FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--19
अब आगे....
मैं: नेहा... बेटा मेरे पास आओ| आप मम्मी से घबरा क्यों रहे हो?
नेहा ने कुछ नहीं किया बस अपनी मम्मी से नजरें चुरा के मेरे गले लग गई| भाभी का दिल भी पसीज गया पर उनके बार-बार बुलाने पर भी वो डर के मारे उनके पास नहीं जा रही थी| बस मेरे से चिपकी हुई थी...
मैं: बेटा अच्छा मेरी बात सुनो... मम्मी ने आपको गलती से डाँटा था.. देखो अब वो माफ़ी भी मांग रहीं हैं .. देखो तो एक बार|
भाभी ने अपने कान पकडे हुए थे ... परन्तु नेहा उनकी ओर देखने से भी कतरा रही थी....
भाभी: अच्छा बेटा लो मैं उठक-बैठक करती हूँ|
मैं: नेहा.. देखो आपकी मम्मी अभी कितना कमजोर हैं फिर भी अपनी बेटी कि ख़ुशी के लिए उठक-बैठक करने के लिए तैयार हैं| आप यही चाहते हो???
नेहा थी तो छोटी पर इतना तो समझती थी कि उसकी मम्मी कि तबियत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है... और ऐसी हालत में वो उठक-बैठक नहीं कर सकती| इसीलिए उसने भाभी कि ओर देखा...
मैं: बेटा अगर मैं आपको कभी डाँट दूँगा तो आप मुझसे भी बात नहीं करोगे?
नेहा ने ना में सर हिलाया ....
मैं: चलो अब अपनी मम्मी को माफ़ कर दो.. आगे से वो आपको कभी नहीं डांटेंगी| अगर इन्होने कभी आपको डाँटा तो मुझे बताना मैं इनको डाँटूंगा... ठीक है?
बड़ी मुश्किल से नेहा भाभी कि गोद में गई और भाभी उसे लाड-दुलार करने लगीं| उसके माथे और गालों को चूमने लगीं... तब जा के कहीं नेहा मानी| सच मित्रों छोटे बच्चों को मानना आसान काम नहीं!!!
तकरीबन आठ बजे होंगे.. मैंने भाभी को क्रोसिन कि गोली दी... उनका माथा स्पर्श किया तो वो दोपहर जैसा तप नहीं रहा था परन्तु बुखार अवश्य था| मुझे एक चिंता हो रही थी कि रात में भाभी को अगर बाथरूम जाना होगा तो वो कैसे जाएँगी? बिना सहारे अगर वो गिर पड़ीं तो? मैं उनके पास ही सोना चाहता था ताकि जर्रूरत पड़ने पे उन्हें बाथरूम तक लेजा सकूँ परन्तु मेरा ऐसा करना सब कि आँखों में खटकता .... इसलिए मैंने भाभी से जिद्द कि की जब तक उन्हें नींद नहीं आ जाती मैं वहीँ बैठूंगा... जब की मेरा प्लान था की आज रात जाग के भाभी की पहरेदारी करनी है| ताकि जब भी भाभी को जरुरत पड़े मैं उनकी देख-भाल कर सकूँ| भाभी को लेटा के मैं पास पड़ी चारपाई पर बैठ गया... नेहा मेरी ही गोद में सर रख के सो गई| पर भाभी को अभी तक नींद नहीं आई थी...
मैं: क्या हुआ भाभी नींद नहीं आ रही?
भाभी: हाँ
मैं: रुको मुझे पता है की आपको नींद कैसे आएगी|
मैं धीरे से उठा और नेहा का सर उठा के तकिये पे रखा और भाभी के माथे पे झुक के उनके माथे को चूमा| जैसे ही मैंने उनके माथे को चूमा भाभी ने अपनी आँखें बंद कर लीं| एक पल के लिए तो मन किया की भाभी के गुलाबी होंठो को चुम लूँ पर ऐसा करना उस समय मुझे उचित नहीं लगा| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और नेहका सर अपने गोद में रख लिया और बैठे-बैठे मुझे भी नींद सताने लगी थी| भाभी को नींद आ चुकी थी... और आज मैं पहली बार उन्हें सोते हुए देख रहा था| उनके चेहरे पे एक अजीब सी मुस्कान और शान्ति के भाव थे| उन्हें इस तरह सोता हुआ देख के मन बहुत प्रसन्न हो रहा था| करीब दस बजे होंगे की अजय भैया मुझे ढूंढते हुए अन्दर आये... मैंने जान बुझ कर दरवाजा खुला छोड़ा था ताकि किसी को संदेह न हो| जैसे ही मैंने भैया को देखा मैंने उन्हें इशारे से अपने मुख पे ऊँगली रख के चुप कराया| वो मेरे पास आये और मेरे कान में खुसफुसाये:
अजय भैया: मनु भैया... आप सोये नहीं अभी तक?
