Friday, December 10, 2010

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मेरे देवता!



हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मेरे देवता! 

शमीम बानो कुरेशी 


मेरी एक प्रशंसक ने अपनी एक विचित्र कहानी भेजी है… यू तो ये मात्र एक साधारण सी घटना है, चुदायी तो बहुत सी नौकरानियो की होती रहती है, कुछ पेट के लिये और कुछ वासना की तृप्ती के लिये। इसमे चुदायी के जो पल पेश किये गये है वे वास्तविक है… बाकी लिखने का अन्दाज और मसाला ऊपर से मिलाया है। तो चटखारे ले कर पढिये… आपकी शमीम बानो का नया अन्दाज…। मै बी ए करने के बाद नौकरी के लिये भटकती रही। मेरे पति मेरी शादी के एक साल बाद ही बीमारी मे चल बसे थे। घर मे अकेली थी, खाने के भी लाले पडे हुये थे। तभी मेरे पास वाली एक लडकी जो मेरी सहेली थी, ने बताया कि हरी सेठ के यहां एक नौकरानी की आवश्यकता है, सब काम करोगी तो तो 2000 रुपया देगा साथ मे तुम्हारी इस टूटी फ़ूटी झोंपडी से भी निजात मिल जायेगी। फिर हंस कर बोली कि वो अपने आप को हेरी कहलवाना पसन्द करता है। मैने उस लडकी को साथ लिया और उस बंगले पर गयी। उसने हेरी सेठ को बताया कि एक काम वाली लायी हूं पर काम के साथ उसे रहने को कमरा भी चाहिये। उसने मुझे बुलाया और मुझसे सवाल जवाब किये। मैने अपनी समझ के अनुसार उसे उत्तर दिये। तब मुझे उसने रख लिया। मुझे रसोई मे काम करने के लिये जरूरी कपडे दिये और मेरे लिये साफ़ सुथरे दिखने के लिये कुछ कपडे भी दे दिये। हेरी की पत्नी भी एक कार दुर्धटना मे चल बसी थी। कार सीखते समय वो एक ट्रक से टकरा गयी थी।

मैं रोज ही साफ़ कपडे पहन कर खाना बनाती थी। झाडू, पोंछा और कपडे धोना आदि करती थी। मै अपनी एक छोटी सी पिटरिया मे दो चार जो अच्छे कपडे बचे थे लेकर घर के फ़्रण्ट साईड मे सर्वेन्ट क्वार्टर मे रहने लगी थी। अधिकतर वो
रात को आठ बजे घर आते थे और फिर शराब पीते थे और खाना खा कर सो जाते थे। उस समय मैं अपने क्वार्टर मे ही बंद रहती थी। पर हां मेरी चुदायी कैसे आरम्भ हुयी ये आपको बताना चाह्ती हू। रविवार का दिन था। मैने समय से चाय नाश्ता बना दिया था। शायद उस दिन हेरी सेठ ने मुझे पहली बार ध्यान से देखा था। सवेरे मैं नहा कर आयी थी सो मेरे
बाल भी गीले थे सो मैने सर पर तोलिया लपेट रखा था। हेरी मुझे एकटक देख रहा था। उसने इस एक महिने मे मुझसे पहली बार बात की थी। "तुम्हारी शादी हो गयी…"

"जी हां, 18 की होते ही हो गयी थी" मैने कुछ झिझकते हुये कहा "क्या करते है तुम्हारे साहब" "जी… वो एक बीमारी में दो साल पहले गुजर गये" इस दौरान वो मुझे नीचे से ऊपर देखते रहे। "शाम को खाना मत बनाना… एक पार्टी मे जाना है…" "जी … अच्छा" "कभी होटल मे खाया है…" मेरी कंची आंखे ऊपर उठी … और मैं मुस्करा उठी "सेठ जी, हमारी ऐसी किस्मत कहां… ये तो आपकी दया है कि आपने मुझे इस लायक समझा… और यहां रख लिया… यही बहुत है।"
