FUN-MAZA-MASTI
पुजारी हवस का --14
सर रचना के संभलने का इंतजार करने लगे. साथ ही झुक कर होंठों से रचना की आंखें चूमने लगे. मेरा लंड अब सिर उठाने लगा था. सर ने उसे पकड़ा और दबाने लगे , मजा आ रहा है दीदी की चुदाई देखकर?"
"हां सर, रचना की चूत कितनी खुल गयी है, ये फ़ट तो नहीं जायेगी सर?" मैंने उत्सुकता से पूछा.
"अरे नहीं, तेरी बहन जैसी खूबसूरत मतवाली लड़कियों की चूत ऐसे नहीं फ़टती, ये तो बनी हैं हरदम चुदवाने को. बस दो मिनिट बाद ये कैसे मचलने लगेगी, तू ही देखना" सर मुझे पास खींच कर मेरा चुम्मा लेते हुए बोले.
धीरे धीरे रचना का कपकपाता बदन शांत हुआ. सर ने एक उंगली से रचना का दाना रगड़ना शुरू कर दिया. दो मिनिट में रचना कमर हिलाने लगी. सर ने मुस्कराकर . मुझे तो पता था कि ये बहादुर बच्ची ऐसे घबराने वाली नहीं है. अब देखिये मैं इसे कैसा मस्त करता हूं"
सर ने रचना का मुंह छोड़ा "रचना , ठीक है ना तू? अब तो नहीं दुखता?"
रचना सिसक कर बोली "सर ... अभी भी बहुत दुखता है ... पर अच्छा भी लग रहा है ... आप ने जब .... डाला तब ऐसा लग रहा था कि मैं ... मर जाऊंगी"
"तेरी गलती नहीं है, मेरा हथियार है ही ऐसा मूसल जैसा, पर अब देख,में तुझे ऐसा मजा दूंगा कि तू स्वर्ग का सुख लेगी"सर ने कहा
सर ने अब धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था. साथ ही उनकी उंगली रचना के दाने पर चल रही थी.
मैंने देखा कि सर का लंड अब आराम से अंदर बाहर हो रहा था. जब बाहर होता तो थोड़ा पानी निकलता. रचना हौले हौले सांसें ले रही थी और सर की आंखों में आंखें डाले हुए थी. "सर ... मजा आ रहा है सर .... कीजिये ना और ..."
"दर्द तो नहीं हो रहा है रचना ? चोदूं तुझे अब कायदे जैसे तेरी जैसी छोकरी को चोदना चाहिये?" सर ने रचना का चुम्मा लेकर पूछा. रचना ने बस पलक झपका दी. सर उसे अब हौले हौले चोदने लगे. रचना ने एक सिसकारी भरी और सर से लिपट गयी "हा ऽ य सर .... उई ऽ मां ऽ .... सर .... दर्द होता है सर पर बहुत अच्छा लग रहा है सर ... और ... और ...कीजिये ना .... प्लीज़"
"और क्या रचना ? ठीक से बोल, और क्या करूं?" सर ने मुस्कराकर पूछा. वे बड़े सधे अंदाज में चोद रहे थे. बस तीन चार इंच लंड अंदर बाहर करते, बिना एक पल भी रुके हुए.
रचना ने शरमा कर कहा "सर ... चोदिये ना प्लीज़"
"ये हुई ना बात! अब लेसन सीखी है कि कैसे बोला जाता है. अब देख तुझे कैसे चोदता हूं" कहकर सर ने रफ़्तार बढ़ा दी. पूरा लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मुझे लगा कि रचना को दर्द होगा पर वो अब मजे से चुदवा रही थी. उसकी जरा सी बुर में सर का इतना बड़ा लंड अंदर बाहर होता देख कर मैं आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर यह नजारा देख रहा था. मेरा लंड फ़िर से कसके खड़ा हो गया था.
. वे रचना को कस के चोद रहे थे. सात आठ धक्के लगाने के बाद रुक जाते, फ़िर एक मिनिट रुक कर हौले हौले चोदते और फ़िर घचाघच लंड पेलने लगते.रचना सिसक सिसक कर कह रही थी "सर ... बहुत मजा .... आ रहा है सर ... रहा नहीं जाता ....आह ... ओह ... प्लीज़ .... प्लीज़ ... और जोर से कीजिये ... चोदिये ना .. ... देखिये ना ... प्लीज़ "
मेने सर से कहा "सर, झड़ा दीजिये बेचारी को, ऐसे न तड़पाइये उसे"
सर ने धक्के लगाते हुए कहा "अरे जरा मजा करने दो, बेचारी ने इतना दर्द सहा है मेरा लंड लेने में, रचना , तू क्यों बिचकती है, मजा ले, चुदने का पूरा मजा नहीं लेगी क्या?" फ़िर पाल सर रचना को बाहों में भर के पूरे उसपर लेट गये
मुझे रोमांच हो आया.
" सर ने रचना के होंठ अपने मुंह में लिये और उसका मुंह चूसते हुए हचक हचक कर चोदने लगे.
अब कमरे में बस ’फ़चा फ़च’ ’फ़चा फ़च’ ’पॉक पॉक पुक पुक’ ऐसी चुदाई की आवाजें आ रही थीं. दीदी ने अपनी टांगें और हाथ सर के बदन के इर्द गिर्द भींच लिये थे और कमररचना उछाल उछाल कर उनका मुंह चूसते हुए चुदवा रही थी.
सर ने रचना को बहुत देर चोदा. वे दो बार झड़ीं. वे सर को चूमती जातीं और शाबासी देती जातीं "बहुत अच्छे मेरे सर , .....बहुत प्यारे है आप .... बहुत मस्त चोदते है .... अब जरा और जोर से .... लगा ना कस कस के .... आज खाना नहीं खाया क्या? .... हाय सर देख कैसे कचूमर निकाल रहे हैं मेरी चूत का...."
बात सच थी. सर ने रचना को ऐसा चोदा था कि वो बस अपने सर के मुंह में दबे मुंह से ’अं ऽ अं ऽ अं ऽ’ कर रही थी. शायद अब वो झड़ गयी थी इसलिये छूटने की कोशिश कर रही थी. पर सर उसे छोड नहीं रहे थे. जब सर ने अपना मुंह अलग किया तो रचना सिसक कर बोली "आह ऽ ... बस सर ... प्लीज़ सर ... अब छोड़िये ना ... कैसा .. तो ... भी होता .... है ... सर .... प्लीज़ सर .."
सर मुझसे बोले "तेरी रचना झड़ .... गयी है इसलिये अब ..... हालत खराब है उसकी .....पर तेरे सर नहीं मानेंगे .... अब तो मुझे खास मजा आ रहा हें ..... आखिर बुर ....ऐसे ... रोज रोज ... थोड़े मिलती है चोदने को ...."
सर ने एक मिनिट के लिये चुदाई रोक दी. "इत्ते में खलास हो गयी तू रचना ? "रचना लंबी लंबी सांसें लेती हुई संभलने की कोशिश करने लगी. हंसते हुए सर उसके गाल चूमते रहे, फ़िर अचानक फ़िर से रचना के होंठों को अपने मुंह में पकड़ा और शुरू हो गये. अब वे पूरी ताकत से चोद रहे थे. उनका पूरा लंड रचना की बुर में अंदर बाहर हो रहा था.
रचना छटपटाने लगी. बहुत छूटने की कोशिश की पर सर के आगे उसकी क्या चलने वाली थी. सर अब कस के धक्के लगा रहे थे, बिना किसी परवाह के कि उनके नीचे कोई चुदैल रंडी नहीं बल्कि मेरी नाजुक बहना थी.
सर अब ऐसे कसके रचना की धुनाई कर रहे थे कि देख देख कर मुझे ही डर लग रहा था कि रचना को कुछ हो न जाये. अचानक रचना ने आंखें बंद कर लीं और लस्त हो गयी, छटपटाना भी बंद हो गया.
"बेहोश हो गयी शायद, बेचारी की पहली बार है, बुर ने जवाब दे ही दिया आखिर बेचारी की, आखिर ऐसे सोंटे के आगे उसकी क्या चलती, इसने तो बड़ों बड़ों को खलास कर दिया है, ये बच्ची किस खेत की मूली है" सर ने बड़े गर्व से कहा.
सर हांफ़ते हुए बोले "अभी नहीं ... अब .. आयेगा मजा .... लगता है कि किसी .... रबड़ की .... गुड़िया को .... चोद रहा हूं ... ... ऐसे किसी बेहोश बदन को .... कचरने में .... क्या आनंद .... आता .... है ... इसे भी मजा .... आ रहा होगा ....बेहोशी में भी .... नंबर एक की .... चुदैल कन्या .... है ये ..."
दो मिनिट बाद सर भी कस के चिल्लाये और झड़ गये. फ़िर रचना के बदन पर पड़े पड़े जोर जोर की सांसें भरते हुए लस्त पड़कर आराम करने लगे.
