FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--20
अब आगे....
वहां पहुँचते ही मैं तुरंत नीचे उतरा और फिर से भाभी को अपनी गोद में लेके डॉक्टर की दूकान में घुस गया और सीधा उसके कमरे में रखे बिस्तर पे लेटा दिया| डॉक्टर भी हैरान था... भाभी को उनकंफर्टबल महसूस ना हो इसलिए मैंने पिता जी को कमरे के बहार ही रुकने को बोला| जब मैं भाभी को अंदर ला रहा था तब मैंने गोर किया की डॉक्टर का बोर्ड जो बहार लगा था वो अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओँ में था ... मैंने अंदाजा लगाया की ये डॉक्टर अंग्रेजी अवश्य जानता होगा|
दरअसल मुझे भय था की पिछले दिनों जो हमारे बीच में हुआ उससे कहीं भाभी गर्भवती तो नहीं हो गईं? मैं ये बात डॉक्टर से सीधे-सीधे तो नहीं पूछ सकता था, परन्तु मुझे भय इस बात का भी था की कहीं डॉक्टर पिताजी के सामने भाभी के गर्भवती होने की बात कर देता तो घर में कोहराम छिड़ जाता!!!
आगे जो मेरे और डॉक्टर के बीच अंग्रेजी में बातचीत हुई उसे मैं हिंदी में भी लिखता रहूँगा|
डॉक्टर: क्या हुआ इन्हें?
मैं: Actually Doctor for the pas two days she hasn’t eaten anything, moreover she had high fever yesterday. I was away with my parents on a trip to Varanasi, when I came ack yesterday afternoon I saw her like this… first we had lunch together and then I gave her Crocin tablet and after that her fever was somewhat in control. Atleast that’s what I thought!!! In the night we had dinner together and then again I gave her Crocin. At mid night around 1:30AM hse had a very high fever… since it was about 5 hours since the last dose, so I gave her another dose. After that somehow her fever is a bit mild.
(दरअसल डॉक्टर साहब इन्होने पिछले दो दिनों से अन्न का दाना तक नहीं खाया है और कल इन्हें बहुत तेज बुखार भी था| मैं अपने माता-पिता के साथ वाराणसी गया हुआ था, कल जब मैं लौटा तो इन्हें इस हालत में पाया| पहले मैंने इन्हें खाना खिलाया.. फिर क्रोसिन की गोली दी| उसके बाद इनका बुखार कुछ काबू में आया... काम से काम कुझे तो ऐसा लगा!!! रात में मैंने इन्हें खाना खाने के बाद एक गोली और दी| आधी रात को इनका शरीर फिर से तपने लगा और मुझे याद आया की क्रोसिन दिए हुए पांच घंटे बीत चुके हैं और एक डोज़ और बाकी है| उसे देने के बाद इनका बुखार कुछ कम हुआ| )
डॉक्टर: okay, did she eat anything in the morning?
(अच्छा.. क्या इन्होने सुबह से कुछ खाया है?)
डॉक्टर ने अपना अला लगाया, फिर उसने भाभी के शरीर का तापमान चेक करने के लिए थर्मामीटर लगाया|
मैं: I’m afraid no sir!!!
(जी नहीं डॉक्टर साहब|)
डॉक्टर: Okay from what you’ve told me I take it she’s feeling very weak… and because of your necessary precaution her fever is in control. It’s a good thing you brought her here otherwise the case sould have gone worse. I need to inject some fluids into her body so she could feel a bit normal also since you seem to be her husband, its your duty to take care of her.
(जैसे तुमने बताया उससे ये बात तो पक्की है की इनका शरीर कमजोर हो गया है| तुम्हारी समझदारी के कारन इनका बुखार अब काबू में है| अच्छा हुआ तुम इन्हें यहाँ ले आये वार्ना हालत और भी गंभीर हो सकती थी| मुझे इन्हें ग्लूकोस चढ़ाना होगा ताकि इनके शरीर को थोड़ी ताकत मिले| और चूँकि टीम इनके पति हो तुम्हें नका ख़याल ज्यादा रखना होगा|)
मैं: Actually sir, I’m not her husband… she’s my cousin’s wife.
(दरअसल डॉक्टर साहब मैं इनका पति नहीं हूँ| एमेरे चचेरे भाई की पत्नी हैं|)
डॉक्टर: Oh I see, so she’s your Bhabhi? Then where’s her husband? Isn’t he concerned about her wife’s health?
