Friday, December 17, 2010

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मजदूर नेता पार्ट--1



हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मजदूर नेता पार्ट--1

मेरा नाम अंजलि सिंग है. मैं एक शादी शुदा महिला हूँ. गुजरात मे सूरत के पास एक टेक्सटाइल इंडस्ट्री मे हज़्बेंड मिस्टर. ब्रिजभूषण सिंग ( वी कॉल हिम ब्रिज) इंजिनियर के पोस्ट मे काम करते हैं. उनके टेक्सटाइल मिल मे हमेशा लेबर प्राब्लम रहती है.

मजदूरों का नेता भोगी भाई बहुत ही काइयां टाइप का आदमी है. ऑफीसर लोगों को उस आदमी को हमेशा पटा कर रखना पड़ता है. मेरे पति की उस से बहुत पट ती थी. मुझे उनकी दोस्ती फूटी आँख भी नहीं सुहाति थी. शादी के बाद मैं जब नयी नयी आई थी वह पति के साथ अक्सर आने लगा. उसकी आँखें मेरी बदन पर फिरती रहती थी. मेरा बदन वैसे भी काफ़ी सेक्सी था. वह पूरे बदन पर नज़रें फेरता रहता था. ऐसा लगता था मानो वह कल्पना में मुझे नंगा कर रहा हो. शादी के बाद मुझे किसी को यह बताने के बाद बहुत शर्म आती थी. फिर भी मैने ब्रिज को समझाया कि ऐसे आदमियों से दोस्ती छ्चोड़ दे मगर वह तर्क देता था कि प्राइवेट कंपनी मे नौकरी करने पर थोड़ा बहुत ऐसे लोगों से बना कर रखना पड़ता ही है.

उनके तर्क के आगे मैं चुप हो जाती थी. मैने कहा भी कि वह आदमी मुझे बुरी नज़रों से घूरता रहता है. मगर वो मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं देते थे. भोगी भाई कोई 45 साल का भैसे की तरह काला आदमी था. उसका काम हर वक़्त कोई ना कोई खुराफात करना रहता था. उसकी पहुँच उपर तक थी. उसका दबदबा आस पास के कई कंपनी मे चलता था.

बाजार के नुक्कड़ पर उसकी कोठी थी जिसमे वो अकेला ही रहता था. कोई फॅमिली नहीं थी मगर लोग बताते हैं कि वो बहुत ही रंगीला आदमी है और अक्सर उसके घर मे लड़कियाँ भेजी जाती थी. हर वक़्त कई चम्चो से घिरा रहता था. वो सब देखने मे गुण्डों से लगते थे. सूरत और इसके आसपास काफ़ी टेक्सटाइल के छ्होटे मोटे फॅक्टरीस हैं. इन सब मे भोगी भाई की आग्या के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. उसकी पहुँच यहाँ के एमएलए से भी ज़्यादा है.

ब्रिज के सामने ही कई बार मेरे साथ गंदे मज़ाक भी करता था. मैं गुस्से से लाल हो जाती थी मगर ब्रिज हंस कर टाल देता था. बाद मे मेरे शिकायत करने पर मुझे बाहों मे लेकर मेरे होंठों को चूम कर कहता,

"अंजू तुम हो ही ऐसी कि किसी का भी मन डोल जाए तुम पर. अगर कोई तुम्हें देख कर ही खुश हो जाता हो तो हमे क्या फ़र्क़ पड़ता है." घर के मैन डोर की च्चितकनी मे कोई नुखस था. दरवाजे को ज़ोर से धक्का देने पर च्चितकनी अपने आप गिर जाती थी.

होली से दो दिन पहले एक दिन पहले किसी काम से भोगी भाई हमारे घर पहुँचा. दिन का वक़्त था. मैं उस समय बात रूम मे नहा रही थी. बाहर से काफ़ी आवाज़ लगाने पर भी मुझे सुनाई नहीं दिया था. शायद उसने घंटी भी बजाई होगी मगर अंदर पानी की आवाज़ मे मुझे कुच्छ भी सुनाई नहीं दिया.