मैं: भैया आपको तो पता हिअ की भौजी की तबियत ठीक नहीं है.. उनको बुखार अभी भी है! शरीर कमजोर है .. और अगर रात में उन्हें किसी चीज की जरुरत होगी तो वो किसे कहेंगी? इसलिए मैं आजरात पहरेदारी पे हूँ!!!
अजय भैया: आप कहो तो मैं बड़े भैया को कह देता हूँ वो यहाँ सो जायेंगे|
मैं: भैया आज दोपहर को ही भैया भौजी पे भड़क उठे थे.. अगर रात में भौजी ने उन्हें उठाया तो वो आग बबूला होक उनको और डांटेंगे|
अजय भैया: मैं आपकी भाभी को कह देता हूँ वो यहाँ ओ जाएगी|
मैं: नहीं भैया वो भी दिन भर के काम से थकी होंगी.. आप चिंता मत करो मुझे वैसे भी नींद नहीं आ रही| (मैंने उनसे झूठ बोला|) आप सो जाओ...
किसी तरह अजय भैया को समझा-बुझा के भेजा...कमरे की रौशनी बुझाई... शुक्र था की भाभी जाएगी नहीं थी वरना वो मुझे जगा हुआ देख के मुझपे भड़क जाती| जब भी भाभी करवट लेटी तो चारपाई की आवाज से मैं जाग जाता और अपनी तसल्ली करता की वो ठीक तो हैं| रात के डेढ़ बजे... मुझे नींद का झोंक आ रहा था की तभ मुझे हलचल होती हुई महसूस हुई| कमरे में चाँद को थोड़ा बहुत प्रकाश आ रहा था ... मैंने देखा की भाभी काँप रही हैं|
मैं तुरंत उनके पास लपका:
मैं: क्या हुआ भौजी?
भाभी: मानु.. तुम? यहाँ क्या कर रहे हो? सोये नहीं अभी तक?
मैं: मुझे लगा की आप को शायद किसी चीज की जरूररत पड़े इसलिए मैं यहीं बैठा था|
भाभी: तुम तब से यहीं बैठे हो? हे भगवान !!! जाओ जा के सो जाओ...
मैं: मेरी बात छोडो... आपका शरीर काँप रहा है|
जब मैंने उन्हें छुआ तो मैं दंग रह गया| उनका शरीर आग की तरह जल रहा था... बुखार फिर से बढ़ गया था|
मैं: भौजी आपको फिर से बुखार चढ़ गया है... रुको मई आपके लिए चादर लता हूँ|
मैंने पास पड़ी एक साफ़ चादर उठाई और भाभी को ओढ़ा दी... उनका शरीर अब भी काँप रहा था .. मैं बाहर गया और अपनी चारपाई पे बिछी हुई चादरें भी उठा लाया और सब भाभी को ओढ़ा दी| मुझे याद आय की भाभी को क्रोसिन दिए करीबन पाँच घंटे हो गए हैं.. और अब मुझे उन्हें दूसरा डोज देना है| मैं बड़े घर की ओर भागा पर वहां ताला लगा हुआ था.. मैं वापस बड़की अम्मा (बड़ी चाची) के पास आया और उन्हें धीरे से जगाया ...
