके दायीं और बायीं ओर बैठी दो जवानी से लबरेज , जोबन से भरपूर , किशोरियां। एक रीत और दूसरी मीनल और दोनों बंधे फंसे करन को निहार रही थीं।


करन की देह पर सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी थीं वो भी एक नहीं दो दो।

लेकिन वहां नहीं जहां आप सोच रहे हैं ,

एक चकाचक सफेद , लेसी ३४ सी ब्रा जो दिखाती ज्यादा थी , छुपाती कम थी और कुछ देर पहले रीत के गोरे गोरे कबूतरों को कस के दबोचे थी ,कचकचा कर , वह इस समय करन के हाथ में बंधी थी , बल्कि दोनों दुष्टों,बलाओं ने उसके हाथ को मरोड़ के ,ब्रेजरी से उसे डबल बेड के हेड पोस्ट से बाँध दिया था।

लेकिन साली क्यों पीछे रहती , तो मीनल की फायर ब्रिगेड के रंग की लाल , दो इंच की थांग , जो पिछवाड़े तो एक मोटे धागे की तरह थी बस और उसके नितम्ब की दरार में पहले खतरे में छुप जाती थी , भी हाथों को बाँधने में सहयोगी भूमिका निभा रही थी।

और यही बरताव करन के पैरों के साथ , मीनल की गुलाबी साटन बहुत छोटी सी ब्रा और रीत की सफेद साटन की पैंटी ने कर रखा था।

ये कहने की जरूरत नहीं की बिचारा करन हिल डुल नहीं सकता था , लेकिन बाड़ी का एक पार्ट तो इतना विद्रोही , स्वतंत्रता प्रेमी होता है जितना दबाओ उतना विद्रोक में सर उठाता है , तो बस बित्ते भर का खूंटा पूरे जोश में खड़ा था , और दोनों नदीदियां उसे ललचाई नजर से देख रही थीं। गप्प कर लेने के इरादे से।


और उनकी ब्रा पैंटी तो करन को बाँधने में लग गयी थी , इसलिए रीत मीनल दोनों के पास आवरण के नाम पर मात्र मीठी जान मारू मुस्काने थीं।


और आज के नियम के अनुसार उन मुस्कानों के साथ पहले तो उन्होंने बंधे करन केसाथ सेल्फी खींची , फिर रीत को कुछ याद आया और उसने , छने बंधे करन की एक फोटो खीच कर तुरंत व्हाट्सऐप किया , गुड्डी को।

और चार मिनट के अंदर जवाब भी आ गया , नाना प्रकार की स्माइलीज के साथ लिखा था

लगी रहो लगवाती रही ,

टांग फैला चुदवाती रहो।

" एकदम सही कहा है गुड्डी दी ने , "पीछे से उचक कर मेसेज पढ़ती मीनल बोली।
 
 
रीत की मस्ती






अब तक


करन की देह पर सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी थीं वो भी एक नहीं दो दो।

लेकिन वहां नहीं जहां आप सोच रहे हैं ,

एक चकाचक सफेद , लेसी ३४ सी ब्रा जो दिखाती ज्यादा थी , छुपाती कम थी और कुछ देर पहले रीत के गोरे गोरे कबूतरों को कस के दबोचे थी ,कचकचा कर , वह इस समय करन के हाथ में बंधी थी , बल्कि दोनों दुष्टों,बलाओं ने उसके हाथ को मरोड़ के ,ब्रेजरी से उसे डबल बेड के हेड पोस्ट से बाँध दिया था।

लेकिन साली क्यों पीछे रहती , तो मीनल की फायर ब्रिगेड के रंग की लाल , दो इंच की थांग , जो पिछवाड़े तो एक मोटे धागे की तरह थी बस और उसके नितम्ब की दरार में पहले खतरे में छुप जाती थी , भी हाथों को बाँधने में सहयोगी भूमिका निभा रही थी।

और यही बरताव करन के पैरों के साथ , मीनल की गुलाबी साटन बहुत छोटी सी ब्रा और रीत की सफेद साटन की पैंटी ने कर रखा था।

ये कहने की जरूरत नहीं की बिचारा करन हिल डुल नहीं सकता था , लेकिन बाड़ी का एक पार्ट तो इतना विद्रोही , स्वतंत्रता प्रेमी होता है जितना दबाओ उतना विद्रोक में सर उठाता है , तो बस बित्ते भर का खूंटा पूरे जोश में खड़ा था , और दोनों नदीदियां उसे ललचाई नजर से देख रही थीं। गप्प कर लेने के इरादे से।


