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शुभारम्भ-20
मैंने कांपते हाथों से मोमबत्ती उठाई और बाथरूम की तरफ बड़ा. बाथरूम का डोर खुला था, और चाची मेरी ओर पीठ करके खड़ी थी. उन्होंने साडी उतार दी थी और सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी थी. मोमबत्ती की टिमटिमाती रोशनी में उनकी पेटीकोट में छुपे नितम्ब बहुत ही मारू लग रहे थे. उनका पेटीकोट उनके कमर के कटाव के सबसे बड़े हिस्से पर टिका था. ऐसा लग रहा था मानो पेटीकोट बस उनकी गांड की गोलों के दम पर ही टिका था वर्ना कब का गिर जाता. चाची अपना ब्लाउस खोल रही थी. मेरी तरफ पीठ होने से मुझे दिख तो कुछ भी नहीं रहा था मगर उनके हाथ चलने से उनकी विशाल गांड थरथरा रही थी. और उसको ऐसे हिलते देख मेरा मुंह खुला का खुला ही रह गया.
चाची बोली, "हाय राम....तू अन्दर क्यों आया ?"
मैं बोला, "च च च चाची.......आ आ आपने ही तो मोमबत्ती मांगी थी........"
चाची बोली, " हें....हाँ रे.....वो वहां पर रख दे.......हाँ.......अरे वो जहाँ शेम्पू रखा है......बस उसके पास.......हाय राम इधर मत देख बेशरम"
मैंने बहुत कोशिश की मगर पापी मन नहीं मान रहा था....... बार बार मेरी नज़र चाची की तरफ ही जा रही थी.
चाची का ब्लाउस आधा खुल चूका था.......जैसे ही वो यह सब बोलने के लिए मुड़ी मेरी नज़र सीधे चुम्बक के जैसे उनके आधे खुले ब्लाउस में से झांकते मम्मो पर जा चिपकी.
किसी ने सत्य ही कहा है की औरत के बदन की असकी कामुकता आधे ढके होने में है.....
पूरी नग्न औरत से तो आधी ढकी औरत ही ज्यादा सेक्सी लगती है......
चाची के ब्लाउस को सिर्फ दो हुक पूरी हिम्मत और ताकत के साथ संभाले हुए थे वर्ना वो तो फटने के लिए बेताब था. हमेशा की तरह चाची ने आज भी ब्रा नहीं पहनी थी, जो नज़ारा उभर के आया था वो किसी मरते आदमी की साँसें चालू कर देता और जिन्दा इंसान की साँसे बंद, मम्मे ब्लाउस में कसे इस कदर कसमसा रहे थे मनो हुको को तोड़ डालेंगे.
मोमबत्ती मेरे हाथ में थी और मेरा मुंह खुला का खुला ही था. चाची अब पूरी पलट के खड़ी हो गयी. उनका तराशा हुआ बदन सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में मेरे सामने था. ब्लाउस के तो हाल आप जानते ही हो.....पेटीकोट चाची ने काफी नीचे बांधा था...उनकी मद मस्त नाभि मोमबत्ती की रौशनी में कुए जैसी दिख रही थी. चाची ने अपने हाथ अपने मम्मो के ऊपर रख लिए और चिल्लाई...."अरे हरामी......बाहर क्यों नहीं जाता......निकल बाहर....." और पलट के अपने ब्लाउस के बचे खुचे हुक खोलने लगी.
मैं सकपकाते हुए बाहर जाने लगा तो वो फिर चिल्लाई "अरे ये मरी मोमबत्ती तो रखता जा...."
मैंने कांपते हुए हाथों से मोमबत्ती को ग्लास की रेक पर रखा और पलट के जाने लगा. मोमबत्ती ढंग से टिकी नहीं थी.
जैसे ही मैं मुड़ा. मोमबत्ती नीचे गिरी और बुझ गयी.
पूरा बाथरूम घुप्प अँधेरे में हो गया. कुछ भी नहीं दिख रहा था.
चाची जोर से चिल्लाई. " हाय राम......जान नहीं है क्या हाथों में......जा माचिस ला.....कहा गयी मोमबत्ती...."
मैं माचिस लेन की बजाये फर्श पर टटोल टटोल के मोमबत्ती ढूंढ़ने लगा......तभी मेरा हाथ चाची के हाथ से टकराया...चाची भी मोमबत्ती ढूंढ़ रही थी.
कीड़ा कुलबुलाने लगा.....
मैंने थोडा हाथ आगे बढाया और चाची की तरह आगे बड़ा.......अचानक मेरे हाथ से कुछ कड़क सा टकराया.....मुझे समझ नहीं आया की ये क्या है.....मैं बैठा था और मेरे हाथ चाची के सीने की ओर थे.......मुझे लगा शायद चाची का मंगल सूत्र है.....मैंने फिर हाथ बढाया और अब की बार मेरे हाथ से कुछ नरम नरम सा टकराया.......