"अम्मा... भौजी को बुखार चढ़ गया है... उनका बदन भट्टी की तरह तप रहा है| आप मुझे बड़े घर की चाबी दे दो मैं उन्हें क्रोसिन की गोली खिला देता हूँ तो भुखार काबू में आ जायेगा|"
मेरी बात सुन बड़की अम्मा जल्दी से उठीं और मुझे चाबी दी.. मैं बड़े घर की ओर भागा और जल्दी से क्रोसिन ले के भाभी के पास आया| अम्मा भाभी के सर सहला रहीं थी... भाभी को सहारा दे के उठाया और उन्हें गोली दी| भाभी के शरीर में बिलकुल जान नहीं लग रही थी| वो फिर से लेट गईं .. उनका शरीर अब भी थर-थरा रहा था| डर के मारे मेरी हालत खराब थी.. मन में बार-बार बुरे ख़याल आ रहे थे| अम्मा ने मुझे जा के सोने के लिए कहा:
अम्मा: मुन्ना तुम जा की सो जाओ.. दिन भर के थके हुए हो|
मैं: नहीं अम्मा ... मुझे नींद नहीं आ रही| आप सो जाओ मैं यहीं बैठता हूँ|
अम्मा: मुन्ना देखो मैं जानती हूँ की तुम्हें अपनी भाभी की बहुत चिंता है ... पर तुम आराम करो मैं हूँ ना|
मैं: अम्मा आप सो जाओ .. मेरी नींद तो उड़ गई| अगर जरूररत पड़ी तो मैं आपको उठा दूँगा|
मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था ... मैंने बहुत जोर लगा के अम्मा को वापस सोने के लिए भेज ही दिया| भाभी अब भी कप-कपा रही थी... मुझे एक बात सूझी की क्यों न मैं भाभी को अपने शरीर से गर्मी दूँ| इससे पहले की आप कुछ गलत सोचें मैं आप सभी को कुछ बताना चाहता हूँ:
बात मेरे जन्म से पहले की है... दरअसल जब मैं माँ के पेट में था तब मेरी माँ को रक्तचाप अर्थात BP की समस्या थी| डॉक्टर ने मेरी माँ को नमक और चावल खाने से मन किया था और साथ ही कुछ दवाइंया भी लिखी| मेरे पिताजी की लापरवाही की वजह से माँ ने न तो समय पे दवाइयाँ ली और न ही डॉक्टर द्वारा बताये परहेजों पे ध्यान दिया था| जिसके परिणाम स्वरुप जब मैं पैदा हुआ तो शारीरिक रूप से कमजोर था तथा मेरे शरीर का तापमान सामान्य बच्चों के मुकाबले अधिक था| इस कारन मुझे गर्मी अधिक लगती है परन्तु सर्दियों में मेरा शरीर मुझे अंदर से गर्म रखता है|
जब भाभी की कंप-काँपी बंद नहीं हुई तो मुझे अपने शरीर से भाभी के शरीर को गर्मी देना ठीक लगा| मैंने ज्यादा देर न करते हुए अपना कुरता उतार और भाभी की बगल में लेट गया| मैंने भाभी की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ सीधा फैला दिया| भाभी ने मेरे बाएं हाथ को अपना तकिया समझ उसपे अपना सर रख दिया| उनका बयाना हाथ मेरी बगल में आ गया था और मैंने भाभी को अपने आगोश में ले लिया| मैंने भाभी को अपने से कास के गले लगा लिया था... उनका शरीर का तापमान बहुत अधिक लग रहा था| मुझे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने मुझे एक दम गर्म सॉना में लेटा दिया| इस प्रकार साथ चिपके होने के बावजूद भी मेरे अंदर वासना नहीं भड़की थी... रह-रह कर मुझे भाभी की चिंता हो रही थी| मैं कामना कर रहा था की अँधेरी काली रात जल दी ढल जाए और सुबह होते ही मैं भाभी को डॉक्टर के ले जाऊं| पर ये रात थी की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी|
करीबन एक घंटा बीता हुए मुझे महसूस हुआ की भाभी की कंप-काँपी बंद हो चुकी थी... उनके शरीर का तापमान भी काम लग रहा था| लग रहा था की क्रोसिन ने अपना असर दिखा दिया था... मैं धीरे से भाभी से अलग हुआ और अपना कुरता वापस पहन के नेहा की चारपाई पे बैठ गया| घडी देखि तो सुबह के साढ़े तीन बजे थे.... मैं उठा और अपना मुंह धोया... नींद अब मुझ पे बहुत जोर से हावी होने लगी थे| आजतक कभी ऐसे नहीं हुआ था की मुझे किसी भी वजह से साड़ी रात जागना पड़े! जब मैं वापस आया तो देखा भाभी उठ के बैठी हुई थीं...मैं तुरंत उनके पास पहुंचा और उनसे तबियत के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की उन्हें अब कुछ आराम है पर उन्हें प्यास लगी थी... मैंने उन्हें अपने हाथ से पानी पिलाया|
भाभी: मानु तुम मेरी वजह से साड़ी रात नहीं सोये|
मैं: भौजी... आप ये सब बातें छोडो ... और आप लेट जाओ| सुबह मैं आपको डॉक्टर के ले जाऊँगा|
भाभी: मानु... मुझे बाथरूम जाना है|
मैं: ठीक है मैं आपको ले चलता हूँ....
