Sunday, August 31, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--24

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--24
अब आगे....
 
मैं: क्या हुआ आप इस तरह गुम-सुम क्यों हो गए?

भौजी: कुछ नहीं, बस ऐसे ही|

मैं: तो अब आप....

आगे पूरी बात होने से पहले ही माधुरी आ गई:

माधुरी: अरे मानु जी अब आप की तबियत कैसी है?

मैं: ठीक है|

भौजी: अच्छा हुआ तुम आ गई, अभी तुम्हारी ही बात हो रही थी|

माधुरी: सच? क्या बात हो रही थी?

मैं: मैं पूछ रहा था की आखिर आप कल क्यों नहीं दिखाई दीं?

माधुरी: वो दरअसल कल रसिका भाभी अपने मायके जाने वाली थीं तो मैंने सोचा क्यों न मैं कहीं घूम आऊँ| आज दोपहर को जब घर आई तब मुझे पता चला की कल क्या-क्या हुआ? वैसे आप दोस्ती बहुत अच्छी निभाते हो, दोस्त की खातिर अपनी जान की भी परवाह भी नहीं की?

मैं: दोस्तों के लिए तो अपनी जान हाजिर है!!! वैसे ये बात क्या पूरे गाँव को पता है?

माधुरी: अरे इस गाँव में कोई बात छुपी है क्या? ये ही नहीं आस पास के गाँव वाले भी आपका सम्मान करने लगे हैं|

बस इसी तरह माधुरी सवाल पूछती रही और मैं जवाब देता रहा| हमारी बातें सुन नेहा उठ गई| आँख मलते-मलते बैठी और फिर मेरे पास आई और मुझे पप्पी दी और फिर अपनी मम्मी को पप्पी दी| फिर बाहर खेलने चली गई, माधुरी का मुँह देखने लायक था| जैसे उसे भौजी से जलन होने लगी थी|

माधुरी: क्या बात है मानु जी, इन कुछ दिनों में ही आपका इतना लगाव हो गया नेहा से?

मैं कुछ नहीं बोला बस मुस्कुरा दिया और इससे पहले की वो और सवाल पूछती मैं उठ के बाहर निकलने लगा|

माधुरी: कहाँ चल दिए?

मैं: नेहा के साथ खेलने, आप बैठो और भौजी को कंपनी दो|

मैं बाहर आके नेहा को ढूंढने लगा, वो छापर के नीचे गुड़ियों के साथ खेल रही थी| मैं भी वहीँ उसके पास बैठ गया, और उसके साथ खेलने लगा| मेरे पीछे-पीछे माधुरी भी आ गई:

मैं: क्या हुआ भौजी के साथ मन नहीं लगा?

माधुरी: वो तो सो रहीं हैं|

अब वो भी हमारे साथ खेलने लगी, हंसी मजाक चल रहा था| वो बार-बार मेरे बारे में जानने की कोशिश करती और सवाल पूछती| मैं भी उसे जवाब देता और बदले में वो प्यार से मुस्कुरा देती| करीब दो घंटे बीत गए, समय हुआ था चार बज के बीस मिनट| मैं उठ के खड़ा हुआ और अंगड़ाई लेने लगा.. तभी मुझे भौजी के चीखने की आवाज आई|

भौजी रोती-बिलखती हुई, भागती हुई मेरी तरफ आ रही थी| मैं बड़ा हैरान था और उनकी ओर बढ़ने लगा| भौजी मुझसे कास के लिपट गई और रोती रही| मैं उन्हें चुप कराने की भर- पुर कोशिश करता रहा परन्तु भौजी चुप ही नहीं हो रही थी, बस फुट-फुट के रो रहीं थी| मैं उनके सर पे हाथ फेरते हुए उन्हें चुप कराने लगा, छप्पर के नीचे बिछी चारपाई पे नेहा के पास बैठाया| नेहा उनके आंसूं पोछने लगी पर उनका रोना बंद ही नहीं हो रहा था|माधुरी भी उनकी बगल में बैठ गई और पीठ सहलाने लगी|

मैं: क्या हुआ ये बताओ ?

भौजी कुछ नहीं बोल रही थी बस मेरा सीधा हाथ थामे हुए थी| मैंने माधुरी से पानी लाने को कहा:

मैं: प्लीज मत रोओ, आपको मेरी कसम!!!

मैं जानता था की उन्हें चुप कराने के यही तरीका है, अब ये सब मैं माधुरी के सामने तो नहीं कह सकता था| इतने में माधुरी पानी ले के आ गई, उसने गौर किया की भौजी ने रोना बंद कर दिया है और अब वे बस सुबक रहीं थी|

मैं: ये लो पानी पीओ| अब शांत हो जाओ...