(ओह्ह .. तो ये आपकी भाभी हैं| तो इनके पति कहाँ हैं? और उन्हें इनकी ज़रा भी फ़िक्र नहीं|)
मैं: Sir he doesn’nt know anything about her health. He’s working in Delhi and I’ve sent a telegram to him.
(डॉक्टर साहब उन्हिएँ तो भाभी की तबियत के बारे में कुछ पता ही नहीं है.. दरअसल वो डेल्ही में काम करते हैं और मैंने उन्हें टेलीग्राम कर दिया है|)
डॉक्टर: Oh I see!! You seem to take good care of your bhabhi. Good!!!
(अच्छा!!! तुम अपनी भाभी का बहुत अच्छे से ख़याल रख रहे हो| शाबाश !!!)
भाभी हमारी अंग्रेजी में हो रही गुफ्तगू बड़े गोर से सुन रही थी... हालाँकि उन्हें समझ कुछ नहीं आया था| पर जब डॉक्टर ने सुई निकाली तो भाभी की सिटी-पिट्टी गुल हो गई| वो गर्दन हिला के ना-ना करने लगीं|
डॉक्टर ने मुझे इशारे से उन्हें समझाने को कहा:
मैं: भौजी ... ये आपको ग्लूकोस चढ़ा रहे हैं इसे आपके शरीर में ताकत आएगी और आप जल्दी अच्छे हो जाओगे|
पिताजी ने भ मेरी बात सुन ली थी और वो कमरे के बहार से ही भाभी को सांत्वना देने लगे||
पिताजी: कोई बात नहीं बहु .. ज्यादा दर्द नहीं होगा| अपने देवर की बात ही मान लो|
जैसे तैसे भाभी मानी... डॉक्टर जब उन्हें सुई लगा रहा था तो भाभी मुंह बना रहीं थीं जिसे देख के मुझे बड़ा मजा रा रहा था| जब डॉक्टर ने भाभी की नस में सुई लगा दी तो मुझे अपने साथ बहार आने को बोला| भाभी मुझे अपने हाथ के इशारे से अपने पास बुला रही थी| मैंने उन्हें कहा की मैं बस दो मिनट में आया| डॉक्टर मैं और पिताजी बहार के कमरे में बैठे थे.. डॉक्टर ने भाभी का हाल चाल सुनाया और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी| पिताजी और डॉक्टर के बीच में सहज रूप से बात-चीत चल रही थी और मेरा डर कम हो गया था की जो मैं सोच रहा था वो नहीं हुआ| डॉक्टर अब मेरी तारीफों के पल बाँध रहा था की कैसे उसे आज एक अरसे बाद अंग्रेजी बोलने वाला इंसान मिला| मैं भाभी के पास अंदर आ गया और घुटनों के बल बैठ के उनके कान में फुस-फसाया:
मैं: भौजी.. अब आप जल्द ही ठीक हो जाओगे|
भाभी: मानु तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में क्या बात कर रहे थे?
मैं: अभी नहीं भौजी... घर चलो सब बताऊँगा|
टिप-टिप करते हुए ग्लूकोस की बोतल हुए खाली होने लगी और सारा ग्लूकोस भाभी के खून में मिलने लगा| इधर पिताजी और डॉक्टर की बातों की आवाज अंदर तक आ रही थी और भाभी मेरी बढ़ाई सुन के खुश हो रही थी| जब बोतल लगभग खाली हो गई तब मैंने डॉक्टर को अंदर बुलाया... उसने भाभी के हाथ से लुइ निकाली और वापस पट्टी का दी| अब उसने मुझे दो-तीन तरह की दवाइयाँ भाभी को नियमित रूप से खिलने के लिए बोला| मैंने बड़े ध्यान से सभी दवाइयों को समय के अनुसार याद कर लिया| मैंने भाभी को फिर से गोद में उठाया और बैलगाड़ी में बैठा दिया| पिताजी आगे बैठे थे और मैं मैं भाभी की बगल में| ग्लूकोस चढ़ने से भाभी की हालत में सुधार आया था| एक बार फिर हम हिचकोले कहते हुए घर पहुँच गए .. मैंने भाभी को एक बार फिर गोद में उठाया और उनके कमरे में ला के लेटा दिया|
मैं जब जाने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे रोका:
भाभी: मानु ..तुम कल सारी रात मेरी वजह से परेशान रहे हो... तुमने सारी रात जाग के मेरी देखभाल की ... तुम बहुत थके हुए लग रहे हो, अब थोड़ा आराम भी कर लो| तुम जा के सो जाओ.. मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रही हूँ|