उसकी पारखी नजरे मुझे शायद मेरे शरीर के अन्दर तक देख रही थी। अचानक हेरी बोला "चलो … शाम को मेरे साथ चलना… तुम्हे मजा आयेगा" मैं चौंक गयी… ये हेरी सेठ को आज क्या हो गया। पर आज्ञा तो आज्ञा थी। हेरी सेठ ने सामने एक ब्यूटी पार्लर मे मुझे भेज दिया। पार्लर मे फोन पर उसने कुछ हिदायते दी। जब मै पार्लर से आयी तो शायद उसके ख्यालो से कही ज्यादा बढ कर थी। उसकी आंखे फ़टी रह गयी। मुझमे जैसे रूप का ज्वालामुखी फ़ूट रहा था। उसने महंगी और आधुनिक जीन्स और टॉप में मुझे देखा, उसकी आंखे चमक उठी। मेरी अंगो के उभार और कटाव जैसे उस पर कहर ढा रहे थे। मैं शरम से सिमटी जा रही थी। मैं लम्बे बालो वालो वाली, तीखे नयन नक्शे वाली, एक आजकल की लडकी बन कर हेरी के सामने आयी थी। "आह्ह्ह, ये हीरा… यानी गुदडी का लाल…"
जी मै… साक्षी हू… आपने क्या पहचाना नही" "अरे नहीं… तुम तो बला की सुन्दरी हो…" मेरी कंची आखे देख कर, मेरा रूप और यौवन को देख कर वो पिघला जा रहा था। मैं शरमा कर अपने कमरे मे भाग आयी। मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा। कहीं हेरी का मन मुझ पर तो नही आ गया। मै गहरी सांसे लेती रही, जाने कब मै सपनो मे खो गयी।

शाम को हेरी ने मुझे फिर से पार्लर भेजा और महंगी साडी और रेडीमेड ब्लाऊज मे सजा दिया। उसकी काली कार मे हम लोग निकल पडे। हेरी मुझे बडी ही आसक्तीपूर्ण नजरो से देख रहा था। पर मुझे बहुत ही अजीब सा लग रहा था।
जिन्दगी मे पहली बार मैने ऐसी ड्रेस पहनी थी। पार्टी मे मुझे सबसे मिलाया गया। मेरा बीए होने का फ़ायदा मुझे यहां मिला। सभी से मैं अंग्रेजी मे बात कर रही थी। हेरी ये देख कर मुझसे बहुत प्रभावित हुआ। कुछ ही देर मे थक
गयी इस ढकोसले से…। मैने आखिर हेरी से कह ही दिया "कितनी देर और लगेगी…" वो भांप गया। "साक्षी, अगर तुम थक गयी हो तो ऊपर मेरा एक पर्मानेन्ट सुइट है, तुम वहां आराम कर सकती हो" "थेन्क्स, हेरी…" मैने उसे अंग्रेजी मे ही कहा तो वो खुश हो गया। ऊपर कमरे मे पहुंचते ही मैने अपनी भारी भरकम साडी उतार फ़ेंकी और पेटीकोट
मे ही बिस्तर पर लेट गयी। मेरी आंखे नींद मे खू गयी। पता नही कब मेरे कपडे ऊंचे हो गये थे। मुझे अपने शरीर पर कुछ गुदगुदी सी हुयी। लगा की कोई मेरा पेटीकोट ऊंचा कर रहा है। मै हेरी को तुरंत पहचान गयी। मुझे कंपकंपी
सी आ गयी। तभी मेरी पोन्द पर हेरी ने एक चुम्मा लिया। मेरी तबियत जैसे हरी हो गयू। तभी लगा कि मेरी पेण्टी उसने एक अंगुली से उठा कर नीचे सरका दी। पंखे की ठण्डी हवा का झोंका मेरे चूतडो पर लहरा गया। मैने कस कर अपनी
