Friday, July 24, 2015

FUN-MAZA-MASTI बहकती बहू--8

FUN-MAZA-MASTI


बहकती बहू--8


दूसरे दिन सुबह मदनलाल और शांति बैठ के चाय पे रहे थे। सुनील ऑफिस के काम से निकल चूका था। चाय पीते -२ मदनलाल की आँखों के सामने मोरनी बनी बहु का बदन घूम रहा था। तभी
मदनलाल ने देखा कि बहु ढेर सारा गेंहू लिए किचन के बाहर आकर बैठ गई और गेंहू बीनने लगी। मदनलाल समझ गया की अब बहु यहाँ कम से कम दो घण्टे तो बैठेगी। उसे लिंग दर्शन समारोह
आयोजित करने के लिए ये शानदार मौका लगा। सुनील जा चूका था और शांति भी पूजा करने जाने ही वाली थी। मदनलाल ने फटाफट चाय पी और अपने रूम में जा पहुंचा। रूम में उसने 100 mg
की मैनफोर्स निगल ली। आधे घण्टे के अंदर गोली को अपना काम कर देना था। कुछ देर बाद शांति भी पूजन कक्ष में चली गई। मदनलाल हॉल से बैठे -२ बहु को देख रहा था। हालांकि काम्या ने कपडे
पहने हुए थे पर मदनलाल की आँखों के सामने बहु का नंगा बदन ही घूम रहा था। मोरनी बनी बहु की गाण्ड उसकी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही थी। पेट में गोली और सामने eye tonic दोनों
का असर इतना तेज़ हुआ कि लुंगी के अंदर कोबरा ने फन फैला दिया और बिना बीन के ही झूमने लगा। मदनलाल उठा टॉवल लिया और बाथरूम में घुस गया। जल्दी -२ नहाके चड्डी उतारी और
बहु को याद कर -२ के मुठ मारने लगा ताकि उसका मूसल अपने विकराल रूप में आ जाये। जब लण्ड महाराज अपने पूर्ण रूप में खिल उठे तो उसने टॉवल इस तरह लपेटा की हल्का सा झटका लगते ही टॉवल गिर जाए। आज न वो बनियान लाया था न दुसरी चड्डी। जैसे ही मदनलाल ने दरवाज़ा खोला आवाज़ सुनकर काम्या ने उस तरफ देखा ,ससुर को केवल टॉवल में अर्ध नग्न देख कर उसने शरम से अपना सिर झुका लिया और गेहूं बीनने लगी। मदनलाल नपे तुले कदमों से उसकी ओर बढ़ने लगा ,बहु क़ा सिर झुका हुआ था इसलिए उसे अपना खेल खेलने का सही मौका मिल रहा था,जैसे ही वो बहु के करीब पहुंचा उसने धीरे से टॉवल की गाँठ को खोल दिया और अगले ही पल टॉवल जमीन पर गिर पड़ा। जमीन पर कुछ गिरता देख बहु ने नजर उठाई और जो देखा तो देखते ही उसे सांप सूंघ गया। उसके चेहरे से मात्र दो फ़ीट दुरी पर मदनलाल नंग धडंग खड़ा था और काम्या की आँख के सामने ससुर का विकराल लण्ड इधर उधर डोल रहा था। लगभग साढ़े सात इंच
लम्बे और काम्या की कलाई के बराबर मोटे मूसल को देख काम्या स्तब्ध रह गई। वो पलकें बंद करना ही भूल गई और एकटक बाबूजी के उस खतरनाक हथियार को देखती रह गई। उसने कल्पना में भी नहीं सोचा था कि मर्द का लण्ड इतना बड़ा हो सकता है। उसकी साँसे थम सी गई थी और शरीर जड़वत हो गया था। मदनलाल ने बहु के मुख को देखा तो उसे उसमे भय और आश्चर्य के मिले
जुले भाव दिखाई दिए। आश्चर्य लण्ड के आकार प्रकार का था तो भय उसके काम का। काम्या देख रही थी सामने बड़ा सा गुलाबी सुपाड़ा ,उसके पीछे लम्बा सा शाफ़्ट जिस के ऊपर नसों का जाल। मदनलाल ने देखा की धीरे -२ बहु के चेहरे से भय का भाव कम होता जा रहा है और भय की जगह उत्सुकता ने ले ली है। वो बड़े गौर से बाबूजी के मर्दाने अंग को देखे जा रही थी उसकी आँखों में