मैं अपने धुन मे गुनगुनाती हुई नहा रही थी. उसने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजे की च्चितकनी गिर गयी और दरवाजा खुल गया. भोगी भाई ने बाहर से आवाज़ लगाई मगर कोई जवाब ना पाकर दरवाजा खोल कर झाँका. कमरा खाली पाकर वह अंदर प्रवेश कर गया. उसे शायद बाथरूम से पानी गिरने की एवं मेरे गुनगुनाने की आवाज़ आई तो पहले तो वह वापस जाने के लिए मुड़ा मगर फिर कुच्छ सोच कर धीरे से दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया. और मूड कर बेड रूम मे प्रवेश कर गया.

मैने पूरे घर मे अकेले होने के कारण कपड़े बाहर बेड पर ही रख रखे थे. उन पर उसकी नज़र पड़ते ही आँखों मे चमक आगयी. उसने सारे कपड़े समेट कर अपने पास रख लिए. मैं इन सब से अंजान गुनगुनाती हुई नहा रही थी. नहाना ख़त्म कर के बदन तौलिए से पोंच्छ कर पूरी तरह नग्न बाहर निकली. वो दरवाजे के पीछे च्छूपा हुआ था इसलिए उसपर नज़र नहीं पड़ी. मैने पहले ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने हुस्न को निहारा. फिर बदन पर पाउडर च्चिड़क कर कपड़ों की तरफ़ हाथ बढ़ाए. मगर कपड़ों को बिस्तर पर ना पाकर चोंक गयी. तभी दरवाजे के पीछे से भोगी भाई लपक कर मेरे पीछे आया और मेरे नग्न बदन को अपनी बाहों की गिरफ़्त में ले लिया.

मैं एक दम सकते मे अगयी. समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या करें. उसके हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. मेरे एक निपल को अपने मुँह मे ले लिया और दूसरे को हाथों से मसल रहा था. एक हाथ मेरी योनि पर फिर रहे थे. अचानक उसकी दो उंगलिया मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी. मैं एकदम से चिहुनक उठी और उसे एक ज़ोर से झटका दिया और उसकी बाहों से निकल गयी. मैं चीखते हुए मैं डोर की तरफ दौड़ी मगर कुण्डी खोलने से पहले फिर उसकी गिरफ़्त मे अगयी. वो मेरे स्तनों को बुरी तरह मसल रहा था.

"छ्चोड़ कमीने नहीं तो मैं शोर मचाउन्गि" मैने चीखते हुए कहा. तभी हाथ चितकनी तक पहुँच गये. और दरवाजा खोल दिया. मेरे इस हरकत की उसे शायद उम्मीद नहीं थी. मैने एक जोरदार झापड़ उसके गाल पर लगाया और अपने नग्न हालत की परवाह ना करते हुए मैने दरवाजे को खोल दिया. शेरनी की तरह चीखी,

"निकल जा मेरे घर से." और उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया. उसकी हालत चोट खाए शेर की तरह हो रही थी. चेहरा गुस्से से लाल सुर्ख हो रहा था. उसने फुन्फ्कार्ते हुए कहा,

"साली बड़ी सती सावित्री बन रही है. अगर तू झे अपने नीचे ना लिटाया तो मेरा नाम भी भोगी भाई नहीं. देखना एक दिन तू आएगी मेरे पास मेरे लंड को लेने. उस समय अगर तुझे अपने इस लिंग पर ना कूदवाया तो देखना. मैने भड़क से उस के मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया. मैं वहीं दरवाजे से लग कर रोने लगी.