पांच मिनिट बाद मैं और सर दोनों उठ बैठे. सर ने उठकर मेरा लंड चाटा और फ़िर रचना की बुर में मुंह डाल दिया. लपालप उनकी बुर से बहते वीर्य और पानी का भोग लगाने लगे. बीच में मेरी ओर मुड़कर बोले "बैठा क्यों है रे मूरख? भोग नहीं लगाना है? अरे इस प्रसाद से स्वादिष्ट और कुछ नहीं है इस दुनिया में. चल, घुस जा अपनी बहन की टांगों में"
. मैंने सर का झड़ा लंड मुंह में लिया और चूस डाला. रचना की बुर के पानी और उनके वीर्य का मिला जुला स्वाद था. फ़िर रचना की बुर अपनी जीभ से साफ़ करने में लग गया.अब पाल सर ने मेरी और देखा
मुझे बिस्तर पर सुला कर मेरा झड़ा लंड सर ने प्यार से मुंह में लिया और चूसने लगे. एक हाथ बढ़ाकर उन्होंने थोड़ा नारियल तेल अपनी उंगली पर लिया और मेरे गुदा पर चुपड़ा. फ़िर मेरा लंड चूसते हुए धीरे से अपनी उंगली मेरी गांड में आधी डाल दी.
"ओह ... ओह .." मेरे मुंह से निकला.
"क्या हुआ, दुखता है?" सर ने पूछा.
"हां सर ... कैसा तो भी होता है"
"इसका मतलब है कि दुखने के साथ मजा भी आता है, है ना? यही तो मैं सिखाना चाहता हूं अब तुझे. गांड का मजा लेना हो तो थोड़ा दर्द भी सहना सीख ले" कहकर सर ने पूरी उंगली मेरी गांड में उतार दी और हौले हौले घुमाने लगे. पहले दर्द हुआ पर फ़िर मजा आने लगा. लंड को भी अजीब सा जोश आ गया और वो खड़ा हो गया. सर उसे फ़िर से बड़े प्यार से चूमने और चूसने लगे "देखा? तू कुछ भी कहे या नखरे करे, तेरे लंड ने तो कह दिया कि उसे क्या लुत्फ़ आ रहा है"
पांच मिनिट सर मेरी गांड में उंगली करते रहे और मैं मस्त होकर आखिर उनके सिर को अपने पेट पर दबा कर उनका मुंह चोदने की कोशिश करने लगा.
सर मेरे बाजू में लेट गये, उनकी उंगली बराबर मेरी गांड में चल रही थी. मेरे बाल चूम कर बोले "अब बता बेटे, जब औरत को प्यार करना हो तो उसकी चूत में लंड डालते हैं या उसे चूसते हैं. है ना? अब ये बता कि अगर एक पुरुष को दूसरे पुरुष से प्यार करना हो तो क्या करते हैं?"
"सर ... लंड चूसकर प्यार करते हैं?" मैंने कहा.
"और अगर और कस कर प्यार करना हो तो? याने चोदने वाला प्यार?" सर ने मेरे कान को दांत से पकड़कर पूछा. मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था.
"सर, गांड में उंगली डालते हैं, जैसा मैंने किया था और आप कर रहे हैं"
"अरे वो आधा प्यार हुआ, करवाने वाले को मजा आता है. पर लंड में होती गुदगुदी को कैसे शांत करेंगे?"
मैं समझ गया. हिचकता हुआ बोला "सर ... गांड में .... लंड डाल कर सर?"
"बहुत अच्छे मेरी जान. तू समझदार है. अब देख, तू मुझे इतना प्यारा लगता है कि मैं तुझे चोदना चाहता हूं. तू भी मुझे चोदने को लंड मुठिया रहा है. अब अपने पास चूत तो है नहीं, पर ये जो गांड है वो चूत से ज्यादा सुख देती है. और चोदने वाले को भी जो आनद आता है वो .... बयान करना मुश्किल है बेटे. अब बोल, अगला लेसन क्या है? तेरे सर अपने प्यारे स्टूडेंट को कैसे प्यार करेंगे?"
"सर ... मेरी गांड में अपना लंड डाल कर .... ओह सर ..." मेरा लंड मस्ती में उछला क्योंकि सर ने अपनी उंगली सहसा मेरी गांड में गहराई तक उतार दी.
"सर दर्द होगा सर .... प्लीज़ सर " मैं मिन्नत करते हुए बोला. मेरी आंखों में देख कर सर मेरे मन की बात समझ गये "तुझे करवाना भी है ऐसा प्यार और डर भी लगता है, है ना?"
"हां सर, आपका बहुत बड़ा है" मैंने झिझकते हुए कहा.
"अरे उसकी फ़िकर मत कर, ये तेल किस लिये है, आधी शीशी डाल दूंगा अंदर, फ़िर देखना ऐसे जायेगा जैसे मख्खन में छुरी. और तुझे मालूम नहीं है, ये गांड लचीली होती है, आराम से ले लेती है. और देख, मैंने पहले एक बार अपना झड़ा लिया था, नहीं तो और सख्त और बड़ा होता. अभी तो बस प्यार से खड़ा है, है ना? और चाहे तो तू भी पहले मेरी मार सकता है."
मेरा मन ललचा गया. सर हंस कर बोले "मारना है मेरी? वैसे मैं तो इसलिये पहले तेरी मारने की कह रहा था कि तेरा लंड इतना मस्त खड़ा है, इस समय तुझे असली मजा आयेगा इस लेसन का. गांड को प्यार करना हो तो अपने साथी को मस्त करना जरूरी होता है, वैसे ही जैसे चूत चोदने के पहले चूत को मस्त करते हैं. लंड खड़ा है तेरा तो मरवाने में बड़ा मजा आयेगा तेरे को"
"हां सर." सर मुझे इतने प्यार से देख रहे थि कि मेरा मन डोलने लगा " सर ... आप ... डाल दीजिये सर अंदर, मैं संभाल लूंगा"
"अभी ले मेरे राजा. वैसे तुम्हें कायदे से कहना चाहिये कि सर, मार लीजिये मेरी गांड!"
"हां सर .... मेरी गांड मारिये सर .... मुझे .... मुझे चोदिये सर जैसे आपने दीदी को चोदा था."
सर मुस्कराये "अब हुई ना बात. चल पलट जा, पहले तेल डाल दूं अंदर. तुझे मालूम है ना कि कार के एंजिन में तेल से पिस्टन सटासट चलता है? बस वैसे ही तेरे सिलिंडर में मेरा पिस्टन ठीक से चले इसलिये तेल जरूरी है. अच्छा पलटने के पहले मेरे पिस्टन में तो तेल लगा"
मैंने हथेली में नारियल का तेल लिया और सर के लंड को चुपड़ने लगा. उनका खड़ा लंड मेरे हाथ में नाग जैसा मचल रहा था. तेल चुपड़ कर मैं पलट कर सो गया. डर भी लग रहा था. तेल लगाते समय मुझे अंदाजा हो गया था कि सर का लंड फ़िर से कितना बड़ा हो गया है. सर ने भले ही दिलासा देने को यह कहा था कि एक बार झड़कर उनका जरा नरम खड़ा रहेगा पर असल में वो लोहे की सलाख जैसा ही टनटना गया था.
सर ने तेल में उंगली डुबो के मेरे गुदा को चिकना किया और एक उंगली अंदर बाहर की. फ़िर एक हाथ से मेरे चूतड फ़ैलाये और कुप्पी उठाकर उसकी नली धीरे से मेरी गांड में अंदर डाल दी. मैं सर की ओर देखने लगा.
वे मुस्कराकर बोले "बेटे, अंदर तक तेल जाना जरूरी है. मैं तो भर देता हूं आधी शीशी अंदर जिससे तुझे कम से कम तकलीफ़ हो." वे शीशी से तेल कुप्पी के अंदर डालने लगे.
मुझे गांड में तेल उतरता हुआ महसूस हुआ. बड़ा अजीब सा पर मजेदार अनुभव था. सर ने मेरी कमर पकड़कर मेरे बदन को हिलाया "बड़ी टाइट गांड है रे तेरी, तेल धीरे धीरे अंदर जा रहा है"
मेरी गांड से कुप्पी निकालकर सर ने फ़िर एक उंगली डाली और घुमा घुमाकर गहरे तक अंदर बाहर करने लगे. मैंने दांतों तले होंठ दबा लिये कि सिसकारी न निकल जाये. फ़िर सर ने दो उंगलियां डाली. इतना दर्द हुआ कि मैं चिहुक पड़ा.
"अब पलट कर लेट जा, आराम से. वैसे तो बहुत से आसन हैं और आज तुझे सब आसनों की प्रैक्टिस कराऊंगा. पर पहली बार डालने को ये सबसे अच्छा है" मेरे पीछे बैठते हुए सर बोले.
