Sunday, August 24, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--21

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--21
अब आगे....


सुबह ग्यारह बजे तक सब चले गए... माँ पिताजी बैलगाड़ी से निकले और अजय भैया रसिका भाभी को छोड़ने निकल गए| अजय भैया को शाम तक आना था... बड़के दादा और बड़की अम्मा (बड़े चाचा और चाची) भी खेत निकल गए थे... और चन्दर भैया को खेत आने को कह गए| मैं तो घर पे था ही भौजी का ख्याल रखने के लिए, पर कोई नहीं जानता था की मेरे और भाभी के बीच में बोल-चाल बंद है| मैं बड़े घर में लेटा परेशान था.. अंदर ही अंदर मुझे भौजी की बातें खाए जा रही थी|मैंने दृढ़ निस्चय किया की मैं भौजी से आज अपने दिल की बात कर के ही रहूँगा... उनकी गलतफ़ैमी दूर करके ही रहूँगा| मुझे उन्हें समझाना था की मेरा प्यार झूठा नहीं था... हालाँकि शुरू-शुरू में मेरा उनकी तरफ आकर्षण का कारन सिर्फ उनका शरीर ही था परन्तु बाद में वो आकर्षण प्यार में बदल चूका था|

मैं उठा और उनके घर की और चल पड़ा... मुझे घर से शोर सुनाई दिया.. जैसे की कोई डाँट रहा हो| मैं उत्सुकता वश उनके उघार की तरफ दौड़ा... अंदर जा के देखा तो चन्दर भैया के हाथ में चंदे की बेल्ट थी... और वो भौजी को अपशब्द कह रहे थे|

(आप सब से क्षमा चाहता हूँ मित्रों, मैं वो शब्द यहाँ नहीं लिखना चाहता... ऐसी अपमान जनित भाषा स्त्रियों के लिए प्रयोग करना वाकई निंदनीय है|)

चन्दर भैया घर के आँगन में खड़े थे और भाभी स्नानघर के पास नीचे बैठीं थी... नेहा उनकी गोद में थी और रो रही थी.. भाभी और नेहा नीचे दिखाए चित्र की तरह बैठे थे|



जैसे ही चन्दर भैया ने मारने के लिए बेल्ट उठाई मैंने भागते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की... जब मैं उनका हाथ पकड़ रहा था तब उनके मुख से देसी दारु की तेज दुर्गन्ध आ रही थी| साफ़ जाहिर था की वे नशे में धुत्त थे... उनके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था... मदिरा उनके दिमाग पे कब्ज़ा कर चुकी थी और वो अपना गुस्सा आज भौजी पर निकालना चाहते थे| उनके बलिष्ठ शरीर के आगे मेरी एक ना चली.. उन्होंने मुझे धक्का देते हुए कहा:

"हट जा साले...वरना अगला नंबर तेरा है|"

मैं फिर भी नहीं माना और भाभी और उनके बीच खड़ा हो गया (मेरी पीठ भैया की तरफ थी और मुख भाभी की तरफ|).... शराब का नशा अब जोर मरने लगा था और उन्होंने बिना सोचे समझे अपनी बेल्ट से मेरी पीठ पे वार किया| उनके पहले वार से ही मेरी मुंह से जोर दार चीख निकली...

"आह!!! अह्ह्हह्ह!!!! उम्म्म!!!"
चन्दर भैया: अच्छा हुआ जो तू भी यहीं आगया... वरना मैं इससे निपट के तेरे पास ही आता| बड़ा शौक है तुझे इससे बचाने का न ये ले... और ले... बहुत बहूजी-भौजी कर के इसके आगे-पीछे घूमता है.. और ले ...

भैया बिना रुके अपनी बेल्ट से वार करते रहे... और मैं कराहता रहा| भाभी ने मुझे हटने की विनती की, पर मैंने केवल ना में सर हिलाया... वो मुझे हटाने के लिए उठीं पर मैंने उन्हें धक्का दे के दूर कर दिया... मेरी आँखों से पानी लगातार बह रहा था और कराहना भी चालु था !!! भाभी नीचे पड़ी सब देख रहीं थी और रो रही थी... उन्हें पता था की चाहे कुछ भी हो मैं हटने वाला नहीं... नेहा भागती hui भाभी की गोद में अपना मुंह छुपा के बैठी थी और रो रही थी| सच कहूँ तो मेरा खून खोल रहा था.. मन कर रहा था की चाक़ू से गोद-गोद कर चन्दर भैया का खून कर दूँ.. उन्होंने मेरी फूल जैसी बच्ची को रुलाया और मेरी भौजी.. जिन्हें मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ उन्हें दुःख पहुँचाया| परन्तु मेरा ऐसा कदम उठाने का मतलब होता जेल!!!

