FUN-MAZA-MASTI
पुजारी हवस का --2
अब डैडी अपना मुंह मॉम के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहे थे। मॉम के मुंह से हल्की हल्की सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मॉम भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में मॉम के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे।
पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अनिल , और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे।
" हाय अनिल कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था।
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे।
मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः
….., माँ …….. कितना दर्द कर रहे हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "
मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी।
डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी
को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा।
मम्मी ने डैडी को प्यार से चूम कर अपने घुटनों पर पलंग पर बैठ गयीं। मम्मी ने डैडी का बहुत ही
लम्बा मोटा लंड अपने दोनों हाथो में सम्हाला। , मम्मी
मुश्किल से डैडी के लंड को अपने दोनों हाथों से घेर पा रहीं थीं।
मम्मी ने प्रेम से अपनी जीभ बाहर निकाल कर डैडी के पूरे लंड को चाटने लगीं। डैडी के चेहरे पर हल्की से मुस्कान फ़ैल
गयी। उनके चेहरे पर वैसे ही 'अच्छा लगने' लगने वाली अभिव्यक्ति थे
मम्मी ने अपनी उँगलियों से डैडी के लंड की जड़ पर उगे घने घुंघराले बालों सहलाया और उन्हें हलके से खींचा। डैडी ने
भी हल्की सी सिसकारी मारी।
"ऋतु मेरे लंड को चूसो अब ," डैडी ने, मुझे लगा कि सख्त आवाज़ में हुक्म दिया। पर मम्मी ने मुसकरा कर अपने मुंह को
पूरा खोल लिया। मम्मी ने बड़ी मुश्किल से डैडी का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर छुपा लिया। डैडी की आँखें थोड़ी देर के
लिए बंद हो गयीं। उन्हें वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा था।
मम्मी ने और भी ज़ोर लगा कर डैडी का थोडा सा और लंड भी अपने मुंह में ले लिया। मम्मी के मुंह से उबकाई की आवाज़
निकल पड़ी। पर अपना मुंह दूर खींचने की जगह मम्मी ने अपने मुंह को डैडी के लंड के ऊपर दबाना शुरू कर दिया।
मम्मी के मुंह से कई बार गोंगों की उल्टी करने जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी ने अपने बड़े हाथ से मम्मी के सर को
पकड़ कर अपने लंड पे उनका मुंह दबाने लगे। डैडी ने अपने चूतड़ों को हिला कर अपने लंड को मम्मी के मुंह के और भी
अंदर डालने की कोशिश करने लगे।
मम्मी का मुंह लाल हो गया था। उनकी आँखों में आंसूं भर गये , शायद उल्टी करने की आवाज़ों की वजह से।
मम्मी ने अपने नाज़ुक हाथों डैडी के विशाल चूतड़ों पर रख उनके लंड को अपने गिगियाते मुंह के अंदर खींचने लगीं।
लगभग आधे घंटे बाद डैडी ने अपना, मम्मी के थूक और आंसुओं से चमकता, लंड मम्मी के मुंह से लिया। मम्मी गहरी
गहरी साँसे लेने लगीं। उनके सुंदर नाक के नथुने उनके हांफने के कारण फड़क रहे थे।
डैडी ने मम्मी को बिस्तर पर घुटनों और हाथों के ऊपर लिटा दिया। उन्होंने मम्मी की मोटी मुलायम झाँगेँ फैला दी थीं।
मम्मी के चूत पर घने घुंघराले बाल थे। डैडी ने मम्मे के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर अपने
मुंह से उनकी पेशाब करने की जगह को चूमने लगे। अब मम्मी की बारी थी ज़ोर से सिसकारने की।
डैडी ने अपनी अपने जीभ निकल कर मम्मी के पेशाब करने वाली दरार में उसे घुसा दिया। मम्मी तड़प कर चीख उठीं।
इस बार उनकी चीख बहुत ऊंची थी।
"अंकु मेरी चूत ज़ोर से चूसो। आँ….. ओह! ……. अंकु बहुत….. आँ …….काट लो मेरी चूत को अंकु….. ज़ोर से,
और ज़ोर से……. ," मम्मी की चीखें वास्तव में आनंद की थीं।
डैडी ने अपनी लम्बी जीभ से ना केवल मम्मी की चूत चाटी पर उनकी टट्टी करने वाले छेद को भी चाट रहे थे। डैडी को
मम्मी का टट्टी करने वाला छेद बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था।