अब गुलाबीपन उतर आया था। फिलहाल वो दीन दुनिया से बेखबर इस नए अजूबे को देख रही थी। इस परिवर्तन से मदनलाल खुश था क्योंकि ये उसके मिशन की कामयाबी के लिए ठीक था वो चुपचाप खड़ा रहा और टॉवल उठाने की कोई कोशिश नहीं कर रहा था। लगभग दो मिनट बीत चुके थे मगर काम्या अभी भी बाबूजी के कोबरा को देखने में मगन थी तभी पूजन कक्ष से घण्टी की आवाज़ आने लगी जिससे काम्या की तन्द्रा टूटी और वो बुरी तरह लज्जित हो गई। उसने हड़बड़ा कर सूपा वहीँ रखा और दौड़ कर अपने कमरे में भाग गई। मदनलाल भागती हुई बहु की गाण्ड की थिरकन को देखते हुए टॉवल लपेटने लगा और मन ही मन बुदबुदाया "" बहु तेरी इस गाण्ड ने ही तो हमें तेरा दीवाना बना दिया है ,इसकी सील तो हम ही तोड़ेंगे। ""
काम्या रूम में पहुँच कर हांफने लगी ,उसके पूरे शरीर में पसीना आ गया था। वो बिस्तर में बैठ कर सोचने लगी कि ""हे भगवान,क्या सचमुच इतना बड़ा होता है। मतलब पिंकी अपने पति के बारे में जो बोल रही थी वो सब सच था "" दरअसल काम्या को कॉलेज के समय उसकी सहेलियों ने एक दो बार मोबाइल में पोर्न क्लिप दिखा दी थी लेकिन वो यही सोचती थी कि मर्द का वो अंग इतना बड़ा नहीं होता। फिल्म में सब ट्रिक फोटोग्राफी का कमाल होता है। लेकिन इतने बड़े ही लण्ड की बात पिंकी ने अपने पति के बारे में बताया था। उस समय काम्या ने यही सोचा था की स्त्रियों को अपने पति की मर्दानगी को बड़ा चढ़ा कर बताने की आदत होती है ,फिर पिंकी तो वैसे भी डिफाल्टर थी। जब काम्या की शादी हुई और उसने सुनील के चुन्नू मुन्नू को देखा तो उसे पूरा विशवास हो गया था कि पिंकी अपने पति के साइज बारे में गप्प मार रही थी। लेकिन आज बाबूजी के खतरनाक औजार को देख उसकी पुरानी सारी धारणा ही बदल गई। उसने अपनी आँखों से केवल ढाई फ़ीट की दुरी से लगभग दो मिनिट तक बाबूजी के कोबरा को फुफकारते हुए देखा था इसलिए संदेह की कोई गुंजाइस ही नहीं थी। "" बाप रे कितना खतरनाक दिख रहा था लेकिन फिर भी उसे देखने को कितना मन कर रहा था "" काम्या ने मन ही मन कहा। फिर उसने सोचा कि बाबूजी का टॉवल गिरा तो उन्होंने उठाया क्यों नहीं , कितनी देर तक हमारे सामने झुलाते रहे लगता है जानबूझ कर हमें दिखा रहे थे। हाय राम कितने बेशरम हो गए हैं बाबूजी अपनी बहु को ही अपना दिखा रहे थे अगर इनको मौका मिले तो ये तो हमें रगड़ डाले। एक बार फिर बाबूजी का सामान उसकी आँखों के सामने आ गया। काम्या ने सोचा बाप रे इतना बड़ा वहां जाता कैसे होगा और कितना दर्द होता होगा। उसे याद आया कि पिंकी भी कह रही थी कि सुहागरात के दिन उसे कितनी तकलीफ हुई थी और वो पिन्की की बताई बातों को याद करने लगी।
पिन्की की शादी काम्या से पहले हो गई थी शादी के बाद पहली बार वो मायके आई तो काम्या ने उसे घेर लिया और शादी के बाद के कार्यक्रम बारे में कुरेद कुरेद कर पूछने लगी हालांकि वो जानती थी कि पिन्की पहले से ही चलता पुर्जा है ,लैब में पटेल सिर का लंड चूसते तो काम्या ने खुद देखा था। पिन्की भी खुल कर बताने लगी कि उसके पति का बहुत बड़ा और मोटा है। पिंकी ने कहा "" काम्या तेरे को क्या बताऊँ ,उनका इतना मोटा है कि मेरे जैसी चली चलाई लड़की भी दूसरे दिन लंगड़ा कर चल रही थी। रात में उन्होंने तीन बार मेरा बाजा बजाया ,वो तो सुबह हो गई थी नहीं तो पता नहीं और कितनी कुटाई करते।"" सुबह मैं लड़खड़ा कर चल रही थी तो रिश्ते की ननद और भौजियां टौन्ट मार रही थी। एक ननद बोली "" अरे यार भैया तो बड़े जालिम हैं पहले ही दिन इतनी बुरी तरह कचर दिया,पहले -२ दिन तो गाड़ी कम स्पीड पर चलानी थी "" तभी दूसरी ननद बोली ""नहीं यार भाभी बड़ी किस्मत वाली हैं जो इतना गबरू जवान मिला है अब तो सारी जिंदगी मजे ही मजे हैंखूब उछाल -२ के निगलेगी ""पिन्की ने काम्या को बताया कि उसे इतना बड़ा लण्ड एडजस्ट करने में पंद्रह दिन लग गए थे तब जाके उसकी चाल सुधरी। काम्या ने सोचा बाबूजी का भी इतना बड़ा है कि किसी को भी एडजस्ट करने में महीनों लग जायेंगे।  