मैं: नहीं... ये सब मेरी गलती है| ना मैं आपसे अपने वापस आने की बात छुपाता और ना ही आपका ये हाल होता| इसलिए अब जब तक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते मैं आपकी देखभाल में लगा रहूँगा फिर चाहे मेरी ही तबियत क्यों न खराब हो जाए|
इतना कह के मैं वहां से चला गया.... बहार आके देखा तो घर के सभी लोग छप्पर के नीचे बैठे भाभी की सेहत के बारे में बात कर रहे थे| बड़की अम्मा ने तो मुझे गले लगा के दुलार भी किया, और कहने लगी:
"मुन्ना तुम्न्हें सच में अपनी भौजी की हमसब से ज्यादा फ़िक्र है| सारी रात ये लड़का जागता रहा .... मैंने मना भी किया तब भी नहीं माना|और एक चन्दर है... जिसे जरा भी फ़िक्र नहीं अपनी बीवी की.... "
सभी को इस बात का अफ़सोस था की चन्दर भैया और भाभी के रिश्ते में दरार आ चुकी है|
देखा जाए तो मैं उस तारीफ को पाने का हकदार नहीं था, मेरे ही कारन भाभी की जान पे बन आई थी|
दोपहर के भोजन के बाद मैंने भाभी को दवाई दी और मैं नेहा के साथ दूसरी चारपाई पे लेट गया| नेहा लेटे-लेटे मेरे साथ मस्ती कर रही थी.. कभी मेरे बाल खींचती तो कभी मेरी नाक.... भाभी गुम-सुम थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने उनसे उनकी नाराजगी का कारन पूछा?
मैं: क्या हुआ? आप चुप-चाप क्यों हो?
भाभी: कुछ नहीं... बस ऐसे ही...
बातों से लग रहा था की भाभी कुछ छुपा रहीं हैं... या इस डर से कुछ नहीं बोल रहीं की कहीं नेहा ना सुन ले| मैं यूँ ही नेहा के साथ खेलता रहा.. कभी उसे गुड-गुड़ी करता तो कभी उसके सर पे हाथ फेरता ताकि वो जल्दी से सो जाये| करीब आधा घंटा लगा उसे सुलाने में.. आखिर अब मेरी बेचैनी मुझ पे हावी होने लगी थी|
मैं: नेहा सो गई है| अब बताओ की क्या बात है? क्यों उदास हो?
भाभी: तुम अब मेरी बात नहीं मानते... बड़े हो गए हो... जिम्मेदारियां उठाने लगे हो... क्यों सुनोगे मेरी?
मैं: ऐसा नहीं है... आपको पता है डॉक्टर से मेरी क्या बात है?
भाभी: क्या?
मैं: जब मैं आपको अपनी गोद में लिए डॉक्टर के पास पहुँचा और आपकी तबियत के बारे में उसे बताया तो उसे लगा की मैं आपका पति हूँ...
भाभी: तो उसमें गलत क्या है?
मैं: गलत तो कुछ नहीं है.. पर आप ही मुझे अपनी देख-भाल करने से रोक रहे हो| वैसे अगर उसने यही बात हिंदी में पिताजी से कही होती तो? ये तो शुक्र था की मैंने ही उससे अंग्रेजी में बात की वार्ना वो ये बात सच में कह देता|
भाभी: मैं तुम रोक नहीं रही पर में ये बर्दाश्त नहीं कर सकती की मेरी वजह से तुम बीमार पड़ जाओ|
मैं: जब आप ये बर्दाश्त नहीं कर सकते की मैं आपकी वजह से बीमार पड़ जाऊं...तो सोचो मेरे दिल पे क्या बीती होगी जब मैंने आपको बीमार देखा था| मेरे दिल की धड़कन रूक गई थी...
भाभी की आँखें भर आईं थी... मैं उन्हें और दुःख नहीं देना चाहता था| मैं उनके पास उन्हीं की चारपाई पर बैठा और झुक के उनके होंठों को चूम लिया और उनको गले लगा लिया| भाभी का मन भर आया था पर मेरे आलिंगन ने उन्हें रोने नहीं दिया|
भाभी: पहले तुम दुःख देते हो और फिर मरहम भी खुद ही लगाते हो| अच्छा ये बताओ की तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में बात क्यों कर रहे थे?
मैं: वो मुझे डर था...
भाभी: कैसा डर?
मैं: मुझे डर था की कहीं पिछले कुछ दिनों में जो हुआ उससे आप प्रेग्नेंट तो नहीं हो गए?
