खेल खिलाड़ी का पार्ट--6
गतान्क से आगे.............. भैया जी ने राम्या को इस बारे मे कुच्छ भी नही बताया कि वो आख़िर कैसे जसजीत प्रधान को हराएँगे.उनका मानना था की इस बारे मे जितने कम लोग जाने उतना बेहतर होगा.राम्या पे उन्हे पूरा भरोसा था पर वो 1 तजुर्बेकार & कामयाब राजनेता थे & अच्छी तरह जानते थे कि सियासत मे कुच्छ भी हमेशा के लिए नही होता & इसलिए उन्होने उसे कुच्छ नही बताया था.वो जानते थे कि प्रधान की छवि बिल्कुल सॉफ-सुथरी है & उसकी कमज़ोरी है उसका परिवार,बस इन्ही 2 बातो के गिर्द उन्होने उसे हराने का जाल बुना था. राम्या अपने घर जा चुकी थी & वो बिस्तर पे लेटे यही सब सोच रहे थे.उन्होने घड़ी देखी,रात के 11 बजने वाले थे.वो उठे & अपने घर जाने के लिए तैय्यार होने लगे. ------------------------------
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
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Posted By .....raj..... to Kamuk Kahaniyan.Com कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम at 11/03/2010 05:00:00 AM
गतान्क से आगे.............. भैया जी ने राम्या को इस बारे मे कुच्छ भी नही बताया कि वो आख़िर कैसे जसजीत प्रधान को हराएँगे.उनका मानना था की इस बारे मे जितने कम लोग जाने उतना बेहतर होगा.राम्या पे उन्हे पूरा भरोसा था पर वो 1 तजुर्बेकार & कामयाब राजनेता थे & अच्छी तरह जानते थे कि सियासत मे कुच्छ भी हमेशा के लिए नही होता & इसलिए उन्होने उसे कुच्छ नही बताया था.वो जानते थे कि प्रधान की छवि बिल्कुल सॉफ-सुथरी है & उसकी कमज़ोरी है उसका परिवार,बस इन्ही 2 बातो के गिर्द उन्होने उसे हराने का जाल बुना था. राम्या अपने घर जा चुकी थी & वो बिस्तर पे लेटे यही सब सोच रहे थे.उन्होने घड़ी देखी,रात के 11 बजने वाले थे.वो उठे & अपने घर जाने के लिए तैय्यार होने लगे. ------------------------------
---------------------------------------------------------------------------------------------- वो 2 साल बाद डेवाले लौटा था & अब उसे यहा की हर चीज़ बदली-2 लग रही थी.बस की खिड़की से बाहर देखा तो उसे लगा कि शहर मे भीड़ बहुत बढ़ गयी है....अगर वो जैल ना जाता तो भी आज क्या वो ऐसे सोचता? बस 1 लाल बत्ती पे रुकी थी.तभी बस की बगल मे 1 मोटरसाइकल रुकी जिसे 1 जवान लड़का चला रहा था & उसके पीछे उस से चिपक के 1 दिलकश चेहरे वाली लड़की बैठी थी.उसकी बाहे उसके बाय्फ्रेंड के गले मे थी & दोनो दुनिया की नज़रो से बेख़बर अपनी ही दुनिया मे मगन बातें कर रहे थे. ये देख उसके दिल मे 1 टीस सी उठी,1 ज़माना था वो भी ऐसे ही शहर की सड़को पे घुमा करता था मोना के साथ & वो भी ऐसे ही उस से चिपक के बैठती थी.कितना खूबसूरत जिस्म था मोना का & जब वो उसे चोद्ता था तो कैसे चिपेट जाती थी वो उस से!अब सब कुच्छ 1 सपना था.उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो चुकी थी & उसका ज़िम्मेदार सिर्फ़ 1 शख्स था.बस फिर चल पड़ी थी,उसने आँखे खोली तो दीवार पे लगे 1 पोस्टर से उसे जसजीत का मुस्कुराता चेहरा नज़र आया.उसकी आँखो मे खून उतर आया & उसने उसपे थूक दिया. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- "हां भाई.अब तुमलोगो से काम की बात करता हू.",डीसीपी प्रदीप वेर्मा ने टीवी बंद किया & अरदली जोकि सभी के लिए चाइ लेके आया था,उसके हाथो से कप लिया,"..दिव्या,सबसे पहले तुम्हे प्रोफेसर का पूरा परिचय दे दू.तुमने दावत प्रकाशन की ऱहस्य-रोमांच सीरीज़ का नाम सुना है?" "हां,सर.",पिच्छले 10-12 सालो से इस सीरीस ने जासूसी उपन्यसो की दुनिया मे धूम मचाई हुई थी. "तो ये वही प्रोफेसर हैं." "क्या?!",दिव्या चौंक पड़ी.उस सीरीस मे लेखक का नाम की जगह बस प्रोफेसर लिखा रहता था & उनकी ना कोई तस्वीर छपती थी ना किसी ने शायद ही कभी प्रोफेसर का असली नाम जानने की कोशिश की थी. "हां,दिव्या ये हैं प्रोफेसर अजिंक्या डिक्सिट क्रिमिनॉलजी के एक्सपर्ट & जाने-माने राइटर.",दिव्या ने अब उस लंबे,चौड़े,साँवले शख्स को नयी नज़र से देखा.उसने उनकी किताबें पढ़ते वक़्त हमेशा सोचा था कि वो कोई बुद्धा,संजीदा किस्म का शख्स होगा.उम्र मे ये शख्स बड़ा तो था मगर लगता नही था & ये तो बड़ा हंसोड़ था! "..& मैं चाहता हू कि तुम इनके साथ काम करो." "काम?" "डीसीपी,बुरा ना मानो तो मैं बात करू?" "हां,भाई.ज़रूर." "दिव्या जी,मैं अब कुच्छ नया लिखना चाहता हू.हर बार मेरी कहानियो मे हीरो 1 मर्द होता है.इस बार मैने सोचा कि क्यू ना 1 लड़की को हेरोयिन बनाउ & इसलिए मैं आपके साथ रह के आपका काम करने का ढंग & आपकी शख्सियत को स्टडी करना चाहता हू.",दिव्या को ये बात बड़ी नागवार गुज़री.उसे काम मे दखल वैसे ही नही पसंद था,उपर से प्रोफेसर उसे कुच्छ खास पसंद नही आया था.