FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--110
गतांक से आगे ...........
एकदम दी ,कम से कम प्यार से टाटा बाई बाई तो कर सकती हूँ , मीनल बोली और फिर एक साथ दोनों ने करन को पलंग पे धकेल के बैठा दिया
और अगले पल मीनल ने जीप खोल दी , और जैसे खटका दबाते , स्प्रिंग वाला , चाक़ू बाहर आ जाता है , मोटा कड़ा मुस्टंडा बाहर ,
और अगले पल ही अंदर , मीनल के मुंह में।
वो जोर जोर से उसे चूस रही थी , चुभला रही थी , अपने होंठो से उसे रगड़ रही थी।
और अब करन भी उसका सर पकड़ के जोर जोर से धक्के लगा रही था , जैसे चूत न चोद पाया हो तो चलो मुंह ही चोद लो। मीनल के हाथ साथ साथ उसके बॉल्स सहला रहे थे , लिंग को पकड़ के आगे पीछे कर रहे थे।
फिर लंड मुंह से बाहर निकाल कर , वो सुपाड़े को चूम के बोली ,
" बस दो दिन के लिए छोड़ रहीं हूँ तुझे , फिर देखना। "
करन हंस के बोला , अरे दो दिन के बाद तो ये खुद नहीं छोड़ेगा तुझे।
तब तक मीनल के मोबाइल पे मेसेज आया , शिखा का।
वो उतरान स्टेशन पे पहुँच गयी थी। उसका मेसेज था कि वो लोग , अपने कोच की सारी लाइटें बंद कर लें , सिवाय बेड रूम के नाइट लैम्प के।
रीत लाइटें बंद करने पे लग गयी और करन ने मीनल को अपनी बांहो में भर लिया और जोर जोर से टॉप के ऊपर ही उसके मस्त जोबन दबाने लगा ,
" मेरी प्यारी साली जी , सिर्फ दो दिन कि बात है , मुम्बई से लौट के दो दिन तुम्हारे साथ बिता के ही हम बनारस जायेंगे। " करन ने मीनल को चूम के कहा।
गाडी धीमी होने लगी थी।
वो तीनो लाउंज में आ गए।
करन ने उसके कलाई पे बंधे फ्रेंडशिप बैंड ऐसे कम्युनिकेशन बैंड के साथ एक बैंड और बांध दिया।
" इसकी रेंज पचास किलोमीटर तक है और इसमें जी पी एस है। लेकिन इसमें सेटलाइट फोन का भी लिंक है , इसलिए हम लोग हरदम टच में रहेंगे। जब तुम कमरे में सेफ पहुँच जाना तो ग्रीन बटन दबा देना , मेरे मोबाइल पे आल सेफ का मेसेज आ जाएगा। "
करन बोला।
गाडी रुकते ही करन , और रीत उतरे। दोनों ने दोनों और देखा कि कोई खतरा तो नहीं है , फिर मीनल को इशारे से उतरने को बोला।
तब तक शिखा अपनी गाडी से उतर के आ गयी। मीनल ने उसे पहचान लिया और उसकी गाडी में बैठ गयी , और पुलिस कि गाड़ी चल पड़ी। उधर महाराजा एक्सप्रेस ने भी सीटी दे दी और स्टार्ट हो गयी। रीत और करन भी गाडी में चढ़ गए।
ताप्ती नदी पार हुयी।
फिर ट्रेन कि खिड़की से सूरत शहर की रोशनियां दिखीं।
सूरत स्टेशन पे गाडी थोडी धीमी हुयी , लेकिन रुकी नहीं।
डिब्बे में रीत और करन चुपचाप बैठे थे , एक दूसरे का हाथ थामे , दीवाल कि और देखते ,
दोनों के दिमाग में सिर्फ एक बात थी , एक चिंता थी , मीनल।
पंद्रह मिनट से ज्यादा हो गए थे , तब तक कारण के मोबाइल पे मेसेज आया , आल ओ के , यानी मीनल ने ग्रीन बटन अपने बैंड से दबाया था।
और कुछ ही देर में रीत का फोन भी बजा। मीनल थी। वो लोग हजीरा में ओ एन जी सी के रेस्ट हाउस में थे। उसे पूरी तरह सिक्योर कर दिया गया था और शिखा भी उन के साथ थी।
मारे खुशी के उन दोनों ने एक दूसरे को भींच लिया , फिर तो ,… कपडे उतारने कि किसे फुरसत थी।
करन ने रीत कि गुलाबी पजामी बस नीचे सरकाई , मुस्टंडा बाहर आया।
" आज तो तेरी , मैं तेरे हिस्से कि भी लूंगा और तेरी बहन के हिस्से कि भी फुद्दी मारूंगा। " करन उसका टॉप उतारते बोला।
" डरती कौन है साल्ली यहाँ , लो ना " और रीत कि उँगलियाँ करन के शर्ट के बटन खोल रही थीं।
" तू नहीं लेगा तो मैंने तेरी ले लुंगी , " रीत ने करन को बांहो में भिंचते कहा।
फिर तो थोड़ी देर में ,
कंगन की खनखनाहट , चूड़ियो की चुरमुर
पायल और बिछुओं कि रुनझुन ,
के बीच ,
सिसकियाँ और हलकी प्यार भरी चीखे ,
ओह्ह , आह , नहीं लगता है , आह्ह्ह , और ,
रीत करन कि बाहों में समायी थी और
करन रीत के भीतर ,
गाडी पूरी स्पीड से दौड़ी जा रही थी ,
करन का घोडा उससे भी तेज ,
बाहर फागुन के पूनो का चाँद दमक रहा था
अंदर रीत का रूप और करन का प्यार छलक रहा था
दूबे भाभी की दी हुयी वैसलीन कि शीशी , आधे से ज्यादा , खाली हो गयी थी।
सुहाग कि रात का दूसरा दिन था
आज सुहाग कि रात सूरज जिन उगिहो
आज सुहाग कि रात चंदा जिन डुबिहो
गुड्डी का रंग भांग के संग
गुड्डी शीला भाभी के साथ पंचायत कर रही थी। साथ में मंजू भी ,
और मैं अपने कमरे में कंप्यूटर के सामने और फोन मेरे कान पे. पहले मेरे हैकर दोस्तों से बात हुयी और उन्होंने एक अच्छी खबर सुनायी कि , वो चार बजे से चार घंटे तक दुश्मन के हेड क्वार्टर , जहाँ से जेड और वाई सेटलाइट फोन पे बात होती थी , और जहाँ से सारा आपरेशन संचालित होता था , उसे इंकम्युनिकेडो कर देंगे।
जैसे कोई वेब साइट क्रैश होती है बिलकुल उसी तरह और वो बड़ोदा के किसी आपरेटर को कोई गाइडेंस नहीं दे पायंगे। २६ /११ में सबसे बड़ी गड़बड़ी यही हुयी कि ताज और ट्राइडेंट में से टेरररिस्ट , अपने आका से बात कर डायरेक्शन ले रहे थे। बड़ोदा में ये नहीं होने वाला था।
मीनल और रीत जब करछिया यार्ड में पहुंची तो इयर पीस से वहाँ कि हाल मिल रही थी। और जब रीत ने डिवाइस के बारे में पता कर लिया और वाई को न्यूट्रलाइज कर लिया , तो बस मुझे यही डर था कि पता नहीं कितने ट्रेनो में ये डिवाइस वाई ने लगवा दिया हो , इसलिए मैंने तुरन्त सीनियर डो ओ एम त्रिपाठी जी से बात की और उनको सब हाल बताया। कंट्रोल पहुँच के उन्होंने ओ एच इ आफ करवा के तुरन्त सारी गाड़ियां रोक दीं। रीत को मैंने मेसेज दिया कि वो रेलवे कंट्रोल आफिस पहुँच जाय क्योंकि कारण वाई को हैंडल कर ही रहा था। शाम पांच बजे के आस पास रीत ने खबर दी , कि सारी सस्पैकेटेड ट्रेन आडेन्टिफाई हो गयीं हैं और बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड वहाँ के लिए हेलीकाप्टर से रवाना हो गए हैं और दुश्मन का आपरेशन फेल करा दिया गया है।
दो सबसे बड़ी रिफायनरी , दो बड़े पावर हॉउस दुशमन के निशाने पे थे जो बच गए। उसके अलावा जान माल का जो नुक्सान होता सो अलग।
मैंने रिलीफ कि सांस ली।
साढ़े पांच बज रहे थे। रीत का मेसेज आया कि वो मीनल और करन के साथ शापिंग के लिए निकल रही है और वहाँ से फिर वो ट्रेन पे चले जायेंगे और मीनल उनके साथ जायेगी। उसी के साथ मुझे नींद आगयी। पता नहीं कैसे , बहुत गाढ़ी और जब मेरी नींद खुली तो पौने आठ बज रहे थे।
और जगाने वाली और कौन, गुड्डी थी।
एकदम सपने जैसी ,
मैंने बार बार आँखे मींची , अभी भी सो तो नहीं रहा हूँ।
लेकिन गुड्डी की चांदी के पायल जैसी रुन झुन रुन झुन हंसी और वो रुप ,
एकदम मेरी दुल्हन ,
गुड्डी आज साडी ब्लाउज में थी।
वही जो मैंने उसके और रंजी के लिए ख़रीदा था, जिसके लिए गुड्डी उसे बाबी टेलर्स पे ले गयी थी , ब्लाउज सिलवाने , और दोनों ने तय किया था कि होली कि शाम वो दोनों किशोरियां साडी ब्लाउज ही पहनेगी।
और वही हुआ।
लेकिन असर उसका एकदम जादू था।
प्याजी गुलाबी रंग शिफॉन , आलमोस्ट सब कुछ दिखता है , टाइप वाली , और ऊपर से गुड्डी ने बाँधा भी था कमर , बल्कि कूल्हों से भी नीचे।
और गुड्डी के भारी भारी नितम्बो का भराव , कटाव , सब कुछ दिख रहा था , ललचा रहा था। उसके साथ ही गहरी नाभी , चिकने मखमली पेट पे , और उसके चारों ओर टैटू बेहोश करने के लिए इतना काफी था।
लेकिन जो जान मार रही थी चीज वो उसकी चोली थी , एकदम टाइट फिट। एकदम आग लगा रही थी। आलमोस्ट बैकलेस , पतली सी स्ट्रिंग , वो भी प्याजी गुलाबी , आलमोस्ट स्किन कलर एयर पूरी तरह ट्रांसपेरेंट । सामने से खूब डीप क्लीवेज , गहरा वी नेक का गला, स्लीवलेस , बस बहुत पतले वही स्किन कलर के नूडल स्ट्रिंग ,… उरोज सिर्फ झलक और छलक ही नहीं रहे थे , बल्कि बहुत कुछ दिख रहे थे।
बाबी टेलर का कमाल ( तभी तो लड़कियां उसे बूब्स टेलर्स कहती थीं ), चोली , बूब्स से एकदम चिपकी , सेकंड स्किन कि तरह , जोबन का कटाव , उभार दिखाती। और सबसे बड़ी बात , गदराये उरोजों की आभा के साथ , खड़े मटर के दानों कि तरह , गुलाबी निपल भी झलक रहे थे
।लेकिन दो चीजें और थीं , एक तो नीचे से उसने चोली में जो जामदानी के काम कि पट्टी लगायी थी ,खूब कढ़ी और भारी , उसके कंट्रास्ट से , चोली और उभर के सामने आ रही थी , और दूसरा रंजी कि शरारत।
क्लीवेज पे एक उरोज पे , एक गुलाबी तितली का टैटू , जिससे निगाह उरोजों के उभार के साथ निपल पर भी पड़ जाती थी.
"हे कभी लड़की नहीं देखी क्या , साडी पहने "
गुड्डी खिलखिलाई। चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठीं।
" देखी है लेकिन इत्ती , प्यारी सी सुन्दर सी नहीं देखी। " मैने उसे बांहो में भींचते कहा।
" अच्छा जी , लगता है मुझे पहली बार देख रहे हो। " हंस के वोअपने को छुड़ाते बोली।
" तुम्हे देखा है , लेकिन साडी में पहली बार देख रहा हूँ। "
" और बिना साडी के ,…" गुड्डी से पार पाना मुश्किल था।
मैंने उसे और कस के बांहों में भींच लिया और रसीले गालों से दो छोटे छोटे चुंबन चुराते बोला ,
" देखा है न , और अभी फिर देखूंगा " मेरी चुंबन यात्रा , गालों से मीठे होंठों और फिर मस्त गद्दर खुले , दावत देते , जोबन तक पहुँच गयी।
लेकिन गुड्डी मेरा नाक पकड़ के बोली ,
" बुद्धू अभी कोई आ जाएगा। फिर तुम इत्ती देर से सो के उठे हो पहले कुछ खा पी लो। "
और हम दोनों कमरे से निकल के बाहर बरामदे में आ गए। वहाँ कोई नजर नहीं आ रहा था। हाँ , टेबल पे कई प्लेटों में गुलाल अबीर , एक प्लेट में गुझिया और एक में दहीबड़े रखे थे। और एक पानी का भरा जग , ग्लासेज , और जगह जगह अबीर गुलाल बिखरा पड़ा था।
शाम को लगता है अबीर गुलाल की होली , जबरदस्त हुयी थी।
" हे भाभी कहाँ हैं " मैंने इधर उधर किसी को न देख के पुछा।
" क्यों होली खेलनी है क्या ?" गुड्डी ने चिढ़ाया। फिर खुद ही बोली ,
" फिर तो वेट करना पड़ेगा , वो तुम्हारे भैया और शीला भाभी , कुछ मिलने वालों के यहाँ गयी हैं , एक डेढ़ घंटे में आएँगी , और मंजू को अगर याद कर रहे हो तो वो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गयी है , सुबह ही आएगी। "
" तो तुम कह रही थी कि कोई आ जाएगा " मैंने पुछा।
" अरे यार दो लोग हैं न , मैं और तुम " मुझे बांहो में भींचती और मेरे होंठो पे चुम्बन जड़ती गुड्डी ने कहा और हाँ मेरी ननद कम तेरी माल भी अभी आधे घंटे में आ रही होगी सारे शहर कि रंडी और तेरी रंजी , जानेमन। "
और जब मैंने ये सोचा की रंजी भी इसी तरह कि नाभि दर्शना , पारभासी , देह दिखाऊ साडी में , कुल्हो से नीचे बंधी , अपने नितम्बो को मटकाती , आ रही होगी , और उसके मस्त चूतड़ तो गुड्डी से भी भारी थे , और उसके यारों कि शहर में कमी नहीं थी.
