Sunday, August 17, 2014

FUN-MAZA-MASTI छोटी बहन के साथ--11

FUN-MAZA-MASTI
 छोटी बहन के साथ--11

 मेरा मन अब ज्यादा रुकने का नहीं था सो मैंने अब सीधे-सीधे कहा, "दिखाओ ना विभा... क्या ड्रामा कर रही हो... इतने से कम रीक्वेस्ट में तो विनीत अपनी कमसीन बेटी को मेरे सामने नंगा करके खड़ा कर देता। विभा भी अब अपने हाथ कमर पर ले जाकर अपनी पैन्टी में ऊँगली फ़ँसा कर बोली, "छी भैया... कैसे हैं आप, विनीत भैया की बेटी तो अभी बिल्कुल बच्ची है"। मैं विभा की नंगी हो रही बूर पर नजरें टिकाए हुए बोला, "ऐसी बच्ची भी नहीं है अब, नींबू जितनी हो गई है उसकी छाती... विनीत का कहना है कि एक साल लगेगा नींबू को संतरा बनने में... और मैं कह रहा हूँ कि तीन महीने में दीपा की छाती संतरे जितनी हो जाएगी... १००० रु० की शर्त लगी है हम दोनों में।" विभा अब अपना नंगापन भुल गई और बोली, "कितना गन्दा सोचते हैं आपलोग... बेचारी को पता भी नहीं होगा और आप दोनों दोस्त अभी से..."। मैंने अब विभा से कहा, "छोड़े दीपा को... अभी उसको तैयार होने में समय लगेगा... तुम तो तैयार माल हो मेरी रानी"। मैं उसकी झाँटों से भरी बूर पर नजर टिकाए हुए था। वो अभी भी हमारे शर्त के बारे में सोचते हुए बोली, "बेचारी दीपा... अभी गोद में खेलने की उम्र है उसकी और आप दोनों उसकी जवानी पर शर्त लगाए बैठे हैं"। मैंने कहा, "तेरह पार है... टीनएजर है अब एक साल से... और गोदी में तो लड़कियों को मर्द-लोग उम्र भर खिलाते हैं... आओ मेरी गोदी में मैं तुम्हें बीस की उम्र में भी गोदी में खिलाऊँगा... और जब तीस-चालीस की हो जाओगी तब भी... एक बार टीनएज में लड़की आई कि वो माल हो गई मर्दों के लिए"। मैंने हाथ पकड़ कर विभा को अपनी तरफ़ खींचा और फ़िर हल्के से घुमा कर उसको अपनी गोद में बिठा लिया। मैं बिस्तर के किनारे पैर नीचे लटका कर बैठा था और विभा मेरी गोद में ऐसे बैठी जैसे कुर्सी पर बैठी हो। उसका पीठ मेरे सीने से सटा था और मेरा लन्ड उसकी चुतड़ की फ़ाँक से दबा हुआ था। मैं अपने बाएँ हाथ से उसकी चुच्चियों को संभाले हुए था और दाहिने हाथ से उसकी झाँटों को सहला रहा था। कम-से-कम तीन इंच जरुर था झाँट सब, और वो खुब फ़ैला हुआ नहीं था। सब-का-सब बूर की फ़ाँक के इर्द-गिर्द हीं जमा हुआ था और फ़ाँक का कुछ अंदाजा नहीं चला, वो शायद अपना जाँघ भींच कर रखे हुए थी।

