Sunday, June 1, 2014

FUN-MAZA-MASTI जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना--4

FUN-MAZA-MASTI

 जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना--4

 कामना सोफे पर मेरे दोनों ओर अपने पैर फैलाकर मेरी ओर मुँह करके मेरी गोदी में बैठ गई। मेरा लिंग फिर से उसकी योनि से टकराने लगा पर मैंने खुद पर कंट्रोल करते हुए उसको नीचे उतरने को कहा।
“जीजा जी, सच में दिमाग बोल रहा है कि मुझे चले जाना चाहिए, पर दिल साथ नहीं दे रहा मैं क्या करूं?” वो बोली।
“यह तो तुमको सोचना है।” मैंने कहा।
अचानक कामना से पैंतरा बदला और बोली, “बहुत नखरा कर रहे हो, सीधे सीधे लाइन पर आ जाओ अब नहीं तो आज आपका ही रेप हो जायेगा…” कहकर उसने अपने नरम और गरम होंठ मेरे होठों पर लगा दिया।
“आहहह…” क्या मुलायम होंठ हैं कामना के। शायद उस वक्त मैं उसके लिये कोई यही शब्द भी नहीं सोच पा रहा था। पर उस आनन्द की कल्पना भी मेरे लिये मुश्किल थी। मैं उसके होठों को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगा और वो मेरे। हम दोनों फिर से उसी खुमार में खोने लगे। कामना मेरी गोदी में नंगी बैठी थी मेरा लिंग लगातार उसकी योनि और गुदा को छू रहा था। वो फिर से जाग गया था।
लिंग देव अब नई सवारी करने के लिये तैयार हो गये। कामना ने अपने नितम्ब तेजी से हिलाने शुरू कर दिये। मुझे लगने लगा कि उसकी इस हरकत से तो यहीं बैठे बैठे मैं फिर से डिस्चार्ज हो जाऊँगा। मैंने कामना को फिर से गोदी में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया। बिस्तर पर गिरते ही मेरा लिंग फिर से उसकी आंखों के सामने था, जिसे उसने तुरन्त अपने होठों के हवाले कर दिया।
मैं कामना के दोनों ओर पैर करके उसके ऊपर आ गया। अभी मैं कामना को और तड़पाने के मूड में आ गया था। बमुश्किल कामना के मुँह से अपना लिंग निकालने के बाद मैंने फिर से उसके होठों पर अपने होंठ रख दिया और प्रगाढ़ चुम्बन में कामना को बांधने लगा। अब कामना भी खुलकर खेल रही थी। वो मेरे होठों को जबरदस्त तरीके से चूसने लगी। मैंने अपने दोनों हाथों को कामना के दोनों स्तनों पर रख दिया और तेजी से दबाने लगा।
‘उम्म… आह… धीरे… और करो…’ की आवाज कामना के मुँह से आने लगी।
मैंने तुरन्त अपने होंठ कामना की गर्दन पर रख दिये। उसको चेहरे, गर्दन, कंधे पर किस करना शुरू कर दिया। पर वो शायद मुझसे भी ज्यादा आतुर थी। कामना ने मुझे हल्का सा धक्का मारकर बराबर में बिस्तर पर नीचे लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गई। मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर खुद ही अपने पके हुए आमों पर रख दिया…
अब कामना मेरे पूरे बदन पर धीरे धीरे चुम्बन करने लगी, माथे पर, गालों पर, होठों पर फिर ठोड़ी पर, कंधे पर, कानों पर लगातार उसकी चुम्बन वर्षा हो रही थी, मैं नीचे लेटा कामना की हर हरकत देख रहा था, वो किस करते करते नीचे की ओर सरकने लगी मेरी छाती पर आकर लगातार चूमने और चाटने लगी। उसके बाद बाजू पर हाथों पर, नाभि पर… ‘आहह…’ लिंग के चारों ओर भी कामना का चुम्‍बन जारी था।
