FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--26
अब आगे....
मैं: ARE YOU HAPPY NOW ?
भौजी: मतलब???
मैं: मतलब आप खुश तो हो ना?
मैं: हाँ... बहुत खुश!!!
ये कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को चूम लिया, और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब उनके होंठों को आखरी बार चूस के दिया| मैं उठ के खड़ा हुआ और स्नान घर की ओर जाने लगा, ताकि अपने हाथ-मुँह ओर लंड धो सकूँ| भौजी ने मुझे पीछे से पुकारा:
"मानु, इधर आना ..."
मैं उनके पास आया तो उन्होंने मेरे लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ा और हिलाते हुए अपने मुँह में भर लिया|
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ....."
उन्होंने अपनी जीभ से मेरे लंड को चूसना और रगड़ना शुरू कर दिया| मानो वो हमारे रास को पोंछ के साफ़ कर यहीं हो| जब उन्होंने मेरे लंड को अच्छे से चूस लिया तब मैंने उनसे कहा: "आप बड़े शरारती हो?"
भौजी कुछ नहीं बोलीं और बस मुस्कुराके लेटी रहीं| मैं हाथ-मुँह धो के उनके पास आया:
मैं: अब आप जल्दी से नहा लो... घर के सब लोग अभी खेत से लौटते होंगे|
भौजी: ठीक है, तुम बहार ही बैठना|
मैं बहार चारपाई पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा... तभ भौजी नहा के बहार आईं, उनके बाल भीगे हुए थे और चमक रहे थे| उनके बदन से खुशबूदार गुलाबी LUX साबुन की महक आ रही थी| बालों से शैम्पू की महक.... "ह्म्म्म्म्म"
भौजी सीधा मेरे पास आके बैठ गईं... और मेरा हाथ पकड़ लिया| तभी नेहा भागती हुई आई, भौजी छिटक के उठ खड़ी हुई| ये देख के मेरी हंसी छूट गई... "हा हा हा हा हा " भौजी भी हंस पड़ी और रसोई की ओर चल दीं| नेहा मेरी गोद में आके बैठ गई... तभी बाकी के घर वाले भी एक-एक कर आने लगे| सभी हैंडपंप पे हाथ-मुँह धोने लगे ओर चाय के लिए बैठ गए| माँ ने मेरे पाँव में पट्टी बंधी देखि:
माँ: हाय राम! अब क्या मार लिया तूने?
मैं: कुछ नहीं.. वो पैर ऊँचा-नीचा पद गया तो थोड़ी मोच आ गई|
माँ: बेटा देख के चला कर, ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?
मैं: नहीं..
इतने में भौजी चाय ले के आ गईं|
भौजी: चाची मैंने तेल से मालिश करके पट्टी बांध दी थी| कल सुबह तक ठीक हो "जायेंगे"|
माँ: अच्छा किया बहु, एक तू ही है जो इसका इतना ध्यान रखती है वरना शहर में तो ये खुद ही कुछ न कुछ कर लेता था, मुझे बताता भी नहीं था|
माँ चाय का कप लिए खड़ी थी की तभी वहाँ बड़की अम्मा भी आ गईं और वो भी मेरे पाँव में पट्टी देख के हैरान थी| भौजी ने आगे बढ़ कर खुद उन्हें सारी बात बताई|
बड़की अम्मा: मानु की अम्मा, देख रही हो देवर-भाभी का प्यार? चोट मानु को लगती है तो दर्द बहु को होता है| बीमार बहु होती है तो दवा-दारु मानु करता है| बिलकुल ऐसा ही इसके पिताजी थे जब वो छोटे थे| हमेशा किसी न किसी काम में मेरी मदद करते रहते थे... जब भी चोट लगती तो भागे-भागे मेरे पास आते थे|
माँ कुछ नहीं बोलीं और मुस्कुरा दीं... भौजी भी मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी| अँधेरा हो रहा था... और एक मुसीबत अभी बाकी थी|गाँव का ठाकुर (माधुरी का बाप) बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और मेरे पिताजी के पास आके बैठ गया और पिताजी से बोला:
ठाकुर: बाबूजी, आज मैं आपके पास एक शिकायत लेके आया हूँ|
पिताजी: शिकायत? क्यों क्या हुआ?
ठाकुर: आपके घर की बहु ने मेरी बेटी को बहुत बुरी तरह झाड़ा है!
पिताजी: बड़ी बहु ने?
ठाकुर: हाँ और जानते हैं क्यों?
पिताजी: क्यों?