आंखे बन्द कर ली और आगे होने वालो पलों का बेचैनी से इंतज़ार करने लगी। इतना मधुर सा नशा तो मेरे पति के साथ भी नही आया था। मेरे इलास्टिक जैसे ब्लाऊज के ऊपर ही हाथ लगा कर मेरे स्तन दबाने लगा। मै पीठ के बल लेती
हुयी, इस तेज वासना भरे आनन्द का मजा लेने लगी। दूसरी ओर मैं शरम से भी मरी जा रही थी कि ये हेरी को क्या हो गया है। मुझसे रहा नही गया… मैने अपनी आंखे बंद किये ही सीधी हो गयी और सोने का बहाना बना कर लेटी रही। वो
पहले तो एक झटके के मुझसे दूर हो गया। फिर देखा कि मैं नींद मे हू तो उसने मेरा पेटीकोट फिर से ऊपर उठा कर मेरी हल्की झाण्टों भरी चूत देख ली। मैने अपने होंठ दबा लिये कि कही सिस्कारी ना निकल पडे। हेरी ने झुक कर मेरी चूत पर चुम्मा लिया और मेरे चूत मे आये हुये पानी कि अपनी जीभ से चाट लिया। हाय रे मैं तो मर ही गयी… दूसरे ही क्षण उसके हाथ मेरे उभरे हुये स्तनो पर थे और होंठ मेरे होंठो पर थे। मुझसे उत्तेजना सहन नही हुयी और थोडी सी कसमसा गयी। हेरी उछल कर सीधा खडा हो गया जैसे कुछ हुआ ही नही हो। पर उसका लण्ड पेण्ट का तम्बू बना रहा था। उसका तन्नाया हुआ लण्ड देख कर मेरा मन विचलित हो उठा। वासना की चिन्गारी भडक गयी थी। "अरे आप … कब आये…"
"हां आं… बस अभी अभी आया हूं" "ओह्ह मुझे लगा जैसे आप मेरे साथ… छीः… मेरा मतलब था कि…" "शर्माओ मत… कह दो… यहा तुम्हारे और मेरे सिवाय कोई नही है" मैं तो वैसे ही शरम के मारे घायल सी हो गयी थी… भला क्या बोलती… "हाय जी… नही… आप कहिये ना… मुझे तो बस ऐसा लगा था कि कोई …" वासना मेरे अन्दर जोर मार रही थी। मेरी सोई हुयी अभिलाषा को जगा रही थी… मन चुदाने को व्याकुल हो उठा… पर क्या करू… "साक्षी, सॉरी… मैं ही तुम्हे अपने दिल मे समाने की कोशिश कर रहा था" "जी , ऐसा मत कहिये , मेरा दिल धडकने लगा है … आप कुछ कर रहे थे…" "आप इज़ाज़त दे तो कहू कि… रात जवां है … आप जवां हो … बन्दा भी जवान है… रात का का तकाजा है कि आप मुझे अपने पर निछावर होने का मौका दे…" हेरी का मन मचल उठा था। मेरी आंखे जैसे मन्नते मांग रही थी कि हे भगवान्… इस रसीली भग को सामने उठे हुये लिंग का स्वाद चखा दे। हाय रे मेरे हेरी… मेरे देवता… आजा… मेरी बरसो की जलन और प्यास शांत कर दे। और जैसे ऊपर वाले ने मेरी सुन ली। हेरी ने कहा "साक्षी… कहो इजाज़त है…"