भाभी: मानु को छोड़ दो.. इसने आपका क्या बिगाड़ा है... मारना है तो मुझे मारो!!!

मैं: नहीं..... आह!!!

चन्दर भैया: तेरा भी नंबर आएगा... पहले इससे तो निपट लूँ|

अब तक भैया बीस बार बेल्ट से वार कर चुके थे .. भौजी सहमी सी बैठी थीं और फुट-फुट के रो रहीं थी .. और नेहा का तो रो-रो के बुरा हाल था| अचानक ही अजय भैया आगये... जब उन्होंने मेरे करहाने की और चन्दर भैया के मुंह से अपशब्द सुने तो वो भागे-भागे अंदर आये और चन्दर भैया के हाथ से बेल्ट छीनने की कोशिश की.. जब वो भी नाकामयाब हुए तो वो उन्हें धकेलते हुए बहार ले गए|


 मैं लड़खड़ाया और जमीन पे घुटनों के बल आ गिरा, भौजी मेरे पास भागती हुई आईं.. और अपने पल्लू से मेरे मुख पे आये पसीने को पोछा| जब उन्होंने ने मेरी पीठ की और देखा तो उनकी सांसें रूक गईं... मेरी पीठ पूरी लहू-लुहान हो गई थी.. टी शर्ट कई जगह से फ़ट गईं थी.. और मेरी हालत भी ख़राब होने लगी थी| मुझे ऐसा लग रह था की मेरी पीठ सुन्न हो गई है... बस जहाँ-जहाँ जख्म हुए थे वहाँ तड़पाने वाली जलन हो रही थी| मैंने आज तक इतना दर्द नहीं सहा था!!! भाभी ने मुझे सहारा दे के उठाया और चारपाई बिछा के लेटाया.. मैं तो सीधा लेट भी नहीं सकता था इसलिए मैं पेट के बल लेटा| भाभी अब भी रो रही थी और नेहा मेरे मुख के आगे खड़ी सुबक रही थी| मैंने लेटे-लेटे उसके आंसूं पोछे... तभी भाभी रुई ले के मेरे पास आई| मैं थोड़ा हैरान था क्योंकि मुझे नहीं पता था की मेरी पीठ इतनी लहू-लोहान हैं| भाभी ने एक-एक कर रुई के टुकड़ों से मेरी पीठ पे लगे खून को साफ़ करने लगी और नीचे खून लगी रुई का ढेर लगने लगा| अब सच में मुझे ये ढेर देख के डर लगने लगा था... पता नहीं मेरे शरीर में खून बचा भी है की नहीं?

मैं: भौजी... प्लीज चुप हो जाओ! आह...मैं आपको रोते हुए नहीं देख सकता....अंह !!!

भौजी: तुम बीच में क्यों आये ? देखो तुमने अपनी क्या हालत बना ली?

मैं: तो मैं खड़ा हुआ भैया को आपको पीटते हुए देखता रहता? अंम्म्म !!! वैसे भी पिछले दो दिन से मैंने जो आपको दुःख दिया है.. आह्ह!!! उसकी कुछ तो सजा मिलनी ही थी| स्स्स्स !!!

भौजी: तुमने मुझे कोई दुःख नहीं दिया| मैंने ही तुम्हारी बातों को गलत समझा ... तुम सही कह रहे थे| अपनी अलग दुनिया बसाना इतना आसान नहीं होता| मुझे माफ़ कर दो मानु... !!!

मैं: चलो देर आये-दुरुस्त आये पर मुझे भी आपसे कुछ कहना है, ये बात मैंने आपसे पहले भी कही थी....अह्ह्ह्ह!!!

इससे पहले मैं कुछ कह पाता, अजय भैया आ गए|

अजय भैया: भाभी बड़े भैया को क्या हुआ था? वो मानु भैया को क्यों मार रहे थे?

भौजी: वो मुझे मारना चाहते थे.... मानु बीच में आगया| बहुत पी रखी थी उन्होंने .... मुझसे आ के झगड़ा करने लगे और...

मैं: भैया आपको और भौजी को मुझसे एक वादा करना होगा...

अजय भैया: क्या बोलो?

