FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--184
उन दोनों में मजाक ,छेड़छाड़ चल रही थी और मुझे भूख लग रही थी।
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और उस का कारण भी यही दोनों नदीदियां थी।
पहले तो पिज्जा की जो बन्दर या यूँ कहूँ बंदिरया बाँट हुयी उसमें कहने को मुझे बराबर का हिस्सा मिला ,लेकिन फिर इन दोनों हिस्सेदारों ने हिस्सा बंटाया और अंत में मेरे हिस्से में सिर्फ उसका स्वाद आया। और जो मैंने झटपट सैंडविच बनायीं ,उसके लिए भी मुझे तारीफ ज्यादा मिली ,सैंडविच कम।
और फिर शाम से 'कन्टीन्यूअस मेहनत ',…
लेकिन जहाँ मेरा मामला आता था , वो दोनों शैतान की चरखियां एक हो जाती थीं और फिर तौबा करने , कान पकड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता था।
पर पेट की आग , जो सारी दुनिया चलाती है , ने मुझे मुंह खोलने पे मजबूर कर दिया।
लेकिन मेरी बात बाद में पूरी हुयी कमेन्ट पहले आने शुरू हो गए।
" कैसे भुक्खड़ के हवाले कर दिया तेरे घर वालों ने तुझे , जब देखो तब भूख भूख चिल्लाता रहता है। इत्ता मस्त माल सामने पड़ा है और इसे भूख की लगी है। "
रंजी ने छक्के के साथ बैटिंग ओपन की।
" अरे जानू , गाडी चलानी है तो पेट्रोल तो भरना होगा न। और फिर शाम से इसकी मुट्ठी भर मलाई तू दो बार डकार गयी , अब तक आगे पीछे से बह रहा है , तो फोन इस्तेमाल करोगी तो चार्ज तो करना पड़ेगा न। "
गुड्डी ने मेरे आशा के खिलाफ कुछ समझदारी की बात की।
रंजी भी न , उसकी एक हाथ की दो उंगलिया गुड्डी की रामपियारी के मुंह में थी , दूसरे हाथ से उसने मेरे खड़े मूसल को पकड़ लिया और ऊपर नीचे कर लगी धान कूटने की ऐक्टिंग करने , और बोली ,
" तो तू कर न पेट्रोल भरने का इंतजाम , मैं तो गाडी पे शाम से सवारी कर रही हूँ अब तेरा नंबर है गाडी पे चढने का। "
" साल्ली , छिनार , गदहाचोदी , टंकी तूने खाली की चल तू कर पेट्रोल का इंतजाम , मैंने तो तुझ फुल टैंक भरवा के दिया था , अब तेरी बारी है " गुड्डी चढ़ गयी अपनी छुटकी ननदिया पे।
रंजी ने तुरंत पैतरा बदला और हमले का मुंह मेरी ओर मोड़ दिया। गुड्डी भी उस स्ट्रेटेजिक शिफ्ट में शामिल हो गयी।
रंजी ने एक झटके में ऐसा चमड़ा खींचा की सुपाड़ा पूरी तरह से खुल गया , लाल , धूसर ,एकदम कड़ा , भूखा।
" सुन जिसकी गाडी होती है वो जाता है पेट्रोल पम्प तेल भरवाने ,नीचे किचेन खुला है और वैसे भी तुम कुशल गृहिणी हो। कुछ बना के लाओ , जैसा भी होगा हम लोग खा लेंगे ज्यादा बुराई नहीं करेंगे। " रंजी ने हुक्म सुना दिया।
" पर ,… पर अभी तो मैं , मैंने ही तो बनाई थी सैंडविच , अबकी तुम दोनों , सच में भूख लगी है। " मैं मिमियाया।
" अच्छा जी एक बार बना लिया कुछ तो दुबारा नहीं , अभी इस बिचारी पे चढ़े थे थोड़ी देर पहले , तो फिर दुबारा मना क्यों नहीं कर दिया। न ये बिचारी बोली की , एक बार होगया है आज का कोटा पूरा , अब कल मिलते हैं ब्रेक के बाद। रंजी सही कह रही है , जाओ कुछ बना के लाओ। भूख हम दोनों को भी लग रही है। "
गुड्डी ने दूसरी ओर से डबल पेस अटैक जारी रखा।
"असल में गलती इनकी नहीं है। " रंजी ने फैसला सुनाया
" गलती तेरी मम्मी , मतलब इनकी सास की है जिन्होंने इन्हे बहुत सॉफ्ट हैंडल किया। मायके में जो चीज नहीं सीख पाये वो ससुराल में सीखा देनी चाहिये। किचेन का सारा काम सुबह से शाम तक ,… "
उसकी बात में हामी भरते , गुड्डी बोली
" सही कह रही है तू इनकी मायके वालियों को मोहल्ले भर में नैन मटक्का करने से , लौंडे फसाने से फुर्सत हो तब न इसे कुछ चूल्हे चौके का काम सिखाएं।
मैं मम्मी को बोलती हूँ , जब ये बनारस पहुंचेंगे न , अबकी तो खैर मम्मी नहीं है लेकिन अगली बार पक्का। सुबह की चाय से लेकर शाम के खाने तक दिन भर किचेन में इनकी ड्यूटी रहेगी और वो भी इनकी फेवरिट ड्रेस में , साडी ब्लाउज साया ब्रा में। बल्कि मम्मी को बोलूंगी न तो वो बरतन और झाड़ू पोंछे वालियों को भी छुट्टी दे देगीं , ट्रेनिंग तो पूरी होनी चाहिए न। "
बड़ी मुश्किल से दोनों मानी लेकिन शर्त ये की मैं १०-१२ मिनट तक कमरे से बाहर रहूँ जब तक वो दोनों मेरी टंकी भरने का कुछ इंतजाम करती हैं।
मरता क्या न करता मैंने अपना बॉक्सर शार्ट फिर से टांगा अपने पैरों पे , मोबाइल पे कुछ मेसेज दिख रहे थे , तो मोबाइल उठाया और छत पे चल दिया।
धक्का मार के मुझे दोनों ने बाहर किया , रंजी ने एक बार फिर मेरी सफेद लांग शर्ट पहन ली थी और गुड्डी ने रैप।
लेकिन पापी पेट के लिए कुछ तो करना था।
और अब मैं जब छत पे था ,अचानक चारो ओर नीरवता छा गयी थी। दूर कहीं दो के घंटे की आवाज आई। सड़के सूनी थी , और लैम्पपोस्ट पर लगे बल्ब बामुश्किल अपने आस पास ही रौशनी कर पा रहे थे।
और फिर आवारा बादलों का एक बड़ा झुंड अचानक आया और चाँद और चांदनी दोनो उनकी गिरफ़्त में आ गए।
जो माहौल थोड़ी देर पहले इतना रूमानी लग रहा था , अचानक भयावह लगने लगा था।
पूरा आसमान एक कालिख से पुत गया था। यहाँ तक की काले बादलों ने छिपकर बच निकलने वाली चाँद की किरणों को भी रोक लिया था।
मैं छत के दूसरे कोने की ओर निकल आया था , जिधर आम के पेड़ की मोटी मोटी डालें हमारी छत पे आती थी।
अंधेरे में आम का पेड़ भी एकदम काला भुजंग लग रहा था और उसकी टहनियों का सेल्ह्यूट भी मोटे मोटे अजगर सा लग रहा था। उस घने पेड़ पे इस समय कुछ भी नहीं दिख रहा था.