बस मेरे कानों में फायर ब्रिगेड के घंटे और एम्बुलेंस के सायरन कि आवाज गूँज रही थी , जो रंजी के पीछे पीछे आ रही होंगी। किसी तरह मैंने अपने दिमाग से उस ख्याल को निकाला और गुड्डी से पुछा ,
" हे इत्ता अबीर गुलाल बिखरा पड़ा है , लगता है शाम को जबरदस्त होली , हुयी। कौन कौन आया था , और तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं। "
" ये पूछो कि कौन नहीं आया था , एक बार जिसको तेरे इस औजार का दर्शन भी हो जाय ना तो , तेरी सारी कालोनी के रिश्ते वाली बहने और मेरी ननदें , … लतिका , समोसे वाली , सुबह घोंट के उस का मन नहीं भरा था , और उसकी सहेली रीमा , और भी ढेर सारी लड़कियां जम के रगड़ाई हुयी सबकी।
मैं मंजू और शीला भाभी , हाँ और तेरी भाभी भी आज पूरे जोश में थी और जगाने की भली कही तूने , सब साल्ली।
घर में घुसती बाद में थी , भाभी भैया कहाँ है पहले पूछती थीं। बल्कि तेरी भाभी ने कहा भी , तुम सब छीनार , पक्की भइया चोद हो।
तो वो समोसे वाली बोली , भाभी आप लोग रात में सैंयाँ , और दिन में देवर से मजे लेती हैं तो होली तो साल में एक दिन आती है , आज तो कोई रिश्ता नाता नहीं होता, सिवाय एक के डालने वाले और डलवाने वाली के।
तो आज तो हम लोग भी नंबर लगा सकती हैं " गुड्डी बोली।
" तो भाभी क्या बोलीं " मैं उत्सुक था।
गुड्डी बोली,
"अरे उनके पहले मैंने ही उसको धर दबोचा , और उसकी चुन्मुनिया में ऊँगली करते बोला , अरे होलिका देवी की पूजा करो , रोज लंड पुराण का पाठ करो , तो एक दिन क्या रोज होली। साल भर बिना नागा , हमारे देवरों से अपने भाइयों से चुदवाओ , सिर्फ एक दिन क्यों , और तेरे भैया अभी बहुत दिन रहेंगे , फिर आएंगे , तो बस एडवांस बुकिंग करवा लो ,…
गुड्डी ने फिर मेरे गाल जोर से पिंच किये और समझाया,
" और जगाया तुझे इस लिए नहीं बुद्धू राम , कि अगर तुम उन के सामने पड़ जाते न , तो न तो वो बिना चुदवाए छोड़तीं और ना तो तुम बिना चोदे छोड़ते। हो तो तुम पैदाइशी , नम्बरी बहन चोद , बल्कि मुझे लगता है कि सिर्फ बहन चोद ही नहीं बाकी और जो… चोद होते हैं ना वो भी होगे,पक्का । फिर अभी थोड़ी देर में रंजी आने वाली है उस कि रगड़ाई करवानी है तुझसे ,"
उसकी बात काट कर , मैंने दुखी मन से कहा ,
" लेकिन तूने तो बोला है कि अगर उसके साथ मन्त्र जगाना है , तो उसका भरतपुर होली के दो दिन बाद ,…फिर आज वो आएगी भी तो ,…"
" अरे यार उस साली के क्या एक ही छेद है , भरतपुर के लिए दो दिन ठहर जाओगे तो उम्र भर के लिए फायदा हो जाएगा , तेरा भी उसका भी और तेरी सारी माँ बहनो का ,… अरे जरा उसको अपनी गाढ़ी मलायी का स्वाद चखा देना।
सिनेमा हाल में तो तूने उसे लालीपॉप चुसाया नहीं , आज सिर्फ हम और तुम रहंगे घर में जब वो आएगी , हचक हचक के मुंह चोदना उसका , पूरा ठेलना। एक बार तेरे लंड को चूस लेगी तो खुद ही भागी भागी आएगी। लेकिन मेरे मन में शीला भाभी का भी ख्याल था इसलिए नहीं जगाया। “
मुझे भूख भी बहुत लग रही थी , और गुड्डी के अंदर ये गुण था कि मेरे मन की बात बिना बोले न सिर्फ समझ जाती थी , बल्कि , उसे पूरा भी कर देती थी।
और उसने प्लेट से एक गुझिया उठा के मेरे मुंह में डाल दी।
गुड्डी की आदत थी , एक बार में पूरा डालने की और जब मैं कुछ बोलता तो वो दुष्ट हंस के, अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचा के बोलती ,तुम्ही से सीखा है , एक बार में पूरा डालना।
और मैं गप्प से लील भी गया।
तब तक मेरी निगाह प्लेट पे पड़ी , बिना गोठी गुझिया , ये भाभी का कोड था। मतलब स्ट्रांगेस्ट , डबल भांग वाली। बिना भांग के तो जबसे , भाभी शादी होके आयीं , हमारे घर में गुझिया बनी नहीं।
लेकिन ये डबल भांग कि गोली वाली तो पांच मिनट में मेरे दिमाग का रायता बनाने वाली थी। साइज भी गुझिया की खूब बड़ी थी और मैं बोल नहीं पा रहा था।
मैंने गुड्डी से प्लेट की ओर इशारा किया।
वो दुष्ट जान बुझ के ना समझ बन रही थी।
बोली , पानी चाहिये क्या , तो मुंह खोल के क्यों नहीं मांगते। तेरे अंदर बस यही एक बुराई है , मुंह खोल के नहीं मांगते। रंजी भी यही कहती है , भैया एक बार भी मांगते तो मैं कब का दे देती। "
मेरे मुंह में तो डबल डोज वाली गुझिया भरी थी। मैं क्या बोलता।
और जब उस सुनयना ने ग्लास में जग से ढाला तो वो पानी नहीं ठंडाई थी. और वो गुड्डी ने सीधे मेरे मुंह में लगा दिया और बोली ,
"चुपचाप पी जाओ पूरा एक घूँट में " और अपने हाथ से पकड़ के ढरका दिया।
थोड़ी सी ठंडाई मेरे मुंह में जाते ही मुझे अंदाज लग गया था की , ये भी भाभी का ही कमाल होगा। स्ट्रांग डोज वाली ठंडाई। तीन चौथाई ग्लास तो मेरे पेट में गया लेकिन बाकी मै गुड्डी को पिला के ही माना।
फिर मुझे याद आया कि गुड्डी कुछ शीला भाभी के बारे में बोल रही थी।
" हे तुम , मेरे और शीला भाभी के बारे में कुछ बोल रही थी। " मैंने उसे याद कराया।
" अरे भूल गए तुम , आज तेरे बाप बनने का दिन , मेरा मतलब रात है। याद है तूने शीला भाभी को प्रामिस किया था कि आज तुम उन्हें वीर्य दान करोगे , और कल सुबह उन्हें निकल भी जाना है , इसलिए मैंने तुम्हे नहीं जगाया। " वो बोली
बात तो गुड्डी की सोलहो आना सही थी।
और अगर मेरी और गुड्डी की जोड़ी मिलाने में किसी का जरा भी हाथ था , विधना के अलावा तो वो शीला भाभी का था। उन्होंने न सिर्फ हमारे रिश्ते को 'फुल्ली फाइनल" करवाया , बल्कि लाक भी करवा दिया और जिससे हम दोनों का सप्त कोटी संदूक खुल गया , वरना हम दोनों ऐसे ही छिप के मिलते और तड़पते।
जिस काम को को इतना मुश्किल समझता था , उन्होंने चुटकियों में हल किया।
मैंने जैसे ही शीला भाभी से अपने दिल की बात की , कि मुझे गुड्डी चाहिए परमानेंटली , ( भाभी से बात करने की तो मेरी हिम्मत नहीं पड़ती ) बस न सिर्फ उन्होंने दो मिनट के अंदर भाभी से बात कर के उन्हें कन्विंस किया , गुड्डी की मम्मी से भी बात की , और उसी दिन हम दोनों को साथ साथ मंदिर ले गयीं , साथ साथ पूजा करवायी , कुंडली भी मिलवा दी और शादी की तारीख भी निकलवा दी। वो भी बस दो महीने के अंदर की.
शीला भाभी के लिए तो मैं कुछ भी कर सकता था। और ऊपर से गुड्डी का हुकुम , वही बोली ," शीला भाभी , बच्चे के लिए इधर उधर साधुओं के चक्कर में घूम रहीं है , उनके पति से कुछ होना नहीं है , वैसे भी वो पुरुष प्रेमी है और वो भी मरवाने का शौक रखता है , तो तुम्ही क्यों नहीं कुछ करते। दे दो बिचारी को , जब तक मैं नहीं मिली थी इधर उधर अंडरवियर में गिराते फिरते थे ,"
गुड्डी भी अलग मिटटी कि बनी है। कौन लड़की अपने ब्वाय फ्रेंड को शेयर करती है , लेकि उससे शीला भाभी का दुःख देखा नहीं गया।
मैंने शीला भाभी को कम्पुटर पे एक साइट दिखायी थी , और गुड्डी भी वहीँ थी , जिसमे लिखा था होली कि रात , और सबसे स्ट्रांग योग है , रात में १ बजे से सुबह बजे तक और शर्तिया , फागुन के पूनम की तरह सुन्दर कन्या होगी। इसलिए आज रात शीला भाभी के नाम थी।
हाँ दो बातें , शीला भाभी को नहीं बतायी थी ( लेकिन गुड्डी को मालुम थी , मेरी कोई बात गुड्डी से छिप नहीं सकती थी ). पहली बात ये थी कि जो वीर्य दान करे वो उसके पहले कम से कम आठ घंटे पहले से स्त्री सम्भोग से विरत रहे ( और इसलिए गुड्डी ने मुझे सोने दिया कि कही जोश में आके उस समोसे वाली कि सहेलियों से ,…) और दूसरी , इस दशा में जो कन्या होगी वो अत्यंत सुन्दर तो होगी , लेकिन अपनी मा से कम से कम दस गुना ज्यादा छिनार होगी।
मैं उधर शीला भाभी के बारे में मुंह बाए सोच रहा था , और गुड्डी ने जैसा हमेशा होता है , मौके का फायदा उठाया और भांग की गोली , गुझिया सीधे मेरे मुंह में।
मैं समझ गया था शिकायत , परिवाद करने से कुछ होने वाला नहीं इसलिए अफेंस इज बेस्ट डिफेंस वाले फारमूले पे , मैंने भी एक गुझिया प्लेट से उठा के उस के मुंह में ठेल दी।
और थोड़ी देर तक हम दोनों गुझिया खाते रहे और गुड्डी ने एक बार फिर मुझे ठंडाई पिला दी , लेकिन इस बार ग्लास मैंने उसे आधी पिला दी।
" ये हम लोगों ने तेरे माल रंजी के लिए रख छोड़ी थी। तुम्हारी भाभी ने एक्स्ट्रा स्ट्रांग बनायी थी "
ठंडाई के जग में झांकते बोली वो।फिर देख के मुस्करा के मुझसे कहा ,
" अभी भी तीन चार ग्लास से ज्यादा है , दो ग्लास काफी होंगे उसकी जवानी आग को ठंडा करने के लिए , फिर तुम्हारा मोटा नल भी तो है , आज बिना चुसाये मत छोड़ना। गों गो करेगी लेकिन पूरा औजार गले तक उतार देना। पीछे से मैं भी कस के सर पकडे रहूंगी , आखिर तेरी बहन है , मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है। "
और ये कहते हुए उसने फिर एक ग्लास ठंडाई और निकाल दी।
भांग का असर कुछ कुछ चढ़ना शुरू हो गया था और मेरी निगाहें एकदम गुड्डी कि चोली से झांकते , ललचाते उरोजों पे बस चिपकी थी.
मैंने गुड्डी को खींच के अपनी गोद में बिठा लिया और ठंडाई का ग्लास ले के सीधे उसके होंठो पे , अबकी आधी मैंने आधी उसने।
दो भांग पड़ी ठंडायी का ग्लास और दो भांग कि गुझिया , और गोद में गद्दर जोबन झलकाती गुड्डी ,
किसी को भी नशा हो जाए।
" हे तेरे से आज होली नहीं खेली मैंने , " मैं बोला।
" झूठे , भूलगए सुबह छत पे ."
