FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--27
अब आगे....
बड़के दादा: बैठो मुन्ना
(मैं चुप-चाप बैठ गया, मेरे तेवर देख के कोई भी कह सकता था कि अगर उन्होंने मेरी शादी कि बात कि तो मैं बगावत कर दूँगा|)
पिताजी: देखो बेटा, बात थोड़ी सी गंभीर है| लड़की मानने को तैयार नहीं है... वो जिद्द पे अड़ी है कि वो शादी तुम से ही करेगी| इसलिए हमने उनसे थोड़ा समय माँगा है ...
मैं: समय किस लिए? आपको जवाब तो मालुम है|
(मेरे तेवर गर्म हो चुके थे .. तभी भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रख के मुझे शांत होने का इशारा किया|)
पिताजी: देखो बेटा हम कल शादी नहीं कर रहे... हमने केवल सोचने के लिए समय माँगा है|
मैं: पिताजी आप मेरा जवाब जानते हो, मैं उससे शादी कभी नहीं करूँगा!!! आप मेरे एक सवाल का जवाब दो, कल को शादी के बाद भी वो इसी तरह कि जिद्द करेगी तो मैं क्या करूँगा? हर बार उसकी जिद्द के आगे झुकता रहूँ? आप लोगों का क्या? मैं और आप तो काम धंधे में लगे रहेंगे और वो घर में माँ को तंग करेगी?
ऐसी जिद्दी लड़की तो मुझे आपसे भी अलग कर देगी और तब बात तलाक पे आएगी? क्या ये ठीक है? आप यही चाहते हो? मैं ये नहीं कह रहा कि लड़की मेरी पसंद कि हो, परन्तु वो काम से काम आप लोगों को तो खुश रख सके| माँ-बाप अपने बच्चों को इतने प्यार से पालते हैं और जब वही बचे बड़े हो के गलत फैसले लें या उनके माँ-बाप उनके लिए गलत फैसले लें तो सब कुछ तबाह हो जाता है|
मेरे दिमाग में जितने भी बहाने आये मैंने सब पिताजी के सामने रख दिए|अब मैं उनका जवाब सुनने को बेचैन था|
पिताजी: बेटा तू इतना जल्दी बड़ा हो गया? हमारे बारे में इतना सोचता है? हमें और क्या चाहिए?
बड़के दादा: भैया तुमने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं अपने लड़के को| मुझे तुम पे गर्व है!!! तुम चिंता मत करो मुन्ना, कल हम जाके ठाकुर साहब को समझा देंगे| अगर फिर भी नहीं माना तो पंचायत इक्कट्ठा कर लेंगे|बहु चलो खाना बनाओ अब सब कुछ ठीक हो गया है, चिंता कि कोई बात नहीं है|
मैं उठ के खड़ा हुआ तो बड़की अम्मा ने मेरा माथा चूमा और माँ ने भी थोड़ा दुलार किया| अगर किसी का मुँह देखने लायक था तो वो था अजय भैया और चन्दर भैया का| दोनों के दोनों हैरान थे और मुझे शाबाशी दे रहे थे|मैं मन ही मन सोच रहा था कि बेटा तू राजनीति में जा ..अच्छा भविष्य है तेरा| क्या स्पीच दी है.. सबके सब खुश होगये!!! मैं मन ही मन अपने आपको शाबाशी देने लगा| भोजन का समय था, सभी पुरुष सदस्य एक कतार में बैठे थे और मेरा नंबर आखरी था| भौजी एक-एक कर के सब को भोजन परोस रही थी| नेहा खाना खा चुकी थी और आँगन में खेल रही थी, सब लोग अब भी शाम को हुई घटना के बारे में बात कर रहे थे| भौजी अभी खामोश थीं... मैं भी चुप-चाप अपना भोजन कर रहा था| तभी नेहा भागते-भागते गिर गई और रोने लगी.. मैंने सोचा कि शायद चन्दर भैया उसे उठाने जायंगे पर उन्होंने तो बैठ-बैठे ही भौजी को हुक्म दे दिया; "जरा देखो, नेहा गिर गई है|" मुझे बड़ा गुस्सा आया उनपर, इसलिए मं खुद भागता हुआ गया और नेहा को गोद में उठाया|
चन्दर भैया: अरे मानु भइया, पहले भोजन तो कर लो; तुम्हारी भाभी देख लेगी उसे|
मैं: अभी आता हूँ| अव्व ले ले मेरे बेटा.. चोट लग गई आपको?
