FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--104
गतांक से आगे ...........
मुझे भाभियों की टीम में शामिल कर लिया गया था और ...मिश्रायिन भाभी ...सबसे ये बोलती थी की मैं भाभी के मायके की हूँ ...
होली का माहौल मोहल्ले में और भी रंगीन था ...
और जब हम लोगों की टोली घर से निकली जोबन के मद से मदमाती , गदराती, खेली खायी भाभियां , तितली सी उड़ती , चिड़िया सी चहकती , उछलती , मचलती , उनकी ननदे और लड़कियां ...
पुराना जमाना होता तो राजा इन्दर के अखाड़े की , लाल परी और सब्ज परी की उपमा शायद ठीक होती ...लेकिन अभी तो ये कहा जा सकता है की जैसे किसी चैनेल की या फिल्मी होली पार्टी से स्टार होने वाली स्टार रंगों में लथपथ निकलती है ...बस इसी तरह रंग के साथ भंग और वोदका और रम के नशे में चूर ...
फरक सिर्फ ये था की ...इस टोली की होली ...तन और मन की भी हुयी थी ...शायद ही किसी के कपडे फटने से बचे हो और जो थोड़े बहूत थे ...वो बस सारे उभारों से चिपके , कटावों को झलकाते और आग लग रहा थे ...सब लाल गुलाल लग रहा था पलाश के दहकते , जलते वन ही चले आ रहे हो हों ...
वो गाल जिन्हें छूने के लिए सूरज की किरणे भी इजाजत मांगती थी , जिन्हें देख के गुलाब भी शरमा जाते थे ..जिनके बारे में ये कहा जाता था ..
अल्लारे उनके फूलों-से गालों की ताजगी,
धूप आइने की देखकर कुम्हलाये जाती है।
वो रंगों से लाल पीले ...खूब रगड़े मसले रुखसार होली की मस्ती से दहक़ रहे थे ...
जिन स्कूल जाती लड़कियों से नए आये जोबन का उभार , निखार सम्हाले नहीं सम्हलता था ...बार बार दुपट्टा इस कदर इस रूप से डालती थी की किसी लड़के की नजर न पड जाए ..भाभियों ने उनके जोबन ऐसे लुटे थे ...अब दुपट्टे और ब्रा ने तो साथ छोड़ा ..टाप , फ्राक भी फटी चिथड़ी , रंगों से चिपकी , उन नए आये उभारों को नुमायाँ ज्यादा कर रही ... और छुपा कम रही थी
और उनके चलने का अंदाज भी बता रहा थी की इस होली में वो कैशोर्य के आँगन से बाहर निकल , भोलेपन की दहलीज पार कर अब शोख अदाओं , छेड़खानी और मनुहार के , इस तरह से ना कहने की अदा की अगला समझ जाय की वो हाँ ही है , जवानी के मजे लेने की मस्त दुनिया में आ गयी थींऔर छुपा कम रही थी गौने के रात की बाद दुल्हन की जो हाल होती है ...उसे लगता है हर निगाह उसकी रात की गुस्ताखियों का शोखियों का हर कदम के साथ स्वाद ले रही है , आज बिरज में होरी रे रसिया ...होरी रे रसिया बरजोरी से रसिया
अपने अपने घर से निकरी कोई सांवर कोई गोरी रे रसिया
और घर से बाहर निकलते ही ...होली है के नारे हुडदंगियों की टोली ...गली के दोनों और छतों पे जो लड़कियों औरतों का झुण्ड था ...बाल्टियों से पानी और रंग ...पिचकारियों की फुहारे ...रंगों भरे गुब्बारे ...
तन मन और गीला हो गया ...
मैं रीतू भाभी , लतिका और रीमा के साथ था
और गुड्डी सीधे मिश्रायिन भाभी की अंडर स्टडी के तौर पे ...और मिश्रायिन भाभी ने जो गुर आज तक किसी को नहीं सिखाये थे , अपनी इस पटु शिष्या को ना सिर्फ सिखाये बल्कि ...अपने सामने करवाए भी ...गुड्डी अपने से उम्र में चौदह साल बड़ी , शादी शुदा ससुराल से कबड्डी खेल कर आई , एक से एक तीस -बत्तीस साल की प्रौढ़ा , ननदों को भी पछाड़ रही थी ...लेस्बियन रेसलिंग , होली की गालियाँ हो या एक साथ होली की हु तू तू में अकेले ननदो के झुरमुट में घुस के दो चार के कपडे फाड़ के आना हो ...गुड्डी की जोश और स्फूर्ति और ...मिश्रायिन भाभी की ट्रेनिंग और ट्रिक ...उसके उम्र वाली कमसिन कन्याये तो वैसे ही हाथ खड़ी कर देतीं थी ...कर लो जो करना हो ....
लड़कियों की इस होली में आदमी नहीं घुसते थे ...हाँ दूर से देह से भीगे चिपके रंग से लथपथ कपड़ों में कटाव , उभार , झलकते हुए जोबन , एक दूसरे से जूझती औरतें लड़कियां , कपडे के अन्दर हाथ डाल कर गोलाईयां मिजवाती नापती, दबाती , मीजती , लडकिया ...वो देखना ही उनके लिए होली का अनन्य सुख था ..हाँ हम लोगों की टोली , पीछे के रास्ते से कालोनी में गयी तो इस लिए होली के हुडदंगियों , हुरियारों से तो हम बचे रहे ...लेकिन अगर कोई इक्का दुक्का कम उमर का लड़का पकड़ में आ गया तो भाभियाँ उसे रगड़े बिना नहीं छोड़ती थीं ..आखिर देवर जो लगता ...पेंट के अन्दर भी , आगे भी पीछे भी ...और उस से उस के बहन की नाम की दस पांच गालियाँ दिलवा के ही उसे छोड़तीं ...
लेकिन मेरा बड़ा फायदा हो गया , लतिका और रीमा के चलते ...कालोनी में जहां कोई रंगीन बाला दिखाती , जवानी के देहलीज पे खड़ी ..थोड़ी लजाती , सकुचाती , झिझकती , शरमाती ...उस की रगड़ाई और सब कुछ .'सिखाने दिखाने' का काम मेरा ...लतिका मुझे समझाती , उकसाती ...ये नीले फ्राक वाली , बहुत सीधी बनती है ...कहती है इसको ऐसी वैसी बातें पसंद नहीं ...लड़कों के नाम से कन्नी काटती है ...छूने को छोडो ..कोई लड़का कमेन्ट भी पास कर दे तो एफ आई आर ले के खड़ी हो जाती है ...बस दो चार भाभियाँ उसे दौड़तीं ...जैसे .हांका करते हैं ...वो हिरणी भाग कर लतिका और रीमा की और दौड़ती और मैं पीछे से उसे गपुच लेता ...मेरा बायाँ हाथ काफी होता उसके हाथ पकड़ने के लिए ...फिर मैं उसे थोड़ी देर छटपटाने देता ...और जब वो थक हार के ..खड़ी हो जाती ...तो पहले तो गोरे गोरे किशोर गालों का रस , और साथ में उसके कानो में ऐसी वैसी बातें जो वो अपनी सहेलियों से करने में शर्माती सकुचाती , गोलाइयों की नाप ..किसने और कितनो ने उसके जोबन का रस लूटा है ...वो धत्त धत्त करती रहती ...और मैं कहता चल कोई बात नहीं मैं खुद नाप लेता हूँ ...और फिर गीले देह सेपहले तो ऊपर से जोबन रस का सुख ...और फिर एक झटके में फ्राक के अंदर हाथ ..मुसीबत में जैसे दोस्त भी साथ छोड़ देते हैं ...उसी तरह ...फ्राक के बटन भी चट चट और मेरा हाथ अन्दर ....जो नीति भाभियों ने मेरे घर के आँगन में की थी ननदों को ब्रा के कवच से मुक्त करने की ..पहले वो और फिर गोरे कबूतर ...उन के पंख लाल पीले रंगे जाते ...पक्के रंगों से ...खास तौर पे जब उन कबूतरों की ललछांह चोंच मैं दबाता , दबोचता , तो जिस तरह वो सिसकती चीखती ...लतिका , रीमा से छुडाने की गुहार करती ...लेकिन वो दोनों शोख हंसती , मुझसे कहतीं की की जरा कबूतरों को हवा तो खिलाओ , पिंजरे से साल बरस के दिन , बाहर तो निकालो ...और मैं कौन होता था मना करने वाला ..चरर्र ...फ्राक का उपरी हिस्सा फट के मेरे हाथ मने , रंगा पुता कबूतर बाहर ...और साथ में लतिका और रीमा के हाथ में मोबाइल ...स्नैप स्नैप ...
उड़ने को बेताब गोर गुदाज कबूतर ...मेरे हाथों से दबे मसले जा रहे कबूतर ..
और फिर वो किशोरी कबूल कर लेती लतिका और रीमा के गैंग को ज्वाइन करने के लिए ...लेकिन बचत इतने से भी नहीं ...उसी के साथ मेरा दूसरा हाथ पैंटी का दुश्मन ...उसे भी अलग कर लेता और उंगलिया सीधे .. रसमलाई का रस ही नहीं लेती, उसे चाट चाट कर उसे दिखाती ...भरतपुर स्टेशन के अन्दर घुस कर जब तक वहां भी रंगाई पुताई न हो ...वो नहीं बचती ..
और फिर लतिका रीमा के साथ वो मिल कर अगला शिकार खुद पकड़वाती ...और ब्रा पैंटी फाड़ने का जिम्मा उसका ...जैसे कई चिट फंड स्कीम में होता ...की आप जिसे मेंबर बनायंगे , जब वो नया मेंबर बना लेगा तो आप का फायदा बस वही ...और फिर मोबाइल का इस्तेमाल ..अन कही धमकियां ..और असली बात लड़कियों के झुरमुट में होली के मंजर मने सब रंगी पुती भंग के नशे में मस्त ...कौन देखता है कौन क्या कर रहा है ...और जो पहरेदार थीं वो भी तो किसी और के साथ वही सब कर रही थीं ..
शायद ही कालोनी की कोई लडकी बची होगी जिसके उरोज कितने गदरा गएँ हैं , कटाव , उभार कैसे हैं ..मेरी उँगलियों ने नहीं देखा ...या रसमलाई का रस नहीं लिया ...जो बड़ी उम्र की लड़कियां या शादी शुदा ननदें थीं वो बाकी भाभियों के जिम्मे ...और कच्ची कली कचनार की ...को होली का रस और देह का सुख सिखाने की जिम्मेदारी मेरी…लेकिन ये वर्क डिस्ट्रीब्यूशन कोई पक्का नहीं था ...अगर कोई ज्यादा हाथ पैर मारती ...तो बस उस बछेडी के हाथ पैर बाँध के ...जो हालत मेरे आँगन में लतिका की हुयी थी वही सब गत ..भाभियों के सहयोग से उसकी ..भी ...हम लोग कुछ देर तो घर के बाहर होली खेलते ...और अगर किसी घर से कोई ननद भाभी निकलने में संकोच देर करती तो उसी के आँगन में घुस के ...और आँगन में तो और आड़ मिल जाती ...और अगर किसी नई नवेली भाभी को देख के मेरा मन मचलता तो मैं दल बदलने में कुछ भी संकोच नहीं करता ...और लतिका रीमा के ग्रुप में ..उस भाभी के साथ भी देह रस की होली ...उस घर से निकलने पे वहां की भी ननद भाभी साथ ...और फिर अगले घर में कपडे फाड़ने की जिम्मेदारी उनकी .
र घर में गुझिया भी खानी पड़ती और ठंडाई भी कहने की बात नहीं सब भांग से लैस ...
मन का रस , तन का रस होली का रस सब दूना ...
होली का समापन हुआ मिश्रायिन भाभी के घर में ...और बस ये समझिये ...की वहां जो हुआ न लिखने काबिल न पढ़ने के ...बस आप सोच सकते हैं की मेरे आंगन में जो हुआ था ...उसका आधा भी नहीं था ....जो अपने रिबन से रीमा और लतिका ने जंगबहादुर को बाँधा था ...उसे उन्ही दोनों ने मुक्त किया ..फर्क सिर्फ इतना था की ..किसी ने बोल दिया की दो बजे से शायद पानी चला जाएगा ..इसलिए ...आधे घंटे में ही हम वहां से निकल लिए लेकिन उन आधे घंटे में ...भाभियों ने ननदों की पकड पकड के रगड़ाई की अनगन में नचाया ..और फिर जोड़ा ...बना के ...देख तेरे भैया ऐसे करते है ..शायद कोई लिखता तो काम सूत्र में दो चार नए आसन जोड़ देता ..और कई के साथ तो दो दो ...चल मेरे मायके चलेगी ना ...तो मेरे दोनों भाई मिल के तेरे साथ ऐसे ...
जब हम घर पहुंचे तो होली के रंगों के साथ पानी जाने का डर भी था ...भैया आ चुके थे और नहा धो के अपने कमरे में ऊपर ..
दो बाथ रूम थे नहाने वाले चार ...मैं , गुड्डी , शीला भाभी और मेरी भाभी ( मंजू बाहर अपने कमरे में चली गयी थी ).
बस बीस मिनट रह गए थे पानी जाने में ...
भाभी ने एक बाथ रूम का दरवाजा खोल के मुझे ठेला और फिर गुड्डी को और दरवाजा बंद कर दिया ...दूसरे में वो और शीला भाभी साथ साथ नहाने चली गयीं
गुड्डी पे भांग का जबर्दस्त नशा चढ़ा था ...
मेरे गाल पे पिंच करके बोली ...यार तू साल्ली इतना जबर्दस्त माल लग रही थी ना ...आज पहली बार मुझे अफसोस हुआ की मैं लड़का क्यों ना हुयी ...