उन टहनियों के नीचे अँधेरा और गहरा गया था , लेकिन जब मैंने सामने देखा तो खुली खिड़की से कमरा साफ दिख रहा था , और दो चलती फिरती छायाएं दिख रही थी , कुछ अलमारी से निकाल रही थीं ,
रंजी और गुड्डी ,
कमरे में अभी नाइट बल्ब की रौशनी थी और धुंधली ही सही लेकिन दोनों दिख रही थीं।
मैंने फिर चारो ओर निगाह दौड़ाई , कहीं हम लोगों की केलि क्रीड़ा कोई देख तो नहीं सकता था , लेकिन मैं पहले ही जानता था की कमरा कौन अगर हम तीनो छत पर भी कबड्डी खेलते तो कोई देखने वाला नहीं था।
हमारे घर के दोनों साइड की जमीन पर अभी कोई मकान नहीं था , एक साइड में बस बाउंड्री वाल बनी थी। हाँ सामने सड़क के पार जरूर मकान थे , और उनके यहाँ छत पर कमरे भी थे , लेकिन उन कमरों में कोई रहता नहीं था। घर के पीछे की ओर एक गडही सी थी , उसके पीछे कुछ घर जरूर थे , बाँध पर बने और उसके बाद टौंस नदी।
इसलिए किसी के न देखने का कोई चांस था और न रंजी के सील टूटने पर हुयी चीख सुनने का।
हवा फिर एक बार तेज हो गयी , कुछ रोशनी आने लगी लेकिन उस में झूलती डोलती आम की पेड़ की मोटी मोटी डाल की परछाईं और डरावनी लगती थी।
लेकिन उस रौशनी में मेरी निगाह मोबाइल पे पड़ी और मेरा ध्यान उधर गया।
कई मेसेज और मेल थे।
मेसेज दो थे , एक फेलू दा का और दूसरा कार्लोस का।
लेकिन मेरी समझ में दोनों नहीं आये।
फेलू दा का शाम का यही मेसेज था सब कुछ ठीक है न कोई चिंता की बात तो नही।
और मैने उन्हें जवाब भी दे दिया था की सब ठीक है और ये भी बोला था की कल दुपहर तक मैं बनारस पहुँच जाऊँगा और शाम को उनसे मिलने आऊंगा।
लेकिन फिर दुबारा ये मेसेज क्यों?
फेलू दा की हर बात का कोई न कोई मतलब होता है , ये कहीं कोई कोड तो नहीं।
मैंने सेंड मेसेज चेक किया , उनको मैंने मेसेज दिया था।
फिर मुझे लगा शायद मेसेज उन तक न पहुंचा हो ,मैं बिना बात के परेशान हो रहा हूँ।
कार्लोस ने रंजी के बारे में पुछा था और लेकिन उसने भी लिखा था सब ठीक है न।
रंजी के आज की सक्सेस में , कार्लोस का भी बड़ा रोल था , क्योंकि उसने एक मशहूर , फैशन फोटोग्राफर का रिफरेन्स दिया था , और उसने मॉडलिंग एजेंसी को रंजी के बारे में फेवरेबल रिस्पॉन्स दिया था। कार्लोस ने एक इंटरनेशनल लिंगरी कंपनी वाले को भी फोटो दिखाए थे तो उन्होंने रंजी के कुछ टॉपलेस फोटुएं और उसके उभारों का क्लोज अप माँगा था , जो मैंने भेज दिया था।
कार्लोस ने ये लिखा था की टॉपलेस फोटो देख के उनका रिस्पांस फेवरेबल है। लेकिन दो दिन बाद उनका कोई एजेंट बनारस आ रहा है , वो फाइनल इंटरव्यू लेगा , जो बहुत कुछ एक फॉरमैलिटी होगा। और अंत में काॅर्लोस ने भी पूछा था की कोई चिंता की बात तो नहीं हैं।
मेरे कुछ समझ में नहीं आया। एक तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे थे दूसरे , अँधेरा।
मैंने दोनों मेसज के जवाब में लिख दिया की हम सब ठीक हैं और हम तीनो कल दोपहर के पहले ही बनारस के लिए रवाना होंगे। कार्लोस को भी मैंने ये बता दिया की , रंजी बनारस में ८-१० दिन रहेगी इसलिए वो इंटरव्यू दे देगी , उसमें कोई दिक्कत नहीं है। और वो लिंगरी मॉडलिंग के लिए तैयार है।
एक मेल करन का था।
जैसे मुझे इन दोनों ने बाहर कर दिया था , वही हाल वहां भी था , और मीनल और रीत ने उसे आधे घंटे के लिए बंद कर दिया था। उसने कन्फर्म किया था की वो लोग कल फ्लाइट से बनारस आएंगे , लेकिन एक छोटा सा चेंज था। वो दिल्ली हो के आएंगे और करन को वहीँ उतरना होगा। डिब्रिफिंग के लिए। और वो लम्बी चलेगी दो -तीन दिन , इसलिए पहले जो उसका प्रोग्राम था बनारस आने का वो भी नहीं हो पायेगा। रीत लेकिन बनारस आएगी हाँ उसको भी एक दिन बाद दिल्ली पहुँचना होगा।
उसे भी मैंने अपना प्रोग्राम कन्फर्म किया।
रीत के नाम का असर था , चंदा को घेरे दुष्ट बादल भी एक एक कर के रफूचक्कर हो गए और माहौल फिर बदल गया ,
जो आम का पेड़ इतना भयावह लग रहा था अब शीतल मंद समीर देने वाला लग रहे था।
और अंदर से बुलावा आ गया।
मेरा छत निकाला खत्म हो गया।
और मुंह में निवाला जाने का जुगाड़ हो गया था।
महक जबरदस्त आ रही है , मैने तारीफ की।