ठाकुर: क्यों की वो आपके लड़के से मिलने आती है| ऐसा कौन सा पाप कर दिया उसने? सिर्फ बात ही तो करती है ना?
पिताजी ने भौजी को आवाज लगाईं, और भौजी के साथ मैं भी आया| माँ और बड़की अम्मा तो पहले ही वहाँ खड़े थे|
पिताजी: बहु क्या ये सच है, तुमने ठाकुर साहब की बेटी को डाँटा?
ठाकुर: बाबूजी, डाँटा नहीं झाड़ा !!! और ऐसा झाड़ा की रो-रो कर उसका बुरा हाल है|
भौजी: जी...
मैं: मेरे कहने पे!
भौजी और सभी लोग मेरी तरफ देखने लगी...
मैं: जी मैंने ही भौजी से कहा था की माधुरी बार-बार मुझसे बात करने की कोशिश करती है| जबकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं.... मैं उससे जितना दूर भागता हूँ वो उतना ही मेरे पास आने की कोशिश करती है| यहाँ तक की उसने तो मुझसे शादी के बारे में भी पूछा था| उस दीं जब हम वाराणसी के लिए निकल रहे थे तो शाम को मुझसे कह रही थी की "अब आप दुबारा कब आओगे?" और जब मैंने कहा की एक साल बाद तो कहने लगी "हाय राम!!! इतने देर लगाओगे?" अब आप ही बताइये पिताजी मैं और क्या करता? इसलिए मैंने भौजी से शिकायत की कि आप उसे समझा दो| पर आज दोपहर में जब मैं आप सबके साथ खेत पे था तब माधुरी घर आई और दरवाजा पीटने लगी.. बड़ी मुश्किल से भौजी कि आँख लगी थी उन्होंने गुस्से में उसे सुना दिया|
ठाकुर: मैं अपनी बेटी को अच्छी तरह से जानता हूँ, वो ऐसी बिलकुल भी नहीं है जैसा तुम कह रहे हो?
मैं: आप उसे यहाँ बुला क्यों नहीं लेते? दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा|
पिताजी ने अजय भैया को माधुरी को बुलाने को भेजा... और इधर घरवाले सब मेरी तरफ हो गए थे| सब का मानना था कि मैं झूठ नहीं बोलूंगा| कुछ ही देर में माधुरी भी आ गई और गर्दन झुकाये खड़ी हो गई| पिताजी अब मुखिया कि तरह बात सुलझाने लग गए|
पिताजी: बेटा मानु का कहना है कि तुम जबरदस्ती उसे बातें करने कि कोशिश करती हो| और तुमने उससे शादी के लिए भी पूछा था?
माधुरी: जी.. पूछा था|
पिताजी: क्यों?
माधुरी: क्योंकि मैं "उनसे" प्यार करती हूँ!!!
ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए!!! भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया|
मैं: ARE YOU MAD !!! दिमाग ख़राब तो नहीं हो गया?
ठाकुर: ये तू क्या कह रही है बेटी?
पिताजी: मानु, तू शांत हो जा!!! बेटी ये कब से चल रहा है?
माधुरी: जी जब मैं पहली बार "इनसे" मिली थी| मैं इन्ही से शादी करना चाहती हूँ|
पिताजी: ये नहीं हो सकता बेटी, लड़का अभी पढ़ रहा है और...
माधुरी: मैं इन्तेजार करने के लिए तैयार हूँ!!!
मैं: YOU'RE OUT OF YOUR MIND !!! मैं तुम से प्यार नहीं करता, तो शादी कैसे ??? ठाकुर साहब आप अपनी बेटी को समझाओ या इसे डॉक्टर के पास ले जाओ|
भौजी कि आँखें भर आईं थी और वो मुँह फेर के चली गईं|
पिताजी: मैंने कहा ना तू चुप रह!!! मैं बात कर रहा हूँ ना???
माँ: तू जा यहाँ से... यहाँ सब बड़े बात कर रहे हैं|
मैं: पिताजी, आपको जो भी फैसला लेना है लो पर मैं इससे शादी नहीं करने वाला|
अजय भैया मुझे अपने साथ खींच के ले गए और दूर चारपाई पे बैठा दिया|मेरा दिमाग गरम हो गया था... आस पास नजर दौड़ाई पर भौजी कहीं नजर नहीं आई| मैं खुद तो उन्हें ढूंढने नहीं जा सकता था इसलिए मैंने नेहा को ढूंढने के लिए भेजा|नेहा भी जब नहीं लौटी तो मुझे खुद ही उन्हें ढूंढने जाना पड़ा... मेरे मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे थे| कहीं भौजी ने कुछ गलत कदम न उठा लिया है... यही सोचता हुआ मैं उनके घर कि ओर चल दिया|
भौजी नेहा से लिपटी हुई रो रही थी... मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रखा और उन्हें अपनी ओर घुमाया| भौजी मेरे सीने से लग के रोने लगी...