मैं वहीं पर रुक गया.......मेरी नसे सनसनाने लगी.......जो मेरे हाथ से टकराया था वो चाची का खड़ा हुआ निप्पल था.
चाची ने अपना ब्लाउस पूरा खोल लिया था.
मैंने हिम्मत की और फिर से अपने हाथ बढाया......मेरा हाथ सीधे लेजर बोम्ब की तरह निशाने पर गया और चाची के मम्मे से जा टकराया.....मैंने अपने हाथ वही पर रख दिया और चुतिया बनाने के लिए कहने लगा.....
"अरे च च चाची......आ आ आप हो क्या..."
चाची दबी हुयी जुबान से बोली, "ओर क्या हरामी यहाँ पे माधुरी दीक्षीत थोड़ी बैठी है. हाथ हटा......"
मैंने हाथ नहीं हटाया और चाची के मम्मे को हाथ में ले लिया और धीर धीर दबाते हुए बोला, "न न नहीं च च चाची आप थोड़ी हो......ये तो शायद नहाने का स्पंज है......" मैंने दबाना बंद नहीं किया.......
मेरी गांड फटे जा रही थी मगर खुदा की कसम क्या मज़ा आ रहा था.....चाची का मम्मा मेरे हाथो में तो समां नहीं पा रहा था मगर इतना सोफ्ट था की सचमुच का स्पंज हो.
चाची जोर से बोली, " हरामी छोड़....."
मैंने भी हिम्मत पकड़ी, "क्या छोडू च च चाची......."
चाची ने अब आवाज़ धीरे की और बोली, "मेरा बोबा........छोड़ हरामी.........मेरा मम्मा .....छोड़ कमीने...."
मैंने समझ लिया की चाची को गुस्सा आ गया है........मैंने बहुत मुश्किल से चाची के मम्मो को छोड़ दिया.
चाची बोली, "लल्ला......बहुत ही बेशरम हो गया है रे........कुछ लाज शरम है की नहीं........"
पूरा घुप्प अँधेरा था. मुझे लगा की चाची मुस्कुरा रही है मगर साला कन्फर्म नहीं था.........अगर सच में गुस्सा हुयी तो.....ये सोच कर मेरी गांड फटने लगी.
मैंने कहा, "च च च चाची म म मैं माचिस ले आता हूँ........"
चाची बोली, "नहीं.....तू यहीं पर रुक......अँधेरे में न जाने क्या गिराएगा क्या तोड़ेगा.......मुझे पता है माचिस कहाँ है.......यहीं रुक जा....."
मैं कुछ बोलता उसके पहले चाची के आगे बड़ने की आवाज़ आई और वो अँधेरे में टटोलते टटोलते बाथरूम से बहार जाने लगी. बहुत ही हलकी सी रोशनी रोशनदान से आ रही थी. मुझे सिर्फ चाची कहाँ है ये दिखाई दे रहा था मगर उनके नंगे मम्मे और चिकनी कमर अँधेरे में छुपे बैठे थे. चाची ने अपने दोनों हाथ आगे बढाकर चलना शुरू किया और उनका हाथ मेरे बेल्ट के बक्कल से जा टकराया. वो बोली, " हें ये मरा नल यहाँ कहाँ से आ गया" और उन्होंने अपने हाथ सीधा मेरे जींस की चेन पर रख दिया. जी हाँ.....सीधा मेरे मासूम बाबुराव पर.......मैंने और बाबुराव दोनों ने झटका खाया........तभी चाची ने जोर से मेरा बाबुराव जींस के ऊपर से ही दबा दिया, मेरे मुंह से आह निकल गयी, चाची बोली, " हाय राम.......ये तू है क्या लल्ला ? मुझे लगा की नल है और उसपे कपडा पड़ा है........परे हट......."
साली चाची मेरे साथ मेरा ही गेम खेल गयी. मुझे तो ये ही समझ नहीं आ रहा था की वो चाहती क्या है ? उनकी बातों से कभी लगता की ठुकवाने को बेकरार है और कभी एकदम सती सावित्री बन जाती.
चाची बाथरूम से बाहर निकल गयी और मैं गंगू गमने जैसा बाथरूम में ही खड़ा रहा.
सच में त्रिया चरित्र किसी के बाप के समझ में नहीं आया होगा. साली....चाची की सारे हाव भाव येही बताते है की उनकी क्या इच्छा है.......मैं उनकी आँखों के वो गुलाबी डोरे और उनकी वो टेडी मुस्कान नहीं भूल पा रहा था जब उन्होंने मेरा लंड हिला हिला कर मेरा पानी निकाल दिया था. मगर वो नाराज़ होती तो मेरी गांड की फटफटी स्टार्ट हो जाती.........