शाम को जब ब्रिज आया तो उसपर भी फट पड़ी. मैने उसे सारी बात बताई और ऐसे दोस्त रखने के लिए उसे भी खूब खरी खोटी सुनाई. पहले तो ब्रिज ने मुझे मनाने की काफ़ी कोशिश की. कहा कि ऐसे बुरे आदमी से क्या मुँह लगना. मगर मैं तो आज उसकी बातों मे आने वाली नहीं थी. आख़िर वो उस से भिड़ने निकला. भोगी भाई से झगड़ा करने पर भोगी भाई ने भी खूब गलियाँ दी. उसने कहा,

"तेरी बीवी नंगी होकर दरवाजा खोल कर नहाए तो इसमे सामने वाले की क्या ग़लती है. अगर इतनी ही सती सावित्री है तो बोला कर कि बुर्क़े में रहे." उसके आदमियों ने धक्के देकर ब्रिज को बाहर निकाल दिया. पोलीस मे कंप्लेन लिखने गये मगर पोलीस ने कंप्लेन लिखने से मना कर दिया. सब उससे घबराते थे. खैर खून का घूँट पीकर चुप हो जाना पड़ा. बदनामी का भी डर था. और ब्रिज की नौकरी का भी सवाल था. धीरे धीरे समय गुजरने लगा. चौराहे पर अक्सर भोगी भाई अपने चेले चपाटों के साथ बैठा रहता था मैं कभी वहाँ से गुजरती तो मुझे देख कर अपने साथियों से कहता.

"ब्रिज की बीवी बड़ी कंटीली चीज़ है. उसकी छतियो को मसल मसल कर मैने लाल कर दिया था. चूत मे भी उंगली डाली थी. नहीं मानते हो तो पूछ लो." "क्यों अंजलि याद है ना मेरे हाथों का स्पर्श" "कब आ रही है मेरे बिस्तर पर"

मैं ये सब सुन कर चुपचाप सिर झुकाए वहाँ से गुजर जाती थी. दो महीने बाद की बात है. अचानक शाम को ब्रिज के फॅक्टरी से फोन आया,

"मेडम, आप मिस. सिंग बोल रही हैं?"

"हां बोलिए" मैने कहा.

" मेडम पोलीस फॅक्टरी आई थी और सिंग साहब को गिरेफ्टार कर ले गयी."

"क्या? क्यों?" मेरी समझ मे ही नहीं आया की सामने वाला क्या बोल रहा है.

"मेडम कुच्छ ठीक से समझ मे नहीं आरहा है. आप तुरंत यहाँ आजाईए." मैं जैसी थी वैसी ही दौरी गयी ब्रिज के ऑफीस. मे एक सूती की साडी पहनी हुई थी.

वहाँ के मालिक कामदार साहब से मिली तो उन्हों ने बताया कि दो दिन पहले उनके फॅक्टरी मे कोई आक्सिडेंट हुआ था जिसे पोलीस मर्डर का केस बना कर ब्रिज के खिलाफ चार्जेशेट दायर कर दी थी. मैं एकदम चकित रह गयी. ऐसा कुच्छ भी नहीं हुआ था.

"लेकिन आप तो जानते हैं कि ब्रिज ऐसा आदमी नहीं है. वो आपके के पास पिच्छले कई सालों से काम कर रहा है. कभी आपको उनके खिलाफ कोई भी शिकायत मिली है क्या." मैने मिस्टर. कामदार से पूचछा.

" देखिए म्र्स. सिंग मैं भी जानता हूँ कि इसमे ब्रिज का कोई भी हाथ नहीं है मगर मैं कुच्छ भी कहने मे असमर्थ हूँ."

" आख़िर क्यों?"

" क्योंकि उसका एक चस्मदीद गवाह है. भोगी भाई" मेरे सिर पर जैसे बम फट पड़ा मेरी आँखों के सामने सारी बातें सॉफ होती चली गयी.

" वो कहता है की उसने ब्रिज को जान बूझ कर उस आदमी को मशीन मे धक्का देते देखा था."

"ये साब सारा सर झूठ है वो कमीना जान बूझ कर ब्रिज को फँसा रहा है." मैने लगभग रोते हुए कहा.

" देखिए मुझे आपसे हमदर्दी है मगर मैं आपको कोई भी मदद नहीं कर पा रहा हूँ. इनस्पेक्टर गवलेकर का भी भोगी भाई से अच्छी दोस्ती है. सारे वर्कर्स ब्रिज के खिलाफ हो रहे हैं. मेरी मानो तो आप भोगी भाई से मिल लो वो अगर अपना बयान बदल ले तो ही ब्रिज बच सकता है."