और उनकी ब्रा पैंटी तो करन को बाँधने में लग गयी थी , इसलिए रीत मीनल दोनों के पास आवरण के नाम पर मात्र मीठी जान मारू मुस्काने थीं।


और आज के नियम के अनुसार उन मुस्कानों के साथ पहले तो उन्होंने बंधे करन केसाथ सेल्फी खींची , फिर रीत को कुछ याद आया और उसने , छने बंधे करन की एक फोटो खीच कर तुरंत व्हाट्सऐप किया , गुड्डी को।

और चार मिनट के अंदर जवाब भी आ गया , नाना प्रकार की स्माइलीज के साथ लिखा था

लगी रहो लगवाती रही ,

टांग फैला चुदवाती रहो।


" एकदम सही कहा है गुड्डी दी ने , "पीछे से उचक कर मेसेज पढ़ती मीनल बोली। जोर से खिलखिलाते उसने टुकड़ा जोड़ा ,




आगे







" एकदम सही कहा है गुड्डी दी ने , "पीछे से उचक कर मेसेज पढ़ती मीनल बोली। जोर से खिलखिलाते उसने टुकड़ा जोड़ा ,
…..
" रीत दी , चढ़ जाओ न , कित्ता मस्त जीजू ने झंडा खड़ा किया है। "

" तू ही चढ़ जा न मेरी नानी। अब तक तू जीजू जीजू की रट लगा रही थी और ये साली साली की। अब क्यों फट रही है तेरी , चढ़ जा न मीठी शूली पे। "

रीत ने झुंझला के , लेकिन प्यार से उसके गोरे गोरे गाल पे जिस पे जब वो हंसती थी तो गहरे गड्ढे पड़ जाते थे ,जोर से पिंच कर बोला।

फुलझड़ी सी फिर मीनल हंस पड़ी ,बोली ,

" अरे दी फट नहीं रही है फट गयी है और वो भी आप के सहयोग से बुरी तरह ।

आगे की फाड़ के भी इस बहन के यार को संतोष नहीं हुआ , पिछवाड़े भी नंबर लगा दिया और ये गदहा छाप मूसल पूरा घोंट दिया। अब तक खड़ा नहीं हुआ जा रहा है। जोर से अंदर तक परपरा रहा है ,जैसे मिर्ची कूट दिया हो। और यही नहीं अभी शाम को आपने एक बार फिर भरतपुर स्टेशन पे गाडी चलवा दी।

अभी तो मेरे दोनों छेद छरछरा रहे हैं , अब आप ही चढ़िए , अपने इस घोड़े पे। और आप का इत्ते दिनों से उपवास भी हो गया है। "

अब खुल के हंसने की बारी रीत की थी और अबकी मीनल के खड़े कड़े निपल मरोड़े गए ,

" अरे यार मेरी छुटकी , बुर तो बुरी तरह ही फटनी चाहिए न , नहीं तो न तो बुर वाली को मजा आएगा फड़वाने का , और न फाडने वाले को मजा आएगा।

और फिर इत्ते मस्त चूतड़ मटका मटका कर गरबा में लौंडों का लंड खड़ा करती है तो , उसका इलाज तेरे जीजू नहीं करेंगे तो और कौन करेगा। और पहली बार फड़वाने पर तो सबकी फटती है ,चाहे लौंडा हो या लौंडिया।

और ये गदहा छाप सिर्फ मेरा नही है , जितना मेरा उत्ता तेरा। साली का हक़ घरवाली से ज्यादा होता है। "
मीनल की ललचाती निगाहें उस गदहा छाप पे चिपकी थीं।

तभी रीत की चमकी , और उसने जोर से धौल मीनल के पीठ पर मारा , और हंस बोली ,

' छिनार ,नीचे के दोनों मान लो फटे हैं लेकिन ऊपर वाले में क्या हुआ है। बिचारे तेरे जीजू तड़प रहे हैं। इतना मस्त खड़ा किये हैं और ,… अरे चुदवा नहीं सकती तो कम से कम चाट चूस तो सकती है। "

मीनल अपने होंठ जीभ से चाटते बोली , " अरे दी आपका हुकुम कभी टाला मैंने , लेकिन मिल कर , हो जाय। "

