Wednesday, December 15, 2010

कामुक-कहानियाँ-खेल खिलाड़ी का पार्ट--10



खेल खिलाड़ी का पार्ट--10

गतान्क से आगे..............
"ये है तुम्हारे लायक.",वो 1 बार फिर नीना के उपर लेट गया था & उसके गले मे 1 हीरो का हार डाल रहा था. "ओह्ह..महेश..!",इसके आगे नीना कुच्छ बोल ना पाई क्यूकी उसके & महेश के होंठ सील गये थे & महेश उसकी चूचियो को दबाता बहुत गहरे धक्के लगा रहा था.दोनो प्रेमियो का जोश अब सातवे आसमान पे था.नीना अपने हाथ कभी पीछे ले जा महेश के बालो को,उसके चेहरे को पकड़ सहलाने की कोशिश करती तो कभी वो अपनी चूत मे हो रही कसमसाहट से परेशान हो बिस्तर की चादर को भींच लेती.उसकी आहे नही सुनाई दे रही थी क्यूकी वो & महेश 1 दूसरे को चूम रहे थे.तभी नीना का जिस्म जैसे अकड़ गया & उसने अपना उपरी जिस्म बिस्तर से उठा लिया & टाँगे भी घुटनो से पीछी मोड़ ली,उसके उपर सवार महेश झटके ख़ाता उच्छल रहा था.दोनो की हसरत पूरी हो गयी थी-दोनो 1 साथ झाड़ गये थे. ------------------------------
---------------------------------------------------------------------------------------------- ज़िंदगी मे शायद पहली बार दिव्या का दफ्तर जाने का दिल नही कर रहा था.वो जीप से उतरी & क्राइम ब्रांच के दफ़्तर की सीढ़िया चढ़ने लगी....उसका मन परेशान था कि वो अजीत के रहते & प्रोफेसर दीक्षित के साथ काम करेगी तो कैसे!उसका दफ़्तर दूसरी मंज़िल पे था & वो सीढ़िया चढ़ रही थी.साथ की दीवारो पे तमगा जीतने वाले अफसरो की तस्वीरे लगी थी जिन्हे देखते दिव्या ठिठक गयी,ये उसकी तस्वीर थी जो कि कुच्छ महीने पहले लगाई गयी थी जब राज्य के गोवेरनेर से उसे बहादुरी का तमगा मिला था....वो जब किसी गुंडे,बदमाश से नही डरी तो अब इन 2 लोगो से उसे क्या परेशानी हो रही है....डीसीपी वेर्मा ने ठीक कहा था हर बात इंसान के पसंद की नही होती & अगर इस दौर से वो निकल गयी तो उसकी शख्सियत ही निखरेगी नुकसान कुच्छ नही होगा.मुक़ाबले से पीछे हटना दिव्या ने सीखा नही था & उसका वो जज़्बा लौट आया था. अपने कॅबिन की ओर जाते गलियारे के आख़िर मे दिव्या को अजीत खड़ा दिखा.उसने भी उसे देखा & हल्के से मुस्कुराया.दिव्या भी वैसे ही मुस्कुराइ,"हेलो,दिव्या.",वो उसके पास आया. "हाई!अजीत.कैसे हो?" "बढ़िया." "अरे अजीत कैसे हो भाई?जाय्न कर लिया?",डीसीपी वेर्मा वाहा आ गये थे. "यस सर.",दोनो ने उन्हे सलाम ठोंका. "तुम्हारी बीवी को जगह पसंद आई की नही?",डीसीपी साहब के सवाल पे दिव्या चौंकी..अजीत की शादी हो गयी!..चलो अच्छा ही हुआ,वरना उसे डर था कि कही अजीत फिर से पुराने रिश्ते को शुरू करने को ना बोले. "सर,डेवाले उसका मायका है.