सर ने मेरे चेहरे के नीचे एक तकिया दिया और अपने घुटने मेरे बदन के दोनों ओर टेक कर बैठ गये. "अब अपने चूतड़ पकड़ और खोल, तुझे भी आसानी होगी और मुझे भी. और एक बात है बेटे, गुदा ढीला छोड़ना नहीं तो तुझे ही दर्द होगा. समझ ले कि तू लड़की है और अपने सैंया के लिये चूत खोल रही है, ठीक है ना?"
मैंने अपने हाथ से अपने चूतड़ पकड़कर फ़ैलाये. सर ने मेरे गुदा पर लंड जमाया और पेलने लगे "ढीला छोड़ अनिल, जल्दी!"
मैंने अपनी गांड का छेद ढीला किया और अगले ही पल सर का सुपाड़ा पक्क से अंदर हो गया. मेरी चीख निकलते निकलते रह गयी. मैंने मुंह में भरी चप्पल दांतों तले दबा ली और किसी तरह चीख निकलने नहीं दी. बहुत दर्द हो रहा था.
सर ने मुझे शाबासी दी "बस बेटे बस, अब दर्द नहीं होगा. बस पड़ा रह चुपचाप" और एक हाथ से मेरे चूतड़ सहलाने लगे. दूसरा हाथ उन्होंने मेरे बदन के नीचे डाल कर मेरा लंड पकड़ लिया और उसे आगे पीछे करने लगे.
दो मिनिट में जब दर्द कम हुआ तो मेरा कसा हुआ बदन कुछ ढीला पड़ा और मैंने जोर से सांस ली. सर समझ गये. झुक कर मेरे बाल चूमे और बोले "बस , अब धीरे धीरे अंदर डालता हूं. एक बार तू पूरा ले ले, फ़िर तुझे समझ में आयेगा कि इस लेसन में कितना आनंद आता है" फ़िर वे हौले हौले लंड मेरे चूतड़ों के बीच पेलने लगे. दो तीन इंच बाद जब मैं फ़िर से थोड़ा तड़पा तो वे रुक गये. मैं जब संभला तो फ़िर शुरू हो गये.
पांच मिनिट बाद उनका पूरा लंड मेरी गांड में था. गांड ऐसे दुख रही थी जैसे किसीने हथौड़े से अंदर से ठोकी हो. सर की झांटें मेरे चूतड़ों से भिड़ गयी थीं. सर अब मुझ पर लेट कर मुझे चूमने लगे. उनके हाथ मेरे बदन के इर्द गिर्द बंधे थे और मेरे निपलों को हौले हौले मसल रहे थे.
सर बोले "दर्द कम हुआ बेटे?"
मैंने मुंडी हिलाकर हां कहा. सर बोले "अब तुझे प्यार करूंगा, मर्दों वाला प्यार. थोड़ा दर्द भले हो पर सह लेना, देख मजा आयेगा" और वे धीरे धीरे मेरी गांड मारने लगे. मेरे चूतड़ों के बीच उनका लंड अंदर बाहर होना शुरू हुआ और एक अजीब सी मस्ती मेरी नस नस में भर गयी. दर्द हो रहा था पर गांड में अंदर तक बड़ी मीठी कसक हो रही थी.
एक दो मिनिट धीरे धीरे लंड अंदर बाहर करने के बाद मेरी गांड में से ’सप’ ’सप’ ’सप’ की आवाज निकलने लगी. तेल पूरा मेरे छेद को चिकना कर चुका था. मैं कसमसा कर अपनी कमर हिलाने लगा. चौधरी सर हंसने लगे "देखा, आ गया रास्ते पर. मजा आ रहा है ना? अब देख आगे मजा" फ़िर वे कस के लंड पेलने लगे. सटा सट सटा सट लंड अंदर बाहर होने लगा. दर्द हुआ तो मैंने फ़िर से मैडम की चप्पल चबा ली पर फ़िर अपने चूतड़ उछाल कर सर का साथ देने लगा.
. बता .... आनंद आया या नहीं?"
"हां ....सर ... आप का ... लेकर बहुत .... मजा .... आ .... रहा .... है ...." सर के धक्के झेलता हुआ मैं बोला " सर .... आप ... को .... कैसा .... लगा .... सर?"
"अरे राजा तेरी मखमली गांड के आगे तो गुलाब भी नहीं टिकेगा. ये तो जन्नत है जन्नत मेरे लिये ... ले ... ले ... और जोर .... से करूं ...." वे बोले.
"हां .... सर ... जोर से .... मारिये .... सर .... बहुत .... अच्छा लग ... रहा है .... सर"
सर मेरी पांच मिनिट मारते रहे और मुझे बेतहाशा चूमते रहे. कभी मेरे बाल चूमते, कभी गर्दन और कभी मेरा चेहरा मोड कर अपनी ओर करते और मेरे होंठ चूमने लगते. फ़िर वे रुक गये.
मैंने अपने चूतड़ उछालते हुए शिकायत की "मारिये ना सर ... प्लीज़"
"अब दूसरा आसन. भूल गया कि ये लेसन है? ये तो था गांड मारने का सबसे सीदा सादा और मजेदार आसन. अब दूसरा दिखाता हूं. चल उठ और ये सोफ़े को पकड़कर झुक कर खड़ा हो जा" सर ने मुझे बड़ी सावधानी से उठाया कि लंड मेरी गांड से बाहर न निकल जाये और मुझे सोफ़े को पकड़कर खड़ा कर दिया. "झुक , ऐसे सीधे नहीं, अब समझ कि तू कुतिया है .... या घोड़ी है ... और मैं पीछे से तेरी मारूंगा"
मैं झुक कर सोफ़े के सहारे खड़ा हो गया. सर मेरे पीछे खड़े होकर मेरी कमर पकड़कर फ़िर पेलने लगे. आगे पीछे आगे पीछे. सामने आइने में दिख रहा था कि कैसे उनका लंड मेरी गांड में अंदर बाहर हो रहा था. देख कर मेरा और जोर से खड़ा हो गया. मस्ती में आकर मैंने एक हाथ सोफ़े से उठाया और लंड पकड़ लिया. सर पीछे से पेल रहे थे, धक्के से मैं गिरते गिरते बचा.
"चल.. जल्दी हाथ हटा और सोफ़ा पकड़ नहीं तो तमाचा मारूंगा" सर चिल्लाये.
"सर ... प्लीज़... रहा नहीं जाता ..... मुठ्ठ मारने का मन .... होता है" मैं बोला.
"अरे मेरे राजा मुन्ना, यही तो मजा है, ऐसी जल्दबाजी न कर, पूरा लुत्फ़ उठा. ये भी इस लेसन का एक भाग है" सर प्यार से बोले. "और अपने लंड को कह कि सब्र कर, बाद में बहुत मजा आयेगा उसे"
सर ने खड़े खड़े मेरी दस मिनिट तक मारी. उनका लंड एकदम सख्त था. मुझे अचरज हो रहा था कि कैसे वे झड़े नहीं. बीच में वे रुक जाते और फ़िर कस के लंड पेलते. मेरी गांड में से ’फ़च’ ’फ़च’ ’फ़च’ की आवाज आ रही थी.
फ़िर सर रुक गये. बोले "थक गया बेटे? चल थोड़ा सुस्ता ले, आ मेरी गोद में बैठ जा. ये है तीसरा आसन ,आराम से प्यार से चूमाचाटी करते हुए करने वाला" कहकर वे मुझे गोद में लेकर सोफ़े पर बैठ गये. लंड अब भी मेरी गांड में धंसा था.
मुझे बांहों में लेकर सर चूमा चाटी करने लगे. मैं भी मस्ती में था, उनके गले में बांहें डाल कर उनका मुंह चूमने लगा और जीभ चूसने लगा. सर धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर अपना लंड नीचे से मेरी गांड में अंदर बाहर करने लगे.
पांच मिनिट आराम करके सर बोले "चल अनिल, अब मुझसे भी नहीं रहा जाता, क्या करूं, तेरी गांड है ही इतनी लाजवाब, देख कैसे प्यार से मेरे लंड को कस के जकड़े हुए है, आ जा, इसे अब खुश कर दूं, बेचारी मरवाने को बेताब हो रहा है, है ना?"
मैं बोला "हां सर" मेरी गांड अपने आप बार बार सिकुड़ कर सर के लंड को गाय के थन जैसा दुह रही थी.
"चलो, उस दीवार से सट कर खड़े हो जाओ" सर मुझे चला कर दीवार तक ले गये. चलते समय उनका लंड मेरी गांड में रोल हो रहा था. मुझे दीवार से सटा कर सर ने खड़े खड़े मेरी मारना शुरू कर दी. अब वे अच्छे लंबे स्ट्रोक लगा रहे थे, दे दनादन दे दनादन उनका लंड मेरे चूतड़ों के बीच अंदर बाहर हो रहा था.
