FUN-MAZA-MASTI
चूची का दीवाना
नमस्कार दोस्तों मेरा नाम अमर है मैं फन मजा मस्ती की निमियित पाठक हूँ ..
आज मैं आपको अपने दिल की बात जो एक अरसे से छिपा के बैठा था उसे फन मज़ा मस्ती के माध्यम से निकालना चाहता हूँ. बात तब की हैं जब मैं ग्रेज्युएशन के लास्ट इयर में था. अच्छे दिन थे जब 5 रूपये पॉकेट मनी मिलती थी जिसमे से भी 1 रुपया बच जाता था. चाचा जी बगल वाले घर में ही रहते थे, और उनकी बेटी संध्या भी. संध्या के बारे में बस इतना कहूँगा की उसकी फिगर करीना कपूर से कम नहीं थी यदि ज्यादा नहीं तो. और मैं एक अरसे से उसके चूची का दीवाना था.
एग्जाम नजदीक थी इसलिए मैं कोलेज नहीं जाता था और घर पे ही पढता था. मेरे माँ-बाप उस दिन किसी काम से मौसी के गाँव गए थे. मुझे बाद में पता चला की वो मेरे रिश्ते की बात करने के लिए गए थे. संध्या से मेरी अच्छी बनती थी, वो मुझ से कुछ 4 महीने बड़ी हैं.
उस दिन मेरा ध्यान पढाई में बिलकुल भी नहीं लग रहा था. मैं मुठ मारना चाहता था क्यूंकि घर में कोई नही था मेरे बगेर. मैंने मोबाइल में एक बड़े चूची वाली लड़की की क्लिप निकाली और लंड सहलाने लगा. बहार देखा तो संध्या बाथरूम से नहाकर निकली थी. उसने छाती तक रुमाल लपेटा था और उसके चूची मादक आकार बना रहे थे. मैं वही खिड़की में खड़े खड़े लंड को शांत किया और वीर्य को कोपी के एक पेज में भर के उसे बहार फेंक दिया.
मेरी इच्छा अब संध्या से सेक्स करने को हो रही थी. मैंने थोड़ी देर पहले ही चाची को बहार जाते देखा था, और चाची तो सुबह ही दुकान पर निकल जाते है. वो भी घर पर अकेली ही थी…! मैं उठा और उसके घर में चला गया. डोर खुला ही था, मैं सीधा उसके बेडरूम की और गया. संध्या शायद कहीं बहार जा रही थी क्यूंकि उसने बेड के ऊपर जींस और पेंट रखा हुआ था. मैं फट से अंदर घुस गया. संध्या शीशे के सामने सिर्फ ब्रा और पेंटी में खड़ी थी. उसने मुझे देखा और उसके होश उड़ गए, उसने थित्हरे हुए गले से कहा, क्या कर रहे हो तुम अंदर क्यूँ आये बिना नोक किये हुए.
मैंने कहा, संध्या मुझे कुछ काम था इसलिए आ गया. मुझे नहीं पता था की तुम ऐसे खड़ी हो.
यह सुन के वो कुछ नहीं बोली, मैं उसे देख रहा था. काली ब्रा में उसके सफ़ेद चूची सेक्सी लग रहे थे.
क्या देख रहे हो?
तुम मस्त दिखती हो.
अच्छा बहार जाओ अब कोई आ जायेंगा तो पंगे होंगे.
देख तो लेने दो दो घडी.
मुझे पता हैं अभी तुम खिड़की के पास खड़े क्या कर रहे थे, पर्दा हवा से उठा था 2 सेकंड के लिए. और मैं यह भी जानती हूँ की तुम यहाँ क्यूँ आये हो.
बाप रे उसने मुझे मुठ मारते हुए देखा था. तब तो उसने मेरा काला नाग भी देखा होंगा ना. मैंने कहा, फिर कुछ मजे करा दो ना संध्या, बहुत अरसे से तमन्ना थी तुम्हारे साथ की.