उसकी तो खुशी का ठिकाना ही नही है." "ये तो बहुत बढ़िया बात है.हम पोलिसेवालो का कोई फिक्स टाइम तो होता नही ड्यूटी का,ऐसे मे हमारे घरवाले सब से ज़्यादा परेशान होते हैं.अब उसका परिवार यहा है तो उसे दिल बहलाने को तो लोग मिल गये,अच्छा है." "जी,सर." "तुम दोनो मेरे कॅबिन मे आओ,ज़रा काम के सिलसिले मे बाते कर लें." डीसीपी वेर्मा अपने कॅबिन मे दाखिल हुए & उनके पीछे आगे बढ़ते अजीत ने कॅबिन का दरवाज़ा दिव्या के लिए थाम लिया & पहले उसे दाखिल होने का इशारा किया.अंदर दाखिल होते हुए दिव्या की कमर के नीचे उसकी गंद के बगल का हिस्सा दरवाज़ा थामे खड़े अजीत के लंड से छु गया & दोनो के जिस्मो मे सिहरन दौड़ गयी. वेर्मा साहब ने दिव्या को 1 फाइल थमायी & उसे अपनी डेस्क पे बैठने को कहा & अजीत को दूसरे कोने मे लगे सोफे पे बिठा कुच्छ समझाने लगे.दिव्या का दिल फाइल मे नही लग रहा था.लंड के एहसास से दिव्या के दिमाग़ मे 1 पल मे ही बीते दीनो की काई तस्वीरे तेज़ी से कौंध गयी थी....अजीत के लंड को चुस्ती वो..उसकी चूत मे लंड को उतारे उसे चूमता अजीत..उसके उपर सवार अपने झड़ने की ओर बढ़ते अजीत का चेहरा..झड़ने के बाद उसके चौड़े सीने पे सर टिकाए उसके सिकुदे लंड से खेलती वो....दिव्या ने फाइल पे नज़रे गढ़ा दी..इसीलिए उसे अजीत का यहा आना नागवार गुज़रा था. "ओके,अजीत." "ओके,सर.",अजीत ने सलाम ठोंका & वाहा से निकल गया....दिव्या तो और दिलकश हो गयी थी..उसके बदन का एहसास उसकी खुश्बू और नशीले....उसने अपने कॅबिन की ओर बढ़ते हुए सबकी नज़र बचा पॅंट के अंदर कुलबुलाते लंड को हाथ से दबाके शांत किया....सच तो ये था कि बस दरवाज़े पे उस एक पल के एहसास ने अजीत के दिल मे वोही पुरानी आग भड़का दी थी.उसे बुरा लग रहा था कि एक खूबसूरत बीवी के होते हुए वो ऐसा सोच रहा है.उसने तो यही सोच के शादी की थी कि अब दिव्या की उसकी ज़िंदगी मे ना कोई जगह है ना कोई अहमियत मगर वो ग़लत था.दिव्या की चाह एक ज्वालामुखी थी जो इतने दीनो से सोई थी & आज फिर जाग चुकी थी मगर उसे डर था कि कही इस ज्वालामुखी से फूटने वाला लावा कही उसकी शादी को खाक ना कर्दे. "फाइल पढ़ ली तुमने?" "यस सिर.",दिव्या ने फाइल मेज़ पे रखी,"..लेकिन ये तो एक सिंपल डकोइटी का केस है & जिस इलाक़े मे हुई है वाहा का इनस्पेक्टर तो ये केस देख रहा था फिर क्राइम ब्रांच को ये केस लेने की क्या ज़रूरत थी?" "यही तुम्हे प्रोफेसर के साथ पता लगाना है.",डीसीपी वेर्मा मुस्कुराए. "मैं समझी नही,सर.",दिव्या के माथे पे शिकन पड़ गयी.वेर्मा साहब कुच्छ कहते उस से पहले ही दरवाज़े पे दस्तक पड़ी & प्रोफ.