"थूकती हूँ मैं उस कमीने पर" कहकर मैं वहाँ से पैर पटकती हुई निकल गयी. मगर मेरे समझ मे नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ. मैं पोलीस स्टेशन पहुँची. वहाँ काफ़ी देर बाद ब्रिज से मिलने दिया गया. उसकी हालत देख कर तो मुझे रोना आ गया. बाल बिखरे हुए थे. आँखों के नीचे कुच्छ सूजन थी शायद पोलीस वालों ने मारपीट भी की होगी. मैने उस से बात करने की कोशिश की मगर वो कुच्छ ज़्यादा नहीं बोल पाया. उसने बस इतना ही कहा,

" अब कुच्छ नहीं हो सकता. अब तो भोगी भाई ही कुच्छ कर सकता है." मुझे किसी ओर से आशा की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही थी. आख़िर कर मैने भोगी भाई से मिलने का निर्णय किया. शायद उसे मुझ पर रहम अजाए. शाम के लगभग आठ बज गये थे. मैं भोगी भाई के घर पहुँची. गेट पर दरवान ने रोका तो मैने कहा,

"साहब को कहना म्र्स. सिंग आई हैं." गार्ड अंदर चला गया. कुच्छ देर बाद बाहर आकर कहा,

"अभी साहब अभी बिज़ी हैं कुच्छ देर इंतेज़ार कीजिए." पंद्रह मिनिट बाद मुझे अंदर जाने दिया. मकान काफ़ी बड़ा था. अंदर ड्रॉयिंग रूम मे भोगी भाई दीवान पर आधा लेटा हुआ था. उसके तीन चम्चे कुर्सियों पर बैठे हुए थे. सबके हाथों मे शराब के ग्लास थे. सामने टेबल पर एक बॉटल खुली हुई थी. मैने कमरे की हालत देखते हुए झिझक्ति हुई अंदर प्रवेश किया.

"आ बैठ." भोगी भाई ने अपने सामने एक खाली कुर्सी की तरफ इशारा किया.

" वो वो मैं आपसे ब्रिज के बारे में बात करना चाहती थी." मैं जल्दी वाहा से भागना चाहती थी.

" ये अपने सुदर्शन कपड़ा मिल के इंजिनियर की बीवी है. बड़ी सेक्सी चीज़ है." उसने अपने ग्लास से एक घूँट लेते हुए कहा. सारे मुझे वासना भरी नज़रों से देखने लगे. उनकी आँखों मे लाल डोरे तेर रहे थे.

"हाँ बोल क्या चाहिए?"

" ब्रिज ने कुच्छ भी नहीं किया" मैने उससे मिन्नत की.

"मुझे मालूम है"

"पोलीस कहती हैं की आप अपना बयान बदल लेंगे तो वो छूट जाएँगे"

"क्यों? क्यों बदलू मैं अपना बयान?

"प्लीज़, हम पर?.."

"सड़ने दो साले को बीस साल जैल में. आया था मुझसे लड़ने."

"प्लीज़ आप ही एक मात्र आशा हो."

" लेकिन क्यूँ? क्यूँ बदलू मैं अपना बयान? मुझे क्या मिलेगा" भोगी भाई ने अपने मोटे जीभ पर होंठ फेरते हुए कहा.
क्रमशः.............

Majdoor Neta paart--1

Mera naam Anjali Singh hai. Mai ek shaadi shuda mahila hoon. Gujarat me Soorat ke paas ek Textile industry me husband Mr. Brijbhushan singh ( we call him Brij) engineer ke post me kaam karte hain. Unke textile mill me hamesha labour problem rahti hai.