मैंने उसे चूम के चिढाया ...चल चल ...ये कहाँ से मिलता ...मैंने उसे अपने खूंटे की ओर इशारा कर के कहा .
वो हंस के बोली ...इतना मत अकड ...मिश्रायिन भाभी के पास एक से एक डिल्डो है ..एक दो तो किंग साइज ...एकदम तेरे साइज का है ...स्ट्रैप आन ...बस ...लगाओ ...निहुराओ ...घुसाओ
थोड़ी देर में हम दोनों शावर के नीचे थे ...
मैंने गुड्डी को एक ज्ञान की बात बताई ..चल पहले शैम्पू लगा के सर के रंग निकाल ले ...कालोनी में सब ने खूब सूखा रंग बालों में डाला था ...वरना वही रंग ...
गुड्डी मेरी बात काट के बोली ...
चलो निहूरो ...हाँ एकदम बड़ी प्रैक्टिस की है बचपन में लगता है स्कूल में ...हाँ ..और अरे यार जैसे तेरी सास निहुरायेंगी ...कोहबर में नथ उतारने के लिए ..बस वैसे ..एकदम सही ..बहुत मन कर रहा है लगता है सास से कोहबर में नथ उतरवाने का ...तेरा ...
और बात करते करते ..मेरे पिछवाड़े पहले एक उंगली ...फिर दूसरी उंगली ...और थोड़ी देर में उसने अपनी अंजुरी मेरे सामने कर दी ...लाल काही रंग से भरी ...
देखा ...सबसे ज्यादा सूखा रंग तेरी भौजाइयों ने कहाँ डाला था ...आँख नचा के बोली वो ...और फिर सीधे हैण्ड शावर का नोजल वहां ...और फूल फोर्स ..
रंगों की धारा बह रही थी ...तरह तरह के रंग ...
मुझे मंजू की बात याद आई ...जब मैंने उससे पूछा था कितना रंग लाऊं तो वो बोली की लाला , आधा किलो तो तुम्हरे लग जाएगा ..एक पाव तोहरी गांड में और एक पाव तोहरी बहन काव नाम है ओकर हाँ ...रंडी ..ओक़र ...भोंसडा में ...
रगड़ रगड़ के हम लोगो ने एक दूसरे के रंग छुडाये ..
बाकियों के रंग तो उतर गए ..लेकिन गुड्डी का रंग और पक्का हो गया ..सात जनम तक न उतरने वाला ...
कपडे भी हमने कमरे में साथ साथ चेंज किये ...उसने प्याजी रंग का एक नया शलवार सूट पहना और मेरे लिए ..एक खूब काम किया हुआ चिकन का गुलाबी लखनवी कुरता पजामा निकाल ..के किचेन में चली गयी ..भाभी का हाथ बटाने खाना निकालने के लिए
और मैंने अपना मोबाइल खोला ...मेसेज पे मेसेज
पहला मेसेज ही सबसे खतरनाक था मेरे हैकर दोस्तों का ...बडौदा का टाईम टेबल पता चल गया है ...खून की होली ...आज ही शाम को पांच से आठ बजे के बीच ...और बडौदा के आसपास भी ...
रीत का मेसेज था ...वो बडौदा पहुँच गयी है रेलवे यार्ड में तीन बजे पहुंचेगी मीनल के साथ ...करण पुलिस कंट्रोल रूम में रहेगा ...मैं तीन बजे से लगातार उसके टच में रहूँ
रीत और करण आधेघंटे से कम समय में एयरपोर्ट पहुँच गए . सारे रास्ते रीत का सर करन के कंधे पे था और करन का हाथ रीत के कंधे पे दोनों एकदम चिपके बैठे थे ...बस बीच बीचमें एक दूसरे को देखके मुस्करा लेते.कार में एक एक पल केलिए भी करनका हाथ रीतके उभारों से हटानहीं
...और अगर एकाध बार सरका भी तो खुद रीत ने खिंचके उसे अपने जोबन पे दिया
बाबतपुर एअरपोर्ट पर बीएसएफ का जहाज खड़ा था ...एक १५ सीट का छोटाजहाज
....दोनों पायलट प्लेन के बाहर खड़े उनदोनों का इन्तजार कर रहे थे
.करनरीत के चढ़ते ही असिस्टेंटपायलट उनके पास रुकगया और पायलट काकपिटकेअन्दरचलागया।
असिस्टेंटपायलट ने उन्हें समझाया की उदयपुर पहुँचने में उन्हें दो घंटे लगेंगे और वो डेढ़सेदोबजे केबीच वहां पहुंचेंगे . हां , उस प्लेन में कोई एयरहोस्टेस नहीं है ...इसलिए अगर कोईबातहो तो वो बटनदबाकर उसे बुलासकतेहैं ...एकमिनी फ्रिजऔरहाट केस गेलीमेंरखाहै ... अगर उन्हें भूख लगे ....या प्यासलगे ...
रीत उनकी बात काट के बोली ...नहीं हमलोग खाकेआये हैं ...और वोऔर करन सीट पर बैठगए।
जहाज में सिर्फ वही दोनों थे।
असिस्टेंटपायलट ने उनकी बगल की सीट पे कम्बल निकालके रखदिए और वो भी काकपिट में चला गया
...थोड़ी देर में जहाज आसमान में था ...और सीटबेल्ट खोलने के इंडिकेशन आ गए
।करन ने अपनी सीटबेल्ट खोलने के साथ रीत की भी सीटबेल्ट खोल दी ..शरारत से उसका हाथ रीतके उभारोंसे रगड़ भी खा गया ...
रीत ने करन को खा जानेवाली निगाहों से देखा ...फिर प्यार से मुस्करा दी ...करनने सीट के बीच का आर्मरेस्ट उठा दिया ...और रीत ने भी बगल की सीटपे पड़े कम्बल से दोनों को ढकलिया.
भूख लगी है क्या ...रीतने उस अस्सिस्टेंटपायलट की नक़ल करते हुएकहा और हलके से करनके इयर लोबस को चूम लिया।
करनने जवाब में बस रीत को कस के भींच लिया ...और उसके गालों को , होठों को चूमते हुए काटतेहुए बोला ....
“बहोत जोर से”
और फिर तो जैसे कोई बाँध टूट पड़ा ...कौन किसे जोर से भींच रहा था ...दबोच रहा था ...चूम रहा था…रीत करन में खो गयी थी और करन रीत में ...
दोनों एक दूसरे की प्रीत में ...न करन बचा न रीत ...सिर्फ दोनों की प्रीत बची थी ...
जहाज जमीन से ४०००० फीट ऊपर था ...तेजी से उदयपुर की ओर जारहा था ...और रीत समय के झोंके में बह रही थी ...
वो दिन ...जब वो करन को खो चुकीथी ....बनारस में बमब्लास्ट ...स्टेशन का सीन ...सब कुछ खोचुकी थी वो ...और आज ...उसने सर झटक के वो सब यादे एकदम से बाहर निकाल दी ...
और यादों के दूसरे झुरमुट मेंवो खो गयी ....करन के साथ मुलाकात के वो दीन ...जब वो साथ साथ कालेज के फंक्शन में डुएट गाते थे ....
बड़े अरमानो से रखा है बलम तेरी कसम ...प्यार की दुनिया में पहला कदम ...हो पहला कदम ...
करन के वो फूलों और शेरो से महकते प्रेमपत्र ...
सूना है उसे दिन को तितलियाँ सताती हैं ...सूना है रात को उसे जुगनू ठहरकर देखते हैं ..
और अब उसे करन के हाथ उसे सता रहे थे ...टाप उसका उठ चुका था और उसके जवानी के दोनों उभार अब करन की मुट्ठी में थे ...
जवानी भी अजीब चीजहै लूटने वालेको तरसती है ..
और आज आ गया था ...जिंदगी की सारी लड़ाइयों को जीत के लूटनेवाला ...
लूटले ...वो भी अब लुटाने का एक पल खोना नहीं चाहती थी
रीत के जवानी के गोल मस्त गदराये किशोर उभार, गद्दर जोबन ..
करन के बेसबरे बेताब हाथ , पहले तो उस हाल चाल पूछते रहे सहलाते रहे और ,फिर कचकचा के दबोच लिया मसल दिया ...
मस्ती में रीत के उरोज पथरा गए थे ...उस के निपल भी आज साजन के स्वागत में खड़े ,कड़े हो गए थे ...और वो भी कब तक बचते ..करन के अंगूठे और तर्जनी ने उन्हें रोल करना शुरू कर दिया ...पिंच कर लिया ..
रीत भी आज पीछे रहने वाली नहींथी . उसने करन के चेहरे को दोनों हाथों से जोर से पकड़ा ....और चुम्बन के बाद चुम्बन ...अपने फागुनी गुलाबी रसीले होंठो में उसने करन के होंठो को भींच रखा था ...और चूम रही थी चूस रही थी ...मानो कह रही ...मेरे बेसबरे बालम ...अब कहीं भी कभी भी नहीं जाने दूँगी तूझे ...इन प्यासे होंठो से दूर ...और थोड़ी देर में करन की जीभ भी अपनी प्यारी के मखमली मुंह के भीतर घुस कर स्वाद ले रही थी ...
करन ने रीत के टाप को उठा रखा था तो रीत करन के शर्ट को क्यों छोड़ती ...
पागल तो दोनों थे ...
पहले बटनें खुली फिर शर्ट ...
और अब सजनी के उभार की छाती से दबे कुचले जा रहे थे ...और करन की उंगलिया रीत की केले के पत्ते की तरह चिकनी , गोरी स्निग्ध पीठ सहला रही थी उनका स्वाद ले रही थी ...और उसे भींच रही थी अपनी ओर ...
वो भी अब रीत को अपने दिल की धड़कन से दूर एक पल के लिए नहीं जाने देने वाला था ...
लेकिन एक उसका नदीदा हाथ ओंठों ...अभी भी रीत के रसीले जोबन का स्वाद ले रहा था , मसल रहा था रगड़ रहा था ...
करन के होंठ क्यों पीछे रहते ..एक पल के लिए रीत के ओंठों ने उन्हें छोड़ा ...और वो सीधे रीत के गदराये गुदाज उभारों पे ...पहले हलके हलके चुम्बन ...फिर छोटी सी बाईट और फिर रीत के कड़ेगुलाबी निपल उनके बीच ...चुभलाते चूसते जीभ से फ्लिक करते ...
जहाज उदयपुर की ओर उड़ा जा रहा था ...
रीत मस्ती में उडी जा रही थी ...
उसकी देह शिथिल हो गयी थी ...
साँसे लम्बी हो रही थी और करन ने भरतपुर में सेंध लगाने की पहल कर दी ...
रीत की दोनों बाहें , अपने प्रेम बन्ध में करन को बांधे हुए थीं ...और करन के पीठ और सीट के बीच में दबी हुयी थीं .
कुछ ही देर में रीत की प्यारी पजामी सरक कर उसकी गोरी चिकनी जांघो के नीचे घुटने तक पहुँच गयी थी .
करन का हाथ अब सीधे लेसी गुलाबी पैंटी के ऊपर से उसकी प्यारी रामप्यारी को सहलाने मनाने फुसलाने में लग गयी था . थोड़ी देर तो रीत शरमाई , झिझकी ...
पर अब उसकी देह उसकी कहाँ थी . जब मन पे करन कब्ज़ा जमा लिया था तो बिचारी देह की क्या बिसात ...और थोड़ी देर में ही रीत की जांघे भी खुल के बिछुड़े बालम का स्वागत करने लगी .
करन को चौसठों कलाएं आती थी।
उसने थोडा सा उचकाया और रीत अब सीधे उसकी गोद में ..सीधे पेंट फाड़ते ..बालिश्त भर के मस्त मुस्टंडे के ऊपर ...
मन तो रीत का भी कर रहां था उसे देखने का लेकिन वह कैसे पहल करे ...करन ने खींच के खुद रीत की गुलाबी हथेली अपने जिपर के ऊपर रख दी ...
कुछ देर तक तो वो सकुचाई ...लेकिन वो समझ रही थी करन का मन ...और उसने जिपर खोल दिया ...और पिटारे से नाग बाहर आ गया ...खूब कडियल मोटा फुफकारता ...
अपनी बिल में घुसने को बेचैन ...और अबकी रीत ने खुद उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश की ...लेकिन वो उसकी मुट्ठी से कहीं ज्यादा मोटा था ..
" मोटा मुस्टंडा ...." रीत ने चिढाया .
" जैसा भी है तेरा है ..."
करन ने हंस के जवाब दिया और साथ में रीत की पैंटी भी पजामी के साथ घुटने तक ...और वो 'मुस्टंडा ' सीधेरीत के पिछवाड़े रगड़ कसर मसर कर रहा था ...वो नितम्ब ...जिन्होंने सारे बनारस को दीवाना बना रखा था ...करन की गोद में थे ...
करन ने एक बार फिर पोजीशन बदली और रीत की पीठ अब उसकी ओर थी . उसके हाथो में रीत के मस्त जोबन ...और उसका मुस्टंडा रीत के चूतडों के बीच रगड़ता ...अब सीधे भरतपुर के मुहाने पे ठोकर मार रहा था ..
रीत भी अच्छी तरह पनिया गयी थी ...उसकी परी फुदक रही थी ...उड़ने को बेचैन ...
