FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--111
गतांक से आगे ...........
और जिस तरह से रंजी मेरे खूंटे पे अपने चूतड़ रगड़ रही थी , साफ था उसका मन भी यही था।
" हे तू न अभी छोटी बच्ची है "
" धत्त भैया , ऐसा नहीं है " वो हंस के बोली और और अब उस का हाथ पाजामे के अंदर लिंग को सीधे पकडे था। एक तरह से उसने मेरी बात का जवाब दे दिया था।
और फिर खिलखिला के बोली , " अरे भैया आप को मैं लगती होउंगी बच्ची। शहर के लड़को से पूछिए , दो साल से हालत खराब है उन बिचारो कि "
इसी बीच मैंने उसे एक और डबल भांग वाली गुझिया खिला दी थी और बिना ना नुकुर के उसने खा भी ली थी।
" तो तू अब बच्ची नहीं है " उसके खुले निपल को झुक के बाइट करते मैंने पुछा।
" उईई , नहीं एकदम नहीं " वो कांफिडेंस से बोली।
" तो बोल तेरे हाथ में क्या है " मैंने उसे छेड़ा।
और उसने जोश से लिंग पुल किया कि सुपाड़ा पूरी तरह खुल गया। एकदम गुस्साया , खूब मोटा , लेकिन झिझक के बोली
" वो वो आपका , तेरा ,… वो ,…लिङ्ग "
" देखा , तभी मैं कह रहा था कि तू अभी बच्ची है , बच्चिया लिंग और योनि बोलती हैं , लड़कियां नहीं। लड़किया खुल के बोलती है लड़को कि तरह "
मैंने उसे चढ़ाया और एक बार फिर जोर से उसका गाल काट लिया।
अब वो भी जोश में थी। मेरी और मुड़ के मेरे होंठ पे अपने होंठ रगड़ के बोली , पहले धीरे से फिर जोर से ,
" तुम्हारा , तेरा लंड। '
" और ये लंड कहाँ जाएगा। " मैंने उसके होन्ठों के बीच अपनी जीभ घुसेड़ते हुए पुछा।
चांदी कि घंटियों कि तरह वो हंसी और बोली , " भैया आप जहाँ चाहो " और उसी के साथ रंजी ने मेरा लंड पजामे से बाहर निकाल लिया।
मेरे दोनों हाथो में उसकी मस्त चूंचियां थीं जिन्होंने शहर के लड़कों कि नींद हराम कर रखी थी।
मैं जम कर दोनों चूंची रगड़ रहा था , मसल रहा था और मैंने फिर चूंची काट के बोला ,
' सुन , मेरा तो मन करता है कि ,…की तेरी कसी कच्ची कुँवारी गुलाबी चूत में ये लंड पेल दूँ , तुझे बच्ची से लड़की बना दूँ और खूब हचक हचक हचक के तेरी चूत चोदूँ। '
" तो चोदो न भैय्या , मैंने कब मन किया है। मेरा भी तो इत्ते दिनों से मन कर रहा है की बस तू , … तू ये लंड , मेरी चूत में डाल दो। चोद दो मुझ को। जानते हो भैय्या मेरी सहेली दिया , उस का सगा भाई , उसे कित्ते दिनों से रोज चोदता है बिना नागा। जहाँ रात हुयी वो दिया के बेड पे ,… लेकिन मेरा तो कोई सगा भाई है नहीं "
"हे ऐसा क्यों बोलती है , मैं किसी सगे भाई से कम हूँ क्या " मैंने उसे प्यार से चूम के कहा।
" तभी तो बोलती हूँ भैया ," फिर वो कुछ रुक के मुस्करा के आँखे नचा के बोली ,
" भैय्या , तू सिर्फ चूत चोदना चाहते हो या , "
" तू बोल , " उसके खुले चूतड़ पे पजामे से बाहर निकले खड़े लंड को रगड़.के मैं बोला।
" मुझे तो मालूम है , " वो खिलखिलाई। " तुम्हे,... चूत के साथ मेरे , मेरे चूतड़ भी बहुत अच्छे लगते हैं ना तुमको " वो बोली।
" हाँ एकदम " मैंने कबूल किया।
और खूब कस के रंजी ने अपने चूतड़ मेरे लंड पे रगड़ दिए और बोली ," ठीक है मैं तुम्हे अपनी गांड भी मारने दूंगी लेकिन मेरी एक बल्कि दो शर्त हैं। '
"दर्द बहुत होगा तेरी कच्ची गांड में " मैंने उसे वार्न किया।
" तुम तो एकदम बुद्धू हो मेरी बात तो सुनो , वही तो शर्त है" हंसके वो बोली , फिर बात आगे बढ़ायी।
" मेरी गांड मारते समय , मुझे मालुम है दर्द होगा , बहुत दर्द होगा। लेकिन भैया तुझे मेरी कसम , मैं चाहे रोऊँ चाहे चिल्लाऊँ , चाहे आपके हाथ पैर जोडूं , चाहे वो फट के खून खच्चर हो जाए , लेकिन ,…लेकिन तुम रुकना मत। मुझे तेरा लंड पूरा चाहिये , एकदम अंदर तक। आप पूरी ताकत से हचक के मेरी गांड मारना , बिना मेरे दर्द की परवाह किये। और हाँ दूसरी शर्त ये ही कि गुड्डी कि भी गांड मेरे सामने मारना। '
गुड्डी का नाम लो और गुड्डी हाजिर।
वो किचेन से बाहर आयी लेकिन उसकी आहट पाते ही सब कुछ सील बंद।
जंगबहादुर पजामे के अंदर और रंजी कि साडी भी उसके पैरों तक
" क्या हो रहा है भाई बहन के बीच " गुड्डी ने छेड़ा
“भइया , कहीं से कुछ जलने कि महक आ रही है ना " रंजी हंसती , खिलखिलाती , गुड्डी को देख के बोली।
और साथ ही साथ गुड्डी को गले लगा के जोर से उसके उभार भींच दिए।
गुड्डी क्यों पीछे रहती , उसने भी मुझे दिखा के रंजी के चोली में हाथ दे के , उसके मस्त उभार मसलने रगड़ने शुरू कर दिए और हँसते हुए बोली ,
" अरे यार जो सुलगने वाली चीज थी वो तो पहले ही हम दोनों कि साथ साथ वैक्सिंग में साफ हो गयी है कि , किसी को चाटने चूटने में कोई तकलीफ न हो। "
और अब दोनों मेरी और देख के एक साथ हंसने लगीं।
मैं क्यों पीछे रहता और फिर आज जो मम्मी ने उकसाया था , मायकेवालियों को ले के उसका असर बहुत ज्यादा था और फिर मुझे मालुम था कि गुड्डी को क्या पसंद होगा।
मैं भी बीच में घुस गया और एक बार फिर रंजी को जोर से बाँहों में ले के उसके मम्मे भींचते हुए , गाल पे जोर कि चुम्मी ली और बोला ,
" भाई बहन के बीच में वहीं हो रहा था जो होना चाहिए , प्यार "
" एकदम ," गुड्डी की और देखते रंजी हंस के बोली और मुझसे भी ज्यादा जोर से सीधे मेरे होंठो पे उसने एक चुम्मी जड़ दी।
और अब उसके अटैक की बारी थी।
मेरे पाजामे में बम्बू को दिखा के गुड्डी को हड़का के उसे पुछा ," हे भाई बहन को तो बहुत टोक रही थी , ये क्या है. मेरे आने के पहले क्या हो रहा था। '
" वो ,… वो कुछ नहीं यार। " गुड्डी थोडा हिचकिचाई ,
फिर बोली , " अरे यार थोड़ी सी पेट पूजा कही भी , कभी भी। तो भूख लगी थी बहुत इसलिए ज़रा सा लॉलीपॉप ,"
और गुड्डी की बात पूरी होने के पहले मुझे डांट पड़नी शुरू हो गयी।
रंजी ने सीधे मेरा कान पकड़ा और चालू हो गयी ,
" भैय्या , आपने प्रॉमिस किया था कि आप हम दोनों में कोई भेद भाव नहीं करेंगे , जो चीज इसको देंगे , वो मुझको देंगे तो फिर ये दो आँख क्यों "
एक हाथ से कान का वो पान बना रही थी और दुसरे हाथ से सीने पे मुक्के ,
" अरे यार तू मेरी पक्की सहेली है मिल बाँट के खाते हैं न , और फिर मुझसे पहले तो उस लॉलीपॉप पे तेरा हक़ है , यही तो आज मम्मी ने इन्हे समझाया की इन्हे लॉलीपॉप का स्वाद अपने सारे मायकेवालियों को चखाना चाहिए , घर के माल का स्वाद तो घर वालो को सबसे पहले मिलना ही चाहिए "
गुड्डी बोली और एक झटके में मेरे पाजामे का नाडा खोल दिया।
टनटनाए जंगबहादुर बाहर।
और सुपाड़ा तो रंजी कि नशीली उँगलियों ने पहले ही खोल दिया था।
सुपाड़ा , खूब मोटा , भक्क लाल गुलाबी। और उसके बीच में एक आँख थोड़ी सी खुली , पी होल।
रंजी जैसे स्कूल कि कोई नदीदी लड़की लॉलीपॉप को देख के ललचाये बिलकुल वैसे लग रही थी। उसकी आँखे एकदम सुपाड़े पे चिपकी थीं। वो एक दो बार थूक गटक रही थी।
गुड्डी तब तक घुटनो के बल बैठ गयी थी और एक हाथ में मस्त खड़े लंड को उसे दिखा दिखा के ललचा रही थी। उसने रंजी से कहा ,
"हे चल तू भी ऐसे बैठ न जैसे मैं बैठीं हूँ मिल के लॉलीपॉप का मजा लेते हैं "
मन तो रंजी का बहुत कर रहा था गपक करने के लिए लेकिन वो थोड़ी हिचकिचा रही थी।
" ना न तू ले न , मैं देखूंगी। " उसने बहाना बनाया।
पर गुड्डी के आगे किसी कि चली है की रंजी की चलती। गुड्डी ने रंजी को खिंच के अपने बगल में बैठा लिया और बोली ,
" चल तेरी बात रही लेकिन एक बार पकड़ तो और अगर तू ने कहा कि कभी पकड़ा नहीं तो बहोत पिटेगी मुझसे। "
रंजी ने शर्माते झिझकते लंड का बेस पकड़ लिया। उन कुँवारी किशोर उंगलियो का स्पर्श होते ही लंड एकदम पागल हो गया।
गुड्डी ने रंजी को दिखाते हुए लम्बी जीभ निकाली और फिर सुपाड़े पे एक लिक ले ली।
जैसे स्कूल कि छुट्टी के बाद किसी हाईस्कूल के बाहर लड़कियों एक दुसरे को ललचाती कारनेटो के कोन लिक करती हैं।
दूसरी लिक और जोरदार थी , सुपाड़े के बेस से लेकर एकदम ऊपर तक , सड़प सड़प और फिर जीभ कि कि नोक से मेरे पी हॉल में सुरसुरी कर दी।
मेरी हालत खराब हो गयी।
हालत रंजी कि भी बहुत खराब थी। उसकी निगाहें एकदम गुड्डी कि जीभ और मेरे सुपाड़े से चिपकी थीं।
जैस
और फिर गुड्डी ने रंजी के कान में कुछ बुदबुदाया
" देख मैं कैसे करती हूँ , दांत को होंठो से एकदम कवर कर लो , और मुंह एकदम बड़ा सा , खोल लो। होंठ रगड़ते हुए जाने चाहिए और जीभ से नीचे से लिक कर। सिम्पल। फिर जोर जोर से चूस। देख मुझे ध्यान से '
और अगले पल सुपाड़ा गुड्डी के मुंह में था।
क्या चूसती थी गुड्डी। एकदम मस्त।
जब सुपाड़े को रगड़ते , गुड्डी के गुलाबी रसीले होंठ आगे गए , मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं। पहले सुपाड़े को ले वो चूस रही थी चुभला रही थी , फिर थोडा सर के जोर से उसने आधा लंड अंदर ले लिया।
दो चार मिनट उसने चूसा होगा।
मैंने आँखे खोली तो रंजी किसी अच्छी शिष्या कि तरह देख रही थी ,सीख रही थी।
और अब गुड्डी ने अपने मुंह से तड़पता हुआ सुपाड़ा निकाल के रंजी की ओर बढ़ा दिया ,
" ले चूस "
' नहीं नहीं , तू सक कर न , मैं अभी देखूंगी " मन तो रंजी का बहुत कर रहा था , लेकिन थोड़ी झिझक अभी भी बाकी थी.
लेकिन गुड्डी भी छोड़ने वाली नहीं थी।
" अच्छा चल एक लिक ले ले यार , देख कित्ता मस्त सुपाड़ा है " गुड्डी ने उसे उकसाया।
और रंजी ने जीभ निकाल के एक बहोत छोटी सी लिक सुपाड़े पे ले ली.
मुझे ४४० वोल्ट का करेंट लग गया।
" अरे थोड़ी बड़ी सी ले सुपाड़ा तो पूरा चाट , चल एक किस ले ले कम से कम काटेगा नहीं " गुड्डी ने चढ़ाया।
और अब हिम्मत कर के रंजी ने दो तीन बार लिक किया और फिर एक बार दोनों हाथों से पकड़ कर , सुपाड़े को किस कर लिया।
गुड्डी ने रंजी के कान में कुछ बोला, और रंजी ने अपने होंठो को गोल करके झिझकते हुए खोला।
पीछे से गुड्डी रंजी का सर पकडे थी और साथ ही मेरा लंड भी।
और गुड्डी ने मुझे जबरदस्त आँख मार के सिग्नल दे दिया , मौका सही है।
हिचकते हुए गुड्डी ने थोडा सा सुपाड़ा मुंह में लिया , लेकिन लंड का बेस तो गुड्डी के हाथ में था , उसने जोर से अंदर पुश किया और मैंने भी साथ में धक्का मारा।
और पूरा सुपाड़ा रंजी के मुंह में था , एकदम गरम , लेकिन मखमल कि तरह मुलायम।
" हे इत्ता नखड़े दिखा रही थी , और पहली बाल पे ही छक्का मार दिया , पूरा सुपाड़ा अंदर। चल अब छिनारपना छोड़ और मस्ती से सुपाड़ा चूसना शुरू कर। "
गुड्डी रंजी के सर को मेरे लंड की और पुश करती बोली.