मैं: ये बात हम तीनों के आलावा और किसी को पता नहीं होनी चाहिए... ख़ास तोर पे माँ और पिताजी को, वरना आफत आ जयगी!! अह्ह्ह !!! अन्न्ह्ह !!!

अजय भैया: आप ये क्या कह रहे हो?

मैं: भैया अगर पिताजी को मेरी पीठ पे बने ये निशान दिख गए तो पिताजी घर सर पे उठा लेंगे... उम्!!! घर में लड़ाई झगड़ा हो जायेगा इस बात पे|

भौजी: मानु तुम इन घावों को कब तक छुपाओगे... वैसे भी गलती तुम्हारे भैया की है... तुम तो बस...

मैंने फिर से भौजी की बात काटी, क्योंकि मैं नहीं हःता था की अजय भैया को हमारे रिश्ते पे कोई शक हो|

मैं: नहीं भौजी...अंह्!!!

अजय भैया: नहीं मानु भैया, मैं आपकी ये बात नहीं मानूँगा| पहले तो आप मेरे साथ डॉक्टर के चलो, और फिर शाम को मैं माँ-और पिताजी को ये बात बताता हूँ| वे ही बताएँगे की क्या करना उचित है| और हाँ चन्दर भैया साइकिल ले के निकल गए हैं...

मैं: कहाँ???

अजय भैया: मामा के घर... जब भी वो घर में लड़ाई-झगड़ा करते हैं तो वहीँ जाते हैं| जब उनका नशा उतरता है तब अगले दिन वापस आजाते हैं|

मैं: ठीक है... भैया आप प्लीज मुझे एक पैन (PAIN) किलर ला दो|

अजय भैया: अभी लाया|

अजय भैया PAIN किलर लेने गए और भाभी अंदर से मलहम ले आईं.... जो पीठ थोड़ी देर पहले सुन्न थी अब जैसे उसमें वापस खून दौड़ने लगा और मेरा दर्द दुगना हो गया| जब भाभी ने मेरी पीठ पे मलहम लगाया तो मैं तड़प उठा...

"आअह!!!"
अब तो उनके छूने से भी दर्द हो रहा था| तभी अजय भैया PAIN किलर लाये, मैंने झट से गोली ली और वापस उल्टा लेट गया| उसके बाद मुझे होश नहीं था की क्या हुआ.... जब मेरी आँख खुली तो भौजी मेरे सिरहाने बैठी पंखा कर रही थी|


 ठंडी हवा जब मेरी पीठ को छूती तो दर्द कुछ काम होता| PAIN किलर का असर खत्म हो चूका था और रह-रह के दर्द हो रहा था|समय का ठीक से पता नहीं, पर रात हो चुकी थी ... जब मैं उठ के बैठा तो भौजी अपने आंसूं पोंछती हुई उठी और मुझे सहारा देने लगी...

"अब कैसा लगा रहा है? दर्द कुछ कम हुआ? "

मैं: नहीं... जब तक गोली का असर था तब तक तो कुछ पता नहीं था... वैसे ये कौन सी गोली दी थी भैया ने, जो मैं इतनी देर सोता रहा? ओह्ह्ह्ह !!! क्या समय हुआ है?

भौजी: नौ बजे हैं! मैंने तुम्हें दोपहर के भोजन के लिए उठाने की कोशिश की पर तुम उठे ही नहीं? चाचा-चाची का फ़ोन आया था... उन्होंने कहा की वे कल सुबह आएंगे|

मैं: आपने उन्हें इस सब के बारे में तो नहीं बताया? ओह्ह्ह !!

भौजी: नहीं.... मैंने अजय को मन कर दिया था.. नहीं तो वे चिंतित होते और आधी रात को ही यहाँ पहुँच जाते|

मैं: ठीक है.... अंह्ह्ह!!!

भौजी: पहले चलो हाथ मुंह धो लो और भोजन कर लो.... फिर मैं आयुर्वेदिक तेल से मालिश कर देती हूँ, शायद आराम मिले|
मैंने हाथ-मुँह धोया, और भोजन किया ... मेरे साथ ही भौजी ने भी भोजन किया| उन्होंने मेरे लिए सुबह से कुछ नहीं खाया था| उसके बाद भौजी ने वो आयुर्वेदिक तेल लगाया...

मैं: भौजी... अम्मा और बड़के दादा आअह!!! सो गए क्या?

भौजी: हाँ.. सब सो गए...सिर्फ तुम और मैं जगे हैं|

मैं: तो आप सब ने उनसे कुछ कहा?

भौजी: हाँ.. अजय ने उन्हें सारी बात बताई| माँ-पिताजी काफी शर्मिंदा थे..

