FUN-MAZA-MASTI
भाभी के भाई से चुदवाया
भाभी के भाई से चुदवाया
राजीव मेरी भाभी के भाई थे मेरे भाई की जब शादी हुई तब में १४ साल की थी और भाभी के साथ उनके मायके जाया करती थी|जब मेरी ताजा ताजा जवानी आई थी और में देखा करती थी की राजीव की निगाहे अक्सरअक्सर मेरे पर लगी रहती थी | राजीव मोका देखा करते थे की किसी तरह वो मुझे छु ले और खासतोर पर एसे अंगो को सहलाले जो की जवान लड़की के खास होते हे |एक दिन राजीव ने मुझसे कहा की रेंनु आज रात को तुम मेरे कमरे में आना तुमसे कोई खास बात करनी हे|
> में समझ गयी की आज राजीव के मन में मेरी चूत का तिया पांचाकरने की जम गयी हे,में रात को राजीव के कमरे में गयी तो राजीव ने जाते ही मुझे बांहों में भर लिया|राजीव मुझे चूमने लगे और कहने लगे रेंनु आज में तुम्हे सेक्स के बारे में सिखाना चाहता हु \उन्होंने कहा जिस तरह तुम्हारे भाई ने मेरी बहन को चोदा हे वेसे ही में तुम्हे चोदना चाहता हु |उन्होंने कहा की में अपने कपडे उतारू और उन्हें अपनी चूत के दर्शन करूं|मेने सोचा अब मानेगे तो हे नहीं मेने अपने सारे कपडे उतर दिए और में बिलकुल नंगी हो गयी |में राजीव के सामने बेठ गयी इससे मेरी चूत के दोनों योनी पट (फांकें) थोड़े से खुल गए और अन्दर से गुलाबी रंग झलकने लगा। पाँव रोटी की तरह फूली रोम विहीन कमसिन चूत का रक्तिम चीरा तो 3 इंच से कत्तई बड़ा नहीं था। पतली पतली दो गहरे लाल रंग की खड़ी रेखाएं। ऊपर गुलाबी रंग की मदनमणि चने के दाने जितनी। पूरी चूत काम रस में डूबी हुयी ऐसे लग रही थी जैसे कोई शहद की कुप्पी हो और उसमें से शहद टपक रहो हो। अब तो वो रस बह कर मेरी दूसरे छिद्र को भी भिगो रहा था।
> अब राजीव ने अपने दोनों हाथों से मेरी चूत की मोटी मोटी संतरे जैसे गुलाबी फांकों को चोड़ा किया और फिर नीचे झुकते हुए अपने होंठ उन पर लगा दिए। मैं समझ गयी वो अब मेरी चूत को चाटना चाहता है। मेरा दिल उत्तेजना से धक् धक् करने लगा। मैंने अपनी जांघें जितनी चोड़ी हो सकती थी कर दी ताकि उसे मेरी चूत को चूसने में कोई दिक्कत ना हो
> अब उसने अपनी जीभ मेरी चूत की दरार पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चाटनी शुरू कर दी। कभी वो होले से उन फांकों को अपने दांतों से दबाता और कभी अपनी जीभ को नुकीला कर मदनमणि को चुभलाता। मेरी चूत तो कामरस छोड़ छोड़ का बावली हुयी जा रही थी। अब उसने मेरीचूत को पूरा अपने मुंह में भर लिया और एक जोर की चुस्की लगाई। मेरी मीठी सीत्कार निकल गयी। जिस अंग से वो खिलवाड़ कर रहा था और मुंह लगा कर यौवन का रस चूस रहा था किसी भी स्त्री के लिए सबसे अधिक संवेदनशील अंग होता है जिसके प्रति हर स्त्री सदैव सजग रहती है। पर इस छुवन और चूसने के आनंद के आगे किसी स्वर्ग का सुख भी कोई अर्थ नहीं रखता।
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> मेरी तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी। वो मेरी चूत को रस भरी कुल्फी की तरह चूसे जा रहा था। अब उसने मेरी मदनमणि के दाने को अपने दांतों के बीच दबा लिया। यह तो किसी भी युवा स्त्री का जादुई बटन होता है। मेरी तो किलकारी ही गूँज उठी पूरे कमरे में। अब उसने अपनी एक अंगुली मेरे रति द्वार के अन्दर डाल दी। पहले एक पोर डाला उसे थोड़ा सा अन्दर किया फिर घुमाया और फिर होले से थोड़ा अन्दर किया। मैं तो चाह रही थी की वह एक ही झटके में पूरी अंगुली अन्दर डाल कर अन्दर बाहर करे पर मैं भला उसे अपने मुंह से कैसे कह सकती थी। मैं तो मारे उत्तेजना और रोमांच के जैसे मदहोश ही हो रही थी। मुझे तो लग रहा था की मैं अपना नियंत्रण खो रही हूँ। मैंने कभी अपने पैर थोड़े उठाती कभी नीचे करती और कभी उसकी गरदन के दोनों और लपेट लेती। मेरे मुंह से विचित्र सी ध्वनि और आवाजें निकल रही थी आह… ओईईइ …... इस्स्स्सस्स्स …... ओह …... मेरे राजीव … अब बस करो नहीं तो मैं बेहोश हो जाउंगी… आह्ह्हह्ह।”
> अब उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और घुटनों के बल मेरी जाँघों के बीच बैठ गया। उसने मेरे पेट के नीचे एक तकिया लगा दिया और मेरी कमर पकड़ कर मेरे नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठा दिया। ओह अब तो मेरा सारा खज़ाना ही उसके सामने जैसे खुल सा गया था। दो गुदाज और मांसल नितम्ब, गहरी खाई और उनके बीच खुलता और सिकुड़ता स्वर्ग का दूसरा द्वार। उसके 1 इंच नीचे स्वर्ग गुफा का पहला द्वार जिसके लिए आदमी तो क्या देवता भी अपना संयम खो दें । रोम विहीन मोटी मोटी सूजी हुयी सी गुलाबी फांके और रक्तिम चीरे के बीच सुर्ख लाल रंग की कलिकाएँ किसी का भी मन डोल जाए । उसने अपने जलते और काम्पते होंठ उनपर लगा दिए। मेरी तो किलकारी ही निकल गई। उसने अपनी जीभ से उसे चाटा और फिर अपनी जीभ उस पर फिराने लगा। कभी फांकों पर कभी दरार पर और कभी उस छिद्र पर जिसे अब तक मैं केवल गन्दा ही समझ रही थी। अब तो यह छेद भी एक नए अनुभव के लिए आतुर सा हो चला था। कभी खुलता कभी बंद होता। मैंने भी अपनी चूत रानी का संकोचन करना शुरू कर दिया। उसकी आँखें तो बस उस छिद्र पर टिकी ही रह गई होंगी। आमतौर पर पर यह छिद्र काला पड़ जाता है पर मेरा तो अभी भी सुनहरे रंग का ही था और उसकी दरदरी सिलवटें तो ऐसी थी कि किसी के भी प्राण हर लें।रेनू के इस अनुभव के बाद आगे की बात बताने की जिम्मेवारी मेरी थी रेनू ने कहा आगे की बात आप शुरू करे |
> पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चुमते रहे। मैं कभी अपनी जीभ उसके मुंह में डाल देता और कभी वो अपनी नर्म रसीली जीभ मेरे मुंह में डाल देती। इस अनोखे स्वाद से हम दोनों पहली बार परिचित हुए थे वर्ना तो बस किताबों और कहानियों में ही पढ़ा था। वो मुझ से इस कदर लिपटी थी जैसे कोई बेल किसी पेड़ से लिपटी हो या फिर कोई बल खाती नागिन किसी चन्दन के पेड़ से लिपटी हो। मेरे हाथ कभी उसकी पीठ सहलाते कभी उसके नितम्ब। ओह … उसके खरबूजे जैसे गोल गोल कसे हुए गुदाज नितम्ब तो जैसे कहर ही ढा रहे थे। उसके उरोज तो मेरे सीने से लगे जैसे पिस ही रहे थे। मेरा (लंड) तो किसी अड़ियल घोड़े की तरह हिनहिना रहा था। मेरे हाथ अब उसकी पीठ सहला रहे थे। कोई 10 मिनिट तो हमनें ये चूसा चुसाई जरूर की होगी। फिर हम अपने होंठों पर जबान फेरते हुए अलग हुए।
