FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--105
गतांक से आगे ...........
करन मस्ती से पागल हो रहा था और उससे भी ज्यादा उसका मुस्टंडा ...
बिना रुके करन ने दूसरा धक्का लगाया , फिर तीसरा ...
रीत दर्द में डूबी हुयी थी ...लेकिन इसी दर्द के बिना तो उसे उसकी जिंदगी बेकार लग रही थी ...उसकी जांघे फटी पड़ रही थीं ...लेकिन फिर भी वो जांघो को जोर से फैलाए हुए थी ....
उसकी सारी संवेदनाये , सारी अनुभूतियाँ बस एक जगह ...थीं ...उसकी चिकनी रेशमी जांघो के बीच उसकी परी प़र ...
करन ने फिर दो धक्के और पूरी ताकत से लगाये और ....और अब लिंग मुंड अन्दर था ....रीत के योनि द्वार पूरी तरह फैल चुके थे ...इतना मोटा बस लग रहा था अब उसकी योनि फट जायेगी बचेगी नही ...
करन के हाथ ने अब उसकी एक कलाई छोड़ी और रीत के गदराये , मस्त किशोर उभारों को हलके हलके सहलाने लगा ...रीत के गोर कबूतर अब उड़ने लगे थे ...और जैसे ही कर्ण ने उनकी लाल गुलाबी चोंचो को पकड़ा ...मस्ती से रीत के गद्दर जोबन पत्थर हो गए .
करन के होंठों ने अब रीत के होंठो को आजाद कर दिया ...लेकिन भौंरे की तरह कभी वो उसके गुलाबू गालों पे बैठ के उसे चूम लेता काट लेता कभी सपनों से लदी पलकों पे
रीत नीम निगाहों से करन को देख रही थी ...
सिर्फ ख़ुशी ...करन की आँखों में , चेहरे पे , पूरी देह से सिर्फ ख़ुशी बिखर रही थी ...
इस ख़ुशी के लिए तो रीत कुछ भी कुर्बान करने को , सहने को तैयार थी ...देह का दर्द क्या ...और अब देह तो करन की ही थी ...
रीत ने खुद अपना सर उठा के करन के होंठों को चूम लिया ...अपनी बाहों में उसे जकड लिया ...
करन को तो इसी ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार था ...
उसने एक हाथ से रीत के मस्त जोबन को कचकचा के पकड़ा और दूसरा उसके भरे नितम्ब पे ...
मुस्टंडे को थोडा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से अन्दर ढकेल दिया ...
योनि को रगड़ता दरेरता घिसटता ...वो अब आधे से ज्यादा अन्दर घुस चुका था ...
गाडी तेजी से दौड़ती जा रही थी और अन्दर प्रेम की गाडी भी ...
जैसे इंजन का पिस्टन अन्दर बाहर अन्दर बाहर हो रहा था ...उसी तरह करन का मोटा लिंग रीत की योनि में सटासट सटासट घचा घच अन्दर बाहर हो रहा था ...
गलती से रीत के मुंह से निकल गया ...हो गया पूरा ...
करन ने मुस्करा के कहा ...हाँ आलमोस्ट ...आधा ..
दूबे भाभी की सिखाई , बनारस के रस में में पगी के मुंह से गलती से निकल गया ...बाकी क्या मेरी ससुराल वालियों के लिए बचा कर रखा है ...
फिर तो तूफान आ गया ...
करन ने आलमोस्ट बाहर का लिंग निकाला , उसकी पतली कमर को पकड़ा और एक ही धक्के में पूरा छ इंच लगभग दो तिहाई लिंग अन्दर ....और फिर एक बार आलमोस्ट पूरा बाहर और अगले धक्के में अन्दर ...
रीत की परी के लग रहा था परखच्चे उड़ जायेंगे ....
रीत ने जोर से दोनों हाथो से पलंग को पकड़ रखा था ...दांतों से होंठ को भींच रखा था ...लेकिन कितना सहती वो ...उसकी एक हलकी सी चीख निकल गयी ...
और तुरंत उसे अपनी गलती का अहसास हो गया ...करन के धक्के धीमे हों ...उसके पहले उसने करन को अपनी बांहों में भींच लिया ...और उसके इयर लोब्स पे किस कर के बोली ...
" मुझे करन चाहिए ...पूरा करन ...भले मुझे कित्ता भी दर्द क्यों ना हो प्रामिस मी ..."
और अगले ही पल ...करन का लिंग ...उसका मुस्टंडा पूरी तरह रीत के अन्दर था ...मुस्टंडे का मुंड ...रीत के बच्चेदानी से लड़ रहा था.
करन के न जाने कितने हाथ उग आये थे ...न जाने कितने होंठ ...
कभी वो उसके गालों को चूम लेता , चूस लेता तो कभी हलके से काट लेता ...कभी उसके होंठ रीत के उरोजों के बेस से चुम्बन यात्रा शुरू करते और ...वो उसके निपल्स को ले के जोर जोर से चूसता चुभलाता ...
हाथ लगातार जोबन मर्दन कर रहे थे ...निपल को पुल कर रहे थे और कभी नीचे पहुँच के उसकी क्लिट को दबा देते रगड़ देते ...
लिंग लगातार अन्दर बाहर हो रहा था ...
रीत की टाँगे किसी लता की तरह करन की देह से लिपटी थी ...वो जोर जोर से उसे भींच लेती , कभी अपने मस्त नितम्ब उठा के करन के धक्के का जवाब धक्के से देती तो कभी , उसकी परी , उसकी योनि जोर से लिंग को भींच लेती सिकोड़ लेती ...
वक्त ठहर गया था ...
और जब करन ने रीत की गुलाबी क्लिट को पूरी तेजी से धक्के मारते हुए छेड़ा ...तो बस वो पत्ते की तरह कांपने लगी ..सिसकने लगी ...जोर से उसने करन को भींच लिया ...अब वो प्यार के शिखर पे पहुँच रही थी ...झड रही थी ...बाहर रात झड रही थी ...
करन एक पलके लिए रुका ...और जब रीत का कांपना कम हुआ तो उसने रीत को दुहरा कर दिया ...फिर तो लिंग अब पूरी तरह से आलमोस्ट बहार निकाल के वो हचक हचक के चोद रहा था ...
रीत एक दम थकी थी ...लेकिन फिर भी उसकी आँखे मुस्करा रही थी नाच रही थीं थिरक रही थीं करन की ताल पे ....
एक बार फिर रीत कगार पे थी ...उस के लम्बे नाखून करन की पीठ पे धंस रहे थे ...बाल पलंग पे फैले हुए थे ...नितम्ब लिंग के साथ अपने आप ऊपर नीचे हो रहे थे ...
और अबकी वो जो गयी तो साथ में करन को ले के ...उसकी गुलाबी मखमली संकरी प्रेम गली बार बार सिकुड़ रही थी ...
करन का लिंग भी अब कांप रहा था जोर जोर से ... अबकी साथ साथ मंजिल पे पहुंचे ....
बूँद बूँद वो रीत रहा था रीत में ...रीत के सबसे अन्दर तक ...
कम से कम अंजुरी भर गाढ़ी मलाई ...रीत की नदीदी गुलाबी सहेली ने जोर से अपने को सिकोड़ लिया ...जैसे एक बूँद भी बाहर नहीं जाने देगी ...
और करन के लिंग ने फिर एक बार बूँद बूँद कर रीतना शुरू कर दिया ...
बहुत तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे थके , शिथिल
पहल करन ने की , रीत को खींच के उसने हेड बोर्ड के सहारे बैठा दिया .
एक बार फिर शर्म बीच में आ रही थी ...रीत ने रजाई ऊपर खींच कर अपने उभारों को ढकने की कोशिश की लेकिन करन कहाँ ये होने देता . उसने रजाई सरकाकर , थोडा नीचे कर दी और एक हाथ अब फिर सीधे रीत के कमल सदृश खिले उरोज पर , जहाँ उसके नाख़ून और दांतों के भी निशान भी थे .
रीत ने शरमाकर सर करन की चौड़ी छाती में छुपा लिया।
करन ने बेडरूम की बड़ी शीशे की खिड़की पर से पर्दा सरका दिया .
बाहर से चौदहवीं का चाँद दमक रहा था खिडकी से झाँक रहा था ...ट्रेन सौ किलोमीटर से भी तेज रफ्तार से भाग रही थी ...पेड़ ... भाग रहे थे . रास्ते में छोटे छोटे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर , जुगनुओं की तरह टार्च दिखा कर ट्रेन से सिग्नल एक्सचेंज कर रहे थे .
अचानक एक छोटे से स्टेशन पे गाडी रुकी, शायद क्रासिंग के लिए .
और शरमा कर रीत करन से दुबक गयी और बार बार इशारा करने , लगी पर्दा खींचने के लिए
लेकिन बजाय पर्दा खींचने के करन ने रीत को अपनी ओर खींच कर दुबका लिया और जोर जोर से उसके गाल चूमने लगा , होंठो को अपने होंठो के बीच ले के जोर से चूसने लगा ...मानो ये कह रहा हो ...जलती है दुनिया जलती रहे ...ये अनिन्द्य सुंदरी , सारंग नयनी बिंदास बनारसी बाला मेरी है ...उसके हाथ भी रीत के जोबन चूम रहे थे ...
तब रीत को अहसास हुआ ...एसी डिब्बे की खिडकी से बाहर तो दिख सकता ,लेकिन बाहर वाले कुछ नहीं देख सकते ..और ऊपर से सिर्फ नाईट बल्ब की हलकी वहां तैर रही थी... और इतने दिनों उसका करन उसे मिला था दुनिया देखे तो देखे ....
रीत ने भी करन के सर को दोनों हाथों से पकड लिया और जोर से उसके चुम्बन का जवाब चुम्बन से देने लगी ...अब करन के दोनों होंठ उसके होंठों के बीच थे ...कुछ ही पल में करन ने अपनी जीभ रीत के मखमली मुंह में ठेल दिया ...जैसे कुछ देर पहले करन का लिंग उसके मुंह में अठखेलियाँ कर रहा था , जहाज में .अब वही काम करन की जुबान कर रही थी और रीत उतने ही जोश से उसे चूस रही थी ....
करन के हाथ रीत की गोलाइयों से खेल रहे थे कभी उसे सहला देते कभी दबा देते ...कभी निपल्स को पुल कर देते .
गाडी अभी भी स्टेशन पे खड़ी थी .