"अंकु, ….ओह …. माँ ……। क्या कर रहे आँ………। मैं झड़ने वाली हूँ। मेरी गांड चाटो और चाटो……, प्लीज़…," मम्मी
ने चीख कर डैडी से कहा।
डैडी ने अपनी जीभ की नोक मम्मी की गांड के छेद के अंदर दाल दी और उनकी उंगलिया मम्मी की चूत को रगड़ रहीं
थी।
डैडी ने तड़पती कांपती मम्मी को कस कर दबोच लिया और उनकी गांड चाटना नहीं रोका , "अंकु…. अब रुक जाओ।
मैं झड़ चुकी हूँ। "
पर डैडी नहीं रुके , कुछ ही क्षणों में मम्मी ने 'रुक जाओ' की रट के जगह 'और
चाटो' की रट लगा दी। मम्मी ने चार बार चीख कर अपने झड़ने की गुहार लगाई।
डैडी ने आखिर कांपती मम्मी को मुक्त कर दिया। उनका लंड किसी खम्बे की तरह हिल-डुल रहा था। डैडी ने
फुफुसा कर मम्मी से कुछ कहा। मम्मी कुछ थकी हुई सी लग रहीं थीं। मुझे डैडी और मम्मी के बीच हुए वो वार्तालाप नहीं
सुनाई पड़ा।
डैडी ने पास की मेज़ से एक ट्यूब निकाल कर उसमे से सफ़ेद जैली जैसी चीज़ अपने लंड के ऊपर लगा ली और फिर
ट्यूब की नोज़ल को मम्मी की गांड के छेद में घुस कर उसे दबा दिया। मैं अब बिलकुल अनभिज्ञथा कि अंदर
क्या हो रहा था। डैडी ने अपना लंड मम्मी की गांड के ऊपर रख एक ज़ोर से धक्का दिया। डैडी का बड़े सेब से भी मोटा सूपड़ा एक
धक्के में मम्मी की गांड के अंदर घुस गया।
"नहीईईईईन…… अंकु……. धीईईईईईईरे…….। हाय माँ मेरी गांड फट जायेगी…….," मम्मी की दर्द भरी चीख से उनका
शयन कक्ष गूँज उठा।
डैडी मम्मी को कितना दर्द कर रहे थे पर उनके चीखने पर भी रुकने की जगह डैडी ने एक
और धक्का मारा। र मेरी फटी हुई आँखों के सामने डैडी का मोटा लंड कुछ और इंच मम्मी की गांड में घुस गया।
मम्मी दर्द से बिलबिला उठीं और फिर से चीखीं पर डैडी बिना रुके धक्के के बाद धक्का मार रहे थे। बहुत धक्कों के बाद डैडी
का पूरा लंड मम्मी की गांड में समां गया। मम्मी अब बिलख रहीं थीं। उनकी आँखों में से आंसूं बह रहे थे। उनका पूरा भरा-भरा
सुंदर शरीर कांप रहा था दर्द के मारे।
डैडी ने अपने लंड को मम्मी की गांड के और भी भीतर दबा कर मुसराये , "ऋतू , बहुत दर्द हो रहा हो तो बाहर निकाल लूँ अपना
लंड आपकी गांड से। "
मेरी हल्की सी राहत की सांस निकल पड़ी। आखिर डैडी को मम्मी पर तरस आ गया।
"खबरदार अंकु जो एक इंच भी बाहर निकाला। तुम्हारा लंड बना ही है मेरी चूत और गांड मारने के लिए। कब मैंने दर्द की वजह
से मैंने तुम्हे लंड बाहर निकालने के लिए बोला है ," मम्मे की दर्द भरी आवाज़ में थोडा गुस्सा और बहुत सा उल्लाहना था।
"मैं तो मज़ाक कर रहा था ऋतू । मैं तुम्हारी गांड का सारा माल मथने के बाद ही अपना लंड निकालूँगा ," डैडी ने ज़ोर से
मम्मी के भरे पूरे चौड़े चूतड़ पर ज़ोर से अपनी पूरी ताकत से खुले हाथ का थप्पड़ जमा दिया। मम्मी फिर से चीख उठीं।
मम्मी के आंसुओं से भीगे चेहरे पर दर्द के शिकन तो थी पर फिर भी हल्की से मुस्कराहट भी फ़ैल गयी थी , "हाय अंकु तुम
कितना दर्द करते हो मुझे। अंकु मेरी गाड़ मरना शुरू करो और मेरे चूतड़ों को मार मार कर लाल कर दो। अंकु आज मुझे
चोद-चोद कर बेहोश कर दो। "
मम्मी की गुहार से में चौंक गया ।
डैडी ने अपना आधे से ज़यादा लंड बाहर निकाला और एक धक्के में बरदर्दी से मम्मी की गांड में पूरा का पूरा अंदर तक घुसा दिया।
मम्मी की चीख इस बार उतनी तेज़ नहीं थी। डैडी ने एक के बाद एक तीन थप्पड़ मम्मी के चूतड़ों पर टिका दिये। इस बार मम्मी
ने बस सिसकारी मारी पर चीखीं नहीं।
डैडी ने मम्मी के गांड में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया।
डैडी कभी अपने पूरा लंड को, सिवाय सुपाड़े के बाहर निकाल कर, उसे निर्ममता से मम्मी के खुली गांड में बेदर्दी से ठूंस थे ।
कभी बस आधे लंड से मम्मी की गांड बहुत तेज़ी और ज़ोर से मारते थे। जब जब डैडी की जांघें मम्मी के चूतड़ों से टकराती थीं तो
एक ज़ोर से थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठती थी। मम्मी का पूरा शरीर हिल उठता था।
मम्मी के विशाल भारी चूचियाँ आगे पीछे हिल रहीं थीं।
डैडी का लंड अब और भी तेज़ी से मम्मी की गांड के अंदर बाहर हो रहा था ,"अंकु और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। ऑ…. ऑ….