अजिंक्या दीक्षित मुस्कुराता हुआ दाखिल हुआ. "हेलो,प्रोफेसर.",दोनो ने हाथ मिलाया,"जाओ दिव्या प्रोफेसर के साथ काम शुरू करो." "हेलो,दिव्या जी.",प्रोफेसर ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो दिव्या ने उसे मिला लिया.प्रोफेसर का बड़ा सा सख़्त हाथ उसके हाथ को हल्के से सहला के वापस उसकी पॅंट की जेब मे चला गया. साला..थर्कि!..दिव्या ने मन ही मन प्रोफेसर को कोसा & दोनो उसकी जीप मे बैठ वाहा से निकल पड़े. "दिव्या जी,आपने मेरी कोई किताब पढ़ी है?" "जी नही."दिव्या ने झूठ बोला.उसने प्रोफेसर की काफ़ी किताबें पढ़ी थी & उसे उन्हे पढ़ने मे बहुत मज़ा भी आया था. "सो सॅड!मैं आपको दूँगा फिर आप पढ़के बताईएएगा की कैसी हैं." "थॅंक्स बट नो थॅंक्स,प्रोफेसर लेकिन मेरे पास वक़्त नही है.",दिव्या की काले चसमे से ढँकी आँखे तो प्रोफेसर देख नही सकता था मगर उसकी आवाज़ की तल्खी उस से छुपि नही थी या फिर छुपि थी क्यूकी वो चुप ही नही हुआ! "क्या?!वक़्त नही है!लेकिन आप तो अभी कुँवारी हैं & काम के बाद तो आपके पास वक़्त होगा ही.",दिव्या का गुस्से से भरा चेहरा प्रोफेसर की ओर घुमा,"..ओह आइ'म सॉरी.आपके जैसी हसीन लड़की का कोई ना कोई कद्रदान तो होगा & मुमकिन है की आपकी शामे उसके मुँह से अपनी तारीफ के कसीदे सुनने मे गुज़रती होगी....वैसे ठीक भी है,दिलबर की बाहे किसी किताब से कही ज़्यादा दिलचस्प होती हैं! दिव्या ने ज़ोर से ब्रेक लगाया..बड़ा बदतमीज़ इंसान है!1 पोलीस अफ़सर से ऐसे बात कर रहा है..,"प्रोफेसर,अपनी हद्द मत भूलिए.आप एक पोलीस अफ़सर से बात कर रहे हैं.",दिव्या का चेहरे गुस्से से तमतमा उठा था. "जोकि पूर्कशिष हुस्न की मालिका भी है!" "देखिए प्रोफेसर..",दिव्या ने अपना चश्मा उतारा & प्रोफेसर की ओर पूरा घूम गयी.उसकी बड़ी चूचियो के चलते शर्ट बिल्कुल कस गयी थी & लगता था मानो उसे फाड़ बाहर आना चाहती थी. "देख रहा हू.",प्रोफेसर ने मुस्कुराते हुए नज़रे नीचे कर दिव्या के सीने को देखा & फिर वापस उपर कर उसकी आँखो मे डाल दी. "मैं आपके साथ केवल डीसीपी साहब के ऑर्डर्स के चलते हू.आप भले ही उनके दोस्त हो..",प्रोफेसर की इस हरकत ने उसे गुस्से से पागल कर दिया था,"..लेकिन अगर आपने कभी भी अपनी हद्द पार करने की कोशिश की तो आपको बहुत पछताना पड़ेगा." "ओके,दिव्या जी..",प्रोफेसर वैसे ही मुस्कुरा रहा था,"..मैं हद्द के अंदर रह के आपके साथ काम करूँगा.",काम लफ्ज़ पे उसके ज़ोर देने से बात दोहरे मतलब वाली हो गयी थी.दिव्या समझ गयी की ये आदमी निहायत ही बदतमीज़ है लेकिन जब तक ये कोई ऐसी-वैसी हरकत ना करे वो इस से पीछा नही छुड़ा सकती थी.आँखो के कोने से उसे स्टियरिंग के पीछे रखी फाइल नज़र आई. "तो ये लीजिए..",उसने फाइल प्रोफेसर को थमायी,"..