तभी रीत की निगाह केसर पड़े दूध के ग्लास पे पड़ी और उसने उसकी ओर इशारा किया .
जवाब में रीत को करन ने खींच के अपनी गोद में बिठा लिया , जबरन ...दोनों के चेहरे एक दूसरे की ओर थे . रीत के मस्त जोबन करन की छाती में दब रहे थे और एक से हाथ से करन ने रीत को अपनी ओर खींच रखा था .
रीत ने करन को दूध पकड़ाना चाहा , तो उसने सर हिलाके मना कर दिया और इशारे से बोला , तुम पिलाओ जैसे कह रहा हो उसके दोनों हाथ बिजी हैं ...
हाथ तो करन के बिजी हो गए थे ...अब वो जम के रीत के दोनों गद्दर जोबन दबा रहा था मसल रहा था।
रीत ने ग्लास से एक घूँट दूध करन को पिलाया और जहाँ करन के होंठ लगे थे , वहीँ से खुद पिया .
दो चार घूँट के बाद ही दूध का असर या करन के होंठो का या ..दूध में केसर के साथ वान्या ने जो हर्ब्स डाली थी ..उसका असर ...दोनों कि थकान तो ख़तम ही होगयी रति ज्वर एक बार फिर से पीक पर पहुँच गया .
करन के एक हाथ ने रीत के रसीले उरोजों को तो मुक्त किया , लेकिन फिर वो भीगी गीली गुलाबी परी कि खोज खबर लेने लगा . उसे अब दोनों जांघो के बीच छुपे खजाने के रास्ते का पता चल ही गया था बल उंगलिया , फिर कभी उसे ऊपर से सहलाती तो कभी टिप अंदर घुस जातीं . हाँ , वो जोबन जो हाथ से आजाद हुआ , होंठों कि गिरफ्त में आ गया।
रीत का एक हाथ ग्लास में फंसा था ...लेकिन दूसरा तो खाली था उसने भी अपने प्यारे मुस्टंडे को सहलाना शूरु किया और थोड़ी ही देर में शेर फिर से जाग उठा ..शिकार कि तलाश में ...शिकार तो ठीक उसके सामने था ...बस रीत कि गीली गुलाबी चुनमुनिया पे उसने सर रगड़ना शुरू कर दिया . रीत कि जांघे स्वागत में अपने आप फैलने लगी ...
दोनों बेताब थे ....
करन ने रीत के हाथ से ग्लास लिया ...एक घूँट में बचा दूध ख़तम किया , और ग्लास को साइड टेबल पे रख दिया .
गाडी जिस छोटे स्टेशन पे क्रासिंग के लिए खड़ी थी ...वहाँ पे धड़धड़ाती हुयी एक माल गाडी गुजरी ...
करन ने हलके से धक्का देके , रीत को पलंग पे गिरा दिया ...और अब बिना किसी भूमिका के उसकी दोनों टांगो को मोड़ के दुहरा कर दिया और दूबे भाभी की दी हुयी वैसलीन कि शीशी से , ढेर सारा वैसलीन निकाल के पहले तो अपने मोटे लिंग पे मला ...और फिर दो उँगलियों में लगा के रीत कि योनि पे ...
और सुपाड़ा चूत के मुंह पे सटा के जोर का धक्का मार दिया .
असली लुब्रिकेंट तो उसकी अंजुरी भर गाढ़ी मलायी थी जिससे रीत कि बुर लबालब हो रही थी ...
रीत ने अबकी आँखे नहीं बंद की ..करन के चेहरे की हर ख़ुशी , जोश को व् अपने आँखों कि प्याली में रोप रोप कर पी लेना चाहती थी ...
करन के हाथ रीत के दोनों भारी नितम्बो पे थे ...और एक के बाद एक वो धक्के मार रहा था ...तीन चार धक्को में सुपाड़ा पूरा अंदर था .
रुकी हुयी ट्रेन भी चल चुकी थी . खुली खिड़की से बाहर की चांदनी पूरी तरह आ रही थी ...और बिस्तर पर पूनम का चाँद करन के हाथो में था.
एक ओर ट्रेन ने स्पीड पकड़ी ...और दूसरी ओर करन ने ...
लम्बा मोटा लिंग आधे से ज्यादा अंदर घुस चुका था ...
रीत सिहर रही थी सिसक रही थी ...और करन ठेले जा रहा था उसके दोनों मस्त चूतड़ पकड़ के अपनी पूरी ताकत से ...
और थोड़ी देर में जैसे ट्रेन और करन में मुकाबला शुरू हो गया ...कौन कितनी जल्दी फूल स्पीड पकड़ सकता है ...
करन का मोटा मुस्टंडा ...अब सटासट सटासट अंदर बाहर हो रहा था ...करन के हाथ और होंठ भी कभी दबाते कभी सहलाते ...रीत भी अब अपने नितम्ब उठा उठा के धक्कों का जवाब दे रही थी , उसके दोनों हाथ करन को उसकी देह की ओर खींचे हुए थे , रीत के लम्बे करन कि पीठ और सीने पे निशान बना रहे थे .. और उन दोनों कि देह से मोगरे , जूही और चमेली के फूल कुचले जा रहे थे .
थोड़ी ही देर में करन ने पोजिशन बदली ...और रीत को खिंच कर पलंग के किनारे ले आया ...अब वो खुद पलंग के नीचे खड़ा था ..और रीत के नितम्ब पलंग कि एज पे ...उसकी दोनों लम्बी गोरी टाँगे , करन के कंधे पे ...करन ने एक पल उसे सेट किया और अबकी उसकी पतली कमर पकड़ के वो जोर का धक्का मारा कि लगभग पूरा आठ इंच ...एक बार में अंदर ...
इंजन ने बड़ी जोर से सीटी मारी और ...रीत कि तेज चीख उस में दब के रह गयी .
ट्रेन किसी पुल से गुजर रही थी ...और उस कि रफ्तार थोड़ी धीमी हो गयी ...
करन का लिंग भी अब हौले हौले अंदर बाहर हो रहा था
उधर पुल थरथरा रहा था ....और इधर रीत ...
साथ ही साथ झुक के बादल रीत कि मस्त गदराई किशोर चूंचियों का स्वाद भी ले रहा था ...कभी चूसता , कभी काट लेता ..
और उस के हाथ रीत के गुलाबी क्लिट को छेड़ रहे थे ...
थोड़ी देर में रीत खुद पागल हो गयी .बोलने लगी करो करो ...और जोर से करो ...
करन ने कभी रीत की कोई बात टाली थी कि ये बात टालता ...थोड़े ही देर में जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ...उस तेजी से बिना रुके उसने तूफानी धक्के लगाने शुरू किये ...और साथ साथ ही जब उसे लगता कि रीत किनारे पे पहुँचने वाली है ...वो रुक जाता ...और फिर थोड़ी देर में उसी स्पीड से ....
कुछ देर में वो दोनों फिर पलंग पे थे ...रीत करन कि गोद में ...फर्क सिर्फ ये था कि करन का लंड अभी भी रीत कि कसी कच्ची चूत में पूरी तरह पैबस्त था ...रीत ने अपने एक हाथ से करन को पकड़ रखा था और उस कि गोद में वो फागुन में सावन के झूले का मजा ले रही थी ...तभी उसे चांदी कि ट्रे में रखा पान दिखा ...और अगले पल वो रीत के होंठो के बीच ...कभी वो बनारसी बाला ...अपने साजन को ललचाती तो कभी ...एक बाइट दे के होंठ पीछे खींच लेती ...करन ने एक झपट्टा मार के उसके होंठो को अपने होंठो कि गिरफ्त में किया ...होंठो और पान के रस के साथ ...उसने धक्को कि रफ्तार भी बढ़ा दी ..रीतभी पूरी तरह उसका साथ दे रही थी काम के इस झूले में ...
पान ख़तम होने के साथ ही वो दोनों पे अगल बगल लेटे सम्भोग का मजा ले रहे थे ...रीत कि टाँगे करन के उपर डोनो ..दोनों कि देह गुत्थमगुत्था ...करन ने एक बार फिर स्पीड बढ़ायी ...
सिर्फ दोनों कि सिसकारिया गूँज रही थीं ....
और अबकी जब रीत कगार पे पहुंची तो करन रुका नहीं बल्कि उसने धक्कों कि रफ्तार और बढ़ा दी ....
रीत कि कोमल कसी चूत अब बार बार करन के लिंग को भींच रही थी वो पत्ते कि तरह काँप रही थी ...झड़ रही थी ...और उसी के साथ करन भी ...बूँद बूँद रीत गया ...
दोनों एक दूसरे के बांहो में उसी तरह सो गए ...
कुछ जागी कुछ सोयी रीत के मन में गुड्डी कि याद आयी ...
वो भी तो इस समय ...
उसको जलाने के लिए उसने एक एस एम् एस दाग दिया ...
दो बार हो गया ...
कुछ ही देर में गुड्डी का जवाब आया ...बधाई ...मेरी भी पिछवाड़े का बाजा बज गया ..
सोचते मुस्कराते , रीत कि आँखे लग गयीं . करण की बाहों में ...
गाडी तेजी से दौड़ रही थी ...अपने स्टेशन पे पहुँचने को ...
चाँद भी पश्चिम कि और पहुंचने कि जल्दी में तेजी से पग भर रहा था ...
करन रीत सबसे बेखबर एक दूसरे कि बाँहों में गुथे लिपटे सो रहे थे ..
नींद थोड़ी सी खुली रीत कि ...
भोर कि हलकी सी दस्तक आसमान पे दिखने लगी थी ...
रात का रंग हल्का पड़ने लगा था ..
रीत थोड़ी सोयी थोड़ी जागी थी और उसका हाथ पड़ा करन के शेर पे ...
वो एकदम जागा , तन्नाया , भूखा ...
भोर के समय तो सबका खड़ा हो जाता है और ये तो करन का मोटा मुस्टंडा था ..
रीत ने वही गलती कि ...बल्कि दो गलती ...
एक तो उसने शेर को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया ...और दूसरी ...अपनी टाँगे उठा के करन के ऊपर रख दी ...
नतीजा ...शेर दहाड़ने लगा और उसका मुंह सीधे गुफा के पास ..
करन की नींद हलके से खुली ...थोड़े सोये थोड़े जागे उसने रीत को अपनी और खींच लिया ...और शेर गुफा में घुस गया
आधी नींद में दोनों हलके हलके धक्के लगाते ..एक दूसरे को जकड़े ...कब झड़े ..कब सोये कब पता नहीं ...