Majdooron ka neta bhogi bhai bahut hi kaiyan type ka admi hai. Officer logon ko us aadmi ko hamesha pata kar rakhna padta hai. Mere pati ki us se bahut pat ti thi. Mujhe unki dosti futi aankh bhi nahin suhati thi. Shaadi ke baad mai jab nayi nayi aai thi wah pati ke saath aksar aane laga. Uski ankhen meri badan par firti rahti thi. Mera badan waise bhi kafi sexy tha. wah poore badan par najaren ferta rahta tha. Aisa lagta tha mano wah kalpana men mujhe nanga kar raha ho. Shaadi ke baad mujhe kisi ko yeh batane ke baad bahut sharm aati thi. Phir bhi maine Brij ko samjhaya ki aise admiyon se dosti chhod de magar wah tark deta tha ki private company me naukri karne par thoda bahut aise logon se bana kar rakhna padta hi hai.

Unke tark ke age main chup ho jati thi. Maine kaha bhi ki wah aadmi mujhe buri najron se ghoorta rahta hai. Magar wo meri baat par koi dhyaan nahin dete the. bhogi bhai koi 45 saal ka bhaise ki tarah kala admi tha. Uska kaam har waqt koi na koi khurafat karna rahta tha. Uski pahunch upar tak thi. Uska dabdaba aas paas ke kai company me chalta tha.

Bajar ke nukkad par uski kothi thi jisme wo akela hi rahta tha. Koi family nahin thi magar log bataate hain ki wo bahut hi rangeela aadmi hai aur aksar uske ghar me ladkiyan bheji jati thi. Har waqt kai chamchon se ghira rahta tha. Wo sab dekhne me gundon se lagte the. Soorat aur iske aspaas kafi textile ke chhote mote factories hain. In sab me bhogi bhai ki agya ke bina ek patta bhi nahin hilat tha. Uski pahunch yahan ke MLA se bhi jyada hai.

Brij ke samne hi kai baar mere saath gande majaak bhi karta tha. Mai gusse se lal ho jati thi magar Brij hans kar taal deta tha. Baad me mere shikayat karne par mujhe bahon me lekar mere honthon ko chom kar kahta,

"Anju tum ho hi aisi ki kisi ka bhi man dol jaye tum par. Agar koi tumhen dekh kar hi khush ho jata ho to hame kya farq padta hai." Ghar ke main door ki chhitkani me koi nukhs tha. Darwaaje ko jor se dhakka dene par chhitkani apne aap gir jaati thi.

Holi se do din pahle ek din pahle kisi kaam se bhogi bhai hamare ghar pahuncha. Din ka waqt tha. Mai us samay bath room me naha rahi thi. Bahar se kafi awaj lagane par bhi mujhe sunai nahin diya tha. Shayad usne ghanti bhi bajai hogi magar andar paani ki awaj me mujhe kuchh bhi sunai nahin diya.

Mai apne dhun me gungunati hui naha rahi thi. Usne darwaje ko halka sa dhakka diya to darwaje ki chhitkani gir gayee aur darwaaja khul gaya. bhogi bhai ne bahar se awaaj lagayee magar koi jawab na pakar darwaja khol kar jhanka. Kamra khali pakar wah andar pravesh kar gaya. Use shayad bathroom se pani girne ki evam mere gungunane ki awaj ayee to pahle to wah wapas jane ke liye muda magar fir kuchh soch kar dheere se darwaje ko andar se band kar liya. Aur mud kar bed room me pravesh kar gaya.

Maine poore ghar me akele hone ke karan kapde bahar bed par hi rakh rakhee thee. Un par uski najar padte hi aankhon me chamak aagyeee. Usne sare kapde samet kar apne paas rakh liye. Mai in saab se anjaan gungunati hui naha rahi thi. Naheana khatm kar ke badan tauliye se ponchh kar poori tarah nagn bahar nikli. Wo darwaje ke peechhe chhupa hua tha isliye uspar najar nahin padi. Maine pahle dressing table ke samne khade hokar apne husn ko nihara. Fir badan par powder chhidak kar kapdon ki tarf haath badhaye. Magar kapdon ko bistar par na pakar chonk gayee. Tabhi darwaaje ke peeche se bhogi bhai lapak kar mere peechhe aaya aur mere nagn badan ko apni bahon ki giraft men le liya.

