Friday, December 10, 2010

दो नौकरानियों की मस्त चुदाई-1,



हिंदी सेक्सी कहानियाँ


दो नौकरानियों की मस्त चुदाई-1,

दिसम्बर का महीना था और उसका स्कूल 15 मई तक था। मीना यूँ तो एक साधारण लड़की थी, सेक्सी भी नहीं लगती थी, पर उसकी छोटी छोटी चूंचियां और उसके चूतड़ मुझे बहुत भाते थे। वो नजरें चुरा कर मेरी इस हरकत को देखती थी पर कुछ नहीं कहती थी। धीरे धीरे अब हम दोनों बातें भी करने लगे थे। वो मुझे अधिकतर अपनी बड़ी बहन राधा के बारे में बताती रहती थी। उसकी बड़ी बहन की शादी होने वाली थी। उसकी बड़ी बहन 21 वर्ष की थी, यानी मीना से 2 साल बड़ी थी। अपने जीजू को लेकर मीना बहुत बातें करती थी, उसे लड़कों के बारे में बाते करना अच्छा लगता था। मैं उसे अब अपने पास बैठा कर चाय और कुछ खाने को देता था जिसे वो बड़े शौक से खाती थी।

एक दिन मैंने उससे हिम्मत करके पूछ ही लिया,"मीना, तेरा कोई लड़का दोस्त है?"

पहले तो वो शरमा गई, फिर कुछ गुस्से में बोली,"अंकल, राधा है ना, उसने मेरा सारा काम बिगाड़ दिया, उसने हम दोनों को एक साथ देख लिया था !"

"अच्छा, तुम दोनों क्या कर रहे थे।" मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया, वो गुस्से और जोश में बताती चली गई, यह भी भूल गई कि क्या बता रही है।

"रमेश मुझे अकेला पा कर मुझे चूमने लगा और मेरे शरीर को भी छूने लगा, तो दीदी अचानक आ गई और हमें देख लिया।"

"अरे प्यार में तो शरीर को छुआ जाता है, इधर उधर हाथ भी लगाते हैं, तो दीदी को तुमसे क्या लेना था?"

"हां यही तो, वो मेरी छातियों को दबा रहा था, मुझे चूम रहा था, तो वो जल गई !"

"कैसे, यहाँ छाती पर… ऐसे…?" मैंने उसकी छोटी सी एक चूंची को दबाते हुए कहा।

"अंकल, अब आप भी… हटो मैं नहीं बताती।" मेरी इस हरकत पर उसने नाराजगी जाहिर की।

" क्यों, अच्छा नहीं लगा? रमेश ने किया था तो कैसा लगा था। फिर हाथ लगाने से कुछ होता थोड़े ही है" मैंने स्थिति को सम्हालने की कोशिश की।

"अंकल, गुदगुदी होती है ना, मन में भी कुछ होता है, आपका हाथ लगाने से अभी तो हुआ ना !" उसने शरमाते हुए कहा।

"तो और लगाऊँ क्या? गुदगुदी में तो मजा आता है ना !"

"अंकल, अच्छा एक बार सिर्फ़, फिर नहीं… ठीक है ना !" उसने शरमाते हुए कहा। मेरा मन खिल उठा, यानि इसे मजा आया था और मैंने उसकी भावनाओं को जगा दिया था। मैंने धीरे से उसकी छोटी छोटी चूंचियों को सहलाना चालू कर दिया। कभी कभी उसके निपल भी उमेठ देता था। वो सिसकारी भरने लगी।

"कैसा लग रहा है मीना, मजा आ रहा है ना?"

"अंकल, हाय और करो, यहाँ दीदी थोड़े ही है, कौन मना करेगा, हाय अंकल!!!" वो अब मस्ती में आ गई थी। मेरा लण्ड पजामें में से जोर मारने लगा था।

"मीना, मुझे चुम्मा दोगी?" मैंने उससे किस करने को कहा। पर इतना कहने पर तो मेरे से लिपट ही गई और मेरे होंठो को अपने होंठो से दबा लिया। वह उत्तेजना में बह निकली थी। मेरे शरीर को कसती जा रही थी। मैंने उसकी वासना को बढ़ने दिया और उसे लेटा दिया। उसे दबाता हुआ उसके ऊपर चढ़ गया। वो मेरे शरीर के नीचे दब गई और आहें भरने लगी,"अंकल आप कितने अच्छे हैं, आह, मेरी इच्छा पूरी कर दो अंकल, मुझे चोद दो…हाय !" उसके मुँह से उसकी इच्छा प्रकट हो गई।

"मीना, तुम भी बहुत प्यारी हो, आह मेरा लण्ड पकड़ ले रे, मुठ मार दे !"