> मेरे लिए तो यह स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था। अब मैंने दूसरे उरोज को अपने मुंह में भर लिया। वो कभी मेरी पीठ सहलाती कभी मेरे सिर के बालों को कस कर पकड़ लेती। मैं उसकी बढती उत्तेजना को अच्छी तरह महसूस कर रहा था। थोड़ी देर उरोज चूसने के बाद मैंने फिर उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया। चिनू ने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़े रखा। वो तो मुझसे ज्यादा उतावली लग रही थी। मैंने उसके होंठ, कपोल, गला, कान, नाक, उरोजों के बीच की घाटी कोई अंग नहीं छोड़ा जिसे ना चूमा हो। वो तो बस सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी। अब मैंने उसके पेट और नाभी को चूमना शुरू कर दिया। हम दोनों ने ही महसूस किया कि स्कर्ट कुछ अड़चन डाल रही है तो रेनू ने एक झटके में अपनी स्कर्ट निकाल फेंकी।
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> आह … अब तो वो मात्र एक पतली और छोटी सी पेंटी में थी। मैंने उसकी पेंटी के सिरे तक अपनी जीभ से उसे चाटा। आह… उसकी नाभी के नीचे थोड़ा सा उभरा हुआ पेडू तो किसी पर जैसे बिजलियाँ ही गिरा दे। और उसके नीचे पेंटी में फसी उसकी चूत के दोनों पपोटे तो रक्त संचार बढ़ने से फूल से गए थे। उनके बीच की खाई तो 2 इंच के व्यास में नीम गीली थी। मैंने उसके पेडू को चूम लिया। एक अनोखे रोमांच से उसका सारा शरीर कांपने लगा था। मेरे दोनों हाथ उसके उरोजों को दबा और सहला रहे थे। उत्तेजना के कारण वो भी कड़क हो गए थे। उसकी घुन्डियाँ तो इतनी शक्त हो चली थी जैसे की कोई मुंगफली का दाना ही हो। उसने मेरा सिर अपनी छाती से लगाकर कस लिया और अपने पैर जोर जोर से पटकने लगी। कई बार अधिक उत्तेजना में ऐसा ही होता है।
> अब उस पेंटी नाम की हलकी सी दीवार का क्या काम बचा था। आह… आगे से तो वो पूरी भीगी हुयी थी। पेंटी उसकी फूली हुयी फांकों के बीच में धंसी हुयी सी थी। दोनों पपोटे तो जैसे फूल कर पकोड़े से हो गए थे। मैंने धीरे से उसकी पेंटी के हुक खोल दिए और उसे नीचे खिसकाना शुरू किया। रेनू की एक कामुक सीत्कार निकल गई।
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> अब तो बस दिल्ली क्या पूरी भारत सरकार ही लुट जाने को तैयार थी। मैंने धीरे धीरे उसकी पेंटी को नीचे खिसकाना शुरू कर दिया। उसने अपनी जांघें कस कर भींच ली। पहले हलके हलके रोयें से नज़र आये। आह... रेशमी मखमली घुंघराले बालों का झुरमुट तो किसी के दिल की धड़कने ही बंद कर दे। मैं तो फटी आँखों से उस नज़ारे को देखता ही रह गया। सच कहूँ तो मैंने जिन्दगी में आज पहली बार किसी कमसिन लड़की की चूत देखी थी। हाँ बचपन में जरूर अपने साथ खेलने वाले लड़कों और लड़कियों की नुन्नी और पिक्की देखी थी। पर वो बचपन की बातें थी उस समय इन सब चीज़ो का मतलब कौन जानता था। बस सु सु करने वाला खेल ही समझते थे कि हम सभी में से किसके सु सु की धार ज्यादा दूर तक जाती है।
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> ओह…. मैं उसकी चूत की बात कर रहा था। हलके रोयों के एक इंच नीचे स्वर्ग का द्वार बना था जिसके लिए नारद और विश्वामित्र जैसे ऋषियों का ईमान डोल गया था वो मंजर मेरी आखों के सामने था। तिकोने आकार की छोटी सी चूत जैसे कोई फूली हुयी पाँव रोटी हो। दो गहरे लखारी (सुर्ख लाल) रंग की पतली सी लकीरें और चीरा केवल 3 इंच का। मोटे मोटे पपोटे और उनके दोनों तरफ हलके हलके रोयें।
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> मेरे मुंह से बरबस निकल पड़ा “वाह … अद्भुत… अद्वितीय…”
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> मिर्ज़ा गालिब अगर इस कमसिन बुर को देख लेता तो अपनी शायरी भूल जाता और कहता कि अगर इस धरती पर कहीं जन्नत है तो बस यहीं है… यहीं है।
> उसका पूरा शरीर रोमांच और उत्तेजना से कांपने लगा था। उसने मेरा सिर पकड़ कर अपनीचूत की ओर दबा दिया। जैसे ही मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ फिराई उसने तेजी के साथ अपना एक हाथ नीचे किया और अपनी नाम मात्र की जाँघों में अटकी पेंटी को निकाल फेंका। और अब अपने आप उसकी नर्म नाज़ुक जांघें चौड़ी होती चली गई जैसे अली बाबा के खुल जा सिमसिम कहने पर उस गुफा के कपाट खुल जाया करते थे। आह… वो रक्तिम चीरा थोड़ा सा खुल गया और उसके अन्दर का गुलाबी रंग झलकने लगा। मैंने अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाया और दोनों हाथों से उसकी फांकें चौड़ी कर दी। आह….. गुलाबी रंगत लिए उसकी पूरी चूत ही गीली हो रही थी उस में तो जैसे कामरस की बाढ़ ही आ गई थी। एक छोटी सी एक छोटी सी चुकंदर जिसे किसी ने बीच से चीर दिया हो। पतली पतली बाल जितनी बारीक हलके नीले से रंग की रक्त शिराएँ। सबसे ऊपर एक चने के दाने जीतनी मदन मणि (भागनाशा) और उसके कोई 1.5 इंच नीचे बुर का छोटा सा सिकुड़ा हुआ छेद। उसी छेद के अन्दर सु सु वाला छेद। आह सु सु वाला छेद तो बस इतना छोटा था कि जैसे टुथपिक भी बड़ी बड़ी मुश्किल से अन्दर जा पाए। शायद इसी लिए कुंवारी लड़कियों की बुर से मूत की इतनी पतली धार निकलती है और उसका संगीत इतना मधुर और कर्णप्रिय होता है।
> “चुम्बन प्रेम का प्यारा सहचर है। चुम्बन हृदय स्पंदन का मौन सन्देश है और प्रेम गुंजन का लहराता हुआ कम्पन है, प्रेमाग्नि का ताप और दो हृदयों के मिलन की छाप है। यह तो नवजीवन का प्रारम्भ है। अपने प्रेमी या प्रेमिका का पहला चुम्बन तो अपने स्मृति मंदिर में मूर्ती बना कर रखा जाता है”
> अब रेनू ने होले से अपने कांपते हुए अधरों को मेरे होंठों पर रख दिया। मिन्ट की मीठी और ठंडी खुशबू मेरे अन्दर तक समा गई। संतरे की फांकों और गुलाब की पत्तियों जैसे नर्म नाज़ुक रसीले होंठ मेरे होंठों से ऐसे चिपक गए जैसे कि कोई चुम्बक हों। फिर उन्होंने अपनी जीभ मेरे होंठों पर फिराई। पता नहीं कितनी देर मैं तो मंत्रमुग्ध सा अपने होश-ओ-हवाश खोये खड़ा रहा। मेरा मुंह अपने आप खुलता गया और रेनू की जीभ तो मानो इसका इन्तजार ही कर रही थी। उन्होंने गप्प से अपनी लपलपाती जीभ मेरे मुंह में डाल दी। मैंने भी मिश्री और शहद की डली की तरह उनकी जीभ को अपने मुंह में भर लिया और किसी कुल्फी की तरह चूसने लगा। फिर उन्होंने अपनी जीभ बाहर निकल ली और मेरा ऊपर का होंठ अपने मुंह में भर लिया। ऐसा करने से उनका निचला होंठ मेरे मुंह में समा गया। जैसे किसी ने शहद की कुप्पी ही मेरे मुंह में दे दी हो। मैं तो चटखारे लेकर उन्हें चूसता ही चला गया। ऐसा लग रहा था जैसे हमारा यह चुम्बन कभी ख़त्म ही नहीं होगा। एक दूसरे की बाहों में हम ऐसे लिपटे थे जैसे कोई नाग नागिन आपस में गुंथे हों। उनकी चून्चियों के निप्पल्स की चुभन मेरी छाती पर महसूस करके मेरा रोमांच तो जैसे सातवें आसमान पर ही था। फिर उन्होंने मेरे गालों, नाक, ठोड़ी, पलकों, गले और माथे पर चुम्बनों की जैसे झड़ी ही लगा दी। अब मेरी बारी थी मैं भला पीछे क्यों रहता मैंने भी उनके होंठ, गाल, माथे, थोड़ी, नाक, कान की लोब, पलकों और गले को चूमता चला गया। उनके गुलाबी गाल तो जैसे रुई के फोहे थे। सबसे नाज़ुक तो उनके होंठ थे बिलकुल लाल सुर्ख। मैं तो इतना उत्तेजित हो गया था की मुझे तो लगने लगा था मैं जल्दी | ही झड़ जाऊँगा। इतने में रेनू ने मुझसे कहा आप तो मुझे सेक्स के बारे में बताना चाह रहे थे ,आप बताये की i किसी भी लड़की के बूब्स और गांड का पुरुष के जीवन में क्या महत्व होता हे मेने रेनू से कहा मेंतुम्हारे अपने बुआ की लड़की नेहा के साथ अपने सेक्स के बारे में बतातु हु ,मेने नेहा के बोबो चूत गांड का केसे मजा लिया ये बताता हु |