अन्न…… मेरे गांड मारो अंकु……आन्ह……. और ज़ोर से……..माँ मैं मर गयी………. ," मम्मी की चीखें अब डैडी को
प्रोत्साहित कर रहीं थीं।
डैडी के मोटे भारी चूतड़ बहुत तेज़ी से आगे पीछे हो रहे थे। उनके लड़ पर मम्मी की गांड के अंदर की चीज़ फ़ैल गयी थी।
"मैं आने वाली हूँ अंकु…… आंँह……. और ज़ोर से मारो मेरी गांड आँह….. आँह…..आँह…… आँह….. आँह….. ज़ोर से चोद
डालो मेरी गांड अंकु…... फाड़ डालो मेरी गांड को…… ," मम्मी का सर पागलों की तरह से हिल रहा था। उनका चेहरा पसीने
से नहा उठा। उनके सुंदर लम्बे घुंघराले केश उनके पसीने से लथपत चेहरे और कमर से चिपक गए।
अचानक मम्मी ने लम्बी चीख मारी और उनका सारा शरीर कुछ देर तक बिलकुल बर्फ की तरह जम गया और फिर पहले की तरह
काम्पने लगा।
मम्मी एक बार फिर से झड़ रहीं थीं।
डैडी ने मम्मी के रेशमी केशों को इकठ्ठा करके उन्हें अपने बायीं हथेली पे रस्सी की तरह लपेट लिया। डैडी ने फिर बेदर्दी से
मम्मी के सुंदर बालों को पीछे खींचा। मम्मी का सर एक चीख के साथ अप्राकृतिक रूप से कमर की तरफ उठ कर मुड़ गया।
मम्मी के चेहरे पर दर्द के रेखाएं बिखरी हुईं थीं।
मम्मी बिलबिला उठीं पर उन्होंने डैडी को पुकारा, "अंकु और मारो मेरी गांड। प्लीज़ चोदो मुझे….., ज़ोर से….. और ज़ोर
से………। "
डैडी ने अब और भी ज़ोर से मम्मी की गांड मारनी शुरू कर दी। मम्मी तीन बार और झड़ गयी। डैडी रुकने का नाम ही नहीं ले
रहे थे।
जब मम्मी चौथी बार आ रहीं थीं तब डैडी ने अपना लंड मम्मी की गांड से बाहर निकाल कर उन्हें खिलोने की तरह पूरा घुमा
दिया। डैडी ने मम्मे के बालों को खींच कर उनके सुबकते मुंह में अपना लंड घुसा दिया। मैं सोच रहे था कि मम्मी
डैडी का गन्दा लंड चूसने से मना कर देंगीं और डैडी मान जायेंगें।
पर मम्मी ने लपक कर डैडी का लंड अपने मुंह में ले लिया और उसे सुपाड़े से जड़ तक चूस चूस कर साफ़ कर दिया।
डैडी ने मम्मी के घने बालों को इस्तेमाल करके उन्हें एक झटके से कमर के ऊपर लिटा दिया। डैडी ने हांफती हुई मम्मी की
मोटी, भारी सुंदर जांघों को उनके कन्धों तरफ दबा दिया। मम्मी ने अपनी जांघों के ऊपर अपने हाथ रख कर डैडी की मदद की। डैडी ने अपने बड़े हाथों से मम्मी की गोल
पिण्डिलयों को जकड के उनकी जांघों को पूरा फैला कर चौड़ा कर दिया। डैडी ने अपना लंड एक बार फिर मम्मी की
गांड के छोटे से छेद पर टिका कर मम्मी से पूछा ," ज़ोर से या धीरे धीरे ?"
"हाय कैसे तरसाते हो अंकु। घुसा दो न अपने लंड को मेरी तड़पती गांड में ," मम्मी की कांपती हुयी आवाज़ में अजीब सी
याचना थी।
"फिर न कहना …… ," डैडी ने गुर्रा कर कहा और पूरी ताकत से मम्मी की गांड की तरफ धक्का लगाया। मम्मी की
लम्बी चीख कमरे में गूँज उठी। डैडी का आधा लंड मम्मी की गांड में गायब हो गया। डैडी ने मम्मी की पहली चीख के
रुकने का इंतज़ार किये बिना दूसरा धक्का मारा और उनका डरावना लंड पूरा का पूरा मम्मी की गांड में जड़ तक घुस
गया।
डैडी ने अब जितनी ज़ोरों और तेज़ी से मम्मी की गांड चोदी उसे देख कर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया।
मम्मी की गांड से अजीब सी ' फच-फच ' की आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी के हर धक्के से मम्मी का सारा शरीर सर से
पाँव तक हिल जाता था। उनकी चूचियां डैडी के धक्कों से उनकी छाती पर बड़े पानी भरी गुब्बारों की तरह ऊपर नीचे झूल
रहीं थीं।
डैडी की गुरगुराहट मम्मी की सिस्कारियों से मिल गयीं। डैडी जब गुराहट के साथ पूरे दम से अपना लंड मम्मी की गांड
में घुसाते थे तो मम्मी सिसकने से पहले सुबक उठती थीं।
मम्मी हर कुछ मिनटों बाद झड़ने लगीं, "अंकु चोद डालो मेरी गांड ……ज़ोर से…… अपने लंड से मेरी गांड फाड़ दो।
हाय माँ मैं फिर से झड़ने वाली हूँ। आज तो तुम मेरी जान ही ले लोगे। "
डैडी ने मम्मी की बातों की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया और बिना थके उनकी गांड मारते रहे। मम्मी न जाने कितनी बार चीख कर ,सुबक कर , सिसक कर झड़ गयीं थीं।
"अंकु अब मेरी गांड में अपना लंड खोल दो। अब अपने लंड से मेरी गंदी गांड को नहला दो। आँ…… आँ………आँ….