और रंजी ने मस्ती से सुपाड़ा चूसना शुरू कर दिया।
नौसिखियेपन का भी अलग मजा होता है। रंजी के गुलाबी होंठों के बीच पहली बार सुपाड़ा गया था , ये साफ लग रहा था , लेकिन उसका एक अलग मजा था।
वो होंठो से सुपाड़े को रगड़ रही थी तो कभी जीभ से जोर जोर से चाटती। उसके होंठ आगे पीछे नहीं हो रहे थे ,लेकिन जैसे कोई लड़की मुंह बड़ी सी चाकलेट ले के चुभलाये , वैसे वो चुभला , चूस रही थी।
गुड्डी पीछे से उसका सर दबाये हुए थी , लगातार प्रेस कर रही थी और मैंने भी अपना लंड उसके मखमली मुंह में ठेले जा रहा था। रंजी के थूक से लिसड़ा , चिकना , लिपटा लंड , सूत सूत उसके मुंह में जा रहा था
गुड्डी ने थोडा प्रेशर और बढ़ाया , और रंजी के लाख सर पटकने पे भी करीब तीन इंच लंड उसके मुंह में घुस गया।
" क्यों आ रहा है
मजा भैय्या का लंड चूसने में " गुड्डी ने उसे चिढ़ाया और रंजी ने भी उसी स्प्रिट में , हाँ में सर हिलाया।
"तो पूरा घोंट न आधे में क्या मजा आएगा , "
गुड्डी बोली और मुझे जबरदस्त आँख मार के इशारा किया , और मैंने पूरी ताकत से लंड अंदर ठेल दिया।
रंजी , छटपटाती रही , इधर उधर मचलती रही लेकिन मैंने और गुड्डी ने मिल के , …
गुड्डी ने उसका सर एक हाथ से कस के पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़ के रंजी के मुंह में पुश कर रही थी। मैं भी पूरी ताकत से धक्के पे धक्के मार रहा था , पेल रहा था , लंड अंदर ठेल रहा था।
और जब मैं रुका तो छह इंच करीब अंदर घुस गया होगा।
रंजी बिचारी गो गों कर रही थी , सुपाड़ा उसके गले के अंदुरनी हिस्से से टकरा रहा था। उसकी बड़ी बड़ी आँखे निकली पड रही थी। लेकिन मैंने जरा भी लंड न तो बाहर किया ना गुड्डी ने ही प्रेशर कम किया।
थोड़ी देर में वो लंड कि आदी हो गयी।
"बहुत शर्मा रही थी न , अब बोल कैसा लग रहा है भैया का लंड " गुड्डी बोली और साथ ही स्नैप स्नैप ना जाने कितने क्लोज अप्स , रंजी के चेहरे के और मेरे लंड के. रंजी का मुंह तो मेरे मोटे लंड से भरा था , लेकिन उसकी मचलती नाचती आँखों ने हाँ में जवाब दिया।
जैसे कहते हैं न फिश टेक्स टू वाटर , बस उसी तरह रंजी कि हालत थी।
वो खूब मस्ती से लंड चूस रही थी , कभी अपने मखमली मुंह को लंड पे आगे पीछे करती , तो कभी होंठो से शरारत से लंड को दबा देती। कभी उसकी जीभ मेरे सुपाड़े पे डांस करती तो कभी वो जोर जोर से गोल गोल जीभ को सुपाड़े के चारों ओर फिराती।
फिर मुझे याद गुड्डी कि कारस्तानी है। जब रंजी को उसने टैब और नोटबुक दी थी तो बीसों ट्रिपल एक्स फिल्में उनमें , गुड्डी ने लोड कर दी थी मेरे लैपी से। और आधी से ज्यादा ब्लो जाब की एक दो तो हाउ टू डु ओरल सेक्स ऐसी भी थीं ,
और रंजी ने शर्तिया उन्हें देखा होगा बार बार और क्विक लरनर तो वो है ही.
थोड़ी देर चूसने के बाद रंजी थोडा थक गयी और उसने लिंग मुंह से निकाल लिया। लेकिन तब भी वो लपर लपर साइड से अपनी जीभ से लंड चाट रही थी।
" बड़ा मजा आ रहा है ना भैय्या का लंड चाट के " गुड्डी ने फिर छेड़ा।
मुंह उठा के , मुस्कारते हुए रंजी बोली , " एकदम मेरे भैय्या हैं , मैं चाहे उनका लंड चाटूं चाहे ,…'
और बात गुड्डी ने पूरी की , " चाहे गांड , क्यों "
जवाब रंजी के रसीले होंठो ने दिया और गप्प से थोडा नीचे सरक के , मेरे बॉल्स को मुंह में भर के चूसने लगी।
उसके गालों की थकान थोड़ी कम हुयी तो खुद उसने अपना मुंह पूरा खोल दिया और इस बार मैंने एक धक्के में ही रंजी के मुंह में आधा से ज्यादा लंड पेल दिया।
गुड्डी कभी रंजी के गाल सहलाती कभी बाल।
रंजी खूब मस्ती से अब मेरा लंड चूस रही थी। कभी वो मेरे लंड का बेस पकड़ के उसे खुद अपने मुंह में पुश करती तो कभी मैं उसका सर पकड़ के हचक हचक के उसका मुंह चोदता।
गुड्डी रंजी कि ये जबरदस्त लंड चुसाई देख रही थी , उसके गाल , बाल सहलाते।
रंजी की गोल गोल चूंचिया भी मस्ती में एकदम पत्थर हो रही थीं।
गुड्डी ने अचानक रंजी कि दोनों मस्ताई चूंचियो को पकद लिया और लगी जोर जोर से दबाने।
फिर दोनों उभारों को नीचे से अपनी हथेली से उठा के मुझे दिखा के ललचाने लगी, मानो कह रही हो ,
" हे लो न दबाओ , रगड़ो मुझे कस के ". रंजी के मटर के दाने के बराबर निपल भी एकदम तन्नाये खड़े थे। गुड्डी ने अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच में दबा कर उन्हें भी मसलना शुरू कर दिया।
गुड्डी के होंठो से लार की धार , स्पिट का एक तार जैसे निकला और सीधे रंजी के कड़े खड़े निपल पे जा गिरा।
गुड्डी ने अपनी एक उंगली से उसे निपल के चारो ओर फैला दिया। वो निपल के चारो ओर गुड्डी अपनी लार लगी उंगली धीमे धीमे घुमाती रही। रंजी कि तो हालत मस्ती से ख़राब हो ही रही थी , ये देख के मेरी भी हालत ख़राब हो रही।
अचानक जैसे बबल गम का बुलबुला हो , गुड्डी ने ढेर सारे स्पिट का एक बबूला छोड़ा सीधे रंजी के जोबन के ऊपरी हिस्से पे और उसे धीमे धीमे , पूरी चूंची पे फैला दिया।
रंजी कि चूंची , गुड्डी के लार से चमक रही थी. एक बार फिर उसके निपल पे हलकी सी बाइट ले के , गुड्डी ने अपनी बड़ी बडी आँखे नचा के मुझे छेड़ा ,
" हे बहन का मुंह में पेल के , लंड चुसवा के जब इता मजा आ रहा है , तो सोचो , अपनी बहन की गांड मारने , बुर चोदने में कित्ता मजा आएगा। बोलो चोदोगे ना। '
" एकदम चोदुंगा , क्यों नहीं चोदुंगा , आखिर मेरी इत्ती प्यारी सी बहन है , क्यों रंजी ?
रंजी के गाली पे प्यार से हाथ फेरते , मैंने हामी भी भरी और पुछा भी।
रंजी का मुंह तो भरा था ले किन जोर जोर से उसने सर हिला के मेरी बात की हामी भरी।
गुड्डी लेकिन कहाँ चुप रहने वाली थी , वो बोली।
" तो चल तुझे दो तीन दिन में पक्का बहनचोद बनवा दूंगी और उसके बाद , … याद रखना , मम्मी ने क्या कहा था।
गुड्डी अब मेरे पीछे आके खड़ी हो गयी थी। मेरा कुरता बनियाइन पहले ही उतर चुकी थी। और गुड्डी की चोली भी ,
बरछे के नोक ऐसे नुकीले जोबन उसने मेरे पीठ में गड़ाए और जीभ से कान में सुरसुरी शुरू की साथ में उसके दोनों हाथ मेरे निपल को कभी स्क्रैच कर लेते तो कभी पुल कर देते।
लेकिन उससे भी ज्यादा उत्तेजक थीं उसकी बातें।
" हे बहनचोद , क्यों मजा आ रहा है बहन के साथ। हचक के पेल दो पूरा लंड न , ये दो इंच बाहर क्यों रखा है , क्या मेरी सास के लिए।
माना तेरी सगी बहन नहीं है कोई , लेकिन मैंने तुम्हारी भाभी से पूरी लिस्ट ले ली है , चचेरी , मौसेरी , फुफेरी सब की सब , बोलो चोदोगे न सब को , तेरे हाँ ना से क्या होता है। सब को चुदवाउंगी और सिर्फ बहनो को क्यों , माम्मी ने क्या बोला था।
सोचो ये बिना सीखी सिखाई है इसके साथ इतना मजा आ रहा है तो जो खेली खिलायी , पेली पिलायी , चुदी चुदाई होंगी उनके साथ कित्ता मजा आएगा। पहले बहनचोद फिर,… "
भांग का नशा हम तीनो पे जबरदस्त चढ़ा था।
और गुड्डी कि उंगलियां भी , कभी वो मेरे बॉल्स को छेड़ देतीं , तो कभी नितम्बो को सहला देतीं , दोनों को फैला देतीं।
और उधर रंजी ने ही अब चूसने कि स्पीड बढ़ा दी थी। उसके गाल किसी वैक्यूम क्लीनर से मुकाबला कर रहे थे , और साथ में उसकी लम्बी शरारती उंगलिया , कभी बॉल्स को छेड़तीं , तो कभी बॉल्स और पिछवाड़े के छेद के बीच में सहला देतीं। उसके होंठ अब पूरे लंड पे रगड़ रहे थे , जुबान नीचे से जोर जोर से चाट रही थी।
और उसकी इस चुसाई के जवाब में मैं भी जोर जोर से उसके मुंह में लंड पेल रहा था। कभी वो होंठ रगड़ते हुए पूरा लंड लेने कि कोशिश करती तो कभी मैं उसका सर पकड़ के पूरी तेजी से उसका मुंह चोदता।
गुड्डी की तरजनी अब मेरे नितम्बो कि दरार में रगड़ रही थी और साथ में गोल छेद में , पिछवाड़े के उसकी एक पोर घुसाने कि कोशिश कर रही थी।
" तेरे बहनो की तरह तेरे भी कोरी है न , कोई बात नहीं बस कुछ दिन कि बात है।
बस २५ मई को कोहबर में मम्मी और तेरी बाकी सासें इसका इलाज कर देंगी। पेल न पूरा , गुड्डी ने फिर उकसाया और अपनी बात शुरू कर दी। याद रखना मम्मी कि बात , पहले बहनचोद और फिर मादर,… "
गुड्डी की बात का असर हुआ या उसकी ऊँगली का , पता नहीं लेकिन मैंने रंजी का सर पकड़ के एक , फिर एक और जोरदार धक्का लगाया।
रंजी आलमोस्ट चोक कर रही थी लेकिन मैं रुका नहीं। पूरा ८ इंच अंदर पेल के ही माना जबतक मेरी बॉल्स उसके होंठ से नहीं रगड़ने लगे।
रंजी गों गों कर रही थी। उसके चेहरे पे हल्का सा पसीना भी आ रहा था। गाल एकदम फूला हुआ था। लेकिन मैं रगड़ते दरेरते , लंड सुपाड़े तक निकालता फिर बाल्स तक पेल देता। थोड़ी देर में उसे भी आदत पड गयी और वो भी साथ देने लगी।
मैं फूल स्पीड से उसका मुंह चोद रहा था।
रंजी फूल स्पीड में मेरा लंड चूस रही थी।
मुझे लग रहा था , कि मैं अब गया तब गया।
लेकिन तभी घंटी बजी।
और अबकी ये फोन की नहीं दरवाजे कि थी।
गुड्डी अपनी साडी , चोली ठीक करते बोली , भाभी।
रंजी ने बहुत उदास मन से मुझे देखा, जैसे कह रही हो सॉरी भैय्या। और लंड बाहर निकाल के पल भर में उसने भी अपने कपडे ठीक कर लिये.
मेरे भी मोबाइल पे तेजी से घंटी बज रही थी। मैं कपडे ठीक करते अपने कमरे में घुसा। कंप्यूटर पे भी मेसेज अलर्ट था।
मोबाइल मैंने खोला रीत कि दो मिस्ड काल्स और एक मेसेज , अर्जेंट।
कम्प्यूटर पे मेरे हैकर दोस्तों के दो मेसेज थे।
दरवाजा खुलने की आवाज के साथ भाभी , शीला भाभी के खिलखिलाने की आवाज और साथ में रंजी और गुड्डी की। और भैया की ,
" मैं ऊपर जा रहा हूँ तुम बाद में आ जाना। खाना तो खा ही चुके हैं। "
और अब नीचे खुला मैदान , भाभी , शीला भाभी गुड्डी और रंजी।
मैं बीच बीच में उनकी खिलखिलाहट सुन रहा था और एकदम खुल के हो रहे मजाक।
लेकिन मेरी आँखे रीत के मेसेज पे चिपकी थीं ,
मीनल खतरे में है। वाई के साथी का मर्डर , कालिया सस्पैकेटेड.