हाँ,उसकी कद-काठी बड़ी शानदार थी मगर उसकी बातें..उफ्फ!इस आदमी के साथ रोज़ काम करना....मैं तो पागल हो जाओंगी! "सर ये कैसे मुमकिन है.",दिव्या अपने बॉस से मुखातिब हुई,"..मेरा मतलब है हम सरकारी नौकर हैं & हम लोगों के काम करने के क़ायदे होते हैं,उसमे प्रोफेसर साहब कैसे फिट होंगे?" "वो सब मुझ पे छ्चोड़ो.तुम बस प्रोफेसर के साथ काम करो & यकीन करो दिव्या,तुम्हे ना केवल बहुत कुच्छ सीखने को मिलेगा बल्कि बहुत मुमकिन है कि तुम्हे केस सुलझाने मे आसानी भी हो जाए.",दिव्या का दिल तो किया की डीसीपी वेर्मा की बात काट दे मगर वो जानती थी कि अभी सही वक़्त नही था,उसे फिर मौका मिलेगा अपनी बात कहने का तब वो इस प्रोफेसर का पत्ता काटेगी. "& दिव्या जी,प्रोफेसर साहब नही सिर्फ़ प्रोफेसर कहिए.",प्रोफेसर डिक्सिट मुस्कुरा रहे थे. "जी.",दिव्या ने भी फीकी मुस्कान दी. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- रात के 11 बजे पूरा शहर घूमता हुआ वो शख्स कूपर पार्क आ पहुँचा था.कूपर पार्क डेवाले की बड़ी पुरानी कॉलोनी थी & यहा डेवाले के कुच्छ नामचीन परिवार रहते थे जिनमे से 1 परिवार था जसजीत प्रधान का.सभी पॉश कॉलोनीस की तरह यहा भी हिफ़ाज़त के लिए कॉलोनी के एंट्री & एग्ज़िट पायंट्स पे गेट लगे हुए थे जिनकी रखवाली गार्ड्स करते थे.इस वक़्त सभी गेट्स बंद थे & वो शख्स अंदर जाने का रास्ता ढूंड रहा था.कोई 10-15 मिनिट बाद आख़िर उसे 1 गार्ड अपना गेट छ्चोड़ बाहर आते दिखा.उसकी चाल की तेज़ी देख वो समझ गया कि उसे बहुत ज़ोरो से पेशाब लगा है. वो फ़ौरन कॉलोनी के अंदर दाखिल हो गया & सीधा प्रधान के बंगल के सामने पहुँचा.प्रधान का बुंगला भी किसी किले जैसा महफूज़ था.वो समझ गया कि बंगल के अंदर जाने के लिए उसे कयि मुसीबतें & ख़तरे मोल लेने पड़ेंगे.वो बंगल के सामने से इस तरह से गया जैसे उसे आगे के किसी मकान मे जाना हो मगर उसकी निगाहें चोरी से रास्ते के दोनो तरफ बने बुंगलो को देखे जा रही थी.उसे खुद पे हैरत भी हुई कि अब वो कैसे 1 ज़ारायंपेशा की तरह हरकते कर रहा था & वो भी इस तरह जैसे वो हमेशा से ईनी कामो मे डूबा रहा हो. प्रधान के बंगल थोड़ा आगे बढ़ने पे उसे सामने वाले मकानो की क़तार मे 1 दोमंज़िला बुंगला नज़र आया जोकि बंद पड़ा था.उसने अपनी चाल धीमी कर दी & गौर से उस घर को देखने लगा.मेन गेट पे लगा बड़ा सा ताला काफ़ी पुराना लग रहा था & बंगले की हालत से भी ऐसा लगता था कि वो काफ़ी दीनो से बंद पड़ा है.वो आगे बढ़ गया & उस बंगल के बाद 4 और बंगलो के बाद उसे 1 पार्क दिखा.आख़िरी बंगले & पार्क के बीच 1 रास्ता बना था वो उसी मे घूम गया & तब उसे 1 काम की चीज़ दिखी-1 सर्विस लेन. बंगंग्लो के पीछे 1 सर्विस लेन बनी थी जिसका इस्तेमाल साफ-सफाई वाले करते थे.वो उस लेन मे घुस उस बंद बंगले के पिच्छले हिस्से पे पहुँच गया जहा 1 लोहे का 10 फिट का ग्रिल लगा था.ग्रिल के उपर 1 कमरा बना था & उस कमरे & ग्रिल के बीच का फासला कोई 2-2.5 फिट होगा.उसने कमरे को देखा तो समझ गया कि वो कमरा नही बल्कि दीवारो & छत से उपर जा रही सीढ़ियो को ढका गया है.उसने 1 बार दोनो-तरफ देखा & फुर्ती से ग्रिल पे चढ़ गया.ग्रिल मे पैर रखने की जगह नही थी क्यूकी उसपे प्लास्टिक शीट लगाई गयी थी ताकि कोई अंदर ना देख पाए.वो किसी तरह ग्रिल के क़ब्ज़े जो दीवार से जुड़े थे उनपे पैरो के पंजे फँसा उसपे चढ़ रहा था. वो ग्रिल के उपर तक पहुँचा & उसपे लेटने लगा.ग्रिल & छत के बीच फासला बहुत कम था & वो पेट के बल ग्रिल पे लेट के अंदर की ओर कूदना चाहता था मगर जैसे ही उसने लेट के अंदर की ओर बदन को खिसकना चाहा कि छत & ग्रिल के बीच उसका बदन फँस गया.वो अपना बदन वाहा से निकालने की कोशिश करने लगा कि तभी उसे कोई आहट सुनाई दी & वो बिल्कुल स्थिर हो गया.वो आहट अब तेज़ हो रही थी.कोई उधर ही आ रहा था.कौन होगा?..कोई चौकीदार जो गश्त लगा रहा होगा?अगर उसे देख लिया तो उसका काम शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा.उसने और ज़ोर लगाया मगर वो बिल्कुल फँस गया था.वो आदमी नज़दीक आ रहा था,वो बुरी तरह छट-पटा रहा था लेकिन निकल नही पा रहा था.तभी वो आवाज़ बिल्कुल पास आ गयी. "हम....दी..ल...हिक..दे..चू..के..सा..हिक..सनम...तेरी..कसा..एम्म्म..हिक....",शराब के नशे मे धुत वो आदमी लड़खदाता हुआ आया & उस ग्रिल के आगे बढ़ बंगल की दीवार से टकराया & गाना गाता गिर गया.ग्रिल पे चढ़े हुए उसकी टाँगे उस शराबी की तरफ थी.वो सांस रोके वैसे ही अटका पड़ा था.शराबी दीवार से लगा गाना गाये जा रहा था.उसने फिर से छूटने की कोशिश शुरू कर दी & थोड़ी देर बाद वो उसमे कामयाब हो गया & बंगल के अंदर गिर पड़ा. "आए लखना....!",उसके अंदर गिरते ही आवाज़ आई,"..