Wednesday, September 3, 2014

FUN-MAZA-MASTI जिस्म की प्यास --1

FUN-MAZA-MASTI

 जिस्म की प्यास  --1
घर से इन्स्टिट्यूट और इन्स्टिट्यूट से घर , यही थी मेरी जिंदगी. अपने सपनो की ही दुनिया में खोई रहती थी. एक जानूँ सॉवॅर था मुज पे. बहुत बड़ी फॅशन डिज़ाइनर बनने का. मा और भाई भी मेरा पूरा साथ देते थे. भाई तो जब भी घर आता, घंटो मेरे साथ बैठ के मेरे डिज़ाइन डिसकस करता, कुछ को अच्छा कहता, कुछ को बहुत बाड़िया और कुछ में तो इतनी काम्यन निकलता के मूज़े हैरानी होती, उसे डिज़ाइन्स के बारे में इतनी पहचान कैसे है. वो मार्केटिंग में स्पेशलाइज़ कर रहा था.
म्बबस की पड़ाई में इतना ज़ोर होता है पर फिर भी मेरी छोटी बहन रिया सनडे को मेरे डिज़ाइन पकड़ के बैठ जाती और अपनी राई देती, कई बार तो उसकी राई बिल्कुल किसी प्रोफेशनल डिज़ाइनर की तरहा होती.
मा मुझे किचन में बिल्कुल काम नही करने देती थी, बस रोज सुबह की छाई बनाना मेरी ड्यूटी थी, क्यूंकी पापा सुबह मेरे हाथ की छाई पीना पसंद करते थे. कहते हैं दिन अच्छा निकलता है और मूज़े भी बहुत खुशी होती.
मेरी सारी फ्रेंड्स अपने बॉय फ्रेंड्स के साथ ज़यादा वक़्त गुज़रा करती थी, पर मैं लड़कों से हमेशा दूर रही. मूज़े इस बात से कोई फराक नही पड़ता था की मेरा कोई बॉय फ्रेंड नही. मुझे तो जो भी वक़्त मिलता नये नये डिज़ाइन्स सोचने में ही निकल जाता. घर से निकलती तो लड़कों की चुबती हुई नज़रें मेरा पीछा करती, मेरा जिस्म है ही इतना मस्त की देखनेवाले जलते रहते थे पर कोई मेरे पास फटकने की कोशिश नही करता था. मेरे पापा और भाई का दर सब के दिलों में रहता था. इन्सिटुते में भी लड़के मेरे आयेज पीछे रहते पर मैं कोई भाव नही देती.
बस अपनी दो फ्रेंड्स के साथ ही ज़यादा टाइम गुजरती. क्यूंकी ह्यूम ग्रूप प्रॉजेक्ट्स मिलते हैं तो ग्रूप में एक दो लड़के भी होते हैं. मैं उनसे सिर्फ़ प्रॉजेक्ट के बारे में ही बात करती थी और उनको बी पता था की अगर कोई ज़यादा आयेज बादने की कोशिश करेगा तो मैं ग्रूप ही छ्चोड़ दूँगी.. इस लिए इन दो लड़कों से मेरे दोस्ती बस काम तक ही थी,ना वो आयेज बड़े ना मैने कोई मोका दिया. धीरे धीरे गली के लड़के भी मेरी इज़्ज़त करने लगे और उनकी आँखों से वासना भारी नज़रें गायब हो गई. पर इन्स्टिट्यूट के लड़के मुझे देख कर आँहें भरते थे, बहुत कोशिश करते थे की मेरे से दोस्ती बदाएँ पर मेरा सकत रवईया उन्हे दूर ही रखता था.
मैं कभी किसी से ज़यादा बात नही करती थी बस दो टुक मतलब की बात. मेरी सहेलियाँ भी जब अपने बाय्फरेंड्स के बारे में बाते करती तो मैं उठ के चली जाती.
यूँही चल रही थी मेरी जिंदगी की एक तुफ्फान आया और मेरे जीने की रह बदल गयी.

आज मम्मी पापा सुबह ही पापा के दोस्त के यहाँ चले गये. उनके दोस्त की बेटी की शादी होने वाली थी तो तायारियों में उनकी मदद करनी थी. दोपः तक मैं भी अपने इन्स्टिट्यूट से वापस आ गई. और कुछ खा पी कर थोड़ी देर आराम किया. धोबी आ कर प्रेस किए हुए कपड़े दे गया तो मैने सोचा की सबके कपड़े उनकी अलमारी में लगा देती हूँ.