' चल अब छोटी बहन की बात तो मैं भी नहीं टाल सकती।चल शुरू कर ' हंस के रीत बोली।

“ना ना दी पहले आप, आप बड़ी हो…”




मीनल ने शोख अदा से अपने जोबन उभार के कहा। मीनल की आँख करन के मोटे लिंग से हट नहीं रही थी। फिर फुसफुसाती हुयी बोली-

“दी, इसे कैसे बांटेंगे, हम दो और ये एक…”


“अरे बांटने की क्या जरूरत है, मिल के लेते हैं न। कभी किसी सहेली के साथ लालीपाप नहीं शेयर किया है क्या…” रीत ने हड़काया और साथ ही अपनी लम्बी जीभ निकाल के एक ओर से करन का लिंग चाटना शुरू किया।

देखा देखी मीनल भी दूसरी तरफ से चालू हो गयी।


चपड़ चपड़, सपड़ सपड़,


दोनों किशोरियां लिंग के बेस से आलमोस्ट सुपाड़े तक नदीदी लड़कियों की तरह चाट रही थी।

लेकिन मीनल अभी भी पूरा सुपाड़ा मुंह में लेने में हिचक रही थी , लीची ऐसा बड़ा सुपाड़ा भी तो था , खूब रसीला।


“ले ले ना, अच्छा चल एक किस्सी ही ले ले…” उसने मीनल को उकसाया।


मीनल थोड़ा सा झिझकी। लेकिन वो पहाड़ी आलू ऐसा, गरम सुपाड़ा, इत्ता मस्त लग रहा था, वो थोड़ा झिझकी फिर एक चुम्मी ले ली, सीधे खुले सुपाड़े के ऊपर। फिर जबी एक बार झिझक खुल गयी तो दो, तीन, चार, किस्सी। और साथ में जीभ से लिक भी,

“हे मुँह में ले न, पूरा ले के चूस, बहुत मजा आएगा…” रीत ने फिर चढ़ाया उसे।

मीनल ने इशारे से कहा बहुत मोटा है और बोली- “नहीं दी… अच्छा एक बार, जस्ट एक बार तुम लो ना, फिर मैं प्रामिस…”


रीत समझ रही थी की अब उसकी झिझक मिटाने का एक ही तरीका है की वो खुद ही पहल करे। फिर मीनल को सिखाते, दिखाते, उसने अपने होंठों से दांत अच्छी तरह कवर किये, अंगूठे और तरजनी से लिंग का बेस पकड़ा और खूब बड़ा सा खुला मुँह सीधे सुपाड़े पे और फिर गड़प, और जोर से चूसना शुरू।

मीनल को उसने इशारे से समझाया की कैसे वो अपने होंठो से लिंग को रगड़ रही है, नीचे से जीभ से चाट रही है और जोर जोर से चूस रही है।


थोड़ी देर चूसने के बाद लिंग उसने मीनल के हवालेकर दिया। अभी भी थोड़ी सी वो शर्मायी, फिर रीत की देखा देखी होंठों से दांतो को ढक के चूसना, शुरू कर दिया। पहले धीरे धीरे फिर जोर से, नौसिखिये होंठो का मजा ही और होता है, मीनल के रसीले होंठ करन के लिंग से रगड़ रगड़ के जा रहे थे, और करन और पागल हो रहा था। थोडी देर चूसने के बाद जब मीनल ने होंठ हटाए।


तो उसके गाल पिंच कर, रीत बोली- “हे काटा तो नहीं, इसने…” करन के तन्नाये लिंग की ओर इशारा करके वो बोली।
“ना…” मुश्कुराती खिलखिलाती मीनल बोली।
 
तो उसके गाल पिंच कर, रीत बोली- “हे काटा तो नहीं, इसने…” करन के तन्नाये लिंग की ओर इशारा करके वो बोली।
“ना…” मुश्कुराती खिलखिलाती मीनल बोली।

“किसने…” रीत चिढ़ाती हुयी बोली। वो आज मीनल की सारी शरम, लाज मिटाने पे बोली।

“धत…” मीनल के गाल बीर बहूटी हो गए। फिर करन के लिंग की ओर इशारा करके बोली- “इसने…”

“पिटेगी तू आज कस के मेरे हाथ से, तूझे अभी समझाया था ना, फिर,… । छूने में शरम नहीं, पकड़ने में शरम नहीं, कस के चूसने में लाज नहीं और नाम लेने में लाज आ रही है सारी…” रीत ने हड़काया।