पिन्की की जो बात काम्या के दिल को बार -२ कचोट रही थी वह थी अपने पति के लण्ड की तारीफ।पिन्की बचपन से ही बोल्ड लड़की थी कर्म से भी और वचन से भी। उसका कोई सगा भाई नहीं था इसलिए वो चुलबुली भी हो गई थी और मुंहफट भी। पिंकी ने उससे बड़े जोर देकर बताया था कि "" काम्या एक बात बता देती हूँ चुदाई का जो मजा,जो आनंद ,जो लज्जत लम्बे मोटे लण्ड से है वो छोटे में नहीं है। तू तो जानती है कि मैं शादी से पहले ही करीब आधा दर्जन लण्ड खा चुकी हूँ लेकिन जो मजा अब पति देव के महा भयंकर हथियार से मिल रहा है उसका तो कोई मुकाबला ही नहीं है।पहले जब मैं चुदती थी तो लगता था इससे ज्यादा मजा दुनिया में कहीं हो ही नहीं सकता लेकिन अब लगता है जैसे तब मैं झुनझुने से खेल रही थी , चूंकि तू कुवांरी है इसलिए तुझे ज्यादा समझ भी नहीं आएगा ,बस समझ ले की ये गूंगे के गुड का अनुभव है। शादी के पहले मैंने जो लण्ड लिए थे अगर वो गुड थे तो अब जो मैं ले रही हूँ वो गुलाबजामुन है।मोटा लण्ड चूत को बिलकुल चीरता हुआ घुसता है और फिर अंदर की दीवारों को ऐसा रगड़ता है कि लगता है अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो सिर्फ चुदाई में है,चुदाई में है और सिर्फ चुदाई में ही है। जब तेरा पति तेरी चीरेगा तब तू मेरी बात को याद करेगी। ""
काम्या को पिन्की की बात याद तो आ रही थी लेकिन उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि चूत चीरना किसे कहते हैं। सुनील तो कभी चीर नहीं पाया। खैर दिन भर वो बाबूजी से दूर -२ ही रही अलबत्ता बाबूजी का हथियार हमेशा उसके जहन में ही रहा। बाबूजी तो लगातार उसे देखने में ही रहे जैसे आँख से ही चोद देंगे। काम्या बाबूजी से दूर इसलिए रह रही थी क्योंकि आज जो कुछ बाबूजी ने किया था उससे काम्या को पक्का विशवास था की अगर वो अकेली बाउजी के पास पड़ गई तो बाबूजी बिना हाथ फेरे नहीं छोड़ेंगे। वैसे काम्या आज सुबह से ही बहुत गर्म थी उसका मन तो कर रहा था कि बाबूजी से अपने दूध मसलवा ले लेकिन सुनील के शहर में होने के कारण वो सतर्क थी। जैसे तैसे दिन गुजरा लेकिन शाम को सिर मुंडाते ओले पड़ गए। सास का फरमान आया कि "" बहु मैंने ये लिस्ट बना दी है तुम बाबूजी के साथ बाजार जाकर सामान ले आओ, सुनील के जाने से पहले नमकीन ,गुजिया बना के देना है। काम्या तैयार हो के बाबूजी के कमरे में गई और माँजी का फरमान सुना दिया। बाबूजी ने कहा बहु तुम एक्टिवा निकालो जब तक हम तैयार हो के आते हैं।


दोनों बाज़ार को चल दिए। काम्या पीछे बैठे थी। बाबूजी को जरा भी मौका मिलता तो झटके से ब्रेक लगा देते जिससे काम्या आगे खिसक उसके दसहरी आम बाबूजी की पीठ में धंस जाते। काम्या बाबूजी की चालाकी समझ रही थी लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी क्योंकि वो जानती थी कि बोलने से भी बाबूजी मानेंगे नहीं और फिर उसे भी बाबूजी की ये बदमाशी अच्छी लग रही थी। बाजार में दोनों ने सब सामान ख़रीदा और लौट ही रहे थे की काम्या बोल पड़ी
काम्या ;- बाबूजी ,मम्मी ने कुछ फल भी लाने को कहा था
मदनलाल :-- ठीक है क्या लोगी
काम्या :-- वो सामने ठेला लगा है केले ले लेते हैं। मदनलाल ने केले देखे और कहा