मम्मी के कपड़े लगा रही थी एक बॉक्स दिखा जो बिल्कुल पीछे रक्खा हुआ था. मैने पहले ऐसा बॉक्स मम्मी के पास नही देखा था, अपनी जिगयसा शांत करने के लिए मैने वो बॉक्स खोल लिया तो देखा की दुनिया भर की द्वड पड़ी हुई हैं. मूज़े ताजुब हुआ की मम्मी ये द्वड अपनी अलमारी में क्यूँ रखती है. उनमे से एक द्वड पे गोआ लिखा हुआ था. मैने सोचा शायद गोआ की साइटसीयिंग के उप्पर होगी. मैने कपड़े लगाए और वो डVड ले कर अपने रूम में आ गई.
द्वड अपने लॅपटॉप पे लगाया और पहले सीन देखते ही मेरी आँखें फटी फटी रह गई. ये एक पॉर्न द्वड थी पर इस में जो दिख रहा था वो मेरे वजूद को हिला बैठा. ये डVड शायद उस वक़्त कीट ही जब हम पैदा भी नही हुए थे.
हन द्वड में मेरे पापा, मम्मी और चाचा चाची एक दूं नंगे एक दूसरे के जिस्म के साथ खेल रहे थे. मम्मी नीचे बैठ चाचा का लंड चूस रही थी और चाची मम्मी की चूत चूस रही थी और पापा चाची की चूत में अपना लंड दल के छोड़ रहे थे. मम्मी ने चूस चूस कर चाचा का लंड खड़ा कर दिया. फिर पापा ने अपना लंड चाची की चूत में से निकल लिया.
चाचा बिस्तर पे पीठ के बाल लेट गये और चाची उठ कर चाचा के लंड पे बैठती चली गई, जब चाचा का पूरा लंड चाची की चूत में समा गया तो चाची ने अपनी गॅंड इस तराहा उठाई की उसका छेड़ सॉफ सॉफ दिख रहा था, पापा चाची के पीछे चले गये और अपना लंड चाची की गंद में गुसा दिया. अब दोनो मिलके चाची को चोद रहे चाची की सिसकिया गूँज रही थी. मम्मी जो खाली हो गई थी वो चाचा के पास आ गई और चाची की तरफ मुंग करके चाचा मे मुँह पे बैठ गई.
चाच्चा नीचे से धक्के मार कर चाची की चूत में अपना लंड पेल रहे थे और मम्मी के अपने मुँह पे बैठने के बाद चाचा ने मम्मी की चूत को चाटना और चूसना शुरू कर दिया शायद अपनी जीब मम्मी की चूत में घुस्सा दी होगी क्यूंकी मम्मी ने ज़ोर की सिसकी मारी और चाची को पकड़ लिए.
मम्मी और चाची ने एक दूसरे के बूब्स पकड़े और दबाने लगी, दोनो के होंठ आपस में जुड़ गये. मम्मी की तो सिर्फ़ छूट चूसी जेया रही थी पर चाची की तो दोनो तरफ से चुदाई हो रही थी. पापा ज़ोर ज़ोर से चाची की गॅंड मार रहे थे. पापा के धक्के के साथ चाची आयेज होती और चाचा का लंड चाची की चूत में अंदर तक घुस्स जाता और जब पापा अपना लंड बाहर निकलते तो चाची अपनी गंद पीछे करती जिससे चाचा का लंड चाची की चूत से बाहर निकलता.
फिर पापा के धक्के के साथ चाचा का लंड चाची की चूत में घुस्स जाता. पापा ने अपनी स्पीड बड़ा दी और ज़ोर ज़ोर से चाची की गंद मरने लगे. नीचे से चाचा ने भी अपनी कमर उछालनी शुरू कर दी ऑरा ब तो मम्मी भी अपनी गंद चाचा के मुहन पे उप्पर नीचे करती हुई चाची की जीब को अपनी छूट में ले रही थी. पूरे कमरे में एक तुफ्फान आया हुआ था और ये तुफ्फान मेरे सर चाड रहा था. मैने पहले कभी कोई ब्लू फिल्म नही देखी थी और आज देखी भी तो उसमे सब मेरे घर के लोग ही थे. पापा केड हेक और तेज़ हो गये और थोड़ी देर में पापा अहह भरते हुए चाची की गंद में झड़ने लगे और चाचा भी तेज़ी से अपनी कमर उछलते हुए चाची की छूट में झड़ने लगे, चाची का तो बुरा हाल था, चक्का के लंड पे इतना रस छ्चोड़ रही थी जो चाचा के लंड से होता हुआ नीचे बिस्तर पे तालाब बना रहा था. इधर मम्मी भी चाचा के मुँह पे जहड़ गई और चाचा गपगाप मम्मी की चूत का सारा रस पी गये. चारों ही हानफते हुए बिस्तर पे निढाल पद गये और अपनी साँसे संभालने लगे.