बस वो ये सोच रही थी की उसने अपना पर्स इत्ता दूर क्यों रखा जिसमें दूबे भाभी ने चलते समय वैसलीन की बड़ी वाली शीशी रखी थी ...और बोला था ननद रानी लौटने तक ये पूरी खाली हो जानी चाहिए
करन व्याकुल हो रहा था ...दोनों हाथ कस के जोबन मर्दन में लगे थे कभी वो मसलता रगड़ता तो कभी निपल कस के पिंच कर लेता और रीत कुछ दर्द से कुछ मजे से ..चीख पड़ती ...सिसक उठती
" उयीईईईईईईइ ..."
इस दर्द के लिए तो उसके किशोर उरोज बेसबरे हो रहे थे ...
और नीचे रीत की प्यारी परी भी अपनी पारी खेलने के लिए बेताब हो रही थी ..
.गीली तो पहले ही हो चुकी थी अब जोर जोर से फुदक रही थी ...और उपर से करन का मुस्टंडा ...रीत के गोर गोल गोल नितम्बो के नीचे रगड़ रगड़ कर आग लगा रहा था ...कई बार उसका मुंह प्यारी गुलाबी परी को चूम लेता ...
रीत की हाँ तो गीली परी से ही मालूम हो रही थी ...
चलने के पहले दूबे भाभी ने भी हाँ कर दी थी ...
तो बसन्ती भी राजी , मौसी भी राजी ...अब तो बस ..
करन ने अपनी गोद में बैठी रीत के दोनों पैर अपने पैर डाल के अच्छी तरह फैला दिए ...
और अब उसकी हथेली सीधे भरतपुर स्टेशन पर जा के रुकी ...पहले तो उसने रसमलाई को हलके से सहलाया , फिर दबोचा ...और जब नहीं रहा गया तो घच्च से अपनी तरजनी उसकी कच्ची चूत में पेल दी ..
बड़ी मुश्किल से रीत ने दांतों से अपने होंठ काट के चीख रोकी ...
जहाज में तो वो दोनों अकेले थे ...लेकिन काकपिट पास में ही थी ...कही पायलट ना सुन ले ...
जहाज उदयपुर की ओर उड़ा जा रहा था ...जमीन से चालीस हजार फीट की ऊँचाई पे ...
और रीत और करन के तन मन दोनों उड़ रहे थे ...
उसके गुलाबी गालों पे हलके से बाईट ले के ...करन बोला
जानू मेरे पायलट को अपने काक पिट में जगह दे दो न
लेकिन जवाब उसकी गोरी चिकनी जांघो ने दिया खुद स्वागत में बांहे फैला कर,
लाल किले के दरवाजे अपने आप खुल रहे थे ...और करन की उंगलियों ने भी उसकी पुत्तियाँ फैला दी ,
थोडा सा उसके नितम्बो को उचकाया और अब वो मोटा , बित्ते भर लंबा मुस्टंडा रीत की परी के अधखुले होंठो पे प्यार से किस्सी ले रहा था ...
बस भरतपुर लूटने ही वाला था ...
रीत की सपनों से लदी पलकें आने वालो पलों के इन्तजार में मुंद रही थी ...
पर ...
तभी जहाज किसी एयर पाकेट में घुस गया ...जोर का टर्ब्युलेन्स ...
और स्क्रीन पर सीट बेल्ट का संकेत आ गया और पायलट का एनाउंसमेंट भी ...सीट बेल्ट बाँध ल़ेने का निर्देश और ये भी की ये हालत दस मिनट तक रहेगी ... अगले ही पल रीत अपनी सीट पर थी सीट बेल्ट से जूझती ...
मन उसका बुझ सा गया था ...ऐन मौके ..पे ..मेरे साथ ही क्यों ...
लेकिन सजनी के मन को साजन से ज्यादा कौन जानता है ...
कमर बंधी थी ...हाथ तो खुले थे और बीच का आर्म रेस्ट भी ...
करन का हाथ जो रीत क कंधे पे था .. फिर से उसके उरोजों पे पहुँच गया था ...उसने रीत को अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठ सीधे रीत के दहकते गुलाबों पे ...कभी होंठो पे कभी गालों पे ...
जब सूर्खिए-गुलशन का कभी जिक्र हुआ है,
तेरे लबो-रूखसार की बात आ ही गई है।
करन ने रीत के कानों में बोला ...और रीत के रुखसार एक बार फिर दहक उठे ...
जहाज के झटके अब थोड़े कम हो गए थे ...लेकिन रीत अब फिर करन की बांहों में खो चुकी थी ...
करन ने एक हाथ से उसके सर को पकड़ रखा था और अब छोटे छोटे चुम्बन ...डीप फ्रेंच किस में बदल चुके थे ...रीत के होंठों ने करन की जीभ को गपुच लिया था और हलके हलके चूस रही थी ...और करन उसके होंठों को ...
उसका मुस्टंडा अभी भी बाहर था सर उठाये तन्नाया ..कड़ा मस्त
रीत का हाथ अपने आप वहां पहुँच गया ...आखिर उसके इस हालत के लिए जिम्मेदार भी तो वही थी ..
पहले छुआ , फिर हलके से सहलाया और थोड़ी देर में .वो उसके काबू मेंथा ..,
कभी वो उसे आगे पीछे करती ...कभी खुले सुपाडे को तरजनी से दबा देती , रगड़ देती ...
अब एक बार फिर दोनों मस्ती में डूब गए थे ...जहाज के झटके कब के बंद हो गए थे ...
सामने स्क्रीन पे आया ...उदयपुर चालीस मिनट ...
दोनों ने एक साथ देखा और हलके से करन ने रीत का सर नीचे झुकाने की कोशिश की ..
रीत करन का मन समझ गयी ...मुस्कराई
और उस की मचलती शरारती आँखों ने कहा ....हिलना मत जरा सा भी ...
मुस्टंडा तना हुआ था ...टनटनाया ....
रीत ने जरा सा झुक के के ...अपनी लम्बी जीभ निकाल के ...लालीपाप की एक लिक ले ली ...जैसे सहेलियां आपस में शेयर करती ...एक छोटी सी लिक ..
और फिर सर उठा के करन को देखा ....
करन बस पागल नहीं हुआ था ...
करन की इस ख़ुशी के लिए तो रीत सब कुछ कुर्बान कर सकती थी ...
वो बिंदास बनारसी बाला कुछ और झुकी ...
सडप सड़प ...
अबकी उसी लम्बी जीभ ने उस पागल प्यासे मुस्टंडे के सर के चारो ओर , प्यार से चाट लिया ...
और फिर वो ट्रिक ...जीभ के टिप से करन के पी होल में उसने सुरसुरी कर दी ...
करन से रहा नहीं जा रहा था ..उसने रीत के सर को थोड़ा और पुश किया ...और
जैसे कोई बाज झपट के शिकार अपने कब्जे में कर ले ..
उसका गुस्साया जोश से पागल , पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाडा ...रसीली रीत के मुंह में था ...
कुछ देर तक तो वो बस ऐसे ही मुंह में लिए .रही ...करन को तडपाती ...फिर धीरे धीरे ..उसने चाटना , चुभलाना और चुसना शुरू कर दिया ...
रीत की लम्बी उंगलिया क्यों पीछे रहती ...वो भी तो करन की दीवानी थीं ...
वो सीधे लिंग के बेस पे पहले हलके से पकड़ा , दबाया ...फिर लिंग आगे पीछे करना शुरू कर दिया ...
दो उंगलिया लिंग के बेस पे थीं ...बाकी अब बाल्स तक पहुच गयी सहलाते , छेड़ते ..आखिर पुरुष रस की फैक्ट्री तो वहीँ है
साथ ही रीत के होंठो ने लिंग पे जोर बढ़ा दिया था। अब वो पूरे जोश से चूस रही थी।
उसके गुलाबी रसीले होंठ लिंग से रगड़ रगड़ कर ऊपर नीचे हो रहे थे . साथ में उसकी मखमली जुबान नीचे से करन के मस्त लिंग को चाट रही थी . और साथ में डिम्पल वाले गुलाबी गाल वैक्यूम पम्प से भी ज्यादा जोर से चूस रहे थे . आधे से ज्यादा लिंग अब रीत के मुंह में था।
रीत के लाख कोशिश करने के बावजूद अभी आधे से थोड़ा ज्यादा ही मुंह में ले पा रही थी ..
था भी तो उसका बांस ऐसा लम्बा ...
करन के हाथ का प्रेशर का अभी भी उसके सर पे था ...
तभी एक हल्का सा झटका लगा ...और शायद कोई टर्ब्युलेन्स ...और करन के हाथ का प्रेशर भी बाद गया ...
और पूरा का पूरा अन्दर ..सीधे गले तक ...बल्कि गले के अन्दर ...
रीत ने चोकिंग सेंसेशन पे काबू किया ....और कुछ देर में गों गों करते हुए भी सक कर रही थी ...उसके गाल एकदम थक गए थे ...पूरी तरह करन के मोटे लिंग से फूले ...रीत की आँखे भी बाहर निकली पड रही थी ...
करन भी रीत के मोटे गद्दर जोबन को अब कस कस के दबा रहा था मसल रहा था ...उसका दूसरा हाथ रीत की परी पे था ...एक ऊँगली अन्दर ...और रसमलाई का रस भी निकला रहा था
रीत पूरी ताकत से चूस रही थी साथ में ...उसकी लम्बी उंगलिया लिंग कोष को छेड़ रही थीं सहला रही थी ...
एक अनाउन्समेंट हुआ ..हम दस मिनट में उदयपुर पहुँच रहे हैं
करन की उँगलियों की रफ्तार तेज हो गयी
रीत की परी मस्ती में उड़ रही थी ...
रीत ने भी तेजी से अपने होंठ ऊपर नीचे करने शुरू कर दिए ...और साथ में उसकी उँगलियाँ भी अब लिंग पे चल रही थी
पहले रीत झड़ी ...
रीत ने जोर से करन के लिंग के बेस को दबाया ...वो बहुत जोर से काँप रहा था ...उसकी जीभ पे करन के प्री कम का स्वाद लग चुका था ...फिर ...ज्वालामुखी फूट पड़ा ...
इत्ते दिनों का इन्तजार ...बेकरारी ...रीत ने सब कुछ अपने मुन्ह में रोप लिया ...
तभी फिर घोषणा हुयी सीट बेल्ट की और जहाज ने नीचे उतरना शुरू कर दिया ..
इन सबसे बेखबर रीत पी रही ...थी यौवन का रस ...
कम से अंजुरी भर मलाई रही होगी ...गाढ़ी थक्केदार ...
जब रीत ने सर उठाया तो जहाज रन वे पे दौड़ रहा था ...
जल्दी जल्दी ..रीत ने अपनी पजामी का नाडा बाँधा , कुर्ती नीचे की
और उसी के साथ असिस्टेंट पायलट बाहर आ गया ..
" आशा करता हूँ आप दोनों की यात्रा सुखद रही होगी ...कंट्रोल रूम से मेसेज आया है एसपी उदयपुर की गाडी रनवे पे ही आ रही है ...वो आप दोनों को पिक अप करेंगे और आगे के लिए बताएँगे ."
" आशा करता हूँ आप दोनों की यात्रा सुखद रही होगी ...कंट्रोल रूम से मेसेज आया है एसपी उदयपुर की गाडी रनवे पे ही आ रही है ...वो आप दोनों को पिक अप करेंगे और आगे के लिए बताएँगे ."
वो जैसे ही फिर काकपिट में जाने के लिए मुडा ...
करन ने उसे एक टिशू पेपर पकड़ाया और शीशे की और इशारा किया ..
रीत के होंठों के किनारे एक सफेद थक्का अभी भी लगा था ...बड़ा सा ..
रीत ने टिशु पेपर उसे उन्ह कह के वापस किया और ...जीभ निकाल के उसे चाट लिया ...
और अब रीत की बारी थी चिढाने की ...उसने करन की उँगलियों की ओर इशारा किया ...वो रसमलाई के रस से चमक रही थी ...रसीली रीत की रस भरी रसमलाई के रस से ...
और करन ने मुंह में ले के उसे अच्छी तरह चाट लिया
नदीदे ...रीत बोली .
तब तक जहाज रुक गया था और उस के दरवाजे खुल गए ...
नीचे रन वे पे ही एक सफेद अम्बेसेडर खड़ी थी
सफेद अम्बेसडर में उदयपुर के एस पी खुद ड्राइविंग सीट पे थे . करन उनके साथ जा के बैठ गया या रीत पीछे .
उन्होंने रीत को एक बाक्स दिया जिसमें कुछ मेक अप का सामान था और कुछ ज्वेलरी . रीत और करन का कवर था की वो दोनों हनीमूनर्स है और साथ में फैशन फ़ोटोग्राफर्स ...करन के लिए वो कुछ कैमरे लाये थे
...और साथ में बडौदा के डिटेल्ड प्लान ...और जो कुछ भी इन्फो उन दोनों के बनारस से चलने के बाद मिली थी वो ...
पीछे की सीट पे रीत मेक अप में लगी थी और आगे वो करन को ब्रीफ कर रहे थे .
रेलवे स्टेशन एयरपोर्ट से दस बारह मिनट की ड्राइव पे था .
कल शाम को डी बी के यहाँ हुयी मीटिंग में यही तय हुआ था की वो लोग बडौदा सीधे नहीं जायेंगे और गुजरात गवर्मेंट की फैसिलिटीज नहीं इस्तेमाल करेंगे . सारे लाजिस्टिक अरेंजमेंट सेन्ट्रल गवर्मेंट के होंगे ...
इसिलिए वो बी एस एफ के प्लेन से उदयपुर आये थे और रेलवे के एक पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग की एक लक्जरी ट्रेन से बडौदा पहुंचेंगे .