मैं: आप क्यों रो रहे हो? मैं उस से शादी थोड़े ही करने वाला हूँ| मैंने सबके सामने साफ़-साफ़ कह दिया कि मैं उससे शादी नहीं करूँगा| कभी नहीं करूँगा!!!
भौजी: ये सब मेरी वजह से हुआ...
मैं: किसने कहा आपसे, इसमें आपकी कोई गलती नहीं|
भौजी: पर चाचा नहीं मानेंगे ... वो तुम्हारी उसके साथ तय कर देंगे| मुझे इस बात कि चिंता है कि वो लड़की तुम्हारे लिए सही नहीं है|
मैं: पिताजी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, और शादी तय कर भी दी तो करनी तो मुझे है| और जब मैं ही नहीं मानूंगा तो शादी कैसी? आप बस चुप हो जाओ, देखो किसी ने आपको मुझसे ऐसे लिपटे देख लिया तो क्या सोचेगा? मैं बहार जा रहा हूँ आप भी मुँह धो लो और बहार आ जाओ!!!
ये कहके मैं बहार आ गया और नेहा को साथ ले आया| मेरी नजर अब भी दूर हो रही बैठक पे थी... मन में सवाल उठ रहे थे कि पता नहीं क्या होगा? अगर पिताजी ने वाकई में मेरी शादी तय कर दी तो?
भौजी भी कुछ देर बाद बहार आ गईं और पास ही खड़ी हो गई .. उनका ध्यान भी बैठक कि ओर था| कुछ समय बाद बैठक खत्म हुई ओर ठाकुर, माधुरी और उसकी माँ अपने घर कि ओर चल दिए| मन में उत्सुकता बढ़ रही थी कि पता नहीं सब ने क्या फैसला किया है? मैं उठा और जहाँ बैठक हो रही थी वहाँ जाके हाथ मोड़के खड़ा हो गया| भौजी भी मेरे साथ वहीँ खड़ी हो गई|
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अब आगे....
मैं: ARE YOU HAPPY NOW ?
भौजी: मतलब???
मैं: मतलब आप खुश तो हो ना?
मैं: हाँ... बहुत खुश!!!
ये कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को चूम लिया, और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब उनके होंठों को आखरी बार चूस के दिया| मैं उठ के खड़ा हुआ और स्नान घर की ओर जाने लगा, ताकि अपने हाथ-मुँह ओर लंड धो सकूँ| भौजी ने मुझे पीछे से पुकारा:
"मानु, इधर आना ..."
मैं उनके पास आया तो उन्होंने मेरे लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ा और हिलाते हुए अपने मुँह में भर लिया|
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ....."
उन्होंने अपनी जीभ से मेरे लंड को चूसना और रगड़ना शुरू कर दिया| मानो वो हमारे रास को पोंछ के साफ़ कर यहीं हो| जब उन्होंने मेरे लंड को अच्छे से चूस लिया तब मैंने उनसे कहा: "आप बड़े शरारती हो?"
भौजी कुछ नहीं बोलीं और बस मुस्कुराके लेटी रहीं| मैं हाथ-मुँह धो के उनके पास आया:
मैं: अब आप जल्दी से नहा लो... घर के सब लोग अभी खेत से लौटते होंगे|
भौजी: ठीक है, तुम बहार ही बैठना|
मैं बहार चारपाई पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा... तभ भौजी नहा के बहार आईं, उनके बाल भीगे हुए थे और चमक रहे थे| उनके बदन से खुशबूदार गुलाबी LUX साबुन की महक आ रही थी| बालों से शैम्पू की महक.... "ह्म्म्म्म्म"
भौजी सीधा मेरे पास आके बैठ गईं... और मेरा हाथ पकड़ लिया| तभी नेहा भागती हुई आई, भौजी छिटक के उठ खड़ी हुई| ये देख के मेरी हंसी छूट गई... "हा हा हा हा हा " भौजी भी हंस पड़ी और रसोई की ओर चल दीं| नेहा मेरी गोद में आके बैठ गई... तभी बाकी के घर वाले भी एक-एक कर आने लगे| सभी हैंडपंप पे हाथ-मुँह धोने लगे ओर चाय के लिए बैठ गए| माँ ने मेरे पाँव में पट्टी बंधी देखि:
माँ: हाय राम! अब क्या मार लिया तूने?