भाभी: अगर हो भी जाती तो क्या होता?
मैं: आप मजाक कर रही हो ना?
भाभी: नहीं तो ... ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे भैया मुझे मारते-पीटते ... घर से निकाल देते बस!
मैं: आपको ये इतना आसान लगता है, और मुझ पे क्या गुजरती ये सोचा आपने? और नेहा और हमारे बच्चे का क्या होता? ये सोचा आपने?
भाभी: मुझे तो लगा था की तुम मुझे अपने साथ रखोगे?
मैं: माँ और पिताजी से क्या कहता? और क्या वो आपको मेरे साथ रहने देते?
भाभी: तो तुम मुझे भगा के ले चलो?
मैं: हुंह... आपको ये सब मजाक लग रहा है| मैं आपको भगा के कहाँ ले जाता? क्या खिलाता? नेहा की परवरिश कैसे होती? मैंने तो अभी पढ़ रहा हूँ... जनौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता|
भाभी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने "पाप" किया है? जो कुछ भी हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था... तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते!!!
भाभी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी... इसलिए मैंने उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं दिया और उठ के चल दिया| भाभी मुझे गलत समझ रही थी... मैं उनसे प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था, उनके लिए कहना आसान था पर मेरे लिए सुनना आसान नहीं था| मैं भाभी को समझाना चाहता था की वो मुझे गलत समझ रहीं हैं| परन्तु इस समय मैं उनका सामना नहीं कर सकता था...
शाम आने को आई थी... और भाभी की दवाई का समय भी हो आया था| मैं भाभी को दवाई देने के लिए पहुँचा तो भाभी कमरे में एक किनारे जमीन पे बैठी थी... और अपने मुंह को अपने घुटनों में छुपाये रो रहीं थी| मुझसे देखा नहीं गया और मैं उनके पास घुटनों के बल बैठ गया.. उनका मुंह उठाया तो देखा रो-रो के उन्होंने अपना बुरा हाल कर लिया था|
मैं: आप क्यों रो रहे हो? प्लीज चुप हो जाओ ... मेरे लिए नहीं तो नेहा के लिए ही चुप हो जाओ| अच्छा ये बताओ की हुआ क्या? किसी ने आपसे कुछ कहा? या आप दोपहर की बात की वजह से परेशान हो?
भाभी मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थी ... नेहा की दुहाई दी तो भाभी ने रोना तो बंद कर दिया पर मुझसे बात नहीं कर रहीं थीं| मैंने उन्हें उठ के चारपाई पे बैठने को कहा तो तब भी नहीं उठीं.. मैंने दवाई खाने को कहा तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ... साफ़ था की वो मुझसे नाराज हैं और शायद अब कभी भी बात ना करें| मैं बहार गया और नेहा को आवाज दी.. वो दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई| मैं उसे अपने साथ अंदर ले आया और उसके हाथ में दवाई दी और कहा की आप ये दवाई मम्मी को खिला दो| इस बार भाभी ने नेहा के हाथ से दवाई ली और चुप-चाप खा ली| फिर नेहा का सहारा ले के उठीं और चारपाई पर मुंह मोड़के लेट गईं| मैंने नेहा से कहा की बेटा आप यहीं मम्मी के पास रहना ... कहीं जाना मत मैं अभी आता हूँ| ये किस्सा तीन दिन तक चला.. भाभी ना तो मुझसे बात करती... ना मेरे हाथ से दवाई लेती| बस नेहा का ही सहारा था जो वो दवाइयाँ ले रहीं थी| चन्दर भैया की तो कोई दिलचस्पी थी ही नहीं.. उनकी बला से कोई जिए या मरे! मेरे साथ भी कोई बोल-चाल नहीं थी!!! ऐसा लगता था की गुस्से का गुबार उनके अंदर बढ़ता जा रहा है.. और अब वो जल्द ही फूटने को था|
इन तीन दिनों में मैं अंदर टूट चूका था.... कई बार मैंने भाभी से बात करने की कोशिश की, परन्तु भाभी या तो उठ के चली जाती या या मुंह मोड़ के लेट जाती|आज सुबह माँ और पिताजी को किसी रिश्तेदार से मिलने जाना था...उन्होंने मुझे साथ ले जाने का पर्यटन किया परन्तु मैंने यह कह के मना कर दिया की मुझे सोना है| उनके निकलने से पहले रसिका भाभी भी अपने मायके जाने वाली थीं... और जाएं भी क्यों ना ...तकरीबन एक हफ्ते से वाही तो चुलह-चूका संभाले हुए थी| यूँ तो वो कभी कोई काम करती नहीं थी... भौजी की बीमारी की मजबूरी में काम कर रहीं थी| अब जब भौजी की तबियत ठीक होने लगी थी तो वो कैसे न कैसे करके खिसकने की तैयारी में थी| कामचोर!!!