हाँ जब नींद खुली तो करन अभी भी रीत के अंदर था ...और हाथ उसके रीत के किशोर उभारों पे...
...
नींद खुली वान्या के गुड मार्निंग से ...
वह दोनों ऐसे ही लिपटे चिपटे , दूध पानी की तरह दूसरे से मिले , कुछ रजाई में ढके कुछ उघड़े , सो रहे थे ...
बड़ोदा कब का आ गया था ...
गुड मार्निंग ...चाय गरम ... जागो सोने वालों ...टी ट्राली के साथ वान्या केबिन में घुसी ...
पहले तो रीत कुछ झिझकी , करन से दूर होने कि कोशिश कि ...पर करन ने उसे खींच के अपनी ऒर कर लिया ...और जब उन दोनों ने वान्या कि ड्रेस देखी तो ...बची खुची नींद भी गायब हो गयी ...
परफेक्ट फ्रेंच मेड की कास्ट्यूम ..
काले फिशनेट कि स्टाकिंग ...घुटने से थोड़ी ऊपर तक जिसमें से उसकी लम्बी टांगो की गोराई बाहर झाँक रही थी ..
छोटी सी खूब घेरदार काली स्कर्ट , जो घुटनों से बहुत पहले ख़तम हो रही थी ...और उपर एक सफेद ऐप्रन ..
टॉप ...एक लो बॉडीस ...जिसमें उसकी गोरी गोलाइयां भी गुड मार्निंग कह रही थी ...
एक लेसी नेक पीस ...जिससे उसकी गहराइयाँ और खुल के दिख रही थीं ...
और एक छोटी सी हेड पीस कैप कि तरह ..
जवाब गुड मार्निंग का पहले करन फिर रीत ने दिया ...
चाय कि ट्रे लगाते वान्या बोली ...बाकी ग्रुप थोड़ी देर पहले चांपानेर वर्ड हेरिटेज साइट के लिए जा चुका है ...आप ने बोला था इसलिए मैंने जगाया नहीं ...
उसकी बात काट के करन बोला ...हाँ वो मैंने कल ही बोल दिया था ...हा, लोग दिन में कुछ लोकल शूट के लिए जायेंगे और शाम को ग्रूप से लक्ष्मी विलास पैलेस में मिल लेंगे ...
वान्या चाय निकालते बोली ...हाँ एकॉर्डिंगली मैंने टूर गाइड के लिए बोल दिया है ...आप के लिए कार दो घंटे में आ जायेगी ...हाँ ब्रेकफास्ट आप यही लेंगे ...मैं पैंट्री में कुछ बना दूंगी या रेस्टोरेंट कार में ..
करन झुकी हुयी , वान्या कि खुली दिखती गोलाइयां नाप रहा था ...और रीत करन को गोलाइयां नापते नाप रही थी ...
करन बोला यही ले लेंगे ...क्यों ...लेकिन रीत ने उसकी बात काट दी ...नही तैयार हो के एक दो घंटे में हम लोग रेस्टोरेंट में ही आ जायंगे.
एकदम ...मयूर महल बहुत ही अच्छा है और इस कैरिज के बगल में ही है ....
फर्श पे गिरी रीत की नेग्लीजी और करन का कुरता पाजामा उठाती वो बोली ...और फिर कहा ...इसे मैं वाशिंग मशीन में डाल देती हूँ ...हाँ आधे घण्टे में मैं आके टी ट्राली ले जाती हूँ ...या वो आप पीली वाली बटन दबा दीजियेगा ...मैं आ जाउंगी .
जैसे ही वान्या जाने के लिए मुड़ी करन कि निगाह उसके मटकते भारी चूतड़ों से चिपक गयी .
रीत ने जोर से उसके गालों पे चिकोटी काटते चिढ़ाया , " देख लिए अपने बहन के चूतड़ ..."
करन ने जवाब कस के उसके गालों कि बाइट ले के दिया ...
" बहन होगी तेरी ...मेरी तो साल्ली लगेगी ."
छुड़ाते हुए अपने मोबाइल का मेसेज देखती रीत बोली ..
." भूल जाओ ...अभी दो घंटे में सचमुच कि साली आती होगी खोज खबर लेगी अच्छे से तेरी ...ये तो तेरी बहन ही है ...मेरी ननद ...लेकिन घबड़ाओ मत चाहे मेरी बहन हो या तेरी चक्कर ...चलाने की पूरी छूट है .." और फिर प्यार से गाल पे किस करके बोली
" बहनचोद ..."
करन ने जोर से उसे बाँहों में भींच लिया ...और बोला ..." हे ये साल्ली है कौन "
सस्पेंस ...हंस के उसे चाय कि प्याली पकड़ते हुए रीत बोली .
टी ट्राली में चाय के साथ बिस्किट्स , क्रोसां और न जाने क्या क्या ...रात की 'मेहनत' के को भूख भी लगी थी .
चाय ख़तम हुयी ही थी कि रीत का मोबाइल घनघनाया ...
इसके पहले भी रीत और करन दोनों के मोबाइल पे मेसेज आ रहे थे ...लेकिन ये जिस का था उस का फोन उठाना ही था ...
दूबे भाभी का ...
उनके पहले ही सवाल पे वो हँसती हँसती दुहरी हो गयी और उसने स्पीकर फोन ऑन कर दिया .
करन भी उससे चिपक गया ...और उसका एक हाथ सीधे रीत के जोबन पे ...
रीत भी क्यों पीछे रहती ...करन का अधजागा शेर उसकी मुट्ठी में ...
दूबे भाभी की रस भरी आवाज फिर केबिन में गूंजी ...कीत्ती बार हुआ.
...
रीत खिलखिलाई ...जैसे पायल कि हजारों चांदी कि घंटियाँ एक साथ बज उठीं हों और बोली ,
" भाभी , अपने नंदोई से सीधे क्यों नहीं पूछ लेतीं ...वो भी सुन रहे हैं ..."
" अरे तो क्या तेरे मुंह में नंदोई का या उसके साले का लंड घुसा है जो बोल नहीं पा रही है ..." दूबे भाभी तो दूबे भाभी थीं ...ननद को रगड़ने का मौका क्यों छोड़ती .
रीत फिर फुलझड़ी कि तरह हंसी और बोली
" भाभी आपने पूरी तरह दल बदल दिया ...एकदम नंदोई की ओर हो गयीं ...आप ये बताइये ...कल आपने इन्हे पूरी कितनी खिलायी थी ..."
" छह पूरी खिलायी थी ...क्यों ...अच्छा तो क्या छह बार चढ़ाई हुयी तेरे ऊपर ..."
ख़ुशी से मगन दूबे भाभी ने पूछा
" नहीं भाभी ...सिर्फ तीन बार ..." मुंह बनाकर रीत बोली ...
अब करन मैदान में आ गया ...फोन ले के बोला ...' भाभी आपकी ननद झूठी है ..एक कटोरा मलायी सीधे मुंह से गटक गयी डकार भी नहीं ली ...रास्ते में ही ...."
दूबे भाभी ने फिर करन का ही पक्ष लिया बोली ...
" मुंह में भी ....वो भी रास्ते में ही ...और ऊपर से ..."
करन फिर बोला .." ये आपकी ननद ही चिंचिया रही थी ...अभी दो बार और ....
दूबे भाभी ने अब ज्ञान कि बात बोली ..
." अरे नंदोई जी ....तुम भी न इस के चीखने चिल्लाने चिंचियाने की काहें फिकर करते हो ...तेरा माल है ..जब चाहे तब जैसे चाहे तैसे ...जितना चिंचियाय उतना और हॅचक के रगडो ...मैं तो तुम दोनोंहोली कि बधाई को देने के लिए फोन की थी ...इस साल की होली की तरह हर साल तुम दोनों होली में साथ रहो मजे लो ..."
" और भाभी आप के साथ होली ..." करन ने पूछा ...
" हमार तोहार फगुआ उधार रहा ...वैसे भी नंदोई सलहज का साल भर फागुन चलता है ...जब मिलोगे तभी रगड़ दूंगी ...लेकिन आज जरा ई हमार ननद के अपनी और से भी और हमारी और से भी जम के रगड़ो ..."
दूबे भाभी ने ये बोल फोन रख दिया ...
और करन एक बार फिर भाभी के आदेशानुसार ...रीत के ऊपर चढ़ गया
कपडे तो दोनों में से किसी के बदन पे नहीं थे ...
कम्बल करन ने सरकाया तो पलंग के नीचे जा गिरा ...
अब तक करन सीख गया था और रीत समझ गयी थी ...करन डायरेक्ट ऐक्शन में विश्वास रखता है ..
रीत कि दोनों गोरी लम्बी टाँगे पल भर में दुहरी थीं ...केले के तने सी चिकनी जांघे खूब फैली ...
और करन अंदर ...पूरा नहीं ...लेकिन सुपाड़ा ...पूरा
अब न तो रीत ने डर के या शर्म से आँखे बंद कीं ...न टोका कि गाडी स्टेशन पे प्लेटफार्म में खड़ी है ...
सजनी को साजन का मन मालूम था और साजन को सजनी का ...
थोड़े ही देर में धक्कों की रफ्तार तेज हो गयी ...
और उसी स्पीड से रीत भी अपने मस्त चूतड़ ऊपर उठा रही थी ...अपने नाख़ून करन कि पीठ में धंसा रही थी ...और उसे उकसा रही थी ...
" लगता है अपनी उस बहन के मस्त चूतड़ को देख के और जोश में आ गया है तेरा मुस्टंडा ... " गाल काटते हुए वो बोली ...
" तेरी बहन की फुद्दी मारूं ..." करन ने जोश से धक्के मारते हुए कहा .
" अरे उन साल्लियो कि तो तुम नहीं मारोगे तो मैं पकड़ के मरवाउंगी ...लेकिन अभी तो लगता है तेरा बहनचोद बनने का मूड है ."
रीत एकदम दूबे भाभी की ननद थी ...
उन्हों ने न कोई पोज बदला न आसन ...बस हचक के चुदाई ...रीत चुदती रही ...करन चोदता रहा ...