देखो ससुर हिया गिरे मोहम्मद रफ़ी बन रहे हैं..उठायो & ले चलो..अभी मालकिन देख लिहें तो नौकरी घुस जाए इनकी गंद मे!",बाल-2 बचा था वो.उसने अंदर का मुआयना किया.वो बंगल के पिछे के हिस्से मे था & सामने सीढ़ी नज़र आ रही थी.वो उधर बढ़ गया.थोड़ी देर बाद वो दूसरी मंज़िल पार कर छत के दरवाज़े पे था.दरवाज़ा खोल वो छत पे आया & पहले आस-पास देखा.सभी छते खाली थी.छत पे आकर उसने देखा कि वाहा भी 1 कमरा बना है जिसपे ताला पड़ा है.उसने इधर-उधर देखा & बरसात & धूप झेल चुके उस छ्होटे से ताले को पास पड़ी ईंट मार तोड़ डाला. कमरा बिल्कुल खाली था & खिड़किया बंद होने की वजह से अंदर बू सी फैली थी.उसने 1 खिड़की खोली & पता नही कितने महीनो बाद वो मुस्कुराया-उस खिड़की से प्रधान के बंगले का अहाता सॉफ दिखता था ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- दिव्या बिस्तर पे नंगी पड़ी थी & वेर्मा साहब पास खड़े अपने कपड़े उतार रहे थे।पूरे नंगे हो वो बिस्तर पे आए & दिव्या की दाई तरफ अपनी बाई करवट पे लेट गये।दिव्या ने अपनी गर्दन उठा दी तो उन्होने अपनी बाई बाँह उसकी गर्दन के नीचे लगा दी & फिर बाए हाथ से उसके बाए कंधे को सहलाने लगे & झुक के उसके नर्म होंठो को चूमने लगे.उनका दाया हाथ उसकी गोरी चूचियो पे आ लगा & उन्हे हौले-2 दबाने लगा.जवाब मे दिव्या ने अपनी बाई बाँह उनके गले मे डाल दी & उनके बॉल सहलाने लगी & अपनी जीभ उनके मुँह मे दाखिल करा दी. वेर्मा साहब उसे ले अपने दूसरे फ्लॅट मे आए थे.जब से दिव्या & उनका रिश्ता शुरू हुआ था वो फ़ुर्सत के लम्हो मे उसे ले यहा आया करते थे.उनके सख़्त हाथो के नीचे थोड़ी ही देर मे दिव्या की तनी चूचियाँ बड़ी हो और तन गयी & उसके गुलाबी निपल्स बिल्कुल कड़े हो गये.दोनो अभी भी अपनी ज़ुबानो से खेल रहे थे.तभी दिव्या की दाई बाँह,जोकि दोनो जिस्मो के बीच दबी पड़ी थी, पे उसे कुच्छ गरम महसूस हुआ.ये छुअन वो बड़े अच्छी तरह से पहचानती थी-ये वेर्मा साहब का लंड था & थोड़ी ही देर बाद वो उसके दाए हाथ मे गिरफ्तार हिलाया जा रहा था. वेर्मा साहब का दाया हाथ उसके सीने से नीचे उसके सपाट,चिकने पेट के मुलायम एहसास को महसूस करता हुआ & नीचे आया & उस हाथ की 1 उंगली दिव्या की गीली चूत मे घुस गयी,"उन्न्ञन्....!",दिव्या के अपने बॉस को चूमते लबो से एकआह निकली & वो कसमसाई.वेर्मा साहब की उंगली तेज़ी से उसकी चूत मे अंदर-बाहर होने लगी तो दिव्या ने अपना बदन ऐंतते हुए उनकी तरफ मोड़ा.वेर्मा साहब ने उसके होंठ आज़ाद किए & झुक के उसकी चूचिया चूसने लगे.दिव्या का बाया हाथ उनके बालो को नोच रहा था & दाया अभी भी उनके लंड को हिला रहा था.वो आहे भरते हुए उनके अपने सीने पे झुके सर को बीच-2 मे चूम रही थी.उसके बॉस ने उसके जिस्म मे आग लगा दी थी & अब वो बहुत तेज़ी से अपनी कमर हिला रही थी.वेर्मा साहब बारी-2 से उसकी चूचियो को अपने मुँह के हवाले कर रहे थे & साथ ही उसकी चूत को अपनी उंगली से मार रहे थे.दिव्या को अब कुच्छ होश नही था,उसे बस अपने जिस्म मे मची हलचल का ख़याल था & उसका सारा ध्यान अपने मज़े पे था.डीसीपी साहब ने उसकी चूचियो के बीच अपना चेहरा दफ़न कर ज़ोर से चूमा & अपनी उंगली उसकी चूत मे कुच्छ ज़्यादा ही अंदर घुसा दी. "ऊऊउउईईईईईई....!",दिव्या चीखी & अपनी बाई करवट पे हो अपनी जंघे आपस मे भींचती हुई अपनी टाँगे अपने बॉस की टाँगो के उपर चढ़ा दी & झाड़ गयी.वेर्मा साहब उसे प्यार से सहला रहे थे,उनका चेहरा अभी भी उसकी मोटी चूचियो के बीच घुसा था.उन्होने उसे सीधा लिटाया & उसकी टाँगे फैला दी.दिव्या बहुत मस्त लड़की थी & जब उसका जिस्म पूरी तरह से जाग जाता तो उसकी चूत आम लड़कियो से कुच्छ ज़्यादा ही रस बहाती थी. वेर्मा साहब उसकी फैली टाँगो के बीच उसकी चूत से मुँह लगा के लेट गये & उसकी चूत चाटने लगे.दिव्या ने दाया हाथ नीचे ले जा 1 बार प्यार से उनका सर सहलाया & फिर दोनो हाथो से अपनी कसी छातियो को दबाने लगी.उसका दिमाग़ थोड़ी देर पहले वेर्मा साहब के दफ़्तर मे हुई बातों पे चला गया....अजीत का आना क्या कम था जो अब वेर्मा साहब ने प्रोफेसर को भी उसके उपर थोप दिया था!अब उसे कहानी लिखनी थी तो वो उसका सरदर्द है,उसे खम्खा बीच मे घसीटने की क्या ज़रूरत थी....फिर कहानिया कौन सी सच्ची होती हैं?! वेर्मा साहब की लपलपाति जीभ ने 1 बार फिर उसे मस्त करना शुरू कर दिया था.अपने हाथो की 1-1 उंगली से अपने गुलाबी निपल्स के गिर्द दायरे बनाते हुए वो अपनी कमर हिला रही थी.डीसीपी वेर्मा उसकी भारी जंघे सहला रहे थे & बस कभी उसकी चूत तो कभी उसके दाने को चाट रहे थे.मस्ती की 1 तेज़ लहर उसके जिस्म मे दौड़ गयी तो उसने दाए हाथ को अपनी दाई चूची से हटा के वेर्मा साहब के बाल पकड़ उनका सर अपनी चूत से उठाया,"मैं प्रोफेसर के साथ काम नही करूँगी."