 मैंने उसको हल्के से अपने गोदी से उतारा और फ़िर बिस्तर पर लिटा दिया और उसके कमर के पास पालथी मार कर बैठ गया। विभा का छोटा सा ४’-१०" का गोरा-चिट्टा नंगा बदन मेरे सामने बिस्तर पर फ़ैला हुआ था और मैं टकटकी लगाए उसकी फ़ूली हुई बूर के ऊपर उगे ३-४" के काले-काले घुंघराले झाँटों पे नजर जमाए हुए था। मेरे मुँह से निकला, "क्या माल है यार... बहुत सुन्दर हो विभा... मेरी प्यारी बहना..."। विभा मेरे मुँह से अपनी बड़ाई सुन कर फ़ुली ना समाई और कहा, "मेरी लम्बाई ही तो कम है...५ फ़ीट भी नहीं है"। मैंने कहा, "ऐसी कम भी लम्बाई नहीं है तुम्हारी.... और फ़िर लड़की की जवानी लम्बाई में नहीं, उसके चुच्ची और बूर में बसती है। प्रभा और स्वीटी का तो देखी हो ना कैसा छोटा है चुच्ची उन दोनों का। मैंने बताया था न कि हर मर्द लड़की के बदन पर नजर डाल कर सबसे पहले उसकी चूच्ची हीं नापता है अपने दिमाग में और तुम्हारी तो जबर्दस्त है ३०"/९०से०मी०... एकदम सही है किसी माल के लिए। अब जाँघ खोलो अपना तो बूर देखें"। उसने अपनी जाँघ फ़ैला दी। मैंने अपनी दाँई हथेली से उसकी बूर को टटोला और बोला, "माय गौड... कितना गर्म है रे तुम्हारा... इस्स्स्स... हाथ जल जाएगा"। मैंने हाथ जल्दी से हटाया, तो वो मेरी इस स्टाईल पर हँसी और बोली, "क्या सच में..."। मैं भी उसी तरह बोला, "सच नहीं तो क्या मैं मुच बोलुँगा..." और मैंने अब अपना चेहरा नीचे झुका कर उसकी झाँट से आ रही कसैले गंध को खुब प्यार से महसूस किया। उसे लगा की मैं वहाँ चाटुँगा, सो वो हड़बड़ा कर बोली, "चाटिए नहीं भैया... पेशाब वगैरह लगा रहता है उसमें गन्दा है अभी"। मैंने उसको समझाया, "पगली.... चाटेंगे तभी तो सुरसुरी होगा तुम्हारे बदन में और मजा मिलेगा... और एक बात सेक्स में कुछ गन्दा नहीं होता है। वैसे भी जिसको प्यार किया जाए वो गन्दा कैसा... यह छेद तो हर मर्द को सिर्फ़ मजा देता है। मर्द चाहे कोई हो पति हो, ब्वायफ़्रेन्ड या भाई या कोई और..." कहते हुए मैं उसके जाँघ को और खोल कर अपना एक ऊँगली उसकी फ़ाँक पर चला कर उसके बूर के गीलेपन से गीला हुए ऊँगली को मैंने उसको दिखाते हुए चाटा... कसैला-खट्टा सा स्वाद मिला हल्का सा मुझे और मेरा लन्ड एक ठुनकी मारा और झड़ गया। लण्ड से निकला पिचकारी विभा की जाँघ पर फ़ैल गया। विभा इस पर कुछ खास ध्यान नहीं दी या शायद उसके खुद के सनसनाते हुए बदन में उसको इस्का पता हीं नहीं चला कि क्या हुआ है।

 मैं गौर कर रहा था कि विभा के पूरे बदन से बाल साफ़ थे, शायद उसने हाल में हीं हेयर-रिमुवर लगाया था... बस सिर्फ़ झाँट हीं इतनी बड़ी-बड़ी थी कि क्या बताऊँ। मैंने जब यही बात विभा को बताई तो वो बोली, "वहाँ का बाल कभी साफ़ हीं नहीं की हूँ। शुरु-शुरु में मम्मी से बोली थी तो वो कही कि अभी से बाल साफ़ करोगी तो सब बाल कड़ा हो जाएगा। प्रभा दीदी तो शुरु से बाल साफ़ करती थी पापा के रेजर से, मैं मम्मी की बात मान लेती पर वो चुरा-छुपा के बाल साफ़ कर लेती थी। वो कहती थी, कि उसको बाल अच्छा नहीं लगता है... पर मुझे तो कभी कुछ खास परेशानी नहीं हुई सो क्यों साफ़ करती। अब तो आदत हो गया है"। मैं यह सब सुनते हुए उसकी पेट और नाभी से खेल रहा था और बीच-बीच में कोई चूची मसल देता तो वो बोलते-बोलते रुकती और एक हल्की सी कराह उसके मुँह से निकल जाती। मैंन अब उसकी गहरी नाभी में अपनी जीभ घुमा रहा था और उसको गुदगुदी लग रही थी तो वो कसमसाने लगी। तभी मैंने उसके जाँघ खोल कर अपना एक हाथ उसकी बूर की फ़ाँक पर चलाने लगा। उसकी बूर पूरी तरह से पनियानी हुई थी। मैंने उसके बूर के पानी से हीं अपना ऊँगली गीला करके उसकी फ़ाँक के ऊपरवाले हिस्से, जहाँ टीट होती है हल्के-हलके मसलने लगा। जल्दी ही उसको समझ में आने लगा कि यह कुछ नया हो रहा है। वो अब जोर-जोर से साँस लेने लगी थी। बीच-बीच में एक मीठी कराह उसके मुँह से निकल जाती। मैंने अपने ऊँगलियों से उसकी फ़ाँक खोली और फ़िर उसकी फ़ूली हुई मटर जितनी साईज के टीट को जोड़ से रगड़ा और वो जोर से चीख पड़ी। उसकी आँखें अब मस्ती से ऊपर की तरह पलटने लगी थी। वो अपने-आप को मेरे गिरफ़्त से छूड़ाना चाहती थी, पर मैं उसके कमर को कुछ ऐसे दबाए हुए था कि बेचारी छुट न सकी। वो अब गिड़गिड़ाई, "भैया अब नहीं.... ओअओह.... अब छोड़ दीजिए"। मैंने मसलना धीमा किया तो वो थोड़ा शान्त हुई। फ़िर मैंने कहा, "विभा, यह तो ट्रेलर था मस्ती का, अब देखना जब मैं जीभ से रगड़ुँगा तब असल मजा आएगा"। फ़िर मैंने उसकी कमर के नीचे एक तकिया लगाया और फ़िर उसकी खुली हुई दोनों जांघों के बीच में बैठ कर उसके बूर पर अपना मुँह लगा दिया और जीभ को चौड़ा करके उसके बूर की फ़ाँक को पूरा नीचे से ऊपर तक चाटा। बूर का पानी अब मेरे मुँह में घुल रहा था और मैं मस्ती से उसकी कुँवारी, अनचुदी बूर का स्वाद लेने लगा था। अनचुदी बूर का स्वाद लाजवाब होता है... और अगर वो अपनी छोटी बहन की हो तो फ़िर क्या कहने। विभा की सिसकियाँ पूरे कमरे में फ़ैल कर माहौल को शानदार बना रही थी। करीब १० मिनट तक मैं अलग-अलग तरीके से मैं बूर चुसा तब जा कर वो झड़ गई और मेरे मुँह में कसैले-खट्टे स्वाद पानी सब ओर लिपस गया। झड़ने के बाद वो शान्त हो गई थी और लम्बे-लम्बे साँस ले रही थी। 