थोड़ी देर में उनकी सांस जोर से चलने लगी. उन्होंने अपने हाथ मेरे कंधे पर जमा दिये और मुझे दीवार पर दबा कर कस कस के मेरी गांड चोदने लगे. मेरी गांड अब ’पचाक’ पचाक’ ’पचाक’ की आवाज कर रही थी. दीवार पर बदन दबने से मुझे दर्द हो रहा था पर सर को इतना मजा आ रहा था कि मैंने मुंह बंद रखा और चुपचाप मरवाता रहा. चौधरी सर एकाएक झड़ गये और ’ओह ... ओह ... अं ... आह ...." करते हुए मुझसे चिपट गये. उनका लंड किसी जानवर जैसा मेरी गांड में उछल रहा था. सर हांफ़ते हांफ़ते खड़े रहे और मुझपर टिक कर मेरे बाल चूमने लगे.
पूरा झड़ कर जब लंड सिकुड़ गया तो सर ने लंड बाहर निकाला. फ़िर मुझे खींच कर बिस्तर तक लाये और मुझे बांहों में लेकर लेट गये और चूमने लगे " बेटे, बहुत सुख दिया तूने आज मुझे, बहुत दिनों में मुझे इतनी मतवाली कुवारी गांड मारने मिली है, आज तो दावत हो गयी मेरे लिये. मेरा आशिर्वाद है तुझे कि तू हमेशा सुख पायेगा, इस क्रिया में मेरे से ज्यादा आगे जायेगा. तुझे मजा आया? दर्द तो नहीं हुआ ज्यादा?"
सर के लाड़ से मेरा मन गदगद हो गया. मैं उनसे चिपट कर बोला "सर .... बहुत मजा आया सर .... दर्द हुआ .... आप का बहुत बड़ा है सर ... लग रहा था कि गांड फ़ट जायेगी ... फ़िर भी बहुत मजा आ रहा था सर"
सर उठ कर रचना को पलंग पर लेते हुए बोले "क्यों नहीं, आ जा रचना बेटी, अभी चोद देता हूं, तेरे भाई को चोदा, अब तुझे चोद कर तेरी प्यास बुझा देता हूं. पर झड़ूंगा नहीं रचना "
रचना सी सी करती रही, कुछ बोली नहीं. उसका चेहरा तमतमा गया था, आंखें चमक रही थीं. सर ने उसकी टांगें फ़ैला कर उसकी बुर में लंड डाला और शुरू हो गये. रचना ऐसे सर को चिपकी जैसे बंदर का बच्चा अपनी मां को जकड़ लेता है, अपने हाथों और पैरों से सर के बदन को बांध कर कमर हिलाने लगी "सर ... चोदिये सर .... प्लीज़ सर ... जोर से सर ... आह .... ओह"
सर कस के रचना को चोद रहे थे, अंदर तक लंड पेल रहे थे. रचना अपने हाथों से उनके पीठ को नोंच रही थी. फ़िर रचना चीखी और लस्त हो गयी. पर सर ने उसे नहीं छोड़ा. मेरी ओर मुड़कर बोले " यहां ध्यान दो, ये आसन ध्यान से देखो" उन्होंने रचना के पैर मोड़कर उसकी टांगें रचना के सिर के इर्द गिर्द कर दीं और फ़िर उसे चोदने लगे.
"देखा? ऐसे मोड़ कर मस्त चोदा जा सकता है, फ़िर छेद कोई भी हो, समझे ना? चाहे चूत में डाल दो या गांड में, आसन यही रहता है. और आगे से मस्त चुम्मे ले लेकर प्यार करते हुए गांड भी चोद सकते हैं."
मैं बोला "हां सर"
रचना कसमसा रही थी "बस सर ... हो गया .... अब नहीं ... प्लीज़ .... छोड़िये ना .... मत कीजिये सर ...... प्लीज़ ...... मैं झड गयी सर.... बस...." पर सर चोदते रहे. "अरे रचना रानी, ऐसे हथियार नहीं डालते. अब चुदा रही हो तो पूरा चुदाओ" रचना हल्के हल्के चीखने लगी तो सर ने उसका मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया.
पांच मिनिट में रचना निश्चल होकर लुढ़क गयी. सर ने लंड बाहर निकाला "लो, ये तो गयी काम से. वैसे बड़ी प्यारी बच्ची है, काफ़ी रसिक है, इसकी चूत क्या गीली थी
मैं रचना के बाजू में पेट के बल लेटने लगा तो सर बोले "अरे वो आसन तो हो गया, अब सामने वाला, बिलकुल जैसे तेरी रचना को चोदा ना, वैसे. इसलिये तो तुझे देखने को कहा था मूरख, भूल गया? सीधा लेटो. तू भूल जायेगा कि तेरी गांड मार रहा हूं, तुझे भी यही लगेगा कि तेरी चूत चोद रहा हूं. ये अपने पैर मोड़ो बेटे, और ऊपर ... उठा लो ऊपर ... और ऊपर .... अपने सिर तक .... हां अब ठीक है"
मैंने टांगें उठाईं. सर ने उन्हें मोड कर मेरे टखने मेरे कानों के इर्द गिर्द जमा दिये. कमर दुख रही थी. "अब इन्हें पकड़ो और मुझे अपना काम करने दो" कहकर सर मेरे सामने बैठ गये और लंड मेरी पूरी खुली गांड पर रखकर पेलने लगे. पक्क से लंड आधा अंदर गया. मैंने सिर्फ़ जरा सा सी सी किया, और कुछ नहीं बोला.
"शाबास बेटे, अब तू पूरा तैयार हो गया है, देखा जरा सा भी नहीं चिल्लाया मेरा लंड लेने में. कमर दुखती है क्या ऐसे टांगें मोड़ कर?"
"हां सर" मैंने कबूल किया.
"पहली बार है ना! आदत हो जायेगी. ये आसन बड़ा अच्छा है कमर के लिये, योगासन जैसा ही है. तेरी कमर लड़कियों से ज्यादा लचीली हो जायेगी देखना. अब ये ले पूरा ...." कहकर उन्होंने सधा हुआ जोर लगाया और लंड जड़ तक मेरे चूतड़ों के बीच उतार दिया. एक दो बार वैसे ही उन्होंने लंड अंदर बाहर किया और फ़िर सामने से मेरे ऊपर लेट गये.
मैंने थोड़ा ऊपर उठकर सर की पीठ को बांहों में भींच लिया और अपने पैर उनकी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिये. बहुत अच्छा लग रहा था सर के सुडौल बदन से ऐसे आगे से चिपटकर. मेरा लंड उनके पेट और मेरे पेट के बीच दब गया था.
सर ने प्यार से मुझे चूमा और चोदने लगे. "अच्छा लग रहा है ? या तुझे थोड़ी देर को समझ ले कि तू लड़की है और चूत चुदा रही है" फ़िर मेरे गाल और आंखें चूमने लगे. वे मुझे हौले हौले चोद रहे थे, बस दो तीन इंच लंड बाहर निकालते और फ़िर अंदर पेलते.
कुछ देर मैं पड़ा पड़ा चुपचाप गांड चुदवाता रहा. फ़िर कमर का दर्द कम हुआ और मेरी गांड ऐसी खिल उठी जैसे मस्ती में पागल कोई चूत. गांड के अंदर मुझे बड़ी मीठी मीठी कसक हो रही थी. जब सर का सुपाड़ा मेरी गांड की नली को घिसता तो मेरी नस नस में सिहरन दौड़ उठती. मेरा लंड भी मस्ती में था, बहुत मीठी मीठी चुभन हो रही थी. मुझे लगा कि लड़कियों के क्लिट में कुछ ऐसा ही लगता होगा.
सर पर मुझे खूब प्यार आने लगा वैसा ही जैसे किसी लड़की को अपने आशिक से चुदवाने में आता होगा. मैंने उन्हें जम के अपनी बांहों में भींचा और बेतहाशा उन्हें चूमने लगा "सर .... मेरे अच्छे सर .... बहुत अच्छा लग रहा है सर..... चोदिये ना .... कस के चोदिये ना .... फ़ाड दीजिये मेरी गां .... चूत .... मेरी चूत को ढीला कर दीजिये सर ..... ओह सर ... आप अब जो कहेंगे मैं ... करूंगा सर .... आप .... आप मेरे भगवान हैं सर ....सर मैं आप को बहुत प्यार करता हूं सर .... सर .... आप को मैं अच्छा लगता हूं ना सर" और कमर उछाल उछाल कर मैं अपनी गांड में सर के लंड को जितना हो सकता है उतना लेने की कोशिश करने लगा.
सर ने मुझे खूब देर चोदा. हचक हचक कर धक्के लगाये और मेरी कमर करीब करीब तोड़ दी.