और जवाब में डांट पड़ी दोनों की , ' तुम्हारी तरह चांदनी रात में छत पर नौका विहार थोड़ी कर रहे थे हम दोनों। इत्ती मेहनत की है , चलो चुपचाप खाओ और हम दोनों का गुण गाओ। "
और जैसे ही प्लेट में उन दोनों ने निकाला ,मैंने देखते ही तारीफ और ज्ञान दोनों प्रदर्शित करना शुरू कर दिया।
" ये तो बिरयानी लग रही है , परफेक्ट। और इत्ती जल्दी , एकदम जैसा अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा था , अगर देखने में ऐसे है तो खाने में क्या मजा आएगा। "
" यार तभी मैं कह रही थी , कित्ती अच्छी सुघड़ गृहिणी तुझे मिली ही बताओ इन्हे बिरयानी तक के बारे में सब मालुम है , रोज दावत है तेरी " रंजी गुड्डी से बोली।
लेकिन लूज बाल मिलने पे कौन छोड़ता है वो भी गुड्डी , उसने तुरंत लांग आन पे चौक्का मारा ,
" अरे असली तारीफ तो मेरी मम्मी की समधन की है ,लगता है उन्होंने किसी बावर्ची से ,… तभी उसका असर हुआ है , पैदायशी। लेकिन चलो बनारस , आने दो मम्मी को चूल्हा चौका तेरे हवाले , असली इम्तहान मम्मी लेंगी इनका। अगर जरा भी नमक कम ज्यादा हुआ न तो बस जो इनकी नमकीन मायकेवालियान हैं , न पैदायशी छिनार सबकी ऐसी की तैसी। लेकिन घबड़ा मत जो कसर तेरे मायके में रह गयी होगी न वो मम्मी सीखा पढ़ा के पूरी कर देंगी। "
मैं अब तक समझ गया था की खाने के साथ गालियां तो मिलनी ही हैं अगर कोई ससुराल वाली हो सामने , लेकिन कान से गाली सुनो और मुंह से खाना खाओ , वरना चूहों की मैराथन रुकने वाली नहीं है।
बस मैंने बिरयानी खानी शुरू कर दी। पहला कौर मुंह में गया था और दूसरा मुंह में उठाया था की रंजी ने एक घोड़े की चाल चल दी। बोली वो गुड्डी से , निशाने पे मैं था।
" हे ऐसे सूखे सूखे , साथ में कुछ गीला करने वाला हो तो आसानी से जाएगा। "
और हुकम गुड्डी ने जारी कर दिया ,
" सुन रहे हो इत्ती प्यारी सी नमकीन रंडी , मेरा मतलब रंजी कुछ कह रही है। तुम न सब कुछ भूल के सिर्फ खाने पे जुटे हो , कुछ काम करो। जाके सामने आलमारी से कुछ पीने का भी सामान निकालो न। '
फूड ब्रेक और मैं उस इंगित अलमारी के पास खड़ा होगया , खोल के।
और उधर से डायरेक्शंस के तीर चलने शुरू होगये , नहीं नहीं ऊपर वाली , अरे यार तेरे तो कुछ समझ में नहीं आता , उसके बगल वाली। नहीं नहीं , नीचे वाली शेल्फ पे। अच्छा चल यार जो तेरी मर्जी हो एकदम झक्कास होना चाहिए पी के टुन्न।
और उस के बाद नीचे की शेल्फ पे मैं ग्लास उठाने के लिए झुका तो पाया वहां ढेर सारे रेड़ी टू ईट के पैकेट रखे हुए रखे थे। और एक पैकेट खाली भी था , हैदराबादी बिरयानी का। फिर मेरी चमकी , जब मैंने बाहर से देखा था तो दोनों इसी अलमारी के पास ही तो खड़ी थीं ,तो ये था बिरयानी का राज।
लेकिन मैंने मुंह नहीं खोला। अब मुंह खोलना था सिर्फ खाने के लिए।
लेकिन वो भी इत्ती जल्दी नसीब नहीं होना था।
बर्फ ,नहीं ये वाली नहीं , ये चीज वो चीज और जब मैं वापस पहुंचा तो बिरयानी की प्लेट तीन चौथाई से ज्यादा खाली थी। और उस के बाद 'बड़ी ईमानदारी ' से उन दोनों ने बराबर बराबर तीन हिस्से किये और १/४ का १/३ मुझे मिल ही गया।
हाँ व्हिस्की में बेईमानी नहीं थी , साफ पूरी बोतल हुयी लेकिन बराबर बराबर।
गुड्डी ने कुछ ईमानदारी बरती , चॉकलेट और कुछ नट्स मुझे मिल गए और पेट के चूहे शांत हो गए।
लेकिन अब पेट के नीचे वाला चूहा अंगड़ाई ले के अजगर हो गया था और उसका भी कुछ इंतजाम होना था।
ढाई से कुछ ज्यादा हो रहे थे।
लेकिन सुबह होने में तो अभी साढ़े तीन चार घंटे बाकी थे।
एक राउंड तो कम से कम बनता था।
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लेकिन सवाल सीधा था किसके साथ ,
दोनों में से कोई लखनऊ की नहीं थी लेकिन पहले आप , पहले आप चालू हो गया।
" सिक्का उछालूँ " मैंने एक सीधा साधा ऑप्शन दिया , लेकिन दोनों में से कोई सीधा हो तो वो सीधी बात माने।
" तेरे पास अगर कहीं शोले टाइप सिक्का हुआ तो , " सवाल दागने में बनारस वाली से कौन जीत सकता था।
"या फिर चित्त मैं जीती पट्ट तू हारा वाली बात हुयी तो " रंजी मुस्करा के बोली।
