Sunday, August 31, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--25

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--25
अब आगे....

भौजी: मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!!!

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए...मैंने अपना सर पकड़ लिया|

भौजी: तुम्हारे जाने के बाद वही मेरे जीने का सहारा होगा| उस बच्चे में मैं तुम्हारा प्यार ढूंढ़ लुंगी और उसे वही प्यार दूंगी जो मैं तुम्हें देना चाहती थी| तुम्हारी कमी अब सिर्फ वही पूरी कर सकता है!!!

मैं: आप ये क्या कह रहे हो? चन्दर भैया क्या कहेंगे? उन्होंने तो इतने सालों से आपको हाथ भी नहीं लगाया ... घर के सब लोग बातें करेंगे| एक तरफ तो आपको अपनी और मेरी इज्जत की चिंता है और दूसरी तरफ आप ऐसी बात कर रही हो| अगर भैया ने आप से पूछा की ये बच्चा किसका है तो आप क्या कहोगे? इसीलिए मैं आपको भगा के ले जाना चाहता था, अब भी देर नहीं हुई है.. सोच लो!!!

भौजी: मैं तुम्हारे साथ भाग के चाचा-चाची को दुःख नहीं देना चाहती, इसमें उनकी क्या गलती है? चाहे कुछ भी हो मुझे ये बच्चा चाहिए मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ| नहीं तो मेरे पास सिवाए जान देने के और कोई रास्ता नहीं है|

मैं: आप को हो क्या गया है? अच्छा आप बताओ की आप भैया से क्या कहोगी की ये किसका बच्चा है?

भौजी: वो सब मैं संभाल लुंगी और मैं तुम्हें ये यकीन दिलाती हूँ की तुम्हारे ऊपर कोई लांछन नहीं लगने दूंगी|

मैं: लांछन?? वो मेरा भी नच्छा है.. तो लांछन किस बात का? और आप कैसे ये सब संभाल लगी? घर में सब जानते हैं की मैं और आप कितने नजदीक हैं, यहाँ तक की डॉक्टर को भी शक है हमारे रिश्ते पे! घर वालों की नजर में हम अच्छे दोस्त हैं पर जब उन्हें पता चलेगा की आप गर्भवती हो तो सबसे पहले मेरा ही नाम आएगा| जो गलत भी नहीं है!!! कहीं आप चन्दर भैया के साथ सम....

भौजी: छी-छी मानु तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में ऐसा सोचते हुए भी शर्म नहीं आई| भले ही मेरी शादी उनसे हुई हो पर मैंने तुम्हें अपना पति माना है| सिर्फ तुम ही हो जिसे मैंने अपन तन-मन सौंपा है| मेरी आत्मा पे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अधिकार है और तुम ऐसा सोचते हो?

मैं: I'M SORRY !!! मैं आपको कभी भी किसी चीज के लिए मना नहीं कर सकता| पर जब तक आपके पीठ के जख्म नहीं भर जाते तब तक कुछ नहीं|

भौजी: नहीं मानु, आज रात .. मैं अब और इन्तेजार नहीं कर सकती|

मैं: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूं?

भौजी: हाँ पूछो|

मैं: प्लीज मुझे गलत मत समझना पर आप कहीं लड़के की चाहत तो नहीं रखते?

भौजी: मतलब?

मैं: मतलब की आपको सिर्फ लड़का ही चाहिए?

भौजी: नहीं मानु ऐसा नहीं है| लड़का हो या लड़की मेरे लिए जर्रुरी ये है की मैं उस बच्चे में तुम्हारा अक्स चाहती हूँ|

मैं: देखो आप तो सीधा लेट भी नहीं पाते तो उस समय आपको बहुत पीड़ा होगी और मैं इस हालत में आपको प्यार नहीं कर सकता| आपको तड़पता देख के मैं टूट जाऊँगा, बस केवल दो दिन और फिर आपके जख्म भर जायेंगे और मैं आपकी साड़ी इच्छा पूरी कर दूँगा|

भौजी: ठीक है पर तुम ये सिर्फ मेरी इच्छा पूरी करने के लिए कर रहे हो या दिल से?