मेरे सामने बनारस का दृश्य घूम गया , जब कालिया ने पुलिस के भारी बंदोबस्त के बावजूद , जेड का सफाया कर दिया था।
तभी रीत का फोन आगया।
उनकी गाडी सूरत से निकल रही थी।
उसने पूरा किस्सा बताया कि कैसे वाई के साथी की लाश माही के किनारे पे मिली और उस का फ़ोटो भी पुलिस कमिशनर ने उन्हें भेजा था। जिस तरह से मर्डर हुआ था और मर्डर वेपन का इस्तेमाल हुआ था , उन्हें पक्का यकीन था की ये कालिया की ही कारगुजारी है।
क्योंकि यार्ड में रीत और मीनल दोनों थी , इसलिए उन्हें शक हुआ कि शायद मीनल और रीत दोनों को पहचान लिया गया होगा। रीत को तो करन के साथ अगले दिन मुम्बई के आपरेशन में रहना था , लेकिन मीनल पे पुलिस कमिशनर को लगा की खतरा ज्यादा है।
इसलिए रास्ते में एक सूनसान स्टेशन पे दो मिनट गाड़ी रोक के मीनल को उतार दिया गया है और उसे एक सेफ हाउस में रखा गया है , दो तीन दिन के लिए। वैसे भी एक बार मुम्बई का आप्रेशन हो गया तो खतरा बहुत कुछ ख़तम हो जाएगा।
रीत को मैंने बोला कि की मैंने रात में या कल सुबह उसे मुम्बई के बारे में एक डिटेल रिपोर्ट भेजूंगा और एन पी ( नो प्राबलम सर ) का कांटेक्ट ऐड्रेस भी।
रीत ने फोन रखा ही था कि मीनल का फोन आ गया।
वो हजीरा में ओ एन जी सी के रेस्ट हाउस में थी।
उसे ही पुलिस ने सेफ हॉउस बनाया था। मीनल ने बोला की वो बहुत आराम से है और चारो ओर सी आई एस एफ ( सेंटरल इंडस्ट्रीयल सिक्योरिटी फोर्स )के लोग हैं।
उसने वहाँ का लैंड लाइन नँबर भी बताया। मैंने उसे समझाया कि कोई चिंता ना करे और मैं उसे फोन करता रहूँगा।
बरामदे में से भाभी और रंजी कि छेड़खानी कि आवाजें आ रही थीं.दरवाजा थोडा खुला हुआ था इसलिए बाहर क्या हो रहा था , ये कुछ कुछ दिख भी भी रहा था।
" नहीं नहीं भाभी नहीं शाम को गीला नहीं सूखा , " रंजी भाभी को रोक रही थी।
" ननद रानी डलवाना तो पड़ेगा ही , गीला नहीं डलवाना चाहती तो सूखा ही सही " भाभी ने बोला और एक प्लेट से गुलाल उठा के पहले तो रंजी के गालों पे और फिर चोली के अंदर , रंग गुलाल तो बहाना था।
असली चीज तो ननद के जोबन का रस लेना था। रंजी कुछ कर भी नहीं सकती थी। पीछे से उसके हाथ शीला भाभी ने पकड़ रखे थे।
" अरे सुवह आती तो सारे कपडे फटते " गुड्डी ने छेड़ा।
" अरे सिर्फ कपडे क्यों बाकी चीजें भी तो फटतीं। " भाभी पूरे रंग में आ गयी थीं और उनके हाथ बिलो द बेल्ट होली खेल रहे थे।
रंजी छटपटा रही थी मचल रही थी , सिसक रही थी , लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.
मैंने अपना ध्यान फिर कंप्यूटर की और लगाया।
मेरे हैकर फ्रेंड्स के कई मेल थे।
मैंने पहले तो उन्हें धन्यवाद दिया।
आप्रेशन बड़ोदा कि कामयाबी में उनका भी बहुत हाथ था। चार घण्टे तक उन्होंने दुश्मन के सीमापार के कंट्रोल रूम को डिस्कनेक्ट कर रखा था। नार्मल फोन के अलावा वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल से भी वो अपने कंट्रोल के सम्पर्क में रहते ,
लेकिन उन्होंने इन्फोर्मेशन ओवरलोड कर के उनके सारे नेट वर्क क्रैश कर दिए थे। इसलिए ना तो वाई या उसका कोई सेकेण्ड इन कमांड कुछ सूचना भेज पाया और न वहाँ से कोई निर्देश अ पाया हेल्प ले पाया।
मैंने उन्हें कालिया के बारे में भी सूचना भेजी। और अगले दिन के मुम्बई के मुहीम के बारे में भी। उन्होंने भी मुम्बई के बारे काफी इन्फोर्मेशन भेजी थीं जो मैंने सरसरी तौर पे पढ़ के रीत को फारवर्ड कर दी।
मेरा दिमाग बार बार मीनल की ओर दौड़ रहा था , अच्छा फंसाया उसे मैंने।
लेकिन फिर मैंने ठन्डे दिमाग से सोचना शुरू किया , मगज अस्त्र का इस्तेमाल कर के.
मैं सोचता रहा ,
और फिर मुस्कराया।
मीनल सेफ है , बिलकुल सेफ , कम से कम कालिया से उसे कोई ख़तरा नहीं है।
पहली बात , कालिया दुनिया का सबसे हाइएस्ट पेड अस्सेन है , उसका इस्तेमाल नारमल आपरेशन या किलिंग के लिए नहीं हो सकता। उसका प्रयोग दुश्मन कट आउट के तौर पे कर रहा है। यानी अपने स्लीपर को ही साफ करने के लिए जिससे आपरेशन के बाद वो पकड़ा न जा सके। इसी लिए बनारस से जेड का मर्डर करवाया गया।
और उसमें वो कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते इसलिए कालिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बड़ोदा में भी उसके इंस्ट्रकशन यही रहे होंगे कि जब सारे ट्रेन बॉम्ब , रिफायनरी में पहुँच जाते तो उसके बाद बॉम्ब डिटोनेट करने के लिए किसी कि जरुरत नहीं थी। वो या तो पेट्रोलियम लोडिंग के बाद प्रेशर से डिटोनेट हो जाते या टाइमर डिवाइस से। इसलिए आखिरी रेक प्लेस हो जाने के बाद वाई का सफाया करने का प्लान होगा , इसलिए कालिया वहाँ था। रीत ,मीनल और करन कि चतुरायी से वो जिन्दा पकड़ा गया।
तो वाई पे निगाह रखने के लिए जिस आदमी को काम सौंपा गया था , कालिया ने उसी का सफाया कर दिया। क्योंकि पुलिस उसके पीछे पड़ी थी और उस से , विदेशी ताकत के लिंक का पता चल जाता। इस तरह से यहाँ भी कट आउट हटाने की तरह ही कालिया का इस्तेमाल हुआ।
और मीनल इसलिए कालिया से सेफ थी।
दूसरी बात , मेरे हैकर फ्रेंड्स से शाम चार से आठ था दुशमन के हेडक्वॉर्टस को साइबर विद्या से आइसोलेट कर रखा था। इसलिए वाई के उस साथी को मीनल और रीत के बारे में बताने का मौका ही नहीं मिल पाया होगा। क्योंकि आठ बजे के पहले ही कालिया ने उसका काम तमाम कर दिया था। मेरे विचार से आपरेशन फेल होने के बारे में उनके पास कोई भी सूचना नहीं पहुंच पायी होगी। ख़ास तौर से मीनल और रीत के रोल के बारे में।
तीसरी बात ये थी कि कालिया अब तक सिर्फ इसलिए नहीं पकड़ा जा पाया था कि वो अपना टारगेट ख़तम कर के पंद्रह बीस मिनट के अंदर शहर छोड़ देता है और कई बार देश भी।
बनारस में जेड के मर्डर के बाद वो नाव से निकल गया था और शंका ये थी कि वो फिर ट्रेन से बिहार और और फिर नेपाल चला गया। उसके आने जाने के बारे पे जो उसे पे करते हैं , उन्हें भी पता नहीं रहता। इसलिए ये सोचना कि मीनल जैसे लो प्रायर्टी टारगेट के लिए वो रिस्क लेगा गलत होगा।
कालिया अगर होगा भी तो मुम्बई में होगा जहाँ अगले दिन का हमला होना था। इसलिए ये फैसला एकदम सही था कि मीनल मुम्बई नहीं गयी।
चौथी बात ये थी कि दुश्मन अभी अपनी सारी ताकत मुम्बई में हमले के लिए लगाएगा , खासतौर पे बनारस और बड़ोदा फेल होने के बाद , बजाय बदला लेने के।
इसलिए मीनल सेफ थी। ऊपर से एक्स्ट्रा प्रिकॉशन के तौर पे उसे सेफ हाउस में रखा गया था। रीत ने बताया था की वो और करन मुम्बई का काम निपटा के एक दो दिन में मीनल के पास पहुँच जायेंगे और एक दिन उसके साथ रहेंगे।
वो रीत के भी डीस्ट्रेसिंग के लिए ठीक था। चौथे दिन वो बनारस पहुँच जायेगी , रंगपंचमी के दो दिन पहले। मुझे भी गुड्डी के साथ उसी दिन बनारस पहुंचना था। तो इसलिए ये टाइमिंग भी ठीक थी।
मैंने एक बार फिर कम्प्यूटर पे निगाह डाली , एक दो मेल और किये और रात भर के लिए उससे विदा ली। मैं कम्प्यूटर बंद ही कर रहा था कि बाहर से भाभी का बुलावा आया।
और बाहर जो मैं आया तो रंजी को देखता रह गया।
अबीर गुलाल में लिपी पुती वो और सेक्सी लग रही थी।
आलमोस्ट खुली चोली में उसके गोरे कबूतरों के पंख लाल हरे हो गए थे , यहाँ तक कि उन कबूतरों कि चोंचों को पे भाभी ने ख़ास तौर पे गाढ़ा लाल तो लगाया ही था , जम के खींचा और पिंच भी किया था।नतीजा ये था कि रंजी के मटर के दाने बराबर कड़े कड़े निपल दूर से साफ दिख रहे थे.
लेकिन भाभी ने ये नहीं देखा की मेरी निगाहें कैसे रंजी के गदराये , रंगे पुते , जोबन को सहला रही हैं।
एक तो उनकी ऊपर से ( भैया की ) सेकेण्ड काल आ गयी थी।
और दूसरे वो रंजी को छेड़ने में जुटी थीं
मुझसे कहने लगीं ,
" गुड्डी को मैं इसके साथ भेज रही हूँ। इत्ता मस्त माल अगर अकेले जाएगा तो कहीं होली के हुरियारे , बाँध के नीचे खींच के ले गए तो शर्तिया ९ महीने में तुम्हे मामा बना देंगे। अब या तो ये पिल खा के आती या फिर अपने पर्स में कंडोम ले के चलती , अगर इतनी खुजली मच रही है तो। चलो अब गुड्डी साथ जायेगी तो कुछ तो बच जायेगी। "
मतलब ये गुड्डी कि चाल थी या क्या पता रंजी गुड्डी दोनों की, कि आज कि रात वो साथ बिताएं।
भाभी ने फिर बोला , " मैं और तेरे भैया तो खाना खा के आये हैं। और गुड्डी तो रंजी के घर खायेगी। शीला भाभी तुम्हारे लिए कुछ गरम कर देंगी, गुड्डी ने बना के रखा है , मैं ऊपर चलती हूँ "
तो बात ये थी उन्हें ऊपर जाने कि जल्दी थी।
लेकिन जाने के पहले उन्हें जैसे कुछ याद आ गया।
"तेरे चिकने चेहरे का रंग तो पोंछ दूँ , वरना रास्ते में तेरे यार कैसे पहचानेंगे। "
भाभी बोली और इधर उधर टावल के लिए देखने लगी। फिर अंदर कमरे से जाके एक हैण्ड टावेल ले आयीं , और खुद ही पोंछने लगी।
रंजी बोली भी नहीं भाभी मैं ही पोछ देती हूँ तो भी वो बोली , ' चल अब तेरी हर काम खुद करने वाली उम्र नहीं रही , इत्ते यारो कि लाइन लगी रहती है मुझे सब मालूम है "
लेकिन हैण्ड टावेल हटते ही भाभी की शरारत साफ हो गयी।
रंजी के चेहरे पे जो उन्होंने गुलाल लगाया था , वो नारमल गुलाल नहीं था।
उसमें सिर्फ ऊपर गुलाल कि एक लेयर थी और अंदर एकदम पक्का रंग था।
इसलिए रंजी के चेहरे पे और उभारों पे जो लगा था वो पक्का सूखा रंग ही था। और अब जो उन्होंने टावेल से उसे साफ किया , वो अच्छी तरह पानी से भीगा था।
और जब उन्होंने रंजी के गालों पे रगड़ा तो , बस वो रंग गीला के और चेहरे पे लग गया। यहाँ तक कि उन्होंने उसका सारा बचा पानी , रंजी की चोली फैला के , निचोड़ दिया और जोर से चोली के ऊपर से ही जोबन रगड़ दिए और उसके उरोज भी एकदम लाल हरे रंगों से लिथड़ गए।
भाभी ने मुस्करा के रंजी के गाल पिंच किये और हैप्पी होली बोल के ऊपर चली गयी।
वहाँ से उनकी थर्ड काल आ गयी थी। सीढ़ी के ऊपर से ही उन्होंने मुझे और शीला भाभी को देखा और बोली ,
" तुम दोनों खाना खा लेना मैं चलती हूँ "
" अरे आप जल्दी ऊपर जाओ , , वहाँ भूखा शेर इन्तजार कर रहा है , हमारी चिंता मत करो , इसकी भूख मैं मिटा दूंगी। "
शीला भाभी ने हँसते , भाभी को चिढ़ाते कहा।
गुड्डी और रंजी भी मुंह दबा के हंस रही थीं।
भाभी , जल्दी जल्दी , धड़धड़ाती , सीढ़ी चढ़ के ऊपर चली गयीं।
गुड्डी और शीला भाभी किचेन की और मुड़ गयीं।
मैं अपने कमरे में चला आया और पीछे पीछे रंजी।
मैंने जैसे ही मुड़ के उसे देखा , उसका चेहरा बहुत उदास लग रहा था।
उसने तुरन्त मुझे जोर से बाहों में भींच लिया , मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए और बोली ,
" भैय्या , आई ऍम सो सॉरी। "
" क्या हुआ " मेरा एक हाथ उसके भारी भारी नितम्ब पे था और दूसरा उभारों पे और मैं उसे जोर से दबोचे हुए था।
" ये " रंजी का एक हाथ मेरे लिंग पे सीधे पहुँच गया।
" इसका मन नहीं भरा ना , बीच में छोड़ना पड़ा। पहले मैं बेवकूफों की तरह नखड़ा करती रही , फिर भाभी आ गयीं और अब घर जाने की जल्दी है , दो बार फोन आ गया है। तुम बहुत गुस्सा हो ना "
उदास हो के वो बोली
" अरे पगली , गुस्सा क्यों होउंगा , होता है कभी कभी। चल अगली बार नखड़ा मत करना अपने से इसे ले लेना " हंस के जोर से उसकी चूंची दबा के मैं बोला।