और मैं उन्हें सहारा दे के स्नानघर तक ले गया.... उनका बुखार अवश्य कम था, परन्तु शरीर बहुत कमजोर हो गया था| अब दिक्कत ये थी की मैं भाभी को स्नान घर में ऐसे ही नहीं छोड़ सकता था, ना ही मैं किसी को बुला सकता था| मुझे एक तरकीब सूझी.... मैंने भाभी से कहा की आप मेरा हाथ पकड़ो और उसका सहारा लेते हुए बैठ जाओ| जैसे ही भाभी बैठी मैंने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ... मैं सोच रहा था की अचानक मुझे में इतनी संवेदनशीलता कैसे आ गई| जब भाभी फ्री हुईं तो मैंने उन्हें सहारे से फिर खड़ा किया| उनके लिए चलना दूभर था इसलिए मैंने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया जैसे किसी "रा वन" फिल्म में शाहरुख़ खान ने करीना को उठाया हुआ था| मैंने भाभी को वापस उनके बिस्तर पे लिटाया ओर चादरें ओढ़ा दीं|
मैं वहीँ बैठा सुबह होने का इन्तेजार कर रहा था... बबर-बार घडी देखता की कब सुबह के नौ बजे और कब मैं भाभी को डॉक्टर के पास ले जाऊँ| टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक....टिक-टॉक आखिर सुबह के सात बज गए| घर में सभी उठ चुके थे... नेहा भी आँख मलते-मलते उठी और मुझे गुड मॉर्निंग पप्पी देके बहार चली गई| माँ को जब रात की बात अम्मा से पता चलीं तो वो भी भाभी का हाल-चाल पूछने आईं| भाभी अब भी सो रहीं थीं और सच कहूँ तो बहुत प्यारी लग रही थी!!!
माँ ने इशारे से मुझे बहार बुलाया... मैं बहार आया और माँ को सारा हाल सुनाया| माँ का कहना था की बीटा तू मुझे उठा देता मैं यहाँ सो जाती और तेरी भौजी का ध्यान रख लेती| मैंने माँ को समझाया की आप और पिताजी सबसे ज्यादा थके थे ... मैं तो गर्म खून हूँ... इतनी जल्दी नहीं थकता और वैसे भी मैं दिन में सो लूंगा तो मेरी नींद पूरी हो जाएगी| खेर मैंने माँ को अंदर भाभी के पास बैठने को कहा और मैं पिताजी को ढूंढने लगा| पिताजी खेत से आ रहे थे... भाभी की बिमारी और मेरा साड़ी रात जागने की बात घर-भर में फ़ैल चुकी थी| पिताजी ने हाथ धोया और फिर मुझे आशीर्वाद देते हुए भाभी के बारे में पूछा, तभी वहां बड़के दादा भी आ गए|
मैं: पिताजी, भौजी की तबियत अभी तो ठीक लग रही है परन्तु रात में उन्हें बुखार फिर चढ़ गया था| मेरा सुझाव है की हमें भाभी को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए|
बड़के दादा: मुन्ना पर चन्दर तो अभी-अभी अजय को साथ ले के शहर निकल गया वो तो शाम तक ही आएगा|
मैं: पिताजी आप ऐसा करो की बैलगाड़ी वाले को बुला लो मैं, भौजी और आप डॉक्टर के चले-चलते हैं| उनका डॉक्टर के पास जाना जर्रुरी है|
पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी जा के बैलगाड़ी वाले को बुलाता हूँ तब तक तुम तैयार हो जाओ|
इधर पिताजी बैलगाड़ी वाले को बुलाने गए और उधर मैंने भाग कर अपने बाल बनाये और रात वाले कपडे ही पहन के भाभी को जगाने आ गया|
मैं: भौजी.. उठो... बैलगाड़ी आने वाली है मैं आपको डॉक्टर के पास ले जा रहा हूँ|
भाभी उठ तो गईं पर उनके शरीर में ताकत नहीं थी.. और डॉक्टर का नाम सुन के वो ना-नुकुर करने लगीं| मेरे ज्यादा जोर देने पे भाभी मान गई ... बैलगाड़ी वाला आ चूका था परन्तु भाभी को चला के ले जाना बहुत मुश्किल काम था|मैंने एक बार फिर भाभी को अपनी गोद में उठाया और बैलगाड़ी में लाके बैठा दिया| जब मैं भाभी को गोद में बहार लाया तो सरे घर वाले हैरान थे... और खुसुर-पुसर कर रहे थे| मुझे उनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं थी| भाभी बैलगाड़ी अपना एक हाथ का घूँघट पकडे जैसे-तैसे बैलगाड़ी में बैठ गईं| पिताजी आगे बैलगाड़ी वाले के साथ बैठ गए और मैं बीच में भाभी का हाथ पकडे हुए बैठ गया| शरीर में कमजोरी के कारन भाभी के लिए बैठना मुश्किल था ऐसे में मैंने भाभी को अपनी गोद में सर रख के लेटने को कहा| करीबन एक घंटे तक हिचकोले खाने के बाद हम डॉक्टर के पास पहुंचे|
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मैं: बेटा अच्छा मेरी बात सुनो... मम्मी ने आपको गलती से डाँटा था.. देखो अब वो माफ़ी भी मांग रहीं हैं .. देखो तो एक बार|
भाभी ने अपने कान पकडे हुए थे ... परन्तु नेहा उनकी ओर देखने से भी कतरा रही थी....