नेहा मेरी बुआ की लड़की थी और मेरी उस पर कई दिनों से नजर थी ,एक शादी में मेने उसे पकड़ लिया वो चिल्लाई रोई मेने उसे चोदा नहीं तब मेने उसे प्यार से सेक्स के बारे में इस तरह बताया था
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> कुदरत ने स्तनधारी प्राणियों के लिए एक माँ को कितना अनमोल तोहफा इन अमृत कलसों के रूप में दिया है। तुम शायद नहीं जानती किसी खूबसूरत स्त्री या युवती की सबसे बड़ी दौलत उसके उन्नत और उभरे उरोज ही होते हैं। काम प्रेरित पुरुष की सबसे पहली नज़र इन्हीं पर पड़ती है और वो इन्हें दबाना और चूसना चाहता है। यह सब कुदरती होता है क्योंकि इस धरती पर आने के बाद उसने सबसे पहला भोजन इन्हीं अमृत कलसों से पाया था। अवचेतन मन में यही बात दबी रहती है इसीलिए वो इनकी ओर ललचाता है।”
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> “सुन्दर, सुडोल और पूर्ण विकसित स्तनों के सौन्दर्याकर्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। इस सुखद आभाष के पीछे अपने प्रियतम के मन में प्रेम की ज्योति जलाए रखने तथा सदैव उसकी प्रेयशी बनी रहने की कोमल कामना भी छिपी रहती है। हालांकि मांसल, उन्नत और पुष्ट उरोज उत्तम स्वास्थ्य व यौवन पूर्ण सौन्दर्य के प्रतीक हैं और सब का मन ललचाते हैं पर जहां तक उनकी संवेदनशीलता का प्रश्न है स्तन चाहे छोटे हों या बड़े कोई फर्क नहीं होता। अलबत्ता छोटे स्तन ज्यादा संवेदनशील होते हैं। कुछ महिलायें अपनी देहयष्टि के प्रति ज्यादा फिक्रमंद (जागरुक) होती है और छोटे स्तनों को बड़ा करवाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवा लेती हैं बाद में उन्हें कई बीमारियाँ और साइड एफ्फेक्ट्स से गुजराना पड़ सकता है। उरोजों को सुन्दर और सुडोल बनाने के लिए ऊंटनी (फिमेल केमल) के दूध और नारियल के तेल का लेप करना चाहिए। इरानी और अफगानी औरतें तो अपनी त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए ऊंटनी या गधी के दूध से नहाया करती थी। पता नहीं कहाँ तक सच है कुछ स्त्रीयां तो संतरे के छिलके, गुलाब और चमेली के फूल सुखा कर पीस लेती हैं और फिर उस में अपने पति के वीर्य या शहद मिला कर चहरे पर लगाती हैं जिस से उनका रंग निखरता है और कील, झाइयां और मुहांसे ठीक हो जाते हैं “|
> असल में पहली बार में किसी कमसिन की चूत देख रहा था इसलिए बार बार नेहा की चूत देखते ही उसका वर्णन आपको बताने की इच्छा हो रही हे ,
> गहरी नाभी के नीचे का भाग कुछ उभरा हुआ था। पहले काले काले झांट नजर आये और फिर स्वर्ग के उस द्वार का वो पहला नजारा। मुझे तो लगा जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आ जाएगा। मैं तो उनकी चूत को देखता ही रह गया। काले घुंघराले झांटों के झुरमुट के बीच मोटे मोटे बाहरी होंठों वाली चूत रोशन हो गई। उन फांकों का रंग गुलाबी तो नहीं कहा जा सकता पर काला भी नहीं था। कत्थई रंग जैसे गहरे रंग की मेहंदी लगा रखी हो। चूत के अन्दर वाले होंठ तो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चिड़िया की चोंच हो। जैसे किसी ने गुलाब की मोटी मोटी पंखुड़ियों को आपस में जोड़ दिया हो। दोनों फांकों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ। चूत का चीरा कोई 4 इंच का तो जरूर होगा। मुझे नेहा की चूत की दरार में ढेर सारा चिपचिपा रस दिखाई दे रहा था जो नीचे वाले छेद तक रिस रहा था। उन्होंने पेंटी निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दी। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं फिर मैंने हंसते हुए उनकी पेंटी को अपनी नाक के पास ले जा कर सूंघा। मेरे नथुनों में एक जानी पहचानी मादक महक भर गई। जवान औरत की चूत से बड़ी मादक खुशबू निकलती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि माहवारी आने से कुछ दिन पहले और माहवारी के कुछ दिनों बाद तक औरत के पूरे बदन से बहुत ही मादक महक आती है जो पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करती है। हालांकि यह चूत कुंवारी नहीं थी पर अभी भी उसकी खुशबू किसी अनचुदी लौंडिया या कुंवारी चूत से कत्तई कम नहीं थी।
> हर बच्चे की एक जन्मजात आदत होती है जो चीज उसे अच्छी और प्यारी लगती है उसे मुंह में ले लेता है। फिर इन काम अंगों को मुंह में लेना कौन सी बड़ी बात है। यह तो नैसर्गिक क्रिया है।मेरी अक आंटी ने तो बताया था कि वीर्य पीने से आँखों की ज्योति बढती है। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि अपने किसी वैश्या (गणिका) को चश्मा लगाये नहीं देखा होगा। शास्त्रों में तो इसे अमृत तुल्य कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वीर्य और कामरस में कई धातुएं और विटामिन्स होते हैं तो फिर ऐसी चीज को भला व्यर्थ क्यों जाने दें। अगर शुरू शुरू में लंड चूसने में थोड़ी ग्लानी सी महसूस हो या अच्छा ना लगे तो लंड और चूत पर पर शहद या आइसक्रीम लगा कर चूसना चाहिए। ऐसा करने से इनका रंग भी काला नहीं पड़ता। उरोजों पर शहद लगा कर चूसने से उनका आकार सुडोल बनता है। यह ऐसा ही है जैसे गांड मरवाने से नितम्ब चौड़े और सुडोल बनते हैं।
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> ज्यादातर महिलायें मुख मैथुन पसंद करती हैं। इन में गुप्तांग भी शामिल हैं पर स्त्री सुलभ लज्जा के कारण वो पहल नहीं करती। वो इस कृत्य को बहुत ही अन्तरंग और आत्मीय नज़रिए से देखती हैं। इसलिए पूर्ण प्रेम के दौरान इसका बहुत महत्व है। प्रेमी को यह जानने की कोशिश करते रहना चाहिए कि उसकी प्रेमिका को कौन सा अंग चुसवाने में अधिक आनंद मिलता है।