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पुजारी हवस का --14
सर रचना के संभलने का इंतजार करने लगे. साथ ही झुक कर होंठों से रचना की आंखें चूमने लगे. मेरा लंड अब सिर उठाने लगा था. सर ने उसे पकड़ा और दबाने लगे , मजा आ रहा है दीदी की चुदाई देखकर?"
"हां सर, रचना की चूत कितनी खुल गयी है, ये फ़ट तो नहीं जायेगी सर?" मैंने उत्सुकता से पूछा.
"अरे नहीं, तेरी बहन जैसी खूबसूरत मतवाली लड़कियों की चूत ऐसे नहीं फ़टती, ये तो बनी हैं हरदम चुदवाने को. बस दो मिनिट बाद ये कैसे मचलने लगेगी, तू ही देखना" सर मुझे पास खींच कर मेरा चुम्मा लेते हुए बोले.
धीरे धीरे रचना का कपकपाता बदन शांत हुआ. सर ने एक उंगली से रचना का दाना रगड़ना शुरू कर दिया. दो मिनिट में रचना कमर हिलाने लगी. सर ने मुस्कराकर . मुझे तो पता था कि ये बहादुर बच्ची ऐसे घबराने वाली नहीं है. अब देखिये मैं इसे कैसा मस्त करता हूं"
सर ने रचना का मुंह छोड़ा "रचना , ठीक है ना तू? अब तो नहीं दुखता?"
रचना सिसक कर बोली "सर ... अभी भी बहुत दुखता है ... पर अच्छा भी लग रहा है ... आप ने जब .... डाला तब ऐसा लग रहा था कि मैं ... मर जाऊंगी"
"तेरी गलती नहीं है, मेरा हथियार है ही ऐसा मूसल जैसा, पर अब देख,में तुझे ऐसा मजा दूंगा कि तू स्वर्ग का सुख लेगी"सर ने कहा
सर ने अब धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था. साथ ही उनकी उंगली रचना के दाने पर चल रही थी.
मैंने देखा कि सर का लंड अब आराम से अंदर बाहर हो रहा था. जब बाहर होता तो थोड़ा पानी निकलता. रचना हौले हौले सांसें ले रही थी और सर की आंखों में आंखें डाले हुए थी. "सर ... मजा आ रहा है सर .... कीजिये ना और ..."
"दर्द तो नहीं हो रहा है रचना ? चोदूं तुझे अब कायदे जैसे तेरी जैसी छोकरी को चोदना चाहिये?" सर ने रचना का चुम्मा लेकर पूछा. रचना ने बस पलक झपका दी. सर उसे अब हौले हौले चोदने लगे. रचना ने एक सिसकारी भरी और सर से लिपट गयी "हा ऽ य सर .... उई ऽ मां ऽ .... सर .... दर्द होता है सर पर बहुत अच्छा लग रहा है सर ... और ... और ...कीजिये ना .... प्लीज़"
"और क्या रचना ? ठीक से बोल, और क्या करूं?" सर ने मुस्कराकर पूछा. वे बड़े सधे अंदाज में चोद रहे थे. बस तीन चार इंच लंड अंदर बाहर करते, बिना एक पल भी रुके हुए.
रचना ने शरमा कर कहा "सर ... चोदिये ना प्लीज़"
"ये हुई ना बात! अब लेसन सीखी है कि कैसे बोला जाता है. अब देख तुझे कैसे चोदता हूं" कहकर सर ने रफ़्तार बढ़ा दी. पूरा लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मुझे लगा कि रचना को दर्द होगा पर वो अब मजे से चुदवा रही थी. उसकी जरा सी बुर में सर का इतना बड़ा लंड अंदर बाहर होता देख कर मैं आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर यह नजारा देख रहा था. मेरा लंड फ़िर से कसके खड़ा हो गया था.
. वे रचना को कस के चोद रहे थे. सात आठ धक्के लगाने के बाद रुक जाते, फ़िर एक मिनिट रुक कर हौले हौले चोदते और फ़िर घचाघच लंड पेलने लगते.रचना सिसक सिसक कर कह रही थी "सर ... बहुत मजा .... आ रहा है सर ... रहा नहीं जाता ....आह ... ओह ... प्लीज़ .... प्लीज़ ... और जोर से कीजिये ... चोदिये ना .. ... देखिये ना ... प्लीज़ "
मेने सर से कहा "सर, झड़ा दीजिये बेचारी को, ऐसे न तड़पाइये उसे"
सर ने धक्के लगाते हुए कहा "अरे जरा मजा करने दो, बेचारी ने इतना दर्द सहा है मेरा लंड लेने में, रचना , तू क्यों बिचकती है, मजा ले, चुदने का पूरा मजा नहीं लेगी क्या?" फ़िर पाल सर रचना को बाहों में भर के पूरे उसपर लेट गये
मुझे रोमांच हो आया.
" सर ने रचना के होंठ अपने मुंह में लिये और उसका मुंह चूसते हुए हचक हचक कर चोदने लगे.
अब कमरे में बस ’फ़चा फ़च’ ’फ़चा फ़च’ ’पॉक पॉक पुक पुक’ ऐसी चुदाई की आवाजें आ रही थीं. दीदी ने अपनी टांगें और हाथ सर के बदन के इर्द गिर्द भींच लिये थे और कमररचना उछाल उछाल कर उनका मुंह चूसते हुए चुदवा रही थी.
सर ने रचना को बहुत देर चोदा. वे दो बार झड़ीं. वे सर को चूमती जातीं और शाबासी देती जातीं "बहुत अच्छे मेरे सर , .....बहुत प्यारे है आप .... बहुत मस्त चोदते है .... अब जरा और जोर से .... लगा ना कस कस के .... आज खाना नहीं खाया क्या? .... हाय सर देख कैसे कचूमर निकाल रहे हैं मेरी चूत का...."
बात सच थी. सर ने रचना को ऐसा चोदा था कि वो बस अपने सर के मुंह में दबे मुंह से ’अं ऽ अं ऽ अं ऽ’ कर रही थी. शायद अब वो झड़ गयी थी इसलिये छूटने की कोशिश कर रही थी. पर सर उसे छोड नहीं रहे थे. जब सर ने अपना मुंह अलग किया तो रचना सिसक कर बोली "आह ऽ ... बस सर ... प्लीज़ सर ... अब छोड़िये ना ... कैसा .. तो ... भी होता .... है ... सर .... प्लीज़ सर .."
सर मुझसे बोले "तेरी रचना झड़ .... गयी है इसलिये अब ..... हालत खराब है उसकी .....पर तेरे सर नहीं मानेंगे .... अब तो मुझे खास मजा आ रहा हें ..... आखिर बुर ....ऐसे ... रोज रोज ... थोड़े मिलती है चोदने को ...."
सर ने एक मिनिट के लिये चुदाई रोक दी. "इत्ते में खलास हो गयी तू रचना ? "रचना लंबी लंबी सांसें लेती हुई संभलने की कोशिश करने लगी. हंसते हुए सर उसके गाल चूमते रहे, फ़िर अचानक फ़िर से रचना के होंठों को अपने मुंह में पकड़ा और शुरू हो गये. अब वे पूरी ताकत से चोद रहे थे. उनका पूरा लंड रचना की बुर में अंदर बाहर हो रहा था.
रचना छटपटाने लगी. बहुत छूटने की कोशिश की पर सर के आगे उसकी क्या चलने वाली थी. सर अब कस के धक्के लगा रहे थे, बिना किसी परवाह के कि उनके नीचे कोई चुदैल रंडी नहीं बल्कि मेरी नाजुक बहना थी.
सर अब ऐसे कसके रचना की धुनाई कर रहे थे कि देख देख कर मुझे ही डर लग रहा था कि रचना को कुछ हो न जाये. अचानक रचना ने आंखें बंद कर लीं और लस्त हो गयी, छटपटाना भी बंद हो गया.
"बेहोश हो गयी शायद, बेचारी की पहली बार है, बुर ने जवाब दे ही दिया आखिर बेचारी की, आखिर ऐसे सोंटे के आगे उसकी क्या चलती, इसने तो बड़ों बड़ों को खलास कर दिया है, ये बच्ची किस खेत की मूली है" सर ने बड़े गर्व से कहा.
सर हांफ़ते हुए बोले "अभी नहीं ... अब .. आयेगा मजा .... लगता है कि किसी .... रबड़ की .... गुड़िया को .... चोद रहा हूं ... ... ऐसे किसी बेहोश बदन को .... कचरने में .... क्या आनंद .... आता .... है ... इसे भी मजा .... आ रहा होगा ....बेहोशी में भी .... नंबर एक की .... चुदैल कन्या .... है ये ..."
दो मिनिट बाद सर भी कस के चिल्लाये और झड़ गये. फ़िर रचना के बदन पर पड़े पड़े जोर जोर की सांसें भरते हुए लस्त पड़कर आराम करने लगे.