वो दूबे भाभी और चंदा भाभी से अच्छी तरह सीख चुकी थी की कैसे कुँवारी बछेड़ियोँ की शर्म लाज उतारी जाती है। मीनल फिर भी हिचक रही थी।

करन ने उसे आँख से इशारा किया- “अरे बोल दे यार, क्यों…”

रीत ने फिर छेड़ा- “अरे चूसने में तो काटा नहीं, तो क्या नाम लेने में काट लेगा, जो इत्ता डर रही है…”
मीनल ने हिम्मत की…” ल… लन… लण्ड…”


“झूठी…” रीत ने उसका कान पकड़ के सुपाड़े की ओर झुकाया- “मुश्किल से तो तूने सुपाड़ा मुँह में लिया है, साल्ली लण्ड तो अभी बाकी है चल न…”

और अब मीनल के होंठ एक बार फिर सुपाड़े पे थे। एक बार उसके होंठ कड़े मस्त मोटे सुपाड़े का स्वाद ले चुके थे, इसलिए अब की बिना झिझक, उसने वो मोटा लाल सुपाड़ा मुँह के अंदर भर लिया और लगी चुभलाने। रीत ने करन की ओर देखा और करन ने रीत की ओर।

उन दोनों से ज्यादा, एक दूसरे के नैनों की भाषा कौन समझता।

रीत ने मीनल के सर पे हाथ रखा और जोर जोर से नीचे की ओर दबाने लगी। उधर करन ने भी चूतड़ ऊपर पुश कर अपना मोटा लण्ड, मीनल के कुंवारे मुँह में ठेलना शुरू कर दिया। मीनल गों गों कर रहीथी, सर इधर उधर कर रही थी, छटपटा रही थी।


जवाब में रीत ने सर पे जोर और बढ़ा दिया, और दूसरे हाथ से उसके गाल को कभी उसकी, झुकी हुयी चूंचियों को सहलाने लगी। सूत सूत करके मोटा लण्ड अंदर जा रहा था। और जबी आधे से ज्यादा लण्ड मीनल के रसीले होंठो के बीच घुस गया, तो रीत ने दबाव कम किया।

मीनल भी तो आखिर मुंहबोली बहन थी, रीत की, मुख मैथुन में प्रवीण।


सपड़ सपड़, उसने लण्ड चाटना शुरू कर दिया। जैसे किसी मछली को तैरना नहीं सीखना पड़ता, बस मीनल को उसी तरह लण्ड चुसाई नहीं सिखानी पड़ी, लग रहा था वो कैसी सीखी सिखायी है।

रीत तारीफ की निगाह से अपनी छोटी मुंहबोली बहन को देख रही थी, कैसे वो अपने गुलाबी रसीले किशोर होंठो को लण्ड पे रगड़ रही थी, नीचे से उसकी जीभ लपर लपर चाट रही थी और साथ में उसके गाल चूसने में किसी वैक्योंम क्लीनर को मात कर रहे थे।


साथ में उसके कोमल हाथ लण्ड के बेस पे कस के पकड़े, हलके हलके ऊपर नीचे कर रही और सबसे बड़ी बात थी उसकी बड़ी बड़ी नाचती मचलती आँखों में, जिसमें ख़ुशी छलक रही थी और जब उस मस्ती भरी निगाह से वो अपने जीजू को देखती, तो करन खुद मीनल के सर पकड़ के, अपना लण्ड और उसके मखमली मुँह में ठेल देता।


जवाब में मीनल भी ताल में ताल मिलाती, अपने मुँह को उसके लण्ड पे पुश कर देती। थोड़ी देर तक मीनल, पूरे जोश से लण्ड चूसती रही, करीब दो तिहाई लण्ड उसने घोंट लिया था, बस दो इंच के करीब बाहर था।


रीत ने मोर्चा बदल लिया था।


लंड उसने छोटी बहन के हवाले कर दिया था लेकिन वीर्य बनाने की फैक्ट्री उसके हवाले थी , एक अंडकोष उसके मुंह में था और वो मस्ती से चुभला रही थी। जैसे कोई बड़ा सा रसगुल्ला लेकर चूसे। और साथ में उसकी जादुई उँगलियाँ कभी लंड के बेस पे जोर जोर से दबाती , सहलातीं तो कभी पिछवाडे के छेद तक सैर कर आतीं।

और अगर कभी शरारत से उसने लम्बे नाख़ून , करण के पिछवाड़े के छेद पर चुभा दिया तो बस , करन जोर से चूतड़ उचकाते हुए गनगना जाता।