भौजी ने सुबकते हुए पानी पिया.. उन्हें खांसी भी आई| माधुरी उनके पास ही बैठी थी, तो उसने उनकी पीठ को सहलाया| अब भौजी कुछ काबू में लग रहीं थी| उनका सुबकना बंद तो नहीं पर काम हो चूका था|

मैं: अच्छा अब बताओ की हुआ क्या? आपने कुछ डरावना देख लिया: भूत, प्रेत ?

भौजी कुछ नहीं बोलीं बस ना में गर्दन हिला दी|

मैं: तो क्या हुआ? आप तो सो रहे थे ना.... कोई सपना देखा आपने?

इस्पे भौजी की आँखों में फिर से आंसूं छलक आये| मैं इस बात को और न बढ़ाते हुए उन्हें चुप कराने लगा:

मैं: अच्छा आप से कोई बात नहीं पूछेगा| बस शांत हो जाओ!

देखने वाली बात ये थी की भौजी ने अब भी मेरा हाथ थामा हुआ था| नेहा भी परेशान हो गई थी और लग रहा था की उसका साईरन कभी भी बज जायेगा, तो मैंने बात बदलते हुए भौजी को चारपाई पे लेटने का परामर्श दिया और मैं उनके पास ही बैठ गया ताकि उन्हें संतुष्टि रहे| ये तो साफ़ था की भौजी ने मेरे बारे में ही कोई सपना देखा था, पर क्या? ये नहीं मालूम था|अब घर के सभी लोग काम से लौट आये थे, माँ पिताजी भी फ्रेश हो के आगये थे| माँ ने मुझे भौजी के साथ बैठे हुए देखा:

माँ: क्या हुआ बहु? अब क्या कर दिया इस नालायक ने?

भौजी: कुछ नहीं चाची|

माधुरी: जी इन्होने कोई डरावना सपना देखा था, इसलिए डर गईं|

उसकी बात पे मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं कह कुछ नहीं पाया| ये सुनने के बाद भौजी ने मेरा हाथ छोड़ा और उठ के मुंह धोने चलीं गई| मैं उनके पीछे जाना चाहता था परन्तु मेरा ऐसा करना उचित नहीं होता इसलिए मैं वहीँ बैठ रहा| कुछ समय बाद माधुरी भी चली गई|


रात के सात बजे होंगे, साईकिल की घंटी की आवाज आई| ये और कोई नहीं बल्कि चन्दर भैया और मामा थे|पिताजी और बड़के दादा (बड़े चाचा) गुस्से से लाल हो गए थे|

बड़के दादा: यहाँ क्या लेने आया है? निकल जा यहाँ से !!

उन्होंने चन्दर भैया को झिड़कते हुए कहा|

बड़की अम्मा (बड़ी चाची): तुझे जनम देके मैंने जीवन की सबसे बड़ी गलती की|

अब बड़के दादा ने मारने के लिए लट्ठ उठा लिया और चन्दर भैया की ओर दौड़े| ये नजारा मैं पीछे खड़ा देख रहा था| भौजी रसोई से निकली और मेरी बगल में आके खड़ी हो गईं| मुझे लगा की शायद डर से वो मेरा हाथ थामेंगी पर अचानक ही वो नेहा जो मेरे साथ मेरी ऊँगली पकड़ के खड़ी थी उसे ले के रसोई की ओर चल दीं| मैं पलट के उनके इस व्यवहार के लिए उन्हें आस्चर्यचकित नज़रों से देख रहा था|

बड़के दादा: तेरी हिम्मत कैसे हुई अपने छोटे भाई पे हाथ उठाने की| वो मुझे तुझसे ज्यादा प्यारा है..

उन्होंने चन्दर भैया को मारने के लिए लट्ठ उठाया.... मामा ने बीच बचाव करने की कोशिश की परन्तु बड़के दादा काबू में नहीं आ रहे थे| अंत में पिताजी ने उनको थामा और उनके हाथ से लट्ठ छीन के फेंक दिया|

पिताजी : भैया आप ये क्या कर रहे हो? अपने बेटे को मार डालोगे? वो नशे में था... होश नहीं था| सजा देनी है तो ऐसी दो की अगली बार शराब को हाथ लगाने से पहले दस बार सोचे|

चन्दर भैया रट हुए बड़के दादा के पैरों में गिर गए|

चन्दर भैया: पिताजी मुझे माफ़ कर दो, मैं नशे में था| मुझसे गलती हो गई, मैं आइन्दा कभी शराब को हाथ नहीं लगाउँगा|

बड़के दादा: माफ़ी मांगनी है तो अपने चाचा से मांग, मुझे तेरी सूरत भी नहीं देखनी|

ये कहते हुए बड़के दादा ने उन्हें झिड़क दिया|

चन्दर भैया: चाचा मुझे माफ़ कर दो| मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी!!!