" एकदम सही आइडिया है , यही होगा " गुड्डी खुश होके बोली , लेकिनअबकी रंजी ने वीटो लगा दिया , अपने भोगे हुए यथार्थ के आधार पर ,
" न न अभी तुम दोनों ने मिल के , चित्त एक ने और पट्ट दूसरे ने ,ये नहीं चलेगा। बेईमानी है " रंजी जोर से बोली।
और बात उसकी पूरी सही थी ,अगवाड़े पर मैंने चढ़ाई की थी और पिछवाड़े गुड्डी ने हमला बोल दिया था और क्या प्रोफेशनल लौण्डेबाज गांड मारेगा , जिस तरह गुड्डी ने रंजी की हचक हचक कर बेरहमी से गांड फाड़ी थी।
सिक्के वाले आइडिया को बाई बाई कर दिया गया।
अगला आइडिया रंजी ने दिया और गुड्डी ने उसकी ऐसी की तैसी कर दी /
" अरे यार खाने के बाद स्वीट डिश तो हुयी नहीं न , तो बस ये बनारसी चमचम या लॉलीपॉप जो तन्नाया है न उसे हम दोनों बारी बारी से चूसें बस , जिसके मुंह में झड़े , उसकी ली जायेगी। " रंजी की चमकी और उसने आइडिया पेश कर दिया।
और गुड्डी ने उसमें तुरंत छेद कर दिया ,
" अरे कमीनी साल्ली , ये सोचा है कभी , एक बार पानी फेंकने के बाद कुछ टाइम लगेगा न उसे जगाने में। और अब रात कितनी बची है। दूसरे कितना भी जुगाड़ लगाओ , ये साला बहनचोद ३० -४० मिनट से पहले झड़ने वाला नहीं और चींटे काट रहे हैं चूत में , वोबिचारी भूखी ही रह जायेगी सोन चिरैया। "
अब मेरा नंबर था और मैंने पुरानी आइडिया को रिपैकेज कर थोड़ा प्रजेंटेशन का तड़का लगा के पेश कर दिया।
और वो चल भी गया /
म्यूजिकल चेयर काक सकिंग।
मैंने बोला " म्यूजिकल चेयर की तरह , तुम दोनों बारी से सक करो। दो दो मिनट के लिए , लेकिन मैं रेंडमली कोई म्यजिक सेलेक्ट करंगा।
और जब म्यूजिक बंद होगा उस समय मेरा खूंटा जिसके मुंह में होगा , बस नीचे वाले मुंह में उसके ही जाएगा। ३-४ मिनट में फैसला हो जाएगा , और साथ जंगबहादुर , जंग के लिए तैयार भी हो जाएंगे।
अबकी सर्व सहमती हो गयी /
म्यूजिकल काक सकिंग हुयी और जब म्यूजिक बंद हुआ , लॉलीपॉप गुड्डी के मुंह में था।
उसने बहुत मुंह बनाया लेकिन अब चुदने की बारी उसकी थी।
रंजी अब कुर्सी पर दर्शक दीर्घा में जा के बैठ गयी , जहाँ कुछ देर पहले उसने मुझे बैठाया था।
मैं और गुड्डी अखाड़े में थे।
रात के तीन बजने में अभी दस मिनट बचे थे।
बाहर रात झर रही थी।
एक बार फिर चांदनी की अंगड़ाई ने काले धूसर बादलों के नागपाश को तोड़कर दूर कर दिया था और आसमान के आँगन में वो इधर उधर दूर छितरे पड़े थे , टुकड़े टुकड़े।
जैसे कोई किशोरी , सद्यस्नाता , बाहर निकल कर अपने बाल झटक के चेहरे से दूर कर दे , तौलिये की गाँठ खुद ब खुद खुल जाय और और पूरे माहौल में आती हुयी जवानी की गमक भर जाय , छितर जाय , बौर और टिकोरों से लड़े आम के पेड़ की तरह।
बस उसी तरह चांदनी अब बाहर छत पर , अंदर कमरे में बिस्तर पर , दीवारों पर हर जगह पसरी पड़ी थी , और मुझे और गुड्डी को चमेली के चादर की तरह ढके हुयी थी।
मुश्किल था ये तय करना , ये चांदनी थी की गुड्डी के रूप की उजास। चाँद रोशन कर रहा था कायनात को या गुड्डी का रूप छिटक रहा था चांदनी बन कर।
फागुन के दिन चार--184
उन दोनों में मजाक ,छेड़छाड़ चल रही थी और मुझे भूख लग रही थी।
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और उस का कारण भी यही दोनों नदीदियां थी।
पहले तो पिज्जा की जो बन्दर या यूँ कहूँ बंदिरया बाँट हुयी उसमें कहने को मुझे बराबर का हिस्सा मिला ,लेकिन फिर इन दोनों हिस्सेदारों ने हिस्सा बंटाया और अंत में मेरे हिस्से में सिर्फ उसका स्वाद आया। और जो मैंने झटपट सैंडविच बनायीं ,उसके लिए भी मुझे तारीफ ज्यादा मिली ,सैंडविच कम।
और फिर शाम से 'कन्टीन्यूअस मेहनत ',…
लेकिन जहाँ मेरा मामला आता था , वो दोनों शैतान की चरखियां एक हो जाती थीं और फिर तौबा करने , कान पकड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता था।
पर पेट की आग , जो सारी दुनिया चलाती है , ने मुझे मुंह खोलने पे मजबूर कर दिया।
लेकिन मेरी बात बाद में पूरी हुयी कमेन्ट पहले आने शुरू हो गए।
" कैसे भुक्खड़ के हवाले कर दिया तेरे घर वालों ने तुझे , जब देखो तब भूख भूख चिल्लाता रहता है। इत्ता मस्त माल सामने पड़ा है और इसे भूख की लगी है। "
रंजी ने छक्के के साथ बैटिंग ओपन की।