अभी द्वड में और भी बहुत कुछ बाकी था. मैने वो द्वड अपनी अलमारी में छुपा दी और बातरूम भाग गई. अपने कपड़े उत्तरे और शवर के नीचे खड़ी हो गई. चारों की चुदाई का सीन अब भी मेरी आँखों के सामने घूम रहा था. मेरे जिस्म में एक आग सी लग गई थी. मेरी चूत में हज़ारों चिंतियाँ जैसे रेंग रही थी. मेरा बुरा हाल हो रहा था पर इस आग को कैसे शांत करूँ ये समझ में नही आ रहा था, मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत पे चला गया और मैं उसपे ज़ुल्म धने लगी, मेरी उंगली मेरी चूत में घुस्स गई और मेरी एक चीख निकल पड़ी, पहली बार अपनी चूत में मेने उंगली डाली थी. फिर अपनी उंगली को अंदर बाहर करने लगी और तब तक करती रही जब तक मेरी चूत ने अपना रस नही छ्चोड़ दिया और मुझे तोड़ा सकूँ मिला.
बातरूम से आने के बाद सबसे पहले मैने वो डVड अपने लॅपटॉप पे डाउनलोड करी और फिर जल्दी से उसे उसकी जगह पे रख दिया.
बार बार वोही नज़ारे मेरी आँखों के सामने टायर रहे थे. मम्मी पापा ये सब सिर्फ़ चाचाचाची के साथ करते हैं या और लोग भी शामिल हैं? क्या ये एरफ़ एक बार हुआ था या अब भी होता है? अब मैं बच्ची तो थी नही की सेक्स के बारे मैं ना जानती हूँ.मैं अपनी सारी बातें मम्मी से किया करती थी, मम्मी मेरे लिए सबसे बड़ी दोस्त है.क्या मैं इस के बारे में भी मम्मी से पूछ सकती हूँ? शायद नही, मम्मी मेरे सामने लज्जित हो जाएगी.
फिर सचाई का कैसे पता करूँ. वो द्वड आयेज देखने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी और अब तो मम्मी पापा किसी भी वक़्त आ सकते थे.
मैने किचन में जेया कर रात का खाना तयार किया, ताकि मम्मी वो आ कर किचन में कम ना करना पड़े. करीब एक घंटे बाद मम्मी पापा आ गये और मम्मी काफ़ी हैरान हुई की मैने खाना तयार कर रखा है और खुश भी बहुत हुई, क्यूंकी वो काफ़ी तक चुकी थी.
रात को खाना खा कर सब सोने चल दिए. मैने अपने कमरे में बिस्तर पे लेती सोचती रही की सच का कैसे पता करूँ और जो आग मेरे जिस्म में लग चुकी थी उसे कैसे शांत करूँ. दिल करा कोई ब/फ बना लेती हूँ, इतने तो पीछे पड़े हैं. पर बदनामी के दर से इस रास्ते पे जाने की हिम्मत ना हुई.
एक ही रास्ता दिख रहा था विमल मेरा बड़ा भाई. अगर मैं उसको पता लेती हूँ तो घर की बात घर में रहेगी. उसका भी कम हो जाएगा और मेरा भी. वो तो लड़का है क्या पता बाहर कितनी लड़कियाँ फसा रखी हो.
रात भर मैं सो ना सकी. अभी भाई के आने में 3 दिन बाकी पड़े थे , इन टीन दीनो में मूज़े कुछ ऐसा प्लान करना था की भाई मेरे पीछे पड़े और ये ना लगे की मैं भाई की पीछे पड़ी हूँ.
किसी भी लड़के को अपनी तरफ खींचना हो तो उसे अपने झलकियाँ दिखा कर तरसाओ वो पके आम की तरहा तुम्हाई गोध में आ गिरेगा.