काम शुरू कीजिए & इसे पढ़िए." "ठीक है.अभी इसे ही पढ़ लेते हैं.",उसने 1 बार दिव्या के पूरे जिस्म को देखा & फिर फाइल मे डूब गया.जीप चलते दिव्या ने देखा की प्रोफेसर पूरी संजीदगी से फाइल पढ़ रहा था.फाइल पढ़ने के बाद उसने उसे डॅशबोर्ड पे रखा & अपनी बाई कोहनी को खिड़की पे टीका उस हाथ की मुट्ठी को ठुड्डी पे लगा बाहर देखने लगा..कोई इसे बताता क्यू नही कि ये खामोश कितना अच्छा लगता है..ऐसी शख्सियत का मलिक है कि लड़किया तो इस्पे 2 पल मे मर-मिटें मगर इसे बेहूदा बाते करने से फ़ुर्सत मिले तब तो! ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- "ऑश....!",महेश ने आह भरी.वो बिस्तर पे लेटा था & नीना उसके लंड के गिर्द अपने मोतियो के चॉकर को कस रही थी,"..आहह..!",महेश के चेहरे पे लकीरे खिच गयी.नीना ने दोनो हाथो से चॉकर के दोनो सिरो को पकड़ के हल्के से खींचा & महेश के लंड के सूपदे को अपने गुलाबी होंठो से लगा उसपे अपनी जीभ चला दी. "आज वो तुम्हे हाँ कहेगा.",नीना ने उसके लंड को चूस्ते हुए उसे देखा. "अच्छा....आआहह....!",उसने नीना का सर पकड़ लिया मगर नीना नही रुकी.चॉकर थोडा और कस उसने सूपदे को चूस लिया,"..अपने भाई को धोखा देने का अफ़सोस अब नही हो रहा उसको?" "नही.मैने समझा दिया उसे." "बस 1 बार वो बद्डल से जीत जाए फिर देखना.",उसने नीना के बाल खींच उसे लंड से अलग किया.नीना घुटनो पे बैठ गयी & उसे देख शोखी से मुस्कुराने लगी.उसके गले मे महेश का दिया हीरो का हार चमक रहा था. "क्या?",नीना उसकी टाँगो पे बैठ गयी & दाई टांग उठा अपना पाँव उसके सीने पे जमा दिया.उसके पैरो मे अभी भी हाइ हील्स थे & हील की नोक महेश के सीने मे चुभ रही थी.नीना थोडा आगे हुई & उसके आधे लंड को अपनी चूत मे ले लिया.लंड पे अभी भी उसकी जड़ के गिर्द उसका चॉकर बँधा था.अपने हाथ पीछे ले जा उसने महेश की टाँगो पे टिकाए & बहुत हल्के-2 अपनी कमर उपर-नीचे करने लगी. "याहह....!",दर्द & मस्ती के मिले-जुले एहसास ने महेश को पागल कर दिया था.वो नीचे से कमर उचका अपने पूरे लंड को नीना की संकरी चूत मे घुसाना चाहता था मगर वो मोतियो की माला उसे रोक रही थी,"..बद्डल की जीत हमारी पहली सीढ़ी होगी & उसके बाद हम धीरे-2 अपने पाँव पसारेंगे....डार्लिंग,इस माला को हटा लो..",नीना ने उसके माला को हटाते हाथ को पकड़ लिया था. "पहले अपनी बात पूरी करो.",अब तड़पाने की बारी नीना की थी & उसे बहुत मज़ा आ रहा था.उसने चुदाई की रफ़्तार और धीमी कर दी थी & बस अपनी चूत की मांसपेशियो को सिकोड महेश के लंड को उनसे दबा उसे बावला कर रही थी. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- क्रमशः..........