पिताजी: ठीक है परन्तु कसम खाओ की आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाओगे|

चन्दर भैया: मैं अपनी माँ की कसम खाता हूँ की आज के बाद शराब को कभी हाथ नहीं लगाउँगा|

अब चन्दर भैया मेरी ओर बढ़ने लगे, उन्हें देखते ही कल सुबह हुए दृश्य आँखों के सामने आ गए| खून खौलने लगा, मन तो किया की लट्ठ से उनकी हड्डियां तोड़ दूँ|

चन्दर भैया: मानु भैया, मुझे माफ़ करदो!!! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई| आप जो सजा दो उसके लिए मैं तैयार हूँ|

ये कहते हुए वो मेरे पाँव छूने लगे| मैंने उन्हें रोक और कहा: "भैया चाहता तो मैं भी आप पर हाथ उठा सकता था| परन्तु सिर्फ भौजी की वजह से मैंने कुछ नहीं करा और चुप-चाप सहता रहा| मैं आपको केवल एक ही शर्त पे माफ़ करूँगा, अगर आप कसम खाओ को आगे से कभी भी आप नेहा या भौजी पर हाथ नहीं उठाओगे|"

मेरी बात सुनके सब स्तब्ध थे, पर फिर सबने इस बात का समर्थन किया|

चन्दर भैया: मैं अपनी माँ की कसम खता हूँ की आज के बाद कभी भी मैं अपनी पत्नी और बच्ची पर हाथ नहीं उठाऊँगा|

मामा: मुन्ना जरा देखें तो तुम्हारे घाव कैसे हैं?

मैं: जी अब काफी बेहतर हैं|

भौजी अब भी सहमी सी कड़ी थीं और नेहा तो बिलकुल भौजी के पीछे ही दुबक गई थी| भोजन का समय था इसलिए मामा, चन्दर भैया, अजय भैया, पिताजी और बड़के दादा सब हाथ-मुँह धो के भोजन के लिए बैठ गए| मैं कुऐं के पास घूम रहा था, तभी नेहा भागी-भागी मेरे पास आई:
"चाचू चलो खाना खा लो?"

मैं: अभी नहीं मैं बाद में खाऊँगा| तुम जाओ खाना खाओ और जल्दी सो जाओ|

नेहा: नहीं चाचू मम्मी ने कहा है की आप को साथ ले कर आऊँ|

मैंने सोचा की शायद भौजी को मुझ से कोई बात करनी होगी| इसलिए मैं नेहा के साथ चल दिया|
मैंने भौजी से खुसफुसा के कहा की मैं आपके साथ ही भोजन करूँगा तो उन्होंने ना में सर हिला दिया| अब मैं बहुत परेशान हो चूका था, पहले तो स्नानघर में भौजी का निराश होना और अब उनका मेरे साथ भोजन करने से मन कर देना| ये चिंता मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी| मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा परन्तु ये तो स्पष्ट था की मेरे चेहरे के भावों से वो समझ ही चुकीं थी की मेरा मूड ख़राब है|बेमन से खाना खाया और अपने बिस्तर पे लेता आसमान में तारे देखने लगा| शाम को जो भी हुआ उसका एक सुखद पहलु भी था, की भैया को मेरे और भौजी के रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चला| क्योंकि अगर पता होता तो वो सब कुछ सच कह देते और फिर मेरी जो तोड़ाई होती उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती| मैं भौजी का इन्तेजार करता रहा..... और नींद कब आ गई पता ही नहीं चला|


उमीदों वाली सुबह हुई, मैंने सोच लिया था की मैं किसी भी हालत में भौजी से पूछ के रहूँगा की आपने मुझसे बोल-चाल क्यों बंद कर रखी है| परन्तु मौका मिले तब ना, सुबह-सुबह का समय था तो सब घरवाले रॉयस के आस-पास ही मंडरा रहे थे| मैं नहा-धो के तैयार हो गया और चाय पीने आ गया,

मैं: भौजी चाय देना?

