Saturday, November 30, 2013

FUN-MAZA-MASTI रोहन और रीमा--10

FUN-MAZA-MASTI
 रोहन और रीमा--10
 रीमा अनीता के साथ-२ चुपचाप चलने लगी और कुछ देर चलने के बाद अनीता एक पुराने से मकान के आगे
जाकर रुक गयी और उसने दरवाजे को अपने हाथ से थपथपाया और मुस्कराते हुए रीमा की और ऐसे देखने लगी
मानो वो कह रही हो की हमारी मंजिल आ गयी है , और अनीता की मुस्कराहट देख कर रीमा के दिल को भी सुकून
मिलने लगा क्योकि वो भी जल्द से जल्द अनीता के दिल में छुपे उस राज को जानना चाहती थी जिसका ज़िक्र
अनीता ने स्कूल में किया था ,

और फिर अगले कुछ ही पलो में एक अधेड़ उम्र की औरत ने दरवाजा खोला और जैसे ही उसने अनीता को देखा
वो चोंकती हुई बोली
''क्या हुआ बहु आज तो तू बड़ी जल्दी आ गयी ?'' सब ठीक तो है न ?
ये बात कहते -२ जैसे ही उस अधेड़ औरत की नजर रीमा की तरफ गयी तो वो रीमा को ऊपर से नीचे तक
बड़े ही गौर से देखने लगी ,एक तो रीमा पहले से ही अपसेट थी उसपर अनीता की सास के देखने का अंदाज़
भी कुछ ऐसा था की रीमा बुरी तरह से सकपका गयी और नर्वस हो कर इधर उधर देखने लगी,
हालाँकि जो कुछ भी अनीता की सास और रीमा के बीच में हुआ था वो सब अनीता ने भी देख लिया था
लेकिन उसने इस बात को पूरी तरह से नजरंदाज़ करते हुए अपनी सास से कहा
'' हां मांजी आज जल्दी छुट्टी हो गयी है इसलिए जल्दी आ गयी ''
अनीता की बात सुन कर उसकी सास बिना कुछ कहे अन्दर चली गयी उसके जाते ही अनीता ने रीमा से
अन्दर चलने का इशारा किया और फिर वो दोनों घर में दाखिल हो गयी ,
घर में जाते ही एक बार फिर से अनीता की सास ने अनीता से फुसफुसाते हुए रीमा के बारे में पुछा
इस बार अनीता ने थोडा सा झल्लाते हुए कहा ....
'' मां जी ये मेरी सहेली है रीमा और इसको मेरे से कुछ काम है इसलिए आई है ....
अनीता के तल्ख़ तेवर देखकर उसकी सास बुरा सा मुंह बनाते हुए चुपचाप आँगन में पड़ी चारपाई पर बेठ गयी
और अनीता के बेबी को जो चारपाई पर सोया हुआ था उसको हाथ के पंखे से हवा करने लगी ,
और फिर अनीता रीमा को अपने साथ लेकर अपने कमरे में चली गयी ,
अनीता जिस कमरे में रीमा को ले कर गयी थी वो अनीता का बेडरूम था जिसमे एक पलंग बिछा हुआ था
और पलंग के साइड में एक छोटी सी ड्रेसिंग टेबल रखी थी और उसके साथ में एक अलमारी रखी थी ...
कमरे में जाने के बाद अनीता ने रीमा से कहा तू यहीं बेठ में अभी आती हूँ कहती हुई वो चली गयी ....
कमरे में और कोई कुर्सी वगेहरा नहीं थी इस लिए रीमा पलंग के एक कोने पर ही सिमट कर बेठ गयी
और बड़ी बेसब्री से अनीता के आने का इंतज़ार करने लगी
२ मिनट बाद जब अनीता वापिस आई तो उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमे कोल्ड ड्रिंक के २ गिलास थे
अनीता ने रीमा को कोल्ड ड्रिंक सर्व की और खुद भी एक गिलास ले कर रीमा के पास ही पलंग पर बेठ गयी
और इधर उधर की बाते करने लगी लेकिन रीमा के दिमाग में तो इस वक़्त सिर्फ एक ही बात घूम रही थी
की अनीता के साथ क्या हुआ था इसलिए उसका ध्यान अनीता की किसी बात में नहीं लग रहा था और फिर
जैसे ही उसकी कोल्ड ड्रिंक ख़तम हुई उस ने अनीता को बड़ी अधीरता से देखते हुए कहा ...
बता न अनीता ऐसा क्या हुआ था ६ महीने पहले तेरे साथ जिसको याद करके तेरी आँखों में आंसू आ गए थे ?
रीमा की बात सुन कर अनीता ने कहा सब बताती हूँ पहले तू सही से रिलैक्स हो कर तो बेठ जा
अनीता की बात सुन कर रीमा ने अपने दोनों पैरो को पलंग पर रख लिया और आराम से बेठ गयी और
फिर से अनीता की आँखों में देखती हुई बोली ... ह्म्म्म अब बता ....
अनीता ने अपनी आँखों को बंद करके एक गहरी साँस ली और कहना शुरू किया ....
रीमा तुझे वो सब जान ने से पहले थोडा सा मेरे अतीत को भी जानना होगा क्योकि जब तक तू मेरे अतीत को नहीं
जानेगी तुझे पूरी बात समझ नहीं आएगी ......
अनीता की ये बात सुन कर रीमा किसी अच्छे श्रोता की तरह अनीता की और देखने लगी ,
अनीता ने फिर से कहना शुरू किया ....