Mai ek dum sakte me agayee. Samajh me nahin aaraha tha ki kya karen. Uske hath mere badan par fir rahe the. Mere ek nipple ko apne munh me le liya aur dosre ko hathon se masal raha tha. Ek haath meri yoni par fir rahe the. Achanak uski do ungliya meri yoni me pravesh kar gayee. Mai ekdum se chihunk uthi aur use ek jor se jhatka diya aur uski bahon se nikal gayee. Mai cheekhte hue main door ki taraf dauri magar kundi kholne se pahle fir uski giraft me agayee. Wo mere stanon ko buri tarah masal raha tha.

"chhod kameene nahin to mai shor machaungi" maine cheekhte huye kaha. Tabhi haath chitkani tak pahunch gaye. Aur darwaja khol diya. Mere is harkat ki use shayad ummid nahin thi. Maine ek jordaar jhapad uske gaal par lagaya aur apne nagn halat ki parwah na karte huye maine darwaje ko khol diya. Sherni ki tarah cheekhi,

"nikal ja mere ghar se." aur use dhakke mar kar ghar se nikaal diya. Uski halat chot khaaye sher ki tarah ho rahi thi. Chehra gusse se lal surkh ho raha tha. Usne funfkaarte huye kaha,

"saali badi sati savitri ban rahi hai. Agar tu jhe apne neeche na litaya to mera naam bhi bhogi bhai nahin. Dekhna ek din tu aayegi mere paas mere lund ko lene. Us samay agar tujhe apne is ling par na kudwaya to dekhna. Maine bhadak se us ke munh par darwaja band kar diya. Mai wahin darwaaje se lag kar rone lagi.

Shaam ko jab Brij aya to uspar bhi fat padi. Maine use saari baat batyee aur aise dost rakhne ke liye use bhi khub khari khoti sunai. Pahle to Brij ne mujhe manane ki kafi koshish ki. Kaha ki aise bure aadmi se kya munh lagna. Magar mai to aaj uski baton me aane wali nahin thi. Akhir wo us se bhidne nikala. bhogi bhai se jhagda karne par bhogi bhai ne bhi khub galiyan dee. Usne kaha,

"teri biwi nangi hokar darwaja khol kar nahaye to isme samne waale ki kya galti hai. Agar itni hi sati savitri hai to bola kar ki burke men rahe." Uske aadmiyon ne dhakke dekar Brij ko bahar nikal diya. Police me complain likhane gaye magar police ne complain likhne se mana kar diya. Sub usse ghabrate the. Khair khoon ka ghoont pikar chup ho jana pada. Badnaami ka bhi dar tha. Aur Brij ki naukri ka bhi sawaal tha. Dheere dheere samay gujarne laga. Chaurahe par aksar bhogi bhai apne chele chapaaton ke saath baitha rahta tha mai kabhi wahan se gujarti to mujhe dekh kar apne saathiyon se kahta.

"Brij ki biwi badi kanteeli cheej hai. Uski chhatiyon ko masal masal kar maine laal kar diya tha. Choot me bhi ungli daali thi. Nahin mante ho to pooch lo." "kyon Anjlirani yaad hai na mere hathon ka sparsh" "kab aa rahi hai mere bistar par"

mai ye sab sun kar chupchap sir jhukaye wahan se gujar jati thi. Do maheene baad ki baat hai. Achanak shaam ko Brij ke factory se phone aya,

"madam, aap mrs. Ssingh bol rahi hain?"

"haan boliye" maine kaha.

" madam police factory ayee thi aur Singh saahab ko gireftaar kar le gayee."

"kya? Kyon?" meri samajh me hi nahin aaya ki samne waala kya bol raha hai.

"madam kuchh thik se samajh me nahin aaraha hai. Aap turant yahaan aajaiye." Mai jaisi thi waisi hi dauri gayee Brij ke office. Mai ek suti ki sadi pahni hui thi.

Wahaan ke malik Kaamdaar sahab se mili to unhon ne bataya ki do din pahle unke factory me koi accident hua tha jise police murder ka case bana kar Brij ke khilaaf chargesheet dayar kar dee thi. Mai ekdum chakit rah gayee. Aisa kuchh bhi nahin hua tha.