चुप कर, ऐसे नहीं होता हैं. हम भाई बहन हैं.. वो टी-शर्ट उठा के बोली.
मुझे लगा की अभी नहीं तो कभी नहीं. मैं फट से उसके नजदीक गया और बोला, कजिन हैं इसलिए ही एक दुसरे को हेल्प करेंगे ना. और इतना कह के मैंने उसके चूची पर हाथ रख दिया. संध्या ने कहा, कोई आ जाएगा यार..
अरे कोई नहीं आयेंगा, सभी लोग बहार हैं.
और मैं उसके चूची को दबाने लगा. फिर एक पल की भी देर किये बिना मैंने पीछे हाथ कर के उसकी ब्रा की हुक को खोल दी. बाप रे क़यामत थे उसके चूची तो. संध्या को शर्म आ गई और उसने अपना हाथ छाती के ऊपर रख दिया. लेकिन मैंने उसके हाथ कको हटा दिया और उसके चूची मसलने लगा. उसकी निपल्स अकड चुकी थी और वो आह आह करने लगी थी. मैंने उसे मसलते हुए ही अपनी पेंट खोल के लंड बहार निकाल लिया. संध्या का हाथ पकड के मैंने अपने लंड पर रख दिया. वो उसे मसलने लगी. मेरा लंड काफी गर्म हो चूका था. संध्या ने अब मेरे लंड को मुठ्ठी में बंध किया और वो उसे ऐसे हिलाने लगी जैसे की मुठ मार रही हो.
मैने कहा, इसे अपने मुहं का मजा भी दे दो संध्या.
नहीं मैं मुहं में और पीछे नहीं लुंगी, यह सब गंदी चीजें हैं और मुझे नहीं पसंद.
मैंने मन ही मन सोचा की कोई नहीं फिर चूत ही अच्छी तरह दे देना साली रंडी. संध्या की चूत के ऊपर हाथ रखने के लिए मैंने पेंटी को खिसकाया और मैंने महसूस किया की उसकी चूत बहुत ही गर्म हो गई थी. उसने शायद आजकल में ही चूत के बाल निकाले थे क्यूंकि चूत के ऊपर सब सफाई की हुई लगती थी. मैंने हलके से ऊँगली को चूत के दाने पर रख दिया और उसे मसलने लगा. संध्या के मुहं से आह आह की आवाज निकलने लगी. मैंने उसके चूची मसलते हुए ऊँगली को चूत के छेद में डाल दी. इस से तो काव्य जैसे उछल पड़ी. उसने लंड छोड़ दिया और मेरे कंधे को पकड के दबाने लगी. मैंने उसे कहा की चलो बेड में लेट जाओ.
वो बेड के ऊपर की जींस और पेंट को साइड में कर के लेट गई. मैंने सरकाई हुई पेंटी को निकाल फेंका और उसकी टाँगे फैला दी. संध्या की चूत मस्त गुलाबी थी जिसे देख के मेरा लंड मानो उसे सलामी दे रहा था. मैंने अपनी ऊँगली को उसकी चूत में डाला और उसे अंदर बहार करने लगा. संध्या की आँखे बंध हो गई और उसके मुहं से वही आहा आह निकलने लगा. वो बड़ी गर्म हो चुकी थी और चुदने के लिए भी बेताब लग रही थी. मैंने उसकी चूत की साइज़ चेक करने के लिए दूसरी ऊँगली भी डालनी चाही.