KHILADI KA paart--6 gataank se aage.............. Bhaiya ji ne Ramya ko is bare me kuchh bhi nahi bataya ki vo aakhir kaise Jasjit Pradhan ko harayenge।unka maanana tha ki is bare me jitne kam log jane utna behtar hoga।ramya pe unhe pura bharosa tha par vo 1 tajurbekar & kamyab rajneta the & achhi tarah jante the ki siyasat me kuchh bhi humesha ke liye nahi hota & isliye unhone use kuchh nahi bataya tha।vo jante the ki pradhan ki chhavi bilkul saaf-suthri hai & uski kamzori hai uska parivar,bas inhi 2 baato ke gird unhone use harane ka jaal buna tha। ramya apne ghar ja chuki thi & vo bistar pe lete yehi sab soch rahe the।unhone ghadi dekhi,raat ke 11 bajne wale the.vo uthe & apne ghar jane ke liye taiyyar hone lage. ---------------
vo 2 saal baad Devalay lauta tha & ab use yaha ki har chiz badli-2 lag rahi thi.bus ki khidki se bahar dekha to use laga ki shahar me bheed bahut badh gayi hai....agar vo jail na jata to bhi aaj kya vo aise sochta? bus 1 laal batti pe ruki thi.tabhi bus ki bagal me 1 motorcycle ruki jise 1 jawan ladka chala raha tha & uske peechhe us se chipak ke 1 dilkash chehre vali ladki baithi thi.uski baahe uske boyfriend ke gale me thi & dono duniya ki nazro se bekhabar aqpni hi duniya me magan baaten kar rahe the. ye dekh uske dil me 1 tees si uthi,1 zamana tha vo bhi aise hi shehar ki sadko pe ghuma karta tha Mona ke sath & vo bhi aise hi us se chipak ke baithati thi.kitna khubsurat jism tha mona ka & jab vo use chodta tha to kaise chipat jati thi vo us se!ab sab kuchh 1 sapna tha.uski zindagi barbad ho chuki thi & uska zimmedar sirf 1 shakhs tha.bus fir chal padi thi,usne aankhe kholi to deewar pe lage 1 poster se use jasjit ka muskurata chehra nazar aaya.uski aankho me khun utar aaya & usne uspe thuk diya. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- "haan bhai.ab tumlogo se kaam ki baat karta hu.",DCP Pradip Verma ne tv band kiya & ardali joki sabhi ke liye chai leke aaya tha,uske hatho se cup liya,"..Divya,sabse pehle tumhe Professor ka pura parichay de du.tumne Dawat Prakashan ki Rahasya-Romanch series ka naam suna hai?" "haan,sir.",pichhle 10-12 saalo se is series ne jasusi upanyaso ki duniya me dhoom machahyi hui thi. "to ye vahi professor hain." "kya?!",divya chaunk padi.us series me lekhak ka naam ki jagah bas professor likha rehta tha & unki na koi tasvir chhapti thi na kisi ne shayad hio kabhi professor ka asli naam jaanane ki koshish ki thi. "haan,divya ye hain Professor Ajinkya Dixit criminology ke expert & jane-mane writer.",divya ne ab us lumbe,chaude,sanvle shakhs ko nayi nazar se dekha.usne unki kitaben padhte waqt humesha socha tha ki vo koi buddha,sanjida kism ka shakhs hoga.umra me ye shakhs bada to tha magar lagta nahi tha & ye to bada hansod tha! "..& main chahat hu ki tum inke sath kaam karo." "kaam?" "DCP,bura na mano to main baat karu?" "haan,bhai.zarur." "divya ji,main ab kuchh naya likhna chahta hu.har baar meri kahaniyo me hero 1 mard hota hai.is baar maine socha ki kyu na 1 ladki ko heroine banau & isliye main aapke sath reh ke aapka kaam karne ka dhang & aapki shakhsiyat ko study karna chahta hu.",divya ko ye baat badi nagavar guzri.use kaam me dakhal vaise hi nahi pasand tha,upar se professor use kuchh kahs pasnad nahi aya tha.haan,uski kad-kathi badi shandar thi magar uski baaten..uff!is aadmi ke sath roz kaam karna....main to pagal ho jaongi! "sir ye kaise mumkin hai.",divya apne boss se mukhatib hui,"..mera matlab hai hum sarkari naukar hain & humlogo ke kaam karne ke kayde hote hain,usme professor sahab kaise fit honge?" "vo sab mujh pe chhodo.tum bas professor ke sath kaam karo & yakin karo divya,tumhe na keval bahut kuchh seekhne ko milega balki bahut mumkin hai ki tumhe case suljhane me aasani bhi ho jaye.",divya ka dil to kiya ki DCP verma ki baat kaat de magar vo janti thi ki abhi sahi waqt nahi tha,use fir mauka milega apni baat kehne ka tab vo is professor ka patta kaategi. "& divya ji,professor sahab nahi sirf professor kahiye.",professor dixit muskura rahe the. "ji.",divya ne bhi phiki muskan di. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- raat ke 11 baje pura shehar ghumta hua vo shakhs Cooper Park aa pahuncha tha.cooper park devalay ki badi purani colony thi & yaha devalay ke kuchh naamchin parivar rehte the jinme se 1 parivar tha jasjit pradhan ka.sabhi posh colonies ki tarah yaha bhi hifazat ke liye colony ke entry & exit points pe gate lage hue the jinki rakhvali guards karte the.is waqt sabhi gates band the & vo shakhs andar jane ka rasta dhund raha tha.koi 10-15 minute baad aakhir use 1 guard apna gate chhod bahar aate dikha.uski chal ki tezi dekh vo samajh gaya ki use bahut zoro se peshab laga hai. vo fauran colony ke andar dakhil ho gaya & seedha pradhan ke bungle ke samne pahuncha.pradhan ka bungla bhi kisi kile jaisa mehfuz tha.vo samajh gaya ki bungle ke andar jane ke liye use kayi