भाभी: अच्छा बेटा लो मैं उठक-बैठक करती हूँ|
मैं: नेहा.. देखो आपकी मम्मी अभी कितना कमजोर हैं फिर भी अपनी बेटी कि ख़ुशी के लिए उठक-बैठक करने के लिए तैयार हैं| आप यही चाहते हो???
नेहा थी तो छोटी पर इतना तो समझती थी कि उसकी मम्मी कि तबियत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है... और ऐसी हालत में वो उठक-बैठक नहीं कर सकती| इसीलिए उसने भाभी कि ओर देखा...
मैं: बेटा अगर मैं आपको कभी डाँट दूँगा तो आप मुझसे भी बात नहीं करोगे?
नेहा ने ना में सर हिलाया ....
मैं: चलो अब अपनी मम्मी को माफ़ कर दो.. आगे से वो आपको कभी नहीं डांटेंगी| अगर इन्होने कभी आपको डाँटा तो मुझे बताना मैं इनको डाँटूंगा... ठीक है?
बड़ी मुश्किल से नेहा भाभी कि गोद में गई और भाभी उसे लाड-दुलार करने लगीं| उसके माथे और गालों को चूमने लगीं... तब जा के कहीं नेहा मानी| सच मित्रों छोटे बच्चों को मानना आसान काम नहीं!!!
तकरीबन आठ बजे होंगे.. मैंने भाभी को क्रोसिन कि गोली दी... उनका माथा स्पर्श किया तो वो दोपहर जैसा तप नहीं रहा था परन्तु बुखार अवश्य था| मुझे एक चिंता हो रही थी कि रात में भाभी को अगर बाथरूम जाना होगा तो वो कैसे जाएँगी? बिना सहारे अगर वो गिर पड़ीं तो? मैं उनके पास ही सोना चाहता था ताकि जर्रूरत पड़ने पे उन्हें बाथरूम तक लेजा सकूँ परन्तु मेरा ऐसा करना सब कि आँखों में खटकता .... इसलिए मैंने भाभी से जिद्द कि की जब तक उन्हें नींद नहीं आ जाती मैं वहीँ बैठूंगा... जब की मेरा प्लान था की आज रात जाग के भाभी की पहरेदारी करनी है| ताकि जब भी भाभी को जरुरत पड़े मैं उनकी देख-भाल कर सकूँ| भाभी को लेटा के मैं पास पड़ी चारपाई पर बैठ गया... नेहा मेरी ही गोद में सर रख के सो गई| पर भाभी को अभी तक नींद नहीं आई थी...
मैं: क्या हुआ भाभी नींद नहीं आ रही?
भाभी: हाँ
मैं: रुको मुझे पता है की आपको नींद कैसे आएगी|
मैं धीरे से उठा और नेहा का सर उठा के तकिये पे रखा और भाभी के माथे पे झुक के उनके माथे को चूमा| जैसे ही मैंने उनके माथे को चूमा भाभी ने अपनी आँखें बंद कर लीं| एक पल के लिए तो मन किया की भाभी के गुलाबी होंठो को चुम लूँ पर ऐसा करना उस समय मुझे उचित नहीं लगा| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और नेहका सर अपने गोद में रख लिया और बैठे-बैठे मुझे भी नींद सताने लगी थी| भाभी को नींद आ चुकी थी... और आज मैं पहली बार उन्हें सोते हुए देख रहा था| उनके चेहरे पे एक अजीब सी मुस्कान और शान्ति के भाव थे| उन्हें इस तरह सोता हुआ देख के मन बहुत प्रसन्न हो रहा था| करीब दस बजे होंगे की अजय भैया मुझे ढूंढते हुए अन्दर आये... मैंने जान बुझ कर दरवाजा खुला छोड़ा था ताकि किसी को संदेह न हो| जैसे ही मैंने भैया को देखा मैंने उन्हें इशारे से अपने मुख पे ऊँगली रख के चुप कराया| वो मेरे पास आये और मेरे कान में खुसफुसाये:
अजय भैया: मनु भैया... आप सोये नहीं अभी तक?