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दरअसल मुझे भय था की पिछले दिनों जो हमारे बीच में हुआ उससे कहीं भाभी गर्भवती तो नहीं हो गईं? मैं ये बात डॉक्टर से सीधे-सीधे तो नहीं पूछ सकता था, परन्तु मुझे भय इस बात का भी था की कहीं डॉक्टर पिताजी के सामने भाभी के गर्भवती होने की बात कर देता तो घर में कोहराम छिड़ जाता!!!
आगे जो मेरे और डॉक्टर के बीच अंग्रेजी में बातचीत हुई उसे मैं हिंदी में भी लिखता रहूँगा|
डॉक्टर: क्या हुआ इन्हें?
मैं: Actually Doctor for the pas two days she hasn’t eaten anything, moreover she had high fever yesterday. I was away with my parents on a trip to Varanasi, when I came ack yesterday afternoon I saw her like this… first we had lunch together and then I gave her Crocin tablet and after that her fever was somewhat in control. Atleast that’s what I thought!!! In the night we had dinner together and then again I gave her Crocin. At mid night around 1:30AM hse had a very high fever… since it was about 5 hours since the last dose, so I gave her another dose. After that somehow her fever is a bit mild.
(दरअसल डॉक्टर साहब इन्होने पिछले दो दिनों से अन्न का दाना तक नहीं खाया है और कल इन्हें बहुत तेज बुखार भी था| मैं अपने माता-पिता के साथ वाराणसी गया हुआ था, कल जब मैं लौटा तो इन्हें इस हालत में पाया| पहले मैंने इन्हें खाना खिलाया.. फिर क्रोसिन की गोली दी| उसके बाद इनका बुखार कुछ काबू में आया... काम से काम कुझे तो ऐसा लगा!!! रात में मैंने इन्हें खाना खाने के बाद एक गोली और दी| आधी रात को इनका शरीर फिर से तपने लगा और मुझे याद आया की क्रोसिन दिए हुए पांच घंटे बीत चुके हैं और एक डोज़ और बाकी है| उसे देने के बाद इनका बुखार कुछ कम हुआ| )
डॉक्टर: okay, did she eat anything in the morning?
(अच्छा.. क्या इन्होने सुबह से कुछ खाया है?)
डॉक्टर ने अपना अला लगाया, फिर उसने भाभी के शरीर का तापमान चेक करने के लिए थर्मामीटर लगाया|
मैं: I’m afraid no sir!!!
(जी नहीं डॉक्टर साहब|)
डॉक्टर: Okay from what you’ve told me I take it she’s feeling very weak… and because of your necessary precaution her fever is in control. It’s a good thing you brought her here otherwise the case sould have gone worse. I need to inject some fluids into her body so she could feel a bit normal also since you seem to be her husband, its your duty to take care of her.
(जैसे तुमने बताया उससे ये बात तो पक्की है की इनका शरीर कमजोर हो गया है| तुम्हारी समझदारी के कारन इनका बुखार अब काबू में है| अच्छा हुआ तुम इन्हें यहाँ ले आये वार्ना हालत और भी गंभीर हो सकती थी| मुझे इन्हें ग्लूकोस चढ़ाना होगा ताकि इनके शरीर को थोड़ी ताकत मिले| और चूँकि टीम इनके पति हो तुम्हें नका ख़याल ज्यादा रखना होगा|)
मैं: Actually sir, I’m not her husband… she’s my cousin’s wife.
(दरअसल डॉक्टर साहब मैं इनका पति नहीं हूँ| एमेरे चचेरे भाई की पत्नी हैं|)
डॉक्टर: Oh I see, so she’s your Bhabhi? Then where’s her husband? Isn’t he concerned about her wife’s health?
(ओह्ह .. तो ये आपकी भाभी हैं| तो इनके पति कहाँ हैं? और उन्हें इनकी ज़रा भी फ़िक्र नहीं|)
मैं: Sir he doesn’nt know anything about her health. He’s working in Delhi and I’ve sent a telegram to him.
(डॉक्टर साहब उन्हिएँ तो भाभी की तबियत के बारे में कुछ पता ही नहीं है.. दरअसल वो डेल्ही में काम करते हैं और मैंने उन्हें टेलीग्राम कर दिया है|)
डॉक्टर: Oh I see!! You seem to take good care of your bhabhi. Good!!!