मेरे गाल पे प्यार से चूमती , गुड्डी बोली और फिर कहा ,
” वो आएगी न , तेरी भाई चोदी चूतड़ मटकाती बहन कम माल , रंजी अब उसी को डालना , अपना गाढ़ा सफेद रंग सीधे उसके मुंह में। "
मेरी निगाह मेज पे रखे तरह तरह के रंग , अबीर और गुलाल पे घूम रही थी।और मैंने एक चुटकी रंग उठा लिया।
हमारे घर के बगल में आलमोस्ट सटा , एक बहुत पुराना आम का बड़ा सा पेड़ है। उसकी बड़ी बड़ी डालें हमारे छत पे आती हैं। उसी से छन छन के चांदनी आँगन में बरस रही थी। गुड्डी को लेके मैं खड़ा हो गया और बरामदे में दूसरे कोने में चला गया।
वहाँ से आसमान में टंगा पूनम का चाँद साफ साफ दिख रहा था। जैसे किसी नयी दुल्हन ने माथे पे बड़ा सी टिकुली लगा रखी हो।
भांग के नशे में ये ख़ास बात है कि , वो आप के सारे सेंसर , सोच पे रोक टोक ख़तम कर देता है और साथ ही आप जो बात करना शुरू कर देते हैं वो बस करते रहते हैं।
मेरे साथ भी यही हुआ ,
कुछ गुड्डी के रूप की चांदनी ,
कुछ होली के पूनम की चांदनी ,
कुछ भांग का नशा
और कुछ , गुड्डी के गद्दर जोबन का नशा ,
बरसों से, कालेज के दिनों के बाद से जो काम मैंने नहीं किया था , वो शुरू कर दिया ,
गाने का।
ये वादा करो चाँद के सामने ,
भूला तो ना दोगे मेरे प्यार को ,
और साथ में गुड्डी भी चालु हो गयी ,
मेरे हाथ में हाथ दे दो जरा ,
सहारा मिलेगा मेरे प्यार का।
और गुड्डी की आवाज , जैसे कोई चांदनी में शहद घोल दे।
फिर तो एक के बाद एक गाने , जैसे हम दोनों के प्यार को आवाज मिल गयी हो , पंख उग आये हों और वो आसमान छूने की कोशिश कर रहे हों।
मैंने और गुड्डी जैसे दूध में पानी मिल जाय उस तरह एक दूसरे की बाँहों में खोये , चांदनी में नहाये , और अब गुड्डी गा रही थी और मैं डूब रहा था उस की आवाज में
तू मेरा चाँद , मैं तेरी चांदनी ओ ओ तेरी चांदनी ,
तू मेरा राग मैं तेरी रागिनी , ओ ओ , तेरी रागिनी
और फिर हम दोनों मिल के , हम दोनों का आल टाइम फेवरिट ,
आजा सनम मधुर चांदनी में ,
हम तुम मिले तो आ जायेगी वीराने में बहार
झूमने लगेगा आसमां ,झूमने लगेगा आसमां
कहता है दिल और मचलता है दिल
मेरे साजन ले चल मुझे तारों के पार।
लगता था , चाँद भी रुक के हम दोनों को देख रहा है।
और मैंने गुड्डी को बांहो में भींच कर , उसकी मांग में सिंदूरी रंग का गुलाल डाल दिया , एकदम दमकता , ढेर सारा।
सामने लगे शीशे में गुड्डी ने अपनी मांग में पड़े सिंदूरी गुलाल को देखा और उसका चेहरा भी दमकने लगा।
मैंने उसे और कस के भींच लिया और चूम कर, कान में बोला ," ये रंग अब पूरे जनम नहीं उतरेगा। "
जवाब में गुड्डी ने भी मुझे कस के भींच लिया , और होंठों पे चूम के बोली , " एक नहीं , सात जनम तक। "
हम लोग बहोत देर तक ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में चांदनी में नहाते रहे , डूबते उतराते रहे।
अचानक गुड्डी ने चाँद की ओर इशारा करके कहा , चन्दा मामा।
मैने फिर गुड्डी को दबोच लिया और बोला , " चल ये भी गवाह रहेंगे अब मेरी ससुराल का भी कोई हो गया न गवाह " उसकी मांग में दमकते सिन्दूर की ओर इशारा करके मैंने कहा।
गुड्डी मुस्करायी।
और लगा आसमान में चाँद भी मुस्कराया।
मेरी निगाह फिर छलकर कर गुड्डी की चोली से झलकते , छलकते जोबन की ओर पड़ी और , उन्हें मुट्ठी में दबाकर , मैंने आसमान से बोला ,
"हे तेरे पास एक चाँद है तो मेरे दो दो हैं " और उस बैकलेस चोली की स्ट्रिंग खोल दी।
दो सफेद झक्क दूधिया , कबूतर उड़ के मेरी मुट्ठी में समां गए।
और मैं उन्हें अब जोर जोर से दबा रहा था मसल रहा था। कभी चूम लेता चाट लेता। और अचानक मैंने निपल थोडा जोर से बाइट कर लिया और गुड्डी चीख पड़ी ,
" उईईइ उयीईईईईईईईई ...मम्मी ,… "
भांग का नशा और गहरा रहा था।
" हे इसमें तेरी मम्मी कहाँ से गयी , कहीं उनका भी तो कटवाने का ,… " मैंने छेड़ा।
" हे जाओ मैं तुमसे नहीं बोलती " गुड्डी गुस्से से मुंह फुला के बोली।
अब मुझे गलती का अहसास हुआ। गुड्डी मुझे कई बार टोक चुकी थी , ये तेरी मम्मी क्यों बोलते हो , सिर्फ मम्मी कहा करो।
" ऊप्स मेरा मतलब तेरे जोबन एकदम मम्मी पे गए हैं एकदम मस्त मक्खन " मैंने मक्खन ल,गाया और फिर एक बड़ी टिक्की और ,
" तुम्हारे साथ मम्मी को देख के तो लगता है तेरी बड़ी बहन हैं "
अब गुस्सा उसका
कम हुआ , मुस्करायी , दो मुक्के मेरे सीने पे मारे और बोली , " ये मक्खन , मम्मी को लगाना "
" मक्खन , मैंने तो सोचा कि वैसलीन लगवाती होंगी , लेकिन तीन लड़कियों के वहाँ से निकलने के बाद अभी भी जरुरत पड़ती है क्या ? "
मैंने चिढ़ाया तो पांच छः मुक्के एक साथ सीने पे पड़े।
" तुम न , कभी सुधर नहीं सकते। " वो बोली।
" तुम चाहती हो कि मैं सुधर जाऊं " मैंने गुड्डी की आँख में आँख डाल के पुछा।
" एकदम नहीं , जैसे हो मेरे हो और अच्छे हो। " वो खिलखिलाई
" अच्छा सच बताओ , तेरी , ऊप्स , मेरा मतलब मम्मी की ऐज ,… "
मेरी बात काट के गुड्डी फिर मुस्करा के आँख नचा के बोली ,
" तुम भी ना , तुम्हे मालूम नहीं , औरतों की उमर नहीं पूछते। चलो पूछ ही लिया तो बता देती हूँ , पैंतीस से दो तीन महीने ज्यादा , "
मैंने उसकी उमर का हिसाब साथ में करता , पहले ही गुड्डी ने पूरी गणित समझा दिया ,
" असल में मम्मी कि शादी बहुत कम उमर में हो , और और ,… "
अब बात काटने कि बारी मेरी थी और मैंने बात काट दी। मैं बोला ,
" और आठ महीने में ही तुम बाहर ,… " मुस्करा के मैंने बोला।
" तुम्हे कैसे मालूम "
चकित हो के गुड्डी बोली , फिर उसने राज जाहिर किया ,
" असल में आठ महीने भी नहीं , सात महीने से कुछ ही ज्यादा , मम्मी के सामने , मेरी बुआ अक्सर मुझे चिढ़ाती थीं , तू तो दहेज़ में आयी है। कभी बोलती तेरी शक्ल एकदम तेरे मामा पे गयी है तो कोई बोलतीं नहीं नहीं , मौसा पे गयी है। ."
" अच्छा तो है तभी तो एकदम चाँद जैसी शकल है तेरी , चन्दा मामा बोलती हो न तुम."
मैंने उसे छेड़ा।
वो कुछ बोलती उस के पहले चाँद को देख के मैंने कहा ,
" साल्ले ,…"
भांग का नशा गुड्डी पे भी चढ़ रहा था। उस कि आँखों में लाल डोरे नजर आ रहे थे और वो बात , बिना बात हंस रही थी।
"हे मेरे मामा को साल्ले बोल रहे हो , मतलब ," गुड्डी भांग के नशे में हंसते बोली।
" अरे मतलब कि मैं , मैं , तेरे मामा की बहन चोद दूंगा , उसकी फुद्दी मार लूंगा। " मैं भी नशे में बोला।
" अरे बुद्धू , मेरे मामा कि बहन मतलब मेरी मम्मी , तेरी सास , " गुड्डी कि हंसी रुक नहीं रही थी।
गुड्डी को बांहो में भींच के , उसके गालों को जोर काट के मैं बोला ,
" अरे जिसकी फुद्दी से , इत्ती प्यारी फुद्दी निकली , उसका कुछ तो ,…"
मैंने गुड्डी के गुलाबी गाल सहलाते हुए कहा , लेकिन वो पीछे नहीं रहने वाली थी। मेरा नाक पकड़ के बोली ,
" इतना घुमा फिरा के क्यों बोल रहे हो , साफ साफ क्यों नहीं कहते जानु की ," और उसकी बात काट के मैंने साफ बोल दिया ,
" साफ साफ मतलब कि , मैं तेरी ऊप्स मेरा मतलब मम्मी चोद दूंगा , यही न "
और मैंने फिर एक बार उसकी चोली से बाहर निकली चूंची को कस के काट लिया।
वो पहले चीखी , फिर थोडा गुस्सा हुयी , फिर हंसी , फिर बोली ,
" सुन , यार अगर मम्मी चालु हो गयीं ना , तो तेरी माँ बहन सब .. , ऊप्स मेरा मतलब , माँ , मौसी। बहनो को चोदने का काम तो मेरा है , देखना तेरी कच्ची कलियों से खुली बोतलों तक , जित्ती तेरी कजिन हैं न नजदीक कि दूर की सबके साथ तेरा नंबर लगवाऊँगी। और बाकी के साथ मम्मी ,… "
भांग का नशा वक्त के साथ बढ़ ही रहा था , उसके गोर गुदाज जोबन को सहलाते मैं बोला ,
" यार तेरा चेहरा , भले तेरे मामा , मेरा मतलब चंदा मामा पे गया है , लेकिन ये सिर्फ और सिर्फ , मम्मी पे गया है। क्या साइज होगी उनके उभारों की ?"