" अरे जानू , गाडी चलानी है तो पेट्रोल तो भरना होगा न। और फिर शाम से इसकी मुट्ठी भर मलाई तू दो बार डकार गयी , अब तक आगे पीछे से बह रहा है , तो फोन इस्तेमाल करोगी तो चार्ज तो करना पड़ेगा न। "
गुड्डी ने मेरे आशा के खिलाफ कुछ समझदारी की बात की।
रंजी भी न , उसकी एक हाथ की दो उंगलिया गुड्डी की रामपियारी के मुंह में थी , दूसरे हाथ से उसने मेरे खड़े मूसल को पकड़ लिया और ऊपर नीचे कर लगी धान कूटने की ऐक्टिंग करने , और बोली ,
" तो तू कर न पेट्रोल भरने का इंतजाम , मैं तो गाडी पे शाम से सवारी कर रही हूँ अब तेरा नंबर है गाडी पे चढने का। "
" साल्ली , छिनार , गदहाचोदी , टंकी तूने खाली की चल तू कर पेट्रोल का इंतजाम , मैंने तो तुझ फुल टैंक भरवा के दिया था , अब तेरी बारी है " गुड्डी चढ़ गयी अपनी छुटकी ननदिया पे।
रंजी ने तुरंत पैतरा बदला और हमले का मुंह मेरी ओर मोड़ दिया। गुड्डी भी उस स्ट्रेटेजिक शिफ्ट में शामिल हो गयी।
रंजी ने एक झटके में ऐसा चमड़ा खींचा की सुपाड़ा पूरी तरह से खुल गया , लाल , धूसर ,एकदम कड़ा , भूखा।
" सुन जिसकी गाडी होती है वो जाता है पेट्रोल पम्प तेल भरवाने ,नीचे किचेन खुला है और वैसे भी तुम कुशल गृहिणी हो। कुछ बना के लाओ , जैसा भी होगा हम लोग खा लेंगे ज्यादा बुराई नहीं करेंगे। " रंजी ने हुक्म सुना दिया।
" पर ,… पर अभी तो मैं , मैंने ही तो बनाई थी सैंडविच , अबकी तुम दोनों , सच में भूख लगी है। " मैं मिमियाया।
" अच्छा जी एक बार बना लिया कुछ तो दुबारा नहीं , अभी इस बिचारी पे चढ़े थे थोड़ी देर पहले , तो फिर दुबारा मना क्यों नहीं कर दिया। न ये बिचारी बोली की , एक बार होगया है आज का कोटा पूरा , अब कल मिलते हैं ब्रेक के बाद। रंजी सही कह रही है , जाओ कुछ बना के लाओ। भूख हम दोनों को भी लग रही है। "
गुड्डी ने दूसरी ओर से डबल पेस अटैक जारी रखा।
"असल में गलती इनकी नहीं है। " रंजी ने फैसला सुनाया
" गलती तेरी मम्मी , मतलब इनकी सास की है जिन्होंने इन्हे बहुत सॉफ्ट हैंडल किया। मायके में जो चीज नहीं सीख पाये वो ससुराल में सीखा देनी चाहिये। किचेन का सारा काम सुबह से शाम तक ,… "
उसकी बात में हामी भरते , गुड्डी बोली
" सही कह रही है तू इनकी मायके वालियों को मोहल्ले भर में नैन मटक्का करने से , लौंडे फसाने से फुर्सत हो तब न इसे कुछ चूल्हे चौके का काम सिखाएं।
मैं मम्मी को बोलती हूँ , जब ये बनारस पहुंचेंगे न , अबकी तो खैर मम्मी नहीं है लेकिन अगली बार पक्का। सुबह की चाय से लेकर शाम के खाने तक दिन भर किचेन में इनकी ड्यूटी रहेगी और वो भी इनकी फेवरिट ड्रेस में , साडी ब्लाउज साया ब्रा में। बल्कि मम्मी को बोलूंगी न तो वो बरतन और झाड़ू पोंछे वालियों को भी छुट्टी दे देगीं , ट्रेनिंग तो पूरी होनी चाहिए न। "
बड़ी मुश्किल से दोनों मानी लेकिन शर्त ये की मैं १०-१२ मिनट तक कमरे से बाहर रहूँ जब तक वो दोनों मेरी टंकी भरने का कुछ इंतजाम करती हैं।
मरता क्या न करता मैंने अपना बॉक्सर शार्ट फिर से टांगा अपने पैरों पे , मोबाइल पे कुछ मेसेज दिख रहे थे , तो मोबाइल उठाया और छत पे चल दिया।
धक्का मार के मुझे दोनों ने बाहर किया , रंजी ने एक बार फिर मेरी सफेद लांग शर्ट पहन ली थी और गुड्डी ने रैप।
लेकिन पापी पेट के लिए कुछ तो करना था।
और अब मैं जब छत पे था ,अचानक चारो ओर नीरवता छा गयी थी। दूर कहीं दो के घंटे की आवाज आई। सड़के सूनी थी , और लैम्पपोस्ट पर लगे बल्ब बामुश्किल अपने आस पास ही रौशनी कर पा रहे थे।
और फिर आवारा बादलों का एक बड़ा झुंड अचानक आया और चाँद और चांदनी दोनो उनकी गिरफ़्त में आ गए।
जो माहौल थोड़ी देर पहले इतना रूमानी लग रहा था , अचानक भयावह लगने लगा था।
पूरा आसमान एक कालिख से पुत गया था। यहाँ तक की काले बादलों ने छिपकर बच निकलने वाली चाँद की किरणों को भी रोक लिया था।
मैं छत के दूसरे कोने की ओर निकल आया था , जिधर आम के पेड़ की मोटी मोटी डालें हमारी छत पे आती थी।
अंधेरे में आम का पेड़ भी एकदम काला भुजंग लग रहा था और उसकी टहनियों का सेल्ह्यूट भी मोटे मोटे अजगर सा लग रहा था। उस घने पेड़ पे इस समय कुछ भी नहीं दिख रहा था.