मैं: भैया आपको तो पता हिअ की भौजी की तबियत ठीक नहीं है.. उनको बुखार अभी भी है! शरीर कमजोर है .. और अगर रात में उन्हें किसी चीज की जरुरत होगी तो वो किसे कहेंगी? इसलिए मैं आजरात पहरेदारी पे हूँ!!!
अजय भैया: आप कहो तो मैं बड़े भैया को कह देता हूँ वो यहाँ सो जायेंगे|
मैं: भैया आज दोपहर को ही भैया भौजी पे भड़क उठे थे.. अगर रात में भौजी ने उन्हें उठाया तो वो आग बबूला होक उनको और डांटेंगे|
अजय भैया: मैं आपकी भाभी को कह देता हूँ वो यहाँ ओ जाएगी|
मैं: नहीं भैया वो भी दिन भर के काम से थकी होंगी.. आप चिंता मत करो मुझे वैसे भी नींद नहीं आ रही| (मैंने उनसे झूठ बोला|) आप सो जाओ...
किसी तरह अजय भैया को समझा-बुझा के भेजा...कमरे की रौशनी बुझाई... शुक्र था की भाभी जाएगी नहीं थी वरना वो मुझे जगा हुआ देख के मुझपे भड़क जाती| जब भी भाभी करवट लेटी तो चारपाई की आवाज से मैं जाग जाता और अपनी तसल्ली करता की वो ठीक तो हैं| रात के डेढ़ बजे... मुझे नींद का झोंक आ रहा था की तभ मुझे हलचल होती हुई महसूस हुई| कमरे में चाँद को थोड़ा बहुत प्रकाश आ रहा था ... मैंने देखा की भाभी काँप रही हैं|
मैं तुरंत उनके पास लपका:
मैं: क्या हुआ भौजी?
भाभी: मानु.. तुम? यहाँ क्या कर रहे हो? सोये नहीं अभी तक?
मैं: मुझे लगा की आप को शायद किसी चीज की जरूररत पड़े इसलिए मैं यहीं बैठा था|
भाभी: तुम तब से यहीं बैठे हो? हे भगवान !!! जाओ जा के सो जाओ...
मैं: मेरी बात छोडो... आपका शरीर काँप रहा है|
जब मैंने उन्हें छुआ तो मैं दंग रह गया| उनका शरीर आग की तरह जल रहा था... बुखार फिर से बढ़ गया था|
मैं: भौजी आपको फिर से बुखार चढ़ गया है... रुको मई आपके लिए चादर लता हूँ|
मैंने पास पड़ी एक साफ़ चादर उठाई और भाभी को ओढ़ा दी... उनका शरीर अब भी काँप रहा था .. मैं बाहर गया और अपनी चारपाई पे बिछी हुई चादरें भी उठा लाया और सब भाभी को ओढ़ा दी| मुझे याद आय की भाभी को क्रोसिन दिए करीबन पाँच घंटे हो गए हैं.. और अब मुझे उन्हें दूसरा डोज देना है| मैं बड़े घर की ओर भागा पर वहां ताला लगा हुआ था.. मैं वापस बड़की अम्मा (बड़ी चाची) के पास आया और उन्हें धीरे से जगाया ...