बाहर रूम से बर्तन गिरने की आवाज़ आई. अँधेरे में उस आवाज़ से मानो पूरा घर कांप गया. मैंने पूछा, "चाची......क .क...क्या हुआ......"
कोई जवाब नहीं आया......मैं धीरे धीरे बाथरूम से निकला और चाची के बेड के पास से टटोलता टटोलता आगे गया तभी चाची बोली, "लल्ला......दूध का ग्लास गिर गया" मैंने कहाँ, "चाची आ आ आपको लगी तो नहीं..........".
चाची बोली, " नहीं रे.......मरा मेरा पेटीकोट मेरे पाँव में उलझा और मेरा बेलेंस बिगड़ गया........पूरा पेटीकोट दूध में हो गया.......हाय राम यह मरी बिजली भी......"
तभी कपडा सरकने की आवाज़ आई. मैं समझ गया की चाची ने अपना गीला पेटीकोट भी उतार दिया था.
इसका मतलब चाची सिर्फ पेंटी में थी. सिर्फ पेंटी में.......और मैं उनसे कुछ कदम की दुरी पर था. बाबुराव ऐसा उफान पर आया जैसे सुनामी हो......मुझे लगा की मेरी जींस ही फटेगी आज तो....
ये तो पक्का था की मेरी किस्मत भले ही गधे के लंड से लिखी है मगर वो गधा जरुर बड़े लंड वाला था .
मैंने पूछा, "च च चाची.....मा मा माचिस मिली क्या ?"
चाची की आवाज़ ठीक मेरे सामने से ही आई. "नहीं रे लल्ला.......नहीं मिली......तेरे चाचा भी तो रात में बीडी पीते है.....कहीं रख दी होगी........"
मुझे एहसास हुआ की चाची ठीक मेरे सामने से निकली, बहुत ही हलकी सी रौशनी थी......मैं उनके पीछे पीछे गया.
मुझे बहुत ही हल्का सा दिख रहा था मैं चाची के ठीक पीछे था. अचानक चाची रुक गयी और मैं उनके पिछवाड़े से जा टकराया. मेरा भी बेलेंस बिगड़ा और सँभालने के लिया मैंने चाची को पकड़ा. चाची ने सिवाय पेंटी के कुछ भी नहीं पहना था. मेरा हाथ सीधे उनके कंधे पर पड़ा और मैंने उनका कन्धा पकड़ लिया. इस कशमकश में चाची का भी बेलेंस बिगड़ा और हम दोनों निचे आ गिरे.
पहले मैं गिरा और चाची मेरे ऊपर. चाची मुझे पर इस तरह से गिरी की उनके मम्मे सीधे मेरे हाथो पर फिट हो गए.
चाची जोर से चिल्लाई, "हाय राम.........."
मैं भी जोर से चिल्लाया, "आ आ आ आह...."
चाची मुझ पर से उठने लगी और मैं भी उन्हें उठाने लगा. चाची ने पूछा, "क्या हुआ लल्ला.......गिरा कैसे..."
मैं न तो चाची तो जवाब दे पा रहा था और न ही उनके नमकीन बदन का आनंद ले पा रहा था. मैंने अपने निचे टटोल कर देखा, दूध का ग्लास था.
भेनचोद.......मैं सीधा दूध के ग्लास पर गिरा था. ग्लास तो चकनाचूर हो गया था मगर मेरी गांड पर बहुत जोर से लगी थी. मैं फिर से चिल्लाया,
"चाची पीछे हटो........ग्लास फुट गया है......आपको कांच चुभ जायेगा"
चाची बोली, "हाय राम लल्ला......तुझे लगी तो नहीं.......तू ग्लास पर ही गिरा क्या ? रुक हिलना मत मैं माचिस लायी...."
ऐसे अँधेरे में हिल कर भी क्या करता. मेरी गांड फट रही थी की मैं टूटे कांच पर बैठा हूँ कहीं इधर उधर घुस गया तो............??
अबकी बार चाची को माचिस मिल गयी. चाची ने झट से माचिस जलाई और रूम में हलकी हलकी रौशनी हो गयी. भले ही मेरी गांड जोर से दुःख रही थी मगर जो नज़ारा दिखा उसको देख के तो इंसान बिना बेहोशी की दवा के भी ओपरेशन करा ले.......अभी तक तो मैं गेस कर रहा था की चाची ने ब्लाउस और पेटीकोट खोल लिया है और उन्होंने ब्रा नहीं पहनी है सिर्फ पेंटी में है. मगर रोशनी आने के बाद तो मेरे सिस्टम ही हेंग हो गया.
चाची के मम्मे रोशनी में मुस्कुरा उठे......उनकी कमर पर थोड़ी ही रौशनी और थोडा सा अँधेरा था. अजंता की मूरत लग रही थी. मेरी नज़र निचे और निचे गयी.
