Tuesday, July 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--179

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--179


 कोई और समय होता तो वो कुछ ही देर में टिट मसाज करने वाली को पटक कर चढ़ बैठता और अपना ९ इंच का मूसल बच्चेदानी तक पेल देता , एक ही झटके में।
…………………

लेकिन बेचारा करन , उसके हाथ पैर तो बंधे हुए थे इन दोनों शरीर किशोरियों की ब्रेजरी और पैंटी से। वो कर भी क्या सकता था , इस सुख को सहने के सिवाय।


मीनल ने टिट मसाज तेज कर दिया जो अब असल में टीट फकिंग में बदल गया था।

और बीच बीच में वो बरछी के नोक की तरह , अपने कड़े कड़े निपल ,सुपाड़े के पी होल में भी चुभा देती ,और करन तड़प के रह जाता।

८-१० मिनट साली का ये खेल तमाशा चला फिर उसने बाल अपनी दी , रीत के पाले में डाल दी।

" दी कुछ कर न , अब बिचारे जीजू और बर्दास्त न कर पाएंगे। " मीनल ने रीत को देख के मुस्कराते हुए बोला

रीत मीठी मीठी मुस्कराती रही , और करन के तन्नाये ९ इंच के जोश को देखती रही , लेकिन बोली कुछ नहीं। उसकी भी गुलाबी परी गीली हो चुकी थी और उसमें बड़े बड़े लाल वाले चींटे काट रहे थे और रुकना उसके बस में भी नहीं था। लेकिन वो कुछ झिझक रही थी और कुछ ,…


" दी ,… " जैसे कोई सोते को जगाये , लेकिन कुछ फुसफुसाते हुए मीनल बोली ,

" आप बोल रही थीं की , बनारस में जब तक जीजू रहेंगे , आप उनको छू भी नहीं पाएंगीं ".

" एकदम " रीत खिलखिलाते बोल पड़ी। कितने पुरानी यादों का तालाब एक साथ उमड़ आया , बाँध टूट गया और जैसे किसी पुरानी किताब से एक सूखा फूल निकल आये और यादों को हरा भरा कर दे , एकदम वैसा।


" गुड्डी १० बार तो बोल चुकी है , की वो मुझे करन के पास भी नहीं फटकने भी देगी , रंगपंचमी तक उसका सोलो राइट है। "

फिर यादों की झुरमुट से ,वक्त की लताओं को टार के निकलते हुए वो बोली ,

" गुड्डी ,हम दोनों की डाकिया थी , मेरी चिट्ठी इसके पास और इनकी मेरे पास। और हर बार वह कहती ,दी बैरंग चिट्ठी का दूना चार्ज लगता है। मेरा हिस्सा लाओ पहले।

और हर बार मैं कहती थी अरे साल्ली का हक़ मुझसे ज्यादा होगा ,वसूल लेना।

वो पहले तो बीर बहुटी हो जाती लेकिन फिर कहती , उस समय मत मुकर जाना। और अब पिछले दोनों से सूद समेत वसूल करने के लिए बोल रही है तो अब ये तय जित्ते दिन करन बनारस में रहेगा , वो मुझे छूने क्या पास भी नहीं फटकने देगी। "



" तो दी आप का तो लम्बा उपवास , " मीनल बोली , लेकिन उसकी बात काटते अपने गाल पे आई एक लट को हटाती , रीत मुस्करा के बोली ,

" अरी बुद्धू , काहे का उपवास। क्या मैं उसके बाबू राजा को छोडूंगी। है तो जीजा ही , फिर जब मैं गली गली ,डगर डगर ,शहर शहर , मच्छर ,मक्खी मारते घूम रही हूँ , कभी बनारस कभी बम्बई और वो रानी वहां दिन रात बिना नागा उसके साथ मजे उड़ा रही हैं।

मैंने भी बोल दिया है करन तेरे हवाले लेकिन आनंद से दिन रात आनंद लूँगी मैं। उसके पास हामी भरने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था , तो मान गयी। और फिर ससुराल में पहुँच के भी अगर स्वाद न बदले तो ससुराल का क्या फायदा तो उन दोनों का भी ,.... "