"अम्मा... भौजी को बुखार चढ़ गया है... उनका बदन भट्टी की तरह तप रहा है| आप मुझे बड़े घर की चाबी दे दो मैं उन्हें क्रोसिन की गोली खिला देता हूँ तो भुखार काबू में आ जायेगा|"
मेरी बात सुन बड़की अम्मा जल्दी से उठीं और मुझे चाबी दी.. मैं बड़े घर की ओर भागा और जल्दी से क्रोसिन ले के भाभी के पास आया| अम्मा भाभी के सर सहला रहीं थी... भाभी को सहारा दे के उठाया और उन्हें गोली दी| भाभी के शरीर में बिलकुल जान नहीं लग रही थी| वो फिर से लेट गईं .. उनका शरीर अब भी थर-थरा रहा था| डर के मारे मेरी हालत खराब थी.. मन में बार-बार बुरे ख़याल आ रहे थे| अम्मा ने मुझे जा के सोने के लिए कहा:
अम्मा: मुन्ना तुम जा की सो जाओ.. दिन भर के थके हुए हो|
मैं: नहीं अम्मा ... मुझे नींद नहीं आ रही| आप सो जाओ मैं यहीं बैठता हूँ|
अम्मा: मुन्ना देखो मैं जानती हूँ की तुम्हें अपनी भाभी की बहुत चिंता है ... पर तुम आराम करो मैं हूँ ना|
मैं: अम्मा आप सो जाओ .. मेरी नींद तो उड़ गई| अगर जरूररत पड़ी तो मैं आपको उठा दूँगा|
मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था ... मैंने बहुत जोर लगा के अम्मा को वापस सोने के लिए भेज ही दिया| भाभी अब भी कप-कपा रही थी... मुझे एक बात सूझी की क्यों न मैं भाभी को अपने शरीर से गर्मी दूँ| इससे पहले की आप कुछ गलत सोचें मैं आप सभी को कुछ बताना चाहता हूँ:
बात मेरे जन्म से पहले की है... दरअसल जब मैं माँ के पेट में था तब मेरी माँ को रक्तचाप अर्थात BP की समस्या थी| डॉक्टर ने मेरी माँ को नमक और चावल खाने से मन किया था और साथ ही कुछ दवाइंया भी लिखी| मेरे पिताजी की लापरवाही की वजह से माँ ने न तो समय पे दवाइयाँ ली और न ही डॉक्टर द्वारा बताये परहेजों पे ध्यान दिया था| जिसके परिणाम स्वरुप जब मैं पैदा हुआ तो शारीरिक रूप से कमजोर था तथा मेरे शरीर का तापमान सामान्य बच्चों के मुकाबले अधिक था| इस कारन मुझे गर्मी अधिक लगती है परन्तु सर्दियों में मेरा शरीर मुझे अंदर से गर्म रखता है|
जब भाभी की कंप-काँपी बंद नहीं हुई तो मुझे अपने शरीर से भाभी के शरीर को गर्मी देना ठीक लगा| मैंने ज्यादा देर न करते हुए अपना कुरता उतार और भाभी की बगल में लेट गया| मैंने भाभी की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ सीधा फैला दिया| भाभी ने मेरे बाएं हाथ को अपना तकिया समझ उसपे अपना सर रख दिया| उनका बयाना हाथ मेरी बगल में आ गया था और मैंने भाभी को अपने आगोश में ले लिया| मैंने भाभी को अपने से कास के गले लगा लिया था... उनका शरीर का तापमान बहुत अधिक लग रहा था| मुझे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने मुझे एक दम गर्म सॉना में लेटा दिया| इस प्रकार साथ चिपके होने के बावजूद भी मेरे अंदर वासना नहीं भड़की थी... रह-रह कर मुझे भाभी की चिंता हो रही थी| मैं कामना कर रहा था की अँधेरी काली रात जल दी ढल जाए और सुबह होते ही मैं भाभी को डॉक्टर के ले जाऊं| पर ये रात थी की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी|
करीबन एक घंटा बीता हुए मुझे महसूस हुआ की भाभी की कंप-काँपी बंद हो चुकी थी... उनके शरीर का तापमान भी काम लग रहा था| लग रहा था की क्रोसिन ने अपना असर दिखा दिया था... मैं धीरे से भाभी से अलग हुआ और अपना कुरता वापस पहन के नेहा की चारपाई पे बैठ गया| घडी देखि तो सुबह के साढ़े तीन बजे थे.... मैं उठा और अपना मुंह धोया... नींद अब मुझ पे बहुत जोर से हावी होने लगी थे| आजतक कभी ऐसे नहीं हुआ था की मुझे किसी भी वजह से साड़ी रात जागना पड़े! जब मैं वापस आया तो देखा भाभी उठ के बैठी हुई थीं...मैं तुरंत उनके पास पहुंचा और उनसे तबियत के बारे में पूछने लगा| उन्होंने बताया की उन्हें अब कुछ आराम है पर उन्हें प्यास लगी थी... मैंने उन्हें अपने हाथ से पानी पिलाया|
भाभी: मानु तुम मेरी वजह से साड़ी रात नहीं सोये|
मैं: भौजी... आप ये सब बातें छोडो ... और आप लेट जाओ| सुबह मैं आपको डॉक्टर के ले जाऊँगा|
भाभी: मानु... मुझे बाथरूम जाना है|
मैं: ठीक है मैं आपको ले चलता हूँ....