गुड्डी का हाथ अब मेरे पाजामे के अंदर जंगबहादुर के साथ होली खेल रहा था।
" क्यों अपनी माँ बहनो का देख के , सही अंदाज नहीं लगा पाते क्या , गेस करो न , " उसने छेड़ा।
" ३६ " मैंने गेस कर दिया।
" सही लेकिन दस में पांच नंबर , असली चीज तो कप साइज है , ३६ डी डी। " वो फिर हँसते हुए बोली।
भांग के नशे में परेशानी यही है ,
जो हँसना शुरू करता है वो हँसता ही रहता है , और गुड्डी बिना बात के हंस रही थी।
गनीमत था कि तबतक रंजी का एक मेसेज आ गया ," बस पांच मिनट में निकल रही हूँ , पन्दरह बीस मिनट में पहुँच जाउंगी। "
" देख कितनी तेज चींटी काट रही है उसकी बुर में , तेरी सारी मायकेवालियां ऐसी ही चुदवासी हैं , बिना मेरे मर्द का लंड लिए चैन नहीं आता छिनारों को "
गुड्डी पे भांग का नशा था या होली का , या दूबे भाभी की शुद्ध बनारसी आत्मा घुस गयी थी , या मंजू को सोहबत का असर पता नहीं।
लेकिन उस की बातों का असर मेरे जंगबहादुर पे जरुर पड़ रहा था और वो फूल के कुप्पा हो रहे थे। साथ में गुड्डी के हाथ भी उसे अब खुल के मथानी की तरह मथ रहे थे।
फोन देखते देखते गुड्डी ने मिस काल देखी और चिल्लाई बड़ी जोर ,
" आज मेरी कस के पिटाई होगी और उससे ज्यादा तेरी ली जायेगी। "
दो मिस्ड काल थी।
" किस की हैं " मैंने पुछा और मुसीबत मोल ले ली।
गुड्डी ने फिर हंसना शुरू कर दिया और उसकी हंसी देख के मुझे भी हंसी आ रही थी , बेसाख्ता।
" उसी कि जिसकी फुद्दी मारने के लिये तुम बेचैन हो रहे थे और जो तुम्हारी माँ बहन एक करने वाली हैं , मम्मी की " वो हंसते हुए बोली।
फिर थोड़ी हंसी रुकी , तो गुड्डी ने बताया कि उनका दो बार फोन आया था होली विश करने के लिए , लेकिन मैं सो रहा था। और उस समय पड़ोस कि सब लड़कियां पटी पड़ीं थीं , इसलिए गुड्डी ने मुझे जगाया भी नहीं।
और जब मैंने उठा तो वो मुझे बताना भूल गयी। और उसके बाद ,… दो मिस्ड काल और ,
बात तो गड़बड़ थी।
कोई भी बुरा मान जाता। होली विश मुझे करनी चाहिए थी , लेकिन मैं सुबह पड़ोसिनों से होली खेलने के चक्कर में और बाद में , बड़ोदा में दुष्ट दलन के चक्कर में भूल गया। फिर सो गया।
और उठा तो कर्टसी गुड्डी , भांग वाली गुझिया और ठंडाई पी के टुन्न हो गया औ फिर गाना गाने लगा।
और उन्होंने खुद फोन किया वो भी दो बार और ऊपर से ये मिस्ड काल वो भी दो ,
"बहोत डांट पड़ेगी , " मैंने गुड्डी से कहा। मेरा नशा आधा उतर गया था।
" डांट कम , गाली ज्यादा , लेकिन मुझे लगता है मारे जाओगे तुम "
वो अभी भी हंस रही थी , फिर बोली , उनको बता दॆना तुम जो सोच रहे थे , या रहने दो मैँ ही बोल दूंगी ,”
"नहीं नहीं "मैं घबड़ाया , "मैं तो वैसे ही , तुम भी ना मैं जो बात तुमसे कहूंगा , तुम अपनी मम्मी से , " मैं स्लिप पे कैच हो गया। उसने मेरी बात बीच में काट दी।
" फिर वही गलती , अपनी मम्मी , मतलब , अब तो मैं जरुर बोलूंगी और नमक मिर्च लगा के बोलूंगी। " वो गुर्रायी।
" नहीं नहीं मेरा मतलब , ,… मम्मी प्लीज " मैंने सरेंडर के कगार पे था।
फिर वो हंसने लगी और अब उसने जोर से जंग बहादुर को दबा दिया। और बोली
" तुम भी न बहुत डरते हो , अरे यार मम्मी मेरी सहेली की तरह हैं , मैं उनसे कोई बात नहीं छुपाती। उन्हें तो बहुत अच्छा लगेगा कि तुम भी उन्ही कि वैरायटी के हो , जानते हो उनका फोन था तो उन्होंने क्या मेसेज दिया था तुम्हे बोलने के लिए , जो तुम्हारे चक्कर में मैं बताना भूल गयी , वो तुमसे दो हाथ नहीं दस हाथ आगे हैं , "
"क्या , " मैं उत्सुक भी था और चिंतित भी।
" "उस छिनार के जने , पंचभतारी के पूत से पूछना , कि शाम को काहें सो रहे हो , रात भर अपनी माँ बहन पे चढ़ने का प्लान है क्या। और जब उठ जाय तो बोलना कि फोन पे कम से कम होली मिल ले ,
और ये भी बोल देना कि अब अपने माँ बहनो के लिए परेशान ना हो एक से एक मोटे औजार का इंतजाम मैं उनके लिए कर के रखूंगी , कि जो वो कुत्ता गदहा का घोंटती रहती हैं , सब भूल जाएंगी। "
गुड्डी ने सब कुछ बिना सेंसर के कह दिया।
मेरी जान में जान आयी. अगर वो भी होली कि स्पिरिट में हैं तो , मेरी बात का , अगर गुड्डी ने बता भी दिया तो बुरा नहीं मानेगी।
"लगाओ न , "गुड्डी ने इतरा के कहा।
"किसको "मैंने द्विअर्थी ढंग से कहा।
" अभी मम्मी को लगाओ , फिर तेरी चुदवासी छिनार बहन रंडी , आ रही होगी न उसको लगाना। "
गुड्डी ने भी उसी भावना में जवाब दिया और अपने फोन पे मम्मी को लगा के स्पीकर फोन आन कर मुझे पकड़ा दिया। और फोन पे होली के किसी रंगीन भोजपुरी होली गाने कि ट्यून आ रही थी ,
उनकी आवाज आते ही , गुड्डी ने जवाब दिया , अगली आवाज जो आप सुनेंगी , और उनकी बात काट के मम्मी बोलीं ,
" मालूम है मालूम है , तेरी होने वाली सास के यार कि हैं , " और जबतक वो आगे कुछ और बोलतीं ,
" हैप्पी होली , मम्मी " मैंने होली विश कि उन्होंने जबरदस्त जवाब दिया और साथ में बोलीं ,
" इस बार तो तूने अपने मायके में मा बहनो के साथ होली खेल ली लेकिन अगली होली , मेरे साथ होगी और वो गाँव में। होली के दो दिन पहले आना और रंगपंचमी के बाद जाना। "
वो बोली , लेकिन आग में घी डालने का काम हो तो गुड्डी से बेहतर कोई नहीं , वो बोली ,
" अरे मम्मी , जबतक ये अपनी मायकेवालियों के साथ होली ना खेलेंगे , इन्हे मजा नहीं आता। बचपन कि आदत क्या करें बेचारे "
" अरे तो कोई बात नहीं , " वो हंस के बोलीं , " मायकेवालों को ले आये ना , मेरी समधन से मैं और तेरे चाचा , मामा , मौसा कब्बडी खेल लेंगे और तेरी ननदों से तेरे भाई, सबका फायदा होगा। "
और फिर वो बोलीं ,
और उसके बाद तो जो उन्होंने बोला और मैंने सुना , और उन्होंने मुझसे बुलवाया , कबूलवाया ,
न कहने के लायक ना लिखने के लायक।
वो भांग का असर था या होली का या बनारस का या तीनो का कॉम्बो पता नहीं ,
लेकिन जब उन्होंने फोन रखा , तो मुझे लगा मेरे ऊपर से कोई रोड रोलर गुजर गया ,
और ऊपर से गुड्डी , उसने जंगबहादुर को ना जाने कित्ते जोर से जकड रखा था , एक झटके में उसने सुपाड़े को खोल दिया और बोली ,
" जानु तेरी मस्त हालत देख के लग रहा है तुझे मम्मी का होली आफर कित्ता पसंद आया , कच्ची कलियों के साथ खेली खायी ,… मम्मी ने कहा है तो दिलवाएंगी तुझे ,"
मैंने गुड्डी को चढ़ाया , " अरे तेरी मम्मी की तो मैं , लेकिन अभी तो तू ही है , कुछ इलाज कर न। "
लेकिन वो जंगबहादुर से बात चीत में लगी थी और वैसे भी जंगबहादुर अब मुझसे ज्यादा उसकी सुनते थे , दिलवाती भी तो थी वो नए नए मजे।
पहले उसने बॉल्स को चूमा , फिर सुपाड़े पे जैसे कोई नदीदी लड़की लॉलीपॉप को लिक करे , उस तरह जीभ निकाल के झट्ट से चाट लिया और बोली ,
" इन्होने मम्मी के सामने कबूला है , देख अब तुझे जल्दी ही खूब रसीले भोंसड़े का भी भी रस मिलेगा , इनकी मायकेवलियों का बल्कि इनकी , "
और गुड्डी कुछ आगे बोलती , मैंने उसका सर पकड़ के पूरा सुपाड़ा अंदर ठेल दिया ,
और वो जोर जोर से चूसने चाटने लगी।
आज वो इस तरह लंड चूस रही थी , जैसे उसके पहले उसने कभी चूसा ना हो।
कभी वो अपने दोनों होंठो के बीच मेरी बॉल्स ले के कस कस के चाटती , तो कभी सपड़ सपड़ उसकी जीभ , सुपाड़े पे जैसे डांस करती। और फिर दोनों हाथों से मेंरे लंड का बेस पकड़ के एक झटके में उसने जो मुंह पुश किया तो , आधे से ज्यादा लंड एक बार में अंदर।
फिर तो चूसने में अगर किसी वैक्यूम क्लीनर से भी मुकाबला होता तो वो उसे मात कर देती।
मस्ती के मारे मेरी आँखे मुंदी जा रही थी।
और उस के बाद बीच बीच में जो वो मेरे मायकेवालियों के बारे में , जिस तरह उसकी , मेरा मतलब मम्मी बोल रही थीं , उसी तरह गुड्डी कमेंट बोलती , बस जैसे कोई जबरदस्त शेफ , बढ़िया खाने पे , और बढ़िया गार्निशिंग कर दे , बस उसी तरह।
एक बार वैसे ही कुछ उसने बोला , और फिर मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने गुड्डी के सर को दोनों हाथो से पकड़ा और हचक हचक के , जोर जोर उसके किशोर होंठो के बीच , उसका मुंह चोदने लगा।
सुपाड़ा सीधे उसके गले से रगड़ रहा था , वो गों गों करती , मुंह मोटे लंड से फुला , गाल फटे पड़ रहे थे , आँखे दोनों निकली जा रही थीं। मेरी बॉल्स उसके मुंह से टकरा रही थी. आठ इंच का लंड सटासट , गपागप , उसके मुंह के अंदर बाहर हो रहा था जैसे उसका मुंह न हो कोई खेली खायी लम्बी , गहरी चूत हो।
जो मजा आ रहा था मैं बता नहीं सकता, मुंह चोदने में।
और जब कुछ देर के बाद , जबरदस्त मुंह चोदने के मैंने एक पल के लिए सुपाड़ा बाहर निकाला तो उसनेअपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे नचा के , मुस्करा के फिर बोला ,
" क्यों क्या मम्मी कि बात याद आ गयी थी क्या। अरे यार मेरा मुंह है मेरी होने वाली सास का … "
और उसकी बात आगे कि मुंह में रह गयी। मैंने हचक के लंड फिर उसके मुंह में पेल के , गुड्डी का मुंह बद कर दिया और मुख मैथुन फिर शुरू हो गया
फूल स्पीड , और अबी गुड्डी भी मेरे धक्के का जवाब धक्के से देती , तो कभी पूरे जोर से लंड चूस लेती।
जो मेरी ट्रिक थी कि मैं अब तक उसकी चूत चाट चाट के चूस चूस के झाड़ने के कगार पे ले जाता फिर रोक देता , और फिर जब वो थोड़ी नारमल होती तो फुल स्पीड चूत चटाई चालू कर देता , बिलकुल वही ट्रिक ,
कितनी बार मैं झड़ने के कगार पे गया , लेकिन कभी वो रुक जाती और उसकी नशीली आँखे मेरी आँखों को देख के मुस्करातीं चिढ़ातीं तो कभी वो अपने लम्बे नाखुनो से मेरे बॉल्स पे पिंच कर देती और हल्का सा दर्द मेरे जोश को कम कर देता ,
और अब जब लग रहा था कि वो मुझे झाड ही देगी ,
फोन कि घंटी बजी , गुड्डी के मोबाइल की।
हम दोनों ने एक साथ देखा , भाभी का फोन था।
मैंने आँख से इशारा किया मत उठा , पहले मुझे।
लेकिन उसने आँखों से मुझे बरज दिया और फोन उठा लिया ,
एक समझदार और आज्ञाकारी देवरानी की तरह ,
( मुझे भी लगा , वो जानती थी हर बात का फाइनल फैसला भाभी के हाथ में है , इसलिए भाभी को पटा के रख़ना ही ठीक है )
स्पीकर फोन उसने आन कर दिया।
पहले भाभी ने मेरी हाल चाल ली और बुरा भला कहा।
मैं सो के उठा की नहीं , मैं बहुत आलसी और लापरवाह हूँ।
फिर उन्होंने बोला की वो लोग खा के आयेंगे करीब एक घंटे बाद और गुड्डी कुछ बना ले
और रंजी को रोक के रखे। भाभी से मिल के ही वो लौटे।
गुड्डी ने भी भाभी की हाँ में हाँ मिलायी की ,
मैं अभी बस थोड़ी देर पहले सो के उठा हूँ और उठते ही भूख भूख चिल्लाने लगा। गुड्डी ने मुझे कुछ खिला पिला दिया है और वो बस किचेन में जा रही है।
और फोन रख के वो किचेन की ओर मुड़ ली।
बिचारा मेरा तन्नाया लंड अभी भी पाजामे के बाहर था।
" हे इसका क्या होगा " मैंने उसकी और इशारा कर के पुछा।
वो जोर से मुस्करायी , अपने मोबाइल की ओर इशारा किया और बोली ,
" तीन मेसेज आ चुके हैं उसके , छह मिनट पहले निकल चुकी है वो गदहे वाली गली से , अब आगे का काम मेरी होने वाली ननद , और तेरी बहन कम माल करेगी। खिलाना उसको इसकी रबड़ी मलायी।
हाँ लेकिन अगर मैं किचेन में बिजी रहूँ तो , (ठंडाई और भांग वाली गुझिया की ओर इशारा कर के ) तो जरा अच्छी तरह पहले उसकी खातिर कर देना। "
और फिर वो अपने मस्त मोटे चूतड़ मटकाती , किचेन की ओर मुड़ दी और एक बार किचेन के दरवाजे से , अभी भी खुले खड़े लंड को फ्लाईंग किस दे दिया।
मैं क्या करता। मैने लंड को पाजामे के हवाले किया।
तम्बू अभी खूब अच्छी तरह तना था और बिना इलाज के बैठने वाला भी नहीं था।
लेकिन जैसा सब जानते हैं किचेन औरतों का सबसे बड़ा अभय स्थल है।
मैं क्या करता।
मैंने मोबाइल निकाला। रीत के दो मेसेज थे। उससे मैंने बात की और मीनल से भी।
वो दोनों करन के साथ महाराजा एक्सप्रेस में थीं और मुम्बई जा रही थी।
उस समय दोनों ट्रेन के रेस्टोरेंट में थीं। रीत को मैंने बोला की मैं उसे एन पी ( नो प्राबलम सर) का कांटेक्ट कल मेसेज करूँगा , उससे बात कर के और मुम्बई की डिटेल्स भी। तय हुआ कि हम दोनों अगले दिन ११ बजे बात करेंगे , तब तक करन वहाँ के ऐ टी एस ( ऐंटी टेरर स्क्वाड ) से भी टाई अप कर लेगा।
मैंने फोन रखा। किचेन से अभी भी बरतनो की आवाज आ रही थी। यानी गुड्डी से किसी सहायता कि उम्मीद बेकार थी।
तभी दरवाजे पे काल बजी।
और मैंने जाके दरवाजा खोला।
क़यामत।
दरवाजे पे क़यामत खड़ी थी। मुस्कराती , बल खाती , जलवे गिराती।
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फागुन के दिन चार--110
गतांक से आगे ...........