मदनलाल :-- ये तो बहुत छोटे -२ केले हैं। बहु केले हमेशा बड़े खाने चाहिये। जब बड़े केले खाओ तो पेट को भी लगता है कि कुछ अंदर आया है। काम्या बाबूजी का द्विअर्थी डायलाग समझ गई और शर्म नीचे देखने लगी। तब मदनलाल दूसरे ठेले में गया जहाँ बड़े -२ केले थे उसने वहां खरीदे और बहु को पकड़ाते हुए बोला
मदनलाल :--- देखा बहु ये कितने बड़े साइज का केला है। जब बड़ा केला खाने लगोगी तो छोटे केले खाना भूल जाओगी।
काम्या : - बाबूजी आपको भी कोई फल लेना है तो ले लीजिये।
मदनलाल :-- बहु हमें जो फल पसंद है वो तो आज बाजार में है ही नहीं।
काम्या :-- बाबूजी आपको कौन से फल पसंद हैं।
मदनलाल ने बहु की चूचियों को कामुक नज़रों से देखा फिर होंठों में जीभ फेरते हुए नज़र नीचे कर बहु की गांड को देखते हुए बोला
मदनलाल :-- बहु हमें तो दशहरी आम और तरबूज़ पसंद हैं। . काम्या समझ गई कि बाबूजी किन फलों की बात कर रहे हैं इसलिए चिढ़ाते हुए बोली
काम्या :-- बाबूजी घर चलिए ,लगता फल खाना आपकी किस्मत में ही नहीं है।
दोनों घर लौटने लगे ,बाबूजी जानबूझ कर गाड़ी लहरा रहे थे ,हल्का सा अँधेरा होने लगा था। जब थोड़ा सुनसान एरिया आया तो बाबूजी ने किनारे गाडी रोक दी।काम्या ने पूछा "" क्या हुआ बाबूजी "
मदनलाल ने कहा ""कुछ नहीं बहु बस एक मिनिट"" और थोड़ा दूर जाकर पेशाब करने लगे। दरअसल इतनी देर से बहु चिपके रहने के कारण उनका लण्ड टनटना गया था और टेंशन रिलीज़ करना बहुत जरूरी था। काम्या भी उनको लघुशंका करते देख रही थी और उसे सुबह वाला बाबूजी का कोबरा याद आ रहा था। पेशाब करते -२ मदनलाल को एक बार फिर शरारत सूझी उसने दोनों तरफ देखा कोई भी गाडी नहीं दिख रही थी। मदनलाल ने पेशाब करने के बाद हथियार अंदर किये बिना ही घूम गया। बहु उसी की ओर देख रही थी मदनलाल का फ़ुफ़कारता लण्ड फिर आँखों के सामने देख काम्या फिर एक बार सम्मोहित सी हो गई। वो एकटक बाबूजी के औजार को देखने लगी। मदनलाल चलते -२ उसके पास आया। काम्या की नजर उसके हथियार पर टिकी थी इसलिए जब वो बिलकुल पास आ गया तो काम्या की नजर लण्ड देखते देखते नीचे झुक गई , उसकी साँसे तेज़ -२ चल रही थी,मदनलाल ने अपने औजार को तर्जनी और मध्यमा उंगली में फंसाया और दायें बाएं हिलाया जिससे कुछ बूंदे गिरी ,ऐसा लग रहा था जैसे भयंकर विषधर ने विषवमन किया हो। फिर मदनलाल धीरे से बोला
मदनलाल :-- बहु चलें ,या और देखना है। ससुर की आवाज़ सुनते ही काम्या की तन्द्रा टूटी और वो बुरी तरह झेंप गई और मारे शर्म के पल्लू से मुंह ढँक लिया। मदनलाल ने कहा बहु अब तुम गाड़ी चलो हम थोड़ा थक गए हैं। जैसे ही गाडी चली मदनलाल ने बहु की गोरी चिकनी कमर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। काम्या चुपचाप गाडी चलती रही तभी बाबूजी ने उसके कान के पास कहा
मदनलाल :-- बहु ,हमारा केला पसंद आया। काम्या ने सोचा बाबूजी शायद उसी केले की बात कर रहे हैं जो सुबह से दिखा रहे हैं इस लिए चुप ही रही। पूछा
मदनलाल :-- बहु बताओ न हमारा केला कैसा लगा। काम्या ने हड़बड़ाते हुए कहा
काम्या :-- क्या स्स्स्स हम समझे नहीं।
मदनलाल :-- अरे वही केला जो हम खरीदे है
काम्या :-- जी जी वो। अच्छा है। बड़े बड़े हैं
मदनलाल :-- बहु ,मझा तो बड़े केले में ही है। तुम्हारी सास को भी बड़े केले पसंद हैं ,हमसे हमेशा बड़ा केला मंगवाती थी।
काम्या :-- वो तो आप से मंगवाती थी हम तो किसी से मंगवा भी नहीं सकते।
मदनलाल :-- क्यों हम नहीं हैं क्या । अभी भी लाये हैं जब कहोगी ला देंगे बड़ा केला। कहते कहते मदनलाल ने अपनी उंगली बहु की नाभि में डाल दी। बाबूजी की हरकत से काम्या बुरी