"अंकल, मेरे बोबे दबा दो, हाय राम रे ! मैं तो आज मर जाऊंगी !" मीना सिसकते हुए बोली। उसे मसलने और चूमने के बाद मैं उससे अलग हो गया।

"मीना, अपना सलवार कुर्ता उतार दो, मैं भी उतार देता हू, मजा करेंगे।" मैंने अपनी वासना को रोका नहीं, उसे चुदाने के लिये निमन्त्रण दे दिया।

"हाँ अंकल, बहुत मजा आ रहा था, और करें, अरे ये तो देखो, तुम्हारा गंगाराम कैसा हो रहा है।" हंसते हुए उसने मेरे लण्ड की तरफ़ इशारा किया।

"गंगाराम ? मतलब ?"

"अरे ये डण्डाराम, रमेश का भी ऐसा ही था।"

"मीना, फिर चुदाया था तुमने…?"

"अंकल, नहीं, दीदी ने काम बिगाड़ दिया था ना !"

"पहले कभी चुदाया था क्या?"

"अब छोड़ो ना, अब कर लेते हैं, अंकल आपने तो आण्टी को खूब चोदा होगा, कैसा लगता है?" मीना का शरीर चुदासा हो रहा था। मेरा लण्ड भी चोदने को फ़डक रहा था,"खुद चुदवा के देख लो, तो पता चल जायेगा।"

मैंने अपना पजामा उतार दिया। मेरा तन्नाया हुआ लौड़ा देख कर वो शरमा गई। मैंने उसका सलवार और कुर्ता उतार दिया और उसके नंगे बदन को प्यार करने लगा। वो नंगी ही शरमाती और बदन को छुपाती रही। पर जब मैंने उसकी चूत को खोल कर अपने होंठ उस पर रखे तो वह चिहुंक उठी।

"अंकल यहाँ नहीं करो… शर्म आती है !" वो सिमटती हुई बोली।

पर किया उल्टा ही, उसने अपने दोनों पांव चौड़े कर के चूत को खोल दिया और झुकते हुए मेरे बाल पकड़ कर चूत का पूरा जोर मेरे मुख पर लगा दिया। मैंने भी उत्तर में अपनी जीभ उसकी योनि में घुसा दी।

"अंकल, मर जाऊंगी, हाय रे !" वो नीचे हाथ बढ़ा कर मेरे लण्ड को पकड़ने की कोशिश करने लगी। मैं अब बिस्तर में एक तरफ़ आ गया।

"अंकल, मैं आपके लौड़े से खेल लूँ, मजा आयेगा !" अपनी इच्छा जाहिर की।

मैं सीधा हो गया और उसने मेर खड़ा लण्ड पकड़ लिया और धीरे धीरे ऊपर नीचे करके मुठ सा मारने लगी।

"आपका लौड़ा मस्त है, लाल टोपी कितनी सुन्दर है !"

"लौड़ा नहीं, लण्ड बोलो, लण्ड शब्द अच्छा है !"

"मैं तो लौड़ा ही कहूंगी, मेरी माँ को भी मैंने यही कहते सुना है !" मैं हँस पड़ा। उसने मेरे लण्ड के सुपाड़े को चाटना शुरू कर दिया। उत्तेजना बहुत बढ़ चुकी थी। मैंने मीना के शरीर को दबा कर नीचे कर लिया और और उस पर चढ़ बैठा।

"मीना, तैयार हो जाओ चुदने के लिये !"

"हाय रे, तैयार हूँ, हाय घुसेड दो लौड़ा… मेरे राजा !" वह उत्तेजना से मचल उठी। उसने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा ली। लण्ड गीली चूत को चूमता हुआ फ़क से अन्दर उतर आया। मैंने धीरे से लण्ड दबाया। चूत टाईट थी। पर मैंने धीरज रखा। धीरे धीरे अन्दर उतारने लगा।

"अंकल थोड़ा सा दर्द हो रहा है और धीरे करो।" मुझे पता चल गया कि फूल अभी खिला नहीं है, सील टूटी नहीं है। मैंने उसे प्यार से चूमा और कहा,"थोड़ा सा दर्द शुरू में होगा, फिर तो बाद में मजे ही मजे हैं !"