एकदम दी ,कम से कम प्यार से टाटा बाई बाई तो कर सकती हूँ , मीनल बोली और फिर एक साथ दोनों ने करन को पलंग पे धकेल के बैठा दिया
और अगले पल मीनल ने जीप खोल दी , और जैसे खटका दबाते , स्प्रिंग वाला , चाक़ू बाहर आ जाता है , मोटा कड़ा मुस्टंडा बाहर ,
और अगले पल ही अंदर , मीनल के मुंह में।
वो जोर जोर से उसे चूस रही थी , चुभला रही थी , अपने होंठो से उसे रगड़ रही थी।
और अब करन भी उसका सर पकड़ के जोर जोर से धक्के लगा रही था , जैसे चूत न चोद पाया हो तो चलो मुंह ही चोद लो। मीनल के हाथ साथ साथ उसके बॉल्स सहला रहे थे , लिंग को पकड़ के आगे पीछे कर रहे थे।
फिर लंड मुंह से बाहर निकाल कर , वो सुपाड़े को चूम के बोली ,
" बस दो दिन के लिए छोड़ रहीं हूँ तुझे , फिर देखना। "
करन हंस के बोला , अरे दो दिन के बाद तो ये खुद नहीं छोड़ेगा तुझे।
तब तक मीनल के मोबाइल पे मेसेज आया , शिखा का।
वो उतरान स्टेशन पे पहुँच गयी थी। उसका मेसेज था कि वो लोग , अपने कोच की सारी लाइटें बंद कर लें , सिवाय बेड रूम के नाइट लैम्प के।
रीत लाइटें बंद करने पे लग गयी और करन ने मीनल को अपनी बांहो में भर लिया और जोर जोर से टॉप के ऊपर ही उसके मस्त जोबन दबाने लगा ,
" मेरी प्यारी साली जी , सिर्फ दो दिन कि बात है , मुम्बई से लौट के दो दिन तुम्हारे साथ बिता के ही हम बनारस जायेंगे। " करन ने मीनल को चूम के कहा।
गाडी धीमी होने लगी थी।
वो तीनो लाउंज में आ गए।
करन ने उसके कलाई पे बंधे फ्रेंडशिप बैंड ऐसे कम्युनिकेशन बैंड के साथ एक बैंड और बांध दिया।
" इसकी रेंज पचास किलोमीटर तक है और इसमें जी पी एस है। लेकिन इसमें सेटलाइट फोन का भी लिंक है , इसलिए हम लोग हरदम टच में रहेंगे। जब तुम कमरे में सेफ पहुँच जाना तो ग्रीन बटन दबा देना , मेरे मोबाइल पे आल सेफ का मेसेज आ जाएगा। "
करन बोला।
गाडी रुकते ही करन , और रीत उतरे। दोनों ने दोनों और देखा कि कोई खतरा तो नहीं है , फिर मीनल को इशारे से उतरने को बोला।
तब तक शिखा अपनी गाडी से उतर के आ गयी। मीनल ने उसे पहचान लिया और उसकी गाडी में बैठ गयी , और पुलिस कि गाड़ी चल पड़ी। उधर महाराजा एक्सप्रेस ने भी सीटी दे दी और स्टार्ट हो गयी। रीत और करन भी गाडी में चढ़ गए।
ताप्ती नदी पार हुयी।
फिर ट्रेन कि खिड़की से सूरत शहर की रोशनियां दिखीं।
सूरत स्टेशन पे गाडी थोडी धीमी हुयी , लेकिन रुकी नहीं।
डिब्बे में रीत और करन चुपचाप बैठे थे , एक दूसरे का हाथ थामे , दीवाल कि और देखते ,
दोनों के दिमाग में सिर्फ एक बात थी , एक चिंता थी , मीनल।
पंद्रह मिनट से ज्यादा हो गए थे , तब तक कारण के मोबाइल पे मेसेज आया , आल ओ के , यानी मीनल ने ग्रीन बटन अपने बैंड से दबाया था।
और कुछ ही देर में रीत का फोन भी बजा। मीनल थी। वो लोग हजीरा में ओ एन जी सी के रेस्ट हाउस में थे। उसे पूरी तरह सिक्योर कर दिया गया था और शिखा भी उन के साथ थी।
मारे खुशी के उन दोनों ने एक दूसरे को भींच लिया , फिर तो ,… कपडे उतारने कि किसे फुरसत थी।
करन ने रीत कि गुलाबी पजामी बस नीचे सरकाई , मुस्टंडा बाहर आया।
" आज तो तेरी , मैं तेरे हिस्से कि भी लूंगा और तेरी बहन के हिस्से कि भी फुद्दी मारूंगा। " करन उसका टॉप उतारते बोला।
" डरती कौन है साल्ली यहाँ , लो ना " और रीत कि उँगलियाँ करन के शर्ट के बटन खोल रही थीं।
" तू नहीं लेगा तो मैंने तेरी ले लुंगी , " रीत ने करन को बांहो में भिंचते कहा।
फिर तो थोड़ी देर में ,
कंगन की खनखनाहट , चूड़ियो की चुरमुर
पायल और बिछुओं कि रुनझुन ,
के बीच ,
सिसकियाँ और हलकी प्यार भरी चीखे ,
ओह्ह , आह , नहीं लगता है , आह्ह्ह , और ,
रीत करन कि बाहों में समायी थी और
करन रीत के भीतर ,
गाडी पूरी स्पीड से दौड़ी जा रही थी ,
करन का घोडा उससे भी तेज ,
बाहर फागुन के पूनो का चाँद दमक रहा था
अंदर रीत का रूप और करन का प्यार छलक रहा था
दूबे भाभी की दी हुयी वैसलीन कि शीशी , आधे से ज्यादा , खाली हो गयी थी।
सुहाग कि रात का दूसरा दिन था
आज सुहाग कि रात सूरज जिन उगिहो
आज सुहाग कि रात चंदा जिन डुबिहो
गुड्डी का रंग भांग के संग
गुड्डी शीला भाभी के साथ पंचायत कर रही थी। साथ में मंजू भी ,
और मैं अपने कमरे में कंप्यूटर के सामने और फोन मेरे कान पे. पहले मेरे हैकर दोस्तों से बात हुयी और उन्होंने एक अच्छी खबर सुनायी कि , वो चार बजे से चार घंटे तक दुश्मन के हेड क्वार्टर , जहाँ से जेड और वाई सेटलाइट फोन पे बात होती थी , और जहाँ से सारा आपरेशन संचालित होता था , उसे इंकम्युनिकेडो कर देंगे।
जैसे कोई वेब साइट क्रैश होती है बिलकुल उसी तरह और वो बड़ोदा के किसी आपरेटर को कोई गाइडेंस नहीं दे पायंगे। २६ /११ में सबसे बड़ी गड़बड़ी यही हुयी कि ताज और ट्राइडेंट में से टेरररिस्ट , अपने आका से बात कर डायरेक्शन ले रहे थे। बड़ोदा में ये नहीं होने वाला था।
मीनल और रीत जब करछिया यार्ड में पहुंची तो इयर पीस से वहाँ कि हाल मिल रही थी। और जब रीत ने डिवाइस के बारे में पता कर लिया और वाई को न्यूट्रलाइज कर लिया , तो बस मुझे यही डर था कि पता नहीं कितने ट्रेनो में ये डिवाइस वाई ने लगवा दिया हो , इसलिए मैंने तुरन्त सीनियर डो ओ एम त्रिपाठी जी से बात की और उनको सब हाल बताया। कंट्रोल पहुँच के उन्होंने ओ एच इ आफ करवा के तुरन्त सारी गाड़ियां रोक दीं। रीत को मैंने मेसेज दिया कि वो रेलवे कंट्रोल आफिस पहुँच जाय क्योंकि कारण वाई को हैंडल कर ही रहा था। शाम पांच बजे के आस पास रीत ने खबर दी , कि सारी सस्पैकेटेड ट्रेन आडेन्टिफाई हो गयीं हैं और बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड वहाँ के लिए हेलीकाप्टर से रवाना हो गए हैं और दुश्मन का आपरेशन फेल करा दिया गया है।
दो सबसे बड़ी रिफायनरी , दो बड़े पावर हॉउस दुशमन के निशाने पे थे जो बच गए। उसके अलावा जान माल का जो नुक्सान होता सो अलग।
मैंने रिलीफ कि सांस ली।
साढ़े पांच बज रहे थे। रीत का मेसेज आया कि वो मीनल और करन के साथ शापिंग के लिए निकल रही है और वहाँ से फिर वो ट्रेन पे चले जायेंगे और मीनल उनके साथ जायेगी। उसी के साथ मुझे नींद आगयी। पता नहीं कैसे , बहुत गाढ़ी और जब मेरी नींद खुली तो पौने आठ बज रहे थे।
और जगाने वाली और कौन, गुड्डी थी।
एकदम सपने जैसी ,
मैंने बार बार आँखे मींची , अभी भी सो तो नहीं रहा हूँ।
लेकिन गुड्डी की चांदी के पायल जैसी रुन झुन रुन झुन हंसी और वो रुप ,
एकदम मेरी दुल्हन ,
गुड्डी आज साडी ब्लाउज में थी।
वही जो मैंने उसके और रंजी के लिए ख़रीदा था, जिसके लिए गुड्डी उसे बाबी टेलर्स पे ले गयी थी , ब्लाउज सिलवाने , और दोनों ने तय किया था कि होली कि शाम वो दोनों किशोरियां साडी ब्लाउज ही पहनेगी।
और वही हुआ।
लेकिन असर उसका एकदम जादू था।
प्याजी गुलाबी रंग शिफॉन , आलमोस्ट सब कुछ दिखता है , टाइप वाली , और ऊपर से गुड्डी ने बाँधा भी था कमर , बल्कि कूल्हों से भी नीचे।
और गुड्डी के भारी भारी नितम्बो का भराव , कटाव , सब कुछ दिख रहा था , ललचा रहा था। उसके साथ ही गहरी नाभी , चिकने मखमली पेट पे , और उसके चारों ओर टैटू बेहोश करने के लिए इतना काफी था।
लेकिन जो जान मार रही थी चीज वो उसकी चोली थी , एकदम टाइट फिट। एकदम आग लगा रही थी। आलमोस्ट बैकलेस , पतली सी स्ट्रिंग , वो भी प्याजी गुलाबी , आलमोस्ट स्किन कलर एयर पूरी तरह ट्रांसपेरेंट । सामने से खूब डीप क्लीवेज , गहरा वी नेक का गला, स्लीवलेस , बस बहुत पतले वही स्किन कलर के नूडल स्ट्रिंग ,… उरोज सिर्फ झलक और छलक ही नहीं रहे थे , बल्कि बहुत कुछ दिख रहे थे।
बाबी टेलर का कमाल ( तभी तो लड़कियां उसे बूब्स टेलर्स कहती थीं ), चोली , बूब्स से एकदम चिपकी , सेकंड स्किन कि तरह , जोबन का कटाव , उभार दिखाती। और सबसे बड़ी बात , गदराये उरोजों की आभा के साथ , खड़े मटर के दानों कि तरह , गुलाबी निपल भी झलक रहे थे
।लेकिन दो चीजें और थीं , एक तो नीचे से उसने चोली में जो जामदानी के काम कि पट्टी लगायी थी ,खूब कढ़ी और भारी , उसके कंट्रास्ट से , चोली और उभर के सामने आ रही थी , और दूसरा रंजी कि शरारत।
क्लीवेज पे एक उरोज पे , एक गुलाबी तितली का टैटू , जिससे निगाह उरोजों के उभार के साथ निपल पर भी पड़ जाती थी.
"हे कभी लड़की नहीं देखी क्या , साडी पहने "
गुड्डी खिलखिलाई। चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठीं।
" देखी है लेकिन इत्ती , प्यारी सी सुन्दर सी नहीं देखी। " मैने उसे बांहो में भींचते कहा।
" अच्छा जी , लगता है मुझे पहली बार देख रहे हो। " हंस के वोअपने को छुड़ाते बोली।
" तुम्हे देखा है , लेकिन साडी में पहली बार देख रहा हूँ। "
" और बिना साडी के ,…" गुड्डी से पार पाना मुश्किल था।
मैंने उसे और कस के बांहों में भींच लिया और रसीले गालों से दो छोटे छोटे चुंबन चुराते बोला ,
" देखा है न , और अभी फिर देखूंगा " मेरी चुंबन यात्रा , गालों से मीठे होंठों और फिर मस्त गद्दर खुले , दावत देते , जोबन तक पहुँच गयी।
लेकिन गुड्डी मेरा नाक पकड़ के बोली ,
" बुद्धू अभी कोई आ जाएगा। फिर तुम इत्ती देर से सो के उठे हो पहले कुछ खा पी लो। "
और हम दोनों कमरे से निकल के बाहर बरामदे में आ गए। वहाँ कोई नजर नहीं आ रहा था। हाँ , टेबल पे कई प्लेटों में गुलाल अबीर , एक प्लेट में गुझिया और एक में दहीबड़े रखे थे। और एक पानी का भरा जग , ग्लासेज , और जगह जगह अबीर गुलाल बिखरा पड़ा था।
शाम को लगता है अबीर गुलाल की होली , जबरदस्त हुयी थी।
" हे भाभी कहाँ हैं " मैंने इधर उधर किसी को न देख के पुछा।
" क्यों होली खेलनी है क्या ?" गुड्डी ने चिढ़ाया। फिर खुद ही बोली ,
" फिर तो वेट करना पड़ेगा , वो तुम्हारे भैया और शीला भाभी , कुछ मिलने वालों के यहाँ गयी हैं , एक डेढ़ घंटे में आएँगी , और मंजू को अगर याद कर रहे हो तो वो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गयी है , सुबह ही आएगी। "
" तो तुम कह रही थी कि कोई आ जाएगा " मैंने पुछा।
" अरे यार दो लोग हैं न , मैं और तुम " मुझे बांहो में भींचती और मेरे होंठो पे चुम्बन जड़ती गुड्डी ने कहा और हाँ मेरी ननद कम तेरी माल भी अभी आधे घंटे में आ रही होगी सारे शहर कि रंडी और तेरी रंजी , जानेमन। "
और जब मैंने ये सोचा की रंजी भी इसी तरह कि नाभि दर्शना , पारभासी , देह दिखाऊ साडी में , कुल्हो से नीचे बंधी , अपने नितम्बो को मटकाती , आ रही होगी , और उसके मस्त चूतड़ तो गुड्डी से भी भारी थे , और उसके यारों कि शहर में कमी नहीं थी.