मैं नेहा को हैंडपंप के पास ले गया, अपने हाथ धोये फिर उसके हाथ-पाँव धोये| अपने रुमाल से उसके चोट वाली जगह को धीरे-धीरे पोंछा, इतने में भौजी भी वहाँ भागती हुई आ गईं;
भौजी: लाओ मानु मैं देखती हूँ मेरी लाड़ली को क्या होगया?
मैं: नहीं आप अभी इसे छू नहीं सकते... आपने बाकियों को भोजन परोसना है| मैं नेहा को दवाई लगा के अभी लाता हूँ|
मैं नेहा को पुचकारते हुए अपने साथ बड़े घर लेग्या और उसके चोट ओ डेटोल से साफ़ किया फिर दवाई लगाई| ज्यादा गंभीर चोट नहीं थी पर बच्चे तो आखिर बच्चे होते है ना| करीब पंद्रह मिनट बाद वापस आया तो देखा सब खाना खा के उठ चुके थे| मैंने नेहा को गोद से उतरा और अपनी चारपाई पे बैठा दिया|
:आप यहीं बैठो.. मैं खाना खा के आता हूँ, फिर आपको क नै कहानी सुनाउंगा|"
मैंने भौजी से पूछा कि मेरी थाली कहाँ है तो उन्होंने उसमें और भोजन परोस के दे दिया| मैं उनकी ओर हैरानी से देखने लगा; तभी वो बोलीं "सभी बर्तन जूठे हैं इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ ही खाऊँगी|"
मैंने एक रोटी खाई और उठने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ के बैठा दिया ओर कहा; "एक रोटी मेरी ओर से|" मैंने ना में सर हिलाया तो वो बनावटी गुस्से में बोलीं; "ठीक है तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|" अब मैंने जबरदस्ती एक और रोटी खा ली और हाथ-मुँह धो के नेहा के पास आ गया| नेहा मेरा इन्तेजार करते हुए अब भी जाग रही थी... नेहा को अपनी गोद में लिए मैं टहलने लगा और कहानी सुनाता रहा और उसकी पीठ सहलाता रहा ताकि वो सो जाए| इधर सभी अपने-अपने बिस्तर में घुस चुके थे... मैं जब टहलते हुए पिताजी के पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने को कहा; तभी भौजी वहाँ बड़के दादा के लिए लोटे में पानी ले के आ गईं ताकि अगर उन्हें रात में प्यास लगे तो पानी पी सकें|
पिताजी: क्या हुआ चक्कर क्यों काट रहा है?
मैं: अपनी लाड़ली को कहनी सुना रहा हूँ|
(मेरे मुँह से "मेरी लाड़ली" सुनते ही भौजी के मुख पे छत्तीस इंच कि मुस्कराहट फ़ैल गई|)
भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं:
भौजी: कभी हमें भी कहानी सुना दिया करो... जब देखो "अपनी लाड़ली" को गोद में लिए घूमते रहते हो|
मैं: सुना देता पर नेहा तो आधी कहनी सुनते ही सो जाती है, पर आपको सुलाने के लिए काम से काम तीन कहनियाँ लगेंगी| तीन कहनी सुनते-सुनते आधी रात हो जाएगी और आप तो सो जाओगे अपने बिस्तर पे, और मुझे आँखें मलते हुए अपने बिस्तर पे आके सोना होगा|
मेरी बात सुनके सब हँस पड़े| खेर मैं करीब आधे घंटे तक नेहा को अपनी गॉड में लिए घूमता रहा और कहनी सुनाता रहा| जब मुझे लगा की नेहा सो गई है तब मैं उसे लेके भौजी की घर की ओर चल दिया| हंसेः कि तरह, आँगन में दो चारपाइयाँ लगीं थी.. एक पे भौजी लेटी थी और दूसरी नेहा के लिए खाली थी| मैंने नेहा को चारपाई पे लेटाया;
भौजी: सो गई नेहा?