KHEL KHILADI KA paart--10

gataank se aage.............. "ye hai tumhare layak.",vo 1 baar fir nina ke upar let gaya tha & uske gale me 1 heero ka haar daal raha tha. "ohh..mahesh..!",iske aage nina kuchh bol na payi kyuki uske & mahesh ke honth sil gaye the & mahesh uski choochiyo ko dabata bahut gehre dhakke laga raha tha.dono premiyo ka josh ab saatve aasmaan pe tha.nina apne hath kabhi peechhe le ja mahesh ke baalo ko,uske chehre ko pakad sehlane ki koshish karti to kabhi vo apni chut me ho rahi kasmasahat se pareshan ho bistar ki chadar ko bhinch leti.uski aahe nahi sunai de rahi thi kyuki vo & mahesh 1 dusre ko chum rahe the.tabhi nina ka jism jaise akad gaya & usne apna upri jism bistar se utha liya & tange bhi ghutno se peechee mod li,uske upar savar mahesh jhatke khata uchhal raha tha.dono ki hasrat puri ho gayi thi-dono 1 sath jhad gaye the. ------------------------------
---------------------------------------------------------------------------------------------- zindagi me shayad pehli baar divya ka daftra jane ka dil nahi kar raha tha.vo jeep se utri & crime branch ke daftar ki seedhiya chadhne lagi....uska man pareshan tha ki vo Ajit ke rehte & Professor dixit ke sath kaam karegi to kaise!uska daftar dusri manzil pe tha & vo seedhiya chadh rahi thi.sath ki deewaro pe tamga jitne vale afsaro ki tasveere lagi thi jinhe dekhte divya thithak gayi,ye uski tasvir thi jo ki kuchh mahine pehle lagayi gayi thi jab rajya ke governer se use bahaduri ka tamga mila tha....vo jab kisi gunde,badmash se nahi dari to ab in 2 logo se use kya pareshani ho rahi hai....DCP Verma ne thik kaha tha har baat insan ke pasand ki nahi hoti & agar is daur se vo nikal gayi to uski shakhsiyat hi nikhergi nuksan kuchh nahi hoga.muqable se peechhe hatna divya ne seekha nahi tha & uska vo jazba laut aya tha. apne cabin ki or jate galiyare ke aakhir me divya ko ajit khada dikha.usne bhi use dekha & halke se muskuraya.divya bhi vaise hi muskurayi,"hello,divya.",vo uske paas aaya. "hi!ajit.kaise ho?" "badhiya." "are ajit kaise ho bhai?join kar liya?",DCP Verma vaha aa gaye the. "yes sir.",dono ne unhe salam thonka. "tumhari biwi ko jagah pasand aayi ki nahi?",DCP sahab ke sawal pe divya chaunki..ajit ki shadi ho gayi!..chalo achha hi hua,varna use dar tyha ki kahi ajit fir se purane rishte ko shuru karne ko na bole. "sir,Devalay uska mayka hai.uski to khushi ka thikana hi nahi hai." "ye to bahut badhiya baat hai.hum policevalo ka koi fix time to hota nahi duty ka,aise me humare gharwale sab se zyada pareshan hote hain.ab uska parivar yaha hai to use dil behlane ko to log mil gaye,achha hai." "ji,sir." "tum dono mere cabin me aao,zara kaam ke silsile me baate kar len." DCP Verma apne cabin me dakhil hue & unke peechhe aage badhte Ajit ne cabin ka darwaza Divya ke liye tham liya & pehle use dakhil hone ka ishara kiya.andar dakhil hote hue divya ki kamar ke neeche uski gand ke bagal ka hissa darwaza thame khade ajit ke lund se chhu gaya & dono ke jismo me sihran daud gayi. verma sahab ne divya ko 1 file thamayi & use apni desk pe baitne ko kaha & ajit ko dusre kone me lage sofe pe bitha kuchh samjhane lage.divya ka dil file me nahi lag raha tha.lund ke ehsas se divya ke dimagh me 1 pal me hi beete dino ki kayi tasveere tezi se kaundh gayi thi....ajit ke lund ko chusti vo..uski chut me lund ko