और रीत सोचती रही ...सच में यही तो उस का सपना था ...वह और करन हर पल हर दिन साथ रहें ....और ये होली वो खुशियां लायी
करन के हाथ रीत कि मस्त चूँचियों का रस लेते लेते थक नहीं रहे थे और होंठ रीत के गुलाब की पंखुड़ियों ऐसे होंठो और गालों का
जब सूर्खिए-गुलशन का कभी जिक्र हुआ है,
तेरे लबो-रूखसार की बात आ ही गई है।
करन ने रीत के कान में कहा ...और वो और सुर्ख रु हो गयी .
आधे घंटे तक ...न रीत थकी न करन ...
और जब करन झड़ा तो रीत दो बार झड चुकी थी ...
अब तक वो दोनों दुनिया से बेखबर थे ...
अब जब करन ने अपना मोबाइल उठाया तो जोर से चौंका ...दो उसके फोन उसके बॉस के ...एक रा से ..दो आई बी से और एक यहाँ के पुलिस कमिशनर का ...
रीत अभी भी थकी सी लेटी थी ...
करन ने एक तौलिया लपेटा और बगल के केबिन में जाने लगा ...तो रीत को याद आया ...आनंद ने बोला था वो एक डिटेल्ड रिपोर्ट मेल करेगा ..जो उसके हैकर्स ने बताया उसके बेस पे ...
करन को उसने बोला ...हे वो मेरी मेल खोल के रिपोर्ट डाउनलोड कर लेना और प्रिंट भी ....
ओके करन निकलते हुए बोला ...
रीत ने अपना मोबाइल खोला तो गुड्डी का, रेहन का एस एम् एस और ...मीनल कि मिस्ड काल ....
रीत ने मीनल से बात की ...लेकिन फोन रखते ही उसे कुछ याद आया ....और उसने मीनल को मेसेज किया ...
वो जल्दी में सिर्फ कुर्ती पाजामी उठा लायी थी ...लेकिन यहाँ उसे टॉप और जीन्स चहिये होगी यार्ड में जाने के लिए ...
वो भी उठ के बाथरूम में पहुंची ...और उस की आँखे फटी रह गयीं
बाथरूम ...वो सोच भी नहीं सकती थी ट्रेन के अंदर ऐसा बाथरूम हो सकता है ...मार्बल का बाथ टब और साइज ऐसी कि दो लोग नहा लें ...बल्कि नहाने के साथ ''और भी बहुत कुछ 'कर सकते थे ...
वो सोच रही थी ...करन के साथ नहाने में कितना मजा आता ...
लेकिन फिर उसने सोचा कोई बात नहीं आज रात भी तो इसी में रहना है और कल दिन भी ...ट्रेन लेट नाइट मुम्बई के लिए चलने वाली थी और उन दोनों ने तय किया था इसी में रहेंगे ...
बाथटब के अलावा ...शावर क्यूबिकल ...सिल्वर फिटिंगस ...और पाटेड प्लांट्स ...
गुनगुना पानी बाथ टब में उसने भर लिया था ....और बबुल बाथ के लिए सोप भी डाल दिया ...
थोड़ देर वो बाथ टब में वो पड़ी रही ...देह कि सारी थकान ..इतने दिनों की भाग दौड़ ...तन पर जमी सब मैल ..सब कुछ निकल गयी ...फिर उसने आराम से शैम्पू किया ...
और जब बाहर वो बाथ रॉब में
निकली तो कसर वान्या ने पूरी कर दी ...
" मैं एक ट्रेन्ड ग्रूमिंग एक्सपर्ट हूँ ..." उसके बाल ठीक करते वो बोली .
रीत के मन में वो बात थी ...जो वो करन को वान्या को अपनी ननद बना के चिढ़ाती थी ...उसने वान्या से बोल ही दिया ..
" आप ऐसी मेरी एक बड़ी ननद है ..."
हंसती हुयी वान्या बोली ...मैं ननद बनने के लिए तैयार हूँ ...लेकिन दो शर्ते है ...एक तो आप कहना बंद ...हम दोनों एक दूसरे को तुम कह सकते है .."
" मंजूर और दूसरी शर्त ..." हँसते हुए रीत ने पूछा .
"तुम मुझे ग्रूम करने दोगी आखिर ...अब मेरे भाई के फायदे का सवाल है ..." वो खिलखिलाते हुए बोली .
मंजूर ...रीत बोली ...वो जानती थी करन अभी फोन , रिपॉर्ट पढ़ने , मेल देखने में बीजी होगा और मीनल के आने में भी अभी एक घंटा है ...
वान्या ने पहले हाथों से शुरुआत की ....मैनीक्योर ..नेल पेंट ...और फिर हिना भी ...
हे भाभी नयी दुल्हन के लिए मेहंदी जरुरी है ...और वो भी हाथों तक ...
और जब तक मेहंदी सूखती ...पेडीक्योर ...फेसिअल ...यहाँ तक कि लिपस्टिक और आँखों में आई शैडो भी ...
रीत ड्रेस चेंज कर बैठी थी ...मीनल के इन्तजार में और वो सोचने लगी ...मीनल के कंट्रीब्यूशन के बारे में
मीनल मीनल शाह
चौतीस सी का पुष्ट वक्ष ...और अट्ठाइस की कमर, गोरी गुज्जु बाला ...नाचती तो फिरकी को मात कर देती ...इसी रूप पे तो फिदा हो गया था आनंद हीरो हमारा ...जब वो गरबा के दिनों में बड़ोदा में था ...उस समय मीनल एम् एस यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स में पढ़ती ...आनंद को उसने बड़ोदा घुमाया , नचाया ...और दोनों की पक्की दोस्ती हो गयी ....
और यही मीनल काम आयी आतंक के सूत्र को बड़ोदा में जोड़ने में ...
पता तो रीत ने किया ...कोडेड स्टोरी का पता कर ...बुब्बस आन फायर जो जेड ने लिट इरोटिका पे पोस्ट की थी और जो कहानी के जरिये उसने अपने आकाओं को प्रोग्राम बताया था लेकिन रीत ने और फिर हैकर्स ने उसे डी साइफर किया और पता चला की ...बनारस के साथ साथ जो और शहर निशाने पे हैं ...वो हैं बड़ोदा और बाम्बे ( मुम्बई ).. लेकिन जब रीत ने रेहन और उस के ठरकियों के जरिये ( उन सब को उसने रंजी का चारा डाला था ...वो सब को रंजी कि दिलवाएगी , जब रंजी बनारस आएगी ) पता किया कि ...बॉम्बर ( जिसने आर डी एक्स से बनारस में बॉम्ब बनाये थे ) ने जेड के साडी के पैकेट के साथ लगता है पार्सल से बड़ोदा और मुम्बई के लिए उन्हें भेजा है और वो खुद सावरमती एक्सप्रेस के एस 6 कोच से बनारस से बड़ोदा गया है ...तो आगे का काम मीनल ने ही सम्भाला .
मीनल ने स्टेशन पे पार्सल एजेंट्स से ये पता किया कि वो पैकेट जो आदमी छुड़वाने आया है ...वो बड़ोदा स्टेशन के अलकापुरी एंड पे हार्मोनी होटल पे टिका है ...लेकिन वहाँ से भी वो दो दिन में एक लाज में शिफ्ट हो गया . मीनल ने न सिर्फ उस लाज का पता लगाया ...बल्कि उससे मिलने वाले एक आदमी का भी जिसे उसने पैकेट दिया था ...
मीनल ने अपने फाइन आर्टस् की पढ़ाई का इस्तेमाल कर के उसका स्केच भी बनाया . और उसे ढूंढ भी निकाला। आनंद ने कार्लोस और अपने कनेक्शन से येतो पता कर लिया था कि बड़ोदा से एक आदमी थुरया सेट फोन से रात में उसी जगह बात करता है जहाँ से जेड बनारस से बात करता है ...और ये रेल्वे के के एक यार्ड के पास की है ...
मीनल ने जब उस का पता रेलवे में स्केच कि सहायता से लगाया ...तो पता चला कि वो एक बैचलर है ..टी एक्स आर ( ट्रेन कैरिज एक्जामिनर ) में , हेड टी एक्स आर के पोस्ट पे काम करता है ...
मीनल जो अब पत्रकार बन गयी थी ...उस से मिली भी ...दो बार उस के काम का भी उसने जायजा लिया . इसी यार्ड के बगल में हिंदुस्तान कि सरकारी क्षेत्र में सबसे बड़ी रिफायनरी थी और साथ में एल पी जी डिपो , फर्टिलाइजर फैक्ट्री और पेट्रोलियुम के अनेक संयत्र थे ...
ये इन्फोर्मेशन उन्होंने आई बी के साथ गुजरात सरकार से शेयर नहीं की थी , जिन्होंने रेड अलर्ट घोषित कर दिया था और उन का मानना था कि अब परिंदा भी पर नहीं मार सकता.
लेकिन रीत और आनंद कि सोच अलग थी और ...उसके ठोस कारण थे ...
हैकर्स ने जो आखिरी बात चीत सेट फोन की रिकार्ड की थी ...उसमें ये साफ हो गया था कि होली कि रात को ही हमला होगा .
ये सम्भावना भी काफी थी कि हमले का टारगेट पेट्रो काम्प्लेक्स हो ...
लेकिन हमला कैसे होगा इस की कोई सुनगुन नहीं थी ...
वो लोग उस आदमी को जिसे कोड नेम वाई दिया था ...उसे पहले पकड़ना नहीं चाहते थे ..
एक तो उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था ... दुसरे उसे ट्रेस कर के वो हमले के सोर्स तक पहुँच सकते थे और तीसरी बात जो सबसे खतरनाक थी ...अगर उसका कोई वैकल्पिक स्लीपर उसके आकाओं ने तैयार कर कर रखा होगा तो उसका तो उन्हें कोई पता नहीं था ...
और फिर हमले को रोकना नामुमकिन हो जाता ...
बनारस में जिस तरह रेहन और कार्लोस कि सहायता से उनके दांत रीत ने उखाड़े थे ...इसलिए ये तय हुआ था कि रीत बड़ोदा जाए ...और वहाँ मीनल उसकी सहायता करेगी .
मीनल का रोल बहोत इम्पोर्टेंट था उसने 'वाई ' को देखा था ...उसके काम के तरीके को जानती थी और कई बार यार्ड में गयी थी . काम खतरनाक था लेकिन मीनल उसके लिए तैयार थी ...
रीत मीनल के बारे में सोच ही रही थी कि करन केबिन में आया नहा धो के तैयार हो के ...उसके हाथ में एक मोटी सी रिपोर्ट भी थी .
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फागुन के दिन चार--105
गतांक से आगे ...........