> लिंग या योनी को चूसने के कई आसन और तरीके होते हैं पर अगर लिंग और योनी दोनों की एक साथ चुसाई करनी हो तो 69 की पोजिसन ही ठीक रहती है। ये 69 पोजिसन भी दो तरह की होती है। एक तो आमने सामने करवट के बल लेट कर और दूसरी प्रेमी नीचे और प्रेमिका उसके मुंह पर अपनी योनी लगा कर अपना मुंह उसके पैरो की ओर लिंग के ठीक सामने कर लेती है। इस आसन में दोनों को दुगना मज़ा आता है। अरे भाई प्रेमिका की महारानी (गांड) भी तो ठीक उसकी आँखों के सामने होती है ना ? उसके खुलते बंद होते छेद का दृश्य तो जानमारू होता ही है कभी कभार उसमें भी अगर अंगुली कर दी जाए तो मज़ा दुग
> “देखो सम्भोग से पहले पूर्व काम क्रीड़ा का बहुत महत्व होता है। प्रेम को स्थिर रखने के लिए सदैव सम्भोग से पहले पूर्व रति क्रीड़ा बहुत जरुरी होती है। पुरुष की उत्तेजना दूध के उफान या ज्वालामुखी की तरह होती है जो एक दम से भड़कती है और फिर ठंडी पड़ जाती है। परंतू स्त्री की उत्तेजना धीरे धीरे बढती है जैसे चाँद धीरे धीरे अपनी पूर्णता की ओर बढ़ता है लेकिन उनकी उत्तेजना का आवेग और समय ज्यादा होता है और फिर वो उत्तेजना धीरे धीरे ही कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में उत्तेजना को प्राप्त करनेवाले अंग पुरुषों कि अपेक्षा ज्यादा होते हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार महिलाओं की मदनमणि (भागनाशा) में जितनी ज्यादा संख्या संवेदन शील ग्रंथियों की होती है उतनी पुरुषों के लिंग के सुपाड़े में होती हैं। इसी लिए पुरुष जल्दी चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाते हैं। तुम्हें शायद पता नहीं होगा कि पूर्णिमा के दिन समुद्र का ज्वार सब से ज्यादा ऊंचा होता है। यही स्थिति स्त्री की होती है। चंद्रमा के घटने बढ़ने के साथ साथ ही स्त्री का काम ज्वर घटता बढ़ता रहता है उसके ऋतूचक्र में कुछ दिन ऐसे आते हैं जब उसके मन में सम्भोग की तीव्र इच्छा होती है। माहवारी के कुछ दिन पहले और माहवारी ख़तम होने के 3-4 दिन बाद स्त्री का कामवेग अपने उठान पर होता है। बाद में तो यह चन्द्र कला की तरह घटता बढ़ता रहता है। इसलिए हर स्त्री को अलग अलग दिन अलग अलग अंगों को छूना दबाना और चूमना अच्छा लगता है”
> एक और बात सुनो ”सम्भोग करने से पहले अपनी प्रेयशी को गर्म किया जाता है। उसके सारे अंगों को सहलाया और चूमा चाटा जाता है कोई जल्दबाजी नहीं आराम से धीरे धीरे। पहले सम्भोग में पुरुष उत्तेजना के कारण जल्दी झड़ जाता है और सम्भोग का पूरा आनंद नहीं ले पाता इसलिए अगर सुहागरात को पहले दिन में एक बार मुट्ठ मार ली जाए तो अच्छा रहता है। मैंने इसी लिए तुम्हारा पानी एक बार पहले निकाल दिया था। एक और बात यदि सम्भोग करते समय लिंग पर निरोध (कंडोम) लगा लिया जाए तो वीर्य जल्दी नहीं स्खलित होता और अनचाहे गर्भ से भी बचा जा सकता है”ना क्या तिगुना हो जाता है।इसी तरह गांड मरने को
> ज्यादातर औरतें इस क्रिया बड़ी अनैतिक, कष्टकारक और गन्दा समझती हैं। लेकिन अगर सही तरीके से गुदा मैथुन किया जाए तो यह बहुत ही आनंददायक होता है। एक सर्वे के अनुसार पाश्चात्य देशों में 70 % और हमारे यहाँ 15 % लोगों ने कभी ना कभी गुदामैथुन का आनंद जरुर लिया है। पुरुष और महिला के बीच गुदा मैथुन द्वारा आनंद की प्राप्ति सामान्य घटना है। इंग्लैंड जैसे कई देशों में तो इसे कानूनी मान्यता भी है। पर अभी हमारे देश में इसके प्रति नजरिया उतना खुला नहीं है। लोग अभी भी इसे गन्दा समझते हैं। पर आजकल के युवा कामुक फिल्मों में यह सब देख कर इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं।
> योनी के आस पास बहुत सी संवेदनशील नशें होती है और कुछ गुदा के अन्दर भी होती हैं। इस लिए गुदा मैथुन में पुरुषों के साथ साथ स्त्रीयों को भी मज़ा आता है। और यही कारण है कि दुनिया में इतने लोग समलिंगी होते हैं और ख़ुशी ख़ुशी गांड मरवाते हैं। महिलाओं को भी इस में बड़ा मज़ा आता है। कुछ शौक के लिए मरवाती हैं और कुछ अनुभव के लिए। आजकल की आधुनिक औरतें कुछ नया करना चाहती हैं इसलिए उन में लंड चूसने और गांड मरवाने की ललक कुछ ज्यादा होती है। अगर वो बहुत आधुनिक और चुलबुली है तो निश्चित ही उसे इस में बड़ा मज़ा आएगा। वैसे समय के साथ योनी में ढीलापन आ जाता है और लंड के घर्षण से ज्यादा मज़ा नहीं आता। पर गांड महारानी को तो कितना भी बजा लिया जाए वह काफी समय तक कसी हुयी रहती है और उसकी लज्जत बरकरार रहती है क्योंकि उस में लचीलापन नहीं होता। इसलिए गुदा मैथुन में अधिक आनंद की अनुभूति होती है।
> एक और कारण है। एक ही तरह का सेक्स करते हुए पति पत्नी दोनों ही उकता जाते हैं और कोई नयी क्रिया करना चाहते हैं। गुदा मैथुन से ज्यादा रोमांचित करने वाली कोई दूसरी क्रिया हो ही नहीं सकती। पर इसे नियमित तौर पर ना करके किसी विशेष अवसर के लिए रखना चाहिए जैसे कि होली, दिवाली, नववर्ष, जन्मदिन, विवाह की सालगिरह या वो दिन जब आप दोनों सबसे पहले मिले थे। अपने पति को वस में रखने का सबसे अच्छा साधन यही है। कई बार पत्नियां अपने पति को गुदा मैथुन के लिए मना कर देती हैं तो वो उसे दूसरी जगह तलासने लग जाता है। अपने पति को भटकने से बचाने के लिए और उसका पूर्ण प्रेम पाने के लिए कभी कभी गांड मरवा लेने में कोई बुराई नहीं होती।
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> मेरा कहना हे कि औरत को भगवान् ने तीन छेद दिए हैं और तीनो का ही आनंद लेना चाहिए। इस धरती पर केवल मानव ही ऐसा प्राणी है जो गुदा मैथुन कर सकता है। जीवन में अधिक नहीं तो एक दो बार तो इसका अनुभव करना ही चाहिए। सुखी दाम्पत्य का आधार ही सेक्स होता है पर अपने प्रेम को स्थिर रखने के लिए गुदा मैथुन भी कभी कभार कर लेना चाहिए। इस से पुरुष को लगता है कि उसने अपनी प्रियतमा को पूर्ण रूप से पा लिया है और स्त्री को लगता है कि उसने अपने प्रियतम को सम्पूर्ण समर्पण कर दिया है।इतना उपदेश देने के बाद नेहा की
> पाव रोटी की तरह फ़ूली हुई लाल सुर्ख चूत मेरे सामने थी, बिल्कुल गोरी चिट्टी ! झाँटों का नाम निशान ही नहीं, जैसे आज़ ही उसने अपनी झाँट साफ़ की हो। चूत की फ़ांकें संतरे की फ़ांकों जितनी मोटी और रस भरी। अन्दर के होंठ हल्के गुलाबी और कोफ़ी रंग के आपस में जुड़े हुए। चूत का चीरा कोई चार इन्च का गहरी पतली खाई जैसे। चूत का दाना मटर के दाने जितना बड़ा सुर्ख लाल बिल्कुल अनारदाने जैसा। गोरी जांघें संगमरमर की तरह चिकनी। दांई जांघ पर एक तिल। चूत की प्यारी पड़ोसन (गाण्ड) के दर्शन अभी नहीं हुए थे क्योंकि नेहा अभी लेटी थी और उसके पैर भींचे हुए थे।
> मैंने उसके पैरों को थोड़ा फ़ैलाया तो गाण्ड का छेद भी नज़र आया। छेद बहुत बड़ा तो नहीं पर इतना छोटा भी नहीं था, हल्के भूरे रंग का बिल्कुल सिकुड़ा हुआ चिकना चट्ट्। उस छेद की चिकनाहट देख कर मुझे हैरानी हुई कि यह छेद इतना चिकना क्यों है !
