Tuesday, August 26, 2014

FUN-MAZA-MASTI बरसात की रात में

FUN-MAZA-MASTI


बरसात की रात में 

प्रेषक : गुमनाम
वो शायद जून समाप्त या जुलाई शुरूआत की बरसात की रात थी. मैं और मेरी बीवी मेरठ से अपने एक रिश्तेदार के यहाँ से घुमकर अपने घर वापस आ रहे थे. कि अचानक बारिश होने लगी और हमने सोचा कि कहीं रूक जाएंगे पर रास्ते में कहीं कुछ नहीं और बारिश भी तेज होती जा रही थी. अंजान घर का दरवाजा खटखटाना हमने ठीक नहीं समझा तो मेन रास्ते थे थोड़ा हटकर दूर जाकर हम पेड़ के नीचे मोटरसाइकिल बंद कर खड़े हो गए. पेड़ के नीचे हमें ठीक राहत भी नहीं मिल रही थी. पर अब इसके अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था. ठंडी से गांड फटी हुई थी. सुरक्षा के लिए मैंने अपने मोटरसाइकिल की लाइट बंद कर दी ताकि कोई हमें दूर से देखकर न आ जाए. मैंने तो बरसाती कोट पहन रखा था तो मैं बिलकुल भी नहीं भीगा था पर मेरी पत्नी ने साड़ी पहन रखी थी सो वो पूरा ही भीग गई थी. जब वह ठंड से कांपने लगी तो मैंने कहा कि पल्लू उतारकर नीचे लटका दो. और बलाऊज उतारकर खाली थैले में रख लो. और आ जाओ बरसाती कोट में ही चिपके रहेंगे. तो तुम्हें थोड़ी गर्मी मिलेगी. और ऐसी बरसात में हमें यहाँ कोई नहीं देख रहा.
उसने पहले ध्यान से दूर-दूर तक देखा. और फिर सब उतारकर बरसाती कोट में आ गई. बरसाती कोट काफी ढीला था. तो हम दोनों आराम से थे.
उसे आधी नंगी हालत में खुद से चिपका पाकर मैंने सोचा की इसे एक यादगार सेक्स का पल बनाया जा सकता है. ये बात उससे कहने पर वो ना नकार करने लगी. अंत में उसने बस गांड में हाथ डालने, मसलने, और चूचे दबाने की छूट दी. हमारी शादी को अभी लगभग 4 या 5 महीने ही हुए थे. पर मैंने इस बीच कभी उसकी गांड नहीं मारी थी. और ना ही उसमें कभी उँगली डाली थी.
पर आज मैंने एक हाथ से उसकी गांड को सहलाते – सहलाते उसमें धीरे से एक उँगली डालने की कोशिश की।
वो .. उई.. माँ… करते हुए. पंजे के बल हो गई. और गांड को एकदम टाइट कर बोली, ‘क्या कर रहे हो.’
मैंने कहा, ‘चूचे दबा रहा हूँ’ अब से पहले मैं जब भी उसकी गांड मारने की कोशिश की वो बहाने बना जाती.
आज अबकी बार उसने सिधा मेरी आँखों में देखा और दायाँ हाथ मेरी गर्दन के पीछे से लेते हुए बाएँ हाथ से मेरी पैंट की चेन खोल लंड निकाल धीरे- धीरे सहलाते हुए, ‘जो करना है करो आज’   कहते हुए अपना मुंह मेरे मुंह में डालकर लॉक कर लिया. मैं उसकी गांड में उँगली डालकर जगह बनाने लगा ताकि मैं आज मैं उसकी गांड यहीं चोद सकूँ.
इसी चक्कर में  मुझे पता ही नहीं चाल कि कब उसने अपनी साड़ी, साया उतार गई. अब वो बरसाती कोट में मुझसे चिपकी पूरी नंगी. उसने मेरी पैंट भी उतार दी थी इसका पता मुझे तब चला जब वो मेरे लंड को अपनी बूर पर रगड़ने लगी.
मैं धीरे – धीरे अपनी बीच वाली उँगली उसकी गांड में पूरी घुला ले रहा था, अब अंगूठा घुसाने के चक्कर में था. और वो पंजो के बल खड़ी हो, कसकर पकड़ अपनी जीभ मेरे मुझे में घुसा किस करने और लंड को आहिस्ता से चूत में डाल रही थी.
मुझे भी ताव करंट की तरह आया और मैंने कसकर जकड़ते हुए गांड में अंगूठा और दूसरे हाथ की एक उँगली साथ ही दूसरी तरफ से लंड चूत में घुसा दिया. वो कसकर चीख उठी, ‘उई माँ… मेरी गांड..’. आज तो मैं गई . पर मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि दूर – दूर कहीं कोई घर तो दूर चिड़िया का घोंसला भी नहीं दिख था.