musibaten & khatre mol lene padenge.vo bungle ke samne se is tarah se gaya jaise use aage ke kisi makan me jana ho magar uski nigahen chori se raste ke dono taraf bane bunglo ko dekhe ja rahi thi.use khud pe hairat bhi hui ki ab vo akise 1 zarayampesha ki tarah harkate kar raha tha & vo bhi is tarah jaise vo humesha se ini kaamo me dooba raha ho. pradhan ke bungle thoda aage badhne pe use samne vale makano ki qatar me 1 domanzila bungla nazar aaya joki band pada tha.usne apni chal dhimi kar di & gaur se us ghar ko dekhne laga.main gate pe laga bada sa tala kafi purana lag raha tha & bungle ki halat se bhi aisa lagta tha ki vo kafi dino se band pada hai.vo aage badh gaya & us bungle ke baad 4 aur bunglo ke baad use 1 park dikha.aakhiri bungle & park ke beech 1 rasta bana tha vo usi me ghum gaya & tab use 1 kaam ki chiz dikhi-1 service lane. bunglo ke peechhe 1 service lane bani thi jiska istemal saf-safai vale karte the.vo us lane me ghus us band bungle ke pichhle hisse pe pahunch gaya jaha 1 lohe ka 10 ft ka grill laga tha.grill ke upar 1 kamra bana tha & us kamre & grill ke beech ka fasla koi 2-2.5 ft hoga.usne kamre ko dekha to samajh gaya ki vo kamra nahi balki deewaro & chhat se upar ja rahi seedhiyo ko dhaka gaya hai.usne 1 baar dono-taraf dekha & furti se grill pe chadh gaya.grill me pair rakhne ki jagah nahi thi kyuki uspe plastic sheet lagayi gayi thi taki koi andar na dekh paye.vo kisi tarah grill ke kabze jo deewar se jude the unpe pairo ke panje fansa uspe chadh raha tha. vo grill ke upar tak pahuncha & uspe letne laga.grill & chhat ke beech faasla bahut kaam tha & vo pet ke bal grill pe let ke andar ki or kudna chahta tha magar jaise hi usne let ke andar ki or badan ko khiskana chaha ki chhat & grill ke beech uska badan fans gaya.vo apna badan vaha se nikalne ki koshish karne laga ki tabhi use koi ahat sunai di & vo bilkul sthir ho gaya.vo aahat ab tez ho rahi thi.koi udhar hi aa raha tha.kaun hoga?..koi chaukidar jo gasht laga raha hoga?agar use dekh liya to uska kaam shuru honme se pehle hi khatm ho jayega.usne aur zor lagaya magar vo bilkul fans gaya tha.vo aadmi nazdik aa raha tha,vo buri tarah chhatpata raha tha lekin nikal nahi pa raha tha.tabhi vo aavaz bilkul paas aa gayi. "hum....di..l...hic..de..chu..ke..sa..hic..sanam...teri..kasa..mmmm..hic....",sharab ke nashe me dhut vo aadmi ladkhadata hua aaya & us grill ke aage badh bungle ki deewar se takraya & gana gata gir gaya.grill pe chadhe hue uski tange us sharabi ki taraf thi.vo sans roke vaise hi atka pada tha.sharabi deewar se laga gana gaye ja raha tha.usne fir se chhutne ki koshish shuru kar di & thodi der baad vo usme kamyab ho gaya & bungle ke andar gir pada. "aye lakhna....!",uske andar girte hi aavaz aayi,"..dekho sasur hiya gire mohammad raphi ban rahe hain..uthayo & le chalo..abhi malkin dekh lihen to naukri ghus jaye inki gand me!",baal-2 bacha tha vo.usne andar ka muayana kiya.vo bungle ke pichhe ke hisse me tha & samne seedhi nazar aa rahi thi.vo udhar badh gaya.thodi der baad vo dusri manzil paar kar chhat ke darwaze pe tha.darwaza khol vo chhat pe aya & pehle aas-paas dekha.sabhi chhaten khali thi.chhat pe aakar usne dekha ki vaha bhi 1 kamra bana hai jispe tala pada hai.usne idhar-udhar dekha & barsat & dhoop jhel chuke us chhote se tale ko paas padi eent maar tod dala. kamra bilkul khali tha & khidkiya band hone ki vajah se andar bu si phaili thi.usne 1 khidki kholi & pata nahi kitne mahino baad vo muskuraya-us khidki se pradhan ke bungle ka ahata saaf dikhta tha ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- divya bistar pe nangi padi thi & verma sahab paas khade apne kapde utar rahe the.pure nange ho vo bistar pe aye & divya ki dayi taraf apni bayi karwat pe let gaye.divya ne apni gardan utha di to unhone apni bayi banh uski gardan ke neeche laga di & fir baye hath se uske baye kandhe ko sehlane lage & jhuk ke uske narm hotho ko chumne lage.unka daya hath uski gori chhatiyo pe aa laga & unhe haule-2 dabane laga.jawab me divya ne apni bayi banh unke gale me daal di & unke baal sehlane lagi & apni jibh unke munh me dakhil kara di. verma sahab use le apne dusre flat me aaye the.jab se divya & unka rishta shuru hua tha vo fursat ke lamho me use le yaha aaya karte the.unke sakht hatho ke neeche thodi hi der me divya ki tani chhatiya badi ho aur tan gayi & uske gulabi nipples bilkul kade ho gaye.dono abhi bhi apni zubano se khel rahe the.tabhi divya ki dayi banh,joki dono jismo ke beech dabi padi thi, pe use kuchh garam mehsus hua.ye chhuan vo bade achhi tarah se pehchanti thi-ye verma sahab ka lund tha & thodi hi der baad vo uske daye hath me giraftar hilaya ja raha tha. verma sahab ka daya hath uske seene se neeche uske sapat,chikne pet ke mulayam ehsas ko mehsus karta hua & neeche aaya & us hath ki 1 ungli divya ki gili chut me ghus gayi,"unnnn....!",divya ke apne boss ko chumte