मैने सर झुकाते हुये शरम से मुख ढांपते हुये हां मे सर हिला दिया। " यह अब आपका ही है…" मैने अपनी आंखे खोली… उसका कडकता हुआ लण्ड मेरे मुख के सामने इठला रहा था। "हाय ये क्या… मै तो मर गयी…" मैने अपने अपना मुख एक तरफ़ कर लिया। उसका लाल सुपाडा मेरे होंठो से छू गया और धीरे से आगे पीछे होंठो पर गुदगुदी करने लगा। मेरी चूत मे से पानी की दो बूंदे चू गयी। एक चूत मे मीठी सी लहर दौडने लगी। मेरे चेहरे पर पसीना छलक आया। मेरा मुख खुल गया और हेरी ने लण्ड धीरे से मुख मे प्रवेश करा दिया। मैने स्वाद ले कर उसे धीरे धीरे चूसना आरम्भ कर दिया। उसका लण्ड भी मीठी कसक के मारे और फ़ूल गया। जैसे जैसे मै होंठो को तेजी से चलाने लगी उसके मुख से सिसकारिया फ़ूटने लगी। मेरा दिल मचलने लगा चुदने के लिये। वो नीचे से पूरा नंगा था, मैने उसके कसे हुये चूतडों को पकड लिया और अपने ओर खींचने लगी। उसने मेरा ब्लाऊज उतार दिया और अपना लण्ड अब मेरी चूंचियो पर रगडने लगा। मेरे मुख से अब शरम तोड कर सिसकारिया निकलने लगी। मैने धीरे से अपने पेटीकोट का नाडा खोल दिया और उसे ढीला कर दिया। पेटीकोट नीचे उतर सा गया। मेरी पेण्टी गीली हो गयी थी। तभी हेरी ने मुझे धीरे से लेटा दिया। अपनी टी शर्ट उतार दी और पूरा नंगा हो गया। उसने मेरे पेटीकोट को खुला देखा और मुस्करा दिया। मुझे बहुत ही शरम आ गयी, पर चुदना तो था ही ना। उसने पेरा पेटीकोट उतार दिया और पेण्टी भी नीचे खीच दी। मेरी चूत को देखते ही उसने आह भरी। "हाय, ये मत देखो ना … मुझे देखो" "मेरी साक्षी … मेरे घर मे थी और मुझे ही नजर नही आयी…"
"मुझे शरम आ रही है … लाईट बंद कर दो ना" "नही … फिर तुम्हारी इस भरी जवानी का मजा कैसे लूंगा" उसका लण्ड मेरी चूत से टकराने लगा था। चूत की खुजली जैसे बढ गयी। "राजा मैं मर जाऊंगी … लाईट बुझा दो ना…" मैं हौले से जैसे फ़ुसफ़ुसायी। पर उसका लण्ड मेरी बरसो से भूखी चूत मे तरावट पैदा कर रहा था और अन्दर घुसने लगा। मै अपने पांव पसारने लगी। चूत का द्वार खुलने लगा… सुपाडा अन्दर प्रवेश कर चुका था। मेरा मन तडप उठा और मेरी चूत स्वयं ही लण्ड का साथ देने लगी। ऊपर उठती चली गयी और लण्ड अन्दर बैठता चला गया। साथ ही हेरी के शरीर का भार मुझ पर बढ गया, वो मेरे ऊपर धीरे से कोहनी के बल लेट गया। मेरे अधर उसके अधरो को पीने को अधीर हो रहे थे। अन्ततः दोनो खुले हुये होंठ एक दूसरे से चिपक गये और उन्हे पीने लगे। उसकी कमर धीरे धीरे मेरी चूत पर ऊपर नीचे रगड मार रही थी। आह्ह्ह्… मै चुदने लगी थी। हम दोनो मदहोशी मे डूबने लगे थे। हमारे नयन एक दूसरे को हसरत भरी निगाहो से निहार रहे थे। अब वो भी मदहोशी के आलम मे बंद होने लगे थे। एक दूसरे मे समाने में लगे थे… मन की कोमल भावनाओ की कलिया जैसे फ़ूल बन कर चटक रही थी। उसकी कमर और मेरी चूत एक साथ चल रही थी। शरीर मे कसक भरी मिठास भरी जा रही थी। मेरी चूचियां और निपल कठोर होते जा रहे थे। वो उन्हे बडे प्यार से दबा और मसल रहा था। ऐसी प्यार भरी चुदायी मैने पहली बार मह्सूस की थी। हाय काश जीवन भर का साथ होता तो मै निहाल हो जाती … पर मेरी ऐसी किस्मत कहां। ऐसी प्यारी चुदायी, ऐसा प्यारा इन्सान… । उसकी चोदने की रफ़्तार बढ गयी थी।