गरम हो गई थी। उसे लगा जैसे उसकी प्रेमगुफा से प्रेम झरना फुट पड़ा हो। बाउजी के डबल मीनिंग शब्द बहुत कामोत्तेजक थे वैसे भी ऑडियो क्लिप वीडियो क्लिप से ज्यादा असर करता है। बाबूजी ने फिर पुछा
मदनलाल :-- बहु तो आज रात खाओगी न हमारा केला। काम्या समझ गई बाबूजी क्या कहना चाहते हैं लेकिन बोली
काम्या :-- बाबूजी रात को फल खाने से हमें ठण्ड लग जाती है हम कल दिन में खाएंगे ,रात को तो आप माँजी खिलाना अपना केला।
मदनलाल :-- कोई बात नहीं बहु दिन में ही खा लेना। हम तो बस ये चाहते हैं कि तुम हमारा केला खा लो चाहे दिन रात खाते रहो। ऐसा कहते -२ मदनलाल बहु की नंगी पीठ पर किस करने लगा।काम्या ने घबड़ाते हुए कहा
काम्या :-- बाबूजी प्लीज मत करिये ,हम बहक जायेंगे
मदनलाल :-- तो बहक जाओ न। हम तो कब से चाह रहे है कि तुम बहक जाओ।
काम्या :-- बाबूजी हम गाडी बहकने की बात कर रहे हैं। आप तो हमेशा कुछ और सोचने लगते हैं।
मदनलाल :-- अच्छा हम क्या सोच रहे है बताओ
काम्या :-- हमें आप से बात नहीं करनी बस। और ऐसे ही फ़्लर्ट करते -२ दोनों घर पहुँच गए। 


 रात को सब ने साथ खाना खाया। मदनलाल ऊपर छत में घूमने चला गया बाकि सब टीवी देख रहे थे कुछ देर बाद माँजी ने काम्या को कहा कि बाबूजी को ऊपर केला दे आ ,मजबूरी में उसे जाना पड़ा हलाकि कि उसे आशंका थी की ऊपर अँधेरे में बाबूजी कुछ न कुछ बदमाशी जरूर करेंगे। जब वो ऊपर पहुंची तो बाबूजी छत पर टहल रहे थे। जैसे ही काम्या ने उन्हें केला देना चाहा बाबूजी जी ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे टावर के अंदर ले जाने लगे। काम्या ने कलाई छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
काम्या :-- प्लीज बाबूजी हमें छोड़िये ,छत में से कोई देख लेगा।
मदनलाल :-- बहु इसीलिए तो टावर में लाएं हैं
काम्या :-- नहीं छोड़िये हमें घर में सब हैं। हमें नीचे जाना है हम तो केवल आपको केला खिलाने आये थे
मदनलाल :-- बहु हम केला खाते नहीं खिलाते हैं। अब तुम खाओगी हमारा केला। बाउजी की बात सुनकर काम्या काँप उठी उसने सोचा शायद बाबूजी अब अपना वो निकाल कर जबरदस्ती न कर दे. काम्या घबड़ाते हुए बोली
काम्या :- बाबूजी नहीं गजब हो जायेगा आप फिर कभी खिला देना। हम लेट हो जायेंगे तो सबको शक हो जायेगा
मदनलाल :-- अरे कुछ नहीं होगा कह देना ऊपर ठंडी हवा खा रहे थे। ऐसा कहकर मदनलाल ने बहु का लाया केला छीला और कहा चलो मुंह खोलो। फल वाला केला देख कर काम्या की जान में जान आई उसने मुंह खोला तो मदनलाल ने उसके मुंह में केला ठूंस दिया। धीरे -२ काम्या ने पूरा केला खा लिया
मदनलाल :-- कहो कैसा लगा हमारा केला।
काम्या ;- बहुत बड़ा था। हमारा पेट पहले से ही भरा था अब तो गले तक भर गया है।
मदनलाल :-- बहु ,हमने तो पहले ही कहा था कि बड़ा केला खाओगी तो पेट तक महसूस होगा कि कुछ अंदर आया है या फिर गले तक महसूश होगा जैसे अभी लग रहा है
काम्या :-- बाउजी बस अब हमें जाने दीजिये
मदनलाल :-- अच्छा खुद तो मजे से खा ली अब हमें भी तो कुछ खाने दो। अचानक मदनलाल ने बहु के रसीले होंठो में अपने होंठ रख दिए और उनका हाथ अपने आप ही काम्या की चूचियों में पहुँच गया। काम्या ने छुड़ाने की कोशिश की मगर बाबूजी की ताक़त के सामने लाचार हो गई। मदनलाल ने जी भरकर बहु के अधरामृत का पान किया और उसके उरोज़ों को बुरी तरह मसल डाला। बड़ी मुश्किल से जब काम्या के होंठ आज़ाद हुए तो उसने कहा