 मेरा जन्म एक गरीब परिवार में बेशक हुआ लेकिन इकलोती संतान होने की वजह से मुझे बचपन से
ही बहुत लाड प्यार वाला माहोल मिला और मेरी परवरिश बहुत ही अच्छे तरीके से हुई
मेरे पिताजी पोस्टमेन थे और उनका एक ही सपना था की में पड़ लिख कर कुछ बन जाऊ
लेकिन किस्मत को क्या मंजूर था ये कोई नहीं जानता था न में न माँ और न ही पिताजी ..

कहते कहते अनीता जैसे अपने अतीत में खोने लगी उसके मुंह से अब जो लफ्ज निकल रहे थे वो ऐसे
लग रहे थे जैसे वो अपने अतीत में डूब कर बोल रही हो ..................

बात उन दिनों की है जब मेरा इन्टर का रिजल्ट आया था मेने इन्टर फर्स्ट क्लास में पास किया था
और अब मुझे आगे की पढाई के लिए कॉलेज जाना था
मेने कॉलेज लाइफ के बारे में बहुत कुछ सुना था और मन ही मन उस लाइफ को जीने के कई सपने
भी बुने हुए थे .........में मन ही मन बहुत खुश थी ,,,,
लेकिन माँ मेरे कॉलेज जाने के सख्त खिलाफ थी वो उन दिनों एक ही रट लगाये बेठी थी की
मेरी पढाई छुड़वा कर अब मेरी शादी कर दी जाये .....

में बचपन से ही पढाई में बहुत होशियार थी पड़ लिख कर कर अपने पैरो पर खड़ी होना चाहती थी
और पिताजी का भी यही सपना था ,,, इसलिए हम दोनों की जिद्द के आगे माँ को झुकना पड़ा ,

चाहती तो माँ भी यही थी की में पड़ लिख कर अपने पैरो पर खड़ी हो जाऊ लेकिन ......
उनकी इस मना के पीछे जो वजह थी वो हम बाप बेटी दोनों ही नहीं समझ रहे थे .....