करन मस्ती से पागल हो रहा था और उससे भी ज्यादा उसका मुस्टंडा ...
बिना रुके करन ने दूसरा धक्का लगाया , फिर तीसरा ...
रीत दर्द में डूबी हुयी थी ...लेकिन इसी दर्द के बिना तो उसे उसकी जिंदगी बेकार लग रही थी ...उसकी जांघे फटी पड़ रही थीं ...लेकिन फिर भी वो जांघो को जोर से फैलाए हुए थी ....
उसकी सारी संवेदनाये , सारी अनुभूतियाँ बस एक जगह ...थीं ...उसकी चिकनी रेशमी जांघो के बीच उसकी परी प़र ...
करन ने फिर दो धक्के और पूरी ताकत से लगाये और ....और अब लिंग मुंड अन्दर था ....रीत के योनि द्वार पूरी तरह फैल चुके थे ...इतना मोटा बस लग रहा था अब उसकी योनि फट जायेगी बचेगी नही ...
करन के हाथ ने अब उसकी एक कलाई छोड़ी और रीत के गदराये , मस्त किशोर उभारों को हलके हलके सहलाने लगा ...रीत के गोर कबूतर अब उड़ने लगे थे ...और जैसे ही कर्ण ने उनकी लाल गुलाबी चोंचो को पकड़ा ...मस्ती से रीत के गद्दर जोबन पत्थर हो गए .
करन के होंठों ने अब रीत के होंठो को आजाद कर दिया ...लेकिन भौंरे की तरह कभी वो उसके गुलाबू गालों पे बैठ के उसे चूम लेता काट लेता कभी सपनों से लदी पलकों पे
रीत नीम निगाहों से करन को देख रही थी ...
सिर्फ ख़ुशी ...करन की आँखों में , चेहरे पे , पूरी देह से सिर्फ ख़ुशी बिखर रही थी ...
इस ख़ुशी के लिए तो रीत कुछ भी कुर्बान करने को , सहने को तैयार थी ...देह का दर्द क्या ...और अब देह तो करन की ही थी ...
रीत ने खुद अपना सर उठा के करन के होंठों को चूम लिया ...अपनी बाहों में उसे जकड लिया ...
करन को तो इसी ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार था ...
उसने एक हाथ से रीत के मस्त जोबन को कचकचा के पकड़ा और दूसरा उसके भरे नितम्ब पे ...
मुस्टंडे को थोडा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से अन्दर ढकेल दिया ...
योनि को रगड़ता दरेरता घिसटता ...वो अब आधे से ज्यादा अन्दर घुस चुका था ...
गाडी तेजी से दौड़ती जा रही थी और अन्दर प्रेम की गाडी भी ...
जैसे इंजन का पिस्टन अन्दर बाहर अन्दर बाहर हो रहा था ...उसी तरह करन का मोटा लिंग रीत की योनि में सटासट सटासट घचा घच अन्दर बाहर हो रहा था ...
गलती से रीत के मुंह से निकल गया ...हो गया पूरा ...
करन ने मुस्करा के कहा ...हाँ आलमोस्ट ...आधा ..
दूबे भाभी की सिखाई , बनारस के रस में में पगी के मुंह से गलती से निकल गया ...बाकी क्या मेरी ससुराल वालियों के लिए बचा कर रखा है ...
फिर तो तूफान आ गया ...
करन ने आलमोस्ट बाहर का लिंग निकाला , उसकी पतली कमर को पकड़ा और एक ही धक्के में पूरा छ इंच लगभग दो तिहाई लिंग अन्दर ....और फिर एक बार आलमोस्ट पूरा बाहर और अगले धक्के में अन्दर ...
रीत की परी के लग रहा था परखच्चे उड़ जायेंगे ....
रीत ने जोर से दोनों हाथो से पलंग को पकड़ रखा था ...दांतों से होंठ को भींच रखा था ...लेकिन कितना सहती वो ...उसकी एक हलकी सी चीख निकल गयी ...
और तुरंत उसे अपनी गलती का अहसास हो गया ...करन के धक्के धीमे हों ...उसके पहले उसने करन को अपनी बांहों में भींच लिया ...और उसके इयर लोब्स पे किस कर के बोली ...
" मुझे करन चाहिए ...पूरा करन ...भले मुझे कित्ता भी दर्द क्यों ना हो प्रामिस मी ..."
और अगले ही पल ...करन का लिंग ...उसका मुस्टंडा पूरी तरह रीत के अन्दर था ...मुस्टंडे का मुंड ...रीत के बच्चेदानी से लड़ रहा था.
करन के न जाने कितने हाथ उग आये थे ...न जाने कितने होंठ ...
कभी वो उसके गालों को चूम लेता , चूस लेता तो कभी हलके से काट लेता ...कभी उसके होंठ रीत के उरोजों के बेस से चुम्बन यात्रा शुरू करते और ...वो उसके निपल्स को ले के जोर जोर से चूसता चुभलाता ...
हाथ लगातार जोबन मर्दन कर रहे थे ...निपल को पुल कर रहे थे और कभी नीचे पहुँच के उसकी क्लिट को दबा देते रगड़ देते ...
लिंग लगातार अन्दर बाहर हो रहा था ...
रीत की टाँगे किसी लता की तरह करन की देह से लिपटी थी ...वो जोर जोर से उसे भींच लेती , कभी अपने मस्त नितम्ब उठा के करन के धक्के का जवाब धक्के से देती तो कभी , उसकी परी , उसकी योनि जोर से लिंग को भींच लेती सिकोड़ लेती ...
वक्त ठहर गया था ...
और जब करन ने रीत की गुलाबी क्लिट को पूरी तेजी से धक्के मारते हुए छेड़ा ...तो बस वो पत्ते की तरह कांपने लगी ..सिसकने लगी ...जोर से उसने करन को भींच लिया ...अब वो प्यार के शिखर पे पहुँच रही थी ...झड रही थी ...बाहर रात झड रही थी ...
करन एक पलके लिए रुका ...और जब रीत का कांपना कम हुआ तो उसने रीत को दुहरा कर दिया ...फिर तो लिंग अब पूरी तरह से आलमोस्ट बहार निकाल के वो हचक हचक के चोद रहा था ...
रीत एक दम थकी थी ...लेकिन फिर भी उसकी आँखे मुस्करा रही थी नाच रही थीं थिरक रही थीं करन की ताल पे ....
एक बार फिर रीत कगार पे थी ...उस के लम्बे नाखून करन की पीठ पे धंस रहे थे ...बाल पलंग पे फैले हुए थे ...नितम्ब लिंग के साथ अपने आप ऊपर नीचे हो रहे थे ...
और अबकी वो जो गयी तो साथ में करन को ले के ...उसकी गुलाबी मखमली संकरी प्रेम गली बार बार सिकुड़ रही थी ...
करन का लिंग भी अब कांप रहा था जोर जोर से ... अबकी साथ साथ मंजिल पे पहुंचे ....
बूँद बूँद वो रीत रहा था रीत में ...रीत के सबसे अन्दर तक ...
कम से कम अंजुरी भर गाढ़ी मलाई ...रीत की नदीदी गुलाबी सहेली ने जोर से अपने को सिकोड़ लिया ...जैसे एक बूँद भी बाहर नहीं जाने देगी ...
और करन के लिंग ने फिर एक बार बूँद बूँद कर रीतना शुरू कर दिया ...
बहुत तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे थके , शिथिल
पहल करन ने की , रीत को खींच के उसने हेड बोर्ड के सहारे बैठा दिया .
एक बार फिर शर्म बीच में आ रही थी ...रीत ने रजाई ऊपर खींच कर अपने उभारों को ढकने की कोशिश की लेकिन करन कहाँ ये होने देता . उसने रजाई सरकाकर , थोडा नीचे कर दी और एक हाथ अब फिर सीधे रीत के कमल सदृश खिले उरोज पर , जहाँ उसके नाख़ून और दांतों के भी निशान भी थे .
रीत ने शरमाकर सर करन की चौड़ी छाती में छुपा लिया।
करन ने बेडरूम की बड़ी शीशे की खिड़की पर से पर्दा सरका दिया .
बाहर से चौदहवीं का चाँद दमक रहा था खिडकी से झाँक रहा था ...ट्रेन सौ किलोमीटर से भी तेज रफ्तार से भाग रही थी ...पेड़ ... भाग रहे थे . रास्ते में छोटे छोटे स्टेशन पर स्टेशन मास्टर , जुगनुओं की तरह टार्च दिखा कर ट्रेन से सिग्नल एक्सचेंज कर रहे थे .
अचानक एक छोटे से स्टेशन पे गाडी रुकी, शायद क्रासिंग के लिए .
और शरमा कर रीत करन से दुबक गयी और बार बार इशारा करने , लगी पर्दा खींचने के लिए
लेकिन बजाय पर्दा खींचने के करन ने रीत को अपनी ओर खींच कर दुबका लिया और जोर जोर से उसके गाल चूमने लगा , होंठो को अपने होंठो के बीच ले के जोर से चूसने लगा ...मानो ये कह रहा हो ...जलती है दुनिया जलती रहे ...ये अनिन्द्य सुंदरी , सारंग नयनी बिंदास बनारसी बाला मेरी है ...उसके हाथ भी रीत के जोबन चूम रहे थे ...
तब रीत को अहसास हुआ ...एसी डिब्बे की खिडकी से बाहर तो दिख सकता ,लेकिन बाहर वाले कुछ नहीं देख सकते ..और ऊपर से सिर्फ नाईट बल्ब की हलकी वहां तैर रही थी... और इतने दिनों उसका करन उसे मिला था दुनिया देखे तो देखे ....
रीत ने भी करन के सर को दोनों हाथों से पकड लिया और जोर से उसके चुम्बन का जवाब चुम्बन से देने लगी ...अब करन के दोनों होंठ उसके होंठों के बीच थे ...कुछ ही पल में करन ने अपनी जीभ रीत के मखमली मुंह में ठेल दिया ...जैसे कुछ देर पहले करन का लिंग उसके मुंह में अठखेलियाँ कर रहा था , जहाज में .अब वही काम करन की जुबान कर रही थी और रीत उतने ही जोश से उसे चूस रही थी ....
करन के हाथ रीत की गोलाइयों से खेल रहे थे कभी उसे सहला देते कभी दबा देते ...कभी निपल्स को पुल कर देते .
गाडी अभी भी स्टेशन पे खड़ी थी .