और अब बात काटने की बारी मीनल की थी।

हंस के वो बोली ,

" आप की बात में तो दम है , लेकिन इसका मतलब आज क्लियरेंस सेल का आखिरी दिन बल्कि रात है। और दो दिन से आप भूखी भी हैं ,जीजू को तो नाश्ता ,खाना सब उन की फेवरिट साली ने करा दिया है। सामने इतनी अच्छी बुफे की टेबल लगी है और आप उपवास मना रही हैं।

इत्ती बढ़िया थाली ठुकराना अच्छी बात नहीं है। "

रीत कुछ खुद से कुछ मीनल से बोली ,

"नहीं यार न मैं थाली ठुकरा रही हूँ न ऐसा है की मेरा मन नहीं है , लेकिन ,.... "


मीनल ने लेकिन के आगे की बात समझने की कोशिश की , फिर मुस्करा के बोली ,

" अरे दी मैं अभी जीजू के हाथ पैर खोल देती हूँ , फिर आप दोनों ,… "

"चुप , खबरदार जो हाथ पैर खोलने की कोशिश की। तेरी दी इत्ती कमजोर भी नहीं है। बंधे रहने दे उन्हें , ऐसे बहुत प्यारे लग रहे हैं। मैं खुद ही ,.... "


और अगले पल ही रीत मीठी शूली के ऊपर थी और करन का एक नया टॉर्चर शुरू हो गया था।


खूब मादक ,खूब मीठा।

रीत के कमर की ताकत से अबतक करन अच्छी तरह वाकिफ़ हो चुका था और ,… उस की चुमुनिया की पकड़ से भी।


बस रीत की चुन्मुनिया ने उसके मोटे खूंटे के ऊपर हिस्से को पकड़ लिया और धर दबोचा।

सिर्फ सुपाड़ा रीत ने अंदर घोंटा था और उसकी कुशल कोमल योनी उसे रुक रुक कर भींच रही थी , निचोड़ रही थी ,दबा रही थी।

साथ ही उसकी मुस्काती , खेलती , तंग करती शरारती आँखे करन की आँखों में देख देख के उसे और ललचा रही थी।

करन ने कमर उचकाकर सिफारिश लगाई , बिन बोले , थोड़ा और अंदर लो न।

लेकिन शोख ,दुष्ट रीत।


हलकी सी सुराही सी पतली गरदन की जुम्बिश से उसने मना कर दिया और अपना दूसरा मोहरा आगे कर दिया।

झुक जार दोनों उरोज एकदम करन के होंठों के पास ,

दो दूधिया संगमरमरी गुम्बद ,

उलटे दूध के कटोरे

और भूखे होंठों को छूते सहलाते

लेकिन जैसे ही करन के होंठ उचकते ,

वो आमों से लदी शाख दूर हो जाती ,

और साथ ही जोर से उसकी गुलाबी परी ने पहले तो सुपाड़े को भींचा और फिर जैसे जोबन की नाफरमानी के ऐवज में ,एक जोर का धक्का मार कर ,


आधे से ज्यादा खूंटा ,करीब ५ इंच अंदर।
और जैसे इत्ती देर तड़पाने का वो सूद सहित जुर्माना दे रही हो ,

सिर्फ करन के भूखे तड़पते खूंटे को ही मजा नहीं मिल रहा था बल्कि उसके दोनों गदराये जोबन करन की छाती पे रगड़ खा रहे थे।

और साथ में सूद के तौर पर रीत के रसीले होंठ ,करन के होंठों को चूम , चूस रहे थे।

हाथ पैर बंधे होने से करन बेबस था , लेकिन बेबसी का भी अपना मजा था।

धीरे धीरे रीत की पैसेंजर , राजधानी एक्सप्रेस हो गयी। 


हलके से रीत के दांतों ने करन के होंठों को काटा और जैसे ही उस ने सिसकारी भरी , उस के खुले मुंह को बेधती , रीत की मोटी मांसल जुबान अंदर ,और फिर तो जबरदस्ती पूरा ठेल के ही वो मानी।