मैं: मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ!!! अब चलो मुस्कुराओ...


 भौजी मुस्कुरा दीं.. पर मुझे अब चिंता होने लगी थी| क्या होगा अगर ये बात सामने आ गई की भौजी की कोख में पल रहा बच्चा मेरा है| घरवाले अपनी इज्जत बचाने के लिए उस बच्चे को पैदा होने से पहले ही मार देंगे!!! पर मेरे पास इस समय कोई और चारा नहीं था, अगर मैं भौजी की बात नहीं मानता तो वो मेरी जुदाई का दुःख नहीं बर्दाश्त कर पातीं और खुद-ख़ुशी कर लेतीं और तब नेहा का क्या होता?

अब तो मैं जैसे हंसना ही भूल गया था... भौजी को भी मेरे अंदर आये इस बदलाव की भनक थी| मैं उनके आस-पास तो होता पर कुछ ना कुछ सोचता रहता| अचानक मेरे दिमाग ने काम करना क्यों बंद कर दिया था? दो दीं कैसे बीते पता ही नहीं चला, अब मेरे जिस्मानी घाव काफी हद तक भर चुके थे| उनपे एक पपड़ी बन चुकी थी, दर्द नहीं था| उधर भौजी के घाव बिलकुल भर चुके थे| दोपहर का समय था, घर के सभी लोग खेत में थे और आज तो माँ-पिताजी भी खेत में हाथ बंटा रहे थे मैं भी खेत में था परन्तु अकेले टहल रहा था| घर पे केवल भौजी अकेली थी उन्होंने मुझे बुलाने के लिए नेहा को भेजा था| नेहा मेरे पास भागती हुई आई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा और मेरे कान में खुस-फुसाई:
"चाचू मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्होंने आपको जल्दी बुलाया है|"

ये सुनते ही मैं भागता हुआ घर पहुँचा... आँगन, रसोई, बड़े घर में भी कोई नहीं था| मैं उनके घर घर में दाखिल हुआ और उनके कमरे में झाँका तो वहां भी कोई नहीं था तभी भौजी ने मुझे पीछे से आके जकड़ लिया| उनकी गर्म सांसें मेरी पीठ पे पड़ीं तो मैं सिंहर उठा|

मैं: आप की तो तबियत ख़राब थी ना?

भौजी: वो तो तुम्हें यहाँ बुलाने का बहाना था|

मैं: अब तक तो नेहा ने सबको बता दिया होगा, और सभी यहीं आते होंगे|

भौजी: मैंने उसे कहा था की मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और तुम्हें बुलाने के लिए झूठ बोलने के लिए मैंने ही कहा था| वो ये बात किसी को नहीं कहेगी और मजे से चिप्स खा रही होगी|

मैं: आप बड़े शैतान हो!!! पर प्लीज आगे से नेहा को इस सब में मत डाला करो| मुझे अच्छा नहीं लगता, वो बिचारी अबोध बच्ची क्या जाने|

भौजी: ठीक है मैं उसे इस सब से पर रखूंगी पर पहले बताओ की आखिर ऐसी क्या बात है जो पिछले दो दिन से तुम कुछ अलग लग रहे हो? मेरे पास हो के भी मुझसे दूर हो? कौन सी बात है जो तुम्हें खाय जा रही हो?

मैं: नहीं तो .... कुछ भी तो नहीं|

भौजी: झूठ मत बोलो, अगर तुम्हारा मन नहीं है तो मत बताओ| पर मैं जानती हूँ की तुम क्यों परेशान हो? तुम मेरी उस बात से परेशान हो|

मैं: नहीं.... आपकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है|वैसे क्या बात है आज तो बहुत सजे-सँवरे हो? ओह!!! याद आया ... तो इसलिए आपने मुझे बुलाया था|

मैंने भौजी को अपनी बाँहों में जकड लिया और उनके माथे को चूमा| भौजी ने आज लाल रंग की साडी पहनी थी| बालों का गोल जुड़ा, होठों पे लाली, माँग में सिन्दूर और पाँव में पायल| नाखूनों पे नेल पोलिश ... हाय आज तो सच में मेरा क़त्ल होने वाला था| मैंने जब भौजी को अपने आलिंगन से आजद किया तो वो गोल घूम के मुझे अपनी सुंदरता का दीदार कराने लगी| उनके शरीर से भीनी-भीनी इत्र की खुशबु आ रही थी जो मुझे उनकी और आकर्षित कर रही थी|मैं बहार की ओर जाने लगा...