" भैय्या पक्का प्रामिस "हंस के जोर से मी लंड को दबाते मसलते वो बोली।
" लेकिन तू न अभी भी बच्ची है , ये वो बोल रही है , नाम क्यों नहीं लेती। "
मैंने उकसाया।
और सीधे मेरे लिप्स पे एक जोरदार किस्सी ले ली। और फिर लिंग पे हाथ से कस के दबा के बोली ,
" ओके भैय्या , अगली बार तुझे नहीं बोलना होगा , मैंने खुद तेरा ये लंड लुंगी और बिना मलायी निकाले नहीं छोड़ूंगी। लेकिन तेरा क्यों , अब तो ये मेरा लंड है , मैं इसे जहाँ चाहे वहाँ लूंगी। "
फिर कुछ हिचकिचा के बोली , " चूत में भी लूंगी और गाण्ड में भी ,… "
जवाब में मैंने खूब कस के चूंची दबाई और उस के गुलाबी रसीले होंठो को चूम लिया।
किस का जवाब रंजी ने किस से दिया और शहद मिली आवाज में बोली ,
" भैय्या , तुम दुनिया के सबसे अच्छे भैया हो." और अब रंजी का हाथ पजामें के अंदर था और वो खूब प्यार से लंड मुठिया रही थी। सुपाड़ा भी उसने खोल दिया था।
मेरे होंठ चोली खोल के रंजी के मीठे मीठे निपल चूस रहे थे।
एक मिनट रुक के उसके गाल काट के मैंने भी बोला " रंजी , तू दुनिया कि सबसे मीठी बहन। "
मैंने फिर निपल चूसना शुरू कर दिया और वो लंड जोर जोर से अपनी मुट्ठी में ले आगे पीछे कर रही थी।
मैं फिर बोला , " तू जानती है मेरा कितने दिन से मन कर रहा था तू मेरा ये , मेरा ,… लंड अपने हाथ में ले और।और मैं तुझे जोर जोर से हचक हचक के चोदूँ। "
शहद सी मीठी आवाज में बोली वो
" तो चोदो ना भैया , आगे से तेरा जब मन करे , जैसे मन करे जो मन करे , उस तरह से तुम मेरी ले लेना , बिना पूछे मुझसे। और अगर तुमने मुझसे पूछा न , तो मैं गुस्सा हो जाउंगी। हाँ. "
अब इससे ज्यादा क्या ग्रीन सिग्नल मिल सकता था।
ख़ुशी में मैंने रंजी के मस्त जोबन को कचकचा के काट लिया, और बोला
" समझ ले अब तेरी चूत भी फाडूंगा और गांड भी मारूंगा। "
" तो फाड़ो ना भइया , जल्दी मेरा भी बहुत मन करता है है " रंजी और कस के चिपकती बोली।
मेरा तो चलता तो मैं उसी समय रंजी कि निहुरा के चोद देता , लेकिन तबतक शीला भाभी और गुड्डी के क़दमों कि आहट सुनायी पड़ी और हम दोनों अलग हो गए।
शीला भाभी अपने कमरे की ओर चली गयीं और गुड्डी हम लोगों की ओर आ गयी।
" बहन भाई में चुम्मा चुम्मी हो गयी हो तो चलें " गुड्डी ने छेड़ा।
रंजी ने फिर मुझे एक बार बाँहों में भींच के चूम लिया।
" अरे तू बच्ची कि बच्ची रहेगी , असली जगह तो चूम , " गुड्डी ने छेड़ा।
और आगे रंजी को नहीं बोलना पड़ा ,उसने तन्नाया लंड पाजामे से निकाला और सीधे मुंह के अंदर।
वो चूस चुभला रही थी कि मैंने उसका सर पकड़ के सीधे लंड अंदर तक ठेल दिया।
" अगली बार नीचे वाले मुंह में जाएगा "
मैंने बोला और चूसते हुए उसने जोर से सर हिला के हामी भरी।
तब तक एक बार फिर हम दोनों अलग हो गए।
मैं , रंजी और गुड्डी को छोड़ने बाहर निकला लेकिन निगाहें मेरी रंजी के मटकते चूतड़ो से चिपकी थी और मेरे मन में बार बार चंदा भाभी कि बात गूँज रही थी
" अगर गद्दर जोबन , पतली कमर और भारी चूतड़ वाली कोई लौंडिया हो तो निहुरा के , उसकी गांड न मारना पाप है।
तब तक गुड्डी वापस मुड़ी और रंजी से बोली , यार तू स्कूटी निकाल मैं जरा पर्स भूल गयी हूँ ले के आती हूँ।
वो वापस मुड़ी , मुझे भी इशारा किया और मैं उसके पीछे पीछे.
क्या भूल गयी थी , मैंने गुड्डी से पूछा।
मुस्कराकर मुझे बाहों में ले के वो बोली , एक बात और एक काम।
फिर मुझे किस करके गुड्डी ने कहा बात ये है कि आज तुझे मेरी कसम , शीला भाभी कि खूब रगड़ रगड़ के हचक के करना , मेरे नाम का सवाल है। मेरा नाम मत डुबोना समझे और उन्हें गाभिन जरुर करना। पंद्रह दिन के अंदर अच्छी खबर आनी चाहिए। एक बात तुम्हे समझानी थी , भाभी ही असली चाभी हैं।
सिर्फ मेरे घर में ही नहीं पूरे गाँव में उनकी चलती है और अगर एक बार तूने उनको फिट कर लिया ना तो समझ लो , चाहे मेरे मायकेवालिया हों या तेरी , सबका आगे पीछे दोनों छेद पक्का। "
और जबतक मैं कोई सवाल करता , वो अलमारी की ओर मुड़ी , चंदा भाभी के दिए हुए हर्बल वियाग्रा वाले लड्डू निकाले एक नहीं दो , और मेरे मुंह में डाल दिए। और अब तो मेरे बोलने का सवाल नहीं था। मुंह लड्डू से भरा था।
वही बोली ,
" यही काम मैं भूल रही थी। डबल डोज इस लिए कि सिर्फ उनकी लेना नहीं बल्कि गाभिन भी करना है। और मैं इसलिए रंजी के साथ जा रही हूँ की फिर तुम निश्चिंत हो के रात भर उनकी लो। दूसरे इस छिनार तेरी बहन कम मॉल कि मुझे तकाही भी करनी है।
इसकी चूत में इत्ते चींटे काट रहे हैं तो कहीं किसी और से अपनी सील न तुड़वा ले। अब तो उसकी सील टूटेगी तो तेरे मूसल से और वो भी इतनी जबरदस्त कि उसकी चीख , पूरे मुहल्ले में सुनायी देनी चाहिए की उसकी फट गयी। फिर तो उसके बाद देखना तुम्हारी किस किस मायकेवालियों का नंबर लगवाती हूँ "
बाहर से रंजी की आवाज आयी और गुड्डी एक बार फिर जंगबहादुर को दबा के , रंजी के साथ स्कूटी पे निकल गयी। मैं और शीला भाभी दोनों को देख रहे थे।
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फागुन के दिन चार--111
गतांक से आगे ...........
क़यामत
रंजी
उसकी सहेलियां उसे रंजी कहती थीं
भाभियाँ उसे रंडी कहती थी
और पूरे शहर के छैले , ( बल्कि अब तो बनारस के भी जब से रीत और गुड्डी ने उसकी फोटुएं वहाँ के लड़कों से शेयर कर ली ) जिल्ला टॉप माल।
और मैं ,… मुझे कहने का मौका वो पहले भी नहीं देती थी , और आज भी नहीं दिया।
. मेरी निगाहें उसके चोली फाड़ उरोजों को ही सहलाने में बिजी थीं और उन्होंने ये ध्यान ही नहीं दिया की रंजी के दोनों हाथ उसके पीछे छुपे हैं , और जब तक मैं होश में आया ,
वो मेरे गाल पे थे, रगड़ते मसलते।
'हैप्पी होली भैया , सुबह न सही इस समय सही बिना लगाये मैं आज छोड़ने वाली नहीं थी आपको " वो बोली ।
पता नहीं मेरे हिस्से में चालाक लड़कियां ही क्यों आती है ?
और अब तक हम बरामदे में आ आगये थे , जहां टेबल पे रंगो का पूरा जखीरा , अबीर गुलाल से भरी प्लेटें , डबल भांग वाली गुझिया , ठंडाई और होली का पूरा सरंजाम रखा था।
लेकिन रंजी मुझे इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी।
बेल बजाने के पहले ही उसने अपने दोनों कोमल कोमल हाथों पे पक्के रंगो की पूरी कॉकटेल बना रखी थी और अब गालो को रंगने के बाद एक हाथ मेरी बनियाइन के अंदर घुस के छाती पे लगा रहा था।
लेकिन निगाहे उसकी पाजामा फाड़ते, टनटनाते जंग बहादुर पे ही टिकी थीं।
और अब मेरी बारी थी। मैंने अपने गाल रंजी के गाल पे रगड़ने शुरू किये ,एकदम मक्खन। जो रंग उसने मेरे गालों पे लगाये थे अब उसके गालों पे लग रहे थे। मैने उसे दोनों हाथो से जोर से बांध लिया और गाल से गाल रगड़ते , एक छोटी सी किस्सी चुराते बोला ,
" हे अब मेरी डालने की बारी है , भागना मत "
" मैं नहीं भागने वाली , आप ही घबड़ाते , शर्माते रहते हो। " मेरी आँख में आँख डाल के वो सुनयना बोली।
द्विअर्थी डायलाग में वो मुझसे भी दो हाथ आगे थी।
और मैंने डाल दिया।
टेबल पर से एक गुलाल की प्लेट उठाकर , पूरा लाल गुलाल उसकी चोली के अंदर।
और गुलाल के बाद , मेरा हाथ भी चोली के अंदर घुस गया।
रुई के फाहे ऐसे मुलायम गदराये जोबन अब मेरी मुट्ठी में थे और मैं उन पे गुलाल मसल रगड़ रहा था।
क्या मस्त किशोर चूंचियां थी रंजी की , कुछ होली का असर कुछ भांग का , लेकिन सबसे बढ़ के एकदम खुली और रसीली बातें जो मम्मी ने की , उसका जो मैं खुल के रस लूट रहा था गद्दर जोबन का ,
रंजी खिलखिला रही थी , मजे ले रही थी और जैसे ही मैंने उसके मटर के दाने ऐसे कड़े निपल को पुल किया ,वो बोली ,
" उईईईईईईइ उईई आह्ह्ह , भैया ये फाउल है "
मैंने जवाब में उसके निपल को और दबाया , कचाक से उसके गुलाब कि पंखुड़ियों ऐसे गालों को काटा और बोला ,
" हे तू भी तो लगा रही थी रंग , मैं तो नहीं चिल्लाया "
" तू अंदर डाल रहे हो , मैंने तो नहीं डाला था। " वो शोख मुस्करा के बोली।
" देख मैंने तुझे पहले ही बोला था , बिना अंदर डाले क्या मजा आएगा , फिर तू चाहे तो तू भी डाल ले अंदर हाथ न किसने मना किया है। "
उसके भारी भारी चूतड़ों की दरार के बीच अपने जोश में पागल लंड को रगड़ते मैं बोला।
और जवाब में उसने अपने कोमल किशोर हथेलियों से मेरे पाजामे को फाड़ते , बौराये , जंगबहादुर को कस के पकड़ लिया और दबाने सहलाने लगी।
एकदम मस्त।
" हे तू बोलेगी भैया ने कुछ खिलाया पिलाया नहीं सिर्फ रगड़ना डालना शुरू कर दिया। " मैंने उसे चिढ़ाया।
" वो तो बोलूंगी ही , " हंसते हुए वो बोली और साथ साथ ,मेरे लिंग को खूब जोर से पाजामे के ऊपर से दबाया।
और जब तक उसकी बात खतम होती , मैंने प्लेट से भांग की डबल डोज वाली गुझिया पूरी उसके मुंह में डाल दी।
"एक ही बार में पूरा ,… शिकायत के अंदाज में गुझिया गटकते वो बोली।
" और क्या , तभी तो मजा आएगा ले ले ये पीले ,… सट से अंदर चला जाएगा। "
और मैंने अपने हाथ से एक पूरी ग्लास भांग से लेस ठंडाई उसके होंठ से लगा दी और जब तक पूरा ग्लास ख़तम नहीं हुआ , पिलाता रहा।
यानी भांग कि चार गोली अंदर , और पांच दस मिनट में उसके दिमाग का भी मेरे और गुड्डी कि तरह रायता बन जाएगा और वो भी सिर्फ मजे के बारे में सोचेगी।
एक हाथ भांग के ग्लास पे था और दूसरा बिना रुके, जबरदस्त रगड़ाई , उसके किशोर उभरते जोबन का कर रहा था।
और रंजी का हाथ भी बिना रुके बिना झिझके , पजामे के ऊपर से मेरे तने लिंग को पकड़ के दबा रहा था , सहला रहा था।
मुझसे नहीं रहा गया। इतने दिनों से उसके भारी , मटकते चूतड़ मेरी नींद हराम किये हुए थे और मैंने उसकी साडी उठा दी।
साडी से अच्छा ड्रेस कोई हो नहीं सकता। लेट के जब कोई साडी पहनी लड़की टाँगे उठाये , तो साडी अपने आप सरक कर कमर के नीच और प्रेम गली खुल जाती है। खड़े रहने पे भी जैसे रंजी खड़ी थी और मैंने उसे पीछे से दबोच रखा था। और जब मैंने साडी उठा दी तो , बस वो छल्ले की तरह कमर में लिपट गयी और पायजामे के अंदर से अब मेरे जंगबहादुर सीधे रंजी के चूतड़ो पे ठोकर मार रहे थे।
मेरा तो मन कर रहा था बस , निहराओ , सटाओ और घुसेड़ो।
लेकिन गुड्डी ने सख्त पाबंदी लगा रखी थी। रंजी का भरतपुर , होली के २४ घण्टे के बाद ही लुटना चाहिए , मन्त्र जगाने का समय वही था। रंजी
उसकी सहेलियां उसे रंजी कहती थीं
भाभियाँ उसे रंडी कहती थी
और पूरे शहर के छैले , ( बल्कि अब तो बनारस के भी जब से रीत और गुड्डी ने उसकी फोटुएं वहाँ के लड़कों से शेयर कर ली ) जिल्ला टॉप माल।
और मैं ,… मुझे कहने का मौका वो पहले भी नहीं देती थी , और आज भी नहीं दिया।
. मेरी निगाहें उसके चोली फाड़ उरोजों को ही सहलाने में बिजी थीं और उन्होंने ये ध्यान ही नहीं दिया की रंजी के दोनों हाथ उसके पीछे छुपे हैं , और जब तक मैं होश में आया ,
वो मेरे गाल पे थे, रगड़ते मसलते।
'हैप्पी होली भैया , सुबह न सही इस समय सही बिना लगाये मैं आज छोड़ने वाली नहीं थी आपको " वो बोली ।
पता नहीं मेरे हिस्से में चालाक लड़कियां ही क्यों आती है ?