मैं: कुछ नहीं.. वो पैर ऊँचा-नीचा पद गया तो थोड़ी मोच आ गई|
माँ: बेटा देख के चला कर, ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?
मैं: नहीं..
इतने में भौजी चाय ले के आ गईं|
भौजी: चाची मैंने तेल से मालिश करके पट्टी बांध दी थी| कल सुबह तक ठीक हो "जायेंगे"|
माँ: अच्छा किया बहु, एक तू ही है जो इसका इतना ध्यान रखती है वरना शहर में तो ये खुद ही कुछ न कुछ कर लेता था, मुझे बताता भी नहीं था|
माँ चाय का कप लिए खड़ी थी की तभी वहाँ बड़की अम्मा भी आ गईं और वो भी मेरे पाँव में पट्टी देख के हैरान थी| भौजी ने आगे बढ़ कर खुद उन्हें सारी बात बताई|
बड़की अम्मा: मानु की अम्मा, देख रही हो देवर-भाभी का प्यार? चोट मानु को लगती है तो दर्द बहु को होता है| बीमार बहु होती है तो दवा-दारु मानु करता है| बिलकुल ऐसा ही इसके पिताजी थे जब वो छोटे थे| हमेशा किसी न किसी काम में मेरी मदद करते रहते थे... जब भी चोट लगती तो भागे-भागे मेरे पास आते थे|
माँ कुछ नहीं बोलीं और मुस्कुरा दीं... भौजी भी मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी| अँधेरा हो रहा था... और एक मुसीबत अभी बाकी थी|गाँव का ठाकुर (माधुरी का बाप) बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और मेरे पिताजी के पास आके बैठ गया और पिताजी से बोला:
ठाकुर: बाबूजी, आज मैं आपके पास एक शिकायत लेके आया हूँ|
पिताजी: शिकायत? क्यों क्या हुआ?
ठाकुर: आपके घर की बहु ने मेरी बेटी को बहुत बुरी तरह झाड़ा है!
पिताजी: बड़ी बहु ने?
ठाकुर: हाँ और जानते हैं क्यों?
पिताजी: क्यों?
ठाकुर: क्यों की वो आपके लड़के से मिलने आती है| ऐसा कौन सा पाप कर दिया उसने? सिर्फ बात ही तो करती है ना?
पिताजी ने भौजी को आवाज लगाईं, और भौजी के साथ मैं भी आया| माँ और बड़की अम्मा तो पहले ही वहाँ खड़े थे|
पिताजी: बहु क्या ये सच है, तुमने ठाकुर साहब की बेटी को डाँटा?
ठाकुर: बाबूजी, डाँटा नहीं झाड़ा !!! और ऐसा झाड़ा की रो-रो कर उसका बुरा हाल है|
भौजी: जी...
मैं: मेरे कहने पे!
भौजी और सभी लोग मेरी तरफ देखने लगी...
मैं: जी मैंने ही भौजी से कहा था की माधुरी बार-बार मुझसे बात करने की कोशिश करती है| जबकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं.... मैं उससे जितना दूर भागता हूँ वो उतना ही मेरे पास आने की कोशिश करती है| यहाँ तक की उसने तो मुझसे शादी के बारे में भी पूछा था| उस दीं जब हम वाराणसी के लिए निकल रहे थे तो शाम को मुझसे कह रही थी की "अब आप दुबारा कब आओगे?" और जब मैंने कहा की एक साल बाद तो कहने लगी "हाय राम!!! इतने देर लगाओगे?" अब आप ही बताइये पिताजी मैं और क्या करता? इसलिए मैंने भौजी से शिकायत की कि आप उसे समझा दो| पर आज दोपहर में जब मैं आप सबके साथ खेत पे था तब माधुरी घर आई और दरवाजा पीटने लगी.. बड़ी मुश्किल से भौजी कि आँख लगी थी उन्होंने गुस्से में उसे सुना दिया|
ठाकुर: मैं अपनी बेटी को अच्छी तरह से जानता हूँ, वो ऐसी बिलकुल भी नहीं है जैसा तुम कह रहे हो?
मैं: आप उसे यहाँ बुला क्यों नहीं लेते? दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा|
पिताजी ने अजय भैया को माधुरी को बुलाने को भेजा... और इधर घरवाले सब मेरी तरफ हो गए थे| सब का मानना था कि मैं झूठ नहीं बोलूंगा| कुछ ही देर में माधुरी भी आ गई और गर्दन झुकाये खड़ी हो गई| पिताजी अब मुखिया कि तरह बात सुलझाने लग गए|
पिताजी: बेटा मानु का कहना है कि तुम जबरदस्ती उसे बातें करने कि कोशिश करती हो| और तुमने उससे शादी के लिए भी पूछा था?