उन टहनियों के नीचे अँधेरा और गहरा गया था , लेकिन जब मैंने सामने देखा तो खुली खिड़की से कमरा साफ दिख रहा था , और दो चलती फिरती छायाएं दिख रही थी , कुछ अलमारी से निकाल रही थीं ,
रंजी और गुड्डी ,
कमरे में अभी नाइट बल्ब की रौशनी थी और धुंधली ही सही लेकिन दोनों दिख रही थीं।
मैंने फिर चारो ओर निगाह दौड़ाई , कहीं हम लोगों की केलि क्रीड़ा कोई देख तो नहीं सकता था , लेकिन मैं पहले ही जानता था की कमरा कौन अगर हम तीनो छत पर भी कबड्डी खेलते तो कोई देखने वाला नहीं था।
हमारे घर के दोनों साइड की जमीन पर अभी कोई मकान नहीं था , एक साइड में बस बाउंड्री वाल बनी थी। हाँ सामने सड़क के पार जरूर मकान थे , और उनके यहाँ छत पर कमरे भी थे , लेकिन उन कमरों में कोई रहता नहीं था। घर के पीछे की ओर एक गडही सी थी , उसके पीछे कुछ घर जरूर थे , बाँध पर बने और उसके बाद टौंस नदी।
इसलिए किसी के न देखने का कोई चांस था और न रंजी के सील टूटने पर हुयी चीख सुनने का।
हवा फिर एक बार तेज हो गयी , कुछ रोशनी आने लगी लेकिन उस में झूलती डोलती आम की पेड़ की मोटी मोटी डाल की परछाईं और डरावनी लगती थी।
लेकिन उस रौशनी में मेरी निगाह मोबाइल पे पड़ी और मेरा ध्यान उधर गया।
कई मेसेज और मेल थे।
मेसेज दो थे , एक फेलू दा का और दूसरा कार्लोस का।
लेकिन मेरी समझ में दोनों नहीं आये।
फेलू दा का शाम का यही मेसेज था सब कुछ ठीक है न कोई चिंता की बात तो नही।
और मैने उन्हें जवाब भी दे दिया था की सब ठीक है और ये भी बोला था की कल दुपहर तक मैं बनारस पहुँच जाऊँगा और शाम को उनसे मिलने आऊंगा।
लेकिन फिर दुबारा ये मेसेज क्यों?
फेलू दा की हर बात का कोई न कोई मतलब होता है , ये कहीं कोई कोड तो नहीं।
मैंने सेंड मेसेज चेक किया , उनको मैंने मेसेज दिया था।
फिर मुझे लगा शायद मेसेज उन तक न पहुंचा हो ,मैं बिना बात के परेशान हो रहा हूँ।
कार्लोस ने रंजी के बारे में पुछा था और लेकिन उसने भी लिखा था सब ठीक है न।
रंजी के आज की सक्सेस में , कार्लोस का भी बड़ा रोल था , क्योंकि उसने एक मशहूर , फैशन फोटोग्राफर का रिफरेन्स दिया था , और उसने मॉडलिंग एजेंसी को रंजी के बारे में फेवरेबल रिस्पॉन्स दिया था। कार्लोस ने एक इंटरनेशनल लिंगरी कंपनी वाले को भी फोटो दिखाए थे तो उन्होंने रंजी के कुछ टॉपलेस फोटुएं और उसके उभारों का क्लोज अप माँगा था , जो मैंने भेज दिया था।
कार्लोस ने ये लिखा था की टॉपलेस फोटो देख के उनका रिस्पांस फेवरेबल है। लेकिन दो दिन बाद उनका कोई एजेंट बनारस आ रहा है , वो फाइनल इंटरव्यू लेगा , जो बहुत कुछ एक फॉरमैलिटी होगा। और अंत में काॅर्लोस ने भी पूछा था की कोई चिंता की बात तो नहीं हैं।
मेरे कुछ समझ में नहीं आया। एक तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे थे दूसरे , अँधेरा।
मैंने दोनों मेसज के जवाब में लिख दिया की हम सब ठीक हैं और हम तीनो कल दोपहर के पहले ही बनारस के लिए रवाना होंगे। कार्लोस को भी मैंने ये बता दिया की , रंजी बनारस में ८-१० दिन रहेगी इसलिए वो इंटरव्यू दे देगी , उसमें कोई दिक्कत नहीं है। और वो लिंगरी मॉडलिंग के लिए तैयार है।
एक मेल करन का था।
जैसे मुझे इन दोनों ने बाहर कर दिया था , वही हाल वहां भी था , और मीनल और रीत ने उसे आधे घंटे के लिए बंद कर दिया था। उसने कन्फर्म किया था की वो लोग कल फ्लाइट से बनारस आएंगे , लेकिन एक छोटा सा चेंज था। वो दिल्ली हो के आएंगे और करन को वहीँ उतरना होगा। डिब्रिफिंग के लिए। और वो लम्बी चलेगी दो -तीन दिन , इसलिए पहले जो उसका प्रोग्राम था बनारस आने का वो भी नहीं हो पायेगा। रीत लेकिन बनारस आएगी हाँ उसको भी एक दिन बाद दिल्ली पहुँचना होगा।
उसे भी मैंने अपना प्रोग्राम कन्फर्म किया।