(अच्छा!!! तुम अपनी भाभी का बहुत अच्छे से ख़याल रख रहे हो| शाबाश !!!)
भाभी हमारी अंग्रेजी में हो रही गुफ्तगू बड़े गोर से सुन रही थी... हालाँकि उन्हें समझ कुछ नहीं आया था| पर जब डॉक्टर ने सुई निकाली तो भाभी की सिटी-पिट्टी गुल हो गई| वो गर्दन हिला के ना-ना करने लगीं|
डॉक्टर ने मुझे इशारे से उन्हें समझाने को कहा:
मैं: भौजी ... ये आपको ग्लूकोस चढ़ा रहे हैं इसे आपके शरीर में ताकत आएगी और आप जल्दी अच्छे हो जाओगे|
पिताजी ने भ मेरी बात सुन ली थी और वो कमरे के बहार से ही भाभी को सांत्वना देने लगे||
पिताजी: कोई बात नहीं बहु .. ज्यादा दर्द नहीं होगा| अपने देवर की बात ही मान लो|
जैसे तैसे भाभी मानी... डॉक्टर जब उन्हें सुई लगा रहा था तो भाभी मुंह बना रहीं थीं जिसे देख के मुझे बड़ा मजा रा रहा था| जब डॉक्टर ने भाभी की नस में सुई लगा दी तो मुझे अपने साथ बहार आने को बोला| भाभी मुझे अपने हाथ के इशारे से अपने पास बुला रही थी| मैंने उन्हें कहा की मैं बस दो मिनट में आया| डॉक्टर मैं और पिताजी बहार के कमरे में बैठे थे.. डॉक्टर ने भाभी का हाल चाल सुनाया और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी| पिताजी और डॉक्टर के बीच में सहज रूप से बात-चीत चल रही थी और मेरा डर कम हो गया था की जो मैं सोच रहा था वो नहीं हुआ| डॉक्टर अब मेरी तारीफों के पल बाँध रहा था की कैसे उसे आज एक अरसे बाद अंग्रेजी बोलने वाला इंसान मिला| मैं भाभी के पास अंदर आ गया और घुटनों के बल बैठ के उनके कान में फुस-फसाया:
मैं: भौजी.. अब आप जल्द ही ठीक हो जाओगे|
भाभी: मानु तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में क्या बात कर रहे थे?
मैं: अभी नहीं भौजी... घर चलो सब बताऊँगा|
टिप-टिप करते हुए ग्लूकोस की बोतल हुए खाली होने लगी और सारा ग्लूकोस भाभी के खून में मिलने लगा| इधर पिताजी और डॉक्टर की बातों की आवाज अंदर तक आ रही थी और भाभी मेरी बढ़ाई सुन के खुश हो रही थी| जब बोतल लगभग खाली हो गई तब मैंने डॉक्टर को अंदर बुलाया... उसने भाभी के हाथ से लुइ निकाली और वापस पट्टी का दी| अब उसने मुझे दो-तीन तरह की दवाइयाँ भाभी को नियमित रूप से खिलने के लिए बोला| मैंने बड़े ध्यान से सभी दवाइयों को समय के अनुसार याद कर लिया| मैंने भाभी को फिर से गोद में उठाया और बैलगाड़ी में बैठा दिया| पिताजी आगे बैठे थे और मैं मैं भाभी की बगल में| ग्लूकोस चढ़ने से भाभी की हालत में सुधार आया था| एक बार फिर हम हिचकोले कहते हुए घर पहुँच गए .. मैंने भाभी को एक बार फिर गोद में उठाया और उनके कमरे में ला के लेटा दिया|
मैं जब जाने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे रोका:
भाभी: मानु ..तुम कल सारी रात मेरी वजह से परेशान रहे हो... तुमने सारी रात जाग के मेरी देखभाल की ... तुम बहुत थके हुए लग रहे हो, अब थोड़ा आराम भी कर लो| तुम जा के सो जाओ.. मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रही हूँ|
मैं: नहीं... ये सब मेरी गलती है| ना मैं आपसे अपने वापस आने की बात छुपाता और ना ही आपका ये हाल होता| इसलिए अब जब तक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते मैं आपकी देखभाल में लगा रहूँगा फिर चाहे मेरी ही तबियत क्यों न खराब हो जाए|
इतना कह के मैं वहां से चला गया.... बहार आके देखा तो घर के सभी लोग छप्पर के नीचे बैठे भाभी की सेहत के बारे में बात कर रहे थे| बड़की अम्मा ने तो मुझे गले लगा के दुलार भी किया, और कहने लगी:
"मुन्ना तुम्न्हें सच में अपनी भौजी की हमसब से ज्यादा फ़िक्र है| सारी रात ये लड़का जागता रहा .... मैंने मना भी किया तब भी नहीं माना|और एक चन्दर है... जिसे जरा भी फ़िक्र नहीं अपनी बीवी की.... "
सभी को इस बात का अफ़सोस था की चन्दर भैया और भाभी के रिश्ते में दरार आ चुकी है|
देखा जाए तो मैं उस तारीफ को पाने का हकदार नहीं था, मेरे ही कारन भाभी की जान पे बन आई थी|
दोपहर के भोजन के बाद मैंने भाभी को दवाई दी और मैं नेहा के साथ दूसरी चारपाई पे लेट गया| नेहा लेटे-लेटे मेरे साथ मस्ती कर रही थी.. कभी मेरे बाल खींचती तो कभी मेरी नाक.... भाभी गुम-सुम थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने उनसे उनकी नाराजगी का कारन पूछा?