 भौजी: कहाँ जा रहे हो? मुझसे कोई गलती हो गई?

मैं: दरवाजा तो बंद कर दूँ|

भौजी अपने दाँतों टेल ऊँगली दबा के हंस दी| मैंने जल्दी से दरवाजा बंद किया और उनके पास आ गया|मैं बिना रुके उनके मुख को चूमता रहा, कभी माथे पे, कभी आँखों पे, कभी गाल पे कभी उनकी नाक पे और अंत में उनके होंठों को!!! वो नहीं चाहती थीं की मैं रुकूँ ... मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोलने चाहे परन्तु खोल नहीं पाया.. उन्होंने स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोले| आग दोनों ओर लग चुकी थी... दोनों के जिस्म देहक रहे थे| जैसे ही भौजी के स्तन ब्लाउज की कैद से आजाद हुए मैंने उन्हें कास के गले लगा लिया| हालाँकि मैंने टी-शर्ट पहनी हुई थी पर फिर भी उनके निप्पल मुझे अपनी छाती पे महसूस हो रहे थे| इससे पहले की हम आगे बढ़ते दरवाजे पे दस्तक हुई| भौजी कस्मा के मुझसे लिपटी रहीं परन्तु बहार से दस्तक चालु थी| मैंने भौजी को अपने से अलग किया ओर उन्हें होश में लाने की कोशिश की| उन्हें झिंझोड़ा तब जाके वो होश में आईं| उनके मुख पे गुस्से के भाव थे... ऐसे भाव जो मैंने कभी नहीं देखे| अगर उनके हाथ में पिस्तौल होती तो आज दस्तक देने वाले का मारना तय था| भौजी ने ब्लाउज के बटन बंद किये ओर मुझे इशारे से रुकने को कहा और वो चिल्लाती हुई दरवाजा खोलने गईं| मुझे दर था की अगर किसी ने मुझे यहाँ देख लिया तो आफत हो जाएगी इसलिए मैं आँगन की ओर भागा, चारपाई खींच के खड़ी की और उसपे चढ़ गया. लपक के मैंने दिवार फांदी और बहार कूद गया| कूदते समय थोड़ा पाँव ऊँचा-नीचे होने के कारन मोच आ गई|

मैं लंगड़ाते हुए किसी तरह घूम के मुख्य द्वार पे आया, देखा वहां कोई नहीं था| जब मैं भौजी के घर में दाखिल हुआ तो देखा भौजी माधुरी पे बड़े जोर से चिल्ला रहीं है|

भौजी: क्या चाहिए तुझे? जब देखो मानु...मानु उसके पीछे क्यों पड़ी है?... क्या चाहिए तुझे उससे? वो तुझे पसंद नहीं करता क्यों उसके आगे-पीछे घूमती रहती है| वो वैसा लड़का नहीं है जैसा तू सोच रही| उससे दूर रह वार्ना मैं तेरे माँ-पिताजी से तेरी शिकायत कर दूँगी|

माधुरी: मैं तो....

भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ घुस आने की? बड़ी मुश्किल से आँख लगी थी और तूने मेरी नींद उड़ा दी|

आज तो भौजी का गुस्सा चरम पर था... मैंने सच में उन्हें इतना गुस्से में कभी नहीं देखा था| मैं लंगड़ाते हुए अंदर गया...

मैं: क्या हो रहा है?

मुझे लंगड़ाते हुए देख के दोनों एक आवाज में बोलीं:

"तुम्हें क्या हुआ?"