वहां उनके रहने का अरेंजेमेंट भी या तो उसी ट्रेन में या गुजरात रिफायनरी के ( जो आई ओ सी की है ) रेस्ट हाउस में किया गया था।
इसके दो कारण थे , एक तो गुजरात सरकार के साथ कोआर्डिनेशन इशुज ...लेकिन सबसे बड़ा डर उनको था की अगर कोई मोल लोकल पुलिस में हुआ तो बडौदा के साथ मुम्बई का आपरेशन भी खतरे में पड जाएगा . हाँ , बडौदा के पुलिस कमिशनर ने जरूर ये भरोसा दिलाया था की वो पूरी तरह को कोआपरेट करेंगे ... वो पहले सी बी आई में डी आई जी रह चुके थे और फिर ये तय हुआ था की ...करन बड़ोदा पहुँचने के दो घंटे बाद उन्हें कान्टेक्ट करेगा .
एस पी ने ये बताया की महाराजा एक्सप्रेस का डिपारचर रात में साढ़े बारह बजे था ...लेकिन उसे दो बजे तक के लिए पोस्टपोन कर दिया गया है ...ट्रेन तैयार है और उनके गाडी पे पहुँचते ही वो स्टार्ट हो जायेगी .
रीत तैयार हो रही थी थी लेकिन करन और एस पी की बात भी सुन रही थी ...
उसने बहुत पहले ये पढ़ा था की ये हिन्दुस्तान की सबसे महँगी लक्जरी ट्रेन है ...पर उसने कभी नहीं सोचा था की वो इसमें चलेगी वो भी करन के साथ.
तब तक वो लोग स्टेशन पहुँच गए ..रात का सन्नाटा सूनसान सड़क ...
और प्लेटफार्म पर भी चुप्पी पसरी ...महाराजा एक्सप्रेस प्लेटफार्म पे खड़ी थी ...सारे डिब्बों में अँधेरा था सिवाय एक के ..
महाराजा एक्सप्रेस में तेइस डब्बे हैं जिसमें सिर्फ चौदह पर्यटकों के लिए इस्तेमाल होते हैं .
बाकी डिब्बो में दो रेस्टोरेन्ट , बार , लाउंज इत्यादि हैं. चौदह डिब्बों में से पांच डीलक्स कार , छ जूनियर स्यूट , दो स्यूट और एक प्रेसिडेंशियल स्यूट हैं।
सबसे छोटा डीलक्स केबिन भी एक सौ बारह वर्ग फिट का है , जिसमें अटैच बाथ , एल सी डी टीवी है . जूनियर स्यूट में ज्यादा जगह है करीब डेढ़ सौ वर्ग फिट लेकिन स्यूट में लगता नहीं की आप ट्रेन में है क्योंकि इसमें कमरे से है एक लिविंग रूम सोफे और एक मेंज। बेड रूम में इसमें जो बाथ रूम लगा हुआ है उसमें शावर के साथ बाथटब भी है . सभी डिब्बों में इन्टरनेट , टेलीफोन इत्यादि भी हैं .
कार ने प्लेटफार्म के बाहर छोड़ दिया .
रीत को देख के कोई कह नहीं सकता था की हनीमून के लिए आई दुल्हन नहीं है ...उस मेकअप बाक्स का इस्तेमाल कर के ..सुहाग के सारे चिन्ह ...माथे पे बड़ी सी बिंदी , कुहनी तक चूड़ियाँ और बीच में बड़े बड़े चूड़े , पैरों में बिछुए , पायल वो भी घुँघर वाली ...
ट्रेन का बीच वाला डिब्बा रेलवे ने उनके लिए तय किया था ...और सिर्फ उसी में रौशनी थी .
डिब्बे के दरवाजे पे खड़ी होस्टेस ने उनका स्वागत किया
मैं वान्या ...मुस्कराकर उसने पहले रीत से फिर करन से हाथ मिलाया।
खूब गोरी , डिजाइनर लाल काली सिल्क साडी में ...तीन इंच की हाई हिल की सैंडल ...लेकिन उसके बिना भी उसकी उंचाई पांच सात से कम तो नहीं थी ...काजल, स्कारलेट लिपस्टिक , हाई चिक बोन्स ,
लो स्लीव्स का ब्लाउज , लम्बे पेंटेड नाख़ून ..
वह उन दोनों को अन्दर ले गयी गयी।
वो स्यूट प्रेसिडेंशियल स्यूट था .
एंट्रेंस लाबी में घुसते ही दोनों की आँखे फटी रह गयी ...लग्जरी री डीफाइन्ड ..
खूबसूरत सोफा टेबल ..लग ही नहीं रहा था की वो ट्रेन में है ..ब्रास का बड़ा सा लैम्प , फ्लावर पाट ...
उसने दोनों को सोफे पे बैठने का संकेत किया और सामान अन्दर ले गयी ...और एक ट्रे में दो गिलास पानी ले आई।
पानी दे के उसने पूछा ..ड्रिंक्स ..
नहीं बस सोयेंगे ..रीत ने जुम्हाई लेते हुए कहा ...
वान्या हलके से मुस्कराई
तब तक ट्रेन चल पड़ी थी .लेकिन ज़रा भी शोर या झटका नहीं पता चल रहा था .
श्योर ...लेट मी टेक यू टू बेड रूम ...
रीत को विश्वास नहीं हुआ ..
एक बड़ा सा बेड रूम ....और उसमें एक डबल बेड टीक वूड का पीछे नाईट लैम्प लगे हुए ...लेकिन उससे भी मजेदार बात ये थी ...कमरे को सुहाग रात के कमरे की तरह , मोगरे, चमेली और जूही के फूलों से सजाया गया था ...
वान्या ने मुस्कराकर रीत से कान में हलके से कहा की ...वी रेयरली गेट हनीमूनर्स ....एंड आई डिड इट ..
करन बाथ रूम में फ्रेश होने चला गया था ...
वान्या ने एक वार्ड रॉब खोल के दिखाया ...और रीत की एक परेशानी सुलझ गयी ...
नाईट ड्रेस ..शियर पिंक नाइटी , नेग्लीजी , बेबी डाल और ब्राइडल लिंगरी ...सब विक्टोरिया सीक्रेट की करन के लिए भी कुरता पाजामा
वान्या बोली ..काम्प्लिमेंट्स फ्राम अवर कंपनी
वान्या ने पूछा ...बेड टी कितने बजे ...बाकी टूरिस्ट ...चाम्पानेर वर्ड हेरिटेज साईट के लिए नौ बजे निकल जायेंगे ...और वहां से वाइल्ड लाइफ पार्क और शाम को पैलेस में इवनिंग टी
रीत और करन का तो प्रोग्राम कुछ और ही था ...वो बोली ...नहीं इन्हें कुछ बडौदा में ही शूटिग करनी है ..शाम को हम लोग बाकी ग्रुप के साथ पैलेस में ज्वाइन कर लेंगे ...
वान्या के जाने के बाद रीत ने नोटिस किया दो ग्लास में दूध और उपर से केसर पड़ी ...साथ में एक चांदी की प्लेट में पान .
रीत ने एक साटिन की गुलाबी नेग्लीजी पहनी और बिस्तर में रजाई के अन्दर घुस गयी सिर्फ नाईट लैम्प छोड़ कर उसने बाकी बत्तियां भी बुझा दी .
करन बाथ रूम से निकला और उसने भी कुर्ता पाजामा पहन लिया और रजाई के अन्दर घुस गया ...दोनों को मालूम था बहुत देर तक न कुरता पजामा रहेगा और न नेग्लीजी ...
रीत का शक एकदम सही था करन ने दस मिनट में ही उसकी नेग्लीजी तो उतर ही गयी थी , करन का कुरता पाजामा भी जमीन पे था .
बस रीत ने एक अकलमंदी की थी की दूबे भाभी की दी हुयी वेसलिन की बड़ी शीशी , निकाल कर तकिये के नीचे इस तरह रख ली ...की बस जरा सा भी तकिया सरके ...तो वो वेसलिन की शीशी नजर आ जाए .
लड़कों का क्या भरोसा ...उस समय तो बस उनके दिमाग में एक ही बात रहती है ...
कैसे सटाओ , घुसाओ ..और करन तो और एकदम बुद्धू है ...फिर उस का मुस्टंडा ...कितना मोटा है ...उसकी कलाई जितना तो होगा ही ...वो तो डर ही गयी थी ...
लेकिन उसे दूबे भाभी की सीख याद आ गयी ,
" अरे ननद रानी ...तू इ चूत महरानी क महिमा ना जानत हौ ..सारी दुनिया तो उन्ही से निकलत है ...इतना मोट मोट बच्चा ...त केतना मोट लंड होय ...उ घोंट ही लिहें ..'
करन उस की जांघो के बीच बदला ले रहा था ... जैसे जहाज में वो उसके मुस्टंडे को ले कर प्यार दुलार कर रही थी ...उसी तरह वो अब उसकी परी को ...कभी चूमता कभी चाटता ...
नदीदा ...
उसकी रसमलाई का रस जम के चूस रहा था ...जैसे कित्ते दिन बाद मिठाई मिली हो ...भूखा ..
भूखी तो उसकी देह भी थी ...मन तो उसका कब से करन के कब्जे में था ...और अब देह भी ...जहाँ जहाँ उसकी ऊँगली पड़ती ...रीत की देह का वो हिस्सा करन का हो उठता ...और अब उसकी गुलाबी परी भी अपनी बांहे फैलाए ...
उसके योनी पटल करन की उँगलियों की जादुई छुवन से अपने आप खुल गए थे ...और अब करन की जीभ कभी उनके अन्दर कभी उनके ऊपर ...
लपर लपर ...सपड सपड
चाट रही थी .
और जब करन उसके दोनों निचले होंठो को मुंह में ले के जोर से चूस लेता तो रीत सिसक उठती , उछल पड़ती
करन पूरा रसिया था ...नवल खिलाड़ी ..
कभी वो जीभ से पूरी तरह नीचे से ऊपर तक रीत की 'सहेली' को चाट लेता तो कभी जीभ की नोक से दोनों भगोष्ठों को हलके से अलग कर देता ...और जीभ की टिप से सुरसुरी कर देता ..
तो कभी होंठो के बीच उसके जादुई बटन को , पिंकी को ले के हलके चूसता चुभलाता ...उसका एक हाथ तो जुबान का साथ दे रहा था ..भरी हुयी पुत्तियों को पकड़ने, रगड़ने मसलने में लेकिन दूसरे ने रीत के किशोर अनावृत्त उभारों को दबोच रखा था ...कभी दबाता , मसलता , तो कभी कड़े , खड़े निपल को फ्लिक कर देता ...
गाडी ...रति दग्ध नायिका की तरह सब भूल अपने गंतव्य की ओर चली जा आरही थी ...जैसे बरसात में जोश से भरी नदी ..सागर की ओर जाने को बेताब रहती है ...
और रीत भी रति के मद में ...सब कुछ भूल ...कभी वो पलंग पे अपने भारी नितम्ब रगडती ...
कभी करन को धक्का दे दूर करने की कोशिश करती ...तो कभी खुद पागलों की तरह उसके बाल पकड़ के उसका सर अपनी जांघो के बीच दबा देती ...अपनी रसीली परी पे रगड़ देती ...
उधर करन का मुस्टंडा पागल हो रहा था , बेताब था ...जल रहा था जीभ से ...
बात करने का रस तो लेती ही है ये , चूमने चाटने का भी और अब ...परी का सब मजा अकेले अकेले ...
उधर परी भी तो बेताब थी मुस्टंडे से मिलने को , डर भी लग रहा था उसकी मोटाई देख के लेकिन मन भी कर रहा था ...
करन ने जैसे ही रीत के गुलाबी लजीले रसीले होंठों को अपने होंठो से बंद किया , जोर से भींच के और अपने एक हाथ से उसकी दोनों नरम कलाइयों को कस के पकड़ लिया ...रीत ने मौसम का हाल पढ़ लिया ...जोर का तूफान आने वाला है ...
उसकी कमल सी आँखे अपने आप सिहर कर बंद हो गयी ...
लेकिन प्यार बंद आखों से भी देखने की ताकत दे देता है ...
करन ने दूबे भाभी की दी हुयी वेसलिन की शीशी को खोला और ढेर सारा वेसलिन अपने मुस्टंडे के मुंड पे लगा लिया ...और फिर थोडा और लिथड लिया. दो उंगलिया वेसलिन से पुती उसने रीत की पुत्तियों को खोल कर अन्दर तक लगा लिया...
रीत सिहर रही थी सिसक रही थी मन में डर भी लग रहा था और ललक भी हो रही थी ..कब ..
रीत की दोनों लम्बी गोरी टाँगे , करन के कंधे पे चढ़ी थी ...
बुरा हो उस वान्या की बच्ची का ...कित्ते तो तकिये कुशन उसने पलंग पे रखे थे ...
करन ने दो तीन मोटे कुशन उस के नितम्बों के नीचे लगाकर , उन्हें खूब अच्छी तरह ऊपर उठा दिया ...रीत की दोनों कलाइयां करन ने जोर से पकड़ रखी थीं .
पहले धक्के में ही रीत की आधे दर्जन से ज्यादा चूड़ियां , चुरुरमुरूर करती टूट गयीं ....
दर्द से उसके जोड़ जोड़ हिल गए लेकिन अपने होंठो को दांतों से जोर से काट के वो सारा दर्द पी गयी ...और वैसे भी उसके होंठ करन ने अच्छी तरह से सील कर रखे थे ...
मुस्टंडे का मोटा गोल मटोल मुंड अभी भी आधा बाहर था ...
करन मस्ती से पागल हो रहा था और उससे भी ज्यादा उसका मुस्टंडा
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फागुन के दिन चार--104
गतांक से आगे ...........