और अब तक हम बरामदे में आ आगये थे , जहां टेबल पे रंगो का पूरा जखीरा , अबीर गुलाल से भरी प्लेटें , डबल भांग वाली गुझिया , ठंडाई और होली का पूरा सरंजाम रखा था।
लेकिन रंजी मुझे इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी।
बेल बजाने के पहले ही उसने अपने दोनों कोमल कोमल हाथों पे पक्के रंगो की पूरी कॉकटेल बना रखी थी और अब गालो को रंगने के बाद एक हाथ मेरी बनियाइन के अंदर घुस के छाती पे लगा रहा था।
लेकिन निगाहे उसकी पाजामा फाड़ते, टनटनाते जंग बहादुर पे ही टिकी थीं।
और अब मेरी बारी थी। मैंने अपने गाल रंजी के गाल पे रगड़ने शुरू किये ,एकदम मक्खन। जो रंग उसने मेरे गालों पे लगाये थे अब उसके गालों पे लग रहे थे। मैने उसे दोनों हाथो से जोर से बांध लिया और गाल से गाल रगड़ते , एक छोटी सी किस्सी चुराते बोला ,
" हे अब मेरी डालने की बारी है , भागना मत "
" मैं नहीं भागने वाली , आप ही घबड़ाते , शर्माते रहते हो। " मेरी आँख में आँख डाल के वो सुनयना बोली।
द्विअर्थी डायलाग में वो मुझसे भी दो हाथ आगे थी।
और मैंने डाल दिया।
टेबल पर से एक गुलाल की प्लेट उठाकर , पूरा लाल गुलाल उसकी चोली के अंदर।
और गुलाल के बाद , मेरा हाथ भी चोली के अंदर घुस गया।
रुई के फाहे ऐसे मुलायम गदराये जोबन अब मेरी मुट्ठी में थे और मैं उन पे गुलाल मसल रगड़ रहा था।
क्या मस्त किशोर चूंचियां थी रंजी की , कुछ होली का असर कुछ भांग का , लेकिन सबसे बढ़ के एकदम खुली और रसीली बातें जो मम्मी ने की , उसका जो मैं खुल के रस लूट रहा था गद्दर जोबन का ,
रंजी खिलखिला रही थी , मजे ले रही थी और जैसे ही मैंने उसके मटर के दाने ऐसे कड़े निपल को पुल किया ,वो बोली ,
" उईईईईईईइ उईई आह्ह्ह , भैया ये फाउल है "
मैंने जवाब में उसके निपल को और दबाया , कचाक से उसके गुलाब कि पंखुड़ियों ऐसे गालों को काटा और बोला ,
" हे तू भी तो लगा रही थी रंग , मैं तो नहीं चिल्लाया "
" तू अंदर डाल रहे हो , मैंने तो नहीं डाला था। " वो शोख मुस्करा के बोली।
" देख मैंने तुझे पहले ही बोला था , बिना अंदर डाले क्या मजा आएगा , फिर तू चाहे तो तू भी डाल ले अंदर हाथ न किसने मना किया है। "
उसके भारी भारी चूतड़ों की दरार के बीच अपने जोश में पागल लंड को रगड़ते मैं बोला।
और जवाब में उसने अपने कोमल किशोर हथेलियों से मेरे पाजामे को फाड़ते , बौराये , जंगबहादुर को कस के पकड़ लिया और दबाने सहलाने लगी।
एकदम मस्त।
" हे तू बोलेगी भैया ने कुछ खिलाया पिलाया नहीं सिर्फ रगड़ना डालना शुरू कर दिया। " मैंने उसे चिढ़ाया।
" वो तो बोलूंगी ही , " हंसते हुए वो बोली और साथ साथ ,मेरे लिंग को खूब जोर से पाजामे के ऊपर से दबाया।
और जब तक उसकी बात खतम होती , मैंने प्लेट से भांग की डबल डोज वाली गुझिया पूरी उसके मुंह में डाल दी।
"एक ही बार में पूरा ,… शिकायत के अंदाज में गुझिया गटकते वो बोली।
" और क्या , तभी तो मजा आएगा ले ले ये पीले ,… सट से अंदर चला जाएगा। "
और मैंने अपने हाथ से एक पूरी ग्लास भांग से लेस ठंडाई उसके होंठ से लगा दी और जब तक पूरा ग्लास ख़तम नहीं हुआ , पिलाता रहा।
यानी भांग कि चार गोली अंदर , और पांच दस मिनट में उसके दिमाग का भी मेरे और गुड्डी कि तरह रायता बन जाएगा और वो भी सिर्फ मजे के बारे में सोचेगी।
एक हाथ भांग के ग्लास पे था और दूसरा बिना रुके, जबरदस्त रगड़ाई , उसके किशोर उभरते जोबन का कर रहा था।
और रंजी का हाथ भी बिना रुके बिना झिझके , पजामे के ऊपर से मेरे तने लिंग को पकड़ के दबा रहा था , सहला रहा था।
मुझसे नहीं रहा गया। इतने दिनों से उसके भारी , मटकते चूतड़ मेरी नींद हराम किये हुए थे और मैंने उसकी साडी उठा दी।
साडी से अच्छा ड्रेस कोई हो नहीं सकता। लेट के जब कोई साडी पहनी लड़की टाँगे उठाये , तो साडी अपने आप सरक कर कमर के नीच और प्रेम गली खुल जाती है। खड़े रहने पे भी जैसे रंजी खड़ी थी और मैंने उसे पीछे से दबोच रखा था। और जब मैंने साडी उठा दी तो , बस वो छल्ले की तरह कमर में लिपट गयी और पायजामे के अंदर से अब मेरे जंगबहादुर सीधे रंजी के चूतड़ो पे ठोकर मार रहे थे।
मेरा तो मन कर रहा था बस , निहराओ , सटाओ और घुसेड़ो।
और जिस तरह से रंजी मेरे खूंटे पे अपने चूतड़ रगड़ रही थी , साफ था उसका मन भी यही था।
" हे तू न अभी छोटी बच्ची है "
" धत्त भैया , ऐसा नहीं है " वो हंस के बोली और और अब उस का हाथ पाजामे के अंदर लिंग को सीधे पकडे था। एक तरह से उसने मेरी बात का जवाब दे दिया था।
और फिर खिलखिला के बोली , " अरे भैया आप को मैं लगती होउंगी बच्ची। शहर के लड़को से पूछिए , दो साल से हालत खराब है उन बिचारो कि "
इसी बीच मैंने उसे एक और डबल भांग वाली गुझिया खिला दी थी और बिना ना नुकुर के उसने खा भी ली थी।
" तो तू अब बच्ची नहीं है " उसके खुले निपल को झुक के बाइट करते मैंने पुछा।
" उईई , नहीं एकदम नहीं " वो कांफिडेंस से बोली।
" तो बोल तेरे हाथ में क्या है " मैंने उसे छेड़ा।
और उसने जोश से लिंग पुल किया कि सुपाड़ा पूरी तरह खुल गया। एकदम गुस्साया , खूब मोटा , लेकिन झिझक के बोली
" वो वो आपका , तेरा ,… वो ,…लिङ्ग "
" देखा , तभी मैं कह रहा था कि तू अभी बच्ची है , बच्चिया लिंग और योनि बोलती हैं , लड़कियां नहीं। लड़किया खुल के बोलती है लड़को कि तरह "
मैंने उसे चढ़ाया और एक बार फिर जोर से उसका गाल काट लिया।
अब वो भी जोश में थी। मेरी और मुड़ के मेरे होंठ पे अपने होंठ रगड़ के बोली , पहले धीरे से फिर जोर से ,
" तुम्हारा , तेरा लंड। '
" और ये लंड कहाँ जाएगा। " मैंने उसके होन्ठों के बीच अपनी जीभ घुसेड़ते हुए पुछा।
चांदी कि घंटियों कि तरह वो हंसी और बोली , " भैया आप जहाँ चाहो " और उसी के साथ रंजी ने मेरा लंड पजामे से बाहर निकाल लिया।
मेरे दोनों हाथो में उसकी मस्त चूंचियां थीं जिन्होंने शहर के लड़कों कि नींद हराम कर रखी थी।
मैं जम कर दोनों चूंची रगड़ रहा था , मसल रहा था और मैंने फिर चूंची काट के बोला ,
' सुन , मेरा तो मन करता है कि ,…की तेरी कसी कच्ची कुँवारी गुलाबी चूत में ये लंड पेल दूँ , तुझे बच्ची से लड़की बना दूँ और खूब हचक हचक हचक के तेरी चूत चोदूँ। '
" तो चोदो न भैय्या , मैंने कब मन किया है। मेरा भी तो इत्ते दिनों से मन कर रहा है की बस तू , … तू ये लंड , मेरी चूत में डाल दो। चोद दो मुझ को। जानते हो भैय्या मेरी सहेली दिया , उस का सगा भाई , उसे कित्ते दिनों से रोज चोदता है बिना नागा। जहाँ रात हुयी वो दिया के बेड पे ,… लेकिन मेरा तो कोई सगा भाई है नहीं "
"हे ऐसा क्यों बोलती है , मैं किसी सगे भाई से कम हूँ क्या " मैंने उसे प्यार से चूम के कहा।
" तभी तो बोलती हूँ भैया ," फिर वो कुछ रुक के मुस्करा के आँखे नचा के बोली ,
" भैय्या , तू सिर्फ चूत चोदना चाहते हो या , "
" तू बोल , " उसके खुले चूतड़ पे पजामे से बाहर निकले खड़े लंड को रगड़.के मैं बोला।
" मुझे तो मालूम है , " वो खिलखिलाई। " तुम्हे,... चूत के साथ मेरे , मेरे चूतड़ भी बहुत अच्छे लगते हैं ना तुमको " वो बोली।
" हाँ एकदम " मैंने कबूल किया।
और खूब कस के रंजी ने अपने चूतड़ मेरे लंड पे रगड़ दिए और बोली ," ठीक है मैं तुम्हे अपनी गांड भी मारने दूंगी लेकिन मेरी एक बल्कि दो शर्त हैं। '
"दर्द बहुत होगा तेरी कच्ची गांड में " मैंने उसे वार्न किया।
" तुम तो एकदम बुद्धू हो मेरी बात तो सुनो , वही तो शर्त है" हंसके वो बोली , फिर बात आगे बढ़ायी।
" मेरी गांड मारते समय , मुझे मालुम है दर्द होगा , बहुत दर्द होगा। लेकिन भैया तुझे मेरी कसम , मैं चाहे रोऊँ चाहे चिल्लाऊँ , चाहे आपके हाथ पैर जोडूं , चाहे वो फट के खून खच्चर हो जाए , लेकिन ,…लेकिन तुम रुकना मत। मुझे तेरा लंड पूरा चाहिये , एकदम अंदर तक। आप पूरी ताकत से हचक के मेरी गांड मारना , बिना मेरे दर्द की परवाह किये। और हाँ दूसरी शर्त ये ही कि गुड्डी कि भी गांड मेरे सामने मारना। '
गुड्डी का नाम लो और गुड्डी हाजिर।
वो किचेन से बाहर आयी लेकिन उसकी आहट पाते ही सब कुछ सील बंद।
जंगबहादुर पजामे के अंदर और रंजी कि साडी भी उसके पैरों तक
" क्या हो रहा है भाई बहन के बीच " गुड्डी ने छेड़ा
“भइया , कहीं से कुछ जलने कि महक आ रही है ना " रंजी हंसती , खिलखिलाती , गुड्डी को देख के बोली।
और साथ ही साथ गुड्डी को गले लगा के जोर से उसके उभार भींच दिए।
गुड्डी क्यों पीछे रहती , उसने भी मुझे दिखा के रंजी के चोली में हाथ दे के , उसके मस्त उभार मसलने रगड़ने शुरू कर दिए और हँसते हुए बोली ,
" अरे यार जो सुलगने वाली चीज थी वो तो पहले ही हम दोनों कि साथ साथ वैक्सिंग में साफ हो गयी है कि , किसी को चाटने चूटने में कोई तकलीफ न हो। "
और अब दोनों मेरी और देख के एक साथ हंसने लगीं।
मैं क्यों पीछे रहता और फिर आज जो मम्मी ने उकसाया था , मायकेवालियों को ले के उसका असर बहुत ज्यादा था और फिर मुझे मालुम था कि गुड्डी को क्या पसंद होगा।
मैं भी बीच में घुस गया और एक बार फिर रंजी को जोर से बाँहों में ले के उसके मम्मे भींचते हुए , गाल पे जोर कि चुम्मी ली और बोला ,
" भाई बहन के बीच में वहीं हो रहा था जो होना चाहिए , प्यार "
" एकदम ," गुड्डी की और देखते रंजी हंस के बोली और मुझसे भी ज्यादा जोर से सीधे मेरे होंठो पे उसने एक चुम्मी जड़ दी।
और अब उसके अटैक की बारी थी।
मेरे पाजामे में बम्बू को दिखा के गुड्डी को हड़का के उसे पुछा ," हे भाई बहन को तो बहुत टोक रही थी , ये क्या है. मेरे आने के पहले क्या हो रहा था। '
" वो ,… वो कुछ नहीं यार। " गुड्डी थोडा हिचकिचाई ,
फिर बोली , " अरे यार थोड़ी सी पेट पूजा कही भी , कभी भी। तो भूख लगी थी बहुत इसलिए ज़रा सा लॉलीपॉप ,"
और गुड्डी की बात पूरी होने के पहले मुझे डांट पड़नी शुरू हो गयी।
रंजी ने सीधे मेरा कान पकड़ा और चालू हो गयी ,
" भैय्या , आपने प्रॉमिस किया था कि आप हम दोनों में कोई भेद भाव नहीं करेंगे , जो चीज इसको देंगे , वो मुझको देंगे तो फिर ये दो आँख क्यों "