रीत के नाम का असर था , चंदा को घेरे दुष्ट बादल भी एक एक कर के रफूचक्कर हो गए और माहौल फिर बदल गया ,
जो आम का पेड़ इतना भयावह लग रहा था अब शीतल मंद समीर देने वाला लग रहे था।
और अंदर से बुलावा आ गया।
मेरा छत निकाला खत्म हो गया।
और मुंह में निवाला जाने का जुगाड़ हो गया था।
महक जबरदस्त आ रही है , मैने तारीफ की।
और जवाब में डांट पड़ी दोनों की , ' तुम्हारी तरह चांदनी रात में छत पर नौका विहार थोड़ी कर रहे थे हम दोनों। इत्ती मेहनत की है , चलो चुपचाप खाओ और हम दोनों का गुण गाओ। "
और जैसे ही प्लेट में उन दोनों ने निकाला ,मैंने देखते ही तारीफ और ज्ञान दोनों प्रदर्शित करना शुरू कर दिया।
" ये तो बिरयानी लग रही है , परफेक्ट। और इत्ती जल्दी , एकदम जैसा अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा था , अगर देखने में ऐसे है तो खाने में क्या मजा आएगा। "
" यार तभी मैं कह रही थी , कित्ती अच्छी सुघड़ गृहिणी तुझे मिली ही बताओ इन्हे बिरयानी तक के बारे में सब मालुम है , रोज दावत है तेरी " रंजी गुड्डी से बोली।
लेकिन लूज बाल मिलने पे कौन छोड़ता है वो भी गुड्डी , उसने तुरंत लांग आन पे चौक्का मारा ,
" अरे असली तारीफ तो मेरी मम्मी की समधन की है ,लगता है उन्होंने किसी बावर्ची से ,… तभी उसका असर हुआ है , पैदायशी। लेकिन चलो बनारस , आने दो मम्मी को चूल्हा चौका तेरे हवाले , असली इम्तहान मम्मी लेंगी इनका। अगर जरा भी नमक कम ज्यादा हुआ न तो बस जो इनकी नमकीन मायकेवालियान हैं , न पैदायशी छिनार सबकी ऐसी की तैसी। लेकिन घबड़ा मत जो कसर तेरे मायके में रह गयी होगी न वो मम्मी सीखा पढ़ा के पूरी कर देंगी। "
मैं अब तक समझ गया था की खाने के साथ गालियां तो मिलनी ही हैं अगर कोई ससुराल वाली हो सामने , लेकिन कान से गाली सुनो और मुंह से खाना खाओ , वरना चूहों की मैराथन रुकने वाली नहीं है।
बस मैंने बिरयानी खानी शुरू कर दी। पहला कौर मुंह में गया था और दूसरा मुंह में उठाया था की रंजी ने एक घोड़े की चाल चल दी। बोली वो गुड्डी से , निशाने पे मैं था।
" हे ऐसे सूखे सूखे , साथ में कुछ गीला करने वाला हो तो आसानी से जाएगा। "
और हुकम गुड्डी ने जारी कर दिया ,
" सुन रहे हो इत्ती प्यारी सी नमकीन रंडी , मेरा मतलब रंजी कुछ कह रही है। तुम न सब कुछ भूल के सिर्फ खाने पे जुटे हो , कुछ काम करो। जाके सामने आलमारी से कुछ पीने का भी सामान निकालो न। '
फूड ब्रेक और मैं उस इंगित अलमारी के पास खड़ा होगया , खोल के।
और उधर से डायरेक्शंस के तीर चलने शुरू होगये , नहीं नहीं ऊपर वाली , अरे यार तेरे तो कुछ समझ में नहीं आता , उसके बगल वाली। नहीं नहीं , नीचे वाली शेल्फ पे। अच्छा चल यार जो तेरी मर्जी हो एकदम झक्कास होना चाहिए पी के टुन्न।
और उस के बाद नीचे की शेल्फ पे मैं ग्लास उठाने के लिए झुका तो पाया वहां ढेर सारे रेड़ी टू ईट के पैकेट रखे हुए रखे थे। और एक पैकेट खाली भी था , हैदराबादी बिरयानी का। फिर मेरी चमकी , जब मैंने बाहर से देखा था तो दोनों इसी अलमारी के पास ही तो खड़ी थीं ,तो ये था बिरयानी का राज।
लेकिन मैंने मुंह नहीं खोला। अब मुंह खोलना था सिर्फ खाने के लिए।
लेकिन वो भी इत्ती जल्दी नसीब नहीं होना था।
बर्फ ,नहीं ये वाली नहीं , ये चीज वो चीज और जब मैं वापस पहुंचा तो बिरयानी की प्लेट तीन चौथाई से ज्यादा खाली थी। और उस के बाद 'बड़ी ईमानदारी ' से उन दोनों ने बराबर बराबर तीन हिस्से किये और १/४ का १/३ मुझे मिल ही गया।
हाँ व्हिस्की में बेईमानी नहीं थी , साफ पूरी बोतल हुयी लेकिन बराबर बराबर।
गुड्डी ने कुछ ईमानदारी बरती , चॉकलेट और कुछ नट्स मुझे मिल गए और पेट के चूहे शांत हो गए।
लेकिन अब पेट के नीचे वाला चूहा अंगड़ाई ले के अजगर हो गया था और उसका भी कुछ इंतजाम होना था।