labo se 1 aah nikli & vo kasmasai.verma sahab ki ungli tezi se uski chut me andar-bahar hone lagi to divya ne apna badan ainthate hue unki taraf moda.verma sahab ne uske honth azad kiye & jhuk ke uski choochiya chusne lage.divya ka baya hath unke baalo ko noch raha tha & daya abhi bhi unke lund ko hila raha tha.vo aahe bharte hue unke apne seene pe jhuke sar ko beech-2 me chum rahi thi.uske boss ne uske jism me aag laga di thi & ab vo bahut tezi se apni kamar hila rahi thi.verma sahab bari-2 se uski choochiyo ko apne munh ke hawale kar rahe the & sath hi uski chut ko apni ungli se maar rahe the.divya ko ab kuchh hosh nahi tha,use bas apne jism me machi hulchul ka khayal tha & uska sara dhyan apne maze pe tha.DCP sahab ne uski chhatiyo ke beech apna chehra dafan kar zor se chuma & apni ungli uski chut me kuchh zyada hi andar ghusa di. "OOOOUUIIIIIIIIII....!",divya chikhi & apni bayi karwat pe ho apni janghe aapas me bhinchti hui apni tange apne boss ki tango ke upar chadha di & jhad gayi.verma sahab use pyar se sehla rahe the,unka chehra abhi bhi uski moti choochiyo ke beech ghusa tha.unhone use seedha litaya & uski tange faila di.divya bahut mast ladki thi & jab uska jism puri tarah se jag jata to uski chut aam ladkiyo se kuchh zyada hi ras bahati thi. verma sahab uski faili tango ke beech uski chut se munh laga ke let gaye & uski chut chatne lage.divya ne daya hath neeche le ja 1 baar pyar se unka sar sehlaya & fir dono hatho se apni kasi chhatiyo ko dabane lagi.uska dimagh thodi der pehle verma sahab ke daftar me hui baaton pe chala gaya....Ajit ka aana kya kam tha jo ab verma sahab ne professor ko bhi uske upar thop diya tha!ab use kahani likhni thi to vo uska sardard hai,use khamkha beech me ghasitne ki kya zarurat thi....fir kahaniya kaun si sachchi hoti hain?! verma sahab ki laplapati jibh ne 1 baar fir use mast karna shuru kar diya tha.apne hatho ki 1-1 ungli se apne gulabi nipples ke gird dayre banate hue vo apni kamar hila rahi thi.DCP verma uski bhari janghe sehla rahe the & bas kabhi uski chut to kabhi uske dane ko chat rahe the.masti ki 1 tez lehar uske jism me daud gayi to usne daye hath ko apni dayi choochi se hata ke verma sahab ke baal pakad unka sar apni chut se uthaya,"main professor ke sath kaam nahi karungi." kramashah...........
KHILADI KA paart--6 gataank se aage.............. Bhaiya ji ne Ramya ko is bare me kuchh bhi nahi bataya ki vo aakhir kaise Jasjit Pradhan ko harayenge।unka maanana tha ki is bare me jitne kam log jane utna behtar hoga।ramya pe unhe pura bharosa tha par vo 1 tajurbekar & kamyab rajneta the & achhi tarah jante the ki siyasat me kuchh bhi humesha ke liye nahi hota & isliye unhone use kuchh nahi bataya tha।vo jante the ki pradhan ki chhavi bilkul saaf-suthri hai & uski kamzori hai uska parivar,bas inhi 2 baato ke gird unhone use harane ka jaal buna tha। ramya apne ghar ja chuki thi & vo bistar pe lete yehi sab soch rahe the।unhone ghadi dekhi,raat ke 11 bajne wale the.vo uthe & apne ghar jane ke liye taiyyar hone lage. ---------------
vo 2 saal baad Devalay lauta tha & ab use yaha ki har chiz badli-2 lag rahi thi.bus ki khidki se bahar dekha to use laga ki shahar me bheed bahut badh gayi hai....agar vo jail na jata to bhi aaj kya vo aise sochta? bus 1 laal batti pe ruki thi.tabhi bus ki bagal me 1 motorcycle ruki jise 1 jawan ladka chala raha tha & uske peechhe us se chipak ke 1 dilkash chehre vali ladki baithi thi.uski baahe uske boyfriend ke gale me thi & dono duniya ki nazro se bekhabar aqpni hi duniya me magan baaten kar rahe the. ye dekh uske dil me 1 tees si uthi,1 zamana tha vo bhi aise hi shehar ki sadko pe ghuma karta tha Mona ke sath & vo bhi aise hi us se chipak ke baithati thi.kitna khubsurat jism tha mona ka & jab vo use chodta tha to kaise chipat jati thi vo us se!ab sab kuchh 1 sapna tha.uski zindagi barbad ho chuki thi & uska zimmedar sirf 1 shakhs tha.bus fir chal padi thi,usne aankhe kholi to deewar pe lage 1 poster se use jasjit ka muskurata chehra nazar aaya.uski aankho me khun utar aaya & usne uspe thuk diya. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- "haan bhai.ab tumlogo se kaam ki baat karta hu.",DCP Pradip Verma ne tv band kiya & ardali joki sabhi ke liye chai leke aaya tha,uske hatho se cup liya,"..Divya,sabse pehle tumhe Professor ka pura parichay de du.tumne Dawat Prakashan ki Rahasya-Romanch series ka naam suna hai?" "haan,sir.",pichhle 10-12 saalo se is series ne jasusi upanyaso ki duniya me dhoom machahyi hui thi. "to ye vahi professor hain." "kya?!",divya chaunk padi.us series me lekhak ka naam ki jagah bas professor likha rehta tha & unki na koi tasvir chhapti thi na kisi ne shayad hio kabhi professor ka asli naam jaanane ki koshish ki thi. "haan,divya ye hain Professor Ajinkya Dixit criminology ke expert & jane-mane writer.",divya ne ab us lumbe,chaude,sanvle shakhs ko nayi nazar se dekha.usne unki kitaben padhte waqt humesha socha tha ki vo koi buddha,sanjida kism ka shakhs hoga.umra me ye shakhs bada to tha magar lagta nahi tha & ye to bada hansod tha! "..