इस बार आह… भरने की स्थिति मेरी बन चुकी थी। शर्मिली हिरनी से कामना भूखी शेरनी बन चुकी थी, मैं उसके अन्दर की औरत को बाहर निकाल चुका था। मेरी जांघों पर उसकी उंगलियाँ गुदगुदी पैदा करने लगी। नीचे जाते जाते उसका चुम्बन मेरे पैरों के अंगूठे तक पहुँच गया। वहीं से कामना पलटी और मेरे मुँह की तरफ पीठ करके ऊपर की ओर आने लगी अब कामना की योनि बिल्कुल मेरे मुँह के ऊपर थी। वो मेरा लिंग अपनी मुँह में सटक चुकी थी। मैंने भी अपनी जुबान निकाल कर उसकी योनि की दरार पर रख दी।
‘हम्म…’ ये क्या? कामना की योनि के दोनों सांवले सलोने होंठ तो अपने आप ही फुदक रहे थे। ओह आज समझ में आया कि योनि को लोग ‘फुद्दी’ क्यों बोलते हैं, कामना की योनि सच में फुद्दी बन चुकी थी, वो अपने आप ही फुदक रही थी।
मैंने अपनी जीभ से उसकी दरार की चाटना शुरू कर दिया और हाथों को फिर से उसके बूब्स पर रख कर उसके दाने को सहलाने लगा। उसकी दरार में से बूंद बूंद रस टपक रहा था जो मेरी जबान में लगकर पूरी दरार पर फैल रहा था। कामना की चिकनी योनि चमचमा रही थी। अब चाटने में बहुत आनन्द आ रहा था। मैं लगातार उसकी फुद्दी की दरार को ऊपर से चाट रहा था।
कामना खुद ही चूतड़ आगे पीछे हिला-हिला कर मुझे मजा देने लगी। कुछ देर बाद वो अपनी योनि को मेरी जीभ पर दबाने लगी। मैं फिर भी उसकी दरार को ही चाटता रहा। क्योंकि मैं चाहता था कि अब कामना अपने मन की करे। तभी कामना ने बीच में से अपना एक हाथ पीछे निकालकर फुद्दी के दोनों होठों को अलग अलग कर मेरी जीभ के उपर रख दिया। मेरी जीभ कामना की योनि के अन्दर की दीवारों का निरीक्षण करने लगी। अन्दर से मीठा रस टपक रहा था। मैं उस रस को चाटने लगा और कामना नितम्ब हिला-हिला कर मेरी मदद करने लगी।
मैंने अपना एक हाथ बाहर निकला कर ऊपर किया और तर्जनी उंगली धीरे से कामना की गुदा में सरकाने की कोशिश की। “आह…नहीं…” की आवाज के साथ वो कूद कर आगे हो गई, ओर मेरी तरफ देखकर बोली, “आप इतने बदमाश क्यों हो?”
मैंने बिना कोई जवाब दिये अपने उंगली कामना की योनि में घुसा दी और अच्छी तरह गीली करके फिर से उसकी कमर पकड़कर गुदा में उंगली सरकाने लगा थोड़ा सा प्रयास करने के बाद उंगली का अगला हिस्सा उसके पिछले बिल में घुस गया। अब मैंने योनि और गुदा दोनों रास्तों से कामना की अग्नि को भड़काना शुरू कर दिया। कामना पागलों की तरह मेरे ऊपर धमाचौकड़ी करने लगी…कुछ ही सैकेन्डों में उसका बदन अकड़ने लगा और वो मेरे ऊपर धड़ाम से गिर गई। कामना का पूरा शरीर पसीने से तरबतर था।



मैंने अपना एक हाथ बाहर निकला कर ऊपर किया और तर्जनी उंगली धीरे से कामना की गुदा में सरकाने की कोशिश की। “आह…नहीं…” की आवाज के साथ वो कूद कर आगे हो गई, ओर मेरी तरफ देखकर बोली, “आप इतने बदमाश क्यों हो?”