मैं: मैं समझ सकता हूँ| उम्म्म!!! पर आपने कभी बताया नहीं की भैया इससे पहले भी आपको तंग कर चुके हैं? आपसे बदसलूकी कर चुके हैं.... अनन्नह !!!

भौजी: मैं जानती थी की तुम्हें जान के दुःख हो ग.. इसलिए नहीं बताया| उनके दिमाग में तो बस "एक" ही चीज चलती रहती है.. फर चाहे कोई जिए या मरे|

मैं: भौजी... अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूं? म्म्म्म!!!

भौजी: हाँ पूछो?

मैं: आपने बताया था की चन्दर भैया ने आपकी छोटी बहन के साथ....

मैंने जान-बुझ के बात पूरी नहीं की|

भौजी: हाँ... ये तबकी बात है जब मेरा रिश्ता तुम्हारे भैया के साथ तय हुआ था| तब वे हमारे घर दो दिन के लिए रुके थे.... उसी दौरान वो अनर्थ हुआ|

मैं: मुझे माफ़ करना भौजी मुझे आपसे वो सब नहीं पूछना चाहिए था|

भौजी: कोई बात नहीं मानु... तुम्हें ये बातें जानने का हक़ है| खेर छोडो इन बातों को... अब दर्द कुछ कम हुआ?

मैं: थोड़ा बहुत... पर अब भी पीठ जल रही है| ऐसा लग रहा है की जैसे किसी ने पीठ में अंगारे उड़ेल दिए| काश यहां बर्फ मिल जाती... अम्म्म्म !!!



 भौजी से दवाई लेके मैं जैसे-तैसे करवट लेके लेट गया| पर चैन कँहा था.... ऊपर से करवट बदलने के लिए भी मुझे काफी मशक्त करनी पड़ रही थी|रात को गर्मी ज्यादा थी इसलिए मैं, भौजी और नेहा तीनों आँगन में ही सो रहे थे| रात के करीब साढ़े बारह बजे होंगे ... नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी| बार-बार करवट बदलने से चारपाई चूर-चूर कर रही थी.. भौजी को एहसास हो गया था की पीठ में हो रही जलन मुझे सोने नहीं देगी| मैं दुबारा बायीं करवट लेके लेट गया... तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कभी कामना भी नहीं की थी|

भाभी मेरे बिस्तर पर आईं.. और मुझसे चिपक कर लेट गईं| मुझे कुछ ठंडा सा एहसास हुआ.. दरअसल भाभी ने ऊपर कुछ भी नहीं पहना हुआ था!!! उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में धंसे हुए थे... मेरी पीठ को ठंडी रहत तो मिली|

मैं: भौजी आप ये क्या कर रही हो?

भौजी: क्यों, तुम अगर मुझे गर्माहट देने के लिए मुझसे चिपक के सो सकते हो तो क्या मैं तुम्हें अपने नंगे बदन से ठंडक भी नहीं दे सकती?

मैं कुछ नहीं बोला बस उनका हाथ जो मेरी छाती पे था उसे कास के दबा दिया| अब मैं और भौजी दोनों इस तरह चिपके लेटे रहे... मेरे अंदर वासना भड़कने लगी थी| मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे... और भौजी भी ये महसूस कर रही थी| मैं सच में वो सब नहीं करना चाहता था... इसलिए मैं उठ के बैठ गया और भौजी की और पीठ कर के खड़ा हो गया| मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था.. खुद को रोक रहा था... अगर मेरे अंदर वासना की आग भड़की तो मैं फिर से..........................
भौजी को ये अटपटा सा लगा वो मेरे पीछे आके खड़ी हो गईं... और मुझे पीछे से जकड लिया| इस जकड़न ने मेरी आग में घी का काम किया|

भौजी: क्या हुआ मानु? तुम इस तरह यहाँ क्यों आ आगये?

मैं: बस अपने आपको रोकने की नाकाम कोशिश कर रहा था|

भौजी: रोकने की? पर क्यों? क्या तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता?

मैं: ऐसा नहीं है... मैं वो.....

भौजी: समझी... तुम मेरी बात को लेके अब भी नाराज हो?

मैंने कोई जवाब नहीं दिया.. परन्तु मैं जानता था की अगर मैंने कुछ नहीं किया तो भौजी का दिल टूट जायेगा और मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था| मैंने बिना कुछ कहे भौजी के चेहरे को थाम… और उनके होंठों से अपने होठों को मिला दिया|





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