Saturday, November 16, 2013

FUN-MAZA-MASTI शुभारम्भ-16

FUN-MAZA-MASTI

शुभारम्भ-16
 मैं सकपका गया.....अब क्या बोलू.....?

थोड़ी हिम्मत जुटाई और कहा, "न न न नहीं चाची.....ऐसा नहीं है......व...व....व....वो आप के ब्लाउस.....म म म में से......
द द द दिखा की.....न न न नहीं पहनी होगी.....श श शायद.....इसी लिए ल ल ल ले आया"

"हाय राम.....लाया तो लाया.....मगर ऐसी ? ", चाची ने होंट दबा कर मुझे घुढकी दी.

"ये तो पहनी न पहनी बराबर ही है.......इतने छोटे छोटे तो कप है इसके......लल्ला तू न बहुत बदमाश हो गया है......"

लल्ला क्या बोलता........लल्ला.....का लुल्ला और ज्यादा बदमाश.

"अब सीधे सीधे कम्प्यूटर पर काम करले......", कह कर चाची बाथरूम में घुस गयी. उन्होंने दरवाजा लगाया और सिटकनी लगाने की कोशिश की......मगर भाई साहब......सिटकनी तो कुत्ते की पूंछ थी. नहीं मानी. चाची ने दरवाज ऐसे ही लगा दिया.

कुछ देर बाद अन्दर ले चिल्लाई....."अरे लल्ला......ये क्रीम धो कर लगानी है या ऐसे ही...."

मैं उठ कर दरवाजे के पास गया....चाची तो दरवाजे के पीछे थी.....मगर मेरे बाथरूम की एक दिवार पर पूरा कांच था. चाची उसमे दिखाई दे रही थी. उन्होंने ट्यूब हाथ में पकड़ा था और..............और उनकी साड़ी खुली हुयी थी.

वो सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी थी. मैंने कहा, "चाची पहले अच्छे से वाश कर लो......फिर लगाना, और लगा कर १५ मिनट रखना. फिर धो लेना......बस...."

"हाँ ठीक है......", कहकर चाची ने अपने पेटीकोट का नाडा खोला.

उनका पेटीकोट खुल कर एक टायर की तरह उनके पेरों में इकठ्ठा हो गया.

चाची ने सच मुच पेंटी नहीं पहनी थी.

 बाथरूम में ट्यूब लाइट की रौशनी में चाची का अधनंगा बदन चमक रहा था. मेरी ऑंखें चौंधिया गयी,

वो सिर्फ ब्लाउस में खड़ी थी. काले रंग का पतला सा ब्लाउस. उनके गोल गोल मम्मे साफ़ दिख रहे थे और दृष्टिगोचर हो रहे थे उनके वो खड़े हुए निप्पल. क्या नज़ारा था ......

मेरी नज़ारे उनके चिकने बदन पर नीचे फिसलने लगी. उनकी कमर का कटाव देख कर मेरी साँसें रुकने लगी और फिर तेज़ी से चलने लगी. मैं पहली बार उनको नंगा देख रहा था. उनका पेट हल्का सा बड़ा हुआ था. उसमे उनकी नाभि ऐसी लग रही थी मानो मुंह खोले कोई मछली हो. इतनी सेक्सी तो शिल्पा शेट्टी की नाभि भी नहीं है. मेरी नज़रे और नीचे फिसली.........

चाची ने टांगे चिपका रखी थी पर उनकी झांट के बाल काफी ऊपर तक और बहुत थे.
ऐसे गुच्छे खाए हुए थे मानो लुटी हुयी पतंग की डोर हो. ये तो पक्का था की चाची ने कभी बाल साफ़ किये ही नहीं थे.

अचानक वो पलटी और मेरी नसों के गिटार ने झंकार मारी.

चाची के वो खुबसूरत नितम्ब, जिनको मैं आज सुबह ही नाप चुका था. मेरी नज़रों के सामने थे. मेर मुंह खुला का खुला रह गया. चाची की कमर से उठा कटाव उनके नितम्बो पर पुरे शबाब पर आ रहा था.

ऐसा कटाव था मानो शिमला की सड़कों के अंधे मोड़. चाची के नितम्ब बिलकुल गोल थे. मानो दो देसी तरबूज.
दोनों में प्रीति ज़िंटा के गालो जैसे डिम्पल पड़ रहे थे.