कोरस में दोनों की आवाज सुन के मैं हैरान हो गया...

मैं: कुछ नहीं पाँव-ऊँचा नीचे पद गया इसलिए मोच आ गई|

भौजी: हाय राम! इधर आओ देखूं तो|

माधुरी भी देखने के लिए नजदीक आई...

भौजी: तू क्या देख रही है| निकल यहाँ से और खबरदार जो "इनके" आस-पास भी भटकी| "ये" तुझे कुछ नहीं कहते तो तू सर पे चढ़ी जा रही है|

माधुरी बेचारी रोती-बिलखती बहार चली गई|

भौजी: मानु, मैं तेल लगा देती हूँ| तुम मेरी वजह से खुद को कितनी मुसीबत में डालते हो|

मैं: क्यों आपने उस "बेचारी" की क्लास लगा दी| वैसे मैंने आपको आज से पहले कभी भी इतना गुस्से में नहीं देखा|

भौजी: गुस्से वाली बात ही है, जब देखो तुम्हारे पास आने की कोशिश करती है| मैंने इसे अपना पति छीनने नहीं दे सकती| सोचो मुझे कैसा लगता होगा जब ये तुम से हंस-हंस के बातें करती है? मेरे दिल पे तो लाखों छुरियाँ चल जाती है| और आज कितने दिनों बाद तुम मुझे प्यार कर रहे थे और ये बीच में आ गई|मैं: देखो आप अपना गुस्सा शांत करो वार्ना इस आग में मैं जल जाऊँगा|

भौजी थोड़ा शांत हुईं.. उन्होंने मेरी एड़ी पर तेल की मालिश की और पट्टी बांद दी और मैं बहार आ गया और आँगन में चारपाई पे बैठ गया|| हमारे घर का एक नियम है जिसे रसोइये को हर हालत में मानना पड़ता है| वो नियम ये है की, रसोइया नह-धो के भोजन बनाने बैठता है| और एक बार वो रसोई में घुस गया तो वो बहुजन बना के सब को खिलाने के बाद ही बहार निकलता है| इस दौरान अगर उसे बाथरूम जाना पड़ा तो वो बिना नहाये-धोये रसोई में नहीं घुस सकता| ये नियम इतना कड़ा है की इसे हर हालत में इसका पालन जर्रुरी है, वरना घर के बड़े उस भोजन को हाथ तक नहीं लगाते|

अब मेरे और भौजी के बीच में जो शुरू हुआ था वो हालाँकि बीच में ही रह गया था परन्तु उनकी आत्मा अशुद्ध थी! अब रसोई में घुसने के लिए उन्हें नहाना आवश्यक था| तभी भौजी की घर के अंदर से आवाज आई:

"मानु... जरा सुनो तो?"

मैं: हाँ बोलो?

अंदर का दृश्य देख के मैं दंग रह गया| भौजी को आज मैं पहली बार सिर्फ ब्रा और पैंटी में देख रहा था| उनके होंठों की लाली और माँग का सिन्दूर उनकी सुंदरता पे चार चाँद लगा रहा था| मैंने भाग के दरवाजा बंद किया|

मैं: हाय!!!! आज तो आप गजब ढा रहे हो| अब अगर मेरा ईमान डोल गया तो इसमें क्या कसूर!!!

भौजी: अब ये औपचारिकता छोडो! अपनी "पत्नी" के पास आने के लिए तुम्हें बहाने की जर्रूरत नहीं|

मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके होठों पे अपने होंठ रख दिए| उनकी लिपस्टिक का मधुर स्वाद मुझे अपने मुँह में आने लगा था|मैं उनके होठों को बारी-बारी चूस रहा था, कभी-कभी भौजी अपनी जीभ मेरे मुख में प्रवेश करा देती और मेरी जीभ के साथ खेलती| मैं धीरे-धीरे भौजी को चारपाई तक ले गया और उन्हें लेटा दिया| सफ़ेद ब्रा और पैंटी में भौजी आज कयामत लग रही थी| उन्हें ऐसा देखने की मैंने कल्पना भी नहीं की थी|मैं उनके ऊपर आ गया और फिर उन्हें बेतहाशा चूमने लगा| भौजी मेरे हर एक चुम्बन का जवाब देने लगी थी| साफ़ था की वासना हम दोनों पे सवार थी.... मैंने अपने हाथ उनकी ब्रा का हुक खोलने के लिए उनकी पीठ के नीचे ले गया| तो भौजी ने अपनी पीठ उठा की सहयोग दिया| उनकी ब्रा का हुक खोल के मैंने उनकी ब्रा खींच के निकाली और सिराहने रख दी|मैं जानता था की मेरे पास FOREPLAY के लिए समय नहीं है, इसलिए मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा और भौजी की पैंटी निकाल दी| उनके योनि के पटल बंद थे और मुझे भीनी-भीनी सी मढोह करने वाली महक आने लगी थी| मैंने झुक के जैसे ही भौजी की योनि को अपनी जीभ की नोक से छुआ तो भौजी तड़प उठी| मैंने अपनी एक ऊँगली भौजी की योनि के अंदर डाली तो पता चल की उनकी योनि अंदर से गीली है| मैंने अपना पाजामा नीचे किया और लंड निकाल के तैयार हो गया| मैं उनके ऊपर पुनः झुक गया और अपनी लंड को उनकी योनि के ऊपर रख धीरे से उसे अंदर प्रवेश करा दिया|

अपने दोनों हाथों से मैंने भौजी के दोनों हाथ पकड़ लिए, इधर भौजी ने अपनी टांगों से मेरी कमर को लॉक कर लिया था| मैंने शुरुआत धीरे-धीरे की, घर्षण काम होने के कारन मुझे अपनी गति बढ़ानी पड़ी| समय बीतता जा रहा था और अगर इस समय हमें कोई डिस्टर्ब करता तो आज खून-खराबा तय था| मेरे हर धक्के के साथ भौजी के स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे और भौजी के मुख के भावों ओ देख के लग रहा था की किसी भी समय वो स्खलित हो जाएँगी| उनके होठों की लाली फ़ैल चुकी थी और मुझे उन्हें इस तरह देख के बहुत आनंद आ रहा था| करीब बीस मिनट तक मैं बिना रुके लय बद्ध तरीके से धक्के देता रहा| मेरा पूरा शरीर पसीने से तरबातर हो चूका था.... चेहरे पे पसीना बह के भौजी के मुख पे गिरने लगा था| तब भौजी ने अपनी ब्रा से मेरे मुँह पोछा| अंदर से भौजी की योनि पनिया गई थी….. शायद इस बार भौजी ज्यादा ही उत्साहित थी.... पिछली बार जब हमने सम्भोग किया था तब उनकी योनि ने मेरे लंड को जकड रखा था| परन्तु इस बार तो लंड आसानी से फिसल रहा था.... अब समय आ चूका था जब मैं चरम पे पहुँचने वाला था| भौजी को ना जाने क्या हुआ उन्होंने अपने हाथ छुड़ाए और मेरे सर को अपने मुख पे झुकाया और मेरे होठों को चूसने लगीं| मैंने निर्णय कर लिया था की आज तो मैं भौजी की इच्छा पूरी कर के रहूँगा|

मैंने उनकी इस प्रतिक्रिया का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे से अपना पूरा जोर लगता रहा| आखिर मैं स्खलित होने वाला था... आखिर के चार धक्के कुछ इस प्रकार थे की जैसे ही मैं अपने लंड को अंदर की ओर धकेलता उसमें से रस की धार निकल के भौजी की योनि में गिरती, फिर जैसे ही मैं उसे बहार खींचता वो चुप हो जाता| फिर दूसरे धक्के में जब मैं उसे अंदर धकेलता तो फिर उसमें से रस की लम्बी धार निकलती औरइसी प्रकार आखरी के चार धक्कों में मैंने उनकी योनि को अपने रस से भर दिया और हाँफते हुए उनके ऊपर गिर गया|





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