"चलो ना, चोद दो ना अब !" मैंने उसे आश्चर्य से देखा और उसकी चूत में जोर लगा कर पूरा जड़ तक घुसा डाला। वो चीख उठी।

"अरे, हाय रे… मर गई मैं तो, निकालो वापस !" उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उसका चेहरा विकृत हो उठा, दांत भींच लिये। मैं चुप से उस पर लेट गया और उसे प्यार करने लगा।

"बस बस मीना, शान्त हो जाओ, बस हो गया जो होना था, अब स्वर्ग में चलें?" आंसू भरे चेहरे में भी वो हंस पड़ी।

"इतना तेज दर्द होगा, यह मुझे नहीं मालूम था। अब और तो नहीं होगा ना?"

"बस दो तीन धक्कों में होगा, फिर चूत की मिठास में सब दर्द घुल जायेगा।" मैं हल्के से और प्यार करते हुये धक्के मारने लगे। उसे दर्द होता रहा पर वो सहती रही। फिर उसकी रफ़्तार भी बढ़ने लगी, मुझे पता चल गया कि दर्द की जगह मिठास ने ले ली है। मेरे लण्ड में भी भीनी भीनी मिठास का मजा आ रहा था। उसकी टाईट चूत का मजा अभूतपूर्व था। शरीर उसका दुबला था पर बहुत ही लचीला था। वो भी अपनी चूत को घुमा घुमा कर लण्ड का मजा ले रही थी। उसकी कमर मशीन की तरह बल खा कर धक्के मार रही थी। चूत में लाल खून उसकी चिकनाई को बढ़ा रहा था। फ़च फ़च की मधुर आवाजें आने लगी थी। मेर सुपाड़ा भी और लाल हो गया था। चूत की रगड़ से लण्ड मस्त हुआ जा रहा था। मेरे शरीर में वासना की चिन्गारियाँ निकलने लगी थी। मेरा तन अगन से तड़प उठा था। लग रहा था कि अभी कुछ लण्ड के रास्ते सब कुछ बाहर आ जायेगा।

अचानक मीना की वासनायुक्त खुशी की चीख निकल पड़ी,"अंकल जीऽऽऽ, ये मुझे क्या हो रहा है, हाय रे…मेरा पेशाब निकला जा रहा है… !!"

"निकाल दे मेरी रानी, कर दे पेशाब यहीं पर, कर दे…रोक मत !" मैं भी उसके पेशाब का मजा लेना चहता था, पर वो पेशाब नहीं था, उसकी चूत की लहरें बता रही थी कि वो झड़ रही थी। शायद झड़ने का उसका पहला अनुभव था या इस तरह से वो पहली बार झड़ी थी। मेरा लण्ड भी फूल कर कुप्पा हो रहा था। उसकी चूत के ढीले पड़ते ही मैंने अपना लण्ड उसकी चूत की जड़ में दबा दिया और अपना पूरा जोर लगा दिया। अन्दर का लावा फूट पड़ा। मैंने अब लण्ड बाहर खींच लिया और फ़ुहार निकल पड़ी। रुक रुक के वीर्य बाहर आ रहा था। उसका पूरा पेट भीग गया। ढेर सारा वीर्य बाहर जमा हो गया। मैंने हाथ से उसे उसके पेट पर मल दिया।

"छी: ! ये क्या कर दिया। सारा गन्दा कर दिया अंकल आपने तो !" वह मुझ पर झुंझला उठी। फिर उसने वहीं पेट पर से वीर्य हाथ में लेकर मेरे मुँह पर मल दिया और हंस पड़ी। मैंने पहली बार अपने ही वीर्य का स्वाद चखा, फ़ीका फ़ीका सा, लसलसा, चिकना। मैं बिस्तर से उठ खडा हुआ और बटुए में से उसे पचास रुपए निकाल कर कहा,"मीना यह तेरा इनाम है, तू जब भी चुदवायेगी मैं तुझे पचास रुपए दूंगा।"

मीना खुश हो गई उसने झट से रुपये रख लिये। बाथ रूम में जा कर हमने अपने लण्ड और चूत साफ़ कर लिये। मीना पचास रुपए पा कर बहुत खुश थी,"अंकल, आप बहुत अच्छे हैं, अब मैं अपने लिये झुमके खरीदूँगी।"

" कल भी चुदवायेगी क्या…?"