एक हाथ से कान का वो पान बना रही थी और दुसरे हाथ से सीने पे मुक्के ,
" अरे यार तू मेरी पक्की सहेली है मिल बाँट के खाते हैं न , और फिर मुझसे पहले तो उस लॉलीपॉप पे तेरा हक़ है , यही तो आज मम्मी ने इन्हे समझाया की इन्हे लॉलीपॉप का स्वाद अपने सारे मायकेवालियों को चखाना चाहिए , घर के माल का स्वाद तो घर वालो को सबसे पहले मिलना ही चाहिए "
गुड्डी बोली और एक झटके में मेरे पाजामे का नाडा खोल दिया।
टनटनाए जंगबहादुर बाहर।
और सुपाड़ा तो रंजी कि नशीली उँगलियों ने पहले ही खोल दिया था।
सुपाड़ा , खूब मोटा , भक्क लाल गुलाबी। और उसके बीच में एक आँख थोड़ी सी खुली , पी होल।
रंजी जैसे स्कूल कि कोई नदीदी लड़की लॉलीपॉप को देख के ललचाये बिलकुल वैसे लग रही थी। उसकी आँखे एकदम सुपाड़े पे चिपकी थीं। वो एक दो बार थूक गटक रही थी।
गुड्डी तब तक घुटनो के बल बैठ गयी थी और एक हाथ में मस्त खड़े लंड को उसे दिखा दिखा के ललचा रही थी। उसने रंजी से कहा ,
"हे चल तू भी ऐसे बैठ न जैसे मैं बैठीं हूँ मिल के लॉलीपॉप का मजा लेते हैं "
मन तो रंजी का बहुत कर रहा था गपक करने के लिए लेकिन वो थोड़ी हिचकिचा रही थी।
" ना न तू ले न , मैं देखूंगी। " उसने बहाना बनाया।
पर गुड्डी के आगे किसी कि चली है की रंजी की चलती। गुड्डी ने रंजी को खिंच के अपने बगल में बैठा लिया और बोली ,
" चल तेरी बात रही लेकिन एक बार पकड़ तो और अगर तू ने कहा कि कभी पकड़ा नहीं तो बहोत पिटेगी मुझसे। "
रंजी ने शर्माते झिझकते लंड का बेस पकड़ लिया। उन कुँवारी किशोर उंगलियो का स्पर्श होते ही लंड एकदम पागल हो गया।
गुड्डी ने रंजी को दिखाते हुए लम्बी जीभ निकाली और फिर सुपाड़े पे एक लिक ले ली।
जैसे स्कूल कि छुट्टी के बाद किसी हाईस्कूल के बाहर लड़कियों एक दुसरे को ललचाती कारनेटो के कोन लिक करती हैं।
दूसरी लिक और जोरदार थी , सुपाड़े के बेस से लेकर एकदम ऊपर तक , सड़प सड़प और फिर जीभ कि कि नोक से मेरे पी हॉल में सुरसुरी कर दी।
मेरी हालत खराब हो गयी।
हालत रंजी कि भी बहुत खराब थी। उसकी निगाहें एकदम गुड्डी कि जीभ और मेरे सुपाड़े से चिपकी थीं।
जैस
और फिर गुड्डी ने रंजी के कान में कुछ बुदबुदाया
" देख मैं कैसे करती हूँ , दांत को होंठो से एकदम कवर कर लो , और मुंह एकदम बड़ा सा , खोल लो। होंठ रगड़ते हुए जाने चाहिए और जीभ से नीचे से लिक कर। सिम्पल। फिर जोर जोर से चूस। देख मुझे ध्यान से '
और अगले पल सुपाड़ा गुड्डी के मुंह में था।
क्या चूसती थी गुड्डी। एकदम मस्त।
जब सुपाड़े को रगड़ते , गुड्डी के गुलाबी रसीले होंठ आगे गए , मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं। पहले सुपाड़े को ले वो चूस रही थी चुभला रही थी , फिर थोडा सर के जोर से उसने आधा लंड अंदर ले लिया।
दो चार मिनट उसने चूसा होगा।
मैंने आँखे खोली तो रंजी किसी अच्छी शिष्या कि तरह देख रही थी ,सीख रही थी।
और अब गुड्डी ने अपने मुंह से तड़पता हुआ सुपाड़ा निकाल के रंजी की ओर बढ़ा दिया ,
" ले चूस "
' नहीं नहीं , तू सक कर न , मैं अभी देखूंगी " मन तो रंजी का बहुत कर रहा था , लेकिन थोड़ी झिझक अभी भी बाकी थी.
लेकिन गुड्डी भी छोड़ने वाली नहीं थी।
" अच्छा चल एक लिक ले ले यार , देख कित्ता मस्त सुपाड़ा है " गुड्डी ने उसे उकसाया।
और रंजी ने जीभ निकाल के एक बहोत छोटी सी लिक सुपाड़े पे ले ली.
मुझे ४४० वोल्ट का करेंट लग गया।
" अरे थोड़ी बड़ी सी ले सुपाड़ा तो पूरा चाट , चल एक किस ले ले कम से कम काटेगा नहीं " गुड्डी ने चढ़ाया।
और अब हिम्मत कर के रंजी ने दो तीन बार लिक किया और फिर एक बार दोनों हाथों से पकड़ कर , सुपाड़े को किस कर लिया।
गुड्डी ने रंजी के कान में कुछ बोला, और रंजी ने अपने होंठो को गोल करके झिझकते हुए खोला।
पीछे से गुड्डी रंजी का सर पकडे थी और साथ ही मेरा लंड भी।
और गुड्डी ने मुझे जबरदस्त आँख मार के सिग्नल दे दिया , मौका सही है।
हिचकते हुए गुड्डी ने थोडा सा सुपाड़ा मुंह में लिया , लेकिन लंड का बेस तो गुड्डी के हाथ में था , उसने जोर से अंदर पुश किया और मैंने भी साथ में धक्का मारा।
और पूरा सुपाड़ा रंजी के मुंह में था , एकदम गरम , लेकिन मखमल कि तरह मुलायम।
" हे इत्ता नखड़े दिखा रही थी , और पहली बाल पे ही छक्का मार दिया , पूरा सुपाड़ा अंदर। चल अब छिनारपना छोड़ और मस्ती से सुपाड़ा चूसना शुरू कर। "
गुड्डी रंजी के सर को मेरे लंड की और पुश करती बोली.
और रंजी ने मस्ती से सुपाड़ा चूसना शुरू कर दिया।
नौसिखियेपन का भी अलग मजा होता है। रंजी के गुलाबी होंठों के बीच पहली बार सुपाड़ा गया था , ये साफ लग रहा था , लेकिन उसका एक अलग मजा था।
वो होंठो से सुपाड़े को रगड़ रही थी तो कभी जीभ से जोर जोर से चाटती। उसके होंठ आगे पीछे नहीं हो रहे थे ,लेकिन जैसे कोई लड़की मुंह बड़ी सी चाकलेट ले के चुभलाये , वैसे वो चुभला , चूस रही थी।
गुड्डी पीछे से उसका सर दबाये हुए थी , लगातार प्रेस कर रही थी और मैंने भी अपना लंड उसके मखमली मुंह में ठेले जा रहा था। रंजी के थूक से लिसड़ा , चिकना , लिपटा लंड , सूत सूत उसके मुंह में जा रहा था
गुड्डी ने थोडा प्रेशर और बढ़ाया , और रंजी के लाख सर पटकने पे भी करीब तीन इंच लंड उसके मुंह में घुस गया।
" क्यों आ रहा है
मजा भैय्या का लंड चूसने में " गुड्डी ने उसे चिढ़ाया और रंजी ने भी उसी स्प्रिट में , हाँ में सर हिलाया।
"तो पूरा घोंट न आधे में क्या मजा आएगा , "
गुड्डी बोली और मुझे जबरदस्त आँख मार के इशारा किया , और मैंने पूरी ताकत से लंड अंदर ठेल दिया।
रंजी , छटपटाती रही , इधर उधर मचलती रही लेकिन मैंने और गुड्डी ने मिल के , …
गुड्डी ने उसका सर एक हाथ से कस के पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़ के रंजी के मुंह में पुश कर रही थी। मैं भी पूरी ताकत से धक्के पे धक्के मार रहा था , पेल रहा था , लंड अंदर ठेल रहा था।
और जब मैं रुका तो छह इंच करीब अंदर घुस गया होगा।
रंजी बिचारी गो गों कर रही थी , सुपाड़ा उसके गले के अंदुरनी हिस्से से टकरा रहा था। उसकी बड़ी बड़ी आँखे निकली पड रही थी। लेकिन मैंने जरा भी लंड न तो बाहर किया ना गुड्डी ने ही प्रेशर कम किया।
थोड़ी देर में वो लंड कि आदी हो गयी।
"बहुत शर्मा रही थी न , अब बोल कैसा लग रहा है भैया का लंड " गुड्डी बोली और साथ ही स्नैप स्नैप ना जाने कितने क्लोज अप्स , रंजी के चेहरे के और मेरे लंड के. रंजी का मुंह तो मेरे मोटे लंड से भरा था , लेकिन उसकी मचलती नाचती आँखों ने हाँ में जवाब दिया।
जैसे कहते हैं न फिश टेक्स टू वाटर , बस उसी तरह रंजी कि हालत थी।
वो खूब मस्ती से लंड चूस रही थी , कभी अपने मखमली मुंह को लंड पे आगे पीछे करती , तो कभी होंठो से शरारत से लंड को दबा देती। कभी उसकी जीभ मेरे सुपाड़े पे डांस करती तो कभी वो जोर जोर से गोल गोल जीभ को सुपाड़े के चारों ओर फिराती।
फिर मुझे याद गुड्डी कि कारस्तानी है। जब रंजी को उसने टैब और नोटबुक दी थी तो बीसों ट्रिपल एक्स फिल्में उनमें , गुड्डी ने लोड कर दी थी मेरे लैपी से। और आधी से ज्यादा ब्लो जाब की एक दो तो हाउ टू डु ओरल सेक्स ऐसी भी थीं ,
और रंजी ने शर्तिया उन्हें देखा होगा बार बार और क्विक लरनर तो वो है ही.
थोड़ी देर चूसने के बाद रंजी थोडा थक गयी और उसने लिंग मुंह से निकाल लिया। लेकिन तब भी वो लपर लपर साइड से अपनी जीभ से लंड चाट रही थी।
" बड़ा मजा आ रहा है ना भैय्या का लंड चाट के " गुड्डी ने फिर छेड़ा।
मुंह उठा के , मुस्कारते हुए रंजी बोली , " एकदम मेरे भैय्या हैं , मैं चाहे उनका लंड चाटूं चाहे ,…'
और बात गुड्डी ने पूरी की , " चाहे गांड , क्यों "
जवाब रंजी के रसीले होंठो ने दिया और गप्प से थोडा नीचे सरक के , मेरे बॉल्स को मुंह में भर के चूसने लगी।
उसके गालों की थकान थोड़ी कम हुयी तो खुद उसने अपना मुंह पूरा खोल दिया और इस बार मैंने एक धक्के में ही रंजी के मुंह में आधा से ज्यादा लंड पेल दिया।
गुड्डी कभी रंजी के गाल सहलाती कभी बाल।
रंजी खूब मस्ती से अब मेरा लंड चूस रही थी। कभी वो मेरे लंड का बेस पकड़ के उसे खुद अपने मुंह में पुश करती तो कभी मैं उसका सर पकड़ के हचक हचक के उसका मुंह चोदता।
गुड्डी रंजी कि ये जबरदस्त लंड चुसाई देख रही थी , उसके गाल , बाल सहलाते।
रंजी की गोल गोल चूंचिया भी मस्ती में एकदम पत्थर हो रही थीं।
गुड्डी ने अचानक रंजी कि दोनों मस्ताई चूंचियो को पकद लिया और लगी जोर जोर से दबाने।
फिर दोनों उभारों को नीचे से अपनी हथेली से उठा के मुझे दिखा के ललचाने लगी, मानो कह रही हो ,
" हे लो न दबाओ , रगड़ो मुझे कस के ". रंजी के मटर के दाने के बराबर निपल भी एकदम तन्नाये खड़े थे। गुड्डी ने अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच में दबा कर उन्हें भी मसलना शुरू कर दिया।
गुड्डी के होंठो से लार की धार , स्पिट का एक तार जैसे निकला और सीधे रंजी के कड़े खड़े निपल पे जा गिरा।
गुड्डी ने अपनी एक उंगली से उसे निपल के चारो ओर फैला दिया। वो निपल के चारो ओर गुड्डी अपनी लार लगी उंगली धीमे धीमे घुमाती रही। रंजी कि तो हालत मस्ती से ख़राब हो ही रही थी , ये देख के मेरी भी हालत ख़राब हो रही।
अचानक जैसे बबल गम का बुलबुला हो , गुड्डी ने ढेर सारे स्पिट का एक बबूला छोड़ा सीधे रंजी के जोबन के ऊपरी हिस्से पे और उसे धीमे धीमे , पूरी चूंची पे फैला दिया।
रंजी कि चूंची , गुड्डी के लार से चमक रही थी. एक बार फिर उसके निपल पे हलकी सी बाइट ले के , गुड्डी ने अपनी बड़ी बडी आँखे नचा के मुझे छेड़ा ,
" हे बहन का मुंह में पेल के , लंड चुसवा के जब इता मजा आ रहा है , तो सोचो , अपनी बहन की गांड मारने , बुर चोदने में कित्ता मजा आएगा। बोलो चोदोगे ना। '
" एकदम चोदुंगा , क्यों नहीं चोदुंगा , आखिर मेरी इत्ती प्यारी सी बहन है , क्यों रंजी ?