काम्या :-- बाबूजी हम आपके हाथ जोड़ते हैं हमें जाने दीजिये। सुनील के जाने के बाद आप अपनी मनमानी कर लेना। मदनलाल ने भी समय की नजाकत को देखते हुए उसे आज़ाद करते हुए कहा
मदनलाल :-- ठीक है बहु हमारे एक सवाल का जवाब देती जाओ
काम्या :-- कौन सा सवाल
मदनलाल :-- ये बताती जाओ जो केला खाई हो वो बड़ा है कि ये वाला। कहते हुए उसने बहु का हाथ अपने टनटनाए हथियार पर रख दिया। लण्ड पर हाथ पड़ते ही काम्या के बदन में झुरझुरी आ गई। उसे लगा जैसे उसके हाथ में किसी ने अज़गर दे दिया हो। बाउजी का हथियार गरम था और फड़क रहा था। उसने जल्दी से हाथ हटाया और नीचे जाने लगी। मदनलाल ने एक बार फिर पूछा
मदनलाल :-- बताओ न बहु कौन सा वाला ज्यादा बड़ा है
काम्या :-- हमें नहीं मालूम। मांजी से पूछ लेना उन्होंने दोनों खाया है और जीभ निकाल कर बाबूजी को चिड़ा दी।
मदनलाल उपर छत में ही टहलता रहा और सबका अपने -२ कमरों में जाने का इंतज़ार करता रहा। जब सब सुनसान हो गया तो वो चुपचाप नीचे आया और बहु की खिड़की में आँख लगा दी। अंदर दृश्य देखते ही उसे निराशा हुई बहु गाउन पहने हुई थी सुनील चड्डी में था। सुनील उससे बात कर रहा था लेकिन वो छत की ओर ताक रही थी और केवल हाँ हूँ कर रही थी। बहु के मुख में उदासी का भाव था। तभी सुनील ने अपने छुछुंदर को चड्डी से बाहर निकाला और काम्या को पकड़ा दिया। काम्या ने तुरंत हाथ हटा दिया सुनील ने कुछ रिक्वेस्ट की लेकिन वो चुपचाप पड़ी रही। दृश्य देखकर मदनलाल को बहुत बुरा लग रहा था। वो जानता था कि आज बहु ने उसका कोबरा देखा है इसलिए सुनील के पनियल सांप में उसकी कोई रूचि नहीं हो रही है। सुनील ने एक दो बार और कोशिश की कि काम्या उसके पनियल से खेले लेकिन काम्या ने उसे छुआ भी नहीं। अंत में थक हार कर सुनील ने काम्या की nighty उपर की और बीच में आकर अपनी लुल्ली को काम्या के भीतर सरका दिया। सुनील का खिलौना बिना किसी प्रतिरोध के भीतर सरक गया। काम्या ऐसे ही निश्चल पड़ी रही जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। सुनील ने पांच दस सेकंड उछल कूद की और फिर हांफता हुआ काम्या के ऊपर लेट गया। काम्या ने तुरंत उसे अपने उपर से हटाया और दूसरी तरफ करवट लेकर लेट गयी। इस पूरे घटनाक्रम ने मदनलाल को अशांत कर दिया। सुनील उसका बेटा था। उसकी जिंदगी के इस दुःख ने मदनलाल को हिला दिया। बेटा आखिर बाप का ही प्रतिरूप होता है ,बाप का ही नया अवतार होता है या आज की भाषा में कहें तो बाप का नेचुरल क्लोन होता है। संतान हो जाने के बाद माँ बाप जो कुछ करते हैं सब बच्चों की ख़ुशी के लिए ही करते हैं ,उनकी अपनी ख़ुशी पीछे छूट जाती है। बहु के आज के व्यवहार ने मदनलाल को विचलित कर दिया वो चुपचाप अपने कमरे में आकर लेट गया लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। दूसरी तरफ काम्या की आँखों से भी नींद दूर थी। उसकी नज़रों के सामने बाबूजी और सुनील दोनों के हथियार घूम रहे थे वो सोच रही थी कितना अंतर है दोनों औजारों में "" बाप बुढ़ापे में भी दुनाली बन्दूक लिए घूम रहा है ,और बेटा भरी जवानी में toy pistol से खेल रहा है। पता नहीं हमारी जिंदगी का क्या होगा। ""

  