"आप मुझे पचास रुपए दें तो मैं अभी और चुदवा लूँ !" कह कर वो मेरी तरफ़ बढ़ गई।

"तो फिर आ जाओ मेरी बाहों में !"

"अंकल, एक बात पूछूँ ?"

"हां जरूर, मेरी जान !"

"राधा को भी पचास रुपए दोगे?" मैं सुनते ही चौंक गया।

"वो भी क्या चुदवायेगी?"

"उसकी शादी होने वाली है ना, उसे चुदाना ही नहीं आता है, वो सीख भी लेगी और उसके पास कुछ पैसे भी आ जायेंगे।"

"उसने तुम्हारे साथ ऐसा किया फिर भी तुम उसके लिये ऐसा सोचती हो, तुम हो ही प्यारी !"

"प्यारे अंकल जी, मान जाओ ना !"

"उसे कल ले आना, मजा तो रहेगा ही और वो चुदना सीख भी जायेगी !"

मैं बिस्तर पर सीधा लेट गया और मीना मेरे ऊपर चढ़ गई। मेरा लण्ड उसकी चूत में सरसराता हुआ अन्दर जाने लगा और सिसकियों का बाज़ार गर्म हो गया।

मीना अगले ही दिन राधा को मेरे पास लेकर आई !

राधा के साथ क्या हुआ ? यह अगले भाग में
दो नौकरानियों की मस्त चुदाई-2, Do nokarani ki mast chudai – 2
दूसरे दिन मैं सवेरे नहा धो कर निपटा ही था कि मुझे अपने कमरे के बाहर एक सुन्दर सी परी नजर आई। मेरी आंखें चकाचौंध हो गई। भरी जवानी लिये एक नवयौवना मेरे द्वार पर खड़ी थी।

"कौन है आप, अन्दर आईये !" उसने सर हिला कर मना कर दिया और अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे निहारने लगी। मेरे दिल पर जैसे सैकड़ों बिजलियां गिर पड़ी। मैं एकबारगी तो कांप गया। ऐसी बला की सुन्दरी मेरे घर पर !? यकीन नहीं हो रहा था। उसके भारी स्तन उसके कुर्ते में से झांक रहे थे। भरा मदमस्त बदन, गोल गोल उभरे हुए सुन्दर चूतड़, जवानी जैसे छलकी पड़ रही थी। इतने में मीना लहराती हुई अन्दर आई।

"यह राधा दीदी हैं ! पसन्द आई?" मीना ने परिचय कराया।

"इतनी सुन्दर ! मीना, ये तो खुदा की कलाकृति है !"

"है ना ! इसे आज आपके लिये सजाया है, इसे सब कुछ सिखाना है … दीदी ! ये सिखायेंगे !"

राधा शर्म से नीचे देखने लगी।

"चल ना … वापस चल !" राधा कुछ नर्वस नजर आ रही थी।

"अरे दीदी, सुबह से तो अंकल जी का नाम जप रही थी, अब क्या हुआ?" मीना ने उसकी पोल खोलते हुए कहा।

"मीना, चल ना, मैं तो मर जाऊंगी !!" राधा शर्म से लाल हो रही थी।

"अंकल जी इसे अन्दर तो ले जाईये !" मीना ने राधा को अन्दर मेरे सामने धकेल दिया।

मैंने जैसे ही उसका हाथ पकड़ा। मुझे और उसे जैसे बिजली के झटके से लगे। मेरे हाथ लगाते ही वो सिमट गई, जैसे छुईमुई हो। मैंने हिम्मत करके उसकी बांह थाम ली और उसे प्यार से दुल्हन की तरह अन्दर लाया। और बिस्तर पर बैठा दिया।

"अंकल इसे प्यार से चोदना, देखो मजा आना चाहिये। मैं जितने घर का काम निपटाती हूँ !"