चाची ने सिर्फ पेंटी पहनी हुयी थी. मगर वो फूल पत्तो की प्रिंट वाली नहीं बल्कि लेस वाली थी. काफी छोटी और घुमाव वाली. सामान्य कोटन पेंटी तो काफी बड़ी होती है मगर ये ब्लेक कलर की पेंटी तो बड़ी मुश्किल से चाची की मुनिया को छुपाये थी. चाची की मुनिया........यानि चिकनी चमेली.......वो जिसको चाची ने थोड़े समय पहले ही साफ़ किया था.......
सन सनन साय साय फिर से होने लगी. मेरी नज़र उनके बदन को सहलाने लगी. तभी मेरी गांड में शीशे का टुकड़ा चुभ गया और मेरे मुंह से फिर से आह निकल गयी.
चाची के चेहरे कर चिंता के भाव आ गए. वो बोली, "लल्ला.......बिलकुल मत हिलना रे.........कांच है........घुस गए तो मुसीबत हो जाएगी......रुक जा मैं मोम्बाती लाती हूँ."
ये कहकर चाची बाथरूम की ओर गयी और मेरा तो बी पी बढ़ गया. उस कसी पेंटी में चाची के कुल्हे ऐसे मटक रहे थे जैसे जेली हो. पेंटी ने चाची के कुलहो को छुपाया नहीं बल्की और उभार दिया था. मेरे जैसे गोल गांड के रसिया के लिए तो ये नज़ारा फ्रेम करा के रखने वाला था. उनके हर कदम पर उनके नितम्ब भी थाप दे रहे थे.
चाची ने मोमबत्ती जलाई और मेरे पास आई उन्होंने फिर से टॉवेल लपेट लिया था, मगर उस उफनती हुयी जवानी को वो बेचारा कहाँ छुपा पाता. चाची के मम्मे भी उछल उछल कर बाहर आ रहे थे. चाची मेरे पास आकर खड़ी हुयी और मोमबत्ती टेबल पर रख दी. मोमबत्ती की टिमटिमाती रौशनी चाची के बदन से खेलने लगी.
चाची ने कहा, "धीरे से उठना लल्ला.......देख कहीं कांच न चुभ जाए......"
मैं उठने लगा और जैसे ही खड़ा हुआ मेरे कुलहो में जोर से दर्द हुआ, मेरी आह निकल गयी और चाची ने पुछा, "हाय राम क्या हुआ लल्ला......हड्डी तो नहीं खिसक गयी"
चाची ने मुझे पलटाया और उनके मुंह से सिसकारी निकल गयी, "हाय राम लल्ला......तेरे पुठ्ठो पर तो कांच लग गया है......."
मेरी गांड पर कांच......? हे भगवान .......
मैं धीरे धीरे खड़ा हुआ और मेरी गांड का हालचाल देखने लगा, मगर कुछ नहीं दिख रहा था. चाची बोली, "लल्ला.....रुक जा......अरे राम......मुझे देखने दे...."
मैं बेबस लचर होकर चुपचाप खड़ा हो गया और चाची मेरी घायल गांड का मुआयना करने लगी. उन्होंने कुछ कांच के टुकड़े मेरी जींस के ऊपर से हटाये और बोली,
"लल्ला.......खून आ गया है रे.......और कांच के बारीक़ टुकड़े जींस के अन्दर तक घुस गए है. तू एक काम कर .......तू जींस उतार दे........"
मैंने जींस धीरे से उतारी. मेरे पुट्ठो में जलन मची हुयी थी. मैं जींस साइड में रख कर चाची की तरफ गांड करके खड़ा हो गया, चाची बेड पर बैठ गयी और मेरी गांड पर से कांच के टुकड़े हटाने लगी. वो बोली, "राम राम........बच गया रे......कोई बड़ा टुकड़ा नहीं घुसा नहीं तो न बैठने का रहता न लेटने का........" यह कहकर वो धीमे धीमे से हंसने लगी. मुझे गुस्सा आया कि साला यहाँ पर मेरी गांड का भुरता बन गया और चाची को हंसी आ रही है.......इस चाची को तो मैं बताऊंगा.
तभी मुझे कुछ चुभा. मैंने कहा, "च च चाची......अभी भी कांच लगा है क्या ? म म मुझे चुभ रहा है....."
चाची ने मेरी गांड को पास में से घुरा और बोली, "नहीं रे लल्ला......अब तो कुछ नहीं दीखता......मगर हो सके है की कुछ बारीक़ टुकड़े रह गए हो.....तू एक काम कर...
यह अंडरवियर भी उतार......एक तो यह मरी मोमबत्ती में यूँही नहीं दिख रहा....."