मैं अब उसकी बूर पर से उठा और उसके चेहरे पर नजर डाली। आँख बन्द करके वो निढ़ाल सा बिस्तर पर फ़ैली हुई थी। मैंने विभा की बूर के पानी से लिथड़े हुए अपने होठ विभा के होठ से सटा कर उसको चुमना शुरु किया। मैं बोला, "चाटो न मेरा होठ विभा..."। आँख बन्द किए हुए हीं वो होठ चाटी तो उसको भी अपने बूर के स्वाद का पता चला शायद... बुरा सा मुँह बनाते हुए वो अपना आँख खोली और कहा, "उः... कैसा स्वाद है... पेशाब जैसा लग रहा है... छीः"। मैंने हँस कर कहा, "तुम्हारे बूर का स्वाद है...तुमको खराब लग रहा है"। विभा बोली, "छीः... कैसे आप उसको इतना देर से चाट रहे थे। बहुत गन्दे हैं आप भैया"। मैं बोला, "ज्यादा बोली तो मुँह में लौंड़ा पेल देंगे, समझी जानूं...." और एक जोर का चुम्मा उसके होठ पर जड़ कर मैंने पूछा, "चुद्वाएगी क्या मेरी प्यारी बहना...?" मैं अपना लन्ड सहला रहा था। वो बोली, "धत्त...." और ऊठ कर बैठ गई और अपने कपड़े पहनने लगी। मैं समझ गया कि अभी ज्यादा तेजी बेकार है सो मैं भी अब जिद छोड़ दिया। मुझे यकीन था कि जल्द हीं विभा अपना सील मुझसे हीं तुड़वाएगी। अपने घर का माल थी सो हड़बड़ी में काम बिगड़ भी सकता था तो मैं भी अब अपना बरमुडा उठा लिया। विभा ब्रा-पैन्टी पहनकर अपना सलवार-कुर्ती ले कर अपने कमरे की तरफ़ चल दी। मैंने कहा भी कि मेरे साथ ही सो जाए, तो वो बोली कि नहीं सुबह रीना (मेरे घर की कामवाली बाई) आएगी। साढ़े बारह के करीब हो चला था तो मैं भी सोने की तैयारी में लग गया।