पांच मिनिट बाद मैं और सर दोनों उठ बैठे. सर ने उठकर मेरा लंड चाटा और फ़िर रचना की बुर में मुंह डाल दिया. लपालप उनकी बुर से बहते वीर्य और पानी का भोग लगाने लगे. बीच में मेरी ओर मुड़कर बोले "बैठा क्यों है रे मूरख? भोग नहीं लगाना है? अरे इस प्रसाद से स्वादिष्ट और कुछ नहीं है इस दुनिया में. चल, घुस जा अपनी बहन की टांगों में"
. मैंने सर का झड़ा लंड मुंह में लिया और चूस डाला. रचना की बुर के पानी और उनके वीर्य का मिला जुला स्वाद था. फ़िर रचना की बुर अपनी जीभ से साफ़ करने में लग गया.अब पाल सर ने मेरी और देखा
मुझे बिस्तर पर सुला कर मेरा झड़ा लंड सर ने प्यार से मुंह में लिया और चूसने लगे. एक हाथ बढ़ाकर उन्होंने थोड़ा नारियल तेल अपनी उंगली पर लिया और मेरे गुदा पर चुपड़ा. फ़िर मेरा लंड चूसते हुए धीरे से अपनी उंगली मेरी गांड में आधी डाल दी.
"ओह ... ओह .." मेरे मुंह से निकला.
"क्या हुआ, दुखता है?" सर ने पूछा.
"हां सर ... कैसा तो भी होता है"
"इसका मतलब है कि दुखने के साथ मजा भी आता है, है ना? यही तो मैं सिखाना चाहता हूं अब तुझे. गांड का मजा लेना हो तो थोड़ा दर्द भी सहना सीख ले" कहकर सर ने पूरी उंगली मेरी गांड में उतार दी और हौले हौले घुमाने लगे. पहले दर्द हुआ पर फ़िर मजा आने लगा. लंड को भी अजीब सा जोश आ गया और वो खड़ा हो गया. सर उसे फ़िर से बड़े प्यार से चूमने और चूसने लगे "देखा? तू कुछ भी कहे या नखरे करे, तेरे लंड ने तो कह दिया कि उसे क्या लुत्फ़ आ रहा है"
पांच मिनिट सर मेरी गांड में उंगली करते रहे और मैं मस्त होकर आखिर उनके सिर को अपने पेट पर दबा कर उनका मुंह चोदने की कोशिश करने लगा.
सर मेरे बाजू में लेट गये, उनकी उंगली बराबर मेरी गांड में चल रही थी. मेरे बाल चूम कर बोले "अब बता बेटे, जब औरत को प्यार करना हो तो उसकी चूत में लंड डालते हैं या उसे चूसते हैं. है ना? अब ये बता कि अगर एक पुरुष को दूसरे पुरुष से प्यार करना हो तो क्या करते हैं?"
"सर ... लंड चूसकर प्यार करते हैं?" मैंने कहा.
"और अगर और कस कर प्यार करना हो तो? याने चोदने वाला प्यार?" सर ने मेरे कान को दांत से पकड़कर पूछा. मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था.
"सर, गांड में उंगली डालते हैं, जैसा मैंने किया था और आप कर रहे हैं"
"अरे वो आधा प्यार हुआ, करवाने वाले को मजा आता है. पर लंड में होती गुदगुदी को कैसे शांत करेंगे?"
मैं समझ गया. हिचकता हुआ बोला "सर ... गांड में .... लंड डाल कर सर?"
"बहुत अच्छे मेरी जान. तू समझदार है. अब देख, तू मुझे इतना प्यारा लगता है कि मैं तुझे चोदना चाहता हूं. तू भी मुझे चोदने को लंड मुठिया रहा है. अब अपने पास चूत तो है नहीं, पर ये जो गांड है वो चूत से ज्यादा सुख देती है. और चोदने वाले को भी जो आनद आता है वो .... बयान करना मुश्किल है बेटे. अब बोल, अगला लेसन क्या है? तेरे सर अपने प्यारे स्टूडेंट को कैसे प्यार करेंगे?"
"सर ... मेरी गांड में अपना लंड डाल कर .... ओह सर ..." मेरा लंड मस्ती में उछला क्योंकि सर ने अपनी उंगली सहसा मेरी गांड में गहराई तक उतार दी.
"सर दर्द होगा सर .... प्लीज़ सर " मैं मिन्नत करते हुए बोला. मेरी आंखों में देख कर सर मेरे मन की बात समझ गये "तुझे करवाना भी है ऐसा प्यार और डर भी लगता है, है ना?"
"हां सर, आपका बहुत बड़ा है" मैंने झिझकते हुए कहा.
"अरे उसकी फ़िकर मत कर, ये तेल किस लिये है, आधी शीशी डाल दूंगा अंदर, फ़िर देखना ऐसे जायेगा जैसे मख्खन में छुरी. और तुझे मालूम नहीं है, ये गांड लचीली होती है, आराम से ले लेती है. और देख, मैंने पहले एक बार अपना झड़ा लिया था, नहीं तो और सख्त और बड़ा होता. अभी तो बस प्यार से खड़ा है, है ना? और चाहे तो तू भी पहले मेरी मार सकता है."
मेरा मन ललचा गया. सर हंस कर बोले "मारना है मेरी? वैसे मैं तो इसलिये पहले तेरी मारने की कह रहा था कि तेरा लंड इतना मस्त खड़ा है, इस समय तुझे असली मजा आयेगा इस लेसन का. गांड को प्यार करना हो तो अपने साथी को मस्त करना जरूरी होता है, वैसे ही जैसे चूत चोदने के पहले चूत को मस्त करते हैं. लंड खड़ा है तेरा तो मरवाने में बड़ा मजा आयेगा तेरे को"
"हां सर." सर मुझे इतने प्यार से देख रहे थि कि मेरा मन डोलने लगा " सर ... आप ... डाल दीजिये सर अंदर, मैं संभाल लूंगा"
"अभी ले मेरे राजा. वैसे तुम्हें कायदे से कहना चाहिये कि सर, मार लीजिये मेरी गांड!"
"हां सर .... मेरी गांड मारिये सर .... मुझे .... मुझे चोदिये सर जैसे आपने दीदी को चोदा था."
सर मुस्कराये "अब हुई ना बात. चल पलट जा, पहले तेल डाल दूं अंदर. तुझे मालूम है ना कि कार के एंजिन में तेल से पिस्टन सटासट चलता है? बस वैसे ही तेरे सिलिंडर में मेरा पिस्टन ठीक से चले इसलिये तेल जरूरी है. अच्छा पलटने के पहले मेरे पिस्टन में तो तेल लगा"
मैंने हथेली में नारियल का तेल लिया और सर के लंड को चुपड़ने लगा. उनका खड़ा लंड मेरे हाथ में नाग जैसा मचल रहा था. तेल चुपड़ कर मैं पलट कर सो गया. डर भी लग रहा था. तेल लगाते समय मुझे अंदाजा हो गया था कि सर का लंड फ़िर से कितना बड़ा हो गया है. सर ने भले ही दिलासा देने को यह कहा था कि एक बार झड़कर उनका जरा नरम खड़ा रहेगा पर असल में वो लोहे की सलाख जैसा ही टनटना गया था.
सर ने तेल में उंगली डुबो के मेरे गुदा को चिकना किया और एक उंगली अंदर बाहर की. फ़िर एक हाथ से मेरे चूतड फ़ैलाये और कुप्पी उठाकर उसकी नली धीरे से मेरी गांड में अंदर डाल दी. मैं सर की ओर देखने लगा.
वे मुस्कराकर बोले "बेटे, अंदर तक तेल जाना जरूरी है. मैं तो भर देता हूं आधी शीशी अंदर जिससे तुझे कम से कम तकलीफ़ हो." वे शीशी से तेल कुप्पी के अंदर डालने लगे.
मुझे गांड में तेल उतरता हुआ महसूस हुआ. बड़ा अजीब सा पर मजेदार अनुभव था. सर ने मेरी कमर पकड़कर मेरे बदन को हिलाया "बड़ी टाइट गांड है रे तेरी, तेल धीरे धीरे अंदर जा रहा है"
मेरी गांड से कुप्पी निकालकर सर ने फ़िर एक उंगली डाली और घुमा घुमाकर गहरे तक अंदर बाहर करने लगे. मैंने दांतों तले होंठ दबा लिये कि सिसकारी न निकल जाये. फ़िर सर ने दो उंगलियां डाली. इतना दर्द हुआ कि मैं चिहुक पड़ा.
"अब पलट कर लेट जा, आराम से. वैसे तो बहुत से आसन हैं और आज तुझे सब आसनों की प्रैक्टिस कराऊंगा. पर पहली बार डालने को ये सबसे अच्छा है" मेरे पीछे बैठते हुए सर बोले.