तभी रीत की निगाह केसर पड़े दूध के ग्लास पे पड़ी और उसने उसकी ओर इशारा किया .
जवाब में रीत को करन ने खींच के अपनी गोद में बिठा लिया , जबरन ...दोनों के चेहरे एक दूसरे की ओर थे . रीत के मस्त जोबन करन की छाती में दब रहे थे और एक से हाथ से करन ने रीत को अपनी ओर खींच रखा था .
रीत ने करन को दूध पकड़ाना चाहा , तो उसने सर हिलाके मना कर दिया और इशारे से बोला , तुम पिलाओ जैसे कह रहा हो उसके दोनों हाथ बिजी हैं ...
हाथ तो करन के बिजी हो गए थे ...अब वो जम के रीत के दोनों गद्दर जोबन दबा रहा था मसल रहा था।
रीत ने ग्लास से एक घूँट दूध करन को पिलाया और जहाँ करन के होंठ लगे थे , वहीँ से खुद पिया .
दो चार घूँट के बाद ही दूध का असर या करन के होंठो का या ..दूध में केसर के साथ वान्या ने जो हर्ब्स डाली थी ..उसका असर ...दोनों कि थकान तो ख़तम ही होगयी रति ज्वर एक बार फिर से पीक पर पहुँच गया .
करन के एक हाथ ने रीत के रसीले उरोजों को तो मुक्त किया , लेकिन फिर वो भीगी गीली गुलाबी परी कि खोज खबर लेने लगा . उसे अब दोनों जांघो के बीच छुपे खजाने के रास्ते का पता चल ही गया था बल उंगलिया , फिर कभी उसे ऊपर से सहलाती तो कभी टिप अंदर घुस जातीं . हाँ , वो जोबन जो हाथ से आजाद हुआ , होंठों कि गिरफ्त में आ गया।
रीत का एक हाथ ग्लास में फंसा था ...लेकिन दूसरा तो खाली था उसने भी अपने प्यारे मुस्टंडे को सहलाना शूरु किया और थोड़ी ही देर में शेर फिर से जाग उठा ..शिकार कि तलाश में ...शिकार तो ठीक उसके सामने था ...बस रीत कि गीली गुलाबी चुनमुनिया पे उसने सर रगड़ना शुरू कर दिया . रीत कि जांघे स्वागत में अपने आप फैलने लगी ...
दोनों बेताब थे ....
करन ने रीत के हाथ से ग्लास लिया ...एक घूँट में बचा दूध ख़तम किया , और ग्लास को साइड टेबल पे रख दिया .
गाडी जिस छोटे स्टेशन पे क्रासिंग के लिए खड़ी थी ...वहाँ पे धड़धड़ाती हुयी एक माल गाडी गुजरी ...
करन ने हलके से धक्का देके , रीत को पलंग पे गिरा दिया ...और अब बिना किसी भूमिका के उसकी दोनों टांगो को मोड़ के दुहरा कर दिया और दूबे भाभी की दी हुयी वैसलीन कि शीशी से , ढेर सारा वैसलीन निकाल के पहले तो अपने मोटे लिंग पे मला ...और फिर दो उँगलियों में लगा के रीत कि योनि पे ...
और सुपाड़ा चूत के मुंह पे सटा के जोर का धक्का मार दिया .
असली लुब्रिकेंट तो उसकी अंजुरी भर गाढ़ी मलायी थी जिससे रीत कि बुर लबालब हो रही थी ...
रीत ने अबकी आँखे नहीं बंद की ..करन के चेहरे की हर ख़ुशी , जोश को व् अपने आँखों कि प्याली में रोप रोप कर पी लेना चाहती थी ...
करन के हाथ रीत के दोनों भारी नितम्बो पे थे ...और एक के बाद एक वो धक्के मार रहा था ...तीन चार धक्को में सुपाड़ा पूरा अंदर था .
रुकी हुयी ट्रेन भी चल चुकी थी . खुली खिड़की से बाहर की चांदनी पूरी तरह आ रही थी ...और बिस्तर पर पूनम का चाँद करन के हाथो में था.
एक ओर ट्रेन ने स्पीड पकड़ी ...और दूसरी ओर करन ने ...
लम्बा मोटा लिंग आधे से ज्यादा अंदर घुस चुका था ...
रीत सिहर रही थी सिसक रही थी ...और करन ठेले जा रहा था उसके दोनों मस्त चूतड़ पकड़ के अपनी पूरी ताकत से ...
और थोड़ी देर में जैसे ट्रेन और करन में मुकाबला शुरू हो गया ...कौन कितनी जल्दी फूल स्पीड पकड़ सकता है ...
करन का मोटा मुस्टंडा ...अब सटासट सटासट अंदर बाहर हो रहा था ...करन के हाथ और होंठ भी कभी दबाते कभी सहलाते ...रीत भी अब अपने नितम्ब उठा उठा के धक्कों का जवाब दे रही थी , उसके दोनों हाथ करन को उसकी देह की ओर खींचे हुए थे , रीत के लम्बे करन कि पीठ और सीने पे निशान बना रहे थे .. और उन दोनों कि देह से मोगरे , जूही और चमेली के फूल कुचले जा रहे थे .
थोड़ी ही देर में करन ने पोजिशन बदली ...और रीत को खिंच कर पलंग के किनारे ले आया ...अब वो खुद पलंग के नीचे खड़ा था ..और रीत के नितम्ब पलंग कि एज पे ...उसकी दोनों लम्बी गोरी टाँगे , करन के कंधे पे ...करन ने एक पल उसे सेट किया और अबकी उसकी पतली कमर पकड़ के वो जोर का धक्का मारा कि लगभग पूरा आठ इंच ...एक बार में अंदर ...
इंजन ने बड़ी जोर से सीटी मारी और ...रीत कि तेज चीख उस में दब के रह गयी .
ट्रेन किसी पुल से गुजर रही थी ...और उस कि रफ्तार थोड़ी धीमी हो गयी ...
करन का लिंग भी अब हौले हौले अंदर बाहर हो रहा था
उधर पुल थरथरा रहा था ....और इधर रीत ...
साथ ही साथ झुक के बादल रीत कि मस्त गदराई किशोर चूंचियों का स्वाद भी ले रहा था ...कभी चूसता , कभी काट लेता ..
और उस के हाथ रीत के गुलाबी क्लिट को छेड़ रहे थे ...
थोड़ी देर में रीत खुद पागल हो गयी .बोलने लगी करो करो ...और जोर से करो ...
करन ने कभी रीत की कोई बात टाली थी कि ये बात टालता ...थोड़े ही देर में जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ...उस तेजी से बिना रुके उसने तूफानी धक्के लगाने शुरू किये ...और साथ साथ ही जब उसे लगता कि रीत किनारे पे पहुँचने वाली है ...वो रुक जाता ...और फिर थोड़ी देर में उसी स्पीड से ....
कुछ देर में वो दोनों फिर पलंग पे थे ...रीत करन कि गोद में ...फर्क सिर्फ ये था कि करन का लंड अभी भी रीत कि कसी कच्ची चूत में पूरी तरह पैबस्त था ...रीत ने अपने एक हाथ से करन को पकड़ रखा था और उस कि गोद में वो फागुन में सावन के झूले का मजा ले रही थी ...तभी उसे चांदी कि ट्रे में रखा पान दिखा ...और अगले पल वो रीत के होंठो के बीच ...कभी वो बनारसी बाला ...अपने साजन को ललचाती तो कभी ...एक बाइट दे के होंठ पीछे खींच लेती ...करन ने एक झपट्टा मार के उसके होंठो को अपने होंठो कि गिरफ्त में किया ...होंठो और पान के रस के साथ ...उसने धक्को कि रफ्तार भी बढ़ा दी ..रीतभी पूरी तरह उसका साथ दे रही थी काम के इस झूले में ...
पान ख़तम होने के साथ ही वो दोनों पे अगल बगल लेटे सम्भोग का मजा ले रहे थे ...रीत कि टाँगे करन के उपर डोनो ..दोनों कि देह गुत्थमगुत्था ...करन ने एक बार फिर स्पीड बढ़ायी ...
सिर्फ दोनों कि सिसकारिया गूँज रही थीं ....
और अबकी जब रीत कगार पे पहुंची तो करन रुका नहीं बल्कि उसने धक्कों कि रफ्तार और बढ़ा दी ....
रीत कि कोमल कसी चूत अब बार बार करन के लिंग को भींच रही थी वो पत्ते कि तरह काँप रही थी ...झड़ रही थी ...और उसी के साथ करन भी ...बूँद बूँद रीत गया ...
दोनों एक दूसरे के बांहो में उसी तरह सो गए ...
कुछ जागी कुछ सोयी रीत के मन में गुड्डी कि याद आयी ...
वो भी तो इस समय ...
उसको जलाने के लिए उसने एक एस एम् एस दाग दिया ...
दो बार हो गया ...
कुछ ही देर में गुड्डी का जवाब आया ...बधाई ...मेरी भी पिछवाड़े का बाजा बज गया ..
सोचते मुस्कराते , रीत कि आँखे लग गयीं . करण की बाहों में ...
गाडी तेजी से दौड़ रही थी ...अपने स्टेशन पे पहुँचने को ...
चाँद भी पश्चिम कि और पहुंचने कि जल्दी में तेजी से पग भर रहा था ...
करन रीत सबसे बेखबर एक दूसरे कि बाँहों में गुथे लिपटे सो रहे थे ..
नींद थोड़ी सी खुली रीत कि ...
भोर कि हलकी सी दस्तक आसमान पे दिखने लगी थी ...
रात का रंग हल्का पड़ने लगा था ..
रीत थोड़ी सोयी थोड़ी जागी थी और उसका हाथ पड़ा करन के शेर पे ...
वो एकदम जागा , तन्नाया , भूखा ...
भोर के समय तो सबका खड़ा हो जाता है और ये तो करन का मोटा मुस्टंडा था ..
रीत ने वही गलती कि ...बल्कि दो गलती ...
एक तो उसने शेर को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया ...और दूसरी ...अपनी टाँगे उठा के करन के ऊपर रख दी ...
नतीजा ...शेर दहाड़ने लगा और उसका मुंह सीधे गुफा के पास ..
करन की नींद हलके से खुली ...थोड़े सोये थोड़े जागे उसने रीत को अपनी और खींच लिया ...और शेर गुफा में घुस गया
आधी नींद में दोनों हलके हलके धक्के लगाते ..एक दूसरे को जकड़े ...कब झड़े ..कब सोये कब पता नहीं ...