& main chahat hu ki tum inke sath kaam karo." "kaam?" "DCP,bura na mano to main baat karu?" "haan,bhai.zarur." "divya ji,main ab kuchh naya likhna chahta hu.har baar meri kahaniyo me hero 1 mard hota hai.is baar maine socha ki kyu na 1 ladki ko heroine banau & isliye main aapke sath reh ke aapka kaam karne ka dhang & aapki shakhsiyat ko study karna chahta hu.",divya ko ye baat badi nagavar guzri.use kaam me dakhal vaise hi nahi pasand tha,upar se professor use kuchh kahs pasnad nahi aya tha.haan,uski kad-kathi badi shandar thi magar uski baaten..uff!is aadmi ke sath roz kaam karna....main to pagal ho jaongi! "sir ye kaise mumkin hai.",divya apne boss se mukhatib hui,"..mera matlab hai hum sarkari naukar hain & humlogo ke kaam karne ke kayde hote hain,usme professor sahab kaise fit honge?" "vo sab mujh pe chhodo.tum bas professor ke sath kaam karo & yakin karo divya,tumhe na keval bahut kuchh seekhne ko milega balki bahut mumkin hai ki tumhe case suljhane me aasani bhi ho jaye.",divya ka dil to kiya ki DCP verma ki baat kaat de magar vo janti thi ki abhi sahi waqt nahi tha,use fir mauka milega apni baat kehne ka tab vo is professor ka patta kaategi. "& divya ji,professor sahab nahi sirf professor kahiye.",professor dixit muskura rahe the. "ji.",divya ne bhi phiki muskan di. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- raat ke 11 baje pura shehar ghumta hua vo shakhs Cooper Park aa pahuncha tha.cooper park devalay ki badi purani colony thi & yaha devalay ke kuchh naamchin parivar rehte the jinme se 1 parivar tha jasjit pradhan ka.sabhi posh colonies ki tarah yaha bhi hifazat ke liye colony ke entry & exit points pe gate lage hue the jinki rakhvali guards karte the.is waqt sabhi gates band the & vo shakhs andar jane ka rasta dhund raha tha.koi 10-15 minute baad aakhir use 1 guard apna gate chhod bahar aate dikha.uski chal ki tezi dekh vo samajh gaya ki use bahut zoro se peshab laga hai. vo fauran colony ke andar dakhil ho gaya & seedha pradhan ke bungle ke samne pahuncha.pradhan ka bungla bhi kisi kile jaisa mehfuz tha.vo samajh gaya ki bungle ke andar jane ke liye use kayi musibaten & khatre mol lene padenge.vo bungle ke samne se is tarah se gaya jaise use aage ke kisi makan me jana ho magar uski nigahen chori se raste ke dono taraf bane bunglo ko dekhe ja rahi thi.use khud pe hairat bhi hui ki ab vo akise 1 zarayampesha ki tarah harkate kar raha tha & vo bhi is tarah jaise vo humesha se ini kaamo me dooba raha ho. pradhan ke bungle thoda aage badhne pe use samne vale makano ki qatar me 1 domanzila bungla nazar aaya joki band pada tha.usne apni chal dhimi kar di & gaur se us ghar ko dekhne laga.main gate pe laga bada sa tala kafi purana lag raha tha & bungle ki halat se bhi aisa lagta tha ki vo kafi dino se band pada hai.vo aage badh gaya & us bungle ke baad 4 aur bunglo ke baad use 1 park dikha.aakhiri bungle & park ke beech 1 rasta bana tha vo usi me ghum gaya & tab use 1 kaam ki chiz dikhi-1 service lane. bunglo ke peechhe 1 service lane bani thi jiska istemal saf-safai vale karte the.vo us lane me ghus us band bungle ke pichhle hisse pe pahunch gaya jaha 1 lohe ka 10 ft ka grill laga tha.grill ke upar 1 kamra bana tha & us kamre & grill ke beech ka fasla koi 2-2.5 ft hoga.usne kamre ko dekha to samajh gaya ki vo kamra nahi balki deewaro & chhat se upar ja rahi seedhiyo ko dhaka gaya hai.usne 1 baar dono-taraf dekha & furti se grill pe chadh gaya.grill me pair rakhne ki jagah nahi thi kyuki uspe plastic sheet lagayi gayi thi taki koi andar na dekh paye.vo kisi tarah grill ke kabze jo deewar se jude the unpe pairo ke panje fansa uspe chadh raha tha. vo grill ke upar tak pahuncha & uspe letne laga.grill & chhat ke beech faasla bahut kaam tha & vo pet ke bal grill pe let ke andar ki or kudna chahta tha magar jaise hi usne let ke andar ki or badan ko khiskana chaha ki chhat & grill ke beech uska badan fans gaya.vo apna badan vaha se nikalne ki koshish karne laga ki tabhi use koi ahat sunai di & vo bilkul sthir ho gaya.vo aahat ab tez ho rahi thi.koi udhar hi aa raha tha.kaun hoga?..koi chaukidar jo gasht laga raha hoga?agar use dekh liya to uska kaam shuru honme se pehle hi khatm ho jayega.usne aur zor lagaya magar vo bilkul fans gaya tha.vo aadmi nazdik aa raha tha,vo buri tarah chhatpata raha tha lekin nikal nahi pa raha tha.tabhi vo aavaz bilkul paas aa gayi. "hum....di..l...hic..de..chu..ke..sa..hic..sanam...teri..kasa..mmmm..hic....",sharab ke nashe me dhut vo aadmi ladkhadata hua aaya & us grill ke aage badh bungle ki deewar se takraya & gana gata gir gaya.grill pe chadhe hue uski tange us sharabi ki taraf thi.vo sans roke vaise hi atka pada tha.sharabi deewar se laga gana gaye ja raha tha.usne