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शुभारम्भ-20
मैंने कांपते हाथों से मोमबत्ती उठाई और बाथरूम की तरफ बड़ा. बाथरूम का डोर खुला था, और चाची मेरी ओर पीठ करके खड़ी थी. उन्होंने साडी उतार दी थी और सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी थी. मोमबत्ती की टिमटिमाती रोशनी में उनकी पेटीकोट में छुपे नितम्ब बहुत ही मारू लग रहे थे. उनका पेटीकोट उनके कमर के कटाव के सबसे बड़े हिस्से पर टिका था. ऐसा लग रहा था मानो पेटीकोट बस उनकी गांड की गोलों के दम पर ही टिका था वर्ना कब का गिर जाता. चाची अपना ब्लाउस खोल रही थी. मेरी तरफ पीठ होने से मुझे दिख तो कुछ भी नहीं रहा था मगर उनके हाथ चलने से उनकी विशाल गांड थरथरा रही थी. और उसको ऐसे हिलते देख मेरा मुंह खुला का खुला ही रह गया.
चाची बोली, "हाय राम....तू अन्दर क्यों आया ?"
मैं बोला, "च च च चाची.......आ आ आपने ही तो मोमबत्ती मांगी थी........"
चाची बोली, " हें....हाँ रे.....वो वहां पर रख दे.......हाँ.......अरे वो जहाँ शेम्पू रखा है......बस उसके पास.......हाय राम इधर मत देख बेशरम"
मैंने बहुत कोशिश की मगर पापी मन नहीं मान रहा था....... बार बार मेरी नज़र चाची की तरफ ही जा रही थी.
चाची का ब्लाउस आधा खुल चूका था.......जैसे ही वो यह सब बोलने के लिए मुड़ी मेरी नज़र सीधे चुम्बक के जैसे उनके आधे खुले ब्लाउस में से झांकते मम्मो पर जा चिपकी.
किसी ने सत्य ही कहा है की औरत के बदन की असकी कामुकता आधे ढके होने में है.....
पूरी नग्न औरत से तो आधी ढकी औरत ही ज्यादा सेक्सी लगती है......
चाची के ब्लाउस को सिर्फ दो हुक पूरी हिम्मत और ताकत के साथ संभाले हुए थे वर्ना वो तो फटने के लिए बेताब था. हमेशा की तरह चाची ने आज भी ब्रा नहीं पहनी थी, जो नज़ारा उभर के आया था वो किसी मरते आदमी की साँसें चालू कर देता और जिन्दा इंसान की साँसे बंद, मम्मे ब्लाउस में कसे इस कदर कसमसा रहे थे मनो हुको को तोड़ डालेंगे.
मोमबत्ती मेरे हाथ में थी और मेरा मुंह खुला का खुला ही था. चाची अब पूरी पलट के खड़ी हो गयी. उनका तराशा हुआ बदन सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में मेरे सामने था. ब्लाउस के तो हाल आप जानते ही हो.....पेटीकोट चाची ने काफी नीचे बांधा था...उनकी मद मस्त नाभि मोमबत्ती की रौशनी में कुए जैसी दिख रही थी. चाची ने अपने हाथ अपने मम्मो के ऊपर रख लिए और चिल्लाई...."अरे हरामी......बाहर क्यों नहीं जाता......निकल बाहर....." और पलट के अपने ब्लाउस के बचे खुचे हुक खोलने लगी.
मैं सकपकाते हुए बाहर जाने लगा तो वो फिर चिल्लाई "अरे ये मरी मोमबत्ती तो रखता जा...."
मैंने कांपते हुए हाथों से मोमबत्ती को ग्लास की रेक पर रखा और पलट के जाने लगा. मोमबत्ती ढंग से टिकी नहीं थी.
जैसे ही मैं मुड़ा. मोमबत्ती नीचे गिरी और बुझ गयी.
पूरा बाथरूम घुप्प अँधेरे में हो गया. कुछ भी नहीं दिख रहा था.
चाची जोर से चिल्लाई. " हाय राम......जान नहीं है क्या हाथों में......जा माचिस ला.....कहा गयी मोमबत्ती...."
मैं माचिस लेन की बजाये फर्श पर टटोल टटोल के मोमबत्ती ढूंढ़ने लगा......तभी मेरा हाथ चाची के हाथ से टकराया...चाची भी मोमबत्ती ढूंढ़ रही थी.
कीड़ा कुलबुलाने लगा.....
मैंने थोडा हाथ आगे बढाया और चाची की तरह आगे बड़ा.......अचानक मेरे हाथ से कुछ कड़क सा टकराया.....मुझे समझ नहीं आया की ये क्या है.....मैं बैठा था और मेरे हाथ चाची के सीने की ओर थे.......मुझे लगा शायद चाची का मंगल सूत्र है.....मैंने फिर हाथ बढाया और अब की बार मेरे हाथ से कुछ नरम नरम सा टकराया.......