जैसे कोई खूब खेला खाया मर्द , अपनी पकड़ में आई किसी कच्ची किशोरी का मुंह जबरन खुलवा के अपना मोटा लिंग पेल दे , और बिचारी जबरन चूसे। बस वही हालत हो रही थी।

रीत की खूब कड़ी कड़ी मोटी मोटी गददर चूंचियां भी कम दुष्ट नहीं थी और उन्हें डर किस बात का था , करन के तो हाथ बंधे थे। अब वो भी खूब जोर जोर से रगड़ मसल रही थीं , जैसे गौने वाली रात नयी दुल्हन की हालत होती है बस उसी तरह।

और अब चुदायी की रफ्तार भी तूफानी हो गयी थी , साथ साथ कभी जोर जोर से रीत सहेली अपने साजन को कस के निचोड़ भी लेती। साजन उसका जो मर्जी वो करे।




रीत ने तो बनारस से बम्बई तक जिन्होंने आँख भी उठाने की कोशिश की सबकी माँ चोद के रख दी।


फिर करन क्या चीज थी।

हचक हचक कर रीत चोद रही थी , और साथ में प्यारी प्यारी रसीली बनारसी गालियों से करन के मायकेवालियों की भी ऐसी की तैसी कर रही थी।


करन चुपचाप चुद रहा था , कुनमुना रहा था ,कसमसा रहा था।

मजा तो उसको आ रहा था लेकिन मन उसका भी कर रहा था की ऊपर चढ़ के , …।

मस्ती में रीत की आँखे बंद हो जाती थीं।

बस इसी का फायदा उठाया उसने , एक रसभरी निगाह से मीनल की ओर देखा ,

पहले तो उसने नानुकुर किया ,

लेकिन जीजा की बात कौन साली टालेगी।


और बस पल भर में हाथ पैर खुले और ,…

गाडी नाव पर।

रीत की दोनों कलाइयां करन के मजबूत हाथों में।
गोल गोल मीठे किशमिश से निपल , करन के होंठों में

और हर धक्का , सीधे बाउंड्री से बाहर ,छक्के पे छक्का।

करन के कमर की ताकत का कोई जवाब नहीं था। आलमोस्ट पूरा कलाई की मोटाई सा मोटा ,लंड बाहर निकलता ,एक पल रुकता और फिर


सटाक

एक धक्के में रगड़ता ,दरेरता ,फाड़ता ,छीलता ,

पूरा अंदर ,पूरा ९ इन्च।

हर धक्का सीधे रीत की बच्चेदानी पे , और हर धक्के पे रीत कराह उठती ,सिसक उठती , और चूतड़ उठा उठा जवाब भी देती।


इस २०-२० बैटिंग का नतीजा जो होना था वो हुआ , १० मिनट में रीत कगार पर थी।

लेकिन बजाय रुकने के करन ने स्पीड और बढ़ा दी , साथ में तीतरफा हमला।

होंठ एक निपल चूस रहे थे , दूसरा निपल एक हाथ के कब्जे में और बाकी बचा हाथ क्लिट को कभी रगड़ता कभी पिंच करता ,

रीत तूफान के पत्ते की तरह काँप रही थी , जोर जोर सिसक रही थी और अब , .... उसकी नाव किनारे लग गयी।

रीत की आँखे बंद थी साँसे बहुत लम्बी चल रही थी ,अब नीचे के धक्के न के बराबर थे और सिसकियाँ भी थकी थकी निकल रही थीं।


बस उसकी गौरेया बार बार मोटे खूंटे को निचोड़ रही थी।


कुछ पल करन भी रुका लेकिन धीमे धीमे उसने रफ्तार पकड़ ली।

साथ में होंठो और हाथों की हरकत ,रीत फिर गर्म हो गयी थी।
रीत की दोनों गोल गोल गोरी चूंचियां पत्थर हो गयी थीं , मस्ती में एकदम कड़ी। और ऊपर से करन के दोनों हाथ कभी प्यार से उन्हें सहलाते , कभी मस्ती में जोर से दबा देते।