उफफ्फ्फ्फ़ अरे क्या पागल हो, अंदर बैठोगे क्या, कितना दर्द हुआ मुझे… संध्या दूसरी ऊँगली नहीं ले पाई उसका मतलबी था की उसकी चूत ढीली नहीं बल्कि टाईट ही थी. मैंने अब चूत से अपनी ऊँगली निकाली और उसे सूंघी. चूत की खुसबू पूरी ऊँगली से आ रही थी, मैं समझ गया की संध्या ने चूत के ऊपर भी लक्स रोस लगाया था. अब मैंने ऊँगली चाटी और संध्या ने टाँगे और खोली. मैंने अब लंड को चूत के छेद पर सेट किया. संध्या ने हाथ बढ़ा के लंड की बागडोर अपने हाथ में ले ली और उसे चूत प् रगड़ने लगी.
एकदम से मत घुसेड देना, जब मैं कहूँ तब झटका देना धीरे से..उसने चूत पर लंड रगड़ते हुए कहा.
गांड उचका के चुदवाया
मुझे उसकी चूत की गर्मी लंड पर मिलते ही बड़ा मजा आ रहा था. वो करीब पुरे दो मिनिट चूत के ऊपर मेरा लंड घिसती रही. और उसकी चूत से बहुत सी चिकनाहट निकल के पूरा गिला कर चुकी थी. मैं समझ गया की वो चूत में घर्षण नहीं चाहती थी इसलिए उसे चिकनी बना रही थी. संध्या ने अब आँखों से इशारा किया और मैंने हलके से पेला. मेरा लंड उसकी चूत में जाते ही उसकी आह निकली लेकिन उसमे सुख के भाव भी थे. मैंने लंड को थोडा और अंदर किया और मेरे अंडकोष उसकी चूत के होंठो को छूने लगे. मेरा लंड पूरा अंदर घुस गया था और संध्या आह आह कर रही थी. संध्या की चूत में मेरा लंड अब गोते लगा के गिला हो रहा था.
2 मिनिट तक आह आह करने के बाद अब संध्या भी मचलने लगी. उसकी कमर और गांड हिलने लगे और उसकी वजह से उसके चूची भी हवा में उड़ रहे थे. मैंने निचे झुक के चूची को मुहं में भर लिया और जोर जोर से झटके देने लगा.
मजा आ रहा हैं, और जोर से करो, आह आह आह…संध्या ने अब चुदने का मजा लूटना चालू कर दिया था.
मैं भी उसके चूची चूस के उसे जोर जोर से ठोकने लगा. मेरा लंड उसकी चूत में पूरा जाकर बहार आता था और जब वो चूत को दबाती थी तब तो मेरी जान ही निकल जाती थी जैसे. संध्या की मोनिंग बढ़ने लगी और उसके साथ ही मैं और भी जोर से उसे चोदने लगा. 10 मिनिट की धमाकेदार चुदाई के बाद मैं अपना माल उसकी चूत में ही छोड़ दिया. संध्या ने चूत को दबा के सब अंदर ले लिया. मैंने लंड चूत से निकाला और उसे हिलाकर बचीकुची बुँदे भी उसके शरीर पर ही निकाल दी. संध्या ने उठ के अपने बदन को मेले कपडे से साफ़ किया. वही कपडे से मैंने अपना लंड भी पोंछ लिया. संध्या खुश थी मेरी चुदाई से.
क्यूँ मजा आया के नहीं? मैंने पूछा.
मजा तो बहुत आया, लेकिन अब तुम भागो कोई आ गया तो पंगे होंगे.
मैंने कपडे पहले और संध्या के चूची दबा के घर से निकल गया. उस दिन से चालु हुई हमारी चुदाई अब और भी गहरी हो चुकी थी. संध्या भी कई बार मुझे फोन कर के बुलाती थी जब घर कोई नहीं होता था. मुझे उसके चूची और चूत का लहावा पूरा मिलता था. और जैसे उसने पहले ही कहा था गांड और मुहं में मैं उसे आजतक नहीं दे पाया हूँ. लेकिन उसका कोई गम नहीं हैं क्यूंकि उसके चूची और चूत कसर पूरी कर देते हैं…! चलो मिलते हैं दोस्तों, बाय बाय…!