मैं: हाँ बड़ी मुश्किल से!
भौजी: आओ मेरे पास बैठो|
(मैं भौजी के पास बैठ गया|)
मैं: (गहरी सांस लेते हुए|) बताओ क्या हुक्म है मेरे लिए?
भौजी: तुम जब मेरे पास होते हो तो मुझे नींद बहुत अच्छी आती है|
मैं: आप तो सो जाते हो पर मुझे आधी रात को अपने बिस्तर पे जाना पड़ता है|
भौजी: अच्छा जी! खेर मैं "आपको" एक बात बताना चाहती थी, कल मेरा व्रत है|
मैं: व्रत, किस लिए?
भौजी: कल XXXXXX का व्रत है जो हर पत्नी अपने पति की खुशाली के लिए व्रत रखती है| तो मैं भी ये व्रत आपके लिए रखूंगी|
मैं: ठीक है.... तो इसका मतलब कल मैं आपको नहीं छू सकता!
भौजी: सिर्फ शाम तक.. शाम को पूजा के बाद मैं आपके पास आऊँगी|
मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ|
भौजी: मेरे पास बैठने के लिए तो तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है?
मैं: दरवाजा खुला है, घर के सभी लोग अभी जगे हैं... अब किसी ने मुझे आपके साथ देख लिया तो???
भौजी: ठीक है जाओ!!! सोने!!! मैं अकेले यहाँ जागती रहूंगी!!!
मैं बिना कुछ कहे उठ के अपने बिस्तर पे आके लेट गया| अभी दस मिनट ही हुए होंगे की भौजी नेहा को गोद में ले के आइन और मेरे पास लिटाते हुए बोलीं: "लो सम्भालो अपनी लाड़ली को!" मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो चलीं गई... मैं करवट लेके लेट गया और नेहा की छाती थपथपाने लगा| कुछ ही देर में नेहा भी मुझसे लिपट के सो गई|
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बदलाव के बीज--27
अब आगे....
बड़के दादा: बैठो मुन्ना
(मैं चुप-चाप बैठ गया, मेरे तेवर देख के कोई भी कह सकता था कि अगर उन्होंने मेरी शादी कि बात कि तो मैं बगावत कर दूँगा|)
पिताजी: देखो बेटा, बात थोड़ी सी गंभीर है| लड़की मानने को तैयार नहीं है... वो जिद्द पे अड़ी है कि वो शादी तुम से ही करेगी| इसलिए हमने उनसे थोड़ा समय माँगा है ...
मैं: समय किस लिए? आपको जवाब तो मालुम है|
(मेरे तेवर गर्म हो चुके थे .. तभी भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रख के मुझे शांत होने का इशारा किया|)
पिताजी: देखो बेटा हम कल शादी नहीं कर रहे... हमने केवल सोचने के लिए समय माँगा है|
मैं: पिताजी आप मेरा जवाब जानते हो, मैं उससे शादी कभी नहीं करूँगा!!! आप मेरे एक सवाल का जवाब दो, कल को शादी के बाद भी वो इसी तरह कि जिद्द करेगी तो मैं क्या करूँगा? हर बार उसकी जिद्द के आगे झुकता रहूँ? आप लोगों का क्या? मैं और आप तो काम धंधे में लगे रहेंगे और वो घर में माँ को तंग करेगी?
ऐसी जिद्दी लड़की तो मुझे आपसे भी अलग कर देगी और तब बात तलाक पे आएगी? क्या ये ठीक है? आप यही चाहते हो? मैं ये नहीं कह रहा कि लड़की मेरी पसंद कि हो, परन्तु वो काम से काम आप लोगों को तो खुश रख सके| माँ-बाप अपने बच्चों को इतने प्यार से पालते हैं और जब वही बचे बड़े हो के गलत फैसले लें या उनके माँ-बाप उनके लिए गलत फैसले लें तो सब कुछ तबाह हो जाता है|
मेरे दिमाग में जितने भी बहाने आये मैंने सब पिताजी के सामने रख दिए|अब मैं उनका जवाब सुनने को बेचैन था|
पिताजी: बेटा तू इतना जल्दी बड़ा हो गया? हमारे बारे में इतना सोचता है? हमें और क्या चाहिए?