utare use chumta ajit..uske upar savar apne jhadne ki or badhte ajit ka chehra..jhadne ke baad uske chaude seene pe sar tikaye uske sikude lund se khelti vo....divya ne file pe nazre gada di..isiliye use ajit ka yaha aana nagvar guzra tha. "ok,ajit." "ok,sir.",ajit ne salma thonka & vaha se nikal gaya....divya to aur dilkash ho gayi thi..uske badan ka ehsas uski khushbu aur nashile....usne apne cabin ki or badhte hue sabki nazar bacha pant ke andar kulbulate lund ko hath se dabake shant kiya....sach to ye tha ki bas darwaze pe us 1 pal ke ehsas ne ajit ke dil me vohi purani aag bhadka di thi.use bura lag raha tha ki 1 khubsurat biwi ke hote hue vo aisa soch raha hai.usne to yehi soch ke shadi ki thi ki ab divya ki uski zindagi me na koi jagah hai na koi ahmiyat magar vo galat tha.divya ki chah 1 jwalamukhi thi jo itne dino se soyi thi & aaj fir jaag chuki thi magar use darr tha ki kahi is jwalamukhi se phootne vala lava kahi uski shadi ko khak na karde. "file padh li tumne?" "yes sir.",divya ne file mez pe rakhi,"..lekin ye to 1 simple dacoity ka case hai & jis ilake me hui hai vaha ka inspector to ye case dekh raha tha fir crime branch ko ye case lene ki kya zarurat thi?" "yehi tumhe Professor ke sath pata lagana hai.",DCP verma muskuraye. "main samjhi nahi,sir.",divya ke mathe pe shikan pad gayi.verma sahab kuchh kehte us se pehle hi darvaze pe dastak padi & Prof.Ajinkya Dixit muskurata hua dakhil hua. "hello,professor.",dono ne hath milaya,"jao divya professor ke sath kaam shuru karo." "hello,divya ji.",professor ne apna hath aage badhaya to divya ne use mila liya.professor ka bada sa sakht hath uske hath ko halke se sehla ke vapas uski pant ki jeb me chala gaya. sala..tharki!..divya ne man hi man professor ko kosa & dono uski jeep me baith vaha se nikal pade. "divya ji,aapne meri koi kitab padhi hai?" "ji nahi."divya ne jhuth bola.usne professor ki kafi kitaben padhi thi & use unhe padhne me bahut maza bhi aya tha. "so sad!main aapko dunga fir aap padhke bataiyega ki kaisi hain." "thanx but no thanx,professor lekin mere paas waqt nahi hai.",divya ki kale chsme se dhanki aankhe to professor dekh nahi sakta tha magar uski aavaz ki talkhi us se chhupi nahi thi ya fir chhupi thi kyuki vo chup hi nahi hua! "kya?!waqt nahi hai!lekin aap to abhi kunwari hain & kaam ke baad to aapke paas waqt hoga hi.",divya ka gusse se bhara chehra professor ki or ghuma,"..oh i'm sorry.aapke jaisi haseen ladki ka koi na koi kadradan to hoga & mumkin hai ki aapki shame uske munh se apni tarif ke kaside sunane me guzarti hogi....vaise thik bhi hai,dilbar ki baahe kisi kitab se kahi zyada dilchasp hoti hain! divya ne zor se brake lagaya..bada badtamiz insan hai!1 police afsar se aise baat kar raha hai..,"professor,apni hadd mat bhliye.aap 1 police afsar se baat kar rahe hain.",divya ka chehre gusse se tamtama utha tha. "joki purkashish husn ki malika bhi hai!" "dekhiye professor..",divya ne apna chashma utara & professor ki or pura ghum gayi.uski badi chhatiyo ke chalte shirt bilkul kas gayi thi & lagta tha mano use phad bahar aana chahti thi. "dekh raha hu.",professor ne muskurate hue nazre neeche kar divya ke seene ko dekha & fir vapas upar kar uski aankho me daal di. "main aapke sath keval DCP sahab ke orders ke chalte hu.aap bhale hi unke dost ho..",professor ki is harkat ne use gusse