मैंने बिना कोई जवाब दिये अपने उंगली कामना की योनि में घुसा दी और अच्छी तरह गीली करके फिर से उसकी कमर पकड़कर गुदा में उंगली सरकाने लगा थोड़ा सा प्रयास करने के बाद उंगली का अगला हिस्सा उसके पिछले बिल में घुस गया। अब मैंने योनि और गुदा दोनों रास्तों से कामना की अग्नि को भड़काना शुरू कर दिया। कामना पागलों की तरह मेरे ऊपर धमाचौकड़ी करने लगी…कुछ ही सैकेन्डों में उसका बदन अकड़ने लगा और वो मेरे ऊपर धड़ाम से गिर गई। कामना का पूरा शरीर पसीने से तरबतर था।
अब मैं उठकर बैठ गया और कामना को अपनी गोदी में बैठा कर उसके पूरे बदन को चाटने लगा। उसके नग्न बदन का नमकीन पसीना मेरी प्यास को और भी बढ़ा रहा था। गर्दन के पीछे, पीठ पर नितम्बों पर पेट पर नाभि पर जांघों पर मैंने अपने जीभ की छाप छोड़ दी। कामना लगभग बेहोशी की हालत में मेरी गोदी में थी। वो अपने सहारे से बैठ भी नहीं पा रही थी जैसे ही मैंने हल्का सा हाथ हटाया वो धम्म से बिस्तर पर जा गिरी। अब मेरी हिम्मत भी जवाब देने लगी थी, मैंने कामना को नीचे उतारा और उसके नितम्बों के नीचे बराबर में पड़े सोफे की एक गद्दी लगा दी जिससे उसकी योनि ऊपर उठ गई। कामना को बिस्तर पर सीधा लिटाकर मैं नीचे की तरफ उसकी टांगों के बीच में आ गया। अर्द्धमूर्छा की अवस्था में भी कामना को इतना होश था कि मेरी स्थिति जानकर वो मेरी तरफ ही सरकने लगी मैंने अपना लिंग पकड़ा और कामना की फुदकती हुई फुद्दी की दरार पर हौले हौले घिसना शुरू कर दिया। अब वो शायद इंतजार करने के मूड़ में नहीं थी इसीलिये उसने खुद ही अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपनी दो उंगलियों से योनि का दरवाजा खोलकर मेरे लिंग का स्वागत किया।
मैं अभी भी लिंग को योनि के ऊपर ही टकराकर मजा ले रहा था। तभी कामना की रूंआसी सी आवाज निकली, “जी…जू… आप… बहुत…तड़पा… चुके…हो… प्लीज… अब… अन्दर… कर… दो… ना।”
मुझे कामना पर तरस आने लगा और मैंने धीरे धीरे अपने शेर को किसी चूहे की तरह उसके बिल में घुसाना शुरू कर दिया। पर उसकी ‘आहह…हम्म…’ की आवाज सुनकर मैं रूक गया।
तभी वो बोली, “अब…रूको…मत… प्लीज…पूरा…डाल…दो…।”
मैंने एक झटके में बचा हुआ लिंग अन्दर सरका दिया। कामना ने अपनी दोनों टांगें उठाकर मेरे कंधों पर रख दी। मैंने भी अपने दोनों हाथों को कामना के स्तनों पर रखा और अपने घोड़े को सरपट दौड़ाने लगा।
“आह…ऊह…सीईईई…” की आवाज के साथ वो मस्त सवारी कर रही थी। कुछ जोरदार धक्कों के बाद आखिर मेरा घोड़ा शहीद हो गया।
कामना की टांगें फिर से अकड़ने लगी। वो टांगों से मुझे धक्का देने लगी। मैंने बहुत प्यार से अपने चूहे बन चुके शेर को बाहर निकाला और बराबर में लेट गया। कामना अपने हाथ से मेरे लिंग को सहलाने लगी।
मैंने कहा- धोकर आता हूँ !
जैसे ही मैं बिस्तर से खड़ा हुआ, मेरे लटके हुए लिंग को देखकर कामना हंसने लगी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
वो बोली- यह चूहे जैसा शेर थोड़ी देर पहले कितना दहाड़ रहा था !
मैं भी उसके साथ हंसने लगा।
“हा..हा..हा..हा..” हंसते हंसते हम दोनों बाथरूम में गये और एक दूसरे के अंगों को अच्छी तरह धोकर साफ किया, तौलिये से पौंछने के बाद कामना बाथरूम से बाहर निकली, मैं भी कामना के पीछे पीछे बाहर निकला।
तभी मेरी निगाह कामना के नितंबों के बीच के संकरी खाई पर गई मैंने चलते चलते ही उसमें उंगली करनी शुरू कर दी।
कामना कूद कर आगे हो गई और बोली, “अब जरा एक बार टाइम देख लो।”
मैंने घड़ी देखी, 3.30 बजे थे।
कामना ने जाकर पहले ब्रा, पैंटी पहनी फिर नाइट गाऊन उठाया और बाहर निकल गई, मैंने भी जल्दी से टी-शर्ट और निक्कर डाल ली। तब तक कामना दो गिलास में गर्म दूध बना कर ले आई। हम दोनों ने एक साथ बैठ कर दूध पिया, फिर कामना शशि के साथ सोने चली गई और मैं अपना बिस्तर ठीक करके वहीं सो गया।
सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में शशि लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें शशि के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर शशि इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी निक्कर में हाथ डालकर मेरे लिंग को सहला रही थी।
मुझे जागता देखकर शशि की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, शशि को पास देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?