> बाद में मुझे नेहा ने बताया था कि वो पूरी शादी में तैयारी करके आई थी। उसने अपनी झाँट आज़ ही साफ़ की थी और चूत और गाण्ड दोनों पर उसने मेरी दी हुई खुशबू वाली क्रीम भी लगाई थी।
> मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और अपने जलते होंठ उसकी गुलाबी चूत की फ़ांकों पर रख दिए। वो जोर जोर से सीत्कार करने लगी। उसकी कुँवारी चूत की महक से मेरा तन मन सब सराबोर हो गया। एक चुम्मा लेने के बाद मैंने जीभ से उसकी अन्दर वाली फ़ांकें खोली और अपनी जीभ उसके अन्दर डाल दी।
> उसने अपनी दोनों जांघें ऊपर मोड़ कर मेरे गले में कैंची की तरह डाल दी और मेरे सिर के बाल पकड़ लिए। मैं मस्त हुआ उसकी चूत चूसे चाटे जा रहा था। कोई दस मिनट तक मैंने उसकी चूत चाटी होगी। वो मस्त हुई सीत्कार किए जा रही थी और बड़बड़ा रही थी,“ मेरे शहज़ादे ! मेरे सलीम ! मेरे राजीव !. ”
> अब उसके झड़ने का वक्त नज़दीक आ रहा था, वो जोर जोर से चिल्ला रही थी और जोर से चूसो ! और जोर से चूसो ! मज़ा आ रहा है !
> मेरा लण्ड सिर धुन रहा था। मैंने एक हाथ से उसके एक संतरे को कस कर पकड़ लिया और उसे मसलने लगा। दूसरे हाथ की तर्ज़नी उंगली से उसकी नर्म चिकनी गाण्ड का छेद टटोलने लगा। जब छेद मिल गया तो मैंने तीन काम एक साथ किए। पहला उसकी एक चूची को मसलना, दूसरा चूत को पूरा मुंह में ले कर जोर से चूसना और तीसरा अपनी एक उंगली उसकी गाण्ड के छेद में डाल दी।
> “चूत की सुन्दरता उसकी चौडाई से, गांड की सुन्दरता उसकी गहराई से और लंड की सुन्दरता उसकी लम्बाई से जानी जाती है. एक बार मैंने विशेष प्रवचन में गुरूजी से पूछा था कि चूत तो दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है तो फिर चूत की चौडाई से क्या अभीप्राय है तो गुरूजी ने डांटते हुए कहा था “अरे भोले इसके लिए दोनों अंगुलिओं को आडी नहीं सीधी [portreat] यानी कि लम्बवत देखा जाता है और ये अंगुलियों जैसी जीतनी लम्बी होगी उतनी ही सुन्दर होगी इसी लिए चूत दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है. मैं जिस चौडाई कि बात कर रहा हूँ वो चूत के नीचे दोनों जाँघों कि चौडाई की बात है.”\ नेहा की चुदाई की बात सुनकर रेनू भी गरम हो गयी और उसने मेरा लोडा अपनी चूत में डाल लिया और गांड हिला हिला कर लोडा खाने लगी ,थोड़ी देर में हम दोनों झड गए
> जब ये सब चल रहा था दरवाजे की घंटी बजी ,मेने देखा बहार जूही खड़ी हे जूही मेरी साली की लड़की थी और रेनू की खास सहेली |जूही को देखकर मेने सोचा आज रेनू की मदद सी इसको भी चोदा जा सकता हे,में उसे अंदर ले आया ,जूही ने कहा की वो नहाना चाहती हे और ये कह कर वो बाथरूम में घुस गयी| मेने रेनू से कहा की वो जूही को चुदवाने में मेरी मदद करे लेकिन वो बोली की जूही मेरे सामने शमाएगी इसलिए में तो यंहा से चली जाती हु और तुम एकांत का फायदा उठाओ |उसके जाने के बाद मेने अपनी आँखे बाथरूम के की होल में लगा दी
> जूही ने अपनी पैन्ट और शर्ट उतार दी थी। अब वो सिर्फ ब्रा पैन्टी में थी।उफ्फ... क्या मस्त हिरनी जैसी गोरी-चिट्टी नाज़ुक कमसिन कली की तरह, जैसे सपना [मेरी साली] हीमेरी आँखों के सामने खड़ी हो। सुराहीदार गर्दन, पतली सी कमर मानों लिम्का की बोतलको एक जोड़ा हाथ और पैर लगा दिए हों। संगमरमर सा तराशा हुआ सफाक़ बदन किसी फरिश्तेका भी ईमान डोल जाए। एक ख़ास बात: काँख (जहाँ से बाँहें शुरु होतीं हैं) और उरोजोंसे थोड़ा ऊपर का भाग ऐसे बना था जैसे कि गोरी-चिट्टी चूत ही बनी है। ऐसी लड़कियाँ वाकई नाज़ुक होतीं हैं और उनकी असली चूत भी ऐसी ही होती है। छोटी सी तिकोने आकार की माचिस की डिब्बी जितनी बड़ी। अगर आपने प्रियंका चोपड़ा या करीना कपूर को किसी फिल्ममें बिना बाँहों के ब्लाऊज़ के देखा हो तो आपको मेरी इस बात की सच्चाई का अन्दाज़ाहो जाएगा। फिर मेरा ध्यान उसकी कमर पर गया जो २२ इंच से ज्यादा तो हरगिज़ नहीं होसकती। पतली-पतली गोरी गुलाबी जाँघें। और दो इंच पट्टी वाली वही टी-आकार की पैन्टी (जो सपना की पसंदीदा है)। उनके बाहर झाँटों के छोटे-छोटे मुलायम रोयें जैसे बाल। हेभगवान, मैं तो जैसे पागल ही हो जाउँगा। मुझे तो लगने लगा कि मैं अभी बाथरूम कादरवाजा तोड़कर अन्दर घुस जाऊँगा और... और...
> जूही ने बड़े नाज़-ओ-अन्दाज़ से अपनी ब्रा के हुक़ खोले और दोनों क़बूतर जैसेआज़ाद हो गए। जैसे गुलाबीरंग के दो सिन्दूरी आम रस से भरे हुए हों। चूचियों का गहरा घेरा कैरम की गोटी जितना बड़ा, बिल्कुल चुर्टलाल। घुण्डियाँ तो बस चने के दानेजितनी। सुर्ख रतनार अनार के दाने जैसे, पेन्सिल की नोक की तरह तीखे। उसने अदा सेअपने उरोजों पर हाथ फेरा और एक दाने को पकड़ कर मुँह की तरफ किया और उस पर जीभ लगादी। या अल्लाह... मुझे लगा जैसे अब क़यामत ही आ जाएगी। उसने शीशे के सामने घुम कर अपने नितम्ब देखे। जैसे दो पूनम के चाँद किसी ने बाँध दिए हों। और उनके बीच की दरारएक लम्बी खाई की तरह। पैन्टी उस दरार में घुसी हुई थी। उसने अपने नितम्बों पर एकहल्की सी चपत लगाई और फिर दोनों हाथों को कमर की ओर ले जाकर अपनी काली पैन्टी नीचेसरकानी शुरु कर दी।
> मुझे लगा कि अगर मैंने अपनी निगाहें वहाँ से नहीं हटाईं तो आज ज़रूर मेरा हार्ट फेल हो जाएगा। जैसे ही पैन्टी नीचे सरकी हल्के-हल्के मक्के के भुट्टे के बालों जैसेरेशमी नरम छोटे-छोटे रोयें जैसे बाल नज़र आने लगे। उसके बाद दो भागों में बँटेमोटे-मोटे बाहरी होंठ, गुलाबी रंगत लिए हुए। चीरा तो मेरे अंदाजे के मुताबिक ३ इंचसे तो कतई ज़्यादा नहीं था। अन्दर के होंठ बादामी रंग के। लगता है साली ने अभी तकचूत (माफ़ करें बुर) से सिर्फ मूतने का ही काम लिया है। कोई अंगुलबाज़ी भी लगता हैनहीं की होगी। अन्दर के होंठ बिल्कुल चिपके हुए-आलिंगनबद्ध। और किशमिश का दाना तोबस मोती की तरह चमक रहा था। गाँड का छेद तो नज़र नहीं आयापर मेरा अंदाजा है कि वोभी भूरे रंग का ही होगा और एक चवन्नी के सिक्के से अधिक बड़ा क्या होगा! दाईं जाँघपर एक छोटा सा तिल। उफ्फ... क़यामत बरपाता हुआ। उसने शीशे में देखते हुए उन रेशमीबालों वाली बुर पर एक हाथ फेरा और हल्की सी सीटी बजाते हुए एक आँख दबा दी। मेरालंड तो ऐसे अकड़ गया जैसे किसी जनरल को देख सिपाही सावधान हो जाता है। मुझे तो डरलगने लगा कि कहीं ये बिना लड़े ही शहीद न हो जाए। मैंने प्यार से उसे सहलाया पर वह मेरा कहा क्यों मानने लगा।
> और फिर नज़ाक़त से वो हल्के-हल्के पाँव बढ़ाते हुए शावर की ओर बढ़ गई। पानी की फुहार उसके गोरे बदन पर पेट से होती हुई उसकी बुर के छोटे-छोटे बालों से होती हुईनीचे गिर रही थी, जैसे वो पेशाब कर रही हो। मैं तो मुँह बाए देखता ही रह गया।
> वो गाती जा रही थी "पानी में जले मेरा गोरा बदन..." मैं सोच रहा था आज इसे ठण्डामैं कर ही दूँगा, घबराओ मत। कोई १० मिनट तक वो फव्वारे के नीचे खड़ी रही, फिर उसनेअपनी बुर को पानी से धोया। उसने अपनी उँगलियों से अपनी फाँकें धीरे से चौड़ी कींजैसे किसी तितली ने अपने पंख उठाए हों। गुलाबी रंग की नाज़ुक सी पंखुड़ियाँ। किशमिश के दाने जितनी मदन-मणि (टींट), माचिस की तीली जितना मुत्र-छेद और उसके एक इंच नीचे स्वर्ग का द्वार, छोटा सा लाल रतनार। मुझे लगा कि मैं तो गश खाकर गिर हीपड़ूँगा।
> उसने शावर बन्द कर दिया और तौलिये से शरीर पोंछने लगी। जब वह अपने नितम्ब पोंछ रही थी, एक हल्की सी झलक उसकी नर्म नाज़ुक गाँड के छेद पर भी पड़ ही गई। उफ्फ...क्या क़यामत छुपा रखी थी उसने। अपनी बगलें पोंछने के लिए जब उसने अपनी बाहें उठाईंतो मैं देखकर दंग रह गया। काँख में एक भी बाल नहीं, बिल्कुल मक्खन जैसी चिकनी साफसुथरी गोरी चिट्टी। अब मैं उसे हुश्न कहूँ, बिजली कहूँ, पटाखा कहूँ याक़यामत...