मुझे भाभियों की टीम में शामिल कर लिया गया था और ...मिश्रायिन भाभी ...सबसे ये बोलती थी की मैं भाभी के मायके की हूँ ...
होली का माहौल मोहल्ले में और भी रंगीन था ...
और जब हम लोगों की टोली घर से निकली जोबन के मद से मदमाती , गदराती, खेली खायी भाभियां , तितली सी उड़ती , चिड़िया सी चहकती , उछलती , मचलती , उनकी ननदे और लड़कियां ...
पुराना जमाना होता तो राजा इन्दर के अखाड़े की , लाल परी और सब्ज परी की उपमा शायद ठीक होती ...लेकिन अभी तो ये कहा जा सकता है की जैसे किसी चैनेल की या फिल्मी होली पार्टी से स्टार होने वाली स्टार रंगों में लथपथ निकलती है ...बस इसी तरह रंग के साथ भंग और वोदका और रम के नशे में चूर ...
फरक सिर्फ ये था की ...इस टोली की होली ...तन और मन की भी हुयी थी ...शायद ही किसी के कपडे फटने से बचे हो और जो थोड़े बहूत थे ...वो बस सारे उभारों से चिपके , कटावों को झलकाते और आग लग रहा थे ...सब लाल गुलाल लग रहा था पलाश के दहकते , जलते वन ही चले आ रहे हो हों ...
वो गाल जिन्हें छूने के लिए सूरज की किरणे भी इजाजत मांगती थी , जिन्हें देख के गुलाब भी शरमा जाते थे ..जिनके बारे में ये कहा जाता था ..
अल्लारे उनके फूलों-से गालों की ताजगी,
धूप आइने की देखकर कुम्हलाये जाती है।
वो रंगों से लाल पीले ...खूब रगड़े मसले रुखसार होली की मस्ती से दहक़ रहे थे ...
जिन स्कूल जाती लड़कियों से नए आये जोबन का उभार , निखार सम्हाले नहीं सम्हलता था ...बार बार दुपट्टा इस कदर इस रूप से डालती थी की किसी लड़के की नजर न पड जाए ..भाभियों ने उनके जोबन ऐसे लुटे थे ...अब दुपट्टे और ब्रा ने तो साथ छोड़ा ..टाप , फ्राक भी फटी चिथड़ी , रंगों से चिपकी , उन नए आये उभारों को नुमायाँ ज्यादा कर रही ... और छुपा कम रही थी
और उनके चलने का अंदाज भी बता रहा थी की इस होली में वो कैशोर्य के आँगन से बाहर निकल , भोलेपन की दहलीज पार कर अब शोख अदाओं , छेड़खानी और मनुहार के , इस तरह से ना कहने की अदा की अगला समझ जाय की वो हाँ ही है , जवानी के मजे लेने की मस्त दुनिया में आ गयी थींऔर छुपा कम रही थी गौने के रात की बाद दुल्हन की जो हाल होती है ...उसे लगता है हर निगाह उसकी रात की गुस्ताखियों का शोखियों का हर कदम के साथ स्वाद ले रही है , आज बिरज में होरी रे रसिया ...होरी रे रसिया बरजोरी से रसिया
अपने अपने घर से निकरी कोई सांवर कोई गोरी रे रसिया
और घर से बाहर निकलते ही ...होली है के नारे हुडदंगियों की टोली ...गली के दोनों और छतों पे जो लड़कियों औरतों का झुण्ड था ...बाल्टियों से पानी और रंग ...पिचकारियों की फुहारे ...रंगों भरे गुब्बारे ...
तन मन और गीला हो गया ...
मैं रीतू भाभी , लतिका और रीमा के साथ था
और गुड्डी सीधे मिश्रायिन भाभी की अंडर स्टडी के तौर पे ...और मिश्रायिन भाभी ने जो गुर आज तक किसी को नहीं सिखाये थे , अपनी इस पटु शिष्या को ना सिर्फ सिखाये बल्कि ...अपने सामने करवाए भी ...गुड्डी अपने से उम्र में चौदह साल बड़ी , शादी शुदा ससुराल से कबड्डी खेल कर आई , एक से एक तीस -बत्तीस साल की प्रौढ़ा , ननदों को भी पछाड़ रही थी ...लेस्बियन रेसलिंग , होली की गालियाँ हो या एक साथ होली की हु तू तू में अकेले ननदो के झुरमुट में घुस के दो चार के कपडे फाड़ के आना हो ...गुड्डी की जोश और स्फूर्ति और ...मिश्रायिन भाभी की ट्रेनिंग और ट्रिक ...उसके उम्र वाली कमसिन कन्याये तो वैसे ही हाथ खड़ी कर देतीं थी ...कर लो जो करना हो ....
लड़कियों की इस होली में आदमी नहीं घुसते थे ...हाँ दूर से देह से भीगे चिपके रंग से लथपथ कपड़ों में कटाव , उभार , झलकते हुए जोबन , एक दूसरे से जूझती औरतें लड़कियां , कपडे के अन्दर हाथ डाल कर गोलाईयां मिजवाती नापती, दबाती , मीजती , लडकिया ...वो देखना ही उनके लिए होली का अनन्य सुख था ..हाँ हम लोगों की टोली , पीछे के रास्ते से कालोनी में गयी तो इस लिए होली के हुडदंगियों , हुरियारों से तो हम बचे रहे ...लेकिन अगर कोई इक्का दुक्का कम उमर का लड़का पकड़ में आ गया तो भाभियाँ उसे रगड़े बिना नहीं छोड़ती थीं ..आखिर देवर जो लगता ...पेंट के अन्दर भी , आगे भी पीछे भी ...और उस से उस के बहन की नाम की दस पांच गालियाँ दिलवा के ही उसे छोड़तीं ...
लेकिन मेरा बड़ा फायदा हो गया , लतिका और रीमा के चलते ...कालोनी में जहां कोई रंगीन बाला दिखाती , जवानी के देहलीज पे खड़ी ..थोड़ी लजाती , सकुचाती , झिझकती , शरमाती ...उस की रगड़ाई और सब कुछ .'सिखाने दिखाने' का काम मेरा ...लतिका मुझे समझाती , उकसाती ...ये नीले फ्राक वाली , बहुत सीधी बनती है ...कहती है इसको ऐसी वैसी बातें पसंद नहीं ...लड़कों के नाम से कन्नी काटती है ...छूने को छोडो ..कोई लड़का कमेन्ट भी पास कर दे तो एफ आई आर ले के खड़ी हो जाती है ...बस दो चार भाभियाँ उसे दौड़तीं ...जैसे .हांका करते हैं ...वो हिरणी भाग कर लतिका और रीमा की और दौड़ती और मैं पीछे से उसे गपुच लेता ...मेरा बायाँ हाथ काफी होता उसके हाथ पकड़ने के लिए ...फिर मैं उसे थोड़ी देर छटपटाने देता ...और जब वो थक हार के ..खड़ी हो जाती ...तो पहले तो गोरे गोरे किशोर गालों का रस , और साथ में उसके कानो में ऐसी वैसी बातें जो वो अपनी सहेलियों से करने में शर्माती सकुचाती , गोलाइयों की नाप ..किसने और कितनो ने उसके जोबन का रस लूटा है ...वो धत्त धत्त करती रहती ...और मैं कहता चल कोई बात नहीं मैं खुद नाप लेता हूँ ...और फिर गीले देह सेपहले तो ऊपर से जोबन रस का सुख ...और फिर एक झटके में फ्राक के अंदर हाथ ..मुसीबत में जैसे दोस्त भी साथ छोड़ देते हैं ...उसी तरह ...फ्राक के बटन भी चट चट और मेरा हाथ अन्दर ....जो नीति भाभियों ने मेरे घर के आँगन में की थी ननदों को ब्रा के कवच से मुक्त करने की ..पहले वो और फिर गोरे कबूतर ...उन के पंख लाल पीले रंगे जाते ...पक्के रंगों से ...खास तौर पे जब उन कबूतरों की ललछांह चोंच मैं दबाता , दबोचता , तो जिस तरह वो सिसकती चीखती ...लतिका , रीमा से छुडाने की गुहार करती ...लेकिन वो दोनों शोख हंसती , मुझसे कहतीं की की जरा कबूतरों को हवा तो खिलाओ , पिंजरे से साल बरस के दिन , बाहर तो निकालो ...और मैं कौन होता था मना करने वाला ..चरर्र ...फ्राक का उपरी हिस्सा फट के मेरे हाथ मने , रंगा पुता कबूतर बाहर ...और साथ में लतिका और रीमा के हाथ में मोबाइल ...स्नैप स्नैप ...
उड़ने को बेताब गोर गुदाज कबूतर ...मेरे हाथों से दबे मसले जा रहे कबूतर ..
और फिर वो किशोरी कबूल कर लेती लतिका और रीमा के गैंग को ज्वाइन करने के लिए ...लेकिन बचत इतने से भी नहीं ...उसी के साथ मेरा दूसरा हाथ पैंटी का दुश्मन ...उसे भी अलग कर लेता और उंगलिया सीधे .. रसमलाई का रस ही नहीं लेती, उसे चाट चाट कर उसे दिखाती ...भरतपुर स्टेशन के अन्दर घुस कर जब तक वहां भी रंगाई पुताई न हो ...वो नहीं बचती ..
और फिर लतिका रीमा के साथ वो मिल कर अगला शिकार खुद पकड़वाती ...और ब्रा पैंटी फाड़ने का जिम्मा उसका ...जैसे कई चिट फंड स्कीम में होता ...की आप जिसे मेंबर बनायंगे , जब वो नया मेंबर बना लेगा तो आप का फायदा बस वही ...और फिर मोबाइल का इस्तेमाल ..अन कही धमकियां ..और असली बात लड़कियों के झुरमुट में होली के मंजर मने सब रंगी पुती भंग के नशे में मस्त ...कौन देखता है कौन क्या कर रहा है ...और जो पहरेदार थीं वो भी तो किसी और के साथ वही सब कर रही थीं ..
शायद ही कालोनी की कोई लडकी बची होगी जिसके उरोज कितने गदरा गएँ हैं , कटाव , उभार कैसे हैं ..मेरी उँगलियों ने नहीं देखा ...या रसमलाई का रस नहीं लिया ...जो बड़ी उम्र की लड़कियां या शादी शुदा ननदें थीं वो बाकी भाभियों के जिम्मे ...और कच्ची कली कचनार की ...को होली का रस और देह का सुख सिखाने की जिम्मेदारी मेरी…लेकिन ये वर्क डिस्ट्रीब्यूशन कोई पक्का नहीं था ...अगर कोई ज्यादा हाथ पैर मारती ...तो बस उस बछेडी के हाथ पैर बाँध के ...जो हालत मेरे आँगन में लतिका की हुयी थी वही सब गत ..भाभियों के सहयोग से उसकी ..भी ...हम लोग कुछ देर तो घर के बाहर होली खेलते ...और अगर किसी घर से कोई ननद भाभी निकलने में संकोच देर करती तो उसी के आँगन में घुस के ...और आँगन में तो और आड़ मिल जाती ...और अगर किसी नई नवेली भाभी को देख के मेरा मन मचलता तो मैं दल बदलने में कुछ भी संकोच नहीं करता ...और लतिका रीमा के ग्रुप में ..उस भाभी के साथ भी देह रस की होली ...उस घर से निकलने पे वहां की भी ननद भाभी साथ ...और फिर अगले घर में कपडे फाड़ने की जिम्मेदारी उनकी .
र घर में गुझिया भी खानी पड़ती और ठंडाई भी कहने की बात नहीं सब भांग से लैस ...
मन का रस , तन का रस होली का रस सब दूना ...
होली का समापन हुआ मिश्रायिन भाभी के घर में ...और बस ये समझिये ...की वहां जो हुआ न लिखने काबिल न पढ़ने के ...बस आप सोच सकते हैं की मेरे आंगन में जो हुआ था ...उसका आधा भी नहीं था ....जो अपने रिबन से रीमा और लतिका ने जंगबहादुर को बाँधा था ...उसे उन्ही दोनों ने मुक्त किया ..फर्क सिर्फ इतना था की ..किसी ने बोल दिया की दो बजे से शायद पानी चला जाएगा ..इसलिए ...आधे घंटे में ही हम वहां से निकल लिए लेकिन उन आधे घंटे में ...भाभियों ने ननदों की पकड पकड के रगड़ाई की अनगन में नचाया ..और फिर जोड़ा ...बना के ...देख तेरे भैया ऐसे करते है ..शायद कोई लिखता तो काम सूत्र में दो चार नए आसन जोड़ देता ..और कई के साथ तो दो दो ...चल मेरे मायके चलेगी ना ...तो मेरे दोनों भाई मिल के तेरे साथ ऐसे ...
जब हम घर पहुंचे तो होली के रंगों के साथ पानी जाने का डर भी था ...भैया आ चुके थे और नहा धो के अपने कमरे में ऊपर ..
दो बाथ रूम थे नहाने वाले चार ...मैं , गुड्डी , शीला भाभी और मेरी भाभी ( मंजू बाहर अपने कमरे में चली गयी थी ).
बस बीस मिनट रह गए थे पानी जाने में ...
भाभी ने एक बाथ रूम का दरवाजा खोल के मुझे ठेला और फिर गुड्डी को और दरवाजा बंद कर दिया ...दूसरे में वो और शीला भाभी साथ साथ नहाने चली गयीं
गुड्डी पे भांग का जबर्दस्त नशा चढ़ा था ...