आँ……..आँह…….. ऊँह……….. अंकू… ऊ …ऊ…. ऊ…. ऊ…………. , मैं फिर से आ रही हूँ," मम्मी का मीठा खुशी
का विलाप कमरे में गूँज रहा था।
डैडी ने तीन चार बार पूरे के पूरा लंड सुपाड़े से जड़ तक मम्मी की गांड में ठूंस कर उनके ऊपर गिर पड़े। मम्मी ने अपनी टांगें डैडी की कमर के ऊपर गिरा दीं। उनकी सुंदर गोल बाँहों ने हाँफते हुए डैडी को प्यार से कस कर जकड़ लिया।
डैडी मम्मी के शरीर पसीने से लथपत हो चुके थे।
मम्मी ने प्यार से डैडी के पसीने से भीगे माथे को चूम लिया
मम्मी के मुलायम नाज़ुक हाथ हाँफते हुए डैडी के सर के ऊपर प्यार से उनके बालों को सेहला रहे थे। मम्मी भी हांफ रहीं थीं।
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पुजारी हवस का --2
अब डैडी अपना मुंह मॉम के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहे थे। मॉम के मुंह से हल्की हल्की सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मॉम भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में मॉम के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे।
पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अनिल , और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे।
" हाय अनिल कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था।
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे।
मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः
….., माँ …….. कितना दर्द कर रहे हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "
मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी।
डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी
को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा।
मम्मी ने डैडी को प्यार से चूम कर अपने घुटनों पर पलंग पर बैठ गयीं। मम्मी ने डैडी का बहुत ही
लम्बा मोटा लंड अपने दोनों हाथो में सम्हाला। , मम्मी
मुश्किल से डैडी के लंड को अपने दोनों हाथों से घेर पा रहीं थीं।
मम्मी ने प्रेम से अपनी जीभ बाहर निकाल कर डैडी के पूरे लंड को चाटने लगीं। डैडी के चेहरे पर हल्की से मुस्कान फ़ैल
गयी। उनके चेहरे पर वैसे ही 'अच्छा लगने' लगने वाली अभिव्यक्ति थे
मम्मी ने अपनी उँगलियों से डैडी के लंड की जड़ पर उगे घने घुंघराले बालों सहलाया और उन्हें हलके से खींचा। डैडी ने
भी हल्की सी सिसकारी मारी।
"ऋतु मेरे लंड को चूसो अब ," डैडी ने, मुझे लगा कि सख्त आवाज़ में हुक्म दिया। पर मम्मी ने मुसकरा कर अपने मुंह को
पूरा खोल लिया। मम्मी ने बड़ी मुश्किल से डैडी का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर छुपा लिया। डैडी की आँखें थोड़ी देर के
लिए बंद हो गयीं। उन्हें वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा था।
मम्मी ने और भी ज़ोर लगा कर डैडी का थोडा सा और लंड भी अपने मुंह में ले लिया। मम्मी के मुंह से उबकाई की आवाज़
निकल पड़ी। पर अपना मुंह दूर खींचने की जगह मम्मी ने अपने मुंह को डैडी के लंड के ऊपर दबाना शुरू कर दिया।
मम्मी के मुंह से कई बार गोंगों की उल्टी करने जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी ने अपने बड़े हाथ से मम्मी के सर को
पकड़ कर अपने लंड पे उनका मुंह दबाने लगे। डैडी ने अपने चूतड़ों को हिला कर अपने लंड को मम्मी के मुंह के और भी
अंदर डालने की कोशिश करने लगे।
मम्मी का मुंह लाल हो गया था। उनकी आँखों में आंसूं भर गये , शायद उल्टी करने की आवाज़ों की वजह से।
मम्मी ने अपने नाज़ुक हाथों डैडी के विशाल चूतड़ों पर रख उनके लंड को अपने गिगियाते मुंह के अंदर खींचने लगीं।
लगभग आधे घंटे बाद डैडी ने अपना, मम्मी के थूक और आंसुओं से चमकता, लंड मम्मी के मुंह से लिया। मम्मी गहरी
गहरी साँसे लेने लगीं। उनके सुंदर नाक के नथुने उनके हांफने के कारण फड़क रहे थे।
डैडी ने मम्मी को बिस्तर पर घुटनों और हाथों के ऊपर लिटा दिया। उन्होंने मम्मी की मोटी मुलायम झाँगेँ फैला दी थीं।
मम्मी के चूत पर घने घुंघराले बाल थे। डैडी ने मम्मे के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर अपने
मुंह से उनकी पेशाब करने की जगह को चूमने लगे। अब मम्मी की बारी थी ज़ोर से सिसकारने की।
डैडी ने अपनी अपने जीभ निकल कर मम्मी के पेशाब करने वाली दरार में उसे घुसा दिया। मम्मी तड़प कर चीख उठीं।
इस बार उनकी चीख बहुत ऊंची थी।
"अंकु मेरी चूत ज़ोर से चूसो। आँ….. ओह! ……. अंकु बहुत….. आँ …….काट लो मेरी चूत को अंकु….. ज़ोर से,