> अर्श मलशियानी का एक शेर तो कहे बिना नहीं रहा जा रहा:
> बला है क़हर है आफ़त है फितना हैक़यामत है
> इन हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है? , बाथरूम के अन्दर से शावर चलने की आवाज और जूही के इंग्लिश गाने की मिलीजुली आवाज मुझे मदहोश कर रही थी. मेरालंड तो छलांगे लगाने लगा था. कोई आधे घंटे के बाद जूही बाथरूम से निकली. उफ्फ्फ…...
>
> भीगे बाल और उनसे टपकती हुई शबनम जैसी पानी की बूँदें, लाल स्किन टाइट सलेक्स जैसी बेलबोटम और ऊपर ढीली सी शर्ट. पता नहीं उसने पेंटी और ब्रा जानबूझ कर नहीं डाली या कोई और बात थी. सलेक्स इतनी टाइट थी कि उसकी पुस्सी का भूगोल और इतिहास साफ़ नजर आ रहा था. पुस्सी का चीरा 3 इंच से कम तो क्या होगा. मेरा लंड तो मस्त हिरन की तरह कुलाचें भरने लगा. उसके बदन से आती मस्त खुश्बू से मैं तो मदहोश सा हो गया. इस से पहले कि कोई मेरी हालत देख कर कोई अंदाजा लगाए में बाथरूम में घुस गया. सबसे पहले मैंने उसकी पेंटी को ढूंढा. एक कोने में किसी मरी हुई चिडिया की तरह मुझे उसकी नीली पेंटी और ब्रा मिल गए. मैंने उसकी पेंटी को उठाया और गौर से देखा. पुस्सी के छेद वाली जगह कुछ गीली थी और उस पर सफ़ेद लार जैसा कुछ लगा हुआ था. शायद ये उसका पुस्सी रस था. मैंने उसे नाक के पास लगा कर सुंघा. ईईईइस्स्स्स्स….. इतनी मादक, तीखी, खट्टी, कोरी पुस्सी की महक मेरे तन मन को अन्दर तक भिगो गयी. मैंने उसपर अपनी जीभ लगा दी.
>
> आईला…. क्या खट्टा, मीठा, नमकीन, कच्चे नारियल जैसा स्वाद था. मैंने उसकी पेंटी और ब्रा को एक बार और सुंघा और फिर उसकी पेंटी को अपने रॉक -हार्ड 7” के पत्थर की तरह अकडे पप्पू के चारों और लिपटा कर शीशे में देखा. लंड तो अड़ियल टट्टू ही बन गया था जैसे मार खाए बिना आज नहीं मानेगा. जी तो कर रहा था कि एक बार मुठ मार लू. पर मैं तो अपना प्रेम रस आज रात के लिए बचा कर रखना चाहता था. मैंने उसकी पेंटी को अपनी पेंट की जेब में रख लिया अपने प्यार की निशानी मानकर. मेने कहा आज तो तुम क़यामत लग रही हो तो उसने कहा मोसजी आप एक नंबर के बदमाश हो में आगे बड़ा और उसे अपनी बांहों में समेत लिया
> इस बार उसने एक नम्बर का बदमाश नहीं कहा और फिर उसने आँखें बन्द किए हुए ही काँपते हाथों से अपना टॉप थोड़ा सा उठा दिया...
> उफ्फ... सिन्दूरी आमों जैसे दो रस-कूप मेरे सामने थे। ऐरोला कोई कैरम की गोटी जितना गुलाबी रंग का। घुण्डियाँ बिल्कुल तने हुए चने के दाने जितने। मैं तो बस मंत्रमुग्ध हो देखता ही रह गया। मुझे लगा जैसे सपना ही मेरे सामने बैठी है। उसके रस-कूप सपना से थोड़े ही बड़े थे पर थोड़े से नीचे झुके, जबकि जूही के बिल्कुल सुडौल थे. मैंने एक हाथ से हौले से उन्हें छू दिया। उफ्फ... क्या मुलायम नाज़ुक रेशमी अहसास था। जैसे ही मैंने उनपर अपनी जीभ रखी तो जूही की एक मीठी सी सीत्कार निकल गई।
>
> "ओह मोसाजी .. केवल देखने की बात हुई थी... ओह... ओह... या….. अब... बस करो... मुझे से नहीं रुका जाएगा..." मैंने एक अमृत कलश पर जीभ रख दी और उसे चूसना चालू कर दिया। जूही की सीत्कार अब भी चालू थी। "ओह.मोसाजी ... मुझे क्या कर दिया तुमने... ओह.. हाआआय.. मुझे... आह। हाआआयय्य्ययय... ऊईईईईईई... माँ........ आआआहहहह... बस अब ओर नहीं, एक मिनट हो गया है" उसने मेरे सिर के बालों को अपने दोनों हाथों में ज़ोर से पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबाने लगी। मैं कभी एक उरोज को चूसता, कभी दूसरे को। वो मस्त हुई आँखें बन्द किए मेरे बालों को ज़ोर से खींचती सीत्कार किए जा रही थी। इसी अवस्था में हम कोई ८-१० मिनट तो ज़रूर रहें होंगे। अचानक उसने मेरा सिर पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरे होंठों को चूमने लगी, जैसे वो कई जन्मों की प्यासी थी। हम दोनों फ्रेंच किस्स करते रहे। फिर उसने मुझे नीचे ढकेल दिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठ चूसने लगी। मेरा लंड तो अकड़ कर कुतुबमीनार बना पाजामे में अपना सिर फोड़ रहा था। मैं उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फेर रहा था। क्या मुलायम दो ख़रबूज़े जैसे नितम्ब, कि किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दे। मैंने उसकी गहरी होती खाई में अपनी उँगलियाँ फिरानी शुरु कर दी। उसकी चूत से रिसते कामरस से गीली उसकी चूत और गाँड का स्पर्श तो ऐसा था जैसे मैं स्वर्ग में ही पहुँच गया हूँ।
> पहले छोटे-छोटे रेशमी बाल (उन्हें झाँट तो कतई नहीं कहा जा सकता) नज़र आए, और फिर किशमिश का दाना और फिर दो भागों में बँटी हुई उसकी नाज़ुक सी मक्खन मलाई सी चूत की फाँकें। गुलाबी रंगत लिए हुए। चूत के दोनों होठों पर हल्के-हल्के बाल। बीच में हल्की चॉकलेटी रंग की मोटी सी दरार। चीरे की लम्बाई ३ इंच से ज़्यादा बिल्कुल नहीं थी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, ऊपर और नीचे के होंठों में रत्ती फर भी फ़र्क नहीं था। मोटे-मोटे गुलाबी रंग के संतरे की फाँके हों जैसे। दाईं जाँघ पर वो काला तिल। जैसे मेरे कत्ल का पूरा इन्तज़ाम किए हो। उसकी चूत काम-रस से सराबोर नीम गीली थी। मैंने अपने हाथों की दोनों उँगलियों से उसकी चूत की दोनों पंखुड़ियों को धीरे से चौड़ा किया। एक हल्की सी 'पट' की आवाज़ के साथ एक गहरा सा चीरा खुल गया।
>
> उफ्फ.. सुर्ख लाल पकौड़े जैसी चूत एक दम गुलाबी रंग की थी। ऊपर अनार दाना, उसके नीचे मूत्र-छिद्र माचिस की तीली की नोक जितना बड़ा। आईला... और उसका फिंच... स्स्स्सी... का सिस्कारा तो कमाल का होगा। एक बार मूतते हुए ज़रूर चुम्मा लूँगा. मूत्र-छिद्र के ठीक एक इंच नीचे स्वर्ग-गुफ़ा का छोदा सा बन्द द्वार जिसमें से हल्का-हल्का सा सफेद पानी झर रहा था। मैंने अपनी जीभ जैसी ही उसकी मदन-मणि के दाने पर रखी तो उसकी एक सीत्कार निकल गई। मैंने जीभ को उसके मूत्र-छिद्र पर फिराया और फिर उसके स्वर्ग-द्वार पर। कच्चे नारियल, पेशाब और पसीने जैसी मादक सुगन्ध मेरे नथुनों में भर गई। कुछ मीठा, खट्टा, नमकीन सा स्वाद भला मैं कैसे नहीं पहचानता,