मेरे गाल पे पिंच करके बोली ...यार तू साल्ली इतना जबर्दस्त माल लग रही थी ना ...आज पहली बार मुझे अफसोस हुआ की मैं लड़का क्यों ना हुयी ...
मैंने उसे चूम के चिढाया ...चल चल ...ये कहाँ से मिलता ...मैंने उसे अपने खूंटे की ओर इशारा कर के कहा .
वो हंस के बोली ...इतना मत अकड ...मिश्रायिन भाभी के पास एक से एक डिल्डो है ..एक दो तो किंग साइज ...एकदम तेरे साइज का है ...स्ट्रैप आन ...बस ...लगाओ ...निहुराओ ...घुसाओ
थोड़ी देर में हम दोनों शावर के नीचे थे ...
मैंने गुड्डी को एक ज्ञान की बात बताई ..चल पहले शैम्पू लगा के सर के रंग निकाल ले ...कालोनी में सब ने खूब सूखा रंग बालों में डाला था ...वरना वही रंग ...
गुड्डी मेरी बात काट के बोली ...
चलो निहूरो ...हाँ एकदम बड़ी प्रैक्टिस की है बचपन में लगता है स्कूल में ...हाँ ..और अरे यार जैसे तेरी सास निहुरायेंगी ...कोहबर में नथ उतारने के लिए ..बस वैसे ..एकदम सही ..बहुत मन कर रहा है लगता है सास से कोहबर में नथ उतरवाने का ...तेरा ...
और बात करते करते ..मेरे पिछवाड़े पहले एक उंगली ...फिर दूसरी उंगली ...और थोड़ी देर में उसने अपनी अंजुरी मेरे सामने कर दी ...लाल काही रंग से भरी ...
देखा ...सबसे ज्यादा सूखा रंग तेरी भौजाइयों ने कहाँ डाला था ...आँख नचा के बोली वो ...और फिर सीधे हैण्ड शावर का नोजल वहां ...और फूल फोर्स ..
रंगों की धारा बह रही थी ...तरह तरह के रंग ...
मुझे मंजू की बात याद आई ...जब मैंने उससे पूछा था कितना रंग लाऊं तो वो बोली की लाला , आधा किलो तो तुम्हरे लग जाएगा ..एक पाव तोहरी गांड में और एक पाव तोहरी बहन काव नाम है ओकर हाँ ...रंडी ..ओक़र ...भोंसडा में ...
रगड़ रगड़ के हम लोगो ने एक दूसरे के रंग छुडाये ..
बाकियों के रंग तो उतर गए ..लेकिन गुड्डी का रंग और पक्का हो गया ..सात जनम तक न उतरने वाला ...
कपडे भी हमने कमरे में साथ साथ चेंज किये ...उसने प्याजी रंग का एक नया शलवार सूट पहना और मेरे लिए ..एक खूब काम किया हुआ चिकन का गुलाबी लखनवी कुरता पजामा निकाल ..के किचेन में चली गयी ..भाभी का हाथ बटाने खाना निकालने के लिए
और मैंने अपना मोबाइल खोला ...मेसेज पे मेसेज
पहला मेसेज ही सबसे खतरनाक था मेरे हैकर दोस्तों का ...बडौदा का टाईम टेबल पता चल गया है ...खून की होली ...आज ही शाम को पांच से आठ बजे के बीच ...और बडौदा के आसपास भी ...
रीत का मेसेज था ...वो बडौदा पहुँच गयी है रेलवे यार्ड में तीन बजे पहुंचेगी मीनल के साथ ...करण पुलिस कंट्रोल रूम में रहेगा ...मैं तीन बजे से लगातार उसके टच में रहूँ
रीत और करण आधेघंटे से कम समय में एयरपोर्ट पहुँच गए . सारे रास्ते रीत का सर करन के कंधे पे था और करन का हाथ रीत के कंधे पे दोनों एकदम चिपके बैठे थे ...बस बीच बीचमें एक दूसरे को देखके मुस्करा लेते.कार में एक एक पल केलिए भी करनका हाथ रीतके उभारों से हटानहीं
...और अगर एकाध बार सरका भी तो खुद रीत ने खिंचके उसे अपने जोबन पे दिया
बाबतपुर एअरपोर्ट पर बीएसएफ का जहाज खड़ा था ...एक १५ सीट का छोटाजहाज
....दोनों पायलट प्लेन के बाहर खड़े उनदोनों का इन्तजार कर रहे थे
.करनरीत के चढ़ते ही असिस्टेंटपायलट उनके पास रुकगया और पायलट काकपिटकेअन्दरचलागया।
असिस्टेंटपायलट ने उन्हें समझाया की उदयपुर पहुँचने में उन्हें दो घंटे लगेंगे और वो डेढ़सेदोबजे केबीच वहां पहुंचेंगे . हां , उस प्लेन में कोई एयरहोस्टेस नहीं है ...इसलिए अगर कोईबातहो तो वो बटनदबाकर उसे बुलासकतेहैं ...एकमिनी फ्रिजऔरहाट केस गेलीमेंरखाहै ... अगर उन्हें भूख लगे ....या प्यासलगे ...
रीत उनकी बात काट के बोली ...नहीं हमलोग खाकेआये हैं ...और वोऔर करन सीट पर बैठगए।
जहाज में सिर्फ वही दोनों थे।
असिस्टेंटपायलट ने उनकी बगल की सीट पे कम्बल निकालके रखदिए और वो भी काकपिट में चला गया
...थोड़ी देर में जहाज आसमान में था ...और सीटबेल्ट खोलने के इंडिकेशन आ गए
।करन ने अपनी सीटबेल्ट खोलने के साथ रीत की भी सीटबेल्ट खोल दी ..शरारत से उसका हाथ रीतके उभारोंसे रगड़ भी खा गया ...
रीत ने करन को खा जानेवाली निगाहों से देखा ...फिर प्यार से मुस्करा दी ...करनने सीट के बीच का आर्मरेस्ट उठा दिया ...और रीत ने भी बगल की सीटपे पड़े कम्बल से दोनों को ढकलिया.
भूख लगी है क्या ...रीतने उस अस्सिस्टेंटपायलट की नक़ल करते हुएकहा और हलके से करनके इयर लोबस को चूम लिया।
करनने जवाब में बस रीत को कस के भींच लिया ...और उसके गालों को , होठों को चूमते हुए काटतेहुए बोला ....
“बहोत जोर से”
और फिर तो जैसे कोई बाँध टूट पड़ा ...कौन किसे जोर से भींच रहा था ...दबोच रहा था ...चूम रहा था…रीत करन में खो गयी थी और करन रीत में ...
दोनों एक दूसरे की प्रीत में ...न करन बचा न रीत ...सिर्फ दोनों की प्रीत बची थी ...
जहाज जमीन से ४०००० फीट ऊपर था ...तेजी से उदयपुर की ओर जारहा था ...और रीत समय के झोंके में बह रही थी ...
वो दिन ...जब वो करन को खो चुकीथी ....बनारस में बमब्लास्ट ...स्टेशन का सीन ...सब कुछ खोचुकी थी वो ...और आज ...उसने सर झटक के वो सब यादे एकदम से बाहर निकाल दी ...
और यादों के दूसरे झुरमुट मेंवो खो गयी ....करन के साथ मुलाकात के वो दीन ...जब वो साथ साथ कालेज के फंक्शन में डुएट गाते थे ....
बड़े अरमानो से रखा है बलम तेरी कसम ...प्यार की दुनिया में पहला कदम ...हो पहला कदम ...
करन के वो फूलों और शेरो से महकते प्रेमपत्र ...
सूना है उसे दिन को तितलियाँ सताती हैं ...सूना है रात को उसे जुगनू ठहरकर देखते हैं ..
और अब उसे करन के हाथ उसे सता रहे थे ...टाप उसका उठ चुका था और उसके जवानी के दोनों उभार अब करन की मुट्ठी में थे ...
जवानी भी अजीब चीजहै लूटने वालेको तरसती है ..
और आज आ गया था ...जिंदगी की सारी लड़ाइयों को जीत के लूटनेवाला ...
लूटले ...वो भी अब लुटाने का एक पल खोना नहीं चाहती थी
रीत के जवानी के गोल मस्त गदराये किशोर उभार, गद्दर जोबन ..
करन के बेसबरे बेताब हाथ , पहले तो उस हाल चाल पूछते रहे सहलाते रहे और ,फिर कचकचा के दबोच लिया मसल दिया ...
मस्ती में रीत के उरोज पथरा गए थे ...उस के निपल भी आज साजन के स्वागत में खड़े ,कड़े हो गए थे ...और वो भी कब तक बचते ..करन के अंगूठे और तर्जनी ने उन्हें रोल करना शुरू कर दिया ...पिंच कर लिया ..
रीत भी आज पीछे रहने वाली नहींथी . उसने करन के चेहरे को दोनों हाथों से जोर से पकड़ा ....और चुम्बन के बाद चुम्बन ...अपने फागुनी गुलाबी रसीले होंठो में उसने करन के होंठो को भींच रखा था ...और चूम रही थी चूस रही थी ...मानो कह रही ...मेरे बेसबरे बालम ...अब कहीं भी कभी भी नहीं जाने दूँगी तूझे ...इन प्यासे होंठो से दूर ...और थोड़ी देर में करन की जीभ भी अपनी प्यारी के मखमली मुंह के भीतर घुस कर स्वाद ले रही थी ...
करन ने रीत के टाप को उठा रखा था तो रीत करन के शर्ट को क्यों छोड़ती ...
पागल तो दोनों थे ...
पहले बटनें खुली फिर शर्ट ...
और अब सजनी के उभार की छाती से दबे कुचले जा रहे थे ...और करन की उंगलिया रीत की केले के पत्ते की तरह चिकनी , गोरी स्निग्ध पीठ सहला रही थी उनका स्वाद ले रही थी ...और उसे भींच रही थी अपनी ओर ...
वो भी अब रीत को अपने दिल की धड़कन से दूर एक पल के लिए नहीं जाने देने वाला था ...
लेकिन एक उसका नदीदा हाथ ओंठों ...अभी भी रीत के रसीले जोबन का स्वाद ले रहा था , मसल रहा था रगड़ रहा था ...
करन के होंठ क्यों पीछे रहते ..एक पल के लिए रीत के ओंठों ने उन्हें छोड़ा ...और वो सीधे रीत के गदराये गुदाज उभारों पे ...पहले हलके हलके चुम्बन ...फिर छोटी सी बाईट और फिर रीत के कड़ेगुलाबी निपल उनके बीच ...चुभलाते चूसते जीभ से फ्लिक करते ...
जहाज उदयपुर की ओर उड़ा जा रहा था ...
रीत मस्ती में उडी जा रही थी ...
उसकी देह शिथिल हो गयी थी ...
साँसे लम्बी हो रही थी और करन ने भरतपुर में सेंध लगाने की पहल कर दी ...
रीत की दोनों बाहें , अपने प्रेम बन्ध में करन को बांधे हुए थीं ...और करन के पीठ और सीट के बीच में दबी हुयी थीं .
कुछ ही देर में रीत की प्यारी पजामी सरक कर उसकी गोरी चिकनी जांघो के नीचे घुटने तक पहुँच गयी थी .
करन का हाथ अब सीधे लेसी गुलाबी पैंटी के ऊपर से उसकी प्यारी रामप्यारी को सहलाने मनाने फुसलाने में लग गयी था . थोड़ी देर तो रीत शरमाई , झिझकी ...
पर अब उसकी देह उसकी कहाँ थी . जब मन पे करन कब्ज़ा जमा लिया था तो बिचारी देह की क्या बिसात ...और थोड़ी देर में ही रीत की जांघे भी खुल के बिछुड़े बालम का स्वागत करने लगी .
करन को चौसठों कलाएं आती थी।
उसने थोडा सा उचकाया और रीत अब सीधे उसकी गोद में ..सीधे पेंट फाड़ते ..बालिश्त भर के मस्त मुस्टंडे के ऊपर ...
मन तो रीत का भी कर रहां था उसे देखने का लेकिन वह कैसे पहल करे ...करन ने खींच के खुद रीत की गुलाबी हथेली अपने जिपर के ऊपर रख दी ...
कुछ देर तक तो वो सकुचाई ...लेकिन वो समझ रही थी करन का मन ...और उसने जिपर खोल दिया ...और पिटारे से नाग बाहर आ गया ...खूब कडियल मोटा फुफकारता ...
अपनी बिल में घुसने को बेचैन ...और अबकी रीत ने खुद उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश की ...लेकिन वो उसकी मुट्ठी से कहीं ज्यादा मोटा था ..
" मोटा मुस्टंडा ...." रीत ने चिढाया .
" जैसा भी है तेरा है ..."
करन ने हंस के जवाब दिया और साथ में रीत की पैंटी भी पजामी के साथ घुटने तक ...और वो 'मुस्टंडा ' सीधेरीत के पिछवाड़े रगड़ कसर मसर कर रहा था ...वो नितम्ब ...जिन्होंने सारे बनारस को दीवाना बना रखा था ...करन की गोद में थे ...
करन ने एक बार फिर पोजीशन बदली और रीत की पीठ अब उसकी ओर थी . उसके हाथो में रीत के मस्त जोबन ...और उसका मुस्टंडा रीत के चूतडों के बीच रगड़ता ...अब सीधे भरतपुर के मुहाने पे ठोकर मार रहा था ..
रीत भी अच्छी तरह पनिया गयी थी ...उसकी परी फुदक रही थी ...उड़ने को बेचैन ...