और ज़ोर से……. ," मम्मी की चीखें वास्तव में आनंद की थीं।
डैडी ने अपनी लम्बी जीभ से ना केवल मम्मी की चूत चाटी पर उनकी टट्टी करने वाले छेद को भी चाट रहे थे। डैडी को
मम्मी का टट्टी करने वाला छेद बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था।
"अंकु, ….ओह …. माँ ……। क्या कर रहे आँ………। मैं झड़ने वाली हूँ। मेरी गांड चाटो और चाटो……, प्लीज़…," मम्मी
ने चीख कर डैडी से कहा।
डैडी ने अपनी जीभ की नोक मम्मी की गांड के छेद के अंदर दाल दी और उनकी उंगलिया मम्मी की चूत को रगड़ रहीं
थी।
डैडी ने तड़पती कांपती मम्मी को कस कर दबोच लिया और उनकी गांड चाटना नहीं रोका , "अंकु…. अब रुक जाओ।
मैं झड़ चुकी हूँ। "
पर डैडी नहीं रुके , कुछ ही क्षणों में मम्मी ने 'रुक जाओ' की रट के जगह 'और
चाटो' की रट लगा दी। मम्मी ने चार बार चीख कर अपने झड़ने की गुहार लगाई।
डैडी ने आखिर कांपती मम्मी को मुक्त कर दिया। उनका लंड किसी खम्बे की तरह हिल-डुल रहा था। डैडी ने
फुफुसा कर मम्मी से कुछ कहा। मम्मी कुछ थकी हुई सी लग रहीं थीं। मुझे डैडी और मम्मी के बीच हुए वो वार्तालाप नहीं
सुनाई पड़ा।
डैडी ने पास की मेज़ से एक ट्यूब निकाल कर उसमे से सफ़ेद जैली जैसी चीज़ अपने लंड के ऊपर लगा ली और फिर
ट्यूब की नोज़ल को मम्मी की गांड के छेद में घुस कर उसे दबा दिया। मैं अब बिलकुल अनभिज्ञथा कि अंदर
क्या हो रहा था। डैडी ने अपना लंड मम्मी की गांड के ऊपर रख एक ज़ोर से धक्का दिया। डैडी का बड़े सेब से भी मोटा सूपड़ा एक
धक्के में मम्मी की गांड के अंदर घुस गया।
"नहीईईईईन…… अंकु……. धीईईईईईईरे…….। हाय माँ मेरी गांड फट जायेगी…….," मम्मी की दर्द भरी चीख से उनका
शयन कक्ष गूँज उठा।
डैडी मम्मी को कितना दर्द कर रहे थे पर उनके चीखने पर भी रुकने की जगह डैडी ने एक
और धक्का मारा। र मेरी फटी हुई आँखों के सामने डैडी का मोटा लंड कुछ और इंच मम्मी की गांड में घुस गया।
मम्मी दर्द से बिलबिला उठीं और फिर से चीखीं पर डैडी बिना रुके धक्के के बाद धक्का मार रहे थे। बहुत धक्कों के बाद डैडी
का पूरा लंड मम्मी की गांड में समां गया। मम्मी अब बिलख रहीं थीं। उनकी आँखों में से आंसूं बह रहे थे। उनका पूरा भरा-भरा
सुंदर शरीर कांप रहा था दर्द के मारे।
डैडी ने अपने लंड को मम्मी की गांड के और भी भीतर दबा कर मुसराये , "ऋतू , बहुत दर्द हो रहा हो तो बाहर निकाल लूँ अपना
लंड आपकी गांड से। "
मेरी हल्की सी राहत की सांस निकल पड़ी। आखिर डैडी को मम्मी पर तरस आ गया।
"खबरदार अंकु जो एक इंच भी बाहर निकाला। तुम्हारा लंड बना ही है मेरी चूत और गांड मारने के लिए। कब मैंने दर्द की वजह
से मैंने तुम्हे लंड बाहर निकालने के लिए बोला है ," मम्मे की दर्द भरी आवाज़ में थोडा गुस्सा और बहुत सा उल्लाहना था।
"मैं तो मज़ाक कर रहा था ऋतू । मैं तुम्हारी गांड का सारा माल मथने के बाद ही अपना लंड निकालूँगा ," डैडी ने ज़ोर से
मम्मी के भरे पूरे चौड़े चूतड़ पर ज़ोर से अपनी पूरी ताकत से खुले हाथ का थप्पड़ जमा दिया। मम्मी फिर से चीख उठीं।
मम्मी के आंसुओं से भीगे चेहरे पर दर्द के शिकन तो थी पर फिर भी हल्की से मुस्कराहट भी फ़ैल गयी थी , "हाय अंकु तुम
कितना दर्द करते हो मुझे। अंकु मेरी गाड़ मरना शुरू करो और मेरे चूतड़ों को मार मार कर लाल कर दो। अंकु आज मुझे
चोद-चोद कर बेहोश कर दो। "
मम्मी की गुहार से में चौंक गया ।
डैडी ने अपना आधे से ज़यादा लंड बाहर निकाला और एक धक्के में बरदर्दी से मम्मी की गांड में पूरा का पूरा अंदर तक घुसा दिया।
मम्मी की चीख इस बार उतनी तेज़ नहीं थी। डैडी ने एक के बाद एक तीन थप्पड़ मम्मी के चूतड़ों पर टिका दिये। इस बार मम्मी
ने बस सिसकारी मारी पर चीखीं नहीं।
डैडी ने मम्मी के गांड में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया।
डैडी कभी अपने पूरा लंड को, सिवाय सुपाड़े के बाहर निकाल कर, उसे निर्ममता से मम्मी के खुली गांड में बेदर्दी से ठूंस थे ।
कभी बस आधे लंड से मम्मी की गांड बहुत तेज़ी और ज़ोर से मारते थे। जब जब डैडी की जांघें मम्मी के चूतड़ों से टकराती थीं तो
एक ज़ोर से थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठती थी। मम्मी का पूरा शरीर हिल उठता था।
मम्मी के विशाल भारी चूचियाँ आगे पीछे हिल रहीं थीं।
डैडी का लंड अब और भी तेज़ी से मम्मी की गांड के अंदर बाहर हो रहा था ,"अंकु और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। ऑ…. ऑ….