> कुँवारी गाँड की पहचान तो उसके उभरे हुए सिलवटों से होती है। अगर आप इस लज्जत को महसूस करना चाहते हैं तो एक संतरे की फाँक लेकर उसकी पतली सफ़ेद झिल्ली को हटा दें। अब उसके जोये नज़र आएँगे। अपनी आँखें बन्द करके उन पर अपनी ऊँगली फिराएँ आप उसका नाज़ुकपन महसूस कर सकेंगे। हे भगवान जिस लड़की ने अपनी चूत में भी कभी उँगली ना की हो उसकी अनछुई कोरी गाँड मार कर तो अगर इस दुनिया से जाना भी पड़े तो ये सौदा कतई घाटे वाला नहीं है। आज तो इस गाँड के छेद में अपना रस भर कर स्वर्ग के इस दूसरे दरवाज़े का लुत्फ हर क़ीमत पर उठाना ही है।
> जूही पॉट पर बैठकर पेशाब करने लगी। आहहहह... फिच्च... स्स्स्सीईईई... का वो सिसकारा और मूत की पतली धार तोसपना जैसी ही थी। मैं तो मन्त्र-मुग्ध सा बस उस नज़ारे को देखता ही रह गया। पॉट पर बैठी जूही की चूत ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने मोटे शब्दों में अंग्रेज़ी में 'W' (डब्ल्यू) लिख दिया हो। उसकी चूत ऐसी लग रही थी जैसे एक छोटा करेला किसी ने छील कर बीच में से चीर दिया हो। चूत के होंठ सूजकर पकौड़े जैसे हो गए थे। बिल्कुल लाल गुलाबी। उसकी गाँड का भूरा और कत्थई रंग का छोटा सा छेद खुल और बन्द हो रहा था। मुझे अपने चौथे उत्पाद की याद आ गई... अरे भई लंड भी तो चुसवाना था ना। मैंने उससे कहा "एक मिनट रूको, मूतना बन्द करो और उठो... प्लीज़ जल्दी"
> "क्या हुआ?" जूही ने मूतना बन्द कर दिया और घबरा कर बीच में ही खड़ी हो गई। मैंने उसे अपनी ओर खींचा। मैं घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चूत को दोनों हाथों से खोल करक उसकी मदन-मणि के दाने को चूसने लगा। वो तो आहहह... उहह्हह करती ही रह गई। उसने कहा "ओह... क्या कर रहे हो मोसाजी ओफ्फ्फ.. इसे साफ तो करने दो। ओह गन्दे बच्चे ओईईईई.. माँ..."
>
> यही तो मैं चाहता था। मैं जानबूझ कर उसकी वीर्य और काम-रज से भरी चूत को चूस कर ये दिखाना चाहता था कि चुदाई में कुछ भी गन्दा नहीं होता, ताकि वह मेरा लण्ड चूसने में कोई कोताही ना बरते और कोई आनाकानी ना करे। "अरे प्यार में कुछ गन्दा नहीं होता" मैंने कहा। और फिर उसके किशमिश के दाने को चूसने लगा।
>
> जूही कितनी देर तक बर्दाश्त करती। उसकी चूत के मूत्र-छिद्र से हल्की सी पेशाब की धार फिर चालू हो गई जो मेरी ठोड़ी से होती हुई गले के नीचे गिर सीने से होती मेरे लंड और आँडों को जैसे धोती जा रही थी। उसने मेरे सिर के बाल पकड़ लिए कसकर। मैं तो मस्त हो गया। जब उसका पेशाब बन्द हुआ तो उसने नीचे झुक कर मेरे होंठ चूम लिए और अपने होठों पर जीभ फिराने लगी। उसे भी अपनी मूत का थोड़ा सा नमकीन स्वाद ज़रूर मिल ही गया।
> मैंने एक उँगली उसकी चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करनी शुरु कर दी औऱ एक हाथ से उसकी घुण्डियाँ मसलनी शुरु कर दी। उसका एक बार और झड़ना ज़रूरी था ताकि गाँड के छेद को पार करवाने में उसे कम से कम दर्द हो। ३-४ मिनट की उँगलीबाज़ी और चुचियों को मसलने से वह उत्तेजित हो गई। उसका शरीर थोड़ा सा अकड़ने लगा और वो ऊईईई.. माँ.आआ.... ओओओहहह ययाआआआआ... करने लगी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैंने अपनी उँगली निकाली और अपने मुँह में डाल कर एक चटखारा लिया। फिर मैंने दुबारा उँगली उसकी चूत में डाली और उसे भी चूत-रस चटाया। जूही तो मस्त ही हो गई। उसकी गाँड का छेद जल्दी-जल्दी खुलने और बन्द होने लगा था। यही समय था स्वर्ग के दूसरे द्वार को पार करने का। जैसी उसकी गाँड खुलती मेरा सुपाड़ा थोड़ा सा अन्दर सरक जाता। अब तक उसकी गाँड का छेद ५ रुपए के सिक्के जितना खुल चुका था और लगभग पौना इंच सुपाड़ा अन्दर जा चुका था, सफलतापूर्वक बिना किसी दर्द के। मैंने उसकी कमर को पकड़ा और ज़ोर का (धक्का नहीं यार) दबाव डालना चालू किया। (मुर्गी को हलाल किया जाता है झटका नहीं) गाँड अन्दर से चिकनी थी और जूही मस्त थी। गच्च से ३ इंच लण्ड घुस गया और इससे पहले कि जूही की चीख हवा में गूँजे मैंने उसका मुँह अपने दाएँ हाथ से ढँक दिया। वो थोड़ा सा कसमसाई और गूँ-गूँ करने लगी। मैं शान्त रहा। मेरा ३ इंच लण्ड अन्दर जा चुका था। अब फिसल कर बाहर नहीं आ सकता था। मुझे डर था कि चूत की तरह गाँड से भी ख़ून ना निकल जाए। लेकिन बोरोलीन और वैसलीन की चिकनाई की वज़ह से उसकी गाँड फटने से बच गई थी।
> वेसे मेने जूही को बचपन से देखा हुआ था,मुझे याद हे की जब वो जवानी में प्रवेश कर रही थी जब में सोचा करता था की ये क्या चीज हे 9th क्लास में पढ़ती है. गदराया बदन शोख, चंचल, चुलबुली, नटखट, नादान, कमसिन, क़यामत. कन्धों तक कटे बाल, सुतवांनाक, पतले पतले गुलाबी होंठ जैसे शहद से भरी दो पंखुडियां, सुराहीदार गर्दन, बिल्लोरी आँखें, छोटे छोटे नीबू जो अब अमरुद बन गए हैं पतली कमर, चिकनी चिकनी बाहें और केले के पेड़ कि तरह चिकनी जांघें. सबसे कमाल की चीज तो उसके छोटे छोटे खरबूजे जैसे नितम्ब हैं. या अल्लाह…. अगर कोई खुदकुशी करने जा रहा हो और उसके नितम्ब देख ले तो एक बार अपना इरादा ही बदलने पर मजबूर हो जाए. उसकी पिक्की या भोसड़े का तो आप और मैं अभी केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं. कुल मिला कर वो एक क़यामत है. ऐसी कन्याएं किसी भी अच्छे भले आदमी का घर बर्बाद कर सकती है. पर मुझे क्या पता था कि भगवान् ने इसे मेरे लिए ही बनाया है.