मैने भी कुछ ऐसा ही सोचा. सोचते सोचते ना जाने कब मेरी आँख लग गई.
रात भर नींद तो नही आइी और सुबह मैं अपनी सवालों भारी नज़र से मा को नही देखना चाहती थी, मैं बिना कुछ खएपीए घर से चली गई. मेरी एक ही खास सहेली है कविता मैं उसके घर आ गई .
वहाँ पहुच कर पता चला की वो और उसके डॅड ही घर पे थे, उसकी मा और भाई दोनो मा के मैके गये हुए थे. दिन बातों बातों में कब गुजरा पता ही ना चला और रात को मैं उसके साथ ही उसके कमरे में सो गई.
थोड़ी देर बाद मेरी नीड खुली तो देखा कविता गायब है, सोचा बातरूम गई होगी आ जायगे जब कुछ देर और वो नही आई तो मैं कमरे से बाहर निकली और देखा की उसके डॅड के कमरे की लाइट जल रही है मेरे कदम उस तरफ बाद चले और जो देखा उसने मूज़े हिला के रख दिया.
कविता नीचे बैठी अपने डॅड का लंड चूस रही थी और उसके डॅड ने उसके चेहरे को पकड़ रखा था और अपनी कमर आयेज पीछे कर रहे थे.कविता फिर ज़ोर ज़ोर से अपने डॅड का लंड छूने लगी और थोड़ी देर में उसके डॅड झाड़ गये और कविता ने सारा रस पी लिया. फिर वो अपने डॅड के लंड को चॅट चॅट कर सॉफ करने लगी और उठ के खड़ी हो गई. उसे डॅड ने उसे अपने पास खींचा और उसके होंठों पे अपने होंठ रख दिए.
दोनो एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे और उसके डॅड ने अपने हाथ कविता के बूब्स पर रख दिए और दबाने लगे. किटिनी ही देर दोनो एक दूसरे को चूमते रहे.फिर दोनो ने एक दूसरे के कपड़े उत्तरडाले और बिस्तर पे लेट गये. कविता अपने दाद के लंड को सहलाने लगी और वो उसके निपल को चूसने लगे,
कविता की सिसकियाँ निकालने लगी, आह आह उफ़ उफ़ ओह दाद पी जाओ मेरा दूध आह उफ़ एम्म है . वो कभी एक निपल को चूस्टे तो कभी दूसरे को और कविता सिसकती रही.
यह देख मेरा बुरा हाल हो रहा था मेरे आँखन के सामने वो द्वड घूमने लगा, अगर बाप बेटी चुदाई कर सकते हैं तो मम्मी पापा ने कौन सा पाप किया. पापा भी तो उस वक़्त चाची को चोद रहे थे चाचा के सामने.
मेरा गुस्सा मम्मी पापा के उप्पर से हट गया. कविता के ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आइी तो मेरा ढयन फिर अंदर गया देखा कविता कुतिया बनी हुई है और उसके डॅड ने अपना लंड उसकी गंद मे डाल रखा है.
पहले तो कविता दर्द से चिल्ला रही थी फिर उसे मज़ा आने लगा आह आह फाड़ दो मेरी गंद आह आह छोड़ो और छोड़ो अफ अफ हाँ हाँ और ज़ोर से और ज़ोर से आह आह आह आह बेटीचोड़ छोड़ और छोड़ आह आह उम्म्म उफफफफफ्फ़ .
‘साली रंडी आज तेरा बुरा हाल कर दूँगा आह आह ले मेरा लंड ले ले साली कुटिया ले ‘
“चोद साले बहनचोड़ और चोद आाआईयईईई”
मैं हैरान खड़ी देख रही थी दोनो एक दूसरे को गलियाँ दे रहे थे.
‘मातरचोड़ मेरी चूत कौन चोदेग तेरा बाप’
उसके डॅड ने अपना लंड उसकी गॅंड से निकाला और एक झटके में उसकी चूत में घुस्सा दिया और ज़ोर ज़ोर से धक्के मरने लगे कविता भी उन्हे और उकसाती रही.
मुजसे और देखा ना गया, मैं कमरे में जेया कर अपनी चूत में उंगल करने लगी, मेरी आँखों के सामने मेरे भाई का चेहरा घूमने लगा, क्या हॅंडसम पर्सनॅलिटी है उसकी,जॉब ही उसकी ग/फ होगी वो तो मज़े लेती होगी.रात को पता नही कविता काभ मेरे पास आ कर सो गई.