रंजी के गाली पे प्यार से हाथ फेरते , मैंने हामी भी भरी और पुछा भी।
रंजी का मुंह तो भरा था ले किन जोर जोर से उसने सर हिला के मेरी बात की हामी भरी।
गुड्डी लेकिन कहाँ चुप रहने वाली थी , वो बोली।
" तो चल तुझे दो तीन दिन में पक्का बहनचोद बनवा दूंगी और उसके बाद , … याद रखना , मम्मी ने क्या कहा था।
गुड्डी अब मेरे पीछे आके खड़ी हो गयी थी। मेरा कुरता बनियाइन पहले ही उतर चुकी थी। और गुड्डी की चोली भी ,
बरछे के नोक ऐसे नुकीले जोबन उसने मेरे पीठ में गड़ाए और जीभ से कान में सुरसुरी शुरू की साथ में उसके दोनों हाथ मेरे निपल को कभी स्क्रैच कर लेते तो कभी पुल कर देते।
लेकिन उससे भी ज्यादा उत्तेजक थीं उसकी बातें।
" हे बहनचोद , क्यों मजा आ रहा है बहन के साथ। हचक के पेल दो पूरा लंड न , ये दो इंच बाहर क्यों रखा है , क्या मेरी सास के लिए।
माना तेरी सगी बहन नहीं है कोई , लेकिन मैंने तुम्हारी भाभी से पूरी लिस्ट ले ली है , चचेरी , मौसेरी , फुफेरी सब की सब , बोलो चोदोगे न सब को , तेरे हाँ ना से क्या होता है। सब को चुदवाउंगी और सिर्फ बहनो को क्यों , माम्मी ने क्या बोला था।
सोचो ये बिना सीखी सिखाई है इसके साथ इतना मजा आ रहा है तो जो खेली खिलायी , पेली पिलायी , चुदी चुदाई होंगी उनके साथ कित्ता मजा आएगा। पहले बहनचोद फिर,… "
भांग का नशा हम तीनो पे जबरदस्त चढ़ा था।
और गुड्डी कि उंगलियां भी , कभी वो मेरे बॉल्स को छेड़ देतीं , तो कभी नितम्बो को सहला देतीं , दोनों को फैला देतीं।
और उधर रंजी ने ही अब चूसने कि स्पीड बढ़ा दी थी। उसके गाल किसी वैक्यूम क्लीनर से मुकाबला कर रहे थे , और साथ में उसकी लम्बी शरारती उंगलिया , कभी बॉल्स को छेड़तीं , तो कभी बॉल्स और पिछवाड़े के छेद के बीच में सहला देतीं। उसके होंठ अब पूरे लंड पे रगड़ रहे थे , जुबान नीचे से जोर जोर से चाट रही थी।
और उसकी इस चुसाई के जवाब में मैं भी जोर जोर से उसके मुंह में लंड पेल रहा था। कभी वो होंठ रगड़ते हुए पूरा लंड लेने कि कोशिश करती तो कभी मैं उसका सर पकड़ के पूरी तेजी से उसका मुंह चोदता।
गुड्डी की तरजनी अब मेरे नितम्बो कि दरार में रगड़ रही थी और साथ में गोल छेद में , पिछवाड़े के उसकी एक पोर घुसाने कि कोशिश कर रही थी।
" तेरे बहनो की तरह तेरे भी कोरी है न , कोई बात नहीं बस कुछ दिन कि बात है।
बस २५ मई को कोहबर में मम्मी और तेरी बाकी सासें इसका इलाज कर देंगी। पेल न पूरा , गुड्डी ने फिर उकसाया और अपनी बात शुरू कर दी। याद रखना मम्मी कि बात , पहले बहनचोद और फिर मादर,… "
गुड्डी की बात का असर हुआ या उसकी ऊँगली का , पता नहीं लेकिन मैंने रंजी का सर पकड़ के एक , फिर एक और जोरदार धक्का लगाया।
रंजी आलमोस्ट चोक कर रही थी लेकिन मैं रुका नहीं। पूरा ८ इंच अंदर पेल के ही माना जबतक मेरी बॉल्स उसके होंठ से नहीं रगड़ने लगे।
रंजी गों गों कर रही थी। उसके चेहरे पे हल्का सा पसीना भी आ रहा था। गाल एकदम फूला हुआ था। लेकिन मैं रगड़ते दरेरते , लंड सुपाड़े तक निकालता फिर बाल्स तक पेल देता। थोड़ी देर में उसे भी आदत पड गयी और वो भी साथ देने लगी।
मैं फूल स्पीड से उसका मुंह चोद रहा था।
रंजी फूल स्पीड में मेरा लंड चूस रही थी।
मुझे लग रहा था , कि मैं अब गया तब गया।
लेकिन तभी घंटी बजी।
और अबकी ये फोन की नहीं दरवाजे कि थी।
गुड्डी अपनी साडी , चोली ठीक करते बोली , भाभी।
रंजी ने बहुत उदास मन से मुझे देखा, जैसे कह रही हो सॉरी भैय्या। और लंड बाहर निकाल के पल भर में उसने भी अपने कपडे ठीक कर लिये.
मेरे भी मोबाइल पे तेजी से घंटी बज रही थी। मैं कपडे ठीक करते अपने कमरे में घुसा। कंप्यूटर पे भी मेसेज अलर्ट था।
मोबाइल मैंने खोला रीत कि दो मिस्ड काल्स और एक मेसेज , अर्जेंट।
कम्प्यूटर पे मेरे हैकर दोस्तों के दो मेसेज थे।
दरवाजा खुलने की आवाज के साथ भाभी , शीला भाभी के खिलखिलाने की आवाज और साथ में रंजी और गुड्डी की। और भैया की ,
" मैं ऊपर जा रहा हूँ तुम बाद में आ जाना। खाना तो खा ही चुके हैं। "
और अब नीचे खुला मैदान , भाभी , शीला भाभी गुड्डी और रंजी।
मैं बीच बीच में उनकी खिलखिलाहट सुन रहा था और एकदम खुल के हो रहे मजाक।
लेकिन मेरी आँखे रीत के मेसेज पे चिपकी थीं ,
मीनल खतरे में है। वाई के साथी का मर्डर , कालिया सस्पैकेटेड.
मेरे सामने बनारस का दृश्य घूम गया , जब कालिया ने पुलिस के भारी बंदोबस्त के बावजूद , जेड का सफाया कर दिया था।
तभी रीत का फोन आगया।
उनकी गाडी सूरत से निकल रही थी।
उसने पूरा किस्सा बताया कि कैसे वाई के साथी की लाश माही के किनारे पे मिली और उस का फ़ोटो भी पुलिस कमिशनर ने उन्हें भेजा था। जिस तरह से मर्डर हुआ था और मर्डर वेपन का इस्तेमाल हुआ था , उन्हें पक्का यकीन था की ये कालिया की ही कारगुजारी है।
क्योंकि यार्ड में रीत और मीनल दोनों थी , इसलिए उन्हें शक हुआ कि शायद मीनल और रीत दोनों को पहचान लिया गया होगा। रीत को तो करन के साथ अगले दिन मुम्बई के आपरेशन में रहना था , लेकिन मीनल पे पुलिस कमिशनर को लगा की खतरा ज्यादा है।
इसलिए रास्ते में एक सूनसान स्टेशन पे दो मिनट गाड़ी रोक के मीनल को उतार दिया गया है और उसे एक सेफ हाउस में रखा गया है , दो तीन दिन के लिए। वैसे भी एक बार मुम्बई का आप्रेशन हो गया तो खतरा बहुत कुछ ख़तम हो जाएगा।
रीत को मैंने बोला कि की मैंने रात में या कल सुबह उसे मुम्बई के बारे में एक डिटेल रिपोर्ट भेजूंगा और एन पी ( नो प्राबलम सर ) का कांटेक्ट ऐड्रेस भी।
रीत ने फोन रखा ही था कि मीनल का फोन आ गया।
वो हजीरा में ओ एन जी सी के रेस्ट हाउस में थी।
उसे ही पुलिस ने सेफ हॉउस बनाया था। मीनल ने बोला की वो बहुत आराम से है और चारो ओर सी आई एस एफ ( सेंटरल इंडस्ट्रीयल सिक्योरिटी फोर्स )के लोग हैं।
उसने वहाँ का लैंड लाइन नँबर भी बताया। मैंने उसे समझाया कि कोई चिंता ना करे और मैं उसे फोन करता रहूँगा।
बरामदे में से भाभी और रंजी कि छेड़खानी कि आवाजें आ रही थीं.दरवाजा थोडा खुला हुआ था इसलिए बाहर क्या हो रहा था , ये कुछ कुछ दिख भी भी रहा था।
" नहीं नहीं भाभी नहीं शाम को गीला नहीं सूखा , " रंजी भाभी को रोक रही थी।
" ननद रानी डलवाना तो पड़ेगा ही , गीला नहीं डलवाना चाहती तो सूखा ही सही " भाभी ने बोला और एक प्लेट से गुलाल उठा के पहले तो रंजी के गालों पे और फिर चोली के अंदर , रंग गुलाल तो बहाना था।
असली चीज तो ननद के जोबन का रस लेना था। रंजी कुछ कर भी नहीं सकती थी। पीछे से उसके हाथ शीला भाभी ने पकड़ रखे थे।
" अरे सुवह आती तो सारे कपडे फटते " गुड्डी ने छेड़ा।
" अरे सिर्फ कपडे क्यों बाकी चीजें भी तो फटतीं। " भाभी पूरे रंग में आ गयी थीं और उनके हाथ बिलो द बेल्ट होली खेल रहे थे।
रंजी छटपटा रही थी मचल रही थी , सिसक रही थी , लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.
मैंने अपना ध्यान फिर कंप्यूटर की और लगाया।
मेरे हैकर फ्रेंड्स के कई मेल थे।
मैंने पहले तो उन्हें धन्यवाद दिया।
आप्रेशन बड़ोदा कि कामयाबी में उनका भी बहुत हाथ था। चार घण्टे तक उन्होंने दुश्मन के सीमापार के कंट्रोल रूम को डिस्कनेक्ट कर रखा था। नार्मल फोन के अलावा वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल से भी वो अपने कंट्रोल के सम्पर्क में रहते ,
लेकिन उन्होंने इन्फोर्मेशन ओवरलोड कर के उनके सारे नेट वर्क क्रैश कर दिए थे। इसलिए ना तो वाई या उसका कोई सेकेण्ड इन कमांड कुछ सूचना भेज पाया और न वहाँ से कोई निर्देश अ पाया हेल्प ले पाया।
मैंने उन्हें कालिया के बारे में भी सूचना भेजी। और अगले दिन के मुम्बई के मुहीम के बारे में भी। उन्होंने भी मुम्बई के बारे काफी इन्फोर्मेशन भेजी थीं जो मैंने सरसरी तौर पे पढ़ के रीत को फारवर्ड कर दी।
मेरा दिमाग बार बार मीनल की ओर दौड़ रहा था , अच्छा फंसाया उसे मैंने।
लेकिन फिर मैंने ठन्डे दिमाग से सोचना शुरू किया , मगज अस्त्र का इस्तेमाल कर के.
मैं सोचता रहा ,
और फिर मुस्कराया।
मीनल सेफ है , बिलकुल सेफ , कम से कम कालिया से उसे कोई ख़तरा नहीं है।
पहली बात , कालिया दुनिया का सबसे हाइएस्ट पेड अस्सेन है , उसका इस्तेमाल नारमल आपरेशन या किलिंग के लिए नहीं हो सकता। उसका प्रयोग दुश्मन कट आउट के तौर पे कर रहा है। यानी अपने स्लीपर को ही साफ करने के लिए जिससे आपरेशन के बाद वो पकड़ा न जा सके। इसी लिए बनारस से जेड का मर्डर करवाया गया।
और उसमें वो कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते इसलिए कालिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बड़ोदा में भी उसके इंस्ट्रकशन यही रहे होंगे कि जब सारे ट्रेन बॉम्ब , रिफायनरी में पहुँच जाते तो उसके बाद बॉम्ब डिटोनेट करने के लिए किसी कि जरुरत नहीं थी। वो या तो पेट्रोलियम लोडिंग के बाद प्रेशर से डिटोनेट हो जाते या टाइमर डिवाइस से। इसलिए आखिरी रेक प्लेस हो जाने के बाद वाई का सफाया करने का प्लान होगा , इसलिए कालिया वहाँ था। रीत ,मीनल और करन कि चतुरायी से वो जिन्दा पकड़ा गया।
तो वाई पे निगाह रखने के लिए जिस आदमी को काम सौंपा गया था , कालिया ने उसी का सफाया कर दिया। क्योंकि पुलिस उसके पीछे पड़ी थी और उस से , विदेशी ताकत के लिंक का पता चल जाता। इस तरह से यहाँ भी कट आउट हटाने की तरह ही कालिया का इस्तेमाल हुआ।
और मीनल इसलिए कालिया से सेफ थी।
दूसरी बात , मेरे हैकर फ्रेंड्स से शाम चार से आठ था दुशमन के हेडक्वॉर्टस को साइबर विद्या से आइसोलेट कर रखा था। इसलिए वाई के उस साथी को मीनल और रीत के बारे में बताने का मौका ही नहीं मिल पाया होगा। क्योंकि आठ बजे के पहले ही कालिया ने उसका काम तमाम कर दिया था। मेरे विचार से आपरेशन फेल होने के बारे में उनके पास कोई भी सूचना नहीं पहुंच पायी होगी। ख़ास तौर से मीनल और रीत के रोल के बारे में।
तीसरी बात ये थी कि कालिया अब तक सिर्फ इसलिए नहीं पकड़ा जा पाया था कि वो अपना टारगेट ख़तम कर के पंद्रह बीस मिनट के अंदर शहर छोड़ देता है और कई बार देश भी।
बनारस में जेड के मर्डर के बाद वो नाव से निकल गया था और शंका ये थी कि वो फिर ट्रेन से बिहार और और फिर नेपाल चला गया। उसके आने जाने के बारे पे जो उसे पे करते हैं , उन्हें भी पता नहीं रहता। इसलिए ये सोचना कि मीनल जैसे लो प्रायर्टी टारगेट के लिए वो रिस्क लेगा गलत होगा।
कालिया अगर होगा भी तो मुम्बई में होगा जहाँ अगले दिन का हमला होना था। इसलिए ये फैसला एकदम सही था कि मीनल मुम्बई नहीं गयी।
चौथी बात ये थी कि दुश्मन अभी अपनी सारी ताकत मुम्बई में हमले के लिए लगाएगा , खासतौर पे बनारस और बड़ोदा फेल होने के बाद , बजाय बदला लेने के।
इसलिए मीनल सेफ थी। ऊपर से एक्स्ट्रा प्रिकॉशन के तौर पे उसे सेफ हाउस में रखा गया था। रीत ने बताया था की वो और करन मुम्बई का काम निपटा के एक दो दिन में मीनल के पास पहुँच जायेंगे और एक दिन उसके साथ रहेंगे।
वो रीत के भी डीस्ट्रेसिंग के लिए ठीक था। चौथे दिन वो बनारस पहुँच जायेगी , रंगपंचमी के दो दिन पहले। मुझे भी गुड्डी के साथ उसी दिन बनारस पहुंचना था। तो इसलिए ये टाइमिंग भी ठीक थी।
मैंने एक बार फिर कम्प्यूटर पे निगाह डाली , एक दो मेल और किये और रात भर के लिए उससे विदा ली। मैं कम्प्यूटर बंद ही कर रहा था कि बाहर से भाभी का बुलावा आया।
और बाहर जो मैं आया तो रंजी को देखता रह गया।
अबीर गुलाल में लिपी पुती वो और सेक्सी लग रही थी।
आलमोस्ट खुली चोली में उसके गोरे कबूतरों के पंख लाल हरे हो गए थे , यहाँ तक कि उन कबूतरों कि चोंचों को पे भाभी ने ख़ास तौर पे गाढ़ा लाल तो लगाया ही था , जम के खींचा और पिंच भी किया था।नतीजा ये था कि रंजी के मटर के दाने बराबर कड़े कड़े निपल दूर से साफ दिख रहे थे.