राज शर्मा स्टॉरीज पर पढ़ें हजारों नई कहानियाँ
चूची का दीवाना
नमस्कार दोस्तों मेरा नाम अमर है मैं फन मजा मस्ती की निमियित पाठक हूँ ..
आज मैं आपको अपने दिल की बात जो एक अरसे से छिपा के बैठा था उसे फन मज़ा मस्ती के माध्यम से निकालना चाहता हूँ. बात तब की हैं जब मैं ग्रेज्युएशन के लास्ट इयर में था. अच्छे दिन थे जब 5 रूपये पॉकेट मनी मिलती थी जिसमे से भी 1 रुपया बच जाता था. चाचा जी बगल वाले घर में ही रहते थे, और उनकी बेटी संध्या भी. संध्या के बारे में बस इतना कहूँगा की उसकी फिगर करीना कपूर से कम नहीं थी यदि ज्यादा नहीं तो. और मैं एक अरसे से उसके चूची का दीवाना था.
एग्जाम नजदीक थी इसलिए मैं कोलेज नहीं जाता था और घर पे ही पढता था. मेरे माँ-बाप उस दिन किसी काम से मौसी के गाँव गए थे. मुझे बाद में पता चला की वो मेरे रिश्ते की बात करने के लिए गए थे. संध्या से मेरी अच्छी बनती थी, वो मुझ से कुछ 4 महीने बड़ी हैं.
उस दिन मेरा ध्यान पढाई में बिलकुल भी नहीं लग रहा था. मैं मुठ मारना चाहता था क्यूंकि घर में कोई नही था मेरे बगेर. मैंने मोबाइल में एक बड़े चूची वाली लड़की की क्लिप निकाली और लंड सहलाने लगा. बहार देखा तो संध्या बाथरूम से नहाकर निकली थी. उसने छाती तक रुमाल लपेटा था और उसके चूची मादक आकार बना रहे थे. मैं वही खिड़की में खड़े खड़े लंड को शांत किया और वीर्य को कोपी के एक पेज में भर के उसे बहार फेंक दिया.
मेरी इच्छा अब संध्या से सेक्स करने को हो रही थी. मैंने थोड़ी देर पहले ही चाची को बहार जाते देखा था, और चाची तो सुबह ही दुकान पर निकल जाते है. वो भी घर पर अकेली ही थी…! मैं उठा और उसके घर में चला गया. डोर खुला ही था, मैं सीधा उसके बेडरूम की और गया. संध्या शायद कहीं बहार जा रही थी क्यूंकि उसने बेड के ऊपर जींस और पेंट रखा हुआ था. मैं फट से अंदर घुस गया. संध्या शीशे के सामने सिर्फ ब्रा और पेंटी में खड़ी थी. उसने मुझे देखा और उसके होश उड़ गए, उसने थित्हरे हुए गले से कहा, क्या कर रहे हो तुम अंदर क्यूँ आये बिना नोक किये हुए.
मैंने कहा, संध्या मुझे कुछ काम था इसलिए आ गया. मुझे नहीं पता था की तुम ऐसे खड़ी हो.
यह सुन के वो कुछ नहीं बोली, मैं उसे देख रहा था. काली ब्रा में उसके सफ़ेद चूची सेक्सी लग रहे थे.
क्या देख रहे हो?
तुम मस्त दिखती हो.
अच्छा बहार जाओ अब कोई आ जायेंगा तो पंगे होंगे.
देख तो लेने दो दो घडी.
मुझे पता हैं अभी तुम खिड़की के पास खड़े क्या कर रहे थे, पर्दा हवा से उठा था 2 सेकंड के लिए. और मैं यह भी जानती हूँ की तुम यहाँ क्यूँ आये हो.
बाप रे उसने मुझे मुठ मारते हुए देखा था. तब तो उसने मेरा काला नाग भी देखा होंगा ना. मैंने कहा, फिर कुछ मजे करा दो ना संध्या, बहुत अरसे से तमन्ना थी तुम्हारे साथ की.