मैं सुख के सागर मे गोते लगाने लगी थी। पानी अब चूत से रिसने लगा था। मुझे अतिउत्तेजना होने लगी थी। मेरे शरीर मे झडने जैसी लहरे उठने लगी थी… मुझे लगा कि मैं अब झडी… हाय अब झडी… और हाय रे मेरी चूत मे से पानी निकल
ही गया। मैने हेरी को कुछ नही कहा, चुदती रही और झडती रही… वो मेरे ऊपर छाया हुआ लेटा रहा और चोदता रहा। कुछ ही देर मे मुझमे फिर से तरावट आने लगी और फिर से उत्तेजना मे भरने लगी। मैने सुना था कि गाण्ड मराने मे भी
बहुत मजा आता है, क्यो ना ट्राई किया जाये… मैने जीवन मे कभी भी गाण्ड नही चुदवायी थी। पर कैसे कहू… कही बुरा ना मन जाये… या और भी कुछ्…। मैने हिम्मत की और झिझकते हुये कहने लगी "जानू… एक बात कहू…"
" हां मेरी जान…।" जैसे बहुत दूर से आवाज आ रही हो। वो चुदायी बडी तन्मयता के साथ कर रहा था। वो भी तो बहुत सालो बाद चोदने का मजा ले रहा था। "… आपको अच्छा लग रहा है ना…।" "हां मेरी रानी…" "मुझे अब और करो…" "चोद तो रहा हू ना…" वो हांफ़ते हुये बोला "मेरा मतलब है… कि वो और भी करो…" मेरी झिझक से वो समझ गया
"मतलब, क्या पिछाडी…" मैने उसके होंठो पर हाथ रख दिया। वो हंस पडा… "अच्छा उल्टी हो जाओ और घोडी बन जाओ…" उसने अपना फ़ूला हुआ लण्ड बाहर खींच लिया। चूत के पानी से उसका लण्ड सरोबार था। मैं तुरंत उल्टी हो गयी। मेरे दोनो चूतड खिल कर उसके सामने आ गये। "हाय रब्बा रे… तुम्हारी पिछाडी क्या मस्त है… मेरा तो निकल ही जायेगा"
उसका गीला लण्ड मेरी गाण्ड के छेद से चिपक गया और घुसने की कोशिश करने लगा। "ढीली छोडो ना… इसना कस रखी है…" मैने ज्योही गांड ढीली की कि लगा कोई गरम सा मूसल अन्दर उतर गया हो। मुझे तेज जलन सी हुयी।

"हाय रे… धीरे… लग रही है…।" मैं तडप सी उठी। हेरी ने अपना लण्ड निकाल कर क्रीम लगा दी और मेरी गाण्ड मे ट्यूब पूरी खाली कर दी। फिर उसने ज्योही घुसाया… बडे आराम से फ़िसलता हुआ पूरा ही समा गया। मुझे इस बार दर्द भी
नही हुआ और लण्ड झेलने में कोई परेशानी नही हुयी। धीरे धीरे उसका लण्ड मेरी गाण्ड मे मचलने लगा। मेरी गाण्ड चोदने लगा। मुझे भी अब भला सा लगने लगा। फिर एक सुहानी सी मस्ती आने लगी। मैने अपनी आंखे बंद कर ली और उसके