अन्न…… मेरे गांड मारो अंकु……आन्ह……. और ज़ोर से……..माँ मैं मर गयी………. ," मम्मी की चीखें अब डैडी को
प्रोत्साहित कर रहीं थीं।
डैडी के मोटे भारी चूतड़ बहुत तेज़ी से आगे पीछे हो रहे थे। उनके लड़ पर मम्मी की गांड के अंदर की चीज़ फ़ैल गयी थी।
"मैं आने वाली हूँ अंकु…… आंँह……. और ज़ोर से मारो मेरी गांड आँह….. आँह…..आँह…… आँह….. आँह….. ज़ोर से चोद
डालो मेरी गांड अंकु…... फाड़ डालो मेरी गांड को…… ," मम्मी का सर पागलों की तरह से हिल रहा था। उनका चेहरा पसीने
से नहा उठा। उनके सुंदर लम्बे घुंघराले केश उनके पसीने से लथपत चेहरे और कमर से चिपक गए।
अचानक मम्मी ने लम्बी चीख मारी और उनका सारा शरीर कुछ देर तक बिलकुल बर्फ की तरह जम गया और फिर पहले की तरह
काम्पने लगा।
मम्मी एक बार फिर से झड़ रहीं थीं।
डैडी ने मम्मी के रेशमी केशों को इकठ्ठा करके उन्हें अपने बायीं हथेली पे रस्सी की तरह लपेट लिया। डैडी ने फिर बेदर्दी से
मम्मी के सुंदर बालों को पीछे खींचा। मम्मी का सर एक चीख के साथ अप्राकृतिक रूप से कमर की तरफ उठ कर मुड़ गया।
मम्मी के चेहरे पर दर्द के रेखाएं बिखरी हुईं थीं।
मम्मी बिलबिला उठीं पर उन्होंने डैडी को पुकारा, "अंकु और मारो मेरी गांड। प्लीज़ चोदो मुझे….., ज़ोर से….. और ज़ोर
से………। "
डैडी ने अब और भी ज़ोर से मम्मी की गांड मारनी शुरू कर दी। मम्मी तीन बार और झड़ गयी। डैडी रुकने का नाम ही नहीं ले
रहे थे।
जब मम्मी चौथी बार आ रहीं थीं तब डैडी ने अपना लंड मम्मी की गांड से बाहर निकाल कर उन्हें खिलोने की तरह पूरा घुमा
दिया। डैडी ने मम्मे के बालों को खींच कर उनके सुबकते मुंह में अपना लंड घुसा दिया। मैं सोच रहे था कि मम्मी
डैडी का गन्दा लंड चूसने से मना कर देंगीं और डैडी मान जायेंगें।
पर मम्मी ने लपक कर डैडी का लंड अपने मुंह में ले लिया और उसे सुपाड़े से जड़ तक चूस चूस कर साफ़ कर दिया।
डैडी ने मम्मी के घने बालों को इस्तेमाल करके उन्हें एक झटके से कमर के ऊपर लिटा दिया। डैडी ने हांफती हुई मम्मी की
मोटी, भारी सुंदर जांघों को उनके कन्धों तरफ दबा दिया। मम्मी ने अपनी जांघों के ऊपर अपने हाथ रख कर डैडी की मदद की। डैडी ने अपने बड़े हाथों से मम्मी की गोल
पिण्डिलयों को जकड के उनकी जांघों को पूरा फैला कर चौड़ा कर दिया। डैडी ने अपना लंड एक बार फिर मम्मी की
गांड के छोटे से छेद पर टिका कर मम्मी से पूछा ," ज़ोर से या धीरे धीरे ?"
"हाय कैसे तरसाते हो अंकु। घुसा दो न अपने लंड को मेरी तड़पती गांड में ," मम्मी की कांपती हुयी आवाज़ में अजीब सी
याचना थी।
"फिर न कहना …… ," डैडी ने गुर्रा कर कहा और पूरी ताकत से मम्मी की गांड की तरफ धक्का लगाया। मम्मी की
लम्बी चीख कमरे में गूँज उठी। डैडी का आधा लंड मम्मी की गांड में गायब हो गया। डैडी ने मम्मी की पहली चीख के
रुकने का इंतज़ार किये बिना दूसरा धक्का मारा और उनका डरावना लंड पूरा का पूरा मम्मी की गांड में जड़ तक घुस
गया।
डैडी ने अब जितनी ज़ोरों और तेज़ी से मम्मी की गांड चोदी उसे देख कर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया।
मम्मी की गांड से अजीब सी ' फच-फच ' की आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी के हर धक्के से मम्मी का सारा शरीर सर से
पाँव तक हिल जाता था। उनकी चूचियां डैडी के धक्कों से उनकी छाती पर बड़े पानी भरी गुब्बारों की तरह ऊपर नीचे झूल
रहीं थीं।
डैडी की गुरगुराहट मम्मी की सिस्कारियों से मिल गयीं। डैडी जब गुराहट के साथ पूरे दम से अपना लंड मम्मी की गांड
में घुसाते थे तो मम्मी सिसकने से पहले सुबक उठती थीं।
मम्मी हर कुछ मिनटों बाद झड़ने लगीं, "अंकु चोद डालो मेरी गांड ……ज़ोर से…… अपने लंड से मेरी गांड फाड़ दो।
हाय माँ मैं फिर से झड़ने वाली हूँ। आज तो तुम मेरी जान ही ले लोगे। "
डैडी ने मम्मी की बातों की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया और बिना थके उनकी गांड मारते रहे। मम्मी न जाने कितनी बार चीख कर ,सुबक कर , सिसक कर झड़ गयीं थीं।
"अंकु अब मेरी गांड में अपना लंड खोल दो। अब अपने लंड से मेरी गंदी गांड को नहला दो। आँ…… आँ………आँ….