"मीना मत जा, रुक जा।" उसकी आंखो में विनती थी। वो नर्वस हो रही थी।

"मेरे सामने चुदायएगी क्या ?" मीना ने फ़ूहड़ तरीके से कहा।

"हाय मीना, मत बोल ऐसा !" वो शरम से सिमटती जा रही थी। मैंने मीना को इशारा किया कि वो जाये।

"मीना, देखो सुहागरात को तुम्हारा मर्द तुम्हें चोदेगा, तुम्हें सब आना चाहिये, मत चिन्ता करो, मैं हूँ ना, सब सिखा दूंगा !" मैंने उसे तसल्ली दी।

"अंकल, कुछ होगा तो नहीं ना? !!" वो शरम से मुँह छिपाने लगी।

"राधा, सुनो वो तुम्हारे वक्ष से शुरू करेगा, और उसे दबाते हुए तुम्हरा कुर्ता उतारेगा !" मैंने उसके स्तनों पर हाथ डालते हुए कहा। उसके बोबे नरम और नाजुक से लगे। निपल कड़े हो चुके थे। मैं कुर्ता ऊपर खींचने लगा।

"सुहागरात को कुर्ता नहीं, मैं ब्लाऊज पहनूंगी !" उसने कुछ हिचकिचाते हुए कहा। मुझे हंसी आ गई।

"अच्छा तो ये कुर्ता तो उतारो … "

" नहीं , पहले आप उतारो !" उसने शरमाते हुए कहा। उसकी शर्म दूर करना जरूरी था। मैंने अपना पजामा उतार दिया। मेरा तन्नाया हुआ लण्ड बाहर उछल कर आ गया। वो लण्ड देखते ही शरमा गई।

"उई मां, यह तो बहुत बड़ा है, और ऐसा लोहे जैसा?" उसकी आह निकल गई।

"अब तो उतार दो ना, देखो मैंने भी उतार दिया है !"

शरमाते हुए राधा ने भी अपने कपड़े उतार दिये। उसका तराशा हुआ चिकना बदन, लुनाई से भरा हुआ, चमकता हुआ, मेरी धड़कने बढ़ाने लिये काफ़ी था। मैं उसके समीप आ गया, मेरे बिना कुछ कहे उसने मेर लण्ड पकड़ लिया, सुपाड़ा बाहर निकाल लिया और मुठ में भर लिया और दबा लिया।

"आह, अंकल जी, जब यह अन्दर जायेगा तो मर ही जाऊंगी !" और उसने मेरा लण्ड जबर्दस्त दबा दिया। मेरे मुख से आह निकल गई। राधा मेरे लण्ड को दबाती चली गई और आह भरती गई। मेरी उत्तेजना बहुत तेज हो उठी। एक परी जैसी नवयौवना मेरा लण्ड दबा रही थी।

"कितना कठोर लण्ड है, मां रीऽऽऽ, मस्त है !" उसका हाथ कसता गया। मेरे शरीर में जैसे रंगीन फ़ुलझड़ियाँ छूट पड़ी। सारा पानी जिस्म में सिमटता सा लगा। और … और हाय … मेरा वीर्य बाहर आने की तैयारी में था।

"मीना मैं तो गया, मेरा निकला !" मीना भाग कर आई और गिलास को मेरे लण्ड की टोपी पर रख दिया।

"अरे अंकल जी, ये क्या … निकल गया माल ?" मीना हंस पड़ी। वीर्य पिचकारी बन कर फ़व्वारे की तरह लण्ड से बाहर आने लगा और गिलास में उसे मीना ने एकत्र करने लगी।

"लो सभी इसे टेस्ट करो !"

राधा अपनी अंगुली तर करके वीर्य चाटने लगी। मीना ने भी वीर्य चाटा, राधा ने एक अंगुली में भर कर मेरे मुँह में भी डाल दिया। मुझे तो वीर्य का स्वाद कुछ खास नहीं लगा, पर वे दोनों पूरा चट कर गई।

"ये सब राधा के रूप और यौवन का कमाल है, मैं इसकी जवानी सह नहीं पाया !" मैंने राधा की जवानी की तारीफ़ की। वो भी शरमा गई। मुझे थोड़ी शर्मिन्दगी सी लगी पर अपनी कमजोरी लावा बन कर बाहर निकल चुकी थी।

"अंकल जी, मुझे सिखाओगे नहीं क्या ?" राधा ने फिर से विनती की। मेरा अंग अंग फिर से फ़ड़क उठा। उसके गाण्ड की गोलाईयां को मैंने दबा कर अपनी ओर खींच लिया। उसका नरम नरम जिस्म मेरे शरीर में आग भरने लगा। मेरा लण्ड फिर से जाग उठा। उसकी चूत से मेरा लण्ड टकराने लगा। मीना भी उसकी चूचियाँ दबाने लगी। हम दोनों ने मिल कर राधा को बिस्तर पर लेटा दिया।

"तू जा ना अब, तेरे सामने मुझे शरम आयेगी !"