बस मेरे कानों में फायर ब्रिगेड के घंटे और एम्बुलेंस के सायरन कि आवाज गूँज रही थी , जो रंजी के पीछे पीछे आ रही होंगी। किसी तरह मैंने अपने दिमाग से उस ख्याल को निकाला और गुड्डी से पुछा ,
" हे इत्ता अबीर गुलाल बिखरा पड़ा है , लगता है शाम को जबरदस्त होली , हुयी। कौन कौन आया था , और तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं। "
" ये पूछो कि कौन नहीं आया था , एक बार जिसको तेरे इस औजार का दर्शन भी हो जाय ना तो , तेरी सारी कालोनी के रिश्ते वाली बहने और मेरी ननदें , … लतिका , समोसे वाली , सुबह घोंट के उस का मन नहीं भरा था , और उसकी सहेली रीमा , और भी ढेर सारी लड़कियां जम के रगड़ाई हुयी सबकी।
मैं मंजू और शीला भाभी , हाँ और तेरी भाभी भी आज पूरे जोश में थी और जगाने की भली कही तूने , सब साल्ली।
घर में घुसती बाद में थी , भाभी भैया कहाँ है पहले पूछती थीं। बल्कि तेरी भाभी ने कहा भी , तुम सब छीनार , पक्की भइया चोद हो।
तो वो समोसे वाली बोली , भाभी आप लोग रात में सैंयाँ , और दिन में देवर से मजे लेती हैं तो होली तो साल में एक दिन आती है , आज तो कोई रिश्ता नाता नहीं होता, सिवाय एक के डालने वाले और डलवाने वाली के।
तो आज तो हम लोग भी नंबर लगा सकती हैं " गुड्डी बोली।
" तो भाभी क्या बोलीं " मैं उत्सुक था।
गुड्डी बोली,
"अरे उनके पहले मैंने ही उसको धर दबोचा , और उसकी चुन्मुनिया में ऊँगली करते बोला , अरे होलिका देवी की पूजा करो , रोज लंड पुराण का पाठ करो , तो एक दिन क्या रोज होली। साल भर बिना नागा , हमारे देवरों से अपने भाइयों से चुदवाओ , सिर्फ एक दिन क्यों , और तेरे भैया अभी बहुत दिन रहेंगे , फिर आएंगे , तो बस एडवांस बुकिंग करवा लो ,…
गुड्डी ने फिर मेरे गाल जोर से पिंच किये और समझाया,
" और जगाया तुझे इस लिए नहीं बुद्धू राम , कि अगर तुम उन के सामने पड़ जाते न , तो न तो वो बिना चुदवाए छोड़तीं और ना तो तुम बिना चोदे छोड़ते। हो तो तुम पैदाइशी , नम्बरी बहन चोद , बल्कि मुझे लगता है कि सिर्फ बहन चोद ही नहीं बाकी और जो… चोद होते हैं ना वो भी होगे,पक्का । फिर अभी थोड़ी देर में रंजी आने वाली है उस कि रगड़ाई करवानी है तुझसे ,"
उसकी बात काट कर , मैंने दुखी मन से कहा ,
" लेकिन तूने तो बोला है कि अगर उसके साथ मन्त्र जगाना है , तो उसका भरतपुर होली के दो दिन बाद ,…फिर आज वो आएगी भी तो ,…"
" अरे यार उस साली के क्या एक ही छेद है , भरतपुर के लिए दो दिन ठहर जाओगे तो उम्र भर के लिए फायदा हो जाएगा , तेरा भी उसका भी और तेरी सारी माँ बहनो का ,… अरे जरा उसको अपनी गाढ़ी मलायी का स्वाद चखा देना।
सिनेमा हाल में तो तूने उसे लालीपॉप चुसाया नहीं , आज सिर्फ हम और तुम रहंगे घर में जब वो आएगी , हचक हचक के मुंह चोदना उसका , पूरा ठेलना। एक बार तेरे लंड को चूस लेगी तो खुद ही भागी भागी आएगी। लेकिन मेरे मन में शीला भाभी का भी ख्याल था इसलिए नहीं जगाया। “
मुझे भूख भी बहुत लग रही थी , और गुड्डी के अंदर ये गुण था कि मेरे मन की बात बिना बोले न सिर्फ समझ जाती थी , बल्कि , उसे पूरा भी कर देती थी।
और उसने प्लेट से एक गुझिया उठा के मेरे मुंह में डाल दी।
गुड्डी की आदत थी , एक बार में पूरा डालने की और जब मैं कुछ बोलता तो वो दुष्ट हंस के, अपनी बड़ी बड़ी आँखे नचा के बोलती ,तुम्ही से सीखा है , एक बार में पूरा डालना।
और मैं गप्प से लील भी गया।
तब तक मेरी निगाह प्लेट पे पड़ी , बिना गोठी गुझिया , ये भाभी का कोड था। मतलब स्ट्रांगेस्ट , डबल भांग वाली। बिना भांग के तो जबसे , भाभी शादी होके आयीं , हमारे घर में गुझिया बनी नहीं।
लेकिन ये डबल भांग कि गोली वाली तो पांच मिनट में मेरे दिमाग का रायता बनाने वाली थी। साइज भी गुझिया की खूब बड़ी थी और मैं बोल नहीं पा रहा था।
मैंने गुड्डी से प्लेट की ओर इशारा किया।
वो दुष्ट जान बुझ के ना समझ बन रही थी।
बोली , पानी चाहिये क्या , तो मुंह खोल के क्यों नहीं मांगते। तेरे अंदर बस यही एक बुराई है , मुंह खोल के नहीं मांगते। रंजी भी यही कहती है , भैया एक बार भी मांगते तो मैं कब का दे देती। "
मेरे मुंह में तो डबल डोज वाली गुझिया भरी थी। मैं क्या बोलता।
और जब उस सुनयना ने ग्लास में जग से ढाला तो वो पानी नहीं ठंडाई थी. और वो गुड्डी ने सीधे मेरे मुंह में लगा दिया और बोली ,
"चुपचाप पी जाओ पूरा एक घूँट में " और अपने हाथ से पकड़ के ढरका दिया।
थोड़ी सी ठंडाई मेरे मुंह में जाते ही मुझे अंदाज लग गया था की , ये भी भाभी का ही कमाल होगा। स्ट्रांग डोज वाली ठंडाई। तीन चौथाई ग्लास तो मेरे पेट में गया लेकिन बाकी मै गुड्डी को पिला के ही माना।
फिर मुझे याद आया कि गुड्डी कुछ शीला भाभी के बारे में बोल रही थी।
" हे तुम , मेरे और शीला भाभी के बारे में कुछ बोल रही थी। " मैंने उसे याद कराया।
" अरे भूल गए तुम , आज तेरे बाप बनने का दिन , मेरा मतलब रात है। याद है तूने शीला भाभी को प्रामिस किया था कि आज तुम उन्हें वीर्य दान करोगे , और कल सुबह उन्हें निकल भी जाना है , इसलिए मैंने तुम्हे नहीं जगाया। " वो बोली
बात तो गुड्डी की सोलहो आना सही थी।
और अगर मेरी और गुड्डी की जोड़ी मिलाने में किसी का जरा भी हाथ था , विधना के अलावा तो वो शीला भाभी का था। उन्होंने न सिर्फ हमारे रिश्ते को 'फुल्ली फाइनल" करवाया , बल्कि लाक भी करवा दिया और जिससे हम दोनों का सप्त कोटी संदूक खुल गया , वरना हम दोनों ऐसे ही छिप के मिलते और तड़पते।
जिस काम को को इतना मुश्किल समझता था , उन्होंने चुटकियों में हल किया।
मैंने जैसे ही शीला भाभी से अपने दिल की बात की , कि मुझे गुड्डी चाहिए परमानेंटली , ( भाभी से बात करने की तो मेरी हिम्मत नहीं पड़ती ) बस न सिर्फ उन्होंने दो मिनट के अंदर भाभी से बात कर के उन्हें कन्विंस किया , गुड्डी की मम्मी से भी बात की , और उसी दिन हम दोनों को साथ साथ मंदिर ले गयीं , साथ साथ पूजा करवायी , कुंडली भी मिलवा दी और शादी की तारीख भी निकलवा दी। वो भी बस दो महीने के अंदर की.
शीला भाभी के लिए तो मैं कुछ भी कर सकता था। और ऊपर से गुड्डी का हुकुम , वही बोली ," शीला भाभी , बच्चे के लिए इधर उधर साधुओं के चक्कर में घूम रहीं है , उनके पति से कुछ होना नहीं है , वैसे भी वो पुरुष प्रेमी है और वो भी मरवाने का शौक रखता है , तो तुम्ही क्यों नहीं कुछ करते। दे दो बिचारी को , जब तक मैं नहीं मिली थी इधर उधर अंडरवियर में गिराते फिरते थे ,"
गुड्डी भी अलग मिटटी कि बनी है। कौन लड़की अपने ब्वाय फ्रेंड को शेयर करती है , लेकि उससे शीला भाभी का दुःख देखा नहीं गया।
मैंने शीला भाभी को कम्पुटर पे एक साइट दिखायी थी , और गुड्डी भी वहीँ थी , जिसमे लिखा था होली कि रात , और सबसे स्ट्रांग योग है , रात में १ बजे से सुबह बजे तक और शर्तिया , फागुन के पूनम की तरह सुन्दर कन्या होगी। इसलिए आज रात शीला भाभी के नाम थी।
हाँ दो बातें , शीला भाभी को नहीं बतायी थी ( लेकिन गुड्डी को मालुम थी , मेरी कोई बात गुड्डी से छिप नहीं सकती थी ). पहली बात ये थी कि जो वीर्य दान करे वो उसके पहले कम से कम आठ घंटे पहले से स्त्री सम्भोग से विरत रहे ( और इसलिए गुड्डी ने मुझे सोने दिया कि कही जोश में आके उस समोसे वाली कि सहेलियों से ,…) और दूसरी , इस दशा में जो कन्या होगी वो अत्यंत सुन्दर तो होगी , लेकिन अपनी मा से कम से कम दस गुना ज्यादा छिनार होगी।
मैं उधर शीला भाभी के बारे में मुंह बाए सोच रहा था , और गुड्डी ने जैसा हमेशा होता है , मौके का फायदा उठाया और भांग की गोली , गुझिया सीधे मेरे मुंह में।
मैं समझ गया था शिकायत , परिवाद करने से कुछ होने वाला नहीं इसलिए अफेंस इज बेस्ट डिफेंस वाले फारमूले पे , मैंने भी एक गुझिया प्लेट से उठा के उस के मुंह में ठेल दी।
और थोड़ी देर तक हम दोनों गुझिया खाते रहे और गुड्डी ने एक बार फिर मुझे ठंडाई पिला दी , लेकिन इस बार ग्लास मैंने उसे आधी पिला दी।
" ये हम लोगों ने तेरे माल रंजी के लिए रख छोड़ी थी। तुम्हारी भाभी ने एक्स्ट्रा स्ट्रांग बनायी थी "
ठंडाई के जग में झांकते बोली वो।फिर देख के मुस्करा के मुझसे कहा ,
" अभी भी तीन चार ग्लास से ज्यादा है , दो ग्लास काफी होंगे उसकी जवानी आग को ठंडा करने के लिए , फिर तुम्हारा मोटा नल भी तो है , आज बिना चुसाये मत छोड़ना। गों गो करेगी लेकिन पूरा औजार गले तक उतार देना। पीछे से मैं भी कस के सर पकडे रहूंगी , आखिर तेरी बहन है , मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है। "
और ये कहते हुए उसने फिर एक ग्लास ठंडाई और निकाल दी।
भांग का असर कुछ कुछ चढ़ना शुरू हो गया था और मेरी निगाहें एकदम गुड्डी कि चोली से झांकते , ललचाते उरोजों पे बस चिपकी थी.
मैंने गुड्डी को खींच के अपनी गोद में बिठा लिया और ठंडाई का ग्लास ले के सीधे उसके होंठो पे , अबकी आधी मैंने आधी उसने।
दो भांग पड़ी ठंडायी का ग्लास और दो भांग कि गुझिया , और गोद में गद्दर जोबन झलकाती गुड्डी ,
किसी को भी नशा हो जाए।
" हे तेरे से आज होली नहीं खेली मैंने , " मैं बोला।
" झूठे , भूलगए सुबह छत पे ."