आँ……..आँह…….. ऊँह……….. अंकू… ऊ …ऊ…. ऊ…. ऊ…………. , मैं फिर से आ रही हूँ," मम्मी का मीठा खुशी
का विलाप कमरे में गूँज रहा था।
डैडी ने तीन चार बार पूरे के पूरा लंड सुपाड़े से जड़ तक मम्मी की गांड में ठूंस कर उनके ऊपर गिर पड़े। मम्मी ने अपनी टांगें डैडी की कमर के ऊपर गिरा दीं। उनकी सुंदर गोल बाँहों ने हाँफते हुए डैडी को प्यार से कस कर जकड़ लिया।
डैडी मम्मी के शरीर पसीने से लथपत हो चुके थे।
मम्मी ने प्यार से डैडी के पसीने से भीगे माथे को चूम लिया
मम्मी के मुलायम नाज़ुक हाथ हाँफते हुए डैडी के सर के ऊपर प्यार से उनके बालों को सेहला रहे थे। मम्मी भी हांफ रहीं थीं।
में अपने
कमरे में वापस आ गया ,मेरा लंड खड़ा हुआ था और मेरी आँखों के सामने बीते
पलो की सब बाते घूम रही थी। मॉम का नंगा शरीर मेरी उत्तेजना को और बड़ा
रहा था। मेरी मॉम नग्न अवस्था में इतनी खूबसूरत होगी ये मेने कभी सोचा
भी नहीं था , रातभर मेने उनकी कल्पना कर मेने कितनी बार मूठ मारी होगी
और कितना वीर्य निकाला होगा ये मुझे पता भी नही चला। एक घर में मेरी
खूबसूरत मॉम और एक मेरी कमसिन बहन थी और में अब उनके बारे में दूसरी
कल्पना करने लगा था। न जाने कब मेरी आँख लगी और में सुबह देर से सोकर उठा।
उठते ही में बाहर आया तो मॉम डैड साथ स्टोर जाने की तैयारी में थी,मॉम
कभी कभी सुबह २-३ घंटे के लिए डैड के साथ स्टोर चली जाती थी।
मॉम के जाने के बाद मेने देखा की रचना के
बाथरूम से नहाने की आवाज आ रही हे,ये मेरा तजुर्बा हे की बाथरूम चाहे केसा
भी ही उसमे कोई न कोई जगह ऐसी होती हे जिसमे अंदर देखा जा सके। मेने
बाथरूम के पास जाकर दरखा तो उसके दरवाजे मुझे हलकी दरार नजर आई ,मेने अपनी निगाहे टिकाई तो अंदर के नज़ारे ने मेरे होश उडा दिए, रचना बिल्कुल नंगी होकर कपड़े धो रही थी।
उसके निर्वस्त्र पीठ और नितंब मेरी तरफ थे। दो अधपके खरबूजे रात्रिभोज का निमंत्रण
दे रहे थे।
फिर वो खड़ी हो गई और मुझे उसकी सिर्फ़ टाँगें
दिखाई पड़ने लगीं। मैं किसी योगी की तरह उसी आसन में योनि के दर्शन पाने का इंतजार
करने लगा।
आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। वो मेरी तरफ मुँह
करके बैठी और उसने अपनी जाँघों पर साबुन लगाना शुरू किया। फिर उसने अपनी टाँगें
फैलाई तब मुझे पहली बार उस डबल रोटी के दर्शन मिले जिसको देखने के लिए मैं कल रात से
बेताब था। हल्के हल्के बालों से ढकी हुई योनि ऐसी लग रही थी जैसे हिमालय पर काली
बर्फ़ गिरी हुई हो और बीच में एक पतली सूखी नदी बर्फ़ के पिघलने और अपने पानी पानी
होने का इंतजार कर रही थी। दूसरी बार मैंने सचमुच की योनि देखी।अच्छी चीजें कितनी जल्दी नज़रों के सामने से ओझल हो जाती हैं। साबुन लगाकर वो
खड़ी हो गई और फिर मुझे उसके कपड़े पहनने तक सिर्फ़ उसकी टाँगें ही दिखाई
पड़ीं।में वापस अपने कमरे में आ गया ,रचना जब बाथरूम से अपने कमरे में चली गयी तब में बाथरूम में घुसा। . मै बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलना शुरू किया. मुझे जोरो की पिशाब लगी थी. पिशाब करने के बाद मै अपने लंड से खेलने लगा. एका एक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे रचना के उतरे हुए कपड़े पर पड़ी. वहां पर रचना अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गयी थी. जैसे ही मैने रचना की नाइटगाऊन उठाया तो देखा की नाइटगाऊन के नीचे उस की ब्रा पडा हुआ था. जैसे ही मै रचना का काले रंग का ब्रा उठाया तो मेरा लंड अपने आप खडा होने लगा. मै रचना के नाइटगाऊन उठाया तो उसमे से दीदी के नीले रंग का पैँटी भी गिर कर नीचे गिर गया. मैने पैँटी भी उठा लिया. अब मेरे एक हाथ मे रचना की पैँटी थी और दूसरे हाथ मे रचना के ब्रा था.