और वजह ये थी की हम लोग जिस मोहल्ले में रहते थे वहां का माहोल अच्छा नहीं था
मोहल्ले के आवारा और बदमाश किस्म के लडको ने मोहल्ले की लडकियों का जीना दुश्वार कर रखा था
और अगर किसी लड़की के घर वाले उन मनचलों की इन जलील हरकतों का विरोध करते या उनके
खिलाफ कुछ बोलते तो वो उनके कहर का निशाना बनते थे,
और इधर जैसे जैसे में जवानी में कदम रख रही थी वैसे वैसे मुझ में दिन पर दिन और ज्यादा निखार
आता जा रहा था ...में खुद भी अपने योवन में आने वाले इस बदलाव को महसूस करने लगी थी
आईने में खुद को निहारना मुझे अब अच्छा लगने लगा था मुझे लगने लगा था की में अब पहले से कहीं
ज्यादा सुन्दर होती जा रही हूँ ,मुझे खुद पर गुरुर आने लगा था ...
लेकिन मेरी यही सुन्दरता माँ के लिए सबसे बड़ी परेशानी की वजह बनती जा रही थी,
माँ मुझे घर से बाहर अकेली कही नहीं आने जाने देती थी जहाँ भी मुझे जाना होता माँ मेरे साथ जाती थी
लेकिन इस सब का भी कोई फायदा नहीं था क्योकि माँ के साथ होने के बावजूद भी मोहल्ले के शोहदे
अपनी घटिया हरकतों से बाज़ नहीं आते थे....
अक्सर मोहल्ले में आते जाते मुझपर भद्दी फबतिया कसते और गंदे गंदे इशारे करते थे
में भी तब तक सायानी हो चुकी थी और उनकी इन सब हरकतों का मतलब अच्छी तरह से समझने लगी थी ,
उन कमीनो की इन अश्लील हरकतों से कभी कभी तो मेरे मन में भी मीठी -२ गुदगुदी होती तो कभी-२
उनपर इतना गुस्सा भी आने लगता .....की मन करता था उन कमीनो के मुंह नोच लूँ
ऐसा क्यों होता था ये बात में तब नहीं जानती थी लेकिन इतना जरूर जानती थी की उन कमीनो के
मुंह लगने का कोई फायदा नहीं इस लिए में चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती थी .....
शुरू शुरू में कॉलेज जाते आते मुझे भी मन ही मन डर लगा रहता था की कही कुछ गलत न हो जाये
लेकिन भद्दे इशारे और फब्तियो को छोड़ कर कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ जो मेरी बर्दाश्त की हद से पार हो ...
मेने कॉलेज जाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-२ मेरा डर खत्म होता चला गया और फिर में माँ को
भी होंसला देने लगी , की देखो तुम बेकार की चिंता करती हो .... सब कुछ ठीक चल रहा है ..........

और इसी दौरान कॉलेज के एक लड़के से जिसका नाम मयंक जायसवाल था मेरी दोस्ती हो गयी
और वो दोस्ती धीरे -२ मेरे एकतरफा प्यार में कब तब्दील हो गयी मुझे खुद को भी पता ही नहीं चला
मयंक से मेरी दोस्ती होना भी एक बहुत ही अजीब सा इक्तेफाक थी ......
शायद एक अनोखा मोड़ था मेरी जिन्दगी का ,,,
बात तब की है जब कॉलेज के शुरू शुरू के दिनो में सीनियर्स मेरे जैसे जूनियर स्टूडेंट्स के साथ रेगिंग के नाम
पर भद्दे मजाक कर रहे थे,,
शायद वो मेरा कॉलेज में दूसरा या तीसरा दिन था जब सीनियर्स ने हम ७-८ लडकियों को शर्ट उतार कर क्लास
में डांस करने के लिए कहा था .... में जिस माहोल से आई थी उसके हिसाब से मेरे लिए ये बहुत बड़ी बात थी
इस बात को सुन कर में बहुत घबरा गयी थी और रोने लगी थी तब मयंक ने किसी हीरो की तरह वहां आकर
मुझे रेगिंग से बचाया था.......
और मयंक की यही बात मेरे दिल में उसके लिए जगह बनाती चली गयी
और फिर धीरे -२ मेरी मयंक से बाते और मुलाकाते बड़ने लगी ....और फिर वो छोटी छोटी मुलाकाते मयंक को
मेरे दिल के और करीब लाती चली गयी ,
मयंक एक बहुत ही बड़े घर का लड़का था और कॉलेज की बहुत सारी लडकिया मयंक के इर्द गिर्द मंडराती
रहती थी शायद ये मयंक की दौलत की चकाचोंध थी और में भी इस सबसे अछूती नहीं थी मयंक मुझे
किसी न किसी बहाने से महंगे महंगे तोहफे देने लगा था लेकिन में उसके इन तोहफों की कीमत
और उसकी नीयत दोनों से ही अनजान थी ....
मेने अपने घर में भी मयंक के बारे में कभी कोई ज़िक्र नहीं किया था क्योकि में नहीं चाहती थी की
इस तरह की किसी बात को सुन कर माँ को कोई टेंशन हो ,,,