कल रात की घटना के कारण मदनलाल सुबह से बुझा -२ सा था। इधर काम्या भी प्यासी रह जाने के कारन उदास सी थी लेकिन उसे बाबूजी की उदासी का कारण समझ नहीं आ रहा था। कल तक बाबूजी हर मौके पर उसे छेड़ रहे थे जबकि आज चुप थे। सारा दिन ऐसे ही बीत गया रात भी आई लेकिन मदनलाल आज तांक झाँक करने नहीं गया। सुनील की जिंदगी पर उसे दया आ रही थी। तीसरे दिन सुनील वापस मुंबई चला गया लेकिन घर में सब को उदास कर गया। सबकी उदासी का कारण अलग -२ था। माँ बेटे के जाने कारण दुखी थी बाप सुनील की कमज़ोरी और काम्या का उसके प्रति रूखा बर्ताव देख कर दुखी था तो काम्या अपनी अतृप्त प्यास के कारण दुखी थी। सुनील के जाने के बाद चार दिन बीत गए लेकिन मदनलाल ने पहल नहीं की। काम्या बाबूजी के इस बदले व्यवहार से हैरान थी उसने तो सोचा था कि सुनील के जाते ही बाबूजी भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ेंगे लेकिन बाबूजी एकदम शांत थे। पांचवे दिन सुबह -२ उनकी पड़ोसन आ गई और शांति को अपने साथ बाजार ले गई और कह गई कि हमें आने में तीन चार घण्टे लग जायेंगे।
मांजी के जाने के बाद काम्या नहाने को बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद बहु के कमरे में मोबाइल बजने लगा।काफी देर बजने के बाद मदनलाल ने जाकर देखा तो बहु की माँ का फ़ोन था पहले तो उसने रिसीव करने की सोचा फिर रहने दिया और वापस हाल में आ गया। थोड़ी देर बाद समधन का फ़ोन मदनलाल के मोबाइल में आ गया।
मदनलाल :- हां। नमस्कार। कैसे हैं आप।
समधन :-- हाँ जी। हम तो बिलकुल ठीक हैं और आप।
मदनलाल :-- बस आपकी कृपा से यहाँ भी सब ठीक है। बताइये कैसे याद किया।
समधन :-- जी ऐसे ही काम्या को फ़ोन लगा रही थी लेकिन वो उठा ही नहीं रही। घर में नहीं है क्या ?
मदनलाल :-- है तो घर में ही ,शायद छत में चली गई हो। खैर मैं बहु को बता दूंगा।
कॉल ख़त्म होने के बाद मदनलाल कुछ देर बैठा रहा फिर बहु को बताने उसके कमरे की ओर चल दिया। बहु के कमरे के अंदर कदम रखते ही उसने जो देखा तो वो सांस लेना ही भूल गया। अंदर काम्या केवल ब्रा और पैंटी पहने आईने के सामने खड़ी थी और अपने गीले बालों में कँघी कर रही थी लाल कलर की पैंटी और ब्रा में वो साक्षात कामदेवी लग रही थी। संगमरमर के सामान चिकना और मख्खन के सामान उसका गोरा बदन मदनलाल के होश उड़ाए दे रहा था। चूँकि मम्मी बाजार गई थी और बाबूजी आजकल एकदम शांत थे और उनकी तरफ से कोई अंदेशा नहीं था इसलिए वो लापरवाह होकर ब्रा पेंटी में ही कँघी कर रही थी। मदनलाल आँख फाड़े बहु की सुंदरता को निहारने लगा। लम्बी पतली सुराहीदार गर्दन, नाजुक से कंधे ,चिकनी छरहरी पीठ ,पतली बलखाती कमर और उसके नीचे क़यामत। सचमुच काम्या"" कमर के नीचे कयामत"" थी। उसकी गोल मटोल -भरी २ गाण्ड ही असल में सारे दंगे फसाद की जड़ थी। और उसके नीचे लम्बी -२ मांसल केले के तने सी चिकनी जांघे। काम्या की जांघे इतनी सेक्सी थी की मदनलाल घण्टों उन्ही को चाट चूम सकता था। मदनलाल होशो हवास खो धीरे-२ बहु के एकदम पास आ गया। अब उसे काम्या के जिस्म से निकलने वाली कमल के फूल की सी सुगंध भी आ रही थी। उत्तेजना में उसकी साँसे गहरी होती चली गई। साँसों की आवाज़ से काम्या को पीछे किसी के होने का अहसास हुआ और वो पलटी। बाबूजी को देखते ही उसके मुंह से निकला - -
काम्या :--- बाबूजी आप ! यहाँ ! कहते हुए अपने उरोज़ों को ढकने का प्रयास किया जिन्हे देख कर बाबूजी लार टपका रहे थे।
मदनलाल :-- वो वो sss आपकी माँ का फ़ोन आया था कह रही थी कि तुम फ़ोन नहीं उठा रही हो।
काम्या :-- जी हम नहाने चले गए थे। और काम्या ने पास पड़ा टॉवल उठा लिया। मदनलाल ने झटके से टॉवल छीन लिया और बोले