मैं: क्या हुआ? आप चुप-चाप क्यों हो?
भाभी: कुछ नहीं... बस ऐसे ही...
बातों से लग रहा था की भाभी कुछ छुपा रहीं हैं... या इस डर से कुछ नहीं बोल रहीं की कहीं नेहा ना सुन ले| मैं यूँ ही नेहा के साथ खेलता रहा.. कभी उसे गुड-गुड़ी करता तो कभी उसके सर पे हाथ फेरता ताकि वो जल्दी से सो जाये| करीब आधा घंटा लगा उसे सुलाने में.. आखिर अब मेरी बेचैनी मुझ पे हावी होने लगी थी|
मैं: नेहा सो गई है| अब बताओ की क्या बात है? क्यों उदास हो?
भाभी: तुम अब मेरी बात नहीं मानते... बड़े हो गए हो... जिम्मेदारियां उठाने लगे हो... क्यों सुनोगे मेरी?
मैं: ऐसा नहीं है... आपको पता है डॉक्टर से मेरी क्या बात है?
भाभी: क्या?
मैं: जब मैं आपको अपनी गोद में लिए डॉक्टर के पास पहुँचा और आपकी तबियत के बारे में उसे बताया तो उसे लगा की मैं आपका पति हूँ...
भाभी: तो उसमें गलत क्या है?
मैं: गलत तो कुछ नहीं है.. पर आप ही मुझे अपनी देख-भाल करने से रोक रहे हो| वैसे अगर उसने यही बात हिंदी में पिताजी से कही होती तो? ये तो शुक्र था की मैंने ही उससे अंग्रेजी में बात की वार्ना वो ये बात सच में कह देता|
भाभी: मैं तुम रोक नहीं रही पर में ये बर्दाश्त नहीं कर सकती की मेरी वजह से तुम बीमार पड़ जाओ|
मैं: जब आप ये बर्दाश्त नहीं कर सकते की मैं आपकी वजह से बीमार पड़ जाऊं...तो सोचो मेरे दिल पे क्या बीती होगी जब मैंने आपको बीमार देखा था| मेरे दिल की धड़कन रूक गई थी...
भाभी की आँखें भर आईं थी... मैं उन्हें और दुःख नहीं देना चाहता था| मैं उनके पास उन्हीं की चारपाई पर बैठा और झुक के उनके होंठों को चूम लिया और उनको गले लगा लिया| भाभी का मन भर आया था पर मेरे आलिंगन ने उन्हें रोने नहीं दिया|
भाभी: पहले तुम दुःख देते हो और फिर मरहम भी खुद ही लगाते हो| अच्छा ये बताओ की तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में बात क्यों कर रहे थे?
मैं: वो मुझे डर था...
भाभी: कैसा डर?
मैं: मुझे डर था की कहीं पिछले कुछ दिनों में जो हुआ उससे आप प्रेग्नेंट तो नहीं हो गए?
भाभी: अगर हो भी जाती तो क्या होता?
मैं: आप मजाक कर रही हो ना?
भाभी: नहीं तो ... ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे भैया मुझे मारते-पीटते ... घर से निकाल देते बस!
मैं: आपको ये इतना आसान लगता है, और मुझ पे क्या गुजरती ये सोचा आपने? और नेहा और हमारे बच्चे का क्या होता? ये सोचा आपने?