ओह भगवान रचना के अन्दर वाले कपड़े चूमे से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वोही ब्रा हैं जो की कुछ देर पहले रचना के चुन्चिओं को जकड रखा था और यह वोही पैँटी हैं जो की कुछ देर पहले तक रचना की चूत से लिपटा था. यह सोच सोच करके मै हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था. मै सोच नही पा रहा था की मै रचना के ब्रा और पैँटी को ले कर क्या करूँ. मै रचना की ब्रा और पैँटी को ले कर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नही क्या क्या किया. मैने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला. ब्रा को अपने छाती पर रखा. मै अपने खड़े लंड के ऊपर रचना की पैँटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था. फिर बाद मे मैं रचना की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया. फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग मे फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया. अब ऐसा लग रहा था की रचना बाथरूम मे दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं मै झट जा कर रचना के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा की मैं रचना की चुंची चूस रहा हूँ. मै अपना लंड को रचना के पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा की मै रचना को चोद रहा हूँ. मै इतना गरम हो गया था की मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मै झड़ गया. मेरे लंड ने अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से रचना की पैँटी और नाइटगाऊन भीग गया था. मुझे पता नही की मेरे लंड ने कितना वीर्य निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे रचना के नाम पर निकला था.
उसके निर्वस्त्र पीठ और नितंब मेरी तरफ थे। दो अधपके खरबूजे रात्रिभोज का निमंत्रण
दे रहे थे।
फिर वो खड़ी हो गई और मुझे उसकी सिर्फ़ टाँगें
दिखाई पड़ने लगीं। मैं किसी योगी की तरह उसी आसन में योनि के दर्शन पाने का इंतजार
करने लगा।
आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। वो मेरी तरफ मुँह
करके बैठी और उसने अपनी जाँघों पर साबुन लगाना शुरू किया। फिर उसने अपनी टाँगें
फैलाई तब मुझे पहली बार उस डबल रोटी के दर्शन मिले जिसको देखने के लिए मैं कल रात से
बेताब था। हल्के हल्के बालों से ढकी हुई योनि ऐसी लग रही थी जैसे हिमालय पर काली
बर्फ़ गिरी हुई हो और बीच में एक पतली सूखी नदी बर्फ़ के पिघलने और अपने पानी पानी
होने का इंतजार कर रही थी। दूसरी बार मैंने सचमुच की योनि देखी।अच्छी चीजें कितनी जल्दी नज़रों के सामने से ओझल हो जाती हैं। साबुन लगाकर वो
खड़ी हो गई और फिर मुझे उसके कपड़े पहनने तक सिर्फ़ उसकी टाँगें ही दिखाई
पड़ीं।में वापस अपने कमरे में आ गया ,रचना जब बाथरूम से अपने कमरे में चली गयी तब में बाथरूम में घुसा। . मै बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलना शुरू किया. मुझे जोरो की पिशाब लगी थी. पिशाब करने के बाद मै अपने लंड से खेलने लगा. एका एक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे रचना के उतरे हुए कपड़े पर पड़ी. वहां पर रचना अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गयी थी. जैसे ही मैने रचना की नाइटगाऊन उठाया तो देखा की नाइटगाऊन के नीचे उस की ब्रा पडा हुआ था. जैसे ही मै रचना का काले रंग का ब्रा उठाया तो मेरा लंड अपने आप खडा होने लगा. मै रचना के नाइटगाऊन उठाया तो उसमे से दीदी के नीले रंग का पैँटी भी गिर कर नीचे गिर गया. मैने पैँटी भी उठा लिया. अब मेरे एक हाथ मे रचना की पैँटी थी और दूसरे हाथ मे रचना के ब्रा था.
ओह भगवान रचना के अन्दर वाले कपड़े चूमे से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वोही ब्रा हैं जो की कुछ देर पहले रचना के चुन्चिओं को जकड रखा था और यह वोही पैँटी हैं जो की कुछ देर पहले तक रचना की चूत से लिपटा था. यह सोच सोच करके मै हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था. मै सोच नही पा रहा था की मै रचना के ब्रा और पैँटी को ले कर क्या करूँ. मै रचना की ब्रा और पैँटी को ले कर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नही क्या क्या किया. मैने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला. ब्रा को अपने छाती पर रखा. मै अपने खड़े लंड के ऊपर रचना की पैँटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था. फिर बाद मे मैं रचना की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया. फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग मे फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया. अब ऐसा लग रहा था की रचना बाथरूम मे दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं मै झट जा कर रचना के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा की मैं रचना की चुंची चूस रहा हूँ. मै अपना लंड को रचना के पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा की मै रचना को चोद रहा हूँ. मै इतना गरम हो गया था की मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मै झड़ गया. मेरे लंड ने अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से रचना की पैँटी और नाइटगाऊन भीग गया था. मुझे पता नही की मेरे लंड ने कितना वीर्य निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे रचना के नाम पर निकला था.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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