"Lekin aap to jante hain ki Brij aisa aadmi nahin hai. Wo apke ke paas pichhle kai saalon se kaam kar raha hai. Kabhi apko unke khilaf koi bhi shikayat mili hai kya." Maine Mr. Kaamdaar se poochha.

" dekhiye Mrs. Sinngh mai bhi jaanta hoon ki isme Brij ka koi bhi haath nahin hai magar mai kuchh bhi kahne me asmarth hoon."

" Akhir kyon?"

" Kyonki uska ek chasmadeed gawah hai. bhogi bhai" mere sir par jaise bum fat pada meri aankhon ke saamne sari baten saaf hoti chali gayee.

" wo kahta hai ki usne Brij ko jaan boojh kar us aadmi ko machine me dhakka dete dekha tha."

"ye saab sara sar jhooth hai wo kameena jaan boojh kar Brij ko fansa raha hai." Maine lagbhag rote huye kaha.

" dekhiye mujhe aapse hamdardi hai magar mai aapko koi bhi madad nahin kar paa raha hoon. Inspector Gawlekar ka bhi bhogi bhai se achhi dosti hai. Saare workers Brij ke khilaf ho rahe hain. Meri mano to aap bhogi bhai se mil lo wo agar apna bayaan badal le to hi Brij bach sakta hai."

"thookti hoon mai us kameene par" kahkar mai wahan se pair patakti hui nikal gayee. Magar mere samajh me nahin aaraha tha ki mai kya karoon. Mai police station pahunchi. Wahan kaafi der baad Brij se milne diya gaya. Uski haalat dekh kar to mujhe rona aa gaya. Baal bikhare huye the. Yah kahaanee aap yahoo groups; deshiromance men padh rahe hain. Aankhon ke neeche kuchh soojan thi shayad police waalon ne maarpeet bhi ki hogi. Maine us se baat karne ki koshish kee magar wo kuchh jyada nahin bol paya. Usne bus itna hi kaha,

" Ab kuchh nahin ho sakta. Ab to bhogi bhai hi kuchh kar sakta hai." Mujhe kisi or se asha ki koi kiran nahin dikhayee de rahi thi. Aakhir kar maine bhogi bhai se milne ka nirnay kiya. Shayad use mujh par raham ajaye. Shaam ke lagbhag aath baj gaye the. Mai bhogi bhai ke ghar pahunchi. Gate par darwaan ne roka to maine kaha,

"sahab ko kahna Mrs. Singh ayee hain." Guard andar chala gaya. Kuchh der baad bahar akar kaha,

"abhi sahab abhi busy hain kuchh der intezaar kijiye." Pandrah minute baad mujhe andar jaane diya. Makaan kafi bada tha. Andar drawing room me bhogi bhai diwan par adha leta hua tha. Uske teen chamche kursiyon par baithe huye the. Sabke haathon me sharab ke glass the. Samne table par ek bottle khuli hui thi. Maine kamre ki halat dekhte hue jhijhkti hui andar pravesh kiya.

"aa baith." bhogi bhai ne apne samne ek khali kursi ki taraf ishara kiya.

" wo wo mai apse Brij ke bare men baat karna chahti thi." Mai jaldi waha se bhagna chahti thi.

" ye apne sudarshan kapda mill ke engineer ki biwi hai. Badi sexy cheej hai." Usne apne glass se ek ghoont lete huye kaha. Sare mujhe vasna bhari najron se dekhne lage. Unki ankhon me lal dore tair rahe the.

"han bol kya chaahiye?"

" Brij ne kuchh bhi nahin kiya" maine usse minnat ki.

"Mujhe maloom hai"

"police kahte hain ki aap apna bayan badal lenge to wo chhut jayenge"

"kyon? Kyon badloon mai apna bayan?

"please, hum pur?.."

"sadne do sale ko bees saal jail men. Aya tha mujhse ladne."

"please aap hi ek maatr asha ho."

" lekin kyoon? Kyoon badloon mai apna bayan? Mujhe kya milega" bhogi bhai ne apne mote jeebh par honth ferte huye kaha.
kramashah.............






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