बस वो ये सोच रही थी की उसने अपना पर्स इत्ता दूर क्यों रखा जिसमें दूबे भाभी ने चलते समय वैसलीन की बड़ी वाली शीशी रखी थी ...और बोला था ननद रानी लौटने तक ये पूरी खाली हो जानी चाहिए
करन व्याकुल हो रहा था ...दोनों हाथ कस के जोबन मर्दन में लगे थे कभी वो मसलता रगड़ता तो कभी निपल कस के पिंच कर लेता और रीत कुछ दर्द से कुछ मजे से ..चीख पड़ती ...सिसक उठती
" उयीईईईईईईइ ..."
इस दर्द के लिए तो उसके किशोर उरोज बेसबरे हो रहे थे ...
और नीचे रीत की प्यारी परी भी अपनी पारी खेलने के लिए बेताब हो रही थी ..
.गीली तो पहले ही हो चुकी थी अब जोर जोर से फुदक रही थी ...और उपर से करन का मुस्टंडा ...रीत के गोर गोल गोल नितम्बो के नीचे रगड़ रगड़ कर आग लगा रहा था ...कई बार उसका मुंह प्यारी गुलाबी परी को चूम लेता ...
रीत की हाँ तो गीली परी से ही मालूम हो रही थी ...
चलने के पहले दूबे भाभी ने भी हाँ कर दी थी ...
तो बसन्ती भी राजी , मौसी भी राजी ...अब तो बस ..
करन ने अपनी गोद में बैठी रीत के दोनों पैर अपने पैर डाल के अच्छी तरह फैला दिए ...
और अब उसकी हथेली सीधे भरतपुर स्टेशन पर जा के रुकी ...पहले तो उसने रसमलाई को हलके से सहलाया , फिर दबोचा ...और जब नहीं रहा गया तो घच्च से अपनी तरजनी उसकी कच्ची चूत में पेल दी ..
बड़ी मुश्किल से रीत ने दांतों से अपने होंठ काट के चीख रोकी ...
जहाज में तो वो दोनों अकेले थे ...लेकिन काकपिट पास में ही थी ...कही पायलट ना सुन ले ...
जहाज उदयपुर की ओर उड़ा जा रहा था ...जमीन से चालीस हजार फीट की ऊँचाई पे ...
और रीत और करन के तन मन दोनों उड़ रहे थे ...
उसके गुलाबी गालों पे हलके से बाईट ले के ...करन बोला
जानू मेरे पायलट को अपने काक पिट में जगह दे दो न
लेकिन जवाब उसकी गोरी चिकनी जांघो ने दिया खुद स्वागत में बांहे फैला कर,
लाल किले के दरवाजे अपने आप खुल रहे थे ...और करन की उंगलियों ने भी उसकी पुत्तियाँ फैला दी ,
थोडा सा उसके नितम्बो को उचकाया और अब वो मोटा , बित्ते भर लंबा मुस्टंडा रीत की परी के अधखुले होंठो पे प्यार से किस्सी ले रहा था ...
बस भरतपुर लूटने ही वाला था ...
रीत की सपनों से लदी पलकें आने वालो पलों के इन्तजार में मुंद रही थी ...
पर ...
तभी जहाज किसी एयर पाकेट में घुस गया ...जोर का टर्ब्युलेन्स ...
और स्क्रीन पर सीट बेल्ट का संकेत आ गया और पायलट का एनाउंसमेंट भी ...सीट बेल्ट बाँध ल़ेने का निर्देश और ये भी की ये हालत दस मिनट तक रहेगी ... अगले ही पल रीत अपनी सीट पर थी सीट बेल्ट से जूझती ...
मन उसका बुझ सा गया था ...ऐन मौके ..पे ..मेरे साथ ही क्यों ...
लेकिन सजनी के मन को साजन से ज्यादा कौन जानता है ...
कमर बंधी थी ...हाथ तो खुले थे और बीच का आर्म रेस्ट भी ...
करन का हाथ जो रीत क कंधे पे था .. फिर से उसके उरोजों पे पहुँच गया था ...उसने रीत को अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठ सीधे रीत के दहकते गुलाबों पे ...कभी होंठो पे कभी गालों पे ...
जब सूर्खिए-गुलशन का कभी जिक्र हुआ है,
तेरे लबो-रूखसार की बात आ ही गई है।
करन ने रीत के कानों में बोला ...और रीत के रुखसार एक बार फिर दहक उठे ...
जहाज के झटके अब थोड़े कम हो गए थे ...लेकिन रीत अब फिर करन की बांहों में खो चुकी थी ...
करन ने एक हाथ से उसके सर को पकड़ रखा था और अब छोटे छोटे चुम्बन ...डीप फ्रेंच किस में बदल चुके थे ...रीत के होंठों ने करन की जीभ को गपुच लिया था और हलके हलके चूस रही थी ...और करन उसके होंठों को ...
उसका मुस्टंडा अभी भी बाहर था सर उठाये तन्नाया ..कड़ा मस्त
रीत का हाथ अपने आप वहां पहुँच गया ...आखिर उसके इस हालत के लिए जिम्मेदार भी तो वही थी ..
पहले छुआ , फिर हलके से सहलाया और थोड़ी देर में .वो उसके काबू मेंथा ..,
कभी वो उसे आगे पीछे करती ...कभी खुले सुपाडे को तरजनी से दबा देती , रगड़ देती ...
अब एक बार फिर दोनों मस्ती में डूब गए थे ...जहाज के झटके कब के बंद हो गए थे ...
सामने स्क्रीन पे आया ...उदयपुर चालीस मिनट ...
दोनों ने एक साथ देखा और हलके से करन ने रीत का सर नीचे झुकाने की कोशिश की ..
रीत करन का मन समझ गयी ...मुस्कराई
और उस की मचलती शरारती आँखों ने कहा ....हिलना मत जरा सा भी ...
मुस्टंडा तना हुआ था ...टनटनाया ....
रीत ने जरा सा झुक के के ...अपनी लम्बी जीभ निकाल के ...लालीपाप की एक लिक ले ली ...जैसे सहेलियां आपस में शेयर करती ...एक छोटी सी लिक ..
और फिर सर उठा के करन को देखा ....
करन बस पागल नहीं हुआ था ...
करन की इस ख़ुशी के लिए तो रीत सब कुछ कुर्बान कर सकती थी ...
वो बिंदास बनारसी बाला कुछ और झुकी ...
सडप सड़प ...
अबकी उसी लम्बी जीभ ने उस पागल प्यासे मुस्टंडे के सर के चारो ओर , प्यार से चाट लिया ...
और फिर वो ट्रिक ...जीभ के टिप से करन के पी होल में उसने सुरसुरी कर दी ...
करन से रहा नहीं जा रहा था ..उसने रीत के सर को थोड़ा और पुश किया ...और
जैसे कोई बाज झपट के शिकार अपने कब्जे में कर ले ..
उसका गुस्साया जोश से पागल , पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाडा ...रसीली रीत के मुंह में था ...
कुछ देर तक तो वो बस ऐसे ही मुंह में लिए .रही ...करन को तडपाती ...फिर धीरे धीरे ..उसने चाटना , चुभलाना और चुसना शुरू कर दिया ...
रीत की लम्बी उंगलिया क्यों पीछे रहती ...वो भी तो करन की दीवानी थीं ...
वो सीधे लिंग के बेस पे पहले हलके से पकड़ा , दबाया ...फिर लिंग आगे पीछे करना शुरू कर दिया ...
दो उंगलिया लिंग के बेस पे थीं ...बाकी अब बाल्स तक पहुच गयी सहलाते , छेड़ते ..आखिर पुरुष रस की फैक्ट्री तो वहीँ है
साथ ही रीत के होंठो ने लिंग पे जोर बढ़ा दिया था। अब वो पूरे जोश से चूस रही थी।
उसके गुलाबी रसीले होंठ लिंग से रगड़ रगड़ कर ऊपर नीचे हो रहे थे . साथ में उसकी मखमली जुबान नीचे से करन के मस्त लिंग को चाट रही थी . और साथ में डिम्पल वाले गुलाबी गाल वैक्यूम पम्प से भी ज्यादा जोर से चूस रहे थे . आधे से ज्यादा लिंग अब रीत के मुंह में था।
रीत के लाख कोशिश करने के बावजूद अभी आधे से थोड़ा ज्यादा ही मुंह में ले पा रही थी ..
था भी तो उसका बांस ऐसा लम्बा ...
करन के हाथ का प्रेशर का अभी भी उसके सर पे था ...
तभी एक हल्का सा झटका लगा ...और शायद कोई टर्ब्युलेन्स ...और करन के हाथ का प्रेशर भी बाद गया ...
और पूरा का पूरा अन्दर ..सीधे गले तक ...बल्कि गले के अन्दर ...
रीत ने चोकिंग सेंसेशन पे काबू किया ....और कुछ देर में गों गों करते हुए भी सक कर रही थी ...उसके गाल एकदम थक गए थे ...पूरी तरह करन के मोटे लिंग से फूले ...रीत की आँखे भी बाहर निकली पड रही थी ...
करन भी रीत के मोटे गद्दर जोबन को अब कस कस के दबा रहा था मसल रहा था ...उसका दूसरा हाथ रीत की परी पे था ...एक ऊँगली अन्दर ...और रसमलाई का रस भी निकला रहा था
रीत पूरी ताकत से चूस रही थी साथ में ...उसकी लम्बी उंगलिया लिंग कोष को छेड़ रही थीं सहला रही थी ...
एक अनाउन्समेंट हुआ ..हम दस मिनट में उदयपुर पहुँच रहे हैं
करन की उँगलियों की रफ्तार तेज हो गयी
रीत की परी मस्ती में उड़ रही थी ...
रीत ने भी तेजी से अपने होंठ ऊपर नीचे करने शुरू कर दिए ...और साथ में उसकी उँगलियाँ भी अब लिंग पे चल रही थी
पहले रीत झड़ी ...
रीत ने जोर से करन के लिंग के बेस को दबाया ...वो बहुत जोर से काँप रहा था ...उसकी जीभ पे करन के प्री कम का स्वाद लग चुका था ...फिर ...ज्वालामुखी फूट पड़ा ...
इत्ते दिनों का इन्तजार ...बेकरारी ...रीत ने सब कुछ अपने मुन्ह में रोप लिया ...
तभी फिर घोषणा हुयी सीट बेल्ट की और जहाज ने नीचे उतरना शुरू कर दिया ..
इन सबसे बेखबर रीत पी रही ...थी यौवन का रस ...
कम से अंजुरी भर मलाई रही होगी ...गाढ़ी थक्केदार ...
जब रीत ने सर उठाया तो जहाज रन वे पे दौड़ रहा था ...
जल्दी जल्दी ..रीत ने अपनी पजामी का नाडा बाँधा , कुर्ती नीचे की
और उसी के साथ असिस्टेंट पायलट बाहर आ गया ..
" आशा करता हूँ आप दोनों की यात्रा सुखद रही होगी ...कंट्रोल रूम से मेसेज आया है एसपी उदयपुर की गाडी रनवे पे ही आ रही है ...वो आप दोनों को पिक अप करेंगे और आगे के लिए बताएँगे ."
" आशा करता हूँ आप दोनों की यात्रा सुखद रही होगी ...कंट्रोल रूम से मेसेज आया है एसपी उदयपुर की गाडी रनवे पे ही आ रही है ...वो आप दोनों को पिक अप करेंगे और आगे के लिए बताएँगे ."
वो जैसे ही फिर काकपिट में जाने के लिए मुडा ...
करन ने उसे एक टिशू पेपर पकड़ाया और शीशे की और इशारा किया ..
रीत के होंठों के किनारे एक सफेद थक्का अभी भी लगा था ...बड़ा सा ..
रीत ने टिशु पेपर उसे उन्ह कह के वापस किया और ...जीभ निकाल के उसे चाट लिया ...
और अब रीत की बारी थी चिढाने की ...उसने करन की उँगलियों की ओर इशारा किया ...वो रसमलाई के रस से चमक रही थी ...रसीली रीत की रस भरी रसमलाई के रस से ...
और करन ने मुंह में ले के उसे अच्छी तरह चाट लिया
नदीदे ...रीत बोली .
तब तक जहाज रुक गया था और उस के दरवाजे खुल गए ...
नीचे रन वे पे ही एक सफेद अम्बेसेडर खड़ी थी
सफेद अम्बेसडर में उदयपुर के एस पी खुद ड्राइविंग सीट पे थे . करन उनके साथ जा के बैठ गया या रीत पीछे .
उन्होंने रीत को एक बाक्स दिया जिसमें कुछ मेक अप का सामान था और कुछ ज्वेलरी . रीत और करन का कवर था की वो दोनों हनीमूनर्स है और साथ में फैशन फ़ोटोग्राफर्स ...करन के लिए वो कुछ कैमरे लाये थे
...और साथ में बडौदा के डिटेल्ड प्लान ...और जो कुछ भी इन्फो उन दोनों के बनारस से चलने के बाद मिली थी वो ...
पीछे की सीट पे रीत मेक अप में लगी थी और आगे वो करन को ब्रीफ कर रहे थे .
रेलवे स्टेशन एयरपोर्ट से दस बारह मिनट की ड्राइव पे था .
कल शाम को डी बी के यहाँ हुयी मीटिंग में यही तय हुआ था की वो लोग बडौदा सीधे नहीं जायेंगे और गुजरात गवर्मेंट की फैसिलिटीज नहीं इस्तेमाल करेंगे . सारे लाजिस्टिक अरेंजमेंट सेन्ट्रल गवर्मेंट के होंगे ...
इसिलिए वो बी एस एफ के प्लेन से उदयपुर आये थे और रेलवे के एक पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग की एक लक्जरी ट्रेन से बडौदा पहुंचेंगे .