लेकिन थोड़ी देर तक दोनों मुँहबोली बहनों की इस जुगलबंदी का असर करन पर अब पड़ रहां था। रीत उसे ऑलमोस्ट किनारे तक ले जाती फिर रोक देती। और जब उसे लगा की की कहीं , करन की नैया किनारे न लग जाय , उसने मीनल को इशारा किया और दोनों रुक गयीं।



करन की साँसे लम्बी लम्बी चल रही थीं , उसने आँखे बंद कर रखी थीं और मुट्ठियाँ भीची थीं।
उसके चेहरे से मस्ती ,जोश टपक रहा था।

मोटा बांस हवा में तन्नाया खड़ा था , किसको पाये किसको चोद दे।


लेकिन दोनों शरीर , शोख बिजलियाँ उसके दायें बैठीं , मुस्करा रही थीं और करन की हालत देख रही थीं ,

हाथ पैर बंधे थे उसके वरना अब तक दोनों में से किसी के ऊपर वो चढ़ चूका होता और वो अपनी सात पुश्तों की खैर मना रही होती।

बिचारा , बुदबुदाया।  
 
कुछ करो न , प्लीज। आँखे खोले दो शोख नशे के प्यालो को वो देख रहा था , जवानी से छलकते हुए।

कुछ करों न इस बिचारे के लिए , मीनल ने रीत के दहकते गुलाब से गालों के पास ले जा के अपनी सिफारिश लगायी।


बहुत दया आ रही है कर दे न कुछ अपने इस बिचारे के लिए , रीत ने अपनी बड़ी बड़ी मछली सी आँखों से मीनल को घूरते कहा।

साली कौन रुकने वाली थी ,

और वो बिजली करन के सर के पास पहुँच गयी , चैत मास में सावन के बादल छा गए।

झुक कर , मीनल ने अपने लम्बे खुले उसके बड़े बड़े चूतड़ों के नीचे तक पहुंचने वाले बादल की तरह बाल लहरा दिए , और नागिन सी उसकी लटें कभी करन के चेहरे पे कभी उसकी छाती पे ,…

और उस झुरमुट के पीछे छुपे मीनल के होंठ और बोल्ड हो गए , कभी वो करन के होंठों को दबोच लेते और जब करन के होंठ जवाब देने के लिए ऊपर उठने की कोशिश करते तो वो तितली की तरह फुर्र ,

और उसके सीने पर पहुँच वहां छोटे छोटे चुम्बन लेने लगते तो कभी हलके से करन के निपल पर बाइट कर लेते।

जैसे उसको तड़पाने के लिए यही नहीं काफी था , वो अपने मस्त कड़े कड़े जोबन , अपने जीजू के सीने पर रगड़ देती।

करन तड़प उठता लेकिन जब शोलों से दोस्ती की हो तो जलना किस्मत का हिस्सा हो जाता है।

और यहाँ तो अंगारों की सेज थी , सावन से भादों दूबर वाली बात।

रीत कौन पीछे रहने वाली थी , ऊपर का हिस्सा मीनल ने हथियाया तो निचला रीत के कब्जे में ,


लम्बा परांदा उसके नितम्बो के दरारों के बीच लहरा रहा था , बस उसने करन के खूंटे को अजगर की तरह अपनी चोटी से बाँधा , नीचे से ऊपर तक और बस खुला सुपाड़ा छोड़ दिया जैसे रिबन से गिफ्ट रैप कर रही हो।

और फिर अपने काले नागपाश की पकड़ और गहरी और कसी करने लगी।

करन और तड़प उठा ,लेकिन दोनों बलाओं का बस एक सिंगल प्वाइंट प्लान था , करन को तड़पाने का।

और वो तड़पने के अलावा कर भी क्या सकता था।

दो रस से भरे बड़े बड़े तालाब उसके पास छलक रहे थे लेकिन वो प्यासा था , अंजुरी से भी पानी पीना उसकी किस्मत में नहीं था।

कुछ देर तक रीत अपने केश पास कसती रही फिर झुक कर उसने एक छोटा सा चुम्बन खुले सुपाड़े के पी होल ( पेशाब के छेद )पर ले लिया और जैसे ये काफी नहीं था अपनी जुबान की नोक रीत ने उस छेद में डाल दी और लगी सुरसुराने।