और वो दोनों तरबूज टिके थे, चाची की मोटी गदराई जांघो पर. चाची मोटी नहीं थी, बस गदराना शुरू ही किया था.

ऐसा नज़ारा था की जिसने देखा है, वो मेरी हालत समझ सकता है. गांड भी फटे जा रही थी और मज़ा भी आ रहा था.

 चाची फिर से घूमी, उन्होंने अपनी टांगे थोड़ी चौड़ी कर ली थी, चूत तो अभी भी झांटो के घूँघट में छुपी थी, मगर मेरी नज़र फिर से चाची की जांघों पर गयी, उनकी दायीं जांघ पर बना हुआ गोदना ( tatoo ), दिखने लगा था. वो जिसे मैंने टंकी के अन्दर से देखा था मगर पढ़ नहीं पा रहा था. मैंने गर्दन थोड़ी टेडी की तो दिखा.....लिखा था.......

ब.......ल........मा...............बलमा ??

बलमा ? मतलब ? ......शायद प्यार से चाची चाचा को बलमा बोलती हो ? मगर वो तो उन्हें ऐ जी.....कहती है.

बॉस.......यह बलमा का सीन क्या है ......? जांघ पर कोई भी औरत कुछ लिखा ले......ये छोटी मोटी बात नहीं....

तभी चाची ने कमोड का ढक्कन गिराया, एक पैर उस पर रखा और हैंड शावर चालू कर के अपनी मुनिया को धोने लगी.

झांटे गीली होते ही चाची के मुनिया का घूँघट खुल गया......चाची के जैसे उनकी मुनिया भी सांवली है....यह तो मैं टंकी के अन्दर से ही देख चुका था.....मगर मुनिया के होंट भी चाची के होटों जैसे रसीले है.....ये मैं अब देख रहा था......

चाची ने अपनी टांगे खोल रखी थी. एक पैर उठा कर कमोड पर रखा हुआ था......ऐसा लग रहा था मानो वो कामदेव की
पत्नी रति है. चाची अपनी मुनिया को ऊँगली से रगड़ रगड़ के धो रही थी. शायद उनको ऐसा करने में मज़ा भी आ रहा था क्योकि उनकी ऑंखें बंद थी और मुंह हल्का सा खुला हुआ था..........

 ये नज़ारा देखा तो किसी बुड्ढे का बुझा चिराग भी भभक जाता . मैं तो फिर.....यूँही ठरकी no .1 था.
पजामे में ऐसा तम्बू बना हुआ था की क्या बोलू......उधर चाची भी बड़े इत्मिनान से अपनी मुनिया की धुलाई और रगड़ाई किये जा रही थी. शावर तो बंद कर दिया था मगर रगड़ना नहीं.....उनकी ऑंखें अधखुली थी और मुंह पूरा गोल खुला था जैसे वो "ओ" बोल रही हो.

तभी उनकी ऑंखें एकदम खुली.....मैं फटाफट दरवाजे से थोडा पीछे हट गया. धीरे धीरे से आगे बाद कर देखा तो चाची कमोड पर बैठी थी. उन्होंने कांच की तरफ मुह किया हुआ था और दोनों टांगे फैला ली थी.

कहते है की मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने जब कश्मीर देखा था तो कहा था

"गर फिरदौस रॉय -ऐ -ज़मीं अस्त , हमीं अस्त -ओ हमीं अस्त -ओ हमीं अस्त ."

इसका मतलब था की अगर ज़मीं पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहीं हैं यहीं हैं .....

मुझे आज चाची की फैली हुयी टाँगें देख कर इन लाइनों का मतलब और भावना समझ आई.

 चाची की टांगे खुलने से उनकी चूत का भरपूर दीदार हो रहा था. बिलकुल पनियाई हुयी थी , मुनिया के दोनों होंट खुल गए थे, ऐसा लग रहा था की किस करने का बुलावा दे रहे हो. रगड़ाई और मसलाई से उनकी चूत चमक उठी थी मगर चारो तरफ फैली झांट नज़ारा ख़राब कर रही थी.