भाभी: मुझे तो लगा था की तुम मुझे अपने साथ रखोगे?
मैं: माँ और पिताजी से क्या कहता? और क्या वो आपको मेरे साथ रहने देते?
भाभी: तो तुम मुझे भगा के ले चलो?
मैं: हुंह... आपको ये सब मजाक लग रहा है| मैं आपको भगा के कहाँ ले जाता? क्या खिलाता? नेहा की परवरिश कैसे होती? मैंने तो अभी पढ़ रहा हूँ... जनौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता|
भाभी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने "पाप" किया है? जो कुछ भी हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था... तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते!!!
भाभी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी... इसलिए मैंने उनकी किसी भी बात का जवाब नहीं दिया और उठ के चल दिया| भाभी मुझे गलत समझ रही थी... मैं उनसे प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था, उनके लिए कहना आसान था पर मेरे लिए सुनना आसान नहीं था| मैं भाभी को समझाना चाहता था की वो मुझे गलत समझ रहीं हैं| परन्तु इस समय मैं उनका सामना नहीं कर सकता था...
शाम आने को आई थी... और भाभी की दवाई का समय भी हो आया था| मैं भाभी को दवाई देने के लिए पहुँचा तो भाभी कमरे में एक किनारे जमीन पे बैठी थी... और अपने मुंह को अपने घुटनों में छुपाये रो रहीं थी| मुझसे देखा नहीं गया और मैं उनके पास घुटनों के बल बैठ गया.. उनका मुंह उठाया तो देखा रो-रो के उन्होंने अपना बुरा हाल कर लिया था|
मैं: आप क्यों रो रहे हो? प्लीज चुप हो जाओ ... मेरे लिए नहीं तो नेहा के लिए ही चुप हो जाओ| अच्छा ये बताओ की हुआ क्या? किसी ने आपसे कुछ कहा? या आप दोपहर की बात की वजह से परेशान हो?
भाभी मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थी ... नेहा की दुहाई दी तो भाभी ने रोना तो बंद कर दिया पर मुझसे बात नहीं कर रहीं थीं| मैंने उन्हें उठ के चारपाई पे बैठने को कहा तो तब भी नहीं उठीं.. मैंने दवाई खाने को कहा तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ... साफ़ था की वो मुझसे नाराज हैं और शायद अब कभी भी बात ना करें| मैं बहार गया और नेहा को आवाज दी.. वो दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई| मैं उसे अपने साथ अंदर ले आया और उसके हाथ में दवाई दी और कहा की आप ये दवाई मम्मी को खिला दो| इस बार भाभी ने नेहा के हाथ से दवाई ली और चुप-चाप खा ली| फिर नेहा का सहारा ले के उठीं और चारपाई पर मुंह मोड़के लेट गईं| मैंने नेहा से कहा की बेटा आप यहीं मम्मी के पास रहना ... कहीं जाना मत मैं अभी आता हूँ| ये किस्सा तीन दिन तक चला.. भाभी ना तो मुझसे बात करती... ना मेरे हाथ से दवाई लेती| बस नेहा का ही सहारा था जो वो दवाइयाँ ले रहीं थी| चन्दर भैया की तो कोई दिलचस्पी थी ही नहीं.. उनकी बला से कोई जिए या मरे! मेरे साथ भी कोई बोल-चाल नहीं थी!!! ऐसा लगता था की गुस्से का गुबार उनके अंदर बढ़ता जा रहा है.. और अब वो जल्द ही फूटने को था|
इन तीन दिनों में मैं अंदर टूट चूका था.... कई बार मैंने भाभी से बात करने की कोशिश की, परन्तु भाभी या तो उठ के चली जाती या या मुंह मोड़ के लेट जाती|आज सुबह माँ और पिताजी को किसी रिश्तेदार से मिलने जाना था...उन्होंने मुझे साथ ले जाने का पर्यटन किया परन्तु मैंने यह कह के मना कर दिया की मुझे सोना है| उनके निकलने से पहले रसिका भाभी भी अपने मायके जाने वाली थीं... और जाएं भी क्यों ना ...तकरीबन एक हफ्ते से वाही तो चुलह-चूका संभाले हुए थी| यूँ तो वो कभी कोई काम करती नहीं थी... भौजी की बीमारी की मजबूरी में काम कर रहीं थी| अब जब भौजी की तबियत ठीक होने लगी थी तो वो कैसे न कैसे करके खिसकने की तैयारी में थी| कामचोर!!!
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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