चुप कर, ऐसे नहीं होता हैं. हम भाई बहन हैं.. वो टी-शर्ट उठा के बोली.
मुझे लगा की अभी नहीं तो कभी नहीं. मैं फट से उसके नजदीक गया और बोला, कजिन हैं इसलिए ही एक दुसरे को हेल्प करेंगे ना. और इतना कह के मैंने उसके चूची पर हाथ रख दिया. संध्या ने कहा, कोई आ जाएगा यार..
अरे कोई नहीं आयेंगा, सभी लोग बहार हैं.
और मैं उसके चूची को दबाने लगा. फिर एक पल की भी देर किये बिना मैंने पीछे हाथ कर के उसकी ब्रा की हुक को खोल दी. बाप रे क़यामत थे उसके चूची तो. संध्या को शर्म आ गई और उसने अपना हाथ छाती के ऊपर रख दिया. लेकिन मैंने उसके हाथ कको हटा दिया और उसके चूची मसलने लगा. उसकी निपल्स अकड चुकी थी और वो आह आह करने लगी थी. मैंने उसे मसलते हुए ही अपनी पेंट खोल के लंड बहार निकाल लिया. संध्या का हाथ पकड के मैंने अपने लंड पर रख दिया. वो उसे मसलने लगी. मेरा लंड काफी गर्म हो चूका था. संध्या ने अब मेरे लंड को मुठ्ठी में बंध किया और वो उसे ऐसे हिलाने लगी जैसे की मुठ मार रही हो.
मैने कहा, इसे अपने मुहं का मजा भी दे दो संध्या.
नहीं मैं मुहं में और पीछे नहीं लुंगी, यह सब गंदी चीजें हैं और मुझे नहीं पसंद.
मैंने मन ही मन सोचा की कोई नहीं फिर चूत ही अच्छी तरह दे देना साली रंडी. संध्या की चूत के ऊपर हाथ रखने के लिए मैंने पेंटी को खिसकाया और मैंने महसूस किया की उसकी चूत बहुत ही गर्म हो गई थी. उसने शायद आजकल में ही चूत के बाल निकाले थे क्यूंकि चूत के ऊपर सब सफाई की हुई लगती थी. मैंने हलके से ऊँगली को चूत के दाने पर रख दिया और उसे मसलने लगा. संध्या के मुहं से आह आह की आवाज निकलने लगी. मैंने उसके चूची मसलते हुए ऊँगली को चूत के छेद में डाल दी. इस से तो काव्य जैसे उछल पड़ी. उसने लंड छोड़ दिया और मेरे कंधे को पकड के दबाने लगी. मैंने उसे कहा की चलो बेड में लेट जाओ.
वो बेड के ऊपर की जींस और पेंट को साइड में कर के लेट गई. मैंने सरकाई हुई पेंटी को निकाल फेंका और उसकी टाँगे फैला दी. संध्या की चूत मस्त गुलाबी थी जिसे देख के मेरा लंड मानो उसे सलामी दे रहा था. मैंने अपनी ऊँगली को उसकी चूत में डाला और उसे अंदर बहार करने लगा. संध्या की आँखे बंध हो गई और उसके मुहं से वही आहा आह निकलने लगा. वो बड़ी गर्म हो चुकी थी और चुदने के लिए भी बेताब लग रही थी. मैंने उसकी चूत की साइज़ चेक करने के लिए दूसरी ऊँगली भी डालनी चाही.