ढाई से कुछ ज्यादा हो रहे थे।
लेकिन सुबह होने में तो अभी साढ़े तीन चार घंटे बाकी थे।
एक राउंड तो कम से कम बनता था।
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लेकिन सवाल सीधा था किसके साथ ,
दोनों में से कोई लखनऊ की नहीं थी लेकिन पहले आप , पहले आप चालू हो गया।
" सिक्का उछालूँ " मैंने एक सीधा साधा ऑप्शन दिया , लेकिन दोनों में से कोई सीधा हो तो वो सीधी बात माने।
" तेरे पास अगर कहीं शोले टाइप सिक्का हुआ तो , " सवाल दागने में बनारस वाली से कौन जीत सकता था।
"या फिर चित्त मैं जीती पट्ट तू हारा वाली बात हुयी तो " रंजी मुस्करा के बोली।
" एकदम सही आइडिया है , यही होगा " गुड्डी खुश होके बोली , लेकिनअबकी रंजी ने वीटो लगा दिया , अपने भोगे हुए यथार्थ के आधार पर ,
" न न अभी तुम दोनों ने मिल के , चित्त एक ने और पट्ट दूसरे ने ,ये नहीं चलेगा। बेईमानी है " रंजी जोर से बोली।
और बात उसकी पूरी सही थी ,अगवाड़े पर मैंने चढ़ाई की थी और पिछवाड़े गुड्डी ने हमला बोल दिया था और क्या प्रोफेशनल लौण्डेबाज गांड मारेगा , जिस तरह गुड्डी ने रंजी की हचक हचक कर बेरहमी से गांड फाड़ी थी।
सिक्के वाले आइडिया को बाई बाई कर दिया गया।
अगला आइडिया रंजी ने दिया और गुड्डी ने उसकी ऐसी की तैसी कर दी /
" अरे यार खाने के बाद स्वीट डिश तो हुयी नहीं न , तो बस ये बनारसी चमचम या लॉलीपॉप जो तन्नाया है न उसे हम दोनों बारी बारी से चूसें बस , जिसके मुंह में झड़े , उसकी ली जायेगी। " रंजी की चमकी और उसने आइडिया पेश कर दिया।
और गुड्डी ने उसमें तुरंत छेद कर दिया ,
" अरे कमीनी साल्ली , ये सोचा है कभी , एक बार पानी फेंकने के बाद कुछ टाइम लगेगा न उसे जगाने में। और अब रात कितनी बची है। दूसरे कितना भी जुगाड़ लगाओ , ये साला बहनचोद ३० -४० मिनट से पहले झड़ने वाला नहीं और चींटे काट रहे हैं चूत में , वोबिचारी भूखी ही रह जायेगी सोन चिरैया। "
अब मेरा नंबर था और मैंने पुरानी आइडिया को रिपैकेज कर थोड़ा प्रजेंटेशन का तड़का लगा के पेश कर दिया।
और वो चल भी गया /
म्यूजिकल चेयर काक सकिंग।
मैंने बोला " म्यूजिकल चेयर की तरह , तुम दोनों बारी से सक करो। दो दो मिनट के लिए , लेकिन मैं रेंडमली कोई म्यजिक सेलेक्ट करंगा।
और जब म्यूजिक बंद होगा उस समय मेरा खूंटा जिसके मुंह में होगा , बस नीचे वाले मुंह में उसके ही जाएगा। ३-४ मिनट में फैसला हो जाएगा , और साथ जंगबहादुर , जंग के लिए तैयार भी हो जाएंगे।
अबकी सर्व सहमती हो गयी /
म्यूजिकल काक सकिंग हुयी और जब म्यूजिक बंद हुआ , लॉलीपॉप गुड्डी के मुंह में था।
उसने बहुत मुंह बनाया लेकिन अब चुदने की बारी उसकी थी।
रंजी अब कुर्सी पर दर्शक दीर्घा में जा के बैठ गयी , जहाँ कुछ देर पहले उसने मुझे बैठाया था।
मैं और गुड्डी अखाड़े में थे।
रात के तीन बजने में अभी दस मिनट बचे थे।
बाहर रात झर रही थी।
एक बार फिर चांदनी की अंगड़ाई ने काले धूसर बादलों के नागपाश को तोड़कर दूर कर दिया था और आसमान के आँगन में वो इधर उधर दूर छितरे पड़े थे , टुकड़े टुकड़े।
जैसे कोई किशोरी , सद्यस्नाता , बाहर निकल कर अपने बाल झटक के चेहरे से दूर कर दे , तौलिये की गाँठ खुद ब खुद खुल जाय और और पूरे माहौल में आती हुयी जवानी की गमक भर जाय , छितर जाय , बौर और टिकोरों से लड़े आम के पेड़ की तरह।
बस उसी तरह चांदनी अब बाहर छत पर , अंदर कमरे में बिस्तर पर , दीवारों पर हर जगह पसरी पड़ी थी , और मुझे और गुड्डी को चमेली के चादर की तरह ढके हुयी थी।
मुश्किल था ये तय करना , ये चांदनी थी की गुड्डी के रूप की उजास। चाँद रोशन कर रहा था कायनात को या गुड्डी का रूप छिटक रहा था चांदनी बन कर।
1 comment:
Mast story
Please update jaldi she
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