उन्होंने ट्यूब हाथ में ली और थोडा सा आगे सरक के अपनी टांगो को और फैला लिया.
दबा दबा कर निकालने लगी , उन्होंने अच्छे से क्रीम को चूत के उपरी हिस्से पर फैला लिया और चूत के साइड के हिस्से में लगाने लगी ……उनकी गर्दन निचे झुकी थी और बड़े गौर से अपनी चूत की आस पास क्रीम लगा रही थी

 मुझे लगा की मेरी साँसें ही रुक जाएगी....

चाची के बारे में कुछ भी सोचना और बात थी और उनको सामने ऐसी हालत में देखना और बात. दिल इतनी जोर से धड़क रहा था की मुझे डर था की चाची को मेरी धड़कने ना सुने दे जाए. चाची तो पुरे मन से क्रीम लगा रही थी. उन्होंने पूरा ट्यूब ख़तम कर दिया और क्रीम को फैला रही थी. मुझे तो उनको क्रीम फैलाते देख कर ठरक चढ़ गयी. उन्होंने अपनी मुनिया के चारो तरफ अच्छे से क्रीम लगा ली थी. आज चाची मुनिया को चिकनी चमेली बनाकर ही छोड़ेगी.

चाची ने क्रीम लगा ली और पीछे टिक कर बैठ गयी. तभी उन्होंने अपने ब्लाउस के हुक खोलना शुरू किये और बड़ी अदा से ब्लाउस भी उतार दिया. मेरा बचा खुचा धैर्य भी ख़तम हो गया. चाची ने आज तो मेरे प्रेशर कुकर की सीटी बजाने का सोच ही लिया था.

हाय क्या सीन था........

 उपरवाले ने इतने दिनों तक बूंद बूंद देने के बाद आज तो झमाझम बारिश ही कर दी.

चाची ने ब्लाउस क्या उतारा मेरे दिल दिमाग में भूकंप आ गया. उन्होंने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा के अंगड़ाई ली और इधर मेरे डंडे ने भी मुसल का रूप धारण कर लिया.

लंड भी साला इच्छाधारी नाग जैसा है........कभी तो इतना सा रहता है कमज़ोर और मासूम बन के......कोई लड़की गलती से देख ले तो जैसे छोटे बच्चो और कुत्ते के पिल्लो को देख कर जैसे उछल उछल कर खुश होती है वैसे ही छोटी ली लुल्ली को देख कर भी शायद खुश हो जाये ......wow कितना क्यूट है और जहाँ गलती से लुल्ली को हाथ लगाया तो ये रूप बदलकर ऐसा नागराज बनता है की देख के लौंडिया दौड़ लगा दे.

 चाची के दोनों हाथ ऊपर होने से उनके दोनों मम्मे ऐसे तन गए जैसे कुंवारी कन्या के हो. चाची भले ही अभी माँ नहीं बनी थी मगर उनके निप्पल अच्छे खासे बड़े थे और क्या तने हुए थे .....

क्या नज़ारा था......चाची दोनों टांगे फैलाये कमोड पर पूरी नंगी बैठी थी....चूत के चारो तरफ क्रीम लगी थी......बैठने से उनकी जांघें और पिछवाडा फ़ैल गए थे और ऐसा घुमाव और कटाव दिखा रहे थे की नजरे नहीं हट पा रही थी. चाची के दोनों हाथ अभी भी ऊपर ही थे , ऐसा करने से उनका पेट अन्दर खिंच गया था और एक दम सपाट दिख रहा था और उनके मम्मे तो ऐसे तीखे तीखे दिख रहे थे मानो किसी राजपूत के भाले की नोक हो.

चाची ने हाथ नीचे किये और एक हाथ अपने मम्मे के नीचे लगा कर धीरे से सहला लिया.....उनके मुंह से सिसकारी फुट गयी......स्स्स् अआह.......बस मैं भी इंसान हूँ यार.
बहुत देर से झेले जा रहा था अब कण्ट्रोल नहीं हुआ और मैंने पजामा निचे सरकाकर अपने महाराज को खुली हवा दिखा दी. ऐसा लगता है मानो लंड की भी ऑंखें होती है बाहर निकलते लंड ने ऐसा नज़ारा देखा तो लंड तो और तन गया. मैंने धीरे से लंड को सहलाया और जैसे रेस के घोड़े को रेस शुरू होने के पहले सहलाओ तो वो हिनहिनाता है वैसे ही लंड ने चाची को एक ठुनकी मार कर सलाम किया

 अन्दर चाची ऑंखें बंद किये पूरा आनंद ले रही थी. उनको शायद याद नहीं था की वो मेरे रूम के बाथरूम में पूरी तरह ने नग्न बैठी है या फिर..........