बड़के दादा: भैया तुमने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं अपने लड़के को| मुझे तुम पे गर्व है!!! तुम चिंता मत करो मुन्ना, कल हम जाके ठाकुर साहब को समझा देंगे| अगर फिर भी नहीं माना तो पंचायत इक्कट्ठा कर लेंगे|बहु चलो खाना बनाओ अब सब कुछ ठीक हो गया है, चिंता कि कोई बात नहीं है|
मैं उठ के खड़ा हुआ तो बड़की अम्मा ने मेरा माथा चूमा और माँ ने भी थोड़ा दुलार किया| अगर किसी का मुँह देखने लायक था तो वो था अजय भैया और चन्दर भैया का| दोनों के दोनों हैरान थे और मुझे शाबाशी दे रहे थे|मैं मन ही मन सोच रहा था कि बेटा तू राजनीति में जा ..अच्छा भविष्य है तेरा| क्या स्पीच दी है.. सबके सब खुश होगये!!! मैं मन ही मन अपने आपको शाबाशी देने लगा| भोजन का समय था, सभी पुरुष सदस्य एक कतार में बैठे थे और मेरा नंबर आखरी था| भौजी एक-एक कर के सब को भोजन परोस रही थी| नेहा खाना खा चुकी थी और आँगन में खेल रही थी, सब लोग अब भी शाम को हुई घटना के बारे में बात कर रहे थे| भौजी अभी खामोश थीं... मैं भी चुप-चाप अपना भोजन कर रहा था| तभी नेहा भागते-भागते गिर गई और रोने लगी.. मैंने सोचा कि शायद चन्दर भैया उसे उठाने जायंगे पर उन्होंने तो बैठ-बैठे ही भौजी को हुक्म दे दिया; "जरा देखो, नेहा गिर गई है|" मुझे बड़ा गुस्सा आया उनपर, इसलिए मं खुद भागता हुआ गया और नेहा को गोद में उठाया|
चन्दर भैया: अरे मानु भइया, पहले भोजन तो कर लो; तुम्हारी भाभी देख लेगी उसे|
मैं: अभी आता हूँ| अव्व ले ले मेरे बेटा.. चोट लग गई आपको?
मैं नेहा को हैंडपंप के पास ले गया, अपने हाथ धोये फिर उसके हाथ-पाँव धोये| अपने रुमाल से उसके चोट वाली जगह को धीरे-धीरे पोंछा, इतने में भौजी भी वहाँ भागती हुई आ गईं;
भौजी: लाओ मानु मैं देखती हूँ मेरी लाड़ली को क्या होगया?
मैं: नहीं आप अभी इसे छू नहीं सकते... आपने बाकियों को भोजन परोसना है| मैं नेहा को दवाई लगा के अभी लाता हूँ|
मैं नेहा को पुचकारते हुए अपने साथ बड़े घर लेग्या और उसके चोट ओ डेटोल से साफ़ किया फिर दवाई लगाई| ज्यादा गंभीर चोट नहीं थी पर बच्चे तो आखिर बच्चे होते है ना| करीब पंद्रह मिनट बाद वापस आया तो देखा सब खाना खा के उठ चुके थे| मैंने नेहा को गोद से उतरा और अपनी चारपाई पे बैठा दिया|
:आप यहीं बैठो.. मैं खाना खा के आता हूँ, फिर आपको क नै कहानी सुनाउंगा|"
मैंने भौजी से पूछा कि मेरी थाली कहाँ है तो उन्होंने उसमें और भोजन परोस के दे दिया| मैं उनकी ओर हैरानी से देखने लगा; तभी वो बोलीं "सभी बर्तन जूठे हैं इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ ही खाऊँगी|"
मैंने एक रोटी खाई और उठने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ के बैठा दिया ओर कहा; "एक रोटी मेरी ओर से|" मैंने ना में सर हिलाया तो वो बनावटी गुस्से में बोलीं; "ठीक है तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|" अब मैंने जबरदस्ती एक और रोटी खा ली और हाथ-मुँह धो के नेहा के पास आ गया| नेहा मेरा इन्तेजार करते हुए अब भी जाग रही थी... नेहा को अपनी गोद में लिए मैं टहलने लगा और कहानी सुनाता रहा और उसकी पीठ सहलाता रहा ताकि वो सो जाए| इधर सभी अपने-अपने बिस्तर में घुस चुके थे... मैं जब टहलते हुए पिताजी के पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने को कहा; तभी भौजी वहाँ बड़के दादा के लिए लोटे में पानी ले के आ गईं ताकि अगर उन्हें रात में प्यास लगे तो पानी पी सकें|
पिताजी: क्या हुआ चक्कर क्यों काट रहा है?