मैंने बरसाती कोट और शर्ट उतार दिये. अब हम दोनों ही लोग पूरे नंगे थे. उसने थोड़ा पीछे लचकते हुए मेरा सिर पकड़ अपने चूचे की ओर खिंचा. शादी के समय उसकी गांड और चूचे दोनों काफी छोटे-छोटे थे. पर अब कमर के साइज को तो उसने पहले जैसा ही लगभग 28 के आसपास रखा था पर गांड और चूचे का साइज बढ़कर 35 – 38 हो गया था. उसने कमर से पीछे की ओर थोड़ा ज्यादा लचकते हुए पेड़ का सहारा लिया, एक नीची डाल को पकड़कर पैर से मुझे कमर से पकड़ा ये पोज मैंने कहीं आज तक पढ़ा भी नहीं था. तो नाम क्या लिखूँ.
पर चोदने में पेड़ की वह डाल हिल रही थी. और मैं पेड़ पर जमा पानी से हम दोनों फिर से भीगने लगे. काफी देर बाद जब उसका हाथ थका तो मैंने उसे मोटर साइकिल के पास चलने को कहा, मोटर साइकिल पर उसने अपनी एक टाँग घुटनों के बल रखी, आगे को झुकीं. मैंने गांड में लंड जैसे घुसाने की कोशिश की वो हिल गई और बोली पहले चूत मारके निकाल लो फिर ..
मैंने कहा ठीक है. और चूत में डाल धका-धक चालू हो गया. बीच – बीच में उसके चूचों को दबाता.
बीच-बीच में जब वो चिल्ला उठती.. आ. आह .. ऊँ तब मैं  झुककर थोड़ी दर चुम्मा चाटी भी करता. पर एक दो बार के बाद मैंने कहा, ‘आज तू चिल्ला जितना चिल्लाना हो आज यहाँ कोई नहीं सुनेगा, इस वक्त तुझे मुंह पर हाथ रख कर चुदने जरूरत नहीं है.’
मैंने फिर पूछा, ‘अब गांड मारूँ’
बोली, ‘बस थोड़ी देर और’
मैंने उसे पलटकर मोटर सायकिल पर लिटा, दोनों टाँगे अपने कंधे पर ले, चोदम-पट्टी जारी रखी. बारिश से हम दोनों पूरी तरह भीग चुके थे, मजा लगातार बढ़ता ही जा रहा था, इस लिए शायद अभी आधा घंटा हो जाने के बाद भी लगभग पूरा दम बाकी था, कुछ देर बाद वो थोड़ी थक सी गई, उसने खुद में जोश भरने के लिए मुझसे कहा; तुझे गांड मारनी है. न मार लें. मेरी चूत अब थोड़ी ढीली भी हो गई है, कुछ देर गांड मार तब से बूर फिर से टाइट होने लगेगी।
मैंने गाड़ से उँगली निकाली और धीरे से लंड डालने की कोशिश की. मुझे वो पल जब याद आ गया जब मैं सुहागरात वाली रात उसकी चूत में लंड डालने की कोशिश कर रहा था और वो जा ही नहीं रहा था. पर यहां गांड उससे भी कहीं ज्यादा मुश्किल है. मैंने अपने आप पर काबू रखते हुए पर थोड़ा जोर से लंड अंदर धकेला. और वो आह सी…  चीख उठी. इसके बाद तो हर एक ठाक पर जैसे ही मैं अंदर घुसेड़ता वो आह.. आह करती… बस करो. .. .. बस करो..
जब मैं कहा की रहने दूँ.. तो बोली की बस करो. मतलब थोड़ा प्यार से , जरा आराम से अंदर बाहर करो. अब तक चोदने भर की जगह बन गई थी तो  मैंने झटका देने की बजाए. मजे – मजे में चोदने लगा. बारिश भी अब मेरी चोदने की गति से ही रिमझिम होने लगी. मैंने उस पोस को बदलकर फिर से उसे मोटर साइकिल पर एक टाँग रख गांड पीछे मेरी तरफ करने को कहा. और फिर कभी थोड़ी देर चोदता और कभी चूत में जब उसका निकल गया तो मैंने आखिर में कुछ देर उसकी गांड ही मारी.
उसकी साड़ी , और पैंट में मिट्टी लग जाने से खराब हो गई थी. मैंने उसे मात्र बरसाती कोट  पहन ही चलने को का. चूंकि बरसाती कोट घूटनों तक होता है तो किसी को कुछ पता नहीं चलता. मैंने अपनी पैंट और शर्ट मिट्टी लगी ही पहनी और भीगते घर आ गए. तब तक मेरी काफी मिट्टी धुल गई थी. और घर बहाना बनाया कि मोटर सायकिल कीचड़ में स्लिप हो गई थी।






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