रीत ने एक बार फिर से हलकी हलकी सिसकियाँ भी भरनी शुरू कर दी थीं।

उसकी गुलाबी परी , करन के मोटे खड़े तन्नाये खूंटे को एक बार फिर दबा रही थी , दबोच रही थी।

इतना सिग्नल काफी था , करन के लिए फिर से गाडी शुरू करने के लिए। एक हाथ से उसने रीत की कटीली कमरिया को दबोचा और दूसरा पूरी ताकत से उसकी मस्त चूंची पे ,

शुरू के धक्के थोड़े हलके हलके थे , लेकिन धीरे धीरे ट्रेन ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी।

खट खट, खट खट , धक धक, धक धक


और नीचे से

सटासट ,सटासट , … गपागप ,गपागप ,

रीत की भूखी चूत लंड घोंट रही थी।


एक बार फिर मस्ती में रीत की आँखे बंद हो गयी थीं ,

और एक बार फिर मीनल को मौका मिल गया। उसने करन को इशारा किया और जब तक रीत समझे सम्हले , उसे कुतिया की पोज में करन ने कर दिया था और खुद पीछे से चढ़ा ,


ज्यादातर चुदक्कड़ मर्दों की तरह , करन के लिए डागी पोजीशन फेवरिट थी। पर अब वह जिस तरह से उसे चोद रहा था , और रीत चुदवा रही थी , लग रहा था चैत में कातिक आ गया।

पर मीनल को इतने से चैन कहाँ ,

उसकी निगाह इत्ते देर से रीत के बड़े बड़े मस्त कुल्हो पर अटकी थी , मटकते हुए भारी भारी चूतड़ जिन्होंने पूरे शहर में आग लगा रखी थी ,

लेकिन असली निशाना तो चिड़िया की आँख थी।

उन गदराये भरे भरे चूतड़ों के बीच , वो मुश्किल से दिखने वाला छोटा सा छेद ,

और मीनल ने उसी की ओर इशारा किया।

करन थोड़ा सहमा , थोड़ा सकपकाया।

लेकिन वो साली कौन , .... और अब तो उस खूंटे से अच्छी दोस्ती हो गयी थी मीनल की।

बस मीनल ने पकड़ा और रीत की कसी गांड के छेद से सटाया ,यही नहीं दोनों चूतड़ पूरी ताकत से फैला के अपने एकलौते जीजू का काम भी आसान किया।


बस एक जोर का करारा धक्का , और हलब्बी लंड अंदर।


रीत चीखी ,कराही , चिल्लाई , चूतड़ पटकी लेकिन दो तीन धक्को में मोटा सुपाड़ा गप्प।


और उस के बाद तो अब मीनल भी समझ गयी थी ,रीत लाख चूतड़ पटके ,बिन गांड मारे और बिन गांड को रबड़ी खिलाये करन छोड़ने वाला नहीं।

खूब जोर की गांड मराई के बाद रीत और करन दो एक साथ झड़े , मुट्ठी भर मलाई सीधे अंदर।


उस रात रीत दो बार और चुदी।

न न करते मीनल का भी एक बार नंबर लग गया।

थक कर जब तीनो चिपट कर सोये , रात बस गुजरने वाली थी।

बाहर तेज हवायें चल रही थीं।

अंदर खिड़की का परदा सरक गया था , और बंद शीशे से कुछ दूर उछलती कूदती अरब सागर की तरंगे दिख रही थी और उसमे अपना मुंह देखता झांकता चाँद , जो बस सामान समेटकर , अपने घर पहुंचने की जल्दी में था।

करन बीच में और उसके एक ओर रीत और दूसरी ओर मीनल , गहरी नींद के आगोश में।





( चलिए अब इन सोती सुंदरियों को यहीं छोड़ें , घडी की सुई थोड़ा पीछे घुमाए और चलते है आनदं बाबू की नगरिया , जहाँ रंजी नीचे के कमरे में अपने डायटीशियन से मॉडलिंग के बारे में इंटरव्यू देने बैठी है और ऊपर के कमरे में रंजी की जंगी चुदाई के बाद , गुड्डी और गुड्डी के 'वो ' सुस्ता रहे हैं।
)
 







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