 अगली सुबह मैं वाक से आया तो विभा नहा धो कर पूजा कर रही थी और कामवाली झाड़ु-बुहारू में लगी हुई थी। मैं भी नहा धो कर आया विभा नास्ता के टेबुल पर मेरा इंतजार कर रही थी, काम वाली तुरन्त गई थी और घर पर सिर्फ़ हमदोंनो ही थे।
मैंने कल वाली बात दुहराई, "कल सोने में अच्छा लगा, उस सब के बाद?"
"हाँ भैया, बहुत गहरी नींद आई। बदन के रोम-रोम का दर्द जैसे निकल गया था। एकदम हल्का लग रहा था बदन सोते समय", विभा बोली।
नास्ता करते हुए मैंने कहा, "यह तो कुछ भी नहीं है, जब सही चुदाई कराओगी फ़िर पता चलेगा"।
विभा बोली, "सही कह रहे हैं भैया आप...., अब तो लगता है कराना पड़ेगा।"
मैं चहका, "चलो फ़िर बिस्तर पर... कि यही चुदाओगी..."।
वो मुझे झिड़की, "हत्त.... अभी सुबह-सुबह आप भी क्ता बात ले कर बैठ गए। शाम में फ़िर जैसे कल किए थे वैसे हीं करेंगे"।
मैंने मुँह बनाते हुए कहा, "ठीक है...अगर उतने से ही संतुष्ट हो, पर मेरे लन्ड का क्या? कल तो बेचारा खुब हीं बेहाल हुआ और फ़िर निढ़ाल हुआ"।
"क्यों... जैसे पहले ब्लू-फ़िल्म देख कर हस्तमैथुन करते थे कर लीजिएगा", वो मुस्कुराते हुए बोली और फ़िर नास्ता का सब प्लेट वगैरह ले कर चली गई।
मैं भी जिद नहीं कर रहा था। मेरी सबसे छुईमुई बहन, विभा, आज एक दिन के बाद खुद अपने मुँह से मुझसे मुख-मैथुन के लिए तैयार थी और यह मेरी बड़ी उपलब्धि थी। मुझे पता था कि आज न काल वो मेरे से हीं सील तुड़वाएगी। आज दिन भर मुझे काम में मन न लगा और बार-बार विभा का अनछुआ बदन मेरे दिमाग में आ रहा था। शाम को करीब ६ बजे हीं मैं घर के चल दिया। सात बजे के करीब घर आया। विभा मुझे देख कर हैरान रह गई और खुश भी हुई। मेरे हाथों में चाय देते हुए बोली, "मेरे बदन के लिए आप आज जल्दी घर आ गए"। मैंने थोड़ा झेंपते हुए कहा, "ऐसी बात नहीं है पर जब आ गए हैं तो फ़िर आज हमलोग जल्दी शुरु कर देंगे। इससे आराम से देर तक एक-दुसरे के बदन से खेलने का मौका मिलेगा।" विभा बोली, "ठीक है... मैं जल्दी से खाना बना लेती हूँ" फ़िर हमलोग खेलेंगे"।



 करीब आठ बजे तक विभा किचेन से फ़्री हुई और पसीने से लथपथ मुझसे बोली, "नहा के खाना लगा देती हूँ... ठीक है"। मैंने कहा, "खाना हम लोग बाद में खाएँगे, पेट भारी होने से मजा कम मिलेगा। आओ पहले हमलोग अपना बदन ढ़ीला कर ले फ़िर खाना-वाना आराम से खाएँगे"। विभा बोली, "ठीक है... मैं दो मिनट में नहा के आई..."। मैंने उसकी कलाई पकड़ी और अपने पास खींचते हुए कहा, "क्या विभा डार्लिंग, पसीने की गन्ध तो प्यार करने वालों के एक टौनिक है... जब सही से चुदोगी तब इसी पसीने के बहने में असल मजा मिलेगा। आ जाओ डार्लिंग जैसे हो...मन बेचैन हो रहा है"। विभा मुस्कुराते हुए मेरी गोद में बैठते हुए बोली, "वाह रे, एक दिन में डार्लिंग बना लिए... अब आज के बाद गर्लफ़्रेन्ड बना लीजिएगा क्या?" मैंने उसकी दोनों चुचियों को कपड़े के ऊपर से मसलते हुए कहा, "तुम जो कहोगी मैं वही बना लुँगा तुमको। अब तो मैं तुम्हारे बदन का गुलाम हूँ"। वो खुब प्यार से पूछी, "आपको क्या मन है... आप मुझे क्या बनाना चाहते हैं"। मैंने उसके होठ से अपने होठ मिलाए और फ़िर कहा, "बताऊँ, मुझे क्या मन है... तुम बूरा मान जाओगी"। विभा ने कहा, "नहीं बूरा मनुँगी, अब बताईए न आपको क्या मन है"? मैंने भूमिका बाँधते हुए कहा, "वैसे यह होगा नहीं पर मेरा बस चले तो मैं तुम्हें इंटरनेशनल पोर्न-स्टार बनाऊँ। खुब सारी ब्लू-फ़िल्म में तुम काम करो। पूरी दुनिया तुम्हें पहचाने और फ़िर तुम्हारे नाम की मूठ मारे"। विभा बोली, "छी... कोई अपनी बहन के लिए ऐसे बोलता है। बहुत गन्दे हैं आप"। मैंने उसके पेट सहलाते हुए कहा, "क्यों, आखिर ब्लू-फ़िल्म की हीरोईन सब भी तो किसी की बेटी और बहन होती है। लड़की अपने बाप-भाई से चुदा सकती है और ब्लू-फ़िल्म में काम नहीं कर सकती, ये क्या बात हुई..."। वोभा अब सोचते हुए बोली, "हाँ बात तो सही है, अच्छा भैया... आज आप कोई बहुत गन्दी फ़िल्म दिखाईए ना मुझे।" मैंने कहा, "ठीक है पर मेरा ईनाम..."। मेरी बहन बात समझते हुए बोली, "मिलेगा.... आज न कल पर मिलेगा यह तय है। ...कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर..."। उसने मुझे भरोसा दिलाया।