मदनलाल :-- रहने दो बहु तुम ऐसे ही बहुत अच्छी लग रही हो। मदनलाल ने काम्या अपनी बाँहों में दबोच लिया। अगर एक साधारण सी दिखने वाली स्त्री भी ब्रा पेन्टी में सामने आ जाये तो कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है फिर बहु काम्या तो instant erection की गारंटी थी। पिछले हफ्ते भर से उसके मन में चल रहा वैराग्य हवा हो गया। जब विश्वामित्र जैसे तपस्वी मेनका को देख पिघल गए तो मदनलाल तो वैसे भी शौकीन तबियत का था। उसने बहु की ब्रा पकड़ा और एक झटके में फाड़ कर नीचे फेेंक दी। काम्या शर्म और डर से कांपने लगी। मदनलाल ने उसके मखमली बदन को उठा कर बेड में पटक दिया। अब काम्या बिस्तर चित पड़ी थी उसके शरीर पर केवल छोटी सी पेंटी थी जिससे उसकी दो तिहाई गाण्ड बाहर निकली हुई थी। मदनलाल बहु के उपर आ गया और उसके दोनों मम्मों को बेदर्दी से मसलने लगा। काम्या के मुख से दर्द और मजे की मिली जुली सिसकारी निकलने लगी। बहु की गोरी बेदाग़ चूचियाँ देख कर मदनलाल बोला -
मदनलाल :-- बहु , चूची में कोई नाख़ून या दाँत का निशान नहीं है वो उल्लू इनको छूता नहीं था क्या? काम्या ने लजाते हुए कहा
काम्या :-- वो बहुत प्यार से आहिस्ता से करते हैं । आपके जैसे जालिम थोड़े ही हैं
मदनलाल :-- अच्छा एक बात बताओ आहिस्ता से अच्छा लगता है या हमारा जालिमपना। ससुर की बात सुनकर काम्या ने आँखे बंद करते हुए कहा
काम्या :-- मर्द अगर प्यार करते समय थोड़ा जालिम भी हो जाए तो बुरा नहीं लगता।
मदनलाल :-- ठीक है तो हम जालिम हो जाते हैं। और उसके बाद मदनलाल काम्या के पूरे बदन पर दाँत गड़ाने लगा। उसके हाथ लगातार बहु के मम्मो को दबा रहे थे मसल रहे थे गूंथ रहे थे। ससुर की इन हरकतों से काम्या के बदन में ज्वालामुखी भड़क उठा। वो जोर जोर से सिसकारी ले रही थी। मदनलाल बहु की कमज़ोरी जानता था कि बूब्स बहु का सबसे वीक पॉइंट है इसलिए वो एक मिनिट भी उन्हें नहीं छोड़ रहा था। वो बूब्स को ऐसे चूस रहा था जैसे सचमुच उसमे से दूध निकल रहा हो। काम्या को अब बर्दास्त करना मुश्किल हो गया। उसने अपनी कमर उठा ली और बदन धनुषाकार बना दिया। जब मदनलाल ने देखा कि लोहा पूरी तरह गरम हो गया है तो उसने एक कदम आगे बढ़ने की सोची। वो बहु के दोनों तरफ पैर कर के बैठा और अपनी लुंगी हटा दी। लुंगी हटते ही कोबरा फुंफ़कारता हुआ बाहर आ गया और बहु के चेहरे के पास डोलने लगा। आँख के सामने बाबूजी का लण्ड को देखते ही काम्या स्तब्ध रह गई।



मदनलाल ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपना हथियार पकड़ा दिया। लम्बा मोटा गरम मांस का वो खम्बा हाथ में आते ही काम्या के शरीर में चींटी सी रेंगने लगी। डर के मारे बहु ने अपना हाथ हटा दिया। तब मदनलाल बोला
मदनलाल :-- बहु लो पकड़ो इसे। ये तुम्हारा प्यार पाने के लिए तड़प रहा है। काम्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। उसके संस्कार उसे पराये मर्द के उस अंग को छूने से मना कर रहे थे दूसरी तरफ उसका प्यासी जवानी ,पति से अतृप्त जीवन उसे कह रहा था कि थाम ले बाबूजी के अंग को। मन कुछ कह था तो तन कुछ और कह रहा था। इतिहास गवाह है कि जवां उम्र में इंसान हमेशा तन की सुनता है। काम्या का तन भी धीरे-२ मन पर हावी होता जा रहा था। बाबूजी ने बहु को दुविधा में देखा तो एक बार फिर उसकी कलाई पकड़ कर उसके हाथ में अपनी A K 47 थमा थी । काम्या ने इस बार अपना हाथ नहीं हटाया बल्कि कस कर थाम लिया। अपने लण्ड पर बहु के हाथ का कसाव महसूस करते ही मदनलाल का पूरा शरीर झनझना गया।  

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