हाँ जब नींद खुली तो करन अभी भी रीत के अंदर था ...और हाथ उसके रीत के किशोर उभारों पे...
...
नींद खुली वान्या के गुड मार्निंग से ...
वह दोनों ऐसे ही लिपटे चिपटे , दूध पानी की तरह दूसरे से मिले , कुछ रजाई में ढके कुछ उघड़े , सो रहे थे ...
बड़ोदा कब का आ गया था ...
गुड मार्निंग ...चाय गरम ... जागो सोने वालों ...टी ट्राली के साथ वान्या केबिन में घुसी ...
पहले तो रीत कुछ झिझकी , करन से दूर होने कि कोशिश कि ...पर करन ने उसे खींच के अपनी ऒर कर लिया ...और जब उन दोनों ने वान्या कि ड्रेस देखी तो ...बची खुची नींद भी गायब हो गयी ...
परफेक्ट फ्रेंच मेड की कास्ट्यूम ..
काले फिशनेट कि स्टाकिंग ...घुटने से थोड़ी ऊपर तक जिसमें से उसकी लम्बी टांगो की गोराई बाहर झाँक रही थी ..
छोटी सी खूब घेरदार काली स्कर्ट , जो घुटनों से बहुत पहले ख़तम हो रही थी ...और उपर एक सफेद ऐप्रन ..
टॉप ...एक लो बॉडीस ...जिसमें उसकी गोरी गोलाइयां भी गुड मार्निंग कह रही थी ...
एक लेसी नेक पीस ...जिससे उसकी गहराइयाँ और खुल के दिख रही थीं ...
और एक छोटी सी हेड पीस कैप कि तरह ..
जवाब गुड मार्निंग का पहले करन फिर रीत ने दिया ...
चाय कि ट्रे लगाते वान्या बोली ...बाकी ग्रुप थोड़ी देर पहले चांपानेर वर्ड हेरिटेज साइट के लिए जा चुका है ...आप ने बोला था इसलिए मैंने जगाया नहीं ...
उसकी बात काट के करन बोला ...हाँ वो मैंने कल ही बोल दिया था ...हा, लोग दिन में कुछ लोकल शूट के लिए जायेंगे और शाम को ग्रूप से लक्ष्मी विलास पैलेस में मिल लेंगे ...
वान्या चाय निकालते बोली ...हाँ एकॉर्डिंगली मैंने टूर गाइड के लिए बोल दिया है ...आप के लिए कार दो घंटे में आ जायेगी ...हाँ ब्रेकफास्ट आप यही लेंगे ...मैं पैंट्री में कुछ बना दूंगी या रेस्टोरेंट कार में ..
करन झुकी हुयी , वान्या कि खुली दिखती गोलाइयां नाप रहा था ...और रीत करन को गोलाइयां नापते नाप रही थी ...
करन बोला यही ले लेंगे ...क्यों ...लेकिन रीत ने उसकी बात काट दी ...नही तैयार हो के एक दो घंटे में हम लोग रेस्टोरेंट में ही आ जायंगे.
एकदम ...मयूर महल बहुत ही अच्छा है और इस कैरिज के बगल में ही है ....
फर्श पे गिरी रीत की नेग्लीजी और करन का कुरता पाजामा उठाती वो बोली ...और फिर कहा ...इसे मैं वाशिंग मशीन में डाल देती हूँ ...हाँ आधे घण्टे में मैं आके टी ट्राली ले जाती हूँ ...या वो आप पीली वाली बटन दबा दीजियेगा ...मैं आ जाउंगी .
जैसे ही वान्या जाने के लिए मुड़ी करन कि निगाह उसके मटकते भारी चूतड़ों से चिपक गयी .
रीत ने जोर से उसके गालों पे चिकोटी काटते चिढ़ाया , " देख लिए अपने बहन के चूतड़ ..."
करन ने जवाब कस के उसके गालों कि बाइट ले के दिया ...
" बहन होगी तेरी ...मेरी तो साल्ली लगेगी ."
छुड़ाते हुए अपने मोबाइल का मेसेज देखती रीत बोली ..
." भूल जाओ ...अभी दो घंटे में सचमुच कि साली आती होगी खोज खबर लेगी अच्छे से तेरी ...ये तो तेरी बहन ही है ...मेरी ननद ...लेकिन घबड़ाओ मत चाहे मेरी बहन हो या तेरी चक्कर ...चलाने की पूरी छूट है .." और फिर प्यार से गाल पे किस करके बोली
" बहनचोद ..."
करन ने जोर से उसे बाँहों में भींच लिया ...और बोला ..." हे ये साल्ली है कौन "
सस्पेंस ...हंस के उसे चाय कि प्याली पकड़ते हुए रीत बोली .
टी ट्राली में चाय के साथ बिस्किट्स , क्रोसां और न जाने क्या क्या ...रात की 'मेहनत' के को भूख भी लगी थी .
चाय ख़तम हुयी ही थी कि रीत का मोबाइल घनघनाया ...
इसके पहले भी रीत और करन दोनों के मोबाइल पे मेसेज आ रहे थे ...लेकिन ये जिस का था उस का फोन उठाना ही था ...
दूबे भाभी का ...
उनके पहले ही सवाल पे वो हँसती हँसती दुहरी हो गयी और उसने स्पीकर फोन ऑन कर दिया .
करन भी उससे चिपक गया ...और उसका एक हाथ सीधे रीत के जोबन पे ...
रीत भी क्यों पीछे रहती ...करन का अधजागा शेर उसकी मुट्ठी में ...
दूबे भाभी की रस भरी आवाज फिर केबिन में गूंजी ...कीत्ती बार हुआ.
...
रीत खिलखिलाई ...जैसे पायल कि हजारों चांदी कि घंटियाँ एक साथ बज उठीं हों और बोली ,
" भाभी , अपने नंदोई से सीधे क्यों नहीं पूछ लेतीं ...वो भी सुन रहे हैं ..."
" अरे तो क्या तेरे मुंह में नंदोई का या उसके साले का लंड घुसा है जो बोल नहीं पा रही है ..." दूबे भाभी तो दूबे भाभी थीं ...ननद को रगड़ने का मौका क्यों छोड़ती .
रीत फिर फुलझड़ी कि तरह हंसी और बोली
" भाभी आपने पूरी तरह दल बदल दिया ...एकदम नंदोई की ओर हो गयीं ...आप ये बताइये ...कल आपने इन्हे पूरी कितनी खिलायी थी ..."
" छह पूरी खिलायी थी ...क्यों ...अच्छा तो क्या छह बार चढ़ाई हुयी तेरे ऊपर ..."
ख़ुशी से मगन दूबे भाभी ने पूछा
" नहीं भाभी ...सिर्फ तीन बार ..." मुंह बनाकर रीत बोली ...
अब करन मैदान में आ गया ...फोन ले के बोला ...' भाभी आपकी ननद झूठी है ..एक कटोरा मलायी सीधे मुंह से गटक गयी डकार भी नहीं ली ...रास्ते में ही ...."
दूबे भाभी ने फिर करन का ही पक्ष लिया बोली ...
" मुंह में भी ....वो भी रास्ते में ही ...और ऊपर से ..."
करन फिर बोला .." ये आपकी ननद ही चिंचिया रही थी ...अभी दो बार और ....
दूबे भाभी ने अब ज्ञान कि बात बोली ..
." अरे नंदोई जी ....तुम भी न इस के चीखने चिल्लाने चिंचियाने की काहें फिकर करते हो ...तेरा माल है ..जब चाहे तब जैसे चाहे तैसे ...जितना चिंचियाय उतना और हॅचक के रगडो ...मैं तो तुम दोनोंहोली कि बधाई को देने के लिए फोन की थी ...इस साल की होली की तरह हर साल तुम दोनों होली में साथ रहो मजे लो ..."
" और भाभी आप के साथ होली ..." करन ने पूछा ...
" हमार तोहार फगुआ उधार रहा ...वैसे भी नंदोई सलहज का साल भर फागुन चलता है ...जब मिलोगे तभी रगड़ दूंगी ...लेकिन आज जरा ई हमार ननद के अपनी और से भी और हमारी और से भी जम के रगड़ो ..."
दूबे भाभी ने ये बोल फोन रख दिया ...
और करन एक बार फिर भाभी के आदेशानुसार ...रीत के ऊपर चढ़ गया
कपडे तो दोनों में से किसी के बदन पे नहीं थे ...
कम्बल करन ने सरकाया तो पलंग के नीचे जा गिरा ...
अब तक करन सीख गया था और रीत समझ गयी थी ...करन डायरेक्ट ऐक्शन में विश्वास रखता है ..
रीत कि दोनों गोरी लम्बी टाँगे पल भर में दुहरी थीं ...केले के तने सी चिकनी जांघे खूब फैली ...
और करन अंदर ...पूरा नहीं ...लेकिन सुपाड़ा ...पूरा
अब न तो रीत ने डर के या शर्म से आँखे बंद कीं ...न टोका कि गाडी स्टेशन पे प्लेटफार्म में खड़ी है ...
सजनी को साजन का मन मालूम था और साजन को सजनी का ...
थोड़े ही देर में धक्कों की रफ्तार तेज हो गयी ...
और उसी स्पीड से रीत भी अपने मस्त चूतड़ ऊपर उठा रही थी ...अपने नाख़ून करन कि पीठ में धंसा रही थी ...और उसे उकसा रही थी ...
" लगता है अपनी उस बहन के मस्त चूतड़ को देख के और जोश में आ गया है तेरा मुस्टंडा ... " गाल काटते हुए वो बोली ...
" तेरी बहन की फुद्दी मारूं ..." करन ने जोश से धक्के मारते हुए कहा .
" अरे उन साल्लियो कि तो तुम नहीं मारोगे तो मैं पकड़ के मरवाउंगी ...लेकिन अभी तो लगता है तेरा बहनचोद बनने का मूड है ."
रीत एकदम दूबे भाभी की ननद थी ...
उन्हों ने न कोई पोज बदला न आसन ...बस हचक के चुदाई ...रीत चुदती रही ...करन चोदता रहा ...