मैं वहीं पर रुक गया.......मेरी नसे सनसनाने लगी.......जो मेरे हाथ से टकराया था वो चाची का खड़ा हुआ निप्पल था.
चाची ने अपना ब्लाउस पूरा खोल लिया था.
मैंने हिम्मत की और फिर से अपने हाथ बढाया......मेरा हाथ सीधे लेजर बोम्ब की तरह निशाने पर गया और चाची के मम्मे से जा टकराया.....मैंने अपने हाथ वही पर रख दिया और चुतिया बनाने के लिए कहने लगा.....
"अरे च च चाची......आ आ आप हो क्या..."
चाची दबी हुयी जुबान से बोली, "ओर क्या हरामी यहाँ पे माधुरी दीक्षीत थोड़ी बैठी है. हाथ हटा......"
मैंने हाथ नहीं हटाया और चाची के मम्मे को हाथ में ले लिया और धीर धीर दबाते हुए बोला, "न न नहीं च च चाची आप थोड़ी हो......ये तो शायद नहाने का स्पंज है......" मैंने दबाना बंद नहीं किया.......
मेरी गांड फटे जा रही थी मगर खुदा की कसम क्या मज़ा आ रहा था.....चाची का मम्मा मेरे हाथो में तो समां नहीं पा रहा था मगर इतना सोफ्ट था की सचमुच का स्पंज हो.
चाची जोर से बोली, " हरामी छोड़....."
मैंने भी हिम्मत पकड़ी, "क्या छोडू च च चाची......."
चाची ने अब आवाज़ धीरे की और बोली, "मेरा बोबा........छोड़ हरामी.........मेरा मम्मा .....छोड़ कमीने...."
मैंने समझ लिया की चाची को गुस्सा आ गया है........मैंने बहुत मुश्किल से चाची के मम्मो को छोड़ दिया.
चाची बोली, "लल्ला......बहुत ही बेशरम हो गया है रे........कुछ लाज शरम है की नहीं........"
पूरा घुप्प अँधेरा था. मुझे लगा की चाची मुस्कुरा रही है मगर साला कन्फर्म नहीं था.........अगर सच में गुस्सा हुयी तो.....ये सोच कर मेरी गांड फटने लगी.
मैंने कहा, "च च च चाची म म मैं माचिस ले आता हूँ........"
चाची बोली, "नहीं.....तू यहीं पर रुक......अँधेरे में न जाने क्या गिराएगा क्या तोड़ेगा.......मुझे पता है माचिस कहाँ है.......यहीं रुक जा....."
मैं कुछ बोलता उसके पहले चाची के आगे बड़ने की आवाज़ आई और वो अँधेरे में टटोलते टटोलते बाथरूम से बहार जाने लगी. बहुत ही हलकी सी रोशनी रोशनदान से आ रही थी. मुझे सिर्फ चाची कहाँ है ये दिखाई दे रहा था मगर उनके नंगे मम्मे और चिकनी कमर अँधेरे में छुपे बैठे थे. चाची ने अपने दोनों हाथ आगे बढाकर चलना शुरू किया और उनका हाथ मेरे बेल्ट के बक्कल से जा टकराया. वो बोली, " हें ये मरा नल यहाँ कहाँ से आ गया" और उन्होंने अपने हाथ सीधा मेरे जींस की चेन पर रख दिया. जी हाँ.....सीधा मेरे मासूम बाबुराव पर.......मैंने और बाबुराव दोनों ने झटका खाया........तभी चाची ने जोर से मेरा बाबुराव जींस के ऊपर से ही दबा दिया, मेरे मुंह से आह निकल गयी, चाची बोली, " हाय राम.......ये तू है क्या लल्ला ? मुझे लगा की नल है और उसपे कपडा पड़ा है........परे हट......."
साली चाची मेरे साथ मेरा ही गेम खेल गयी. मुझे तो ये ही समझ नहीं आ रहा था की वो चाहती क्या है ? उनकी बातों से कभी लगता की ठुकवाने को बेकरार है और कभी एकदम सती सावित्री बन जाती.
चाची बाथरूम से बाहर निकल गयी और मैं गंगू गमने जैसा बाथरूम में ही खड़ा रहा.
सच में त्रिया चरित्र किसी के बाप के समझ में नहीं आया होगा. साली....चाची की सारे हाव भाव येही बताते है की उनकी क्या इच्छा है.......मैं उनकी आँखों के वो गुलाबी डोरे और उनकी वो टेडी मुस्कान नहीं भूल पा रहा था जब उन्होंने मेरा लंड हिला हिला कर मेरा पानी निकाल दिया था. मगर वो नाराज़ होती तो मेरी गांड की फटफटी स्टार्ट हो जाती.........