> आज से कोई 4-5 साल पहले जब मैं अपनी ससुराल किसी फंक्शन में गया था तब की एक घटना मेरी आँखों में फिर से घूम गयी.
>
> शायद उस दिन गणगोर उत्सव था. सभी ने मेहंदी लगा राखी थी. मैं संयोगवश बाथरूम से बाहर निकल कर आ रहा था कि जूही दोड़ती हुई मेरी तरफ आई और बोली “फूफाजी मेरी मेहंदी कैसी लग रही है ?” उसने अपने दोनों मेहंदी लगे हाथ मेरे सामने फैला दिए.
>
> “बहुत खूबसूरत बिलकुल तुम्हारी नाक की तरह” मैंने उसकी नाक पकड़ते हुए कहा.
>
> “अईई…” जूही थोडा सा चिहुंकी
>
> “क्या हुआ ?” मैंने पुछा
>
> “जोरों से सु सु आ रहा है” जूही ने आँखे बंद करते हुए कहा
>
> “तो बाथरूम चली जाओ न ?”
>
> “पर मेरे दोनों हाथों में तो मेहंदी लगी है. मैं अपनी कच्छी कैसे खोलूंगी” जूही नेअपनी परेशानी बताई.
>
> “चलो मैं खोल देता हूँ”
>
> “आप ?”
>
> “हाँ मैं “
>
> “अ….आप मेरी शेम शेम तो नहीं करोगे न ?”
>
> “अरे नहीं बाबा छोटे बच्चों कि शेम शेम नहीं होती”
>
> “अच्छा तो फिर ठीक है”
>
> मैं तो ख़ुशी से झूम ही उठा. मैंने इधर उधर देखा आस पास कोई नहीं था. मेरा दिल धड़क रहा था. किसी ने देख लिया तो क्या समझेगा. कहीं जूही ने अगर बाद में किसी को बता दिया तो ? पर फिर मैंने सोचा अगर कोई देख भी लेगा या जूही ने कुछ बता भी दिया तो क्या हुआ जूही अभी 8-9 साल कि ही तो है कोई गलत नहीं सोचेगा. मैं उसके एक बाजु को पकड़ कर बाथरूम के अन्दर ले गया. लाईट ओन करके मैंने बाथरूम का दरवाजा जानबूझकर आधा ही बंद किया.
>
> “ओफोः फूफाजी दरवाजा छोडो जल्दी करो मेरा सु सु निकल जायेगा”
>
> “ओह हाँ” मेरे मुंह से केवल इतना ही निकला.
>
> आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते हैं. मैं अपने पंजो के बल बैठ गया और धड़कते दिल से उसकी स्कर्ट को ऊपर उठाया और उसकी गुलाबी कच्छी के इलास्टिक को दोनों हाथों से पकड़ कर धीरे से नीचे सरकाया ….
>
> आईला…..
>
> मेरे जीवन का ये सबसे खूबसूरत नजारा था. उसकी नाभि के नीचे का भाग (पेडू) थोडा सा उभरा हुआ और उसके नीचे डबल रोटी के तिकोने टुकड़े कि तरह एक छोटी सी गुलाबी रंग की पिक्की रोम विहीन. चुकंदर सी रक्तिम पिक्की के बीच का चीरा 2.5 इंच से ज्यादा बड़ा नहीं था. पिक्की के ठीक बीच में दो पतली सी भूरे रंग की खड़ी लाइन आपस में चिपकी हुई. मदन-मणि अभी बनी ही नहीं होगी या बहुत छोटी होगी. पतली पतली जांघें और दाहिनी जांघ पर एक काला तिल. हे भगवान् मैं तो बस मंत्रमुग्ध सा देखता ही रह गया. केवल कुछ पलों की इस झलक में तो बस इतना ही देखा जा सकताथा पर ये हसींन नजारा तो मेरे जीवन का सबसे कीमती और अनमोल नजारा था.
>
> जूही एक झटके के साथ नीचे बैठ गयी. उसकी नाजुक गुलाबी फांके थोडी सी चौड़ीहुई और उसमेसे कलकल करती हुई सु सु की एक पतली सी धार….. फिच्च्च्च…... सीईई… पिस्स्स्स.. करती लगभग डेढ़ या दो फ़ुट तो जरूर लम्बी होगी.
>
> कम से कम दो मिनिट तक वो सु सु करती रही. पिस्स्स्स….. का मधुर संगीत मेरे कानों में गूंजता रहा. शायद पिक्की या बुर को पुस्सीइसीलिए कहा जाता है कि उसमे से पिस्स्स्स…का मधुर संगीत बजता है.छुर्रर…. याफल्ल्ल्ल्ल…. की आवाज तो चूत या फिर फुद्दी से ही निकलती है. अब तक जूही ने कम से कम एक लीटर सु सु तो जरूर कर लिया होगा. पता नहीं कितनी देर से वो उसे रोके हुए थी. धीरे धीरे उसके धार पतली होती गयी और अंत में उसने एक जोर की धार मारी जो थोडी सी ऊपर उठी और फिर नीचे होती हुई बंद हो गई. ऐसे लगा जैसे उसने मुझे सलामी दी हो. दो चार बूंदें तो अभी भी उसकीचूत के गुलाबी होंठों पर लगी रह गयी थी.
>
> मेरा लंड तो अकड़ कर तूफ़ान मचाने लगा. मैंने इतना ज्यादा तनाव आज से पहले कभी नहीं महसूस किया था. मुझे लगा कि अगर मैंने जल्दी ही कुछ नहीं किया तो मेरा लंड पेंट फाड़ कर बाहर आ जायेगा या मैं पेंट में ही झड़ जाऊँगा.
>
> जूही अब उठ कर थोडा आगे आ गयी. मैंने उसकी पेंटी को फिर से पकडा और धीरे धीरे ऊपर सरकाने लगा. वो जरा सा मचली. मैंने देखा उसकी पेंटी का आगे का भाग पिक्की के छेद वाली जगह पर थोडा सा गीला हो गया है. मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसकी चूत पर एक चुम्बन ले लिया. वाह क्या सुगंध थी बिलकुल कच्चे नारियल और पेशाब की मिलीजुली खुशबूको तोमैं आज तक याद करके रोमांचित हो उठता हूँ.
> इसी तरह एक बार वो जब हमारे साथ घुमने गयी उसे पेशाब लगा उसने मुझसे मुंह उधर करने को कहा और वो अक पेड़ के पीछे बेठ गयी . वो पेंटी खोल कर जल्दी से नीचे बैठ गयी. बुर से निकलती हुई पतली पेशाब की पीइस्स्स्स .. सीई…… का सिस्कारा और उससे आती मदहोश करने वाली महक मेरे लिए नयी नहीं थी.
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> काली पेंटी में फंसी उसकी खूबसूरत हलके हलके सुनहरी रोएँ जैसे बालोंसे सजी नाज़ुक सी बुर अब केवल 2-3 फीट की दूरी पर ही तो थी. जिसके लिए आदमी तो क्या देवदूत भी स्वर्ग जाने से मना कर दें. मैंने अपने आप को बहुत रोका पर उसकी बुर को देख लेने का लोभ संवरण नहीं कर पाया.
उफ़ .. भूरे भूरे छोटे छोटे सुनहरे बालो (रोएँ) से लकदक उसकी पिक्की का चीरा कोई 3 इंच का तो जरूर होगा. गुलाबी पंखुडियां. ऊपर चने के दाने जीतनी रक्तिम मदन मणि गुलाबी रंगत लिए भूमिका चावला और करीना कपूर के होंठों जैसी लाल सुर्ख फांके. फूली हुई तिकोन
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