माधुरी: जी.. पूछा था|
पिताजी: क्यों?
माधुरी: क्योंकि मैं "उनसे" प्यार करती हूँ!!!
ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए!!! भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया|
मैं: ARE YOU MAD !!! दिमाग ख़राब तो नहीं हो गया?
ठाकुर: ये तू क्या कह रही है बेटी?
पिताजी: मानु, तू शांत हो जा!!! बेटी ये कब से चल रहा है?
माधुरी: जी जब मैं पहली बार "इनसे" मिली थी| मैं इन्ही से शादी करना चाहती हूँ|
पिताजी: ये नहीं हो सकता बेटी, लड़का अभी पढ़ रहा है और...
माधुरी: मैं इन्तेजार करने के लिए तैयार हूँ!!!
मैं: YOU'RE OUT OF YOUR MIND !!! मैं तुम से प्यार नहीं करता, तो शादी कैसे ??? ठाकुर साहब आप अपनी बेटी को समझाओ या इसे डॉक्टर के पास ले जाओ|
भौजी कि आँखें भर आईं थी और वो मुँह फेर के चली गईं|
पिताजी: मैंने कहा ना तू चुप रह!!! मैं बात कर रहा हूँ ना???
माँ: तू जा यहाँ से... यहाँ सब बड़े बात कर रहे हैं|
मैं: पिताजी, आपको जो भी फैसला लेना है लो पर मैं इससे शादी नहीं करने वाला|
अजय भैया मुझे अपने साथ खींच के ले गए और दूर चारपाई पे बैठा दिया|मेरा दिमाग गरम हो गया था... आस पास नजर दौड़ाई पर भौजी कहीं नजर नहीं आई| मैं खुद तो उन्हें ढूंढने नहीं जा सकता था इसलिए मैंने नेहा को ढूंढने के लिए भेजा|नेहा भी जब नहीं लौटी तो मुझे खुद ही उन्हें ढूंढने जाना पड़ा... मेरे मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे थे| कहीं भौजी ने कुछ गलत कदम न उठा लिया है... यही सोचता हुआ मैं उनके घर कि ओर चल दिया|
भौजी नेहा से लिपटी हुई रो रही थी... मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रखा और उन्हें अपनी ओर घुमाया| भौजी मेरे सीने से लग के रोने लगी...
मैं: आप क्यों रो रहे हो? मैं उस से शादी थोड़े ही करने वाला हूँ| मैंने सबके सामने साफ़-साफ़ कह दिया कि मैं उससे शादी नहीं करूँगा| कभी नहीं करूँगा!!!
भौजी: ये सब मेरी वजह से हुआ...
मैं: किसने कहा आपसे, इसमें आपकी कोई गलती नहीं|
भौजी: पर चाचा नहीं मानेंगे ... वो तुम्हारी उसके साथ तय कर देंगे| मुझे इस बात कि चिंता है कि वो लड़की तुम्हारे लिए सही नहीं है|
मैं: पिताजी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, और शादी तय कर भी दी तो करनी तो मुझे है| और जब मैं ही नहीं मानूंगा तो शादी कैसी? आप बस चुप हो जाओ, देखो किसी ने आपको मुझसे ऐसे लिपटे देख लिया तो क्या सोचेगा? मैं बहार जा रहा हूँ आप भी मुँह धो लो और बहार आ जाओ!!!
ये कहके मैं बहार आ गया और नेहा को साथ ले आया| मेरी नजर अब भी दूर हो रही बैठक पे थी... मन में सवाल उठ रहे थे कि पता नहीं क्या होगा? अगर पिताजी ने वाकई में मेरी शादी तय कर दी तो?
भौजी भी कुछ देर बाद बहार आ गईं और पास ही खड़ी हो गई .. उनका ध्यान भी बैठक कि ओर था| कुछ समय बाद बैठक खत्म हुई ओर ठाकुर, माधुरी और उसकी माँ अपने घर कि ओर चल दिए| मन में उत्सुकता बढ़ रही थी कि पता नहीं सब ने क्या फैसला किया है? मैं उठा और जहाँ बैठक हो रही थी वहाँ जाके हाथ मोड़के खड़ा हो गया| भौजी भी मेरे साथ वहीँ खड़ी हो गई|
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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