बाहर रूम से बर्तन गिरने की आवाज़ आई. अँधेरे में उस आवाज़ से मानो पूरा घर कांप गया. मैंने पूछा, "चाची......क .क...क्या हुआ......"
कोई जवाब नहीं आया......मैं धीरे धीरे बाथरूम से निकला और चाची के बेड के पास से टटोलता टटोलता आगे गया तभी चाची बोली, "लल्ला......दूध का ग्लास गिर गया" मैंने कहाँ, "चाची आ आ आपको लगी तो नहीं..........".
चाची बोली, " नहीं रे.......मरा मेरा पेटीकोट मेरे पाँव में उलझा और मेरा बेलेंस बिगड़ गया........पूरा पेटीकोट दूध में हो गया.......हाय राम यह मरी बिजली भी......"
तभी कपडा सरकने की आवाज़ आई. मैं समझ गया की चाची ने अपना गीला पेटीकोट भी उतार दिया था.
इसका मतलब चाची सिर्फ पेंटी में थी. सिर्फ पेंटी में.......और मैं उनसे कुछ कदम की दुरी पर था. बाबुराव ऐसा उफान पर आया जैसे सुनामी हो......मुझे लगा की मेरी जींस ही फटेगी आज तो....
ये तो पक्का था की मेरी किस्मत भले ही गधे के लंड से लिखी है मगर वो गधा जरुर बड़े लंड वाला था .
मैंने पूछा, "च च चाची.....मा मा माचिस मिली क्या ?"
चाची की आवाज़ ठीक मेरे सामने से ही आई. "नहीं रे लल्ला.......नहीं मिली......तेरे चाचा भी तो रात में बीडी पीते है.....कहीं रख दी होगी........"
मुझे एहसास हुआ की चाची ठीक मेरे सामने से निकली, बहुत ही हलकी सी रौशनी थी......मैं उनके पीछे पीछे गया.
मुझे बहुत ही हल्का सा दिख रहा था मैं चाची के ठीक पीछे था. अचानक चाची रुक गयी और मैं उनके पिछवाड़े से जा टकराया. मेरा भी बेलेंस बिगड़ा और सँभालने के लिया मैंने चाची को पकड़ा. चाची ने सिवाय पेंटी के कुछ भी नहीं पहना था. मेरा हाथ सीधे उनके कंधे पर पड़ा और मैंने उनका कन्धा पकड़ लिया. इस कशमकश में चाची का भी बेलेंस बिगड़ा और हम दोनों निचे आ गिरे.
पहले मैं गिरा और चाची मेरे ऊपर. चाची मुझे पर इस तरह से गिरी की उनके मम्मे सीधे मेरे हाथो पर फिट हो गए.
चाची जोर से चिल्लाई, "हाय राम.........."
मैं भी जोर से चिल्लाया, "आ आ आ आह...."
चाची मुझ पर से उठने लगी और मैं भी उन्हें उठाने लगा. चाची ने पूछा, "क्या हुआ लल्ला.......गिरा कैसे..."
मैं न तो चाची तो जवाब दे पा रहा था और न ही उनके नमकीन बदन का आनंद ले पा रहा था. मैंने अपने निचे टटोल कर देखा, दूध का ग्लास था.
भेनचोद.......मैं सीधा दूध के ग्लास पर गिरा था. ग्लास तो चकनाचूर हो गया था मगर मेरी गांड पर बहुत जोर से लगी थी. मैं फिर से चिल्लाया,
"चाची पीछे हटो........ग्लास फुट गया है......आपको कांच चुभ जायेगा"
चाची बोली, "हाय राम लल्ला......तुझे लगी तो नहीं.......तू ग्लास पर ही गिरा क्या ? रुक हिलना मत मैं माचिस लायी...."
ऐसे अँधेरे में हिल कर भी क्या करता. मेरी गांड फट रही थी की मैं टूटे कांच पर बैठा हूँ कहीं इधर उधर घुस गया तो............??
अबकी बार चाची को माचिस मिल गयी. चाची ने झट से माचिस जलाई और रूम में हलकी हलकी रौशनी हो गयी. भले ही मेरी गांड जोर से दुःख रही थी मगर जो नज़ारा दिखा उसको देख के तो इंसान बिना बेहोशी की दवा के भी ओपरेशन करा ले.......अभी तक तो मैं गेस कर रहा था की चाची ने ब्लाउस और पेटीकोट खोल लिया है और उन्होंने ब्रा नहीं पहनी है सिर्फ पेंटी में है. मगर रोशनी आने के बाद तो मेरे सिस्टम ही हेंग हो गया.
चाची के मम्मे रोशनी में मुस्कुरा उठे......उनकी कमर पर थोड़ी ही रौशनी और थोडा सा अँधेरा था. अजंता की मूरत लग रही थी. मेरी नज़र निचे और निचे गयी.