या फिर.......उनको परवाह ही नहीं थी......जो भी हो भाई अपनी तो छप्पर फाड़ के खुल गयी थी. वो भी बड़े इत्मिनान से बाथरूम में कमोड पर बैठे बैठे अपने स्तनों की सहला रही थी और ये नज़ारा देख देख कर बाहर मेरा दिल दहल रहा था. जिस तरह वो मम्मे पर हाथ फेरती वैसे ही मैं अपने हिनहिनाते घोड़े को सहलाता.
कसम से अभी तो हिलाना भी शुरू नहीं किया और ऐसा मज़ा आ रहा था की क्या बोलू...........बस ऑंखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था.

अचानक चाची की ऑंखें खुली, जैसे मानो उनको होश आ गया हो, वो अन्दर से चिल्लाई....."अरे लल्ला......कितनी देर लगा के रखना है इसको......."

मैं एक दम उछल गया.

 मैं एक दम से घबरा गया........और बिना सोचे मैंने बोल दिया.."चाची 15 मिनट रखना है"

मैंने दरवाजे के बाहर ही खड़ा था, मेरे एकदम बोल देने से कहीं चाची को शक तो नहीं हो गया ? चाची अन्दर से चिल्लाई, "अरे ....तो 15 मिनट हुए की नहीं"

अब की बार मैं थोडा पीछे गया और बोला, "हाँ चाची......म म म मेरा मतलब है की थोड़ी देर और रख लो......"

चाची ने दरवाजे पर हाथ रखा और थोडा सा दरवाजा खुल गया. मैं भाग कर कम्पुटर चेयर पर बैठ गया, दरवाजा मेरी पीठ की तरफ था इस लिए चाची को सिर्फ मेरी पीठ दिखती, यह नहीं दीखता की मेरा पजामा नीचे है और मेरा बाबुराव झूम रहा है.

उन्होंने दरवाजे से सिर्फ मुंह बाहर निकालकर कहा, "अरे लल्ला.....इतनी देर तो हो गयी.....ज्यादा देर लगा के रखने से कहीं और कुछ न हो जाए....पहले ही खुजली के मारे दुखी हूँ "

मैंने कहा, " न न न नहीं चाची.......1 2 मिनट और रख लो......." यह कहकर मैं गर्दन घुमाने लगा तो चाची वहीँ से चिल्लाई......"हाय राम......इधर मत देख"

और उन्होंने दरवाजा फिर से बंद करने की कोशिश की........मैंने जैसे तैसे थोड़ी हिम्मत और जुटाई और सोचा की चलो कुछ मिनट और शो देख लेंगे.

नल चलने की आवाज़ आने लगी......मैंने सोचा शायद चाची अपने हाथ धो रही होगी.

एक हाथ से अपने बेकाबू घोड़े को पुचकारते पुचकारते मैंने धीरे से बाथरूम की तरफ फिर कदम बढाये तभी भड़ाक से बाथरूम का दरवाज़ा खुला और चाची टॉवेल लपेटे और अपने कंधो पर साड़ी डाले बाहर आ गयी.

मैं वहीँ पर उनके सामने खड़ा था........मेरा पजामा घुटने तक गिरा था और मेरा हाथ मेरे बाबुराव पर था जिसको मैं बड़े प्यार से धीरे धीरे हिला रहा था.

चाची ने सीधा मेरे लैंड को देखा और उनकी ऑंखें फटती चली गयी.....उनका मुंह खुला का खुला ही रह गया......

मुझे तो हार्ट अटैक ही आ गया.......इतनी जोर से चमका की क्या बोलू.......

मेरी गांड की फटफटी........................................................फुल स्पीड में चालू. ...........

 चाची जोर से चिल्लाई...."हाय राम.....बेशरम क्या कर रहा है ? "

मेरी तो डर के मारे आवाज़ ही बंद हो गयी.......मैंने पहले तो अपने बाबुराव को हाथ से ढकने की कोशिश की मगर
उस साले को तो चिकनी चूत की खुशबु आ गयी.....जैसे कुत्ते को हड्डी की खुशबु मिल जाये तो वो अपने मालिक की नहीं सुनता और खोदता चला जाता है वैसे ही बाबुराव ने मेरे हाथों में छुपने से मानो इनकार ही कर दिया और जोर जोर से ठुनकी मारने लगा जैसे चाची की चूत को आवाज़ लगा रहा हो.......