सर ने मेरे चेहरे के नीचे एक तकिया दिया और अपने घुटने मेरे बदन के दोनों ओर टेक कर बैठ गये. "अब अपने चूतड़ पकड़ और खोल, तुझे भी आसानी होगी और मुझे भी. और एक बात है बेटे, गुदा ढीला छोड़ना नहीं तो तुझे ही दर्द होगा. समझ ले कि तू लड़की है और अपने सैंया के लिये चूत खोल रही है, ठीक है ना?"
मैंने अपने हाथ से अपने चूतड़ पकड़कर फ़ैलाये. सर ने मेरे गुदा पर लंड जमाया और पेलने लगे "ढीला छोड़ अनिल, जल्दी!"
मैंने अपनी गांड का छेद ढीला किया और अगले ही पल सर का सुपाड़ा पक्क से अंदर हो गया. मेरी चीख निकलते निकलते रह गयी. मैंने मुंह में भरी चप्पल दांतों तले दबा ली और किसी तरह चीख निकलने नहीं दी. बहुत दर्द हो रहा था.
सर ने मुझे शाबासी दी "बस बेटे बस, अब दर्द नहीं होगा. बस पड़ा रह चुपचाप" और एक हाथ से मेरे चूतड़ सहलाने लगे. दूसरा हाथ उन्होंने मेरे बदन के नीचे डाल कर मेरा लंड पकड़ लिया और उसे आगे पीछे करने लगे.
दो मिनिट में जब दर्द कम हुआ तो मेरा कसा हुआ बदन कुछ ढीला पड़ा और मैंने जोर से सांस ली. सर समझ गये. झुक कर मेरे बाल चूमे और बोले "बस , अब धीरे धीरे अंदर डालता हूं. एक बार तू पूरा ले ले, फ़िर तुझे समझ में आयेगा कि इस लेसन में कितना आनंद आता है" फ़िर वे हौले हौले लंड मेरे चूतड़ों के बीच पेलने लगे. दो तीन इंच बाद जब मैं फ़िर से थोड़ा तड़पा तो वे रुक गये. मैं जब संभला तो फ़िर शुरू हो गये.
पांच मिनिट बाद उनका पूरा लंड मेरी गांड में था. गांड ऐसे दुख रही थी जैसे किसीने हथौड़े से अंदर से ठोकी हो. सर की झांटें मेरे चूतड़ों से भिड़ गयी थीं. सर अब मुझ पर लेट कर मुझे चूमने लगे. उनके हाथ मेरे बदन के इर्द गिर्द बंधे थे और मेरे निपलों को हौले हौले मसल रहे थे.
सर बोले "दर्द कम हुआ बेटे?"
मैंने मुंडी हिलाकर हां कहा. सर बोले "अब तुझे प्यार करूंगा, मर्दों वाला प्यार. थोड़ा दर्द भले हो पर सह लेना, देख मजा आयेगा" और वे धीरे धीरे मेरी गांड मारने लगे. मेरे चूतड़ों के बीच उनका लंड अंदर बाहर होना शुरू हुआ और एक अजीब सी मस्ती मेरी नस नस में भर गयी. दर्द हो रहा था पर गांड में अंदर तक बड़ी मीठी कसक हो रही थी.
एक दो मिनिट धीरे धीरे लंड अंदर बाहर करने के बाद मेरी गांड में से ’सप’ ’सप’ ’सप’ की आवाज निकलने लगी. तेल पूरा मेरे छेद को चिकना कर चुका था. मैं कसमसा कर अपनी कमर हिलाने लगा. चौधरी सर हंसने लगे "देखा, आ गया रास्ते पर. मजा आ रहा है ना? अब देख आगे मजा" फ़िर वे कस के लंड पेलने लगे. सटा सट सटा सट लंड अंदर बाहर होने लगा. दर्द हुआ तो मैंने फ़िर से मैडम की चप्पल चबा ली पर फ़िर अपने चूतड़ उछाल कर सर का साथ देने लगा.
. बता .... आनंद आया या नहीं?"
"हां ....सर ... आप का ... लेकर बहुत .... मजा .... आ .... रहा .... है ...." सर के धक्के झेलता हुआ मैं बोला " सर .... आप ... को .... कैसा .... लगा .... सर?"
"अरे राजा तेरी मखमली गांड के आगे तो गुलाब भी नहीं टिकेगा. ये तो जन्नत है जन्नत मेरे लिये ... ले ... ले ... और जोर .... से करूं ...." वे बोले.
"हां .... सर ... जोर से .... मारिये .... सर .... बहुत .... अच्छा लग ... रहा है .... सर"
सर मेरी पांच मिनिट मारते रहे और मुझे बेतहाशा चूमते रहे. कभी मेरे बाल चूमते, कभी गर्दन और कभी मेरा चेहरा मोड कर अपनी ओर करते और मेरे होंठ चूमने लगते. फ़िर वे रुक गये.
मैंने अपने चूतड़ उछालते हुए शिकायत की "मारिये ना सर ... प्लीज़"
"अब दूसरा आसन. भूल गया कि ये लेसन है? ये तो था गांड मारने का सबसे सीदा सादा और मजेदार आसन. अब दूसरा दिखाता हूं. चल उठ और ये सोफ़े को पकड़कर झुक कर खड़ा हो जा" सर ने मुझे बड़ी सावधानी से उठाया कि लंड मेरी गांड से बाहर न निकल जाये और मुझे सोफ़े को पकड़कर खड़ा कर दिया. "झुक , ऐसे सीधे नहीं, अब समझ कि तू कुतिया है .... या घोड़ी है ... और मैं पीछे से तेरी मारूंगा"
मैं झुक कर सोफ़े के सहारे खड़ा हो गया. सर मेरे पीछे खड़े होकर मेरी कमर पकड़कर फ़िर पेलने लगे. आगे पीछे आगे पीछे. सामने आइने में दिख रहा था कि कैसे उनका लंड मेरी गांड में अंदर बाहर हो रहा था. देख कर मेरा और जोर से खड़ा हो गया. मस्ती में आकर मैंने एक हाथ सोफ़े से उठाया और लंड पकड़ लिया. सर पीछे से पेल रहे थे, धक्के से मैं गिरते गिरते बचा.
"चल.. जल्दी हाथ हटा और सोफ़ा पकड़ नहीं तो तमाचा मारूंगा" सर चिल्लाये.
"सर ... प्लीज़... रहा नहीं जाता ..... मुठ्ठ मारने का मन .... होता है" मैं बोला.
"अरे मेरे राजा मुन्ना, यही तो मजा है, ऐसी जल्दबाजी न कर, पूरा लुत्फ़ उठा. ये भी इस लेसन का एक भाग है" सर प्यार से बोले. "और अपने लंड को कह कि सब्र कर, बाद में बहुत मजा आयेगा उसे"
सर ने खड़े खड़े मेरी दस मिनिट तक मारी. उनका लंड एकदम सख्त था. मुझे अचरज हो रहा था कि कैसे वे झड़े नहीं. बीच में वे रुक जाते और फ़िर कस के लंड पेलते. मेरी गांड में से ’फ़च’ ’फ़च’ ’फ़च’ की आवाज आ रही थी.
फ़िर सर रुक गये. बोले "थक गया बेटे? चल थोड़ा सुस्ता ले, आ मेरी गोद में बैठ जा. ये है तीसरा आसन ,आराम से प्यार से चूमाचाटी करते हुए करने वाला" कहकर वे मुझे गोद में लेकर सोफ़े पर बैठ गये. लंड अब भी मेरी गांड में धंसा था.
मुझे बांहों में लेकर सर चूमा चाटी करने लगे. मैं भी मस्ती में था, उनके गले में बांहें डाल कर उनका मुंह चूमने लगा और जीभ चूसने लगा. सर धीरे धीरे ऊपर नीचे होकर अपना लंड नीचे से मेरी गांड में अंदर बाहर करने लगे.
पांच मिनिट आराम करके सर बोले "चल अनिल, अब मुझसे भी नहीं रहा जाता, क्या करूं, तेरी गांड है ही इतनी लाजवाब, देख कैसे प्यार से मेरे लंड को कस के जकड़े हुए है, आ जा, इसे अब खुश कर दूं, बेचारी मरवाने को बेताब हो रहा है, है ना?"
मैं बोला "हां सर" मेरी गांड अपने आप बार बार सिकुड़ कर सर के लंड को गाय के थन जैसा दुह रही थी.
"चलो, उस दीवार से सट कर खड़े हो जाओ" सर मुझे चला कर दीवार तक ले गये. चलते समय उनका लंड मेरी गांड में रोल हो रहा था. मुझे दीवार से सटा कर सर ने खड़े खड़े मेरी मारना शुरू कर दी. अब वे अच्छे लंबे स्ट्रोक लगा रहे थे, दे दनादन दे दनादन उनका लंड मेरे चूतड़ों के बीच अंदर बाहर हो रहा था.