और रीत सोचती रही ...सच में यही तो उस का सपना था ...वह और करन हर पल हर दिन साथ रहें ....और ये होली वो खुशियां लायी
करन के हाथ रीत कि मस्त चूँचियों का रस लेते लेते थक नहीं रहे थे और होंठ रीत के गुलाब की पंखुड़ियों ऐसे होंठो और गालों का
जब सूर्खिए-गुलशन का कभी जिक्र हुआ है,
तेरे लबो-रूखसार की बात आ ही गई है।
करन ने रीत के कान में कहा ...और वो और सुर्ख रु हो गयी .
आधे घंटे तक ...न रीत थकी न करन ...
और जब करन झड़ा तो रीत दो बार झड चुकी थी ...
अब तक वो दोनों दुनिया से बेखबर थे ...
अब जब करन ने अपना मोबाइल उठाया तो जोर से चौंका ...दो उसके फोन उसके बॉस के ...एक रा से ..दो आई बी से और एक यहाँ के पुलिस कमिशनर का ...
रीत अभी भी थकी सी लेटी थी ...
करन ने एक तौलिया लपेटा और बगल के केबिन में जाने लगा ...तो रीत को याद आया ...आनंद ने बोला था वो एक डिटेल्ड रिपोर्ट मेल करेगा ..जो उसके हैकर्स ने बताया उसके बेस पे ...
करन को उसने बोला ...हे वो मेरी मेल खोल के रिपोर्ट डाउनलोड कर लेना और प्रिंट भी ....
ओके करन निकलते हुए बोला ...
रीत ने अपना मोबाइल खोला तो गुड्डी का, रेहन का एस एम् एस और ...मीनल कि मिस्ड काल ....
रीत ने मीनल से बात की ...लेकिन फोन रखते ही उसे कुछ याद आया ....और उसने मीनल को मेसेज किया ...
वो जल्दी में सिर्फ कुर्ती पाजामी उठा लायी थी ...लेकिन यहाँ उसे टॉप और जीन्स चहिये होगी यार्ड में जाने के लिए ...
वो भी उठ के बाथरूम में पहुंची ...और उस की आँखे फटी रह गयीं
बाथरूम ...वो सोच भी नहीं सकती थी ट्रेन के अंदर ऐसा बाथरूम हो सकता है ...मार्बल का बाथ टब और साइज ऐसी कि दो लोग नहा लें ...बल्कि नहाने के साथ ''और भी बहुत कुछ 'कर सकते थे ...
वो सोच रही थी ...करन के साथ नहाने में कितना मजा आता ...
लेकिन फिर उसने सोचा कोई बात नहीं आज रात भी तो इसी में रहना है और कल दिन भी ...ट्रेन लेट नाइट मुम्बई के लिए चलने वाली थी और उन दोनों ने तय किया था इसी में रहेंगे ...
बाथटब के अलावा ...शावर क्यूबिकल ...सिल्वर फिटिंगस ...और पाटेड प्लांट्स ...
गुनगुना पानी बाथ टब में उसने भर लिया था ....और बबुल बाथ के लिए सोप भी डाल दिया ...
थोड़ देर वो बाथ टब में वो पड़ी रही ...देह कि सारी थकान ..इतने दिनों की भाग दौड़ ...तन पर जमी सब मैल ..सब कुछ निकल गयी ...फिर उसने आराम से शैम्पू किया ...
और जब बाहर वो बाथ रॉब में
निकली तो कसर वान्या ने पूरी कर दी ...
" मैं एक ट्रेन्ड ग्रूमिंग एक्सपर्ट हूँ ..." उसके बाल ठीक करते वो बोली .
रीत के मन में वो बात थी ...जो वो करन को वान्या को अपनी ननद बना के चिढ़ाती थी ...उसने वान्या से बोल ही दिया ..
" आप ऐसी मेरी एक बड़ी ननद है ..."
हंसती हुयी वान्या बोली ...मैं ननद बनने के लिए तैयार हूँ ...लेकिन दो शर्ते है ...एक तो आप कहना बंद ...हम दोनों एक दूसरे को तुम कह सकते है .."
" मंजूर और दूसरी शर्त ..." हँसते हुए रीत ने पूछा .
"तुम मुझे ग्रूम करने दोगी आखिर ...अब मेरे भाई के फायदे का सवाल है ..." वो खिलखिलाते हुए बोली .
मंजूर ...रीत बोली ...वो जानती थी करन अभी फोन , रिपॉर्ट पढ़ने , मेल देखने में बीजी होगा और मीनल के आने में भी अभी एक घंटा है ...
वान्या ने पहले हाथों से शुरुआत की ....मैनीक्योर ..नेल पेंट ...और फिर हिना भी ...
हे भाभी नयी दुल्हन के लिए मेहंदी जरुरी है ...और वो भी हाथों तक ...
और जब तक मेहंदी सूखती ...पेडीक्योर ...फेसिअल ...यहाँ तक कि लिपस्टिक और आँखों में आई शैडो भी ...
रीत ड्रेस चेंज कर बैठी थी ...मीनल के इन्तजार में और वो सोचने लगी ...मीनल के कंट्रीब्यूशन के बारे में
मीनल मीनल शाह
चौतीस सी का पुष्ट वक्ष ...और अट्ठाइस की कमर, गोरी गुज्जु बाला ...नाचती तो फिरकी को मात कर देती ...इसी रूप पे तो फिदा हो गया था आनंद हीरो हमारा ...जब वो गरबा के दिनों में बड़ोदा में था ...उस समय मीनल एम् एस यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स में पढ़ती ...आनंद को उसने बड़ोदा घुमाया , नचाया ...और दोनों की पक्की दोस्ती हो गयी ....
और यही मीनल काम आयी आतंक के सूत्र को बड़ोदा में जोड़ने में ...
पता तो रीत ने किया ...कोडेड स्टोरी का पता कर ...बुब्बस आन फायर जो जेड ने लिट इरोटिका पे पोस्ट की थी और जो कहानी के जरिये उसने अपने आकाओं को प्रोग्राम बताया था लेकिन रीत ने और फिर हैकर्स ने उसे डी साइफर किया और पता चला की ...बनारस के साथ साथ जो और शहर निशाने पे हैं ...वो हैं बड़ोदा और बाम्बे ( मुम्बई ).. लेकिन जब रीत ने रेहन और उस के ठरकियों के जरिये ( उन सब को उसने रंजी का चारा डाला था ...वो सब को रंजी कि दिलवाएगी , जब रंजी बनारस आएगी ) पता किया कि ...बॉम्बर ( जिसने आर डी एक्स से बनारस में बॉम्ब बनाये थे ) ने जेड के साडी के पैकेट के साथ लगता है पार्सल से बड़ोदा और मुम्बई के लिए उन्हें भेजा है और वो खुद सावरमती एक्सप्रेस के एस 6 कोच से बनारस से बड़ोदा गया है ...तो आगे का काम मीनल ने ही सम्भाला .
मीनल ने स्टेशन पे पार्सल एजेंट्स से ये पता किया कि वो पैकेट जो आदमी छुड़वाने आया है ...वो बड़ोदा स्टेशन के अलकापुरी एंड पे हार्मोनी होटल पे टिका है ...लेकिन वहाँ से भी वो दो दिन में एक लाज में शिफ्ट हो गया . मीनल ने न सिर्फ उस लाज का पता लगाया ...बल्कि उससे मिलने वाले एक आदमी का भी जिसे उसने पैकेट दिया था ...
मीनल ने अपने फाइन आर्टस् की पढ़ाई का इस्तेमाल कर के उसका स्केच भी बनाया . और उसे ढूंढ भी निकाला। आनंद ने कार्लोस और अपने कनेक्शन से येतो पता कर लिया था कि बड़ोदा से एक आदमी थुरया सेट फोन से रात में उसी जगह बात करता है जहाँ से जेड बनारस से बात करता है ...और ये रेल्वे के के एक यार्ड के पास की है ...
मीनल ने जब उस का पता रेलवे में स्केच कि सहायता से लगाया ...तो पता चला कि वो एक बैचलर है ..टी एक्स आर ( ट्रेन कैरिज एक्जामिनर ) में , हेड टी एक्स आर के पोस्ट पे काम करता है ...
मीनल जो अब पत्रकार बन गयी थी ...उस से मिली भी ...दो बार उस के काम का भी उसने जायजा लिया . इसी यार्ड के बगल में हिंदुस्तान कि सरकारी क्षेत्र में सबसे बड़ी रिफायनरी थी और साथ में एल पी जी डिपो , फर्टिलाइजर फैक्ट्री और पेट्रोलियुम के अनेक संयत्र थे ...
ये इन्फोर्मेशन उन्होंने आई बी के साथ गुजरात सरकार से शेयर नहीं की थी , जिन्होंने रेड अलर्ट घोषित कर दिया था और उन का मानना था कि अब परिंदा भी पर नहीं मार सकता.
लेकिन रीत और आनंद कि सोच अलग थी और ...उसके ठोस कारण थे ...
हैकर्स ने जो आखिरी बात चीत सेट फोन की रिकार्ड की थी ...उसमें ये साफ हो गया था कि होली कि रात को ही हमला होगा .
ये सम्भावना भी काफी थी कि हमले का टारगेट पेट्रो काम्प्लेक्स हो ...
लेकिन हमला कैसे होगा इस की कोई सुनगुन नहीं थी ...
वो लोग उस आदमी को जिसे कोड नेम वाई दिया था ...उसे पहले पकड़ना नहीं चाहते थे ..
एक तो उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था ... दुसरे उसे ट्रेस कर के वो हमले के सोर्स तक पहुँच सकते थे और तीसरी बात जो सबसे खतरनाक थी ...अगर उसका कोई वैकल्पिक स्लीपर उसके आकाओं ने तैयार कर कर रखा होगा तो उसका तो उन्हें कोई पता नहीं था ...
और फिर हमले को रोकना नामुमकिन हो जाता ...
बनारस में जिस तरह रेहन और कार्लोस कि सहायता से उनके दांत रीत ने उखाड़े थे ...इसलिए ये तय हुआ था कि रीत बड़ोदा जाए ...और वहाँ मीनल उसकी सहायता करेगी .
मीनल का रोल बहोत इम्पोर्टेंट था उसने 'वाई ' को देखा था ...उसके काम के तरीके को जानती थी और कई बार यार्ड में गयी थी . काम खतरनाक था लेकिन मीनल उसके लिए तैयार थी ...
रीत मीनल के बारे में सोच ही रही थी कि करन केबिन में आया नहा धो के तैयार हो के ...उसके हाथ में एक मोटी सी रिपोर्ट भी थी .
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !


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