वहां उनके रहने का अरेंजेमेंट भी या तो उसी ट्रेन में या गुजरात रिफायनरी के ( जो आई ओ सी की है ) रेस्ट हाउस में किया गया था।
इसके दो कारण थे , एक तो गुजरात सरकार के साथ कोआर्डिनेशन इशुज ...लेकिन सबसे बड़ा डर उनको था की अगर कोई मोल लोकल पुलिस में हुआ तो बडौदा के साथ मुम्बई का आपरेशन भी खतरे में पड जाएगा . हाँ , बडौदा के पुलिस कमिशनर ने जरूर ये भरोसा दिलाया था की वो पूरी तरह को कोआपरेट करेंगे ... वो पहले सी बी आई में डी आई जी रह चुके थे और फिर ये तय हुआ था की ...करन बड़ोदा पहुँचने के दो घंटे बाद उन्हें कान्टेक्ट करेगा .
एस पी ने ये बताया की महाराजा एक्सप्रेस का डिपारचर रात में साढ़े बारह बजे था ...लेकिन उसे दो बजे तक के लिए पोस्टपोन कर दिया गया है ...ट्रेन तैयार है और उनके गाडी पे पहुँचते ही वो स्टार्ट हो जायेगी .
रीत तैयार हो रही थी थी लेकिन करन और एस पी की बात भी सुन रही थी ...
उसने बहुत पहले ये पढ़ा था की ये हिन्दुस्तान की सबसे महँगी लक्जरी ट्रेन है ...पर उसने कभी नहीं सोचा था की वो इसमें चलेगी वो भी करन के साथ.
तब तक वो लोग स्टेशन पहुँच गए ..रात का सन्नाटा सूनसान सड़क ...
और प्लेटफार्म पर भी चुप्पी पसरी ...महाराजा एक्सप्रेस प्लेटफार्म पे खड़ी थी ...सारे डिब्बों में अँधेरा था सिवाय एक के ..
महाराजा एक्सप्रेस में तेइस डब्बे हैं जिसमें सिर्फ चौदह पर्यटकों के लिए इस्तेमाल होते हैं .
बाकी डिब्बो में दो रेस्टोरेन्ट , बार , लाउंज इत्यादि हैं. चौदह डिब्बों में से पांच डीलक्स कार , छ जूनियर स्यूट , दो स्यूट और एक प्रेसिडेंशियल स्यूट हैं।
सबसे छोटा डीलक्स केबिन भी एक सौ बारह वर्ग फिट का है , जिसमें अटैच बाथ , एल सी डी टीवी है . जूनियर स्यूट में ज्यादा जगह है करीब डेढ़ सौ वर्ग फिट लेकिन स्यूट में लगता नहीं की आप ट्रेन में है क्योंकि इसमें कमरे से है एक लिविंग रूम सोफे और एक मेंज। बेड रूम में इसमें जो बाथ रूम लगा हुआ है उसमें शावर के साथ बाथटब भी है . सभी डिब्बों में इन्टरनेट , टेलीफोन इत्यादि भी हैं .
कार ने प्लेटफार्म के बाहर छोड़ दिया .
रीत को देख के कोई कह नहीं सकता था की हनीमून के लिए आई दुल्हन नहीं है ...उस मेकअप बाक्स का इस्तेमाल कर के ..सुहाग के सारे चिन्ह ...माथे पे बड़ी सी बिंदी , कुहनी तक चूड़ियाँ और बीच में बड़े बड़े चूड़े , पैरों में बिछुए , पायल वो भी घुँघर वाली ...
ट्रेन का बीच वाला डिब्बा रेलवे ने उनके लिए तय किया था ...और सिर्फ उसी में रौशनी थी .
डिब्बे के दरवाजे पे खड़ी होस्टेस ने उनका स्वागत किया
मैं वान्या ...मुस्कराकर उसने पहले रीत से फिर करन से हाथ मिलाया।
खूब गोरी , डिजाइनर लाल काली सिल्क साडी में ...तीन इंच की हाई हिल की सैंडल ...लेकिन उसके बिना भी उसकी उंचाई पांच सात से कम तो नहीं थी ...काजल, स्कारलेट लिपस्टिक , हाई चिक बोन्स ,
लो स्लीव्स का ब्लाउज , लम्बे पेंटेड नाख़ून ..
वह उन दोनों को अन्दर ले गयी गयी।
वो स्यूट प्रेसिडेंशियल स्यूट था .
एंट्रेंस लाबी में घुसते ही दोनों की आँखे फटी रह गयी ...लग्जरी री डीफाइन्ड ..
खूबसूरत सोफा टेबल ..लग ही नहीं रहा था की वो ट्रेन में है ..ब्रास का बड़ा सा लैम्प , फ्लावर पाट ...
उसने दोनों को सोफे पे बैठने का संकेत किया और सामान अन्दर ले गयी ...और एक ट्रे में दो गिलास पानी ले आई।
पानी दे के उसने पूछा ..ड्रिंक्स ..
नहीं बस सोयेंगे ..रीत ने जुम्हाई लेते हुए कहा ...
वान्या हलके से मुस्कराई
तब तक ट्रेन चल पड़ी थी .लेकिन ज़रा भी शोर या झटका नहीं पता चल रहा था .
श्योर ...लेट मी टेक यू टू बेड रूम ...
रीत को विश्वास नहीं हुआ ..
एक बड़ा सा बेड रूम ....और उसमें एक डबल बेड टीक वूड का पीछे नाईट लैम्प लगे हुए ...लेकिन उससे भी मजेदार बात ये थी ...कमरे को सुहाग रात के कमरे की तरह , मोगरे, चमेली और जूही के फूलों से सजाया गया था ...
वान्या ने मुस्कराकर रीत से कान में हलके से कहा की ...वी रेयरली गेट हनीमूनर्स ....एंड आई डिड इट ..
करन बाथ रूम में फ्रेश होने चला गया था ...
वान्या ने एक वार्ड रॉब खोल के दिखाया ...और रीत की एक परेशानी सुलझ गयी ...
नाईट ड्रेस ..शियर पिंक नाइटी , नेग्लीजी , बेबी डाल और ब्राइडल लिंगरी ...सब विक्टोरिया सीक्रेट की करन के लिए भी कुरता पाजामा
वान्या बोली ..काम्प्लिमेंट्स फ्राम अवर कंपनी
वान्या ने पूछा ...बेड टी कितने बजे ...बाकी टूरिस्ट ...चाम्पानेर वर्ड हेरिटेज साईट के लिए नौ बजे निकल जायेंगे ...और वहां से वाइल्ड लाइफ पार्क और शाम को पैलेस में इवनिंग टी
रीत और करन का तो प्रोग्राम कुछ और ही था ...वो बोली ...नहीं इन्हें कुछ बडौदा में ही शूटिग करनी है ..शाम को हम लोग बाकी ग्रुप के साथ पैलेस में ज्वाइन कर लेंगे ...
वान्या के जाने के बाद रीत ने नोटिस किया दो ग्लास में दूध और उपर से केसर पड़ी ...साथ में एक चांदी की प्लेट में पान .
रीत ने एक साटिन की गुलाबी नेग्लीजी पहनी और बिस्तर में रजाई के अन्दर घुस गयी सिर्फ नाईट लैम्प छोड़ कर उसने बाकी बत्तियां भी बुझा दी .
करन बाथ रूम से निकला और उसने भी कुर्ता पाजामा पहन लिया और रजाई के अन्दर घुस गया ...दोनों को मालूम था बहुत देर तक न कुरता पजामा रहेगा और न नेग्लीजी ...
रीत का शक एकदम सही था करन ने दस मिनट में ही उसकी नेग्लीजी तो उतर ही गयी थी , करन का कुरता पाजामा भी जमीन पे था .
बस रीत ने एक अकलमंदी की थी की दूबे भाभी की दी हुयी वेसलिन की बड़ी शीशी , निकाल कर तकिये के नीचे इस तरह रख ली ...की बस जरा सा भी तकिया सरके ...तो वो वेसलिन की शीशी नजर आ जाए .
लड़कों का क्या भरोसा ...उस समय तो बस उनके दिमाग में एक ही बात रहती है ...
कैसे सटाओ , घुसाओ ..और करन तो और एकदम बुद्धू है ...फिर उस का मुस्टंडा ...कितना मोटा है ...उसकी कलाई जितना तो होगा ही ...वो तो डर ही गयी थी ...
लेकिन उसे दूबे भाभी की सीख याद आ गयी ,
" अरे ननद रानी ...तू इ चूत महरानी क महिमा ना जानत हौ ..सारी दुनिया तो उन्ही से निकलत है ...इतना मोट मोट बच्चा ...त केतना मोट लंड होय ...उ घोंट ही लिहें ..'
करन उस की जांघो के बीच बदला ले रहा था ... जैसे जहाज में वो उसके मुस्टंडे को ले कर प्यार दुलार कर रही थी ...उसी तरह वो अब उसकी परी को ...कभी चूमता कभी चाटता ...
नदीदा ...
उसकी रसमलाई का रस जम के चूस रहा था ...जैसे कित्ते दिन बाद मिठाई मिली हो ...भूखा ..
भूखी तो उसकी देह भी थी ...मन तो उसका कब से करन के कब्जे में था ...और अब देह भी ...जहाँ जहाँ उसकी ऊँगली पड़ती ...रीत की देह का वो हिस्सा करन का हो उठता ...और अब उसकी गुलाबी परी भी अपनी बांहे फैलाए ...
उसके योनी पटल करन की उँगलियों की जादुई छुवन से अपने आप खुल गए थे ...और अब करन की जीभ कभी उनके अन्दर कभी उनके ऊपर ...
लपर लपर ...सपड सपड
चाट रही थी .
और जब करन उसके दोनों निचले होंठो को मुंह में ले के जोर से चूस लेता तो रीत सिसक उठती , उछल पड़ती
करन पूरा रसिया था ...नवल खिलाड़ी ..
कभी वो जीभ से पूरी तरह नीचे से ऊपर तक रीत की 'सहेली' को चाट लेता तो कभी जीभ की नोक से दोनों भगोष्ठों को हलके से अलग कर देता ...और जीभ की टिप से सुरसुरी कर देता ..
तो कभी होंठो के बीच उसके जादुई बटन को , पिंकी को ले के हलके चूसता चुभलाता ...उसका एक हाथ तो जुबान का साथ दे रहा था ..भरी हुयी पुत्तियों को पकड़ने, रगड़ने मसलने में लेकिन दूसरे ने रीत के किशोर अनावृत्त उभारों को दबोच रखा था ...कभी दबाता , मसलता , तो कभी कड़े , खड़े निपल को फ्लिक कर देता ...
गाडी ...रति दग्ध नायिका की तरह सब भूल अपने गंतव्य की ओर चली जा आरही थी ...जैसे बरसात में जोश से भरी नदी ..सागर की ओर जाने को बेताब रहती है ...
और रीत भी रति के मद में ...सब कुछ भूल ...कभी वो पलंग पे अपने भारी नितम्ब रगडती ...
कभी करन को धक्का दे दूर करने की कोशिश करती ...तो कभी खुद पागलों की तरह उसके बाल पकड़ के उसका सर अपनी जांघो के बीच दबा देती ...अपनी रसीली परी पे रगड़ देती ...
उधर करन का मुस्टंडा पागल हो रहा था , बेताब था ...जल रहा था जीभ से ...
बात करने का रस तो लेती ही है ये , चूमने चाटने का भी और अब ...परी का सब मजा अकेले अकेले ...
उधर परी भी तो बेताब थी मुस्टंडे से मिलने को , डर भी लग रहा था उसकी मोटाई देख के लेकिन मन भी कर रहा था ...
करन ने जैसे ही रीत के गुलाबी लजीले रसीले होंठों को अपने होंठो से बंद किया , जोर से भींच के और अपने एक हाथ से उसकी दोनों नरम कलाइयों को कस के पकड़ लिया ...रीत ने मौसम का हाल पढ़ लिया ...जोर का तूफान आने वाला है ...
उसकी कमल सी आँखे अपने आप सिहर कर बंद हो गयी ...
लेकिन प्यार बंद आखों से भी देखने की ताकत दे देता है ...
करन ने दूबे भाभी की दी हुयी वेसलिन की शीशी को खोला और ढेर सारा वेसलिन अपने मुस्टंडे के मुंड पे लगा लिया ...और फिर थोडा और लिथड लिया. दो उंगलिया वेसलिन से पुती उसने रीत की पुत्तियों को खोल कर अन्दर तक लगा लिया...
रीत सिहर रही थी सिसक रही थी मन में डर भी लग रहा था और ललक भी हो रही थी ..कब ..
रीत की दोनों लम्बी गोरी टाँगे , करन के कंधे पे चढ़ी थी ...
बुरा हो उस वान्या की बच्ची का ...कित्ते तो तकिये कुशन उसने पलंग पे रखे थे ...
करन ने दो तीन मोटे कुशन उस के नितम्बों के नीचे लगाकर , उन्हें खूब अच्छी तरह ऊपर उठा दिया ...रीत की दोनों कलाइयां करन ने जोर से पकड़ रखी थीं .
पहले धक्के में ही रीत की आधे दर्जन से ज्यादा चूड़ियां , चुरुरमुरूर करती टूट गयीं ....
दर्द से उसके जोड़ जोड़ हिल गए लेकिन अपने होंठो को दांतों से जोर से काट के वो सारा दर्द पी गयी ...और वैसे भी उसके होंठ करन ने अच्छी तरह से सील कर रखे थे ...
मुस्टंडे का मोटा गोल मटोल मुंड अभी भी आधा बाहर था ...
करन मस्ती से पागल हो रहा था और उससे भी ज्यादा उसका मुस्टंडा
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !


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