शशि बोली, “रात तुम्हारा मूड था ना, और मुझे नींद आ रही थी तो मैं जल्दी सो गई, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और अभी तो कामना भी सो रही है ना, तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।”
बोलकर शशि ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में चोर था मैंने अपनी प्यारी पत्नी को धोखा जो दिया था।
कुछ देर कोशिश करने के बाद शशि ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”
अब मैं क्या जवाब देता पर अब मेरी अंर्तरात्मा मुझे कचोट रही थी, रात को जोश अब खत्म हो चुका था, शशि मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”
पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी शशि को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। यह ठीक है कि यौन संबंध में शायद प्रेयसी पत्नी से अधिक आनन्द विभोर करती है पर पत्नी के प्रेम की तुलना किसी से भी करना शायद पति की सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।
मैं शशि के प्रेम को महसूस कर रहा था। शशि को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर शशि बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?
मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर शशि को कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
शशि उठकर चाय बनाने चली गई। मेरी आंखों से नींद गायब थी। फिर भी आँखों के आगे बार बार अंधेरा छा रहा था, जीवन धुंधला सा दिखाई देने लगा।
मैं उठकर टायलेट गया, पेशाब करके वापस आया, और एक सख्त निर्णय ले लिया, कि कुछ भी हो जाये मैं अपनी प्यारी पत्नी से कुछ नहीं छुपाऊँगा। फिर भी मैं इससे होने वाले नफे-नुकसान का आंकलन लगातार कर रहा था। हो सकता है यह सब सुनकर शशि कुछ ऐसा कर ले कि मेरा सारा जीवन ही अंधकारमय हो जाये।
यह भी संभव था कि शशि मुझे हमेशा के लिये छोड़कर चली जाये या शायद मुझे इतनी लड़ाई करे कि मैं चाहकर भी उसको मना ना पाऊँ ! कम से कम इतना तो उसका हक भी बनता था।
इन सब में कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं थी। मैं शशि को सब कुछ बताने का निर्णय तो कर चुका था। पर मेरे अंदर का चालाक प्राणी अभी भी मरा नहीं था। वो सोच रहा था कि ऐसा क्या किया जाये कि शशि को सब कुछ बता भी दूं पर कुछ ज्यादा अनिष्ट भी ना हो।
बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ सकारात्मक सुझाव दिमाग में नहीं आ रहा था। तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, शशि चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आजकल बहुत खोये खोये रहते हो? हमेशा कुछ ना कुछ सोचते रहते हो। आफिस में सब ठीक चल रहा है ना कुछ परेशानी तो नहीं है ना? जानू, कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।
शशि की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था।
मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, शशि अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।
पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था।
तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने शशि को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”
शशि ने कहा- हाँ बोलो।
मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और शशि की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और शादी की रात से लेकर आज रात तक की हर वो बात तो मैंने शशि से छुपाई थी शशि को एक-एक करके बता दी।
वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर शशि का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब बताना था जो मैंने छुपाया था।
सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो शशि की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !
मैं अन्दर से बहुत दुखी था, शशि के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने शशि की खुशियाँ छीनी थी मैं शशि का सबसे बड़ा गुनाहगार था।
मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर शशि ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।
मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप शशि की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” शशि वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।
बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा शशि वहाँ नहीं थी। मैने शशि को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह शशि कहाँ निकल गई।
मैंने मोबाइल उठाकर शशि को नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर शशि सबकुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी शशि मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था शशि का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार शशि मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।
बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद शशि अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने शशि को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।
पर अंदर कामना सो रही थी अगर उसको से सब पता चल गया कि मेरे और उसके संबंधों की वजह से शशि घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेगी?
मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और शशि कहीं चली गई है।
कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने शशि फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।
मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ शशि के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”
उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे।
मैं शशि के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और शशि का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी शशि को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।
अभी मैं शशि से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप शशि के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।
शशि बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर शशि के पीने के लिये पानी लाया गिलास शशि को पकड़ा दिया।
वो फिर से रोने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया। तभी शशि बोला, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो रात को हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”
मैं चुप ही रहा।
थोड़ी देर बाद शशि फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा, “मतलब?”
“कामना और मैं बचपन की सहेलियाँ हैं हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी पापा अक्सर हमारी दोस्ती पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों की शादी भी किसी एक से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”
“नहीं शशि, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्‍नी की बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं शशि के सिर को सहलाने लगा।
कुछ देर बैठने के बाद मैंने शशि को घर चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।
कामना भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी।
जैसे ही हमने अन्दर पैर रखा, कामना बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”
“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” शशि ने तुरन्त जवाब दिया।
मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया।








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