se pagal kar diya tha,"..lekin agar aapne kabhi bhi apni hadd paar karne ki koshish ki to aapko bahut pachhtana padega." "ok,divya ji..",professor vaise hi muskura raha tha,"..main hadd ke andar reh ke aapke sath kaam karunga.",kaam lafz pe uske zor dene se baat dohre matlab vali ho gayi thi.divya samajh gayi ki ye aadmi nihayat hi badtamiz hai lekin jab tak ye koi aisi-vaisi harkat na kare vo is se peechha nahi chhuda sakti thi.aankho ke kone se use steering ke peechhe rakhi file nazar aayi. "to ye lijiye..",usne file professor ko thamayi,"..kaam shuru kijiye & ise padhiye." "thik hai.abhi ise hi padh lete hain.",usne 1 baar divya ke pure jism ko dekha & fir file me doob gaya.jeep chalate divya ne dekha ki professor puri sanjidagi se file padh raha tha.file padhne ke baad usne sue dashboard pe rakha & apni bayi kohni ko khidki pe tika us hath ki mutthi ko thuddi pe laga bahar dekhne laga..koi ise batata kyu nahi ki ye khamosh kitna achha lagta hai..aisi shakhsiyat ka malik hai ki ladkiya to ispe 2 pal me mar-miten magar ise behuda baate karne se fursat mile tab to! ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- "ohhhh....!",Mahesh ne aah bhari.vo bistar pe leta tha & nina uske lund ke gird apne motiyo ke choker ko kas rahi thi,"..aahhhh..!",mahesh ke chehre pe lakire khich gayi.nina ne dono hatho se choker ke dono siro ko pakad ke halke se khincha & mahesh ke lund ke supade ko apne gulabi hotho se laga uspe apni jibh chala di. "aaj vo tumhe haan kahega.",nina ne uske lund ko chuste hue use dekha. "achha....aaaahhhhh....!",usne nina ka sar pakad liya magar nina nahi ruki.choker thoda aur kas usne supade ko chus liya,"..apne bhai ko dhokha dene ka afsos ab nahi ho raha usko?" "nahi.maine samjha diya use." "bas 1 baar vo Baddal se jeet jaye fir dekhna.",usne nina ke baal khinch use lund se alag kiya.nina ghutno pe baith gayi & use dekh shokhi se muskurane lagi.uske gale me mahesh ka diya heero ka haar chamak raha tha. "kya?",nina uski tango pe baith gayi & dayi tang utha apna panv uske seene pe jama diya.uske pairo me abhi bhi high heels the & heel ki nok mahesh ke seene me chubh rahi thi.nina thoda aage hui & uske aadhe lund ko apni chut me le liya.lund pe abhi bhi uski jad ke gird uska choker bandha tha.apne hath peechhe le ja usne mahesh ki tango pe tikaye & bahut halke-2 apni kamar upar-neeche karne lagi. "yaahhhhh....!",dard & masti ke mile-jule ehsas ne mahesh ko pagal kar diya tha.vo neeche se kamar uchka apne pure lund ko nina ki sankri chut me ghusana chahta tha magar vo motiyo ki mala use rok rahi thi,"..baddal ki jeet humari pehli seedhi hogi & uske baad hum dheere-2 apne panv pasarenge....darling,is mala ko hata lo..",nina ne uske mala ko hatate hath ko pakad liya tha. "pehle apni baat puri karo.",ab tadpane ki bari nina ki thi & use bahut maza aa raha tha.usne chudai ki raftar aur dhimi kar di thi & bas apni chut ki manspeshiyo ko sikod mahesh ke lund ko unse daba use bawla kar rahi thi. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- क्रमशः...........







आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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Posted By .....raj..... to Kamuk Kahaniyan.Com कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम at 11/03/2010 05:16:00 AM


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