 मैं उसको ले कर अपने रुम में आया और फ़िर कंप्युटर औन करके बोला, "एक फ़िल्म है लोकल लड़की की। उसके मामा का टेलरिंग शौप है, उसी दुकान में उस लड़की को उसका मामा और एक उसका दोस्त चोदा है। करीब तीन साल पुराना विडियो है, अब तो लड़की की भी शादी हो गई है पुर्णियाँ में। कभी चलोगी तो उसको भी दिखा दुँगा, वो सेल्सगर्ल है टाईटन शो-रुम में। विडियो मस्त है.... देखोगी या कोई विदेशी गन्दा सा फ़िल्म लगा दूँ"। विभा उत्तेजित हो कर बोली, "कहाँ मिला ऐसा विडियो....?" मैंने कहा, "५००० में खरीदा उसके मामा से। लड़की का नाम सलमा है, तो सलमा नाम से है कंप्युटर पर... अगर कभी देखना हो बाद में तो"। विडियो अब शुरु हो गया था। एक सोफ़े पर एक १६-१७ साल की लड़की नीले सलवार सुट में बैठ कर सामने टीवी पर एक ब्लू-फ़िल्म देख रही थी और उसके अगल-बगल दो मर्द बैठ कर शराब पी रहे थे। दोनों की उम्र ४०-४२ के करीब थी। लड़की बिना उन मर्दों की तरफ़ देखे सीधे टीवी पर नजर गराए थी पर वो दोनों कभी-कभी अपना ग्लास उसके होठे से सटाते तो वो एक चुस्की शरब पी लेती, अगर वो दोनों उसकी तरफ़ सिगरेट करते तो एक कश ले लेती। जब वो करीब ७-८ चुस्की शराब पी ली तब उसने एक बार मना कर दिया, "अब नहीं मामूजान..."। उसका मामा उसको सिखाया, "अरे सलमा बेटा, मामूजान नहीं फ़ैज बोलो... ये क्या बात हुई कि नूर को तो नूर मियां बोलती हो और मुझे मामू..."। नूर ने उसको चिढ़ाया, "अबे साले तू उसका मामा है तो बोलेगी ही। उसको तो मैंने पटाया था तू तो बीच में कबाब में हड्डी बन कर आ गया है... क्युँ सलमा"। फ़ैज ने कहा, "अरे तो फ़िर इसका निकाह भी तो अपने साले से तय कराया है.... लड़का अरब में है, अच्छे घर में जाएगी, मजे करेगी तो एक बार मुझे भी तो हक है... क्यों सलमा"। सलमा बिना कुछ कहे चुप-चाप सब देख रही थी। फ़ैज हीं पहले सलमा को अपनी बाँहों में लिया। सलमा कसमसा कर अपने को अलग करने की कोशिश की और अपनी नजर टीवी पर टिकाए थी। विभा यह देख कर बोली, "लग रहा है लड़की बेचारी को ये दोनों फ़ँसा कर लाए हैं"। मैंने कहा, "फ़ँसाना तो नहीं... लड़की खेली-खाई हुई है... वो सब जानती है कि उसको आज यहा क्यों लाया गया है। हो सकता है कि लड़की शायद मामा से यह सब करते शर्मा रही हो"। विभा मेरी हाँ में हाँ मिलाई, "सही कह रहे हो भैया, नहीं तो ऐसे इन दोनों के साथ नहीं बैठती"।







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