और फिर एक दिन मयंक ने मुझे कहा की कल उसका बर्थडे है और उसने अपने कुछ ख़ास दोस्तों के लिए
एक पार्टी रखी है उसकी बात सुन कर में असमंजस में पड़ गयी लेकिन मयंक के पास मेरी हर दुविधा का हल था ...
आखिरकार मुझे उसकी बात माननी पड़ी और फिर दूसरी बात ये भी थी की में उसकी बात न मानकर उसको नाराज
भी नहीं करना चाहती थी ,,,

अगले दिन सन्डे था में माँ से किसी सहेली के घर से नोट्स लेने का बहाना बनाकर मयंक की बताई जगह पर चली गयी ....
वहां मयंक पहले से ही अपनी चमचमाती कार में मेरा इंतज़ार कर रहा था , और फिर
मयंक मुझे शहर से काफी दूर बने एक रिसोर्ट में ले गया.......मेरे लिए ये सब किसी सुनहरे ख्वाब जैसा था
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे में सपनो की दुनिया में आ गयी हूँ ....
मयंक ने रिसोर्ट में शायद पहले से ही सब इंतजाम करा हुआ था वो मुझे सीधा एक रूम में ले गया वहां जाकर
जब मेने देखा की हम दोनों के सिवा वहां और कोई नहीं है ...... तो ये देख कर में घबरा गयी
मेने मयंक से कहा .... तुमने तो कहा था की और दोस्त भी होंगे लेकिन यहाँ तो कोई भी नहीं दिखाई दे रहा ?
मेरी बात सुन कर मयंक ने मेरी आँखों में अपनी आँखे डालते हुए कहा की में उसकी लाइफ में सबसे स्पेशल हूँ
इसलिए वो सिर्फ मेरे साथ ही अपना बर्थडे सेलिब्रेट करना चाहता है , में भी तब पहली बार मयंक के मुंह से
अपने लिए ये सब सुन कर खुश हो गयी की चलो मयंक ने भी आज अपने प्यार का इकरार कर लिया है
मेने फिर इस बाबत मयंक से कोई और बात नहीं की ....
फिर मयंक ने केक काटा और हम दोनों ने एक दुसरे को अपने हाथो से केक खिलाया , इसी बीच में
अचानक मयंक ने मेरे चेहरे पर ढेर सारा केक लगा दिया और फिर वो मेरे चेहरे पर लगे केक को अपनी
जीभ से चाट कर खाने लगा ,,
शायद में मयंक की प्यार भरी बातो में डूब चुकी थी इसलिए मेने उसकी इस हरकत का कोई बुरा नहीं माना
लेकिन मेने उसको बेड पर धक्का दे कर गिरा दिया और खुद वाशरूम में जाकर अपने मुंह को धोने लगी
जब में वापिस आई तो मेने देखा की मयंक के हाथ में शराब की बोतल जैसी कोई बोतल थी
ये देख कर मेने नाराज होते हुए मयंक से कहा ..... ये क्या कर रहे हो तुम मुझे ये सब पसंद नहीं है ...
मेरी बात सुन कर मयंक ने हँसते हुए कहा ...... अनीता डार्लिंग इसको शराब नहीं शेम्पेन कहते है और
इसमें शराब की तरह नशा नहीं होता ये तो कोल्ड ड्रिंक की तरह होती है ,,,
मे चूँकि न तो कभी बड़े लोगो की पार्टी में गयी थी और न ही मुझे इस बात की कोई समझ थी की शराब
और शेम्पेन क्या होता है , मेने मयंक की बात का यकीन कर लिया और फिर मयंक ने शेम्पेन की बोतल
को खोल दिया और २ गिलासों में शेम्पेन भर दी ..
.मयंक के कहने पर ....मेने झिझकते हुए गिलास को अपने हाथ में पकड़ तो लिया था लेकिन गिलास को
मुंह से लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी ... मुझे झिझकता देख कर मयंक ने कहा ...
अरे अनीता पियो न यार इतना डर क्यों रही हो ......मुझ पर भरोसा नहीं है क्या ?
मेने कहा .... नहीं मयंक वो बात नहीं है मुझे तुम पर पूरा भरोसा है अगर भरोसा नहीं होता तो यहाँ आती ही नहीं
लेकिन मेने कभी आजतक कभी ऐसी चीज़ को मुंह नहीं लगाया है .... पता नहीं क्यों डर सा लग रहा है
मयंक ने मेरा होंसला बढ़ाते हुए कहा .....
अरे यार ये तो कोल्ड ड्रिंक की तरह ही होती है और वैसे भी तुम अभी से इस सबकी आदत डाल लो
नहीं तो शादी के बाद तुम्हे एडजस्ट करने में बड़ी परेशानी होगी ,
मयंक के कहने का अंदाज़ ऐसा था की मुझे मन ही मन ये सब सुन कर बहुत अच्छा लगने लगा ...
में खुली आँखों से सपने देखने लगी और फिर मेने गिलास को मुंह से लगा कर जैसे ही एक घूंट भरा तो
मुझे बड़ा ही बुरा स्वाद लगा लेकिन फिर भी मेने मयंक का दिल रखने के लिए कुछ कहा नहीं और
कडवी दवाई की तरह धीरे -२ पीने लगी में नहीं जानती थी की मयंक के मन में क्या है में तो सिर्फ
मयंक और अपनी शादी के सपने देख रही थी .....
जैसे तैसे करके मेने पूरा गिलास शेम्पेन का ख़तम कर दिया और गिलास मेज पर रख दिया ...
मयंक ने मुस्कराते हुए मुझे देखा और कहा .....अब बोलो अनीता कुछ हुआ क्या ?
मेने झेपते हुए अपना मुंह नीचे कर लिया और मयंक आकर मेरे पास वाली चेयर पर बेठ गया और फिर मयंक
ने मेरे हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा .....