मेरे गाल पे प्यार से चूमती , गुड्डी बोली और फिर कहा ,
” वो आएगी न , तेरी भाई चोदी चूतड़ मटकाती बहन कम माल , रंजी अब उसी को डालना , अपना गाढ़ा सफेद रंग सीधे उसके मुंह में। "
मेरी निगाह मेज पे रखे तरह तरह के रंग , अबीर और गुलाल पे घूम रही थी।और मैंने एक चुटकी रंग उठा लिया।
हमारे घर के बगल में आलमोस्ट सटा , एक बहुत पुराना आम का बड़ा सा पेड़ है। उसकी बड़ी बड़ी डालें हमारे छत पे आती हैं। उसी से छन छन के चांदनी आँगन में बरस रही थी। गुड्डी को लेके मैं खड़ा हो गया और बरामदे में दूसरे कोने में चला गया।
वहाँ से आसमान में टंगा पूनम का चाँद साफ साफ दिख रहा था। जैसे किसी नयी दुल्हन ने माथे पे बड़ा सी टिकुली लगा रखी हो।
भांग के नशे में ये ख़ास बात है कि , वो आप के सारे सेंसर , सोच पे रोक टोक ख़तम कर देता है और साथ ही आप जो बात करना शुरू कर देते हैं वो बस करते रहते हैं।
मेरे साथ भी यही हुआ ,
कुछ गुड्डी के रूप की चांदनी ,
कुछ होली के पूनम की चांदनी ,
कुछ भांग का नशा
और कुछ , गुड्डी के गद्दर जोबन का नशा ,
बरसों से, कालेज के दिनों के बाद से जो काम मैंने नहीं किया था , वो शुरू कर दिया ,
गाने का।
ये वादा करो चाँद के सामने ,
भूला तो ना दोगे मेरे प्यार को ,
और साथ में गुड्डी भी चालु हो गयी ,
मेरे हाथ में हाथ दे दो जरा ,
सहारा मिलेगा मेरे प्यार का।
और गुड्डी की आवाज , जैसे कोई चांदनी में शहद घोल दे।
फिर तो एक के बाद एक गाने , जैसे हम दोनों के प्यार को आवाज मिल गयी हो , पंख उग आये हों और वो आसमान छूने की कोशिश कर रहे हों।
मैंने और गुड्डी जैसे दूध में पानी मिल जाय उस तरह एक दूसरे की बाँहों में खोये , चांदनी में नहाये , और अब गुड्डी गा रही थी और मैं डूब रहा था उस की आवाज में
तू मेरा चाँद , मैं तेरी चांदनी ओ ओ तेरी चांदनी ,
तू मेरा राग मैं तेरी रागिनी , ओ ओ , तेरी रागिनी
और फिर हम दोनों मिल के , हम दोनों का आल टाइम फेवरिट ,
आजा सनम मधुर चांदनी में ,
हम तुम मिले तो आ जायेगी वीराने में बहार
झूमने लगेगा आसमां ,झूमने लगेगा आसमां
कहता है दिल और मचलता है दिल
मेरे साजन ले चल मुझे तारों के पार।
लगता था , चाँद भी रुक के हम दोनों को देख रहा है।
और मैंने गुड्डी को बांहो में भींच कर , उसकी मांग में सिंदूरी रंग का गुलाल डाल दिया , एकदम दमकता , ढेर सारा।
सामने लगे शीशे में गुड्डी ने अपनी मांग में पड़े सिंदूरी गुलाल को देखा और उसका चेहरा भी दमकने लगा।
मैंने उसे और कस के भींच लिया और चूम कर, कान में बोला ," ये रंग अब पूरे जनम नहीं उतरेगा। "
जवाब में गुड्डी ने भी मुझे कस के भींच लिया , और होंठों पे चूम के बोली , " एक नहीं , सात जनम तक। "
हम लोग बहोत देर तक ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में चांदनी में नहाते रहे , डूबते उतराते रहे।
अचानक गुड्डी ने चाँद की ओर इशारा करके कहा , चन्दा मामा।
मैने फिर गुड्डी को दबोच लिया और बोला , " चल ये भी गवाह रहेंगे अब मेरी ससुराल का भी कोई हो गया न गवाह " उसकी मांग में दमकते सिन्दूर की ओर इशारा करके मैंने कहा।
गुड्डी मुस्करायी।
और लगा आसमान में चाँद भी मुस्कराया।
मेरी निगाह फिर छलकर कर गुड्डी की चोली से झलकते , छलकते जोबन की ओर पड़ी और , उन्हें मुट्ठी में दबाकर , मैंने आसमान से बोला ,
"हे तेरे पास एक चाँद है तो मेरे दो दो हैं " और उस बैकलेस चोली की स्ट्रिंग खोल दी।
दो सफेद झक्क दूधिया , कबूतर उड़ के मेरी मुट्ठी में समां गए।
और मैं उन्हें अब जोर जोर से दबा रहा था मसल रहा था। कभी चूम लेता चाट लेता। और अचानक मैंने निपल थोडा जोर से बाइट कर लिया और गुड्डी चीख पड़ी ,
" उईईइ उयीईईईईईईईई ...मम्मी ,… "
भांग का नशा और गहरा रहा था।
" हे इसमें तेरी मम्मी कहाँ से गयी , कहीं उनका भी तो कटवाने का ,… " मैंने छेड़ा।
" हे जाओ मैं तुमसे नहीं बोलती " गुड्डी गुस्से से मुंह फुला के बोली।
अब मुझे गलती का अहसास हुआ। गुड्डी मुझे कई बार टोक चुकी थी , ये तेरी मम्मी क्यों बोलते हो , सिर्फ मम्मी कहा करो।
" ऊप्स मेरा मतलब तेरे जोबन एकदम मम्मी पे गए हैं एकदम मस्त मक्खन " मैंने मक्खन ल,गाया और फिर एक बड़ी टिक्की और ,
" तुम्हारे साथ मम्मी को देख के तो लगता है तेरी बड़ी बहन हैं "
अब गुस्सा उसका
कम हुआ , मुस्करायी , दो मुक्के मेरे सीने पे मारे और बोली , " ये मक्खन , मम्मी को लगाना "
" मक्खन , मैंने तो सोचा कि वैसलीन लगवाती होंगी , लेकिन तीन लड़कियों के वहाँ से निकलने के बाद अभी भी जरुरत पड़ती है क्या ? "
मैंने चिढ़ाया तो पांच छः मुक्के एक साथ सीने पे पड़े।
" तुम न , कभी सुधर नहीं सकते। " वो बोली।
" तुम चाहती हो कि मैं सुधर जाऊं " मैंने गुड्डी की आँख में आँख डाल के पुछा।
" एकदम नहीं , जैसे हो मेरे हो और अच्छे हो। " वो खिलखिलाई
" अच्छा सच बताओ , तेरी , ऊप्स , मेरा मतलब मम्मी की ऐज ,… "
मेरी बात काट के गुड्डी फिर मुस्करा के आँख नचा के बोली ,
" तुम भी ना , तुम्हे मालूम नहीं , औरतों की उमर नहीं पूछते। चलो पूछ ही लिया तो बता देती हूँ , पैंतीस से दो तीन महीने ज्यादा , "
मैंने उसकी उमर का हिसाब साथ में करता , पहले ही गुड्डी ने पूरी गणित समझा दिया ,
" असल में मम्मी कि शादी बहुत कम उमर में हो , और और ,… "
अब बात काटने कि बारी मेरी थी और मैंने बात काट दी। मैं बोला ,
" और आठ महीने में ही तुम बाहर ,… " मुस्करा के मैंने बोला।
" तुम्हे कैसे मालूम "
चकित हो के गुड्डी बोली , फिर उसने राज जाहिर किया ,
" असल में आठ महीने भी नहीं , सात महीने से कुछ ही ज्यादा , मम्मी के सामने , मेरी बुआ अक्सर मुझे चिढ़ाती थीं , तू तो दहेज़ में आयी है। कभी बोलती तेरी शक्ल एकदम तेरे मामा पे गयी है तो कोई बोलतीं नहीं नहीं , मौसा पे गयी है। ."
" अच्छा तो है तभी तो एकदम चाँद जैसी शकल है तेरी , चन्दा मामा बोलती हो न तुम."
मैंने उसे छेड़ा।
वो कुछ बोलती उस के पहले चाँद को देख के मैंने कहा ,
" साल्ले ,…"
भांग का नशा गुड्डी पे भी चढ़ रहा था। उस कि आँखों में लाल डोरे नजर आ रहे थे और वो बात , बिना बात हंस रही थी।
"हे मेरे मामा को साल्ले बोल रहे हो , मतलब ," गुड्डी भांग के नशे में हंसते बोली।
" अरे मतलब कि मैं , मैं , तेरे मामा की बहन चोद दूंगा , उसकी फुद्दी मार लूंगा। " मैं भी नशे में बोला।
" अरे बुद्धू , मेरे मामा कि बहन मतलब मेरी मम्मी , तेरी सास , " गुड्डी कि हंसी रुक नहीं रही थी।
गुड्डी को बांहो में भींच के , उसके गालों को जोर काट के मैं बोला ,
" अरे जिसकी फुद्दी से , इत्ती प्यारी फुद्दी निकली , उसका कुछ तो ,…"
मैंने गुड्डी के गुलाबी गाल सहलाते हुए कहा , लेकिन वो पीछे नहीं रहने वाली थी। मेरा नाक पकड़ के बोली ,
" इतना घुमा फिरा के क्यों बोल रहे हो , साफ साफ क्यों नहीं कहते जानु की ," और उसकी बात काट के मैंने साफ बोल दिया ,
" साफ साफ मतलब कि , मैं तेरी ऊप्स मेरा मतलब मम्मी चोद दूंगा , यही न "
और मैंने फिर एक बार उसकी चोली से बाहर निकली चूंची को कस के काट लिया।
वो पहले चीखी , फिर थोडा गुस्सा हुयी , फिर हंसी , फिर बोली ,
" सुन , यार अगर मम्मी चालु हो गयीं ना , तो तेरी माँ बहन सब .. , ऊप्स मेरा मतलब , माँ , मौसी। बहनो को चोदने का काम तो मेरा है , देखना तेरी कच्ची कलियों से खुली बोतलों तक , जित्ती तेरी कजिन हैं न नजदीक कि दूर की सबके साथ तेरा नंबर लगवाऊँगी। और बाकी के साथ मम्मी ,… "
भांग का नशा वक्त के साथ बढ़ ही रहा था , उसके गोर गुदाज जोबन को सहलाते मैं बोला ,
" यार तेरा चेहरा , भले तेरे मामा , मेरा मतलब चंदा मामा पे गया है , लेकिन ये सिर्फ और सिर्फ , मम्मी पे गया है। क्या साइज होगी उनके उभारों की ?"