"आहाऽऽ ! बड़ी आई शरमाने वाली ! रेशमा से तो खूब खेलती है? अब मुझसे शरमायेगी !"

"जा ना मीना, चुदते हुए मुझे शरम आयेगी !" इतने में ऊपर आ चुका था और राधा के जिस्म को कब्जे में कर रहा था। मेरा लण्ड अब उसकी चूत पर दब रहा था।

"मीना, अब जा नाऽऽऽ … आह … मीना घुस गया रे !"

"चोद दो अंकल इसे ! जरा भी मत रहम करना !" मीना ने राधा को छेड़ते हुए कहा।

मेरा लण्ड थोड़ा सा और अन्दर गया और राधा बोल पड़ी,"धीरे से, मेरी चूत अभी तक कुंवारी है, झिल्ली धीरे से तोड़ना !" राधा ने मुझे लिपटाते हुए कहा।

मैंने हल्के से लण्ड अन्दर सरकाया। पर मीना ने शरारत कर दी। उसने मेरे दोनों चूतड़ों को सहलाते हुए जोर से धक्का दे दिया। लण्ड फ़च से अन्दर तक बैठ गया। राधा चीख उठी।

"हाय रे अंकल ! कहा था ना धीरे से … !" उसकी आंखों से दर्द के मारे आंसू निकल आये।

"राधा ! यह धक्का मीना ने दिया है !" मैंने प्यार से उसे चूम कर शान्त किया।

पर मीना ने फिर से मेरे चूतड़ को जोर से एक धक्का और दे दिया। लण्ड फिर से जड़ तक घुस गया। वो फिर से चीख उठी।

"मजा आया ना दीदी, तेरी फ़ुद्दी में मोटा लौड़ा फंस गया है अब !"

"साली, हरामजादी ! मुझे लग रही है और तुझे मजाक सूझ रहा है ! अंकल जी लौड़ा धीरे मारो ना !"

"झिल्ली फ़ुड़वायेगी ना, तो दर्द का भी मजा ले, अंकल ने कल मेरी झिल्ली भी फ़ोड़ डाली थी … खूब मजा आया था … अंकल चोद मारो ना साली को !" मीना शरारत करने में जरा भी पीछे नहीं हट रही थी। मैंने धीरे धीरे लण्ड अन्दर बाहर करना चालू कर दिया। मीना ने अंगुली में थूक लगा कर राधा की गाण्ड में सरका दी। मीना मेरी गोलियों से भी खेल रही थी। राधा के बोबे मैंने मसलने चालू कर दिये थे, उसके निपल कड़े हो चुके थे, उसे रबड़ की तरह ऊपर खींच कर छोड़ रहा था। कुछ ही देर में राधा तैयार हो चुकी थी, गाण्ड में अंगुली का मजा भी ले रही थी।

"हाय मीना, सच में तेरे अंकल जी ने तो मुझे चोद चोद कर मस्त कर दिया है, मस्त लौड़ा है रे, मीना गाण्ड में जल्दी जल्दी अंगुली कर ना !"

मेरे धक्के भी अब तेज हो चुके थे। राधा भी उछल उछल कर चुदवा रही थी। मेरा बिस्तर खून के धब्बों से लाल हो गया था। राधा अपनी गाण्ड और खोल कर अंगुलि अन्दर ले रही थी। अब राधा बल खाने लगी थी। सिसकारियाँ तेज हो उठी । उसकी बाज़ारू भाषा निकल पड़ी थी।

"मीना, हाय रे, हरामी लण्ड ने मुझे पेल दिया, हाय रे चुद गई मैं तो … आहऽऽ मैं गई … राजाऽऽऽ चोद … चोद रे, मैया रीऽऽऽ !"

"मेरी बहना आज मौका है, फ़ुड़वा ले अपनी चूत … अंकल गन्डमरी को लौड़ा मार मार कर चोद दे !"