भौजी: ये लो .. नेहा बेटा सुनो तुम भी चाय पी लो|

इतना कह के भौजी चलीं गईं, मुझे ऐसा लग रहा था की वो मुझसे नजर चुरा रहीं है| नौ बजे तक सभी खेत चले गए, अब घर पे केवल भौजी, मैं, नेहा, माँ और पिताजी थे| अब माँ-पिताजी को कैसे बीजी करूँ? मैं अकेला ही कुऐं के आस-पास घूमने लगा, अब माँ-पिताजी को तो बिजी करने का कोई उपाय सूझ नहीं रहा था| उधर बड़े घर में, माँ कपडे समेट रही थी और पिताजी बाहर किसी से बात कर रहे थे| भौजी मुझे रसोई से अकेला टहलता हुआ देख रही थीं और उहोने नेहा को मुझे बुलाने भेजा| मैं बहुत खुश हुआ की चलो कम से कम मुझे बुलाया तो सही|

भौजी: मानु.... नाराज हो?

मैं: नाराज होने का हक़ है मुझे?

भौजी: प्लीज ऐसा मत कहो?

मैं: तो बताओ की आपको कल क्या हो गया था? पहले स्नान घर में आप एक डैम से उदास हो गए| फिर कुश देर बाद आपने कोई भयानक सपना देखा, मुझसे लिपट के इतनी बुरी तरह रोये| और फिर आपका मेरे से ऐसे सलूक करना जैसे मैं कोई अजनबी हूँ?

भौजी: दरअसल मैं कोशिश कर रही थी की तुम से दूर रह सकूँ| कुछ घंटों के लिए ही सही परन्तु मैं तुम्हें बता नहीं सकती कल रात मैं कितना तड़पी हूँ, कितना रोइ हूँ!!!

मैं: मुझसे दूर रहने की कोशिश? ठीक है मैं खुद ही आपसे दूर चला जाता हूँ|

मैं उठ के जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ थामा और मुझे रोका और रोने लगी|

भौजी: मानु प्लीज मुझे छोड़ के मत जाओ, कुछ घंटे तुम्हारे बिना .... मेरा बुरा हाल हो गया| मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती.. मैं मर जाऊँगी|

मैं: आपको पता है कल मुझे कैसा लगा? ऐसा लगा मानो मैं कोई अजनबी हूँ जिससे से बात करने से भी आप कतरा रहे हो|

भौजी: मानु कल मैंने एक बहुत ही भयानक सपना देखा|

मैं: कैसा सपना?

भौजी: की तुम मुझे छोड़के शहर चले गए और अब वापस कभी नहीं आओगे|

मैं: वो तो सिर्फ एक सपना था| मैंने आपसे अलग कैसे रह सकता हूँ, साल में एक बार ही सही पर आऊँगा जर्रूर|

भौजी: तुम नहीं आओगे!

मैं: आपको कैसे पता?

भौजी: तुम अब बड़ी क्लास में हो कल को तुम बोर्ड की परीक्षा दोगे| फिर तुम्हें कॉलेज में एडमिशन मिलेगा, अब कॉलेज में तो दो महीने की गर्मियों की छुटियाँ नहीं होती जिनमें तुम मुझे मिलने आओगे| और चलो आ भी गए तो कितने दिन? दो दिन या हद से हद तीन दिन रुकोगे और फिर पूरे एक साल बाद आओगे वो भी शायद!!! तुम्हारे नए दोस्त बनेंगे, नई लड़कियाँ मिलेंगी जो तुम्हें पसंद करेंगी और शायद तुम्हें उनसे प्यार भी हो जायेगा और तुम मुझे भूल जाओगे| फिर तुम्हारी शादी, बच्चे और धीरे-धीरे ये यादें तुम्हारे मन से भी मिट जाएँगी| पर मेरा क्या होगा? मैंने तुम्हें अपना पति माना है? अपने आप को तुम्हें समर्पित कर चुकी हूँ| मैं ये पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे काटूंगी?

मैं: नहीं भौजी ऐसा नहीं हो सकता, मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| आपको मेरे प्यार पे विश्वास नहीं?

भौजी: विश्वास है परन्तु चाचा-चाची कभी न कभी टी तुम्हारी शादी कराएँगे, तब क्या?

मैं: अगर मेरे बस में होता तो मैं कभी शादी नहीं करता| परन्तु मुझे दुःख है की माँ-पिताजी के ख़ुशी के लिए मुझे कभी न कभी शादी तो करनी पड़ेगी| पर आप यकीन मानो मैं अपनी पत्नी को कभी भी वो प्यार नहीं दे पाउँगा जो मैं आपको देना चाहता हूँ| वो कभी भी आपकी जगह नहीं ले सकती!!! इस समस्या का कोई उपाय नहीं है!!!

भौजी: उपाय तो है|

मैं: क्या?

भौजी: अगर मैं तुम से कुछ माँगू तो तुम मुझे दोगे?

मैं: हाँ बोलो?


कहानी जारी रहेगी....



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