मयंक ने कहा ..... अनीता तुम सच में बहुत खुबसूरत हो मेने तुम्हे जिस दिन पहली बार देखा था
उसी दिन ठान लिया था की शादी करूँगा तो सिर्फ तुमसे लेकिन ये बात कहते हुए मुझे डर लगता था
की कही तुम मना न कर दो ......
मयंक की बात सुन कर मुझे अपने कानो पर यकीन ही नहीं हो रहा था मुझे ऐसा लग रहा था जैसे
मेने कोई आकाशवाणी सुनी हो ......
मेने मयंक के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा ...........
''तुम सच कह रहे हो न मयंक कही तुम मजाक तो नहीं कर रहे मेरे साथ ?
मयंक ने मेरे हाथ को इस बार चुमते हुए कहा .... सच कह रहा हूँ अनीता डार्लिंग तुम्हारी कसम ...
ये सुनते ही मेरे गालो पर हया की लाली छाने लगी और में अपनी गर्दन को झुका कर बेठ गयी ...
कुछ पल चुप रहने के बाद मयंक ने मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेकर कहा .....
अनीता क्या हुआ बोलो न ...........ऐसे चुप मत रहो कुछ तो बोलो ...
में भी अब तक पूरी तरह से मयंक के रंग में रंगने लगी थी मेने कहा ....
''मयंक में भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ लेकिन .....कहते हुए मेरी जुबान लड़खड़ाने लगी ....
मयंक ने मेरी आँखों में प्यार से देखा और बोला .... क्या लेकिन ?लेकिन क्या ?
मेने कहा ....
वो बात ये है की मयंक कि तुम इतने अमीर हो और में एक गरीब घर की लड़की हूँ ....
तुम्हारे पिताजी बहुत बड़े बिजनेसमेन है और मेरे पिताजी एक पोस्टमेन है मुझे डर लग रहा है
कि हमारी शादी कैसे होगी .....अगर तुम्हारे घर वाले इस शादी के लिए नहीं माने तो क्या होगा ....
कहते हुए में बड़ी मायूसी से मयंक की और देखने लगी ........



और मेरी बात सुन कर मयंक ने जोर से ठहाका लगाया और बोला ....


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