" अंकल जी, हाय चूत मार दी रे, मेरी फ़ुद्दी चुद गई, आह्ह मेरा माल निकला रे , हरामजादी … मेरी चूत फ़ोड़ डाली रे … " और उसने अपनी चूत सिकोड़ ली। राधा झड़ने लगी, उसका पानी निकलने लग गया था।

"अंकल जी इसकी गाण्ड मारो, जल्दी करो … !" मीना ने मेरा कड़क लण्ड बाहर निकाला और अंगुली निकाल कर उसकी जगह लण्ड रख दिया। मैंने जरा सा जोर लगाया और लण्ड गाण्ड में घुसता चला गया। राधा फिर से चीख उठी।

"हाय री, बस ना, दर्द हो रहा है, अब मेरी गाण्ड फ़ाड़ोगे क्या !"

"अरे वाह, खुद तो झड़ गई, अंकल प्यासे रह जायेंगे क्या, अंकल जी चोद दो राधा गाण्ड को … साली की फ़ाड़ दो !" मीना अपनी देसी भाषा में मेरी तरफ़दारी कर रही थी।

मेरा लण्ड फूल कर तन्ना रहा था। मैं राधा को कैसे छोड देता, मेरा जिस्म तरावट में मस्त हो रहा था। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड को अन्दर तक चोद रहा था। मीना को यह देख कर मजा आ रहा था कि राधा आज पूरी तरह से चुद गई है। मीना ने अब मुझे झाड़ने के लिये मेरी गाण्ड में भी अंगुली डाल दी। मुझे अंगुली घुसते ही दुगना मजा आ गया।

"मीना, अंगुली से मेरी गाण्ड और चोद दे, बड़ा मजा आ रहा है।" मैंने मीना को और उकसाया। पर मेरी हालत झड़ने जैसी होने लगी। उसकी अंगुली मेरी गाण्ड में तेज मजा दे रही थी और मैं अब उस आनन्द को झेल नहीं पा रहा था। मुझे अचानक लगा कि बस अब पूरा हो गया।

"राधा, बस मैं आ गया, हाय निकल रहा है … आह्ह्ह !"

"अंकल, निकाल दो अपना माल, लगाओ जोर !"

" हाय निकला रे … मीना !" मैं राधा से लिपट पड़ा। मीना ने मेरा लण्ड उसकी गाण्ड में से निकाल लिया और अपने हाथ से मुठ मारने लगी। मेरी पिचकारी छूट पड़ी और मीना ने लण्ड को अपने मुँह में ले लिया। मेरा वीर्य झटके खा खा कर निकल रहा था। मीना उसे पीती जा रही थी। अन्त में मेरा लण्ड पूरा निचोड़ कर साफ़ कर लिया और मेरे लण्ड को लटकता छोड़ दिया। राधा चुद कर मस्त हो गई थी। हमारी चुदाई पूरी हो चुकी थी।

राधा धीरे से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी। मैंने भी अपने कपड़े पहन लिये। मीना चाय बना लाई थी। आराम से हम सभी ने चाय नाश्ता किया। मैंने अपनी जेब से सौ रुपए राधा को दिये और पचास रुपए मीना को दिये। राधा खुश हो गई, मीना को बिना चुदे ही पैसे मिल गये थे।

"अंकल राधा को सौ क्यों दिये?"

"उसकी मस्त भरी जवानी के, मस्ती भरी चूत के, फिर गाण्ड भी तो मरवाई थी ना !"

"और मुझे पचास क्यो दिये, आपने मुझे तो चोद ही नहीं है ?"

"तुमने आज मेरी गाण्ड में अंगुली डाल कर जो मस्त मजा दिया था, ये उसके हैं !"

राधा आज खुश थी, उसे चुदाना आ गया था साथ में पैसे भी मिल गये थे।

"अंकल कल भी आऊँ मैं, मुझे सौ रुपए दोगे?" राधा ने कुछ अविश्वास से मुझे पूछा।

"जरूर, पर चुदाने के साथ साथ गाण्ड भी मरवानी होगी सौ रुपए में, आज की तरह !"

"हाँ, हाँ ! आप कितने भले है अंकल जी !"

राधा ने मुझे चूम लिया। मैंने मीना और राधा के बोबे दबाये और उन्हें कल आने का न्योता दे दिया। मीना और राधा दोनों खुश हो कर जा रही थी और मुझे मुड़ मुड़ कर हाथ हिला रही थी।




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