उधर चाची की तो नज़रे ही नहीं हट रही थी बाबुराव के ऊपर से. वो ऑंखें खड़े बाबुराव को नजरो से सहला रही थी.
मेरे हिलाने और चाची को इस हालत में देख कर बाबुराव ने एक चमकती हुयी चिकनी बूँद बाहर निकाल दी थी.
ऐसी लग रहा था मानो ख़ुशी के मारे बाबुराव के आंसु निकल आये हो . वो बार बार ठुनकी मार रहा था मानो चाची से बोल रहा हो, " क्या बोलती तू ? "

चाची के चिल्लाने से मेरी गांड तो फट ही गयी थी उसके ऊपर से मेरे लंड ने भी अपनी औकात दिखा दी. मैं समझ गया की यह तो आज कहना नहीं मानेगा. मेरा पजामा मेरे पैरों में आकर इकठा हो गया था तो उसे भी ऊपर चडाने का कोई सवाल नहीं था. कुछ समझ नहीं आया तो मैं घूम गया और चाची की तरफ पीठ कर ली.

चाची गुस्से से बोली, "अरे बेशरम.......क्या कर रहा है ? "

मैं तो कुछ बोल नहीं पा रहा था. मगर मेरा हाथ अभी भी धीरे धीरे लंड को मसल रहा था.

चाची थोड़ी जोर से बोली, "हट जा मेरे रस्ते से....बेशरम"

मैं तो बिना रुके हिला रहा था. जैसे ढलान पर एक बार दौड़ना शुरू करो तो रुकना मुश्किल हो जाता है वैसे ही मुझे लंड हिलाने में वो आनंद आ रहा था की अब रुकना मुश्किल था.

मैंने बड़ी मुश्किल से बोला, " च च च चाची मुझे म म म माफ़ कर दो, प्लीज़ आप इधर मत आओ. मुझे बहुत शर्म आ रही है"

चाची गुस्से से बोली, "हाय राम....शर्म आ रही है ?....ऐसी हरकते करने में लाज नहीं आई और अब बड़ा लजा रहा है, हट जा....जाने दे मुझे"

मैंने कहा,"च च चाची......प्लीज़......इधर मत आओ......म म म म मेरा निकलने वाला है.....कहीं अ अ आप पर न गिर जाए...."

चाची जहाँ थी वहीँ पर रुक गयी, शायद उन्हें याद आ गया था की मेरा अमृत कैसे रोकेट जैसा उड़ता है.....पिछली बार भी उनके पैरों के पास जा गिरा था.

वो ठंडी सांस लेकर बोली, "हे भगवन......इतना बेशरम है रे.......जल्दी ख़त्म कर ....."

यह सुनते ही मैंने जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया.......

ख़ुशी की वो आंसु जो लंड ने निकाले थे वो अब सैलाब बन गए थे......बहुत सारा रस निकल कर मेरे लंड के चारो और फ़ैल गया था.......जिस से फच फच की आवाज़ आ रही थी.

मैं राजधानी ट्रेन की स्पीड से हिलाए जा रहा था......आनंद के मारे मेरी ऑंखें बंद हुयी जा रही थी मगर आज बाबुराव ठान कर आया था की मैदान-ऐ-जंग में आसानी से हार नहीं मानेगा. सारे राउंड खेलेगा.

थोड़ी देर में चाची बोली," अरे जल्दी कर ना......मुझे जाना है........मैं ऐसे ही टोवेल लपेट के खड़ी हूँ"

कहते है की लंड खड़ा होने के बाद आदमी का दिमाग काम करना बंद कर देता है. चाची टोवेल लपेट कर खड़ी है ये सुनकर मुझसे रहा नहीं गया. अभी तक मैं चाची की तरफ पीठ करके ही खड़ा था. चाची भी सिर्फ मेरा हिलता हुआ हाथ ही देख पा रही थी मगर वो सिर्फ टोवेल में है ये सुनकर मैं पलट गया.

कश्मीर मेरे सामने था.

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