उफफ्फ्फ्फ़ अरे क्या पागल हो, अंदर बैठोगे क्या, कितना दर्द हुआ मुझे… संध्या दूसरी ऊँगली नहीं ले पाई उसका मतलबी था की उसकी चूत ढीली नहीं बल्कि टाईट ही थी. मैंने अब चूत से अपनी ऊँगली निकाली और उसे सूंघी. चूत की खुसबू पूरी ऊँगली से आ रही थी, मैं समझ गया की संध्या ने चूत के ऊपर भी लक्स रोस लगाया था. अब मैंने ऊँगली चाटी और संध्या ने टाँगे और खोली. मैंने अब लंड को चूत के छेद पर सेट किया. संध्या ने हाथ बढ़ा के लंड की बागडोर अपने हाथ में ले ली और उसे चूत प् रगड़ने लगी.
एकदम से मत घुसेड देना, जब मैं कहूँ तब झटका देना धीरे से..उसने चूत पर लंड रगड़ते हुए कहा.
गांड उचका के चुदवाया
मुझे उसकी चूत की गर्मी लंड पर मिलते ही बड़ा मजा आ रहा था. वो करीब पुरे दो मिनिट चूत के ऊपर मेरा लंड घिसती रही. और उसकी चूत से बहुत सी चिकनाहट निकल के पूरा गिला कर चुकी थी. मैं समझ गया की वो चूत में घर्षण नहीं चाहती थी इसलिए उसे चिकनी बना रही थी. संध्या ने अब आँखों से इशारा किया और मैंने हलके से पेला. मेरा लंड उसकी चूत में जाते ही उसकी आह निकली लेकिन उसमे सुख के भाव भी थे. मैंने लंड को थोडा और अंदर किया और मेरे अंडकोष उसकी चूत के होंठो को छूने लगे. मेरा लंड पूरा अंदर घुस गया था और संध्या आह आह कर रही थी. संध्या की चूत में मेरा लंड अब गोते लगा के गिला हो रहा था.
2 मिनिट तक आह आह करने के बाद अब संध्या भी मचलने लगी. उसकी कमर और गांड हिलने लगे और उसकी वजह से उसके चूची भी हवा में उड़ रहे थे. मैंने निचे झुक के चूची को मुहं में भर लिया और जोर जोर से झटके देने लगा.
मजा आ रहा हैं, और जोर से करो, आह आह आह…संध्या ने अब चुदने का मजा लूटना चालू कर दिया था.
मैं भी उसके चूची चूस के उसे जोर जोर से ठोकने लगा. मेरा लंड उसकी चूत में पूरा जाकर बहार आता था और जब वो चूत को दबाती थी तब तो मेरी जान ही निकल जाती थी जैसे. संध्या की मोनिंग बढ़ने लगी और उसके साथ ही मैं और भी जोर से उसे चोदने लगा. 10 मिनिट की धमाकेदार चुदाई के बाद मैं अपना माल उसकी चूत में ही छोड़ दिया. संध्या ने चूत को दबा के सब अंदर ले लिया. मैंने लंड चूत से निकाला और उसे हिलाकर बचीकुची बुँदे भी उसके शरीर पर ही निकाल दी. संध्या ने उठ के अपने बदन को मेले कपडे से साफ़ किया. वही कपडे से मैंने अपना लंड भी पोंछ लिया. संध्या खुश थी मेरी चुदाई से.
क्यूँ मजा आया के नहीं? मैंने पूछा.
मजा तो बहुत आया, लेकिन अब तुम भागो कोई आ गया तो पंगे होंगे.
मैंने कपडे पहले और संध्या के चूची दबा के घर से निकल गया. उस दिन से चालु हुई हमारी चुदाई अब और भी गहरी हो चुकी थी. संध्या भी कई बार मुझे फोन कर के बुलाती थी जब घर कोई नहीं होता था. मुझे उसके चूची और चूत का लहावा पूरा मिलता था. और जैसे उसने पहले ही कहा था गांड और मुहं में मैं उसे आजतक नहीं दे पाया हूँ. लेकिन उसका कोई गम नहीं हैं क्यूंकि उसके चूची और चूत कसर पूरी कर देते हैं…! चलो मिलते हैं दोस्तों, बाय बाय…!
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