लेकिन भाभी ने ये नहीं देखा की मेरी निगाहें कैसे रंजी के गदराये , रंगे पुते , जोबन को सहला रही हैं।
एक तो उनकी ऊपर से ( भैया की ) सेकेण्ड काल आ गयी थी।
और दूसरे वो रंजी को छेड़ने में जुटी थीं
मुझसे कहने लगीं ,
" गुड्डी को मैं इसके साथ भेज रही हूँ। इत्ता मस्त माल अगर अकेले जाएगा तो कहीं होली के हुरियारे , बाँध के नीचे खींच के ले गए तो शर्तिया ९ महीने में तुम्हे मामा बना देंगे। अब या तो ये पिल खा के आती या फिर अपने पर्स में कंडोम ले के चलती , अगर इतनी खुजली मच रही है तो। चलो अब गुड्डी साथ जायेगी तो कुछ तो बच जायेगी। "
मतलब ये गुड्डी कि चाल थी या क्या पता रंजी गुड्डी दोनों की, कि आज कि रात वो साथ बिताएं।
भाभी ने फिर बोला , " मैं और तेरे भैया तो खाना खा के आये हैं। और गुड्डी तो रंजी के घर खायेगी। शीला भाभी तुम्हारे लिए कुछ गरम कर देंगी, गुड्डी ने बना के रखा है , मैं ऊपर चलती हूँ "
तो बात ये थी उन्हें ऊपर जाने कि जल्दी थी।
लेकिन जाने के पहले उन्हें जैसे कुछ याद आ गया।
"तेरे चिकने चेहरे का रंग तो पोंछ दूँ , वरना रास्ते में तेरे यार कैसे पहचानेंगे। "
भाभी बोली और इधर उधर टावल के लिए देखने लगी। फिर अंदर कमरे से जाके एक हैण्ड टावेल ले आयीं , और खुद ही पोंछने लगी।
रंजी बोली भी नहीं भाभी मैं ही पोछ देती हूँ तो भी वो बोली , ' चल अब तेरी हर काम खुद करने वाली उम्र नहीं रही , इत्ते यारो कि लाइन लगी रहती है मुझे सब मालूम है "
लेकिन हैण्ड टावेल हटते ही भाभी की शरारत साफ हो गयी।
रंजी के चेहरे पे जो उन्होंने गुलाल लगाया था , वो नारमल गुलाल नहीं था।
उसमें सिर्फ ऊपर गुलाल कि एक लेयर थी और अंदर एकदम पक्का रंग था।
इसलिए रंजी के चेहरे पे और उभारों पे जो लगा था वो पक्का सूखा रंग ही था। और अब जो उन्होंने टावेल से उसे साफ किया , वो अच्छी तरह पानी से भीगा था।
और जब उन्होंने रंजी के गालों पे रगड़ा तो , बस वो रंग गीला के और चेहरे पे लग गया। यहाँ तक कि उन्होंने उसका सारा बचा पानी , रंजी की चोली फैला के , निचोड़ दिया और जोर से चोली के ऊपर से ही जोबन रगड़ दिए और उसके उरोज भी एकदम लाल हरे रंगों से लिथड़ गए।
भाभी ने मुस्करा के रंजी के गाल पिंच किये और हैप्पी होली बोल के ऊपर चली गयी।
वहाँ से उनकी थर्ड काल आ गयी थी। सीढ़ी के ऊपर से ही उन्होंने मुझे और शीला भाभी को देखा और बोली ,
" तुम दोनों खाना खा लेना मैं चलती हूँ "
" अरे आप जल्दी ऊपर जाओ , , वहाँ भूखा शेर इन्तजार कर रहा है , हमारी चिंता मत करो , इसकी भूख मैं मिटा दूंगी। "
शीला भाभी ने हँसते , भाभी को चिढ़ाते कहा।
गुड्डी और रंजी भी मुंह दबा के हंस रही थीं।
भाभी , जल्दी जल्दी , धड़धड़ाती , सीढ़ी चढ़ के ऊपर चली गयीं।
गुड्डी और शीला भाभी किचेन की और मुड़ गयीं।
मैं अपने कमरे में चला आया और पीछे पीछे रंजी।
मैंने जैसे ही मुड़ के उसे देखा , उसका चेहरा बहुत उदास लग रहा था।
उसने तुरन्त मुझे जोर से बाहों में भींच लिया , मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए और बोली ,
" भैय्या , आई ऍम सो सॉरी। "
" क्या हुआ " मेरा एक हाथ उसके भारी भारी नितम्ब पे था और दूसरा उभारों पे और मैं उसे जोर से दबोचे हुए था।
" ये " रंजी का एक हाथ मेरे लिंग पे सीधे पहुँच गया।
" इसका मन नहीं भरा ना , बीच में छोड़ना पड़ा। पहले मैं बेवकूफों की तरह नखड़ा करती रही , फिर भाभी आ गयीं और अब घर जाने की जल्दी है , दो बार फोन आ गया है। तुम बहुत गुस्सा हो ना "
उदास हो के वो बोली
" अरे पगली , गुस्सा क्यों होउंगा , होता है कभी कभी। चल अगली बार नखड़ा मत करना अपने से इसे ले लेना " हंस के जोर से उसकी चूंची दबा के मैं बोला।
" भैय्या पक्का प्रामिस "हंस के जोर से मी लंड को दबाते मसलते वो बोली।
" लेकिन तू न अभी भी बच्ची है , ये वो बोल रही है , नाम क्यों नहीं लेती। "
मैंने उकसाया।
और सीधे मेरे लिप्स पे एक जोरदार किस्सी ले ली। और फिर लिंग पे हाथ से कस के दबा के बोली ,
" ओके भैय्या , अगली बार तुझे नहीं बोलना होगा , मैंने खुद तेरा ये लंड लुंगी और बिना मलायी निकाले नहीं छोड़ूंगी। लेकिन तेरा क्यों , अब तो ये मेरा लंड है , मैं इसे जहाँ चाहे वहाँ लूंगी। "
फिर कुछ हिचकिचा के बोली , " चूत में भी लूंगी और गाण्ड में भी ,… "
जवाब में मैंने खूब कस के चूंची दबाई और उस के गुलाबी रसीले होंठो को चूम लिया।
किस का जवाब रंजी ने किस से दिया और शहद मिली आवाज में बोली ,
" भैय्या , तुम दुनिया के सबसे अच्छे भैया हो." और अब रंजी का हाथ पजामें के अंदर था और वो खूब प्यार से लंड मुठिया रही थी। सुपाड़ा भी उसने खोल दिया था।
मेरे होंठ चोली खोल के रंजी के मीठे मीठे निपल चूस रहे थे।
एक मिनट रुक के उसके गाल काट के मैंने भी बोला " रंजी , तू दुनिया कि सबसे मीठी बहन। "
मैंने फिर निपल चूसना शुरू कर दिया और वो लंड जोर जोर से अपनी मुट्ठी में ले आगे पीछे कर रही थी।
मैं फिर बोला , " तू जानती है मेरा कितने दिन से मन कर रहा था तू मेरा ये , मेरा ,… लंड अपने हाथ में ले और।और मैं तुझे जोर जोर से हचक हचक के चोदूँ। "
शहद सी मीठी आवाज में बोली वो
" तो चोदो ना भैया , आगे से तेरा जब मन करे , जैसे मन करे जो मन करे , उस तरह से तुम मेरी ले लेना , बिना पूछे मुझसे। और अगर तुमने मुझसे पूछा न , तो मैं गुस्सा हो जाउंगी। हाँ. "
अब इससे ज्यादा क्या ग्रीन सिग्नल मिल सकता था।
ख़ुशी में मैंने रंजी के मस्त जोबन को कचकचा के काट लिया, और बोला
" समझ ले अब तेरी चूत भी फाडूंगा और गांड भी मारूंगा। "
" तो फाड़ो ना भइया , जल्दी मेरा भी बहुत मन करता है है " रंजी और कस के चिपकती बोली।
मेरा तो चलता तो मैं उसी समय रंजी कि निहुरा के चोद देता , लेकिन तबतक शीला भाभी और गुड्डी के क़दमों कि आहट सुनायी पड़ी और हम दोनों अलग हो गए।
शीला भाभी अपने कमरे की ओर चली गयीं और गुड्डी हम लोगों की ओर आ गयी।
" बहन भाई में चुम्मा चुम्मी हो गयी हो तो चलें " गुड्डी ने छेड़ा।
रंजी ने फिर मुझे एक बार बाँहों में भींच के चूम लिया।
" अरे तू बच्ची कि बच्ची रहेगी , असली जगह तो चूम , " गुड्डी ने छेड़ा।
और आगे रंजी को नहीं बोलना पड़ा ,उसने तन्नाया लंड पाजामे से निकाला और सीधे मुंह के अंदर।
वो चूस चुभला रही थी कि मैंने उसका सर पकड़ के सीधे लंड अंदर तक ठेल दिया।
" अगली बार नीचे वाले मुंह में जाएगा "
मैंने बोला और चूसते हुए उसने जोर से सर हिला के हामी भरी।
तब तक एक बार फिर हम दोनों अलग हो गए।
मैं , रंजी और गुड्डी को छोड़ने बाहर निकला लेकिन निगाहें मेरी रंजी के मटकते चूतड़ो से चिपकी थी और मेरे मन में बार बार चंदा भाभी कि बात गूँज रही थी
" अगर गद्दर जोबन , पतली कमर और भारी चूतड़ वाली कोई लौंडिया हो तो निहुरा के , उसकी गांड न मारना पाप है।
तब तक गुड्डी वापस मुड़ी और रंजी से बोली , यार तू स्कूटी निकाल मैं जरा पर्स भूल गयी हूँ ले के आती हूँ।
वो वापस मुड़ी , मुझे भी इशारा किया और मैं उसके पीछे पीछे.
क्या भूल गयी थी , मैंने गुड्डी से पूछा।
मुस्कराकर मुझे बाहों में ले के वो बोली , एक बात और एक काम।
फिर मुझे किस करके गुड्डी ने कहा बात ये है कि आज तुझे मेरी कसम , शीला भाभी कि खूब रगड़ रगड़ के हचक के करना , मेरे नाम का सवाल है। मेरा नाम मत डुबोना समझे और उन्हें गाभिन जरुर करना। पंद्रह दिन के अंदर अच्छी खबर आनी चाहिए। एक बात तुम्हे समझानी थी , भाभी ही असली चाभी हैं।
सिर्फ मेरे घर में ही नहीं पूरे गाँव में उनकी चलती है और अगर एक बार तूने उनको फिट कर लिया ना तो समझ लो , चाहे मेरे मायकेवालिया हों या तेरी , सबका आगे पीछे दोनों छेद पक्का। "
और जबतक मैं कोई सवाल करता , वो अलमारी की ओर मुड़ी , चंदा भाभी के दिए हुए हर्बल वियाग्रा वाले लड्डू निकाले एक नहीं दो , और मेरे मुंह में डाल दिए। और अब तो मेरे बोलने का सवाल नहीं था। मुंह लड्डू से भरा था।
वही बोली ,
" यही काम मैं भूल रही थी। डबल डोज इस लिए कि सिर्फ उनकी लेना नहीं बल्कि गाभिन भी करना है। और मैं इसलिए रंजी के साथ जा रही हूँ की फिर तुम निश्चिंत हो के रात भर उनकी लो। दूसरे इस छिनार तेरी बहन कम मॉल कि मुझे तकाही भी करनी है।
इसकी चूत में इत्ते चींटे काट रहे हैं तो कहीं किसी और से अपनी सील न तुड़वा ले। अब तो उसकी सील टूटेगी तो तेरे मूसल से और वो भी इतनी जबरदस्त कि उसकी चीख , पूरे मुहल्ले में सुनायी देनी चाहिए की उसकी फट गयी। फिर तो उसके बाद देखना तुम्हारी किस किस मायकेवालियों का नंबर लगवाती हूँ "
बाहर से रंजी की आवाज आयी और गुड्डी एक बार फिर जंगबहादुर को दबा के , रंजी के साथ स्कूटी पे निकल गयी। मैं और शीला भाभी दोनों को देख रहे थे।
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