जैसे खूब दहकते , गरम तवे पर कोई पानी के छींटे मार दे और वो छनछना उठे , बस करन की वही हालत हो रही थी।

और अब मीनल भी सरक के रीत के पास आ के बैठ गयी।

नीचे केशपाश का कसाव ,रेशमी बालों की कसर मसर , और ऊपर रीत के मखमली होंठ ,करन के लंड की ऐसी की तैसी हो रही थी।

दी अब मैं , मीनल ने आँखे नचा के रीत से मनुहार की।

ले न ,यार एकलौती साली है , तेरा हक़ पहले।

रीत ने बालों के बंधन में बंधे लिंग को आजाद कर दिया और कुछ दूर हट के बैठ गयी।


वो करन के पैरों के बीच बैठ गयी , तब तक रीत ने ललकार लगायी ,

हाथ से छूना मना है।

आँख नचा के वो शरीर बोली , ' ओ के दीदी। '

और झुक गयी उसके जस्ट आये गदराये जोबन करन के मोटे बित्ते भर के लंड से सूत भर दूर रहे होंगे , और मीनल ने अपने कंचे ऐसे गोल गोल कड़े कड़े निपल उस मोटे खूंटे के बेस से लेकर धीमे धीमे ऊपर तक रगड़ना शुरू किया , और उसके सिर्फ पत्थर से कड़े अंगूर , करन के 'उससे ' रगड़ मगड कर रहे थे।

और करन के लिए ये ४४० वोल्ट का झटका देने वाली बात थी , लेकिन उस बिचारे को क्या मालूम ये तो अभी शुरूआत है।

हाथ पैर बंधे ,वो बिस्तर पर कसमसा रहा था , सिसकी ले रहा था चूतड़ मचका रहा था।

जिन जोबन को देख के चाहे वो गरबा में चोली के पीछे हो या यूनिवरिसिटी में टॉप के लड़कों की नींद उड़ जाती थी , खड़क सिंह खड़कने लगते थे , आज वही खुद ,…

करन की सिसकियों को सुन कर किसी का दिल नहीं पसीजा , बल्कि मीनल रीत की ओर देख के मुस्कराई , आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया और गाडी चौथे गियर में दौड़ा दी।

कंचे ऐसे कड़े कड़े निपल हट गए और उनकी जगह गोरे गोरे भरे भरे कबूतरों के जोड़ों ने ले ली।

पहले तो उन कपोतों ने पंख फड़फड़ाये , उस मस्त मलखम्भ के ऊपर , उन्हें छुआ , सहलाया।

लेकिन कबूतर तो कबूतर ,कहीं उड़ जाएँ तो ,क्या भरोसा ,

इसलिए मीनल ने उन्हें अपने दोनों हाथों से पकड़ा और जोर जोर से पहले उन्हें बालिश्त भर के मोटे गोरे खड़े , भूखे बेताब खूंटे पे रख के दबोचा और हलके लगी।

क्या कोई बैंगकॉक की प्रोफेशनल मसाज वाली हो या स्वीडिश मसाज,मीनल ने सबको मात दे दिया था।

'टिट फक ' सारे मर्दों का वेट ड्रीम होता है। लेकिन अगर' बेस्ट टिट इन टाउन ' वाली खुद टिट मसाज करने लगे ,

एकदम छप्पर फाड़ कर , मिलने वाली बात हुयी।

मीनल के हाथ में उसके दोनों उरोज थे , कड़े ,गद्दर ,गोरे ,खूब मांसल ,

पहले तो वो उसे यूँ ही , अपने जीजू के तने कुतुबमीनार पे कभी छुलाती ,कभी सहलाती तो कभी उन्हें दबा देती।


फिर उसने बहुत सम्हालकर , उन के बीच , उस लंड को पकड़ के दबोच लिया और हलके हलके रगड़ने लगी।

उन रसीले जोबन को छूते , मसलते जब लंड पे रगडन होती तो बस करन की जान नहीं निकलती थी और सब कुछ होजाता।

कोई और समय होता तो वो कुछ ही देर में टिट मसाज करने वाली को पटक कर चढ़ बैठता और अपना ९ इंच का मूसल बच्चेदानी तक पेल देता , एक ही झटके में।


लेकिन बेचारा करन , उसके हाथ पैर तो बंधे हुए थे इन दोनों शरीर किशोरियों की ब्रेजरी और पैंटी से। वो कर भी क्या सकता था , इस सुख को सहने के सिवाय।
 
 
 
 


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