सुबह मैने उस से कुछ नही कहा और अपने घर छल्ली आइी, मा ने मूज़े से बात करने की कोशिश करी पर मैं मा को अवाय्ड कर अपने कमरे मैं छल्ली गई.


अपने कमरे में आ कर मैं लेट गई और अपनी जिंदगी में आए इस तुफ्फान के बारे में सोचने लगी. इंसान ने चाहे किटिनी भी तरक्की कर ली है, रहा वोही जानवर का जानवर ही.बस कपड़े पहने शुरू कार्डिया, नये नये आविष्कार कर लिए, और एक समाज की स्थापना करली, पर जो पूर्वजों के जीन्स हुमारे अंदर कब से चले आ रहे हैं, वो कभी ना कभी कहीं ना कहीं तो सर उठाते ही हैं. फ़र्क बस इतना आ गया है, पहले कोई बंधन नही होता था, जिसको चाहा छोड़ लिया, और जिससे चाहा छुड़वा लिया. अब लोग बंद कमरों में अपनी दबी हुई इक्चाओं को पूरा करते हैं.
जैसे मेरे मा बाप और चाचा चाची कर रहे थे या अब भी कर रहे हैं. पर कल रात जो देखा वो अब तक मैं समझ नही पा रही हूँ एक बाप और बेटी अपनी वासना में लिप्त. अगर बाप बेटी इतना आयेज बड़े हुए हैं तो ज़रूर मा बेटे भी होंगे, ऐसा तो हो नही सकता की ये दोनो च्छूप कर ही करते होंगे और मा बêते को कुछ पता नही होगा. पता नही सच क्या है. पर मूज़े उनके सच से क्या लेना देना.
मुझे तो अपने घर का सच जानना है और उसके लिए मुझे मा के बहुत करीब जाना होगा.
यही सोच कर मैं नीचे गई और देखा की पापा नाश्ता कर रहे हैं, आज मैं उनके पास ही जा के बैठ गई,मैने बहुत टाइट टॉप पहना हुआ था, मेरे उरोज़ पहर की छोटी की तरहा खड़े थे.
पापा की नज़रें बार बार मेरे उरज़ोन पे आ के टिक जाती और सर झटक फिर अपना ध्यान खाने में लगा देते. मैं कनखियों से सब देख रही थी. पापा पहले भी शायद मेरे उरज़ोन को देखते होंगे पर मेरा ढयान कभी नही गया, शायद कल जो तुफ्फान आया उसने मेरी छठी इंद्री को जागृत कर दिया और मूज़े गडती हुई नज़रों को ज़यादा आभास होने लगा. मम्मी भी मेरे सामने आ के बैठ गई और बहुत रोकते हुए भी मेरे पैनी नज़रें मा पे गड़ गई.
पापा : तेरे कोर्स कैसा चल चल रहा है बेटा , कुछ चाहिए तो नही.
मैने अपने ख़यालों की दुनिया से वापस आइी ‘ हन पापा सब ठीक चल रहा है, पापा इस बार कहीं घूमने ले चलो, बहुत बोरियत हो रही है.’
पापा : ‘बेटा अपनी मा और भाई बहन के साथ मिल के प्रोग्राम फाइनल कर लो और मूज़े बता देना’
मैं : ‘भाई की छुट्टियाँ तो बहुत दूर हैं, हम सिर्फ़ वीकेंड पे क्यूँ नही चलते, बस दो दिन के लिए, तोड़ा चेंज हो जाएगा’
पापा : ठीक है, विमल और रिया इस बार जब आएँगे तो अगले हफ्ते का प्रोग्राम फाइनल कर लेना, मैं भी तब तक कुछ ज़रूरी काम निपटा लूँगा.
मैं : पापा के गले लगते हुए, ‘थॅंक योउ पापा आप बहुत अच्छे हो’ मैने जान भुज कर अपने उरोज़ पापा की बाँह पे रगडे, और उसका असर एकद्ूम हुआ.
पापा चिहुक पड़े और मूज़े अलग कर फटाफट बातरूम चले गये. मेरी नज़रों ने उनकी पंत के अंदर बने तंबू को देख लिया था. यानी पापा मेरे से गरम हो रहे थे.