मैं: अपनी लाड़ली को कहनी सुना रहा हूँ|
(मेरे मुँह से "मेरी लाड़ली" सुनते ही भौजी के मुख पे छत्तीस इंच कि मुस्कराहट फ़ैल गई|)
भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं:
भौजी: कभी हमें भी कहानी सुना दिया करो... जब देखो "अपनी लाड़ली" को गोद में लिए घूमते रहते हो|
मैं: सुना देता पर नेहा तो आधी कहनी सुनते ही सो जाती है, पर आपको सुलाने के लिए काम से काम तीन कहनियाँ लगेंगी| तीन कहनी सुनते-सुनते आधी रात हो जाएगी और आप तो सो जाओगे अपने बिस्तर पे, और मुझे आँखें मलते हुए अपने बिस्तर पे आके सोना होगा|
मेरी बात सुनके सब हँस पड़े| खेर मैं करीब आधे घंटे तक नेहा को अपनी गॉड में लिए घूमता रहा और कहनी सुनाता रहा| जब मुझे लगा की नेहा सो गई है तब मैं उसे लेके भौजी की घर की ओर चल दिया| हंसेः कि तरह, आँगन में दो चारपाइयाँ लगीं थी.. एक पे भौजी लेटी थी और दूसरी नेहा के लिए खाली थी| मैंने नेहा को चारपाई पे लेटाया;
भौजी: सो गई नेहा?
मैं: हाँ बड़ी मुश्किल से!
भौजी: आओ मेरे पास बैठो|
(मैं भौजी के पास बैठ गया|)
मैं: (गहरी सांस लेते हुए|) बताओ क्या हुक्म है मेरे लिए?
भौजी: तुम जब मेरे पास होते हो तो मुझे नींद बहुत अच्छी आती है|
मैं: आप तो सो जाते हो पर मुझे आधी रात को अपने बिस्तर पे जाना पड़ता है|
भौजी: अच्छा जी! खेर मैं "आपको" एक बात बताना चाहती थी, कल मेरा व्रत है|
मैं: व्रत, किस लिए?
भौजी: कल XXXXXX का व्रत है जो हर पत्नी अपने पति की खुशाली के लिए व्रत रखती है| तो मैं भी ये व्रत आपके लिए रखूंगी|
मैं: ठीक है.... तो इसका मतलब कल मैं आपको नहीं छू सकता!
भौजी: सिर्फ शाम तक.. शाम को पूजा के बाद मैं आपके पास आऊँगी|
मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ|
भौजी: मेरे पास बैठने के लिए तो तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है?
मैं: दरवाजा खुला है, घर के सभी लोग अभी जगे हैं... अब किसी ने मुझे आपके साथ देख लिया तो???
भौजी: ठीक है जाओ!!! सोने!!! मैं अकेले यहाँ जागती रहूंगी!!!
मैं बिना कुछ कहे उठ के अपने बिस्तर पे आके लेट गया| अभी दस मिनट ही हुए होंगे की भौजी नेहा को गोद में ले के आइन और मेरे पास लिटाते हुए बोलीं: "लो सम्भालो अपनी लाड़ली को!" मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो चलीं गई... मैं करवट लेके लेट गया और नेहा की छाती थपथपाने लगा| कुछ ही देर में नेहा भी मुझसे लिपट के सो गई|
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