और मैं उन्हें सहारा दे के स्नानघर तक ले गया.... उनका बुखार अवश्य कम था, परन्तु शरीर बहुत कमजोर हो गया था| अब दिक्कत ये थी की मैं भाभी को स्नान घर में ऐसे ही नहीं छोड़ सकता था, ना ही मैं किसी को बुला सकता था| मुझे एक तरकीब सूझी.... मैंने भाभी से कहा की आप मेरा हाथ पकड़ो और उसका सहारा लेते हुए बैठ जाओ| जैसे ही भाभी बैठी मैंने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ... मैं सोच रहा था की अचानक मुझे में इतनी संवेदनशीलता कैसे आ गई| जब भाभी फ्री हुईं तो मैंने उन्हें सहारे से फिर खड़ा किया| उनके लिए चलना दूभर था इसलिए मैंने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया जैसे किसी "रा वन" फिल्म में शाहरुख़ खान ने करीना को उठाया हुआ था| मैंने भाभी को वापस उनके बिस्तर पे लिटाया ओर चादरें ओढ़ा दीं|
मैं वहीँ बैठा सुबह होने का इन्तेजार कर रहा था... बबर-बार घडी देखता की कब सुबह के नौ बजे और कब मैं भाभी को डॉक्टर के पास ले जाऊँ| टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक....टिक-टॉक आखिर सुबह के सात बज गए| घर में सभी उठ चुके थे... नेहा भी आँख मलते-मलते उठी और मुझे गुड मॉर्निंग पप्पी देके बहार चली गई| माँ को जब रात की बात अम्मा से पता चलीं तो वो भी भाभी का हाल-चाल पूछने आईं| भाभी अब भी सो रहीं थीं और सच कहूँ तो बहुत प्यारी लग रही थी!!!
माँ ने इशारे से मुझे बहार बुलाया... मैं बहार आया और माँ को सारा हाल सुनाया| माँ का कहना था की बीटा तू मुझे उठा देता मैं यहाँ सो जाती और तेरी भौजी का ध्यान रख लेती| मैंने माँ को समझाया की आप और पिताजी सबसे ज्यादा थके थे ... मैं तो गर्म खून हूँ... इतनी जल्दी नहीं थकता और वैसे भी मैं दिन में सो लूंगा तो मेरी नींद पूरी हो जाएगी| खेर मैंने माँ को अंदर भाभी के पास बैठने को कहा और मैं पिताजी को ढूंढने लगा| पिताजी खेत से आ रहे थे... भाभी की बिमारी और मेरा साड़ी रात जागने की बात घर-भर में फ़ैल चुकी थी| पिताजी ने हाथ धोया और फिर मुझे आशीर्वाद देते हुए भाभी के बारे में पूछा, तभी वहां बड़के दादा भी आ गए|
मैं: पिताजी, भौजी की तबियत अभी तो ठीक लग रही है परन्तु रात में उन्हें बुखार फिर चढ़ गया था| मेरा सुझाव है की हमें भाभी को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए|
बड़के दादा: मुन्ना पर चन्दर तो अभी-अभी अजय को साथ ले के शहर निकल गया वो तो शाम तक ही आएगा|
मैं: पिताजी आप ऐसा करो की बैलगाड़ी वाले को बुला लो मैं, भौजी और आप डॉक्टर के चले-चलते हैं| उनका डॉक्टर के पास जाना जर्रुरी है|
पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी जा के बैलगाड़ी वाले को बुलाता हूँ तब तक तुम तैयार हो जाओ|
इधर पिताजी बैलगाड़ी वाले को बुलाने गए और उधर मैंने भाग कर अपने बाल बनाये और रात वाले कपडे ही पहन के भाभी को जगाने आ गया|
मैं: भौजी.. उठो... बैलगाड़ी आने वाली है मैं आपको डॉक्टर के पास ले जा रहा हूँ|
भाभी उठ तो गईं पर उनके शरीर में ताकत नहीं थी.. और डॉक्टर का नाम सुन के वो ना-नुकुर करने लगीं| मेरे ज्यादा जोर देने पे भाभी मान गई ... बैलगाड़ी वाला आ चूका था परन्तु भाभी को चला के ले जाना बहुत मुश्किल काम था|मैंने एक बार फिर भाभी को अपनी गोद में उठाया और बैलगाड़ी में लाके बैठा दिया| जब मैं भाभी को गोद में बहार लाया तो सरे घर वाले हैरान थे... और खुसुर-पुसर कर रहे थे| मुझे उनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं थी| भाभी बैलगाड़ी अपना एक हाथ का घूँघट पकडे जैसे-तैसे बैलगाड़ी में बैठ गईं| पिताजी आगे बैलगाड़ी वाले के साथ बैठ गए और मैं बीच में भाभी का हाथ पकडे हुए बैठ गया| शरीर में कमजोरी के कारन भाभी के लिए बैठना मुश्किल था ऐसे में मैंने भाभी को अपनी गोद में सर रख के लेटने को कहा| करीबन एक घंटे तक हिचकोले खाने के बाद हम डॉक्टर के पास पहुंचे|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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