चाची ने सिर्फ पेंटी पहनी हुयी थी. मगर वो फूल पत्तो की प्रिंट वाली नहीं बल्कि लेस वाली थी. काफी छोटी और घुमाव वाली. सामान्य कोटन पेंटी तो काफी बड़ी होती है मगर ये ब्लेक कलर की पेंटी तो बड़ी मुश्किल से चाची की मुनिया को छुपाये थी. चाची की मुनिया........यानि चिकनी चमेली.......वो जिसको चाची ने थोड़े समय पहले ही साफ़ किया था.......
सन सनन साय साय फिर से होने लगी. मेरी नज़र उनके बदन को सहलाने लगी. तभी मेरी गांड में शीशे का टुकड़ा चुभ गया और मेरे मुंह से फिर से आह निकल गयी.
चाची के चेहरे कर चिंता के भाव आ गए. वो बोली, "लल्ला.......बिलकुल मत हिलना रे.........कांच है........घुस गए तो मुसीबत हो जाएगी......रुक जा मैं मोम्बाती लाती हूँ."
ये कहकर चाची बाथरूम की ओर गयी और मेरा तो बी पी बढ़ गया. उस कसी पेंटी में चाची के कुल्हे ऐसे मटक रहे थे जैसे जेली हो. पेंटी ने चाची के कुलहो को छुपाया नहीं बल्की और उभार दिया था. मेरे जैसे गोल गांड के रसिया के लिए तो ये नज़ारा फ्रेम करा के रखने वाला था. उनके हर कदम पर उनके नितम्ब भी थाप दे रहे थे.
चाची ने मोमबत्ती जलाई और मेरे पास आई उन्होंने फिर से टॉवेल लपेट लिया था, मगर उस उफनती हुयी जवानी को वो बेचारा कहाँ छुपा पाता. चाची के मम्मे भी उछल उछल कर बाहर आ रहे थे. चाची मेरे पास आकर खड़ी हुयी और मोमबत्ती टेबल पर रख दी. मोमबत्ती की टिमटिमाती रौशनी चाची के बदन से खेलने लगी.
चाची ने कहा, "धीरे से उठना लल्ला.......देख कहीं कांच न चुभ जाए......"
मैं उठने लगा और जैसे ही खड़ा हुआ मेरे कुलहो में जोर से दर्द हुआ, मेरी आह निकल गयी और चाची ने पुछा, "हाय राम क्या हुआ लल्ला......हड्डी तो नहीं खिसक गयी"
चाची ने मुझे पलटाया और उनके मुंह से सिसकारी निकल गयी, "हाय राम लल्ला......तेरे पुठ्ठो पर तो कांच लग गया है......."
मेरी गांड पर कांच......? हे भगवान .......
मैं धीरे धीरे खड़ा हुआ और मेरी गांड का हालचाल देखने लगा, मगर कुछ नहीं दिख रहा था. चाची बोली, "लल्ला.....रुक जा......अरे राम......मुझे देखने दे...."
मैं बेबस लचर होकर चुपचाप खड़ा हो गया और चाची मेरी घायल गांड का मुआयना करने लगी. उन्होंने कुछ कांच के टुकड़े मेरी जींस के ऊपर से हटाये और बोली,
"लल्ला.......खून आ गया है रे.......और कांच के बारीक़ टुकड़े जींस के अन्दर तक घुस गए है. तू एक काम कर .......तू जींस उतार दे........"
मैंने जींस धीरे से उतारी. मेरे पुट्ठो में जलन मची हुयी थी. मैं जींस साइड में रख कर चाची की तरफ गांड करके खड़ा हो गया, चाची बेड पर बैठ गयी और मेरी गांड पर से कांच के टुकड़े हटाने लगी. वो बोली, "राम राम........बच गया रे......कोई बड़ा टुकड़ा नहीं घुसा नहीं तो न बैठने का रहता न लेटने का........" यह कहकर वो धीमे धीमे से हंसने लगी. मुझे गुस्सा आया कि साला यहाँ पर मेरी गांड का भुरता बन गया और चाची को हंसी आ रही है.......इस चाची को तो मैं बताऊंगा.
तभी मुझे कुछ चुभा. मैंने कहा, "च च चाची......अभी भी कांच लगा है क्या ? म म मुझे चुभ रहा है....."
चाची ने मेरी गांड को पास में से घुरा और बोली, "नहीं रे लल्ला......अब तो कुछ नहीं दीखता......मगर हो सके है की कुछ बारीक़ टुकड़े रह गए हो.....तू एक काम कर...
यह अंडरवियर भी उतार......एक तो यह मरी मोमबत्ती में यूँही नहीं दिख रहा....."
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