थोड़ी देर में उनकी सांस जोर से चलने लगी. उन्होंने अपने हाथ मेरे कंधे पर जमा दिये और मुझे दीवार पर दबा कर कस कस के मेरी गांड चोदने लगे. मेरी गांड अब ’पचाक’ पचाक’ ’पचाक’ की आवाज कर रही थी. दीवार पर बदन दबने से मुझे दर्द हो रहा था पर सर को इतना मजा आ रहा था कि मैंने मुंह बंद रखा और चुपचाप मरवाता रहा. चौधरी सर एकाएक झड़ गये और ’ओह ... ओह ... अं ... आह ...." करते हुए मुझसे चिपट गये. उनका लंड किसी जानवर जैसा मेरी गांड में उछल रहा था. सर हांफ़ते हांफ़ते खड़े रहे और मुझपर टिक कर मेरे बाल चूमने लगे.
पूरा झड़ कर जब लंड सिकुड़ गया तो सर ने लंड बाहर निकाला. फ़िर मुझे खींच कर बिस्तर तक लाये और मुझे बांहों में लेकर लेट गये और चूमने लगे " बेटे, बहुत सुख दिया तूने आज मुझे, बहुत दिनों में मुझे इतनी मतवाली कुवारी गांड मारने मिली है, आज तो दावत हो गयी मेरे लिये. मेरा आशिर्वाद है तुझे कि तू हमेशा सुख पायेगा, इस क्रिया में मेरे से ज्यादा आगे जायेगा. तुझे मजा आया? दर्द तो नहीं हुआ ज्यादा?"
सर के लाड़ से मेरा मन गदगद हो गया. मैं उनसे चिपट कर बोला "सर .... बहुत मजा आया सर .... दर्द हुआ .... आप का बहुत बड़ा है सर ... लग रहा था कि गांड फ़ट जायेगी ... फ़िर भी बहुत मजा आ रहा था सर"
सर उठ कर रचना को पलंग पर लेते हुए बोले "क्यों नहीं, आ जा रचना बेटी, अभी चोद देता हूं, तेरे भाई को चोदा, अब तुझे चोद कर तेरी प्यास बुझा देता हूं. पर झड़ूंगा नहीं रचना "
रचना सी सी करती रही, कुछ बोली नहीं. उसका चेहरा तमतमा गया था, आंखें चमक रही थीं. सर ने उसकी टांगें फ़ैला कर उसकी बुर में लंड डाला और शुरू हो गये. रचना ऐसे सर को चिपकी जैसे बंदर का बच्चा अपनी मां को जकड़ लेता है, अपने हाथों और पैरों से सर के बदन को बांध कर कमर हिलाने लगी "सर ... चोदिये सर .... प्लीज़ सर ... जोर से सर ... आह .... ओह"
सर कस के रचना को चोद रहे थे, अंदर तक लंड पेल रहे थे. रचना अपने हाथों से उनके पीठ को नोंच रही थी. फ़िर रचना चीखी और लस्त हो गयी. पर सर ने उसे नहीं छोड़ा. मेरी ओर मुड़कर बोले " यहां ध्यान दो, ये आसन ध्यान से देखो" उन्होंने रचना के पैर मोड़कर उसकी टांगें रचना के सिर के इर्द गिर्द कर दीं और फ़िर उसे चोदने लगे.
"देखा? ऐसे मोड़ कर मस्त चोदा जा सकता है, फ़िर छेद कोई भी हो, समझे ना? चाहे चूत में डाल दो या गांड में, आसन यही रहता है. और आगे से मस्त चुम्मे ले लेकर प्यार करते हुए गांड भी चोद सकते हैं."
मैं बोला "हां सर"
रचना कसमसा रही थी "बस सर ... हो गया .... अब नहीं ... प्लीज़ .... छोड़िये ना .... मत कीजिये सर ...... प्लीज़ ...... मैं झड गयी सर.... बस...." पर सर चोदते रहे. "अरे रचना रानी, ऐसे हथियार नहीं डालते. अब चुदा रही हो तो पूरा चुदाओ" रचना हल्के हल्के चीखने लगी तो सर ने उसका मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया.
पांच मिनिट में रचना निश्चल होकर लुढ़क गयी. सर ने लंड बाहर निकाला "लो, ये तो गयी काम से. वैसे बड़ी प्यारी बच्ची है, काफ़ी रसिक है, इसकी चूत क्या गीली थी
मैं रचना के बाजू में पेट के बल लेटने लगा तो सर बोले "अरे वो आसन तो हो गया, अब सामने वाला, बिलकुल जैसे तेरी रचना को चोदा ना, वैसे. इसलिये तो तुझे देखने को कहा था मूरख, भूल गया? सीधा लेटो. तू भूल जायेगा कि तेरी गांड मार रहा हूं, तुझे भी यही लगेगा कि तेरी चूत चोद रहा हूं. ये अपने पैर मोड़ो बेटे, और ऊपर ... उठा लो ऊपर ... और ऊपर .... अपने सिर तक .... हां अब ठीक है"
मैंने टांगें उठाईं. सर ने उन्हें मोड कर मेरे टखने मेरे कानों के इर्द गिर्द जमा दिये. कमर दुख रही थी. "अब इन्हें पकड़ो और मुझे अपना काम करने दो" कहकर सर मेरे सामने बैठ गये और लंड मेरी पूरी खुली गांड पर रखकर पेलने लगे. पक्क से लंड आधा अंदर गया. मैंने सिर्फ़ जरा सा सी सी किया, और कुछ नहीं बोला.
"शाबास बेटे, अब तू पूरा तैयार हो गया है, देखा जरा सा भी नहीं चिल्लाया मेरा लंड लेने में. कमर दुखती है क्या ऐसे टांगें मोड़ कर?"
"हां सर" मैंने कबूल किया.
"पहली बार है ना! आदत हो जायेगी. ये आसन बड़ा अच्छा है कमर के लिये, योगासन जैसा ही है. तेरी कमर लड़कियों से ज्यादा लचीली हो जायेगी देखना. अब ये ले पूरा ...." कहकर उन्होंने सधा हुआ जोर लगाया और लंड जड़ तक मेरे चूतड़ों के बीच उतार दिया. एक दो बार वैसे ही उन्होंने लंड अंदर बाहर किया और फ़िर सामने से मेरे ऊपर लेट गये.
मैंने थोड़ा ऊपर उठकर सर की पीठ को बांहों में भींच लिया और अपने पैर उनकी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिये. बहुत अच्छा लग रहा था सर के सुडौल बदन से ऐसे आगे से चिपटकर. मेरा लंड उनके पेट और मेरे पेट के बीच दब गया था.
सर ने प्यार से मुझे चूमा और चोदने लगे. "अच्छा लग रहा है ? या तुझे थोड़ी देर को समझ ले कि तू लड़की है और चूत चुदा रही है" फ़िर मेरे गाल और आंखें चूमने लगे. वे मुझे हौले हौले चोद रहे थे, बस दो तीन इंच लंड बाहर निकालते और फ़िर अंदर पेलते.
कुछ देर मैं पड़ा पड़ा चुपचाप गांड चुदवाता रहा. फ़िर कमर का दर्द कम हुआ और मेरी गांड ऐसी खिल उठी जैसे मस्ती में पागल कोई चूत. गांड के अंदर मुझे बड़ी मीठी मीठी कसक हो रही थी. जब सर का सुपाड़ा मेरी गांड की नली को घिसता तो मेरी नस नस में सिहरन दौड़ उठती. मेरा लंड भी मस्ती में था, बहुत मीठी मीठी चुभन हो रही थी. मुझे लगा कि लड़कियों के क्लिट में कुछ ऐसा ही लगता होगा.
सर पर मुझे खूब प्यार आने लगा वैसा ही जैसे किसी लड़की को अपने आशिक से चुदवाने में आता होगा. मैंने उन्हें जम के अपनी बांहों में भींचा और बेतहाशा उन्हें चूमने लगा "सर .... मेरे अच्छे सर .... बहुत अच्छा लग रहा है सर..... चोदिये ना .... कस के चोदिये ना .... फ़ाड दीजिये मेरी गां .... चूत .... मेरी चूत को ढीला कर दीजिये सर ..... ओह सर ... आप अब जो कहेंगे मैं ... करूंगा सर .... आप .... आप मेरे भगवान हैं सर ....सर मैं आप को बहुत प्यार करता हूं सर .... सर .... आप को मैं अच्छा लगता हूं ना सर" और कमर उछाल उछाल कर मैं अपनी गांड में सर के लंड को जितना हो सकता है उतना लेने की कोशिश करने लगा.
सर ने मुझे खूब देर चोदा. हचक हचक कर धक्के लगाये और मेरी कमर करीब करीब तोड़ दी.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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