गुड्डी का हाथ अब मेरे पाजामे के अंदर जंगबहादुर के साथ होली खेल रहा था।
" क्यों अपनी माँ बहनो का देख के , सही अंदाज नहीं लगा पाते क्या , गेस करो न , " उसने छेड़ा।
" ३६ " मैंने गेस कर दिया।
" सही लेकिन दस में पांच नंबर , असली चीज तो कप साइज है , ३६ डी डी। " वो फिर हँसते हुए बोली।
भांग के नशे में परेशानी यही है ,
जो हँसना शुरू करता है वो हँसता ही रहता है , और गुड्डी बिना बात के हंस रही थी।
गनीमत था कि तबतक रंजी का एक मेसेज आ गया ," बस पांच मिनट में निकल रही हूँ , पन्दरह बीस मिनट में पहुँच जाउंगी। "
" देख कितनी तेज चींटी काट रही है उसकी बुर में , तेरी सारी मायकेवालियां ऐसी ही चुदवासी हैं , बिना मेरे मर्द का लंड लिए चैन नहीं आता छिनारों को "
गुड्डी पे भांग का नशा था या होली का , या दूबे भाभी की शुद्ध बनारसी आत्मा घुस गयी थी , या मंजू को सोहबत का असर पता नहीं।
लेकिन उस की बातों का असर मेरे जंगबहादुर पे जरुर पड़ रहा था और वो फूल के कुप्पा हो रहे थे। साथ में गुड्डी के हाथ भी उसे अब खुल के मथानी की तरह मथ रहे थे।
फोन देखते देखते गुड्डी ने मिस काल देखी और चिल्लाई बड़ी जोर ,
" आज मेरी कस के पिटाई होगी और उससे ज्यादा तेरी ली जायेगी। "
दो मिस्ड काल थी।
" किस की हैं " मैंने पुछा और मुसीबत मोल ले ली।
गुड्डी ने फिर हंसना शुरू कर दिया और उसकी हंसी देख के मुझे भी हंसी आ रही थी , बेसाख्ता।
" उसी कि जिसकी फुद्दी मारने के लिये तुम बेचैन हो रहे थे और जो तुम्हारी माँ बहन एक करने वाली हैं , मम्मी की " वो हंसते हुए बोली।
फिर थोड़ी हंसी रुकी , तो गुड्डी ने बताया कि उनका दो बार फोन आया था होली विश करने के लिए , लेकिन मैं सो रहा था। और उस समय पड़ोस कि सब लड़कियां पटी पड़ीं थीं , इसलिए गुड्डी ने मुझे जगाया भी नहीं।
और जब मैंने उठा तो वो मुझे बताना भूल गयी। और उसके बाद ,… दो मिस्ड काल और ,
बात तो गड़बड़ थी।
कोई भी बुरा मान जाता। होली विश मुझे करनी चाहिए थी , लेकिन मैं सुबह पड़ोसिनों से होली खेलने के चक्कर में और बाद में , बड़ोदा में दुष्ट दलन के चक्कर में भूल गया। फिर सो गया।
और उठा तो कर्टसी गुड्डी , भांग वाली गुझिया और ठंडाई पी के टुन्न हो गया औ फिर गाना गाने लगा।
और उन्होंने खुद फोन किया वो भी दो बार और ऊपर से ये मिस्ड काल वो भी दो ,
"बहोत डांट पड़ेगी , " मैंने गुड्डी से कहा। मेरा नशा आधा उतर गया था।
" डांट कम , गाली ज्यादा , लेकिन मुझे लगता है मारे जाओगे तुम "
वो अभी भी हंस रही थी , फिर बोली , उनको बता दॆना तुम जो सोच रहे थे , या रहने दो मैँ ही बोल दूंगी ,”
"नहीं नहीं "मैं घबड़ाया , "मैं तो वैसे ही , तुम भी ना मैं जो बात तुमसे कहूंगा , तुम अपनी मम्मी से , " मैं स्लिप पे कैच हो गया। उसने मेरी बात बीच में काट दी।
" फिर वही गलती , अपनी मम्मी , मतलब , अब तो मैं जरुर बोलूंगी और नमक मिर्च लगा के बोलूंगी। " वो गुर्रायी।
" नहीं नहीं मेरा मतलब , ,… मम्मी प्लीज " मैंने सरेंडर के कगार पे था।
फिर वो हंसने लगी और अब उसने जोर से जंग बहादुर को दबा दिया। और बोली
" तुम भी न बहुत डरते हो , अरे यार मम्मी मेरी सहेली की तरह हैं , मैं उनसे कोई बात नहीं छुपाती। उन्हें तो बहुत अच्छा लगेगा कि तुम भी उन्ही कि वैरायटी के हो , जानते हो उनका फोन था तो उन्होंने क्या मेसेज दिया था तुम्हे बोलने के लिए , जो तुम्हारे चक्कर में मैं बताना भूल गयी , वो तुमसे दो हाथ नहीं दस हाथ आगे हैं , "
"क्या , " मैं उत्सुक भी था और चिंतित भी।
" "उस छिनार के जने , पंचभतारी के पूत से पूछना , कि शाम को काहें सो रहे हो , रात भर अपनी माँ बहन पे चढ़ने का प्लान है क्या। और जब उठ जाय तो बोलना कि फोन पे कम से कम होली मिल ले ,
और ये भी बोल देना कि अब अपने माँ बहनो के लिए परेशान ना हो एक से एक मोटे औजार का इंतजाम मैं उनके लिए कर के रखूंगी , कि जो वो कुत्ता गदहा का घोंटती रहती हैं , सब भूल जाएंगी। "
गुड्डी ने सब कुछ बिना सेंसर के कह दिया।
मेरी जान में जान आयी. अगर वो भी होली कि स्पिरिट में हैं तो , मेरी बात का , अगर गुड्डी ने बता भी दिया तो बुरा नहीं मानेगी।
"लगाओ न , "गुड्डी ने इतरा के कहा।
"किसको "मैंने द्विअर्थी ढंग से कहा।
" अभी मम्मी को लगाओ , फिर तेरी चुदवासी छिनार बहन रंडी , आ रही होगी न उसको लगाना। "
गुड्डी ने भी उसी भावना में जवाब दिया और अपने फोन पे मम्मी को लगा के स्पीकर फोन आन कर मुझे पकड़ा दिया। और फोन पे होली के किसी रंगीन भोजपुरी होली गाने कि ट्यून आ रही थी ,
उनकी आवाज आते ही , गुड्डी ने जवाब दिया , अगली आवाज जो आप सुनेंगी , और उनकी बात काट के मम्मी बोलीं ,
" मालूम है मालूम है , तेरी होने वाली सास के यार कि हैं , " और जबतक वो आगे कुछ और बोलतीं ,
" हैप्पी होली , मम्मी " मैंने होली विश कि उन्होंने जबरदस्त जवाब दिया और साथ में बोलीं ,
" इस बार तो तूने अपने मायके में मा बहनो के साथ होली खेल ली लेकिन अगली होली , मेरे साथ होगी और वो गाँव में। होली के दो दिन पहले आना और रंगपंचमी के बाद जाना। "
वो बोली , लेकिन आग में घी डालने का काम हो तो गुड्डी से बेहतर कोई नहीं , वो बोली ,
" अरे मम्मी , जबतक ये अपनी मायकेवालियों के साथ होली ना खेलेंगे , इन्हे मजा नहीं आता। बचपन कि आदत क्या करें बेचारे "
" अरे तो कोई बात नहीं , " वो हंस के बोलीं , " मायकेवालों को ले आये ना , मेरी समधन से मैं और तेरे चाचा , मामा , मौसा कब्बडी खेल लेंगे और तेरी ननदों से तेरे भाई, सबका फायदा होगा। "
और फिर वो बोलीं ,
और उसके बाद तो जो उन्होंने बोला और मैंने सुना , और उन्होंने मुझसे बुलवाया , कबूलवाया ,
न कहने के लायक ना लिखने के लायक।
वो भांग का असर था या होली का या बनारस का या तीनो का कॉम्बो पता नहीं ,
लेकिन जब उन्होंने फोन रखा , तो मुझे लगा मेरे ऊपर से कोई रोड रोलर गुजर गया ,
और ऊपर से गुड्डी , उसने जंगबहादुर को ना जाने कित्ते जोर से जकड रखा था , एक झटके में उसने सुपाड़े को खोल दिया और बोली ,
" जानु तेरी मस्त हालत देख के लग रहा है तुझे मम्मी का होली आफर कित्ता पसंद आया , कच्ची कलियों के साथ खेली खायी ,… मम्मी ने कहा है तो दिलवाएंगी तुझे ,"
मैंने गुड्डी को चढ़ाया , " अरे तेरी मम्मी की तो मैं , लेकिन अभी तो तू ही है , कुछ इलाज कर न। "
लेकिन वो जंगबहादुर से बात चीत में लगी थी और वैसे भी जंगबहादुर अब मुझसे ज्यादा उसकी सुनते थे , दिलवाती भी तो थी वो नए नए मजे।
पहले उसने बॉल्स को चूमा , फिर सुपाड़े पे जैसे कोई नदीदी लड़की लॉलीपॉप को लिक करे , उस तरह जीभ निकाल के झट्ट से चाट लिया और बोली ,
" इन्होने मम्मी के सामने कबूला है , देख अब तुझे जल्दी ही खूब रसीले भोंसड़े का भी भी रस मिलेगा , इनकी मायकेवलियों का बल्कि इनकी , "
और गुड्डी कुछ आगे बोलती , मैंने उसका सर पकड़ के पूरा सुपाड़ा अंदर ठेल दिया ,
और वो जोर जोर से चूसने चाटने लगी।
आज वो इस तरह लंड चूस रही थी , जैसे उसके पहले उसने कभी चूसा ना हो।
कभी वो अपने दोनों होंठो के बीच मेरी बॉल्स ले के कस कस के चाटती , तो कभी सपड़ सपड़ उसकी जीभ , सुपाड़े पे जैसे डांस करती। और फिर दोनों हाथों से मेंरे लंड का बेस पकड़ के एक झटके में उसने जो मुंह पुश किया तो , आधे से ज्यादा लंड एक बार में अंदर।
फिर तो चूसने में अगर किसी वैक्यूम क्लीनर से भी मुकाबला होता तो वो उसे मात कर देती।
मस्ती के मारे मेरी आँखे मुंदी जा रही थी।
और उस के बाद बीच बीच में जो वो मेरे मायकेवालियों के बारे में , जिस तरह उसकी , मेरा मतलब मम्मी बोल रही थीं , उसी तरह गुड्डी कमेंट बोलती , बस जैसे कोई जबरदस्त शेफ , बढ़िया खाने पे , और बढ़िया गार्निशिंग कर दे , बस उसी तरह।
एक बार वैसे ही कुछ उसने बोला , और फिर मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने गुड्डी के सर को दोनों हाथो से पकड़ा और हचक हचक के , जोर जोर उसके किशोर होंठो के बीच , उसका मुंह चोदने लगा।
सुपाड़ा सीधे उसके गले से रगड़ रहा था , वो गों गों करती , मुंह मोटे लंड से फुला , गाल फटे पड़ रहे थे , आँखे दोनों निकली जा रही थीं। मेरी बॉल्स उसके मुंह से टकरा रही थी. आठ इंच का लंड सटासट , गपागप , उसके मुंह के अंदर बाहर हो रहा था जैसे उसका मुंह न हो कोई खेली खायी लम्बी , गहरी चूत हो।
जो मजा आ रहा था मैं बता नहीं सकता, मुंह चोदने में।
और जब कुछ देर के बाद , जबरदस्त मुंह चोदने के मैंने एक पल के लिए सुपाड़ा बाहर निकाला तो उसनेअपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे नचा के , मुस्करा के फिर बोला ,
" क्यों क्या मम्मी कि बात याद आ गयी थी क्या। अरे यार मेरा मुंह है मेरी होने वाली सास का … "
और उसकी बात आगे कि मुंह में रह गयी। मैंने हचक के लंड फिर उसके मुंह में पेल के , गुड्डी का मुंह बद कर दिया और मुख मैथुन फिर शुरू हो गया
फूल स्पीड , और अबी गुड्डी भी मेरे धक्के का जवाब धक्के से देती , तो कभी पूरे जोर से लंड चूस लेती।
जो मेरी ट्रिक थी कि मैं अब तक उसकी चूत चाट चाट के चूस चूस के झाड़ने के कगार पे ले जाता फिर रोक देता , और फिर जब वो थोड़ी नारमल होती तो फुल स्पीड चूत चटाई चालू कर देता , बिलकुल वही ट्रिक ,
कितनी बार मैं झड़ने के कगार पे गया , लेकिन कभी वो रुक जाती और उसकी नशीली आँखे मेरी आँखों को देख के मुस्करातीं चिढ़ातीं तो कभी वो अपने लम्बे नाखुनो से मेरे बॉल्स पे पिंच कर देती और हल्का सा दर्द मेरे जोश को कम कर देता ,
और अब जब लग रहा था कि वो मुझे झाड ही देगी ,
फोन कि घंटी बजी , गुड्डी के मोबाइल की।
हम दोनों ने एक साथ देखा , भाभी का फोन था।
मैंने आँख से इशारा किया मत उठा , पहले मुझे।
लेकिन उसने आँखों से मुझे बरज दिया और फोन उठा लिया ,
एक समझदार और आज्ञाकारी देवरानी की तरह ,
( मुझे भी लगा , वो जानती थी हर बात का फाइनल फैसला भाभी के हाथ में है , इसलिए भाभी को पटा के रख़ना ही ठीक है )
स्पीकर फोन उसने आन कर दिया।
पहले भाभी ने मेरी हाल चाल ली और बुरा भला कहा।
मैं सो के उठा की नहीं , मैं बहुत आलसी और लापरवाह हूँ।
फिर उन्होंने बोला की वो लोग खा के आयेंगे करीब एक घंटे बाद और गुड्डी कुछ बना ले
और रंजी को रोक के रखे। भाभी से मिल के ही वो लौटे।
गुड्डी ने भी भाभी की हाँ में हाँ मिलायी की ,
मैं अभी बस थोड़ी देर पहले सो के उठा हूँ और उठते ही भूख भूख चिल्लाने लगा। गुड्डी ने मुझे कुछ खिला पिला दिया है और वो बस किचेन में जा रही है।
और फोन रख के वो किचेन की ओर मुड़ ली।
बिचारा मेरा तन्नाया लंड अभी भी पाजामे के बाहर था।
" हे इसका क्या होगा " मैंने उसकी और इशारा कर के पुछा।
वो जोर से मुस्करायी , अपने मोबाइल की ओर इशारा किया और बोली ,
" तीन मेसेज आ चुके हैं उसके , छह मिनट पहले निकल चुकी है वो गदहे वाली गली से , अब आगे का काम मेरी होने वाली ननद , और तेरी बहन कम माल करेगी। खिलाना उसको इसकी रबड़ी मलायी।
हाँ लेकिन अगर मैं किचेन में बिजी रहूँ तो , (ठंडाई और भांग वाली गुझिया की ओर इशारा कर के ) तो जरा अच्छी तरह पहले उसकी खातिर कर देना। "
और फिर वो अपने मस्त मोटे चूतड़ मटकाती , किचेन की ओर मुड़ दी और एक बार किचेन के दरवाजे से , अभी भी खुले खड़े लंड को फ्लाईंग किस दे दिया।
मैं क्या करता। मैने लंड को पाजामे के हवाले किया।
तम्बू अभी खूब अच्छी तरह तना था और बिना इलाज के बैठने वाला भी नहीं था।
लेकिन जैसा सब जानते हैं किचेन औरतों का सबसे बड़ा अभय स्थल है।
मैं क्या करता।
मैंने मोबाइल निकाला। रीत के दो मेसेज थे। उससे मैंने बात की और मीनल से भी।
वो दोनों करन के साथ महाराजा एक्सप्रेस में थीं और मुम्बई जा रही थी।
उस समय दोनों ट्रेन के रेस्टोरेंट में थीं। रीत को मैंने बोला की मैं उसे एन पी ( नो प्राबलम सर) का कांटेक्ट कल मेसेज करूँगा , उससे बात कर के और मुम्बई की डिटेल्स भी। तय हुआ कि हम दोनों अगले दिन ११ बजे बात करेंगे , तब तक करन वहाँ के ऐ टी एस ( ऐंटी टेरर स्क्वाड ) से भी टाई अप कर लेगा।
मैंने फोन रखा। किचेन से अभी भी बरतनो की आवाज आ रही थी। यानी गुड्डी से किसी सहायता कि उम्मीद बेकार थी।
तभी दरवाजे पे काल बजी।
और मैंने जाके दरवाजा खोला।
क़यामत।
दरवाजे पे क़यामत खड़ी थी। मुस्कराती , बल खाती , जलवे गिराती।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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