अब मूज़े सोचना ये था किस के साथ आयेज बदुन, किसको अपने जाल में लपेटून पहले पापा या भाई. फॉर सोचा क्यूँ ना अपनी सील भाई से ही तुद्वौन – मज़ा आएगा इस चॅलेंज को पूरा करने मैं, हम दोनो जवान हैं, चुदाई भी ज़यादा दूं दर होगी, पापा को बाद में देखूँगी, बस अब उनको तोड़ा तोड़ा टीज़ करती रहूंगी.
बातरूम से निकल पापा बाइ करते हुए चले गये और घर में रह गये मैं और मा.
मैं जेया के मा के गले लग गई. ‘ मा चलो तोड़ा बाहर घूम की आते हैं, आज दोपहर को बाहर ही खाएँगे’
मा : मेरे सर पे हाथ फेरते हुए ‘ आज इन्स्टिट्यूट नही जाना क्या – तूने आज तक अपनी कोई क्लास नही मिस की, ये आज क्या हो रहा टुजे’
अब मा को क्या समझौं छूट में खुजली बाद गई है, उसका भी तो इंतेज़ाम करना है.
मैं : ‘ना मा आज कोई ज़रूरी क्लास नही है, चलो ना प्लीज़.’ मैं मा से और भी चिपक गई और अपने उरोज़ मा की पीठ में गाड़ने लगी.
मा : अच्छा मूज़े कुछ कम ख़तम करने दे फिर चलते हैं
मैं खुशी से चिल्लाते हुए ‘ ठीक है मा, एक घंटे मैं जो करना है कर लो, मैं तब तक तयार होती हूँ’ और मैं भागती हुई अपने कमरे में चली गई.
एक घंटे बाद हम लोग चाणकया पूरी के लिए निकल पड़े, वहाँ एक इंग्लीश फिल्म चल रही थी, मैने ज़िद करी तो मा मान गयी. फिल्म में कुछ उत्तेजक सीन्स ज़यादा थे, मेरी हालत बिगड़ने लगी मैं बार बार कनखियों से मा को देख रही थी, की उनपे क्या असर होता है, मूज़े लगा की मा भी कुछ गरम हो रही है, क्यूंकी वो बार बार अपनी सीट पे हिल रही थी और अपनी टाँगें बींच रखी थी.
मोविए के बाद हम लोग मौर्या शेरेटन में लंच के लिए चले गये. मैने हिम्मत करते हुए मा से पूछा. ‘मा कभी बियर पी है क्या’
मा चोणकटे हुए ‘ नही , ये क्या बक रही है तू, चुप छाप लंच करते हैं और घर चलते हैं’
मैं : ‘मा अब मैं बड़ी हो चुकी हूँ, और बड़ी लड़कियों के लिए मा सबसे अच्छी दोस्त होती है, और दोस्त से कुछ चुप्पाया नही जाता’ मेरा चेहरा उत्तर चक्का था.
मा कुछ पलों तक मुझे देखती रही फिर ‘ अरे तू उदास क्यूँ हो गई, ऐसा नही करते, चल आज से हम पक्के दोस्त’ और मा ने मेरे साथ शेक हॅंड किया, मेरे चेहरे पे मुस्कान दोध गयी.
मैने फिर सवालिया नज़रों से मा को देखा तो इस बार मा बोल पड़ी ‘ हन कभी कभी तेरे पापा के साथ पी लेती हूँ जब वो ज़यादा ज़िद करते हैं’
मैं : ‘मा मैं भी आज ट्राइ कर लूँ थोड़ी सी प्लीज़’
शायद मा चाहती थी की मैं उनसे और खुलून तो इसलिए मान गई. एक मा के दिल में हमेशा ये दर बना रहता है, की जवान बेटी कहीं ग़लत रास्ते पे ना निकल पड़े.
हुँने एक बियर की बॉटल मँगवाई मा ने आधी खुद ली और आधी मूज़े दी. मैं घुट भरा तो बहुत कड़वी लगी और मेरा मुँह बन गया, मा खिलखिला के हास पड़ी
मा : ‘शुरू शुरू में कड़वी ही लगती है, नही पी जेया रही तो रहने दे’
अब मैं पीछे कैसे रहती, मूज़े तो मा के और करीब जाना था. मान कड़ा करते हुए धीरे धीरे पी गई टीन चार घूँट लेने के बाद उतनी कड़वी नही लग रही थी.
फिर हुँने लंच ख़तम किया और घर आ गये. ये आधी बॉटल भी मेरे सर चाड रही थी, मैं अपने कमरे में जेया कर सो गई.









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