fir se chhutne ki koshish shuru kar di & thodi der baad vo usme kamyab ho gaya & bungle ke andar gir pada. "aye lakhna....!",uske andar girte hi aavaz aayi,"..dekho sasur hiya gire mohammad raphi ban rahe hain..uthayo & le chalo..abhi malkin dekh lihen to naukri ghus jaye inki gand me!",baal-2 bacha tha vo.usne andar ka muayana kiya.vo bungle ke pichhe ke hisse me tha & samne seedhi nazar aa rahi thi.vo udhar badh gaya.thodi der baad vo dusri manzil paar kar chhat ke darwaze pe tha.darwaza khol vo chhat pe aya & pehle aas-paas dekha.sabhi chhaten khali thi.chhat pe aakar usne dekha ki vaha bhi 1 kamra bana hai jispe tala pada hai.usne idhar-udhar dekha & barsat & dhoop jhel chuke us chhote se tale ko paas padi eent maar tod dala. kamra bilkul khali tha & khidkiya band hone ki vajah se andar bu si phaili thi.usne 1 khidki kholi & pata nahi kitne mahino baad vo muskuraya-us khidki se pradhan ke bungle ka ahata saaf dikhta tha ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- divya bistar pe nangi padi thi & verma sahab paas khade apne kapde utar rahe the.pure nange ho vo bistar pe aye & divya ki dayi taraf apni bayi karwat pe let gaye.divya ne apni gardan utha di to unhone apni bayi banh uski gardan ke neeche laga di & fir baye hath se uske baye kandhe ko sehlane lage & jhuk ke uske narm hotho ko chumne lage.unka daya hath uski gori chhatiyo pe aa laga & unhe haule-2 dabane laga.jawab me divya ne apni bayi banh unke gale me daal di & unke baal sehlane lagi & apni jibh unke munh me dakhil kara di. verma sahab use le apne dusre flat me aaye the.jab se divya & unka rishta shuru hua tha vo fursat ke lamho me use le yaha aaya karte the.unke sakht hatho ke neeche thodi hi der me divya ki tani chhatiya badi ho aur tan gayi & uske gulabi nipples bilkul kade ho gaye.dono abhi bhi apni zubano se khel rahe the.tabhi divya ki dayi banh,joki dono jismo ke beech dabi padi thi, pe use kuchh garam mehsus hua.ye chhuan vo bade achhi tarah se pehchanti thi-ye verma sahab ka lund tha & thodi hi der baad vo uske daye hath me giraftar hilaya ja raha tha. verma sahab ka daya hath uske seene se neeche uske sapat,chikne pet ke mulayam ehsas ko mehsus karta hua & neeche aaya & us hath ki 1 ungli divya ki gili chut me ghus gayi,"unnnn....!",divya ke apne boss ko chumte labo se 1 aah nikli & vo kasmasai.verma sahab ki ungli tezi se uski chut me andar-bahar hone lagi to divya ne apna badan ainthate hue unki taraf moda.verma sahab ne uske honth azad kiye & jhuk ke uski choochiya chusne lage.divya ka baya hath unke baalo ko noch raha tha & daya abhi bhi unke lund ko hila raha tha.vo aahe bharte hue unke apne seene pe jhuke sar ko beech-2 me chum rahi thi.uske boss ne uske jism me aag laga di thi & ab vo bahut tezi se apni kamar hila rahi thi.verma sahab bari-2 se uski choochiyo ko apne munh ke hawale kar rahe the & sath hi uski chut ko apni ungli se maar rahe the.divya ko ab kuchh hosh nahi tha,use bas apne jism me machi hulchul ka khayal tha & uska sara dhyan apne maze pe tha.DCP sahab ne uski chhatiyo ke beech apna chehra dafan kar zor se chuma & apni ungli uski chut me kuchh zyada hi andar ghusa di. "OOOOUUIIIIIIIIII....!",divya chikhi & apni bayi karwat pe ho apni janghe aapas me bhinchti hui apni tange apne boss ki tango ke upar chadha di & jhad gayi.verma sahab use pyar se sehla rahe the,unka chehra abhi bhi uski moti choochiyo ke beech ghusa tha.unhone use seedha litaya & uski tange faila di.divya bahut mast ladki thi & jab uska jism puri tarah se jag jata to uski chut aam ladkiyo se kuchh zyada hi ras bahati thi. verma sahab uski faili tango ke beech uski chut se munh laga ke let gaye & uski chut chatne lage.divya ne daya hath neeche le ja 1 baar pyar se unka sar sehlaya & fir dono hatho se apni kasi chhatiyo ko dabane lagi.uska dimagh thodi der pehle verma sahab ke daftar me hui baaton pe chala gaya....Ajit ka aana kya kam tha jo ab verma sahab ne professor ko bhi uske upar thop diya tha!ab use kahani likhni thi to vo uska sardard hai,use khamkha beech me ghasitne ki kya zarurat thi....fir kahaniya kaun si sachchi hoti hain?! verma sahab ki laplapati jibh ne 1 baar fir use mast karna shuru kar diya tha.apne hatho ki 1-1 ungli se apne gulabi nipples ke gird dayre banate hue vo apni kamar hila rahi thi.DCP verma uski bhari janghe sehla rahe the & bas kabhi uski chut to kabhi uske dane ko chat rahe the.masti ki 1 tez lehar uske jism me daud gayi to usne daye hath ko apni dayi choochi se hata ke verma sahab ke baal pakad unka sar apni chut se uthaya,"main professor ke sath kaam nahi karungi." kramashah...........
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
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Posted By .....raj..... to Kamuk Kahaniyan.Com कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम at 11/03/2010 05:00:00 AM
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