लण्ड का मजा लेती रही। मेरे चूतडो को देख देख कर वो और ही अधिक मदहोश हो रहा था। एक चिकने घोडे की तरह मुझे चोद रहा था … तभी मुझे लगा कि उसका लण्ड मेरी गाण्ड मे जोर की ठोकरे मारने लगा था। मेरी चूत का पानी टपकने लगा था। मैने धीरे से अपनी चूत मे अंगुली घुसा ली और गांड चुदायी के साथ चूत का मजा भी लेने लगी। तभी वो चीख सा उठा "मेरी जानू… आह मैं तो गया… मेरा पीयेगी" मै जैसे तन्द्रा से जागी और उसका लण्ड गाण्ड से निकाल लिया। उसका लण्ड पकड कर जोर से मुठ मारा और उसके मोटे लण्ड को मुख मे छुपा लिया। तभी गरम गरम सा वीर्य मेरे मुख मे भरने लगा। मैं उसे बडे चाव से पीने लगी। उसका माल निकलता ही रहा… मै चूसती ही गयी। मेरी चूत मे अब उसने अपनी अंगुली घुसा दी और तेजी से अन्दर बाहर करने लगा। मैं तडप सी उठी और उससे लिपट गयी, कुछ ही देर मे मैने फिर से अपना पानी छोड दिया। हेरी ने मुझे लिपटा कर अपने ऊपर लेटा लिया और मेरी कंची आंखो मे खो गया "साक्षी… यदि बुरा ना मानो तो… क्या तुम मेरी…" मैं समझ गयी थी कि वो क्या कहना चाह रहा है… मैने उसके होंठो पर अन्गुली रख कर चुप कर दिया। "मेरे राजा… प्लीज… आपने तो मुझे जीत लिया है… पर तुम्हे मेरी कसम 15
दिनो तक सोचो… मैं तो आपके घर मे ही हू ना… जल्द बाजी नहीं…" "तुम्हारे मे वो सभी गुण है जो एक सभ्य पत्नी मे होने चाहिये।" उसकी वाणी मुझे अब ईश्वर की वाणी लग रही थी… मेरे मन मे लड्डू फ़ूटने लगे थे। मेरी आंखो मे आंसू भर आये … होनी को देख रही थी… लगा कि ये होनो नही बल्कि अनहोनी है… मेरे बिखरे हुये टूटे फ़ूटे भविष्य मे उजाला कैसे हो गया। मुझे हरि मे देवता नजर आने लगे थे। मैं अनजाने मे उनके कदमो मे गिर पडी। "मुझे ऐसे सपनो मत दिखाओ… मेरी ऐसी किस्मत कहां … मेरे देवता… मुझे मुझसे मजाक ना करो" मेरा दिल जाने क्यो रो पडा… ये सब सच नही है। "ओह सॉरी… सॉरी… मै भी मजाक कितना अच्छा कर लेता हू ना… सच सा लगने लगता है…" मेरा दिल एक बार फिर से धक से रह गया… मेरी आंखे फ़टी की फ़टी रह गयी। पर मैं जल्दी ही सम्भल गयी। हेरी उठ कर बाथ रूम मे चला गया। मेरी अजीब सी स्थिति थी… मैं रो भी नही पा रही थी। मुझे लगा कि ये सेठ लोग शायद ऐसे ही मजाक करते होंगे। मैने अपना सर झटका और मुस्करा उठी। हेरी बाथ रूम से निकल आया और मुझसे लिपट कर लेट गया। हम दोनो नींद की आगोश मे चले गये। सवेरे हमने चाय नाश्ता किया और घर चले आये। दिन को उन्होने मेरे पति का डेथ सर्टीफ़िकेट लिया और किसी वकील को बुला लिया। "आपकी कोई दूसरी शादी…" "नहीं , पर आप क्यू पूछ रहे है…"
"कॉर्ट में शादी करने से पहले ये सब जरूरी है" मेरी आंखे फ़ैल गयी। "ओह्ह्ह, मेरे हेरी …" मै वकील के सामने ही उससे लिपट गयी। "अब भई, अब ये तो मजाक नही है" हेरी ने मुझे प्यार से देखा। वकील के साथ, मेरे वो भी मुस्करा रहे थे… यानि मेरे देवता !!!


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